- 4,212
- 23,535
- 159
![b6ed43d2-5e8a-4e85-9747-f27d0e966b2c b6ed43d2-5e8a-4e85-9747-f27d0e966b2c](https://i.ibb.co/mhSNsfC/b6ed43d2-5e8a-4e85-9747-f27d0e966b2c.jpg)
Last edited:
हाँ इस प्रकार की रचना और उपस्थापन अपने आप में एक विशेष समर्थता है l आपकी इस तरह की लेखन शैली एक निपुणता भी है l जो कि मुझे प्रभावित भी करती हैइस कहानी में प्रेम - स्नेह - वात्सल्य - ममता वाले भाव तो भरे पड़े हैं।
जहाँ तक सेक्स की बात है - वो तो रखनी ही पड़ती है, नहीं तो कोई पढ़े ही न।
लेकिन सेक्स एक सुन्दर सी भावनात्मक और शारीरिक क्रिया है, जिसमें अनेकों लेवल्स पर आनंद आता है।
इसलिए उसको दर्शाने में मुझे कोई गुरेज़ नहीं है।
यही तोयह तो सौ फ़ीसदी सही बात है।
बिना सम्मान के शुद्ध प्रेम नहीं हो सकता। बिना सम्मान का so called प्रेम, दरअसल केवल लगाव ही है।
हाँ कभी कभी लगता हैजी भाई - यह लतिका की भावनात्मक परिपक्वता को दिखाता है।
वो अपनी उम्र से कहीं अधिक समझदार है।
हो सकता है मैंने जल्दी कह दिया होउम् कह नहीं सकते अभी भी!
यह तो सभी पाठक जान भी चुके!![]()
शुक्रिया धन्यवाद साभार आभारबहुत बहुत धन्यवाद प्रिय भाई![]()
आपने मेरी भी नही पढ़ीधन्यवाद आप दोनों भाईयों का, मैंने तो बन्नो पढ़ी ही नहीं थी। अभी पढ़ कर आया हूं, ग़ज़ब-ग़ज़ब।![]()
अमर अभी भी रचना के प्रहार से उबरा नही है शायदअमर के ही मन में कोई फाँस है, जो निकालनी है।
वो कैसे निकलती है, बस अब यही कहानी शेष है![]()
साइलेंट रीडर्स के अलावा, जीतने एक्टिव है, उनको तो फर्क नही पड़ता मेरे खयाल से।इस कहानी में प्रेम - स्नेह - वात्सल्य - ममता वाले भाव तो भरे पड़े हैं।
जहाँ तक सेक्स की बात है - वो तो रखनी ही पड़ती है, नहीं तो कोई पढ़े ही न।
मैंने बाप पढ़ी थी, बहुत बहुत पसंद भी आयी परंतु अभी मुझे याद नहीं आ रहा कि किस वजह से रिव्यू लिखना रह गया, शायद किसी और काम में रह गया होगा।आपने मेरी भी नही पढ़ी
हे भगवान, अभी देखा कि मैंने दोनों पढ़ीं और दोनों ही बेहद पसंद(रिएक्शन तक ही सीमित रह गया) भी की परंतु रिव्यू किसी एक का भी नहीं लिखा। क्या ही करता हूं मैं भी।मैंने बाप पढ़ी थी, बहुत बहुत पसंद भी आयी परंतु अभी मुझे याद नहीं आ रहा कि किस वजह से रिव्यू लिखना रह गया, शायद किसी और काम में रह गया होगा।
क्षमा करें भ्राता।चलिए, अभी जो रह गई थी वो वाली भी पढ़ लेता हूं।
![]()
अरे कोई नही भाई जी, वैसे भी इस स्त्री प्रधान दुनिया में बाप की हैसियत ही कहां होती है कि लोग उस पर ध्यान भी दे सकें।हे भगवान, अभी देखा कि मैंने दोनों पढ़ीं और दोनों ही बेहद पसंद(रिएक्शन तक ही सीमित रह गया) भी की परंतु रिव्यू किसी एक का भी नहीं लिखा। क्या ही करता हूं मैं भी।![]()
अमर अभी भी रचना के प्रहार से उबरा नही है शायद
साइलेंट रीडर्स के अलावा, जीतने एक्टिव है, उनको तो फर्क नही पड़ता मेरे खयाल से।
अरे कोई नही भाई जी, वैसे भी इस स्त्री प्रधान दुनिया में बाप की हैसियत ही कहां होती है कि लोग उस पर ध्यान भी दे सकें।
नही बात यहां लीपी की नही है, मुझे तो समझ ही नही आया की मेरे नंबर किस बात के काटे गए?भई, मुझे तो बाप भी बहुत पसंद आई, और बन्नो भी। काला नाग भाई की बात एक रात की भी!
तीनों सुन्दर कहानियाँ!
पर यह भी है कि मैं हिंगलिश (?) में लिखी कहानियाँ पढ़ता ही नहीं, इसलिए उन पर टिप्पणी नहीं कर सकता।
सोच सोच कर बड़ी हँसी आती है कि हिंदी पढ़ने के लिए लोगों को रोमन लिपि में लिखा हुआ चाहिए!
और अगर देवनागरी में हिंदी और रोमन में अंग्रेजी में कहानी लिख दो, तो पढ़ने में अधिकतर लोगों का मूत निकल जाता है।
सच में - अपना देश चुनौतियों से नहीं परेशान है!![]()
नही बात यहां लीपी की नही है, मुझे तो समझ ही नही आया की मेरे नंबर किस बात के काटे गए?
कहानी बाप के प्वाइंट ऑफ व्यू से थी, तो लोग मां का प्वाइंट ऑफ व्यू विस्तार से क्यों जानना चाहते थे? जरूरत भर लिख ही दिया था मैने उसको भी।