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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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अचिन्त्य - Update # 21


उत्तेजना भरी घबराहट के कारण मेरा गला सूख रहा था। एक किशोरवय लड़के जैसी हरकतें कर रहा था मैं अब! आत्मनियंत्रण इतना कम होगा, मैंने यह सोचा भी न था! और वो भी लतिका की उपस्थिति में! मैंने तीन चार बात गहरी साँसें भरीं। सोचा बात बदलने से शायद अपने ऊपर थोड़ा नियंत्रण बने।

“अच्छा खाना था न?” मैंने कहा... लेकिन मेरी आवाज़ अभी भी भरभराई हुई थी।

“हम्म...?” लतिका भी जैसे अपने विचारों से बाहर निकली हो, “हाँ, बहुत अच्छा था!” लतिका ने एक बार मेरी तरफ़ देखा, और फिर से खिड़की से माथा टिका कर बाहर देखने लगी।

“बहुत अच्छा था...” मैंने भी लतिका की बात दोहराई।

लेकिन फिर कहने को कुछ सूझा ही नहीं! ऐसा लगा कि अचानक से ही जैसे बातें करने को ख़तम हो गई हों! ऐसा कैसे?

हमने काफी देर तक कुछ नहीं कहा।

जैसे जैसे घर पास आता जा रहा था, मन ही मन मुझे लग रहा था कि हमारी डेट की योजना थोड़ी बेहतर होनी चाहिए थी। केवल खाना खा कर वापस आ गए! ये भी कोई डेट हुई भला? रात मेरी आशा से कहीं जल्दी ख़तम हो रही थी। मैंने मन ही मन खुद को कोसा। जब हम घर से लगभग एक किलोमीटर दूर थे तो लतिका अचानक ही बोल पड़ी,

मैरी मी...”

“व... व्हाट?”

आई सेड, मैरी मी, अमर!”

“बट... हम... शादी करने वाले ही हैं...”

आई नो... इट्स जस्ट... ओह गॉड!” वो भी थोड़ा हताश लग रही थी, “... मुझे... मुझे वो सब नहीं... करना चाहिए था! ... यू नो... जो सब मैंने रेस्त्रां में किया! ... आई शुड नॉट हैव बीन अ टीज़...”

शायद उसको भी मेरी दशा दिख गई थी, और अब स्वयं को उसके लिए दोषी समझ रही थी। ... और शायद बुरा मान रही थी कि अपनी प्रतिज्ञा के कारण वो मेरी ‘उस’ दशा का निवारण नहीं कर पा रही थी।

“लतिका...”

“अमर... आई प्रॉमिस यू...” उसने बड़ी कोमलता से कहा, “आई प्रॉमिस यू... आई विल बी द बेस्ट वाइफ फॉर यू... द बेस्ट लवर... द बेस्ट सपोर्ट फॉर यू... यू विल नेवर रिग्रेट मैरिंग मी!”

“लतिका...”

“मैं... अ... तुमको... तुमको ढेर सारी खुशियाँ और ढेर सारा प्यार दूँगी...”

“ओह लतिका...”

“अमर... मैं... मैं...”

न जाने वो क्यों इतनी सफ़ाई दे रही थी मुझे। ये तो मैं खुद भी जानता था कि लतिका एक बेहतरीन लड़की है, और मेरे जैसे आदमी की ज़िन्दगी में उसकी आमद किसी दैवीय प्रसाद से कम नहीं है। और जब मेरे बड़ों ने लतिका को मेरे लायक समझा है, तो कुछ सोच कर ही समझा होगा। फिर ऐसे में उसको कुछ कहने की ज़रुरत नहीं थी।

“लतिका, तुमको कुछ भी कहने की ज़रुरत नहीं है! ... आई नो आल दिस... आई बिलीव आल दिस... एवरीथिंग दैट यू सेड!” मैंने कहा, और फिर एक गहरी साँस ले कर आगे बोला, “... लेकिन... लेकिन... मुझे डर लग रहा है, लतिका...”

मेरी बात पर उसने मुझको अजीब सी नज़र से देखा।

‘कहीं उसका दिल तो नहीं टूट गया?’

“डर...? ... मुझसे? ... हमसे?”

“नहीं…” मैंने तुरंत अपनी बात का स्पष्टीकरण दिया, “नहीं… हमारे लिए!”

“अमर?” उसने चिंताजनक तरीके से पूछा, “क्यों? ... किस बात का डर?”

मैं हिचकिचाया, और गहरी साँस ले कर बोला, “गैबी नहीं रही... डेवी नहीं रही...” मेरी आवाज़ बैठ गई, “... मैं नहीं चाहता कि तुमको कुछ हो जाए!”

“मैं नहीं मरूँगी...” लतिका ने बड़ी सरलता, लेकिन बड़ी शिष्टता से कहा, जिससे मुझको बुरा न लगे, “... आई मीन... जाना तो सभी को है... लेकिन... इतनी जल्दी नहीं जाऊँगी।” वो मुस्कुराई, “... डोंट यू वरी!”

घर काफी समीप आ गया।

लतिका ने कहा, “आई ऍम हैप्पी दैट यू थिंक ऑफ़ माय लॉन्ग लाइफ...”

मैंने एक फ़ीकी मुस्कान दी। मन में डर तो अभी भी था। मैं कुछ बोला नहीं।

गाड़ी अपने ड्राइव-वे में लगाते समय वो बोली, “अमर... क्या हम दोनों साथ में बैठ कर बात कर सकते हैं... कुछ देर?”

लतिका की मैच्योरिटी अविश्वसनीय स्तर पर थी। गैबी, डेवी, और डैड को खोने के कारण, मैं भावनात्मक रूप से बहुत डर गया था। हाँलाकि, माँ और पापा की शादी के बाद बहुत हद तक वो डर समाप्त हो गया था, लेकिन अब लतिका के मेरे जीवन में आने के बाद वो डर वापस आ गया था। कहीं वो भी चली गई, तो? उसको भी खो देने का डर...! उसको कुछ हो गया तो, मैं तो रह नहीं सकूँगा इस धरती पर! मुझे भी सहारे की जरूरत थी। कोई कब तक मज़बूत बनने का दिखावा करता रहे?

मेरी आवाज़ भर्रा गई, “आई वुड लव दैट वेरी मच, लतिका!”

लतिका ने धीरे से अपना हाथ मेरे हाथ पर रखा और उसे दबाया... बिना कुछ कहे उसने मुझे आश्वस्त कर दिया कि मैं चिंता न करूँ, और यह कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। और यह कि मेरा डर बेबुनियाद और मूर्खतापूर्ण है।

“चुपके से...” उसने दबी आवाज़ में और अपने होंठों पर उंगली रख कर मुझको सावधान किया, “बेटू सो गई होगी!”

उसको मिष्टी को यूँ ‘बेटू’ कह कर पुकारना मुझको अच्छा लगा।

घर का दरवाज़ा लतिका ने खोला और यथासंभव चुपके से बंद भी कर दिया। हमने दबे पाँव सीढ़ियाँ चढ़ीं। लेकिन हर कदम के साथ मेरे दिल की टीस बढ़ रही थी। लतिका को भी खो देने का डर मुझको बड़ी ज़ोर से सता रहा था। घर के अंदर आने तक हमने एक दूसरे से एक शब्द भी नहीं कहा। मैंने एक नज़र लतिका पर डाली और अपने कमरे की तरफ़ चल दिया। लतिका भी मेरे ही पीछे मेरे कमरे में आ गई। उसने मेरे पीछे दरवाज़ा भेड़ लिया... इस घर में हममें से किसी ने भी आज तक अपने दरवाज़ों को लॉक नहीं किया... इसकी कोई ज़रूरत ही नहीं थी।

कमरे में अंदर आ कर मैंने महसूस किया कि मुझको सच में भावनात्मक सहारे की बहुत आवश्यकता थी। पिछले कई वर्षों में घर में सभी ने मुझको बहुत प्यार दिया था और बहुत सहारा दिया था। लेकिन, आज मुझे जिस बात का डर साल रहा था, उसका निवारण केवल लतिका के ही पास था। और लतिका ने इस बात को भाँप लिया।

उसने मेरे चेहरे को अपनी हथेलियों में ले कर मुझको मेरे माथे पर चूम लिया... और उसी क्षण मेरी पीड़ा का बाँध टूट गया। मैं फ़फ़क फ़फ़क कर रोने लगा। मैं स्वयं भी आश्चर्यचकित था कि मैं अचानक ही ये क्या करने लगा! मेरे दिल में अभी तक जो दिल का दर्द कहीं दबा हुआ था, अब वो बे-रोक-टोक निकल रहा था। मुझे लतिका ने अपने गले से लगा लिया, कि मैं अपने हिस्से का रोना रो लूँ, जिससे मेरे मन का दर्द निकल जाए। उसने मुझे तब तक रोने दिया, जब तक मेरा मन शांत नहीं हो गया। उसने मुझे बिना-वजह का दिलासा नहीं दिया... रोने से मना नहीं किया, बल्कि मुझे रोने दिया। जब पीड़ा आँसू बन कर निकलते हैं, तो उसकी टीस कम हो जाती है। उसने एक क्षण के लिए भी मुझे अपने आलिंगन से नहीं मुक्त किया। मैं उसको ज़ोर से पकड़ कर देर तक रोता रहा।

आई ऍम सॉरी लतिका,” मैंने रोते-रोते कई बार बीच मीच में उससे माफ़ी माँगी, “आई ऍम सॉरी...”

“श्श…” लतिका ने मुझे कुछ न बोलने का संकेत किया, और कहा, “किसी भी बात की चिंता मत करो, अमर... मैं हूँ तुम्हारे साथ! अब तुम अकेले नहीं हो... डोंट वरी!”

जब मुझे रोने धोने से होश आया कि मैं क्या कर रहा हूँ... तो मुझे एहसास हुआ कि मेरा चेहरा उसके स्तनों के बीच दबा हुआ था। रोते रोते मेरी नाक जाम हो गई थी, लेकिन फिर भी मुझको गुलाब की भीनी भीनी महक महसूस हो रही थी। यह लतिका का फ्लोरल परफ्यूम था। मुझे इस बात का भी एहसास हुआ कि लतिका ने मेरे लिए कुछ ऐसा पोज़ बना लिया था, जो मेरे लिए बड़ा ही आरामदायक था। मैं उसके सीने में थोड़ा और घुस गया। अब मुझे उसके दिल की धड़कन और भी अच्छी तरह से सुनाई देने लगी! परफ्यूम की भीनी महक के बीच में ऐसा आरामदायक आलिंगन! आह! अपार दुःख में ऐसा सुखद एहसास।

मैंने लतिका को थाम रखा था। ऐसे ही एक क्षण मेरा हाथ लतिका की नंगी बाँह पर पड़ा। वो मुझको थोड़ा स्थान देने के लिए थोड़ा हिली, तो मेरा हाथ उसकी बाँह से सरक कर उसके स्तन के बगल पर फिसल गया। उस समय मुझे एहसास हुआ कि मेरा हाथ लतिका के एक स्तन के किनारे को छू रहा था। उस अहसास से मुझे अपने शरीर में बिजली का झटका सा महसूस हुआ। मैंने तुरंत ही से अपना हाथ वहाँ से हटा दिया। लतिका भी आलिंगन से अलग हो गई और मेरी तरफ़ अजीब ढंग से देखने लगी!

मुझे लगा कि जैसे वो शिकायत कर रही हो, कि मैंने वहाँ अपना हाथ क्यों रखा! लेकिन उसकी शिकायत थोड़ी अलग थी। आगे उसने जो किया, वो मेरे लिए आशातीत था!

उसने मेरे हाथ को पकड़ कर और सीधे अपने स्तन पर रख दिया!

‘बाप रे!’

यह कहना कि उसके गरमागरम और मुलायम, लेकिन दृढ़ स्तन के अहसास ने मेरी भावनाओं को झकझोर कर रख दिया, कोई अतिशयोक्ति न होगी! इस अद्भुत एहसास से इतनी सारी यादें जुड़ीं हुई थीं कि क्या कहें!

मेरा लिंग फिर से सख्त होने लगा, और इसके कारण मैं थोड़ा व्यथित भी हो गया। ऐसे बार बार लिंग का स्तम्भन और शिथिलीकरण होना कोई अच्छी बात नहीं है। उधर लतिका ने मुझको अपने से दूर करने के लिए कुछ भी नहीं किया। न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरा हाथ अब मेरा नहीं रहा। लग रहा था कि उसमें अपने आप ही एक तरह की चेतना आ गई हो - अपने आप से ही वो लतिका के दृढ़ स्तन के टीले की टोह लेने लगा। मेरी उँगलियाँ उसकी ड्रेस के कपड़े पर धीरे-धीरे, कोमलता से घूम रही थीं। मुझे होश तब आया जब मैंने अपने हाथ में उसके पेन्डेन्ट को महसूस किया!

आई ऍम सॉरी,” मैंने कह कर अपना हाथ पीछे खींचा।

“नो... नो...” लतिका बोली, और उसने मेरा हाथ फिर से अपने स्तन पर रख दिया।

मेरे लिए यह बहुत ही आरामदायक एहसास था! अब तो मुझे लतिका के दिल की धड़कन भी महसूस होने लगी।

“अमर,” लतिका कुछ देर बाद धीरे से फुसफुसाई, “मैं चाहती थी कि तुम मुझे... तुम मुझे... बिना मेरे कपड़ों के...” उसने झिझकते हुए कहा, “... तब देखो... जब मैं तुम्हारी दुल्हन बन जाऊँ...”

मेंने सर हिलाया।

लतिका मुस्कुराई और उसने मेरे होठों को चूम लिया।

मेरा लिंग अब पत्थर की तरह सख्त हो गया था, और जीन्स के अंदर वो बुरी तरह कसमसा रहा था। बड़ी मुसीबत थी। लेकिन अचानक ही मुझे लगा कि मेरे लिंग पर से दबाव कम हो गया है! मैंने नीचे देखा, तो पाया कि लतिका ने मेरी जीन्स का ज़िप खोल दिया है...! लतिका पहले भी यही काम कर चुकी थी! और उस समय भी मुझको एक अभूतपूर्व आनंद मिला था। मैं उसको रोकने या न रोकने की उधेड़बुन में पड़ा हुआ था कि उतने में लतिका ने मेरे लिंग को मेरी चड्ढी से मुक्त कर दिया।

जैसे ही मेरा लिंग बाहर आया, मैंने राहत की साँस भरी! मैंने लतिका के स्तनों को प्यार से सहलाया, तो उधर उसने मेरे लिंग को! बड़े आराम से, बहुत धीरे से! मेरा लिंग पूरी तरह से स्तंभित था। लतिका की उँगलियाँ मेरे लिंग की लम्बाई पर फिसल रही थीं, और कुछ ही देर में लिंग की सुराख़ से प्री-कम की कुछ बूंदें बाहर निकलने लगीं।

“अमर?”

“हम्म उम्?”

“मैं सोच रही थी... कि आज... आज यू कैन सी माय ब्रेस्ट्स?”

लतिका को नग्न देखने की चाहत तो एक लम्बे समय से थी। लेकिन,

ल...लतिका, इट कैन बी डेंजरस!” मैंने कहा।

लतिका ने झिझकते हुए कहा, “आई नो... बट विल यू लाइक इट?”

उसका हाथ अभी भी मेरे लिंग पर फिसल रहा था। ये भी भला कोई पूछने वाली बात थी!

मैंने नर्वस होते हुए, तेजी से ‘हाँ’ में सर हिलाया, “ह हाँ... हाँ! आई वुड लव इट! ...” फिर अपने लिंग पर उसका हाथ महसूस कर के, “दिस इस लवली, लतिका! ओह... हनी!”

लतिका, जो अभी भी मेरे साथ आलिंगन में बँधी हुई, मेरे लिंग को सहला रही थी, बुदबुदाती हुई बोली, “क्या सचमुच? ... तुमको अच्छा लग रहा है न? मैं ठीक से कर रही हूँ न?”

“ओह... बहुत बढ़िया, लतिका,” मेरे मैंने कराहना जारी रखा, “बस... बस... ओओओह्ह्ह्हह्ह...!”

अचानक ही मेरे लिंग से एक दो तीन और उसके बाद चौथे बलवान और बड़े झटके के साथ गाढ़ा वीर्य मेरे अंदर से निकला, और लतिका के हाथ के ऊपर बहने लगा। पक्की बात है कि कुछ उसके ऊपर भी गिरा होगा। जब तक स्खलन पूरी तरह से बंद नहीं हो गया, तब तक वो मेरे लिंग को सहलाती रही। हमारी साँसें अस्थिर थीं, और दिलों की धड़कनें तेज़! कमरे में इतना सन्नाटा था कि हम अपने दिल की धड़कनों को सुन सकते थे!

“अच्छा लगा?” उसने अंततः पूछा।

“बहुत...!”

वो मुस्कुराई, “ये सब उतार दूँ?”

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

कुछ ही देर में मैं पूरी तरह से नग्न हो, लतिका के सामने था। माँ, पापा और अम्मा की बातें याद आ गईं कि अपनी बीवी के सामने नग्न होने में क्या शर्म? लेकिन बड़ी बात यह थी कि लतिका बड़े अधिकार भाव से मेरे साथ यह सब करती थी। एक तरह से उसके सामने नग्न हो कर अच्छा भी लगा। मैंने देखा कि उसकी ड्रेस पर मेरे स्खलन के कारण बड़े बड़े तीन गीले धब्बे बन गए हैं। उसके अंदर भी कामुक विचार तो आ ही गए थे। लेकिन फिर भी वो इतनी खूबसूरत, इतनी मासूम और इतनी चूमनीय लग रही थी, कि क्या कहें! इसलिए, जैसे ही मैं अपने कपड़ों से मुक्त हुआ, मैंने आगे बढ़ कर उसके मीठे से होंठों को चूम लिया।

वो मुस्कुराई।

“लतिका…” मैंने कहना शुरू किया।

“अमर…” ठीक उसी समय लतिका भी बोली।

हम दोनों मुस्कुराये!

“पहले तुम बोलो,” उसने हँसते हुए कहा।

मैंनें एक गहरी साँस ली।

“लतिका, आई… अह… तुम... तुम रहती हो तो कण्ट्रोल ही नहीं हो पाता! ... आई ऍम सॉरी?”

लतिका हँसी, “अरे! सॉरी क्यों? ... और कण्ट्रोल करने को किसने कहा? ... जब हम दोनों शादी कर लेंगे, तब तुमको जितनी बार भी मन करे, मुझसे प्यार करना...! नहीं तो मेरा क्या काम?” फिर वो मुस्कुरा कर बोली, “तुम मेरे... तुम मेरे हस्बैंड हो... मेरा प्यार हो…” उसने मेरा चेहरा बड़ी कोमलता से सहलाया, “अभी जो कुछ हुआ… आज जो कुछ हुआ, वो मेरा प्यार है... तुमको थोड़ा आराम देने के लिए, जो सही लगा, मैंने वही किया... आल आई नो इस दैट आई लव यू!”

लतिका की बातों, उसकी हरकतों में इतना प्यार, इतनी ईमानदारी और इतना विश्वास था कि मुझे भी जवाब देना ही पड़ा,

“मैं भी तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, लतिका।”

मैं अब जा कर लतिका को ले कर आश्वस्त हुआ - अब मुझे समझ में आ गया था कि वो मेरे लिए बिल्कुल सही जीवनसाथी है! मैं समझ गया था कि भगवान ने मुझे खुश होने और प्यार पाने का ‘एक और’ मौका दे दिया है! और इस मौके का आनंद मैं बिना किसी डर, बिना किसी पूर्वाग्रह के उठाना चाहता था। मुझे फिर से खुश होने का मौका मिल गया था, और मैं इसे अपने हाथों से जाने नहीं देना चाहता था।

मैरी मी?” मैंने उससे पूछा… पूरी सच्चाई और ईमानदारी से।

लतिका एक चौड़ी सी मुस्कान में मुस्कुराई, और ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए मुझको अपने आलिंगन में ले ली।

“तुमको सुला दूँ, मेरे अमर?” अंत में उसी ने कहा।

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

एक और बात थी - उसके सामने नग्न होने में मुझको झिझक या शर्म नहीं थी। बल्कि बड़ा ही अद्भुत और आरामदायक एहसास था। मैं बिस्तर पर लेट गया और वो भी मेरे बगल आ कर लेट गई। मेरा लिंग उत्तेजनावश फिर से स्तंभित होने लगा। लतिका ने मेरी ओर प्रशंसात्मक दृष्टि से देखा, और घबराकर अपने होंठ काटने लगी। एक बेहद सेक्सी अदा!

मैं लतिका की कमनीय अदा पर मुस्कराया और मैंने फिर से उसको चूम लिया! एक प्रेमी वाला चुम्बन!

“क्या हुआ?” मैंने पूछा।

“बदमाश छुन्नू है तुम्हारा... इतनी जल्दी जल्दी... और वो भी अपनी बुआ के लिए...” लतिका ने मुझको छेड़ा।

“मेरी बुआ है ही इतनी सेक्सी...” मैंने भी उसको चूमा, और फिर थोड़ा ठहर कर मैंने कहा, “लतिका, तुमने मेरी लाइफ फिर से सँवार दी है... आई ऍम सो लकी टू फाइंड योर लव!”

मैंने उसके कंधे को सहलाया, और उसकी ड्रेस का कंधे वाला हिस्सा वहाँ से हट गया। उत्तेजना मेरे अंदर बड़ी तेजी से रूप ले रही थी। सच में - वो रहती है, तो कण्ट्रोल ही नहीं हो पाता! मैंने उसके सीने पर चूम लिया... उत्तर में लतिका के गले से एक कामुक कराह निकल गई। मैंने देखा कि उसकी आँखें बंद हो गईं थीं। अब और नहीं रुक सकता था मैं।

मैंने बड़ी कोमलता से उसकी ड्रेस का पहला बटन खोल दिया। लतिका को पता था कि क्या हो रहा है।

“अ…अमर... मैं तुम्हें रोक नहीं सकती... रोक नहीं पाऊँगी...” वो फुसफुसाती हुई बोली, जैसे कि वो मुझे अनुमति दे रही हो, “उतार दो... ले… लेकिन पू... पूरा नहीं... सब नहीं... ओके?”

मैंने समझते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

लतिका की ड्रेस को खोलना बड़ा आसान था। सारे बटन सामने की ओर ही लगे हुए थे, लिहाज़ा, कुछ ही देर में लतिका की ड्रेस उसके शरीर से अलग हो गई। चूँकि उसने स्वयं को पूरा नग्न न करने के लिए पहले ही मेरी रज़ामंदी ले ली थी, इसलिए मैंने उसकी चड्ढी नहीं उतारी। जितनी कृपा मिल रही थी, उसका सम्मान करना चाहिए और उसका आनंद उठाना चाहिए। आधी छोड़ पूरी को धावे, आधी मिले न पूरी पावे! इसलिए मैंने लालच नहीं किया।

लतिका ने ब्रा नहीं पहनी हुई थी। और अपने अनावृत स्तनों के प्रदर्शन में वो कैसी कैसी अनुपम सुंदरी लग रही थी! एक नव-युवा स्त्री का शरीर वैसे ही बहुत सुन्दर लगता है, लेकिन लतिका में नवयुवती होने के साथ साथ एक एथलीट वाला कसाव और एक दृढ़ता भी थी। जैसा कि आप सब जानते हैं कि लतिका का रंग साँवला था... तो उसी रंग के अनुकूल उसके चूचक भी साँवले थे! ग़ज़ब का सौंदर्य! मैंने उसके स्तनों को सहलाया - उत्तेजित तो लतिका भी थी! इसलिए उसके चूचक अत्यंत उत्तेजनावश खड़े हो गए थे। उसके दाहिने स्तन पर, उसके चूचक से बस थोड़ा ही ऊपर एक छोटा सा तिल था। छोटा सा, और बिल्कुल गोल तिल! आज मैंने पहली बार उसको नोटिस किया! अद्भुत सा वस्तु था वो तिल!

मैंने उसके तिल तो सहलाया। वो सिहर गई। उसके स्तनों पर रौंगटे खड़े हो गए, ख़ास कर उसके एरोला पर! और उसके चूचक उत्तेजना में कोई एक इंच तक लम्बे हो गए थे... उनको देख कर ऐसा लगा कि उत्तेजना के अतिरेक से वो कहीं फूट ही न जाए!

“लतिका?” मैंने अन्यमनस्क सी अवस्था में कहा।

“हम्म?”

“काश कि मैं यही तिल होता...”

“हा हा... ये तिल?”

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया - मेरा सारा ध्यान अभी भी उसी तिल पर था।

“क्यों?”

“तुम्हारे पास... तुम्हारे साथ रहने की इससे बेहतर कोई और जगह हो नहीं सकती...”

“हा हा...”

“अगर मैं ये तिल होता न, तो तुमको कोई छोटी सी ब्रा पहननी पड़ती... नहीं तो मेरा दम घुट जाता...”

आई लव यू...”
आई लव यू!” मैंने कहा, “सच में... आई कैन लिव राइट देयर!”

मैंने कहा और लतिका के होंठों से अपने होंठ मिला बैठा। लतिका के साथ इतनी सी ही अंतरंगता से समझ आ गया कि मुझे उसके साथ वैवाहिक जीवन का गज़ब का आनंद मिलेगा! मैंने मन ही मन घर में सभी का शुक्रिया अदा किया, जिन्होंने मेरे साथ लतिका का संग तय किया। कभी कभी अरेंज्ड मैरिज भी आनंददायक होती है!

कुछ देर उसको चूमने के बाद मेरा प्यासा मुँह उसके एक चूचक से जा लगा। जैसे ही मैंने चूसना शुरू किया, लतिका काँप उठी और उसके मुँह से एक मीठी लेकिन दर्द भरी कराह निकली! मन में तो हुआ कि मैं चूषण करना रोक दूँ, लेकिन ये एक ऐसा काम है, जिसको बीच में नहीं छोड़ना चाहिए। उससे न तो करने वाला संतुष्ट होता है, और न ही वो जिस पर यह किया जा रहा होता है। मुझको पता था कि इसमें हम दोनों की ही रज़ामंदी थी, लिहाज़ा आनंद भी दोनों का ही था!

मैं उसके स्पंजी, ठोस चूचक को अपने मुँह में धड़कता हुआ महसूस कर पा रहा था। मेरे मन में यह विचार आया कि उसके चूचक चबा लिया जाए! आज नहीं - लेकिन ये करूँगा ज़रूर! अभी करने के लिए एक और काम था - देख नहीं सकता, लेकिन प्यार तो कर ही सकता हूँ न? मैंने अपना हाथ नीचे बढ़ाया, और उसकी पैंटी के अंदर उसकी योनि से जा लगा और उसके आकार प्रकार का जायज़ा लेने लगा। जैसा कि मैंने अंदाज़ा लगाया था, लतिका की योनि के होंठ छोटे से थे - गैबी की योनि के होंठों से भी छोटे और पतले! उसकी योनि के ठीक ऊपर का हिस्सा, मॉन प्यूबिस हल्का सा उभरा हुआ, गठा हुआ और उत्तेजित करने वाला था। वहाँ बाल नहीं थे - शायद वैक्सिंग कराई हुई थी उसने! माँ और अम्मा ने अवश्य ही उसको इस बारे में बताया होगा। लेकिन उसकी श्रोणि बहुत ही चिकनी थी - मतलब बहुत लम्बे समय से वो वैक्सिंग कराती आ रही थी।

‘हम्म्म... इंटरेस्टिंग!’

मैंने उसकी गुलाब की पंखुड़ी को ढूंढ कर बाहर निकाला - वो भी पतली और कोमल सी लगी! उसका योनिरस अब निर्बाध बह रहा था और इस बेहद अंतरंग कार्य को और भी अनूठा बना रहा था। लतिका के लिए यह अनुभव अभूतपूर्व तो था ही, और आसान तो कत्तई नहीं था! इतना तो कह ही सकता था कि आज उसके साथ जो हो रहा था, वो उसके साथ कभी नहीं हुआ था। अपरिचित उत्तेजना के कारण उसका मुँह खुला था, उसके नथुने फड़क रहे थे, और वो ज़ोर ज़ोर से साँस ले रही थी।

मैंने अपनी तर्जनी से उसके भगशिश्न का पता लगाया - वो चिरौंजी के दाने जितनी बड़ी लगी। उसको छूने की देर थी कि लतिका आँहें भरते हुए मुझमें सिमट गई। जिस तरह से उसका शरीर थरथरा रहा था, मैं समझ गया कि उसको आज का अपना पहला चरमसुख मिल गया है! मैं यथासंभव उसका स्तन अधिक से अधिक अपने मुँह में रख कर अभी भी चूस रहा था। वो मेरी गर्दन में मुँह छुपा कर गर्म गर्म साँसें भर रही थी।

लतिका की योनि पूरी तरह से भीग चुकी थी! अगर उस समय कोई ऐसा व्यक्ति हमको देखता जिसको हमारी अंतरंगता की सच्चाई के बारे में न पता हो, तो सोचता कि हमने अभी अभी सेक्स किया था! और उसकी पैंटी इतनी गीली हो गई थी कि जैसे उसमें से उसकी का रस और मेरा वीर्य - दोनों ही रिस रहा हो!

‘इसका मतलब है,’ मैंने सोचा, ‘कि लतिका भी लम्बे समय से सेक्सी महसूस कर रही थी!’

इस बात का संज्ञान होना, एक अद्भुत अहसास था!

किसी ऐसी लड़की से इस तरह अंतरंग होना, जो अंतरंग होने से पहले ही आपके साथ अंतरंग होने की फंतासी रखे हुए हो, एक गज़ब की अनुभूति होती है यह! उसका शरीर आपके साथ सेक्स करने को तैयार रहता है, और ऐसी ही लड़की के साथ सेक्स का सबसे सुन्दर और संतुष्टिप्रद आनंद आता है! ... और, मुझको वो सुख आ रहा था!

उसके भगशिश्न को पा कर मैं उसको सहलाने लगा। साथ ही साथ यह विचार भी मन में आ रहा था कि मैं उस समय एक किशोरवय लड़की के साथ प्यार कर रहा था! मेरी सभी प्रेमिकाओं ने मुझे बहुत कुछ सिखाया था... सबने! अब मेरी बारी थी किसी को कुछ सिखाने की!

मैं उसकी योनि की दरार को कुछ इस तरह सहला रहा था कि उसका भगशिश्न मेरी छुवन से लगातार छिड़ता रहे। ओर्गास्म का आनंद मिलने के बाद भी लतिका का शरीर काँप रहा था, और उसके नितम्ब अब जैसे स्वप्रेरणा से एक ताल में हिल रहे थे। उसकी ताज़ा, गर्म साँसें मेरी गर्दन को जला रही थीं।

ऐसे ही सहलाते हुए, उसके योनिमुख पर मैंने अपनी तर्जनी का दबाव बनाया। छेद सँकरा था, लेकिन उंगली भी कोई बहुत मोटी नहीं थी। जैसे ही मेरी तर्जनी ने लतिका की योनि में प्रवेश किया, उसकी एक गहरी साँस निकल गई।

“लतिका?” मैंने उसका स्तन पीना रोक कर उसको पुकारा।

“हम्म?”

“ठीक हो?”

“म्मर जाऊँगी मैं...” उसने क्षीण आवाज़ में कहा।

“निकाल लूँ?”

“नहीं... नहीं!” उसने आनंद से कराहते हुए कहा, “... ले...लेकिन पागल हो जाऊँगी... सच में!”

मैंने उसकी बात का यह अर्थ निकाला कि उसको मेरी हरकतों से बहुत आनंद मिल रहा है। तो मैंने रोका नहीं, और वापस उसके स्तन को पीने लगा, और योनि को छेड़ने लगा। कुछ ही देर में उसकी कराहें उग्र हो गईं, और साँसें अनियमित... लगभग हाइपरवेंटिलेटिंग सी हो रही थीं। और उसका शरीर ऐसे काँप रहा था, कि जैसे उसे ठंड लग रही हो।

फिर वो अचानक से ही बिस्तर से उठ गई,

“आह… आई ऍम सॉरी… आई ऍम सॉरी… आई कांट डू दिस! ... आई कांट!” अपने दोनों हाथों को अपने स्तनों को छुपाते हुए वो लगभग विनती करती हुई बोली, “अमर... प्लीज अब और कुछ मत करना... नहीं तो मैं रोक नहीं सकूँगी अपने आप को...”

मैं भी उत्तेजनावश हाँफ रहा था। कुछ समय पहले हुए स्खलन के बावजूद भी, मैं फिर से तैयार था, और मेरा लिंग मेरी दिल की हर धड़कन के साथ फड़क रहा था। हम दोनों के बीच की चीजें बहुत जल्दी ही गर्म और अनियंत्रित हो गईं थीं। मैंने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ होगा, लेकिन मुझे बहुत ख़ुशी थी कि ऐसा कुछ हुआ!

उसने मेरे लिंग को अपने कोमल हाथों से पकड़ा, और कहा, “इसको भी सम्हाल कर रख लो कुछ दिन...”

फिर उसने मेरे लिंग के सिरे पर एक ज़ोरदार चुम्बन दिया।

“... और जितनी जल्दी हो सके, मुझसे शादी कर लो...”

“कहो तो कल ही कर लें?” मैंने शरारत से कहा।

यू वुड लव दैट! वोंट यू?” वो मुस्कुराई, “एंड सो वुड आई... लेकिन नहीं। अभी नहीं... पहले बोऊ-दी का बेबी हो जाए, फिर?”

मैंने ‘हाँ’ में सर हिला कर रज़ामंदी दी, “मतलब, जून जुलाई?”

“मतलब जून जुलाई...” उसने भी मेरी बात का अनुमोदन किया।

फिर वो मुस्कुराई। उसकी साँसें अभी भी तेजी से चल रही थीं, लेकिन वो प्रसन्न लग रही थी। मेरी हालत भी उसकी जैसी ही थी। मैं भी बिस्तर से उठ बैठा, और उसके किनारे पर पैर लटका कर बैठ गया।

“कम हियर...”

उसने अभी भी मुस्कुराते हुए ही ‘न’ में सर हिलाया, और फिर मेरी तरफ़ आने लगी।

जब वो मेरे करीब आ गई, तब मैंने उसको अपने आलिंगन में ले कर उसके सीने पर, स्तनों के बीच चूमा। मैं उसको बताना चाहता था कि मैं उसका कितना शुक्र-गुजार था कि वो मेरे जीवन में आई! लतिका ने अपनी आँखें बंद कर लीं। उसके परफ्यूम की खुशबू ने मन मोह लिया। उसके साथ एक होने का एहसास अब मेरे मन पर हावी हो गया था। हमारा जीवन अब एक था!

लतिका ने बड़े प्रेम से मेरे बालों को सहलाते हुए कहा, “स्लीप माय लव,”

मैंने फिर से उसके सीने को चूमा।

“... स्लीप! अब ‘मैं’ आ गई हूँ... किसी बात की चिंता न करना अब से! ... अब से तुमको किसी बात का दुःख नहीं होगा!”

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया!

सच में, दिल के दुःख बहुत कम हो चले थे।

“सो नहीं पाऊँगा...” मैंने शरारत भरी शिकायत की।

“तो मैं फिर से आ जाऊँगी...” उसकी आवाज़ में ऐसी नर्मी थी कि मुझको आराम और सुकून मिल गया, “... अभी सो जाओ!” उसने मेरे माथे को चूमा।

“आई लव यू!” मैंने कहा।

“आई लव यू टू!” वो बोली।

फिर वो मुड़ी और कमरे से बाहर निकल गई।

*
अदभुत...

डर एक ऐसी चीज है जो सब गुड गोबर कर देती है। अच्छा है की लतिका ने इस डर को न सिर्फ समझा बल्कि उसको कम भी करा।
 
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लतिका का प्रेम निवेदन स्वीकार करते वक्त अमर की आवाज भर्राई हुई थी और इसका कारण समझ मे आने लायक और मेरी नजर मे वाजिब भी था।
गैवी और डेवी की असमय मौत ने उसे भयभीत कर दिया था कि ऐसा ही अंजाम लतिका के साथ भी न हो जाए ।
यह अमर का लतिका के प्रति अथाह प्रेम और चिन्ता प्रकट कर रहा था। यह उसका संवेदनशील पक्ष उजागर कर रहा था।
लेकिन एक बार फिर से कैप्टनशीप का डोर लतिका ने अपने हाथ मे लिया और अमर साहब के चिंता का समाधान किया। एक जवान और खुबसूरत लड़की जिस तरह से अपने प्रेमी का माइंड डाइवर्ट करती है वही काम लतिका ने किया।
इसीलिए मैने कहा लतिका अपनी उम्र से कहीं अधिक मैच्योर है। वो अपने प्रेमी को सेड्यूश करना जानती है , वो अपनी मर्यादा समझती है , वो एक रोते हुए व्यक्ति को हंसाना भी जानती है।
इस अपडेट मे यही काम तो किया लतिका ने । एक ऐसी खुबसूरत सांवली सलोनी जो दिल और दिमाग से मैच्योर है।
अद्भुत अपडेट avsji भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
 

KinkyGeneral

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Amar to mughe bda hi chutiya lga
पंजाबी में कहावत है, "लल्लू करे कवल्लियाँ, रब्ब सिद्धियां पौंदा", मतलब भोला इंसान मूर्खतावश कुछ भी करता है प्रन्तु भगवान उसकी बात बना देता है।
प्यार के मामले में अपने अमर भाई का भी ऐसा ही संयोग है। :pepeez:
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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लतिका का प्रेम निवेदन स्वीकार करते वक्त अमर की आवाज भर्राई हुई थी और इसका कारण समझ मे आने लायक और मेरी नजर मे वाजिब भी था।
गैवी और डेवी की असमय मौत ने उसे भयभीत कर दिया था कि ऐसा ही अंजाम लतिका के साथ भी न हो जाए ।
यह अमर का लतिका के प्रति अथाह प्रेम और चिन्ता प्रकट कर रहा था। यह उसका संवेदनशील पक्ष उजागर कर रहा था।
लेकिन एक बार फिर से कैप्टनशीप का डोर लतिका ने अपने हाथ मे लिया और अमर साहब के चिंता का समाधान किया। एक जवान और खुबसूरत लड़की जिस तरह से अपने प्रेमी का माइंड डाइवर्ट करती है वही काम लतिका ने किया।
इसीलिए मैने कहा लतिका अपनी उम्र से कहीं अधिक मैच्योर है। वो अपने प्रेमी को सेड्यूश करना जानती है , वो अपनी मर्यादा समझती है , वो एक रोते हुए व्यक्ति को हंसाना भी जानती है।
इस अपडेट मे यही काम तो किया लतिका ने । एक ऐसी खुबसूरत सांवली सलोनी जो दिल और दिमाग से मैच्योर है।
अद्भुत अपडेट avsji भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।

लतिका और अमर के बीच एक अलग ही तरह की झिझक है। अपने सामने पली बढ़ी लड़की से ऐसे अंतरंग होना सभी के लिए संभव नहीं। लेकिन लतिका इस कोशिश में है कि वो अमर को इस झिझक से बाहर निकाल सके। अब उसको थोड़ी थोड़ी सफ़लता मिल रही है। जैसा आपने कहा, वो अपनी समझदारी में अपनी उम्र से अधिक परिपक्व है। उम्र एक भौतिक सीमा है, लेकिन समझदारी उम्र की मोहताज नहीं ।
बहुत बहुत धन्यवाद संजू भाई। साथ बने रहें 😊🙏🙏
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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बहुत ही सुंदर अपडेट और दोनों की अंतरंगता के पल तो बेहद ही ग़ज़ब। 💕

बहुत बहुत धन्यवाद मेरे भाई :)
 

Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
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पंजाबी में कहावत है, "लल्लू करे कवल्लियाँ, रब्ब सिद्धियां पौंदा", मतलब भोला इंसान मूर्खतावश कुछ भी करता है प्रन्तु भगवान उसकी बात बना देता है।:pepeez:
:mahboi:
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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अचिन्त्य - Update #22


लतिका ने आभा के कमरे में चुपके से झाँक कर देखा तो पाया कि वो वहाँ नहीं थी। मतलब, रोज़ की ही तरह वो लतिका के कमरे में ही होगी। लतिका अपने कमरे में पहुँची - और चुपके से दरवाज़ा खोल कर देखी कि आभा उसके बिस्तर में ही लेटी हुई थी। वो मुस्कुराई - सच में, आभा का उसके बिना नहीं चलता था, और न ही उसका आभा के बिना।

उसने अपने पीछे दरवाज़ा बंद किया ही था कि,

“कैसी रही आपकी डेट?” आभा की आवाज़ आई।

ज़ाहिर सी बात है, वो अभी भी जाग रही थी।

“अभी तक नहीं सोई मेरी मिष्टी?” लतिका ने हँसते हुए कहा।

आज की डेट के लिए आभा ने लतिका की इतनी मदद करी थी कि क्या कहें! और आज की डेट ही क्या, लतिका और मेरी शादी की बात का बीजारोपण भी आभा ने ही तो किया था। उसके लिए तो मैं आभा का हमेशा ही आभारी रहूँगा।

“कैसे सोती? ... मैं तो आप दोनों की डेट को ले कर कितनी एक्साईटेड थी!” आभा ने पूरे उत्साह से कहा।

“हम्म... चलो... अब मैं तुमको सुला देती हूँ!”

“मम्मी... डोंट बी अ स्पॉइल-स्पोर्ट! ... बताओ न, कैसी रही आप दोनों की डेट?”

लतिका शाम की बातें याद करती हुई शर्म से मुस्कुराई, फिर बोली,

योर डैडी प्रोपोस्ड मी...”

व्हाट? वाओ... वाओ... फाइनली! ही गॉट द राईट सेंस!” आभा बिस्तर से उछल कर उठ कर बैठती हुई बोली, “कॉन्ग्रैचुलेशन्स मम्मी!”

कह कर आभा लतिका से कस कर लिपट गई, और उसको ज़ोर ज़ोर से चूमने लगी। आभा इतने उत्साह में थी कि उसके वज़न से लतिका भी हँसते हुए बिस्तर पर गिर गई।

“हा हा... थैंक यू सो मच माय लव... माय बेटू... थैंक यू!” लतिका ने कहा और उसने भी आभा को अपने आलिंगन में ले कर कई बार चूमा।

दोनों के बीच उम्र का भले ही नाम-मात्र का अंतर हो, लतिका ने हमेशा ही आभा को अपनी बेटी ही माना और उसी भाव से उसको पाला भी। उधर आभा भी लतिका के बगैर नहीं रह सकती थी - उसको पिछले कुछ समय से यह चाहत थी कि काश मैं और लतिका एक हो जाएँ! लिहाज़ा, मेरा प्रोपोज़ करना आभा के लिए एक बड़ी और गुड न्यूज़ था!

“अब बताओ सब कुछ... जल्दी से!”

“हा हा... तुमको सब कुछ नहीं बता सकती मेरी बेटू... कुछ बातें होती हैं जो बच्चों को नहीं बताई जा सकतीं!”

लतिका ने कह तो दिया, लेकिन वो जानती थी कि आभा उससे भी कहीं अधिक समझदार है, और चंचल भी! इतनी आसानी से पीछा छोड़ने वाली नहीं थी वो।

“अच्छा जी,” आभा ने चिढ़ाने वाले अंदाज़ में कहा, “तो आप दोनों ने वो वो काम किए, जो हम बच्चों को नहीं बताए जा सकते? हम्म? ... बहुत बढ़िया!”

लतिका आभा का नाटक देख कर हँस रही थी।

“... अब हम ऐसे बातें करेंगे... एडल्ट्स और बच्चों वाली? हम्म!! गन्दी मम्मी... ये मत भूलो कि डैडी और आपको मिलाने में मेरा सेंट्रल रोल है। ... नहीं तो आज की डेट में आप दोनों की डेट न होती! ... बच्चों को नहीं बताएँगी! वाह जी वाह!”

आभा ने देखा कि लतिका केवल हँस रही है, तो उसने अचानक से उस पर कूद कर हमला कर दिया, और उसके पेट के बगल में गुदगुदी लगा दी। लतिका जो अभी तक केवल मंद मंद हँस रही थी, अब ज़ोर ज़ोर से लुढ़क लुढ़क कर हँसने लगी।

“... ठीक है मेरी माँ,” वो हँसते हँसते बोली, “हार मान ली मैंने... बताती हूँ सब...”

जब आभा ने गुदगुदी लगाना बंद किया तो लतिका ने थोड़ा संयत हो कर आज शाम से ले कर रात तक जो भी हुआ, उसको सब बताया। घर से निकल कर रेस्त्रां तक का सफ़र, वहाँ डिनर, फिर लतिका का अपनी टीचर के सामने नाटक, फिर वापस आना, घर आ कर मेरा भावुक हो जाना, लतिका द्वारा मुझे भावनात्मक स्वांत्वना और हस्तमैथुन का आनंद देना, और फिर मेरे द्वारा उसको नग्न देखना और उसका स्तनपान करना... सब कुछ! आभा मंत्रमुग्ध सी हो कर सब सुनती रही, और जहाँ जहाँ उसको स्पष्टीकरण चाहिए था, वहाँ वहाँ प्रश्न पूछती रही।

“डैडी को आपके दुद्धू का टेस्ट अच्छा लगा?” उसने पूछा।

“हा हा... हाँ, इस मामले में बाप बेटी दोनों एक जैसे हैं!” लतिका ने हँसते हुए उत्तर दिया।

आभा मुस्कुराई, “... लेकिन आप दोनों ने सेक्स नहीं किया!”

लतिका ने ‘न’ में सर हिलाया, “बेटू, ऐसा नहीं है कि मैं उनसे सेक्स नहीं करना चाहती... बहुत चाहती हूँ! ... लेकिन आई वांट टू डू इट व्हेन व्ही आर मैरीड!”

“मैं जानती हूँ मम्मी! ... आपको कुछ कहने की ज़रुरत नहीं है! ... आई नो आप डैडी से बहुत प्यार करती हैं।”

“कोई शक़!” लतिका ने मुस्कुराते हुए आभा को अपने गले से लगा लिया, “... अच्छा चलो! अब सुला दूँ तुमको?”

कह कर लतिका आभा की नाईट शर्ट के बटन खोलने लगी।

उस बीच, आभा बड़े प्यार से लतिका को देख रही थी।

“क्या हुआ?” लतिका ने उसको यूँ खामोश रहा देख कर पूछा, “क्या बदमाशी चल रही है मन में?”

“मम्मी,” आभा ने बड़ी उम्मीद से लतिका से पूछा, “... आपको डैडी के साथ अच्छा तो लगता है न? ... आप कहीं यह सब इसलिए तो नहीं कर रही हैं कि वो विडोवर हैं, और मेरी कोई माँ नहीं... मेरा मतलब... हम पर... तरस खा कर...”

आखिरी के कुछ शब्द आभा ने बहुत धीमे बोले, लेकिन उनको सुनते ही लतिका निराश सी हो कर चौंक गई। वो शायद नाराज़ होती, लेकिन चूँकि उसमें माँ के सारे गुण अब तक कूट कूट कर भर गए थे, इसलिए वो नाराज़ नहीं हुई। हाँ, आभा की बात से निराश अवश्य हुई।

“मिष्टी... सच बता, कोई माँ नहीं है तेरी? ... और पिछले दस सालों से मैं जो तेरी सेवा कर रही हूँ, वो किसलिए? ... किस हक़ से तू मुझे मम्मी मम्मी कहती फिरती है? ... किस हक़ से मेरा दूध पीती है? ... बोल?”

आई ऍम सॉरी माँ! ... आई रियली ऍम!” आभा समझ गई कि उसके मुँह से बहुत ग़लत बात निकल गई... इसलिए उसने तुरंत माफ़ी मांग ली, “... लेकिन माँ, मैं भी तो चाहती हूँ न कि आपको सब कुछ बेस्ट मिले! बेस्ट घर, बेस्ट लाइफ... बेस्ट हस्बैंड! ... माँ तो आप मेरी हमेशा से ही हो! उसमें क्या शक?”

आभा ने बड़ी कोमलता से कहा, “लेकिन... डैडी! वो तो पहले भी दो बार शादी कर चुके हैं... आपसे बड़े भी तो हैं! ... आपके अपने ड्रीम्स होंगे... शादी से एक्सपेक्टेशंस होंगी... वो सब अरमान पूरे होने चाहिए न! ... और जहाँ तक हमारे बीच के रिलेशन्स का सवाल है, आप किसी और से शादी कर लोगी, तो हमारा रिश्ता बदल तो नहीं जाएगा न!”

“बदल जाएगा बेटू... सब बदल जाएगा!” लतिका आभा का पजामा उतारते हुए बोली, “... हमारी फैमिली बहुत अलग है बाकी सभी फैमिलीज़ से... और हमारे बीच में जो प्यार है, वो बहुत नाज़ुक है... और बहुत प्रेशियस है! ... अधिकतर लोगों को समझ में नहीं आने वाला ये! ... और मैं नहीं चाहती कि हमारे बीच में कोई बाहरी लोग आयें! ... और इस सुन्दर सी, नाज़ुक सी, प्रेशियस चीज़ को ख़राब कर दें!”

उसने गंभीर हो कर कहा, और फिर थोड़ा रुक कर बोली, “... एंड मोरओवर, आई लव अमर! ... मन में यह बात मैं जानती थी, लेकिन... मैंने ये पहले कभी रियलाइज़ नहीं किया... सो थैंक यू फॉर मेकिंग मी अंडरस्टैंड इट! ... ट्रुथ इस, आई लव हिम! ... ही इस द बेस्ट मैन फॉर मी!”

आभा ने ये सुना, तो खूब खुश हो कर वो लतिका से चिपक गई।

“और तू... तू भी तो उन्ही के कारण मिली है न मुझको! ... तू मेरी मिष्टी... मेरी बेटू है! माय फर्स्ट बोर्न!” लतिका ने दोनों बार ‘मेरी’ शब्द पर ज़ोर दिया।

आई लव यू सो मच, माँ! ... सच में!”

लतिका ने उसकी चड्ढी उतारते हुए कहा, “आई नो! ... कभी कभी कुछ नया भी बताया करो!”

आभा मुस्कुराई, और लतिका के होंठों को चूम कर और उसकी गोदी में बैठ कर उसके आलिंगन में समां कर एक प्रसिद्ध अंग्रेज़ी गाना गुनगुनाने लगी,

मामा यू नो आई लव यू...
यू नो आई लव यू...
मामा यू आर द क्वीन ऑफ़ माय हार्ट...
योर लव इस लाइक टीयर्स फ्रॉम द स्टार्स...


लतिका उसके गाने पर भावुक हो कर मुस्कुराने लगी, “आई लव यू टू माय हनी...” वो बोली, और फिर घड़ी देख कर, “ओह्हो! बहुत देर हो गई! चल, सो जाते हैं!”

“आप कुछ भूल नहीं रही हो, गन्दी मम्मी?”

“हा हा... नहीं भूल रही हूँ।” लतिका आभा की चंचल बातों पर हँसने लगी - उसको भी अपने छुटपन के दिन याद आने लगे, जब वो इसी तरह से अपनी सबसे चहेती बोऊ-दी को छेड़ा करती थी, “कुछ नहीं भूल रही हूँ... पाँच मिनट में तैयार हो कर आती हूँ, ओके?”

कह कर लतिका बिस्तर से उठी, और फिर कमरे की बत्ती जला कर बाथरूम चली गई। वहाँ उसने अपने कपड़े उतारे, ब्रश किया, चेहरा धोया, नाईट क्रीम लगाई, और अपने हाथों और पैरों में क्रीम लगा कर बाहर आ गई। ठंडक अब कुछ कम हो गई थी, लिहाज़ा, अगर खिड़कियाँ बंद कर लें, तो अंदर आराम रहता है। लतिका वैसे भी एयर कंडीशनर की आदी नहीं थी - एक एथलिट होने के नाते, वो चाहती थी कि किसी भी परिस्थिति में अनुकूल होने में उसको समय न लगे।

कमरे की मद्धिम रौशनी में आभा ने अपनी माँ के स्तनों का जायज़ा लिया। लतिका के स्तनों पर, और ख़ास कर उसके चूचकों पर चूसे जाने के लाल रंग के निशान साफ़ दिखाई दे रहे थे।

“सब ठीक है?” लतिका उसको यूँ देखता हुआ देख कर फिर से हँसने लगी।

“हाँ,” आभा ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा, “लेकिन मम्मी, मैं डैडी से कहूँगी कि इतनी ज़ोर से न किया करें! ... माय मम्मी इस डेलिकेट... सो, ही शुड बी जेंटल इन हिस सकलिंग!”

लतिका मुस्कुराई, “बेबी, इफ़ ही लाइक्स दिस वे, देन आई ऍम नॉट कम्प्लेनिंग! ... उनको भी तो खुश होना चाहिए न?”

“हाँ, वो भी है!” आभा ने कहा, और आनंद से अपनी माँ का स्तनपान करने लगी।

कोई दस मिनट बाद वो सो गई।

लतिका भी उसके कुछ देर में ही सो गई।


*


नींद नहीं आ रही थी। इसलिए बिस्तर में लेटे हुए मैं पिछले कुछ समय की बातों पर सोच-विचार करता रहा। लतिका के साथ अपने आगामी जीवन के बारे में सोच कर अच्छा लग रहा था। अम्मा की रौशनी से अब तीसरा घर आबाद होने वाला था! ... मेरा घर आबाद होने वाला था! बड़ी बढ़िया सी अनुभूति हुई यह सोच कर! और आश्चर्य भी, कि कैसे लतिका मेरे दिलो-दिमाग़ पर छा गई थी! कई सालों पहले जब गैबी मेरे जीवन में आई थी, तब वो भी इसी तरह से मेरे दिलो-दिमाग़ पर छा गई थी! लेकिन फिर भी थोड़े संशय थे मेरे मन में! सबसे पहला संशय उसकी उम्र को ले कर था! एक तरह से बाप की उम्र का था मैं उसका... बाप की उम्र का तो था ही, साथ ही बाप जैसा भी था! लेकिन वो ख़याल पापा, माँ, और अम्मा ने मेरी अच्छी काउन्सलिंग कर के मेरे मन से निकाल दिया था। जब मुझसे कम उम्र हो कर पापा मेरे पापा बन सकते थे, और माँ से कम उम्र हो कर अम्मा उनकी अम्मा और मेरी दादी माँ बन सकती थीं, तब मेरा और लतिका का जोड़ कोई गलत नहीं था। साथ ही साथ पापा ने समझाया, कि वैसे भी पद में तो लतिका ही मुझसे बड़ी है। इसलिए बाप वाली सोच को मैं मन से निकाल ही दूँ।

लिहाज़ा, सवाल उम्र का नहीं था। सवाल यह था कि क्या मैं विवाहित जीवन की उसकी आकाँक्षाओं को पूरा कर सकता था या नहीं! उसने इतना कुछ किया था हमारे लिए - मेरी मिष्टी को ऐसा पाल पोस कर बड़ा किया था उसने, कि जैसा शायद देवयानी भी न कर पाती! वो सबसे अच्छी है... इसलिए उसको भी तो सबसे अच्छा ‘वर’ मिलना चाहिए न! फिर मन में अगला विचार आया - माँ के लिए भी तो मैं यही सब सोचता था न? शुरू में पापा को अपने पिता के स्थान पर रखने का छोड़िये, अपनी माँ के पति के स्थान पर रख कर भी नहीं सोच पा रहा था। लेकिन अब! अब लगता ही नहीं है कि वो मेरे पिता नहीं हैं। अक्सर भूल भी जाता हूँ कि पापा नहीं, बल्कि डैड मेरे पिता हैं। यह सब तो प्यार पर निर्भर करता है न! प्यार के सच्चे निर्वहन पर निर्भर करता है।

आज जब मैंने उसको प्रोपोज़ किया, तो वो कोई मज़ाक नहीं था, बल्कि अपने खुद से ही एक वचन था, कि लतिका को मैं सारे जहान की खुशियाँ दूँगा... उसकी ख़ुशियों के लिए जो बन पड़ेगा, मैं करूँगा! फिर अपने इसी ख़याल पर मुझे विचार आया कि अगर मैं लतिका के बारे में यह सब करने का सोच रहा हूँ, तो मुझे भी तो उससे प्यार हो गया है न!

‘बाप रे!’
‘ऐसे ही?’
‘अचानक से?’
‘मेरे अनजाने ही!’

यह सब सोचते हुए मेरे होंठों पर मुस्कान आ गई। लतिका के साथ सब कुछ कितना आसान लगता है! जैसे कि हमेशा से ही साथ हों हम! ये एहसास बहुत ही कम लोगों के साथ आया! शाम की हमारी डेट याद हो आई। बाकी के सारे डिटेल्स लतिका के अक्स के सामने धुंधले पड़ गए... बस वो ही वो अब मेरे दिमाग़ में बसी हुई थी। उसकी मुस्कान, उसकी हँसी, उसकी अदाएँ, उसके खाने का तरीक़ा, उसका कनखियों से मुझको देखना, अपनी लटों को अपने कान के पीछे करना... ऐसे गिनने पर आ जाऊँ, तो ये फ़ेहरिस्त ख़तम ही न हो! ... आज कैसी चमक थी उसकी आँखों में... और कितनी खुश थी वो! मामूली से डिनर से कोई इतना खुश कैसे हो सकता है? लेकिन कुछ लोग इतने सरल होते हैं, जिनके कारण सब कुछ खुशनुमा हो जाता है। माँ वैसी ही हैं, अम्मा वैसी ही हैं, और... लतिका भी! उसके साथ बातें करना कितना आसान, कितना सहज था! और वो समझ रही थी कि मैं झिझक रहा था, इसलिए बड़ी दक्षता और मैच्योरिटी से उसने हमारी बातचीत की बागडोर सम्हाली। कितनी राहत मिली मुझे! कितना सुकून मिला उसकी आवाज़ सुन कर!

मेरी हैसियत और लीग से बढ़ कर है वो! बहुत खूबसूरत! बहुत सुन्दर! रेस्त्रां से घर आते समय कितना बुरा लग रहा था मुझे कि हमारी पहली डेट के लिए मुझे कुछ ख़ास करना चाहिए था! लेकिन, उसको तो जैसी ये बातें राख जैसी लगती हैं। और पहली डेट पर कौन आदमी ऐसे रोना रोने बैठ जाता है? ... लेकिन फिर भी उसने मुझको समझाया, सम्हाला! फिर उसने मुझको वो सुख दिया, जिसने मुझे आशातीत तरीके से शांत कर दिया। लतिका कोई दब्बू लड़की नहीं थी, और यह बात मुझे सबसे भली लगी! अगले सप्ताहांत मुंबई जाना होगा, तो मैं सभी से सर उठा कर लतिका का हाथ माँग सकूँगा! हाँ... अब दिल को बड़ा सुकून है! अब कोई संशय नहीं... लतिका और मैं, एक दूजे के लिए ही बने हैं! इस बात पर मैं रत्ती भर भी शक नहीं करूँगा!

अरे, याद आया! लतिका ने वायदा किया था कि वो रात को आएगी, देखने कि मुझे नींद आ रही है या नहीं! क्या मज़ा आएगा, अगर वो आती है... अपने पास ही सुला लूँगा! ग्यारह साल हो गए... अकेले सोते सोते! हाँ, कभी कभी माँ और अम्मा के साथ सोने का आनंद मिलता है, लेकिन वो दोनों तो माँओं वाला प्यार देती हैं। लतिका तो पत्नी है... होने वाली है! सच में... उसके आगमन की तैयारी में ही मेरे जीवन में रंग घुलने लगे हैं! पूरे परिवार को साथ बाँध कर रखे हुए है वो! कितना किस्मत वाला हूँ कि लतिका का हस्बैंड बनने को मिलेगा! वाह!

एक और विचार मन में आया कि क्यों न हमारी शादी वहीं हमारे गाँव ही में हो!

हमारे परिवार... हमारे खानदान की कहानी भी तो गाँव से ही शुरू हुई थी! तो लतिका और मेरी कहानी भी गाँव से ही क्यों नहीं शुरू हो सकती? अब तो गाँव में भी सभी हमको एक परिवार के रूप में ही स्वीकार चुके थे! गाँव में अब सभी लोग अम्मा को ही हमारे घर की मुखिया मानते थे... उनको ‘ठकुराईन’ कह कर बुलाते थे। वो भी अक्सर, स्वयं ही, गाँव जा कर कुछ दिन वहाँ रहतीं, और सभी मित्रों और हितैषियों का हाल चाल लेतीं! वो गाँव को अपना गाँव मानतीं, और उसी तरह व्यवहार भी करतीं। उनको भी अपनी पहचान के लिए किसी ‘जड़’ की तलाश थी, जो गाँव ने पूरी कर दी! वैसे भी, सामाजिकता निभाने में वो सबसे अग्रणी थीं। उधर पापा ने भी सामाजिक तौर पर अम्मा के बाद घर के बड़े की भूमिका धारण कर ली थी। उनको गाँव का ही बेटा मानते थे सभी, और चाचा जी तो उनको प्यार से ‘बाबू’ कह कर बुलाते थे, जो शायद उनके अपने तरीके से पापा को डैड के ‘छोटे भाई’ होने की स्वीकृति थी! उस तरह से माँ फिर से गाँव की बहूरानी के रूप में ही मानी जाने लगीं - ‘बाबू की दुलहिन’... ‘बाबू की मेहरारू’!

अभया के होने के बाद पड़ोसी चाचा-चाची जी अपने सपरिवार दो तीन बार यहाँ, हमारे दिल्ली आवास में आ भी चुके थे, जो उसके पहले कभी नहीं हुआ! इस विचार से माँ की अब की प्रेग्नेंसी भी याद हो आई। अभया के समय उनकी गोद-भराई की रस्म गाँव में ही हुई थी, और बड़े हर्षोल्लास से हुई थी! कितना आनंद आया था हम सभी को! तो अगर सब कुछ ठीक हो, तो उनकी गोद-भराई की रस्म इस बार भी वहीं करी जा सकती है...! तो अगर माँ का स्वास्थ्य ठीक हो, और उनकी डॉक्टर उनको सफ़र पर जाने दे, तो ठीक विचार था।

बस लतिका, मिष्टी, आदित्य और आदर्श के एक्साम्स की बात थी!

मैं इन्ही सभी उधेड़बुन में फँसा हुआ था कि मुझे कमरे के द्वार पर आहट हुई - समझ गया कि मेरी लतिका आ गई है! बार बार लतिका लतिका कह कर बड़ा फॉर्मल सा लगने लगा था। सुन्दर सा नाम है, लेकिन फिर भी... उसके लिए कोई प्यार का नाम सोचना पड़ेगा!

दरवाज़ा खुला; हाँलाकि कमरे में अँधेरा था, लेकिन बाहर की रौशनी अंदर आ रही थी, और सीधे दरवाज़े पर पड़ रही थी। उस रौशनी में मुझे लतिका का मुस्कुराता हुए चेहरा दिखाई दिया। उसने मुलायम सूती कपड़े की, झीनी सी, सफ़ेद नाईटी पहनी हुई थी... और बहुत ही सुन्दर लग रही थी! मतलब, अपने वायदे पर खरी उतरी।

“अमर?”

“हम्म?”

“अभी भी नहीं सोए?”

“मैंने कहा था न... नींद नहीं आएगी मुझको!”

“हम्म्म... फिर क्या करें?”

“बाहर चलें? वाक पर?” न जाने किस प्रेरणा से मैंने कह दिया।

“क्या? वाक पर? अभी? इस वक़्त?”

“हाँ! अभी ढाई ही तो बजा है... और... ओह, ढाई बज गया है! ... हाँ देर रात तो है, लेकिन इतनी देर भी नहीं! ... लेकिन नींद नहीं आ रही है।”

मैंने खिड़की का परदा खोल कर बाहर झाँका, “... अरे, और बाहर झींसी भी पड़ रही है!”

“क्या?” लतिका ने भी बाहर झाँक कर देखा, “... अरे हाँ! वाओ! हाऊ रोमांटिक!”

“हा हा... फिर? एक रोमांटिक वाक पर चलें? ... बहुत दूर नहीं... ये अपनी स्ट्रीट के एन्ड पर सतबीर के ढाबे तक जा कर वापस आ जाएँगे?”

“ओके!”

“भूख भी लग गई है... न जाने क्यों!” मैंने कहा, “... तो मैगी और चाय खा लेंगे!”

“हा हा... आप भी न... कभी कभी बिलकुल बच्चे बन जाते हैं... अच्छा है!” उसने एक पल सोचा फिर कहा, “ओके! लेट्स गो! ... लेकिन बहुत आवाज़ नहीं करना है... बेटू सो रही है!”

“ठीक है...”

मैंने जल्दी से कपड़े पहने - टी-शर्ट और शॉर्ट्स; वहीं लतिका ने अपनी नाइटी पर मेरी ही एक शर्ट पहन ली, और हम दोनों बाहर निकल गए। मौसम ठंडा नहीं था - बादलों के कारण मौसम थोड़ा गर्म ही था। झींसी पड़ रही थी, इसलिए उसकी कोमल फ़ुहार में बड़ा अच्छा लग रहा था। हाथ में छतरी थी, लेकिन उसका इस्तेमाल कर के इस आनंद को क्यों बिगाड़ना? कोई सात मिनट की वाक थी! लतिका मेरी बाँह पकड़ कर, मुझसे सिमट कर चल रही थी - इसलिए मुझे तो बड़ा ही मज़ा आ रहा था। उसकी ये छोटी छोटी अदाओं से इतना आनंद मिल रहा था मुझे कि मैं क्या कहूँ!

सड़क पर यातायात अभी भी था, लेकिन बहुत कम। सबसे अच्छी बात थी कि कीचड़ नहीं था कहीं - नहीं तो इस पूरे रोमांटिक माहौल का मज़ा ख़राब हो जाता। ऐसे ही छोटी छोटी बातें करते हम सतबीर के ढाबे पहुँच गए।

सतबीर मेरी पहचान का था - आते जाते उससे दुआ-सलाम हो जाती थी। अक्सर ही अपनी कारों के छोटे मोटे काम मैं उससे ही करवाता - बड़े रिपेयर के लिए ही सर्विस सेंटर भेजता। दिन में उसकी फैमिली ऑटो-रिपेयर का काम करती, और शाम और रात को मैगी चाय का। चूँकि उसकी दुकान एक ख़ास जगह पर थी, इसलिए हमेशा ही उसकी दुकान पर लोगों का आना जाना लगा रहता। सच का उद्यमी आदमी था वो और उसका परिवार! हमको देखते ही उसने मुस्कुराते हुए और बड़ी ही गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया, और हमारे लिए चाय और मैगी बनाने लगा - बिना कुछ आर्डर दिए ही!

ढाबे के अंदर बैठ कर झींसी का दृश्य और भी रोमांटिक लग रहा था - सीधी रेखा में नीचे गिरती हुई बेहद छोटी बूँदें, पीली स्ट्रीट लाइट में बहुत सुन्दर लग रही थीं। लतिका ने भी इस बात का अनुमोदन किया! कैसी छोटी छोटी बातों से ये खुश हो जाती है! कमाल की लड़की है! ऐसी ही सरल हृदय लड़की इस घर की बहू बन सकती थी... और कोई नहीं! देखा जाए तो हमारी डेट अभी भी चल रही थी! क्या बात है!

हम ऐसे ही कुछ बातें कर रहे थे कि गर्मागरम मैगी और चाय आ गई।

“तुमको पता है? माँ ने आज तक मुझे मैगी नहीं खिलाई!” मैंने मैगी को काँटे में घुमा कर उठा कर उस पर फूँक मारते हुए लतिका को बताया, “... बचपन से आज तक कभी नहीं!”

“अच्छा किया न!”

“हाँ... अरे मैं शिकायत नहीं कर रहा हूँ! ... बस एक बात बता रहा हूँ। ... फिर, जब बड़ा हुआ, तो इन सब बातों की कोई परवाह ही नहीं रही!”

“आई नो!”

“फिर अम्मा के आने के बाद तो...”

“कब की बात है?”

“बहुत पहले की... सत्रह साल हो गए!”

“वाओ! हा हा!”

“बाप रे! बूढ़ा हो गया हूँ मैं!” मैंने हँसते हुए कहा।

“कोई बूढ़े वूढ़े नहीं हुए हो! ... बोऊ-दी अभी ख़ुद जवान हैं, और तुम अपने आप को बूढ़ा कह रहे हो!”

“हा हा! ... एक बात बताओ लतिका... तुमको अजीब तो नहीं लगता?”

“अजीब? किस बात पर?”

“हमारी फैमिली पर...”

“मैं भी इसी फैमिली का हिस्सा हूँ न!”

मैं मुस्कुराया।

“अच्छा, अमर, एक बात बताओ... जब तुम छोटे से थे, तब बारिश का मज़ा कैसे लेते थे?” उसने बात पलटते हुए पूछा।

“अरे! बारिश तो मुझको हमेशा से ही अच्छी लगती है।” एकदम से मेरे मन में बचपन की सुहानी यादें ताज़ा हो आईं, “माँ अलग अलग तरह के पकौड़े बनाती थीं; पराँठें भी! ... भुट्टे के सीजन में खूब भुट्टे भूनती थीं। लेकिन चाय मना थी मुझको... वो डरती थीं कि कहीं मेरी जीभ न जल जाए... इसलिए चाय केवल पापा... डैड को मिलती थी!”

लतिका मुझे पुरानी बातें इस तरह से याद करता देख कर बहुत खुश हुई। डैड की बात आ जाने से दिल को हल्का सा कचोटा, लेकिन दर्द नहीं हुआ। मैंने कहना जारी रखा,

“जब स्कूल में रेनी-डे होता था, तब सबसे अधिक मज़ा आता था... तब फ़ोन तो करते नहीं थे। तो रेनी-डे का पता स्कूल जा कर ही लगता था। वो पहले स्कूल के प्ले-ग्राउंड में खूब धमा-चौकड़ी मचती थी। पूरा शरीर मिट्टी मिट्टी हो जाता। ... फिर घर आ कर सब कपड़े उतार कर माँ की गोद में लेट कर उनका दूध पीता... बहुत मज़ा आता!”

“हम्म्म... तो तब से अब तक कुछ ख़ास अंतर नहीं आया!” लतिका मुस्कुराती हुई बोली, “बोऊ-दी अभी भी आपको चाय नहीं देतीं, और अभी भी दूध पिलाती हैं!”

मैं मुस्कुराया।

“आपको पता है, बोऊ-दी अम्मा से भी यही सब करने को कहतीं... उन्ही के कहने से अम्मा ने दादा और मुझे भी इतने सालों तक दुद्धू पिलाया है!” लतिका ने बड़े ख़ुशनुमा अंदाज़ में बताया, “... उन्ही का सारा सिस्टम अम्मा ने अपना लिया है अब तो!”

मैं मुस्कुराया - बात तो सच थी पूरी तरह!

“और तो और, अब अम्मा खुद बोऊ-दी को भी उसी सिस्टम से प्यार करती हैं। ” लतिका ने आनंदित होते हुए कहा, “... सच में, बोऊ-दी ने हम सबके लिए कितना कुछ किया है! बहुत अच्छा लगता है जब मैं उनको यूँ ख़ुश ख़ुश देखती हूँ! ... उनको जो सुख मिल रहे हैं, वो पूरी तरह से डिज़र्व करती हैं!”

“हाँ... पापा तो माँ से बहुत प्यार करते हैं... उनको बहुत खुश रखते हैं!”

“बोऊ-दी भी तो दादा से इतना प्यार करती हैं!” फिर वो अचानक ही शरारती सुर में बोली, “... इसीलिए दादा की पतंग की डोर बोऊ-दी के हाथ में रहती है!” बोल कर वो हँसने लगी।

“हा हा हा!” मैं भी हँसने लगा, “... लेकिन उनकी लव-स्टोरी के बारे में मुझे कुछ मालूम नहीं है! एक दो बार पूछा, तो वो बताते ही नहीं!”

“क्या जानना है आपको? मैं सब बता सकती हूँ!”

“सच में?”

“और नहीं तो क्या! ... घर में सबसे पहले दादा ने मुझे ही तो बताया था इस बारे में... मैं ही तो उनकी राज़दार हूँ!”

“अरे वाह! फिर बताओ न सब कुछ!”

“हम्म्म... ओके, तो सुनिए... दादा लव्ड हर सिन्स व्हेन व्ही केम टू लिव विद बाबूजी एंड बोऊ-दी...!”

“व्हाट! ... तब से? इतनी कम उम्र से?”

“उम्र का क्या है? ... मैं भी तो आपको...” कहते कहते लतिका रुक गई।

मैं समझ गया, लेकिन उस बात को मैंने खींचा नहीं।

फिर लतिका ने संछेप में, और सिलसिलेवार तरीके से पापा के आईआईटी से ग्रेजुएट हो कर घर आने से ले कर उनकी शादी तक की सभी महत्वपूर्ण बातें मुझको बताईं। उन दोनों के रोमांस और मिलन में उसकी क्या भूमिका थी, वो भी उसने बताई। मैं मंत्रमुग्ध और आनंदित हो कर सुनता रहा।

“... तो,” अपनी कहानी समाप्त करते हुए वो बोली, “प्रोपोज़ उनको दादा ने किया, लेकिन बदले में उनको बोऊ-दी से सच्चा प्यार मिला... हमेशा ही!”

“पापा भी उनको सच्चा प्यार करते हैं!”

“हाँ हाँ! मैंने कब मना किया।”

“मुझे तो बहुत अच्छा लगता है दोनों को यूँ खुश देख कर!”

“मुझे भी... अच्छा, और क्या करते थे?”

“मतलब?”

“अरे, बारिश से बात शुरू हुई थी न? ... और कैसे बारिश का मज़ा लेते थे?”

“अरे बहुत बदमाशी भी करता था! घर की छत सीमेंटेड थी, और बारिश होने पर वो फिसलती थी। तो मैं छत पर जा कर, कपड़े उतार कर, अपने पुट्ठों पर साबुन लगा कर छत पर फिसलता था...”

“क्या? हा हा हा हा!”

“हाँ... रेसिंग कहता था मैं इस खेल को...”

“हा हा हा... और बोऊ-दी कुछ नहीं कहती थीं?”

“मेरी खूब कान उमेठी करती थीं वो!”

“नहीं... ये बात मैं नहीं मान सकती!” लतिका हँसती हुई बोली, “... बिल्कुल भी नहीं! मेरी बोऊ-दी न तो किसी को डाँट सकती हैं, और न ही किसी को मार सकती हैं।”

“हा हा! हाँ... वो ऐसा कुछ नहीं करती थीं। ... उन्होंने मुझसे कहा कि अगर बदमाशी करते समय मुझे चोट लगी, तो मुझे दुद्धू नहीं मिलेगा! इतनी धमकी काफ़ी थी मुझे लाइन पर लाने के लिए!”

“हा हा हा! आई ऍम श्योर!” लतिका हँसती हुई बोली, “बोऊ-दी से कितना कुछ सीखने को मिल सकता है! आई ऍम फ़ैसिनेटेड! उनकी तरह बन जाऊँ न, तो मज़ा आ जाए!”

मैं मुस्कुराया! सच में, उनका बेटा होना मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है।

“ओनेस्टली जानू...” उसने मुझे आज पहली बार मुझे ‘प्यार के नाम’ से बुलाया, “मैं बोऊ-दी के जैसी बनना चाहती हूँ! ... हम... मेरी फैमिली में आज जो कुछ भी है वो आपके, बोऊ-दी, और बाबूजी के कारण ही है। ... और आपकी बीवी के रूप में मैं चाहती हूँ कि आपको खूब प्यार दे सकूं, जिसके आप सब हक़दार हैं...”

“लतिका, मैं एक बात कहूँ?”

“अरे, आप ऐसे क्यों पूछ रहे हैं? आपको कुछ कहने के लिए कुछ पूछने की ज़रुरत नहीं! ... कहिये न!”

“तुम मुझसे शादी किसी... किसी ओब्लिगेशन के कारण तो नहीं करना चाहती हो न?”

मेरी बात पर लतिका के चेहरे के भाव अजीब से हो गए - पीड़ा और निराशा वाले! लेकिन उसने एक क्षण में ही उन भावों को जैसे हटा दिया।

“आप ऐसे क्यों कह रहे हैं, अमर? ... हाँ, यह सही है कि आपके और बाबूजी और बोऊ-दी के हम पर ढेरों एहसान हैं... लेकिन हम उन एहसानों का बदला कैसे चुका सकते हैं?”

“लतिका... प्लीज मेरी बात का बुरा मत मानना! ... हमने तुम्हारे लिए कुछ नहीं किया! उसका तो कई कई गुणा तो तुमने, अम्मा ने और पापा ने किया है!”

“फिर वही बात! ... अमर, मैं आपको वही तो समझाने की कोशिश कर रही हूँ? कौन से एहसान? जब ऋण चुकाया ही नहीं जा सकता, तो उसकी बात क्या करें? किसी माँ के प्यार का ऋण कौन चुका सकता है? कैसे चुका सकता है? ओब्लिगेशन की बात ही कहाँ आती है?” लतिका ने मेरा हाथ थाम लिया, “दादा ने बोऊ-दी को प्रोपोज़ किया क्योंकि उनको उनसे प्यार था... एक बहुत ही लम्बे समय से! ... मैंने आपको प्रोपोज़ किया क्योंकि मुझे भी आपसे प्यार है... लम्बे समय से! जब मैंने वो प्यार जाना, महसूस किया... तब प्रोपोज़ किया। ... मैं किसी के कहने पर आपसे शादी नहीं करना चाहती! आप मुझे सबसे अच्छे लगे इसलिए मैं आपसे शादी करना चाहती हूँ! ... मैं चाहती हूँ कि मेरा इस घर परिवार से संग कभी न छूटे! मैं चाहती हूँ कि इस परिवार का वंश आगे बढ़ाने में मैं पार्टिसिपेट करूँ... और आप भी... आप भी मुझसे शादी करने के लिए तभी ‘हाँ’ करिएगा, जब आपको मुझसे प्यार हो!”

“प्यार है लतिका... प्यार है!” मेरी आँखों में आँसू, मेरी बातों की सच्चाई थे, “बहुत प्यार है! ... इसीलिए मैंने यह बेवकूफ़ी भरा सवाल पूछा... क्योंकि तुम्हारे बिना अपनी ज़िन्दगी सोच नहीं सकता!”

“सोचियेगा भी नहीं,” वो संजीदगी से मुस्कुराई, “मेरे बिना अब आपको नहीं रहना पड़ेगा!”

“थैंक यू लतिका!”

वो मुस्कुराई, “उल्लू हो तुम... लेकिन मेरे हो!”

“आई लव यू!”

“और इसीलिए मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ!”

मैंने उसके हाथ को प्यार और आभार से दबाया, और एक गहरी साँस भरी।

“मेरा मन होता है न,” मैंने कहा, “कि पापा, माँ, बच्चे... सब यहीं आ कर रहें! ... इतना बड़ा घर है यहाँ! और हम बस तीन लोग! ... और दो साल बाद शायद मिष्टी भी कहीं बाहर ही चली जाए पढ़ने...”

“न भी जाए, तो भी बहुत बड़ा घर है ये! ... सच में, खूब मज़ा आएगा!” लतिका खुश होते हुए बोली, “वैसे दादा ढूंढ तो रहे हैं जॉब यहाँ! कुछ इंटरव्यूज तो हुए भी हैं!”

“ओह?”

“हाँ... दो दिन पहले बात किया था, वो बता रहे थे।”

“बढ़िया!”

“आपका काम कैसे चल रहा है?”

मैंने बड़े विस्तार से काम के बारे में बताया। हम लोग कुछ नई सर्विस शुरू करने वाले थे, जिससे अभी के कस्टमर्स को बहुत लाभ मिलने वाला था। कस्टमर टर्नओवर कम होने की सम्भावना है उससे। उस बात पर लतिका ने भी अपने कुछ दृष्टिकोण रखे। वो जो कह रही थी, बहुत ही बढ़िया बात थी। मुझे अंदाज़ा नहीं था कि उसमें बिज़नेस को ले कर इतनी पैनी समझ हो सकती है। बुद्धिमान तो वो थी ही, लेकिन बिज़नेस की समझ उसमें अलग ही दिखी। मुझसे और पापा, दोनों से अलग। अम्मा और माँ कुछ कहते ही नहीं थे, इसलिए उनकी बात या समझ का मुझे ठीक पता नहीं था। मैंने थोड़े और प्रश्न उससे पूछे, तो उसने और भी विस्तार में अपने विचार बताए; कई विचार तो ऐसे लगे, जो तुरंत ही लागू किए जा सकते थे। मैंने मन ही मन सोचा, कि एक बार वो ग्रेजुएट हो जाए और अगर उसका एथलेटिक कैरियर न चला, तो उसको कंपनी में काम करने के लिए ज़रूर कहूँगा।

मैंने सतबीर से समय पूछा। पता चला कि चार बज रहे थे। कुछ ही देर में मिष्टी भी जाग जाने वाली थी। लेकिन चूँकि आज शनिवार था, तो मैं और लतिका आराम से उठ सकते थे।

बिल अदा कर के हम दोनों पहले के ही जैसे बातें करते हुए घर आ गए। लतिका ने सबसे पहले मिष्टी को चेक किया। वो पूरे बिस्तर पर फैल कर सो रही थी। उसको यूँ देख कर बहुत हँसी आई - मेरी बेटी बड़ी हो रही थी, और उस पर मुझे बहुत गर्व था। मन में कोई शंका शेष नहीं रह गई थी - बहुत संभव था कि लतिका मेरे लिए सबसे ‘बेस्ट’ पत्नी साबित हो! अगर ईश्वर ने उसको चुना है, तो कुछ तो सोचा ही होगा। यह एक बढ़िया विचार था!

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