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सच में कोई अलौकिक कृपा है अपने avsji भैया पे, लफ़्ज़ों में प्रेम का पाठ पढ़ा देते हैं।आप प्रेम के जादूगर हे । कितना प्यार भरा हे आपमें .कैसे लिख लेते हे आप। इस कहानी में अमर की हर लव स्टोरी को जिस तरह आपने बढ़ाया हे वो बेमिसाल हे। आप मेरे आदर्श हे प्यार के मामले में। में ईर्ष्या करती हु आपसे
Me kabhi apko apne khilaf nhi manti Apne mujhe bahut sneh Diya he or margdarshan bhi kiya he.prem kesahi mayne apse samjhe he aap mere guru he jo mujhe samjhate he .bhabhi or bachhe thik honge
सुमन जी ने अपने प्रथम विवाह के दौरान पहना हुआ गले का हार लतिका को गिफ्ट कर परिवार के सभी सदस्य के सामने उसे अपना बहू स्वीकार कर लिया। और इस चीज को लतिका भी समझ रही थी कि इस गिफ्ट के क्या मायने है !
गिफ्ट पैसों के मामले मे भले ही कीमती न हो पर यह गिफ्ट पारम्परिक रूप के नजरिए से काफी कीमती है। ऐसे गिफ्ट का मोल भाव नही किया जाता।
लतिका के लिए यह लम्हा अत्यंत ही इमोशनल भरा रहा होगा और साथ ही बेशुमार खुशियों का भी। आखिर उसके मन की मुरादें जो पुरी होने जा रही है।
अमर भाई साहब के दिल ने भी लतिका के वास्ते अपने पट खोल दिए है। उनका दिल भी लतिका के लिए आहें भरने लगा है। और सिर्फ आहें ही क्यों ! रंगीन रातों के सपने भी आने लगे है । इसीलिए तो उन्होने लतिका के लिए सेक्सी अधोवस्त्र खरीदा था।
जहां तक दीपावली पर्व की बात है , यह हमारे यहां भी सालों से रस्म चलता आया है कि बड़े-बुजूर्ग लोग छोटों को कुछ न कुछ गिफ्ट देते आए है । अगर गिफ्ट न हो तो अपनी क्षमतानुसार रूपए देते है । यह इस पर्व को और भी खुबसूरत बनाता है।
अमर के ससुर जी ने अपने वसीयत मे सभी का ख्याल रखा। यह देखकर बहुत बढ़िया लगा कि उन्होने सुमन जी के साथ साथ काजल को भी अपनी वसीयत का हिस्सेदार बनाया।
हर कोई चाहता है कि हमारा पुरा परिवार साथ साथ रहे। हर सुख दुख साथ साथ शेयर करे। हर पर्व त्योहार साथ साथ मनाएं। लेकिन ऐसा होना सम्भव नही है।
आज के इस व्यस्ततम दौर मे अगर परिवार के कुछ मेम्बरान अलग अलग भी रहते है तो एक तरह से अच्छा ही है। दूर दूर रहने से प्रेम और भी बढ़ता है। साथ साथ रहने से परिवार मे कलह होना , छोटी छोटी बात को लेकर मनमुटाव होना आम बात है। हां , कोई खास मौके पर यदि परिवार के सभी सदस्य इकठ्ठा होते हैं तो वहां प्रेम मोहब्बत स्नेह अधिक दिखाई देता है। यदि परिवार का कोई सदस्य प्रॉब्लम मे है तो अवश्य ही बाकी सदस्य को उसकी मदद करनी चाहिए।
अपडेट हमेशा की तरह बहुत ही खूबसूरत था।
आउटस्टैंडिंग एंड जगमग जगमग अपडेट avsji भाई।
सच में कोई अलौकिक कृपा है अपने avsji भैया पे, लफ़्ज़ों में प्रेम का पाठ पढ़ा देते हैं।
जिसने कभी किसी से नहीं भी प्रेम किया, प्रेम में होना कैसा होता है उसका एहसास करवा देते हैं।
बहुत ही सुंदर अपडेट, भैया।![]()
हमेशा की तरह सुंदर अपडेट।अचिन्त्य - Update # 13
“आप सोए नहीं?”
एक अलग ही बात थी लतिका की आवाज़ में! अब उसकी हर चीज़ में मुझे अलग सी बात लगने लगी थी - सच में, किसी को देखने का नज़रिया जब बदल जाता है, तो सब कुछ बदल जाता है। क्या हो गया है मुझको कुछ ही घण्टो में!
“अ... ओह... पु... च... ल... ल... लतिका...?”
“मैंने कहा, आप सोए नहीं?”
उसकी आवाज़ में मुझे मुस्कराहट साफ़ सुनाई दी। बालकनी में अँधेरा था, इसलिए लतिका का अक्स तो दिख रहा था, लेकिन उसका चेहरा अँधेरे में ही था।
“नींद नहीं आ रही है...” आधा सच, आधा झूठ!
“मैं बैठ जाऊँ आपके बगल?”
“इतना फॉर्मल क्यों हो लतिका? बैठो न!”
लतिका आ कर मेरे बगल रखी आराम कुर्सी पर बैठ गई।
कोई और समय होता, तो मैं उससे अन्य लोगों, जैसे आभा, के बारे में पूछता। लेकिन आज की रात ऐसी छोटी छोटी बातें करना सही नहीं लग रहा था। लिहाज़ा हम दोनों ही चुप बैठे हुए रात की रौशनी और रात के ट्रैफिक के शोर का ‘आनंद’ लेते रहे।
“क्या सोच रही हो?”
“हम्म?” फिर से उसकी आवाज़ में मुझको मुस्कराहट सुनाई दी, “बहुत कुछ...” वो बोली और फिर कुछ देर रुकी, “बहुत कुछ चल रहा है मन में...”
चल तो मेरे मन में भी रहा था बहुत कुछ।
“क्या चल रहा है?”
“बस... फ्यूचर की बातें! क्या होगा... कैसे होगा? यही सब...”
“नेशनल्स को ले कर चिंता है...?”
मैंने मन में उम्मीद करी कि काश उसको नेशनल गेम्स की ही चिंता हो रही हो!
उसने ‘न’ में सर हिलाया...
दिल में अजीब सा स्पंदन होने लगा।
सच में - मैं जानना नहीं चाहता था कि वो किस बात की चिंता में मग्न थी। जानने को न मिले, इसलिए मैंने कुछ समय तक आगे और कोई प्रश्न नहीं पूछा - इस डर से कि न जाने क्या उत्तर मिले... न जाने वो क्या कह बैठे! मेरे मन में वैसे ही एक चोर बैठ गया था उसको ले कर! लतिका को एक अलग दृष्टि से देखने की बात को मैं उसके ही सामने नहीं स्वीकारना चाहता था! न जाने वो मेरे बारे में क्या सोच बैठे? कहीं मेरे मन के किसी कोने में छुपी हुई बातें जान कर उसको मुझसे घृणा न हो जाए! अगर ऐसा हुआ, तो फिर उससे नज़रें कैसे मिलाऊँगा?
“आप इतने चुप क्यों हैं?” उसने पूछा।
“क्या कहूँ?”
झल्लाई हुई तो नहीं, लेकिन एक अजीब सी आवाज़ में मैंने कहा - शायद अपने ही मन की उधेड़-बुन से निराश था मैं! लेकिन तुरंत ही अपनी गलती का एहसास हो गया मुझको। मेरी परेशानी मेरी अपनी है - उसकी गन्दगी मैं लतिका पर क्यों फेंकूँ? मैंने कुछ देर कुछ भी नहीं कहा - कहीं उसको बुरा न लग गया हो!
वो कुछ देर कुछ नहीं बोली, फिर बहुत नपे तुले अंदाज़ में बोली, “जैसे आप दादा, अम्मा, और बोऊ दी के साथ हो जाते हैं न... बच्चों जैसे... बेफ़िक्र... खुश... आप वैसे ही रहा करिए! ... आपके चेहरे पर चिंता की शिकन अच्छी नहीं लगती! ... जैसे बोऊ दी हँसती मुस्कुराती खूब सुन्दर सी लगती हैं न, वैसे ही आप भी हँसते मुस्कुराते हुए बहुत अच्छे लगते हैं!”
“हा हा हा!”
“हाँ... ऐसे ही!”
“तुम बहुत अच्छी हो लतिका!”
“आई नो!” उसने हँसते हुए कहा, फिर थोड़ा सा ब्राउनी पॉइंट जोड़ा, “आप मुझको इतनी अच्छी रहने देते हैं न... इसलिए!”
“नहीं लतिका... वैसा नहीं है! तुम बहुत अच्छी हो! थोड़ा कंट्रीब्यूशन हो सकता है मेरा... जैसे कि तुमको परेशान न करना... लेकिन बस उतना ही! आई हैव बीन ब्लेस्ड विद रियली अमेजिंग पीपल इन माय लाइफ!”
वो फिर से मुस्कुराई, अँधेरे में बहुत साफ़ नहीं दिख रहा था, लेकिन बाहर की रौशनी में उसके दाँत बड़ी सुंदरता से चमक रहे थे, “मुझे कोई परेशान नहीं करता... हमेशा से ही आप सभी से इतना प्यार मिला है, कि मुझे कोई शिक़ायत नहीं है! आई ऍम सो हैप्पी!”
“तुमसे भी तो...” मैं कहते कहते रुक गया।
“मुझसे भी तो क्या?”
“तुमसे भी तो हमको इतना प्यार मिला... मिलता है!”
वो चुप हो गई।
थोड़ी अजीब सी स्थिति हो गई - क्या कहूँ, समझ नहीं आ रहा था। पहले तो मेरे पास कुछ न कुछ रहता ही था कहने को! लेकिन आज... कुछ भी नहीं। एक स्त्री से कैसे बातें करनी हैं, उसका चातुर्य... उसका कौशल जैसे चला गया था मेरे हाथ से!
“अच्छा लगता है यहाँ...” उसने शायद बात करने की गरज़ से कहा, “दादा हैं... बोऊ-दी हैं... बच्चे...”
“अम्मा हैं... बापू हैं...” मैंने लिस्ट पूरी कर दी।
“हा हा... हाँ, मैं उनको भी इन्क्लुड करने वाली थी!” उसने हँसते हुए कहा।
“... तुम भी हँसती हुई... मुस्कुराती हुई बहुत अच्छी लगती हो...”
मेरी बात से शायद उसको संकोच हो आया हो - लेकिन उसका मुस्कुराना कम नहीं हुआ। अनायास ही उसकी उँगलियाँ अपने गले पर पड़ी हुई माँ की दी हुई ज़ंज़ीर पर फ़िरने लगीं। ज़ाहिर सी बात है, मेरी खुद की भी नज़र उस पर पड़ी।
“माँ लव्स यू सो मच...” यह कोई बात नहीं थी - बस एक फैक्ट था!
“आई नो,” उसने कहा, “सबसे ज़्यादा...”
बात सच थी!
“ये हार माँ ने अपनी शादी के समय पहना था... पहली शादी के समय...”
“आई नो...” इस बार उसने बहुत धीमी आवाज़ में कहा।
“पुराना हो गया काफ़ी... मेरे नाना नानी की निशानी है समझो!”
वो मुस्कुराई, “आई नो... एंड, इट मीन्स अ लॉट... कि उन्होंने अपनी ऐसी ख़ास चीज़ मुझको दी...”
“एस आई सेड, शी लव्स यू सो मच!”
वो मुस्कुराई।
“माँ तुमको इतना प्यार करती हैं कि अपना सब कुछ तुम्हारे नाम लिख सकती हैं!” मैंने हँसते हुए कहा।
“हा हा... सही में?”
मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“फिर तो मुझे उनका सबसे प्रेशियस ज्वेल चाहिए!”
“अरे!” मैं चौंका, और हँसने लगा - लतिका को भी ज़ेवर गहनों की चाह होगी, इस बात की मुझे आशा नहीं थी... लेकिन जान कर सुखद आश्चर्य भी हुआ कि उसके अंदर स्त्री-सुलभ इच्छाएँ हैं, “क्या? उनका ‘नौलखा’ वाला सेट?”
पापा ने माँ को गिफ़्ट में दिया था... हीरे जड़ा सोने का हार, और उसी से मैचिंग कंगन का सेट! हम लोग मज़ाक में उसको नौलखा सेट बोलते थे, क्योंकि पापा की पूरी सेविंग निकल गई थी उसको खरीदने में।
लतिका मेरी बात पर हँसने लगी। कुछ बोली नहीं।
“बढ़िया है!” मैंने हँसते हुए कहा, “माँग लो... एस आई सेड, वो अपनी पूरी जागीर तुम्हारे नाम लिख सकती हैं!”
“बिना लिखे भी मिल जाएगा सब... वो मेरी माँ भी तो हैं!”
मैं मुस्कुराया, “तुम दोनों का रिश्ता बड़ा अनोखा सा है... कब माँ बेटी होते हो, और कब ननद भौजाई, समझ ही नहीं आता हम लोगों को! इसलिए तुम दोनों की नोंक झोंक से हम सभी दूर ही रहते हैं... पापा भी!”
“हा हा हा... शी इस द बेस्ट!” वो खिलखिला कर कुछ देर तक हँसी... लतिका को ऐसे ख़ुश ख़ुश हो कर, बिंदास तरीक़े से हँसती हुई देखना बड़ा सुखकारी था। फिर वो थोड़ा शांत हो कर, बड़े उम्मीद भरे लहज़े में बोली, “काश, उनके साथ मैं पूरी उम्र रह सकूँ... अच्छे लोगों का हाथ सर के ऊपर रहता है, तो छोड़ने में मुश्किल होती है!”
उसकी बात पर एक विचार कौंध गया मन में - अगर वो और मैं साथ हो लेते हैं, तो ये समस्या नहीं आने वाली। विचार बढ़िया था। लेकिन उसके सामने कैसे ज़ाहिर होने दूँ?
“इसीलिए तो मैं भी चाहता हूँ कि हम साथ साथ ही रहें...”
“आई नो... और मुझे लगता है कि कुछ न कुछ होगा! ... हम साथ रहेंगे...”
हम बातें कर ही रहे थे, कि इतने में अम्मा आ गईं।
“क्या बातें हो रही हैं बच्चों?”
“कुछ नहीं अम्मा,” मैंने कहा, “मैं लतिका को आईडिया दे रहा था कि माँ से उनकी सारी जागीर अपने नाम लिखवा लो!”
“क्या? हा हा हा!”
“हाँ! बोल रही थी कि उसको माँ का सबसे प्रेशियस ज्वेल चाहिए!” मैंने बताया।
मेरी बात पर अम्मा ने हँसते हुए लतिका को देखा - लतिका अम्मा की तरफ़ नहीं देख रही थी। बस, सामने की ओर देख कर मुस्कुरा रही थी। अपने विचारों में वो गहराई तक डूबी हुई थी।
“हाँ भई, लेना है तो छोटा मोटा क्या लेना! ... ढंग से लेना!” अम्मा ने कहा फिर आगे बोलीं, “अच्छा... बच्चों! सोना नहीं है क्या? या फिर पूरी रात अपनी बोऊ-दी को कैसे लूटना है, उसी का प्लान करना है?”
“हाँ अम्मा, सोना तो है...” लतिका ने कहा, “आप भी तो इतनी देर तक जाग रही हैं!”
“कुछ नहीं रे... तेरे दादा और बोऊ-दी से कुछ ज़रूरी बातें कर रही थी!” बड़े अर्थपूर्ण तरीक़े से कह कर अम्मा ने प्यार से लतिका के सर पर हाथ फेरा।
वो मुस्कुराई। फिर उसने अम्मा के सीने की तरफ़ देखा, और उनसे मज़ाक करती हुई शैतानी अंदाज़ में बोली, “बोल तो केवल आप ही रही होंगी न अम्मा? ... वो दोनों तो बस सुन रहे होंगे!”
अम्मा भी, और मैं भी लतिका की बात सुन कर हँसने लगे। बहुत मूडी हो रही थी वो! क्या हो गया था लतिका को? कभी किन्हीं ख़यालों में खो जा रही थी, तो कभी अचानक ही यूँ चहक चहक कर मज़ाकिया अंदाज़ में बतियाने लग रही थी!
“हा हा हा... बहुत बदमाश हो गई है तू! अरे माँ हूँ उन दोनों की... उस नाते ये तो मेरा हक़ है!” अम्मा ने हँसते हुए कहा, “और वैसे भी, मेरा दूध पीने में क्या बुराई है?”
“नहीं अम्मा, कोई बुराई नहीं है! ... मैं तो बस एक बात कह रही थी! बस!”
“मत कह कुछ... तू जब मेरा और बहू का दूध पीती है, तब मैं कुछ कहती हूँ... कोई कुछ कहता है?”
“नहीं अम्मा... तुम तो मेरी सबसे प्यारी अम्मा हो न!” लतिका अम्मा को आलिंगन में लेती हुई बड़े मनुहार से बोली, फिर, “दोनों ने कुछ छोड़ा हो, तो मुझको भी पिला दो?” लतिका ने फिर से अम्मा को छेड़ा, “इतना सब प्रॉमिस किया, लेकिन कुछ कर नहीं रही हैं!”
“मैंने क्या प्रॉमिस किया?”
“कहाँ नहीं था कि मुझको न्यूट्रिशन की कमी नहीं होने दोगी!”
“अरे वो? ओह! मेरी पूता... देख, तेरी बोऊ दी ने तो नहीं, हाँ, दादा ने ज़रूर छोड़ा है... आ जा...” कह कर अम्मा लतिका के बगल खड़ी हो कर अपने ब्लाउज़ के बटन खोलने लगीं।
“हाँ, ठीक है... जो भी मिल जाए!” लतिका ने कहा, और जल्दी से अम्मा की ब्रा को ऊपर कर के उनका स्तन पीने लगी।
ये देख कर मुझे बड़ा अच्छा लगता है! अक्सर मैंने लतिका को माँ का स्तनपान करते देखा है, लेकिन अम्मा का नहीं। अचानक से ही हम तीनों चुप हो गए; अम्मा लतिका के सर को सहलाते हुए उसको स्तनपान करा रही थीं, और मैं मूर्खों की तरह उन दोनों को देख रहा था। स्तनपान समाप्त होने में बहुत समय नहीं लगा।
“ख़म हो गया अम्मा,” लतिका ने छोटे बच्चों की तरह ठुनकते हुए शिकायत करी।
“अच्छा अच्छा... थोड़ा समय तो दो! सवेरे पी लेना जी भर के! ठीक आछे?”
“यस माय अम्मा!”
मैं उसके कहने पर मुस्कुराया। बड़ी हो गई है, लेकिन कई मायनों में छोटी बच्ची ही है लतिका... फिर माँ का भी अक्स आ गया दिमाग में! माँ भी तो ऐसी ही हैं! अम्मा को देख कर वो भी इसी तरह बच्चों जैसी बिहैव करने लगती हैं! बात उम्र की नहीं, कम्फर्ट लेवल की है!
“चलो अब... सो जाओ तुम दोनों भी! मैं भी थक गई हूँ! ... और कल घर भी चलना है न तुम सभी को! ठीक है?”
“यस अम्मा!”
“जी अम्मा!” मैंने कहा, और उठने लगा।
“और बेटे,” अम्मा ने मुझसे कहा, “बहू ने बुलाया है तुमको!”
“अरे वाह जी,” लतिका ने इस बार मुझको भी छेड़ा, “... हमको तो कोई बुलाता ही नहीं!”
“तू सो जा मेरे पास ही मालकिन,” अम्मा ने हँसते हुए कहा, “... उठते ही निबटा लेना सब! अब ठीक है!”
“यस अम्मा!” उसने खुश होते हुए कहा, और अम्मा के साथ ही चल दी।
*