अध्याय 45
गुजरते वक़्त के साथ यादें भी धुंधली होने लगती हैं। लेकिन रागिनी को रोजाना इंतज़ार होता था देव के आने का। उसने रवीन्द्र और विक्रम दोनों से कह दिया था कि जब भी देव नोएडा आए तो वो उसे एक बार मिलवा जरूर दें। हालांकि रागिनी रवीन्द्र से 5 साल बड़ी थी और विक्रम से 6 साल लेकिन एक तो वो देखने में भी उन दोनों से कम उम्र कि ही लगती थी दूसरे उन दोनों भाइयों को हमेशा रागिनी ने ही अपने नियंत्रण में रखा था, वो उनकी हर अच्छी-बुरी बात को जानती थी इसलिए अपने मन की भी उनसे खुलकर कह देती थी। देव के जाने के बाद रवीन्द्र और विक्रम को वो अपने साथ अपने घर ले गयी थी और वहाँ हुई सारी बात बता दी पूरे विस्तार से जिस पर दोनों भाइयों का भी यही कहना था कि रागिनी को एक बार देव से अकेले या इन भाइयों के सामने बात करके थप्पड़ मारने के लिए माफी मांग लेनी चाहिए और अपनी ओर से सब बातें साफ-साफ कह देनी चाहिए।
देवराज की शादी के लगभग डेढ़ दो महीने बाद एक दिन देव नोएडा निर्मला देवी के पास मिलने पहुँचा, सरला का कुछ सन्देश लेकर। वो वहाँ करीब घंटे भर रुका फिर वापस लौटने लगा दिल्ली के लिए तो रवीन्द्र ने कहा कि में भी बस स्टैंड तक साथ चलता हूँ... मुझे दीदी के पास जाना है। रवीद्र की बात सुनकर देव के मन में भी रागिनी से मिलने कि इच्छा हुई लेकिन एक तो उस दिन के थप्पड़ और दूसरे वो अपनी ओर से कहता भी कैसे कि उसे रागिनी के घर जाना है। बस स्टैंड पर पहुँचकर देव ने रवीन्द्र से कहा कि वो रागिनी के घर चला जाए लेकिन रवीद्र ने कहा कि आप थोड़ा सा समय निकालकर मेरे साथ चलें... दीदी आपसे कुछ बात करना चाहती हैं... इसीलिए में आपके साथ आया था।
रवीद्र और देवराज रागिनी के घर पहुंचे जो कि बस स्टैंड के पास ही सैक्टर 12 में था, घर पर रागिनी और विक्रम ही थे। रागिनी ने देव को नमस्ते की और देव के लिए चाय बनाने चली गयी। रवीन्द्र और विक्रम देव के साथ ही बाहर वाले कमरे में बैठे थे। थोड़ी देर में रागिनी जब ट्रे में चारों के लिए चाय लेकर कमरे में घुसी तो देव की नजरें उसी पर जमी रह गईं।
“चाय लीजिये! ऐसे क्या देख रहे हैं” रागिनी ट्रे सामने टेबल पर रखकर रवीन्द्र के बराबर में बैठती हुई बोली तो झेंपकर देव ने उससे नजरें हटाकर ट्रे में से चाय ली और पीने लगा।
“देख रहा था कि तुम चाय की ट्रे लेकर आती हुई कैसी लगोगी” चाय का घूंट भरते हुये देव ने मन में कहा .... कहना तो वो रागिनी से ही चाहता था लेकिन पिछली बार के थप्पड़ की याद आते ही उसने कहना सही नहीं समझा
“सबसे पहले तो में आपसे क्षमा चाहती हूँ, उस दिन ऐसे आप पर हाथ उठा दिया मेंने... बहुत बड़ी गलती हो गयी मुझसे।“ रागिनी ने अचानक हाथ जोड़ते हुये कहा तो देव ने उठकर उसके हात अलग किए
“तुम ऐसे मत करो, उस दिन जब रवीद्र ने मुझसे कहा था तभी मेंने इस बात को दिल से निकाल दिया था।“ देव ने कहा
“तो क्या शादी की बात भी दिल से निकाल दी” विक्रम ने चाय पीते हुये बिना किसी की ओर देखे धीरे से बड़बड़ाया लेकिन सुनाई सभी को दे गया तो पहले रागिनी मुस्कुराइ फिर देव और रवीन्द्र भी मुस्कुरा दिये
“नहीं शादी की बात दिल से नहीं निकली और ना निकालूँगा.... रागिनी पहली लड़की है जिसे मेंने पसंद किया और चाहता हूँ कि वही आखिरी भी हो। लेकिन एक बात में रागिनी से पूंछना चाहता हूँ कि उस दिन क्या हुआ इनको ऐसा कि मेरी बात सुनते ही थप्पड़ मार दिया.... मेंने तो कोई गलत बात नहीं बोली थी...सिर्फ शादी करने के लिए बोला था” देव ने कहा
“आज से 6 साल पहले तक मेरी माँ भी थीं और हम ताऊजी के साथ रहते थे और बचपन भी था तो ऐसी कोई बात कभी किसी ने मुझसे कही नहीं.... जब से माँ की मृत्यु हुई और हम अकेले रहने लगे तब से ऐसा कोई कभी घर ही नहीं आता जो कुछ कह सके, बाहर भी कभी अकेली निकलती ही नहीं हूँ... घर पर भी दादी जी या ताई जी के पास जाती हूँ तो रवीन्द्र या विक्रम हमेशा साथ होते हैं.... उस दिन जब अपने ऐसे कहा तो मुझे एकदम ऐसा लगा जैसे किसी ने वो बात कह दी जो मुझसे नहीं कहनी चाहिए थी...तो अचानक ऐसा हो गया। आप इस बात को दिल पर मत लेना” रागिनी ने गंभीर लहजे में कहा
“ठीक है... अब में चलता हूँ” देव ने कहा और उठ खड़ा हुआ
“थोड़ी देर बैठिए, मुझे आपसे कुछ जरूरी बात कहनी है” रागिनी ने कहा तो देव दोबारा बैठ गया
रागिनी ने कहना शुरू किया “देखिये आपके मन में जो था अपने उस दिन कह दिया.... में अपने मन की बताऊँ की मुझे आपमें ऐसी कोई कमी नहीं दिखाई दी जो मना करूँ, लेकिन शादी आपके और मेरे आपस में बात करने से नहीं होगी... परिवार के बड़े लोगों तक बात पहुंचेगी...तभी हो सकती है। एक बात और में साफ-साफ कह देना चाहती हूँ... अब माँ तो रही नहीं.... बाकी परिवार की पिताजी सिर्फ सुन लेंगे लेकिन मानेंगे नहीं...करेंगे अपने ही मन की, तो आप ज्यादा बड़ी उम्मीद मत रखना दहेज या किसी चीज की... चाहे पिताजी कितनी भी बड़ी-बड़ी बातें करें.... आप ये समझ लेना की जैसी में अभी बैठी हूँ...बस ऐसे ही स्वीकार करना है....और इस बात को अपने घर में भी बता देना”
“ठीक है में भाभी से कहूँगा की मुझे तुमसे शादी करनी है तो वो हमारे और तुम्हारे दोनों घरों में अपने आप बात कर लेंगी...अपने तरीके से” देव ने सहमति जताते हुये कहा
“ये सब जो मेंने आपसे कहा है...इस बारे में मेरी और रवीद्र का सलाह मशवरा हुआ था.... अबसे आप बेशक वहाँ घर पर आते जाते रहो लेकिन यहाँ तभी आना जब कोई बड़ा साथ लेकर आए या कोई बड़ा यहाँ मौजूद हो.... कल को घर के लोग या यहाँ के पड़ोसी ही मेरे बारे में कुछ सोचें या कहें...न मुझे अच्छा लगेगा ना आप को। सबके सामने मुझसे मिलने या बात करने से मुझे कोई परेशानी नहीं लेकिन आप कभी मुझसे अकेले में मिलने या बात करने की कोशिश नहीं करेंगे.... अगर कोई खास बात मुझसे कहनी हो तो रवीन्द्र को बता देना” रागिनी ने कठोर शब्दों में कहा और देव की ओर देखने लगी।
रागिनी के ऐसे देखने से देव समझ गया कि रागिनी अब अपनी बात पूरी कह चुकी है और उसे अब जाना चाहिए
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अब देव लगभग हर महीने नोएडा घूमने आने लगा.... कभी कभार रागिनी भी वहाँ मिल जाती थी... कुछ समय बाद विजयराज भी इन सब के पास में ही मकान किराए पर लेकर रहने लगे क्योंकि उनके बड़े भाई जयराज सिंह सख्ती से कहा कि तुम कुछ भी करो लेकिन बच्चे ऐसे अकेले या अंजान जगह नहीं रहेंगे, जयराज तो बच्चों को अपने पास रखना चाहते थे लेकिन विजयराज की जिद के कारण वहीं पास ही अलग मकान में रहने लगे। अब रागिनी और विक्रम दिन में ज़्यादातर यहीं घर पर होते या रवीद्र, रुक्मिणी और धीरेन्द्र उनके घर खेलते रहते।
इधर देव ने गाँव जाने पर सारी बात अपनी भाभी सरला को बताई तो उन्होने पहले तो देव के बारे में अपने पति रमेश से बात की फिर रमेश ने उस बात को पूरे परिवार के सामने रखा। वैसे तो सरला की सास नहीं थीं.... इसीलिए जब वो शादी होकर वहाँ पहुंची तो 7-8 साल के देव और 3-4 साल के पप्पू के लिए माँ बनकर उनको पालने लगीं.... सरला के ससुर कभी घर-परिवार के मामले में कोई दाखल नहीं देते थे...पत्नी की मृत्यु के बाद वो बैठक में ही रहते थे और वहीं लोग उनके पास आते जाते रहते या किसी आध्यात्मिक-धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होते..... घर की ज़िम्मेदारी उन्होने अपनी बड़ी बहू यानि सरला की जेठानी और खेती बड़े बेटे को सौंप दी थी, सरला और रमेश भी उन दोनों का हाथ बंटाने लगे... देव की बड़ी भाभी पर घर और गाँव में अपने परिवार की ओर से सभी सामाजिक कार्यक्रमों में शामिल होने की ज्यादा ज़िम्मेदारी थी... घर की मुखिया होने की वजह से, इसलिए देव और पप्पू सरला के साथ ही लगे रहते और उसे अपनी माँ की तरह ही मानने लगे थे।
इस तरह से देव के घर मे सबकी सहमति हो जाने पर सरला की जेठानी ने रागिनी के घर में बात करने की ज़िम्मेदारी सरला को दी तो सरला ने कहा की मेरे ही देवर की शादी के लिए में बात करूँ तो उन्हें लगेगा कि हमारे देवर के लिए रिश्ते नहीं आ रहे शायद लड़के में कोई कमी होगी, तभी में सिफ़ारिश करके उसकी शादी करा रही हूँ। इस मामले में दोनों देवरानी जेठानी ने आपस में बातचीत करके फैसला किया कि सरला अपनी माँ से कहेगी कि विजयराज भैया कि पत्नी कि मृत्यु हो ही गयी है.... बेटी भी जवान हो रही है... ऐसे जवान लड़की अकेली रह रही है....कल को कोई बात ना हो जाए... बेटे को तो छोटी-मोटी गलती पर भी घर से निकाल बाहर करो.... लेकिन बेटी को तो घर से निकालने की सोच भी नहीं सकते। तो निर्मला मौसी को बोलो कि रागिनी की शादी कर दें वो भी अपना घर सम्हाले। कल को वो ये न सोचे कि उसकी माँ नहीं थीं तो परिवार में किसी ने उसकी शादी के बारे में सोचा भी नहीं। साथ ही ये भी बात उनके कान में डाल देना कि अगर वो चाहें तो एक लड़का है जो निर्मला मौसी और उनके सारे परिवार का देखा हुआ है... दिल्ली में ही रहता है.... यानि देव के बारे में।
कुछ दिन बाद सरला अपने मेके गयी तो अपनी माँ सुमित्रा से ऐसे ही बात शुरू की तो सुमित्रा ने बताया कि इस मामले में उसके पास निर्मला दीदी कि सूचना पहले ही आ गयी है.... देव उनके यहाँ आता जाता है तो उन लोगों को बहुत पसंद है... और अब तो यहाँ तक उनकी आपस में घुट रही है कि विजयराज के बेटे विक्रम को देव ने अपने पास ही नौकरी पर लगवा दिया है। अब तो बस ये समझ लो कि एक दूसरे से इस रिश्ते कि बात करने की देर है...........
सुमित्रा ने सरला से जब कहा कि वो अपने घर में देव के लिए रागिनी के रिश्ते कि बात करे तो सरला ने कहा कि मेरे कहने से सभी सोचेंगे कि में अपनी भतीजी कि शादी करा के घर में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए देव को अपने साथ मिला रही हूँ.... वैसे भी दीदी (जेठानी) ही घर में इन सब फैसलों को करती हैं तो मेरी समझ से तो आप एक बार दीदी से बात कर लो बिना मुझे बीच में डाले। फिर वो जो फैसला करें
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अब आप लोग सोच रहे होंगे कि ये क्या चल रहा है.... सब एक दूसरे को घुमाने में क्यों लगे हैं .....लगभग आप सभी ने बारातें और दावतें तो खूब की होंगी.... शादियों के इंतजाम भी किए होंगे और अपनी शादी भी की होगी लेकिन आपमें से सिर्फ कुछ एक-दो लोग ही होंगे जिन्होने दूसरों की शादी के लिए रिश्ते पक्के कराये होंगे और सफलतापूर्वक शादी भी कराई होगी.... रिश्ता कराना शादी में सबसे महत्वपूर्ण, ज़िम्मेदारी, सिरदर्दी और झमेले वाला काम है। संसार में ऐसा कोई लड़का-लड़की या उनके परिवार नहीं जिनमें कोई कमी ना हो। लेकिन जब बेटे या बेटी की शादी करना चाहते हैं तो बहू या दामाद और उनके परिवार, घर, संपत्ति में कोई कमी नहीं चाहते... सबकुछ अच्छा चाहिए... हाँ अपने पास जो अच्छा नहीं है उसे छुपा लेंगे। अब इस स्तिथि में जो व्यक्ति इनके बीच मध्यस्थ बनकर दोनों से बात करता है और दोनों की आपस में बात कराता है उसे दोनों को एक दूसरे से संतुष्ट भी करना है, दोनों को एक दूसरे के सामने मजबूत भी रखना है... जिससे कि कोई एक-दूसरे की कमजोरी या मजबूरी का फाइदा न उठाए और इतना तालमेल भी रखना होता है कि किसी के भी अहम की वजह से रिश्ता ना टूट जाए। यही काम सरला कर रही है देव और रागिनी की शादी के लिए.... अपने परिवार (ससुराल) में रागिनी की ख़ासियतें (अकेले घर चला रही है और भाई को पाला) और उसके लिए सहानुभूति (बिन माँ की बच्ची) पैदा करके उसकी अहमियत बढ़ा रही है.... इधर अपने मायके और मौसी के घर में दिखा रही है कि लड़का अच्छा है, घर परिवार भी अच्छा है.... इस रिश्ते को हासिल करना भी इतना आसान नहीं है...(देव की शादी का फैसला देव कि बड़ी भाभी को करना है) इसलिए जल्दी और मजबूत कोशिश करें जिससे रागिनी को एक अच्छा जीवनसाथी मिल जाए ..................
चलिये फिर वहीं वापस चलते हैं
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फिर जैसा सरला ने चाहा वैसा ही हुआ.....
सरला की माँ सुमित्रा ने अपने बेटे सर्वेश को भेजकर सरला की जेठानी(कुसुम) को अपने घर बुलवा लिया... कि एक-दो दिन के लिए यहाँ रह लेंगी उसके बाद सरला के साथ ही वापस चली जाएंगी।
कुसुम के आने पर सुमित्रा ने उनसे देव के लिए रागिनी के रिश्ते की बात की तो कुसुम ने कहा कि आप एक बार निर्मला मौसी के साथ रागिनी को यहीं अपने घर बुला लें... मैं आकार देख जाऊँगी फिर घर में सभी से बात करके आगे बढ़ेंगे.... जैसे रागिनी के माँ नहीं है ऐसे ही देव की भी माँ नहीं है.... वो नहीं चाहतीं कि कल को समाज ये कहे कि भैया-भाभी ने देव के साथ कुछ गलत कर दिया।
इसके बाद 2-3 दिन में सरला और कुसुम वापस अपनी ससुराल चली गईं और वहाँ पहुँचकर उन्होने देव को इस बारे में खबर कर दी कि अभी वो कुछ समय के लिए नोएडा आना जाना बंद कर दे जिससे रिश्ते की बात का रुख गाँव की ओर ही बना रहे। इधर सुमित्रा ने भी अपनी बहन निर्मला को चिट्ठी लिखकर खबर दे दी कि वो रागिनी को लेकर उनके पास आ जाए।
लगभग एक महीने बाद निर्मला देवी अपने चौथे बेटे बलराज (जिसने शादी नहीं की) और रागिनी के साथ अपनी छोटी बहन सुमित्रा के घर आ गईं.... दूसरे दिन सुमित्रा ने सर्वेश को भेजकर कुसुम को रागिनी के आने की सूचना भिजवाई तो कुसुम एक दिन बाद सरला को लेकर उनके यहाँ आ गयी। हालांकि दोनों ही ओर से रिश्ता पक्का था लेकिन अब आपस में बैठकर आमने-सामने बात होने के बाद कुसुम ने अपने हाथों से उतरकर सोने के कड़े रागिनी के हाथों में पहनाए अकुर निर्मला देवी से कहा कि देव को तो उन्होने देखा ही है... एकबार चलकर उनका घर भी देख लें और संतुष्ट होने पर ही हाँ कहें।
निर्मला देवी ने कहा कि जिस घर में मेरी बेटी, यानि मेरी बहन की बेटी सरला ब्याही है... उस घर के बारे में मुझे और क्या पता करना है....उन्होने भी कुसुम और सरला को चाँदी के सिक्के देकर सगुन किया और आगे की बात के लिए ज़िम्मेदारी घर के पुरुषों पर छोड़ दी गयी।
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जब रागिनी निर्मला और बलराज के साथ सुमित्रा के यहाँ गयी हुई थी, इसी दौरान एक दिन पुलिस विजयराज का पता करने जयराज के घर गयी तो वसुंधरा ने पूंछा कि क्या वजह है। पुलिस ने बताया कि विजयराज के खिलाफ फर्जी पासपोर्ट बनाने का मामला दर्ज किया गया है, एक व्यक्ति ने भारतीय पासपोर्ट पर विदेश जाने के लिए वीजा हेतु आवेदन किया जांच में पासपोर्ट फर्जी पाया गया...पकड़े जाने पर उस व्यक्ति ने बताया की वो पड़ोसी देश का नागरिक है जो अवैध रूप से सीमा पार करके यहाँ घुस आया था....यहाँ नाज़िया नाम की एक औरत जो की खुद भी उसी के देश की नागरिक है और अपनी पहचान बदलकर रह रही है। नाज़िया ने विजयराज के द्वारा उसे ये पासपोर्ट बनवाकर दिया था। इस पर वसुंधरा ने बताया कि 6 वर्ष पूर्व विजयराज की पत्नी का देहांत होने के बाद से ही विजयराज परिवार से अलग रह रहा है और उसका परिवार से कोई संबंध नहीं है...फिर भी विजयराज के भाई उनसे उनके कार्यालय में आकर मिल लेंगे।
वसुंधरा ने रविन्द्र को भेजकर देव से फोन पर विक्रम के बारे में पूंछा तो पता चला कि वो देव के साथ ही ड्यूटी पर है तो रविन्द्र ने देव को सारी बात बताई और विक्रम को कुछ दिन अपने साथ ही दिल्ली रखने को कहा.... क्योंकि विजयराज के बेटे की मौजूदगी पता चलते ही पुलिस वाले वहाँ विजयराज का सुराग लगाने के लिए चक्कर काटने लगते और नज़र भी रखते।
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