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दूसरा अध्याय - आत्मनिर्भर ।
यह अध्याय अमर के नोकरी लगने के पश्चात एक बंगालन युवती काजल के उसके जीवन में आने पर आधारित था ।
काजल शादीशुदा एवं दो छोटे छोटे बच्चों की मां थी जो घरों में नौकरानी की काम करके अपना और अपने परिवार का पालन पोषण किया करती थी ।
बहुत साल पहले की बात है जब मेरे मौसेरे भाई जो अपने गांव की सबसे बड़ी हस्ती थे , ने मुझसे कहा था कि एक जवान लड़का और जवान लड़की को कभी भी एक कमरे में लम्बे अरसे के लिए नहीं छोड़ना चाहिए , भले ही वो फेमिली मेम्बर ही क्यों न हो ।
काजल तो फिर भी फेमिली मेम्बर नहीं थी । शादीशुदा भी थी तो अपने पति से सुखी नहीं थी । वो उमर के उस पड़ाव पर थी जहां महिलाओ की सेक्सुअल नीड ज्यादा होती है ।
और अमर, ताजा ताजा जवानी की दहलीज पर खड़ा लड़का था ही । ऐसे में दोनों के बीच अंतरंग सम्बन्ध स्थापित होना स्वाभाविक ही था ।
दोनों एक दूसरे के प्रति आकर्षित हुए । इसका एक कारण यह भी था कि अमर ने काजल की जब तब न फाइनेंशियल मदद ही की बल्कि उसके बच्चे को एक अच्छे स्कूल में दाखिला भी करा दिया ।
इसके अलावा अमर का बुखार होना और सिचुएशन के हिसाब से काजल का उसे देखभाल करना , नजदीकी का दूसरा कारण रहा ।
दोनों ने प्रेम किया । ओरल सेक्स भी किया लेकिन आखिरी सीमाएं नहीं लांघी । ऐसा काम कोई सुलझा हुआ व्यक्ति ही कर सकता है । वो जिसे हवस से ज्यादा प्रेम भाता है । वो, जो जोर जबरदस्ती पर विश्वास नहीं करता ।
लेकिन जो भी हो ऐसे रिश्ते पर्दे के पीछे ही रहते हैं । पर अमर और काजल दोनों ने अमर के माता पिता के सामने इस Forbidden relationship को जाहिर कर दिया । और अचरज की बात यह है कि उन्हें इस सम्बन्ध से आपत्ति भी नहीं हुई ।
ऐसा रेयर ही होता है । काजल शादीशुदा महिला थी । दो बच्चे भी थे । यह बात खुलने से उसकी लाइफ परेशानियों से घिर सकती थी ।
काजल का बेटा भी इन चीजों को अपने पिता से कह सकता था । यह सब जानते हुए भी अमर और काजल ने उसी के सामने कुछ इंटिमेट लम्हा बिताए ।
हम समझ सकते हैं अमर और काजल दोनों की नीयत सही थी लेकिन जानते तो वो दोनों ही थे कि वो जो कर रहे हैं उसे समाज की नजरों में सही नहीं कहा जाता ।
ऐसे सम्बन्ध चोरी चोरी , पर्दे के आड़ में ही बनाए जाते हैं ।
ये अध्याय भी बहुत खुबसूरत था । देखते हैं आगे अमर की सेक्सुअल जर्नी किस तरफ ले जाती है ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग एंड ब्रिलिएंट अपडेट भाई ।
फिलहाल तो हम साथ छह हैंअंतराल - स्नेहलेप - Update #7
इतवार :
प्राकृतिक दुःखों की बात छोड़ दें, तो मुझे अक्सर अन्य लोगों ने बताया है कि आपकी फैमिली तो सूरज बाड़जात्या की पिक्चरों जैसी है - हँसती, खेलती, मुस्कुराती। उसका कारण है। परिवार स्नेही हो, उसके सभी सदस्य सरल और सच्चे हों, और मिथ्याभिमानी न हों, तो ऐसे परिवार में बड़ा आनंद आता है। अहोभाग्य मेरे, कि मेरा परिवार ऐसा ही है। और जो भी अभी तक हमसे आत्मीय सम्बन्ध बना सका, सभी ऐसे ही हैं। इस बात से मुझे अक्सर ही आश्चर्य भी होता है!
अच्छा निर्णय लियाखैर, शनिवार से ही दोनों बच्चे कह रहे थे कि इतवार के लिए कोई स्पेशल प्लान करें - जैसे कहीं बाहर घूम आएँ या नहीं तो कहीं मूवी देखने चलें। तो घूमने के लिए मैंने कहा कि चूँकि दोनों के स्कूल गर्मियों के लिए बस बंद होने ही वाले हैं, तो थोड़ा इंतज़ार कर लें। हाँ, मूवी के लिए ज़रूर जाया जा सकता है। बात शुरू हुई कि बच्चों के लिए क्या फ़िल्में लगी हैं, लेकिन सच में, घर और बाहर हर जगह केवल बच्चों की ही फ़िल्में, और उनके ही प्रोग्राम देख कर दिमाग थोड़ा तो पकने ही लगता है। इसलिए निर्णय हुआ कि एक नई रिलीज़्ड फ़िल्म देखने चलेंगे।
हा हा हाफिल्म कुछ इस प्रकार थी कि फिल्म में दो नायक हैं - एक को फिल्म की नायिका से बड़ा प्रेम है, लेकिन वो उसको बता नहीं पाता। लिहाज़ा, नायिका दूसरे नायक से शादी करने को होती है। शादी से एक दो दिन पहले ही नायिका समझती है कि वो पहले नायक से ही पूरे जीवन भर प्यार करती आई थी, लेकिन उसने कभी इस बात को नहीं समझा, और पहले नायक बस अपने सबसे अच्छे दोस्त के रूप में ही माना। दूसरे नायक का इस बात पर दिल टूट जाता है। खैर, अंत में दोनों में दोनों एक दूसरे के लिए अपने प्रेम की भावना व्यक्त कर ही देते हैं। फिल्म की पटकथा, नायक, और फ़िल्म तीनों ही चौपट थे, लेकिन चूँकि परिवार साथ था, इसलिए फिल्म खराब नहीं लगी। हाँ, वो अलग बात है कि पुचुकी और मिष्टी, दोनों ही फिल्म शुरू होने के आधे घण्टे बाद ही गहरी नींद सो गए। अच्छी बात थी - कम से कम दो घण्टे दोनों आराम से तो रहे। घर जा कर धमाचौकड़ी मचाने की एनर्जी दोनों की बनी रही।
काजल की ही ज़ोर जबरदस्ती पर वापस आ कर हमने घर में ही तहरी और रायता खाया। यह सामान्य सा भोजन भी बहुत अच्छा लगा। ऐसे ही छोटी छोटी बातों का आनंद लेते हुए सप्ताहांत समाप्त हो गया!
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ह्म्म्म्म यह बहुत बड़ी चिंता का विषय हैअगला दिन - सोमवार :
सुनील लतिका और आभा को उनके स्कूल से ले कर घर आता है। आभा रोज़ की ही तरह सुनील के गोदी में चढ़ी हुई थी, और लतिका अपने नाम के ही अनुसार सुनील से लिपटी हुई थी।
रोज़ की बात थी यह - दोनों बच्चे अपने दादा की संगत में खुश रहने लगे थे। और मुझे इस बात का मलाल बना रहता कि पाँच सप्ताह में वो मुंबई चला जाएगा अपनी जॉब पर, तब काजल का, इन दोनों बच्चों का, और माँ का क्या होगा। इतने कम समय में अपने लिए मोह को पाल पोस कर बड़ा कर के, यूँ चले जाना - कैसी निष्ठुरता है! मेरा भी मन होता कि उसको रोक लूँ! लेकिन उसके मतलब की नौकरी यहाँ दिल्ली में अभी तक नहीं थी। हाँ - एक बात संभव थी कि अगर मैं ही सपरिवार मुंबई शिफ़्ट हो जाता, तो सुनील भी पास ही रहता। लेकिन ऐसे जल्दबाज़ी में, इतना बड़ा निर्णय नहीं लिया जा सकता। मेरा काम जम तो गया था, लेकिन इतना पक्का नहीं था कि बिना किसी सक्रीय नेतृत्व के चलता रहता। खैर!
माँ और काजल, दोनों ही देखती हैं कि अन्य दिनों के अपेक्षा आज लतिका खूब मुस्कुरा रही होती है, चहक रही होती है। स्कूल की क़ैद से घर की आज़ादी में आने पर बच्चों को तो स्वाभाविक रूप से ख़ुशी होती ही है, लेकिन आज कुछ ख़ास बात लग रही थी।
लगता है मुझे एक जबरदस्त शॉक लगने वाला है“बताओ न दादा, प्लीईईज़!” लतिका बार बार सुनील से कुछ बताने को कह रही थी।
“हा हा हा! अरे बाबा! बताता हूँ... बताता हूँ! पहले हाथ मुँह तो धो लो!” सुनील मुस्कुराते हुए कहता है।
सुनील की बात पर लतिका भाग कर बाथरूम में जाती है। सुनील रोज़ की ही भाँति दोनों बच्चों के घर के कपड़े ले आता है। पिछले कुछ दिनों से दोनों बच्चों की कई सारी ज़िम्मेदारियाँ उसने अपने कंधे पर उठा ली थीं। अद्भुत था सुनील का धैर्य! दो दो बच्चों को सम्हालना, और वो भी उसकी उम्र में, कठिन काम है! आभा अभी भी अपनी देखभाल करने में आत्मनिर्भर नहीं हुई थी, इसलिए सुनील एक मग में पानी ला कर उसके हाथ मुँह धो देता है और उसके कपड़े उतार कर उसके शरीर को भी गीले कपड़े से पोंछ देता है। उनको घमौरी न हो जाए, इसलिए वो बच्चों को घमौरी से बचाने का पाउडर भी लगा देता है। गर्मी और धूप में बाहर खेलने, और पानी पीना भूल जाने से बच्चों को अक्सर घमौरी हो जाती है। सुनील को इस बात का ध्यान था, इसलिए वो वैसी नौबत ही नहीं आने देना चाहता था।
जब तक लतिका वापस आती, तब तक सुनील ने आभा के शरीर पर पाउडर लगा दिया। पाउडर की सफेदी उसके पूरे शरीर पर लिपटी हुई थी, और सुनील उसको ‘नागा बाबा’ ‘नागा बाबा’ कह कर छेड़ रहा था, और आभा इस छेड़खानी पर खिलखिला कर हँस रही थी। उसको यूँ देख कर काजल भी हँस दी, लेकिन उसने सुनील को कहा कि पाउडर से नहलाना नहीं है। बस, लगा देना है कि स्किन को राहत रहे। वहाँ से छुट्टी पा कर आभा काजल की गोदी में बैठ कर स्तनपान करने लगती है।
उधर लतिका न जाने किस उत्साह से जल्दी से हाथ मुँह धो कर सुनील के पास वापस आती है और उसकी गोदी में कूद कर बैठ जाती है।
“अब बताओ, जल्दी जल्दी!” वो चहकते हुए बोली।
सुनील लतिका की इस हरकत पर बहुत हँसता है, और उसको अपनी गोदी में बैठा कर, उसके स्कूल के कपड़े उतारते उतारते, उसके कान में दबी आवाज़ में कुछ बातें करता है। दोनों भाई बहन के चेहरों के भाव अनोखे रूप से चढ़ और उतर रहे थे। सुनील के चेहरे पर ऐसे भाव थे कि जैसे उसको अपना कोई राज़दार मिल गया हो, और लतिका के चेहरे पर आश्चर्य, ख़ुशी, और अविश्वास के भाव थे।
“क्या सच में दादा?” किसी बात पर अचानक ही लतिका तेजी से बोल पड़ी।
“शह्ह्ह्ह!” सुनील ने उसको चुप रहने को कहा, “अरे धीरे धीरे!”
“ओ माय गॉड! हा हा हा!” लेकिन लतिका की ख़ुशी देखते ही बन रही थी, “वाओ वाओ!”
“अरे शांत शांत! तू सब गुड़ गोबर कर देगी!” सुनील ने लतिका की चड्ढी उतारते हुए शिकायत करी।
“नहीं दादा! बट, आई ऍम सो सो मच हैप्पी!” लतिका नंगू पंगू हो कर, सुनील के कन्धों को पकड़ कर उसके सामने उछलते कूदते हुए बोली।
सच में - बच्ची बड़ी हो रही थी, लेकिन उसका बचपना नहीं जा रहा था। और हम में से किसी का मन नहीं था कि पुचुकी या मिष्टी, दोनों का ही बचपना चला जाए! कम से कम मैं तो यही चाहता था कि जब तक संभव है, दोनों ऐसे ही स्वच्छंद बन कर हमारे स्नेह का सुख भोगें!
“थैंक यू बेटा!” सुनील ने बड़े स्नेह से, बड़े सौम्य तरीके से कहा।
“आई ऍम सच में वैरी हैप्पी, दादा!” कह कर लतिका सुनील से लिपट गई, “ऐसा हो जाए तो कितना अच्छा हो!”
उधर माँ और काजल, भाई बहन के इस वार्तालाप को दूर से देख कर मुस्कुराए बिना न रह सकीं।
“सुनील कितना जेंटल तरीके से बिहैव करता है न बच्चों के साथ?” उन्होंने काजल से कहा।
“हाँ न दीदी! बहुत जेंटल! बहुत अफ़ेक्शनेट! और कितना पेशेंस भी है उसको! बिलकुल डैडी मैटीरियल है वो!” काजल ने गर्व से कहा।
गर्व वाली बात तो थी ही। न केवल उसके बेटे में अनेकों गुण थे, वो अच्छा पढ़ा लिखा, और अपने पैरों पर खड़ा हुआ था, बल्कि एक बेहद बढ़िया इंसान भी था।
“हा हा हा हा!” माँ इस बात पर दिल खोल कर हँसने लगीं, “हाँ काजल! बात तो सही है! डैडी मैटेरियल तो है वो! बच्चों से बहुत प्यार है सुनील को! इसके बच्चे बहुत लकी होंगे - ऐसे प्यार करने वाले पापा को पा कर!”
“है न? ये लड़का जल्दी से शादी कर ले बस!” काजल ने खुश होते हुए कहा, “इसका घर बस जाए और मैं जल्दी से अपने पोते पोतियों के मुँह देख लूँ! बस, समझो गंगा नहाऊँ!”
“तुम भी न काजल - क्या जल्दी जल्दी लगाए बैठी हो!”
“अरे दीदी, देर करने से क्या फायदा? हम सभी ने शादी की ऐज होते ही शादी कर ली थी! अब ये भी तो इक्कीस का हो ही गया है न! और फिर इसको कोई लड़की भी तो पसंद है न! इसको भी कर लेनी चाहिए।” काजल उत्साह से बोली, “बहू आ जाए, फिर हमको भी सुख मिले थोड़ा! लाइफ में थोड़ा अपग्रेड तो मुझे भी चाहिए!”
“हा हा! हाँ! वो बात तो है! अगर उसको अपनी पसंद की लड़की मिल जाय, तो शादी कर ही लेनी चाहिए! ख़ुशी लम्बी रहे, तो क्या ही आनंद! देर से शादी करने से क्या फायदा?”
माँ ने देखा कि सुनील लतिका को पाउडर लगा रहा है। उसे दोनों बच्चों की इस तरह से देखभाल करते देख कर माँ को बहुत अच्छा लगा। सुनील का आचरण उनको हमेशा से ही अच्छा लगता था। सवेरे बाहर जाने में और एक्सरसाइज करने में अब उनको कितना अच्छा लगता है! सुरक्षित भी! वरना दिल्ली का हाल तो... और वो सभी को कितना हँसाता भी है।
‘कितना जेंटल है सुनील, और कितना अफ़ेक्शनेट भी! सुनील और लतिका दोनों कितने अच्छे बच्चे हैं!’
“हाँ न! शुभ कामों में देर नहीं करनी चाहिए।”
“सही बात है!” माँ मुस्कुराते हुए बोलीं, “लेकिन एक बात तो है काजल, बच्चे तो बच्चे - जो लड़की सुनील को मिलेगी न, वो भी बहुत लकी होगी! कितना जेंटल है, कितना अफ़ेक्शनेट!” माँ के मन की बात उनकी ज़ुबाँ पर आ ही गई।
“हाँ! और हो भी क्यों न? मेरा बेटा है ही ऐसा - लाखों में एक!”
“हाँ, सच में!” माँ मुस्कुराईं, “लाखों में एक तो है!”
कुछ देर के बाद लतिका सुनील की गोद से उठ कर माँ के पास आ गई, और उनके पीछे से उनके गले में बाहें डाल कर झूल गई।
“क्या बातें हो रही थीं दादा से?” माँ ने उससे मज़ाकिया अंदाज़ में पूछा, “बड़ा हँसी आ रही थी आपको!”
“ओह मम्मा! आई ऍम सो हैप्पी!”
“हाँ वो तो दिख ही रहा है! लेकिन किस बात पर?”
लतिका ने माँ के गालों को कई बार चूमते हुए कहा, “नो मम्मा, मैं आपको अभी बता नहीं सकती!” लतिका ने बड़े लाड़ से, बच्चों जैसी चंचलता से इठलाते हुए कहा, “मैंने दादा को प्रॉमिस किया है न! अभी ये बात सीक्रेट है। लेकिन मैं सच में बहोत, बहोत, बहोत खुश हूँ!” लतिका ने बड़े नाटकीय, लेकिन भोले अंदाज़ में अपनी बात कह दी, “एंड मम्मा, आई लव यू सो मच! मच मच मोर!”
“अरे भई - अपनी मम्मा पर इतना प्यार, लेकिन उनको उस प्यार का रीज़न भी नहीं बताओगी?”
“प्यार तो आपको मैं हमेशा से ही खूब करती हूँ, लेकिन आज से और भी अधिक करूँगी! खूब अधिक!”
“अच्छा?” माँ ने मुस्कुराते हुए बड़े दुलार से कहा, “अरे हमको भी बताओ! ऐसा क्या हो गया?”
“आल इन गुड टाइम, मम्मा! आल इन गुड टाइम!” लतिका ने बड़ों के, सयानों के अंदाज़ में कहा।
“हाँ, ठीक है ठीक है! रखे रहो अपने सीक्रेट्स!”
“कभी कभी सरप्राइज भी अच्छा होता है मम्मा!” लतिका ने कहा और फिर से माँ के दोनों गालों को चूम कर, वो उनकी गोदी में आ गई।
“हम्म! अच्छा दादी अम्मा!” माँ ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, “देखेंगे आप दोनों का सीक्रेट! अच्छा चलो, अपनी डायरी तो दिखाओ। आज का होमवर्क देख लें?”
“क्या मम्मा! आप भी न स्पॉइल स्पोर्ट हो रही हैं! मैं इतनी खुश हूँ, और आपको डायरी देखनी है! टू वीक्स में मेरी समर हॉलीडेज शुरू हो रही हैं! अब क्या होमवर्क!”
“ओ दादी माँ! पढ़ाई लिखाई में नो मस्ती!” माँ ने प्यार से उसके गालों को खींचते हुए कहा, “अंडरस्टुड?”
“यस मम्मा! बट आई नीड माय डेली दूधू फर्स्ट!” पुचुकी ने कहा, और माँ के ब्लाउज के बटन खोलने लगी।
“हा हा हा हा!”
माँ की ब्लाउज के दोनों पट जब अलग हुए, तो वो उनके आँचल के अंदर छुप कर उनके स्तन से जा लगी!
“मम्मा?” माँ के स्तन पीते हुए उसने पूछा।
“हाँ बेटा?”
“जब आपको दूधू आएगा, तो आप मुझे पिलाओगी?”
“अले मेला बच्चा,” माँ ने लतिका को लाड़ करते हुए कहा, “तुझे नहीं तो और किसको पिलाऊँगी मेरी बेटू?” माँ ने लतिका पर लाड़ बरसाते हुए कहा, “तू ही तो मेरी बिटिया रानी है!”
“थैंक यू सो मच मम्मा! लेकिन मैं ज्यादा नहीं पियूँगी। सो दैट आपके बच्चे भूखे न रह जाएँ!”
“मेरे बच्चे?” माँ ने चौंकते हुए कहा।
“हाँ! बिना आपके बच्चे हुए आपके ब्रेस्ट्स में दूधू कैसे आएगा?”
“क्या?” माँ को विश्वास ही नहीं हुआ कि उनकी पुचुकी इतना कुछ जानती है, “हा हा हा हा! दादी माँ! आपकी नॉलेज तो बहुत बढ़ती जा रही है!” माँ ने लतिका का एक गाल प्यार से खींचते हुए कहा।
काजल माँ की बात पर हँसने लगी। उसका दूध पीती आभा को समझ नहीं आया कि जोक क्या था।
“क्या मैंने कुछ रांग बोला, मम्मा?”
“नहीं बेटू, कुछ भी रांग नहीं बोला! यू आर राइट, टू बी ऑनेस्ट! लेकिन मुझको बच्चे क्यों होंगे मेरी बेटू?”
“अरे, आपकी शादी होगी, तो आपके बच्चे भी तो होंगे!”
“मेरी शादी?”
“हाँ बेटा,” उधर काजल अपनी बेटी की बात सुन कर, बड़े विनोदपूर्वक बोली, “बात तो तुम्हारी बिलकुल सही है! तुम्हारी मम्मा की शादी का इंतजाम करना चाहिए जल्दी ही!”
माँ ने इस बात पर कुछ कहा नहीं।
कोई दस मिनट बाद जब उसका पेट (?) भर गया, तब वो माँ की गोदी से उठी, और काजल के स्तनों में जो दूध बचा हुआ था, उसको पी कर, अपनी पुस्तकें लेती आई। फिर माँ लतिका को पढ़ाने में व्यस्त हो गईं और काजल घर के बाकी के कामों में। सुनील तो कब का अपने कमरे में जा चुका था।
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मतलब अंदाजा सही ही था हमारा, सुनील बाबू अब मां से शादी की प्लान बनाए बैठे है। पर क्या मां सुनील को एक्सेप्ट कर पाएगी क्योंकि उन्होंने तो सुनील को बेटे की तरह पाला है? लतिका इस राज की राजदार हो गई है पर कब तक? मतलब दोनो ही शादियां घर में होने वाली है। सही ट्विस्ट है स्टोरी में।अंतराल - स्नेहलेप - Update #7
इतवार :
प्राकृतिक दुःखों की बात छोड़ दें, तो मुझे अक्सर अन्य लोगों ने बताया है कि आपकी फैमिली तो सूरज बाड़जात्या की पिक्चरों जैसी है - हँसती, खेलती, मुस्कुराती। उसका कारण है। परिवार स्नेही हो, उसके सभी सदस्य सरल और सच्चे हों, और मिथ्याभिमानी न हों, तो ऐसे परिवार में बड़ा आनंद आता है। अहोभाग्य मेरे, कि मेरा परिवार ऐसा ही है। और जो भी अभी तक हमसे आत्मीय सम्बन्ध बना सका, सभी ऐसे ही हैं। इस बात से मुझे अक्सर ही आश्चर्य भी होता है!
खैर, शनिवार से ही दोनों बच्चे कह रहे थे कि इतवार के लिए कोई स्पेशल प्लान करें - जैसे कहीं बाहर घूम आएँ या नहीं तो कहीं मूवी देखने चलें। तो घूमने के लिए मैंने कहा कि चूँकि दोनों के स्कूल गर्मियों के लिए बस बंद होने ही वाले हैं, तो थोड़ा इंतज़ार कर लें। हाँ, मूवी के लिए ज़रूर जाया जा सकता है। बात शुरू हुई कि बच्चों के लिए क्या फ़िल्में लगी हैं, लेकिन सच में, घर और बाहर हर जगह केवल बच्चों की ही फ़िल्में, और उनके ही प्रोग्राम देख कर दिमाग थोड़ा तो पकने ही लगता है। इसलिए निर्णय हुआ कि एक नई रिलीज़्ड फ़िल्म देखने चलेंगे।
फिल्म कुछ इस प्रकार थी कि फिल्म में दो नायक हैं - एक को फिल्म की नायिका से बड़ा प्रेम है, लेकिन वो उसको बता नहीं पाता। लिहाज़ा, नायिका दूसरे नायक से शादी करने को होती है। शादी से एक दो दिन पहले ही नायिका समझती है कि वो पहले नायक से ही पूरे जीवन भर प्यार करती आई थी, लेकिन उसने कभी इस बात को नहीं समझा, और पहले नायक बस अपने सबसे अच्छे दोस्त के रूप में ही माना। दूसरे नायक का इस बात पर दिल टूट जाता है। खैर, अंत में दोनों में दोनों एक दूसरे के लिए अपने प्रेम की भावना व्यक्त कर ही देते हैं। फिल्म की पटकथा, नायक, और फ़िल्म तीनों ही चौपट थे, लेकिन चूँकि परिवार साथ था, इसलिए फिल्म खराब नहीं लगी। हाँ, वो अलग बात है कि पुचुकी और मिष्टी, दोनों ही फिल्म शुरू होने के आधे घण्टे बाद ही गहरी नींद सो गए। अच्छी बात थी - कम से कम दो घण्टे दोनों आराम से तो रहे। घर जा कर धमाचौकड़ी मचाने की एनर्जी दोनों की बनी रही।
काजल की ही ज़ोर जबरदस्ती पर वापस आ कर हमने घर में ही तहरी और रायता खाया। यह सामान्य सा भोजन भी बहुत अच्छा लगा। ऐसे ही छोटी छोटी बातों का आनंद लेते हुए सप्ताहांत समाप्त हो गया!
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अगला दिन - सोमवार :
सुनील लतिका और आभा को उनके स्कूल से ले कर घर आता है। आभा रोज़ की ही तरह सुनील के गोदी में चढ़ी हुई थी, और लतिका अपने नाम के ही अनुसार सुनील से लिपटी हुई थी।
रोज़ की बात थी यह - दोनों बच्चे अपने दादा की संगत में खुश रहने लगे थे। और मुझे इस बात का मलाल बना रहता कि पाँच सप्ताह में वो मुंबई चला जाएगा अपनी जॉब पर, तब काजल का, इन दोनों बच्चों का, और माँ का क्या होगा। इतने कम समय में अपने लिए मोह को पाल पोस कर बड़ा कर के, यूँ चले जाना - कैसी निष्ठुरता है! मेरा भी मन होता कि उसको रोक लूँ! लेकिन उसके मतलब की नौकरी यहाँ दिल्ली में अभी तक नहीं थी। हाँ - एक बात संभव थी कि अगर मैं ही सपरिवार मुंबई शिफ़्ट हो जाता, तो सुनील भी पास ही रहता। लेकिन ऐसे जल्दबाज़ी में, इतना बड़ा निर्णय नहीं लिया जा सकता। मेरा काम जम तो गया था, लेकिन इतना पक्का नहीं था कि बिना किसी सक्रीय नेतृत्व के चलता रहता। खैर!
माँ और काजल, दोनों ही देखती हैं कि अन्य दिनों के अपेक्षा आज लतिका खूब मुस्कुरा रही होती है, चहक रही होती है। स्कूल की क़ैद से घर की आज़ादी में आने पर बच्चों को तो स्वाभाविक रूप से ख़ुशी होती ही है, लेकिन आज कुछ ख़ास बात लग रही थी।
“बताओ न दादा, प्लीईईज़!” लतिका बार बार सुनील से कुछ बताने को कह रही थी।
“हा हा हा! अरे बाबा! बताता हूँ... बताता हूँ! पहले हाथ मुँह तो धो लो!” सुनील मुस्कुराते हुए कहता है।
सुनील की बात पर लतिका भाग कर बाथरूम में जाती है। सुनील रोज़ की ही भाँति दोनों बच्चों के घर के कपड़े ले आता है। पिछले कुछ दिनों से दोनों बच्चों की कई सारी ज़िम्मेदारियाँ उसने अपने कंधे पर उठा ली थीं। अद्भुत था सुनील का धैर्य! दो दो बच्चों को सम्हालना, और वो भी उसकी उम्र में, कठिन काम है! आभा अभी भी अपनी देखभाल करने में आत्मनिर्भर नहीं हुई थी, इसलिए सुनील एक मग में पानी ला कर उसके हाथ मुँह धो देता है और उसके कपड़े उतार कर उसके शरीर को भी गीले कपड़े से पोंछ देता है। उनको घमौरी न हो जाए, इसलिए वो बच्चों को घमौरी से बचाने का पाउडर भी लगा देता है। गर्मी और धूप में बाहर खेलने, और पानी पीना भूल जाने से बच्चों को अक्सर घमौरी हो जाती है। सुनील को इस बात का ध्यान था, इसलिए वो वैसी नौबत ही नहीं आने देना चाहता था।
जब तक लतिका वापस आती, तब तक सुनील ने आभा के शरीर पर पाउडर लगा दिया। पाउडर की सफेदी उसके पूरे शरीर पर लिपटी हुई थी, और सुनील उसको ‘नागा बाबा’ ‘नागा बाबा’ कह कर छेड़ रहा था, और आभा इस छेड़खानी पर खिलखिला कर हँस रही थी। उसको यूँ देख कर काजल भी हँस दी, लेकिन उसने सुनील को कहा कि पाउडर से नहलाना नहीं है। बस, लगा देना है कि स्किन को राहत रहे। वहाँ से छुट्टी पा कर आभा काजल की गोदी में बैठ कर स्तनपान करने लगती है।
उधर लतिका न जाने किस उत्साह से जल्दी से हाथ मुँह धो कर सुनील के पास वापस आती है और उसकी गोदी में कूद कर बैठ जाती है।
“अब बताओ, जल्दी जल्दी!” वो चहकते हुए बोली।
सुनील लतिका की इस हरकत पर बहुत हँसता है, और उसको अपनी गोदी में बैठा कर, उसके स्कूल के कपड़े उतारते उतारते, उसके कान में दबी आवाज़ में कुछ बातें करता है। दोनों भाई बहन के चेहरों के भाव अनोखे रूप से चढ़ और उतर रहे थे। सुनील के चेहरे पर ऐसे भाव थे कि जैसे उसको अपना कोई राज़दार मिल गया हो, और लतिका के चेहरे पर आश्चर्य, ख़ुशी, और अविश्वास के भाव थे।
“क्या सच में दादा?” किसी बात पर अचानक ही लतिका तेजी से बोल पड़ी।
“शह्ह्ह्ह!” सुनील ने उसको चुप रहने को कहा, “अरे धीरे धीरे!”
“ओ माय गॉड! हा हा हा!” लेकिन लतिका की ख़ुशी देखते ही बन रही थी, “वाओ वाओ!”
“अरे शांत शांत! तू सब गुड़ गोबर कर देगी!” सुनील ने लतिका की चड्ढी उतारते हुए शिकायत करी।
“नहीं दादा! बट, आई ऍम सो सो मच हैप्पी!” लतिका नंगू पंगू हो कर, सुनील के कन्धों को पकड़ कर उसके सामने उछलते कूदते हुए बोली।
सच में - बच्ची बड़ी हो रही थी, लेकिन उसका बचपना नहीं जा रहा था। और हम में से किसी का मन नहीं था कि पुचुकी या मिष्टी, दोनों का ही बचपना चला जाए! कम से कम मैं तो यही चाहता था कि जब तक संभव है, दोनों ऐसे ही स्वच्छंद बन कर हमारे स्नेह का सुख भोगें!
“थैंक यू बेटा!” सुनील ने बड़े स्नेह से, बड़े सौम्य तरीके से कहा।
“आई ऍम सच में वैरी हैप्पी, दादा!” कह कर लतिका सुनील से लिपट गई, “ऐसा हो जाए तो कितना अच्छा हो!”
उधर माँ और काजल, भाई बहन के इस वार्तालाप को दूर से देख कर मुस्कुराए बिना न रह सकीं।
“सुनील कितना जेंटल तरीके से बिहैव करता है न बच्चों के साथ?” उन्होंने काजल से कहा।
“हाँ न दीदी! बहुत जेंटल! बहुत अफ़ेक्शनेट! और कितना पेशेंस भी है उसको! बिलकुल डैडी मैटीरियल है वो!” काजल ने गर्व से कहा।
गर्व वाली बात तो थी ही। न केवल उसके बेटे में अनेकों गुण थे, वो अच्छा पढ़ा लिखा, और अपने पैरों पर खड़ा हुआ था, बल्कि एक बेहद बढ़िया इंसान भी था।
“हा हा हा हा!” माँ इस बात पर दिल खोल कर हँसने लगीं, “हाँ काजल! बात तो सही है! डैडी मैटेरियल तो है वो! बच्चों से बहुत प्यार है सुनील को! इसके बच्चे बहुत लकी होंगे - ऐसे प्यार करने वाले पापा को पा कर!”
“है न? ये लड़का जल्दी से शादी कर ले बस!” काजल ने खुश होते हुए कहा, “इसका घर बस जाए और मैं जल्दी से अपने पोते पोतियों के मुँह देख लूँ! बस, समझो गंगा नहाऊँ!”
“तुम भी न काजल - क्या जल्दी जल्दी लगाए बैठी हो!”
“अरे दीदी, देर करने से क्या फायदा? हम सभी ने शादी की ऐज होते ही शादी कर ली थी! अब ये भी तो इक्कीस का हो ही गया है न! और फिर इसको कोई लड़की भी तो पसंद है न! इसको भी कर लेनी चाहिए।” काजल उत्साह से बोली, “बहू आ जाए, फिर हमको भी सुख मिले थोड़ा! लाइफ में थोड़ा अपग्रेड तो मुझे भी चाहिए!”
“हा हा! हाँ! वो बात तो है! अगर उसको अपनी पसंद की लड़की मिल जाय, तो शादी कर ही लेनी चाहिए! ख़ुशी लम्बी रहे, तो क्या ही आनंद! देर से शादी करने से क्या फायदा?”
माँ ने देखा कि सुनील लतिका को पाउडर लगा रहा है। उसे दोनों बच्चों की इस तरह से देखभाल करते देख कर माँ को बहुत अच्छा लगा। सुनील का आचरण उनको हमेशा से ही अच्छा लगता था। सवेरे बाहर जाने में और एक्सरसाइज करने में अब उनको कितना अच्छा लगता है! सुरक्षित भी! वरना दिल्ली का हाल तो... और वो सभी को कितना हँसाता भी है।
‘कितना जेंटल है सुनील, और कितना अफ़ेक्शनेट भी! सुनील और लतिका दोनों कितने अच्छे बच्चे हैं!’
“हाँ न! शुभ कामों में देर नहीं करनी चाहिए।”
“सही बात है!” माँ मुस्कुराते हुए बोलीं, “लेकिन एक बात तो है काजल, बच्चे तो बच्चे - जो लड़की सुनील को मिलेगी न, वो भी बहुत लकी होगी! कितना जेंटल है, कितना अफ़ेक्शनेट!” माँ के मन की बात उनकी ज़ुबाँ पर आ ही गई।
“हाँ! और हो भी क्यों न? मेरा बेटा है ही ऐसा - लाखों में एक!”
“हाँ, सच में!” माँ मुस्कुराईं, “लाखों में एक तो है!”
कुछ देर के बाद लतिका सुनील की गोद से उठ कर माँ के पास आ गई, और उनके पीछे से उनके गले में बाहें डाल कर झूल गई।
“क्या बातें हो रही थीं दादा से?” माँ ने उससे मज़ाकिया अंदाज़ में पूछा, “बड़ा हँसी आ रही थी आपको!”
“ओह मम्मा! आई ऍम सो हैप्पी!”
“हाँ वो तो दिख ही रहा है! लेकिन किस बात पर?”
लतिका ने माँ के गालों को कई बार चूमते हुए कहा, “नो मम्मा, मैं आपको अभी बता नहीं सकती!” लतिका ने बड़े लाड़ से, बच्चों जैसी चंचलता से इठलाते हुए कहा, “मैंने दादा को प्रॉमिस किया है न! अभी ये बात सीक्रेट है। लेकिन मैं सच में बहोत, बहोत, बहोत खुश हूँ!” लतिका ने बड़े नाटकीय, लेकिन भोले अंदाज़ में अपनी बात कह दी, “एंड मम्मा, आई लव यू सो मच! मच मच मोर!”
“अरे भई - अपनी मम्मा पर इतना प्यार, लेकिन उनको उस प्यार का रीज़न भी नहीं बताओगी?”
“प्यार तो आपको मैं हमेशा से ही खूब करती हूँ, लेकिन आज से और भी अधिक करूँगी! खूब अधिक!”
“अच्छा?” माँ ने मुस्कुराते हुए बड़े दुलार से कहा, “अरे हमको भी बताओ! ऐसा क्या हो गया?”
“आल इन गुड टाइम, मम्मा! आल इन गुड टाइम!” लतिका ने बड़ों के, सयानों के अंदाज़ में कहा।
“हाँ, ठीक है ठीक है! रखे रहो अपने सीक्रेट्स!”
“कभी कभी सरप्राइज भी अच्छा होता है मम्मा!” लतिका ने कहा और फिर से माँ के दोनों गालों को चूम कर, वो उनकी गोदी में आ गई।
“हम्म! अच्छा दादी अम्मा!” माँ ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, “देखेंगे आप दोनों का सीक्रेट! अच्छा चलो, अपनी डायरी तो दिखाओ। आज का होमवर्क देख लें?”
“क्या मम्मा! आप भी न स्पॉइल स्पोर्ट हो रही हैं! मैं इतनी खुश हूँ, और आपको डायरी देखनी है! टू वीक्स में मेरी समर हॉलीडेज शुरू हो रही हैं! अब क्या होमवर्क!”
“ओ दादी माँ! पढ़ाई लिखाई में नो मस्ती!” माँ ने प्यार से उसके गालों को खींचते हुए कहा, “अंडरस्टुड?”
“यस मम्मा! बट आई नीड माय डेली दूधू फर्स्ट!” पुचुकी ने कहा, और माँ के ब्लाउज के बटन खोलने लगी।
“हा हा हा हा!”
माँ की ब्लाउज के दोनों पट जब अलग हुए, तो वो उनके आँचल के अंदर छुप कर उनके स्तन से जा लगी!
“मम्मा?” माँ के स्तन पीते हुए उसने पूछा।
“हाँ बेटा?”
“जब आपको दूधू आएगा, तो आप मुझे पिलाओगी?”
“अले मेला बच्चा,” माँ ने लतिका को लाड़ करते हुए कहा, “तुझे नहीं तो और किसको पिलाऊँगी मेरी बेटू?” माँ ने लतिका पर लाड़ बरसाते हुए कहा, “तू ही तो मेरी बिटिया रानी है!”
“थैंक यू सो मच मम्मा! लेकिन मैं ज्यादा नहीं पियूँगी। सो दैट आपके बच्चे भूखे न रह जाएँ!”
“मेरे बच्चे?” माँ ने चौंकते हुए कहा।
“हाँ! बिना आपके बच्चे हुए आपके ब्रेस्ट्स में दूधू कैसे आएगा?”
“क्या?” माँ को विश्वास ही नहीं हुआ कि उनकी पुचुकी इतना कुछ जानती है, “हा हा हा हा! दादी माँ! आपकी नॉलेज तो बहुत बढ़ती जा रही है!” माँ ने लतिका का एक गाल प्यार से खींचते हुए कहा।
काजल माँ की बात पर हँसने लगी। उसका दूध पीती आभा को समझ नहीं आया कि जोक क्या था।
“क्या मैंने कुछ रांग बोला, मम्मा?”
“नहीं बेटू, कुछ भी रांग नहीं बोला! यू आर राइट, टू बी ऑनेस्ट! लेकिन मुझको बच्चे क्यों होंगे मेरी बेटू?”
“अरे, आपकी शादी होगी, तो आपके बच्चे भी तो होंगे!”
“मेरी शादी?”
“हाँ बेटा,” उधर काजल अपनी बेटी की बात सुन कर, बड़े विनोदपूर्वक बोली, “बात तो तुम्हारी बिलकुल सही है! तुम्हारी मम्मा की शादी का इंतजाम करना चाहिए जल्दी ही!”
माँ ने इस बात पर कुछ कहा नहीं।
कोई दस मिनट बाद जब उसका पेट (?) भर गया, तब वो माँ की गोदी से उठी, और काजल के स्तनों में जो दूध बचा हुआ था, उसको पी कर, अपनी पुस्तकें लेती आई। फिर माँ लतिका को पढ़ाने में व्यस्त हो गईं और काजल घर के बाकी के कामों में। सुनील तो कब का अपने कमरे में जा चुका था।
**
मतलब अंदाजा सही ही था हमारा, सुनील बाबू अब मां से शादी की प्लान बनाए बैठे है। पर क्या मां सुनील को एक्सेप्ट कर पाएगी क्योंकि उन्होंने तो सुनील को बेटे की तरह पाला है? लतिका इस राज की राजदार हो गई है पर कब तक? मतलब दोनो ही शादियां घर में होने वाली है। सही ट्विस्ट है स्टोरी में।
फिलहाल तो हम साथ छह हैं
अच्छा निर्णय लिया
हा हा हा
यार ऐसा मेरे साथ भी हो चुका है
मेरे बच्चे भी सो जाते थे
ह्म्म्म्म यह बहुत बड़ी चिंता का विषय है
लगता है मुझे एक जबरदस्त शॉक लगने वाला है
लो भैया कहानी चालू हो गई है प्रेम की मगर दोनो नायिकाएं अपने अपने तर्क ले कर बैठी है एक अपने काम पढ़े लिखे होने का और दूसरी अपनी उम्र का। अब देखना है की कब तक ये तर्क वितर्क काम करते है। बहुत ही सुंदर वार्तालाप के दृश्य और संवाद।अंतराल - स्नेहलेप - Update #10
अगली दोपहर :
रोज़ ही की तरह, माँ, काजल और सुनील की तिकड़ी के कमरे में बैठे हुए, घर में एक बड़ी पार्टी का आयोजन करने पर चर्चा कर रही थी, और सामान्य गप-शप में मशगूल थी। घर में कोई पार्टी किए हमको कुछ समय हो गया था। काजल का मानना था कि कुछ रागरंग हो, नृत्य संगीत हो, बढ़िया खाना पीना हो - तो मज़ा आए। माँ भी इस विचार की उत्साहपूर्वक सराहना कर रही थीं - वो भी चाहती थीं कि सुनील के ग्रेजुएशन, उसकी हालिया नौकरी, और व्यापार में मेरी सफलता का जश्न जाए।
जब यह सब चर्चा चल रही थी, काजल ने टीवी चालू कर दिया... किसी चैनल पर हेमा मालिनी की एक फिल्म दिखा रहे थे। माँ और काजल दोनों ही हेमा की बड़ी फैन थीं - इसलिए उन्होंने फिल्म को चालू रखा। यह उसकी अन्य फिल्मों से थोड़ी अलग थी। फिल्म की कहानी एक युवक (कमल हासन) के बारे में थी जो हेमा मालिनी वाले किरदार को लुभाने की कोशिश कर रहा था, जो कि उम्र में उससे बहुत बड़ी थी। जहाँ हेमा, कमल हासन को हर संभव तरीके से मना करने की कोशिश कर रही थी, वहीं कमल के काफी प्रयत्नों के बाद वो भी बदले में उससे प्यार करने लगती है।
यह एक जटिल कहानी थी, लेकिन जो बात सभी के दिल को छू गई वह यह थी कि यह एक बड़ी उम्र की महिला की कहानी थी, और उसके फिर से प्यार पाने की संभावना की कहानी थी। माँ और काजल दोनों एक ही नाव में सवार थीं - और यह फिल्म उन दोनों को बहुत अलग तरीके से छू गई। जहाँ काजल के पास मेरे रूप में एक वास्तविक विकल्प था, वहीं माँ के पास कोई विकल्प नहीं था। दोनों महिलायें एक दूसरे को शादी करने के लिए प्रोत्साहित करती रहतीं, लेकिन दोनों ही कोई भी संकल्प न लेतीं।
हेमा और कमल के बीच कुछ संवादों के दौरान, माँ और सुनील आँखों ही आँखों में अपनी बातों का आदान-प्रदान कर रहे थे - सुनील मानों जैसे कमल के संवादों के साथ अपनी बात बोल रहा था, वहीं माँ हेमा के संवादों के जरिए अपनी बात रख रही थी। लेकिन अंत में, जब हेमा के विरोध का किला ढह जाता है, और जब वो महमूद के सामने स्वीकार करती है - संवाद के साथ नहीं बल्कि आंखों में आंसू के साथ - कि वो कमल के साथ प्यार में थी, तब माँ ने सुनील की ओर नहीं देखा। कहानी का ऐसा मोड़ आ जाएगा, वो उसने सोचा भी नहीं था। वो दृश्य देख कर माँ के अंदर एक उथल-पुथल मच गई।
काजल ने तभी कहा, “वो एक्स-मेन वाला हीरो है ना... उसकी बीवी भी तो उससे उम्र में बहुत बड़ी है।”
“कौन? ह्यूग जैकमैन?” सुनील ने कहा।
“हाँ! वो ही। उसी के हाथ से चाकू निकलता है न?” काजल ने हँसते हुए कहा।
“क्या बात है अम्मा! तुमको तो याद है!”
“और नहीं तो क्या।” काजल ने कहा, “वैसे ठीक भी है। शादी में हमेशा पत्नी ही कम उम्र की क्यों होनी चाहिए? ये कोई जरूरी तो नहीं है। क्यों दीदी?”
“समाज भी तो कुछ होता है, काजल!”
“अरे दीदी, लेकिन यह कोई नियम भी तो नहीं है न, दीदी! शादी ब्याह में उम्र का क्या मतलब है? उससे पहले तो प्रेम का स्थान है। पति पत्नी के बीच प्रेम है, आदर है, तभी तो सुखी परिवार की नींव पड़ती है। बच्चे वच्चे तो बाद में होते हैं।”
शायद काजल कुछ और कहती - मेरे और देवयानी के बारे में, लेकिन चुप हो गई। मेरी शादी का ज़िक्र घर में थोड़ा वर्जित माना जाता है। माँ ने भी काजल की बात पर कुछ नहीं कहा।
उस दिन और कुछ खास नहीं हुआ।
अगली रात :
रात की ख़ामोशी में सुनील किन्ही कामुक विचारों में खोया हुआ, बिस्तर पर नग्न पड़ा हुआ था, और अपने लिंग को हाथ में थामे, उसको धीरे धीरे सहलाते हुए हस्तमैथुन कर रहा था! रह रह कर उसके मन में कई सारे विचार आ-जा रहे थे। अपनी सम्भाविक प्रेमिका और पत्नी को अपने ख्यालों में ही निर्वस्त्र करते हुए वो उसके साथ प्रेम सम्बन्ध बना रहा था, और दूसरे हाथ हस्तमैथुन करते हुए, वो उन विचारों की उमंगों का अनुभव भी कर रहा था। एक अकेले, जवान आदमी के पास अपनी काम-पिपासा संतुष्ट करने का इससे अच्छा और सुरक्षित अन्य कोई तरीका नहीं हो सकता। न जाने कितने ख़्वाब, न जाने कितनी ही तमन्नाएँ, न जाने कितनी ही फंतासी - सब रह रह कर उसके दिमाग में आ जा रहे थे और उन्ही की ताल पर उसका हाथ अपने लिंग पर फिसल रहा था!
अपने विचारों में वो इतना खोया हुआ था कि उसको ध्यान ही नहीं रहा कि दरवाज़े पर उसकी अम्मा खड़ी हो कर, उसे विस्मय से घूर रही थी। वैसे, ध्यान भी कैसे आता? कमरे में एक तो केवल जीरो वाट का बल्ब जल रहा था, दूसरा वो हस्तमैथुन से उत्पन्न होने वाली कामुक गुदगुदी का आनंद, अपनी आँखें बंद कर के ले रहा था। वैसे भी, इतनी रात में वो किसी को अपने कमरे में आने की उम्मीद नहीं कर रहा था। अचानक ही सुनील की नज़र काजल पर पड़ी - वो भी अपनी अम्मा को वहाँ खड़ी देख कर हैरान रह गया।
“क्या कर रहा है, सुनील?” काजल फुसफुसाती हुई बोली!
बहुत से लोग हस्तमैथुन को स्वस्थ क्रिया नहीं मानते। काजल भी उनमें से ही थी। उसका मानना था कि सम्भोग से सम्बंधित सभी क्रियाएँ, किसी अंतरंग साथी के साथ ही करनी चाहिए। वही तरीका एक स्वस्थ तरीका है। हस्तमैथुन काम संतुष्टि का एक अस्वस्थ तरीका है - ऐसा काजल का मानना था।
“अम्मा?!” सुनील हड़बड़ा कर बस इतना ही बोल पाया।
काजल कुछ देर ऐसे खड़ी रही कि जैसे सोच रही हो कि वो क्या करे क्या नहीं, और फिर कुछ सोच कर वो कमरे से बाहर चली गई, और जाते जाते धीरे से अपने पीछे दरवाज़ा बंद कर गई। मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जो नुकसान होना था, वो हो चुका था - सुनील की अम्मा ने उसको हस्तमैथुन करने हुए पकड़ लिया था! सुनने में कितना हास्यास्पद लगता है न - उसकी अम्मा ने उसको हस्तमैथुन करने हुए पकड़ लिया था! जीवन के पूरे इक्कीस साल ऐसे ही बीत गए, और उन इक्कीस सालों में ने अनगिनत बार उसकी अम्मा ने उसको नंगा देखा था। लेकिन हस्तमैथुन करते हुए पहली बार पकड़ा था... पकड़ा था! सच में, हस्तमैथुन जैसी क्रिया करते हुए ‘पकड़े जाने’ पर शर्म की जैसी अनुभूति होती है, वो बहुत ही कम अवसरों पर होती है।
वो चिंतित हो गया, ‘न जाने अम्मा क्या सोचेंगीं!’
उसका उत्तेजित लिंग शीघ्रता से शांत हो गया। कोई दो मिनट बीता होगा कि उसने दरवाज़े पर दस्तक सुनी। सुनील ने अभी भी कपड़े नहीं पहने हुए थे। लेकिन उसको कुछ करना नहीं पड़ा। दस्तक के तुरंत बाद, बिना किसी उत्तर की प्रतीक्षा किये, काजल ने दरवाज़े से कमरे के भीतर झाँक कर कहा,
“मैं अंदर आ जाऊँ?”
“अम्मा, मैं बस एक सेकंड में कपड़े पहन लेता हूँ! क्या तुम रुक सकती हो?”
“सुनील, तुम मेरे बेटे हो। तुमको मुझसे शर्माने की ज़रुरत नहीं है!” काजल ने कहा और वो अंदर आ गई।
अंदर आ कर उसने धीरे से दरवाजा बंद कर दिया और अपने बेटे की ओर मुड़ी, जो अभी भी बिस्तर पर नग्न तो लेटा हुआ था, लेकिन संकोच में - जिससे उसका शरीर थोड़ा छुपा रहे।
“क्या बात है, अम्मा?”
“तू हैंडल क्यों मार रहा था रे?” काजल ने यथासंभव कोमल आवाज़ में पूछा। वो नहीं चाहती थी कि सुनील को बुरा लगे।
“क्या अम्मा!” सुनील ने झेंपते हुए कहा।
“क्या अम्मा क्या? तुझे मैंने समझाया था न, कि गन्दी आदतें मत पालना! लेकिन मेरी सुननी कहाँ है नवाब को? अरे सोच, कहीं तेरी बिची पर चोट लग गई तो? फिर तेरे बच्चे कैसे होंगे रे? सोचा है क्या कभी?”
“अरे, ऐसे नहीं चोट लगती अम्मा! और यह मैं आज पहली बार नहीं कर रहा हूँ!” सुनील को अपनी अम्मा के सामने ऐसे नग्न बैठे हुए थोड़ा शर्मनाक लग रहा था। एक वो कारण, और दूसरा अपनी अम्मा की बेवकूफी भरी बात से वो थोड़ा झुंझला भी गया था।
“अरे लेकिन तू ये करता ही क्यों है?”
“अम्मा, मैं भी तो आदमी ही हूँ! मेरा भी मन होता है सेक्स करने का। और मेरे पास कोई लड़की थोड़े ही है!”
“तो तूने पहले कभी किसी लड़की को...?”
“नहीं अम्मा!” सुनील ने झेंपते हुए कहा।
“अपनी वाली को भी नहीं?”
“अम्मा, आपने उसको और मुझको क्या समझा है?” उसने तैश में आ कर कहा, “और बिना उसको अपने दिल की बात कहे, और बिना उसकी रज़ामंदी के मैं ये सब कैसे कर लूँगा? और आपको लगता है कि वो ये सब कर लेगी - किसी के साथ भी?”
“हाँ! वो बात भी ठीक है! माँ हूँ न, इसलिए बेवकूफ़ी भरी बातें सोचने लगती हूँ! सॉरी!” फिर कुछ सोच कर, “ठीक है... तू जो कर रहा था, वो कर ले। मैं जाती हूँ!”
“लेकिन तुम आई क्यों थी, अम्मा?”
“कुछ नहीं! नींद नहीं आ रही थी, इसलिए चली आई। तू अक्सर देर तक काम करता है न, तो मुझे लगा कि तू जाग रहा होगा! सोचा, हम दोनों कुछ देर बातें करेंगे!”
“भैया सो गए?”
काजल ने शर्मा कर ‘हाँ’ में सर हिलाया।
सुनील मुस्कुराया, “अम्मा, तुमको और भैया को साथ में देख कर, सोच कर बहुत अच्छा लगता है!”
काजल मुस्कुराई, लेकिन उसने बात बदल दी, “चल, तू कर ले अपना। मैं जाती हूँ! लेकिन सम्हाल कर करना!”
कह कर काजल कमरे से बाहर जाने लगी।
“अम्मा, मत जाओ। आज यहीं सो जाओ? मेरे पास?”
“सच में? तुम्हारे साथ यहाँ?”
“हाँ! वैसे भी अब मुझे कुछ करने का मन नहीं होगा!”
काजल ने कुछ सोचा, और फिर आ कर सुनील के बगल ही, उसके बिस्तर पर लेट गई। वो बिस्तर सिंगल बेड था, इसलिए दोनों बहुत अगल बगल ही लेट सकते थे।
“अच्छा एक बात बता, किसकी याद आ रही थी तुझको? अपनी वाली की?”
सुनील मुस्कुराया, “अम्मा, और किसकी याद आएगी?”
“जब उसके लिए तू इतना तरसता रहता है, तो उसको बोल क्यों नहीं देता?”
“डर लगता है अम्मा! कि कहीं इंकार न कर दे!”
“अरे, ये क्या बात हुई! चाहे वो इंकार करे, या चाहे इक़रार - बोलना तो पड़ेगा ही न! कम से कम तुझको मालूम तो हो जाएगा कि वो भी तुझे चाहती है या नहीं!”
“हम्म!”
“उसको बोल दे। जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी!”
“ठीक है अम्मा! बोल दूँगा! बहुत जल्दी! थैंक यू!”
“डरना मत!”
“नहीं डरूँगा!”
“मेरे दूध का मान रखना! डरना मत, सच में!”
“प्रॉमिस, अम्मा!”
सुनील ने आत्मविश्वास से कहा और करवट हो कर अपनी अम्मा को अपने आलिंगन में बाँध कर किसी सोच में डूब गया।
“क्या सोच रहा है?”
“कुछ नहीं अम्मा!”
फिर कुछ देर चुप्पी।
“अच्छा एक बात तो बता! तुझे सेक्स करना आता है?” काजल ने अचानक ही पूछ लिया।
“क्या अम्मा! अब तुमसे ये सब बातें कैसे डिसकस करूँ! तुम भी न!”
“अरे! सीधा सादा सवाल तो पूछा। उसके लिए इतना नाटक!”
“हाँ, आता है अम्मा!” सुनील ने हथियार डालते हुए कहा।
“अभी बोल रहा था कि कभी किया नहीं, तो कैसे आता है?”
“अम्मा - सब कुछ करने से ही नहीं आता! सीखने के और भी कई तरीके हैं!”
“हम्म! बात तेरी ठीक है। वैसे अगर नहीं आता है, तो शरमाना मत! पूछ लेना!” काजल ने आत्मविश्वास से कहा, “माँ हूँ तेरी! सब कुछ सिखाया है तुझको... ये भी सिखा दूँगी!”
“आता है अम्मा! किया नहीं है, लेकिन आता है कि कैसे करना है।” सुनील ने झेंपते हुए कहा।
“अच्छी बात है!”
सुनील अपनी माँ की बातों से बुरी तरह झेंप गया था। लेकिन उसको अच्छा भी लगा कि ऐसे नाज़ुक समय में उसकी माँ उसके साथ है। अपनी अम्मा के वात्सल्य भरे आलिंगन में बंध कर, उसके सारे कामुक विचार जाते रहे। कुछ देर दोनों खामोश लेटे रहे, फिर सुनील ही बोला,
“अम्मा?”
“हाँ बेटा?”
“....”
“क्या? बोल न?”
“दूधू पी लूँ?” सुनील ने हिचकिचाते हुए कहा।
“क्या? ओमोर माईये?”
सुनील ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“अरे तो ऐसे बोल न कि ‘अम्मा, अपना दूध पिला दो’! ऐसे शर्मा क्यों रहा है? तुझे दूध पिला कर इतना बड़ा किया है! तेरे फर्स्ट ईयर तक अपना दूध पिलाया है। ऐसे ही इतना बड़ा हो गया क्या तू?”
सुनील कुछ नहीं बोला। सच बात पर कैसी चर्चा?
“अरे बोल न! ये लड़का भी न! अरे अगर तू मुझसे ऐसे शरमाएगा, तो अपनी बीवी के सामने क्या करेगा?”
“हा हा हा! क्या अम्मा - माँ और बीवी में कुछ अंतर होता है!”
“हाँ - अंतर तो होता है! एक अपने बेटे को अपने अंदर से निकालती है, और दूसरी उसी बेटे को अपने अंदर लेती है!” काजल ने सुनील की टाँग खिंचाई करते हुए कहा, “अंतर तो होता है भई!”
“हा हा हा हा! अम्मा तुम बहुत शरारती हो!”
“और अंदर लेने वाली ज्यादा लुभाती है!”
“अम्मा! दूध पिलाने को पूछा, और तुमने पूरी गाथा कह दी!”
“जब तक तू ठीक से पूछेगा नहीं, तब तक तुझे दूधू नहीं मिलेगा!”
“मेरी प्यारी अम्मा, मुझे अपना दूध पिला दो!” सुनील ने मनुहार करते हुए कहा।
“हाँ, ये ठीक है! आ जा मेला बेटू, अपनी अम्मा का मीठा मीठा दूधू पी ले!” काजल ने उसको दुलारते हुए कहा तो सही, लेकिन कुछ किया नहीं। सुनील ने कुछ क्षणों तक इंतज़ार किया, फिर बोला,
“अम्मा, अब तो बोल भी दिया। पिलाओगी नहीं?”
“ब्लाउज खोलना आता है?”
सुनील ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“तो खोल न!”
“क्या?” आश्चर्य की बात थी।
“हाँ, इस घर में कोई भी बच्चा अपनी माँ का इंतज़ार थोड़े ही करता है। सभी खुद ही ब्लाउज खोल कर पी लेते हैं!”
“ओह,” सुनील ने कहा, और काजल की ब्लाउज के बटन खोलने लगा। वो आराम से लेटी रही। कुछ देर में ब्लाउज के दोनों पट अलग हो गए, और उसके दोनों स्तन अनावृत हो गए।
उसने काजल का एक चूचक अपने मुँह में लिया और उसको चूसने लगा। थोड़ी देर में मीठे दूध की पतली धारा सुनील के मुँह को भरने लगी। काजल का मातृत्व आह्लादित हो गया। एक माँ के स्तनों में जब दूध बनता है, तब उसकी यही इच्छा होती है कि उसकी संतान उसका दूध पिए। सुनील द्वारा स्तनपान का आग्रह किए जाने से काजल आनंदित भी हुई, और गौरान्वित भी! अपने जवान बेटे को स्तनपान कराना आनंद का विषय तो है ही, साथ ही साथ गौरव का विषय भी है।
कोई एक मिनट के बाद काजल बोली,
“एक सेकंड, सुनील!”
जैसे ही सुनील ने उसका चूचक छोड़ा, काजल बिस्तर से उठ खड़ी हुई। फिर उसने अपनी ब्लाउज उतार दी, और अपनी साड़ी भी। वो केवल अपनी पेटीकोट पहने हुए ही, वापस, बिस्तर पर आ गई।
“आ जा!” सुनील की तरफ करवट कर के काजल ने उसको आमंत्रित किया।
सुनील वापस उसके चूचक से जा लगा। उधर काजल उसके लिंग को धीरे धीरे सहलाने लगी।
“आखिरी बार जब तुझको नंगा तब देखा था जब तू फर्स्ट ईयर में था... है न?”
सुनील ने हाँ में सर हिलाया।
“और दीदी तुझे तब भी नहलाती थीं! हा हा!”
“क्या अम्मा!” वो झेंपते हुए बोला।
“कल नहला दूँ तुझे - पहले के ही जैसे?”
“नहला दो न अम्मा!” सुनील सम्मान के साथ बोला, “तुम मेरी माँ हो! तुम्हारा पूरा अधिकार है कि तुम जैसा चाहो, करो!”
“दीदी को बोल दूँगी!”
“अरे वो क्यों? वो मेरी माँ नहीं हैं!”
“हाँ, वो तेरी माँ नहीं है!” काजल सोचती हुई बोली, “वैसे, सुन्दर लगती है न, दीदी?”
“हाँ अम्मा! बहुत!” सुनील जैसे कहीं दूर जा कर बोला।
“फिगर भी अच्छा सा है! जवान लड़की जैसी ही तो लगती है!”
“हाँ!” सुनील स्वतः बोल पड़ा।
“तुझको लगती कैसी है वो?”
“बहुत अच्छी!”
“हमेशा सोचती हूँ कि वो जिस घर जाएगी न, वो बहुत भाग्यशाली घर होगा!”
“वो शादी करेंगी न?”
“अरे क्यों नहीं करेगी शादी! मैं करवाऊँगी उसकी शादी, हाँ नहीं तो! लेकिन कोई अच्छा सा वर भी तो मिले!”
“उनके लिए एक अच्छा वर कैसा होगा अम्मा?”
“अरे, ये कोई पूछने वाली बात है? इतनी अच्छी सी तो है दीदी! तो बढ़िया पढ़ा लिखा हो, अच्छा कमाऊ हो, उसको खूब प्यार दे सके! अच्छा संस्कारी लड़का हो। शान्त स्वभाव का हो। अच्छे शरीर वाला हो - स्वस्थ, सुन्दर! इतना सब तो होना ही चाहिए!”
काजल ने आकार में बढ़ते हुए उसके लिंग को दबाते सहलाते हुए कहा।
“हाँ अम्मा, यह सब तो चाहिए ही!”
काजल कुछ सोच कर फिर आगे बोली, “तूने अच्छा किया - अच्छी आदतें पालीं। अच्छा खाया पिया! एक्सरसाइज करता है। अच्छा लगता है तू भी!”
“हा हा! थैंक यू अम्मा!”
“हाँ! बुरी आदतें पालने से आदमियों का नुनु और बिची कमज़ोर हो जाता है! इतने सालों तक जो मैंने तुझे दूध पिलाया है, उसका लाभ न मिलता!”
“क्या अम्मा! आज कैसी कैसी बातें कर रही हो तुम?”
“देख सुनील, मैं तेरी माँ हूँ! तेरे भले के लिए ही सोचती हूँ! अब देख - अभी तक समझ हम सभी की तपस्या हो गई तुझे पाल पोस कर बड़ा करने में। तेरी अच्छी सी पढ़ाई, तेरा उत्तम कैरियर, तेरी बढ़िया सी जॉब - यह सब हम सभी की तपस्या का फल है! अब एक ही काम रह गया है बस - और वो है तेरी शादी का!”
काजल ने कहा, और फिर कुछ सोच कर आगे बोली, “शादी ब्याह कोई मज़ाक बात नहीं है। शादी में अगर औरत को बहुत सैक्रिफाइस करना पड़ता है, तो आदमी को भी करना पड़ता है। शादी जिम्मेदारी लेने का नाम है। उसमे जहाँ अपने परिवार होने का आनंद मिलता है, वहीं अनगिनत जिम्मेदारियाँ भी लेनी पड़ती है! और, अपनी बीवी को खुश रखना, उसको हर प्रकार का सुख देना, एक आदमी की सबसे पहली जिम्मेदारी होती है।”
“हाँ, मैं ये सब बातें मानता हूँ अम्मा। लेकिन तुम्हारा पॉइंट क्या है?”
“पॉइंट ये है कि अपनी बीवी को शारीरिक सुख देने के लिए आदमी के पास मज़बूत नुनु होना चाहिए। है कि नहीं?” काजल ने उसके लिंग की लम्बाई पर हाथ फिराते हुए कहा।
सुनील ने झुँझलाते हुए बोला, “तुम्हारे सामने ये थोड़े ही खड़ा होगा अम्मा।”
“क्यों?”
“तुम तो मेरी अम्मा हो न।”
“हाँ! वो बात भी ठीक है। मुझे गर्व है कि मेरा बेटा मेरा इतना सम्मान करता है! लेकिन लास्ट टाइम जब तुझे देखा था, तब तो दीदी के सामने तेरा नुनु खड़ा था!”
“क्या अम्मा!!”
“हाँ ठीक है, ठीक है! वो तेरी माँ थोड़े ही है! वैसे अभी जितना है, वो भी बढ़िया लग रहा है!”
“अम्मा, तुम्हारे दूध का कमाल फिर कभी दिखाऊँगा। बस अभी इतना जान लो कि अभी जितना है, उससे भी बड़ा हो जाता है।”
“सच में?”
“हाँ अम्मा! आई प्रॉमिस!”
“बढ़िया है फिर तो! मेरी बहू की रक्षा करना भगवान!”
“हा हा हा!”
“अच्छा सुन, मेरे मन में एक बात है। मैं सोच रही थी, कि अगर तुम अपनी जॉइनिंग के पहले ही शादी कर लो, तो बहू को अपने साथ ही लिए जाओ! बढ़िया एक साथ ही, नए शहर में, नया नया जीवन शुरू करो!”
“इतनी जल्दी अम्मा?”
“अरे, इसमें क्या जल्दी है रे? हम सभी ने तो लीगल ऐज का होते ही शादी कर ली थी - मैंने भी, दीदी ने भी, और अमर ने भी! तू भी लीगल ऐज का हो गया है। कर ले। अच्छा साथी मिल जाता है तो जीवन में बस आनंद ही आनंद आ जाता है! अगर तेरी वाली ‘हाँ’ कर दे, तो तुरंत शादी कर लो। हम हैं न - बिना किसी देरी के तुम दोनों की शादी करवा देंगे। और, बिना कारण इंतज़ार करने की कोई ज़रुरत नहीं, और न ही कोई लाभ। एक लम्बा वैवाहिक जीवन बिताओ साथ में!”
“हम्म!”
“जितनी जल्दी हो, उसको प्रोपोज़ कर दे! और, अगर वो मान जाए तो तुरंत शादी कर ले! बिना वजह इंतज़ार मत कर। हमारे पास ज़रुरत के हिसाब से पैसे हैं! इतने दिनों तक पैसे जोड़े हैं मैंने। इसलिए तुम चिंता न करना। अमर और मैं, तुम्हारा घर जमाने में पूरी मदद करेंगे। और फिर तू कुछ ही दिनों में अपनी जॉब भी शुरू कर लेगा। सब बढ़िया बढ़िया हो जाएगा!” काजल आनंदित होते हुए बोली।
“हम्म... सच में अम्मा, प्रोपोज़ कर दूँ?”
“हाँ! अब और देर न कर! बिना हिचके, बिना झिझके, और बिना डरे प्रोपोज़ कर दे बहू को!” काजल मुस्कुराते हुए बोली, “लेकिन पूरे मान सम्मान के साथ! वो अगर मना कर दे, तो ज़िद न करना। लेकिन सच कहूँ - मेरा दिल कहता है कि सब अच्छा अच्छा होगा!”
“ठीक है अम्मा!” सुनील मुस्कुराया, “थैंक यू अम्मा!”
काजल ने उसके ‘थैंक यू’ पर आँखें तरेरीं, और आगे बोली, “और वो मान जाए, तो तुरंत शादी कर लेना!”
“ठीक है अम्मा!”
“चल, अब जाती हूँ मैं! मेरी छातियाँ भी खाली हो गईं अब! तू सो जा! यहाँ जगह कम है। न तो तू ठीक से सो पाएगा और न ही मैं! और सवेरे मेरी लाडो रानियाँ मुझे अपने साथ नहीं देखेंगी, तो परेशान होने लगेंगी। गुड नाईट बेटा!”
“गुड नाईट अम्मा!”
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