अचिन्त्य - Update #7
दिन में माँ और आभा, अम्मा के बुलावे पर कुछ शॉपिंग करने लोअर परेल चली गईं। पापा, और बाकी हम सब लोग घर पर ही रह गए। मालकिन की अनुपस्थिति में पापा और मेरे पर निकल आए और हमने एक एक और राउंड स्कॉच की लगा ली। लतिका ने हमारी गुस्ताखियाँ देखीं अवश्य, लेकिन हँस कर नज़रअंदाज़ कर दी। चूँकि हम सभी बहुत दिनों बाद मिले थे, इसलिए लतिका तीनों बच्चों के साथ ही व्यस्त रही। तीनों को अपनी बुआ के संग खेलने में बड़ा आनंद आता था। लतिका भी बच्चों के साथ ऐसे रच बस जाती कि जैसे वो भी उन्ही की उम्र और साइज की हो!
आज छोटी दिवाली थी, मतलब थोड़ा उत्साह तो बन ही रहा था, बड़ी दिवाली के लिए। अम्मा से भी मिले समय हो गया था, लेकिन वो दिवाली की रात, पूजा के बाद ही आ पाएँगी वो। मैं शायद माँ के साथ चला जाता, लेकिन पापा ने ही कहा कि बैठो - बाद में मिल लेना! अभी हमारे साथ ही रहो। अच्छी बात थी। आज शाम को जयंती दीदी, उनका परिवार और ससुर जी भी यहीं आने वाले थे। एक रात हमारे साथ ठहर कर वो सभी अगले दिन गोवा के लिए निकल जाने वाले थे, और ससुर जी फिर हम तीनों के साथ वापस दिल्ली चले जाने वाले थे। एक लम्बा अर्सा हो गया था जयंती दी को छुट्टी लिए हुए, तो त्यौहार के बहाने परिवार के साथ छुट्टी बिताने को मिल गया था।
आभा को देख कर अम्मा बहुत खुश हुईं। मारे लाड़ के उन्होंने उसके दोनों गालों को चूम चूम कर लाल कर दिया। आभा भी कोई बुरा थोड़े ही मान रही थी - वो खुद भी अपने को दोनों ‘दादियों’ के स्नेह के केंद्र में पा कर बड़ी खुश थी। अम्मा ने फिर उसको चाँदी का एक सिक्का दिया कि घर की लाडलियों को दीपावली पर ‘धन’ वाला उपहार देना चाहिए! उसके बाद सभी शॉपिंग में मशगूल हो गए। शॉपिंग बहुत देर तक नहीं चली - दरअसल त्यौहार के लिए सभी बच्चों को कोई न कोई तोहफ़ा देने के लिए ही यह सब था। एक समय था जब हमारे, या यूँ कह लें कि अम्मा के, खानदान में बच्चों का अभाव था, लेकिन अब तो बच्चे ही बच्चे थे! और तो और, हम वयस्क भी उनके ही बच्चों में शामिल हो गए थे!
बहुत देर नहीं लगी, और शॉपिंग समाप्त हो गई। लेकिन अभी लंच का समय था, इसलिए तीनों एक बढ़िया से रेस्त्रां में खाने के लिए बैठ गए। आभा आज पूरे मूड में थी कि अपनी दादियों का पर्स खाली करवा लिया जाए। लिहाज़ा उसने अपने लिए ढेर सारा खाना मँगवा लिया। बच्चों में न जाने कहाँ से सब कुछ हजम करने की क्षमता आ जाती है! खैर...
माँ और अम्मा इधर उधर की बातें कर ही रही थीं, कि आभा अचानक ही बोल पड़ी,
“दादी माँ, मुझको डैडी की बड़ी चिंता रहती है...”
जिस अंदाज़ में आभा ने यह कहा था, सुन कर दोनों हँसने लगीं - न जाने लोग बच्चों को सीरियसली नहीं लेते। न जाने क्यों हम यह सोचते हैं कि अगर वो गंभीर बात कर रहे हैं, तो हमको उस पर हँसी आनी चाहिए!
“अरे... आप दोनों हँस क्यों रही हैं? आई ऍम सीरियस!”
“ओह सॉरी बेटू...” अम्मा और माँ दोनों ने एक साथ ही आभा से माफ़ी मांगी।
फिर अम्मा ने कहा, “क्यूँ बेटू... क्या हो गया? आपके पापा ठीक तो हैं?”
“हाँ... वैसे तो ठीक हैं... आई मीन फिजिकल हेल्थ, वर्क... यह सब तो बढ़िया ही है! लेकिन, और भी बढ़िया हो सकते हैं न? ... इमोशनल हेल्थ भी कोई चीज़ होती है!”
“हाँ बच्चे... बिल्कुल होती है!” माँ ने कहा, “व्हाट इस इन योर माइंड बेटू?”
“दादी... डैडी को न... एक मम्मी चाहिए!”
“हैं?”
“आई मीन, मम्मी मुझको चाहिए... लेकिन डैडी को वाइफ! ... ऐसी जो उनको खूब प्यार दे सके, और जिसको डैडी खूब प्यार कर सकें!”
“ओह्ह्ह...” अम्मा ने राहत की साँस लेते हुए कहा, “अरे, वो तो हम दोनों भी चाहते हैं बेटू... लेकिन कोई अच्छी सी लड़की भी तो मिले, जो मेरी प्यारी सी बिटिया को भी खूब प्यार करे, और उसके डैडी को भी?” अम्मा ने आभा की नाक को तर्जनी और अँगूठे से प्यार से पकड़ कर हिलाया।
आभा खिलखिला कर हँसने लगी।
“इतने दिन हो गए ढूंढते,” अम्मा ने आह भरते हुए कहा, “लेकिन कोई अच्छी लड़की ही नहीं मिलती! ... मतलब अच्छी लड़कियाँ तो बहुत सारी हैं... लेकिन कोई ऐसी जो हमारे परिवार को समझ सके... हमारे रहन सहन का सम्मान कर सके... वैसी मिलती नहीं! और तेरे डैडी भी तो कुछ कम नहीं हैं! उसने तो जैसे लड़की देखनी ही बंद कर दी है... ऐसे में क्या करें?”
इस बात पर आभा की आँखें चमकने लगीं।
“एक लड़की है मेरी नज़र में दादी...”
“हैं?” इस बात पर अम्मा और माँ दोनों चौंक गईं।
अम्मा बोलीं, “कौन है वो बेटू... हम सभी में तो तू ही सबसे सयानी निकली! ... हम सभी इधर उधर हाथ पाँव मार रहे हैं, और हमारी बिटिया रानी ने पहले ही क़िला फ़तह कर लिया है!” अम्मा ने उत्साहपूर्वक मज़ाक किया, फिर उतने ही उत्साह से, “जल्दी से बता बच्चे... कौन है वो?”
“आप बुरा तो नहीं मानोगे न दादी माँ?”
“अरे, मैं क्यूँ बुरा मानने लगी अपने ही बच्चों की बातों पर? ... तुमको... अमर को प्यार करने वाली कोई मिल जाए, सच में, उससे बड़ा सुख नहीं है मेरे लिए! ... बोल न मेरी पूता?”
आभा ने बड़ी सतर्कतापूर्वक पहले अम्मा और फिर माँ को देखा। उसको मालूम था कि दोनों ही दादियाँ उसकी किसी भी बात का बुरा नहीं मान सकतीं। उसके तो सौ खून माफ़ थे! सबकी लाडली जो थी! अम्मा अपनी बेटी से अधिक उस पर प्यार लुटाती थीं। हाँ, माँ संभवतः दोनों को एक समान ही प्यार करती हों! इसीलिए आभा को उन दोनों के साथ ड्रामा करने में भी बड़ा आनंद आता था।
“बता दूँ?”
“मत बता,” अम्मा ने उसको उसके ही खेल में पछाड़ते हुए उसको छेड़ा, “तुझे ही अपने लिए मम्मी नहीं मिलेगी! मुझे क्या?”
“ओह दादी माँ... आप भी न! खेल का मज़ा खराब कर दीं पूरी तरह!” आभा ने झूठ मूठ मुँह फुलाया।
“अरे मेरी बिटिया नाराज़ हो गई... अच्छा बता दे अब... हम भी मिल लेंगे उससे!”
“हम्म्म... तो ठीक है!” आभा ने जैसे एहसान जताया हो, “मुझको अपनी मम्मी के लिए... वो न... वो न!”
“अब तेरी वो न वो न के चक्कर में मैं बूढ़ी हो जाऊँगी!”
“हा हा! दादी माँ! ... अच्छा अब नहीं सताती आपको। बताती हूँ...” आभा ने अम्मा के गालों को चूमते हुए कहा, “आपको दीदी कैसी लगती हैं? ... लतिका दीदी? ... डैडी के लिए?”
“क्या?” माँ चौंक गईं, कि मिष्टी को उनके मन की बात कैसे समझ में आ गई!
“क्या!” अम्मा भी चौंक गईं... ऐसा तो उन्होंने सोचा ही नहीं कभी!
“आप बुरा तो नहीं मानी न, दादी माँ?” इस बार पहली बार आभा थोड़ा घबरा गई - कि कहीं उसने आउट ऑफ़ प्लेस तो कुछ नहीं कह दिया?
“पहले ये बता तू कि लतिका ने तुझसे कुछ कहा क्या?”
“नहीं दादी माँ! ऐसा कुछ नहीं है। ... लेकिन मुझको दीदी बहुत अच्छी लगती है! शी इस द बेस्ट! उनके बिना तो मुझे सोचना भी नहीं हो पाता... और अगर डैडी की फिर से शादी होनी है, तो मैं उनके अलावा किसी और के बारे में सोच ही नहीं पाती अपनी माँ के प्लेस पर!”
“तू क्या कह रही है बच्चा...” माँ ने हैरत में आते हुए कहा, “पूरी बात तो बता!”
माँ हैरत में तो थीं, लेकिन उनको इस बात से बड़ी ख़ुशी भी थी कि जिस बात को कहने में शायद उनको थोड़ी झिझक होती, वो आभा ने यूँ हँसी मज़ाक में कह दिया। अब बात निकल चली है, तो बंद नहीं होगी, जब तक उस पर पूरी चर्चा नहीं हो जाएगी! और अम्मा तो ऐसी हैं कि अगर उनको इस सम्बन्ध में मेरिट दिखेगा, तो उनसे जो संभव है, वो करेंगी!
“दादी... जैसे आप दादी माँ को अपनी माँ मानती हैं, वैसे ही मैं दीदी को अपनी माँ मानती हूँ। ... आज से नहीं, बहुत सालों से!” आभा ने मुस्कुराते हुए रहस्योद्घाटन किया, “एंड... नाउ... व्ही हैव बिकम वैरी क्लोज़... जस्ट एस अ मदर एंड हर चाइल्ड!”
उसकी बात पर आभा की आशा के विपरीत दोनों दादियाँ हँसने लगीं।
“बहू,” अम्मा माँ से बोलीं, “कुछ भी कहो, अपना परिवार है बहुत प्यारा! ... हे प्रभु, किसी की भी नज़र न लगे इसको!”
माँ केवल मुस्कुरा कर रह दीं, कुछ बोली नहीं।
“क्या हो गया दादी माँ?” आभा ने भोलेपन से पूछा।
“कुछ नहीं बच्चे! ... कुछ नहीं!”
“तो बेटू,” माँ ने आभा से पूछा, “तो क्या आपको इसलिए अपनी दीदी अपनी माँ के प्लेस पर चाहिए कि आप उसका दूधू पी सको?”
“नहीं दादी, सिर्फ इतने के लिए थोड़े ही... लतिका दी सबसे स्वीट हैं! शी आल्सो नीड्स हैप्पीनेस! शी आल्सो नीड्स अ गुड मैन इन हर लाइफ... और मुझको लगता है कि डैडी और... मैं... उनको बहुत खुश रखेंगे! ... लुक, शी इस आवर फॅमिली सिन्स ऑलवेज! तो अब क्यों बदलना? लेट्स मेक हर अ परमानेंट मेंबर! नो?”
“हम्म! बात तो बड़ी अच्छी है... लेकिन कुछ होना भी तो चाहिए न! लतिका की तरफ़ से... अमर की तरफ से! फिलहाल तो ये केवल तुम्हारा सेल्फिश विश है! है कि नहीं?” माँ ने कहा।
“नहीं दादी! मेरे ख़याल से कुछ तो है दीदी में डैडी के लिए! मेरे डैडी कोई कम हैं? ही इस सो हैंडसम! ... पता है, एक बार मैंने जब दी से पूछा, तो उन्होंने ही बताया कि डैडी उनको अच्छे लगते हैं!”
“सच्ची?”
“हाँ दादी! ... शायद इसीलिए तो डैडी के सामने नंगू रहने में उनको शर्म आने लगी है!” आभा ने रहस्योद्घाटन किया, “पहले जब उनके लिए कोई रोमांटिक फ़ीलिंग्स नहीं थीं, तब और बात थी...”
“अच्छा जी, आपको बड़ा समझ आता है यह सब?”
“दादी, आई आल्सो ऍम अ वुमन!” आभा ने बड़े सयानेपन से कहा, वो अलग बात है कि उसके कहना का अंदाज़ बालपन वाला ही था, “आई अंडरस्टैंड दीस थिंग्स!”
“हम्म...” अम्मा ने कहा, “फिर तो गंभीर समस्या है!”
“समस्या दादी माँ?”
“हाँ बच्चे! चलो, मान भी लिया कि लतिका को तेरे डैडी पसंद हैं। लेकिन, तुझे क्या लगता है... तेरे डैडी मान जाएँगे?”
“डैडी तो बुद्धू हैं दादी माँ,” आभा बोली, “तभी तो... इतनी अच्छी सी लड़की उनके सामने है, इतने सालों से... और वो उनको दिखाई ही नहीं दे रही है! ... उनको हम लोग समझाएँगे न, कि मम्मी, ओह आई मीन, लतिका दीदी से बेहतर कोई लड़की नहीं है उनके लिए... हमारे लिए!”
“समझाना तो पड़ेगा,” माँ जैसे पुरानी बातों को सोचते हुए बोलीं, “अपनी ही समझ काफ़ी हो, ऐसा ज़रूरी नहीं!”
“अपनी समझ काफ़ी होती है बहू... लेकिन उसके कारण झिझक भी बहुत होती है!”
“हाँ अम्मा...” माँ कुछ कहना चाहती थीं, लेकिन बोलीं नहीं।
अम्मा ने भी कुछ नहीं कहा, बस माँ को अपने गले से लगा कर उनका माथा चूम लीं। फिर बड़े प्यार से, और शायद थोड़ी उम्मीद भरे स्वर में बोलीं, “बहू... मेरी पुचुकी अगर तेरी बहू बनेगी, तो तुझे अच्छा लगेगा?”
“अम्मा, ये कोई कहने वाली बात है? अपनी बेटी समान पाला है मैंने उसको। ... वो हमारे ही परिवार में मिल जाए... हमारा वंश आगे बढ़ाए... इससे बड़ा सुख क्या मिलेगा मुझको!” माँ बहुत ख़ुश होते हुए बोलीं, “ये तो ऐसा सपना है, जो मैंने देखा भी नहीं!”
फिर थोड़ा ठहर कर, हिचकते हुए, और थोड़ा दबे स्वर में, जिससे केवल अम्मा ही उनकी बात सुन सकें, “लेकिन आपको कैसा लगेगा अम्मा?”
“मुझको?”
माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “आपको बुरा तो नहीं लगेगा?”
“अरे बुरा क्यों लगेगा मुझे?”
“वो... वो... अमर... और आप...” माँ को झिझक हुई।
“बहू, वो सब तो इतनी पुरानी बातें हैं कि अब याद भी नहीं! ... वो सब हुए कितना समय बीत गया... न वो पुराना वाला अमर रहा, और न ही वो पुरानी वाली मैं... और सच कहूँ बहू, मुझको तो लगता है कि भगवान जी ने हमेशा से मुझको इस परिवार की माँ बनाने का ही सोच रखा होगा। ... तो अब मैं तुम सब की माँ हूँ और तुम सब मेरे बच्चे हो!”
माँ मुस्कुराईं।
“... वो समय और था जब तुम मेरी माँ होती थी...”
“हैं? दादी आपकी माँ थीं, दादी माँ?” आभा ने आश्चर्य से पूछा।
“हाँ बेटू, तू तो तब पैदा भी नहीं हुई थी!” अम्मा ने ज़ोर से आभा के गालों को चूमते हुए, और हँसते हुए कहा, “वो तो छोड़ो, तब तेरे डैडी और तेरी मम्मी की शादी भी नहीं हुई थी। ... मैं, तेरे दादू, और तेरी दीदी - हम तीनों बहुत मुश्किलों में जी रहे थे उस समय!” माँ ने अम्मा के हाथ पर अपना हाथ रख कर दबाया, “... तब तेरी दादी ने हमको सहारा दिया... हमको सम्हाला... इस समाज में हमको सर उठा कर, इज़्ज़त से जीने का मौका दिया!”
“और,” माँ इस बात पर बोल पड़ीं, “जब मैं और अमर बुरी हालत में थे, तब कौन आया था हमको सम्हालने अम्मा?” माँ बोलीं, फिर आभा को बताते हुए, “... पता है बेटू, जैसे ही इनको मालूम हुआ कि तेरी मम्मी,” बोलते बोलते माँ की आँखों से आँसू निकल पड़े, “और तेरे दादा जी... नहीं रहे... ये भागी चली आईं... एक बार भी नहीं सोचीं कि इनका अपना खुद का क्या और कैसे होगा! बस हमारी ही फ़िक्र थी इनको... तेरी फ़िक्र थी इनको!”
“धत्त, रुला दी!” अम्मा ने भी अपनी आँखों के कोनों को पोंछते हुए कहा।
“मेरी फ़िक्र दादी?”
“हाँ बच्चे! तू तो नन्ही सी थी तब, इसलिए कुछ याद नहीं रहेगा... इन्ही का दूध पी पी कर बड़ी हुई है तू!”
“हाँ चल चल... अपने बच्चों को नहीं, तो क्या पड़ोसी के बच्चों को पिलाऊँगी?”
माहौल भारी हो रहा था, लेकिन अम्मा की इस बात से माँ और अम्मा दोनों के चेहरे पर मुस्कान आ गई। लेकिन इस बात से आभा को अपने जीवन में हो रहे बड़े ‘अभाव’ की याद आ गई।
“दादी माँ... मुझको दूधू पीना है!” उसने ठुनकते हुए मनुहार की।
“यहाँ? सबके सामने?”
“हाँ! अभी! ... आई मिस्ड इट सो मच! न आप वहाँ हैं, और न ही दादी!”
“आS मेरा बच्चा... सो सॉरी बेटू... इसीलिए तो कहती हूँ, कि यहाँ आ जाओ सभी! साथ में रहो हमारे! ... कोई बात नहीं बच्चे... आ जा!” कह कर अम्मा ने आभा को अपनी गोदी में लिटा लिया, और उसका चेहरा अपने आँचल से ढँक कर अपनी ब्लाउज के निचले बटन खोल कर और ब्रा ऊपर उठा कर आभा के मुँह में अपना एक स्तन दे दिया, “पी ले मेरा बेटू... ये सब मेरे बच्चों के लिए ही तो है!”
आभा आनंद से स्तनपान करने लगी।
उनको उस अवस्था में देख कर रेस्त्रां में उपस्थित ग्राहकों में से कुछ लोगों को उत्सुकता हो गई कि इतनी बड़ी लड़की अभी भी अपनी माँ का स्तनपान कर रही है! लेकिन किसी ने कुछ कहा नहीं! अच्छी बात यह थी कि वो एक हाई एन्ड रेस्त्रां था, और इसलिए अनावश्यक भीड़ वहाँ नहीं थी। अम्मा और माँ वहाँ की लगभग नियमित ग्राहक थीं, इसलिए रेस्त्रां के लोग उनको पहचानते भी थे।
हास्यास्पद स्थिति तब हो आई, जब एक तीन चार साल का बच्चा आभा को देख कर अपनी माँ से स्तनपान कराने की ज़िद करने लगा। लेकिन उसकी माँ बेचारी उसकी माँग को पूरा नहीं कर पा रही थी क्योंकि उसने शलवार कुर्ता पहना हुआ था। उसने शायद ही सोचा हो कि उसका बच्चा बाहर जा कर ऐसी ज़िद भी कर सकता है।
थोड़ी देर बाद आभा ने अपने चेहरे से आँचल हटा कर कहा, “दादी, दादी माँ, आप कहानी रोकिए मत! ... पहली बार सब जानने का मौका मिला है! प्लीज़, मुझको बताईए न!”
“हा हा, अरे और क्या बताना?” माँ बोलीं।
“आप ही तो कह रही थीं न दादी, कि मैं दादी माँ का ही दूध पी पी कर बड़ी हुई हूँ! और भी कुछ बताईए न!”
“अच्छा वो... हाँ, तो जब अम्मा आईं, तब जा कर हम सम्हले! पुचुकी ने तेरी, और अम्मा ने मेरी और तेरे डैडी की ज़िम्मेदारी सम्हाली। ... हम सम्हल सके, तो सब इन्ही का आशीर्वाद है!”
“सच में दादी माँ? आई लव यू सो मच! एंड आई रेस्पेक्ट यू इवन मोर!”
“आई लव यू टू बेटू... सच कहूँ, उस समय जा कर मेरा मन होने लगा था कि हमारा परिवार एक हो जाए! ऐसा लगता था कि मैं इसी परिवार का हिस्सा हूँ। बहुत इज़्ज़त मिली है मुझको इस घर में!”
“आपने जो सब कुछ किया है, वो कौन करता है अम्मा?”
“कुछ नहीं किया मैंने बहू... कुछ भी नहीं!”
तब तक आभा ने दूध पीना छोड़ दिया।
“बस बेटू?”
“हाँ दादी माँ! ... बाकी जब आप कल आएँगी न, तब!” उसने खींस निपोरते हुए कहा, फिर माँ की तरफ़ मुखातिब हो कर, “दादी, दादी माँ के बारे में बताईए न! आप दोनों तो बहुत पहले से एक दूसरे को जानती हैं!”
“अन्नपूर्णा माँ का आशीर्वाद हैं तुम्हारी दादी माँ, बेटू! इनके आने से कम से कम हमारा परिवार तो बहुत तरक्की किया। और अब देखो... इन्ही का तो अंश है हमारे परिवार में - इनके बेटे... तुम्हारे दादू, यहाँ... इनकी बेटी... तुम्हारी दीदी, वहाँ... और ये ख़ुद बाबू जी के साथ! सबका घर भरा है इन्होने अपने गुण से... कौशल से!”
“अरे बस बस बहू! ऐसे चने के झाड़ पर मत चढ़ाओ मुझको!” अम्मा ने अपने कपड़े सम्हालते हुए आभा से कहा, “अपना परिवार तो सभी सम्हालते हैं बेटू... कल को तुम्हारा भी परिवार होगा, तो तुम भी यह सब करोगी! हम औरतों में यह सब गुण शायद ख़ुद भगवान जी ही दे देते हैं।”
“लेकिन मुझमें तो कोई गुण नहीं है दादी माँ!”
“बहुत से गुण हैं बेटू! ... दूसरों को मालूम पड़ते हैं। और तुम्हारे पास समय भी तो है... नया सीखने का, नया करने का!” असली गुणों वाली तो तुम्हारी दादी हैं बेटू! पता है बेटू... हम दोनों परिवार आज एक हैं, तो वो मेरी इस बिटिया रानी... तेरी दादी के कारण ही पॉसिबल हो पाया!”
“आS...” कह कर आभा ने माँ को बड़े लाड़ से चूम लिया, “लेकिन वो कैसे दादी माँ?”
“तेरे दादू से शादी कर के...”
“ओह!” आभा को समझ आया, “ओह, अब समझी!” फिर वो माँ से बोली, “दादी, आपने और दादू ने भी लव मैरिज करी थी न?”
माँ के गाल इस प्रश्न पर सुर्ख हो गए, “हाँ बेटू!”
“देखो इसको, अभी भी शर्माती है!” अम्मा ने माँ के दोनों गालों को बड़े प्यार से दोनों हाथों की चिकोटी में पकड़ा, और उनके होंठों को चूम लिया, “तभी तो मेरी सबसे प्यारी बिटिया है ये! ... जब मुझे पता चला न कि तेरे दादू को ये पसंद हैं, मैं तो उसी दिन से बेफ़िक्र हो गई! समझ गई, कि उसकी ज़िन्दगी सुन्दर बन जाएगी!”
“दादी माँ,” आभा के लिए तो आज सब कुछ जानने का अवसर मिल गया था, “दादी और दादू के बारे में कुछ बताईए न!”
“ऐसा समझ ले बेटू कि इन दोनों का प्यार मेरे सामने ही फला फूला।” अम्मा ने आनंदित होते हुए कहा, “तेरे दादू को मैंने खूब ललकारा, और तेरी दादी को समझाया... इसको अपनी सबसे छोटी बेटी बनाया... नन्ही बच्ची जैसा लाड़ दिया... तब जा कर मुझको सास बनने का सुख मिला!”
“अरे भगवान!” आभा ने किसी बड़े के समान ही अपने सर पर हाथ लगाते हुए कहा।
“और नहीं तो क्या! अच्छी बहू मिलना कोई आसान बात है क्या!”
“आS... आपको दादी खूब अच्छी लगती हैं न दादी माँ?”
“सबसे अच्छी! मेरी प्यारी है ये!”
अम्मा को समझना चाहिए था कि ऐसी बातें आभा के सामने करने का क्या परिणाम हो सकता है!
“मुझसे भी अधिक प्यारी?” आभा ने ठुनकते हुए कहा।
“अरे नहीं नहीं! तू तो हमारी रौशनी है बेटू! तेरा किसी से क्या मुक़ाबला!” अम्मा ने आभा की फ़ालतू की बढ़ाई करी। वो खुश हो गई।
“दादी दीदी से छोटी हैं?”
“उम्र में नहीं, लेकिन मेरे लिए हाँ! ... मेरे लिए तो छोटी बच्ची है तेरी दादी! ... इसीलिए तो अभी भी इसको अपना दूध पिलाती हूँ! माँ हूँ इसकी मैं!”
माँ यह सब सुन कर भावुक हो कर अम्मा के सीने से लग गईं।
“समझी न! अब तुम मेरी बेटी हो...” अम्मा ने माँ को चूमा, और पहले की बात का सूत्र सम्हालते हुए बोलीं, “तुम अमर की माँ हो, लेकिन मैं उसको, उसकी माँ, और उसकी बेटी - तीनों को अपना दूध पिलाती हूँ! मैं तुम तीनों की माँ हूँ! मेरे दूध की एक मर्यादा है... उसमें ममता है तुम सब के लिए। तुम सब मेरे बच्चे हो! ... उस समय भी मेरे मन में उसके लिए बड़े वाले भाव ही आते थे... इसलिए भी मैं आनाकानी करती थी उसके साथ होने में!”
फिर अचानक ही वो जैसे कोई निर्णय लेती हुई बोलीं, “लेकिन अब लगता है... उसके जीवन में कोई लड़की बहार ला सकती है तो लतिका ही! उसमें हम दोनों की ही परछाईं है! हम दोनों के ही गुण हैं।”
“ओह अम्मा!” माँ ने अम्मा के पैर छूते हुए कहा, “सब आपका आशीर्वाद है!”
“न बिटिया! सब भगवान जी का आशीर्वाद है! ... इतनी बढ़िया बहू मिल गई, इतना अच्छा हस्बैंड, और इतने अच्छे बच्चे! और क्या चाहिए मुझको अब! बस इतना ही कि मेरा परिवार सब सुख से रहे! भगवान जी वो मुराद भी शायद पूरी कर देंगे जल्दी ही!”
“तो दादी माँ, क्या करें डैडी को सिखाने के लिए?”
“करते हैं कोई व्यवस्था! ... अब हम बड़ों के सामने बात आ गई है, तो हम सब कुछ ठीक करने की कोशिश करेंगे! लेकिन सबसे पहले अपनी लतिका से बात करती हूँ। ... कल बड़ा शुभ दिन है बहू। माता की कृपा होगी ऐसा मुझको लगता है!”
*