Intezaar rahegaभाई आज रात को अपडेट लिखुंगा.... अगर पूरा हो गया तो रात में ही..... मतलब सुबह आपको पढ़ने को मिल जाएगा...................
Intezaar rahegaभाई आज रात को अपडेट लिखुंगा.... अगर पूरा हो गया तो रात में ही..... मतलब सुबह आपको पढ़ने को मिल जाएगा...................
Ye to bahut badi baat kahlayegi kamdev bhai, warna ab tak to aap apne waade par kabhi khare nahi utre,,,,,भाई आज रात को अपडेट लिखुंगा.... अगर पूरा हो गया तो रात में ही..... मतलब सुबह आपको पढ़ने को मिल जाएगा...................
Ye bahut achha kiya aapne, magar mujhe lagta hai ki iske baad bhi log maanne wale nahi hain,,,,,सभी मित्रों से अनुरोध है कि
इसी नाम की थ्रेड lounge में बनाई हुई है मेंने.............
वहाँ प्रवचन देने वालों की बहुत आवश्यकता है............
यहां सिर्फ कहानी पढ़कर रिवियू दें...............
बाकी बकचोदी लौंज वाली थ्रेड पर...............
जब तक में मोड नहीं बन जाता ...... तब तक यही नियम लागू रहेगा
मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक
संसार में केवल 2 ही प्रकृतिक अवश्यकताएँ समस्त चेतन जीव-जंतुओं को पूरी करनी होती हैं 1- भोग : अपने साकार रूप की रक्षा के लिए, उसको ऊर्जा देने के लिए भोग अर्थात भोजन आवश्यक है.... अन्यथा उसका स्वरूप ही समाप्त हो जाएगा.... जिसे हम मृत्यु कहते हैं 2- संभोग : अपने गुण-कर्म की विशेषताओं-विशिष्टताओं...xforum.live
भाई मेरे बारे में ऐसे अश्लील विचार...... वो भी कहानी के थ्रेड पर..........
इसी नाम की थ्रेड lounge में बनाई हुई है मेंने............. वहाँ प्रवचन देने वालों की बहुत आवश्यकता है............यहां सिर्फ कहानी पढ़कर रिवियू दें............... बाकी बकचोदी लौंज वाली थ्रेड पर
Waaah bahut hi khubsurat aur zabardast update the kamdev bhai,,,,अध्याय 44
“नमस्ते बुआ जी!” सरला ने सुना तो पलटकर पीछे देखा तो नारंगी रंग के सलवार कुर्ते में एक पतली सी लड़की खड़ी हुई है और उसके साथ एक और उससे छोटी और थोड़े भरे हुये शरीर की लड़की गुलाबी फ्रॉक में खड़ी हुई है... सरला उन दोनों को देखती ही रह गईं तो बड़ी लड़की ने उनके चेहरे के आगे हाथ हिलाया
“क्या हुआ बुआजी.... कहाँ खो गईं.... पहचाना नहीं.... में रागिनी और ये रुक्मिणी... जयराज ताऊजी की बेटी” रागिनी ने मुसकुराते हुये कहा
“अरे कितनी बड़ी हो गयी... में तो पहचान भी नहीं पायी.... और पतली कितनी हो गई.... में तो रुक्मिणी को को देखकर सोच रही थी की रागिनी की शक्ल कुछ बादल सी गयी है.... पिछली बार आयी थी तब तुम ऐसी ही मोटी सी थी” सरला ने दोनों लड़कियों के हाथ पकड़ते हुये कहा
इधर पास में ही कुर्सी पर बैठा देव टकटकी बांधे रागिनी की ओर ही देखे जा रहा था... उसकी लंबाई तो पहले जितनी ही थी.... पहले से कुछ पतली हो गयी थी... देखने में पहले से भी कम उम्र की लग रही थी... हालांकि उम्र के हिसाब से तो वो 19 साल की, (उस समय में 19 साल की उम्र में नाबालिग यू/ए ही माने जाते थे.... तब 21 साल की उम्र में बालिग होते थे) अपने भाई बहनों में सबसे बड़ी थी.... लेकिन शरीर के हिसाब से रवीन्द्र, विक्रम और रुक्मिणी तीनों में सबसे छोटी लग रही थी...
तभी देव को अपनी आँखों के सामने पानी का गिलास दिखाई दिया लहराता हुआ तो उसने नजरें घुमाकर सामने देखा। सामने विक्रम पानी का गिलास उसके सामने लिए खड़ा था और उसकी ओर घूरकर देख रहा था। देव ने तुरंत विक्रम की नजरों से अपनी नजरें हटाईं और चारों ओर को देखा तो देखा की कमरे के दरवाजे पर खड़ा रवीन्द्र भी उसे घूरकर देख रहा था
“फूफाजी! पानी ले लो... कबसे विक्रम आपको कह रहा है.... कहाँ ध्यान है आपका” रवीन्द्र ने देव से नजरें मिलते ही कहा... हालांकि रवीन्द्र ने बड़े सम्मान के साथ कहा था लेकिन उसके चेहरे पर गुस्सा कुछ और ही कहानी कह रहा था। देव ने जल्दी से विक्रम के हाथ से गिलास लिया और पानी पीने लगा जैसे की उसके चोरी पकड़ी गयी हो। रवीद्र की आवाज सुनते ही रागिनी और रुक्मिणी ने भी मुस्कुराकर देव की ओर देखा और नमस्ते किए हाथ जोड़कर।
“बुआ इस बार भी आप इनके साथ आयीं हैं.... फूफाजी नहीं आए?” रागिनी ने सरला की ओर मुड़कर कहा
“बेटा तेरे फूफाजी को मेरे साथ कहीं जाने की फुर्सत ही कहाँ है.... बस इसी का भरोसा है... यही तैयार रहता है मेरे हर काम के लिए.... इससे छोटा पप्पू तो दुकान तक भी नहीं जाता मेरे कहने से......... और ये तूने इनके उनके क्या लगा रखी है... ये भी तेरे फूफाजी ही हैं.... देवराज.... याद है पिछली बार गजराज की शादी पर आयी थी तब भी तो इनके साथ ही गयी थी...तब नहीं देखा तूने” सरला ने अपनी आदत के अनुसार रागिनी को बोलने का मौका दिये बिना ही अपनी बात जारी रखी
रागिनी ने सरला की बात सुनकर कोई जवाब नहीं दिया और शरमाकर कमरे से बाहर चली गयी दरवाजे पर खड़े रवीन्द्र का हाथ पकड़कर। इधर विक्रम ने भी देवराज के हाथ से पानी का खाली गिलास लिया और बाहर निकाल गया।
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“कुँवर साहब शर्मा कैसे रहे हो आप.... कुछ खाओ भी खाली पेट चाय पीकर ही ‘सारे’ काम करते हो क्या?.......... अपनी भाभी के” वसुंधरा ने मज़ाक में काम पर ज़ोर देते हुये देवराज को सामने रखे नाश्ते की ओर इशारा करते हुये कहा तो देवराज ने शर्माते हुये मिठाई का एक टुकड़ा उठाया और खाने लगा
“भाभी बहुत मज़ाक करने लगी हो आप.... मत भूलो मेरे तो 2 ही देवर हैं लेकिन तुम्हारे तो 4—4 देवर हैं... में बताने पर आयी ना की कितने काम क्या-क्या खिलाकर कराती हो.... तो भाग जाओगी उठकर” सरला ने भी वसुंधरा की मज़ाक का जवाब मज़ाक में ही देते हुये कहा।
ऐसे ही नाश्ता हुआ उसके बाद देवराज ने दिल्ली जाने को कहा तो सरला ने कहा कि आज तो बारात वापस ही लौटी है...वो तो 3-4 दिन बाद ही यहाँ से जाएगी... अगर देवराज को काम कि परेशानी ना हो तो वो भी रुक जाए...क्योंकि फिर कहाँ बार-बार आयेगा, और आज तो वैसे भी वापस ना जाए... सारी रात बारात में जागता रहा है इसलिए आराम कर ले। तो देवराज ने कहा कि वो पीसीओ से अपने मालिक को फोन करके देखता है अगर छुट्टी मिल जाए तो
रवीन्द्र और विक्रम तो शादी कि वजह से घर में फैले काम में लगे हुये थे इसलिए वसुंधरा ने रागिनी से कहा कि वो पास की मार्केट में देवराज को ले जाकर फोन करवा दे। रागिनी देवराज के साथ चल दी... उन दिनों पीसीओ भी हर जगह नहीं हुआ करते थे तो लगभग 1 किलोमीटर दूर मार्केट के लिए रागिनी देवराज को लेकर चल दी
गली से बाहर आते ही देवराज ने हिम्मत करके रागिनी से बात करना शुरू किया पहले पढ़ाई लिखाई को लेकर फिर कहाँ रहती है और आखिर में अपने घर आने का बोला कि कभी हमारे गाँव भी आओ। इस पर रागिनी ने कहा कि आप तो दिल्ली में होते हुये भी नहीं आते.... वो तो सरला बुआ साथ ले आती हैं इसलिए आना पड़ता है आपको... इस पर देवराज ने कहा कि अब तुमने बुलाया है तो आना ही पड़ेगा.... पहले तुमने बुलाया ही नहीं जो मैं आता....
धीरे-धीरे चलते हुये रागिनी और देवराज मार्केट में पहुँच गए और देवराज ने फोन करके बोल दिया कि गाँव में भाभी बीमार हैं इसलिए वो गाँव से आ नहीं पाया...अभी 3-4 दिन और लग जाएंगे........ उस जमाने में फोन पर कॉलर आईडी भी नहीं होती थी जो फोन का पता चल पता कि कहाँ से किया गया...हुआ ये था कि रमेश ने भी देवराज को बारात में जाने के लिए कह दिया था और सरला ने भी ज़ोर दिया तो देवराज सीधा सरला के साथ ही नोएडा आ गया... क्योंकि एक बार ड्यूटि पर पहुँचने के बाद दूसरे ही दिन छुट्टी लेना मुमकिन नहीं था तो उसने सोचा कि बारात के बाद ही सीधा ड्यूटि पर जाएगा
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दूसरे दिन सरला ने देवराज से कहा आज यहाँ कोई खास काम नहीं होना है.... कल देवराज और बहू का कंगन खुलने की रस्म होगी.... इसलिए आज वो उसे दिल्ली घूमा लाये... इतनी बार दिल्ली आने के बाद भी उसने दिल्ली में कुछ नहीं देखा..... तो देवराज ने कहा कि हम दोनों तो जाएंगे ही... अगर इन लोगों को कोई आपत्ति ना हो तो बच्चों को भी साथ घूमने ले चलें
सरला ने अपनी मौसी निर्मला से कहा तो उन्होने कहा कि छोटे बच्चे तो इतनी दूर जाने और सारे दिन घूमने में परेशान हो जाएंगे इसलिए रवीन्द्र और विक्रम को ले जाएँ... ये दोनों तो वैसे भी घूमते ही रहते हैं... इस पर सरला ने कहा कि रागिनी को भी भेज दो.... पता नहीं कभी कहीं घूमने जा भी पाती है या नहीं.... तो निर्मला ने कुछ सोच समझकर रागिनी को ले जाने कि अनुमति दे दी। जब सरला ने रागिनी से साथ चलने के लिए कहा तो विजयराज भी वहीं मौजूद थे उन्होने भी अपनी सहमति दे दी।
नाश्ता वगैरह करके देवराज, सरला, रागिनी, रवीन्द्र और विक्रम घर से निकले। आज रागिनी के चेहरे पर भी उत्साह था... क्योंकि बचपन में माँ के जिंदा रहते सभी परिवार के साथ रहते हुये वो सब घूमने और सिनेमा हॉल पर फिल्म देखने जाते रहते थे.... लेकिन माँ कि मृत्यु और परिवार से अलग होने के बाद रागिनी पर घर सम्हालने कि ज़िम्मेदारी आ गयी और वो बिना काम कहीं जा ही नहीं पाती थी... ज्यादा से ज्यादा अपने घर से निकलकर दादी निर्मला के पास जो गजराज और बलराज के साथ रहती थी या उनके पास में ही रह रहे जारज के यहाँ.... घर कि जिम्मेदारियों और विजयराज की अव्यवस्थित ज़िंदगी ने रागिनी का बचपन, साथी-सहेलियाँ सब छीन लिए थे।
नोएडा सैक्टर 22 के बस स्टैंड से वो सभी बस में बैठकर लाल किला पहुंचे तो रागिनी ने अपनी सरला बुआ और रविंद-विक्रम को लाल किले के बारे में बताना शुरू किया.... वो पहले भी लाल किला अपने स्कूल के टूर में आ चुकी थी। देवराज पूरे रास्ते चोर नज़रों से रागिनी को ही देखता आ रहा था। अब भी उसकी नज़रें रागिनी के हिलते होठों पर थीं लेकिन कान कुछ सुन ही नहीं रहे थे। वो सब लाल किला के बस स्टॉप पर उतरकर किले में अंदर पहुंचे तो सरला उतने ही रास्ते में थक गयी और किले में अंदर खुले मैदान पर घास में बैठ गयी जबकि रवीन्द्र-विक्रम उछलते कूदते इधर उधर देखने लगे कि वहाँ क्या-क्या है... रागिनी और देवराज भी सरला के साथ वहीं घास पर बैठ गए
“बुआ जी! आप यहाँ घूमने आयीं हो या आराम करने चलो वो देखो सामने हथियारों का संग्रहालय है....उसमें बहुत तरह के हथियार रखे हुये हैं” रवीन्द्र ने विक्रम के साथ भागकर सामने वाली बिल्डिंग से आते हुये कहा।
“अरे मुझे क्या करना है तलवार बंदूक देखकर.... में तो ये किला देखने आयी थी सो देख लिया.... तुम सब जाकर देख लो” सरला ने कहा
“बुआ जी मुझे भी नहीं देखना... मेरा देखा हुआ है सब, मैं आपके पास ही रहूँगी ये दोनों फूफाजी के साथ चले जाएँ घूमने” रागिनी ने कहा
देवराज उन दोनों को लेकर घूमने निकाल गया.... लेकिन वो दोनों वहाँ इधर से उधर घूमने लगे तो देवराज ने उन्हें समझाया कि आराम से सारे में घूमकर वहीं वापस आ जाना.... तब तक वो सरला और रागिनी को भी थोड़ा किले में घुमा देगा।
देवराज ने आकर सरला से कहा तो उसने कहा कि वो तो यहीं बैठेगी कहीं नहीं जाएगी.... इतना पैदल घूमना उसके बस कि बात नहीं... लेकिन रागिनी को जबर्दस्ती देव के साथ भेज दिया। देव रागिनी को लेकर किले कि मुख्य इमारत कि ओर बढ़ गया वहाँ घूमते-घूमते जब वो लोग कुछ एकांत से में पहुंचे तो देव वहाँ बने पानी के कुंड के किनारे पर बैठ गया और रागिनी को भी बैठने का इशारा किया... रागिनी शर्माते हुये थोड़ा सा हटकर बैठ गयी।
“रागिनी तुमसे कुछ कहना था मुझे” देवराज ने धड़कते दिल के साथ कहा
“बताइये फूफाजी” रागिनी ने भी बिना नजरें उठाए उत्तर दिया
“मेरी ओर देखकर बात करो.... ऐसा लगता है में दीवारों से बात कर रहा हूँ” देवराज ने मुसकुराते हुये कहा तो रागिनी के चेहरे पर भी हंसी आ गयी और उसने नज़रें उठाकर देवराज की ओर देखा
“ऐसे ही मुसकुराती हुई अच्छी लगती हो तुम” देवराज ने कहा तो रागिनी फिर शर्मा गयी लेकिन उसने नजरें नहीं झुकाई
“अब बोलिए भी क्या कह रहे थे आप” रागिनी ने शरारती मुस्कान के साथ देवराज की आँखों में देखते हुये कहा...तो देवराज को ऐसा लगा की जैसे रागिनी ने उसके मन की बात को जान लिया है
“वो... वो.... में तुमसे कहना चाहता था......” कहते कहते ही देवराज की हिम्मत ने जवाब दे दिया और वो आगे कुछ ना कह सका
“क्या कहना चाहते थे फूफाजी...” रागिनी ने फिर से शरारती मुस्कान से कहा तो देवराज ने हिम्मत करते हुये अपना हाथ आगे बढ़ाकर रागिनी का हाथ अपने हाथ में पकड़ लिया... हाथ पकड़ते ही रागिनी की वो शरारती मुस्कान गायब हो गयी चेहरे पर घबराहट, शर्म और झिझक आ गयी
“देखो में तुमसे जो भी कहूँगा उसके लिए तुम हाँ या ना कुछ भी जवाब दे सकती हो.... लेकिन ..... घर में किसी को कुछ नहीं बताओगी.... हमारी बातें हम दोनों तक ही सीमित रहेंगी” देवराज ने रागिनी का हाथ अपने हाथ में पकड़े हुये ही कहा
“जी! ठीक है” रागिनी ने धीरे से जवाब दिया
“मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ” देवराज ने एक झटके में कहा तो पहले तो रागिनी ही उसके चेहरे को देखती रह गयी.... जैसे कुछ समझ ना आया हो फिर उसने देवराज के हाथों से अपना हाथ छुड़ाया और उसके मुंह पर एक थप्पड़ मार दिया। देवराज अपने गाल पर हाथ रखे उसे देखता रह गया थोड़ी देर तक दोनों खड़े एक दूसरे की ओर देखते रहे फिर रागिनी के मन में अचानक पता नहीं क्या आया कि वो देवराज के सीने से लगकर रोने लगी...
अब देवराज के मन में डर और बेइज्जती के साथ-साथ गुस्सा और उलझन भी पैदा हो गयी.... उसे समझ नहीं आया कि पहले शरारती अंदाज में रागिनी ने उसे अपनी बात कहने को कहा, फिर बात सुनकर थप्पड़ मार दिया और अब उसके सीने से लगी हुई रो रही है...
“दीदी! क्या हो गया... क्या बात है?” तभी देवराज के पीछे से आवाज आयी तो रागिनी झटके से देवराज से अलग हुई और आवाज की दिशा में देखने लगी। पीछे रवीन्द्र और विक्रम दोनों खड़े हुये थे.... रवीन्द्र की सवालिया नजरें रागिनी पर थीं तो विक्रम गुस्से से देवराज को देख रहा था
“कुछ नहीं....” कहते हुये रागिनी उन दोनों की ओर बढ़ी तो वो दोनों भी आगे बढ़कर रागिनी के पास पहुँच गए
रागिनी ने एक बार पीछे पलटकर देवराज की ओर देखा जैसे आँखों ही आँखों में कुछ कह रही हो और रवीद्र-विक्रम दोनों के हाथ पकड़कर बाहर सरला के पास चल दी... देवराज भी थोड़ी देर वहीं उलझन में खड़ा रहा फिर निकलकर सरला के पास पहुँच गया जहां वो तीनों भाई बहन भी थे... फिर थोड़ी देर वहाँ बैठने के बाद वो सभी बाहर निकलकर चाँदनी चौक पहुंचे हालांकि देखने में सबकुछ सामान्य लग रहा था लेकिन सरला ने इस बात पर गौर किया कि देवराज और बच्चों की आपस में बात नहीं हो रही और रागिनी ने तो बहुत देर से किसी से कोई बात ही नहीं की.... इधर देवराज भी गुमसुम सा है। चाँदनी चौक में चाट वगैरह खाने के बाद सरला ने देवराज से घर के लिए भी पैक करने को कहा और बस में बैठकर वो सभी वापस नोएडा आ गए।
घर आकार किसी ने किसी से कुछ नहीं कहा लेकिन रात को सोते समय रवीन्द्र और विक्रम ने रागिनी के पास सोने को कहा तो रागिनी ने उन्हें अपने साथ ही लिटा लिया... रात को रागिनी की अपने दोनों भाइयों से बात होती रही लेकिन देवराज और सरला को आपस में बात करने का कोई मौका ही नहीं मिला
सुबह उठकर सारा परिवार आज की रस्मों में लग गया। ऐसे ही सारा दिन बीत गया और रात को नए जोड़े को सुहागरात मनाने के लिए छोड़ दिया गया।
दूसरे दिन सुबह सरला और देवराज दिल्ली को चल दिये ...रवीन्द्र और विक्रम को उनके साथ उनके बैग लेकर जाने और बस में बैठाकर आने के लिए भेजा गया। उन्हें बस में बैठने के बाद जब दोनों भाई वापस जाने लगे तो देवराज उनके साथ ही नीचे उतार गया... बस चलने में अभी समय था तो और सवारियाँ भी वहाँ की दुकानों से समान ले रही थी... उसने दोनों को एक-एक कोल्ड ड्रिंक दिलवाया और वापस बस की ओर चल दिया... तभी
“फूफाजी! आप दीदी से नाराज मत होना... उन्होने गलती से आपके साथ बदतमीजी कर दी .... उन्होने आपसे माफी मांगी है.... और कहा है... आप जल्दी ही फिर आना...” रवीद्र ने धीरे से कहा तो देवराज उसकी ओर देखकर मुस्कुराया और बिना कुछ कहे बस में जाकर बैठ गया। थोड़ी देर में बस चली गयी और वो दोनों भी अपनी कोल्ड ड्रिंक पीकर बोतल दुकानदार को वापस देकर अपने घर को चल दिये।
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aj naya bahana hai.............. kal rat 70% type kar liya tha...subah complete karne ke liye file kholi to word crash ho gaya... file ab khul nahin rahi.......recovery ke sare option fail ho gayewaiting bhiya
FF bhai salaah ke liye shukriya, magar aisa nahi hai ki dr sahab ki story me koi baat nahi hai. Balki unki story me bahut zyada baat hai. Wo ek behtareen writer hain magar meri problem ye hain ki sex aur sex padhne se mujhe bahut ajeeb sa feel hone lagta hai(Hasna nahi). Unki story me story to gajab ki hoti hai magar sex bhi bhara hota jo apne test se baahar ho jata hai. Maine apni story me jo thoda bahut sex bhara tha wo majburi me bhara thz kyo ki readers maag kar rahe the aur suggestion de rahe the baar baar,,,,,,
kamdev99008 bhai, aapki story ke is taraf wale update padhne ka thik se mauka hi nahi mil raha. Main chaahta hu ki achha sa mauka mile taaki man laga kar padhu. Aisa id liye kyo ki aapki story ko samajhna aur dimaag par zor dene wali baat hoti hai aur aisa tabhi ho payega jab shaant man ho aur time bhi makool ho. Tab tak aap lage rahiye update dene me. Ab aapki aadat se kuch to waakif hu hi, baaki aapki meharbani aur daya ka paatra hu,,,,,,
To kya kamdev bhai aap pritam bhai ki nakal karege,,,,,
Ohh last wala sentence bahut achha laga mujhe aur main bhi wada karta hu ki tab tak aapke sath hi chipka rahuga,,,,,
bhai jis baat ka darr tha .. wahi hua .. ab aapke itne bure din aa gaye hai ki .. aapko ladko se chipakna pad raha hai .. pehle he kaha tha ki Dr. saab (Chutiyadr) ki kahaniyo se door rehna .. "ab peehe se pachtaaye haut kya .. jab chidiya chug gayi khet"
Hahaha ye chipakne wali baat ka aap hi galat arth soch sakte hain bhai, main to bade bhai se sneh ke chalte chipak rahu hu,,,,,
Masoom bhai main aapki baat ka matlab to bilkul theek samjha tha .. magar kamdev99008 bhiya sneh dikhate - dikhate aapke saath galat tarah se chipak jaayenge ... .. gud chipak-chipak makkhi bhinak-bhinak
Waiting Kamdev bhai...
Bhavanaon ko sahi dhangh se pardarashit karne me aap mahir hain.
Superb
Intezaar rahega
Ye to bahut badi baat kahlayegi kamdev bhai, warna ab tak to aap apne waade par kabhi khare nahi utre,,,,,
Ye bahut achha kiya aapne, magar mujhe lagta hai ki iske baad bhi log maanne wale nahi hain,,,,,
sorry shaktimaan.. aage se aisa nahi hoga
Waaah bahut hi khubsurat aur zabardast update the kamdev bhai,,,,
Halaaki itne time ke baad aapki story padhte huye samajhne me thodi mushkil zarur hui kintu samajhna to tha hi. Rishto ka mayajaal hi itna vishaal hai ki ache achho ka dimaag chakra jayega. Mujhe badi hairaani hoti hai ki 404 bhai ko itni bariki se sab kuch samajh me kaise aa jata hai. Kya wo baar baar repeat karke padhte hain aur apna bheja fry karte rahte hain.????
Abhi bhi is kahani me family ka mel milaap aur ek dusre ke bare me jaanne samajhne ki jaise hod si lagi huyi hai aur is hod me ham sabko bhi shaamil kar rakha hai aapne.
Baaki sab to jaisa tha thik hi raha magar ye jaan kar khushi ke sath sath zara hairaani bhi huyi ki Ragini maidam ka devraj ke sath affair bhi tha past me aur ab bees saal baad dono ka aamna saamna hua hai. Itna hi nahi chat magni pat byaah wala system bhi apna liya gaya. Khair yu to yaha ragini maidam ka yaad-daast wala fuse hi uda hua hai aur use yaad bhi nahi ki past me uske sath kya kya hua tha iske baavjud jab uska devraj se aamna saamna hua to maidam thik usi tarah se lajaayi sharmaayi aur muskurayi bhi jaise use devraj ke sath apne affair ki har baat yaad hai. Ab ise kamaal kahe ya fir ye samjhe ki ragini maidam ne ye soch kar fast farword ka tarika apna liya ki kahi is umar me shadi ka ye mauka hath se na nikal jaye,,,,, (Ye mana ki sabne use bahut kuch bataya hai magar bina yaad-daast waapas aaye uske andar aisi feelings kaise aa gayi jiske tahat devraj se saamna hote hi wo is tarah react karne lagi thi.?? Iska matlab wahi fast farword wala kissa hi hai. )
To flashback me dikhaya ja raha hai ki kaise ragini maidam aur devraj ka affair shuru hua tha aur kaise baat shadi tak pahuchi aur ye bhi ki fir kaise un dono ki shadi nahi ho paayi. Khair ye kissa to abhi shuru hi hua hai kintu yaha par ek jhalak hamare sabse bade soorma yaani ki ravindra sahab ki bhi dikhi jo kisi garima naam ki ladki ko apni biwi banaye baithe hain aur uske sath illu illu kar rahe the. Itne bas se hi samajh aa gaya ki ye mahaanubhaav kitne bade khilaadi hain aur maze ki baat dekhiye ki danke ki chot par kah rahe hain ki inhone yu hi nahi apna naam "Kamdev" rakha hai. Matlab saaf hai ki bade bade aflatooni karm kar rakhe hain ye,,,,,,
Kamdev bhai, is baar aapki story padhne me aanand aaya kyo ki is baar kafi sare update the padhne ke liye aur zahen me aise khayaal nahi aaye ki 'Ab jane kamdev bhai kab meharbaan honge aur agla update denge',,,,,
waiting bhiya
अध्याय 44
“नमस्ते बुआ जी!” सरला ने सुना तो पलटकर पीछे देखा तो नारंगी रंग के सलवार कुर्ते में एक पतली सी लड़की खड़ी हुई है और उसके साथ एक और उससे छोटी और थोड़े भरे हुये शरीर की लड़की गुलाबी फ्रॉक में खड़ी हुई है... सरला उन दोनों को देखती ही रह गईं तो बड़ी लड़की ने उनके चेहरे के आगे हाथ हिलाया
“क्या हुआ बुआजी.... कहाँ खो गईं.... पहचाना नहीं.... में रागिनी और ये रुक्मिणी... जयराज ताऊजी की बेटी” रागिनी ने मुसकुराते हुये कहा
“अरे कितनी बड़ी हो गयी... में तो पहचान भी नहीं पायी.... और पतली कितनी हो गई.... में तो रुक्मिणी को को देखकर सोच रही थी की रागिनी की शक्ल कुछ बादल सी गयी है.... पिछली बार आयी थी तब तुम ऐसी ही मोटी सी थी” सरला ने दोनों लड़कियों के हाथ पकड़ते हुये कहा
इधर पास में ही कुर्सी पर बैठा देव टकटकी बांधे रागिनी की ओर ही देखे जा रहा था... उसकी लंबाई तो पहले जितनी ही थी.... पहले से कुछ पतली हो गयी थी... देखने में पहले से भी कम उम्र की लग रही थी... हालांकि उम्र के हिसाब से तो वो 19 साल की, (उस समय में 19 साल की उम्र में नाबालिग यू/ए ही माने जाते थे.... तब 21 साल की उम्र में बालिग होते थे) अपने भाई बहनों में सबसे बड़ी थी.... लेकिन शरीर के हिसाब से रवीन्द्र, विक्रम और रुक्मिणी तीनों में सबसे छोटी लग रही थी...
तभी देव को अपनी आँखों के सामने पानी का गिलास दिखाई दिया लहराता हुआ तो उसने नजरें घुमाकर सामने देखा। सामने विक्रम पानी का गिलास उसके सामने लिए खड़ा था और उसकी ओर घूरकर देख रहा था। देव ने तुरंत विक्रम की नजरों से अपनी नजरें हटाईं और चारों ओर को देखा तो देखा की कमरे के दरवाजे पर खड़ा रवीन्द्र भी उसे घूरकर देख रहा था
“फूफाजी! पानी ले लो... कबसे विक्रम आपको कह रहा है.... कहाँ ध्यान है आपका” रवीन्द्र ने देव से नजरें मिलते ही कहा... हालांकि रवीन्द्र ने बड़े सम्मान के साथ कहा था लेकिन उसके चेहरे पर गुस्सा कुछ और ही कहानी कह रहा था। देव ने जल्दी से विक्रम के हाथ से गिलास लिया और पानी पीने लगा जैसे की उसके चोरी पकड़ी गयी हो। रवीद्र की आवाज सुनते ही रागिनी और रुक्मिणी ने भी मुस्कुराकर देव की ओर देखा और नमस्ते किए हाथ जोड़कर।
“बुआ इस बार भी आप इनके साथ आयीं हैं.... फूफाजी नहीं आए?” रागिनी ने सरला की ओर मुड़कर कहा
“बेटा तेरे फूफाजी को मेरे साथ कहीं जाने की फुर्सत ही कहाँ है.... बस इसी का भरोसा है... यही तैयार रहता है मेरे हर काम के लिए.... इससे छोटा पप्पू तो दुकान तक भी नहीं जाता मेरे कहने से......... और ये तूने इनके उनके क्या लगा रखी है... ये भी तेरे फूफाजी ही हैं.... देवराज.... याद है पिछली बार गजराज की शादी पर आयी थी तब भी तो इनके साथ ही गयी थी...तब नहीं देखा तूने” सरला ने अपनी आदत के अनुसार रागिनी को बोलने का मौका दिये बिना ही अपनी बात जारी रखी
रागिनी ने सरला की बात सुनकर कोई जवाब नहीं दिया और शरमाकर कमरे से बाहर चली गयी दरवाजे पर खड़े रवीन्द्र का हाथ पकड़कर। इधर विक्रम ने भी देवराज के हाथ से पानी का खाली गिलास लिया और बाहर निकाल गया।
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“कुँवर साहब शर्मा कैसे रहे हो आप.... कुछ खाओ भी खाली पेट चाय पीकर ही ‘सारे’ काम करते हो क्या?.......... अपनी भाभी के” वसुंधरा ने मज़ाक में काम पर ज़ोर देते हुये देवराज को सामने रखे नाश्ते की ओर इशारा करते हुये कहा तो देवराज ने शर्माते हुये मिठाई का एक टुकड़ा उठाया और खाने लगा
“भाभी बहुत मज़ाक करने लगी हो आप.... मत भूलो मेरे तो 2 ही देवर हैं लेकिन तुम्हारे तो 4—4 देवर हैं... में बताने पर आयी ना की कितने काम क्या-क्या खिलाकर कराती हो.... तो भाग जाओगी उठकर” सरला ने भी वसुंधरा की मज़ाक का जवाब मज़ाक में ही देते हुये कहा।
ऐसे ही नाश्ता हुआ उसके बाद देवराज ने दिल्ली जाने को कहा तो सरला ने कहा कि आज तो बारात वापस ही लौटी है...वो तो 3-4 दिन बाद ही यहाँ से जाएगी... अगर देवराज को काम कि परेशानी ना हो तो वो भी रुक जाए...क्योंकि फिर कहाँ बार-बार आयेगा, और आज तो वैसे भी वापस ना जाए... सारी रात बारात में जागता रहा है इसलिए आराम कर ले। तो देवराज ने कहा कि वो पीसीओ से अपने मालिक को फोन करके देखता है अगर छुट्टी मिल जाए तो
रवीन्द्र और विक्रम तो शादी कि वजह से घर में फैले काम में लगे हुये थे इसलिए वसुंधरा ने रागिनी से कहा कि वो पास की मार्केट में देवराज को ले जाकर फोन करवा दे। रागिनी देवराज के साथ चल दी... उन दिनों पीसीओ भी हर जगह नहीं हुआ करते थे तो लगभग 1 किलोमीटर दूर मार्केट के लिए रागिनी देवराज को लेकर चल दी
गली से बाहर आते ही देवराज ने हिम्मत करके रागिनी से बात करना शुरू किया पहले पढ़ाई लिखाई को लेकर फिर कहाँ रहती है और आखिर में अपने घर आने का बोला कि कभी हमारे गाँव भी आओ। इस पर रागिनी ने कहा कि आप तो दिल्ली में होते हुये भी नहीं आते.... वो तो सरला बुआ साथ ले आती हैं इसलिए आना पड़ता है आपको... इस पर देवराज ने कहा कि अब तुमने बुलाया है तो आना ही पड़ेगा.... पहले तुमने बुलाया ही नहीं जो मैं आता....
धीरे-धीरे चलते हुये रागिनी और देवराज मार्केट में पहुँच गए और देवराज ने फोन करके बोल दिया कि गाँव में भाभी बीमार हैं इसलिए वो गाँव से आ नहीं पाया...अभी 3-4 दिन और लग जाएंगे........ उस जमाने में फोन पर कॉलर आईडी भी नहीं होती थी जो फोन का पता चल पता कि कहाँ से किया गया...हुआ ये था कि रमेश ने भी देवराज को बारात में जाने के लिए कह दिया था और सरला ने भी ज़ोर दिया तो देवराज सीधा सरला के साथ ही नोएडा आ गया... क्योंकि एक बार ड्यूटि पर पहुँचने के बाद दूसरे ही दिन छुट्टी लेना मुमकिन नहीं था तो उसने सोचा कि बारात के बाद ही सीधा ड्यूटि पर जाएगा
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दूसरे दिन सरला ने देवराज से कहा आज यहाँ कोई खास काम नहीं होना है.... कल देवराज और बहू का कंगन खुलने की रस्म होगी.... इसलिए आज वो उसे दिल्ली घूमा लाये... इतनी बार दिल्ली आने के बाद भी उसने दिल्ली में कुछ नहीं देखा..... तो देवराज ने कहा कि हम दोनों तो जाएंगे ही... अगर इन लोगों को कोई आपत्ति ना हो तो बच्चों को भी साथ घूमने ले चलें
सरला ने अपनी मौसी निर्मला से कहा तो उन्होने कहा कि छोटे बच्चे तो इतनी दूर जाने और सारे दिन घूमने में परेशान हो जाएंगे इसलिए रवीन्द्र और विक्रम को ले जाएँ... ये दोनों तो वैसे भी घूमते ही रहते हैं... इस पर सरला ने कहा कि रागिनी को भी भेज दो.... पता नहीं कभी कहीं घूमने जा भी पाती है या नहीं.... तो निर्मला ने कुछ सोच समझकर रागिनी को ले जाने कि अनुमति दे दी। जब सरला ने रागिनी से साथ चलने के लिए कहा तो विजयराज भी वहीं मौजूद थे उन्होने भी अपनी सहमति दे दी।
नाश्ता वगैरह करके देवराज, सरला, रागिनी, रवीन्द्र और विक्रम घर से निकले। आज रागिनी के चेहरे पर भी उत्साह था... क्योंकि बचपन में माँ के जिंदा रहते सभी परिवार के साथ रहते हुये वो सब घूमने और सिनेमा हॉल पर फिल्म देखने जाते रहते थे.... लेकिन माँ कि मृत्यु और परिवार से अलग होने के बाद रागिनी पर घर सम्हालने कि ज़िम्मेदारी आ गयी और वो बिना काम कहीं जा ही नहीं पाती थी... ज्यादा से ज्यादा अपने घर से निकलकर दादी निर्मला के पास जो गजराज और बलराज के साथ रहती थी या उनके पास में ही रह रहे जारज के यहाँ.... घर कि जिम्मेदारियों और विजयराज की अव्यवस्थित ज़िंदगी ने रागिनी का बचपन, साथी-सहेलियाँ सब छीन लिए थे।
नोएडा सैक्टर 22 के बस स्टैंड से वो सभी बस में बैठकर लाल किला पहुंचे तो रागिनी ने अपनी सरला बुआ और रविंद-विक्रम को लाल किले के बारे में बताना शुरू किया.... वो पहले भी लाल किला अपने स्कूल के टूर में आ चुकी थी। देवराज पूरे रास्ते चोर नज़रों से रागिनी को ही देखता आ रहा था। अब भी उसकी नज़रें रागिनी के हिलते होठों पर थीं लेकिन कान कुछ सुन ही नहीं रहे थे। वो सब लाल किला के बस स्टॉप पर उतरकर किले में अंदर पहुंचे तो सरला उतने ही रास्ते में थक गयी और किले में अंदर खुले मैदान पर घास में बैठ गयी जबकि रवीन्द्र-विक्रम उछलते कूदते इधर उधर देखने लगे कि वहाँ क्या-क्या है... रागिनी और देवराज भी सरला के साथ वहीं घास पर बैठ गए
“बुआ जी! आप यहाँ घूमने आयीं हो या आराम करने चलो वो देखो सामने हथियारों का संग्रहालय है....उसमें बहुत तरह के हथियार रखे हुये हैं” रवीन्द्र ने विक्रम के साथ भागकर सामने वाली बिल्डिंग से आते हुये कहा।
“अरे मुझे क्या करना है तलवार बंदूक देखकर.... में तो ये किला देखने आयी थी सो देख लिया.... तुम सब जाकर देख लो” सरला ने कहा
“बुआ जी मुझे भी नहीं देखना... मेरा देखा हुआ है सब, मैं आपके पास ही रहूँगी ये दोनों फूफाजी के साथ चले जाएँ घूमने” रागिनी ने कहा
देवराज उन दोनों को लेकर घूमने निकाल गया.... लेकिन वो दोनों वहाँ इधर से उधर घूमने लगे तो देवराज ने उन्हें समझाया कि आराम से सारे में घूमकर वहीं वापस आ जाना.... तब तक वो सरला और रागिनी को भी थोड़ा किले में घुमा देगा।
देवराज ने आकर सरला से कहा तो उसने कहा कि वो तो यहीं बैठेगी कहीं नहीं जाएगी.... इतना पैदल घूमना उसके बस कि बात नहीं... लेकिन रागिनी को जबर्दस्ती देव के साथ भेज दिया। देव रागिनी को लेकर किले कि मुख्य इमारत कि ओर बढ़ गया वहाँ घूमते-घूमते जब वो लोग कुछ एकांत से में पहुंचे तो देव वहाँ बने पानी के कुंड के किनारे पर बैठ गया और रागिनी को भी बैठने का इशारा किया... रागिनी शर्माते हुये थोड़ा सा हटकर बैठ गयी।
“रागिनी तुमसे कुछ कहना था मुझे” देवराज ने धड़कते दिल के साथ कहा
“बताइये फूफाजी” रागिनी ने भी बिना नजरें उठाए उत्तर दिया
“मेरी ओर देखकर बात करो.... ऐसा लगता है में दीवारों से बात कर रहा हूँ” देवराज ने मुसकुराते हुये कहा तो रागिनी के चेहरे पर भी हंसी आ गयी और उसने नज़रें उठाकर देवराज की ओर देखा
“ऐसे ही मुसकुराती हुई अच्छी लगती हो तुम” देवराज ने कहा तो रागिनी फिर शर्मा गयी लेकिन उसने नजरें नहीं झुकाई
“अब बोलिए भी क्या कह रहे थे आप” रागिनी ने शरारती मुस्कान के साथ देवराज की आँखों में देखते हुये कहा...तो देवराज को ऐसा लगा की जैसे रागिनी ने उसके मन की बात को जान लिया है
“वो... वो.... में तुमसे कहना चाहता था......” कहते कहते ही देवराज की हिम्मत ने जवाब दे दिया और वो आगे कुछ ना कह सका
“क्या कहना चाहते थे फूफाजी...” रागिनी ने फिर से शरारती मुस्कान से कहा तो देवराज ने हिम्मत करते हुये अपना हाथ आगे बढ़ाकर रागिनी का हाथ अपने हाथ में पकड़ लिया... हाथ पकड़ते ही रागिनी की वो शरारती मुस्कान गायब हो गयी चेहरे पर घबराहट, शर्म और झिझक आ गयी
“देखो में तुमसे जो भी कहूँगा उसके लिए तुम हाँ या ना कुछ भी जवाब दे सकती हो.... लेकिन ..... घर में किसी को कुछ नहीं बताओगी.... हमारी बातें हम दोनों तक ही सीमित रहेंगी” देवराज ने रागिनी का हाथ अपने हाथ में पकड़े हुये ही कहा
“जी! ठीक है” रागिनी ने धीरे से जवाब दिया
“मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ” देवराज ने एक झटके में कहा तो पहले तो रागिनी ही उसके चेहरे को देखती रह गयी.... जैसे कुछ समझ ना आया हो फिर उसने देवराज के हाथों से अपना हाथ छुड़ाया और उसके मुंह पर एक थप्पड़ मार दिया। देवराज अपने गाल पर हाथ रखे उसे देखता रह गया थोड़ी देर तक दोनों खड़े एक दूसरे की ओर देखते रहे फिर रागिनी के मन में अचानक पता नहीं क्या आया कि वो देवराज के सीने से लगकर रोने लगी...
अब देवराज के मन में डर और बेइज्जती के साथ-साथ गुस्सा और उलझन भी पैदा हो गयी.... उसे समझ नहीं आया कि पहले शरारती अंदाज में रागिनी ने उसे अपनी बात कहने को कहा, फिर बात सुनकर थप्पड़ मार दिया और अब उसके सीने से लगी हुई रो रही है...
“दीदी! क्या हो गया... क्या बात है?” तभी देवराज के पीछे से आवाज आयी तो रागिनी झटके से देवराज से अलग हुई और आवाज की दिशा में देखने लगी। पीछे रवीन्द्र और विक्रम दोनों खड़े हुये थे.... रवीन्द्र की सवालिया नजरें रागिनी पर थीं तो विक्रम गुस्से से देवराज को देख रहा था
“कुछ नहीं....” कहते हुये रागिनी उन दोनों की ओर बढ़ी तो वो दोनों भी आगे बढ़कर रागिनी के पास पहुँच गए
रागिनी ने एक बार पीछे पलटकर देवराज की ओर देखा जैसे आँखों ही आँखों में कुछ कह रही हो और रवीद्र-विक्रम दोनों के हाथ पकड़कर बाहर सरला के पास चल दी... देवराज भी थोड़ी देर वहीं उलझन में खड़ा रहा फिर निकलकर सरला के पास पहुँच गया जहां वो तीनों भाई बहन भी थे... फिर थोड़ी देर वहाँ बैठने के बाद वो सभी बाहर निकलकर चाँदनी चौक पहुंचे हालांकि देखने में सबकुछ सामान्य लग रहा था लेकिन सरला ने इस बात पर गौर किया कि देवराज और बच्चों की आपस में बात नहीं हो रही और रागिनी ने तो बहुत देर से किसी से कोई बात ही नहीं की.... इधर देवराज भी गुमसुम सा है। चाँदनी चौक में चाट वगैरह खाने के बाद सरला ने देवराज से घर के लिए भी पैक करने को कहा और बस में बैठकर वो सभी वापस नोएडा आ गए।
घर आकार किसी ने किसी से कुछ नहीं कहा लेकिन रात को सोते समय रवीन्द्र और विक्रम ने रागिनी के पास सोने को कहा तो रागिनी ने उन्हें अपने साथ ही लिटा लिया... रात को रागिनी की अपने दोनों भाइयों से बात होती रही लेकिन देवराज और सरला को आपस में बात करने का कोई मौका ही नहीं मिला
सुबह उठकर सारा परिवार आज की रस्मों में लग गया। ऐसे ही सारा दिन बीत गया और रात को नए जोड़े को सुहागरात मनाने के लिए छोड़ दिया गया।
दूसरे दिन सुबह सरला और देवराज दिल्ली को चल दिये ...रवीन्द्र और विक्रम को उनके साथ उनके बैग लेकर जाने और बस में बैठाकर आने के लिए भेजा गया। उन्हें बस में बैठने के बाद जब दोनों भाई वापस जाने लगे तो देवराज उनके साथ ही नीचे उतार गया... बस चलने में अभी समय था तो और सवारियाँ भी वहाँ की दुकानों से समान ले रही थी... उसने दोनों को एक-एक कोल्ड ड्रिंक दिलवाया और वापस बस की ओर चल दिया... तभी
“फूफाजी! आप दीदी से नाराज मत होना... उन्होने गलती से आपके साथ बदतमीजी कर दी .... उन्होने आपसे माफी मांगी है.... और कहा है... आप जल्दी ही फिर आना...” रवीद्र ने धीरे से कहा तो देवराज उसकी ओर देखकर मुस्कुराया और बिना कुछ कहे बस में जाकर बैठ गया। थोड़ी देर में बस चली गयी और वो दोनों भी अपनी कोल्ड ड्रिंक पीकर बोतल दुकानदार को वापस देकर अपने घर को चल दिये।
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