- 4,211
- 23,514
- 159
![b6ed43d2-5e8a-4e85-9747-f27d0e966b2c b6ed43d2-5e8a-4e85-9747-f27d0e966b2c](https://i.ibb.co/mhSNsfC/b6ed43d2-5e8a-4e85-9747-f27d0e966b2c.jpg)
Last edited:
जिस तरह से लड़की अपने पहले प्रेम को कुछ दिनो के बाद भुलाकर आगे बढ़ जाती है , किसी दूसरे के साथ रिलेशन बना लेती है , या शादी कर अपने गृहस्थ जीवन मे रत हो जाती है उस तरह मर्द नही कर पाते।
औरते अपने प्रेमी को शादी के कुछेक दिन या महीने बाद ही भुला देती है।
मर्द अपने प्रेम और पार्टनर को अपने दिलो-दिमाग से जल्द हटा ही नही पाते। कभी कभी जीवन भर उसकी याद को अपने सीने से लगाए रखते है।
कुछ अपवाद जरूर है लेकिन मर्द और औरत की यह आम चरित्र होती है।
ऐसा ही मृत्यु के मामले मे भी होता है। औरत इमोशनल बहुत होती है लेकिन कुछ चीजे ऐसी होती है जहां मर्द उनसे अधिक इमोशनल होता है।
जैसा आपने कहा, भूल कर किसी और के साथ आगे बढ़ जाती हैं। जरूर, लेकिन भूल तो नहीं ही पाती हैं। हां आदमी जरूर अपने कंफर्ट जोन से बाहर आने में समय लेता है, औरत मुकाबले में, लेकिन बाहर दोनो तभी आते है, जब विकल्प अच्छा मिलता है।
भाई जी, बस एक बात कहूंगा।नौजवान है आप लोग और बहुत अच्छी बात है कि आप लोग औरत के लिए अच्छी भावना रखते है। मै भी रखता हूं। महिलाओ के साथ मेरा एक्सपीरियंस बहुत बहुत ज्यादा रहा है। लेकिन सिंगल एक्सपीरियंस भी ऐसा नही था जिसे मै अच्छा कहूं। इसके बावजूद भी महिलाओ के प्रति मेरे दिल मे कभी भी मान सम्मान की भावना कम नही हुई।
जब आप लोग एक्सपीरियंस हो जाओगे या भुक्त भोगी हो जाओ तब शायद आप समझ सकेंगे।
बहुत कुछ देखा है और भोगा भी है। उसी आधार पर कहता हूं " मर्द का दिल रोता है और औरत की आंखे रोती है "।
मेरे छोटे भाई ने एक कहानी " बाप " लिखा । उन्हे कुछ तो समझ होगा तभी तो यह कहानी लिखा। शायद कुछ कहानी या फिल्म की वजह से लोग इन्हे मर्द से अधिक संवेदनशील करार कर देते है।
महिलाए इमोशनल होती है लेकिन हिम्मत भी उनमे मर्द से अधिक होती है। अगर आप औरत के माइंड को रीड करो तो यह समझ सकते है। मर्द विचलित अधिक होता है। महिलाए अधिकतर अपनी भावनाए तभी दर्शाती है जब उनके खुद के ऊपर कोई बात होती है।
वैवाहिक जीवन मे , अधिकतर औरत अपने पति को परेशानी , दिमागी टेंशन , हिकारत के अलावा कुछ नही देती। औरत कहेगी की मै पति को अपना प्यार देती हूं। प्यार एक दूसरे के कार्यों मे रूचि लेते हुए सहयोग करने , पति की इच्छा के तरजीह देने से होता है। केवल पति के साथ रात मे सोने से नही होता। इसीलिए मैने यहां कहा था कि शादी के मापदंड मे सिर्फ बीस बाइस प्रतिशत लोग ही क्वालिफाई करते है। बाकी तो समझौता होता है या परम्परा के नाम पर खिलवाड़।
अभी नही लेकिन देर सबेर आप लोग मेरे बात से सहमत जरूर होंगे।
वैवाहिक जीवन मे , अधिकतर औरत अपने पति को परेशानी , दिमागी टेंशन , हिकारत के अलावा कुछ नही देती। औरत कहेगी की मै पति को अपना प्यार देती हूं। प्यार एक दूसरे के कार्यों मे रूचि लेते हुए सहयोग करने , पति की इच्छा के तरजीह देने से होता है। केवल पति के साथ रात मे सोने से नही होता। इसीलिए मैने यहां कहा था कि शादी के मापदंड मे सिर्फ बीस बाइस प्रतिशत लोग ही क्वालिफाई करते है। बाकी तो समझौता होता है या परम्परा के नाम पर खिलवाड़।
हा हा हाअरे भाई साहब, फाइनेंसियल ईयर एंडिंग का क्या ही कहूँ!
थक गया पूरी तरह - इसीलिए कुछ लिखना भी संभव नहीं हुआ।
आज पूरी तरह से ब्रेक लिया हर चीज़ से।
अब लतिका का झुकाव समझ में आता है पर अमर वह क्या इतनी सहजता स्वीकार कर पाएगाकहानी पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद मित्र
संस्कार से सही ग़लत में फ़र्क़ करना आता है - इसलिए ग्लानि से मुक्त होना आसान है।
वही तोहाँ, लेकिन व्यवहार में शिष्टता आनी लाज़मी ही है। अमर को लगा कि उसने जो किया, वो गलत था, इसलिए उसने लतिका से माफ़ी माँगी।
ना नहींकहीं सुना था कि माफ़ी माँगना ऐसा होता है जैसे आप इबादत कर रहे हों।
हाँ भाई इसका तो प्रतीक्षा हैउतनी ही साफगोई, उतनी ही शिष्टता, उतना ही विश्वास!
आगे तो हम सभी जानते हैं कि क्या होगा! लेकिन कैसे होगा, और क्या क्या होगा, बस उसी पर कहानी है
साथ बने रहें भाई![]()
बहुत कम लोग होते हैं जिनका जोड़ी परफेक्ट होता है। आप और आपकी पत्नी किस्मत के धनी है जो आप दोनो की जोड़ी बन गई।संजू भाई, इस बात को न मानने का सवाल ही नहीं उठता। पूरी तरह से सही है। किस्मत से वैसा ही साथी मिला है मुझको जिसके साथ जिंदगी का सफ़र आसान और सुहाना हो गया है![]()
बहुत कम लोग होते हैं जिनका जोड़ी परफेक्ट होता है। आप और आपकी पत्नी किस्मत के धनी है जो आप दोनो की जोड़ी बन गई।
इससे आप इन्कार नही करेंगे कि असल प्राब्लम इंसान का शादी के बाद ही शुरू होता है। चाहे अपने फैमिली को लेकर या चाहे पति पत्नी के अपने रिश्ते के ऊपर।
बहुत ज्यादा देखा है समाज को ! कुछ दिन के अंतराल पर किसी न किसी सामाजिक या पारिवारिक कार्य की वजह से बचपन से ही सभी जगह मुझे ही ट्रेवलिंग करना पड़ा ।और अभी कुछ दिन पहले भी इसी वजह से एक हफ्ते इस फोरम पर दर्शन तक नही दे पाया। जब मेरी उम्र सात साल थी तब मेरे गार्डियन ने मुझे करीब डेढ़ हजार किलोमीटर भेज दिया था फैमिली मैटर की वजह से। और वो जो ट्रेवलिंग शुरू क्या हुआ कि अब तक थमा नही है।
कभी फुर्सत मे आप से बात करेंगे !
हा हा हा
हाँ भाई बड़ा ही प्रॉब्लम भरा महीना होता है
अब लतिका का झुकाव समझ में आता है पर अमर वह क्या इतनी सहजता स्वीकार कर पाएगा
अंतर्द्वंद में वह अपने आप को कोसता रहेगा
अंत निश्चय ही सुखद होगा परंतु स्वयं को समझाना इतना सहज नहीं होगा
ऐसा मेरा मानना है
वही तो
अमर के मन में जो द्वंद होगा वह वात्सल्य प्रेम और जीवन संगिनी के प्रति के प्रेम के भीतर होगा
ना नहीं
हाँ भाई इसका तो प्रतीक्षा है
अब तक कहानी में हीरोइन की आयु हीरो से अधिक थी
पर यहाँ इस मोड़ पर परिस्थिति विपरित है
यही तो वह विशेषता है जो मुझे जाननी और देखनी है
les goooooooooooooooooएक और कहानी का प्लाट आया है दिमाग में! इस कहानी के बाद वो शुरू करूँगा।
उसमें थोड़ा रोमांच, रहस्य और पराशक्तियों की बातें होंगीं![]()
इस बात से बिल्कुल सहमत हूं, आजकल इगो को लोग ज्यादा ऊपर रखते हैं, और दोनो ही रखते है।असल प्राब्लम इंसान का शादी के बाद ही शुरू होता है। चाहे अपने फैमिली को लेकर या चाहे पति पत्नी के अपने रिश्ते के ऊपर।
ये जो आपने एडजस्टमेंट लिखा, बस यही लोग नही समझते और इन एडजस्टमेंट को कॉम्प्रोमाइज का ना दे कर इगो सैटिस्फाई करने के चक्कर में घनचक्कर बन जाते हैंजीवन में जब एडजस्टमेंट करने की बात आती है, तब ही दिक्कतें शुरू होती हैं।