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सुनील ने पूरे घर का कायाकल्प ही कर दिया और सबकी खुशियां भी लौटा लाया। बच्चे भी खुश, काजल और मां भी खुश और इस सबकी वजह से अमर भी खुश। मगर एक प्रोब्लम है अब सुनील को प्यार हो गया है मां से और शायद तब से जब से उसने मां और बाबूजी को एक साथ देखा था और उसके बाद मां उसके साथ सोई थी। अब देखना है की वो अपना इजहार कैसे करता है और मां कैसे रिएक्ट करती है। बहुत ही सुंदर अपडेट।
सुनील ने पूरे घर का कायाकल्प ही कर दिया और सबकी खुशियां भी लौटा लाया। बच्चे भी खुश, काजल और मां भी खुश और इस सबकी वजह से अमर भी खुश। मगर एक प्रोब्लम है अब सुनील को प्यार हो गया है मां से और शायद तब से जब से उसने मां और बाबूजी को एक साथ देखा था और उसके बाद मां उसके साथ सोई थी। अब देखना है की वो अपना इजहार कैसे करता है और मां कैसे रिएक्ट करती है। बहुत ही सुंदर अपडेट।
बहुत मजेदार कहानियां लिखीं हैं
For completing 100 pages on your thread.
पहला अध्याय - नींव ।
इस अध्याय के कुछेक प्रसंग ने मुझे भावविभोर कर दिया । कुछ पुरानी यादें , कुछ बचपन के दिन याद आ गए । कुछेक क्षण काफी इमोशनल भी रहे ।
गांव का हमारा मिट्टी का बना हुआ कच्चा मकान....छल कपट से परे घर और पड़ोस का माहौल.... एक दूसरे से प्रेम । सब कुछ याद आ गया । कभी कभी ऐसा लगता है जैसे कल की ही बात हो ।
इस अध्याय में अमर का बचपन और उसके जीवन में आने वाली पहली चंद लड़कियों का जिक्र किया गया है । उसके सेक्स ज्ञान पर आधारित यह पार्ट था ।
गांव का माहौल और वहां की भाषा का वर्णन तो कहना ही क्या ! बहुत ही खूबसूरत लिखा आपने ।
तमिलनाडु में रहने वाले मूल निवासी सिर्फ तमिल लेंग्वेज में बात करते हैं । कर्नाटक के मूल निवासी कन्नड़ में बातें करते हैं । हर स्टेट में लोग अपनी स्टेट की मूल भाषा में बातचीत कर एक दूसरे को अपनी बात समझा सकते हैं लेकिन बिहार और उत्तर प्रदेश में ऐसा नहीं है ।
बिहार की मूल भाषा भोजपुरी हर एक दो जिलों के बाद बदल जाती है । बहुत ज्यादा कठीन भाषा है भोजपुरी ।
आपने इस लेंग्वेज को बिल्कुल ही सही तरीके से पेश किया ।
मां के स्तनों के दुध से बढ़कर दूसरा कोई पौष्टिक आहार नहीं । दुनिया का सारा पौष्टिक आहार एक तरफ और मां का दुध एक तरफ । अमर की मां इस चीज को जानती थी इसीलिए उन्होंने उसे कभी भी अपने दुध से मरहूम नहीं किया ।
छोटे बच्चों को नंगा करके पुरे शरीर पर सरसों तेल से मालिश करना चाहिए । यहां तक कि उनके लिंग की चमड़ी को खोलकर सुपाड़े पर भी मालिश करना चाहिए । और यह प्रोसेस बच्चों को दस बारह साल तक तो पक्का ही करना चाहिए ।
यह सब चीजें धीरे धीरे खतम होते जा रहा है । आपने इस सब्जेक्ट पर चर्चा करके रीडर्स का ध्यान एक बार फिर से आकर्षित करने का प्रयास किया है ।
जब बच्चे बालिग होने लगें तो जरूरी हो जाता है कि उन्हें सेक्सुअल ज्ञान की शिक्षा दी जाए । और यह काम पिता से बेहतर कोई नहीं कर सकता । सेक्स का अधुरा ज्ञान बच्चों की विवाहित जीवन पर बुरा प्रभाव डालता है ।
यहां भी अमर के पिता जी ने बहुत बढ़िया काम किया । लेकिन यह काम मौखिक होना चाहिए था । प्रैक्टिकल नहीं ।
अमर के सामने ही उसके माता पिता का सेक्स करना किसी भी एंगल से सही नहीं था ।
अमर की लाइफ में फिलहाल दो लड़कियां आई और दोनों ही उम्र में उससे बड़ी थी । एक शहर की लड़की जो उसकी पड़ोसी भी है , रचना और दूसरी गांव की लड़की गायत्री ।
रचना पहली लड़की है जिसके साथ उसने सम्भोग किया । मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे सम्भोग का कारण हवस नहीं था । बल्कि प्रेम था ।
कच्चे उम्र में बच्चों के मन में हवस कहां से पनप सकती है ! वो सिर्फ प्रेम की भाषा ही तो समझते हैं और उसी प्रेम के वशीभूत होकर दोनों लक्ष्मण रेखा पार कर गए ।
पहला अध्याय मुझे बहुत बहुत बढ़िया लगा ।
इस अध्याय में ऐसा बहुत कुछ था जिसे मैंने महसूस भी किया है और भोगा भी है ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग एंड ब्रिलिएंट अपडेट्स भाई ।