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भाई बढ़िया हूँसंस्कार मज़बूत हों, तो भटकाव होने का चाँस कम ही होता है।
इस परिवार में संस्कार मज़बूत है, और प्यार उससे भी अधिक।
बस उसी दिशा में सब जा रहा है, जो मेरे सुधी पाठकों को दिख रहा है।
मैं सस्पेंस नहीं लिख पाताहा हा!
उसकी गारंटी है भाई - प्रेम तो बहुत मिलेगा आगे!
कैसे हैं आप अब?
With due respectऔरते जितनी तेजी से किसी सदमे से उबरती है उतना मर्द नही उबर पाता। मर्द अपने प्रिय की यादें बहुत बहुत दिनो तक अपने दिल मे बसा कर रखता है।
जिस तरह से लड़की अपने पहले प्रेम को कुछ दिनो के बाद भुलाकर आगे बढ़ जाती है , किसी दूसरे के साथ रिलेशन बना लेती है , या शादी कर अपने गृहस्थ जीवन मे रत हो जाती है उस तरह मर्द नही कर पाते। औरते अपने प्रेमी को शादी के कुछेक दिन या महीने बाद ही भुला देती है।With due respect
असहमत। ये गुण दोनो में होते हैं, इसमें कोई स्त्री और पुरुष के वर्चस्व वाला सवाल ही नहीं।
बात होती है बस उस गैप को भरनेकी, और जहां तक सुनील की बात है, अमर चाहे जितना भी चाह ले, सुनील वो गैप पूरा नहीं कर सकता, कारण सुनील को कभी अमर ने बच्चे जैसा पाला है, वहीं अगर जो सुनील नितांत अजनबी होता तब शायद ये गैप पूरा कर पाता।
और वैसे भी अमर थोड़ा इमोशनल फूल टाइप बंदा है, और ये गुण शायद उसे अपने पिता से ही मिला है।
जैसा आपने कहा, भूल कर किसी और के साथ आगे बढ़ जाती हैं। जरूर, लेकिन भूल तो नहीं ही पाती हैं। हां आदमी जरूर अपने कंफर्ट जोन से बाहर आने में समय लेता है, औरत मुकाबले में, लेकिन बाहर दोनो तभी आते है, जब विकल्प अच्छा मिलता है।जिस तरह से लड़की अपने पहले प्रेम को कुछ दिनो के बाद भुलाकर आगे बढ़ जाती है , किसी दूसरे के साथ रिलेशन बना लेती है , या शादी कर अपने गृहस्थ जीवन मे रत हो जाती है उस तरह मर्द नही कर पाते। औरते अपने प्रेमी को शादी के कुछेक दिन या महीने बाद ही भुला देती है।
मर्द अपने प्रेम और पार्टनर को अपने दिलो-दिमाग से जल्द हटा ही नही पाते। कभी कभी जीवन भर उसकी याद को अपने सीने से लगाए रखते है।
कुछ अपवाद जरूर है लेकिन मर्द और औरत की यह आम चरित्र होती है।
ऐसा ही मृत्यु के मामले मे भी होता है। औरत इमोशनल बहुत होती है लेकिन कुछ चीजे ऐसी होती है जहां मर्द उनसे अधिक इमोशनल होता है।
भाई बढ़िया हूँ
क्या करूँ यह मार्च का महीना उफ
खैर आपकी कहानी बहुत जबरदस्त जा रही है
जैसा कि आपने कहा कहानी में प्रेम और संस्कार है
क्या यही संस्कार अमर के मन में कहीं कहीं ग्लानि भाव से ग्रसित नहीं करेगा
करेगा तभी तो उसने बुआ का संबोधन कर पैर पकड़ लिए
खैर यह प्रेम का अद्भुत और बहू आयामी कहानी है
मुझे प्रतीक्षा रहेगी अगली कड़ी की
सुनील बहुत ही अच्छा इंसान है। सुमन को हसबैंड की मृत्यु के पश्चात न सिर्फ सहारा दिया वरन उन्हे डिप्रेशन मे जाने से भी रोका। उनसे मोहब्बत किया और भारी बंदिशे के बावजूद उन्हे अपना पत्नी बनाया। उन्हे फिर से मातृत्व सुख का एहसास कराया। उनकी विरान जीवन को खुशियों से भर दिया।
अमर ने यह सब महसूस कर ही सुनील को अपना फादर माना और उनहे एक पिता का सम्मान दिया। लेकिन कोई भी व्यक्ति अपने उस पिता को कभी भुल ही नही सकता जो उसका रीयल बायोलॉजीकल पिता हो। और यदि पिता निहायत ही शरीफ , सीधा और गांधीवादी विचार को हो तब तो और भी नही।
मेरा विचार है अमर ने सुनील को दिमाग से जरूर अपना पिता मान लिया है और दिल से भी मानने मे प्रयत्नशील है लेकिन यह इतना आसान नही होने वाला है।
वो जब जब सुनील के समक्ष होगा , तब तब उसे अपने मरहूम पिता की याद आयेगी ही , भले ही चंद सेकेंड के लिए भी हो।
लेकिन शायद सुमन के साथ ऐसा नही हो। औरते जितनी तेजी से किसी सदमे से उबरती है उतना मर्द नही उबर पाता। मर्द अपने प्रिय की यादें बहुत बहुत दिनो तक अपने दिल मे बसा कर रखता है।
बच्चो का जैविक विकास तो मां के कोख से ही शुरू होता है पर इनका असली विकास यानि सामाजिक और सांस्कृतिक विकास तो घर के परिवेश और आसपास के वातावरण , समाज , पेड़ पौधे , जीव जन्तु से ही होता है।
लतिका बचपन से घर के हर एक्टिविटी से अच्छी तरह से वाकिफ है। घर के खुलेपन माहौल की आई - विटनेस रही है। कभी न कभी इसका प्रभाव उसपर पड़ना ही था। अमर के प्रति उसके व्यवहार मे यह बदलाव कोई गैर वाजिब नही है। और सबसे मुख्य कारण अमर का व्यक्तित्व और उसका सरल एवं निश्छल चरित्र।
इसलिए लतिका के दिल मे अमर के लिए " कुछ कुछ होता है " वाले एहसास से मुझे जरा भी ताज्जुब नही हुआ। यह होना ही था।
इस अपडेट मे परिवार का मिलन समारोह था जो बहुत ही खूबसूरत लगा। एक छोटे परिवार को बटबृक्ष की तरह विशाल बनते देख खुशी हो रही है। काजल की बेटी गार्गी , सुमन के संतान आदित्य , आदर्श और अभया , आभा और लतिका इन नई पौध से परिवार ही जगमगा गया। बहुत बढ़िया लगा।
अपडेट हमेशा की तरह खूबसूरत और जगमग जगमग भाई।
With due respect
असहमत। ये गुण दोनो में होते हैं, इसमें कोई स्त्री और पुरुष के वर्चस्व वाला सवाल ही नहीं।
बात होती है बस उस गैप को भरनेकी, और जहां तक सुनील की बात है, अमर चाहे जितना भी चाह ले, सुनील वो गैप पूरा नहीं कर सकता, कारण सुनील को कभी अमर ने बच्चे जैसा पाला है, वहीं अगर जो सुनील नितांत अजनबी होता तब शायद ये गैप पूरा कर पाता।
और वैसे भी अमर थोड़ा इमोशनल फूल टाइप बंदा है, और ये गुण शायद उसे अपने पिता से ही मिला है।