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Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक .......

रागिनी की कहानी के बाद आप इनमें से कौन सा फ़्लैशबैक पहले पढ़ना चाहते हैं


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kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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nice update ...anuradha ka plan achcha hai ki ragini ka ranvijay ke upar ka gussa vijay par nikalna ...
vijayraj ko paralysis ho gaya hai ,,aur wo mamta ke saath rehta hai noida me ...par mamta saamne aane se kyu katra rahi thi ?..itne waqt baad apni beti ko milne se sharm aa rahi hogi shayad ?....
..............सामने तो वो विक्रम के नहीं आना चाहती थी...............शर्मिंदगी की वजह से
अनुराधा को तो वो पहचनती भी नहीं थी...........2-3 साल की बच्ची थी अनुराधा..........जब ममता जेल गयी थी.............

अनुराधा का नाम सुनकर उसे पता चला की वो उसकी अपनी बेटी है
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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vijayraj ko uske karmo ki hi saja mil rahi hai aisa lagta hai ???...
ज्यादा लंबी नहीं हो पायी सजा............ paralisys में लगभग 2 साल काटने के बाद मौत हो गयी.................आगे कहानी में आयेगा सबकुछ
 
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रिश्ते नाते अकसर ही दर्द दे जाते हैं..... बहाने अनेकों होते हैं ।
______________________________________________
विजय राज जिसने अपनी लाइफ में कोई भी काम अच्छा नहीं किया....ना जिम्मेदारी...ना एक अच्छा हसबैंड...ना एक अच्छा बाप...ना एक अच्छा भाई.... और ना एक अच्छा इंसान ।........ शायद किसी जनम में उसने पुण्य किया था जो उसे रविन्द्र और विक्रम जैसे बच्चे उसके परिवार में मिले ।

रणविजय उर्फ विक्रम..... इसका कैरेक्टर तो कभी कभी अपने बड़े भाई रविन्द्र से भी ज्यादा नेक विचार का लगता है ।

अनुराधा....जो ममता की बेटी है....जिसे विक्रम ने कभी अपनी बेटी बना कर रखा था........ वो भी एक समय अपने कथित माॅम रागिनी से ज्यादा अपने कथित फादर विक्रम को पसंद करती है......... ये कहानी इनसेस्ट होती तो इसके मायने कुछ और ही होते ।

रविन्द्र और सुशिला का बेटा भानु प्रताप सिंह और अनुराधा के बीच कुछ न कुछ तो है... ये हमने गांव में भी देखा था ।

बुरे दिनों में विजय राज के साथ है ममता जो कि बहुत अच्छी बात है.......लेकिन दोनों ने अभी तक तो समाज ही नहीं बल्कि परिवार के नजरों में भी बुरा ही बुरा किया था ।...... जब लोग अपने मौत के करीब पहुंच जाते हैं तब शायद उन्हें अपने करनी का अहसास होता है ।

लास्ट पैराग्राफ में ममता और अनुराधा का बीस सालों के बाद मिलन..... इसमें इमोशन और आंसुओं के अलावा और क्या हो सकता है । कैसा लगता होगा ममता को ! कैसी फील करती होगी अनु !

कामदेव भाई..... अब तो मैं भी परेशान हो गया हूं.....कम से कम दो हफ्ते में भी एक अपडेट तो दिजिए ।
 

Rahul

Kingkong
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अध्याय 47

“सुशीला! ये विक्रम यहाँ क्या कर रहा है” रागिनी ने गुस्से से कहा तो सुशीला को हंसी आ गयी

“दीदी! आप भी ना। अब ऐसे मौके पर भाई ना हो तो कौन होगा। लगता है कन्यादान नहीं करना आपको। इसी घर में जमे रहना है” सुशीला ने हँसते हुये मज़ाक में कहा लेकिन रागिनी के तेवर नहीं बदले

“आप हैं मेरे पास और रवीद्र भी। मुझे इसकी जरूरत नहीं अपनी शादी में, मेरा कन्यादान भी आप लोग ही करेंगे” रागिनी ने फिर से गुस्से में कहा तो कमरे के बाहर किसी काम से सुशीला को बुलाने आए अनुराधा और भानु वहीं रुक गए और एक दूसरे की ओर देखने लगे।

तभी उन्हें अपने पीछे किसी के होने का आभास हुआ तो पलटकर देखा। पीछे रणविजय आँखों में आँसू लिए खड़ा हुआ था। शायद रणविजय ने भी अंदर चल रही सुशीला और रागिनी के बीच की बातों को सुन लिया था। उन दोनों से नज़रें मिलते ही रणविजय वापस मुड़कर ड्राइंग हॉल की ओर चल दिया। अनुराधा भी उसके पीछे गयी और ड्राइंग हॉल में उसके सामने पहुँचकर उसका हाथ पकड़ा और बाहर की ओर चल दी। बाहर आकर अनुराधा ने अपनी गाड़ी का लॉक खोला और खुद ड्राइविंग सीट पर बैठती हुई रणविजय को दूसरी ओर बैठने का इशारा किया।

रणविजय अपनी भावनाओं में इतना डूबा हुआ था की बिना सोचे समझे सिर्फ अनुराधा के इशारे पर उसके साथ गाड़ी में बैठ गया और वो दोनों वहाँ से चल दिये......। लगभग आधे घंटे बाद अनुराधा ने गाड़ी ले जाकर राजघाट के पास यमुना नदी के किनारे किनारे बनाए गए उपवन में खड़ी की। यहाँ शाम के समय तो काफी भीड़ रहती थी...लेकिन इस समय कोई भी नहीं था.... कई किलोमीटर में फैले इस उपवन में कहीं 100-200 मिटर दूर ही कुछ नगर निगम कर्मचारी पेड़ों के नीचे पड़े सोते हुये दिख रहे थे। अनुराधा ने गाड़ी पार्किंग लें में लगाई और उतरकर विक्रम का हाथ पकड़कर अंदर गयी और एक पेड़ के नीचे खुद बैठते हुये रणविजय को भी बैठा लिया।

“आप जानते हैं में हमेशा से आपसे प्यार और माँ से नफरत करती थी?” अनुराधा ने चुप्पी तोड़ते हुये कहा तो रणविजय ने चौंकते हुये उसकी ओर देखा

“क्या कहा तुमने? और दीदी ने ऐसा क्या कर दिया जो तुम उनसे नफरत करने लगीं” रणविजय ने खुद को जो अभी तक दर्द में डुबोया हुआ था ...उससे बाहर आते हुये कहा

“आज वो आपके लिए दीदी हो गईं....जो कल तक रागिनी हुआ करती थीं। याददास्त उनकी गयी थी या आपकी?”

“अब तुम भी मुझपर वही इल्जाम लगा दो जो दीदी ने लगाया....कि मेरी ही नियत में खोट था” रणविजय ने उसकी आँखों में देखते हुये वेदना भरे स्वर में कहा

“नहीं में आप पर कोई इल्जाम नहीं लगा रही.... आप मुझसे बड़े हैं...तो आप मुझसे ज्यादा समझदार भी होंगे ये उम्मीद रखती हूँ... इसीलिए ऐसा कहा” अनुराधा ने थोड़ा रुककर आगे कहना शुरू किया “में आपसे इसलिए प्यार करती थी क्योंकि आपने हम सबके लिए इतना कुछ किया लेकिन कभी कुछ न तो हमसे पाना चाहा और ना ही अपनी ज़िंदगी के लिए कुछ किया ......... जबकि माँ मतलब रागिनी बुआ आपके एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार थी। मुझे आपके हवस भरे चरित्र के बारे में भी बहुत कुछ समझ में आ गया था... लेकिन आपने कभी मेरी या माँ की ओर नजर उठाकर भी नहीं देखा... इसीलिए में आपसे प्यार करती थी....कभी-कभी मुझे लगता था कि आपने मुझसे भाई का रिश्ता क्यों जोड़ा?”

“भाई का रिश्ता क्यों जोड़ा? क्या मतलब हुआ इसका.... क्या तुम्हें पहले ही पता चल गया था कि तुम मेरी बहन नहीं हो?” रणविजय ने चौंकते हुये कहा

“हाँ! में जैसे ही कुछ समझदार हुई साथ पढ़ने वाली लड़कियों से जो जानकारी मिली...उसके हिसाब से में रागिनी बुआ की बेटी हो ही नहीं सकती थी.... उनकी उम्र और मेरी उम्र में इतना अंतर ही नहीं था.... में उन्हें सौतेली माँ समझती थी। और उनके मन में आपके लिए प्यार का अहसास पाते ही मेरे मन में उनके लिए नफरत के सिवा कुछ भी नहीं बचा......” अनुराधा ने कहा तो रणविजय एक ठंडी सांस भरकर रह गया

“लेकिन अब तो सबकुछ तुम्हारे सामने है.... जो बीत गया उसमें मेंने गलत किया या सही... उसके लिए अब मुझे यू नफरत कि आग में झोंकना कहाँ सही है दीदी का। और तुम मुझे यहाँ क्यों लेकर आयी ये भी मेरी समझ से परे है” रणविजय ने थोड़ी देर चुप रहने के बाद कहा

“में माँ के आज के रवैये को देखकर समझ चुकी हूँ कि उनको समझा पाना आपके बस की बात नहीं... उल्टा आप जितना उन्हें समझाने कि कोशिश करोगे उतना ही वो और भी चिढ़कर नफरत करने लगेंगी... इसलिए अब में आपको किसी के पास लेकर जाना चाहती हूँ... अकेले वो ही हैं जो अब माँ को समझा सकते हैं” अनुराधा ने कहा

“कौन? कौन हैं वो.... रवीन्द्र भैया?” रणविजय ने कहा

“नहीं... आपके...” कहते कहते अनुराधा रुक गयी जैसे सोच रही थी कि बताए या न बताए

“मेरे कौन? रुक क्यों गयी... बताओ” रणविजय बोला

“आपके पिताजी” सुनते ही रणविजय के चेहरे पर गुस्सा और नफरत दिखने लगी। वो कुछ कहने को हुआ तभी अनुराधा ने आगे बोलना शुरू किया “ना...ना... गुस्से से नहीं ठंडे दिमाग से काम लो.... अभी किसी का समझाया कुछ भी माँ की समझ में नहीं आयेगा.... न उनका गुस्सा कम होगा.... लेकिन आपके पिताजी के सामने आने पर जो गुस्सा और नफरत माँ के मन मे भरी है वो आपकी बजाय उनके ऊपर केन्द्रित हो जाएगी... उस स्तिथि में आपको वो अपना भी सकती हैं”

“लेकिन तुम्हें उनका पता कैसे चला कि वो हैं कहाँ... में और शांति इतने सालों से ढूंढ रहे हैं.... हमें क्यूँ नहीं पता चला और तुम्हें तुरंत ही मालूम हो गया उनके बारे में” रणविजय बोला

“क्योंकि आपने अपना दिमाग चलाया अपने तरीके से.... जबकि इस परिवार में दिमाग से तो कोई भी कमजोर नहीं है.... तो पता कैसे चल सकता था.... लेकिन रवीन्द्र ताऊजी की एक सबसे बड़ी विशेषता जो मेंने आप सबके अनुभवों से जानी.... वो यही है.... कि वो दिमाग और दिल का खतरनाक संयोग हैं....इस घर में चाहे कोई किसी के बारे में ना जानता हो लेकिन वो सब के बारे में जानते हैं और सब उनके बारे में .... ये उनकी सोची समझी व्यवस्था है.... वरना जब आप ही नहीं आपके पिताजी सभी भाई भी कभी गाँव में नहीं रहे....हमेशा शहर बल्कि बड़े बड़े शहरों में रहे ....तो वो इस पिछड़े गाँव में आकर क्यों रहने लगे?”

“हम्म! कह तो तुम सही रही हो” रणविजय ने मुसकुराते हुये कहा “अच्छा में अब तुम्हारी बात समझ गया.... चलो अब जल्दी से वहीं चलते हैं...... लेकिन वो हैं कहाँ?”

“चलिये बैठिए.... कुछ ज्यादा दूर नहीं यहीं पास में ही हैं........ आपके पुराने शहर........नोएडा में”

...................................

“दीदी क्या हुआ ये विक्रम और अनुराधा कहाँ भेजे हैं..... मेंने आवाज भी दी तब भी नहीं रुके” नीलिमा ने आकर रागिनी से कहा तो वो दोनों चौंक गईं

“हम ने तो कहीं नहीं भेजा....और न ही विक्रम न अनुराधा यहाँ आए” सुशीला ने कहा

“लेकिन दीदी वो तो यहीं आपके पास आए थे और फिर यहीं से बाहर निकले चले गए बड़े तेजी से.... अनुराधा ने उनका हाथ पकड़ा हुआ था” नीलिमा ने फिर से अपनी बात पर ज़ोर देते हुये कहा

“माँ! चाची जी सही कह रही हैं.... और हम तीनों ने ही आपकी सब बातें सुन ली थीं इसीलिए चाचा बाहर निकाल गए.... पीछे पीछे अनुराधा भी उनके साथ ही निकल गयी....वो विक्रम चाचा को लेकर नोएडा गयी है..... विजय बाबा से मिलवाने” तभी भानु ने कमरे में घुसते हुये कहा तो तीनों अवाक रह गईं

“विजय बाबा! मतलब पिताजी.... वो नोएडा में रहते हैं” भानु की बात समझ में आते ही रागिनी एकदम बोली

“जी बुआ जी” भानु ने कहा

“लेकिन उनका पता अनुराधा को कैसे मालूम है....???” रागिनी ने आश्चर्य से कहा तो सुशीला कुछ कहते कहते रुक गयी और भानु की ओर घूरकर देखने लगीं तो भानु ने अपनी नजरें झुका ली

“बुआ जी! उन्हें फ़ालिज (पैरालिसिस) हो गया था पिछली साल तब से हमारे ही साथ रह रहे थे गाँव में.... उनका इलाज नोएडा में चल रहा था.... जब वो चलने-फिरने लायक कुछ सही सलामत हो गए तो पिताजी उन्हें नोएडा ले आए थे और यहीं रखा हुआ था....” भानु ने कहा

“लेकिन अनुराधा को कैसे पता चला?” रागिनी ने फिर पूंछा

“और कैसे पता चलेगा........इसी ने बताया होगा.... में गाँव से ही देखती आ रही हूँ.... इसकी और अनुराधा की कुछ ज्यादा ही घुटने लगी है” सुशीला ने गुस्से से कहा तो नीलिमा ने सुशीला के कंधे पर हाथ रखकर शांत करते हुये नजरें झुकाये खड़े भानु के सिर पर भी हाथ फिराया

“अब चलो जो भी जैसे भी हुआ..... पिताजी का पता तो चल ही गया। उन दोनों को वापस आने दो फिर देखते है” नीलिमा ने सबको शांत करते हुये कहा

...................................

“क्या विजयराज सिंह यहीं रहते हैं” अनुराधा ने दरवाजा खोलने वाली औरत से पूंछा

“जी हाँ! आप कौन?” उस औरत ने जबाब में अनुराधा से फिर सवाल किया

“जी ये मेरे साथ उनके बेटे आए हुये हैं .... उनसे मिलने” अनुराधा ने उस औरत को बताया

“आइये!” कहती हुई वो औरत दरवाजे से हटकर खड़ी हो गयी और अनुराधा के पीछे कुछ सोच में डूबे जमीन की ओर देखते रणविजय को घूरकर देखने लगी

“ विक्रम! कितना बदल गया...” अनुराधा जब उस औरत के बराबर से घर मे घुसी तो रणविजय को देखते हुये उस औरत के मुंह से हल्का सा निकला और वो पलटकर अंदर रसोईघर में को चली गयी

विक्रम ने भी नजरें उठाकर उसकी ओर देखा लेकिन तब तक वो पलट चुकी थी इसलिए विक्रम को उसका चेहरा नहीं दिखाई दिया सिर्फ पीठ ही दिखी। अनुराधा अंदर पहुंची तो हॉल में सामने एक तरफ सोफा पड़ा हुआ था और दूसरी ओर एक तख्त पर गेरुए कपड़े पहने एक बुजुर्ग बैठे हुये थे जिनकी निगाह दरवाजे की ओर ही थी। रणविजय (विक्रम) के अंदर घुसते ही जैसे उस व्यक्ति ने पहचान लिया हो और कुछ बोलने की कोशिश करने लगा।

रणविजय भी सीधा उनके पास गया और हाथ पकड़कर पास ही बैठ गया। रणविजय के हाथ पकड़ते ही उस आदमी यानि विजयराज की आँखों से आंसुओं की धार बंध गयी और वो विजयराज के गले लगकर रोने लगे। रणविजय भी उनको गले लगाए रोने लगा। हालांकि उनके पास आने तक उसके मन मे भी बहुत गुस्सा भरा हुआ था विजयराज के लिए.... बल्कि नफरत भरी हुई थी। लेकिन कुछ भी हो आज 20 साल बाद अपने पिता को देखा तो उसका भी मन पिघल गया और जब विजयराज ने उसे अपने गले लगाकर रोना शुरू किया तो वो भी रोये बिना नहीं रह पाया।

कुछ देर रोने बाद विजयराज ने रणविजय से अलग होते हुये सामने खड़ी अनुराधा की ओर देखा और उसे अपने पास आकर बैठने का इशारा किया तो अनुराधा भी आकर दूसरी तरफ उनके बराबर में वहीं तख्त पर बैठ गयी। विजयराज ने अनुराधा के सिर पर हाथ फेरा और उसके हाथों को अपने हाथों में लेकर चूमा। फिर रणविजय की ओर देखकर इशारे से अनुराधा के बारे में पूंछा। लेकिन विक्रम का ध्यान इस बात पर था की वो कुछ बोल क्यों नहीं रहे।

“पिताजी! आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे....ऐसे इशारे से क्यूँ पूंछ रहे हैं?” रणविजय ने कहा विजयराज ने अपने होठों पर उंगली रखते हुये चुप रहने का इशारा किया...जो रणविजय की समझ मे नहीं आया कि उन्होने चुप रहने को क्यूँ कहा है

“चाचाजी! बाबा बोल नहीं सकते, पिछले साल इनको फ़ालिज हो गया था...दिमाग की कोई नस फटने से एक तरफ के आधे शरीर ने काम करना बंद कर दिया था। अब हाथ पैर तो कुछ काम करने लगे हैं लेकिन इनकी जुबान ने काम करना बिलकुल बंद कर दिया है...” अनुराधा ने रणविजय की बात का जवाब देते हुये कहा

“बेटी चाय ले जाओ आप?” तभी रसोई से उस औरत की आवाज आयी तो अनुराधा और रणविजय दोनों को ही अजीब लगा कि वो न तो तब से सामने आयीं और अब चाय भी लेकर यहाँ आने की बजाय अनुराधा को बुला रही हैं... लेकिन फिर भी अनुराधा चाय लेने रसोई की ओर चल दी। इधर उस औरत की बात सुनते ही विजयराज सिंह को गुस्सा आ गया और वो रणविजय को गुस्से में कुछ इशारे करने लगे। रणविजय ने ध्यान दिया तो वो अनुराधा को रोकने और रसोई से उस औरत को बाहर बुलाने को कह रहे थे। रणविजय ने देखा तो तब तक अनुराधा रसोई में जा चुकी थी इसलिए उसने विजयराज का हाथ अपने हाथों में लेते हुये शांत होने को कहा।

अनुराधा चाय लेकर उनके पास पहुंची और वहीं तख्त पर ही ट्रे रख दी... उस ट्रे में तीन कप देखकर विजयराज ने अनुराधा को इशारा कर रसोई में मौजूद उस औरत के बारे में पूंछा की उसकी चाय कहाँ है तो अनुराधा ने कहा की वो रसोई में ही चाय पियेंगी। अनुराधा का जवाब सुनकर विजयराज ने एक बार रणविजय की ओर गौर से देखा और फिर कुछ सोचकर ठंडी सांस भरते हुये चाय पीने लगा। रणविजय और अनुराधा ने भी अपनी चाय ली और चुसकियाँ भरने लगे।

थोड़ी देर बाद अचानक विजयराज को कुछ याद आया तो उसने दोबारा रणविजय से अनुराधा के बारे में इशारे से पूंछा कि वो कौन है। इस पर रणविजय थोड़ी देर चुप बैठा रहा फिर कुछ सोच-समझकर बोला

“पिताजी ये अनुराधा है” रणविजय के मुंह से अनुराधा सुनते ही विजयराज कि आँखें फिर से नाम हो गईं और उन्होने अपने सीने पर हाथ रखते हुये इशारा किया ‘अपनी अनुराधा’ जिसे समझकर रणविजय ने फिर कहा “जी हाँ अपनी अनुराधा... विमला बुआ की पोती” और विजयराज की ओर देखा तो वो रसोई की ओर देखते हुये कुछ इशारा कर रहा था तो रणविजय की नजरें भी उनकी नजरों का पीछा करते हुये रसोई की ओर उठीं वहाँ वो औरत रसोई से बाहर झांक रही थी लेकिन उसने अपनी साड़ी से अपना मुंह ऐसे ढक रखा था जैसे आँखों से आँसू पोंछ रही हो रणविजय को अपनी ओर देखते पाकर वो तुरंत वापस रसोई में घुस गयी। अनुराधा भी उसी ओर देखने लगी थी।

अब रणविजय को भी कुछ शक हुआ तो उसने विजयराज से पूंछा कि ये औरत कौन है और उसके सामने क्यों नहीं आ रही है। इस पर विजयराज ने कुछ इशारा किया लेकिन रणविजय या अनुराधा की समझ में नहीं आया तो दोनों फिर से विजयराज की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगे। इस पर विजयराज ने अपनी दोनों बाहों को आपस में मिलकर इशारा किया जैसे बच्चे को गोद में लेते हैं और अनुराधा की ओर देखते हुये अपने होठों को हिलाया। रणविजय ने होठों को पढ़ते हुये चौंककर विजयराज और अनुराधा की ओर देखा फिर रसोई की ओर देखते हुये बोला

“ममता! ये ममता है.... अनुराधा की माँ”

विजयराज ने हामी भरते हुये अनुराधा को रसोई की ओर इशारा किया लेकिन अनुराधा तो मुंह फाड़े कभी विजयराज तो कभी रणविजय को देख रही थी। विजयराज ने फिर रणविजय को इशारा किया अनुराधा को लेकर रसोई की ओर जाने का तो रणविजय ने उठकर अनुराधा का हाथ पकड़ा और रसोई की ओर चल दिया। अनुराधा बेसुध सी उसके पीछे-पीछे खिंचती हुई चली जा रही थी। रसोई के दरवाजे पर कदम रखते ही रणविजय ने देखा कि ममता दरवाजे से टिकी हुई रसोई के फर्श पर बैठी हुई साड़ी का पल्लू मुंह में दबाये रोये जा रही थी। रणविजय ने अनुराधा को आगे करके ममता की गोद में धकेल दिया और ममता के सिर पर हाथ फिरा के वापस बाहर चला आया और विजयराज के पास बैठकर जमीन पर नजरें गड़ाए कुछ सोचता रहा। बहुत देर तक दोनों बाप-बेटे चुपचाप बैठे रहे। उधर रसोई में से अनुराधा और ममता कि हल्की-हल्की सिसकियों की आवाज बाहर तक कभी-कभी सुनाई दे रही थी।

“विक्रम!” आवाज सुनते ही रणविजय ने नजर उठाकर सामने देखा तो अनुराधा को अपने साथ चिपकाए ममता खड़ी हुई थी

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awesome update bhai ji bahut imosnol tha waise
 
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kamdev99008

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रिश्ते नाते अकसर ही दर्द दे जाते हैं..... बहाने अनेकों होते हैं ।
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विजय राज जिसने अपनी लाइफ में कोई भी काम अच्छा नहीं किया....ना जिम्मेदारी...ना एक अच्छा हसबैंड...ना एक अच्छा बाप...ना एक अच्छा भाई.... और ना एक अच्छा इंसान ।........ शायद किसी जनम में उसने पुण्य किया था जो उसे रविन्द्र और विक्रम जैसे बच्चे उसके परिवार में मिले ।

रणविजय उर्फ विक्रम..... इसका कैरेक्टर तो कभी कभी अपने बड़े भाई रविन्द्र से भी ज्यादा नेक विचार का लगता है ।

अनुराधा....जो ममता की बेटी है....जिसे विक्रम ने कभी अपनी बेटी बना कर रखा था........ वो भी एक समय अपने कथित माॅम रागिनी से ज्यादा अपने कथित फादर विक्रम को पसंद करती है......... ये कहानी इनसेस्ट होती तो इसके मायने कुछ और ही होते ।

रविन्द्र और सुशिला का बेटा भानु प्रताप सिंह और अनुराधा के बीच कुछ न कुछ तो है... ये हमने गांव में भी देखा था ।

बुरे दिनों में विजय राज के साथ है ममता जो कि बहुत अच्छी बात है.......लेकिन दोनों ने अभी तक तो समाज ही नहीं बल्कि परिवार के नजरों में भी बुरा ही बुरा किया था ।...... जब लोग अपने मौत के करीब पहुंच जाते हैं तब शायद उन्हें अपने करनी का अहसास होता है ।

लास्ट पैराग्राफ में ममता और अनुराधा का बीस सालों के बाद मिलन..... इसमें इमोशन और आंसुओं के अलावा और क्या हो सकता है । कैसा लगता होगा ममता को ! कैसी फील करती होगी अनु !

कामदेव भाई..... अब तो मैं भी परेशान हो गया हूं.....कम से कम दो हफ्ते में भी एक अपडेट तो दिजिए ।
bhai ji pahle routine sahi chal raha tha............mahine mein 5-6 aur kabhi 7-8 update bhi ho jate the............yani kisi week 1 to kisi week 2
lekin pichhle mahine ghar se bahar tha...........chhote bhai ke yahan.....to aisi privacy nahin thi ki kahani likh pata
halanki meri kahani mein sex ya vulgarity nahin hai.............lekin apko bhi maloom hai.... kahani hai to pariwar ki hi..........
meri wife ke alawa kisi ko pata nahin ki mein likhta bhi hoon...........padhne ke alawa..........
aur wife ko bhi ye nahin pata ki mein apne hi pariwar ki kahani ko likh raha hoon
varna..............ab tak to sara pariwar aakar naak ragad ke, ro-dho ke is kahani ko band kara chuka hota

ab chinta na karein............update ki gati fir se badhegi............kam se kam 1 update weekly ka routine to bana hi rahega
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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115,944
354
अध्याय 47

“सुशीला! ये विक्रम यहाँ क्या कर रहा है” रागिनी ने गुस्से से कहा तो सुशीला को हंसी आ गयी

“दीदी! आप भी ना। अब ऐसे मौके पर भाई ना हो तो कौन होगा। लगता है कन्यादान नहीं करना आपको। इसी घर में जमे रहना है” सुशीला ने हँसते हुये मज़ाक में कहा लेकिन रागिनी के तेवर नहीं बदले

“आप हैं मेरे पास और रवीद्र भी। मुझे इसकी जरूरत नहीं अपनी शादी में, मेरा कन्यादान भी आप लोग ही करेंगे” रागिनी ने फिर से गुस्से में कहा तो कमरे के बाहर किसी काम से सुशीला को बुलाने आए अनुराधा और भानु वहीं रुक गए और एक दूसरे की ओर देखने लगे।

तभी उन्हें अपने पीछे किसी के होने का आभास हुआ तो पलटकर देखा। पीछे रणविजय आँखों में आँसू लिए खड़ा हुआ था। शायद रणविजय ने भी अंदर चल रही सुशीला और रागिनी के बीच की बातों को सुन लिया था। उन दोनों से नज़रें मिलते ही रणविजय वापस मुड़कर ड्राइंग हॉल की ओर चल दिया। अनुराधा भी उसके पीछे गयी और ड्राइंग हॉल में उसके सामने पहुँचकर उसका हाथ पकड़ा और बाहर की ओर चल दी। बाहर आकर अनुराधा ने अपनी गाड़ी का लॉक खोला और खुद ड्राइविंग सीट पर बैठती हुई रणविजय को दूसरी ओर बैठने का इशारा किया।

रणविजय अपनी भावनाओं में इतना डूबा हुआ था की बिना सोचे समझे सिर्फ अनुराधा के इशारे पर उसके साथ गाड़ी में बैठ गया और वो दोनों वहाँ से चल दिये......। लगभग आधे घंटे बाद अनुराधा ने गाड़ी ले जाकर राजघाट के पास यमुना नदी के किनारे किनारे बनाए गए उपवन में खड़ी की। यहाँ शाम के समय तो काफी भीड़ रहती थी...लेकिन इस समय कोई भी नहीं था.... कई किलोमीटर में फैले इस उपवन में कहीं 100-200 मिटर दूर ही कुछ नगर निगम कर्मचारी पेड़ों के नीचे पड़े सोते हुये दिख रहे थे। अनुराधा ने गाड़ी पार्किंग लें में लगाई और उतरकर विक्रम का हाथ पकड़कर अंदर गयी और एक पेड़ के नीचे खुद बैठते हुये रणविजय को भी बैठा लिया।

“आप जानते हैं में हमेशा से आपसे प्यार और माँ से नफरत करती थी?” अनुराधा ने चुप्पी तोड़ते हुये कहा तो रणविजय ने चौंकते हुये उसकी ओर देखा

“क्या कहा तुमने? और दीदी ने ऐसा क्या कर दिया जो तुम उनसे नफरत करने लगीं” रणविजय ने खुद को जो अभी तक दर्द में डुबोया हुआ था ...उससे बाहर आते हुये कहा

“आज वो आपके लिए दीदी हो गईं....जो कल तक रागिनी हुआ करती थीं। याददास्त उनकी गयी थी या आपकी?”

“अब तुम भी मुझपर वही इल्जाम लगा दो जो दीदी ने लगाया....कि मेरी ही नियत में खोट था” रणविजय ने उसकी आँखों में देखते हुये वेदना भरे स्वर में कहा

“नहीं में आप पर कोई इल्जाम नहीं लगा रही.... आप मुझसे बड़े हैं...तो आप मुझसे ज्यादा समझदार भी होंगे ये उम्मीद रखती हूँ... इसीलिए ऐसा कहा” अनुराधा ने थोड़ा रुककर आगे कहना शुरू किया “में आपसे इसलिए प्यार करती थी क्योंकि आपने हम सबके लिए इतना कुछ किया लेकिन कभी कुछ न तो हमसे पाना चाहा और ना ही अपनी ज़िंदगी के लिए कुछ किया ......... जबकि माँ मतलब रागिनी बुआ आपके एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार थी। मुझे आपके हवस भरे चरित्र के बारे में भी बहुत कुछ समझ में आ गया था... लेकिन आपने कभी मेरी या माँ की ओर नजर उठाकर भी नहीं देखा... इसीलिए में आपसे प्यार करती थी....कभी-कभी मुझे लगता था कि आपने मुझसे भाई का रिश्ता क्यों जोड़ा?”

“भाई का रिश्ता क्यों जोड़ा? क्या मतलब हुआ इसका.... क्या तुम्हें पहले ही पता चल गया था कि तुम मेरी बहन नहीं हो?” रणविजय ने चौंकते हुये कहा

“हाँ! में जैसे ही कुछ समझदार हुई साथ पढ़ने वाली लड़कियों से जो जानकारी मिली...उसके हिसाब से में रागिनी बुआ की बेटी हो ही नहीं सकती थी.... उनकी उम्र और मेरी उम्र में इतना अंतर ही नहीं था.... में उन्हें सौतेली माँ समझती थी। और उनके मन में आपके लिए प्यार का अहसास पाते ही मेरे मन में उनके लिए नफरत के सिवा कुछ भी नहीं बचा......” अनुराधा ने कहा तो रणविजय एक ठंडी सांस भरकर रह गया

“लेकिन अब तो सबकुछ तुम्हारे सामने है.... जो बीत गया उसमें मेंने गलत किया या सही... उसके लिए अब मुझे यू नफरत कि आग में झोंकना कहाँ सही है दीदी का। और तुम मुझे यहाँ क्यों लेकर आयी ये भी मेरी समझ से परे है” रणविजय ने थोड़ी देर चुप रहने के बाद कहा

“में माँ के आज के रवैये को देखकर समझ चुकी हूँ कि उनको समझा पाना आपके बस की बात नहीं... उल्टा आप जितना उन्हें समझाने कि कोशिश करोगे उतना ही वो और भी चिढ़कर नफरत करने लगेंगी... इसलिए अब में आपको किसी के पास लेकर जाना चाहती हूँ... अकेले वो ही हैं जो अब माँ को समझा सकते हैं” अनुराधा ने कहा

“कौन? कौन हैं वो.... रवीन्द्र भैया?” रणविजय ने कहा

“नहीं... आपके...” कहते कहते अनुराधा रुक गयी जैसे सोच रही थी कि बताए या न बताए

“मेरे कौन? रुक क्यों गयी... बताओ” रणविजय बोला

“आपके पिताजी” सुनते ही रणविजय के चेहरे पर गुस्सा और नफरत दिखने लगी। वो कुछ कहने को हुआ तभी अनुराधा ने आगे बोलना शुरू किया “ना...ना... गुस्से से नहीं ठंडे दिमाग से काम लो.... अभी किसी का समझाया कुछ भी माँ की समझ में नहीं आयेगा.... न उनका गुस्सा कम होगा.... लेकिन आपके पिताजी के सामने आने पर जो गुस्सा और नफरत माँ के मन मे भरी है वो आपकी बजाय उनके ऊपर केन्द्रित हो जाएगी... उस स्तिथि में आपको वो अपना भी सकती हैं”

“लेकिन तुम्हें उनका पता कैसे चला कि वो हैं कहाँ... में और शांति इतने सालों से ढूंढ रहे हैं.... हमें क्यूँ नहीं पता चला और तुम्हें तुरंत ही मालूम हो गया उनके बारे में” रणविजय बोला

“क्योंकि आपने अपना दिमाग चलाया अपने तरीके से.... जबकि इस परिवार में दिमाग से तो कोई भी कमजोर नहीं है.... तो पता कैसे चल सकता था.... लेकिन रवीन्द्र ताऊजी की एक सबसे बड़ी विशेषता जो मेंने आप सबके अनुभवों से जानी.... वो यही है.... कि वो दिमाग और दिल का खतरनाक संयोग हैं....इस घर में चाहे कोई किसी के बारे में ना जानता हो लेकिन वो सब के बारे में जानते हैं और सब उनके बारे में .... ये उनकी सोची समझी व्यवस्था है.... वरना जब आप ही नहीं आपके पिताजी सभी भाई भी कभी गाँव में नहीं रहे....हमेशा शहर बल्कि बड़े बड़े शहरों में रहे ....तो वो इस पिछड़े गाँव में आकर क्यों रहने लगे?”

“हम्म! कह तो तुम सही रही हो” रणविजय ने मुसकुराते हुये कहा “अच्छा में अब तुम्हारी बात समझ गया.... चलो अब जल्दी से वहीं चलते हैं...... लेकिन वो हैं कहाँ?”

“चलिये बैठिए.... कुछ ज्यादा दूर नहीं यहीं पास में ही हैं........ आपके पुराने शहर........नोएडा में”

...................................

“दीदी क्या हुआ ये विक्रम और अनुराधा कहाँ भेजे हैं..... मेंने आवाज भी दी तब भी नहीं रुके” नीलिमा ने आकर रागिनी से कहा तो वो दोनों चौंक गईं

“हम ने तो कहीं नहीं भेजा....और न ही विक्रम न अनुराधा यहाँ आए” सुशीला ने कहा

“लेकिन दीदी वो तो यहीं आपके पास आए थे और फिर यहीं से बाहर निकले चले गए बड़े तेजी से.... अनुराधा ने उनका हाथ पकड़ा हुआ था” नीलिमा ने फिर से अपनी बात पर ज़ोर देते हुये कहा

“माँ! चाची जी सही कह रही हैं.... और हम तीनों ने ही आपकी सब बातें सुन ली थीं इसीलिए चाचा बाहर निकाल गए.... पीछे पीछे अनुराधा भी उनके साथ ही निकल गयी....वो विक्रम चाचा को लेकर नोएडा गयी है..... विजय बाबा से मिलवाने” तभी भानु ने कमरे में घुसते हुये कहा तो तीनों अवाक रह गईं

“विजय बाबा! मतलब पिताजी.... वो नोएडा में रहते हैं” भानु की बात समझ में आते ही रागिनी एकदम बोली

“जी बुआ जी” भानु ने कहा

“लेकिन उनका पता अनुराधा को कैसे मालूम है....???” रागिनी ने आश्चर्य से कहा तो सुशीला कुछ कहते कहते रुक गयी और भानु की ओर घूरकर देखने लगीं तो भानु ने अपनी नजरें झुका ली

“बुआ जी! उन्हें फ़ालिज (पैरालिसिस) हो गया था पिछली साल तब से हमारे ही साथ रह रहे थे गाँव में.... उनका इलाज नोएडा में चल रहा था.... जब वो चलने-फिरने लायक कुछ सही सलामत हो गए तो पिताजी उन्हें नोएडा ले आए थे और यहीं रखा हुआ था....” भानु ने कहा

“लेकिन अनुराधा को कैसे पता चला?” रागिनी ने फिर पूंछा

“और कैसे पता चलेगा........इसी ने बताया होगा.... में गाँव से ही देखती आ रही हूँ.... इसकी और अनुराधा की कुछ ज्यादा ही घुटने लगी है” सुशीला ने गुस्से से कहा तो नीलिमा ने सुशीला के कंधे पर हाथ रखकर शांत करते हुये नजरें झुकाये खड़े भानु के सिर पर भी हाथ फिराया

“अब चलो जो भी जैसे भी हुआ..... पिताजी का पता तो चल ही गया। उन दोनों को वापस आने दो फिर देखते है” नीलिमा ने सबको शांत करते हुये कहा

...................................

“क्या विजयराज सिंह यहीं रहते हैं” अनुराधा ने दरवाजा खोलने वाली औरत से पूंछा

“जी हाँ! आप कौन?” उस औरत ने जबाब में अनुराधा से फिर सवाल किया

“जी ये मेरे साथ उनके बेटे आए हुये हैं .... उनसे मिलने” अनुराधा ने उस औरत को बताया

“आइये!” कहती हुई वो औरत दरवाजे से हटकर खड़ी हो गयी और अनुराधा के पीछे कुछ सोच में डूबे जमीन की ओर देखते रणविजय को घूरकर देखने लगी

“ विक्रम! कितना बदल गया...” अनुराधा जब उस औरत के बराबर से घर मे घुसी तो रणविजय को देखते हुये उस औरत के मुंह से हल्का सा निकला और वो पलटकर अंदर रसोईघर में को चली गयी

विक्रम ने भी नजरें उठाकर उसकी ओर देखा लेकिन तब तक वो पलट चुकी थी इसलिए विक्रम को उसका चेहरा नहीं दिखाई दिया सिर्फ पीठ ही दिखी। अनुराधा अंदर पहुंची तो हॉल में सामने एक तरफ सोफा पड़ा हुआ था और दूसरी ओर एक तख्त पर गेरुए कपड़े पहने एक बुजुर्ग बैठे हुये थे जिनकी निगाह दरवाजे की ओर ही थी। रणविजय (विक्रम) के अंदर घुसते ही जैसे उस व्यक्ति ने पहचान लिया हो और कुछ बोलने की कोशिश करने लगा।

रणविजय भी सीधा उनके पास गया और हाथ पकड़कर पास ही बैठ गया। रणविजय के हाथ पकड़ते ही उस आदमी यानि विजयराज की आँखों से आंसुओं की धार बंध गयी और वो विजयराज के गले लगकर रोने लगे। रणविजय भी उनको गले लगाए रोने लगा। हालांकि उनके पास आने तक उसके मन मे भी बहुत गुस्सा भरा हुआ था विजयराज के लिए.... बल्कि नफरत भरी हुई थी। लेकिन कुछ भी हो आज 20 साल बाद अपने पिता को देखा तो उसका भी मन पिघल गया और जब विजयराज ने उसे अपने गले लगाकर रोना शुरू किया तो वो भी रोये बिना नहीं रह पाया।

कुछ देर रोने बाद विजयराज ने रणविजय से अलग होते हुये सामने खड़ी अनुराधा की ओर देखा और उसे अपने पास आकर बैठने का इशारा किया तो अनुराधा भी आकर दूसरी तरफ उनके बराबर में वहीं तख्त पर बैठ गयी। विजयराज ने अनुराधा के सिर पर हाथ फेरा और उसके हाथों को अपने हाथों में लेकर चूमा। फिर रणविजय की ओर देखकर इशारे से अनुराधा के बारे में पूंछा। लेकिन विक्रम का ध्यान इस बात पर था की वो कुछ बोल क्यों नहीं रहे।

“पिताजी! आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे....ऐसे इशारे से क्यूँ पूंछ रहे हैं?” रणविजय ने कहा विजयराज ने अपने होठों पर उंगली रखते हुये चुप रहने का इशारा किया...जो रणविजय की समझ मे नहीं आया कि उन्होने चुप रहने को क्यूँ कहा है

“चाचाजी! बाबा बोल नहीं सकते, पिछले साल इनको फ़ालिज हो गया था...दिमाग की कोई नस फटने से एक तरफ के आधे शरीर ने काम करना बंद कर दिया था। अब हाथ पैर तो कुछ काम करने लगे हैं लेकिन इनकी जुबान ने काम करना बिलकुल बंद कर दिया है...” अनुराधा ने रणविजय की बात का जवाब देते हुये कहा

“बेटी चाय ले जाओ आप?” तभी रसोई से उस औरत की आवाज आयी तो अनुराधा और रणविजय दोनों को ही अजीब लगा कि वो न तो तब से सामने आयीं और अब चाय भी लेकर यहाँ आने की बजाय अनुराधा को बुला रही हैं... लेकिन फिर भी अनुराधा चाय लेने रसोई की ओर चल दी। इधर उस औरत की बात सुनते ही विजयराज सिंह को गुस्सा आ गया और वो रणविजय को गुस्से में कुछ इशारे करने लगे। रणविजय ने ध्यान दिया तो वो अनुराधा को रोकने और रसोई से उस औरत को बाहर बुलाने को कह रहे थे। रणविजय ने देखा तो तब तक अनुराधा रसोई में जा चुकी थी इसलिए उसने विजयराज का हाथ अपने हाथों में लेते हुये शांत होने को कहा।

अनुराधा चाय लेकर उनके पास पहुंची और वहीं तख्त पर ही ट्रे रख दी... उस ट्रे में तीन कप देखकर विजयराज ने अनुराधा को इशारा कर रसोई में मौजूद उस औरत के बारे में पूंछा की उसकी चाय कहाँ है तो अनुराधा ने कहा की वो रसोई में ही चाय पियेंगी। अनुराधा का जवाब सुनकर विजयराज ने एक बार रणविजय की ओर गौर से देखा और फिर कुछ सोचकर ठंडी सांस भरते हुये चाय पीने लगा। रणविजय और अनुराधा ने भी अपनी चाय ली और चुसकियाँ भरने लगे।

थोड़ी देर बाद अचानक विजयराज को कुछ याद आया तो उसने दोबारा रणविजय से अनुराधा के बारे में इशारे से पूंछा कि वो कौन है। इस पर रणविजय थोड़ी देर चुप बैठा रहा फिर कुछ सोच-समझकर बोला

“पिताजी ये अनुराधा है” रणविजय के मुंह से अनुराधा सुनते ही विजयराज कि आँखें फिर से नाम हो गईं और उन्होने अपने सीने पर हाथ रखते हुये इशारा किया ‘अपनी अनुराधा’ जिसे समझकर रणविजय ने फिर कहा “जी हाँ अपनी अनुराधा... विमला बुआ की पोती” और विजयराज की ओर देखा तो वो रसोई की ओर देखते हुये कुछ इशारा कर रहा था तो रणविजय की नजरें भी उनकी नजरों का पीछा करते हुये रसोई की ओर उठीं वहाँ वो औरत रसोई से बाहर झांक रही थी लेकिन उसने अपनी साड़ी से अपना मुंह ऐसे ढक रखा था जैसे आँखों से आँसू पोंछ रही हो रणविजय को अपनी ओर देखते पाकर वो तुरंत वापस रसोई में घुस गयी। अनुराधा भी उसी ओर देखने लगी थी।

अब रणविजय को भी कुछ शक हुआ तो उसने विजयराज से पूंछा कि ये औरत कौन है और उसके सामने क्यों नहीं आ रही है। इस पर विजयराज ने कुछ इशारा किया लेकिन रणविजय या अनुराधा की समझ में नहीं आया तो दोनों फिर से विजयराज की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगे। इस पर विजयराज ने अपनी दोनों बाहों को आपस में मिलकर इशारा किया जैसे बच्चे को गोद में लेते हैं और अनुराधा की ओर देखते हुये अपने होठों को हिलाया। रणविजय ने होठों को पढ़ते हुये चौंककर विजयराज और अनुराधा की ओर देखा फिर रसोई की ओर देखते हुये बोला

“ममता! ये ममता है.... अनुराधा की माँ”

विजयराज ने हामी भरते हुये अनुराधा को रसोई की ओर इशारा किया लेकिन अनुराधा तो मुंह फाड़े कभी विजयराज तो कभी रणविजय को देख रही थी। विजयराज ने फिर रणविजय को इशारा किया अनुराधा को लेकर रसोई की ओर जाने का तो रणविजय ने उठकर अनुराधा का हाथ पकड़ा और रसोई की ओर चल दिया। अनुराधा बेसुध सी उसके पीछे-पीछे खिंचती हुई चली जा रही थी। रसोई के दरवाजे पर कदम रखते ही रणविजय ने देखा कि ममता दरवाजे से टिकी हुई रसोई के फर्श पर बैठी हुई साड़ी का पल्लू मुंह में दबाये रोये जा रही थी। रणविजय ने अनुराधा को आगे करके ममता की गोद में धकेल दिया और ममता के सिर पर हाथ फिरा के वापस बाहर चला आया और विजयराज के पास बैठकर जमीन पर नजरें गड़ाए कुछ सोचता रहा। बहुत देर तक दोनों बाप-बेटे चुपचाप बैठे रहे। उधर रसोई में से अनुराधा और ममता कि हल्की-हल्की सिसकियों की आवाज बाहर तक कभी-कभी सुनाई दे रही थी।

“विक्रम!” आवाज सुनते ही रणविजय ने नजर उठाकर सामने देखा तो अनुराधा को अपने साथ चिपकाए ममता खड़ी हुई थी

................................................
Waaah bahut hi khoob,,,,:claps:
Jiwan bhar jisne koi achha kaam nahi kiya wo aaj apne bete ko dekh kar usko gale bhi lagaya aur aanshu bhi bahaye. Bees saal baad milan ha to vikram bhi apne gusse ko bhool gaya. Vijayraj kadachit ab apne bure karmo ke bare me soch kar is tarah ro raha tha. Aisa hi hota hai....insaan ko aakhir me hi ye bodh hota hai ki usne apne jiwan me kaise karm kiye the. Khair baat hairaan karne wali to thi lekin mamta bhi nazar aa gayi aur use apni beti bhi mil gayi. Anuradha ko to pata bhi nahi tha ki wo aurat asal me uski maa hai,,,,:dazed:

Ragini ka gussa vikram ke prati kam nahi ho raha. Aakhir abhi kya baate hain uske man me....khair yaha par anuradha ne kafi samajhdaari wala karnama kiya hai. Ab to ragini ka bhi apne baap se milan hoga aur shayad apne baap ke samjhane se uska gussa shaant ho jaye. Dekhte hain aage kya hota hai,,,,,:waiting:

Kamdev bhaiya se vinamra nivedan hai ki agar teerath yaatra puri ho gayi ho aur test badal gaya ho to kripaya update dene me ab deri na lageyenge,,,,,:pray:
 

DARK WOLFKING

Supreme
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ज्यादा लंबी नहीं हो पायी सजा............ paralisys में लगभग 2 साल काटने के बाद मौत हो गयी.................आगे कहानी में आयेगा सबकुछ
pehle yaad nahi tha ye aapki real kahani hai ,ab yaad aaya to sorry kehna chahta hu ki vijayraj ke baare me aisa kaha ??...
 

kamdev99008

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pehle yaad nahi tha ye aapki real kahani hai ,ab yaad aaya to sorry kehna chahta hu ki vijayraj ke baare me aisa kaha ??...
"लाख करो चतुराई, करम का लेख मिटे न रे भाई"
भाई आपकी कोई गलती नहीं............ हर कोई अपने अच्छे बुरे कर्म से जो ज़िंदगी लिखता है........उसी को भोगता भी है...........पहले या बाद में
.....................
मेरे तो वो चाचा थे............ लेकिन उनकी अपनी संतान को भी कभी उनके कर्मों पर गर्व नहीं हुआ..........बल्कि हमेशा शर्मिंदगी ही हुई.......
............... बस मेरे कर्म ऐसे हैं कि सारे परिवार के अच्छे-बुरे का अंत मेरे ही हाथों होता रहा है............. उनका भी अंतिम संस्कार उनके बेटे के साथ मेंने ही किया था...................अब तक लगभग 500 से ज्यादा लोगों के अंतिम संस्कार में शामिल हुआ हूँ.......... और 5 लोगों का अंतिम संस्कार अपने हाथों से किया है............ अभी भी 3 लोग निश्चित हैं जिनकी .............चिता को अग्नि मेरे ही हाथों से लगेगी..... और अनिश्चित तो 1 दर्जन से ज्यादा हैं...............अगर मेरे जीवित रहते उनमें से किसी की मृत्यु हुई तो................................

अब इसे मेरा दुर्भाग्य मान लो............या मेरी तरह सौभाग्य .............
 
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VIKRANT

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अध्याय 47

“सुशीला! ये विक्रम यहाँ क्या कर रहा है” रागिनी ने गुस्से से कहा तो सुशीला को हंसी आ गयी

“दीदी! आप भी ना। अब ऐसे मौके पर भाई ना हो तो कौन होगा। लगता है कन्यादान नहीं करना आपको। इसी घर में जमे रहना है” सुशीला ने हँसते हुये मज़ाक में कहा लेकिन रागिनी के तेवर नहीं बदले

“आप हैं मेरे पास और रवीद्र भी। मुझे इसकी जरूरत नहीं अपनी शादी में, मेरा कन्यादान भी आप लोग ही करेंगे” रागिनी ने फिर से गुस्से में कहा तो कमरे के बाहर किसी काम से सुशीला को बुलाने आए अनुराधा और भानु वहीं रुक गए और एक दूसरे की ओर देखने लगे।

तभी उन्हें अपने पीछे किसी के होने का आभास हुआ तो पलटकर देखा। पीछे रणविजय आँखों में आँसू लिए खड़ा हुआ था। शायद रणविजय ने भी अंदर चल रही सुशीला और रागिनी के बीच की बातों को सुन लिया था। उन दोनों से नज़रें मिलते ही रणविजय वापस मुड़कर ड्राइंग हॉल की ओर चल दिया। अनुराधा भी उसके पीछे गयी और ड्राइंग हॉल में उसके सामने पहुँचकर उसका हाथ पकड़ा और बाहर की ओर चल दी। बाहर आकर अनुराधा ने अपनी गाड़ी का लॉक खोला और खुद ड्राइविंग सीट पर बैठती हुई रणविजय को दूसरी ओर बैठने का इशारा किया।

रणविजय अपनी भावनाओं में इतना डूबा हुआ था की बिना सोचे समझे सिर्फ अनुराधा के इशारे पर उसके साथ गाड़ी में बैठ गया और वो दोनों वहाँ से चल दिये......। लगभग आधे घंटे बाद अनुराधा ने गाड़ी ले जाकर राजघाट के पास यमुना नदी के किनारे किनारे बनाए गए उपवन में खड़ी की। यहाँ शाम के समय तो काफी भीड़ रहती थी...लेकिन इस समय कोई भी नहीं था.... कई किलोमीटर में फैले इस उपवन में कहीं 100-200 मिटर दूर ही कुछ नगर निगम कर्मचारी पेड़ों के नीचे पड़े सोते हुये दिख रहे थे। अनुराधा ने गाड़ी पार्किंग लें में लगाई और उतरकर विक्रम का हाथ पकड़कर अंदर गयी और एक पेड़ के नीचे खुद बैठते हुये रणविजय को भी बैठा लिया।

“आप जानते हैं में हमेशा से आपसे प्यार और माँ से नफरत करती थी?” अनुराधा ने चुप्पी तोड़ते हुये कहा तो रणविजय ने चौंकते हुये उसकी ओर देखा

“क्या कहा तुमने? और दीदी ने ऐसा क्या कर दिया जो तुम उनसे नफरत करने लगीं” रणविजय ने खुद को जो अभी तक दर्द में डुबोया हुआ था ...उससे बाहर आते हुये कहा

“आज वो आपके लिए दीदी हो गईं....जो कल तक रागिनी हुआ करती थीं। याददास्त उनकी गयी थी या आपकी?”

“अब तुम भी मुझपर वही इल्जाम लगा दो जो दीदी ने लगाया....कि मेरी ही नियत में खोट था” रणविजय ने उसकी आँखों में देखते हुये वेदना भरे स्वर में कहा

“नहीं में आप पर कोई इल्जाम नहीं लगा रही.... आप मुझसे बड़े हैं...तो आप मुझसे ज्यादा समझदार भी होंगे ये उम्मीद रखती हूँ... इसीलिए ऐसा कहा” अनुराधा ने थोड़ा रुककर आगे कहना शुरू किया “में आपसे इसलिए प्यार करती थी क्योंकि आपने हम सबके लिए इतना कुछ किया लेकिन कभी कुछ न तो हमसे पाना चाहा और ना ही अपनी ज़िंदगी के लिए कुछ किया ......... जबकि माँ मतलब रागिनी बुआ आपके एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार थी। मुझे आपके हवस भरे चरित्र के बारे में भी बहुत कुछ समझ में आ गया था... लेकिन आपने कभी मेरी या माँ की ओर नजर उठाकर भी नहीं देखा... इसीलिए में आपसे प्यार करती थी....कभी-कभी मुझे लगता था कि आपने मुझसे भाई का रिश्ता क्यों जोड़ा?”

“भाई का रिश्ता क्यों जोड़ा? क्या मतलब हुआ इसका.... क्या तुम्हें पहले ही पता चल गया था कि तुम मेरी बहन नहीं हो?” रणविजय ने चौंकते हुये कहा

“हाँ! में जैसे ही कुछ समझदार हुई साथ पढ़ने वाली लड़कियों से जो जानकारी मिली...उसके हिसाब से में रागिनी बुआ की बेटी हो ही नहीं सकती थी.... उनकी उम्र और मेरी उम्र में इतना अंतर ही नहीं था.... में उन्हें सौतेली माँ समझती थी। और उनके मन में आपके लिए प्यार का अहसास पाते ही मेरे मन में उनके लिए नफरत के सिवा कुछ भी नहीं बचा......” अनुराधा ने कहा तो रणविजय एक ठंडी सांस भरकर रह गया

“लेकिन अब तो सबकुछ तुम्हारे सामने है.... जो बीत गया उसमें मेंने गलत किया या सही... उसके लिए अब मुझे यू नफरत कि आग में झोंकना कहाँ सही है दीदी का। और तुम मुझे यहाँ क्यों लेकर आयी ये भी मेरी समझ से परे है” रणविजय ने थोड़ी देर चुप रहने के बाद कहा

“में माँ के आज के रवैये को देखकर समझ चुकी हूँ कि उनको समझा पाना आपके बस की बात नहीं... उल्टा आप जितना उन्हें समझाने कि कोशिश करोगे उतना ही वो और भी चिढ़कर नफरत करने लगेंगी... इसलिए अब में आपको किसी के पास लेकर जाना चाहती हूँ... अकेले वो ही हैं जो अब माँ को समझा सकते हैं” अनुराधा ने कहा

“कौन? कौन हैं वो.... रवीन्द्र भैया?” रणविजय ने कहा

“नहीं... आपके...” कहते कहते अनुराधा रुक गयी जैसे सोच रही थी कि बताए या न बताए

“मेरे कौन? रुक क्यों गयी... बताओ” रणविजय बोला

“आपके पिताजी” सुनते ही रणविजय के चेहरे पर गुस्सा और नफरत दिखने लगी। वो कुछ कहने को हुआ तभी अनुराधा ने आगे बोलना शुरू किया “ना...ना... गुस्से से नहीं ठंडे दिमाग से काम लो.... अभी किसी का समझाया कुछ भी माँ की समझ में नहीं आयेगा.... न उनका गुस्सा कम होगा.... लेकिन आपके पिताजी के सामने आने पर जो गुस्सा और नफरत माँ के मन मे भरी है वो आपकी बजाय उनके ऊपर केन्द्रित हो जाएगी... उस स्तिथि में आपको वो अपना भी सकती हैं”

“लेकिन तुम्हें उनका पता कैसे चला कि वो हैं कहाँ... में और शांति इतने सालों से ढूंढ रहे हैं.... हमें क्यूँ नहीं पता चला और तुम्हें तुरंत ही मालूम हो गया उनके बारे में” रणविजय बोला

“क्योंकि आपने अपना दिमाग चलाया अपने तरीके से.... जबकि इस परिवार में दिमाग से तो कोई भी कमजोर नहीं है.... तो पता कैसे चल सकता था.... लेकिन रवीन्द्र ताऊजी की एक सबसे बड़ी विशेषता जो मेंने आप सबके अनुभवों से जानी.... वो यही है.... कि वो दिमाग और दिल का खतरनाक संयोग हैं....इस घर में चाहे कोई किसी के बारे में ना जानता हो लेकिन वो सब के बारे में जानते हैं और सब उनके बारे में .... ये उनकी सोची समझी व्यवस्था है.... वरना जब आप ही नहीं आपके पिताजी सभी भाई भी कभी गाँव में नहीं रहे....हमेशा शहर बल्कि बड़े बड़े शहरों में रहे ....तो वो इस पिछड़े गाँव में आकर क्यों रहने लगे?”

“हम्म! कह तो तुम सही रही हो” रणविजय ने मुसकुराते हुये कहा “अच्छा में अब तुम्हारी बात समझ गया.... चलो अब जल्दी से वहीं चलते हैं...... लेकिन वो हैं कहाँ?”

“चलिये बैठिए.... कुछ ज्यादा दूर नहीं यहीं पास में ही हैं........ आपके पुराने शहर........नोएडा में”

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“दीदी क्या हुआ ये विक्रम और अनुराधा कहाँ भेजे हैं..... मेंने आवाज भी दी तब भी नहीं रुके” नीलिमा ने आकर रागिनी से कहा तो वो दोनों चौंक गईं

“हम ने तो कहीं नहीं भेजा....और न ही विक्रम न अनुराधा यहाँ आए” सुशीला ने कहा

“लेकिन दीदी वो तो यहीं आपके पास आए थे और फिर यहीं से बाहर निकले चले गए बड़े तेजी से.... अनुराधा ने उनका हाथ पकड़ा हुआ था” नीलिमा ने फिर से अपनी बात पर ज़ोर देते हुये कहा

“माँ! चाची जी सही कह रही हैं.... और हम तीनों ने ही आपकी सब बातें सुन ली थीं इसीलिए चाचा बाहर निकाल गए.... पीछे पीछे अनुराधा भी उनके साथ ही निकल गयी....वो विक्रम चाचा को लेकर नोएडा गयी है..... विजय बाबा से मिलवाने” तभी भानु ने कमरे में घुसते हुये कहा तो तीनों अवाक रह गईं

“विजय बाबा! मतलब पिताजी.... वो नोएडा में रहते हैं” भानु की बात समझ में आते ही रागिनी एकदम बोली

“जी बुआ जी” भानु ने कहा

“लेकिन उनका पता अनुराधा को कैसे मालूम है....???” रागिनी ने आश्चर्य से कहा तो सुशीला कुछ कहते कहते रुक गयी और भानु की ओर घूरकर देखने लगीं तो भानु ने अपनी नजरें झुका ली

“बुआ जी! उन्हें फ़ालिज (पैरालिसिस) हो गया था पिछली साल तब से हमारे ही साथ रह रहे थे गाँव में.... उनका इलाज नोएडा में चल रहा था.... जब वो चलने-फिरने लायक कुछ सही सलामत हो गए तो पिताजी उन्हें नोएडा ले आए थे और यहीं रखा हुआ था....” भानु ने कहा

“लेकिन अनुराधा को कैसे पता चला?” रागिनी ने फिर पूंछा

“और कैसे पता चलेगा........इसी ने बताया होगा.... में गाँव से ही देखती आ रही हूँ.... इसकी और अनुराधा की कुछ ज्यादा ही घुटने लगी है” सुशीला ने गुस्से से कहा तो नीलिमा ने सुशीला के कंधे पर हाथ रखकर शांत करते हुये नजरें झुकाये खड़े भानु के सिर पर भी हाथ फिराया

“अब चलो जो भी जैसे भी हुआ..... पिताजी का पता तो चल ही गया। उन दोनों को वापस आने दो फिर देखते है” नीलिमा ने सबको शांत करते हुये कहा

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“क्या विजयराज सिंह यहीं रहते हैं” अनुराधा ने दरवाजा खोलने वाली औरत से पूंछा

“जी हाँ! आप कौन?” उस औरत ने जबाब में अनुराधा से फिर सवाल किया

“जी ये मेरे साथ उनके बेटे आए हुये हैं .... उनसे मिलने” अनुराधा ने उस औरत को बताया

“आइये!” कहती हुई वो औरत दरवाजे से हटकर खड़ी हो गयी और अनुराधा के पीछे कुछ सोच में डूबे जमीन की ओर देखते रणविजय को घूरकर देखने लगी

“ विक्रम! कितना बदल गया...” अनुराधा जब उस औरत के बराबर से घर मे घुसी तो रणविजय को देखते हुये उस औरत के मुंह से हल्का सा निकला और वो पलटकर अंदर रसोईघर में को चली गयी

विक्रम ने भी नजरें उठाकर उसकी ओर देखा लेकिन तब तक वो पलट चुकी थी इसलिए विक्रम को उसका चेहरा नहीं दिखाई दिया सिर्फ पीठ ही दिखी। अनुराधा अंदर पहुंची तो हॉल में सामने एक तरफ सोफा पड़ा हुआ था और दूसरी ओर एक तख्त पर गेरुए कपड़े पहने एक बुजुर्ग बैठे हुये थे जिनकी निगाह दरवाजे की ओर ही थी। रणविजय (विक्रम) के अंदर घुसते ही जैसे उस व्यक्ति ने पहचान लिया हो और कुछ बोलने की कोशिश करने लगा।

रणविजय भी सीधा उनके पास गया और हाथ पकड़कर पास ही बैठ गया। रणविजय के हाथ पकड़ते ही उस आदमी यानि विजयराज की आँखों से आंसुओं की धार बंध गयी और वो विजयराज के गले लगकर रोने लगे। रणविजय भी उनको गले लगाए रोने लगा। हालांकि उनके पास आने तक उसके मन मे भी बहुत गुस्सा भरा हुआ था विजयराज के लिए.... बल्कि नफरत भरी हुई थी। लेकिन कुछ भी हो आज 20 साल बाद अपने पिता को देखा तो उसका भी मन पिघल गया और जब विजयराज ने उसे अपने गले लगाकर रोना शुरू किया तो वो भी रोये बिना नहीं रह पाया।

कुछ देर रोने बाद विजयराज ने रणविजय से अलग होते हुये सामने खड़ी अनुराधा की ओर देखा और उसे अपने पास आकर बैठने का इशारा किया तो अनुराधा भी आकर दूसरी तरफ उनके बराबर में वहीं तख्त पर बैठ गयी। विजयराज ने अनुराधा के सिर पर हाथ फेरा और उसके हाथों को अपने हाथों में लेकर चूमा। फिर रणविजय की ओर देखकर इशारे से अनुराधा के बारे में पूंछा। लेकिन विक्रम का ध्यान इस बात पर था की वो कुछ बोल क्यों नहीं रहे।

“पिताजी! आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे....ऐसे इशारे से क्यूँ पूंछ रहे हैं?” रणविजय ने कहा विजयराज ने अपने होठों पर उंगली रखते हुये चुप रहने का इशारा किया...जो रणविजय की समझ मे नहीं आया कि उन्होने चुप रहने को क्यूँ कहा है

“चाचाजी! बाबा बोल नहीं सकते, पिछले साल इनको फ़ालिज हो गया था...दिमाग की कोई नस फटने से एक तरफ के आधे शरीर ने काम करना बंद कर दिया था। अब हाथ पैर तो कुछ काम करने लगे हैं लेकिन इनकी जुबान ने काम करना बिलकुल बंद कर दिया है...” अनुराधा ने रणविजय की बात का जवाब देते हुये कहा

“बेटी चाय ले जाओ आप?” तभी रसोई से उस औरत की आवाज आयी तो अनुराधा और रणविजय दोनों को ही अजीब लगा कि वो न तो तब से सामने आयीं और अब चाय भी लेकर यहाँ आने की बजाय अनुराधा को बुला रही हैं... लेकिन फिर भी अनुराधा चाय लेने रसोई की ओर चल दी। इधर उस औरत की बात सुनते ही विजयराज सिंह को गुस्सा आ गया और वो रणविजय को गुस्से में कुछ इशारे करने लगे। रणविजय ने ध्यान दिया तो वो अनुराधा को रोकने और रसोई से उस औरत को बाहर बुलाने को कह रहे थे। रणविजय ने देखा तो तब तक अनुराधा रसोई में जा चुकी थी इसलिए उसने विजयराज का हाथ अपने हाथों में लेते हुये शांत होने को कहा।

अनुराधा चाय लेकर उनके पास पहुंची और वहीं तख्त पर ही ट्रे रख दी... उस ट्रे में तीन कप देखकर विजयराज ने अनुराधा को इशारा कर रसोई में मौजूद उस औरत के बारे में पूंछा की उसकी चाय कहाँ है तो अनुराधा ने कहा की वो रसोई में ही चाय पियेंगी। अनुराधा का जवाब सुनकर विजयराज ने एक बार रणविजय की ओर गौर से देखा और फिर कुछ सोचकर ठंडी सांस भरते हुये चाय पीने लगा। रणविजय और अनुराधा ने भी अपनी चाय ली और चुसकियाँ भरने लगे।

थोड़ी देर बाद अचानक विजयराज को कुछ याद आया तो उसने दोबारा रणविजय से अनुराधा के बारे में इशारे से पूंछा कि वो कौन है। इस पर रणविजय थोड़ी देर चुप बैठा रहा फिर कुछ सोच-समझकर बोला

“पिताजी ये अनुराधा है” रणविजय के मुंह से अनुराधा सुनते ही विजयराज कि आँखें फिर से नाम हो गईं और उन्होने अपने सीने पर हाथ रखते हुये इशारा किया ‘अपनी अनुराधा’ जिसे समझकर रणविजय ने फिर कहा “जी हाँ अपनी अनुराधा... विमला बुआ की पोती” और विजयराज की ओर देखा तो वो रसोई की ओर देखते हुये कुछ इशारा कर रहा था तो रणविजय की नजरें भी उनकी नजरों का पीछा करते हुये रसोई की ओर उठीं वहाँ वो औरत रसोई से बाहर झांक रही थी लेकिन उसने अपनी साड़ी से अपना मुंह ऐसे ढक रखा था जैसे आँखों से आँसू पोंछ रही हो रणविजय को अपनी ओर देखते पाकर वो तुरंत वापस रसोई में घुस गयी। अनुराधा भी उसी ओर देखने लगी थी।

अब रणविजय को भी कुछ शक हुआ तो उसने विजयराज से पूंछा कि ये औरत कौन है और उसके सामने क्यों नहीं आ रही है। इस पर विजयराज ने कुछ इशारा किया लेकिन रणविजय या अनुराधा की समझ में नहीं आया तो दोनों फिर से विजयराज की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगे। इस पर विजयराज ने अपनी दोनों बाहों को आपस में मिलकर इशारा किया जैसे बच्चे को गोद में लेते हैं और अनुराधा की ओर देखते हुये अपने होठों को हिलाया। रणविजय ने होठों को पढ़ते हुये चौंककर विजयराज और अनुराधा की ओर देखा फिर रसोई की ओर देखते हुये बोला

“ममता! ये ममता है.... अनुराधा की माँ”

विजयराज ने हामी भरते हुये अनुराधा को रसोई की ओर इशारा किया लेकिन अनुराधा तो मुंह फाड़े कभी विजयराज तो कभी रणविजय को देख रही थी। विजयराज ने फिर रणविजय को इशारा किया अनुराधा को लेकर रसोई की ओर जाने का तो रणविजय ने उठकर अनुराधा का हाथ पकड़ा और रसोई की ओर चल दिया। अनुराधा बेसुध सी उसके पीछे-पीछे खिंचती हुई चली जा रही थी। रसोई के दरवाजे पर कदम रखते ही रणविजय ने देखा कि ममता दरवाजे से टिकी हुई रसोई के फर्श पर बैठी हुई साड़ी का पल्लू मुंह में दबाये रोये जा रही थी। रणविजय ने अनुराधा को आगे करके ममता की गोद में धकेल दिया और ममता के सिर पर हाथ फिरा के वापस बाहर चला आया और विजयराज के पास बैठकर जमीन पर नजरें गड़ाए कुछ सोचता रहा। बहुत देर तक दोनों बाप-बेटे चुपचाप बैठे रहे। उधर रसोई में से अनुराधा और ममता कि हल्की-हल्की सिसकियों की आवाज बाहर तक कभी-कभी सुनाई दे रही थी।

“विक्रम!” आवाज सुनते ही रणविजय ने नजर उठाकर सामने देखा तो अनुराधा को अपने साथ चिपकाए ममता खड़ी हुई थी

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Greattt bro. Such a mind blowing update and your writing skill. :applause: :applause: :applause:

Ragini ki baate sun kar vikram dukhi ho gaya and anuradha use kheech kar le gai. Anuradha ne vikram ko samjhaya ki ragini ka gussa kis aadmi ke dwara shaant hoga. Wo vikram ko aisi jagah le gai jaha vikram ka baap tha. Vikram ke liye ye shocking news thi. Wahi vijayraj ke liye bhi. Dono baap beta barso baad mile to lipat kar rone lage. Vijayraj ko uski karni saja god ne de di but mamta kyo chhup rahi thi in dono se. Anuradha ko to pata hi nahi tha wo aurat uski maa hai. Anyways let's see what happens next. :bsanta:

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