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भाई पहले तो क्षमा चाहूँगादीपवाली के ख़ुशियों भरे पर्व पर xforum के समस्त साथियों और उनके परिवारजनों को हार्दिक और निस्सीम शुभकामनाएँ!
ईश्वर आप सभी का मङ्गल करें; आपको स्वस्थ, प्रसन्न, और संपन्न रखें!
और मेरे प्रिय पाठकों - तनिक देर धैर्य बनाए रखें!
कोई बीस हज़ार शब्दों के अपडेट आ रहें हैं आपके पास - इस दीपावली के नज़राने के तौर पर!
आज ही! कुछ ही देर में। इसलिए साथ बने रहें।
Kala Nag Lib am KinkyGeneral SANJU ( V. R. ) Chetan11 Nagaraj Choduraghu
ह्म्म्म्मअंतराल - विपर्यय - Update #1
शाम को जब मैं घर आया, तब घर का माहौल बड़ा चहल पहल वाला था। पिछले कुछ समय से हमेशा ही रहता था, लेकिन आज कुछ अधिक ही लग रहा था। माँ बात बात पर हँस रही थीं, और लगातार मुस्कुरा रही थीं। उनके चेहरे पर ख़ुशी की एक अनोखी सी चमक थी - जिसको देख कर बड़ा अच्छा लग रहा था। हाँ - एक और बात मैंने नोटिस करी - माँ ने रंगीन साड़ी पहनी हुई थी आज। क्या बात है! बहुत बहुत बढ़िया! मन में बस इतना ही आया कि ‘काश, वो इसी तरह रहें हमेशा’! उनकी ख़ुशी मेरे लिए बहुत आवश्यक थी। हाथ मुँह धो कर जब मैं बच्चों के साथ खेलने में व्यस्त हो गया, तब माँ और काजल साथ में रसोई का काम देखने लगीं। यह भी नई बात ही थी - काजल माँ को अधिकतर समय रसोई के काम में उलझाती नहीं थी; सब कुछ खुद ही कर लेती थी। लेकिन आज दोनों हँसते बोलते साथ में काम कर रही थीं। मैं यहाँ फिर से ‘काजल पुराण’ शुरू नहीं करना चाहता - आप पाठक लोग भी वो सारी कथा सुन सुन कर पक गए होंगे - लेकिन, सच में, काजल के सम्मान में, उसकी बढ़ाई में जितना कहूँ, उतना ही कम है!
उधर सुनील भी हमारे साथ खेल में शामिल हो गया - उसको देखते ही आभा उसके ऊपर चढ़ गई। अपने ‘दादा’ की सवारी करना, उससे ठुनकना, जायज़ - नाजायज़ कैसी भी बातें मनवाना, उससे शिकायत करना, अपनी मनुहार करवाना, और ऐसे व्यवहार करना कि जैसे मैं नहीं, वो उसका बाप हो - ऐसा था सुनील और आभा में रिश्ता! अपनी एकलौती बेटी को सुनील के इतने करीब देख कर मुझे थोड़ी जलन सी तो महसूस होती थी, लेकिन बुरा नहीं लगता था। मेरी अनुपस्थिति में जिस तरह से सुनील ने दोनों बच्चों को प्यार दिया था, ख़ास तौर पर आभा को, और उन दोनों को इतना कुछ सिखाया था, मुझे आश्चर्य तब होता जब वो दोनों उसके इतने करीब न होतीं। सुनील एक अच्छा रोल मॉडल था दोनों के लिए। हाँ मुझे एक बात से बहुत संतोष होता था कि अवश्य ही आभा सुनील के अधिक नज़दीक थी, लेकिन लतिका मेरे अधिक करीब थी!
खैर, देर तक बच्चों के संग खेल कर जब छुट्टी मिली, तब तक हमारा खाना डाइनिंग टेबल पर सजा दिया गया था। खाना खा कर मैं अपने कमरे में चला गया। कल एक और कस्टमर मीटिंग थी। अपना बिज़नेस चलाने में यही कष्ट है, और यही आनंद भी है। सोचा था कि आज जल्दी सो कर देर तक सोऊँगा। लेकिन मेरे कमरे में आने के पाँच मिनट बाद ही काजल भी कमरे में चली आई। उसको देख कर मैं मुस्कुराया।
“कैसा था दिन?”
“बहुत ही अच्छा!” मैंने कहा - काजल और मैं बिज़नेस की बातें नहीं करते थे। वो कहती थी कि उसको वो बातें समझ में नहीं आती थीं। मैं भी उसकी बात का मान रख कर बस बहुत थोड़ा ही बताता था, “कल एक और कस्टमर मीटिंग है। उसके बाद कुछ दिन थोड़ा फ्री रहूँगा।” मैंने कुछ देर चुप रह कर आगे जोड़ा, “शायद!”
छोटी कंपनी होने का मतलब यह है कि अधिकतर बड़ी डील्स में मुझे लगना ही पड़ता था। टेक्नीकल सेल्स के लोग टीम में शामिल हो रहे थे, लेकिन धीरे धीरे। और ऐसे ही किसी को भी तो लाया नहीं जा सकता न कंपनी में? काम कम अवश्य रहे, लेकिन जो काम करें, वो बढ़िया क्वालिटी का होना चाहिए। उसी से रेपुटेशन बनती है।
मेरी बात पर काजल मुस्कुराई, “अच्छी बात है। इतनी गर्मी में तुमको कुछ दिन की राहत मिल जाए तो बुराई नहीं!”
“बच्चे कहाँ सो रहे हैं?”
“बच्चे कहाँ सोते हैं अभी!” वो बोली, “अपने दादा और दीदी के साथ धमाचौकड़ी मचा रहे हैं इस समय!”
“हा हा हा! छुट्टियाँ होने वाली हैं दोनों की! अब तो आफत है तुम सभी की!”
“हा हा हा हा! हाँ आफत तो है!” काजल बड़े विनोदपूर्वक बोली, “लेकिन यही आफत तो हम माओं को अच्छी लगती है। बच्चे न हों, तो यही घर, यही सब सुख सुविधाएँ काट खाने को दौड़ेंगी!”
मैं चुप रहा। फिर छुट्टियों की प्लानिंग का याद आया।
“वेकेशन का सोचा कुछ?”
“फुर्सत कहाँ मिली?”
“हम्म्म... मैंने सोचा है लेकिन... बहुत नहीं... बस थोड़ा ही... उत्तराँचल जा सकते हैं। एक तो बहुत दूर नहीं है, और बहुत सुन्दर भी है। मैं भी साथ में आ सकता हूँ। अगर काम पड़ा, तो वापस दिल्ली आने में बहुत समय नहीं लगेगा!” मैंने उत्साह से कहा, “एक ट्रेवल कंपनी का काम किया था कुछ महीने पहले - उसका सीईओ मेरा अच्छा दोस्त बन गया है। उसी ने कहा कि वो सारा इंतजाम करवा देगा। गाड़ी होटल वगैरह सब!”
मेरी बात सुन कर काजल बड़ी खुश हुई, “अर्रे वाअअअह! बढ़िया है ये तो!” फिर उसने सोचने का अभिनय करते हुए कहा, “लेकिन एक गुप्त बात है!”
“गुप्त बात?”
“हाँ! हमारे वेकेशन और सुनील के हनीमून का अलग अलग इंतजाम करवाना पड़ेगा!”
“क्या? हा हा हा! हनीमून? सुनील का हनीमून?”
“अरे, उसकी शादी होगी, तो हनीमून भी तो होगा!”
“बिलकुल होगा! लेकिन कब हो रही है उसकी शादी?”
“जल्दी ही!” काजल ने रहस्यमई तरीके से कहा, “पता है, उसने अपनी वाली को प्रोपोज़ कर दिया है, और वो मान भी गई है!”
“क्या! क्या! क्या!” मैंने टीवी सीरियल्स के तर्ज़ पर नाटकीय तरीके से प्रतिक्रिया दी, “कोई बताता ही नहीं मुझे कुछ भी इस घर में! इतना खराब हूँ क्या मैं?”
“अरे नहीं! खराब नहीं, बस शर्माते हैं तुमसे!”
“अरे! इतनी अच्छी खबर बांटने में कैसी शर्म? ये तो बड़ी अच्छी बात है!” मैंने उत्साहित होते हुए कहा, “अरे, लड़की के बारे में बताओ। क्या नाम है? क्या करती है? कैसी है? कहाँ की है? सब बताओ!”
“हा हा हा हा हा! तुम भी न... बिलकुल बच्चों जैसे एक्साइट हो रहे हो! अच्छा है।” काजल कुछ सोचती हुई - भूमिका बनती हुई बोली, “बड़ी सुन्दर है बहू - बिलकुल अपने नाम जैसी! फूल समान! और गुणों की खान है वो!”
“अरे वाह! मिली तुम उससे?”
“हाँ न! आज ही!” काजल ने फेंका, “भा गई मुझको तो!”
“अरे तो बताना था न! मैं भी आ जाता! तुम भी न काजल!” मैंने नाटक किया, “तुम्हारी बहू है, तो मेरी भी तो कुछ है न! ऐसे सौतेला व्यवहार किया तुमने मेरे साथ!!”
“अरे बस बस! पूरा सुन तो लो पहले - बाद में शिकायत कर लेना,” काजल हँसते हुए बोली, “बहू यहीं की है... यहीं की मतलब, दिल्ली की। आर्ट्स ग्रेजुएट है - फर्स्ट डिवीज़न, विद डिस्टिंक्शन! शुद्ध हिंदी, और शुद्ध इंग्लिश बोलती है। और तो और, थोड़ी बहुत बंगाली भी बोल लेती है!”
“अरे वाह!” मैंने हँसते हुए कहा, “बढ़िया है फिर तो!”
“हाँ न! और क्या बढ़िया बोलती है - मीठा मीठा! सुन कर बहुत सुख मिलता है कानों को!”
“वाह जी!” मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “लड़की अच्छी है, लड़के को पसंद है, लड़के की माँ को पसंद है - और क्या चाहिए?”
“हाँ - और क्या चाहिए!”
“माँ मिलीं हैं उससे?”
“हाँ!”
“उनको पसंद आई?”
“क्यों नहीं आएगी पसंद? उसके जैसी ही तो है!” काजल कुछ सोचते हुए बोली, “और सच कहूँ? हमको भी शायद इसीलिए पसंद आई कि बहू, बिलकुल दीदी जैसी ही है!”
“हा हा! बहुत अच्छा! बहुत अच्छा! सभी को पसंद है!!” मैंने खुश होते हुए कहा, “लेकिन ये गलत बात है! मेरे पीछे पीछे तुम लोग गुपचुप कुछ कुछ करते रहते हो। कुछ बताते भी नहीं!”
“अरे बता तो रही हूँ! ये सुनील भी न - थोड़ा शर्माता है तुमसे। इसलिए छुपा लेता है कुछ बातें। वो तो मैं ही हूँ कि उसको खोद खोद कर यह सब जान लिया, नहीं तो कहाँ बता रहा था वो मुझे भी!”
“अरे, बीवी लाने में क्या शर्माना!”
“वही तो!” काजल रहस्यमय तरीके से बोली, “मैंने तो इन दोनों की कुण्डली भी मिलवा ली है!”
“क्या! हा हा हा!”
“अरे और क्या! बहुत अच्छा मैच है सच में। पंडिज्जी ने बताया।”
“अच्छा! क्या बताया?”
“छत्तीस में अट्ठाईस गुण मिलते हैं दोनों के!”
“अच्छा है ये तो?”
“बहुत अच्छा है! बोले कि बहुत प्रेम से रहेंगे दोनों, और बहुत स्वस्थ रहेंगे!” काजल अपने में ही खुश होते हुए बोली, “पच्चीस के ऊपर गुण मिलने पर बहुत अच्छा मानते हैं। और भी बहुत से योग हैं जो दोनों के लिए बहुत अच्छे हैं!”
“और क्या चाहिए!” मैं काजल के भोलेपन पर मुस्कुराते हुए बोला।
“हाँ - और क्या चाहिए!” काजल ने कहा, “बस, जल्दी से शादी कर देते हैं उन दोनों की!”
“जल्दी से?”
“और नहीं तो क्या? सुनील के जाने से पहले!”
“अरे! इतनी जल्दी!!”
“और नहीं तो क्या! जाए अपनी बीवी के साथ! संसार बसाए, ज़िम्मेदारियाँ उठाए। एक माँ और क्या चाहती है!”
“हा हा हा हा! जब तुम ऐसे बातें करती हो न काजल, तो लगता है कि हम बूढ़े हो गए!”
“अरे, मेरे बेटे की शादी होनी है, तो हम क्यों बूढ़े होने लगे?” काजल ने बनावटी गुस्से से कहा, और फिर बात पलटते हुए आगे बोली, “लेकिन अमर, इन दोनों की शादी का कुछ करते हैं न!”
“हाँ - करते हैं कुछ। कब तक का प्लान है?”
“समय नहीं है। जितना जल्दी हो सके उतना! या तो इसी हफ़्ते या अगले दस दिनों में?”
“अरे, लेकिन बहू के घर वाले? वो मानेंगे?”
“नहीं मानेंगे तो मना लेंगे!”
“हा हा हा हा हा! मुझे तो लगता है कि सुनील से अधिक तुम उतावली हो रही हो!”
“वो भी है उतावला!”
“ज़रूर होगा। जैसी लड़की तुमने बताई है, कोई भी उतावला हो जाएगा!”
“तुमको भी मिलवाते हैं उससे।”
“हाँ! इतना तो करो ही।”
“जल्दी ही - इसी वीकेंड!”
“हाँ बेहतर!”
इस अनोखी सी बात पर मैं हैरान हो गया। काजल की भाँति मैं भी चाहता था कि सुनील की शादी जब हो, तो बड़ी धूमधाम से हो। लेकिन काजल की इस बात पर भी मैं सहमत था कि धन का व्यर्थ व्यय करने की अपेक्षा, अगर हम नवदम्पति को आर्थिक सहायता करने में उसका उपयोग करें, तो बेहतर होगा। जैसे कि मुंबई में उसके लिए घर खरीदने में मदद दे कर! ऐसा करने से कम से कम उनके पास अपना एक घर हो जाएगा। मुंबई में घर, मतलब एक इन्वेस्टमेंट, जो आगे उनको फ़ायदा दे सकती है। मतलब एक साधारण सा विवाह - जैसे कि कोर्ट मैरिज और फिर एक पार्टी! बस!
मैंने काजल को दिलासा दिया कि कल ही मैं इस बारे में अपने वकील और अपने नेटवर्क में बात करूँगा। और यथासंभव, अति-शीघ्र तरीके से सुनील की शादी उसकी गर्लफ्रेंड से करवा दूँगा।
**
आज की रात, घर के कई सदस्यों के मन में अलग अलग तरह के भाव थे।
मैं कल की कस्टमर मीटिंग और फिर अपने पूरे परिवार के साथ एक सुन्दर सी छुट्टी बिताने के बारे में सोच रहा था। एक समय था जब गाँव में अपने पैतृक घर जाना - मतलब छुट्टी मनाना होता था। अब परिस्थितियाँ बदल गई थीं। गाँव गए हुए समय हो गया था। पड़ोस के चाचा जी, चाची जी, और उनका परिवार बहुत याद आता था। उनसे हमको बहुत ही अधिक प्रेम मिला था। हाँ, इस बार तो उत्तराँचल जाएँगे। देवयानी से पहली (या यह कह लीजिए कि पहली नॉन प्रोफेशनल) मुलाकात वहीं हुई थी, इसलिए वो स्थान एक तरह से मेरे लिए बहुत अधिक महत्ता रखता था। आभा को मसूरी दिखाऊँगा और बताऊँगा उसकी मम्मी से मेरी मुलाकात की बातें, और हमारे प्यार के परवान चढ़ने की बातें! अच्छा रहेगा! हाँ, हफ्ता दस दिन केवल मज़े करेंगे! खूब मज़े करेंगे! इस बार तो और भी अच्छा है - अगर काजल की बातें सभी सही हैं, तो सुनील और उसकी बीवी भी साथ चल सकते हैं - अगर उनका मन किया, तो। हाँ, बहुत दिन हो गए इस घर में ख़ुशी का माहौल बने! बहू आने से वो सब बदल जाएगा। बड़ा अच्छा रहेगा।
काजल - उसकी मनः स्थिति मुझसे थोड़ी अलग थी। मुझको सारी बातें ठीक से न बताने का मलाल उसको साल रहा था। ऐन मौके पर उसकी हिम्मत ने उसको धोखा दे दिया। ‘कैसे बताऊँ अमर को ये सब!’ ‘कहीं वो नाराज़ न हो जाए!’ बस यही विचार उसके मन में बार बार आ रहा था। ‘लेकिन वो नाराज़ क्यों होगा? अगर मेरा और उसका सम्बन्ध बन सकता है, वो मेरे बेटे का और सुमन का क्यों नहीं?’ काजल मन ही मन इस बात को जस्टिफाई करने पर लगी हुई थी। जिस राह पर सुनील और सुमन चल पड़े हैं, उस राह की परिणति सभी जानते हैं। प्रेम कोमल अवश्य होता है, लेकिन वो ऐसा बलवान होता है कि उसमें सूर्य से भी अधिक गुरुत्वाकर्षण होता है। मतलब सुनील और सुमन को एक बंधन में बंध जाना है। इसलिए अमर का इस बारे में जानना आवश्यक है। और उसका इस सम्बन्ध को स्वीकार करना भी आवश्यक है। एक संतान अपने माता-पिता को ले कर बहुत पसेसिव होती है। माता या पिता दूसरा विवाह कर ले, तो इस बात को आसानी से स्वीकार नहीं करती। काजल ने देखा था जब आरम्भ में अमर और देवयानी की शादी की बात उठी थी। उसको बिलकुल अच्छा नहीं लगा था यह सब सुन कर। उसको लगता था और यकीन भी था कि अब उसकी अम्मा और उसके भैया एक हो जाएँगे। काजल ने बड़े जतन से, और बड़े गाम्भीर्य से उसको समझाया था कि अमर अवश्य ही उससे शादी करना चाहता था, लेकिन वो उससे शादी नहीं करना चाहती थी। और उसके कारण भी बताए थे, जो आज तक नहीं बदले! काजल ने सुनील को समझाया था कि वो स्वयं भी चाहती है कि अमर और देवयानी एक हो जाएँ! अच्छी बात थी कि उसको यह बात समझ में आ गई थी। अब यही बात अमर को समझानी थी।
सुनील में मन में तो जैसे तितलियाँ उड़ रही थीं। जहाँ एक तरफ उसको अपना वर्षों पुराना सपना साकार होते हुए दिख रहा था, वहीं शादी और परिवार जैसी गंभीर ज़िम्मेदारी का दबाव भी बनता दिख रहा था। उसके अकेले के बूते यह संभव नहीं था - वो इस बात को अच्छी तरह समझता था। लेकिन सुमन जैसी साथी अगर हो, तो फिर चिंता कैसी? अम्मा को सुमन के बारे में बताना और समझाना आसान रहेगा। बस, डर है तो भैया का। वो क्या सोचेंगे? क्या करेंगे? उनको कैसे बताया जाए? यही एक यक्ष प्रश्न है इस समय! ‘कोशिश कर के कल ही बता देता हूँ!’ वो सोच रहा था, ‘उनकी गालियाँ बर्दाश्त कर लूँगा, माफ़ी माँग लूँगा - लेकिन मना लूँगा। अब चूँकि मेरा और सुमन का भविष्य जुड़ गया है, तो भैया का आशीर्वाद पाना मेरे लिए सबसे ज़रूरी है।’ और अगर सब कुछ सही रहा और उनकी और अम्मा की रज़ामंदी हो गई, तो जल्दी ही शादी कर लेंगे! सही में - अगर सुमन साथ ही चले मुंबई, तो क्या ही अच्छा हो!
माँ! वो तो इस समय किसी छोटी बच्ची के जैसे महसूस कर रही थीं। पिछले दो चार दिनों में उनके साथ जो कुछ हो गया था, और उन्होंने जो कुछ महसूस कर लिया था, वो सब एक परीकथा जैसा लग रहा था! ऐलिस इन वंडरलैंड! एक एक कर के उनके साथ बस अनोखा अनोखा होता जा रहा था। कितना सारा संशय था उनको। लेकिन अब वो सब बेबुनियाद लग रहा है। बिना वजह ही उन्होंने सुनील की मंशा पर संदेह किया! एक नया परिवार पाना उनके लिए एक अनदेखा सपना था। वो साकार होते हुए दिख रहा था। उस परिवार में उनकी सबसे प्यारी सहेली उनकी माँ के रूप में थी। एक सुदर्शन सा पुरुष उनका पति होने वाला था। और एक गुड़िया सी लड़की उनकी ननद! आज अपनी नई माँ के स्तनों से दुग्धपान कर के उन्होंने उस सुख का अनुभव कर लिया था, जिसकी स्मृतियाँ अब लुप्त हो चुकी थीं। उम्मीद है कि देवी माता अपनी अनुकम्पा ऐसे ही उन पर बनाए रखें! मिष्टी और अमर को पीछे छोड़ने का सोच कर उनको दुःख भी हो रहा था, लेकिन एक स्त्री की नियति भी तो यही होती है न कि अपना घर छोड़ कर किसी और के घर जाए और उसका संसार बसाए। हाँ - एक नया संसार बनाना! ईश्वर ने यह शक्ति तो केवल स्त्री को ही दी हुई है। कैसी अद्भुत सी भावना उत्पन्न होती है यह सोच कर! किसी नई नवेली दुल्हन जैसी ही भावनाएँ, उसके जैसी ही चेष्टाएँ और उसके ही जैसी आशाएँ उनके माँ में जन्म लेने लगीं। सुनील की ही भाँति उनके भी मन में तितलियाँ उड़ने लगीं।
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विवाह के पूर्व विचारों का भंवरअंतराल - विपर्यय - Update #2
अगले दिन :
आज सुनील और माँ दोनों ही अपनी दिनचर्य के अनुसार ही सुबह सुबह दौड़ने निकल लिए। माँ को सुनील के साथ संकोच भी हो रहा था और रोमांच भी। और उधर सुनील को महसूस हो रहा था कि वो दौड़ नहीं रहा, बल्कि उड़ रहा है। प्रेम में होने की भावना किसी भी व्यक्ति का कायाकल्प कर देती है। जब दोनों दौड़ कर वापस आए, तब मैंने सुनील से कस्टमर मीटिंग के लिए अपने साथ आने को कहा। मीटिंग में उसका आना आवश्यक नहीं था, लेकिन मैं चाहता था कि पुराने समय के जैसे ही मैं उससे बात कर सकूँ। घर में तो हम दोनों ही अल्पमत में थे - मतलब चार लड़कियों के बीच में हम दो लड़के! तो कभी कभी मन होता था कि हमारा भी ‘बॉयज टाइम’ हो! मेरी बात पर सुनील मेरे साथ ऑफिस चलने पर तुरंत ही तैयार हो गया।
उधर, आज लतिका और आभा के स्कूल में, गर्मियों की छुट्टियाँ शुरू होने से पहले का आखिरी दिन था। लिहाज़ा आज रिजल्ट के साथ साथ समर वेकेशन का पैकेट मिलने वाला था, जिसमें एनुअल मैगज़ीन के साथ साथ समर एक्टिविटीज़ और होम वर्क इत्यादि होते थे। काजल उस बावत उन दोनों के साथ स्कूल जाने वाली थी। लिहाज़ा, दौड़ कर घर वापस आने के बाद माँ ही नाश्ता इत्यादि बनाने का काम देख रही थीं। बहुत दिनों से रसोई का काम न करने के कारण माँ की स्पीड धीमी ही थी। तो पहले बच्चों और काजल को नाश्ता करा कर, और उनके लंचबॉक्स तैयार कर के माँ ने मुझे और सुनील को नाश्ता कराया। हमको विदा करने के बाद उन्होंने अपना नाश्ता किया। एक बेहद लंबे समय के बाद यह सब हुआ था; और यह भी कि माँ ने सबसे आखिरी में खाया हो! एक गृहणी के रूप में यह सब बहुत पहले वो कर चुकी थीं। अपने पुराने दिनों को याद कर के उनके होंठों पर बरबस ही एक स्निग्ध मुस्कान आ गई।
वैसे वो आज अपनी दिनचर्या में इस बदलाव को देख कर खुश थीं। अक्सर डिप्रेशन की मार झेल रहे लोगों को उनकी दिनचर्या में ऐसे अचानक बदलाव देख कर उलझन होने लगती है, लेकिन माँ अब बहुत ठीक थीं। अब यह कहना कठिन था कि वो अवसाद का शिकार थीं। हाँ - माँ ठीक तो बिलकुल ही थीं, लेकिन उनके मन में परस्पर विरोधी भावनाएँ उत्पन्न हो रही थीं। जहाँ एक तरफ वो इस बात पर राहत महसूस कर रही थीं कि सुनील घर में नहीं था, वहीं दूसरी तरफ वो उसके लिए तरस भी रही थीं। प्रेम में होना बड़ा मुश्किल समय होता है प्रेमियों के लिए! जब उन्होंने सुनील को अपना पति मान ही लिया था, तो अब उससे दूर होना या रहना थोड़ा कठिन विचार था। और क्यों न हो? सुनील के साथ बिताया हर पल, जैसे आश्चर्यों से भरे बक्से को खोलने जैसा था। कोई क्षण ऐसे नहीं जाता था जब हँसे - मुस्कुराए बिना रहा जाए!
ऊँ हूँ अच्छा ह्म्म्म्म‘‘इनकी’ पत्नी बनना कैसा होगा?’ माँ पिछले दो दिनों से यही कल्पना करने लगी थीं।
वाकई, सुनील की पत्नी होना माँ के लिए एक अद्भुत अनुभव होगा। सुनील जीवन की नवीन ऊर्जा से लबरेज़ था, और अपने और अपनी होने वाली पत्नी के साथ अपने भविष्य के लिए उसकी आँखों में बहुत सारे सुनहरे सपने थे। उससे बात करने में कितना मज़ा आता है! वो हमेशा चुटकुले सुनाता रहता है। घर में हर किसी को आश्चर्य होता है कि उसको इतने सारे चुटकुले आखिर आते कैसे हैं! हाँ, वो बहुत खुशमिजाज था। उसके अंदर किसी भी तरह का कपट नहीं था। वो प्रेम और स्नेह से पूर्ण, सम्मानजनक, और ज़िम्मेदार आदमी था। बचपन से ही वो समझ गया था कि उसे जीवन में कुछ हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करने की ज़रूरत है, जिससे वो अपनी अम्मा और छोटी बहन की देखभाल कर सके। और अब उसने अपने उस उद्देश्य को प्राप्त कर लिया था। उसने वो जीवन कौशल हासिल कर लिया था जिसके बूते वो संसार में अपनी एक पहचान बना सकता था। वो बहुत बुद्धिमान था, और अपने विषय में बहुत जानकार भी था। अपनी कक्षा में टॉपर्स में से एक था। साथ ही, वो मेरे बिज़नेस में मेरी मदद कर रहा था, जो एक बड़ी अच्छी बात थी! उसको कैंपस में ही एक उच्च वेतन वाली नौकरी मिल गई थी, जो उसके करियर के लिए एक बहुत अच्छा संकेत था।
वो एक सरल व्यक्ति था - वो बस कई छोटी-छोटी खुशियों को इकठ्ठा करने में विश्वास रखता था, और इसलिए वो हमेशा खुश रहता था। किसी फूल पर मँडराती नन्ही सी तितली को भी देखकर वो खुश हो सकता था! इतना सरल था सुनील! जो वो महसूस करता, जो वो सोचता, जो वो करता, और जो वो कहता - सब एक ही बातें होती थीं! अन्य लोगों की तरह सोचने, बोलने और करने में वो अंतर नहीं करता था! उसके व्यवहार में कोई छल नहीं था, कोई कपट नहीं था। किसी तरह, उसने एक सरल जीवन जीने का तरीका खोज निकाला था। वो सहज, साहसी और बेहद मजेदार व्यक्ति था! माँ को वो कभी भी अपनी बातों, अपनी हरकतों से आश्चर्यचकित कर सकता था। माँ भी बहुत खुशमिजाज और मौज-मस्ती करने वाली स्त्री थीं... बस उनका व्यवहार डैड की मृत्यु के बाद बदल गया था। लेकिन अगर वो फिर से पहले ही जैसी हो जाएँ वो कितना अच्छा हो!? इस लिहाज से देखा जाए, तो उस समय हमारे पास, माँ के लिए सुनील से अच्छा वर और कोई नहीं हो सकता था।
सुनील हैंडसम भी था - अपनी अम्मा की ही तरह वो भी साँवला था... और उसकी आँखें सुंदर और अभिव्यंजक थीं। अभिव्यंजक इसलिए क्योंकि उसके मन की बातें उसकी आँखों और चेहरे पर साफ़ दिखाई देती थीं। फैशन के नाम पर थोड़ा कच्चा था - अपने बालों को वो बहुत छोटा रखता था - लगभग मिलिट्री स्टाइल का! लेकिन कुछ बात थी कि वो हेयर स्टाइल उसके चेहरे और उसके व्यक्तित्व पर अच्छी लगती थी। फैशन सेन्स में जो कमी थी, वो शारीरिक फिटनेस, और व्यायाम से दृढ़ हुए शरीर से पूरी हो जाती थी।
ओह, और उसका लिंग... कितना बड़ा था! डैड के लिंग के मुकाबले बहुत बड़ा!
उरी बाबा दारुन दादा भीषोण दारुनजिस तरह से डैड माँ से सम्भोग करते थे, उससे ही माँ खुश और संतुष्ट थीं। लेकिन उनके सम्भोग के सत्र छोटे होते थे - करीब पाँच से दस मिनट तक! लेकिन माँ को मालूम था कि मैं गैबी, देवयानी, और काजल के साथ बड़े लम्बे समय तक सम्भोग करता था, और कई कई बार करता था। इसलिए माँ जानती थी कि कुछ युगलों के सम्भोग सत्र बहुत लम्बी अवधि वाले, और भावनात्मक रूप से अंतर्निहित, और अधिक घनिष्ट हो सकते हैं। उनके मन में यह ख्याल था कि संभव है कि लिंग के आकार का सम्भोग के सत्र की गुणवत्ता पर कोई प्रभाव पड़ता हो!
‘तो, क्या इसका मतलब यह है कि ‘वो’ मेरे साथ लंबे समय तक ‘यह सब’ करेंगे!’ माँ उसी तर्क से सोच रही थी।
वाव ह्म्म्म्मडैड के साथ प्रेम-प्रसंग की अवधि से माँ संतुष्ट थीं और खुश थीं। अपने साथ देर तक, और कई बार सम्भोग होने की सम्भावना सोच कर ही वो सिहर उठी। उनके लिए यह कल्पना कर पाना भी काफी अलग था और मुश्किल था। पुनः प्रेम पाने की कोमल कल्पनाओं का मन ही मन आस्वादन करते करते कोई दो घण्टे हो गए। तब जा कर माँ को याद आया कि अभी तक उन्होंने नहाया भी नहीं! अपनी अन्यमनस्कता को देख कर माँ भी अपने ऊपर हँसे बिना न रह सकीं!
शावर के नीचे खड़े हुए भी उनको यही सब विचार आ रहे थे।
‘‘इनके’ साथ घर बसाना कैसा होगा?’
एक बार किसी का घर बसने के बाद, फिर से किसी और का घर बसाना - यह उनको एक भारी भरकम काम महसूस हो रहा था। डैड के साथ उनका वैवाहिक जीवन संघर्ष से भरा हुआ था। बेहद कम उम्र में शादी, और शादी के नौ महीने में ही माँ बन जाना, एक छोटे बच्चे के लालन-पालन के साथ साथ ग्रेजुएट तक अपनी पढ़ाई पूरी करना, तिनका तिनका जमा कर के अपना आशियाना बनाना, कम में संतुष्ट रहना, जो बचे उसको दूसरों के साथ साझा करना - यह सब करने में हर पग माँ ने अपनी इच्छाओं की तिलांजलि दी। इतनी, कि अब सपने देखने में भी उनको घबराहट होने लगी थी।
लेकिन सुनील ने उनकी हर इच्छा-पूर्ति होने का वायदा किया था। मज़ेदार बात है न? इस समय न तो उसके पास ही कुछ था, और न ही माँ के पास! ऐसे में अपना संसार बसाने का सपना देखना और भी रोमाँचक महसूस हो रहा था!
नहा कर बाहर आने के बाद माँ ने अपने कमरे के आईने के सामने खड़े होकर अपने नग्न शरीर का मूल्यांकन किया। काजल सही तो कहती है - वो अपनी उम्र की महिलाओं के मुकाबले कोई पंद्रह साल कम की लगती हैं। उनका शरीर कसा हुआ था - पेट सपाट था। शरीर के कटाव सौम्य थे, और वसा की फ़िज़ूल मात्रा नहीं के बराबर थी। उनके स्तन अभी भी ठोस थे; गोल गोल थे; और अपनी उम्र की अधिकतर महिलाओं के मुकाबले छोटे थे - छोटे क्या, समझिए आकार में आधे थे! न तो उम्र का, और न ही गुरुत्व का ही कोई भी हानिकारक प्रभाव उन पर पड़ा था। ऐसे में वाकई वो किसी पच्चीस छब्बीस साल की लड़की जैसी लगतीं!
‘नारंगियाँ!’ माँ को सुनील की अपने स्तनों के लिए दी गई उपमा याद आ गई। उसकी इस बात पर माँ को हँसी आ गई।
भयंकर अति भयंकरआज कल की लड़कियाँ तो बीस पच्चीस की होते होते ही अपने यौवन की दृढ़ता खो देती हैं... खराब जीवनशैली, जंक-फूड खाने की आदतों, और बेहद अनुशासनहीन और आलसी जीवनशैली के कारण उनका यह बुरा हाल होता है। इसीलिए ज्यादातर लड़कियाँ मोटी हो जाती हैं, और उनके शरीर का आकार गोल हो जाता है। उनके पेट के चारों ओर, और पुट्ठों और जाँघों पर वसा के विशाल झोले लटकने लगते हैं, जो लगभग टायर की तरह दिखते हैं! स्तनों का आकार विकराल हो जाता है। अधिकतर लड़कियों और महिलाओं का शरीर गुँथे हुए आटे जैसा हो जाता है - न कोई कसावट और न ही कोई लोच! उनके विपरीत, माँ का पेट काफी सपाट था। उनके पैर और हाथ काफ़ी मजबूत थे, क्योंकि वो बहुत काम करती थी और अन्य महिलाओं की तरह आराम नहीं करती थी। वो एक से डेढ़ घंटे ब्रिस्क वॉक करती थीं, और योग और स्ट्रेच भी करती थीं। वो पूरी तरह से फिट थीं और मज़बूत थीं!
‘इतना चिकना... इतना मजबूत।’ सुनील के शब्द उसके दिमाग में कौंध गए।
अरे अरे अरेमाँ को अचानक ही याद आया कि कैसे उन्होंने मेरी सुहागरात के लिए गैबी की योनि को मेंहदी से सजाने की योजना बनाई थी। और गैबी का फीडबैक बहुत दिलचस्प था।
‘मैं भी कुछ ऐसा ही करूंगी।’
जाने-अनजाने माँ भी सुनील के साथ अपने वैवाहिक भविष्य की योजना बना रही थी, ‘मेरी पूची पर ‘उनका’ नाम - यह उनके लिए एक अच्छा सरप्राइज होगा।’ माँ ने सोचा।
सजना है मुझे सजना के लिए‘स्वस्थ और मजबूत बच्चे।’
माँ ने अपने पेट को छुआ। सुनील की बातें उसके दिमाग में कौंधती रहीं।
‘हमारे दो बच्चे होंगे... कम से कम... तुम कितनी सुंदर लगोगी!’
माँ ने खुद को गर्भवती स्त्री के रूप में देखने के लिए जान-बूझकर अपना पेट फुलाया, कि क्या वो वाक़ई एक बड़े, गर्भवती पेट के साथ सुंदर दिखेगी। दर्पण में उन्होंने अपना जो आकार, जो रूप देखा, उनको वो बहुत अच्छा लगा। अपने प्रथम गर्भाधान की कोई याद ही नहीं बची थी माँ को! कितनी पुरानी बात हो गई थी! कितने ही वर्षों से दबी हुई इच्छाएँ वापस उभर आईं।
‘मेरे भविष्य के बच्चों का पालना…’
माँ ने सोचा कि सुनील कितनी बेसब्री से उनको प्रेग्नेंट करना चाहते हैं! इस बात पर उनको एक दबी हुई हँसी आ गई। सोच कर उनको शर्म भी आई और अच्छा भी लगा। जो सपना देखना उन्होंने सालों पहले बंद कर दिया था, उसके साकार होने की सम्भावना बड़ी रोमांचक लग रही थी।
‘मुझे प्रेग्नेंट करना...,’ माँ ने सोचा और अपने योनि के होठों को छुआ, ‘...निश्चित रूप से ये अभी ढीली तो नहीं हुई है!’
माँ ने याद करते हुए सोचा कि वो तो डैड के लिंग से भी भरा हुआ महसूस करती थीं। लेकिन सुनील का लिंग तो काफी बड़ा है! माँ ने अपनी तर्जनी को अपनी योनि के अंदर डालने की कोशिश की! इस हरकत पर उनको दर्द हुआ, तो उन्होंने उंगली को तुरंत बाहर निकाल लिया। नहाने के बाद, योनि का प्राकृतिक चिकनापन धुल गया था, लिहाज़ा सूखी हुई योनि में, सूखी हुई उंगली डालना आसान या आनंददायक काम नहीं था।
‘बिल्कुल भी ढीली नहीं है,’ माँ ने सोचा, ‘अच्छा है!’
काजल ने उनको फ़ीका फ़ीका न पहनने के लिए कहा था। सुनील की भी यही इच्छा थी! इसलिए आज वो कुछ मनभावन रंग के कपड़े पहनना चाहती थीं। उन्होंने एक खुबानी-नारंगी रंग की जॉर्जेट साड़ी और उससे ही मिलती ब्लाउज का चयन किया। साड़ी पर गहरे नीले रंग के बूटे बने हुए थे, और उसी रंग का बॉर्डर था। उतने से ही उनका सौंदर्य निखर कर सामने आ गया। ऐसे मनभावन कपड़े पहन कर माँ ने बहुत हल्का सा मेकअप किया - बस हल्के नारंगी रंग का लिप ग्लॉस और एक छोटी सी, नारंगी रंग की ही बिंदी लगाई। साथ ही साथ आँखों में पतली सी काजल की रेखा। फिर उन्होंने अपने आप को आईने में देखा, और यह देखकर बहुत प्रसन्न हुई कि वो बहुत सुंदर लग रही थीं।
हायमाँ ने डैड की मौत के बाद इतने लंबे समय में इतनी तन्मयता से वो कभी तैयार नहीं हुई थीं। और इतनी खुशी भी महसूस नहीं की थीं। सच में, अच्छे अच्छे, सुन्दर सुन्दर कपड़े पहन कर सभी को अच्छा तो महसूस होता ही है!
खैर, इधर उनका तैयार होना समाप्त हुआ, और उधर घर की कॉल-बेल बजी।
माँ ने घड़ी की तरफ़ देखा - कोई साढ़े ग्यारह बज रहे थे! माँ ने सोचा कि शायद काजल होगी।
दरवाज़ा खुलते ही माँ ने सुनील को देखा!
उसको देखते ही माँ का दिल धड़क उठा!
कुछ बोलने के लिए उनके होंठ हिले, लेकिन उनकी कोई आवाज़ ही नहीं निकली!
दूसरी ओर, माँ को देखते ही सुनील की तो दिल की धड़कनें ही रुक गईं!
माँ आश्चर्यजनक रूप से सुंदर लग रही थी! बिलकुल अप्सरा!
एक तो माँ ने बेहद हल्का सा मेकअप किया हुआ था, दूसरा, उन्होंने फ़ीकी साड़ी पहनने के बजाय एक खुशनुमा रंग की साड़ी पहनी थी, और तीसरा, वो अंदर से भी प्रसन्न लग रही थीं। उसने माँ की ओर बड़े आश्चर्य से देखा। काफ़ी पहले एक प्रचार में देखा था बोलते हुए कि, यू आर नेवर फुली ड्रेस्ड विदआउट अ स्माइल! माँ के होंठों पर एक स्निग्ध मुस्कान तो दिखाई दे रही थी। साथ ही उनकी आँखें भी मुस्कुरा रही थीं, और उनका चेहरा किसी गुप्त बात पर ख़ुशी से दमक रहा था!
‘आह! कैसी अप्रतिम सुंदरी! कैसा बढ़िया भाग्य!’
सुनील माँ को कई क्षणों तक मूर्खों की तरह घूरता रहा। वो उनकी ऊषाकाल जैसी सुंदरता देख कर अवाक रह गया था। उधर माँ भी सुनील की आँखों में विभिन्न बदलते भावों, और उनमें अपने लिए उसकी इच्छा को देख रही थी! आखिर कब तक वो उसकी चाह भरी नज़रों का सामना करतीं? कुछ पलों के बाद वो उससे नज़रें नहीं मिला सकीं, और उन्होंने शर्म से मुस्कुरा कर अपनी आँखें नीची कर लीं।
माँ ने खुद को सुनील के साथ घर में अकेले होने की उम्मीद नहीं की थी। इतनी जल्दी तो बिलकुल भी नहीं! माँ ने एक बहुत लंबे समय में इतना शर्मीला कभी महसूस नहीं किया था। उनको इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि अपनी पोशाक में इतने साधारण से बदलाव का सुनील पर इस तरह का प्रभाव पड़ेगा! अपने मन ही मन माँ बहुत प्रसन्न हुईं। यह उनके लिए कई मायनों में बहुत अच्छा था। अब वो अपने बारे में बेहतर महसूस कर रही थी, और सुनील के साथ अपने भावी, आशामय जीवन की प्रतीक्षा कर रही थी।
“सुमन, मेरी प्यारी,” जब उसे होश आया, तब वो फुसफुसाते हुए बोला, “तुम्हें पता भी है कि तुम कितनी सुंदर हो!?”
सुनील ने घर में प्रवेश करते हुए अपने पीछे दरवाजा बंद कर लिया।
माँ को ऐसे देख कर उसके अंदर की इच्छाएँ बलवती हो गईं। उसने उनकी ओर दो या तीन बड़े कदम उठाए, माँ ने भी झिझकते हुए एक दो छोटे कदम पीछे की तरफ लिए। माँ सुनील से दूर नहीं रहना चाहती थीं - वो चाहती थीं कि वो सुनील के करीब रहें। जब उन्होंने सुनील को मन ही मन अपना पति मान लिया था, तो और क्या सोचतीं? लेकिन मर्यादा की माँग थी कि वो कुछ दूरी बनाए रखें। लेकिन सुनील को किसी भी मर्यादा की कोई परवाह नहीं थी। वो माँ के बेहद करीब आ कर खड़ा हो गया, और उसने उनकी कमर थाम ली। और फिर मुस्कुराते हुए, और माँ की आँखों में देखते हुए वो गुनगुनाने लगा,
“खुदा भी, आसमां से, जब ज़मीं पर देखता होगा…
मेरे महबूब को किसने बनाया, सोचता होगा…”
ऑए होए हायहाँलाकि माँ अपनी मुस्कान को दबाना चाहती थीं, लेकिन फिर भी उनके होंठों पर सुनील के तारीफ करने के अंदाज़ पर एक शर्मीली और खूबसूरत सी मुस्कान आ ही गई। उन्होंने फिर से शर्म से अपनी आँखें नीची कर लीं।
सुनील स्वयं पर अब और नियंत्रण नहीं कर सकता था। सुन्दर अप्सराओं के सामने तो बड़े बड़े तपस्वी भी पानी भरते हैं, तो उस बेचारे नाचीज़ की क्या बिसात थी? वो बहुत लंबे समय से माँ के सान्निध्य के लिए तरस रहा था, और अब वो अपने जुनून को नहीं रोक सकता था। वर्षों से चलती उसकी तपस्या का पुरस्कार उसके सामने था - उसकी सुमन के रूप में! उसने अपने दोनों हाथों से माँ के दोनों गालों को थामा, और धीरे से उन्हें दबाया। ऐसा करने से माँ के होंठ एक सुंदर और चूमने योग्य थूथन के रूप में बाहर निकल आये। माँ ऐसी प्यारी सी लग रही थी कि अब उनको चूमे बिना नहीं रहा जा सकता था। तो सुनील ने उनको उनके मुँह पर चूमा और बहुत देर तक चूमा।
माँ को माउथ-टू-माउथ चुम्बन के बारे में पता था, और उन्होंने डैड के साथ इसका आनंद हमेशा ही उठाया था; लेकिन उनको सुनील के चुंबन करने का तरीका डैड के चूमने से बहुत अलग लगा। उसके चुम्बन में एक कामुक आवेश था, लेकिन एक विचित्र सी कोमलता भी थी। उसके चुंबन में आग्रह था; उसके चुम्बन में माँग थी कि माँ भी उसी की ही तरह चुम्बन का आवेशपूर्वक उत्तर दें। सुनील माँ के साथ जो कुछ भी करता था उसमें बहुत ऊर्जा डालता था। और वो ऊर्जा साफ़ दिखाई भी देती थी।
माँ पिघल गईं। अपने युवा प्रेमी से मिल रहे प्रेम से माँ पहले ही बहुत खुश थीं। सुनील, डैड के मुकाबले कहीं अधिक रोमांचक प्रेमी के रूप में सामने आ रहा था। वैसे तो माँ ने उन दोनों के बीच कोई तुलना न करने के सोची हुई थी, लेकिन लगभग अट्ठाईस वर्षों के वैवाहिक अनुभव को अपने मन से यूँ ही, तुरंत निकाल पाना संभव नहीं है।
जब उन्होंने अपना पहला चुंबन तोड़ा, तो सुनील ने गाने को थोड़ा और गुनगुनाया,
“मुसव्विर खुद परेशां है की ये तस्वीर किसकी है...
बनोगी जिसकी तुम ऐसी हसीं तकदीर किसकी है...”
सुहाग दिन के लिए, दिल बेकरार हो गयाउस चुम्बन ने साफ कर दिया था कि यह तो सुनील का सौभाग्य है कि माँ अब उसकी हैं... हमेशा के लिए... उसकी पत्नी के रूप में! माँ मुस्कुराई... इस बार थोड़ा अधिक खुलकर, लेकिन फिर भी शर्मीली सी!
“कभी वो जल रहा होगा, कभी खुश हो रहा होगा
खुदा भी, आसमां से, जब ज़मीं पर देखता होगा…”
माँ सुनील द्वारा अपनी बढ़ाई किए जाने पर शर्माती जा रही थीं, और सुनील अपने रोमांटिक अंदाज़ में माँ की बढ़ाई करता जा रहा था,
“ज़माने भर की मस्ती को निगाहों में समेटा है…
कली से जिस्म को कितने बहारों ने लपेटा है…
नहीं तुम सा कोई पहले, न कोई दूसरा होगा…
खुदा भी, आसमां से, जब ज़मीं पर देखता होगा…”
सुनील ने बड़ी अदा से गाया, और फिर एक गहरा निःश्वास भरा। माँ ने मुस्कुराते हुए अपने ‘होने वाले’ पति को देखा।
“सुमन... मेरी सुमन... मेरी प्यारी सुमन! मुझसे अब और बर्दाश्त नहीं हो पाएगा!” सुनील बोला, उसकी आँखों में कामुक वासना साफ़ दिखाई दे रही थी, “मुझे तुम्हारा कली जैसा जिस्म देखना है!”
सुनील मुस्कुराया - हाँलाकि उसके चेहरे पर उत्तेजना की तमतमाहट, और एक अलग ही तरीके की विकलता और घबराहट दिख रही थी - और फिर आगे बोला, “आज... मैं जो कुछ भी करूँ, वो मुझे कर लेने देना!”
माँ के दिल में एक धमक सी उठी - ‘तो अब समय आ ही गया’!
हाँलाकि माँ सुनील को मन ही मन अपना पति स्वीकार कर चुकी थीं, लेकिन फिर भी वो उसके साथ यौन सम्बन्ध बनाने के लिए अभी भी मानसिक और भावनात्मक रूप से तैयार नहीं हुई थीं - और शायद अपने आप से कभी हो भी न पातीं। आशंका, लज्जा, और अज्ञात की परिकल्पना - ऐसे अनेक कारण थे, जो उनको रोक रहे थे। और ऊपर से उन दोनों के बीच उम्र का एक लम्बा चौड़ा फ़ासला! लेकिन सुनील को तो जैसे इन सब बातों की कोई परवाह ही नहीं थी। वो जानता था कि सुमन अब उसकी है - उसकी पत्नी! कल ही उसने उनके शरीर के हर हिस्से को अपने चुम्बनों से अंकित किया था। और तो और, उसने उनसे अपने प्रेम का इज़हार भी किया था, और अपनी पत्नी बन जाने का आग्रह भी! माँ ने उसकी किसी बात पर मना नहीं किया, और न ही कोई विरोध दर्शाया। तो मतलब उसके साथ उनके सम्बन्ध के लिए उनकी भी सहमति थी! और अभी भी सुनील जो कुछ कर रहा था, उसमे माँ का सहयोग होता दिख रहा था।
सुनील ने माँ का हाथ पकड़ा, और उनको उनके ही कमरे की ओर ले जाने लगा। माँ भी स्वतः उसके पीछे पीछे चल दीं। माँ के कमरे में जाना एक बढ़िया विकल्प था! जब माँ अपने कमरे में होतीं थीं, उस समय उनको कोई परेशान नहीं करता था। बाकी सभी के कमरे के दरवाज़े पर कभी भी किसी की भी दस्तखत होती ही रहती थी, और कोई भी किसी न किसी बहाने से अंदर घुस जाता था। वो माँ के साथ जो कुछ करना चाहता था, उसे करने के लिए सुनील को कोई बाधा नहीं चाहिए थी, जो माँ के कमरे में ही उपलब्ध थी। कमरे के अंदर दाखिल होते हुए, उसने अपने पीछे कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया।