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हा हा हाक्या बात है!!! सुभान अल्लाह!
हाँ समय आ गया हैसमय आ गया है
हाँ सहूलियतरिश्तों को नाम हम अपनी सहूलियत के लिए देते हैं.
सबसे बड़ी बात है प्यार - सच्ची मोहब्बत!
वो है, तो रिश्तों और उनके नामों का क्या महत्त्व
हाँ सहमतहा हा हा! हम लोग बहुत चिढ़े हुए लोग हैं भाई!
हर बात से असंतुष्ट!
हाँ सारे शंकाओं का उत्तर मिल गयाबहुत बहुत धन्यवाद मित्र!
आपको अच्छा लगा, वही बहुत है मेरे लिए
आपकी बात का उत्तर अगले ही अपडेट में मिल गया!
अपना ख़याल रखें भाई!
कहानी मे इरोटिका भी है और कामुकता भी लेकिन आप की लेखन शैली की वजह से यह शुद्ध पाक प्रेम कहानी बन गया और सेक्स भी एक श्रृंगार बन गया।
कल्पना कीजिए , जवान गबरू लड़का अमर अपनी प्रौढ़ मां के ठोस स्तनों को निर्वस्त्र कर दुध पी रहा है और मां उसके मजबूत लिंग को अपने हथेलियों से मर्दन कर रही है और वो भी कुसुम के सामने।
कल्पना कीजिए अमर अपनी मां के सामने ही एक मैच्योर और खुबसूरत नारी के स्तनों को निर्वस्त्र कर उसके ठोस परिपक्व स्तनों को अपने हाथो से दबा भी रहा है और मुंह लगाए दुध भी पी रहा है और नारी उसके मर्दाना लिंग को उस की मां के नजरो से छिपाकर दबा रही है मसल रही है।
इससे बढ़कर और क्या कामुक हो सकता है। लेकिन इतनी सफाई और सभ्य तरीके से लिखा गया है कि यह सब कहीं से भी अश्लील लगता ही नही।
काजल बहुत पहले ही समझ गई थी कि उसके बेटे के दिल की रानी कौन है और उसे अपनी रानी से मिलाने के लिए यथा संभव अप्रत्यक्ष रूप से मदद करती रही।
एक कहानी याद आ रहा है मुझे।
यूरोप के एक देश मे एक आदमी को ब्रैड चुराने के आरोप मे भूखे मरने की सजा सुनाई गई। उसे एक जेल मे बंद कर दिया गया। सजा ऐसी थी कि जब तक उसकी मौत न हो जाती तब तक उसे भूखा रखा जाए।
उसकी बेटी ने अपने पिता से मिलने के लिए सरकार से अनुरोध किया कि वह हर रोज अपने पिता से मिलेगी। उसे मिलने की इजाजत दे दी गई। मिलने से पहले उसकी तलाशी ले जाती कि वह खाने का कोई सामान नही ले जा सके। उसे अपने पिता की हालत देखी नही गई। वह अपने पिता को जिंदा रखने के लिए अपना दुख पिलाने लगी। जब कई दिन बीत जाने पर भी वो आदमी नही मरा तो पहरेदारो को शक हो गया और उन्होने उस लड़की को अपने पिता को अपना दुख पिलाते हुए पकड़ लिया। उस पर मुकदमा चला।
और सरकार ने कानून से हटकर भावनात्मक फैसला सुनाया। उन दोनो को रिहा कर दिया गया।
नारी कोई भी रूप मे हो , चाहे मां हो चाहे पत्नि, चाहे बहन हो चाहे बेटी ....हर रूप मे वात्सल्य त्याग और ममता की मूरत है।
एक और बेहतरीन प्रस्तुतीकरण भाई।
Outstanding & Amazing & brilliant.
तो अब प्यार की छाप लग ही गई दोनो के तन और मन पर। आज सुमन ने सुनील को पूरे दिल से अपना लिया है और काजल भी खुश है इस सबसे, अब बस बात है अमर की, कि वो इस सब को कैसे देखता है क्या वो दकियानूसी सोच दिखायेगा या फिर अपनी मां की खुशियां स्वीकार करेगा।अंतराल - पहला प्यार - Update #20
उधर कमरे के बाहर काजल दबे पाँव चलते हुए माँ के कमरे के पास आई, और चुपके से दरवाज़े को थोड़ा सा खोल कर, बिना कोई आवाज़ किए, परदे की आड़ से अंदर झाँकी।
‘तो लड़के ने हिम्मत कर ही ली!’ काजल मुस्कुराते हुए सोचने लगी।
अंदर का नज़ारा वैसा ही था, जैसी कि उसको उम्मीद थी। या फिर ये कह लें, कि उम्मीद से थोड़ा बेहतर ही! सुमन पूरी तरह निर्वस्त्र हो कर उसके बेटे के सामने खड़ी थी, और उसका बेटा उसके पुट्ठों को थामे, उसकी जाँघों को जगह जगह चूम रहा था! अपने एकलौते बेटे की शादी को ले कर काजल के मन में भी कई सारे अरमान थे - कि उसकी सुन्दर सी, सर्वगुण संपन्न, सुशील, सुगढ़, और संस्कारी बहू हो। हम सभी जानते हैं कि अपने होने वाले जीवनसाथी के गुणों की पूरी एक फ़ेहरिस्त होती है हमारे पास। उस फ़ेहरिस्त के सभी बिन्दु पूरे हो जाएँ, वो संभव नहीं होता। लेकिन सुमन के रूप में उसकी सारी इच्छाएँ पूरी होती नज़र आ रही थीं।
क्या सच में प्रार्थनाएँ इतनी जल्दी सच होती हैं? काजल का दिल स्नेह और ममता से भर आया। अपनी चहेती दीदी - नहीं, दीदी नहीं, बहू - को फिर से सुख पाते देख कर उसको बहुत भला लगा। काजल ने सुमन को नग्न पहले कई बार देखा था, लेकिन आज एक अलग बात थी। आज वो उसके बेटे की हो गई थी! और वो उसकी बहू हो गई थी। आज सब कुछ बदल गया था। आज से सुमन अपनी है... अपने घर की। आज से उसकी एक और बेटी है - प्यार करने के लिए! यह एक अद्भुत सी अनुभूति थी।
उसने एक आखिरी नज़र और डाली, और चुपके से दरवाज़ा बंद कर के वहाँ से चली गई।
**
सुनील माँ के शरीर के हर अंग पर तसल्ली से अपने चुम्बनों की मोहर लगा रहा था। माँ ने अभी भी अपनी योनि ढंकी हुई थी, और सुनील कोशिश भी नहीं कर रहा था उनका हाथ वहाँ से हटाने की। उसने माँ की जाँघों के अंदरूनी हिस्से को सहलाया। जैसे-जैसे वो माँ के शरीर को और देखता और महसूस करता जा रहा था, माँ के लिए उसकी प्रशंसा और भी अधिक बढ़ती जा रही थी।
“अब एक ही चाह बाकी है मेरी जान... कि हम दोनों हमेशा के लिए एक हो जाएँ, और हमारा एक छोटा सा संसार बनाएँ!” वो कह रहा था, और साथ ही साथ माँ की जाँघों को सहला भी रहा था, “सच अ स्ट्रांग वेसल फॉर आवर फ्यूचर चिल्ड्रन!” उसने माँ के कानों में फुसफुसाते हुए कहा, “मेरी सुमन, हमारे बच्चे बहुत सुंदर, हेल्दी और स्ट्रांग होंगे!”
उसने माँ के कूल्हे के किनारे को छुआ, “यू आर सच अ परफेक्ट ब्यूटी…”
माँ की हालत बड़ी अनोखी थी। उन्होंने बड़े लंबे समय के बाद अपने शरीर पर किसी पुरुष का स्पर्श महसूस किया था - एक ऐसे पुरुष का, जो आत्मविश्वासी है, जो उनसे प्रेम करता है, और जो एक दैवीय प्रसाद के रूप में उनका पति बनने जा रहा है। इसलिए माँ समझ नहीं पा रही थी कि वो उसकी हरकतों पर कैसी प्रतिक्रिया दें। उनके मन में आया कि वो सुनील के स्पर्श को अस्वीकार कर दें, लेकिन उनको बहुत अच्छा लग रहा था। उनके मन में आया कि वो सुनील के स्पर्श का खुल कर स्वागत करें, लेकिन उनको बहुत झिझक भी हो रही थी।
“दुल्हनिया,” सुनील ने अपने हाथों से माँ के एक नितम्ब को साइड से दबा कर बोला, “ज़रा पलटना तो... एक बार?”
सुनील बोला, और न जाने किस प्रेरणावश वो पलट भी गईं। कैसे न करतीं? न जाने कैसा अद्भुत प्रभाव था सुनील का उन पर! उसके बोलने में वही, पति वाला अधिकार भाव था। वो पूरी तरह से अशक्त हो गईं थीं उसकी किसी भी बात को मना कर पाने में!
माँ मुड़ गईं। उनकी आँखें बंद थीं, और देख कर ऐसा लग रहा था कि वो अब गिरी कि तब गिरी। शायद सुनील को भी उसके थरथराते हुए शरीर से इस बात का आदेश हो गया था, इसलिए उसने माँ को एक हाथ से थाम रखा था। उसने बारी बारी से माँ के दोनों नितम्बों को सहलाया। एक लम्बे अर्से के बाद माँ की नग्न सुंदरता देखने की सुनील की तमन्ना आज पूरी हो गई थी।
कई वर्षों पहले सुनील के मन के अंदर माँ के लिए आकर्षण का जो पौधा उत्पन्न हुआ, जो उनके गुणों से सिंचित होते होते कब अगाध प्रेम में बदल गया, वो उसको भी नहीं मालूम चला। और उसी प्रेम की ताकत थी कि वो जाने अनजाने, इतने वर्षों तक, खुद को माँ के लायक बनाने का भरपूर प्रयास करता रहा। उसने पूरी मेहनत और लगन से अपनी पढ़ाई करी और एक अच्छी नौकरी हासिल करी। माँ के लिए उसके प्रेम ने उसके व्यक्तित्व का न केवल निर्माण ही किया, बल्कि उसका पोषण भी किया और उसको निखारा भी! बस ये समझ लीजिए कि इतने वर्षों की तपस्या का उसको अब फल मिल रहा था!
सुनील ने बारी बारी से माँ की दोनों नितम्बों को भी चूम लिया। अब माँ के लगभग हर अंग पर सुनील के चुम्बनों की मोहर लग गई थी! अब कहीं जा कर वो संतुष्ट हुआ! अपनी सुमन के हर अंग को चूम कर उसने अपने प्रेम की उपस्थिति तो दर्ज़ कर दी! संतुष्ट हो कर उसने माँ को वापस अपनी ओर पलटा। माँ के दोनों हाथ अब तक उनकी योनि से हट गए थे। सुनील ने देखा अवश्य, लेकिन फिलहाल उसने झुक कर माँ की अक्षकास्थि (कॉलर बोन) को चूम लिया। उस चुंबन में कुछ भी कामुक नहीं था... बल्कि, वो एक बहुत ही स्नेही चुंबन था। उसके चुम्बन में उसके प्रेम के जुनून की गर्मी के साथ-साथ सुनील के मन ने माँ के प्रति उनका सम्मान भी निहित था। लेकिन माँ को लगा कि जहाँ पर सुनील ने चुम्बन दिया, वहां पर उनकी त्वचा जैसे झुलस गई हो। उनको ऐसा लगा जैसे सुनील का चुंबन उसकी त्वचा में समां गया हो। सदा के लिए!
“मेरी जान,” उसने कहा, “आँखें खोलो न!”
माँ ने बड़ी झिझक से आँखें खोलीं।
“आई लव यू!”
कितनी ही बार ये तीन साधारण से शब्द प्रेमी-प्रेमिकाओं ने कहे होंगे। लेकिन उनमें निहित कोमल, किन्तु बलवान भावनाएँ, हर बार नई होती हैं और हर एक के लिए अलग अलग होती हैं। सुनील के कहने के अंदाज़ में जो सच्चाई थी, वो माँ से अनसुनी नहीं रह सकी।
माँ शर्माते हुए मुस्कुराईं, “मी टू!” उन्होंने भी सुनील के ही जैसी सच्चाई से कहा।
ऐसी सहज स्वीकृति किसके दिल में गुदगुदी न कर दे? सुनील मुस्कुराया और तब उसने नीचे देखा। माँ की योनि अंततः सुनील के सामने उजागर थी। माँ ने हड़बड़ा कर सुनील की तरफ़ देखा - उनको शर्म आ रही थी कि उन्होंने अपनी योनि के सौंदर्यीकरण की एक लम्बे समय से उपेक्षा कर रखी थी। घने, घुंघराले, काले बालों का अव्यवस्थित जंगल उनकी योनि को पूरी तरह से ढँके हुए था। उनके मन में आया कि कहीं ‘उसको’ ऐसे अनावृत हुए, अपने मूर्त रूप में देख कर सुनील को ‘उससे’ और उनसे घृणा न महसूस होने लगे। लेकिन माँ की योनि के दर्शन होते ही सुनील जैसे हतप्रभ हो गया!
माँ अपना हाथ बढ़ा कर अपनी नग्नता सुनील से छुपाना चाहती थीं, लेकिन सुनील को ‘उस तरफ’ ऐसे आस भरे, आश्चर्य, और प्रशंसा वाले भाव से देखते हुए देख कर, वो कुछ कर न सकीं। सुनील ने बड़ी सावधानी से - जिससे माँ को कोई चोट न लगे - अपनी उँगलियों से उनके पशम हटा कर ‘वहाँ’ देखा - माँ की योनि-पुष्प की पंखुड़ियाँ आपस में चिपकी हुई थीं, और बहुत कोमल लग रही थीं। उनकी योनि के होंठों की रंगत उनके शरीर के समान ही गोरी थी - बस थोड़ी सी ही गहरी रंगत लिए हुए थी। लेकिन घने बालों के कारण उसकी सुंदरता देख पाना संभव नहीं था।
लेकिन शायद था - कम से कम सुनील के लिए तो था!
“दुल्हनिया?”
“जी?” माँ के मुँह से अनायास ही निकल गया।
“कितनी सुन्दर है ये!”
सुनील की बात पर माँ के शरीर में शर्म की लहर दौड़ गई।
‘ये,’ माँ ने सोचा, ‘सुन्दर है?’ सुनील के मुँह से अपने गुप्ताँग के लिए यह शब्द सुन कर उनको बड़ा अनोखा, बड़ा अजीब सा लगा।
“गुलाब के फूल की पँखुड़ियों जैसी!”
‘गुलाब का फूल!’
लेकिन असली आघात तो अभी आना बाकी था - सुनील ने अपनी उंगली को माँ की बिकिनी लाइन पर चलाया और उनकी योनि के V पर आ कर रुक गया।
“कितनी कोमल है!”
‘कोमल?’
क्योंकि माँ नीचे नग्न थीं, इसलिए सुनील की उंगलियाँ अपनी खोज-बीन करने के लिए स्वतंत्र थीं... और उसने तसल्ली से वहाँ पर खोजबीन करी।
“ओह गॉड! दुल्हनिया, कितनी सुन्दर सी बुर है तेरी!” वो अपने में ही बड़बड़ाया, “ओह! और कैसी बुलंद किस्मत है मेरी!” बिलकुल मंत्रमुग्ध सा!
बोला तो उसने बहुत धीमे से, लेकिन कमरे में इतनी ख़ामोशी थी कि माँ ने सुन लिया। उनको शर्म तो आ रही थी, लेकिन मन के किसी कोने में गर्व की अनुभूति भी हुई, जब सुनील ने उनके गुप्तांग की ऐसी बढ़ाई करी।
“दुल्हनिया...” सुनील कुछ कहना चाहता था, लेकिन कह नहीं सका।
अब तक घबराहट और उत्तेजना से माँ की साँसें चढ़ गईं थीं। कमोवेश वैसी ही हालत सुनील की भी थी, लेकिन न जाने कैसे वो खुद पर नियंत्रण बनाए हुए था। लेकिन माँ के लिए यह सब बड़ा अनोखा सा था। उनको ऐसा लग रहा था जब कोई बच्चा पहली बार स्कूल में दाखिले के लिए जा रहा होता है। उसके लिए सब कुछ अपरिचित सा होता है। उस स्थिति में घबराहट भी होती है, और रोमांच भी! वही हालत माँ की भी हो रही थी। लाचारी में सुनील के सामने खड़े खड़े, माँ के पैर काँपने लगे।
सुनील फिर से माँ की जाँघों को चूमने लगा। चूमते चूमते, अंततः उसने अपना मुँह उनकी पदसन्धि में सटा कर उनकी योनि को चूम लिया। चूमा ही नहीं, बल्कि उनकी योनि के होंठों के बीच चाट भी लिया। माँ उसे रोक ही नहीं पाई। रोकना तो छोड़ो, माँ को करंट का ऐसा झटका लगा कि उनका पूरा वज़ूद हिल गया।
फिर सुनील मुस्कुराते हुए बोला, “दुल्हनिया, तेरी बुर भी मेरी हुई अब!”
उनके लिए सुनील को रोक पाना अब संभव ही नहीं था। वो जो चाहे करने के लिए स्वतंत्र था। माँ के अंदर विरोध करने की न तो क्षमता थी और न ही साधन! वो भी मन से सुनील को पति मान चुकी थीं। अब क्या विरोध शेष रहा? उसने फिर से जीभ निकाल कर धीरे से उनकी योनि को चाटा।
“शहद है भई यहाँ तो, शहद!”
“ब्ब्ब... बस कीजिए अअब!” माँ ने जैसे तैसे, लड़खड़ाते शब्दों में कहा।
लेकिन वो जैसे कुछ सुना ही न हो, “इसकी तो महक भी गुलाब के फूल वाली ही है!” वो आनंद से बोला।
हाँ ये बात तो पूरी तरह सही थी, और इसका पूरा श्रेय माँ के गुलाब की महक वाले साबुन को जाना चाहिए!
ऐसी मजबूरी, ऐसी लाचारी वो सुनील के साथ महसूस करने से पहले केवल अपने पति के ही सामने महसूस करती थीं। तो इस चुम्बन के साथ सुनील ने उनके जीवन में पति वाला स्थान तो हासिल ही कर लिया! बस पति वाला एक काम बचा रहा था! उन दोनों को बस अब ‘एक होना’ बाकी था। और उसने ‘उस काम’ को भी शीघ्र ही करने का वायदा कर दिया था! माँ ने सुनील के प्रेम अभिव्यक्ति पर अपनी आँखें बंद कर लीं। सुनील ने उनके समूचे गढ़ को ध्वस्त कर दिया था, और अब वो सुनील के प्यार की प्रगति को रोकने में शक्तिहीन थीं। और सच कहें, तो वो अपने लिए सुनील के प्यार की प्रगति को रोकना भी नहीं चाहती थीं!
“मैं तुम्हें बहुत खुश रखूँगा, दुल्हनिया!” उसने वादा किया, और फिर पूछा, “प्लीज पूरी तरह से मेरी बन जाओ न! मेरी वाइफ! मेरी सब कुछ!”
सुनील ने ऐसे भोलेपन से माँ से यह बात कही कि वो उस बेख़याली और घबराहट वाली हालत में भी मुस्कुराए बिना न रह सकीं।
“सब कुछ तो देख लिया मेरा आपने... सब कुछ तो ले लिया! आपकी नहीं, तो और किसकी हूँ अब?”
सुनील मुस्कुराया, “मेरा मतलब है शादी!” फिर माँ की हालत - उनकी टाँगों के कम्पन को देख कर कहा, “दुल्हनिया, तू कैसी काँप रही है!” उसकी आवाज़ भी कामातुर हो कर कर्कश हो चली थी, “आ जा, मेरी गोदी में लेट जा!”
सुनील ने कहा, और उनको अपनी गोद में कुछ इस तरह लिटा लिया कि माँ के नितम्ब सुनील की गोदी में, और उसके ऊपर का शरीर उसके बाएँ तरफ़ और टाँगें उसके दाहिने तरफ। इस पर भी कोई ख़ास आराम नहीं मिला उनको - सुनील का उत्तेजित कठोर लिंग उनके नितम्ब की दरार में बुरी तरह चुभ रहा था। लेकिन उससे भी बड़ा आघात था सुनील की उँगलियों का, जो इस समय उनकी योनि की खोजबीन में व्यस्त थीं - उसने माँ की योनि के होंठों की रूपरेखा का पता लगाया, उनके योनि-पुष्प (योनि की पंखुड़ियों) को सहलाया, और उनके पशम से खेला।
‘कैसा कोमल अंग!’ उसने सोचा, ‘इसकी कोमलता और सुंदरता का व्याख्यान करना मुश्किल है!’
दोनों इस बात को लगभग भूल ही गए थे कि बाहर सुनील की माँ भी है और वो किसी भी समय कमरे में आ सकती है। अगर काजल इसी समय कमरे में आ जाती, तो उन दोनों को इस हाल में देख कर क्या कहती? लेकिन यह ख़याल उन दोनों के विचार में आया ही नहीं।
माँ की योनि से खेलते खेलते उसकी उँगलियाँ माँ के काम-रस से भीग गई। वो मन ही मन मुस्कुराया। लेकिन उसने यह बात माँ पर जाहिर नहीं होने दी - ऐसा न हो कि वो लज्जित हो जाएँ! पत्नी को पति के सान्निध्य में आनंद आना चाहिए - लज्जा नहीं। पति पत्नी के बीच लज्जा जैसी वस्तु का कोई काम नहीं। लेकिन खुद पर नियंत्रण रख पाना भी तो मुश्किल था। उसने माँ के नितम्बों को नीचे से सहारा दे कर थोड़ा उठाया, और थोड़ा खुद झुका - अगले ही पल उसके होंठ माँ की योनि के रस का आस्वादन कर रहे थे। मुख मैथुन का सुख डैड ने माँ को बस कभी कभार ही दिया था। अधिकतर माँ ही डैड को मुख-सुख देती आई थीं। यहाँ तो सुनील की शुरुवात ही ओरल सेक्स से हो रही थी।
उधर माँ को लग रहा था कि कल से जो आरम्भ हुआ, तो उनकी योनि से जैसे रस निकलना बंद ही नहीं हो रहा था। मुख मैथुन शुरू होने के कुछ ही पलों में माँ को रति-निष्पत्ति का छोटा सा अनुभव हो गया। इतना ही उनके लिए पर्याप्त था। लज्जा के मारे वो उसका आनंद स्वीकार करने में भी झिझक रही थीं। लेकिन सुनील की आश्वस्त गोदी में बैठ कर उनको अनोखा सुख तो मिल रहा था।
सुनील को स्त्रियों के ओर्गास्म के बारे में बहुत ही कम और सीमित ज्ञान था। इसलिए वो समझ नहीं सका कि माँ को कैसा अनुभव हुआ होगा। माँ उसकी गोदी में पड़ी तड़प रही थीं - उनकी टाँगे कुछ इस तरह छटपटा रही थीं कि सुनील के लिंग की लम्बाई, पुनर्व्यवस्थित हो कर, उनकी योनि के चीरे से समान्तर जा लगी। सुनील भी बहुत देर से कामोत्तेजित था। अब उसके भी बर्दाश्त के बाहर हो चला था। लिहाज़ा, एक छोटा मोटा स्खलन उसको भी हो आया। उसके लिंग से वीर्य की कुछ बूँदे निकल गईं, जिससे उसके वृषणों में उत्तेजना का भीषण दबाव कुछ कम हो जाए। अपने अपने यौन आनंद के लघु पर्वतों के शिखर पर पहुँच कर दोनों को थोड़ी राहत तो मिली।
दोनों ने ‘वहाँ’ देखा - वीर्य की बूँदें माँ की योनि के बालों पर उलझी हुई कुछ इस तरह लग रही थीं, कि जैसे छोटे छोटे मोती वहाँ टाँक दिए गए हों। कई साल पहले भी यही हुआ था - माँ के हाथ का स्पर्श पाते ही सुनील को स्खलन हो गया था, और आज भी! लेकिन आज का कारण जाहिर सा था - दो तीन दिनों से उसको लगातार उत्तेजन और उद्दीपन हो रहा था। चाहे कितना भी कण्ट्रोल क्यों न हो आदमी का अपनी कामोत्तेजना पर, इतने लम्बे समय तक उत्तेजन और उद्दीपन होने पर उसका टिके रहना संभव नहीं।
“आई ऍम सॉरी दुल्हनिया,” सुनील ने खेद जताते हुए और अपनी सफाई में कहा, “दो दिनों से भरा पड़ा हूँ, इसलिए कण्ट्रोल नहीं हो पाया!”
“कोई बात नहीं,” माँ ने उस अवस्था में भी बड़ी कोमलता से कहा, “आप बुरा मत फ़ील करिए!”
सुनील मुस्कुराया, “आई लव यू मेरी दुल्हनिया! आई लव यू सो सो सो वेरी मच!”
उसकी बात पर माँ भी किसी तरह मुस्कुराईं, “आई नो! एंड आई लव यू टू!” और बोली, “अब जाने दीजिए मुझे!” कह कर वो सुनील की गोद से उठने लगीं।
सुनील ने उनको खड़े हो कर अपनी साँसें संयत करते हुए देखा, फिर कुछ सोच कर उसने कहा, “दुल्हनिया, ज़रा पीछे मुड़ना तो?”
सुनील किसी कुशल वादक की तरह माँ के तन और मन के सारे तार झनझना रहा था, और माँ उसकी हरकतों को रोक पाने में पूरी तरह से असमर्थ सिद्ध हो रही थीं। वो निर्देशानुसार फिर से पलट गईं। माँ के दोनों नग्न नितम्ब उसके सम्मुख हो गए! उसने हाथ से दबा कर उनके नितम्बों का निरीक्षण किया। एक नितम्ब की गहराई में एक छोटा सा लाल-भूरे रंग का तिल देख कर वो मुस्कुराया। उसकी उत्सुकता और भी अधिक बढ़ गई। उसने उनके दोनों नितम्बों को अपने हाथों से दबा कर थोड़ा फैलाया। तत्क्षण उनकी योनि के ही रंग का, सँकरा, और किरणों के जैसी सिलवटें लिए हुए गुदाद्वार उजागर हो गया। घबराहट में माँ ने उसको कस कर सिकोड़ लिया।
‘आह! कैसा कमाल का अंग है मेरी सुमन का! हर अंग!’
वर्षों से सुनील माँ के जिस रूप, जिस सौंदर्य की कल्पना करता रहा था आज उसके सामने वही रूप, वही सौंदर्य उजागर था! और माँ का हर अंग उसकी कल्पना से कई गुणा अधिक सुन्दर था! माँ उसकी कल्पना से कई गुणा अधिक सुन्दर थीं!
‘कैसी किस्मत भगवान्!’ उसने मन ही मन अपने ईष्ट को धन्यवाद किए, ‘बस आप हम पर ऐसे ही अपनी कृपादृष्टि बनाए रखना!’
उसने माँ के दोनों नितम्बों को बारी बारी चूमा और कहा, “दुल्हनिया मेरी, मैं तेरे साथ और भी बहुत कुछ करना चाहता हूँ... पर आज वो दिन नहीं है! लेकिन वायदा है कि जल्दी ही...”
सुनील ने कहा, और फिर माँ को वापस अपनी तरफ पलट कर उनके हर अंग को फिर से चूमने लगा। कुछ क्षणों बाद जब वो उनके पूरे शरीर को चूम चूम कर फिलहाल के लिए तृप्त हो गया तो बोला,
“आओ तुमको कपड़े पहना दूँ! नहीं तो अम्मा सोचेगी कि कमरे में क्या कर रहे हैं हम दोनों!” फिर कुछ सोच कर, “और कहीं अंदर आ गई, तो मैं मारा जाऊँगा! बोलेगी कि मेरी प्यारी दीदी को नंगी करता है! ये ले...!”
कह कर उसने घूँसा बनाया, और हवा में ही दो तीन मज़ाकिया पंच मारे।
उसकी बातों पर माँ को हंसी आ गई। आज सुख मिला उनको। उनका दिल इतना भर गया कि हल्का हो गया। भविष्य के कोमल सपनों में इंद्रधनुषी रंग भर गए। आज से उनका जीवन एक अलग ही मार्ग पर चल निकला था।
उधर सुनील अपनी निक्कर की जेब से रूमाल निकाल कर उनकी योनि पोंछने के बाद, वो माँ को कपड़े फिर से पहनने में मदद करने लगा।
उसने उनकी ब्रा तो कहीं फेंक दी थी, इसलिए फिलहाल उनको केवल ब्लाउज ही पहनाया। जब वो उनके ब्लाउज के बटन बंद कर रहा था तब वो माँ के स्तनों और छाती पर बने लव-बाइट्स को देख कर मुस्कुरा रहा था। माँ के सीने पर कम से कम चार-पाँच लव-बाइट्स थे, जो चीख चीख कर यह बता रहे थे कि अब वो सुनील की हैं। उधर सुनील द्वारा पेटीकोट और ब्लाउज पहनाया जाना माँ को उचित लगा। सुनील ही ने उनको निर्वस्त्र किया था, इसलिए सुनील को ही उनको वस्त्र पहनाना चाहिए। एक और विचार आया - जब वो अपनी माँ के सामने उनके साथ इतना सब कुछ कर सकता था, तो वो अकेले में क्या क्या करेगा! सुनील के साथ फिर से अकेले रहने का ख्याल आते ही माँ का दिल ज़ोर से धड़कने लगा।
साड़ी भी उतरी हुई थी। उसको पहनाना कोई आसान काम तो नहीं था। सुनील ने ज़मीन पर पड़ी साड़ी समेटने लगा, तो माँ को वहाँ से भाग लेने का मौका मिल गया। देर बहुत हो गई थी और काजल किसी भी वक़्त अंदर आ सकती थी। केवल पेटीकोट पहने बाहर जाना एक खतरनाक सी बात थी - काजल को अवश्य ही उन दोनों को ले कर शक़ हो जाएगा। लेकिन वो क्या करें! तीर अपने तरकश से कब का निकल चुका था।
आज के पूरे एपिसोड में माँ को पहली बार अपने कमरे से बाहर आने का मौका मिला था। यह मौका मिलते ही वो अपनी अस्त-व्यस्त अवस्था में ही, सुनील को कमरे में छोड़कर वहाँ से बाहर भाग गईं। बाहर जाने की जल्दबाज़ी और हड़बड़ी में उनको यह भी ध्यान नहीं रहा कि ब्लाउज पहनाते समय सुनील ने उसका एक बटन ऊपर नीचे कर दिया था, इसलिए ब्लाउज को देख कर बहुत अटपटा सा लग रहा था। कोई भी देखता तो समझ जाता कि माँ थोड़ी देर पहले निर्वस्त्र थीं, और उन्होंने बेहद हड़बड़ी में कपड़े पहने हैं।
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अब तो कहीं से भी किंतु परंतु की गुंजाइश ही नही रही। सुमन और सुनील ने उन दीवारों को तोड़ दिया जिसे प्रतिबंधित कहा जाता है। उन्होंने फाॅरप्ले सेक्स का आनंद प्राप्त कर लिया। वह अंतरंग पल मात्र कुछ ही लम्हों के लिए ही था पर जितना भी था उनके नए रिश्ते की बुनियाद खड़ा कर गया।
फाॅरप्ले सेक्सुअल लाइफ का अहम पार्ट माना गया है जहां प्रेमी अपने पार्टनर से यह दर्शाता है कि वो उसे दिल की गहराई से प्रेम करता है और उसे सेक्सुअली तृप्त करना चाहता है।
जहां तक मुझे लगता है अमर के तरफ से भी किसी तरह की बाधा नही आनी चाहिए। जिस माहौल मे पला बढ़ा और सेक्सुअली मैच्योर हुआ उस हिसाब से उसकी रजामंदी सहर्ष होनी चाहिए।
इस अपडेट मे जिस शायरी का प्रयोग किया आपने वह सच मे बहुत ही खूबसूरत था। शायरी लिखने के लिए उर्दू और शुद्ध हिंदी का ज्ञान होना अत्यंत ही आवश्यक है। और हमने यह कला आप के अंदर देखा ही है।
एक बार फिर से लाजवाब अपडेट भाई।
तो अब प्यार की छाप लग ही गई दोनो के तन और मन पर। आज सुमन ने सुनील को पूरे दिल से अपना लिया है और काजल भी खुश है इस सबसे, अब बस बात है अमर की, कि वो इस सब को कैसे देखता है क्या वो दकियानूसी सोच दिखायेगा या फिर अपनी मां की खुशियां स्वीकार करेगा।
सुनील ने भी आराम से पूरा समय ले कर सुमन को पूरा मौका दिया सोचने का, अपनी खूबियों से, प्रेम से, अपनी नटखट हरकतों से, अमर के साथ उसके व्यवासिक कार्यों में सूझबूझ से सुमन को अपने तरफ आकर्षित किया और आज सुमन का प्यार पा लिया। बहुत ही खूबसूरतप्रेम दृश्य और अपडेट avsji भाई।