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A very Best Sexy & full of Romance Update... After very long time...
I know you or any reader will ask that whenever Amar & Latika met that update surely goes hot & romantic... what's new
But I must say this update creates goosebumps and a tingling effect in my Manhood... also some butterflies in stomach when reading the lines where Amar going to penetrate his )===© in Latika's Virgin (@) ...
This is first time I read in any erotic story where any person took out his penis after reaching halfway inside vagina that too without popping cherry (tearing the Hyman)... Best update
Also I want to add (& i know that avsji likes INCEST but maintain that line of vulgarity in his stories...) but in today's update he use the Sexting (erotic words or phrases)used by lovers (not Nibba Nibbi) and newly wedded couple, calling each other by relationship name or pronoun's...
I personally & specially ove that part of today's update
° बुआ जी,” मैंने उसको छेड़ा, “अब आप अपने भतीजे की बीवी बनने वाली हैं...
° ... अपने भतीजे की बीवी बनने का चाँस शायद ही किसी को मिलता हो!”
° “अपने बदमाश छुन्नू पर कोई कण्ट्रोल नहीं है तुम्हारा... और ये तब है, जब मैं तुम्हारी बुआ हूँ...”
° “हम्म... मतलब आपको मज़ा आया, बुआ जी!” मैंने उसको थोड़ा कुरेदा।
° “जानेमन, मस्का नहीं लगाऊँगा, तो चिकनी कैसे होगी?”
जब अवसाद से पीड़ित लोग जाने - अनजाने अपने अतीत की सकरात्मक घटनाओं के बारे मे भी सोचना प्रारंभ करते है तो वे इन यादों के बारे मे भी नकारात्मक तरीकों से विचार करना या उनका मुल्यांकन करना शुरू कर देते है।
अमर ने तीन बार प्रेम किया । दो बार शादी हुई । दुर्भाग्य कि दोनो पत्नी स्वर्ग सिधार गई । इनके साथ बिताए पलों मे कुछ सकरात्मक यादें भी थी तो उनकी मृत्यु नकारात्मक सोच भी लाई।
यही कारण था कि वो जब जब लतिका के साथ रोमांटिक पल व्यतीत करता था , एक डर का साया उसके दिमाग पर हर वक्त हावी रहता था और यही डर नकारात्मक सोच पैदा करती थी। और यही कारण भी था , वो रोमांटिक पल को भी दुखद माहौल मे तब्दील कर देता था।
लेकिन इस के विपरीत लतिका ने ऐसा एक्सपीरियंस कभी प्राप्त नही किया है। वो अमर के दिल की भावना को समझ नही सकती थी। मगर फिर भी उसने अपनी उम्र से कहीं ज्यादा परिपक्वता दिखाई ।
लतिका और अमर का जो पार्ट विस्तृत रूप मे लिखा हुआ है , वह इसी विषय पर केंद्रित था और बहुत ही खूबसूरत लिखा हुआ था।
लेकिन दोनो का रूमानियत भरा सीन्स भी कुछ कम नही था। इरोटिका लेखन के इस रूप ने मुझे आश्चर्यचकित कर दिया कि आप के कलम से इतनी बेहतरीन इरोटिका भी निकल सकती है।
एक जगह मै कुछ कन्फ्यूज हो गया ! ये छोटी मां कौन थी ?
हमेशा की तरह बेहतरीन और शानदार अपडेट avsji भाई। आउटस्टैंडिंग एंड जगमग जगमग।
( आप अगर कोई अपडेट पोस्ट कर रहे है तो हमे टैग कर दीजिए । ऐसे पता नही चलता कि कोई अपडेट भी आया है । वैसे इलेक्शन की वजह से भी थोड़ा-बहुत दिक्कत हो रहा है । कभी-कभार इलेक्शन थ्रीड पर आइए )
Bahut hi shaandar update diya hai avsji bhai.....
Nice and lovely update....
Bohot hi badiya shuruat ki hai story kiनींव - शुरुवाती दौर - Update 1
मुझे यह नहीं पता कि आप लोगों में से कितने पाठकों को सत्तर और अस्सी के दशक के भारत - ख़ास तौर पर उत्तर भारत के राज्यों के भीतरी परिक्षेत्रों - उनके कस्बों और गाँवों - में रहने वालों के जीवन, और उनके रहन सहन के बारे में पता है। तब से अब तक - लगभग पचास सालों में - उन इलाकों में रहने वालों के रहन सहन में काफ़ी बदलाव आ चुके हैं, और अधिकतर बदलाव वहाँ रहने वाले लोगों की बेहतरी के लिए ही हुए हैं। मेरा जीवन भी तब से काफ़ी बदल गया है, और उन कस्बों और गाँवों से मेरा जुड़ाव बहुत पहले ही छूट गया है। लेकिन भावनात्मक स्तर पर, मैं अभी भी मज़बूती से अपनी भूमि से जुड़ा हुआ हूँ। मुझे उन पुराने दिनों की जीवंत यादें आती हैं। शायद उसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि अगर किसी का बचपन सुखी, और सुहाना रहता है, तो उससे जुड़ी हुई सभी बातें सुहानी ही लगती हैं! आज मैं जो कुछ भी हूँ, उसकी बुनियाद ऐसी ही जगहों - कस्बों और गाँवों - में पड़ी। मैं आप सभी पाठकों को इस कहानी के ज़रिए एक सफ़र पर ले चलना चाहता हूँ। मैं हमारे इस सफ़र को मोहब्बत का सफ़र कहूँगा। मोहब्बत का इसलिए क्योंकि इस कहानी में सभी क़िरदारों में इतना प्यार भरा हुआ है कि उसके कारण उन्होंने न केवल अपने ही दुःख दर्द को पीछे छोड़ दिया, बल्कि दूसरों के जीवन में भी प्यार की बरसात कर दी। इस कहानी के ज्यादातर पात्र प्यार के ही भूखे दिखाई देते हैं, और उसी प्यार के कारण ही उनके जीवन के विभिन्न आयामों पर प्रभाव पड़ता दिखाई देता है। साथ ही साथ, सत्तर और अस्सी के दशक के कुछ पहलुओं को भी छूता चलूँगा, जो आपको संभवतः उन दिनों की याद दिलाएँगे। तो चलिए, शुरू करते हैं!
आपने महसूस किया होगा कि बच्चों के लिए, उनके अपने माँ और डैड अक्सर पिछड़े, दक़ियानूसी, और दखल देने वाले होते हैं। लेकिन सच कहूँ, मैंने अपने माँ और डैड के बारे में ऐसा कभी महसूस नहीं किया : उल्टा मुझे तो यह लगता है कि वो दोनों इस संसार के सबसे अच्छे, सबसे प्रगतिशील, और खुले विचारों वाले लोगों में से थे। आपने लोगों को अपने माता-पिता के लिए अक्सर कहते हुए सुना होगा कि वो ‘वर्ल्ड्स बेस्ट पेरेंट्स’ हैं! मुझे लगता है कि अधिकतर लोगों के लिए वो एक सतही बात है - केवल कहने वाली - केवल अपने फेसबुक स्टेटस पर चिपकाने वाली। उस बात में कोई गंभीरता नहीं होती। मैंने कई लोगों को ‘मदर्स डे’ पर अपनी माँ के साथ वाली फ़ोटो अपने फेसबुक पर चिपकाए देखी है, और जब मैंने एकाध की माँओं से इस बारे में पूछा, तो उनको ढेले भर का आईडिया नहीं था कि मदर्स डे क्या बला है, और फेसबुक क्या बला है! ख़ैर, यहाँ कोई भाषण देने नहीं आया हूँ - अपनी बात करता हूँ।
मेरे लिए मेरे माँ और डैड वाक़ई ‘वर्ल्ड्स बेस्ट पेरेंट्स’ हैं। अब मैं अपने जीवन के पाँचवे दशक में हूँ। लेकिन मुझे एक भी मौका, एक भी अवसर याद नहीं आ पाता जब मेरी माँ ने, या मेरे डैड ने मुझसे कभी ऊँची आवाज़ में बात भी की हो! डाँटना तो दूर की बात है। मारना - पीटना तो जैसे किसी और ग्रह पर हो रहा हो! माँ हमेशा से ही इतनी कोमल ह्रदय, और प्रसन्नचित्त रही हैं कि उनके अंदर से केवल प्रेम निकलता है। उनके ह्रदय की कोमलता तो इसी बात से साबित हो जाती है कि सब्ज़ी काटते समय उनको जब सब्जी में कोई पिल्लू (इल्ली) दिखता है, तो वो उसको उठा कर बाहर, बगीचे में रख देती हैं। जान बूझ कर किसी भी जीव की हत्या या उस पर कैसा भी अत्याचार उनसे नहीं होता। वो ऐसा कुछ सोच भी नहीं सकतीं। डैड भी जीवन भर ऐसे ही रहे! माँ के ह्रदय की कोमलता, उनके व्यक्तित्व का सबसे अहम् हिस्सा है। माँ को मैंने जब भी देखा, उनको हमेशा हँसते, मुस्कुराते हुए ही देखा। वो वैसे ही इतनी सुन्दर थीं, और उनकी ऐसी प्रवृत्ति के कारण वो और भी अधिक सुन्दर लगतीं। डैड भी माँ जैसे ही थे - सज्जन, दयालु, और अल्प, लेकिन मृदुभाषी। कर्मठ भी बड़े थे। माँ थोड़ी चंचल थीं; डैड उनके जैसे चंचल नहीं थे। दोनों की जोड़ी, वहाँ ऊपर, आसमान में बनाई गई थी, ऐसा लगता है।
मेरे डैड और माँ ने डैड की सरकारी नौकरी लगने के तुरंत बाद ही शादी कर ली थी। अगर आज कल के कानून के हिसाब से देखा जाए, तो जब माँ ने डैड से शादी करी तो वो अल्पवयस्क थीं। अगर हम देश के सत्तर के शुरुआती दशक का इतिहास उठा कर पढ़ेंगे, तो पाएँगे कि तब भारत में महिलाओं को चौदह की उम्र में ही कानूनन विवाह योग्य मान लिया जाता था [हिन्दू मैरिज एक्ट 1955]। माँ के माता-पिता - मतलब मेरे नाना-नानी - साधन संपन्न नहीं थे। वे सभी जानते थे कि वे माँ की शादी के लिए आवश्यक दहेज की व्यवस्था कभी भी नहीं कर पाएंगे। इसलिए, जैसे ही उन्हें अपनी एकलौती बेटी के लिए शादी का पहला ही प्रस्ताव मिला, वैसे ही वे तुरंत ही उस विवाह के लिए सहमत हो गए। माँ के कानूनन विवाह योग्य होते ही मेरे नाना-नानी ने उनका विवाह मेरे डैड से कराने में बिलकुल भी समय बर्बाद नहीं किया। डैड उस समय कोई तेईस साल के थे। उनको हाल ही में एक सरकारी महकमे में क्लर्क की नौकरी मिली थी। सरकारी नौकरी, मतलब स्थयित्व, पेंशन, और विभिन्न वस्तुओं पर सरकारी छूट इत्यादि! छोटे छोटे कस्बों में रहने वाले मध्यमवर्गीय माँ-बापों के लिए मेरे डैड एक बेशकीमती वर होते। मेरी माँ बहुत सुंदर थीं - अभी भी हैं - इसलिए, डैड और मेरे दादा-दादी को वो तुरंत ही पसंद आ गईं थीं। और हालाँकि मेरे नाना-नानी गरीब थे, लेकिन फिर भी वे अपने समुदाय में काफ़ी सम्मानित लोग थे। इसलिए, माँ और डैड की शादी बिना किसी दहेज़ के हुई थी। उनके विवाह के एक साल के भीतर ही भीतर, मैं इस दुनिया में आ गया।
माँ और डैड एक युवा जोड़ा थे, और उससे भी युवा माता - पिता! इस कारण से उनको अपने विवाहित जीवन के शुरुवाती वर्षों में काफ़ी संघर्ष करना पड़ा। लेकिन उनके साथ एक अच्छी बात भी हुई - मेरे डैड की नौकरी एक अलग, थोड़े बड़े क़स्बे में थी, और इस कारण, उन दोनों को ही अपने अपने परिवारों से अलग रहने के लिए मजबूर होना पड़ा। न तो मेरे दादा-दादी ही, और न ही मेरे नाना-नानी उन दोनों के साथ रह सके। यह ‘असुविधा’ कई मायनों में उनके विवाह के लिए एक वरदान साबित हुआ। उनके समकालीन, कई अन्य विवाहित जोड़ों के विपरीत, मेरे माँ और डैड एक दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त थे, और उनका पारस्परिक प्रेम जीवन बहुत ही जीवंत था। अपने-अपने परिवारों के हस्तक्षेप से दूर, वो दोनों अपने खुद के जीने के तरीके को विकसित करने में सफ़ल हो सके। कुल मिलाकर मैं यह कह सकता हूँ कि हम खुशहाल थे - हमारा एक खुशहाल परिवार था।
हाँ - एक बात थी। हमें पैसे की बड़ी किल्लत थी। अकेले मेरे डैड की ही कमाई पर पूरे घर का ख़र्च चलता था, और उनकी तनख्वाह कोई अधिक नहीं थी। हालाँकि, यदि देखें, तो हमको वास्तव में बहुत अधिक पैसों की ज़रुरत भी नहीं थी। मेरे दादा और नाना दोनों ने ही कुछ पैसे जमा किए, और हमारे लिए उन्होंने एक दो-बेडरूम का घर खरीदा, जो बिक्री के समय निर्माणाधीन था। इस कारण से, और शहर (क़स्बे) के केंद्र से थोड़ा दूर होने के कारण, यह घर काफ़ी सस्ते में आ गया था। घर के अधिकांश हिस्से में अभी भी पलस्तर, पुताई और फ़र्श की कटाई आदि की जरूरत थी। अगर आप आज उस घर को देखेंगे, तो यह एक विला जैसा दिखेगा। लेकिन उस समय, उस घर की एक अलग ही दशा थी। कालांतर में, धीरे धीरे करते करते डैड ने उस घर को चार-बेडरूम वाले, एक आरामदायक घर में बढ़ा दिया, लेकिन उसमें समय लगा। जब हमारा गृह प्रवेश हुआ, तब भी यह एक आरामदायक घर था, और हम वहाँ बहुत खुश थे।
आज कल हम ‘हेल्दी’ और ‘ऑर्गनिक’ जीवन जीने की बातें करते हैं। लेकिन मेरे माँ और डैड ने मेरे जन्म के समय से ही मुझे स्वस्थ आदतें सिखाईं। वो दोनों ही यथासंभव प्राकृतिक जीवन जीने में विश्वास करते थे। इसलिए हमारे घर में प्रोसेस्ड फूड का इस्तेमाल बहुत ही कम होता था। हम अपने पैतृक गाँव से जुड़े हुए थे, इसलिए हमें गाँव के खेतों की उपज सीधे ही मिलती थी। दही और घी मेरी माँ घर में ही बनाती थीं, और उसी दही से मक्खन और मठ्ठा भी! माँ ख़ुद भी जितना हो सकता था उतना घरेलू और प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल करती थीं। खाना हमेशा घर का बना होता था, और खाना पकाने के लिए कच्ची घानी के तेल या घी का ही इस्तेमाल होता था। इन सभी कारणों से मैंने कभी भी मैगी या रसना जैसी चीजों को आजमाने की जरूरत महसूस नहीं की। बाहर तो खाना बस यदा कदा ही होता था - वो एक बड़ी बात थी। ऐसा नहीं है कि उसमे अपार खर्च होता था, लेकिन धन संचयन से ही तो धन का अर्जन होता है - मेरी माँ इसी सिद्धांत पर काम करती थीं। हाँ, लेकिन हर इतवार को पास के हलवाई के यहाँ से जलेबियाँ अवश्य आती थीं। गरमा-गरम, लच्छेदार जलेबियाँ - आहा हा हा! तो जहाँ इस तरह की फ़िज़ूलख़र्ची से हम खुद को बचाते रहे, वहीं मेरे पालन पोषण में उन्होंने कोई कोताही नहीं करी। हमारे कस्बे में केवल एक ही अच्छा पब्लिक स्कूल था : कोई भी व्यक्ति जो थोड़ा भी साधन-संपन्न था, अपने बच्चों को उस स्कूल में ही भेजता था। मैं बस इतना ही कहना चाहता हूँ कि स्कूल के बच्चे ही नहीं, बल्कि उनके माँ और डैड भी एक-दूसरे के दोस्त थे।
उस समय उत्तर भारत के कस्बों की एक विशेषता थी - वहाँ रहने वाले अधिकतर लोग गॉंवों से आए हुए थे, और इसलिए वहाँ रहने वालों का अपने गॉंवों से घनिष्ठ संबंध था। यह वह समय था जब तथाकथित आधुनिक सुविधाएँ कस्बों को बस छू ही रही थीं। बिजली बस कुछ घंटे ही आती थी। कार का कोई नामोनिशान नहीं था। एक दो लोगों के पास ही स्कूटर होते थे। टीवी किसी के पास नहीं था। मेरे कस्बे के लोग त्योहारों को बड़े उत्साह से मनाते थे : सभी प्रकार के त्योहारों के प्रति उनका उत्साह साफ़ दिखता था। पास के मंदिर में सुबह चार बजे से ही लाउडस्पीकरों पर भजन के रिकॉर्ड बजने शुरू हो जाते थे। डैड सुबह की दौड़ के लिए लगभग इसी समय उठ जाते थे। माँ भी उनके साथ जाती थीं। वो दौड़ती नहीं थी, लेकिन वो सुबह सुबह लंबी सैर करती थीं। मैं सुबह सात बजे तक ख़ुशी ख़ुशी सोता था - जब तक कि जब तक मैं किशोर नहीं हो गया। मेरी दिनचर्या बड़ी सरल थी - सवेरे सात बजे तक उठो, नाश्ता खाओ, स्कूल जाओ, घर लौटो, खाना खाओ, खेलो, पढ़ो, डिनर खाओ और फिर सो जाओ। डैड खेलने कूदने के एक बड़े पैरोकार थे। उनको वो सभी खेल पसंद थे जो शरीर के सभी अंगों को सक्रिय कर देते थे - इसलिए उनका दौड़ना, फुटबॉल खेलना और कबड्डी खेलना बहुत पसंद था। हमारा जीवन बहुत सरल था, है ना?
"Dharti pe roop maa bhaap ka,us widhata ki pehchan hai"नींव - शुरुवाती दौर - Update 2
हमारे नेचुरल रहन सहन ही आदतों और मेरे माँ और डैड के स्वभाव और व्यवहार का मुझ पर कुछ दिलचस्प प्रभाव पड़ा। काफ़ी सारे अन्य निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों के जैसे ही, जब मैं छोटा था, तो मेरे माँ और डैड मुझे नहाने के बाद, जब तक बहुत ज़रूरी न हो तब तक, कपड़े नहीं पहनाते थे। इसलिए मैं बचपन में अक्सर बिना कपड़ों के रहता था, ख़ास तौर पर गर्मियों के मौसम में। जाड़ों में भी, डैड को जब भी मौका मिलता (खास तौर पर इतवार को) तो मुझे छत पर ले जा कर मेरी पूरी मालिश कर देते थे और धूप सेंकने को कहते थे। बारिश में ऐसे रहना और मज़ेदार हो जाता है - जब बारिश की ठंडी ठंडी बूँदें शरीर पर पड़ती हैं, और बहुत आनंद आता है। अब चूँकि मुझे ऐसे रहने में आनंद आता था, इसलिए माँ और डैड ने कभी मेरी इस आदत का विरोध भी नहीं किया। मैं उसी अवस्था में घर के चारों ओर - छत और यहाँ तक कि पीछे के आँगन में भी दौड़ता फिरता, जहाँ बाहर के लोग भी मुझे देख सकते थे। लेकिन जैसा मैंने पहले भी बताया है कि अगर निम्न मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चे ऐसे रहें तो कोई उन पर ध्यान भी नहीं देता। खैर, जैसे जैसे मैं बड़ा होने लगा, वैसे वैसे मेरी यह आदत भी कम होते होते लुप्त हो गई। वो अलग बात है कि मेरे लिए नग्न रहना आज भी बहुत ही स्वाभाविक है। इसी तरह, मेरे माँ और डैड का स्तनपान के प्रति भी अत्यंत उदार रवैया था। मेरे समकालीन सभी बच्चों की तरह मुझे भी स्तनपान कराया गया था। सार्वजनिक स्तनपान को लेकर आज कल काफी हंगामा होता रहता है। सत्तर और अस्सी के दशक में ऐसी कोई वर्जना नहीं थी। घर पर मेहमान आए हों, या जब माँ घर के बाहर हों, अगर अधिक समय लग रहा होता तो माँ मुझे स्तनपान कराने में हिचकिचाती नहीं थीं। जब मैं उम्र के उस पड़ाव पर पहुँचा जब अधिकांश बच्चे अपनी माँ का दूध पीना कम कर रहे या छोड़ रहे होते, तब भी मेरी माँ ने मुझे स्तनपान कराते रहने में कोई बुराई नहीं महसूस की। डैड भी इसके ख़िलाफ़ कभी भी कुछ नहीं कहते थे। दिन का कम से कम एक स्तनपान उनके सामने ही होता था। मुझे बस इतना कहना होता था कि ‘माँ मुझे दूधु पिला दो’ और माँ मुझे अपनी गोदी में समेट, अपना ब्लाउज़ खोल देती। यह मेरे लिए बहुत ही सामान्य प्रक्रिया थी - ठीक वैसे ही जैसे माँ और डैड के लिए चाय पीना थी! मुझे याद है कि मैं हमेशा ही माँ के साथ मंदिरों में संध्या पूजन के लिए जाता था। वहाँ भी माँ मुझे दूध पिला देती थीं। अन्य स्त्रियाँ मुझे उनका दूध पीता देख कर मुस्करा देती थीं। मेरा यह सार्वजनिक स्तनपान बड़े होने पर भी जारी रहा। माँ उस समय दुबली पतली, छरहरी सी थीं, और खूब सुन्दर लगती थीं। उनको देख कर कोई कह नहीं सकता था कि उनको इतना बड़ा लड़का भी है। अगर वो सिंदूर और मंगलसूत्र न पहने हों, तो कोई उनको विवाहिता भी नहीं कह सकता था।
एक बार जब माँ मुझे दूध पिला रही थीं, तब कुछ महिलाओं ने उससे कहा कि अब मैं काफी बड़ा हो गया हूँ इसलिए वो मुझे दूध पिलाना बंद कर दें। नहीं तो उनके दोबारा गर्भवती होने में बाधा आ सकती है। उन्होंने इस बात पर अपना आश्चर्य भी दिखाया कि उनको इतने सालों बाद भी दूध बन रहा था। माँ ने कुछ कहा नहीं, लेकिन मैं मन ही मन कुढ़ गया कि दूध तो मेरी माँ पिला रही हैं, लेकिन तकलीफ़ इन औरतों को हो रही है। उस रात जब हम घर लौट रहे थे, तो माँ ने मुझसे कहा कि अब वो सार्वजनिक रूप से मुझको दूध नहीं पिला सकतीं, नहीं तो लोग तरह तरह की बातें बनाएंगे। चूँकि स्कूल के सभी माता-पिता एक दूसरे को जानते थे, इसलिए अगर किसी ने यह बात लीक कर दी, तो स्कूल में मेरे सहपाठी मेरा मज़ाक बना सकते हैं। लेकिन उन्होंने कहा कि घर पर, जब बस हम सभी ही हों, तो वो मुझे हमेशा अपना दूध पिलाती रहेंगीं। वो गाना याद है - ‘धरती पे रूप माँ-बाप का, उस विधाता की पहचान है’? मेरा मानना है कि अगर हमारे माता-पिता भगवान् का रूप हैं, तो माँ का दूध ईश्वरीय प्रसाद, या कहिए कि अमृत ही है। माँ का दूध इतना लाभकारी होता है कि उसके महिमा-मण्डन में तो पूरा ग्रन्थ लिखा जा सकता है। मैं तो स्वयं को बहुत भाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे माँ का अमृत स्नेह इतने समय तक मिलता रहा। मेरा दैनिक स्तनपान तब तक जारी रहा जब तक कि मैं लगभग दस साल का नहीं हो गया। तब तक माँ को अधिक दूध बनना भी बंद हो गया था। अब अक्सर सिर्फ एक-दो चम्मच भर ही निकलता था। लेकिन फिर भी मैंने मोर्चा सम्हाले रखा और स्तनपान जारी रखा। मेरे लिए तो माँ की गोद में सर रखना और उनके कोमल चूचक अपने मुँह में लेना ही बड़ा सुकून दे देता था। उनका मीठा दूध तो समझिए की तरी थी।
मुझे आज भी बरसात के वो दिन याद हैं जब कभी कभी स्कूल में ‘रेनी-डे’ हो जाता और मैं ख़ुशी ख़ुशी भीगता हुआ घर वापस आता। मेरी ख़ुशी देख कर माँ भी बिना खुश हुए न रह पातीं। मैं ऐसे दिनों में दिन भर घर के अंदर नंगा ही रहता था, और माँ से मुझे दूध पिलाने के लिए कहता था। पूरे दिन भर रेडियो पर नए पुराने गाने बजते। उस समय रेडियो में एक गाना खूब बजता था - ‘आई ऍम ए डिस्को डांसर’। जब भी वो गाना बजता, मैं खड़ा हो कर तुरंत ठुमके मारने लगता था। रेनी-डे में जब भी यह गाना बजता, मैं खुश हो कर और ज़ोर ज़ोर से ठुमके मारने लगता था। मेरा मुलायम छुन्नू भी मेरे हर ठुमके के साथ हिलता। माँ यह देख कर खूब हँसतीं और उनको ऐसे हँसते और खुश होते देख कर मुझे खूब मज़ा आता।
माँ मुझे दूध भी पिलातीं, और मेरे स्कूल का काम भी देखती थीं। यह ठीक है कि उनकी पढ़ाई रुक गई थी, लेकिन उनका पढ़ना कभी नहीं रुका। डैड ने उनको आगे पढ़ते रहने के लिए हमेशा ही प्रोत्साहित किया, और जैसे कैसे भी कर के उन्होंने प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में ग्रेजुएट की पढ़ाई पूरी कर ली थी। कहने का मतलब यह है कि घर में बहुत ही सकारात्मक माहौल था और मेरे माँ और डैड अच्छे रोल-मॉडल थे। मुझे काफ़ी समय तक नहीं पता था कि माँ-डैड को मेरे बाद कभी दूसरा बच्चा क्यों नहीं हुआ। बहुत बाद में ही मुझे पता चला कि उन्होंने जान-बूझकर फैसला लिया था कि मेरे बाद अब वो और बच्चे नहीं करेंगे। उनका पूरा ध्यान बस मुझे ही ठीक से पाल पोस कर बड़ा करने पर था। जब संस्कारी और खूब प्रेम करने वाले माँ-बाप हों, तब बच्चे भी उनका अनुकरण करते हैं। मैं भी एक आज्ञाकारी बालक था। पढ़ने लिखने में अच्छा जा रहा था। खेल कूद में सक्रीय था। मुझमे एक भी खराब आदत नहीं थी। आज्ञाकारी था, अनुशासित था और स्वस्थ था। टीके लगवाने के अलावा मैंने डॉक्टर का दर्शन भी नहीं किया था।
हाई-स्कूल में प्रवेश करते करते मेरे स्कूल के काम (मतलब पढ़ाई लिखाई) के साथ-साथ मेरे संगी साथियों की संख्या भी बढ़ी। इस कारण माँ के सन्निकट रहने का समय भी घटने लगा। सुन कर थोड़ा अजीब तो लगेगा, लेकिन अभी भी मेरा माँ के स्तन पीने का मन होता था। वैसे मुझे अजीब इस बात पर लगता है कि आज कल के बच्चे यौन क्रिया को ले कर अधिक उत्सुक रहते हैं। मैं तो उस मामले में निरा बुध्दू ही था। और तो और शरीर में भी ऐसा कोई परिवर्तन नहीं हुआ था। एक दिन मैं माँ की गोद में सर रख कर कोई पुस्तक पढ़ रहा था कि मुझे माँ का स्तन मुँह में लेने की इच्छा होने लगी। माँ ने मुझे याद दिलाया कि मेरी उम्र के बच्चे अब न तो अपनी माँ का दूध पीते हैं, और न ही घर पर नंगे रहते हैं। ब्लाउज के बटन खोलते हुए उन्होंने मुझसे कहा कि हाँलाकि उनको मुझे दूध पिलाने में कोई आपत्ति नहीं थी, और मैं घर पर जैसा मैं चाहता वैसा रह सकता था, लेकिन वो चाहती थीं कि मैं इसके बारे में सावधान रहूँ। बहुत से लोग मेरे व्यवहार को नहीं समझेंगे। मैं यह तो नहीं समझा कि माँ ऐसा क्यों कह रही हैं, लेकिन मुझे उनकी बात ठीक लगी। कुल मिला कर हमारी दिनचर्या नहीं बदली। जब मैं स्कूल से वापस आता था तब भी मैं माँ से पोषण लेता था। वास्तव में, स्कूल से घर आने, कपड़े उतारने, और माँ द्वारा अपने ब्लाउज के बटन खोलने का इंतज़ार करना मुझे अच्छा लगता था। माँ इस बात का पूरा ख़याल रखती थीं कि मेरी सेहत और पढ़ाई लिखाई सुचारु रूप से चलती रहे। कभी कभी, वो मुझे बिस्तर पर लिटाने आती थी, और जब तक मैं सो नहीं जाता तब तक मुझे स्तनपान कराती थीं। ख़ास तौर पर जब मेरी परीक्षाएँ होती थीं। स्तनपान की क्रिया मुझे इतना सुकून देती कि मेरा दिमाग पूरी तरह से शांत रहता था। उद्विग्नता बिलकुल भी नहीं होती थी। इस कारण से परीक्षाओं में मैं हमेशा अच्छा प्रदर्शन करता था। अब तक माँ को दूध आना पूरी तरह बंद हो गया था। लेकिन मैंने फिर भी माँ से स्तनपान करना और माँ ने मुझे स्तनपान कराना जारी रखा। मुझे अब लगता है कि मुझे अपने मुँह में अपनी माँ के चूचकों की अनुभूति अपार सुख देती थी, और इस सुख की मुझे लत लग गई थी। मुझे नहीं पता कि माँ को कैसा लगता होगा, लेकिन उन्होंने भी मुझे ऐसा करने से कभी नहीं रोका। हाँ, गनीमत यह है कि उस समय तक मेरा घर में नग्न रहना लगभग बंद हो चुका था।
Bohot badiya updateनींव - पहली लड़की - Update 1
आज कल देखता हूँ तो पाता हूँ कि बच्चों के लिए अपनी शुरुआती किशोरावस्था में ही किसी प्रकार का ‘रोमांटिक’ संबंध रखना काफी औसत बात है। मैं और मेरी पत्नी अभी हाल ही में इस बारे में मजाक कर रहे थे। हम एक शॉपिंग मॉल में थे, जब मैंने देखा कि एक बमुश्किल से किशोर-वय जोड़ा एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए है, और एक दूसरे के साथ रोमांटिक अभिनय कर रहा है। मुझे यकीन है कि उन्हें शायद पता भी नहीं है कि यह सब क्या है, या यह कि वे एक-दूसरे के प्रति आकर्षित हैं भी या नहीं। कम से कम मैंने तो उस उम्र में विपरीत लिंग के लिए आकर्षण या सेक्स की भावना कभी नहीं महसूस करी। मैंने इन दोनों ही मोर्चों पर शून्य था।
कॉलेज से पहले, मैंने कभी भी विपरीत लिंग के साथ किसी भी तरह के संबंध बनाने के बारे में नहीं सोचा था। वो भावना ही नहीं आती थी। कॉलेज में आने के बाद पहली बार मुझे ऐसा आकर्षण महसूस हुआ। उस लड़की का नाम रचना था। रचना एक बुद्धिमान लड़की थी... और उसके स्तन! ओह! मेरे लिए यह आश्चर्य की बात थी कि उस उम्र में रचना के पास इतनी अच्छी तरह से विकसित स्तनों की जोड़ी थी! पहले मुझे लगता था कि स्तन का आकार, लड़की की उम्र पर निर्भर करता है। लेकिन अब मुझे मालूम है कि अच्छा भोजन और स्वस्थ जीवन शैली स्तनों के आकर पर अपना अपना प्रभाव डालते हैं। रचना ने मुझे बाद में बताया कि उसके स्तनों की जोड़ी अन्य लड़कियों से कोई अलग नहीं है। बात सिर्फ इतनी थी कि उसने उन्हें ब्रा में बाँध कर रखा नहीं हुआ है।
रचना मेरे स्कूल में नई नई आई थी। उसके पिता और मेरे डैड एक ही विभाग में काम करते थे, और उसका परिवार हाल ही में इस कस्बे में स्थानांतरित हुआ था। जैसा कि मैंने पहले ही बताया है, उसे मेरे ही स्कूल में दाखिला लेना था। और कोई ढंग का विकल्प नहीं था वहाँ। जब मैंने पहली बार रचना को देखा, तो मैं उसके बारे में सोच रहा था कि वह कितनी सुंदर दिखती है। निःसंदेह, मैं उससे दोस्ती करना चाहता था। मेरे लिए यह करना एक दुस्साहसिक काम था, क्योंकि मुझे इस मामले में किसी भी तरह का अनुभव नहीं था। और तो और मुझे यह भी नहीं पता था कि लड़कियों से ठीक से बात कैसे की जाए! यह समस्या केवल मेरी नहीं, बल्कि स्कूल के लगभग सभी लड़कों की थी। स्कूल में लड़के ज्यादातर लड़कों के साथ ही बातचीत करते थे और लड़कियाँ, लड़कियों के साथ! माँ डैड को छोड़ कर मेरी अन्य वयस्कों के साथ बातचीत आमतौर पर केवल पढ़ाई के बारे में और मुझसे पाठ्यक्रम से प्रश्न पूछने तक ही सीमित थी। तो कुल मिला कर पास लड़कियों से बातचीत और संवाद करने में कोई भी कौशल नहीं था।
जब इस तरह की बाधा होती है, तो लड़कियों से दोस्ती करने वाले सपने पूरे नहीं होते। ऐसे सपने तब ही पूरे हो सकते हैं जब आपके जीवन में ईश्वरीय हस्तक्षेप हो। तो इस मामले में मुझे एक ईश्वरीय हस्तक्षेप मिला। मैं पढ़ाई लिखाई में अच्छा था - वास्तव में - बहुत अच्छा। एक दिन, हमारी क्लास टीचर, जो हमारी हिंदी (साहित्य, व्याकरण, कविता और संस्कृत) की शिक्षिका भी थीं, ने दो दो छात्रों के स्टडी ग्रुप्स बना दिए, ताकि हम एक दूसरे के साथ प्रश्न-उत्तर रीवाइस कर सकें। सौभाग्य से रचना मेरे साथ जोड़ी गई थी। क्या किस्मत! बिलारी के भाग से छींका टूटा! तो, हम आपस में प्रश्नोत्तर कर रहे थे, और बीच बीच में कभी-कभी बात भी कर रहे थे।
ऐसे ही एक बार मैंने कुढ़ते हुए कहा, “ये लङ्लकार नहीं, लण्ड लकार है..” [लकार संस्कृत भाषा में ‘काल’ को कहते हैं, और लङ्लकार भूत-काल है]
मैंने बस लिखे हुए एक शब्द के उच्चारण को भ्रष्ट किया था। लेकिन उतने में ही अर्थ का अनर्थ हो गया। मैंने सचमुच में यह नादानी में किया था, और मुझे इस नए शब्द का क्या नहीं मालूम था। यह कोई शब्द भी था, मुझे तो यह भी नहीं मालूम था। रचना मेरी बात सुन कर चौंक गई। सबसे पहले तो उसको मेरी बात पर विश्वास ही नहीं हुआ। वो मुझे एक ईमानदार और सभ्य व्यक्ति समझती थी। मैंने आज तक एक भी गाली-नुमा शब्द नहीं बोला था। बेशक, रचना हैरान थी कि मैंने ऐसा शब्द कैसे बोल दिया। खैर, अंततः उसने मुझसे कहा,
“नहीं अमर, हम ऐसी बात नहीं करते।”
“क्यों क्या हुआ?”
“क्या तुम इसका मतलब नहीं जानते?”
“किसका मतलब?”
“इसी शब्द का... जो तुमने अभी अभी कहा।”
“शब्द? कौन सा? तुम्हारा मतलब लण्ड से है?”
“हाँ - वही। और इसे ज़ोर से मत बोलो। कोई सुन लेगा।”
“सुन लेगा? अरे, लेकिन मुझे पता ही नहीं है कि इसका क्या मतलब है! क्या इसका कोई मतलब भी होता है?” मैं वाकई उलझन में था।
बाद में, लंच ब्रेक के दौरान रचना ने मुझे ‘लण्ड’ शब्द का अर्थ बताया। मुझे आश्चर्य हुआ कि एक लिंग का ऐसा नाम भी हो सकता है। जब मैंने उसे बताया कि लिंग के लिए मुझे जो एकमात्र शब्द पता था वह था ‘छुन्नी’, तो वो ज़ोर ज़ोर से वह हँसने लगी। उसने मुझे समझाया छोटे लड़कों के लिंग को छुन्नी या छुन्नू कह कर बुलाते हैं। लड़कियों के पास छुन्नी नहीं होती है। उसने मुझे यह भी बताया कि बड़े लड़कों और आदमियों के लिंग को लण्ड कहा जाता है। यह कुछ और नहीं, बस छुन्नी है, जिसका आकार बढ़ सकता है, और सख़्त हो सकता है। एक दिलचस्प जानकारी! है ना?
“अच्छा, एक बात बताओ। तुम्हारा छुन्नू ... क्या उसका आकार बढ़ता है?” रचना ने उत्सुकता से पूछा।
मुझे थोड़ा हिचकिचाहट सी हुई कि मेरी सहपाठिन मुझसे ऐसा प्रश्न पूछ रही है, फिर भी मैंने उसके प्रश्न की पुष्टि करी, “हाँ! बढ़ता तो है, लेकिन कभी-कभी ही ऐसा होता है।” फिर कुछ सोच कर, “रचना यार, तुम किसी को बताना मत!”
“अरे ये तो अच्छी बात है। छुन्नू का आकार तो बढ़ना ही चाहिए। इसमें शर्मिंदा होने की कोई बात नहीं है। इसका मतलब है कि तुम अब एक आदमी में बदल रहे हो!” रचना से मुस्कुराते हुए मुझसे कहा, “वैसे मैं क्यों किसी को यह सब बताऊँगी?”
“नहीं! बस ऐसे ही कहा, तुमको आगाह करने के लिए। माँ और डैड को भी नहीं मालूम है न, इसलिए!”
“हम्म्म!”
“रचना?”
“हाँ?”
“एक बात कहूँ?”
“हाँ! बोलो।”
“तुम्हारे ... ये जो ... तुम्हारे दूध हैं न, वो मेरी माँ जैसे हैं।”
“सच में?”
मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“हम्म इसका मतलब आंटी के दूध छोटे हैं।”
“हैं?”
“हाँ! मेरी मम्मी के मुझसे दो-गुनी साइज़ के होंगे। बाल-बच्चे वाली औरतों के दूध तो बड़े ही होते हैं न!”
“ओह!”
“मेरे उतने बड़े नहीं हैं। बाकी लड़कियों जितने ही हैं। लेकिन मैं शर्ट के नीचे केवल शमीज़ पहनती हूँ। बाकी लड़कियाँ ब्रा भी पहनती हैं!”
“ओह?”
रचना ने मेरा उलझन में पड़ी शकल देखी और हँसते हुए बोली, “तुमको नहीं मालूम कि ब्रा और शमीज़ क्या होती है?”
“नहीं!” मैं शरमा गया।
“कोई बात नहीं। बाद में कभी बता दूँगी। लेकिन एक बात बताओ, तुमको हमारे ‘दूध’ में इतना इंटरेस्ट क्यों है?” रचना ने मेरी टाँग खींची।
“उनमे से दूध निकलता है न, इसलिए!”
“बुद्धू हो तुम!” रचना ने हँसते हुए प्रतिकार किया, “मेरे ख़याल से ये शरीर के सबसे बेकार अंगों में से एक हैं। सड़क पर निकलो तो हर किसी की आँखें इनको ही घूरती रहती हैं। ब्रा पहनो तो दर्द होने लगता है। ठीक से दौड़ भी नहीं सकती, क्योंकि दौड़ने पर ये उछलते हैं, और दर्द करते हैं। तुम लोग तो अपनी छाती खोल कर बैठ सकते हो, लेकिन हमको तो इन्हे ढँक कर रखना पड़ता है!”
जाहिर सी बात है, रचना अपने स्तनों पर चर्चा नहीं करना चाहती थी, इसलिए मैंने इस मामले को आगे नहीं बढ़ाया। लेकिन उस दिन के बाद से मैं और रचना बहुत अच्छे दोस्त बन गए। जब एक दूसरे की अंतरंग बातें मालूम होती हैं, तब मित्रता में प्रगाढ़ता आ जाती है।
उन दिनों लड़कियों का अपने सहपाठी लड़कों के घर आना जाना एक असामान्य सी बात थी। लेकिन एक अच्छी बात यह हुई कि हमारी माएँ एक दूसरे की बहुत अच्छी दोस्त बन गई थीं। क्योंकि जैसा कि मैंने आपको पहले भी बताया था कि हमारे पिता एक ही विभाग में थे। चूंकि, कक्षा में, रचना और मैं स्टडी पार्टनर थे, इसलिए हमारे माता-पिता के लिए हमें घर पर भी साथ पढ़ने की अनुमति देना तार्किक रूप से ठीक था। इसलिए, रचना और मैं दोनों ही एक-दूसरे के घर पढ़ाई के लिए जाते थे। वैसे रचना ही थी जो अक्सर मेरे घर आती थी, क्योंकि उसे मेरी माँ के हाथ का खाना बहुत पसंद था और वह उसका स्वाद लेने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी। उसकी माँ भी इसके लिए उसको रोकती नहीं थीं।
Bohot hi badiya shuruat ki hai story ki
"Dharti pe roop maa bhaap ka,us widhata ki pehchan hai"
Atti uttam update
Bohot badiya update
Rachna ke pehle Milan ko apne kitne somya or saral shabdo Mai wyaqt Kiya hai.amar bhai bohot badiyaनींव - पहली लड़की - Update 19
हमको ऐसे बोलते देख कर माँ मुस्कुरा दीं, और अपने कमरे में चली गईं आराम करने। बाथरूम से हम सीधा मेरे कमरे में चले गए। जब हम अपने कमरे के अंदर गए, तो मैंने कमरे के किवाड़ लगा लिए। आज यह मैंने पहली बार किया था। न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि रचना और मुझे थोड़ी प्राइवेसी चाहिए। रचना ने भी यह नोटिस किया, लेकिन वो कुछ बोली नहीं। हम जब बिस्तर पर लेट गए, तब मैंने रचना से पूछा,
“रचना, तुमको कैसा लड़का चाहिए?”
“किसलिए?” वो जानती थी, लेकिन जान बूझ कर नादान बन रही थी।
“अरे शादी करने के लिए! कैसे लड़के की बीवी बनना चाहोगी?”
“तुम में क्या खराबी है?”
“मतलब मैं तुम्हारे लिए अच्छा हूँ?”
“हाँ! तुम अच्छे हो। हैंडसम दिखते हो। तुम्हारे माँ और डैड भी कूल हैं!” वो आगे कुछ कहना चाहती थी, लेकिन कहते कहते रुक गई।
मैंने कुछ पल इंतज़ार किया कि शायद वो और कुछ बोले, लेकिन जब उसने कुछ नहीं कहा, तो मैंने ही कहा,
“मैं तुमको प्यार कर लूँ?”
“मतलब?”
“मतलब, एस अ हस्बैंड?”
“अच्छा जी? मतलब आपका छुन्नू अभी अभी खड़ा होना शुरू हुआ है, और आपको अभी अभी मेरा हस्बैंड भी बनना है?”
“करने दो न?”
“हा हा हा! मैंने रोका ही कब है?”
रचना का यह कहना ही था कि मैंने लपक कर उसके कुर्ते का बटन खोलना शुरू कर दिया। मेरी अधीरता देख कर वो खिलखिला कर हँसने लगी। मैंने उसकी टी-शर्ट / ब्लाउज / शर्ट तो उतारी थी, लेकिन कुरता कभी नहीं। खैर, निर्वस्त्र करने की प्रक्रिया तो एक जैसी ही होती है। कुरता उतरा तो मैंने देखा कि उसने ब्रा पहनी हुई है।
“इसको क्यों पहना?” मुझे उत्सुकता हुई।
“बिना ब्रा पहने कैसे घर से बाहर निकलूँगी? मम्मी जान खा लेंगी!”
“वो क्यों?”
“अरे - इसको नहीं पहनती हूँ तो कपड़े के नीचे से मेरे निप्पल दिखने लगते हैं। और ब्रेस्ट्स को भी सपोर्ट मिलता है।”
“ओह तो इसलिए माँ भी बाहर जाते समय इनको पहनती हैं?”
“और क्या! नहीं तो आदमियों की आँखें खा लें हमको!”
मैंने उसके स्तनों की त्वचा को छुआ,
“कितने सॉफ्ट हैं तुम्हारे ब्रेस्ट्स!” फिर मैंने उनका आकार देखा, “थोड़े बड़े लग रहे हैं, पहले से!”
“हा हा! हाँ, माँ के हाथ का खाना मेरे शरीर को लग रहा है!”
“इतना कसा हुआ है! दर्द नहीं होता?”
“अरे बहुत दर्द होता है! मुझे इसे पहनने से नफरत है!”
कह कर वो मुड़ गई; उसकी पीठ मेरी तरफ हो गई। मेरी ट्यूबलाइट जलने में कुछ समय लगा, फिर समझा कि वो मुझे ब्रा हटाने या उतारने के लिए कह रही है। मैंने देखा कि पीठ पर ब्रा के पट्टे पर दो छोटे छोटे हुक लगे हुए थे। मैंने उनको खोला, और उसकी ब्रा उतार दी। उसके स्तनों और पीठ पर जहाँ जहाँ ब्रा का किनारा था, वहाँ वहाँ लाल निशान पड़ गए थे।
“अरे यार! इस पर कुछ लगा दूँ? कोई क्रीम?”
“ओह, ये? नहीं, अभी ठीक हो जायेगा।” लेकिन अपने लिए मेरी चिंता देख कर रचना प्रभावित ज़रूर हुई।
मैंने उन निशानों पर सहलाते हुए उंगली चलाई, तो रचना की आह निकल गई। जल्दी ही मैं उसके चूचकों को छूने लगा। मैंने एक स्तन को हाथ में पकड़ कर थोड़ा सा दबाया - फलस्वरूप उसका चूचक सामने की तरफ और उभर आया - मानों मुझे आमंत्रित कर रहा हो, या फिर मानों वो मेरे मुँह में आने को लालायित हो रहा हो। मैंने उस कोमल अंग को निराश नहीं होने दिया, और मुँह में भर कर उसको चूसने लगा। उसके कोमल चूचक की अनुभूति मेरे मुँह में हमेशा की ही तरह अद्भुत थी। रचना मीठे दर्द से कराह उठी, और मुस्कुरा दी। मैं उसकी सांसों को गहरी होते हुए सुन रहा था, जैसा कि उसके साथ हमेशा ही होता था। एक स्तन को पीते पीते ही मेरा लिंग पुनः स्तंभित हो गया। जब रचना ने यह देखा तो वो बहुत खुश हुई और हैरान भी!
“अरे वाह! तुम्हारे छुन्नू जी तो फिर से सल्यूट मारने लगे!”
मैं पीते पीते ही मुस्कुराया।
“डैडी का तो इतनी जल्दी कभी खड़ा नहीं होता!”
“आर यू इम्प्रेस्सड?” मैंने पूछ ही लिया।
उसने हाँ में सर हिलाया, “बहुत!”
“तो फिर ईनाम?”
“हा हा ... होने वाले पतिदेव जी, आपने अपना ईनाम अपने हाथ में पकड़ा हुआ है!” उसने मुझे प्रसन्नतापूर्वक याद दिलाया।
“बीवी जी, अपना दूध तो आप मुझे हमेशा ही पिलाती हैं। इस बार मुझे अपने अंदर जाने दीजिये न?”
रचना शरमा कर हँसी। वह समझ गई कि मैं क्या चाहता हूं। मुझे लगता है कि वो भी मन ही मन हमारे समागम की संभावना के बारे में सोच रही होगी। उसने संकोच नहीं किया। उसने अपनी शलवार का नाड़ा खोलना शुरू किया, और एक ही बार में उसने अपनी शलवार और चड्ढी दोनों ही नीचे की तरफ़ खिसका दिया। आज महीनों बाद वो इतने करीब वो बाद मेरे सामने नंगी बैठी हुई थी। वह बिस्तर पर लेट गई और मुझे ठीक से देखने के लिए उसने अपनी जाँघें फैला दी। साथ ही साथ उसने मेरे उत्तेजित लिंग पर अपना हाथ फेर दिया।
“तुम एक शरारती लड़के हो,” वह हंसी, “मैं तुमसे बड़ी हूँ, लेकिन मुझको नंगा करने में तुमको शर्म नहीं आती?”
मैं मुस्कराया, “तुम मेरी बीवी हो!”
उसने मेरा हाथ थाम लिया और मुझे अपनी ओर खींच लिया। जब मैं उसके ऊपर आ गया तो उसने मेरे माथे को चूमा और फुसफुसाते हुए कहा, “तुम एक बहुत हैंडसम और एक बहुत शरारती लड़के हो!”
मैं मुस्कुराया।
“लेकिन जब हमारी शादी होगी, तब मैं तुम्हारे पैर नहीं छूवूँगी! तुम मुझसे छोटे हो। तुम मेरे पैर छूना!”
मैं उठा, और उठ कर उसके पैरों की तरफ गया। मैंने बारी बारी से उसके दोनों पैरों की अपने सर से लगाया और चूमा। वो मेरी इस हरकत से दंग रह गई। मैंने अपने सामने नंगी लेटी रचना को प्यार से देखा। कितनी सुन्दर लड़की! माँ का सपना था कि वो हमारे घर में आए! शायद अब ये होने वाला था। मेरा लिंग रक्त प्रवाह के कारण झटके खा रहा था। रचना बहुत कमसिन, छरहरी, लेकिन मज़बूत लड़की थी! उसके पैर लंबे और कमर क्षीण लग रही थी; उसके नितम्ब गोल नहीं, बल्कि अंडाकार, और ठोस थे! उसकी योनि बाल वसीम के जैसे ही घुँघराले और थोड़े कड़े हो गए थे। योनि के दोनों होंठ अभी भी पतले ही थे; उनमें कोई परिवर्तन नहीं आया था।
“पसंद आई अपनी बीवी?” उसने बड़ी कोमलता, बड़े स्नेह से पूछा।
मैंने ‘हाँ’ सर हिलाया, और वो भी बड़े उत्साह से।
“और मैं?”
“तुम तो मुझे हमेशा से पसंद हो! मैं किसी बन्दर के पास थोड़े ही जाऊँगी हमेशा! आओ, अब अपना ईनाम ले लो। धीरे धीरे से अंदर आना! ठीक है?”
माँ और डैड ने सिखाया तो था, लेकिन न जाने क्यों मुझे लग रहा था कि कुछ कमी है मेरे ज्ञान में। ये वैसा ही है जैसे टीवी पर देख कर तैराकी सीखना! ख़ैर, मैंने अपने लिंग का सर उसकी योनि के द्वार पर टिका दिया।
“बहुत धीरे धीरे! ठीक है?” उसने मुझे फिर से चेताया।
“तुमने पहले कभी किया है यह?” मैंने पूछ लिया।
“तुम्हें क्या लगता है कि मैं क्या हूँ? वेश्या?” रचना का सारा ढंग एक झटके में बदल गया।
“आई ऍम सॉरी यार! मेरा मतलब उस तरह से नहीं था। मैं बस ये कहना चाहता हूँ मुझे नहीं पता कि कैसे करना है। यदि तुमको मालूम हो, तो तुम मुझे गाइड कर देना! प्लीज!”
मेरी बात का उस पर सही प्रभाव पड़ा। वो फिर से शांत हो गई,
“ओह। अच्छा! मुझे लगता है कि हम खुद ही जान जाएँगे कि कैसे करना है। बस इसे मेरे अंदर धीरे-धीरे स्लाइड करने की कोशिश करो। धीरे धीरे! मुझे अंदर कोई चोट नहीं चाहिए!”
मतलब मुझे डैड ने जो कुछ सिखाया था, उसी पर पूरा भरोसा करना था। अपने लिंग को पकड़कर, मैंने उसकी योनि की फाँकों के बीच फँसाया और धीरे से दबाव बनाया। रचना प्रतिक्रिया में अपनी योनि का मुँह बंद कर ले रही थी, लेकिन धीरे धीरे करने से लिंग का कुछ हिस्सा उसके अंदर चला गया। मुझे यह देखकर खुशी हुई। रचना सांस रोके अपने अंदर होने वाली इस घुसपैठ को महसूस कर रही थी। जब मैं रुका, तो उसने साँस वापस भरी। मैं उसी स्थिति में रुका रहा, और अनजाने में ही उसकी योनि को इस अपरिचित घुसपैठ के अनुकूल होने दिया।
“तुम ठीक हो?” मैं उसके माथे से बालों की लटें हटाते हुए पूछा।
उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“मैं तुम्हारे अंदर आ गया हूँ, देखो?”
रचना ने नीचे की ओर देखा, जहाँ हम जुड़े हुए थे,
“तुम थोड़ा और अंदर आ सकते हो!”
हम दोनों को ही नहीं पता था कि हमारे पहले समागम के दौरान हम किस तरह के अनुभव की उम्मीद करें! लेकिन जैसे जैसे मैं उसके अंदर घुसता गया, रचना के चेहरे पर आश्चर्य, प्रसन्नता, और दर्द का मिला जुला भाव दिखता गया। अंत में उसने आँखें खोल कर मुझे आश्चर्य भरी निगाहों से देखा,
“हे भगवान! अमर... यह बहुत बड़ा है!”
“क्या? मेरा छुन्नू?”
“हाँ!”
“छुन्नू तो उतना बड़ा नहीं है अभी! लेकिन तुम्हारी चूत छोटी सी ज़रूर है।”
रचना ने उत्तर में मेरे गाल पर प्यार भरी चपत लगाईं, “बदमाश लड़का!”
उसकी बातों से मुझे लगा कि जैसे मेरा लिंग उसके अंदर जा कर थोड़ा मोटा हो गया है। मैं उस समय बिलकुल भी हिल-डुल नहीं रहा था, और रचना के अंदर उसी स्थिति में था। योनि के भीतर रहने वाली भावना का वर्णन कैसे किया जाए? यह वैसा सुखद एहसास नहीं था, जैसा कि मेरे माँ और डैड दावा कर रहे थे। लेकिन उसके अंदर जा कर अच्छा लग रहा था - उसकी योनि की माँस-पेशियाँ मेरे लिंग की लंबाई को पकड़े हुए थीं। अंदर गर्मी भी थी, और चिकनाई भी।
“रुके क्यों हो? करो न?”
“क्या?”
“मुझसे प्यार!”
मुझे लगता है कि आप अधिक समय तक प्राकृतिक, सहज-ज्ञान को रोक कर नहीं रख सकते हैं। मैंने लिंग को थोड़ा सा बाहर निकाला और फिर वापस अंदर डाल दिया। धीरे से।
“फिर से करो?” उसने कहा।
मैंने फिर से किया। उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया। हमारी सहज-वृत्ति हमारे मैथुन को दिशा दे रही थी। चार पांच बार धीरे धीरे करने के बाद मैंने इस बार थोड़ा तेज़ से धक्का लगाया। रचना ने एक दम घुटने वाली आह निकाली। मैंने न जाने क्यों, उसकी आह की परवाह नहीं की, और फिर से उसी गति में धक्का लगाया। रचना भी समझ गई होगी कि जिस पोजीशन में वो थी, उसमे रह कर मुझ पर नियंत्रण कर पाना मुश्किल था। उसने खुद को मेरे रहमोकरम पर छोड़ दिया, और मैंने उसके साथ धीमे और स्थिर लय में सम्भोग करना शुरू कर दिया। शायद उत्तेजना के कारण रचना का मुँह खुल गया। उसकी योनि की आंतरिक माँस-पेशियां मुझे सिकुड़ती हुई महसूस हुईं।
“ओह अमर। आखिरकार तुमने मुझे अपनी बीवी बना ही लिया! ओह्ह्ह! बहुत अच्छा लग रहा है।” रचना बुदबुदाई, “जो तुम कर रहे हो वही करते रहो।”
तो मैंने वही करना जारी रखा। लगभग दो मिनट बाद मैंने महसूस किया कि रचना का शरीर अकड़ने लगा; उसकी आँखें संकुचित हो गई थी, और उसकी उँगलियाँ मेरी बाँहों में जैसे घुसने को बेताब हो रही थी। और मुझे यह भी लगा कि वो धीरे धीरे रो भी रही है। मुझे नहीं मालूम था, लेकिन रचना का सारा शरीर सुख-सागर में गोते लगा रहा था। चूँकि यह मेरा भी पहला अनुभव था, इसलिए मुझे नहीं पता था कि हमारे मैथुन से क्या उम्मीद की जाए! लगभग उसी समय, मेरे लिंग से भी वीर्य की बूँदें छूटीं! एक बार, दूसरी बार, और फिर तीसरी बार! मेरा शरीर भी थरथरा रहा था। रचना ने मेरे शरीर में यह परिवर्तन महसूस किया, तो उसकी आँखें खुशी से चमक उठीं। एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया में, मैंने इस आनंद को थोड़ा और बढ़ाने की उम्मीद में, धक्के लगाने की गति धीमी कर दी। फिर मैंने चौथी बार भी वही आनंद महसूस किया, जो अभी तीन बार किया था। इस बार मैं आनंद से कराह उठा।
जैसे ही मेरा स्खलन समाप्त हुआ, रचना भी अपने चरमोत्कर्ष से बाहर आ गई, लेकिन थकावट के कारण लेटी रही। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं, मुझे अपनी ओर खींच लिया और फिर से सामान्य रूप से साँस लेने लगी। न जाने क्यों उसको चूमने का मन हुआ। मैंने उसके कान को चूमा, फिर गले को, और फिर उसके स्तनों के बीच में अपना चेहरा छुपा दिया। रचना मुझे अपने सीने में भींचे लेटी रही।
वो कोमलता से बोली, “क्या तुमको अपना ईनाम पसंद आया?”
“हाँ। बहुत!”
मेरी बात पर हम दोनों ही मुस्कुराने लगे।
“तुझे तो आया मज़ा.... तुझे तो सूझी हँसी.... मेरी तो जान फँसी रे....” उसने एक बहुत ही प्रसिद्द गाने की पंक्तियाँ गुनगुनाई।
“अरे! तुम्हारी जान कैसे फंसी?”
“वाह जी! पहले तो मार मार के मेरी छोटी सी चूत का भरता बना दिया, और अब पूछते हैं कि मेरी जान कैसे फंसी! अगर मुझे बच्चा ठहर गया, तो मेरे साथ साथ तेरी जान भी फंस जाएगी!”
“सच में ऐसा हो सकता है क्या?”
“उम्म्म नहीं.... शायद। चांस तो कम है। लेकिन हमको सावधान रहना चाहिए।”
रचना ने कहा और बिस्तर से उठ बैठी। इसके तुरंत बाद हमने कपड़े पहने। मै बिस्तर पर बैठा उसको अपने बाल सँवारते हुए देख रहा था। उसने मुझे आईने में मेरे प्रतिबिंब को देखा,
“क्या?” वह मुस्कुराई और धीरे से पूछा।
“रचना?”
“हाँ?”
“क्या हम इसे फिर से करेंगे कभी?”
उसका बाल सँवारना रुक गया, “ओह, अमर।”
“अरे! मैं तो बस पूछ रहा था।” मैंने कहा।
“हा हा! करेंगे! करेंगे!” उसने कहा, “लेकिन किसी को बताना मत!” फिर थोड़ा सोच कर, “उम्म्म माँ और डैड के अलावा किसी और को नहीं! ठीक है? क्योंकि... क्योंकि…” वो बोलते बोलते रुक गई, जैसे उपयुक्त शब्दों की तलाश कर रही हो, “क्योंकि... बाकी लोग कहेंगे कि यह सब नहीं करना चाहिए। या यह कि प्यार करना गन्दा काम है। और फिर हम दोनों मुश्किल में पड़ जाएंगे। हमारे साथ साथ शायद हमारे पेरेंट्स भी।”
मैंने पूछा, “लेकिन किसी और को हम क्या करते हैं वो देख कर बुरा क्यों लगना चाहिए?”
“लोग ऐसे ही होते हैं अमर,” रचना बड़े सयानेपन से बोली, “दूसरों के काम में टाँग लगाने वाले!”
“हम्म्म!” मैंने कुछ देर सोचा और कहा, “रचना, हम ये दोबारा करें या नहीं, लेकिन तुम हमेशा मेरी दोस्त रहना। मेरी बेस्ट फ्रेंड! तुम मुझे सबसे अच्छी लगती हो!”
“वाक़ई?” उसकी आँखों में एक चमक सी उठी।
“हाँ। मुझे तुम्हारा साथ बहुत अच्छा लगता है!”
वह मुस्कुराई, “जानकर खुशी हुई।”
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जीवन का पहला सेक्स अनुभव हमेशा याद रहता है। कोई तीस बत्तीस साल पहले हुई यह घटना मुझे आज भी याद है। सब कुछ मेरे ज़ेहन में ताज़ा तरीन है!
इस प्रकार के अनोखे अनुभव और लोगों से शेयर करने का मन तो होता है, लेकिन मैंने किसी को नहीं बताया - न तो माँ को और न ही डैड को। लेकिन रचना से रहा नहीं गया। उसने माँ से सारी बातें कह दीं। उसी दिन। कमरे से निकल कर जब मैं कोई और काम कर रहा था तब रचना ने हमारे यौन सम्बन्ध का पूरा ब्यौरा माँ को दे दिया। माँ ने उसकी बात को पूरे ध्यान से सुना और उसके बाद उन्होंने जो किया वह अद्भुत था। माँ ने रचना को गले से लगाया और उसको चूम लिया।
“मेरी बिटिया!” माँ ने स्नेह से कहा, “तुम जुग जुग जियो! अगर तू आगे चल कर मेरे अमर को अपनाना चाहेगी, तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा।”
“हा हा हा! माँ, मैं तो बस आपके लिए ही इस बन्दर से शादी करूँगी।” रचना के कहने के अंदाज़ पर माँ खिलखिला कर हँसने लगीं, “मुझे तो आप माँ के रूप में मिल जाएँ तो आनंद आ जाए! मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ, आपको अपनी माँ मानती हूँ, और मुझे मालूम है कि आपके साथ मैं बहुत खुश रहूंगी!” उसने कहा।
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कहानी जारी रहेगी
Awesome updateआत्मनिर्भर - नए अनुभव - Update 8
काजल के जाने के बाद मैं फिर सो गया। जब उठा तो दोपहर हो रही थी। मैं उठ कर हॉल में आ गया, और टीवी देखने लगा। भारत और वेस्टइंडीज़ के बीच वन-डे मैच चल रहा था। उस समय ढाई सौ के ऊपर रन बन जाएँ तो जीत लगभग निश्चित हो जाती थी। और जब वेस्टइंडीज़ का स्कोर दो सौ सत्तर के ऊपर चला गया, मैं समझ गया कि अब कुछ नहीं हो सकता। और फिर तेंदुलकर भी शून्य पर आउट हो गया, तो मैंने टीवी बंद कर दी। मैच का नतीज़ा मालूम हो गया था। ठीक उसी समय काजल वापस आई। उसने आने से पहले अपनी बेटी को एक शिशु-सदन में रख दिया था, जहाँ वो अपने साथ के बच्चो के साथ खेलती।
“उठ गए?” उसने कहा।
“हाँ, थोड़ी देर से उठा हुआ हूँ।”
“अच्छी बात है! मैं खाना पका देती हूँ।”
“अरे! वो सवेरे की लुची तरकारी ख़तम हो गई सब?”
“नहीं! तरकारी है। वो खाना है?”
“हाँ! खूब स्वादिष्ट थी!”
काजल ने हँसते हुए कहा, “बहुत अच्छी बात है! तुम भी बंगाली बनते जा रहे हो। रुको, मैं ताज़ी ताज़ी लुची छान कर लाती हूँ।”
कुछ देर में मैं खाना खा चुका और जबरदस्ती कर के काजल को भी खिलाया।
“काजल, तुम अपने और दोनों बच्चों के लिए भी खाना यहीं से ले जाया करो, या यहीं पर खा लिया करो न। ठीक से खाना खाना बहुत ज़रूरी है।”
“क्या बात है, बहुत प्यार आ रहा है?”
“हा हा हा! नहीं। ऐसी बात नहीं है।” फिर मैं थोड़ा गंभीर होते हुए बोला, “काजल, तुम अब से थोड़े और पैसे ले लिया करो?”
“क्यों?” काजल ने कहा, उसका व्यवहार बदलते देर नहीं लगी, “अब हम यह सब कर रहे हैं, इसलिए तुम मुझे और पैसे देना चाहते हो?”
मुझे लग गया कि कुछ गड़बड़ तो हो गई है, इसलिए मैंने कुछ कहा नहीं। रचना के साथ भी ऐसा ही हुआ था। मैं काजल को नाराज़ नहीं करना चाहता था।
“बोलो? यही बात है न? तुमको क्या लगता है? मैं कोई वेश्या हूँ?”
काजल नाराज़ तो हो गई थी। लेकिन वो उस तरह से अपनी नाराज़गी नहीं दिखा सकती थी, जैसी रचना ने दिखाई थी।
“वो बात नहीं है काजल। प्लीज मेरे पास बैठो और दो पल के लिए मेरी बात सुनो। प्लीज?”
कुछ सोच कर वो मेरे बगल बैठ गई।
“काजल, आपने मेरी जिस तरह से देखभाल करी है - कैसी बुरी हालत थी! बिस्तर से उठ भी नहीं पा रहा था मैं! लेकिन आपने बढ़ चढ़ कर मेरी देखभाल करी। आपको वो सब करने की क्या ज़रुरत थी? पड़े रहने देतीं?” मैंने आवेश में आ कर यह सब कह दिया, “सच कहूँ, तो मैंने आपको मेड की नज़र से कभी नहीं देखा। आप मेरे लिए हमेशा मेरी गार्जियन जैसी रही हैं - मैं कोई रिश्ता नहीं जोड़ना चाहता, लेकिन मेरे मन में आप के लिए जो आदर है वो वैसा है जैसे कि आप मेरी मेरी बड़ी बहन, या दोस्त हैं। आप इतना कुछ करती हैं मेरे लिए, तो मुझे भी तो कुछ करना चाहिए?” मैंने कहा, “है न?”
“तुमने किया तो है! सुनील के दाखिले के लिए और उसको पढ़ाने की तुमको क्या ज़रुरत थी? तुम भी तो कर रहे हो न हमारे लिए बहुत कुछ!” काजल मेरी बात सुन कर संयत हो गई थी।
“फिर भी काजल। आपकी ज़रुरत मेरे से अधिक हैं।”
काजल मुझसे बहस नहीं करना चाहती थी, इसलिए वो बोली,
“अच्छा! तो एक काम करते हैं। एक गुल्लक ले आते हैं। उसको यहीं रखेंगे। तुमको मुझे जितना भी एक्स्ट्रा पैसा देना रहा करे, उसमे डाल दिया करो। मुझे जब भी ज़रुरत होगी, मैं उसमे से ले लूंगी। ठीक है? मेरा मरद मेरे हाथ में ज्यादा पैसे देखेगा, तो सब उड़ा देगा। उसका निकम्मापन और भी बढ़ जाएगा!” उसने स्नेह से मेरी तरफ देखा, “ठीक है?”
मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया। वो मुस्कुराई। अचानक ही उसकी आँखों में ममता वाले भाव दिखे,
“तुम बहुत भोले हो, अमर!” उसने प्रेम से मेरा एक गाल सहलाते हुए कहा, “किससे मिला है ये भोलापन? माँ से या बाबू जी से?”
“दोनों से!” उनकी याद आते ही मेरे चेहरे पर ख़ुशी की लहर दौड़ गई।
“भगवान उन दोनों को, और तुमको हमेशा खुश रखें!”
मैं मुस्कुराया, “मिलवाऊँगा तुमको! तुम तीनों एक दूसरे को बहुत पसंद करोगे - मुझे पक्का भरोसा है।” मैंने कहा, और फिर कुछ सोचते हुए मैंने जोड़ा, “लेकिन कम से कम खाना तो यहीं से ले जाया करो, या यहीं खा लिया करो?”
“ठीक है मालिक!” काजल ने बनावटी अंदाज़ में कहा।
“मारूँगा तुमको!” कह कर मैंने उसको मारने के लिए घूँसा बनाया।
“अच्छा जी, तो घर के सारे काम भी मुझ ही से करवाओगे, मेरा दूध भी पियोगे, और मारोगे भी मुझे ही!”
“ऐसी बातें करोगी, तो मरूँगा सच में!”
“तुम किसी को नहीं मार सकते, अमर!” उसने बड़ी कोमलता से बोला, “तुम बहुत अच्छे हो। मैंने तुम जैसा कोई और आदमी नहीं देखा!”
“ठीक है, तब तो तुमको मेरे पिताश्री से ज़रूर मिलना चाहिए!”
“हाय मेरी किस्मत! काश, माँ जी से पहले मिली होती मैं उनसे!”
“हा हा हा हा हा!”
“सच में अमर!” कह कर वो बिस्तर से उठने लगी। मैंने हाथ से पकड़ कर उसको रोक लिया।
“जाने दो न,” उसने अपना हाथ छुड़ाने की कोई कोशिश नहीं करी, कुछ काम ही निबटा लूँ!”
“हमेशा काम करती रहती हो! आज मौका मिला है, मेरे पास रहो!”
मैंने कहा और पलंग के किनारे पर बैठ गया। वह खड़े खड़े मुझे देख रही थी, अनिश्चित। बिलकुल अचानक ही हम दोनों के बीच की स्नेह भरी बातें, कामुक माहौल में बदल गईं। मैंने उसकी कमर पकड़कर अपने पास भींच लिया - मेरा सर उसके स्तनों के बीच में था और होंठ उसके पेट पर। मैंने उसी अवस्था में उसको चूम लिया। काजल के शरीर में एक जानी-पहचानी सी कंपकंपी उठ रही थी। मैंने ऊपर देखा, तो उसकी आँखें बंद थीं। मैंने उसकी तरफ देखते हुए ही उसकी साड़ी का पल्लू तब तक खींचा जब तक कि वह केवल अपने ब्लाउज और पेटीकोट में ही न रह गई। मैंने देखा कि उसके पेटीकोट की डोरी उसकी कमर के बाईं तरफ बंधी हुई थी! मैं उसको खोलना चाहता था, लेकिन उससे पहले मैं उसको उसके परिचित तरीके से ही नग्न करना चाहता था। मैंने उसका ब्लाउज खोलना शुरू कर दिया।
“अभी नहीं?” वो बोली।
उसका विरोध बिल्कुल भी गंभीर नहीं लग रहा था, इसलिए मैंने भी न सुनने का नाटक किया।
“सवेरे से दूध नहीं मिला!” मैंने शिकायत करी।
“इतना सब खिलाया, फिर भी तुम हमेशा भूखे हो... और तुम्हारा नुनु भी बिलकुल शैतान बच्चे जैसा हो गया है!” काजल ने मेरे शिश्न को देखते हुए कहा, “एकदम ढीठ!”
लेकिन न तो वो हटी और न ही उसने विरोध किया। मैंने जल्दी ही उसका ब्लाउज खोला और उसके कंधों से खिसका दिया।
“अम्मा बहुत सुंदर है,” मैं उसकी तारीफ़ करता हूँ - ब्रा में से उसका वक्ष-विदरण बेहद खूबसूरत लग रहा था।
“मैं तुम्हारी अम्मा नहीं हूँ,” उसने शिकायत किया।
मैंने उसकी बात पर कोई टिप्पणी नहीं की और जो कुछ मैं कर रहा था उसे करना जारी रखा।
“बिल्कुल नहीं,” इस समय मैं उसकी ब्रा खोल रहा था, “अब बस! और मत करो।” वो अपने होंठ काटते हुए बोली; उसकी आवाज़ में निश्चय का पूरा अभाव सुनाई दे रहा था।
माँ ने समझाया था कि स्त्री की अनुमति के बिना उसके साथ कुछ भी नहीं करना - लेकिन यहाँ काजल केवल शरमाती हुई लग रही थी। एक मूक अनुमति तो थी। उसके स्तन पुनः स्वतंत्र हो गए थे।
इस समय काजल थोड़ी शर्मीली सी लग रही थी। शायद इसलिए क्योंकि दिन का समय था, और उसके नंगे शरीर के सारे विवरण मुझे दिख रहे थे। लेकिन फिर भी उसकी आवाज़ में कुछ ऐसा था जिससे लग रहा था कि मैं उसके साथ जो भी कुछ कर रहा था, वो उन सभी हरकतों पर खुश थी। वह इस बात से खुश लग रही थी कि अब मैं उसको एक आकर्षक अभीष्ट महिला के रूप में देख रहा था, चाह रहा था, और उसकी प्रशंसा कर रहा था। अक्सर औरतों के स्तन ऐसे भारी भारी से होते हैं कि आपस में जुड़े / चिपके से रहते हैं, लेकिन काजल के स्तन एक दूसरे से अलग थे। उसके चूचक पिए जाने के पूर्वाभास में सीधे खड़े हुए थे। कल रात तो नहीं दिखे, लेकिन बढ़िया रौशनी में उसके एरीओला के चारों ओर छोटे छोटे उभार भी दिख रहे थे - माँ के भी ऐसे ही थे। मैंने सहज रूप से उसके दोनों स्तनों को अपने हाथों में लिया - शायद काजल को इस बात की उम्मीद थी, इसलिए वो मुझसे दूर नहीं गई। उसका तो नहीं मालूम, लेकिन मुझे तो अपने हाथों में स्तनों को महसूस करना बिलकुल स्वर्गिक आनंद दे रहा था। जैसे ही मैंने उसके स्तनों को थोड़ा दबाया, उसकी आँखें बंद हो गईं। कितनी सुंदर लग रही थी काजल... बिलकुल देवी की तरह!
मैं अब उसके शरीर के विभिन्न हिस्सों को चूम रहा था और वो प्यार से मेरे गाल सहला रही थी। मैं बीच बीच में उसके स्तन भी पीने लगा। एक बार जब स्तनों से दूध निकलने लगता है, तो बूँद बूँद कर के टपकने लगता है। तो जब मैं उसके पेट को चूमता, तब उसके स्तनों से दूध की बूँदें मेरे सर या कन्धों पर गिरतीं! इसको कहते हैं दूध में स्नान करना! काजल भी मुझे बड़ी कोमलता से सहला रही थी - उसके स्पर्श में इतनी कोमलता थी कि मैं मन ही मन पिघल गया। यह मेरे आनंद की पराकाष्ठा थी!!!!
“बस... थोड़ा ही। ठीक है?” उसने कहा।
‘थोड़ा ही?’ क्या इस तरह के प्रेम संबंधों में कोई सीमा होती है?
काजल खुद जानती थी कि अब हमारे बीच की जो दीवार टूटी है, तो उसमें होने वाले लेन देन की सीमा अब हमारी सज्जनता ही तय कर सकती थी। ये छोटे मोटे, अनिश्चित सी सलाहें वो काम नहीं कर सकतीं। मैं उसके स्वादिष्ट दूध का आनंद उठाने लगा। उसके पूरे शरीर पर, जहाँ भी मैं चाहता था, वहाँ वहाँ मेरे होंठों की छाप लगी हुई थी। उसने न तो मुझे रोका, और न ही कोई शिकायत करी। वो खुद भी बदले में मुझ पर बेपनाह प्यार बरसा रही थी - वो कभी मेरे सर को, तो कभी चेहरे को चूम ले रही थी। यह मेरे लिए इतना भावनात्मक सम्बन्ध था कि मेरी आँखों से आँसू निकलने लगे। उस शहर के अकेलेपन में काजल मेरा सहारा थी - वो मेरे लिए अब मेरा परिवार थी। सब प्रकार की भावनाएँ उभर कर सामने आ रही थीं - मेरा लिंग भी स्तंभित हो गया था, और उसको मेरे इरादों के बारे में चेतावनी दे रहा था। लेकिन काजल को जैसे उसकी परवाह ही नहीं थी। मैं उसके स्तन पीता रहा, और वो अंततः खाली हो गए। मैंने चैन भरी साँस ली, और बिस्तर पर लेट गया।
“मेरे ऊपर बैठो ... अपने पैर मेरे दोनों तरफ कर के,” मैंने उससे कहा।
“इस तरह?” काजल मंत्रमुग्ध सी मेरे ऊपर चढ़ते हुए बोली।
उसने अपने दोनों पैर मेरे दाएँ बाएँ कर लिए, और अपने घुटनों और पैरों के सहारे मेरे ऊपर बैठ गई। ‘वुमन ऑन टॉप’ जैसी पोजीशन बन गई। मैंने उसकी बाहें पकड़ कर अपनी तरफ खींचा - जैसे ही उसका चेहरा मेरे चेहरे के पास आया, उसके नितंब मेरे लिंग पर आ गए।
“हाँ, ऐसे ही!” मैंने उसके होंठ चूम लिए।
मेरी इस हरकत से वो स्तब्ध रह गई। उसने मुझे अजीब सी नज़रों से देखा।
“अमर ....” उसने कोमलता से कहा, “हमें यह नहीं करना चाहिए …”
हमारे बीच सज्जनता अभी भी बची हुई थी। उसने हल्का सा विरोध किया, जबकि उसका हाथ मेरे सीने से ले कर नीचे मेरे पेट तक फिसल रहा था। और मेरा हाथ उसके नितंबों को दबा रहा था।
“कितना बड़ा सा है तुम्हारा ... नुनु!” जैसे ही उसका हाथ मेरे लिंग पर गया, उसने कहा।
“नुनु?”
उसका पेटीकोट हमारे स्पर्श में बाधा दे रहा था, मैंने उसके निचले सर को पकड़ कर ऊपर उठा दिया, ताकि वो मुझ पर ठीक से बैठ सके।
“हाँ,” काजल प्यार से मुस्कुराते हुए बोली, “नुनु! मैं इसको प्यार से यही कहूँगी!”
मैंने उसके स्तनों का और नितम्बों का मर्दन, चुम्बन और चूषण जारी रखा। दोनों स्तन, बारी बारी। मैं उस समय तक पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था। काजल भी यौन आनंद ले रही थी, हर किसी भी चीज़ से बेखबर हो कर! क्योंकि मेरा मुँह उसके कामुक शरीर के लगभग हर अंग को चूमने चुभलाने में व्यस्त था।
मेरा लिंग सीधे उसकी योनि की तरफ देख रहा था। कामुक स्त्री नग्न ही सुन्दर लगती है। इसलिए, मैंने उसकी पेटीकोट की डोरी खोल दी। उसने अचानक ही अपनी कमर पर ढीलापन सा महसूस हुआ, लेकिन इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती, मैंने पेटीकोट को उसके नितंबों से नीचे खिसका दिया। उसने उसे पकड़ने की कोशिश तो की, लेकिन मैंने उसे इतनी ताकत से खींचा कि काजल पीछे की ओर लगभग गिर सी गई। वो शिकायती लहजे में मुस्कुराई। मैं भी मुस्कुराया।
“अब बस! बहुत हो गए कपड़े हमारे बीच!”
“बोका!” उसने मुस्कुराते हुए कहा।
काजल अब मेरे सामने पूरी तरह से नग्न बैठी थी! मैंने उसको हाथों से पकड़ कर अपनी ओर खींचा। वो मेरे सीने पर गिर गई। सब कुछ बहुत कामुक था! कामुक माहौल! उसने मुझे कुछ उत्सुकता और कुछ शरारत से देखा। मंद मंद मुस्कुराते हुए उसने मुझसे मज़ाक मज़ाक में कहा,
“अगर मैं कुँवारी लड़की होती, तो मैं अभी के अभी तुमसे शादी कर लेती!”
मैं मुस्कुराया। शायद यह वाक्य मेरे साथ सेक्स करने की इच्छा रखने का उसका अपना ही एक विनम्र तरीका था। मैंने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि उसने मेरे होंठों पर ऊँगली रख दी, और मुस्कुराते हुए कहना जारी रखा,
“... लेकिन उसके लिए बहुत देर हो चुकी है!”
यह कह कर काजल मेरी गोद से नीचे उतर गई। मैं उसे फिर से अपनी ओर खींचने लगा, पर उसने मुझे रोक लिया,
“नहीं। रुको तो! मेरी बात तो सुन लो!”
मैंने इंतजार किया।
“तुम्हें पता है अमर, मुझे न जाने कैसे तुम्हारे सामने ऐसे.... ऐसे नंगी खड़े होने में शर्म भी नहीं आ रही है!”
मैं उसे फिर से अपनी ओर खींचने लगा।
“अरे रुको तो! बोका!” वो हँसते हुए मुझसे बोली, “प्लीज मेरी बात तो सुन लो ... मैं औरत हूँ, शादी-शुदा हूँ, इसलिए यह [उसने अपनी योनि की तरफ संकेत किया] मेरे पति के लिए है। लेकिन ... लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं तुमको सुख नहीं दे सकती …”
और यह कहते हुए, काजल बिस्तर पर लेट गई और उसने अपने हाथों से अपने स्तनों को जोड़ कर सटा दिया। अब दोनों स्तनों के बीच, उनके तल पर एक सँकरी सी नलिका बन गई - योनि की सुरंग के जैसी!
“यहाँ करो ... इनके बीच। तुमको मेरे स्तन पसंद भी हैं। जब तुम करोगे, तो मैं तुमको देखना चाहती हूँ!”
मैं काजल की बात का मतलब समझ गया और उसके ऊपर आ गया। मुझे इस समय सम्भोग करने की बड़ी प्रबल इच्छा हो रही थी। मुझे अब सेक्स करना ही था चाहे वो काजल के अंदर हो, या काजल के बाहर! मैंने दोनों स्तनों के बीच अपना लिंग डाला, तो उसने घर्षण और पकड़ बढ़ाने के लिए अपने स्तनों को एक साथ दबाया। मेरा पूरी तरह से तना हुआ लिंग उसके चेहरे के काफ़ी करीब था। काजल ने मेरे शिश्न को एक छोटा सा चुम्बन दिया, और मुझे अपना काम करने के लिए अपना सर हिला कर इशारा किया। फिर क्या था! मैंने स्तन मैथुन करना शुरू कर दिया। यह अनुभव मेरे लिए अपने आप में बहुत शानदार था। उसके दोनों स्तनों के बीच की सुरंग सँकरी और गर्म थी, और उसमे अपने आप में थोड़ी तैलीय चिकनाई थी, जो शायद त्वचा के प्राकृतिक तैल या फिर किसी क्रीम के कारण हो सकती है। मैंने थोड़ी देर में अपनी ले बाँध ली, और मैथुन की गति तेज़ कर दी। जैसा अनुभव योनि मैथुन में होता है, यह अनुभव उससे बहुत अलग था। लेकिन उस समय काजल के साथ यह करना ही मेरे लिए एक रोमांचक घटना थी। मैंने लगभग तीस चालीस धक्के लगाए, और उसके बाद अपने वृषणों में हलचल होती महसूस करी।
“आ... आ रहा हूँ... काजल ... आह! निकलने वाला हूँ ... ओह!” मैंने मैथुन के चरमोन्माद के पास पहुँच कर जोर से घोषणा की।
“चिंता मत करो ... बस करते रहो।” काजल ने मुझे प्रोत्साहित किया।
तो मैंने धक्के लगाने की गति कम नहीं करी। आठ दस और धक्के लगाए, और फिर फट पड़ा! मेरा वीर्य उड़ता हुआ उसके नाक, मुँह और गले पर गिरा। वो बेचारी इस तरह के हमले के लिए तैयार नहीं थी और एक तरह से चौंक गई। फिर भी उसने अपने स्तनों पर दबाव बनाए रखा, जब तक मैं कुछ और झटके लगाने के बाद पूरी तरह से मैं रुक न गया। स्खलित होने के बाद मैं पूरी तरह संतुष्ट और खुश था।
“आह! मज़ा आ गया, काजल! थैंक यू!” मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “... थैंक यू! थैंक यू! थैंक यू!”
“हा हा हा! अरे बस बस!” उसने खिलखिलाते हुए कहा।
मैं लगभग दस मिनट तक बिस्तर पर पड़ा रहा - थका हुआ; और अपनी साँसों को स्थिर करने की कोशिश करता रहा। इस बीच काजल बिस्तर से उठी; उसने अपना चेहरा और शरीर के अन्य हिस्सों को धोया, और फिर वापस बिस्तर पर आ गई। मेरे बगल करवट में लेट कर वो मुझे मुस्कुराते हुए देख रही थी। सब कुछ बड़े हसीन ख़्वाब जैसा था। मैंने उसे अपनी ओर देखते हुए देखा। मैं मुस्कुराया - संतुष्ट और प्रसन्न!
“थैंक यू, काजल। थैंक यू! तुमने मेरी ज़िन्दगी बदल दी है।”
“आज पहली बार किया है?” उसने पूछा - शायद मेरा अनाड़ीपन उसको समझ में आ गया था।
“हाँ!” मैंने झूठ बोला।
वह संतुष्ट और प्रसन्न होकर मुस्कुराई, “बहुत अच्छा। कोई लड़की किसी दिन बहुत खुशनसीब होने वाली है!”
“हा हा हा!”
“सच में! और तुम्हारा नुनु भी खूब बढ़िया है। लम्बा, मोटा और मज़बूत! यहाँ ऐसा लग रहा था तो वहाँ ....” काजल जैसे खुद में ही खोई हुई कुछ भी बड़बड़ा रही थी।
“अरे तो एक बार अंदर ले कर देखो!” मैंने उसको छेड़ा।
“हा हा हा! बोका हो पूरे तुम!” मानो अपने होश में वापस आते हुए बोली।
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