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यह स्तनपान का दृश्य बहुत ही मनोरम हैअंतराल - पहला प्यार - Update #24
माँ कुछ देर सोने की कोशिश करती रहीं, लेकिन मौसम की गर्मी, उमस, और काजल के बगल लेटने के कारण उनको और भी अधिक गर्मी लग रही थी। घर में एयर कंडीशनर थे, लेकिन केवल मेरे और माँ के कमरों में! पर हम भी उनका इस्तेमाल केवल रात में करते थे, और वो भी कभी कभी। माँ का मानना था कि उसकी आदत नहीं डालनी चाहिए। आज हवा में उमस थी, लिहाज़ा कूलर चलाने पर और भी गर्मी लगती। इसलिए केवल पंखे का ही भरोसा था। काजल को भी गर्मी महसूस हो रही थी। उसने तो माँ के मुकाबले अधिक कपड़े पहने हुए थे।
“अरे भगवान! कितनी गर्मी है!” वो अपने माथे से पसीना पोंछते हुए बोली, “सूरज देवता आग बरसा रहे हैं आज तो!”
वो उठी, और उठ कर अपनी साड़ी उतारने लगी। कम से कम कपड़ों की एक सतह तो कम हो! माँ ने कुछ कहा तो नहीं - न जाने क्यों उनको आज काजल से शर्म आ रही थी। काजल ने खुद ही पहल करते हुए माँ की टी-शर्ट को ऊपर सरकाते हुए उनके शरीर के ऊपरी हिस्से को लगभग नग्न कर दिया। पसीने से भीगी त्वचा पर हवा का स्पर्श - माँ को बहुत राहत महसूस हुई।
“गर्मी लग रही है तो बोल दो न! मुझसे क्या शर्म है?” कहते हुए काजल ने माँ की टी-शर्ट पूरी तरह से उतार दी, और पूछा - नहीं, पूछा नहीं, सुझाया, “निक्कर भी उतार दूँ?”
माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“वैसे एक बात कहूँ?” काजल ने उनका निक्कर नीचे खींचते हुए कहा, “तुम यही सब पहना करो घर में - शलवार कुर्ता या नेकर! मुझे तो कोई ऐतराज़ नहीं है!” काजल कुछ इस तरह बोली कि सुमन को ऐसा न लगे कि उसकी सास को उसके किसी पहनावे पर कोई ऐतराज़ होगा, “जो मन करे वो पहनो! न पहनो, वो भी ठीक है! मुझे तो तुम नंगू नंगू बहुत प्यारी लगती हो! और मैं तो यही चाहती ही हूँ कि तुम मेरी बिटिया बन कर मेरे सामने नंगू नंगू रहो!” कह कर काजल ने माँ का माथा चूम लिया।
माँ बस मुस्कुरा दीं। बहुत सामान्य सी बात लगी उनको। उनके मन में यह विचार आया ही नहीं कि काजल उनसे ऐसा क्यों कह रही है।
“इतनी गर्मी है! ऐसे ही रहा करो! बिलकुल क्यूट सी लगती हो! बिलकुल मेरी पुचुकी और मिष्टी के जैसी! नन्ही सी, प्यारी सी!” काजल मुस्कुरा कर, उनकी पैंटी भी उतारते हुए बोली।
हाँलाकि माँ इस समय पूर्ण नग्न हो कर काजल के सामने लेटी हुई थीं, लेकिन इस समय वो कहीं और ही थीं। उनके मन में न जाने कितने विचार आते जा रहे थे। जब उनके लिए डैड के परिवार से विवाह प्रस्ताव आया था तब वो बहुत छोटी थीं। सांसारिक मामलों में नादान। उस समय उनको अपने विवाह को ले कर कैसी अद्भुत अनुभूति हुई थी। लेकिन आज, उस घटना से कोई तीस साल बाद, जब उनके सामने पुनः विवाह का प्रस्ताव था, तो उनको फिर से, वैसी ही भावनाओं की फिर से अनुभूति होने लगी थी। आश्चर्य है न!
‘नया घर! नया ससुराल! नए तरीके! ओह!’
“सो जाओ,” कह कर वो माँ के सीने पर थपकी दे कर, सहला कर सुलाने लगी।
“काजल?” माँ कुछ देर चुप रहने के बाद बोलीं।
“हाँ?”
“मैं कुछ कहूँ, तो तुम नाराज़ तो नहीं होगी?”
“तुमसे और मैं नाराज़? हो ही नहीं सकता!”
“फिर भी!”
“कैसे भी नहीं। तुम बोलो तो सही अपने मन की बात!”
“सच में?”
“हाँ! और नहीं तो क्या!”
“तुम न... जब... तुम जब...”
“अरे, पूरा भी बोलो!” काजल मुस्कुराते हुए बोली।
“तुम... जब... तुम मुझे जब अपनी बच्ची कहती हो न,”
“हूँऊँ?”
“तो मुझे अच्छा लगता है!”
“सच्ची?”
“हाँ! ऐसा लगता है कि किसी बड़े का साया आ गया हो मेरे सर पर!”
“अरे, तो फिर मुझे अपनी माँ ही मान लो!”
माँ दो पल को चुप हो गईं, फिर धीरे से बोलीं, “किस अधिकार से?”
“वो बाद में देख लेंगे!” काजल ने प्यार से कहा, “आ जा - मेरे सीने से लग कर सो जा!”
माँ मुस्कुरा दीं, और काजल के सीने से लग गईं। गर्मी थी, लेकिन जो सुकून उनको उस समय हुआ, उसको बयान कर पाना मुश्किल है। कुछ देर के बाद माँ गहरी नींद में सो गईं।
जब काजल को लगा कि माँ सो गई हैं, तो उसने अपनी ब्लाउज के बटन खोल कर अपना एक स्तन बाहर निकाल लिया। पिछले दो दिनों से उसके मन में सुमन को - अपनी बहू को - अपना दूध पिलाने की उसकी इच्छा बड़ी बलवती हो गई थी! चुपके से ही सही, लेकिन अब उस इच्छा का निकास होना आवश्यक था। जब उसके चूचक का माँ के होंठों से मिलन हुआ तो माँ का मुँह खुद ही खुल गया। माँ को ऐसे अनभिज्ञ भोलेपन से व्यवहार करते देख कर काजल ममता से मुस्कुरा दी, और उनके और भी करीब आ गई, जिससे माँ को चूसने में आसानी हो, लेकिन माँ ने चूसना नहीं शुरू किया। वो बस गहरी नींद में सो रही थीं।
लेकिन एक माँ का मन, अपने बच्चों पर अपनी ममता लुटाने से कहाँ बाज़ आता है? जब से सुमन ने उसके मन में उसकी ‘दीदी’ से उसकी ‘बहू’ का रूप लिया था, तभी से काजल अपनी ममता उस पर लुटाना चाहती थी। काजल ने एरोला के निकट अपने चूचक को दबाया - दूध का एक पतला सा फौव्वारा माँ के खुले हुए मुँह में जा गिरा। लेकिन उनका मुँह खुला होने के कारण अधिकतर दूध बाहर ही बह गया। कुछ दूध माँ ने स्वप्रेरणा से लील लिया। काजल इतने से ही संतुष्ट हो गई। उसकी नई ‘बेटी’ को उसके स्तनों का अमृत पीने को मिल गया - अब उसको और क्या चाहिए! उसने अपना चूचक माँ के मुँह से निकाला नहीं। कुछ देर में उनका मुँह खुला होने के कारण, उनके होंठों के एक किनारे से लार बहने लगी, जो काजल के स्तन को गीला करने लगी।
काजल बस मुस्कुरा दी!
दरवाज़े पर खड़ी लतिका भी यह दृश्य देख कर न केवल आश्चर्यचकित ही हुई, बल्कि बहुत प्रसन्न भी हुई!
वो पहले से ही अपनी मम्मा को अपनी बोऊ-दी मानने लग गई थी। और अब उसकी अम्मा ने उनको अपना दूध पिला कर अपनी बेटी का दर्जा दे दिया था। काजल ने जब अचानक ही लतिका को यह सब करते देखा तो एक पल के लिए वो अचकचा सी गई, लेकिन अगले ही पल उसने पहले अपने होंठों पर उंगली रख कर उसको चुप रहने का इशारा किया, और फिर उंगली के ही इशारे से अपने पास आने को कहा।
“अम्मा,” लतिका ने भी समझ कर दबी आवाज़ में कहा, “आप बोऊ-दी को दूधू पिला रही हो?”
“बोऊ-दी? तो तुझे सब मालूम है क्या?” काजल ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा।
लतिका ने उत्साह से ‘हाँ’ में सर हिलाया, और बोली, “दादा ने बताया था कि वो मम्मा को प्रोपोज़ करने वाले हैं! आपको भी मम्मा बहुत पसंद हैं न? इसीलिए तो आप उनको दूधू पिला रही हैं! हैं न?”
“मेरी पुचुकी,” काजल ने बड़े लाड़ से कहा, “मुझे तुम्हारी होने वाली बोऊ-दी बहुत पसंद है! सबसे ज्यादा! अब तुम हमारा रिश्ता समझो -- तुम्हारी बोऊ-दी - मतलब मेरी बहू - मतलब मेरी बेटी! इसलिए उसकी माँ होने के नाते मैं उसको दूध पिला रही थी!”
“लेकिन वो तो आप उनके जागने पर भी कर सकती हैं?”
“हाँ, लेकिन अभी तक न तो तेरे दादा ने, और न ही तेरी बोऊ-दी ने मुझे इस बारे में कुछ भी बताया नहीं है न! इसलिए मैं भी न जानने की एक्टिंग कर रही हूँ! और तू भी इस बारे में इनको मत बोलना कि तुझे मालूम है!”
“ठीक है अम्मा!” लतिका ने उत्साह से कहा।
“मिष्टी कहाँ है?”
“दादा ने हम दोनों को नहला दिया था। और वो उन्ही के साथ सो रही है!”
“तू भी सोएगी बेटू मेरी?”
“हाँ!”
“आ जा मेरे पास!”
काजल ने लतिका को भी थपकी दे कर कुछ ही देर में सुला दिया।
**
माँ को स्तनपान कराने की ‘असफल’ कोशिश के बाद और लतिका को सुलाने के बाद काजल घर के अन्य बचे हुए कार्यों में व्यस्त हो गई। वहाँ से निवृत्त हो कर वो सुनील के कमरे में गई। वहाँ उसने देखा कि आभा भी नंगू नंगू हो कर, सुनील के ऊपर फ़ैल कर मज़े में सो रही थी। उसको अपने ‘दादा’ से अलग कर पाना मुश्किल था।
‘दादा’!
काजल मुस्कुराई - सच में उसकी दादी से शादी कर के सुनील उसका दादा ही तो होने वाला था!
घर में इस समय पूर्ण नीरवता थी - लेकिन काजल जानती थी कि ये सुख वाली शांति है - खुशियों वाली शांति है। एक लम्बे अंतराल के बाद इस घर में फिर से शादी ब्याह वाला माहौल बनेगा! गाजे बाजे बजेंगे! यहाँ फिर से ढेर सारा आनंद आएगा! जल्दी ही फिर से यह घर बच्चों की किलकारियों से गूँजेगा। सब कुछ बड़ा ही आनंददायक था।
काजल वापस अपने कमरे में आ कर, अपनी ब्लाउज उतार कर, केवल पेटीकोट पहने ही माँ और लतिका के बीच में लेट गई, और कुछ देर बाद उसको भी नींद आ गई।
**
कोई दो घंटे की नींद ले कर जब माँ उठीं, तो वो बहुत शांत महसूस कर रही थीं। इतनी देर तो वो कभी नहीं सोती थीं - दोपहर में उनको कभी कभी पावर नैप लेने का मन होता था। लेकिन दो घण्टे की नींद! बाप रे! वो हठात ही बिस्तर से उठ गईं।
अपने बगल काजल को अर्धनग्न लेटा हुए देख कर माँ को न जाने क्यों शर्म आ गई। उनको और भी शर्म तब आई जब उन्होंने महसूस किया कि उठने से ठीक पहले उनके होंठ काजल के एक स्तन पर थे। काजल के दोनों चूचकों पर दूध की छोटी छोटी सी बूँदें भी दिखाई दे रही थीं।
‘क्या मैं का... अ... अम्मा का दूध पी रही थी?’ माँ के मन में सबसे पहला विचार यही आया।
अब तो अपने मन में माँ काजल को ‘अम्मा’ कह कर सम्बोधित कर रही थीं। बस थोड़ी ही औपचारिकता शेष रही थी।
काजल का दूसरा चूचक लतिका के होंठों के पास था, और लतिका के होंठों की रंगत देख कर लग रहा था कि वो या तो सोने से पहले, या फिर सोते सोते अपनी अम्मा का स्तनपान कर रही थी। माँ ने अपना थूथन निकाल कर अपने होंठों को सूँघा - हाँ - एक मीठी सी, दूधिया महक तो थी!
‘हाय भगवान्! तो क्या मैंने सच में अम्मा का दूध पी लिया! क्या सोचा होगा उन्होंने?’
माँ इस ख़याल से थोड़ी घबरा तो गईं, लेकिन उनको अच्छा भी लगा। सब कुछ कितनी तेजी से बदल रहा है उनके जीवन में! सोने से ठीक पहले अपनी वार्तालाप उनको याद आ गई। सच में, काजल का स्वरुप उनके जीवन में बदलने से उनको अपने ऊपर किसी बड़े का हाथ महसूस होने लगा था। यह एहसास कितने ही महीनों से गायब था - एक अनाथ जैसी विवशता महसूस होने लगी थी माँ को।
काजल... अम्मा...!
उन्होंने चुपके से काजल के चूचक को चूम लिया। चूमने से वो बूँद गायब हो गई, लेकिन दो सेकंड के बाद एक और नन्ही सी बूँद वहाँ बनने लगी।
‘मेरी माँ का दूध!’
भविष्य की संभावनाओं का सोच कर माँ प्रसन्न हो गईं। जल्दी ही उनको एक भरा पूरा परिवार मिलने वाला था, जिसमे उनकी सहेली के समान सास होगी, चाहने वाले पति होंगे, और एक प्यारी सी बेटी समान ननद होगी! कैसे कुछ ही दिनों में काजल का स्थान उनके जीवन में बदल गया था! कैसा घोर आश्चर्य! समय क्या नहीं कर सकता? काजल... उनकी सास! उनकी माँ!
कोई आठ साल पहले माँ और डैड की मुलाकात काजल से हुई थी। उस दिन जब काजल ने माँ और डैड के पैर छुए थे, माँ को न जाने क्यों काजल के साथ एक अबूझ सा, किन्तु मज़बूत संयोजन बनता हुआ महसूस हुआ था। एक कामवाली होते हुए भी काजल कितनी सभ्य, कितनी सच्ची, और कितनी संभ्रांत थी... और ओह, कितनी सुन्दर भी! कोई आश्चर्य की बात नहीं थी कि माँ और काजल लगभग तुरंत ही एक दूसरे से घुल मिल गए थे। माँ तो वैसे भी दूसरों पर तुरंत ही विश्वास कर लेती थीं, लेकिन काजल पर तो उनको चुटकी बजाते ही विश्वास हो गया था। इसलिए तो उन्होंने और बाबू जी ने एक पल के लिए भी कुछ भी सोचा नहीं, और उसको और उसके बच्चों को अपने घर में हमेशा के लिए रहने को बुला लिया।
यहाँ तक भी ठीक था। इतना सब होने के बाद भी मेरी माँ सपने में भी नहीं सोच सकती थीं कि वही काजल एक दिन उनकी सासू-माँ बनेगी! बनेगी? बन तो सकती है! सम्भावनाएँ प्रबल हैं! कितना प्यार है काजल को उनसे, और उनको काजल से! सगी बहनों - नहीं नहीं - सगी बहनों में खूब मन मुटाव होता है। ऐसा लगता था कि जैसे माँ और काजल एक ही वस्तु के दो बराबर अंश हों। हाँ - यही वर्णन ठीक बैठता है। अन्यथा इतना प्रेम... ऐसे कोई कैसे कर सकता है!!
काजल के चूचक पर दूध की बूंदों को देख कर माँ उसको ‘फिर से’ पीने का लोभ संवरण न कर सकीं। उनके होंठ स्वतः ही काजल के स्तन पर जा लगे। अभी कुछ ही घण्टों पहले उनके पति ने यहाँ से दूध पिया था - अब उनकी बारी है! माँ ने बड़ी सावधानी से, धीरे धीरे काजल से स्तन का अमृत पिया। आनंद आ गया! चुपके चुपके पीने के कारण बहुत ही कम दूध उनके मुँह में आया। कहीं काजल जाग न जाए, यह सोच कर उन्होंने पीना छोड़ दिया।
काजल की बातें भी कितनी अनोखी सी थीं! बेटी बना कर जिसको घर लाई थीं, अब उसकी ही बेटी बनने की बेहद प्रबल संभावना हो गई थी! क्या वो सचमुच में इतनी भाग्यशाली थीं कि उनको फिर से ऐसे प्यार करने वाले परिवार की बहू बनने का मौका मिल रहा था? कुछ तो बड़े अच्छे कर्म किये होंगे!
माँ यह सब सोच कर मुस्कुराईं और दबे पाँव बिस्तर से उठीं - जिससे काजल और पुचुकी की नींद न टूटे। उन्होंने अपने कपड़े उठाए, और नग्न अवस्था में ही दबे पाँव काजल के कमरे से बाहर निकल गईं।
जब माँ काजल के कमरे से बाहर चली गईं, तो काजल के होंठों पर एक स्निग्ध मुस्कान आ गई!
उधर, माँ चुपके से बगल के कमरे में झाँकने चली गईं, कि वहाँ क्या हो रहा है। सुनील एक पतली सी टी-शर्ट और नेकर पहने सुखपूर्वक सो रहा था। आभा पूरी नंगू पंगू हो कर सुनील के ऊपर पैर रखे और भी आराम से सो रही थी। उन दोनों को ऐसे सुखपूर्वक सोते हुए देख कर, संतुष्ट हो कर माँ अपने कमरे में चली आईं। वो पूर्ण नग्न थीं, इसलिए उन्होंने दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया।
जब माँ को थोड़ा एकांत मिला, तो उन्होंने अपने कमरे के दर्पण में अपने सीने और स्तनों को देखा! अपने शरीर पर सुनील के प्यार के विभिन्न निशानों को देखकर उन्हें बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। यह उनके लिए बिल्कुल नया अनुभव था, और वो चकित थी कि सुनील ने अपनी माँ के सामने उसके साथ यह सब कुछ कर डाला। जब वे दोनों बिलकुल अकेले होंगे तो वो उनके साथ क्या क्या करेगा! इस प्रश्न का उत्तर भी उनको मालूम था - अपनी योनि पर सुनील का चुम्बन उनको अभी भी महसूस हो रहा था। दोनों का मिलन अत्यंत सन्निकट था! उनको भी मालूम था कि ये बस ‘अब हुआ, कि तब हुआ’ वाली बात है।
सुनील और उनका बंधन अब तय है।
सबसे बड़ी बात तो यह थी कि माँ भी अब सुनील को अपने पति के रूप में देखने लग लग गई थीं। सुनील अब उनके लिए काजल का लड़का नहीं रह गया था। यह एक बहुत ही बड़ा परिवर्तन था, और मन ही मन, माँ भी चाहने लगी थीं, कि वो सुनील का संसार बसाएँ। हाँ - सब कुछ जल्दी तो अवश्य हो रहा था, लेकिन बिना वजह देरी करने का कोई ठोस कारण भी तो नहीं था, और न ही उसका कोई लाभ! सुनील माँ का देखा, जाना, और समझा हुआ लड़का है, और माँ सुनील की देखी जानी लड़की! ऐसे में सोचना क्या और क्यों?
शुभष्य शीघ्रम!
बस, काजल को सब बताना आवश्यक था!
जितना जल्दी हो सके!
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नए ज़माने का सम्भोग!जब वे दोनों बिलकुल अकेले होंगे तो वो उनके साथ क्या क्या करेगा!
क्या कहें
क्या ना कहें
काजल और सुमन दोनों में उम्र में बड़ी सुमन है पर परिपक्वता में सुमन से बहुत आगे है
उसे बहु चाहिए बिल्कुल सुमन सी गुणवान
संयोग ऐसा है आज वह सुमन को अपने बहु बनाने वाली है
क्या कहें
क्या ना कहें
यह कैसी मुस्किल हाय
ऋत मिलन की अब सजने लगी है
काजल अपनी उम्र से जहां आगे निकल रही है
वहीं सुमन अपनी भाव और आवेग से उम्र से पीछे जा रही है
बात तो सही है
दीदी से बहु
काजल शादी की बात करेगी तो कैसे
बार बार राजकुमार और कमल हासन की वह फिल्म याद आ रहा है
जहां राज कुमार एक प्रश्न हेमा मालिनी, पद्मिनी कोल्हापुरे और कमल हासन से करता है
कौन हमरे पैर पड़ेगा या हम किसके पैर पड़ेंगे किस रिश्ते से
यह स्तनपान का दृश्य बहुत ही मनोरम है
खैर शुभस्य शीघ्रम
वाह बड़ा ही प्यारा खेल चल रहा है घर में, चोरों को लग रहा है की कोई उनकी चोरी पकड़ रहा है और थानेदार खुद घर की चाबियां चोरों को दे रहा है। एक दम मस्त खेल।
काजल ने अब अंजान बन कर सुनील और सुमन को छेड़ने का प्लान कर लिया है और दोनो के साथ खूब मस्ती भी कर रही है। अब काजल को कोई संसय नही रह गया है कि सुनील और सुमन एक दूसरे के प्यार में डूब चुके है। बस देखना है कि दोनो ये राज काजल को कब बताते है और सबसे बड़ी बात अमर को कब और कैसे बताते है?
आज सुमन ने अपने दिल की उस टीस को बाहर निकाला जो कब से उसके अंदर एक नासूर की तरह चुभ रही थी और अपनी सखी, अपनी अर्ध-बहु और घर की सर्वेसर्वा को अपना दिल खोल कर दिखाया शायद यही वजह थी कि वो आज दिन में इतनी देर तक शांति से सो पाई। अब बस ये देखना है कि सुमन सुनील के रिश्ते का रहस्योद्घाटन कब और कैसे होता है सबके सामने। शानदार अपडेट्स avsji भाई।
सहमतसमय समय का फेर है भाई - एक समय था जब सुमन ने एक अनाथ परिवार को अपने आँचल में समेट लिया था।
लेकिन आज परिस्थितियाँ बदल गई हैं। उन सभी मनोभावों के उतार चढ़ाव का ही तो वर्णन किया है इतने अपडेट्स में!
उस कहानी का मुझे बड़ी बेसब्री से इंतजार रहेगाहा हा! मेरी कहानियों की बड़ी दिक्कत है।
एक ही गति से बढ़ती रहती है। बस, एक दो बार ही मैंने प्रयोग किया है।
अगली वाली में थ्रिल डालूँगा - खून खराबा और न जाने क्या क्या! हा हा!
हाँ यह भी एक दर्शन हैभाई - पैर पड़ना या गले मिलना, यह सब सामाजिक फेर है।
वस्तुतः प्रेम के रिश्ते ही प्रगाढ़ होते हैं। खून खराबे, शोषण अधिकतर परिवार में होते हैं।
बाहर के लोग यह सब कम ही करते हैं।
हाँ बेताल पच्चीसी सामाजिक मूल्य बोध पर प्रश्नोत्तरी हैजहाँ तक वो फिल्म की बात है - यह पहेली बेताल ने महाराज विक्रमादित्य से पूछी थी।
आखिरी पहेली थी। और वो इसका उत्तर नहीं दे सके थे।
जी बिलकुलशुभस्य शीघ्रम!
बंधु विलंवेन किं कारणं
शुभश्य शीघ्रम
दीपावली की दीपक जलेगीहा हा हा! एतावता दिवसानन्तरं अहं संस्कृतेन किमपि पठामि। धन्यवाद!
अहं इदानीम् स्वपत्न्या सुपुत्रीभिः सह दीपावली उत्सवस्य व्यवस्थाम कर्तुं व्यस्तः अस्मि।
अतएव लेखनकार्येषु विलम्बः भवति।
अस्मिन समये प्रथमवारं मम बालिकै अग्निक्रीड़ा रमिष्यतः ! अतएव उभौ अतिउत्साहित स्तः !
ज्ञान की देवी - कृपया इस धृष्टता के लिए मुझे क्षमा करें!
आनंद अति आनंद परमानंदKala Nag भाई, जो भी टूटी फ़ूटी संस्कृत लिखी है, उसको पढ़ कर आनंदित हो लें। और अधिक की इच्छा न करें!
आखिरी बार संस्कृत में कुछ लिखे कोई पच्चीस साल हो गए। कुछ भी याद नहीं!