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अदभुत...अचिन्त्य - Update # 21
उत्तेजना भरी घबराहट के कारण मेरा गला सूख रहा था। एक किशोरवय लड़के जैसी हरकतें कर रहा था मैं अब! आत्मनियंत्रण इतना कम होगा, मैंने यह सोचा भी न था! और वो भी लतिका की उपस्थिति में! मैंने तीन चार बात गहरी साँसें भरीं। सोचा बात बदलने से शायद अपने ऊपर थोड़ा नियंत्रण बने।
“अच्छा खाना था न?” मैंने कहा... लेकिन मेरी आवाज़ अभी भी भरभराई हुई थी।
“हम्म...?” लतिका भी जैसे अपने विचारों से बाहर निकली हो, “हाँ, बहुत अच्छा था!” लतिका ने एक बार मेरी तरफ़ देखा, और फिर से खिड़की से माथा टिका कर बाहर देखने लगी।
“बहुत अच्छा था...” मैंने भी लतिका की बात दोहराई।
लेकिन फिर कहने को कुछ सूझा ही नहीं! ऐसा लगा कि अचानक से ही जैसे बातें करने को ख़तम हो गई हों! ऐसा कैसे?
हमने काफी देर तक कुछ नहीं कहा।
जैसे जैसे घर पास आता जा रहा था, मन ही मन मुझे लग रहा था कि हमारी डेट की योजना थोड़ी बेहतर होनी चाहिए थी। केवल खाना खा कर वापस आ गए! ये भी कोई डेट हुई भला? रात मेरी आशा से कहीं जल्दी ख़तम हो रही थी। मैंने मन ही मन खुद को कोसा। जब हम घर से लगभग एक किलोमीटर दूर थे तो लतिका अचानक ही बोल पड़ी,
“मैरी मी...”
“व... व्हाट?”
“आई सेड, मैरी मी, अमर!”
“बट... हम... शादी करने वाले ही हैं...”
“आई नो... इट्स जस्ट... ओह गॉड!” वो भी थोड़ा हताश लग रही थी, “... मुझे... मुझे वो सब नहीं... करना चाहिए था! ... यू नो... जो सब मैंने रेस्त्रां में किया! ... आई शुड नॉट हैव बीन अ टीज़...”
शायद उसको भी मेरी दशा दिख गई थी, और अब स्वयं को उसके लिए दोषी समझ रही थी। ... और शायद बुरा मान रही थी कि अपनी प्रतिज्ञा के कारण वो मेरी ‘उस’ दशा का निवारण नहीं कर पा रही थी।
“लतिका...”
“अमर... आई प्रॉमिस यू...” उसने बड़ी कोमलता से कहा, “आई प्रॉमिस यू... आई विल बी द बेस्ट वाइफ फॉर यू... द बेस्ट लवर... द बेस्ट सपोर्ट फॉर यू... यू विल नेवर रिग्रेट मैरिंग मी!”
“लतिका...”
“मैं... अ... तुमको... तुमको ढेर सारी खुशियाँ और ढेर सारा प्यार दूँगी...”
“ओह लतिका...”
“अमर... मैं... मैं...”
न जाने वो क्यों इतनी सफ़ाई दे रही थी मुझे। ये तो मैं खुद भी जानता था कि लतिका एक बेहतरीन लड़की है, और मेरे जैसे आदमी की ज़िन्दगी में उसकी आमद किसी दैवीय प्रसाद से कम नहीं है। और जब मेरे बड़ों ने लतिका को मेरे लायक समझा है, तो कुछ सोच कर ही समझा होगा। फिर ऐसे में उसको कुछ कहने की ज़रुरत नहीं थी।
“लतिका, तुमको कुछ भी कहने की ज़रुरत नहीं है! ... आई नो आल दिस... आई बिलीव आल दिस... एवरीथिंग दैट यू सेड!” मैंने कहा, और फिर एक गहरी साँस ले कर आगे बोला, “... लेकिन... लेकिन... मुझे डर लग रहा है, लतिका...”
मेरी बात पर उसने मुझको अजीब सी नज़र से देखा।
‘कहीं उसका दिल तो नहीं टूट गया?’
“डर...? ... मुझसे? ... हमसे?”
“नहीं…” मैंने तुरंत अपनी बात का स्पष्टीकरण दिया, “नहीं… हमारे लिए!”
“अमर?” उसने चिंताजनक तरीके से पूछा, “क्यों? ... किस बात का डर?”
मैं हिचकिचाया, और गहरी साँस ले कर बोला, “गैबी नहीं रही... डेवी नहीं रही...” मेरी आवाज़ बैठ गई, “... मैं नहीं चाहता कि तुमको कुछ हो जाए!”
“मैं नहीं मरूँगी...” लतिका ने बड़ी सरलता, लेकिन बड़ी शिष्टता से कहा, जिससे मुझको बुरा न लगे, “... आई मीन... जाना तो सभी को है... लेकिन... इतनी जल्दी नहीं जाऊँगी।” वो मुस्कुराई, “... डोंट यू वरी!”
घर काफी समीप आ गया।
लतिका ने कहा, “आई ऍम हैप्पी दैट यू थिंक ऑफ़ माय लॉन्ग लाइफ...”
मैंने एक फ़ीकी मुस्कान दी। मन में डर तो अभी भी था। मैं कुछ बोला नहीं।
गाड़ी अपने ड्राइव-वे में लगाते समय वो बोली, “अमर... क्या हम दोनों साथ में बैठ कर बात कर सकते हैं... कुछ देर?”
लतिका की मैच्योरिटी अविश्वसनीय स्तर पर थी। गैबी, डेवी, और डैड को खोने के कारण, मैं भावनात्मक रूप से बहुत डर गया था। हाँलाकि, माँ और पापा की शादी के बाद बहुत हद तक वो डर समाप्त हो गया था, लेकिन अब लतिका के मेरे जीवन में आने के बाद वो डर वापस आ गया था। कहीं वो भी चली गई, तो? उसको भी खो देने का डर...! उसको कुछ हो गया तो, मैं तो रह नहीं सकूँगा इस धरती पर! मुझे भी सहारे की जरूरत थी। कोई कब तक मज़बूत बनने का दिखावा करता रहे?
मेरी आवाज़ भर्रा गई, “आई वुड लव दैट वेरी मच, लतिका!”
लतिका ने धीरे से अपना हाथ मेरे हाथ पर रखा और उसे दबाया... बिना कुछ कहे उसने मुझे आश्वस्त कर दिया कि मैं चिंता न करूँ, और यह कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। और यह कि मेरा डर बेबुनियाद और मूर्खतापूर्ण है।
“चुपके से...” उसने दबी आवाज़ में और अपने होंठों पर उंगली रख कर मुझको सावधान किया, “बेटू सो गई होगी!”
उसको मिष्टी को यूँ ‘बेटू’ कह कर पुकारना मुझको अच्छा लगा।
घर का दरवाज़ा लतिका ने खोला और यथासंभव चुपके से बंद भी कर दिया। हमने दबे पाँव सीढ़ियाँ चढ़ीं। लेकिन हर कदम के साथ मेरे दिल की टीस बढ़ रही थी। लतिका को भी खो देने का डर मुझको बड़ी ज़ोर से सता रहा था। घर के अंदर आने तक हमने एक दूसरे से एक शब्द भी नहीं कहा। मैंने एक नज़र लतिका पर डाली और अपने कमरे की तरफ़ चल दिया। लतिका भी मेरे ही पीछे मेरे कमरे में आ गई। उसने मेरे पीछे दरवाज़ा भेड़ लिया... इस घर में हममें से किसी ने भी आज तक अपने दरवाज़ों को लॉक नहीं किया... इसकी कोई ज़रूरत ही नहीं थी।
कमरे में अंदर आ कर मैंने महसूस किया कि मुझको सच में भावनात्मक सहारे की बहुत आवश्यकता थी। पिछले कई वर्षों में घर में सभी ने मुझको बहुत प्यार दिया था और बहुत सहारा दिया था। लेकिन, आज मुझे जिस बात का डर साल रहा था, उसका निवारण केवल लतिका के ही पास था। और लतिका ने इस बात को भाँप लिया।
उसने मेरे चेहरे को अपनी हथेलियों में ले कर मुझको मेरे माथे पर चूम लिया... और उसी क्षण मेरी पीड़ा का बाँध टूट गया। मैं फ़फ़क फ़फ़क कर रोने लगा। मैं स्वयं भी आश्चर्यचकित था कि मैं अचानक ही ये क्या करने लगा! मेरे दिल में अभी तक जो दिल का दर्द कहीं दबा हुआ था, अब वो बे-रोक-टोक निकल रहा था। मुझे लतिका ने अपने गले से लगा लिया, कि मैं अपने हिस्से का रोना रो लूँ, जिससे मेरे मन का दर्द निकल जाए। उसने मुझे तब तक रोने दिया, जब तक मेरा मन शांत नहीं हो गया। उसने मुझे बिना-वजह का दिलासा नहीं दिया... रोने से मना नहीं किया, बल्कि मुझे रोने दिया। जब पीड़ा आँसू बन कर निकलते हैं, तो उसकी टीस कम हो जाती है। उसने एक क्षण के लिए भी मुझे अपने आलिंगन से नहीं मुक्त किया। मैं उसको ज़ोर से पकड़ कर देर तक रोता रहा।
“आई ऍम सॉरी लतिका,” मैंने रोते-रोते कई बार बीच मीच में उससे माफ़ी माँगी, “आई ऍम सॉरी...”
“श्श…” लतिका ने मुझे कुछ न बोलने का संकेत किया, और कहा, “किसी भी बात की चिंता मत करो, अमर... मैं हूँ तुम्हारे साथ! अब तुम अकेले नहीं हो... डोंट वरी!”
जब मुझे रोने धोने से होश आया कि मैं क्या कर रहा हूँ... तो मुझे एहसास हुआ कि मेरा चेहरा उसके स्तनों के बीच दबा हुआ था। रोते रोते मेरी नाक जाम हो गई थी, लेकिन फिर भी मुझको गुलाब की भीनी भीनी महक महसूस हो रही थी। यह लतिका का फ्लोरल परफ्यूम था। मुझे इस बात का भी एहसास हुआ कि लतिका ने मेरे लिए कुछ ऐसा पोज़ बना लिया था, जो मेरे लिए बड़ा ही आरामदायक था। मैं उसके सीने में थोड़ा और घुस गया। अब मुझे उसके दिल की धड़कन और भी अच्छी तरह से सुनाई देने लगी! परफ्यूम की भीनी महक के बीच में ऐसा आरामदायक आलिंगन! आह! अपार दुःख में ऐसा सुखद एहसास।
मैंने लतिका को थाम रखा था। ऐसे ही एक क्षण मेरा हाथ लतिका की नंगी बाँह पर पड़ा। वो मुझको थोड़ा स्थान देने के लिए थोड़ा हिली, तो मेरा हाथ उसकी बाँह से सरक कर उसके स्तन के बगल पर फिसल गया। उस समय मुझे एहसास हुआ कि मेरा हाथ लतिका के एक स्तन के किनारे को छू रहा था। उस अहसास से मुझे अपने शरीर में बिजली का झटका सा महसूस हुआ। मैंने तुरंत ही से अपना हाथ वहाँ से हटा दिया। लतिका भी आलिंगन से अलग हो गई और मेरी तरफ़ अजीब ढंग से देखने लगी!
मुझे लगा कि जैसे वो शिकायत कर रही हो, कि मैंने वहाँ अपना हाथ क्यों रखा! लेकिन उसकी शिकायत थोड़ी अलग थी। आगे उसने जो किया, वो मेरे लिए आशातीत था!
उसने मेरे हाथ को पकड़ कर और सीधे अपने स्तन पर रख दिया!
‘बाप रे!’
यह कहना कि उसके गरमागरम और मुलायम, लेकिन दृढ़ स्तन के अहसास ने मेरी भावनाओं को झकझोर कर रख दिया, कोई अतिशयोक्ति न होगी! इस अद्भुत एहसास से इतनी सारी यादें जुड़ीं हुई थीं कि क्या कहें!
मेरा लिंग फिर से सख्त होने लगा, और इसके कारण मैं थोड़ा व्यथित भी हो गया। ऐसे बार बार लिंग का स्तम्भन और शिथिलीकरण होना कोई अच्छी बात नहीं है। उधर लतिका ने मुझको अपने से दूर करने के लिए कुछ भी नहीं किया। न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरा हाथ अब मेरा नहीं रहा। लग रहा था कि उसमें अपने आप ही एक तरह की चेतना आ गई हो - अपने आप से ही वो लतिका के दृढ़ स्तन के टीले की टोह लेने लगा। मेरी उँगलियाँ उसकी ड्रेस के कपड़े पर धीरे-धीरे, कोमलता से घूम रही थीं। मुझे होश तब आया जब मैंने अपने हाथ में उसके पेन्डेन्ट को महसूस किया!
“आई ऍम सॉरी,” मैंने कह कर अपना हाथ पीछे खींचा।
“नो... नो...” लतिका बोली, और उसने मेरा हाथ फिर से अपने स्तन पर रख दिया।
मेरे लिए यह बहुत ही आरामदायक एहसास था! अब तो मुझे लतिका के दिल की धड़कन भी महसूस होने लगी।
“अमर,” लतिका कुछ देर बाद धीरे से फुसफुसाई, “मैं चाहती थी कि तुम मुझे... तुम मुझे... बिना मेरे कपड़ों के...” उसने झिझकते हुए कहा, “... तब देखो... जब मैं तुम्हारी दुल्हन बन जाऊँ...”
मेंने सर हिलाया।
लतिका मुस्कुराई और उसने मेरे होठों को चूम लिया।
मेरा लिंग अब पत्थर की तरह सख्त हो गया था, और जीन्स के अंदर वो बुरी तरह कसमसा रहा था। बड़ी मुसीबत थी। लेकिन अचानक ही मुझे लगा कि मेरे लिंग पर से दबाव कम हो गया है! मैंने नीचे देखा, तो पाया कि लतिका ने मेरी जीन्स का ज़िप खोल दिया है...! लतिका पहले भी यही काम कर चुकी थी! और उस समय भी मुझको एक अभूतपूर्व आनंद मिला था। मैं उसको रोकने या न रोकने की उधेड़बुन में पड़ा हुआ था कि उतने में लतिका ने मेरे लिंग को मेरी चड्ढी से मुक्त कर दिया।
जैसे ही मेरा लिंग बाहर आया, मैंने राहत की साँस भरी! मैंने लतिका के स्तनों को प्यार से सहलाया, तो उधर उसने मेरे लिंग को! बड़े आराम से, बहुत धीरे से! मेरा लिंग पूरी तरह से स्तंभित था। लतिका की उँगलियाँ मेरे लिंग की लम्बाई पर फिसल रही थीं, और कुछ ही देर में लिंग की सुराख़ से प्री-कम की कुछ बूंदें बाहर निकलने लगीं।
“अमर?”
“हम्म उम्?”
“मैं सोच रही थी... कि आज... आज यू कैन सी माय ब्रेस्ट्स?”
लतिका को नग्न देखने की चाहत तो एक लम्बे समय से थी। लेकिन,
“ल...लतिका, इट कैन बी डेंजरस!” मैंने कहा।
लतिका ने झिझकते हुए कहा, “आई नो... बट विल यू लाइक इट?”
उसका हाथ अभी भी मेरे लिंग पर फिसल रहा था। ये भी भला कोई पूछने वाली बात थी!
मैंने नर्वस होते हुए, तेजी से ‘हाँ’ में सर हिलाया, “ह हाँ... हाँ! आई वुड लव इट! ...” फिर अपने लिंग पर उसका हाथ महसूस कर के, “दिस इस लवली, लतिका! ओह... हनी!”
लतिका, जो अभी भी मेरे साथ आलिंगन में बँधी हुई, मेरे लिंग को सहला रही थी, बुदबुदाती हुई बोली, “क्या सचमुच? ... तुमको अच्छा लग रहा है न? मैं ठीक से कर रही हूँ न?”
“ओह... बहुत बढ़िया, लतिका,” मेरे मैंने कराहना जारी रखा, “बस... बस... ओओओह्ह्ह्हह्ह...!”
अचानक ही मेरे लिंग से एक दो तीन और उसके बाद चौथे बलवान और बड़े झटके के साथ गाढ़ा वीर्य मेरे अंदर से निकला, और लतिका के हाथ के ऊपर बहने लगा। पक्की बात है कि कुछ उसके ऊपर भी गिरा होगा। जब तक स्खलन पूरी तरह से बंद नहीं हो गया, तब तक वो मेरे लिंग को सहलाती रही। हमारी साँसें अस्थिर थीं, और दिलों की धड़कनें तेज़! कमरे में इतना सन्नाटा था कि हम अपने दिल की धड़कनों को सुन सकते थे!
“अच्छा लगा?” उसने अंततः पूछा।
“बहुत...!”
वो मुस्कुराई, “ये सब उतार दूँ?”
मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
कुछ ही देर में मैं पूरी तरह से नग्न हो, लतिका के सामने था। माँ, पापा और अम्मा की बातें याद आ गईं कि अपनी बीवी के सामने नग्न होने में क्या शर्म? लेकिन बड़ी बात यह थी कि लतिका बड़े अधिकार भाव से मेरे साथ यह सब करती थी। एक तरह से उसके सामने नग्न हो कर अच्छा भी लगा। मैंने देखा कि उसकी ड्रेस पर मेरे स्खलन के कारण बड़े बड़े तीन गीले धब्बे बन गए हैं। उसके अंदर भी कामुक विचार तो आ ही गए थे। लेकिन फिर भी वो इतनी खूबसूरत, इतनी मासूम और इतनी चूमनीय लग रही थी, कि क्या कहें! इसलिए, जैसे ही मैं अपने कपड़ों से मुक्त हुआ, मैंने आगे बढ़ कर उसके मीठे से होंठों को चूम लिया।
वो मुस्कुराई।
“लतिका…” मैंने कहना शुरू किया।
“अमर…” ठीक उसी समय लतिका भी बोली।
हम दोनों मुस्कुराये!
“पहले तुम बोलो,” उसने हँसते हुए कहा।
मैंनें एक गहरी साँस ली।
“लतिका, आई… अह… तुम... तुम रहती हो तो कण्ट्रोल ही नहीं हो पाता! ... आई ऍम सॉरी?”
लतिका हँसी, “अरे! सॉरी क्यों? ... और कण्ट्रोल करने को किसने कहा? ... जब हम दोनों शादी कर लेंगे, तब तुमको जितनी बार भी मन करे, मुझसे प्यार करना...! नहीं तो मेरा क्या काम?” फिर वो मुस्कुरा कर बोली, “तुम मेरे... तुम मेरे हस्बैंड हो... मेरा प्यार हो…” उसने मेरा चेहरा बड़ी कोमलता से सहलाया, “अभी जो कुछ हुआ… आज जो कुछ हुआ, वो मेरा प्यार है... तुमको थोड़ा आराम देने के लिए, जो सही लगा, मैंने वही किया... आल आई नो इस दैट आई लव यू!”
लतिका की बातों, उसकी हरकतों में इतना प्यार, इतनी ईमानदारी और इतना विश्वास था कि मुझे भी जवाब देना ही पड़ा,
“मैं भी तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, लतिका।”
मैं अब जा कर लतिका को ले कर आश्वस्त हुआ - अब मुझे समझ में आ गया था कि वो मेरे लिए बिल्कुल सही जीवनसाथी है! मैं समझ गया था कि भगवान ने मुझे खुश होने और प्यार पाने का ‘एक और’ मौका दे दिया है! और इस मौके का आनंद मैं बिना किसी डर, बिना किसी पूर्वाग्रह के उठाना चाहता था। मुझे फिर से खुश होने का मौका मिल गया था, और मैं इसे अपने हाथों से जाने नहीं देना चाहता था।
“मैरी मी?” मैंने उससे पूछा… पूरी सच्चाई और ईमानदारी से।
लतिका एक चौड़ी सी मुस्कान में मुस्कुराई, और ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए मुझको अपने आलिंगन में ले ली।
“तुमको सुला दूँ, मेरे अमर?” अंत में उसी ने कहा।
मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
एक और बात थी - उसके सामने नग्न होने में मुझको झिझक या शर्म नहीं थी। बल्कि बड़ा ही अद्भुत और आरामदायक एहसास था। मैं बिस्तर पर लेट गया और वो भी मेरे बगल आ कर लेट गई। मेरा लिंग उत्तेजनावश फिर से स्तंभित होने लगा। लतिका ने मेरी ओर प्रशंसात्मक दृष्टि से देखा, और घबराकर अपने होंठ काटने लगी। एक बेहद सेक्सी अदा!
मैं लतिका की कमनीय अदा पर मुस्कराया और मैंने फिर से उसको चूम लिया! एक प्रेमी वाला चुम्बन!
“क्या हुआ?” मैंने पूछा।
“बदमाश छुन्नू है तुम्हारा... इतनी जल्दी जल्दी... और वो भी अपनी बुआ के लिए...” लतिका ने मुझको छेड़ा।
“मेरी बुआ है ही इतनी सेक्सी...” मैंने भी उसको चूमा, और फिर थोड़ा ठहर कर मैंने कहा, “लतिका, तुमने मेरी लाइफ फिर से सँवार दी है... आई ऍम सो लकी टू फाइंड योर लव!”
मैंने उसके कंधे को सहलाया, और उसकी ड्रेस का कंधे वाला हिस्सा वहाँ से हट गया। उत्तेजना मेरे अंदर बड़ी तेजी से रूप ले रही थी। सच में - वो रहती है, तो कण्ट्रोल ही नहीं हो पाता! मैंने उसके सीने पर चूम लिया... उत्तर में लतिका के गले से एक कामुक कराह निकल गई। मैंने देखा कि उसकी आँखें बंद हो गईं थीं। अब और नहीं रुक सकता था मैं।
मैंने बड़ी कोमलता से उसकी ड्रेस का पहला बटन खोल दिया। लतिका को पता था कि क्या हो रहा है।
“अ…अमर... मैं तुम्हें रोक नहीं सकती... रोक नहीं पाऊँगी...” वो फुसफुसाती हुई बोली, जैसे कि वो मुझे अनुमति दे रही हो, “उतार दो... ले… लेकिन पू... पूरा नहीं... सब नहीं... ओके?”
मैंने समझते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।
लतिका की ड्रेस को खोलना बड़ा आसान था। सारे बटन सामने की ओर ही लगे हुए थे, लिहाज़ा, कुछ ही देर में लतिका की ड्रेस उसके शरीर से अलग हो गई। चूँकि उसने स्वयं को पूरा नग्न न करने के लिए पहले ही मेरी रज़ामंदी ले ली थी, इसलिए मैंने उसकी चड्ढी नहीं उतारी। जितनी कृपा मिल रही थी, उसका सम्मान करना चाहिए और उसका आनंद उठाना चाहिए। आधी छोड़ पूरी को धावे, आधी मिले न पूरी पावे! इसलिए मैंने लालच नहीं किया।
लतिका ने ब्रा नहीं पहनी हुई थी। और अपने अनावृत स्तनों के प्रदर्शन में वो कैसी कैसी अनुपम सुंदरी लग रही थी! एक नव-युवा स्त्री का शरीर वैसे ही बहुत सुन्दर लगता है, लेकिन लतिका में नवयुवती होने के साथ साथ एक एथलीट वाला कसाव और एक दृढ़ता भी थी। जैसा कि आप सब जानते हैं कि लतिका का रंग साँवला था... तो उसी रंग के अनुकूल उसके चूचक भी साँवले थे! ग़ज़ब का सौंदर्य! मैंने उसके स्तनों को सहलाया - उत्तेजित तो लतिका भी थी! इसलिए उसके चूचक अत्यंत उत्तेजनावश खड़े हो गए थे। उसके दाहिने स्तन पर, उसके चूचक से बस थोड़ा ही ऊपर एक छोटा सा तिल था। छोटा सा, और बिल्कुल गोल तिल! आज मैंने पहली बार उसको नोटिस किया! अद्भुत सा वस्तु था वो तिल!
मैंने उसके तिल तो सहलाया। वो सिहर गई। उसके स्तनों पर रौंगटे खड़े हो गए, ख़ास कर उसके एरोला पर! और उसके चूचक उत्तेजना में कोई एक इंच तक लम्बे हो गए थे... उनको देख कर ऐसा लगा कि उत्तेजना के अतिरेक से वो कहीं फूट ही न जाए!
“लतिका?” मैंने अन्यमनस्क सी अवस्था में कहा।
“हम्म?”
“काश कि मैं यही तिल होता...”
“हा हा... ये तिल?”
मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया - मेरा सारा ध्यान अभी भी उसी तिल पर था।
“क्यों?”
“तुम्हारे पास... तुम्हारे साथ रहने की इससे बेहतर कोई और जगह हो नहीं सकती...”
“हा हा...”
“अगर मैं ये तिल होता न, तो तुमको कोई छोटी सी ब्रा पहननी पड़ती... नहीं तो मेरा दम घुट जाता...”
“आई लव यू...”
“आई लव यू!” मैंने कहा, “सच में... आई कैन लिव राइट देयर!”
मैंने कहा और लतिका के होंठों से अपने होंठ मिला बैठा। लतिका के साथ इतनी सी ही अंतरंगता से समझ आ गया कि मुझे उसके साथ वैवाहिक जीवन का गज़ब का आनंद मिलेगा! मैंने मन ही मन घर में सभी का शुक्रिया अदा किया, जिन्होंने मेरे साथ लतिका का संग तय किया। कभी कभी अरेंज्ड मैरिज भी आनंददायक होती है!
कुछ देर उसको चूमने के बाद मेरा प्यासा मुँह उसके एक चूचक से जा लगा। जैसे ही मैंने चूसना शुरू किया, लतिका काँप उठी और उसके मुँह से एक मीठी लेकिन दर्द भरी कराह निकली! मन में तो हुआ कि मैं चूषण करना रोक दूँ, लेकिन ये एक ऐसा काम है, जिसको बीच में नहीं छोड़ना चाहिए। उससे न तो करने वाला संतुष्ट होता है, और न ही वो जिस पर यह किया जा रहा होता है। मुझको पता था कि इसमें हम दोनों की ही रज़ामंदी थी, लिहाज़ा आनंद भी दोनों का ही था!
मैं उसके स्पंजी, ठोस चूचक को अपने मुँह में धड़कता हुआ महसूस कर पा रहा था। मेरे मन में यह विचार आया कि उसके चूचक चबा लिया जाए! आज नहीं - लेकिन ये करूँगा ज़रूर! अभी करने के लिए एक और काम था - देख नहीं सकता, लेकिन प्यार तो कर ही सकता हूँ न? मैंने अपना हाथ नीचे बढ़ाया, और उसकी पैंटी के अंदर उसकी योनि से जा लगा और उसके आकार प्रकार का जायज़ा लेने लगा। जैसा कि मैंने अंदाज़ा लगाया था, लतिका की योनि के होंठ छोटे से थे - गैबी की योनि के होंठों से भी छोटे और पतले! उसकी योनि के ठीक ऊपर का हिस्सा, मॉन प्यूबिस हल्का सा उभरा हुआ, गठा हुआ और उत्तेजित करने वाला था। वहाँ बाल नहीं थे - शायद वैक्सिंग कराई हुई थी उसने! माँ और अम्मा ने अवश्य ही उसको इस बारे में बताया होगा। लेकिन उसकी श्रोणि बहुत ही चिकनी थी - मतलब बहुत लम्बे समय से वो वैक्सिंग कराती आ रही थी।
‘हम्म्म... इंटरेस्टिंग!’
मैंने उसकी गुलाब की पंखुड़ी को ढूंढ कर बाहर निकाला - वो भी पतली और कोमल सी लगी! उसका योनिरस अब निर्बाध बह रहा था और इस बेहद अंतरंग कार्य को और भी अनूठा बना रहा था। लतिका के लिए यह अनुभव अभूतपूर्व तो था ही, और आसान तो कत्तई नहीं था! इतना तो कह ही सकता था कि आज उसके साथ जो हो रहा था, वो उसके साथ कभी नहीं हुआ था। अपरिचित उत्तेजना के कारण उसका मुँह खुला था, उसके नथुने फड़क रहे थे, और वो ज़ोर ज़ोर से साँस ले रही थी।
मैंने अपनी तर्जनी से उसके भगशिश्न का पता लगाया - वो चिरौंजी के दाने जितनी बड़ी लगी। उसको छूने की देर थी कि लतिका आँहें भरते हुए मुझमें सिमट गई। जिस तरह से उसका शरीर थरथरा रहा था, मैं समझ गया कि उसको आज का अपना पहला चरमसुख मिल गया है! मैं यथासंभव उसका स्तन अधिक से अधिक अपने मुँह में रख कर अभी भी चूस रहा था। वो मेरी गर्दन में मुँह छुपा कर गर्म गर्म साँसें भर रही थी।
लतिका की योनि पूरी तरह से भीग चुकी थी! अगर उस समय कोई ऐसा व्यक्ति हमको देखता जिसको हमारी अंतरंगता की सच्चाई के बारे में न पता हो, तो सोचता कि हमने अभी अभी सेक्स किया था! और उसकी पैंटी इतनी गीली हो गई थी कि जैसे उसमें से उसकी का रस और मेरा वीर्य - दोनों ही रिस रहा हो!
‘इसका मतलब है,’ मैंने सोचा, ‘कि लतिका भी लम्बे समय से सेक्सी महसूस कर रही थी!’
इस बात का संज्ञान होना, एक अद्भुत अहसास था!
किसी ऐसी लड़की से इस तरह अंतरंग होना, जो अंतरंग होने से पहले ही आपके साथ अंतरंग होने की फंतासी रखे हुए हो, एक गज़ब की अनुभूति होती है यह! उसका शरीर आपके साथ सेक्स करने को तैयार रहता है, और ऐसी ही लड़की के साथ सेक्स का सबसे सुन्दर और संतुष्टिप्रद आनंद आता है! ... और, मुझको वो सुख आ रहा था!
उसके भगशिश्न को पा कर मैं उसको सहलाने लगा। साथ ही साथ यह विचार भी मन में आ रहा था कि मैं उस समय एक किशोरवय लड़की के साथ प्यार कर रहा था! मेरी सभी प्रेमिकाओं ने मुझे बहुत कुछ सिखाया था... सबने! अब मेरी बारी थी किसी को कुछ सिखाने की!
मैं उसकी योनि की दरार को कुछ इस तरह सहला रहा था कि उसका भगशिश्न मेरी छुवन से लगातार छिड़ता रहे। ओर्गास्म का आनंद मिलने के बाद भी लतिका का शरीर काँप रहा था, और उसके नितम्ब अब जैसे स्वप्रेरणा से एक ताल में हिल रहे थे। उसकी ताज़ा, गर्म साँसें मेरी गर्दन को जला रही थीं।
ऐसे ही सहलाते हुए, उसके योनिमुख पर मैंने अपनी तर्जनी का दबाव बनाया। छेद सँकरा था, लेकिन उंगली भी कोई बहुत मोटी नहीं थी। जैसे ही मेरी तर्जनी ने लतिका की योनि में प्रवेश किया, उसकी एक गहरी साँस निकल गई।
“लतिका?” मैंने उसका स्तन पीना रोक कर उसको पुकारा।
“हम्म?”
“ठीक हो?”
“म्मर जाऊँगी मैं...” उसने क्षीण आवाज़ में कहा।
“निकाल लूँ?”
“नहीं... नहीं!” उसने आनंद से कराहते हुए कहा, “... ले...लेकिन पागल हो जाऊँगी... सच में!”
मैंने उसकी बात का यह अर्थ निकाला कि उसको मेरी हरकतों से बहुत आनंद मिल रहा है। तो मैंने रोका नहीं, और वापस उसके स्तन को पीने लगा, और योनि को छेड़ने लगा। कुछ ही देर में उसकी कराहें उग्र हो गईं, और साँसें अनियमित... लगभग हाइपरवेंटिलेटिंग सी हो रही थीं। और उसका शरीर ऐसे काँप रहा था, कि जैसे उसे ठंड लग रही हो।
फिर वो अचानक से ही बिस्तर से उठ गई,
“आह… आई ऍम सॉरी… आई ऍम सॉरी… आई कांट डू दिस! ... आई कांट!” अपने दोनों हाथों को अपने स्तनों को छुपाते हुए वो लगभग विनती करती हुई बोली, “अमर... प्लीज अब और कुछ मत करना... नहीं तो मैं रोक नहीं सकूँगी अपने आप को...”
मैं भी उत्तेजनावश हाँफ रहा था। कुछ समय पहले हुए स्खलन के बावजूद भी, मैं फिर से तैयार था, और मेरा लिंग मेरी दिल की हर धड़कन के साथ फड़क रहा था। हम दोनों के बीच की चीजें बहुत जल्दी ही गर्म और अनियंत्रित हो गईं थीं। मैंने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ होगा, लेकिन मुझे बहुत ख़ुशी थी कि ऐसा कुछ हुआ!
उसने मेरे लिंग को अपने कोमल हाथों से पकड़ा, और कहा, “इसको भी सम्हाल कर रख लो कुछ दिन...”
फिर उसने मेरे लिंग के सिरे पर एक ज़ोरदार चुम्बन दिया।
“... और जितनी जल्दी हो सके, मुझसे शादी कर लो...”
“कहो तो कल ही कर लें?” मैंने शरारत से कहा।
“यू वुड लव दैट! वोंट यू?” वो मुस्कुराई, “एंड सो वुड आई... लेकिन नहीं। अभी नहीं... पहले बोऊ-दी का बेबी हो जाए, फिर?”
मैंने ‘हाँ’ में सर हिला कर रज़ामंदी दी, “मतलब, जून जुलाई?”
“मतलब जून जुलाई...” उसने भी मेरी बात का अनुमोदन किया।
फिर वो मुस्कुराई। उसकी साँसें अभी भी तेजी से चल रही थीं, लेकिन वो प्रसन्न लग रही थी। मेरी हालत भी उसकी जैसी ही थी। मैं भी बिस्तर से उठ बैठा, और उसके किनारे पर पैर लटका कर बैठ गया।
“कम हियर...”
उसने अभी भी मुस्कुराते हुए ही ‘न’ में सर हिलाया, और फिर मेरी तरफ़ आने लगी।
जब वो मेरे करीब आ गई, तब मैंने उसको अपने आलिंगन में ले कर उसके सीने पर, स्तनों के बीच चूमा। मैं उसको बताना चाहता था कि मैं उसका कितना शुक्र-गुजार था कि वो मेरे जीवन में आई! लतिका ने अपनी आँखें बंद कर लीं। उसके परफ्यूम की खुशबू ने मन मोह लिया। उसके साथ एक होने का एहसास अब मेरे मन पर हावी हो गया था। हमारा जीवन अब एक था!
लतिका ने बड़े प्रेम से मेरे बालों को सहलाते हुए कहा, “स्लीप माय लव,”
मैंने फिर से उसके सीने को चूमा।
“... स्लीप! अब ‘मैं’ आ गई हूँ... किसी बात की चिंता न करना अब से! ... अब से तुमको किसी बात का दुःख नहीं होगा!”
मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया!
सच में, दिल के दुःख बहुत कम हो चले थे।
“सो नहीं पाऊँगा...” मैंने शरारत भरी शिकायत की।
“तो मैं फिर से आ जाऊँगी...” उसकी आवाज़ में ऐसी नर्मी थी कि मुझको आराम और सुकून मिल गया, “... अभी सो जाओ!” उसने मेरे माथे को चूमा।
“आई लव यू!” मैंने कहा।
“आई लव यू टू!” वो बोली।
फिर वो मुड़ी और कमरे से बाहर निकल गई।
*
fuck em, ain't gonna conformMaterialistic world....
दिखावा नहीं तो प्यार (सेक्स) नही।
पंजाबी में कहावत है, "लल्लू करे कवल्लियाँ, रब्ब सिद्धियां पौंदा", मतलब भोला इंसान मूर्खतावश कुछ भी करता है प्रन्तु भगवान उसकी बात बना देता है।Amar to mughe bda hi chutiya lga
लतिका का प्रेम निवेदन स्वीकार करते वक्त अमर की आवाज भर्राई हुई थी और इसका कारण समझ मे आने लायक और मेरी नजर मे वाजिब भी था।
गैवी और डेवी की असमय मौत ने उसे भयभीत कर दिया था कि ऐसा ही अंजाम लतिका के साथ भी न हो जाए ।
यह अमर का लतिका के प्रति अथाह प्रेम और चिन्ता प्रकट कर रहा था। यह उसका संवेदनशील पक्ष उजागर कर रहा था।
लेकिन एक बार फिर से कैप्टनशीप का डोर लतिका ने अपने हाथ मे लिया और अमर साहब के चिंता का समाधान किया। एक जवान और खुबसूरत लड़की जिस तरह से अपने प्रेमी का माइंड डाइवर्ट करती है वही काम लतिका ने किया।
इसीलिए मैने कहा लतिका अपनी उम्र से कहीं अधिक मैच्योर है। वो अपने प्रेमी को सेड्यूश करना जानती है , वो अपनी मर्यादा समझती है , वो एक रोते हुए व्यक्ति को हंसाना भी जानती है।
इस अपडेट मे यही काम तो किया लतिका ने । एक ऐसी खुबसूरत सांवली सलोनी जो दिल और दिमाग से मैच्योर है।
अद्भुत अपडेट avsji भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
बहुत ही सुंदर अपडेट और दोनों की अंतरंगता के पल तो बेहद ही ग़ज़ब।
पंजाबी में कहावत है, "लल्लू करे कवल्लियाँ, रब्ब सिद्धियां पौंदा", मतलब भोला इंसान मूर्खतावश कुछ भी करता है प्रन्तु भगवान उसकी बात बना देता है।