अध्याय 44
“नमस्ते बुआ जी!” सरला ने सुना तो पलटकर पीछे देखा तो नारंगी रंग के सलवार कुर्ते में एक पतली सी लड़की खड़ी हुई है और उसके साथ एक और उससे छोटी और थोड़े भरे हुये शरीर की लड़की गुलाबी फ्रॉक में खड़ी हुई है... सरला उन दोनों को देखती ही रह गईं तो बड़ी लड़की ने उनके चेहरे के आगे हाथ हिलाया
“क्या हुआ बुआजी.... कहाँ खो गईं.... पहचाना नहीं.... में रागिनी और ये रुक्मिणी... जयराज ताऊजी की बेटी” रागिनी ने मुसकुराते हुये कहा
“अरे कितनी बड़ी हो गयी... में तो पहचान भी नहीं पायी.... और पतली कितनी हो गई.... में तो रुक्मिणी को को देखकर सोच रही थी की रागिनी की शक्ल कुछ बादल सी गयी है.... पिछली बार आयी थी तब तुम ऐसी ही मोटी सी थी” सरला ने दोनों लड़कियों के हाथ पकड़ते हुये कहा
इधर पास में ही कुर्सी पर बैठा देव टकटकी बांधे रागिनी की ओर ही देखे जा रहा था... उसकी लंबाई तो पहले जितनी ही थी.... पहले से कुछ पतली हो गयी थी... देखने में पहले से भी कम उम्र की लग रही थी... हालांकि उम्र के हिसाब से तो वो 19 साल की, (उस समय में 19 साल की उम्र में नाबालिग यू/ए ही माने जाते थे.... तब 21 साल की उम्र में बालिग होते थे) अपने भाई बहनों में सबसे बड़ी थी.... लेकिन शरीर के हिसाब से रवीन्द्र, विक्रम और रुक्मिणी तीनों में सबसे छोटी लग रही थी...
तभी देव को अपनी आँखों के सामने पानी का गिलास दिखाई दिया लहराता हुआ तो उसने नजरें घुमाकर सामने देखा। सामने विक्रम पानी का गिलास उसके सामने लिए खड़ा था और उसकी ओर घूरकर देख रहा था। देव ने तुरंत विक्रम की नजरों से अपनी नजरें हटाईं और चारों ओर को देखा तो देखा की कमरे के दरवाजे पर खड़ा रवीन्द्र भी उसे घूरकर देख रहा था
“फूफाजी! पानी ले लो... कबसे विक्रम आपको कह रहा है.... कहाँ ध्यान है आपका” रवीन्द्र ने देव से नजरें मिलते ही कहा... हालांकि रवीन्द्र ने बड़े सम्मान के साथ कहा था लेकिन उसके चेहरे पर गुस्सा कुछ और ही कहानी कह रहा था। देव ने जल्दी से विक्रम के हाथ से गिलास लिया और पानी पीने लगा जैसे की उसके चोरी पकड़ी गयी हो। रवीद्र की आवाज सुनते ही रागिनी और रुक्मिणी ने भी मुस्कुराकर देव की ओर देखा और नमस्ते किए हाथ जोड़कर।
“बुआ इस बार भी आप इनके साथ आयीं हैं.... फूफाजी नहीं आए?” रागिनी ने सरला की ओर मुड़कर कहा
“बेटा तेरे फूफाजी को मेरे साथ कहीं जाने की फुर्सत ही कहाँ है.... बस इसी का भरोसा है... यही तैयार रहता है मेरे हर काम के लिए.... इससे छोटा पप्पू तो दुकान तक भी नहीं जाता मेरे कहने से......... और ये तूने इनके उनके क्या लगा रखी है... ये भी तेरे फूफाजी ही हैं.... देवराज.... याद है पिछली बार गजराज की शादी पर आयी थी तब भी तो इनके साथ ही गयी थी...तब नहीं देखा तूने” सरला ने अपनी आदत के अनुसार रागिनी को बोलने का मौका दिये बिना ही अपनी बात जारी रखी
रागिनी ने सरला की बात सुनकर कोई जवाब नहीं दिया और शरमाकर कमरे से बाहर चली गयी दरवाजे पर खड़े रवीन्द्र का हाथ पकड़कर। इधर विक्रम ने भी देवराज के हाथ से पानी का खाली गिलास लिया और बाहर निकाल गया।
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“कुँवर साहब शर्मा कैसे रहे हो आप.... कुछ खाओ भी खाली पेट चाय पीकर ही ‘सारे’ काम करते हो क्या?.......... अपनी भाभी के” वसुंधरा ने मज़ाक में काम पर ज़ोर देते हुये देवराज को सामने रखे नाश्ते की ओर इशारा करते हुये कहा तो देवराज ने शर्माते हुये मिठाई का एक टुकड़ा उठाया और खाने लगा
“भाभी बहुत मज़ाक करने लगी हो आप.... मत भूलो मेरे तो 2 ही देवर हैं लेकिन तुम्हारे तो 4—4 देवर हैं... में बताने पर आयी ना की कितने काम क्या-क्या खिलाकर कराती हो.... तो भाग जाओगी उठकर” सरला ने भी वसुंधरा की मज़ाक का जवाब मज़ाक में ही देते हुये कहा।
ऐसे ही नाश्ता हुआ उसके बाद देवराज ने दिल्ली जाने को कहा तो सरला ने कहा कि आज तो बारात वापस ही लौटी है...वो तो 3-4 दिन बाद ही यहाँ से जाएगी... अगर देवराज को काम कि परेशानी ना हो तो वो भी रुक जाए...क्योंकि फिर कहाँ बार-बार आयेगा, और आज तो वैसे भी वापस ना जाए... सारी रात बारात में जागता रहा है इसलिए आराम कर ले। तो देवराज ने कहा कि वो पीसीओ से अपने मालिक को फोन करके देखता है अगर छुट्टी मिल जाए तो
रवीन्द्र और विक्रम तो शादी कि वजह से घर में फैले काम में लगे हुये थे इसलिए वसुंधरा ने रागिनी से कहा कि वो पास की मार्केट में देवराज को ले जाकर फोन करवा दे। रागिनी देवराज के साथ चल दी... उन दिनों पीसीओ भी हर जगह नहीं हुआ करते थे तो लगभग 1 किलोमीटर दूर मार्केट के लिए रागिनी देवराज को लेकर चल दी
गली से बाहर आते ही देवराज ने हिम्मत करके रागिनी से बात करना शुरू किया पहले पढ़ाई लिखाई को लेकर फिर कहाँ रहती है और आखिर में अपने घर आने का बोला कि कभी हमारे गाँव भी आओ। इस पर रागिनी ने कहा कि आप तो दिल्ली में होते हुये भी नहीं आते.... वो तो सरला बुआ साथ ले आती हैं इसलिए आना पड़ता है आपको... इस पर देवराज ने कहा कि अब तुमने बुलाया है तो आना ही पड़ेगा.... पहले तुमने बुलाया ही नहीं जो मैं आता....
धीरे-धीरे चलते हुये रागिनी और देवराज मार्केट में पहुँच गए और देवराज ने फोन करके बोल दिया कि गाँव में भाभी बीमार हैं इसलिए वो गाँव से आ नहीं पाया...अभी 3-4 दिन और लग जाएंगे........ उस जमाने में फोन पर कॉलर आईडी भी नहीं होती थी जो फोन का पता चल पता कि कहाँ से किया गया...हुआ ये था कि रमेश ने भी देवराज को बारात में जाने के लिए कह दिया था और सरला ने भी ज़ोर दिया तो देवराज सीधा सरला के साथ ही नोएडा आ गया... क्योंकि एक बार ड्यूटि पर पहुँचने के बाद दूसरे ही दिन छुट्टी लेना मुमकिन नहीं था तो उसने सोचा कि बारात के बाद ही सीधा ड्यूटि पर जाएगा
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दूसरे दिन सरला ने देवराज से कहा आज यहाँ कोई खास काम नहीं होना है.... कल देवराज और बहू का कंगन खुलने की रस्म होगी.... इसलिए आज वो उसे दिल्ली घूमा लाये... इतनी बार दिल्ली आने के बाद भी उसने दिल्ली में कुछ नहीं देखा..... तो देवराज ने कहा कि हम दोनों तो जाएंगे ही... अगर इन लोगों को कोई आपत्ति ना हो तो बच्चों को भी साथ घूमने ले चलें
सरला ने अपनी मौसी निर्मला से कहा तो उन्होने कहा कि छोटे बच्चे तो इतनी दूर जाने और सारे दिन घूमने में परेशान हो जाएंगे इसलिए रवीन्द्र और विक्रम को ले जाएँ... ये दोनों तो वैसे भी घूमते ही रहते हैं... इस पर सरला ने कहा कि रागिनी को भी भेज दो.... पता नहीं कभी कहीं घूमने जा भी पाती है या नहीं.... तो निर्मला ने कुछ सोच समझकर रागिनी को ले जाने कि अनुमति दे दी। जब सरला ने रागिनी से साथ चलने के लिए कहा तो विजयराज भी वहीं मौजूद थे उन्होने भी अपनी सहमति दे दी।
नाश्ता वगैरह करके देवराज, सरला, रागिनी, रवीन्द्र और विक्रम घर से निकले। आज रागिनी के चेहरे पर भी उत्साह था... क्योंकि बचपन में माँ के जिंदा रहते सभी परिवार के साथ रहते हुये वो सब घूमने और सिनेमा हॉल पर फिल्म देखने जाते रहते थे.... लेकिन माँ कि मृत्यु और परिवार से अलग होने के बाद रागिनी पर घर सम्हालने कि ज़िम्मेदारी आ गयी और वो बिना काम कहीं जा ही नहीं पाती थी... ज्यादा से ज्यादा अपने घर से निकलकर दादी निर्मला के पास जो गजराज और बलराज के साथ रहती थी या उनके पास में ही रह रहे जारज के यहाँ.... घर कि जिम्मेदारियों और विजयराज की अव्यवस्थित ज़िंदगी ने रागिनी का बचपन, साथी-सहेलियाँ सब छीन लिए थे।
नोएडा सैक्टर 22 के बस स्टैंड से वो सभी बस में बैठकर लाल किला पहुंचे तो रागिनी ने अपनी सरला बुआ और रविंद-विक्रम को लाल किले के बारे में बताना शुरू किया.... वो पहले भी लाल किला अपने स्कूल के टूर में आ चुकी थी। देवराज पूरे रास्ते चोर नज़रों से रागिनी को ही देखता आ रहा था। अब भी उसकी नज़रें रागिनी के हिलते होठों पर थीं लेकिन कान कुछ सुन ही नहीं रहे थे। वो सब लाल किला के बस स्टॉप पर उतरकर किले में अंदर पहुंचे तो सरला उतने ही रास्ते में थक गयी और किले में अंदर खुले मैदान पर घास में बैठ गयी जबकि रवीन्द्र-विक्रम उछलते कूदते इधर उधर देखने लगे कि वहाँ क्या-क्या है... रागिनी और देवराज भी सरला के साथ वहीं घास पर बैठ गए
“बुआ जी! आप यहाँ घूमने आयीं हो या आराम करने चलो वो देखो सामने हथियारों का संग्रहालय है....उसमें बहुत तरह के हथियार रखे हुये हैं” रवीन्द्र ने विक्रम के साथ भागकर सामने वाली बिल्डिंग से आते हुये कहा।
“अरे मुझे क्या करना है तलवार बंदूक देखकर.... में तो ये किला देखने आयी थी सो देख लिया.... तुम सब जाकर देख लो” सरला ने कहा
“बुआ जी मुझे भी नहीं देखना... मेरा देखा हुआ है सब, मैं आपके पास ही रहूँगी ये दोनों फूफाजी के साथ चले जाएँ घूमने” रागिनी ने कहा
देवराज उन दोनों को लेकर घूमने निकाल गया.... लेकिन वो दोनों वहाँ इधर से उधर घूमने लगे तो देवराज ने उन्हें समझाया कि आराम से सारे में घूमकर वहीं वापस आ जाना.... तब तक वो सरला और रागिनी को भी थोड़ा किले में घुमा देगा।
देवराज ने आकर सरला से कहा तो उसने कहा कि वो तो यहीं बैठेगी कहीं नहीं जाएगी.... इतना पैदल घूमना उसके बस कि बात नहीं... लेकिन रागिनी को जबर्दस्ती देव के साथ भेज दिया। देव रागिनी को लेकर किले कि मुख्य इमारत कि ओर बढ़ गया वहाँ घूमते-घूमते जब वो लोग कुछ एकांत से में पहुंचे तो देव वहाँ बने पानी के कुंड के किनारे पर बैठ गया और रागिनी को भी बैठने का इशारा किया... रागिनी शर्माते हुये थोड़ा सा हटकर बैठ गयी।
“रागिनी तुमसे कुछ कहना था मुझे” देवराज ने धड़कते दिल के साथ कहा
“बताइये फूफाजी” रागिनी ने भी बिना नजरें उठाए उत्तर दिया
“मेरी ओर देखकर बात करो.... ऐसा लगता है में दीवारों से बात कर रहा हूँ” देवराज ने मुसकुराते हुये कहा तो रागिनी के चेहरे पर भी हंसी आ गयी और उसने नज़रें उठाकर देवराज की ओर देखा
“ऐसे ही मुसकुराती हुई अच्छी लगती हो तुम” देवराज ने कहा तो रागिनी फिर शर्मा गयी लेकिन उसने नजरें नहीं झुकाई
“अब बोलिए भी क्या कह रहे थे आप” रागिनी ने शरारती मुस्कान के साथ देवराज की आँखों में देखते हुये कहा...तो देवराज को ऐसा लगा की जैसे रागिनी ने उसके मन की बात को जान लिया है
“वो... वो.... में तुमसे कहना चाहता था......” कहते कहते ही देवराज की हिम्मत ने जवाब दे दिया और वो आगे कुछ ना कह सका
“क्या कहना चाहते थे फूफाजी...” रागिनी ने फिर से शरारती मुस्कान से कहा तो देवराज ने हिम्मत करते हुये अपना हाथ आगे बढ़ाकर रागिनी का हाथ अपने हाथ में पकड़ लिया... हाथ पकड़ते ही रागिनी की वो शरारती मुस्कान गायब हो गयी चेहरे पर घबराहट, शर्म और झिझक आ गयी
“देखो में तुमसे जो भी कहूँगा उसके लिए तुम हाँ या ना कुछ भी जवाब दे सकती हो.... लेकिन ..... घर में किसी को कुछ नहीं बताओगी.... हमारी बातें हम दोनों तक ही सीमित रहेंगी” देवराज ने रागिनी का हाथ अपने हाथ में पकड़े हुये ही कहा
“जी! ठीक है” रागिनी ने धीरे से जवाब दिया
“मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ” देवराज ने एक झटके में कहा तो पहले तो रागिनी ही उसके चेहरे को देखती रह गयी.... जैसे कुछ समझ ना आया हो फिर उसने देवराज के हाथों से अपना हाथ छुड़ाया और उसके मुंह पर एक थप्पड़ मार दिया। देवराज अपने गाल पर हाथ रखे उसे देखता रह गया थोड़ी देर तक दोनों खड़े एक दूसरे की ओर देखते रहे फिर रागिनी के मन में अचानक पता नहीं क्या आया कि वो देवराज के सीने से लगकर रोने लगी...
अब देवराज के मन में डर और बेइज्जती के साथ-साथ गुस्सा और उलझन भी पैदा हो गयी.... उसे समझ नहीं आया कि पहले शरारती अंदाज में रागिनी ने उसे अपनी बात कहने को कहा, फिर बात सुनकर थप्पड़ मार दिया और अब उसके सीने से लगी हुई रो रही है...
“दीदी! क्या हो गया... क्या बात है?” तभी देवराज के पीछे से आवाज आयी तो रागिनी झटके से देवराज से अलग हुई और आवाज की दिशा में देखने लगी। पीछे रवीन्द्र और विक्रम दोनों खड़े हुये थे.... रवीन्द्र की सवालिया नजरें रागिनी पर थीं तो विक्रम गुस्से से देवराज को देख रहा था
“कुछ नहीं....” कहते हुये रागिनी उन दोनों की ओर बढ़ी तो वो दोनों भी आगे बढ़कर रागिनी के पास पहुँच गए
रागिनी ने एक बार पीछे पलटकर देवराज की ओर देखा जैसे आँखों ही आँखों में कुछ कह रही हो और रवीद्र-विक्रम दोनों के हाथ पकड़कर बाहर सरला के पास चल दी... देवराज भी थोड़ी देर वहीं उलझन में खड़ा रहा फिर निकलकर सरला के पास पहुँच गया जहां वो तीनों भाई बहन भी थे... फिर थोड़ी देर वहाँ बैठने के बाद वो सभी बाहर निकलकर चाँदनी चौक पहुंचे हालांकि देखने में सबकुछ सामान्य लग रहा था लेकिन सरला ने इस बात पर गौर किया कि देवराज और बच्चों की आपस में बात नहीं हो रही और रागिनी ने तो बहुत देर से किसी से कोई बात ही नहीं की.... इधर देवराज भी गुमसुम सा है। चाँदनी चौक में चाट वगैरह खाने के बाद सरला ने देवराज से घर के लिए भी पैक करने को कहा और बस में बैठकर वो सभी वापस नोएडा आ गए।
घर आकार किसी ने किसी से कुछ नहीं कहा लेकिन रात को सोते समय रवीन्द्र और विक्रम ने रागिनी के पास सोने को कहा तो रागिनी ने उन्हें अपने साथ ही लिटा लिया... रात को रागिनी की अपने दोनों भाइयों से बात होती रही लेकिन देवराज और सरला को आपस में बात करने का कोई मौका ही नहीं मिला
सुबह उठकर सारा परिवार आज की रस्मों में लग गया। ऐसे ही सारा दिन बीत गया और रात को नए जोड़े को सुहागरात मनाने के लिए छोड़ दिया गया।
दूसरे दिन सुबह सरला और देवराज दिल्ली को चल दिये ...रवीन्द्र और विक्रम को उनके साथ उनके बैग लेकर जाने और बस में बैठाकर आने के लिए भेजा गया। उन्हें बस में बैठने के बाद जब दोनों भाई वापस जाने लगे तो देवराज उनके साथ ही नीचे उतार गया... बस चलने में अभी समय था तो और सवारियाँ भी वहाँ की दुकानों से समान ले रही थी... उसने दोनों को एक-एक कोल्ड ड्रिंक दिलवाया और वापस बस की ओर चल दिया... तभी
“फूफाजी! आप दीदी से नाराज मत होना... उन्होने गलती से आपके साथ बदतमीजी कर दी .... उन्होने आपसे माफी मांगी है.... और कहा है... आप जल्दी ही फिर आना...” रवीद्र ने धीरे से कहा तो देवराज उसकी ओर देखकर मुस्कुराया और बिना कुछ कहे बस में जाकर बैठ गया। थोड़ी देर में बस चली गयी और वो दोनों भी अपनी कोल्ड ड्रिंक पीकर बोतल दुकानदार को वापस देकर अपने घर को चल दिये।
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