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आप की कहानी मुझे आई एस जौहर साहब का एक डायलॉग याद दिला देता है। शागिर्द मूवी का डायलॉग था जिस मे जौहर साहब ने जॉय मुखर्जी को कहा था।
" मोहब्बत बच्चों का खेल नहीं है और ना ही जवानो की जागीर। "
इंसान की उम्र कितनी भी अधिक क्यों न हो जाए , सीने मे एक बच्चे का दिल धड़कता है। बादशाह अकबर हिंदुस्तान के शहंशाह थे। किसी की मजाल नहीं थी जो कोई उनसे नजर से नजर मिलाकर बात कर सके। लेकिन कभी कभार अपने महल मे वो भी बच्चों के साथ बच्चे बन जाया करते थे। एक चंचल और शरारती बच्चा।
सुमन को पुरा अधिकार है कि वो अपने भविष्य का निर्माण खुद करे। अपनी खुशियों की परवाह करे। अगर सुनील के सानिध्य मे वो खुद को सुरक्षित और आनन्द महसूस करती है तो उन्हे जरूर उसके साथ अपने बाकी जीवन का सफर तय करना चाहिए।
लेकिन इस के लिए अमर का समर्थन यदि प्राप्त हो जाए तो सबसे बेहतर है।
मंदिर मे जाकर पूजन करना और आशीर्वाद प्राप्त करना किसी भी नये कार्य के लिए अच्छा सगून होता है। सुनील का एकाग्रचित होकर ध्यान मग्न होना और फिर सुमन का चरण स्पर्श करना मुझे बहुत पसंद आया। प्रेम अपनी जगह पर है और सम्मान करना अपनी जगह।
राम कृष्ण परमहंस जी अपनी पत्नी मां शारदा को तो कभी कभी मां कहकर सम्बोधित कर दिया करते थे। अपनी पत्नी मे वो देवी का अक्स देख लेते थे।
वैसे सुमन और लतिका का संवाद काफी खुबसूरत लगा मुझे। मैच्योरिटी के लेवल पर बहुत जल्द ही पहुंचने वाली है। सबकुछ देख भी रही है और सबकुछ समझ भी रही है।
अब हालात यहां तक आ पहुंचे हैं कि सुमन की कामाग्नि तक भड़क चुकी है। सपने रंगीन होने लगे हैं।
बहुत ही लाजवाब अपडेट लिखा है आप ने भाई।
Outstanding & Amazing & brilliant .
और जगमग जगमग।
Pyaar hi pyaar chall ra hai, dulhaniya ab sach mein dulhaniya banegi. Les gooooooooooooooooooooooooooo
सुमन का बच्चो के पालन पोषण को लेकर अलग और बहुत ही अच्छा नजरिया है। शायद उसकी का नतीजा है की घर के बच्चे सेहत, पढ़ाई लिखाई, हर क्षेत्र में अव्वल है। साथ ही खान पान और मां के दूध को लेकर उनकी सोच भी बहुत अनूठी है और शायद उसी का फायदा बच्चो को मिला भी है और मिल भी रहा है।अंतराल - पहला प्यार - Update #17
खैर, उस समय हुआ दरअसल यह था कि अपनी अम्मा के सामने, सुनील अपने लिंग के स्तम्भन पर नियंत्रण रखे हुए था। उसको पहले से ही संदेह था कि उसकी अम्मा ऐसा कुछ कर सकती हैं। और ऐसा कुछ होने से शर्मिंदगी की सम्भावना बढ़ जाती है। प्रेमिका के सामने लिंग का स्तम्भन उचित है, लेकिन माँ के सामने नहीं! इसलिए उसने अपने इरेक्शन (स्तम्भन) को नियंत्रित करने के लिए अपने दिमाग को कंडीशन किया हुआ था। लेकिन उसको अपना ढोंग बरक़रार बनाए रखना था। लिहाज़ा, उसने काजल की हरकत पर अपना विरोध दर्ज कराया,
“अम्मा…” वह फुसफुसाया, “क्या कर रही हो?”
“अगर तुम एक छोटे बच्चे की तरह ऐसे दूध पिलाने की ज़िद करोगे, तो मैं भी तो तुम्हारे साथ एक छोटे बच्चे जैसा ही बर्ताव करूँगी। ठीक है न?”
काजल ने प्यार से सुनील के पुरुषांग को अपनी हथेली से ढँकते हुए कहा। काजल की बात सुन कर माँ के होंठों पर एक स्निग्ध सी मुस्कान आ गई - उनको मेरी बचपन की बातें याद आ गईं।
‘कुछ भी अंतर नहीं है दोनों के व्यवहार में!’ माँ ने मन ही मन सोचा - और यह एक स्तुतिवाद (कॉम्पलिमेंट) था।
उधर काजल की बात पर सुनील ने सहमति में अपना सर हिलाया,
“अम्मा… तुम्हारे सामने तो मैं कभी भी नंगा हो सकता हूँ! तुम तो मेरी अम्मा हो ना। तुमसे क्या शरमाना?”
“हा हा! ज़रा इसकी बातें तो सुनो... हाँ ठीक है, मेरे बच्चे मेरे सामने हमेशा नंगे रह सकते हैं! लेकिन बुद्धू, अब तुम्हारी उम्र मेरे सामने नहीं, बल्कि अपनी बीवी के सामने नंगा होने की है!” काजल ने उसके लिंग को सहलाते हुए उसको चिढ़ाया।
काजल की बात पर माँ सहम गईं। एक अज्ञात सी आशंका से उनका मन डर गया।
“अम्मा, बीवी से याद आया,” सुनील ने मासूमियत और बच्चे जैसी जिज्ञासा का ढोंग जारी रखते हुए पूछा, “आमारो नुनु की औरो बाड़बे?”
“अच्छा! बीवी से याद आई ये बात?” काजल ने हँसते हुए कहा, “क्या रे, कितना बड़ा नुनु चाहिए तुझे अपनी होने वाली बीवी के लिए?”
माँ इस बात पास सँकुचा गईं! यह वार्तालाप अब उनके लिए असहज हो रहा था।
“कितना बड़ा क्या? जितने से बीवी खुश हो जाए, उतना काफ़ी है!”
“हा हा हा! सही जवाब! लाओ देखूँ तो,” काजल ने कहा, और टटोल टटोल कर जैसे वो उसके लिंग का माप लेने लगी और फिर संतुष्ट हो कर, मुस्कुराते हुए बोली, “तुम्हारा नुनु अच्छे आकार का है,” यह बात सच भी थी, “है न दीदी?”
“मुझे…” माँ ने कुछ कहना शुरू किया, लेकिन काजल ने उनको बीच में ही रोक दिया।
“ये देखो न?” कह कर काजल ने उसके लिंग से अपना हाथ हटा लिया।
भले ही सुनील अपने लिंग के स्तम्भन को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा था, फिर भी वह एक बहुत ही स्वस्थ युवक था, और यौन ऊर्जा से लबरेज़ था। इस कारण से काजल की हथेली के नीचे, उसके लिंग में अपने आप ही स्तम्भन होता जा रहा था। कुछ ही देर में उसके लिंग में कुछ और स्तम्भन हो गया। लेकिन अपनी इस अपूर्ण-स्तम्भित अवस्था में भी, उसका लिंग एक स्वस्थ, सामान्य आकार का दिखाई दे रहा था। उस समय उसके लिंग का आकार डैड के लिंग (और काजल के पूर्व पति के लिंग) के मुकाबले थोड़ा बड़ा दिख रहा था - कोई उन्नीस-बाईस का अंतर! और इस प्रदर्शित अंतर से माँ सुनील की यौवन-शक्ति से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकीं। मतलब उनको कोई धोखा नहीं हुआ था कल!
अगर यह उनके अंदर जाएगा तो एक नया सा अनुभव तो होगा! माँ ने सोचा। भविष्य को ले कर उनके दिल में फिर से घबराहट होने लगी। जो चीज़ नई होती है, या जिस चीज़ की आदत नहीं होती, उसको ले कर घबराहट होना लाज़मी ही है।
“जब तुम इस उल्लू को नहलाती थी, तब इतना थोड़े ही था!” काजल बोल रही थी, “तुम्ही ने इसको बढ़िया खिला पिला कर हट्टा कट्टा कर दिया है! है न अच्छा नुनु इसका?”
सुनील के लिंग आकार अच्छा तो था! काजल सही कह रही थी - खिलाया पिलाया तो माँ ने था ही, लेकिन दीर्घकालीन स्तनपान तो करवाया काजल ने था! उसका भी तो कोई प्रभाव पड़ा ही होगा न?
काजल के प्रश्न के उत्तर में माँ ने फीकी मुस्कान दी। उनसे कुछ बोलते न बन पड़ा। क्या ही बोलें वो?
“नहलाने से याद आया - इस उल्लू को तुम नहला दोगी दीदी?”
“म... म... मैं?” माँ क्यों नहलाए उसके बेटे को?
“हाँ न! क्यों, क्या हो गया? दोनों साथ ही नहा लिया करो!” काजल ने बड़े तेज़ी से एक पहेलीदार बात बोली, “दोनों में कुछ छिपा हुआ थोड़े न चाहिए! वैसे भी, आज कल पानी सप्लाई में दिक्कत हो रही है!”
अजीब सी बात कही थी काजल ने, लेकिन माँ या सुनील उसके बारे में कुछ सोच पाते कि अचानक ही वो बात बदल कर बोली, “तेरा नुनु भी अच्छा है, और बिची भी। अच्छा, साफ़ सुथरा, और घर में बना हुआ खाना खाया करो, और इसकी धीरे धीरे तेल मालिश किया करो... इसका आकार कुछ और बढ़ सकता है।”
काजल की बात सुनकर माँ मुस्कुरा दी। हम सभी जानते हैं कि यह सब झूठ बाते हैं। तेल मालिश करने से लिंग का आकार नहीं बढ़ता है। कॉस्मेटिक सर्जरी या फिर पीनाईल इम्प्लांट से ही उसका आकार बदलता है। जैसे ही माँ मुस्कुराई, उनकी नज़र काजल से मिली। माँ समझ गईं कि काजल ने उन्हें सुनील के लिंग को देखते हुए देख लिया है। उनको झिझक हुई और शर्म भी महसूस हुई।
काजल ने मुस्कुराते हुए माँ का एक हाथ पकड़ा, और सुनील के लिंग पर रख दिया, “तुम भी क्या संकोच कर रही हो - देखो न ठीक से!”
माँ का हाथ लगना था कि सुनील के लिंग में तेजी से बदलाव आने लगा। बस दो ही क्षणों में उसकी एक - डेढ़ सेंटीमीटर और लम्बाई बढ़ गई। माँ ने संकोच में आ कर अपना हाथ वापस खींच लिया।
उधर काजल ने माँ को देखते हुए अर्थपूर्वक तरीके से कहा, “वैसे अपनी बीवी को खुश करने के लिए अच्छा नुनु है तुम्हारा। है न दीदी?”
काजल की बात सुनकर माँ का चेहरा शर्म से लाल हो गया।
‘ये काजल भी न! ऐसी बातें करेगी तो मेरी बेचैनी तो लाज़मी ही है!’
दूसरी ओर, सुनील यह सुनकर खुश होने का नाटक करने लगा, और और जोर-जोर से काजल के चूचक चूसने लगा। लेकिन फिर उसने अचानक ही उसे एक थोड़ा ज़ोर से काट लिया।
उधर काजल भी अपने पुत्र की मर्दानगी को देख कर संतुष्ट और गौरवान्वित हुए बिना न रह सकी। कोई भी माँ यही चाहेगी कि उसकी संतान पूर्ण-रूपेण स्वस्थ हो, बलवान हो, सफल हो, सुन्दर हो, और बुद्धिमान हो! सुनील वो सब कुछ था - सुन्दर, स्वस्थ, बलवान, और बुद्धिमान युवक! उस रात वो ठीक से देख नहीं सकी, लेकिन अब वो समझ गई थी कि उसका बेटा ‘उस’ विभाग में भी संपन्न था!
“सीईईईई... मर गई रे! ठीक से पी!”
सुनील को लगा कि शायद काजल को कष्ट हुआ, तो वो फिर से तमीज से स्तनपान करने लगा।
“और नुनु का आकार ही सब कुछ नहीं होता। उसका ढंग से इस्तेमाल करना भी आना चाहिए!” काजल उसको समझाते हुए बोली, “बीवी को नुनु के साइज़ से नहीं, प्यार से जीता जाता है! वैसे, अपनी बीवी के साथ जो कुछ करना है, वो तुझे आता भी है या नहीं?”
आश्चर्य की बात है न - यह बातें काजल सुनील से पहले भी कर चुकी थी, तो पुनः दोहराने की आवश्यकता क्यों आन पड़ी? माँ को न जाने क्यों लग रहा था कि इस पूरे वार्तालाप के केंद्र में वो ही हैं! लेकिन ऐसा क्यों होगा? अवश्य ही उनको धोखा हुआ है।
“क्या अम्मा! कहाँ की बात कहाँ ले जा रही हो!” सुनील ने कहा।
वो शांति से कुछ देर और पीता रहा। सभी कुछ पलों के लिए चुप हो गए। उसी बीच शायद दूध पीते समय सुनील ने फिर से उसको काट लिया, या ज़ोर से दबा दिया।
“आअह्ह्ह! मईया रे! मार डाला! ठीक से पीना हो तो पियो, नहीं तो जा कर किसी और का पियो।” काजल ने मजाक में उसे फटकार लगाई।
काजल के स्तनों का दूध भी अब ख़तम हो गया था, शायद इसलिए भी उसको अब दर्द होने लगा था।
“और किसका पियूँ अम्मा?” सुनील ने भ्रमित होने का नाटक करते हुए कहा।
“यहाँ पर और कौन है? दीदी का पी जा कर! और किसका?” काजल ने माँ की ओर सिर हिलाते हुए कहा, “आह! अब बस कर… दर्द होने लगा है, और खाली भी हो गया! छोड़ दे मुझे…”
सुनील ने अनिच्छा से काजल के स्तनों को छोड़ने का नाटक किया, और उसकी गोद से उठ कर माँ की ओर मुड़ गया। माँ इस अचानक हुए घटनाक्रम से अचकचा सी गईं।
‘यह अचानक क्या हुआ!’
जैसे ही सुनील माँ के ब्लाउज का बटन खोलने के लिए उनके पास पहुँचा, उसने माँ को एक शरारती सी मुस्कान दी और आँख मारी।
तब कहीं जा कर माँ को सुनील की कुटिल योजना समझ में आई! अब उनको साफ़ समझ आ रहा था कि वो शुरू से ही काजल के बजाय उनके स्तनों को देखना, चूमना और चूसना चाहता था! पिछले कुछ दिनों में सुनील बार बार उनके स्तनों को अनावृत करने की चेष्टा कर रहा था - और माँ बार बार उसकी इन चेष्टाओं का विरोध कर रही थीं! इसलिए अवश्य ही उसने कोई योजना तो बनाई हुई थी। काजल को स्तनपान कराने के लिए कहना उस योजना में सिर्फ एक चाल थी। वो जानता था कि कभी न कभी उसकी अम्मा, सुमन का स्तन पीने को बोल ही देगी! और वही हुआ!
सुनील अपनी योजना में सफल रहा। वो भी अपनी माँ के सामने बैठे बैठे - अपनी माँ के अनुमोदन से! कितना दुःसाहसी है यह लड़का! माँ वैसे तो बाहर किसी के सामने यह बात स्वीकार नहीं करेंगी, लेकिन अंदर ही अंदर वो सुनील के (दुः)साहस से प्रसन्न थीं और प्रभावित भी!
माँ के सीने से उनका आँचल हटा कर सुनील उनके ब्लाउज के बटन खोलने का उपक्रम करने लगा। उसकी हरकत पर उनके दिल में अचानक ही धमक होने लगी, और उनकी योनि में जानी पहचानी झुरझुरी होने लगी। लेकिन,
“नहीं नहीं। मैं कैसे…” माँ ने कमज़ोर विरोध किया।
लेकिन काजल सुनील के बचाव में आई।
“दीदी,” काजल ने सुनील की ओर से याचना करते हुए कहा, “सुनील से क्या शरमा रही हो! वो तो तुम्हारा ही है।”
‘तुम्हारा ही है?’
माँ को समझ नहीं आया कि काजल की इस बात का क्या मतलब है, या वो काजल की इस बात का क्या मतलब निकाले! वो इस बात का ठीक से विश्लेषण कर पातीं, उसके पहले ही सुनील एक एक कर के उनकी ब्लाउज के बटन खोलते जा रहा था। इस घटनाक्रम से उनका दिमाग कुछ ठीक से सोच नहीं पा रहा था।
“और तुम इतना झिझक क्यों रही हो... तुमने मुझे भी अपने दूधू पीने दिया है...” काजल कह रही थी, “अब मैं तुमसे रिक्वेस्ट करती हूँ कि मेरे बेटे को भी अपना प्रेम और आशीर्वाद दे दो…”
माँ ने अपने होंठ काट लिए।
अब वो काजल को कैसे समझाएँ कि उसका बेटा केवल उनके स्तन ही पीना नहीं चाहता - बल्कि वो उनके साथ और भी बहुत कुछ करना चाहता है। सुनील की उनके भविष्य को लेकर उस ‘भव्य योजना’ में यह काम तो कुछ भी नहीं है! माँ काजल को बताना चाहती थीं कि सुनील उनके साथ वैवाहिक बंधन में बंधना चाहता था! वो उनका ‘प्रेम और आशीर्वाद’ नहीं चाहता है - उसमें तो मातृत्व वाली भावना का समावेश होता है। वो उनके साथ प्रेम सम्बन्ध बनाना चाहता है - प्रेम सम्बन्ध - जैसा एक स्त्री और एक पुरुष के बीच बनता है; प्रेम-सम्बन्ध, जिससे वो स्त्री, उस पुरुष के बच्चों से गर्भवती होती है, और उसके बच्चे पैदा करती है! सुनील वही सम्बन्ध चाहता है उनसे! वो उनका पति बनना चाहता है! वो उनका स्वामी बनना चाहता है...!
स्वामी! हाँ, माँ के संस्कार में स्त्री के जीवन में पति का यही स्थान होता है। हमारा समाज अवश्य ही बदल गया है, लेकिन माँ के संस्कार नहीं। डैड का स्थान माँ के जीवन में हमेशा उनके स्वामी वाला ही रहा। माँ का पालन-पोषण बहुत ही पारंपरिक तरीके से हुआ था - कूट कूट कर पारम्परिक दृष्टिकोण ही था उनके अंदर परिवार की व्यवस्था को ले कर। उनकी शादी बहुत ही कम उम्र में हुई थी... किसी भी विषय पर कोई मजबूत राय बनाने से पहले ही उनकी शादी हो चुकी थी। उनके संस्कार में, पति का दर्जा पत्नी से श्रेष्ठ है... पत्नी से ऊपर है। पति, पत्नी का देवता है! पतिदेव है। इसलिए पत्नी को अपने पति की बातें माननी चाहिए... उसे उसका सम्मान करना चाहिए। यही सब माँ के संस्कार थे! यही सब उन्होंने सीखा था।
माँ, डैड से कोई आठ साल छोटी भी थीं, इसलिए इन संस्कारों को जीने में, उनका निर्वहन करने में उनको कभी कोई झिझक नहीं महसूस हुई। इसलिए उन्होंने पूरे समर्पण के साथ जीवन भर डैड के साथ व्यवहार किया था। वो डैड के पैर भी छूती थीं - यह एक ऐसा कार्य है जो इसी स्थितिक्रम पर आधारित था। इस विचार से माँ के मष्तिष्क में एक और विचार कौंधा - इसका मतलब, अगर सुनील उनका पति बनता है, तो उन्हें उसके पैर छूने होंगे! उसके सामने नग्न होना पड़ेगा! उसके साथ सम्भोग करना पड़ेगा!
न जाने क्यों यह सब सोच कर उनको दिल डूबने जैसा एहसास हुआ! कुछ गीला गीला सा! जैसे कि वो नई नवेली दुल्हन बनने वाली हों! ओह, यह सब कुछ कितना गड्ड मड्ड था!
“लेकिन…” माँ ने एक कमजोर विरोध किया - उधर सुनील जल्दी जल्दी उनके ब्लाउज के बटन खोल रहा था - , “... दूध नहीं है।”
यह एक बहुत ही कमजोर विरोध था और सुनील को - जो कुछ भी वो करने जा रहा था, वो करने से - रोकने में बिलकुल सक्षम नहीं था। उनका विरोध केवल नाम मात्र का ही था। उस रात भी सुनील ने उनके स्तनों को मौखिक प्रेम तो दिया ही था, हाँलाकि तब उसने अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखा हुआ था। लेकिन आज वो नियंत्रण पूरी तरह से लुप्त था! आज वो पूरी बेशर्मी से उनके ब्लाउज़ के बटन खोल रहा था - उनके स्तनों को पीने के लिए - उनको प्रेम करने के लिए! वो भी अपनी अम्मा के सामने! ब्लाउज के सारे बटन खुलने पर सुनील ने देखा कि माँ ने अंदर ब्रा पहनी हुई है। वो देख कर सुनील अर्थपूर्वक मुस्कुराया - जैसे उसको कोई राज़ की बात मालूम हो गई हो। कल माँ ने ब्रा नहीं पहनी हुई थी। उसके लिए तो यह और भी अच्छा हुआ। वो और भी जोश में आ कर उनका ब्लाउज उतारने लगा - अम्मा (काजल) भी तो उसको दूध पिलाने से पहले अपने स्तनों को पूरी तरह अनावृत कर दी थीं। अगर माँ ने ब्रा न पहनी होती, तो केवल ब्लाउज के बटन ही खोलने का बहाना रहता। इसलिए सुनील के तो वारे न्यारे हो गए - अब उसके पास माँ को उनकी कमर से ऊपर नग्न करने का बहाना हो गया!
उधर माँ सोच रही थीं कि सुनील अगर इसी गति से आगे बढ़ता रहा, तो वो उसका मुकाबला कैसे कर पाएँगी!
सुनील ने काजल की नज़रों से छुपकर माँ को फिर से आँख मारी, मानो यह कहना चाहता हो कि वो माँ की ‘स्तनों में दूध न होने वाली’ स्थिति का इंतजाम जल्दी ही कर देगा। लेकिन उनका ब्लाउज उतार कर, प्रत्यक्ष में उसने कुछ और ही कहा,
“ऐसे कैसे नहीं आता? अम्मा को तो आता है अभी भी! और पुचुकी भी तो आपका दूध पीती रहती है हमेशा! है न अम्मा?”
उसने कहा, और उनकी ब्रा का हुक खोलने लगा।
“हा हा हा! हाँ न! पीती तो रहती है।” काजल इस बात पर हँसने लगी, “अब बोलो दीदी?”
माँ सुनील को तो नहीं रोक पाईं, लेकिन उन्होंने काजल को बड़ी बेबसी से देखा, जैसे बिना कुछ कहे ही वो काजल से शिकायत कह रही हों, कि ‘किस मुसीबत में मुझे फँसा रही हो’! लेकिन काजल ने हथेली दिखा कर माँ को ‘आराम से रहने’ का इशारा किया, और सुनील को समझाते हुए कहा,
“अरे मेरे मूरख बेटे, थोड़ा बहुत बायोलॉजी का भी ज्ञान रखा कर! दीदी को अब दूध नहीं आता! उनको बच्चा जने अट्ठाइस साल हो गए हैं!” काजल ने सुनील को समझाया, “इतने सालों तक दूध नहीं बनता किसी भी माँ को! पुचुकि को इनका दूधू मुँह में लिए रखने में आनंद आता है, इसलिए वो ऐसा करती है।”
“ओह!” सुनील ने कहा और पूरे उत्साह के साथ माँ के स्तनों को नग्न करने में तत्पर रहा।
“हाँ, समझ गया न?” काजल स्पष्टीकरण देते हुए बोली, “लेकिन जब ये फिर से माँ बनेगी, तो फिर से दूध आने लगेगा!”
“ओह!” सुनील ने तब तक माँ की ब्रा भी उतार दी, और अब उनके सुन्दर, लगभग ठोस, और सुडौल स्तन दिखाई देने लगे, “फिर तो आपको जल्दी से एक और बच्चा कर लेना चाहिए!”
सुनील को ज्ञात था कि माँ के स्तन उनके चेहरे और अन्य अंगों की भाँति सुन्दर हैं, लेकिन उनकी नग्न सुंदरता का ऐसा मूर्त अवलोकन आज उसने पहली बार किया। माँ के चेहरे जैसा ही भोलापन और लावण्य उनके स्तनों में भी था। पाठक पूछेंगे कि भला स्तनों में भी भोलापन होता है क्या? उसका उत्तर यह है कि कुछ स्तन देखने में बड़े कामुक से लगते हैं - कँटीले स्तन! उन पर हथेली रख दो तो मानों हथेली में चुभ जाएँ, ऐसे! माँ के स्तन वैसे नहीं थे। उनके आकार में एक सौम्यता थी - लगभग पूर्ण गोल आकार के गोलार्द्ध, थोड़ा उभार लिए हुए वृत्ताकार एरोला, और उन पर उन्नत छोटी ऊँगली की अगली पोरी जितने लम्बे चूचक! निष्कलंक त्वचा - बस, धूप में गले और सीने का जो हिस्सा खुला हुआ था, वहाँ का रंग कुछ गहरा हो गया था! स्तन शरीर के अन्य हिस्से के मुकाबले गोर थे, और गहरे लाल भूरे रंग के चूचक और एरोला। प्रकृति की सुन्दर कृतियाँ!
“हाँ न! लेकिन बच्चा करने के लिए मियाँ बीवी वाला खेल खेलना आना चाहिए! इसीलिए तो तुझे पूछा कि कुछ आता भी है या नहीं!” काजल ने फिर शरारत भरी, लच्छेदार बात कही।
माँ का दिमाग अचरज भरा था, लेकिन फिर भी उनको लग रहा था कि काजल की बात सामान्य नहीं है। वो कुछ कह पातीं, या फिर सुनील कुछ कह पाता, कि काजल ने आगे जोड़ा, “दीदी, तुम इनको छुपाया मत करो! घर में सभी बच्चे बिना कपड़ों के रहते ही हैं! तुम भी उनके जैसे ही रहा करो न!”
घर के ‘सभी बच्चों’ में सुमन कब से शामिल हो गई? यह बात सुनील ने नोटिस करी। लेकिन माँ के दिमाग में ये विचार न आया। वो अलग ही तरह के झंझावात में फँसी हुई थीं।
“हाँ!” सुनील ने ललचाते हुए कहा, “सच में! बहुत अच्छा लगेगा!”
“हा हा हा! हाँ हाँ! बड़ा आया अच्छा लगवाने वाला! तू भी नंगा रहा कर फिर!”
“रहा करूँगा अम्मा!”
“हा हा हा हा! सच में? मेरे मन में न जाने क्यों, हमेशा आता है कि मेरे सारे बच्चे नंगू नंगू ही रहें मेरे आस पास!” काजल कुछ सोचती हुई बोली, “मेरी मिष्टी, मेरी पुचुकी, मेरा सुनील, और उसकी बहू! सभी!”
“अम्मा, फिर तो मैं अपनी बीवी से कहूँगा कि घर में, अम्मा के सामने नंगू ही रहे!” सुनील ने माँ की ओर देखते हुए कहा।
“हा हा हा हा! हाँ बेटा - तू उसको ज़रूर समझाना! और हाँ - अब तो तू ले ही आ जल्दी से मेरी बहू को! मैं पिछले चार साल से यही सोच रही हूँ कि मुझे एक प्यारी सी, सुन्दर सी बहू मिल जाए मुझे, तो समझो गंगा नहाऊँ!”
“क्या अम्मा! गंगा तो जब कहो तब तुम्हे नहला लाऊँ!”
“वैसे नहीं बेटा! हर माँ की कोई इच्छा होती है, कोई मान्यता होती है! तू वो पूरी कर दे जल्दी से!”
“हाँ, अम्मा! बहुत जल्दी! सोच रहा हूँ, शादी कर के ही जॉब ज्वाइन करूँ!”
“सच में? बेटा अगर तू ये कर दे, तो सच में बड़ा आनंद आएगा!” काजल आनंदित होते हुए बोली, “दस दिन बाद पुचुकी का जन्मदिन है! तेरी शादी भी उसी के आस पास हो सकती है क्या?”
“इतनी जल्दी?” सुनील चौंकते हुए बोला।
“अरे, तूने प्रोपोज़ तो कर दिया है! वो मान गई है, तो फिर बिना वजह देर क्यों करना?”
“अम्मा, आपकी बात ठीक है! और पुचुकी भी बहुत बहुत खुश होगी अगर ऐसा हो गया तो! लेकिन इतनी जल्दी! कर भी सकते हैं! लेकिन क्या पता?”
“देख, ऐसे शुभ कामों में देर नहीं करते। और अगस्त में ही तेरी जोइनिंग है? तेरी वाली मान जाए तो मुझे बता दे। बाकी काम मुझ पर छोड़ दे! धूमधाम से करूँगी तेरी शादी! उसमें कोई कमी नहीं आएगी!”
सुनील मुस्कुराया; माँ नर्वस हो कर चुप ही रह गईं।
काजल ने एक बार माँ को देखा, फिर सुनील को जैसे कोई राज़ बताने वाले अंदाज़ में कहा, “जानता है सुनील, दीदी के दूधू अभी भी पहले जितने ही सुंदर हैं... वैसे ही जैसे मैंने पहली बार देखा था!” काजल ने माँ की तारीफ करी, “वैसे ही, छोटे छोटे, गोल गोल, और फर्म!”
काजल अक्सर माँ से कहती थी कि ‘दीदी, तुम्हारी जवानी में कोई कमी नहीं आई है! तुम बहुत अधिक, तो सत्ताईस अट्ठाइस की ही लगती हो, बस - और वो भी तब जब बिलकुल भी मेकअप नहीं लगाती हो! बस हल्का सा मेकअप कर लिया करो कभी कभी!’
यह बात सच भी थी, लेकिन माँ हमेशा उसकी बात को या तो मज़ाक में उड़ा देती थीं, या फिर अनसुना कर देती थीं। सच में, कई बार कुछ लोगों को मालूम ही नहीं होता कि वो कितने सुन्दर लगते हैं! माँ पर प्रकृति की विशेष दया हुई लगती है। उन पर उम्र का कोई प्रभाव दिखता ही नहीं था! हमारी तरफ़ ऐसे लोगों के लिए एक शब्द है - उम्रचोर! यह प्रभाव अक्सर चीनी और जापानी मूल की स्त्रियों में देखने को मिलता है। आप इन मूल की स्त्रियों को देख कर उनकी उम्र का अनुमान नहीं लगा सकते। उनकी अधिकाँश स्त्रियाँ अपनी बीस-पच्चीस की उम्र से ले कर पैंतालीस-पचास तक की उम्र तक एक जैसी ही लगती हैं। जैसे दो दशकों का कोई प्रभाव ही न हुआ हो उन पर! और अगर उनकी दिनचर्या को देखें, तो पाएँगे कि उनका खान-पान और दिनचर्या बड़ा संयमित होता है! हो सकता है जीन (अनुवांशिकी) का भी कोई प्रभाव हो, लेकिन दिनचर्या और अनुशासित जीवन का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है! खैर!
सुनील ने माँ के दोनों स्तनों को अपने हाथों में ले कर थोड़ा सा दबाया और बोला, “हाँ अम्मा! सच कह रही हो! बिलकुल नारंगियों जैसे हैं! छोटे छोटे! गोल गोल, और रसीले!”
सुनील द्वारा अपने स्तनों की इस उपमा को सुन कर माँ चौंक गईं। डैड भी माँ के स्तनों को ‘नारंगियाँ’ कह कर बुलाते थे।
“हा हा हा! हाँ - नारंगियाँ तो हैं, लेकिन अभी इनमें रस नहीं है! इनमें रस भरने का इंतजाम कर दे, तब तो और सुन्दर हो जाएँगे!” काजल ने ठिठोली करी, “देखना फिर इनका रूप!”
‘क्या कहना चाहती थी काजल? रस भर जाएगा? मतलब दूध?’ माँ के मस्तिष्क में विचार कौंधा! ‘भला क्यों दूध भर जाएगा इनमें?’
सुनील क्या सोचता - उसने अपनी अम्मा की पूरी बात सुनी ही नहीं। वो सुनने से पहले ही सुनील माँ के एक चूचक को चूसने लग गया था। धीरे धीरे से! बड़े प्यार से! दुलारते हुए! चुभलाते हुए! चूमते हुए! बड़ी कामुकता से! कम चूसना, ज्यादा चाटना और जीभ से उन संवेदनशील अंगों पर गुदगुदी करना! यह कोई साधारण स्तनपान नहीं था जो एक पुत्र अपनी माँ से करता है... यह तो एक प्रेमी का चुंबन था! एक प्रेमी का चुम्बन, अपनी प्रेमिका के सबसे संवेदनशील अंगों में से एक पर! सुनील जिस स्तन को चूस नहीं रहा था, उसको अपने हाथ में ले कर बड़े प्रेम से दबा रहा था, और उससे खेल रहा था।
सुमन का बच्चो के पालन पोषण को लेकर अलग और बहुत ही अच्छा नजरिया है। शायद उसकी का नतीजा है की घर के बच्चे सेहत, पढ़ाई लिखाई, हर क्षेत्र में अव्वल है। साथ ही खान पान और मां के दूध को लेकर उनकी सोच भी बहुत अनूठी है और शायद उसी का फायदा बच्चो को मिला भी है और मिल भी रहा है।
सुनील की घर में उपस्तिथि से घर का पूरा माहौल ही बदल रही है और साथ ही बिजनेस में भी मदद से अब शायद वो अपने बिजनेस को ही ज्वाइन कर ली शायद और इससे सुमन को घर भी नही छोड़ना पड़ेगा तो ये भी एक और प्वाइंट उसके पक्ष में जाएगा। साथ ही घर के दो लोग होंगे बिजनेस को संभालने वाले।
सुनील हर मुमकिन कोशिश कर रहा है दिन ब दिन सुमन को अपने और उसके नए रिश्ते को मजबूत करने के लिए और आज की हरकत ने जहां सुमन में थोड़ी प्रेमिका वाली ईर्ष्या जगा दी वहीं बाद में एक नया एहसास भी भर दिया है। इसी रफ्तार से चलता रहा तो बहुत ही जल्द सुमन सुनील के प्यार और शादी के प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लेगी। बहुत ही शानदार अपडेट्स avsji भाई।
एक मां अपने बच्चे की हरकतों से ही उसकी इच्छा को जान लेती है और काजल ने भी सुनील की हरकतों से जान लिया था सुनील सुमन को ही चाहता है और उसने प्रपोज भी कर दिया है। साथ ही सुमन ने हा नही कहा तो ना भी नही कहा है और यही वजह है कि सुमन अभी भी सुनील से बात कर रही है और उसकी जिद भी मान रही है।अंतराल - पहला प्यार - Update #18
काजल की आँखों के सामने एक अभूतपूर्व सा घटनाक्रम चल रहा था!
वो अपने बेटे और ‘अपनी होने वाली बहू’ के बीच चल रहे इस सार्वजनिक, लेकिन अंतरंग खेल पर स्नेह और ममता से मुस्कुराने लगी!
‘चलो, कम से कम एक काम तो हुआ!’ उसने मन ही मन खुश होते हुए सोचा।
काजल के मन में सुनील की मंगेतर / प्रेमिका / ‘होने वाली’ को लेकर जो ‘बेहद किंचित सा’ संशय था, वो कुछ दिन पहले ही जाता रहा। सुनील की हरकतों से उसको कुछ दिनों पहले से ही समझ में आ गया था कि उसके पुत्र की क्या चेष्टा है; उसकी इच्छा क्या है! हमेशा दीदी (सुमन) के आस पास मंडराना, उसी के गुणों को अपनी ‘होने वाली’ पत्नी के गुण बताना, उसके सामने रहने पर उसका सुर (बोली) और हरकतें बदल जाना - यह सब एक ही बात का संकेत था। और वो बात यह थी कि वो सुमन से प्रेम करने लगा था और उसको अपनी प्रेमिका, अपनी पत्नी के रूप में देखने लगा था।
जब सुनील अपनी पढ़ाई कर के वापस आया, तो उसने अचानक ही अपना भारत-भ्रमण का प्रोग्राम कैंसिल कर दिया। काजल समझने लगी थी कि उस निर्णय के मूल में दीदी ही थीं। पहले तो वो उनको डिप्रेशन में देख कर बहुत दुःखी हुआ था, लेकिन फिर उसको लगा कि वो उनको डिप्रेशन के गड्ढे से बाहर निकाल सकता है। इस बारे में काजल और सुनील के बीच में कई सारी बातें हुई थीं। सुनील ने इशारों इशारों में बताया भी था कि वो दीदी को डिप्रेशन से निकलने का प्रयास करेगा। इतनी कम उम्र में अपने जीवनसाथी को खो देने का दुःख, दीदी जैसी कोमल ह्रदय वाली स्त्री से सहा नहीं जा रहा था। उसको एक सहारे की आवश्यकता तो थी। तैंतालीस साल कोई उम्र होती है भला विधवा होने की? आधी उम्र पड़ी हुई थी - उसको यूँ अकेले कैसे बिताया जा सकता है? न जाने कितनी ही अपूर्ण इच्छाएँ थीं दीदी की - और एक भी इच्छा ऐसी नहीं जो पूरी न हो सकें, या जो पूरी नहीं होनी चाहिए! उसने उम्र भर दूसरों के लिए सब कुछ, यथासंभव किया; और अपनी परवाह तक न की! लेकिन जब अपनी बारी आई, तो यूँ अकेली हो गई! इसलिए काजल ने सुनील को प्रोत्साहित किया कि वो दीदी को जैसे भी हो सके, खुश रखे! काजल दीदी के अंदर होते हुए सकारात्मक बदलावों को देख कर बहुत खुश भी थी।
लेकिन फिर उसको बात समझ में आई! कुछ दिनों पहले ही काजल को समझ में आया कि सुनील आखिर चाहता क्या है!
पहले तो वो समझ नहीं पाई कि अपने बेटे की हसरत और चाहत पर वो किस तरह की प्रतिक्रिया दे। सुमन, उसके बेटे से बाइस साल बड़ी थी। यह एक बड़ा अंतर होता है। बहुत बड़ा! सोच कर भी अजीब सा लगता है न, अगर आपकी होने वाली बहू, उम्र में, आपके बेटे से इतनी बड़ी हो - और तो और, आपसे भी बड़ी हो! एक और अजीब बात यह भी थी कि वो खुद भी सुमन के बेटे के साथ शारीरिक सम्बन्ध में थी, और अक्सर उसके सुमन की बहू बनने की बातें होतीं। लेकिन इस शुरुवाती झिझक के बाद, जब काजल ने थोड़ा दिमाग खोल कर सोचा, तो उसको लगा कि सुनील और सुमन की जोड़ी तो वाकई बहुत ही बढ़िया जोड़ी बनेगी!
सबसे पहली बात तो यह थी कि दोनों साथ में बड़े सुन्दर भी लगते थे - जैसे एक दूजे के लिए ही बने हों! काजल अपनी बहू के लिए काजल भी ‘सुमन जैसी’ ही मधुर व्यवहार वाली, संस्कारी, धार्मिक, पढ़ी-लिखी, सर्वगुणी, और रूपवती लड़की चाहती थी! उसके खुद के मन में अपनी आदर्श बहू का जो रूप था, वो सुमन से ही मिलता जुलता था। अपनी बेटी में सुमन के ही कई सारे सकारात्मक गुण देख कर काजल उसकी पूरी तरह से कायल हो गई थी। सुमन जैसी ही होनी चाहिए मेरी बहू! और यहाँ सुमन जैसी किसी लड़की के बजाय, खुद सुमन ही उसकी झोली में आती हुई दिख रही थी! कहते हैं न, कि जोड़ियाँ वहाँ ऊपर, स्वर्ग में बनती हैं! तो शायद यह जोड़ी भी वहीं बनाई गई हो! उम्र का अंतर तो है, और उन दोनों के सम्बन्ध में केवल वही एक नकारात्मक बात है! और कुछ भी नहीं! लेकिन एक दो बच्चे तो हो ही सकते हैं दोनों के!
और दोनों के सम्बन्ध में सबसे अच्छी बात यह थी कि दोनों ही पक्की सहेलियाँ थीं - बिलकुल बहनों जैसी! बहनों से भी अधिक सगी। एक दूसरे से बहुत करीब! और कोई लड़की हो तो परिवार टूटने का डर रहे! लेकिन सुमन के साथ यह होना संभव ही नहीं था! परिवार टूटने का कोई डर ही नहीं था। उसकी बहू के रूप में सुमन बिलकुल परफेक्ट थी!
बस एक ही प्रश्न था, जो काजल को सता रहा था - और वो था उन दोनों के होने वाले बच्चों को ले कर! सुनील को बच्चे बहुत पसंद थे - कैसे वो पुचुकी और मिष्टी पर अपना प्रेम लुटाता था वो काजल से छुपा हुआ नहीं था! और दोनों बच्चे भी उसके आगे पीछे ही लगे रहते थे। काजल को यह भी मालूम था कि एक बड़े लम्बे समय से सुमन भी अपना कम से कम एक और बच्चा - अगर संभव हो तो एक लड़की - जनना चाहती थी! खुद काजल भी चाहती थी कि उसका अपना परिवार भरा पूरा हो - मतलब सुनील और पुचुकी दोनों के ही अपने अपने दो दो बच्चे तो हों ही! पुचुकी का तो खैर अभी समय था, लेकिन सुनील का विवाह सन्निकट लग रहा था। और उसके बच्चे तभी सम्भव थे, जब उसकी पत्नी उसके बच्चे जन सके! काजल को यकीन था कि सुमन अभी भी जननक्षम है - उन दोनों को ही नियत समय पर, और सामान्य समय तक पीरियड्स हो रहे थे। दोनों ही कई बार एक दूसरे से सैनिटरी नैपकिन का आदान प्रदान करती थीं। मतलब, सुनील के बच्चों को जनने की क्षमता सुमन में थी। लेकिन प्रकृति को परास्त करना असंभव कार्य है। अभी दो तीन साल तो ठीक है। लेकिन अगर दोनों के विवाह में देर होती है - जैसे अगर दो तीन साल से अधिक लग जाते हैं - तो संभव है कि उनके बच्चे होने में दिक्कत हो! लेकिन अगर यह विवाह जल्दी से जल्दी हो जाए, तो कोई परेशानी नहीं। बुरी से बुरी हालत में भी कम से कम एक बच्चा तो हो ही जाएगा उन दोनों को! इसीलिए काजल सुनील पर ज़ोर दे रही थी, कि वो जल्दी से अपनी ‘होने वाली’ से शादी कर ले!
इसीलिए वो पिछले कुछ दिनों से उन दोनों को अकेले में कुछ समय बिताने का अवसर देती रहती थी। लेकिन फिर भी उसके मन में थोड़ा बहुत संशय तो था ही। उसका सुनील इतनी हिम्मत कर सके, कि सुमन से मोहब्बत कर बैठे - यह बात मान लेना थोड़ी मुश्किल तो थी! लेकिन जब सुनील ने कहा कि उसने अपनी होने वाली को प्रोपोज़ कर दिया है, तब काजल का संशय दूर हो गया। वो तुरंत समझ गई कि उसकी ‘होने वाली’ बहू, सुमन ही है! ये लड़का उस पूरे दिन भर घर से बाहर कहीं गया नहीं, तो फिर उसने और किसको प्रोपोज़ कर दिया?
अभी सुनील को स्तनपान कराते समय काजल के दिमाग में एक शैतानी भरा ख़याल आया कि क्यों न सुमन को भी इस खेल में शामिल कर लिया जाए! उसने अभी सुनील को सुमन का स्तनपान करने के लिए केवल इसलिए उकसाया, जिससे वो अपनी होने वाली पत्नी की नग्न सुंदरता देख सके। था तो ये एक कुटिलता भरा ख़याल, लेकिन अगर दोनों जल्दी ही मियाँ बीवी बनने ही वाले हैं, तो दोनों के बीच शर्म का क्या स्थान? साथ ही साथ शायद इससे सुमन की झिझक भी कुछ कम हो! अगर उसको सुनील से ऐसे ही झिझक होती रही, तो हो चुका मानना मनाना! देर करने से क्या फायदा? अगर दोनों की शादी होनी ही है, तो जल्दी से हो जाए! कम से कम अपने पोते पोतियों का मुँह तो देखने को मिले!
अपने पोते पोतियों के बारे में सोचते ही काजल मुस्कुरा दी, और उनकी तरफ देखने लगी!
जब उसका बेटा, अपनी होने वाली पत्नी का स्तन दबाता, तो उसका चूचक बड़े प्यारे तरीके से उभर आता! उसकी इस छेड़खानी से सुमन का मुँह खुले का खुला रह जाता - लेकिन उसकी आवाज़ भी न निकल पाती! सुमन बेचारी शायद इस बात से शर्मिंदा हुई जा रही थी कि यह सब कुछ काजल के सामने खुले तौर पर चल रहा था। और इस बात ने सुमन को एक कामुक, लेकिन शर्मिंदा करने वाले उन्माद में धकेल दिया। साफ़ दिख रहा था कि सुमन अपने आप पर नियंत्रण करना चाह रही थी, लेकिन यह काम संभव नहीं हो पा रहा था। इसलिए उसने अपनी आँखें मूँद ली। काजल से अपनी शर्मिंदगी को छिपाने का उसके पास कोई दूसरा तरीका नहीं था।
माँ ने अब तक जो कुछ भी अनुभव किया था, यह उससे बहुत अलग था! सुनील उनका प्रेमी था... और उनका प्रेमी उनके स्तनों को प्यार करना चाहता था... अपनी माँ के सामने! इससे ज्यादा कुटिल बात और क्या हो सकती है?
स्तनों को प्यार करने का भरपूर आनंद तभी आता है, जब उन पर कोई वस्त्र न हों! माँ के सुन्दर से स्तन पूर्ण रूप से प्रदर्शित थे, और उनको कोई भी देख सकता था। माँ को यह बात समझ आ रही थी, और वो सुनील और काजल से अपनी नग्नता छिपाना चाहती थीं! इसलिए उन्होंने बड़े यत्न से अपना एक हाथ अपने उस स्तन पर रख दिया जिसको सुनील नहीं पी रहा था। लेकिन सुनील ने उनका हाथ हटा दिया - एक बार, दो बार, तीन बार...! उसने माँ की सभी कोशिशों को विफल कर दिया, और सुनिश्चित रखा कि उनका एक स्तन प्रदर्शित होता रहे, या फिर उस स्तन पर उसका हाथ व्यस्त रहे। और उनका दूसरा स्तन सुनील ने बड़ी फुर्सत में पिया! दूध पीते हुए सुनील ने माँ के पूरे स्तन को चूमा और यहाँ तक कि उसे एक दो बार काट भी लिया।
काजल सब कुछ देख रही थी, और सुनील की हरकतों पर बड़ी शरारत से मुस्कुरा रही थी।
तीन दिन पहले ही उसने सुमन को सुझाया था कि उसके जीवन में कोई जवाँ मर्द होना चाहिए, जो उसके स्तनों को मसले और उसको यौन आनंद दे! मनोविज्ञान में एक वाक्यांश होता है - पावर ऑफ़ सजेशन! काजल को नहीं मालूम था कि सुनील सुमन के सामने अपनी दावेदारी किस प्रकार रख रहा है। लेकिन उसकी माँ होने के नाते वो चाहती थीं कि सुमन को पाने में उसका मार्ग प्रशस्त अवश्य हो। इसीलिए वो चाहती थी कि पुनर्विवाह के लिए सुमन को मानसिक रूप से तैयार कर सके। उसको माँ के बारे में कई बातें मालूम थीं - कई सारी अंतरंग बातें! वो जानती थी कि कब उनका कमज़ोर पहलू शुरू होता है, और कब वो उसकी बातें सुनती हैं और मानती हैं।
यह अपना काम साधने की कोई छल-कपट वाली योजना नहीं थी - उसका बस यही प्रयास था कि सुमन उसके बेटे को अपने पति का स्थान दे दे! इसमें कोई बुराई भी तो नहीं थी। सुनील कितना अच्छा लड़का तो है - ये बात केवल काजल ही नहीं, बल्कि अमर और सुमन दोनों भी मानते हैं! और सुमन तो उसको किसी भी रूप में स्वीकार्य थी - लेकिन उसको अपनी बहू के रूप में पाना बहुत ही सुखद सम्भावना थी! इतने वर्षों तक सुमन ने काजल और उसके परिवार का न केवल पाला पोषण ही किया था, बल्कि उसकी सुरक्षा भी करी थी - बिलकुल उसकी माँ के जैसे, या उनसे भी कहीं बेहतर! और आज जब परिस्थितियाँ बदल गई हैं तो उसको सुनील के सहारे की ज़रुरत थी; काजल के सहारे की ज़रुरत थी! अब काजल भी सुमन को अपनी ममता के रस से सिंचित करना चाहती थी! वो सुमन को वैसा प्यार, वैसा स्नेह देना चाहती थी, जो सुमन ने अपने जीवन के लम्बे अर्से तक अनुभव ही नहीं किया - एक माँ का प्यार! तो अगर सुमन बहू बन कर काजल के घर आ जाए, तो उससे अच्छा क्या हो सकता है?
उधर सुनील ने एक और काम किया... उसने अपने अर्ध-स्तंभित लिंग को माँ के हाथ में पकड़ा दिया - कुछ इस तरह कि काजल को न दिखे कि माँ ने उसके लिंग को पकड़ रखा है। जैसे ही उस पर माँ के हाथ का स्पर्श हुआ, वैसे ही उस पर मानो जादू हो गया हो! सुनील का लिंग आश्चर्यजनक रूप से अपने आकार में बढ़ने लगा, और कुछ की क्षणों में अपने पूरे आकार में आ गया। उसका लिंग के बढ़ते हुए आकार को महसूस कर के माँ को समझ में आ गया था कि यह कोई सामान्य आकार का अंग नहीं है! यह उनके पूर्व पति के लिंग से कहीं बड़ा था - और यह अंतर कोई उन्नीस-इक्कीस वाला नहीं, बल्कि उन्नीस-तीस वाला था! माँ को समझ में आ रहा था कि सुनील के लिंग में इस समय जो प्रभाव दिख रहा था, वो उनके कारण ही था। और वो ये भी समझ रही थीं कि इसका अर्थ क्या है! सुनील का लिंग स्तंभित हुआ था, उनकी योनि को भेदने की उसकी इच्छा के कारण!
‘ओह प्रभु!’
इस लिंग से उनका योनि-भेदन होने वाला था! इस विचार से उनका दिल काँप गया। आखिरी बार उन्होंने सुनील को जब नग्न देखा था तब वो उनके सामने खड़ा खड़ा कितना शरमा रहा था, लेकिन फिर भी वो खुद पर नियंत्रण नहीं कर सका और उसका लिंग अपने ‘उस समय’ के पूर्ण आकार में स्तंभित हो गया था। माँ ने उसको प्यार से समझाया था, कि वो अपने नुनु की अच्छी तरह से देखभाल किया करे; कोई बुरी आदत न पाले! अच्छा खाया पिया करे! किसी दिन वो किसी बहुत ही भाग्यशाली लड़की को बहुत आनंद देगा! उस समय माँ को भला क्या ही पता था कि भविष्य में वो ही वो ‘भाग्यशाली लड़की’ होने वाली हैं! और सुनील उनको ही ‘बहुत आनंद’ देने वाला है! कैसा चक्र चलता है समय का! सच में, समय से अधिक बलवान शक्ति नहीं है संसार में!
उसका आकार महसूस कर के माँ को उत्सुकता तो हुई। वो सुनील के लिंग को देखना चाहती थीं, लेकिन सुनील जिस तरह से उनकी गोद से सट कर बैठा हुआ था, उससे न तो उनको ही, और न ही काजल को उसका लिंग दिखाई दे सकता था - जब तक कि जबरदस्ती उसको न देखा जाए। फिलहाल माँ को उसके आकार के अनुमान से ही सन्तुष्ट होना था। सुनील का लिंग न केवल मोटा था, बल्कि लम्बा भी था! और माँ इतने शक्तिशाली अंग को छोड़ने से हिचकिचा रही थी। चूंकि वो इसे नहीं देख सकती थी, इसलिए उन्होंने अपनी आँखें बंद कर लीं, और इस बात पर ध्यान केंद्रित किया कि यह महसूस कैसा होगा!
अपनी आँखें बंद होने के कारण वो काजल की प्रतिक्रिया नहीं देख पाई - काजल बड़ी शरारत से मुस्कुरा रही थी।
‘हे प्रभु! सच में कितनी सुन्दर है ये लड़की! हाँ लड़की! यही शब्द ही सही बैठता है मेरी बहू पर! ये मुझसे ढाई साल बड़ी नहीं, बल्कि मुझसे पंद्रह साल छोटी लगती है! ऐसी अभूतपूर्त सुन्दरी! और उससे भी कहीं अधिक सुन्दर स्वभाव! और गुणों की तो खान है खान! क्या मेरे सुनील का भाग्य इतना अच्छा है कि ये लड़की मेरे घर की बहू बनेगी? प्रभु जी, कोई तो चमत्कार करो। यह रिश्ता जमा दो! इन दोनों को खूब सुखी और खुश रखो! एक भरा पूरा परिवार बसा दो इनका! बस!’
यही सब ख़याल उसके मन में आ जा रहे थे, जब उसने सुनील को सुमन के स्तनों को प्रेम से चूमते हुए देखा। उनके इस अंतरंग खेल को देख कर वो मुस्कुरा दी। आश्चर्यजनक रूप से उसके अंदर उन दोनों ही के लिए ममता वाले भाव उत्पन्न होने लगे।
दो दिनों से सुमन का गुमसुम सा रहना; कल रात खाना न खाना; लेकिन फिर सुनील के खिलाने पर खा लेना - यह सब तो यही दर्शाता था कि सुनील ने सुमन को प्रोपोज़ कर दिया है, और यह कि सुमन भी उस प्रोपोज़ल पर कम से कम सोच विचार तो कर रही है। अगर पूरी तरह से स्वीकारा नहीं है, तो लगभग स्वीकार कर चुकी है! नकारा तो बिलकुल भी नहीं है। अन्यथा वो सुनील को अपने आस पास भी फटकने न देती - वो ऐसी लड़की है ही नहीं! मतलब यह है कि कहीं न कहीं, सुमन के मन में भी सुनील के लिए प्रेम के अंकुर तो फूट रहे हैं! कितना सुखद ख़याल है न ये!
‘मेरी बहू! आह प्रभु जी! कुछ करिए! जल्दी जल्दी!’
काजल को यह सही सही अनुमान था कि उस समय सुनील ने अपना लिंग सुमन के हाथ में थमा रखा है। काजल को मालूम था कि बाबूजी और उसके पूर्व-पति का लिंग लगभग एक ही आकार का था, और सुनील का लिंग उन दोनों के ही मुकाबले बड़ा है। इस बात से उसको गर्व भी हुआ। उसके बेटे का लिंग बड़ा था, वो स्वस्थ और मज़बूत कद-काठी का युवक था, और साथ ही साथ उसके अंदर युवावस्था की ऊर्जा भी थी! शादी के बाद वो सुमन को वैसा यौन सुख दे सकेगा, जिसकी वो हक़दार है! यह विचार आने पर वो मुस्कुराई!
यौन सुख से भी अधिक आवश्यक था प्रेम - सुमन को प्रेम की आवश्यकता थी। बेचारी, पूरी उम्र भर केवल दूसरों को प्रेम देती रही थी। ऐसा नहीं था कि बाबूजी से उसको प्रेम नहीं मिला। बहुत मिला। दिक्कत यह थी कि पिछले कुछ वर्षों से सुमन को पति का, प्रेमी का प्रेम नहीं मिल पाया। बच्चों का प्रेम तो बहुत मिला - लतिका तो अपने नाम के समान ही सुमन से लिपटी रहती है। काजल से अधिक उनको अपनी माँ समझती है। लेकिन पूरी परिवार का प्रेम - जिसमे पति का भी प्रेम सम्मिलित हो, माता का भी प्रेम सम्मिलित हो - सुमन फिलहाल उससे वंचित थी।
‘ये भी कोई उम्र है उसकी, विधवा बन के रहने की? अभी तो बहुत कुछ करना है उसको! बहुत से सुख भोगने हैं उसको!’
अचानक ही उसके मन में यह विचार आया कि बहुत संभव है कि अब सुनील भी सुमन को नग्न देखना चाहे! दोनों प्रेमियों को अकेले साथ होने का अवसर ही कहाँ मिल पाता है इस घर में! कभी पुचुकी सुमन को घेर के बैठी रहती है, तो कभी अमर सुनील को ऑफिस लिए जाता है, और कभी वो खुद उन दोनों के बीच में कबाब में हड्डी बनी रहती है! आज इनको अकेले में कुछ मौका दे ही देते हैं! इसलिए उसको वहाँ से हट जाना चाहिए, जिससे दोनों कुछ देर अकेले में अपना खेल खेल सकें।
वो कुछ करने वाली थी कि सुनील ने उससे कहा, “अम्मा, इस घर में सभी ने इनके दूध पिये हैं… और तो और, इन्होने तुमको भी तो कई बार पिलाया है! बस मैं ही रह गया! अब मैं भी इनके दूध रोज़ पियूँगा!”
सुनील की बात पर काजल अपने मन में भी, और बाहर भी हँसने लगी। भोलेपन लेकिन शिकायती अंदाज़ में कही हुई यह बात कितनी सच भी तो थी! जाहिर सी बात है - जब दोनों पति पत्नी बन जाएँगे तो वो सुमन के स्तन तो रोज़ पिएगा ही! अनायास ही एक कामुक सा, लेकिन सुन्दर दृश्य काजल की आँखों के सामने खिंच गया - सुमन और सुनील दोनों नग्न हो कर, प्रेमालिंगन में बंधे हुए हैं - सुमन का एक चूचक अभी के ही समान सुनील के होंठों में, और उसका लिंग सुमन की योनि में सुरक्षित है!
उन दोनों को उस कामुक अवस्था में बंधा हुआ सोचना काजल को बहुत सुखकारी महसूस हुआ! उसने भगवान् से मन ही मन प्रार्थना करी कि उसकी यह कामना जल्दी ही सत्य साकार हो जाए! उसने मन ही मन यह भी सोचा कि काश कि वो इस दृश्य का जल्दी ही साक्षात्कार कर सके!
“हा हा हा!” काजल ने दिल खोलकर हँसते हुए कहा, “हाँ हाँ! ज़रूर पियो! खूब पीना अब से! लेकिन वो तुम दोनों के आपस की बात है! मुझको अपने बीच में क़ाज़ी मत बनाओ!”
काजल की बात में इस बात का इशारा था कि वो दोनों अगर मियाँ बीवी हैं, तो वो क़ाज़ी बन के उनके बीच में नहीं पड़ना चाहती! माँ की हालत खराब थी, लेकिन उनको यह बात थोड़ी थोड़ी समझ में आई। माँ ने किसी तरह अपनी आँखें खोलीं, और काजल की ओर देखा, मानो वो काजल से खुद को इस स्थिति से बाहर निकलवाने के लिए विनती कर रही हों। लेकिन काजल तो उन दोनों को और भी एकांत देना चाहती थी, जिससे दोनों को एक दूसरे के बारे में और अंतर्ज्ञान हो सके।
“अच्छा! तुम दोनों बच्चे खूब खेलो! मैं जरा रसोई के कुछ काम निबटा लूँ तब तक!” काजल ने कहा, और मुस्कुराते हुए घर के कामों के लिए कमरे से बाहर निकल गई।
‘खेलो!’ माँ के दिमाग में बस यही शब्द आया।