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हमेशा की तरह सुंदर अपडेट।
लेकिन अब ज्यादा प्रतीक्षा नही हो पा रही है अमर और लतिका को साथ देखने में।
लतिका और अमर का साथ मे कुछ समय व्यतीत करना ' कुछ तुम कहो कुछ मै कहूं ' जैसा था।
जब तुम कहो तब हम सुने
जब हम कहें तो तुम सुनो
अगर करेंगे बात दोनो तो सुनेगा कौन
बात तो फिर बात ही रह जाती
ना वह कही जाएगी , ना ही सुनी जाएगी
कुछ तुम कहो कुछ हम कहें।
कशमकश भरे इस माहौल मे ऐसा भी नही था कि लतिका ने जो कहा वो अमर ने समझा नही और अमर ने जो कहा वो लतिका ने भी समझा नही।
अब बस शहनाई बजने की देर है।
" प्रेसियस ज्वेल " मेरी नजर मे तो लतिका है। सर्व गुण सम्पन्न है वो लड़की । उसने न सिर्फ अमर का घर गृहस्थी संभाल रखा है बल्कि उसकी जिम्मेदारी का निर्वहन भी वो स्वयं कर रही है।
बहुत खुबसूरत अपडेट avsji भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड जगमग जगमग।
अरे बाप रे
यहाँ तो कहानी दिल्ली से दौलताबाद पहुँच गई है
ठीक है सारे अपडेट पढ़ने के बाद ही कमेंट करूँगा
लाइन क्लियर हो गई अब तो...अचिन्त्य - Update # 14
मैं एक बार फिर से अकेला रह गया। कुछ देर शांति रही वहाँ!
लतिका की बातों पर मैं अनायास ही विचार करने लगा। माँ का प्रेशियस ज्वेल कोई वस्तु नहीं हो सकती! मेरे मन में ये ख़याल आ ही गया! ‘बाप रे!’ वो तो मेरी ही बात कर रही थी! इतने स्पष्ट रूप से उसने अपनी बात मेरे सामने ही कह दी थी! मतलब साफ़ है, अब बात मेरे पाले में थी। लतिका अच्छी तो है... बहुत सुन्दर भी है! अगर शादी करनी ही है, तो सच में, उससे बेहतर लड़की नहीं मिलने वाली मुझको! लेकिन तुरंत ही मन में अगला विचार आ गया - कहीं मेरे कारण उसका कुछ अनिष्ट न हो जाए! अगर वैसा कुछ हुआ, तो मैं अपनी जान दे दूँगा! इतनी बार मैं वही पीड़ा नहीं झेल सकता।
‘हे प्रभु, मार्ग दिखाएँ!’
मैं यही सब सोच रहा था कि माँ आती हुई दिखाई दीं।
उन्होंने पेटीकोट पहना हुआ था, और ऊपर एक पतला सा शाल डाल रखा था। शायद उनको लगा हो कि कहीं बाबू जी भी न हों वहाँ! माँ और अम्मा दोनों की ही आदत थी, कि स्तनपान कराने से पहले हम बच्चों को नग्न कर देती थीं। लिहाज़ा कुछ समय पहले माँ भी उसी अवस्था में रही होंगी, और मेरे उनके कमरे में आने में देरी होने पर, मुझको लिवा लाने के लिए आई होंगी।
“अरे बेटे, यहाँ अकेले बैठा क्या कर रहा है? ... हम लोग इंतज़ार कर रहे हैं!”
“कुछ नहीं माँ... थोड़ी देर पहले लतिका भी साथ थी... फिर अम्मा आ गईं... और वो दोनों बस अभी अभी गई हैं!”
“अच्छा अच्छा, लतिका से बातें कर रहा था?” माँ की वाणी में आनंद का पुट सुनाई दिया मुझको!
“अरे माँ... ऐसा क्या हो गया!”
“नहीं... कुछ नहीं बेटा!” फिर कुछ सम्हलते हुए, “लेकिन, अभी तो कोई भी नहीं है न यहाँ... फिर भी क्यों बैठा है यहाँ?”
“कुछ नहीं माँ! बस उठ ही रहा था!”
“याद है? मैं तुझको बोला था कि सीधे आ जाना हमारे पास!”
“हाँ माँ!”
“क्या हुआ? कोई प्रॉब्लम है?”
“नहीं... कोई प्रॉब्लम नहीं है माँ!” मैंने झिझकते हुए कहा।
“फ़िर?” माँ ने कहा, “आ न!”
“माँ,” मैंने हिचकते हुए कहा, “मैं अपने कमरे में सो जाऊँगा न! ... वैसे भी बाहर का सीन अच्छा है। जगमग जगमग लाइट्स हैं! कुछ देर बाहर देखूँगा... बढ़िया नींद आ जाएगी!”
“हाँ... ज़रूर! ये लाईटें दिल्ली में देख लेना! ... मेरा बेटा इतने दिनों बाद आया है, और मेरे साथ नहीं सोएगा...” माँ ने कहा और मेरा हाथ पकड़ कर बोलीं, “चल...”
“अरे... लेकिन... माँ... सुनिए तो!”
“क्या हुआ?” माँ ने मुझको दुलारते हुए पूछा, “अपने मम्मी पापा के साथ सोने में शर्म आने लगी है?”
“नहीं माँ! आप लोगों से शर्म आएगी मुझको?”
सच तो यह था कि माँ पापा के साथ सोने की बात सुन कर मेरे मन में लड्डू फूटने लगे! पक्की बात थी कि एक तो स्तनपान करने का सुख मिलेगा, और साथ ही साथ उनके आँचल में सुखभरी मीठी नींद का लाभ भी! लेकिन यह ख़ुशी ऊपर जाहिर होने नहीं देनी चाहिए। हाँ, वो अलग बात है कि अपने माता पिता से बच्चों का क्या छुपा रह सकता है?
लेकिन लीपा-पोती करनी भी ज़रूरी थी, “लेकिन आप और पापा...?”
“मैं और पापा? क्यों? क्या हुआ हमको?” माँ ने आश्चर्य का अभिनय करते हुए कहा, जबकि वो भली भाँति समझ रही थीं, कि मैं क्या कह रहा था, “मेरा बच्चा... हमारे लिए तो सबसे सुख वाली बात यह है कि हमारे बच्चे सुख से हैं, और हमारे पास हैं!”
मैं मुस्कुराया।
“आ जा बेटा…” माँ ने कहा, और पुनः अपने कमरे की तरफ़ चलने लगीं, “वैसे भी बहुत देर हो गई है!”
कमरे में प्रवेश करते समय माँ ने मुझको जैसे ललचाते हुए, और दबी हुई आवाज़ में, दुलारते हुए कहा, “... और वैसे भी... खूब सारा दूधू है तुम्हारे लिए आज!”
“वो क्यों माँ?” मैं बस कुछ ही क्षणों में मिलने वाले अमृत के सुख से आनंदित होने लगा।
“अरे... आज किसी ने पिया ही नहीं... सब अपने में ही मस्त थे!”
“बढ़िया है फिर तो दुल्हनिया!” पापा ने बदमाशी भरे सुर में, माँ को छेड़ने की गरज़ से कहा, “अमर बेटा, एक तुम पीना... दूसरा मैं! ठीक है?”
“हा हा हा... ठीक है पापा!”
“धत्त...” माँ ने पापा को प्यार से झिड़का, “कुच्छ नहीं मिलेगा आपको!”
“अरे... दुल्हनिया!” पापा ने धर्मेंदर जैसा नाटक करते हुए अपने माथे पर अपने हाथ का पिछले सिरा लगाया, “ये तो बड़ा जुलम हो जाएगा यार!”
सच में! ऐसे हँसमुख, साफ़ हृदय, प्रेम करने वाले पति की संगत में माँ की रौनक क्यों न बढ़ती जाए? पापा ने कमर पर तौलिया लपेट रखी थी, नहीं तो वो भी स्तनपान करते समय निर्वस्त्र थे।
पापा की बात पर माँ ने बड़ी मुश्किल से अपनी मुस्कराहट को दबाया, और फिर मुझको देख कर बोलीं, “आ जा बेटा!”
मैंने अपनी छोटी बहन को वहाँ न देख कर पूछा, “अरे माँ, अभया कहाँ है?”
“वो तो अब अकेली सोने लगी है न!”
“अच्छा?” मुझे सच में आश्चर्य हुआ, “... इतने छोटे छोटे बच्चे अकेले सोते हैं... और मुझको देखिए... मैं अभी भी अपने मम्मी पापा के पास सोता हूँ!”
“‘सोता हूँ’ नहीं, ‘सोने जा रहा हूँ’ कहो!” पापा ने कहा, “... और अगर सो भी गए, तो क्या गुनाह हो गया? ... अपने मम्मी पापा के पास तो सोना चाहिए! ... ये तो तुम्हारा हक़ है!”
“हा हा! क्या पापा?”
“क्या पापा क्या?” माँ दुलार से, बड़े अभिमान से बोलीं, “ठीक ही तो कह रहे हैं ये! ... तुम हमारा अंश हो... हमारी संतान हो... हक़ तो है ही!”
“आई लव यू माँ... आई लव यू पापा!”
“खूब लव यू बेटे... खूब!” पापा बोले, “आ जा... मेरे पास!”
मैंने उनके सामने खड़ा हो गया। पापा मेरा पजामा खोलने लगे।
“पापा!”
“क्यों? ये सब पहन कर सोएगा क्या?” वो मेरा पजामा उतारते हुए बोले।
“पापा आप मुझे बिलकुल नन्हे बच्चे जैसे ट्रीट करते हैं!”
मेरी चड्ढी उतारते हुए वो बोले, “हाँ, तो? बाप हूँ तेरा... बालकनी में हम दोनों दोस्त हैं... लेकिन अपने माँ बाप के कमरे में... हमारे सामने... तो नन्हा बच्चा ही रहेगा न तू!”
भारत में किसी वयस्क को कानूनी तौर पर गोद नहीं लिया जा सकता। वैसे उसको अपना वारिस घोषित कर सकते हैं। तो पापा ने भी वही किया था। मैंने उनकी वसीयत पढ़ी थी, जिसमें उन्होंने अपना सब कुछ... मतलब अपनी चल और अचल सम्पति, अपने बड़े बेटे - यानि कि मेरे नाम लिख दी थी। इतना बड़ा सम्मान दिया था उन्होंने!
मेरा कुरता उतारते हुए वो कह रहे थे, “... वैसे भी, बर्थडे है आज तेरा... बर्थ सूट में ही रहना चाहिए तुझे आज... और वैसे भी, कितने ही दिन हो गए तुझे देखे हुए...”
कुछ ही पलों में मैं माँ और पापा के सामने पूर्ण नग्न खड़ा था। पापा ने मेरे कोमल से शिश्न को वैसे ही चूम लिया - जैसे वो आदित्य और आदर्श का करते थे, “मेरा सुन्दर बेटा...”
उनकी इस हरकत से मैं शर्मा गया - यह तथ्य उनसे छुपा नहीं रहा।
“हमसे शर्माता है तू? ... इतना बड़ा हो गया है?” पापा ने दुलार से कहा।
“आपके सामने मैं कभी बड़ा होऊँगा कभी?”
“बच्चे अपने माँ बाप से बड़े हो सकते हैं कभी?”
“नहीं!” मैं मुस्कुराया।
“तो कभी नहीं!” उन्होंने मेरी बात का उत्तर दिया।
जैसा कि हमेशा का रूटीन था - मैं नग्न होते ही उनके बिस्तर पर जा लेटा। पूरे बाल-सुलभ उत्साह से! कोई बोझ नहीं! अब तो ऐसा हो गया था कि उन दोनों में से किसी के भी सामने मुझको अपनी असली उम्र का याद भी नहीं रहता था। और अगर दोनों साथ में होते तो मुझको और भी छोटे बच्चे जैसा महसूस होता। दोनों मुझे इतना दुलार करते थे कि क्या कहें! पाठक तो जानते ही हैं! मेरे जीवन में लिए गए सबसे बेहतरीन निर्णयों में से दो निर्णय थे, जिनके कारण मेरी अभी की ज़िन्दगी सुन्दर हो गई - पहला निर्णय था माँ और पापा की शादी में कोई रोड़ा न अटकाना, और दूसरा निर्णय था पापा को अपना पिता मानना!
माँ मेरे पीछे पीछे आ कर बिस्तर पर बैठीं, और पापा भी उनके पीछे दरवाज़ा भेड़ कर हमारे साथ ही बिस्तर पर आ गए। माँ ने अपना शाल कब का उतार दिया था, और बस पेटीकोट पहने हुए ही बिस्तर पर मेरे बगल आ कर लेट गईं। सुहाना सा मौसम था, इसलिए बिना कपड़ों के कोई परेशानी नहीं हो रही थी!
“माँ,” मैंने उनको छेड़ने की गरज से कहा, “आप अभी भी बहुत सुन्दर लगती हैं!”
“अभी भी का क्या मतलब है लड़के?” पापा ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, “अभी क्या उम्र हुई है हमारी? हैं?”
“हा हा... नहीं पापा! कोई उम्र नहीं हुई है! ... मेरा मतलब था कि माँ हमेशा की ही तरह सुन्दर लगती हैं! कोई अंतर नहीं!”
“हैं न?” पापा ने मेरी बात का अनुमोदन किया।
“हाँ पापा! ... यू आर वैरी लकी!”
“अरे पापा के बच्चे...!” माँ ने कहा।
“अरे भाग्यवान... मेरा बच्चा तो है ही! ... यू आर सो राइट बेटा!” पापा ने बड़े गर्व से कहा, “ये तो मैं भी मानता हूँ! ... जब से मेरी सुमन मेरी लाइफ में आई है, तब से मेरी लाइफ में सब कुछ सुन्दर ही सुन्दर हो रहा है!”
“हाँ...” मैंने पापा की बात में हाँ में हाँ मिलाई।
“बेटों को अपनी माँ सबसे सुन्दर लगती हैं!” माँ ने मिठास से कहा।
मैंने माँ का एक स्तन पकड़ते हुए पूछा, “माँ, आपको पक्का यकीन है कि आपकी कोई छोटी या बड़ी बहन नहीं है?”
“ऐसे क्यों पूछ रहे हो बेटा?” माँ को समझ नहीं आया कि अचानक मैं उनके भाई बहनों में क्यों इंटरेस्ट लेने लगा।
“अगर होतीं तो उन्ही से शादी कर लेता... सारा झंझट ही ख़तम हो जाता!”
मेरी बात खतम भी नहीं हुई थी कि पापा ठठा कर हँसने लगे। माँ ने मज़ाक में उनको आँखें दिखाईं और मेरे कान को प्यार से उमेठते हुए बोलीं,
“अच्छा बच्चू, अपनी मौसी से शादी करनी है तुझे?”
“आह... नहीं माँ... मेरे कहने का मतलब वो नहीं था! मैं तो यह कह रहा था कि आप जैसी कोई मिल जाती... ऐसी लड़की जिसमें आप जैसे गुण होते... तो...”
“आS... मेरा बेटा... अब समझी मैं!” कह कर माँ ने मुझे चूम लिया, “... बड़ा नुकसान हो गया ये तो!”
“सही कह रहे हो बेटे...” पापा की हँसी जब थमी, तब वो बोले, “मैं जब सुमन से कोर्टशिप कर रहा था, तब मैंने भी इसको कहा था कि ये अगर मेरी माँ भी होती, तो भी मैं इससे शादी कर लेता!”
“क्या पापा!” मैं उनकी बात पर ठठा कर हँसने लगा, “... लेकिन आपकी बात है बिलकुल सही! ... माँ जैसी लड़की मिले, तो सोचना ही नहीं चाहिए! यहीं घरती पर ही स्वर्ग मिल जाए आदमी को!”
“सही बात!”
“अच्छा जी?” माँ ने कहा।
“और नहीं तो क्या! ... ऐसी बढ़िया सी लड़की को मैं ऐसे कैसे जाने देता?” पापा ने अपने कौशल की डींग हाँकी, “‘माँ जैसी हूँ’, ‘माँ जैसी हूँ’ कह कह कर बहुत पकाया था इन्होने!”
“माँ जैसी नहीं हूँ?” माँ ने तपाक से कहा, फिर उनको खुद ही अपनी स्लिप ऑफ़ टंग का एहसास हो गया।
“हो न! माँ जैसी बीवी! हॉट... सुन्दर और सेक्सी और... माँ जैसी प्यार करने वाली!” पापा ने माँ को उनके होंठों पर चूमा, फिर मुझको सुनाते हुए, “पकाया तो बहुत इन्होने... लेकिन मैंने भी हिम्मत नहीं हारी! ... कैसे कैसे मनाया है मैंने इनको, यह तो मुझे ही मालूम है!”
“हा हा... कैसे मनाया आपने माँ को?”
“चुप रहिए... एक और शब्द नहीं!” माँ ने पापा को कुछ भी कहने से रोका, “हमारी बातें बेटे को बताएँगे अब?”
“प्यार से बेटा... और कैसे? ये कोई ऐसी वैसी लड़की थोड़े ही हैं कि दो मीठी बातें कर के बहल जातीं! ... जब इनको पूरा यकीन हो गया कि मैं इनसे सच में प्यार करता हूँ, तब इन्होने खुद ही मेरे प्यार को स्वीकार कर लिया!” पापा ने बड़े गर्व से मुस्कुराते हुए बताया।
“नाइस! आई ऍम सो हैप्पी!” कह कर मैंने माँ को चूम लिया, “एक बार मैं आप दोनों के मुँह से आपके कोर्टशिप की कहानी सुनूँगा!”
“हाँ हाँ... सुन लेना सब! लेकिन अभी शांति से दूध पियो!”
“मैं भी पी लूँ दुल्हनिया?” पापा ने आशा से पूछा।
मैं हँसने लगा।
“आप चुप बैठिए...” माँ बोलीं, “अमर बेटे, तुम इनकी बदमाशी वाली बातें मत सुना करो! जितना मन हो, पियो। ... मेरा दूध मेरे बच्चों के लिए है!” फिर पापा की तरफ़ दोनों आँखें दबाती हुई बोलीं, “बच्चों के पापा के लिए नहीं!”
“अरे दुल्हनिया, मेरा भी तो कुछ कॉन्ट्रीब्यूशन है न इस दूध को बनाने में!”
“चुप रहिए आप!” माँ ने कहा, “बड़े आए कॉन्ट्रीब्यूशन करने...”
“बेटे, मालूम है? तुम्हारी माँ से मैंने वायदा लिया था कि जब इनको दूध आएगा न, तो जब भी पॉसिबल होगा, तो मेरे सबसे बड़े बेटे को ज़रूर पिलाती रहेंगी!”
“वो क्यों पापा?”
“वो इसलिए कि...” पापा ने प्यार से मेरा माथा सहलाया, “मैंने अपने बड़े बेटे को अपने सामने अपनी माँ का दूध पीते देखना चाहता था!”
मैं कुछ कहता कि माँ ने प्यार से अपना एक चूचक मेरे मुँह से छुवाया, “अच्छा अब बातें कम करो!”
“पापा...” मैंने दूध पीना शुरू करने से पहले कहा, “आप सभी दिल्ली ही आ जाईए न! वहाँ तो बहुत सी बढ़िया जॉब्स हैं आपके लिए! साथ ही रहेंगे फिर!”
“हाँ बेटे... इन फैक्ट, मैंने जॉब सर्च शुरू भी कर दी है! ... हेड हन्टर्स के कॉल्स भी आने लगे हैं!”
“क्या सच पापा?”
पापा ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया!
“बहुत बढ़िया बात है, पापा!” मैं खुश हो कर बोला, “वाओ!”
कह कर मैंने माँ का स्तन सहर्ष ग्रहण कर लिया।
उधर पापा माँ के बगल ही लेट कर उनके दूसरे स्तन से खेलने लगे। ऐसा नहीं है कि मैंने उन दोनों के पहले कभी खेलते हुए नहीं देखा था, लेकिन फिर भी दोनों को अंतरंग होते देख कर मुझे बड़ा अच्छा लगता था। वो दोनों ही उस सुख के योग्य थे, जो उनको अपने विवाहित जीवन में मिल रहा था। पापा और माँ के बीच की अंतरंगता ग्लानिविहीन थी... ग़ैरशर्मसार थी! पापा माँ से बहुत प्यार करते थे, और उनका बहुत आदर भी करते थे। यह तथ्य उनके खेलने के तरीके से साफ़ ज़ाहिर हो रहा था। वो ऐसे कोमल तरीक़े से माँ के स्तन और चूचक छेड़ रहे थे कि जैसे वो कोई भंगुर वस्तु हो... कि कहीं अधिक ज़ोर लग गया तो टूट जाएगा! उस स्तन का चूचक भी कुछ ही क्षणों में स्तंभित हो गया।
माँ को भी पापा की हरकतों से आनंद आ रहा था!
“आप भी न...” माँ ने ग़ैरशिकायती अंदाज़ में कहा, “इतने सारे बच्चों के बाप हो गए हैं, लेकिन आपका बचपना नहीं जाता!”
“बेग़म, आदमी का बचपना दो लोगों के सामने कभी नहीं जाना चाहिए - एक तो उसके माँ और बाप के सामने, और दूसरी उसकी बीवी के सामने!”
“माँ...” मैंने दूध पीना रोक कर कहा, “पापा बिल्कुल सही कह रहे हैं... इसीलिए तो मैं आप दोनों के सामने नन्हा सा बच्चा ही हो जाता हूँ!”
“हमारे बच्चे तो तुम हो ही!” पापा ने कहा।
“हाँ हाँ... अपने पापा के बच्चे!” माँ ने चंचल अंदाज़ में कहा, “लेकिन अब तुम्हारे लिए एक प्यारी सी बीवी लानी है!”
“हा हा...” पापा ने हँसते हुए कहा, “अरे भाग्यवान, सही कहती हो! इसके लिए बीवी तो चाहिए...”
“अरे पापा! ये बात कहाँ से आ गई?”
“क्यों नहीं आएगी?” माँ बोलीं, “अब तुम्हारी जबरदस्ती शादी करनी पड़ेगी लगता है!”
“नहीं दुल्हनिया... मेरा बेटा है... ऐसे नहीं! एक अच्छी सी लड़की के सुपुर्द करेंगे इसको! जबरदस्ती नहीं!”
माँ मुस्कुराईं।
मैं चुप रह कर, शांति से कुछ देर दुग्धपान करता रहा। माँ के स्तनों में वाक़ई बहुत दूध था। माँ के शरीर और स्तनों के आकार को देख कर कहना कठिन था कि उनमें इतना दूध हो सकता है! ईश्वरीय आशीर्वाद कुछ ऐसा था उन पर, कि हमारे लिए तो वो इस धरती पर ईश्वर का ही रूप बन गई थीं! प्रेम, स्नेह, पोषण, और संस्कार, इत्यादि की अक्षय-पात्र थीं माँ! सच में! क्या किस्मत मेरी कि वो मेरी माँ हैं!
मैंने कनखियों से देखा - पापा माँ की नग्न बाँह को बेहद धीरे धीरे चूम रहे थे, और रह रह कर उनके दूसरे स्तन को सहला रहे थे। माँ की आँखें बंद थीं - जैसे वो पापा की हरकतों का यूँ ही आनंद ले रही थीं। मैं खुद को पापा की जगह, और लतिका को माँ की जगह रख कर अपनी फंतासी में डूबने लगा। लतिका के स्तन छोटे होंगे... गैबी के जैसे! कैसा स्वाद होगा उनका? लतिका के शरीर की महक कैसी होगी? मैंने देखा कि उनका हाथ स्तन से सरकता हुआ नीचे की तरफ़ गया, और माँ की पेटीकोट की डोर को ढीला करने लगा। शायद माँ को भी पापा की हरकतों से आनंद आने लगा था। मेरी तरफ़ करवट से हट कर, माँ अब अपनी पीठ के बल लेट गई थीं, और उनकी टाँगे थोड़ी फ़ैल से गई थीं।
पेटीकोट ढीला हो कर, खतरनाक तरीके से नीचे सरका हुआ था! लेकिन जो सब ढँका हुआ होना चाहिए, वो फिलहाल ढँका ही हुआ था। पापा का हाथ सामने की ओर माँ की पेटीकोट की आड़ में, नीचे, ढँक गया था, लेकिन उनकी उँगलियों की हरकतों से साफ़ पता चल रहा था कि वो उनकी योनि के साथ खिलवाड़ कर रहे थे। ऐसी अप्सरा जैसी सुन्दर स्त्री से उसका पति दूर रहे भी तो कैसे, और कितनी देर? माँ का एक हाथ बेबसी में नीचे बढ़ कर पेटीकोट के ऊपर से ही पापा के हाथ ऊपर आ गया। लेकिन वो उनको रोकने में अक्षम थीं। लिहाज़ा पापा की शरारतें चलती रहीं। माँ का स्तन खाली हो गया था, लेकिन उनके मज़े में खलल न पड़े, इसलिए मैंने कुछ कहा नहीं। बस, आराम से चूसता रहा।
फिर जैसे अचानक ही माँ को वापस मेरा ध्यान आया हो, “बेटू, ये वाला दूधू खाली हो गया है...”
शायद उन्होंने पापा को छेड़ने या तड़पाने की गरज से कहा हो! मैंने देखा कि पापा का हाथ झट से पेटीकोट से निकल कर बाहर आ गया, और माँ की कमर पर एक आलसी आलिंगन में लिपट गया। बेचारे पापा की हालत देख कर अंदर ही अंदर हँसी आई अवश्य, लेकिन उनके लिए थोड़ा सा दुःख भी हुआ। मेरे कारण वो दोनों इस समय ‘एक होने’ से वंचित हो रहे थे। मैंने सोचा कि अब वहाँ से जाने का समय आ गया है।
“बस माँ... पेट भर गया!”
“क्या!” पापा का मज़ाकिया अंदाज़ फिर से शुरू हो गया, “मेरा बेटा और बस इतना सा दूध पी कर उसका पेट भर गया!”
“खाना भी तो खाया था पापा!”
“नॉनसेंस! ... सोने से पहले दोनों ब्रेस्ट्स खाली करो” उन्होंने लगभग आदेश सा दिया, “दूध नहीं पियोगे तो मेरी बहू शिकायत करेगी!”
कह कर पापा माँ की साइड से उठे, और मेरी तरफ आने लगे। जब पापा मेरे पास आ कर खड़े हो गए, तो मेरे पास उधर से उठ कर, दूसरी साइड जा कर, दूसरा स्तन पीने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं था।
“आपकी बहू?” मैंने पूछा।
“हाँ! मज़बूत नुनु चाहिए उसके लिए कि नहीं!”
“हटिए जी,” माँ ने कहा, “मेरी बहू कोई शिकायत नहीं करेगी... मेरा बेटा खूब स्ट्रांग है! और उसका नुनु भी... लेकिन बेटे, जब माँ का दूध पीने का सुख मिल रहा है, तो डोंट स्टॉप!”
“ओके मम्मी!” पापा ने कहा।
मैंने देखा कि मेरे कुछ करने से पहले ही पापा ने माँ का वो स्तन अपने मुँह में ले लिया, जो कुछ ही क्षणों पहले मेरे मुँह में था।
“आह्ह्ह... बहुत गंदे हो आप... मैं आपको थोड़े ही कह रही थी!”
माँ ने कहा तो, लेकिन वो भी अपने पति से मिलान की आस में तड़प रही थीं। उनका हाथ भी पापा की तौलिया के अंदर जा कर गायब हो गया! माँ और पापा को यूँ अंतरंग होता देख कर मेरे मन में भी विवाहित होने की कामना जाग गई। मैं सच कह रहा था! काश माँ जैसी ही कोई सुन्दर सी, समझदार लड़की मिल जाती, तो लाइफ सुन्दर बन जाती अपनी भी! थोड़ी ईर्ष्या तो हुई पापा से - मेरे बाद में उनका विवाहित जीवन शुरू हुआ था, लेकिन अब मुझसे कहीं अधिक अनुभव था उनके पास! ठीक ठीक देखें, तो मुझसे दो-गुणा! माँ उनके कारण कोयल की तरह कूजती रहती थीं।
मुझे भी उनके जैसा ही प्रेमी बनने की प्रेरणा मिली हुई थी! माँ जैसी सुन्दर सी... समझदार सी... माँ जैसी? लतिका भी तो माँ जैसी ही है... सुन्दर, समझदार, गुणी... एक और नया दृश्य खिंच गया मन में - जैसे माँ कर रही थीं, वैसे ही लतिका का नाज़ुक सा हाथ मेरे लिंग पर! ओह!
खैर, मैंने कोशिश कर के उस दृश्य को मन से निकाला, और दूसरा स्तन पीना शुरू कर दिया। थोड़ी देर सुकून से स्तनपान करने के बाद मैंने महसूस किया कि माँ के शरीर में अनोखा सा कम्पन होने लगा था। उनकी साँसें भी चढ़ गई थीं। जाहिर सी बात है, पापा ने उनको आज की रात के पहले ओर्गास्म का आनंद दे दिया था। एक पल को मुझे शर्म सी आ गई। फिर याद आया कि मैंने डैड और माँ को भी तो ऐसे ही सम्भोग का आनंद लेते हुए देखा था! एक बार तो सारे लोग उनके सामने ही दर्शक बने बैठे थे! तो फिर इस समय मुझको क्यों शर्माना चाहिए?
माँ ने मीठी तड़प वाले, अस्थिर से स्वर में कहा, “अ...अब ब...बस कीजिए! बेटा भी है साथ में!”
“अरे मेरी जान... अपने बेटे के सामने शर्म कैसी? ... एक बार इसकी शादी करा दूँ, फिर ये भी दिन रात यही काम करेगा!”
“क्या पापा?”
“बेटे ऐसे मत शर्माओ! ... एक बड़ी सुन्दर और सुशील सी लड़की देखी है तुम्हारे लिए!” पापा ने अचानक ही रहस्योद्घाटन करते हुए कहा!
“ओह गॉड!”
“तुमको बहुत पसंद आएगी! ... यह मुझे मालूम है!” पापा ने कहा।
“कौन पापा?”
“ये देखो... जानने के लिए कैसी ललक है इसमें!” पापा ने मुझको छेड़ा।
“हा हा!”
“जानना चाहते ही हो, तो सुनो... लतिका!” पापा ने बिना लाग लपेट के बोल दिया।
मैं पापा के सामने झूठ-मूठ आश्चर्यचकित होने का नाटक नहीं कर सकता था।
“आप चाहते हैं कि मैं...”
“हाँ,” उन्होंने मेरी बात पूरी होने से पहले ही कह दिया, “मैं भी यही चाहता हूँ, तुम्हारी माँ भी यही चाहती हैं, और अम्मा भी!”
“और आपको ये ठीक लगेगा?” बहुत देर तक चुप रहने के बाद, जब मुझको और कुछ नहीं सूझा, तो मैंने कहा।
“ठीक? ... अरे, मेरे बेटे से बेहतर कौन लड़का मिलेगा मेरी पुचुकी को?” पापा बोले, “... और वो भी चाहती है तुमको!”
“क़... क्या?”
“मेरा बेटा... और इतना भोला!” पापा हँसते हुए बोले, “अरे बुद्धू, बहुत चाहती है वो तुमको और मिष्टी को! ... कमाल है, तुमको पता ही नहीं चला!”
मैं माँ का स्तन छोड़ कर उठने लगा।
“क्या हो गया बेटा?”
“आपने ऐसी बात कह दी कि अब नींद ही नहीं आएगी...”
“गुड,” पापा ने हँसते हुए कहा। उनके कहने पर माँ भी हँसने लगीं।
“तुझे वो पसंद तो है न...” माँ ने आशा भरे अंदाज़ में पूछा।
“बहुत अच्छी है वो माँ... पसंद न करने की क्या वजह हो सकती है मेरे पास!”
“फिर क्यों हिचक रहे हो?” पापा बोले, “... अच्छी है, संस्कारी है, हम सबको इतना प्यार करती है, सुन्दर है, हेल्दी और फिट है... गुणी है... अब और कौन सी क्वालिटी बाकी रह गई है?”
“कोई नहीं पापा... कोई नहीं!”
“तो फिर?”
“मैं उसके लायक हूँ पापा, या नहीं?” मैंने धीरे से पूछा।
“अगर उसके लायक न होते, तो वो तुमको चाहती?” पापा ने कहा, “बेटे... प्यार बड़ी चीज़ है! बस ये समझ लो, कि भगवान ने मौका दिया है... बिना किसी डाउट के ये मौका ले लो!”
“आप क्या कहती हैं माँ?”
“बस वही, जो तेरे पापा कह रहे हैं!” माँ में ममतामई सुर में कहा, “अनावश्यक बातें मत सोचो! तुम दोनों, समझो एक दूजे के लिए बने हो! ईश्वर का प्रसाद होते हैं रिश्ते... उनको साफ़ मन से स्वीकार लो! बहुत फलते फूलते हैं फिर... मन में डाउट रखोगे, तो परेशानी होती रहेगी!”
“माँ मुझे झप्पी दे दीजिए...” इस तरह के निर्णय लेने के अवसर पर मैं भावनात्मक रूप से थोड़ा सहम गया था।
माँ के आलिंगन में आ कर थोड़ा आराम मिला।
मैंने उन्ही के पास लेटा।
बड़ी देर रात नींद आई।
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" प्रेसियस ज्वेल " मेरी नजर मे तो लतिका है।
मेरी मां जैसी सेक्सी हैअचिन्त्य - Update # 14 मैं एक बार फिर से अकेला रह गया। कुछ देर शांति रही वहाँ! लतिका की बातों पर मैं अनायास ही विचार करने लगा। माँ का प्रेशियस ज्वेल कोई वस्तु नहीं हो सकती! मेरे मन में ये ख़याल आ ही गया! ‘बाप रे!’ वो तो मेरी ही बात कर रही थी! इतने स्पष्ट रूप से उसने अपनी बात मेरे सामने ही कह दी थी! मतलब साफ़ है, अब बात मेरे पाले में थी। लतिका अच्छी तो है... बहुत सुन्दर भी है! अगर शादी करनी ही है, तो सच में, उससे बेहतर लड़की नहीं मिलने वाली मुझको! लेकिन तुरंत ही मन में अगला विचार आ गया - कहीं मेरे कारण उसका कुछ अनिष्ट न हो जाए! अगर वैसा कुछ हुआ, तो मैं अपनी जान दे दूँगा! इतनी बार मैं वही पीड़ा नहीं झेल सकता। ‘हे प्रभु, मार्ग दिखाएँ!’ मैं यही सब सोच रहा था कि माँ आती हुई दिखाई दीं। उन्होंने पेटीकोट पहना हुआ था, और ऊपर एक पतला सा शाल डाल रखा था। शायद उनको लगा हो कि कहीं बाबू जी भी न हों वहाँ! माँ और अम्मा दोनों की ही आदत थी, कि स्तनपान कराने से पहले हम बच्चों को नग्न कर देती थीं। लिहाज़ा कुछ समय पहले माँ भी उसी अवस्था में रही होंगी, और मेरे उनके कमरे में आने में देरी होने पर, मुझको लिवा लाने के लिए आई होंगी। “अरे बेटे, यहाँ अकेले बैठा क्या कर रहा है? ... हम लोग इंतज़ार कर रहे हैं!” “कुछ नहीं माँ... थोड़ी देर पहले लतिका भी साथ थी... फिर अम्मा आ गईं... और वो दोनों बस अभी अभी गई हैं!” “अच्छा अच्छा, लतिका से बातें कर रहा था?” माँ की वाणी में आनंद का पुट सुनाई दिया मुझको! “अरे माँ... ऐसा क्या हो गया!” “नहीं... कुछ नहीं बेटा!” फिर कुछ सम्हलते हुए, “लेकिन, अभी तो कोई भी नहीं है न यहाँ... फिर भी क्यों बैठा है यहाँ?” “कुछ नहीं माँ! बस उठ ही रहा था!” “याद है? मैं तुझको बोला था कि सीधे आ जाना हमारे पास!” “हाँ माँ!” “क्या हुआ? कोई प्रॉब्लम है?” “नहीं... कोई प्रॉब्लम नहीं है माँ!” मैंने झिझकते हुए कहा। “फ़िर?” माँ ने कहा, “आ न!” “माँ,” मैंने हिचकते हुए कहा, “मैं अपने कमरे में सो जाऊँगा न! ... वैसे भी बाहर का सीन अच्छा है। जगमग जगमग लाइट्स हैं! कुछ देर बाहर देखूँगा... बढ़िया नींद आ जाएगी!” “हाँ... ज़रूर! ये लाईटें दिल्ली में देख लेना! ... मेरा बेटा इतने दिनों बाद आया है, और मेरे साथ नहीं सोएगा...” माँ ने कहा और मेरा हाथ पकड़ कर बोलीं, “चल...” “अरे... लेकिन... माँ... सुनिए तो!” “क्या हुआ?” माँ ने मुझको दुलारते हुए पूछा, “अपने मम्मी पापा के साथ सोने में शर्म आने लगी है?” “नहीं माँ! आप लोगों से शर्म आएगी मुझको?” सच तो यह था कि माँ पापा के साथ सोने की बात सुन कर मेरे मन में लड्डू फूटने लगे! पक्की बात थी कि एक तो स्तनपान करने का सुख मिलेगा, और साथ ही साथ उनके आँचल में सुखभरी मीठी नींद का लाभ भी! लेकिन यह ख़ुशी ऊपर जाहिर होने नहीं देनी चाहिए। हाँ, वो अलग बात है कि अपने माता पिता से बच्चों का क्या छुपा रह सकता है? लेकिन लीपा-पोती करनी भी ज़रूरी थी, “लेकिन आप और पापा...?” “मैं और पापा? क्यों? क्या हुआ हमको?” माँ ने आश्चर्य का अभिनय करते हुए कहा, जबकि वो भली भाँति समझ रही थीं, कि मैं क्या कह रहा था, “मेरा बच्चा... हमारे लिए तो सबसे सुख वाली बात यह है कि हमारे बच्चे सुख से हैं, और हमारे पास हैं!” मैं मुस्कुराया। “आ जा बेटा…” माँ ने कहा, और पुनः अपने कमरे की तरफ़ चलने लगीं, “वैसे भी बहुत देर हो गई है!” कमरे में प्रवेश करते समय माँ ने मुझको जैसे ललचाते हुए, और दबी हुई आवाज़ में, दुलारते हुए कहा, “... और वैसे भी... खूब सारा दूधू है तुम्हारे लिए आज!” “वो क्यों माँ?” मैं बस कुछ ही क्षणों में मिलने वाले अमृत के सुख से आनंदित होने लगा। “अरे... आज किसी ने पिया ही नहीं... सब अपने में ही मस्त थे!” “बढ़िया है फिर तो दुल्हनिया!” पापा ने बदमाशी भरे सुर में, माँ को छेड़ने की गरज़ से कहा, “अमर बेटा, एक तुम पीना... दूसरा मैं! ठीक है?” “हा हा हा... ठीक है पापा!” “धत्त...” माँ ने पापा को प्यार से झिड़का, “कुच्छ नहीं मिलेगा आपको!” “अरे... दुल्हनिया!” पापा ने धर्मेंदर जैसा नाटक करते हुए अपने माथे पर अपने हाथ का पिछले सिरा लगाया, “ये तो बड़ा जुलम हो जाएगा यार!” सच में! ऐसे हँसमुख, साफ़ हृदय, प्रेम करने वाले पति की संगत में माँ की रौनक क्यों न बढ़ती जाए? पापा ने कमर पर तौलिया लपेट रखी थी, नहीं तो वो भी स्तनपान करते समय निर्वस्त्र थे। पापा की बात पर माँ ने बड़ी मुश्किल से अपनी मुस्कराहट को दबाया, और फिर मुझको देख कर बोलीं, “आ जा बेटा!” मैंने अपनी छोटी बहन को वहाँ न देख कर पूछा, “अरे माँ, अभया कहाँ है?” “वो तो अब अकेली सोने लगी है न!” “अच्छा?” मुझे सच में आश्चर्य हुआ, “... इतने छोटे छोटे बच्चे अकेले सोते हैं... और मुझको देखिए... मैं अभी भी अपने मम्मी पापा के पास सोता हूँ!” “‘सोता हूँ’ नहीं, ‘सोने जा रहा हूँ’ कहो!” पापा ने कहा, “... और अगर सो भी गए, तो क्या गुनाह हो गया? ... अपने मम्मी पापा के पास तो सोना चाहिए! ... ये तो तुम्हारा हक़ है!” “हा हा! क्या पापा?” “क्या पापा क्या?” माँ दुलार से, बड़े अभिमान से बोलीं, “ठीक ही तो कह रहे हैं ये! ... तुम हमारा अंश हो... हमारी संतान हो... हक़ तो है ही!” “आई लव यू माँ... आई लव यू पापा!” “खूब लव यू बेटे... खूब!” पापा बोले, “आ जा... मेरे पास!” मैंने उनके सामने खड़ा हो गया। पापा मेरा पजामा खोलने लगे। “पापा!” “क्यों? ये सब पहन कर सोएगा क्या?” वो मेरा पजामा उतारते हुए बोले। “पापा आप मुझे बिलकुल नन्हे बच्चे जैसे ट्रीट करते हैं!” मेरी चड्ढी उतारते हुए वो बोले, “हाँ, तो? बाप हूँ तेरा... बालकनी में हम दोनों दोस्त हैं... लेकिन अपने माँ बाप के कमरे में... हमारे सामने... तो नन्हा बच्चा ही रहेगा न तू!” भारत में किसी वयस्क को कानूनी तौर पर गोद नहीं लिया जा सकता। वैसे उसको अपना वारिस घोषित कर सकते हैं। तो पापा ने भी वही किया था। मैंने उनकी वसीयत पढ़ी थी, जिसमें उन्होंने अपना सब कुछ... मतलब अपनी चल और अचल सम्पति, अपने बड़े बेटे - यानि कि मेरे नाम लिख दी थी। इतना बड़ा सम्मान दिया था उन्होंने! मेरा कुरता उतारते हुए वो कह रहे थे, “... वैसे भी, बर्थडे है आज तेरा... बर्थ सूट में ही रहना चाहिए तुझे आज... और वैसे भी, कितने ही दिन हो गए तुझे देखे हुए...” कुछ ही पलों में मैं माँ और पापा के सामने पूर्ण नग्न खड़ा था। पापा ने मेरे कोमल से शिश्न को वैसे ही चूम लिया - जैसे वो आदित्य और आदर्श का करते थे, “मेरा सुन्दर बेटा...” उनकी इस हरकत से मैं शर्मा गया - यह तथ्य उनसे छुपा नहीं रहा। “हमसे शर्माता है तू? ... इतना बड़ा हो गया है?” पापा ने दुलार से कहा। “आपके सामने मैं कभी बड़ा होऊँगा कभी?” “बच्चे अपने माँ बाप से बड़े हो सकते हैं कभी?” “नहीं!” मैं मुस्कुराया। “तो कभी नहीं!” उन्होंने मेरी बात का उत्तर दिया। जैसा कि हमेशा का रूटीन था - मैं नग्न होते ही उनके बिस्तर पर जा लेटा। पूरे बाल-सुलभ उत्साह से! कोई बोझ नहीं! अब तो ऐसा हो गया था कि उन दोनों में से किसी के भी सामने मुझको अपनी असली उम्र का याद भी नहीं रहता था। और अगर दोनों साथ में होते तो मुझको और भी छोटे बच्चे जैसा महसूस होता। दोनों मुझे इतना दुलार करते थे कि क्या कहें! पाठक तो जानते ही हैं! मेरे जीवन में लिए गए सबसे बेहतरीन निर्णयों में से दो निर्णय थे, जिनके कारण मेरी अभी की ज़िन्दगी सुन्दर हो गई - पहला निर्णय था माँ और पापा की शादी में कोई रोड़ा न अटकाना, और दूसरा निर्णय था पापा को अपना पिता मानना! माँ मेरे पीछे पीछे आ कर बिस्तर पर बैठीं, और पापा भी उनके पीछे दरवाज़ा भेड़ कर हमारे साथ ही बिस्तर पर आ गए। माँ ने अपना शाल कब का उतार दिया था, और बस पेटीकोट पहने हुए ही बिस्तर पर मेरे बगल आ कर लेट गईं। सुहाना सा मौसम था, इसलिए बिना कपड़ों के कोई परेशानी नहीं हो रही थी! “माँ,” मैंने उनको छेड़ने की गरज से कहा, “आप अभी भी बहुत सुन्दर लगती हैं!” “अभी भी का क्या मतलब है लड़के?” पापा ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, “अभी क्या उम्र हुई है हमारी? हैं?” “हा हा... नहीं पापा! कोई उम्र नहीं हुई है! ... मेरा मतलब था कि माँ हमेशा की ही तरह सुन्दर लगती हैं! कोई अंतर नहीं!” “हैं न?” पापा ने मेरी बात का अनुमोदन किया। “हाँ पापा! ... यू आर वैरी लकी!” “अरे पापा के बच्चे...!” माँ ने कहा। “अरे भाग्यवान... मेरा बच्चा तो है ही! ... यू आर सो राइट बेटा!” पापा ने बड़े गर्व से कहा, “ये तो मैं भी मानता हूँ! ... जब से मेरी सुमन मेरी लाइफ में आई है, तब से मेरी लाइफ में सब कुछ सुन्दर ही सुन्दर हो रहा है!” “हाँ...” मैंने पापा की बात में हाँ में हाँ मिलाई। “बेटों को अपनी माँ सबसे सुन्दर लगती हैं!” माँ ने मिठास से कहा। मैंने माँ का एक स्तन पकड़ते हुए पूछा, “माँ, आपको पक्का यकीन है कि आपकी कोई छोटी या बड़ी बहन नहीं है?” “ऐसे क्यों पूछ रहे हो बेटा?” माँ को समझ नहीं आया कि अचानक मैं उनके भाई बहनों में क्यों इंटरेस्ट लेने लगा। “अगर होतीं तो उन्ही से शादी कर लेता... सारा झंझट ही ख़तम हो जाता!” मेरी बात खतम भी नहीं हुई थी कि पापा ठठा कर हँसने लगे। माँ ने मज़ाक में उनको आँखें दिखाईं और मेरे कान को प्यार से उमेठते हुए बोलीं, “अच्छा बच्चू, अपनी मौसी से शादी करनी है तुझे?” “आह... नहीं माँ... मेरे कहने का मतलब वो नहीं था! मैं तो यह कह रहा था कि आप जैसी कोई मिल जाती... ऐसी लड़की जिसमें आप जैसे गुण होते... तो...” “आS... मेरा बेटा... अब समझी मैं!” कह कर माँ ने मुझे चूम लिया, “... बड़ा नुकसान हो गया ये तो!” “सही कह रहे हो बेटे...” पापा की हँसी जब थमी, तब वो बोले, “मैं जब सुमन से कोर्टशिप कर रहा था, तब मैंने भी इसको कहा था कि ये अगर मेरी माँ भी होती, तो भी मैं इससे शादी कर लेता!” “क्या पापा!” मैं उनकी बात पर ठठा कर हँसने लगा, “... लेकिन आपकी बात है बिलकुल सही! ... माँ जैसी लड़की मिले, तो सोचना ही नहीं चाहिए! यहीं घरती पर ही स्वर्ग मिल जाए आदमी को!” “सही बात!” “अच्छा जी?” माँ ने कहा। “और नहीं तो क्या! ... ऐसी बढ़िया सी लड़की को मैं ऐसे कैसे जाने देता?” पापा ने अपने कौशल की डींग हाँकी, “‘माँ जैसी हूँ’, ‘माँ जैसी हूँ’ कह कह कर बहुत पकाया था इन्होने!” “माँ जैसी नहीं हूँ?” माँ ने तपाक से कहा, फिर उनको खुद ही अपनी स्लिप ऑफ़ टंग का एहसास हो गया। “हो न! माँ जैसी बीवी! हॉट... सुन्दर और सेक्सी और... माँ जैसी प्यार करने वाली!” पापा ने माँ को उनके होंठों पर चूमा, फिर मुझको सुनाते हुए, “पकाया तो बहुत इन्होने... लेकिन मैंने भी हिम्मत नहीं हारी! ... कैसे कैसे मनाया है मैंने इनको, यह तो मुझे ही मालूम है!” “हा हा... कैसे मनाया आपने माँ को?” “चुप रहिए... एक और शब्द नहीं!” माँ ने पापा को कुछ भी कहने से रोका, “हमारी बातें बेटे को बताएँगे अब?” “प्यार से बेटा... और कैसे? ये कोई ऐसी वैसी लड़की थोड़े ही हैं कि दो मीठी बातें कर के बहल जातीं! ... जब इनको पूरा यकीन हो गया कि मैं इनसे सच में प्यार करता हूँ, तब इन्होने खुद ही मेरे प्यार को स्वीकार कर लिया!” पापा ने बड़े गर्व से मुस्कुराते हुए बताया। “नाइस! आई ऍम सो हैप्पी!” कह कर मैंने माँ को चूम लिया, “एक बार मैं आप दोनों के मुँह से आपके कोर्टशिप की कहानी सुनूँगा!” “हाँ हाँ... सुन लेना सब! लेकिन अभी शांति से दूध पियो!” “मैं भी पी लूँ दुल्हनिया?” पापा ने आशा से पूछा। मैं हँसने लगा। “आप चुप बैठिए...” माँ बोलीं, “अमर बेटे, तुम इनकी बदमाशी वाली बातें मत सुना करो! जितना मन हो, पियो। ... मेरा दूध मेरे बच्चों के लिए है!” फिर पापा की तरफ़ दोनों आँखें दबाती हुई बोलीं, “बच्चों के पापा के लिए नहीं!” “अरे दुल्हनिया, मेरा भी तो कुछ कॉन्ट्रीब्यूशन है न इस दूध को बनाने में!” “चुप रहिए आप!” माँ ने कहा, “बड़े आए कॉन्ट्रीब्यूशन करने...” “बेटे, मालूम है? तुम्हारी माँ से मैंने वायदा लिया था कि जब इनको दूध आएगा न, तो जब भी पॉसिबल होगा, तो मेरे सबसे बड़े बेटे को ज़रूर पिलाती रहेंगी!” “वो क्यों पापा?” “वो इसलिए कि...” पापा ने प्यार से मेरा माथा सहलाया, “मैंने अपने बड़े बेटे को अपने सामने अपनी माँ का दूध पीते देखना चाहता था!” मैं कुछ कहता कि माँ ने प्यार से अपना एक चूचक मेरे मुँह से छुवाया, “अच्छा अब बातें कम करो!” “पापा...” मैंने दूध पीना शुरू करने से पहले कहा, “आप सभी दिल्ली ही आ जाईए न! वहाँ तो बहुत सी बढ़िया जॉब्स हैं आपके लिए! साथ ही रहेंगे फिर!” “हाँ बेटे... इन फैक्ट, मैंने जॉब सर्च शुरू भी कर दी है! ... हेड हन्टर्स के कॉल्स भी आने लगे हैं!” “क्या सच पापा?” पापा ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया! “बहुत बढ़िया बात है, पापा!” मैं खुश हो कर बोला, “वाओ!” कह कर मैंने माँ का स्तन सहर्ष ग्रहण कर लिया। उधर पापा माँ के बगल ही लेट कर उनके दूसरे स्तन से खेलने लगे। ऐसा नहीं है कि मैंने उन दोनों के पहले कभी खेलते हुए नहीं देखा था, लेकिन फिर भी दोनों को अंतरंग होते देख कर मुझे बड़ा अच्छा लगता था। वो दोनों ही उस सुख के योग्य थे, जो उनको अपने विवाहित जीवन में मिल रहा था। पापा और माँ के बीच की अंतरंगता ग्लानिविहीन थी... ग़ैरशर्मसार थी! पापा माँ से बहुत प्यार करते थे, और उनका बहुत आदर भी करते थे। यह तथ्य उनके खेलने के तरीके से साफ़ ज़ाहिर हो रहा था। वो ऐसे कोमल तरीक़े से माँ के स्तन और चूचक छेड़ रहे थे कि जैसे वो कोई भंगुर वस्तु हो... कि कहीं अधिक ज़ोर लग गया तो टूट जाएगा! उस स्तन का चूचक भी कुछ ही क्षणों में स्तंभित हो गया। माँ को भी पापा की हरकतों से आनंद आ रहा था! “आप भी न...” माँ ने ग़ैरशिकायती अंदाज़ में कहा, “इतने सारे बच्चों के बाप हो गए हैं, लेकिन आपका बचपना नहीं जाता!” “बेग़म, आदमी का बचपना दो लोगों के सामने कभी नहीं जाना चाहिए - एक तो उसके माँ और बाप के सामने, और दूसरी उसकी बीवी के सामने!” “माँ...” मैंने दूध पीना रोक कर कहा, “पापा बिल्कुल सही कह रहे हैं... इसीलिए तो मैं आप दोनों के सामने नन्हा सा बच्चा ही हो जाता हूँ!” “हमारे बच्चे तो तुम हो ही!” पापा ने कहा। “हाँ हाँ... अपने पापा के बच्चे!” माँ ने चंचल अंदाज़ में कहा, “लेकिन अब तुम्हारे लिए एक प्यारी सी बीवी लानी है!” “हा हा...” पापा ने हँसते हुए कहा, “अरे भाग्यवान, सही कहती हो! इसके लिए बीवी तो चाहिए...” “अरे पापा! ये बात कहाँ से आ गई?” “क्यों नहीं आएगी?” माँ बोलीं, “अब तुम्हारी जबरदस्ती शादी करनी पड़ेगी लगता है!” “नहीं दुल्हनिया... मेरा बेटा है... ऐसे नहीं! एक अच्छी सी लड़की के सुपुर्द करेंगे इसको! जबरदस्ती नहीं!” माँ मुस्कुराईं। मैं चुप रह कर, शांति से कुछ देर दुग्धपान करता रहा। माँ के स्तनों में वाक़ई बहुत दूध था। माँ के शरीर और स्तनों के आकार को देख कर कहना कठिन था कि उनमें इतना दूध हो सकता है! ईश्वरीय आशीर्वाद कुछ ऐसा था उन पर, कि हमारे लिए तो वो इस धरती पर ईश्वर का ही रूप बन गई थीं! प्रेम, स्नेह, पोषण, और संस्कार, इत्यादि की अक्षय-पात्र थीं माँ! सच में! क्या किस्मत मेरी कि वो मेरी माँ हैं! मैंने कनखियों से देखा - पापा माँ की नग्न बाँह को बेहद धीरे धीरे चूम रहे थे, और रह रह कर उनके दूसरे स्तन को सहला रहे थे। माँ की आँखें बंद थीं - जैसे वो पापा की हरकतों का यूँ ही आनंद ले रही थीं। मैं खुद को पापा की जगह, और लतिका को माँ की जगह रख कर अपनी फंतासी में डूबने लगा। लतिका के स्तन छोटे होंगे... गैबी के जैसे! कैसा स्वाद होगा उनका? लतिका के शरीर की महक कैसी होगी? मैंने देखा कि उनका हाथ स्तन से सरकता हुआ नीचे की तरफ़ गया, और माँ की पेटीकोट की डोर को ढीला करने लगा। शायद माँ को भी पापा की हरकतों से आनंद आने लगा था। मेरी तरफ़ करवट से हट कर, माँ अब अपनी पीठ के बल लेट गई थीं, और उनकी टाँगे थोड़ी फ़ैल से गई थीं। पेटीकोट ढीला हो कर, खतरनाक तरीके से नीचे सरका हुआ था! लेकिन जो सब ढँका हुआ होना चाहिए, वो फिलहाल ढँका ही हुआ था। पापा का हाथ सामने की ओर माँ की पेटीकोट की आड़ में, नीचे, ढँक गया था, लेकिन उनकी उँगलियों की हरकतों से साफ़ पता चल रहा था कि वो उनकी योनि के साथ खिलवाड़ कर रहे थे। ऐसी अप्सरा जैसी सुन्दर स्त्री से उसका पति दूर रहे भी तो कैसे, और कितनी देर? माँ का एक हाथ बेबसी में नीचे बढ़ कर पेटीकोट के ऊपर से ही पापा के हाथ ऊपर आ गया। लेकिन वो उनको रोकने में अक्षम थीं। लिहाज़ा पापा की शरारतें चलती रहीं। माँ का स्तन खाली हो गया था, लेकिन उनके मज़े में खलल न पड़े, इसलिए मैंने कुछ कहा नहीं। बस, आराम से चूसता रहा। फिर जैसे अचानक ही माँ को वापस मेरा ध्यान आया हो, “बेटू, ये वाला दूधू खाली हो गया है...” शायद उन्होंने पापा को छेड़ने या तड़पाने की गरज से कहा हो! मैंने देखा कि पापा का हाथ झट से पेटीकोट से निकल कर बाहर आ गया, और माँ की कमर पर एक आलसी आलिंगन में लिपट गया। बेचारे पापा की हालत देख कर अंदर ही अंदर हँसी आई अवश्य, लेकिन उनके लिए थोड़ा सा दुःख भी हुआ। मेरे कारण वो दोनों इस समय ‘एक होने’ से वंचित हो रहे थे। मैंने सोचा कि अब वहाँ से जाने का समय आ गया है। “बस माँ... पेट भर गया!” “क्या!” पापा का मज़ाकिया अंदाज़ फिर से शुरू हो गया, “मेरा बेटा और बस इतना सा दूध पी कर उसका पेट भर गया!” “खाना भी तो खाया था पापा!” “नॉनसेंस! ... सोने से पहले दोनों ब्रेस्ट्स खाली करो” उन्होंने लगभग आदेश सा दिया, “दूध नहीं पियोगे तो मेरी बहू शिकायत करेगी!” कह कर पापा माँ की साइड से उठे, और मेरी तरफ आने लगे। जब पापा मेरे पास आ कर खड़े हो गए, तो मेरे पास उधर से उठ कर, दूसरी साइड जा कर, दूसरा स्तन पीने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं था। “आपकी बहू?” मैंने पूछा। “हाँ! मज़बूत नुनु चाहिए उसके लिए कि नहीं!” “हटिए जी,” माँ ने कहा, “मेरी बहू कोई शिकायत नहीं करेगी... मेरा बेटा खूब स्ट्रांग है! और उसका नुनु भी... लेकिन बेटे, जब माँ का दूध पीने का सुख मिल रहा है, तो डोंट स्टॉप!” “ओके मम्मी!” पापा ने कहा। मैंने देखा कि मेरे कुछ करने से पहले ही पापा ने माँ का वो स्तन अपने मुँह में ले लिया, जो कुछ ही क्षणों पहले मेरे मुँह में था। “आह्ह्ह... बहुत गंदे हो आप... मैं आपको थोड़े ही कह रही थी!” माँ ने कहा तो, लेकिन वो भी अपने पति से मिलान की आस में तड़प रही थीं। उनका हाथ भी पापा की तौलिया के अंदर जा कर गायब हो गया! माँ और पापा को यूँ अंतरंग होता देख कर मेरे मन में भी विवाहित होने की कामना जाग गई। मैं सच कह रहा था! काश माँ जैसी ही कोई सुन्दर सी, समझदार लड़की मिल जाती, तो लाइफ सुन्दर बन जाती अपनी भी! थोड़ी ईर्ष्या तो हुई पापा से - मेरे बाद में उनका विवाहित जीवन शुरू हुआ था, लेकिन अब मुझसे कहीं अधिक अनुभव था उनके पास! ठीक ठीक देखें, तो मुझसे दो-गुणा! माँ उनके कारण कोयल की तरह कूजती रहती थीं। मुझे भी उनके जैसा ही प्रेमी बनने की प्रेरणा मिली हुई थी! माँ जैसी सुन्दर सी... समझदार सी... माँ जैसी? लतिका भी तो माँ जैसी ही है... सुन्दर, समझदार, गुणी... एक और नया दृश्य खिंच गया मन में - जैसे माँ कर रही थीं, वैसे ही लतिका का नाज़ुक सा हाथ मेरे लिंग पर! ओह! खैर, मैंने कोशिश कर के उस दृश्य को मन से निकाला, और दूसरा स्तन पीना शुरू कर दिया। थोड़ी देर सुकून से स्तनपान करने के बाद मैंने महसूस किया कि माँ के शरीर में अनोखा सा कम्पन होने लगा था। उनकी साँसें भी चढ़ गई थीं। जाहिर सी बात है, पापा ने उनको आज की रात के पहले ओर्गास्म का आनंद दे दिया था। एक पल को मुझे शर्म सी आ गई। फिर याद आया कि मैंने डैड और माँ को भी तो ऐसे ही सम्भोग का आनंद लेते हुए देखा था! एक बार तो सारे लोग उनके सामने ही दर्शक बने बैठे थे! तो फिर इस समय मुझको क्यों शर्माना चाहिए? माँ ने मीठी तड़प वाले, अस्थिर से स्वर में कहा, “अ...अब ब...बस कीजिए! बेटा भी है साथ में!” “अरे मेरी जान... अपने बेटे के सामने शर्म कैसी? ... एक बार इसकी शादी करा दूँ, फिर ये भी दिन रात यही काम करेगा!” “क्या पापा?” “बेटे ऐसे मत शर्माओ! ... एक बड़ी सुन्दर और सुशील सी लड़की देखी है तुम्हारे लिए!” पापा ने अचानक ही रहस्योद्घाटन करते हुए कहा! “ओह गॉड!” “तुमको बहुत पसंद आएगी! ... यह मुझे मालूम है!” पापा ने कहा। “कौन पापा?” “ये देखो... जानने के लिए कैसी ललक है इसमें!” पापा ने मुझको छेड़ा। “हा हा!” “जानना चाहते ही हो, तो सुनो... लतिका!” पापा ने बिना लाग लपेट के बोल दिया। मैं पापा के सामने झूठ-मूठ आश्चर्यचकित होने का नाटक नहीं कर सकता था। “आप चाहते हैं कि मैं...” “हाँ,” उन्होंने मेरी बात पूरी होने से पहले ही कह दिया, “मैं भी यही चाहता हूँ, तुम्हारी माँ भी यही चाहती हैं, और अम्मा भी!” “और आपको ये ठीक लगेगा?” बहुत देर तक चुप रहने के बाद, जब मुझको और कुछ नहीं सूझा, तो मैंने कहा। “ठीक? ... अरे, मेरे बेटे से बेहतर कौन लड़का मिलेगा मेरी पुचुकी को?” पापा बोले, “... और वो भी चाहती है तुमको!” “क़... क्या?” “मेरा बेटा... और इतना भोला!” पापा हँसते हुए बोले, “अरे बुद्धू, बहुत चाहती है वो तुमको और मिष्टी को! ... कमाल है, तुमको पता ही नहीं चला!” मैं माँ का स्तन छोड़ कर उठने लगा। “क्या हो गया बेटा?” “आपने ऐसी बात कह दी कि अब नींद ही नहीं आएगी...” “गुड,” पापा ने हँसते हुए कहा। उनके कहने पर माँ भी हँसने लगीं। “तुझे वो पसंद तो है न...” माँ ने आशा भरे अंदाज़ में पूछा। “बहुत अच्छी है वो माँ... पसंद न करने की क्या वजह हो सकती है मेरे पास!” “फिर क्यों हिचक रहे हो?” पापा बोले, “... अच्छी है, संस्कारी है, हम सबको इतना प्यार करती है, सुन्दर है, हेल्दी और फिट है... गुणी है... अब और कौन सी क्वालिटी बाकी रह गई है?” “कोई नहीं पापा... कोई नहीं!” “तो फिर?” “मैं उसके लायक हूँ पापा, या नहीं?” मैंने धीरे से पूछा। “अगर उसके लायक न होते, तो वो तुमको चाहती?” पापा ने कहा, “बेटे... प्यार बड़ी चीज़ है! बस ये समझ लो, कि भगवान ने मौका दिया है... बिना किसी डाउट के ये मौका ले लो!” “आप क्या कहती हैं माँ?” “बस वही, जो तेरे पापा कह रहे हैं!” माँ में ममतामई सुर में कहा, “अनावश्यक बातें मत सोचो! तुम दोनों, समझो एक दूजे के लिए बने हो! ईश्वर का प्रसाद होते हैं रिश्ते... उनको साफ़ मन से स्वीकार लो! बहुत फलते फूलते हैं फिर... मन में डाउट रखोगे, तो परेशानी होती रहेगी!” “माँ मुझे झप्पी दे दीजिए...” इस तरह के निर्णय लेने के अवसर पर मैं भावनात्मक रूप से थोड़ा सहम गया था। माँ के आलिंगन में आ कर थोड़ा आराम मिला। मैंने उन्ही के पास लेटा। बड़ी देर रात नींद आई। *