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नहीं भाई ऐतराज नहीं है। एक साथ ही करेक्टर बदलने से कुछ अजीव सा लगा। ऐसा लग रहा है जैसे अब दूसरी कहानी पढ़ रहा हूँ । और कोई बात नहीं है।कहानी में आपका स्वागत है!
देवयानी - अमर वाले एपिसोड पर हैं आप, मतलब अस्सी के ऊपर अपडेट्स आप पढ़ चुके, और लिखा भी तो शिकायत करने के लिए! कमाल है भाई!
और ऐसी बात पर शिकायत करने के लिए जिस पर अब मेरा बस ही नहीं।
वैसे, अगर आपको शादी से पहले देवयानी और अमर के मिलन पर ऐतराज़ है, फिर तो आप ये कहानी न ही पढ़ें।
इस कहानी में ऐसे ऐसे किस्से हैं, कि आपको शॉक लग जाएगा पढ़ कर। बहुत से पाठकों को लग चुका और वो बर्दाश्त ही नहीं कर पाए।
इसलिए कहानी छोड़ कर चल दिए।
पहले ही आगाह कर देता हूँ - बाद में फिर से शिकायत न करिएगा।
कहानी में आपका स्वागत है!देवयानी - अमर वाले एपिसोड पर हैं आप, मतलब अस्सी के ऊपर अपडेट्स आप पढ़ चुके, और लिखा भी तो शिकायत करने के लिए! कमाल है भाई!
और ऐसी बात पर शिकायत करने के लिए जिस पर अब मेरा बस ही नहीं।वैसे, अगर आपको शादी से पहले देवयानी और अमर के मिलन पर ऐतराज़ है, फिर तो आप ये कहानी न ही पढ़ें।
इस कहानी में ऐसे ऐसे किस्से हैं, कि आपको शॉक लग जाएगा पढ़ कर। बहुत से पाठकों को लग चुका और वो बर्दाश्त ही नहीं कर पाए।
इसलिए कहानी छोड़ कर चल दिए।पहले ही आगाह कर देता हूँ - बाद में फिर से शिकायत न करिएगा।
अरे रे ये तारीफ है या विरोध ? तभी भइया हमसे बोले है कि झटके लगेंगे कहानी में पहले ही अवगत करा रहा हूँ कई पाठक बीच में छोड़ गये।कोई भी शब्द नहीं है इन दोनों अपडेटस की तारीफ़ के लिए ।अच्छा लिखते हैं आप कितनी बार यह कहना पड़ेगा ।अक्षरों से किस तरह से खेला जाता है आपको पता है लेकिन लिखने में आप सेक्स को जिस तरह से बयां करते हैं सभी उसकी भावनाओं में बह जाते हैं ।आप की सभी कहानियों को कई कई बार पढा है और उनको पढ़कर मै हमेशा विचलित हुई हू ।क्यों लिखा आपने सुहाग रात का ऐसा वणृण?आप नहीं समझते कि हम सभी भी इसी तरह अपने अतीत में चले जाते हैं हमको भी सब वो चीज़ें याद आती है ।आपके कई अपडेटस सेक्स में मेरे लिए मददगार होते हैं,लेकिन अब नहींअब नहीं , मै नही पढूगी आपकी कोई कहानी
नहीं भाई ऐतराज नहीं है। एक साथ ही करेक्टर बदलने से कुछ अजीव सा लगा। ऐसा लग रहा है जैसे अब दूसरी कहानी पढ़ रहा हूँ । और कोई बात नहीं है।
मै पहले ही कह चुका हूँ कि मै जानता हूँ कहानी पूर्ण हो रखी है कुछ नहीं हो सकता।
और भाई जो शुरू में लिखा गया होता है बाद में वो और अच्छा होता जाता है तो उम्मीद है अच्छा और दिलचस्प ही मिलेगा । और अगर शुरुआत से अच्छा बाद में नहीं मिलता तो मैं समझता हूँ लेखक का स्वयं का दिल कहानी से हट चुका था इस लिये फॉर्मेलिटी पूरी करके कहानी का अन्त कर दिया। मगर अबतक जो आपको पढ़ा है उससे भरोसा बना हुआ है आगे दिलचस्प ही होगा।
ऐसा नहीं है कि मैने शिकायत ही की है क्यों कि ये कहानी कम्पलीट हो रखी है इसलिये सोचा कि कमेन्टमेन्ट देने से लेखक डिस्टर्ब ना हो इस लिये नहीं दिया ।
इसके लिये माफी
अरे रे ये तारीफ है या विरोध ? तभी भइया हमसे बोले है कि झटके लगेंगे कहानी में पहले ही अवगत करा रहा हूँ कई पाठक बीच में छोड़ गये।
सही कहा है दीदी आपने भइया ऐसा वर्णन करते है कि पढ़ने वाला स्वयं को उसी में ढाल लेता है मगर उन लोगों दिक्कत हो जाती है जिसका समय निकल चुका होता है
मगर मुझे तो भविष्य के लिये योजना बनाने में कारगर होगी इसलिये मैं तो पढ़ूगां और ढूढ कर भइया की कहानी पढ़ूगां। और मैं सुहागरात मनाने से पहले भइया की कहानी अपनी पत्नी को पढ़ाउगां तब मनाउगां।
Dear A.A.G., मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ सुनील के तर्क गलत है लेकिन दिल में सच्चाई नजर आती है अगर वो पहले का प्यार बता रहा है तो वो केवल हवस है जिसे वो पहले जाहिर नहीं कर सका अमर के पिता के सम्मान की वजह से। पत्नी के रूप में आपके जैसी चाहिये और आप ही चाहिये में बहुत अन्तर है। हर बेटा चाहता है कि पत्नी माँ जैसी गुणी चाहिये इसमें कोई बड़ी बात नहीं।अब माँ तो अपनी ममता बहा रही है और बेटा उसको अश्लीलता समझे तो गलत कौन हैnice update..!!
sunil ne jo baat boli hai ki woh suman ko bahot pehle se chahta tha yeh bahot hi galat baat hai..jis aurat ne aur uske pati ne iss sunil ko ek bete ki tarah paal poskar bada kiya woh ussi aurat ke liye aisi feelings rakhta hai..yeh galat hi hai..!! kajal ne pehle hi suman ke andar aag bhadkayi hai aur ab yeh sunil ussi aag ko apni baaton aur harkaton se bhadka raha hai..!! sunil ki baaton se pata chalta hai ki woh suman ke guno jaisi biwi pehle se chahta tha lekin ab suman akeli hai toh usko mouka mil gaya hai suman ko pane lekin yeh baat galat hai aur rahegi..!! suman ne kajal, sunil aur latika ko jo sahara diya woh apne bchhe samajhkar diya aur agar iss baat se sunil ko suman se pyaar hai toh yeh bas attraction hai..kyunki sunil ko suman aur kajal ke gun wali biwi chhiye aur ab suman available hai toh sunil usko hi biwi banane ki soch raha hai jo ki bahot galat baat hai..suman ki feelings ke sath aisa khelna galat hai..!! sunil ne yeh kiss kar ke had paar kar di hai..kyunki pehle hi suman ko zatka laga huva hai aur ab aisi harkat karna bahot galat hai..agar pyaar jahir karna hai toh aise hi jahir kiya ja sakta hai baaton se..aise kiss lekar tab hi aage badhta hai aadmi jab samne wali ladki tayyar ho aur sunil ki aisi harkat se pata chalta hai ki woh suman ki body se hi attracted hai..kyunki sumn khud itne bade zatke me hai aur woh sunil ko apna beta manti aayi hai..toh sunil ki yeh harqat bahot galat thi..aur suman ko bhi samajh jana chahiye ki sunil uski jaisi ladki apni zindagi me hamesha chahta aaya hai toh ab woh akeli hai toh sunil usko hi apni biwi bana lena chahta hai..suman ko sunil ko ab khud se dur hi raakhna chahiye..kyunki yaha pe mai samaj ki baat nahi kar raha yaha pe sunil ki soch galat hai..!! amar ko apni maa ke sath time bitana chahiye..kyunki abhi suman sabse jyada jarurat apne bete yani amar ki hai..!!
aur bhai maine amar ko hero isliye kaha ki amar ki zindagi ka yeh safar hi toh hum dekh rahe hai..jisme log judate gaye..ghatate gaye..aur isliye muze lagta hai ki kuchh updates amar kahani se dur hota ja raha hai..usse wapas layiye bhai..!!
Dear A.A.G., मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ सुनील के तर्क गलत है लेकिन दिल में सच्चाई नजर आती है अगर वो पहले का प्यार बता रहा है तो वो केवल हवस है जिसे वो पहले जाहिर नहीं कर सका अमर के पिता के सम्मान की वजह से। पत्नी के रूप में आपके जैसी चाहिये और आप ही चाहिये में बहुत अन्तर है। हर बेटा चाहता है कि पत्नी माँ जैसी गुणी चाहिये इसमें कोई बड़ी बात नहीं।अब माँ तो अपनी ममता बहा रही है और बेटा उसको अश्लीलता समझे तो गलत कौन है
इसमेंअमर की माँ ने सुनील को उसी तरह पाला जैसे अमर को पाला, सबको बराबर का प्यार दिया जिसमें पिता का भी सहयोग रहा।उसी प्यार के चलते सुमन ने सुनील को किशोरावस्था में नंगा नहलाया और स्तनपान कराते समय उसकी परेशानी को समझते हुये स्खलन भी कराया इसके बाद भी माँ का दिल माँ का ही रहा। क्या शादी करके ही उस प्यार का कर्ज चुकाया जा सकता है।
काजल भी अमर का कर्ज चुका रही है।
कहानी के पात्र तो डेवी के पिता भी थे जो पूरी तरह अकेले है और वो भी विधुर हो गये जब डेवी और जयन्ती छोटी थी ।खैर ये सब तर्क है इससे कोई लेना देना नहीं होता। कहानी काल्पनिक होती है और पूरी तरह लेखक की कल्पना पर आधारित होती है देखने वाली बात ये होती है कि लेखक की कल्पना कहां तक दौड़ती है और वो कैसी कल्पना करता है।
शायद ये ज्यादा सटीक बैठता कि पहले सुमन को दूसरी शादी के लिये तैयार किया जाता जब वो तैयार हो जाती तो परिवार से दूर जाने का परिवार से अलग होने का दुख और अपना प्यार जाहिर करके सुनील शादी का प्रस्ताव रखता और मना सकता था।
और भाई अगर कहानी पाठक की सोच के अनुसार हुई तो पाठक पढ़ेगा ही क्यों उसको तो सब पता होगा कि क्या होगा कहानी में।
भइया कुछ गलत लिख गया हो तो बच्चा जानकर क्षमा कर देना।
कहानी में कितने भी झटका हों चाहे कितनी झिर्र चड़ जाये पढ़ूगां जरूर जो भी कमेंटमेंट होगा वो अन्त में दूंगा।
Avs ji, ye sab padh kar toh mai bhi hasne laga. Bahut badhiya likhte hai aap. Waise ye gana kis film ka hai? Maaf karna, mai zyada comments nhi karta hu. Introvert jo thehra. Lekin aapki mehnat ko dekhte hue mujhse raha nhi gya. Mai is forum par naya hu. Pichle saal hi join kiya. Apki comment dekhi kisi kahani par (shayad 'zindagi ke mod' par) aur tabse aapko follow kar rakha hai. Waise toh mujhe kuch shikayate hai amar ke character se lekin aapki lekhni itni badhiya hai ki kahaani padhe bina rah nhi pata huमैंने डेवी के कमर पर चिकोटी काट कर उसके कान में गुनगुनाया,
“समुन्दर में नहा के, और भी नमकीन हो गयी हो!
अरे लगा है प्यार का मोरंग, रंगीन हो गयी हो हो हो!”
मेरे ‘हो हो’ करने से डेवी खिलखिला कर हँसने लगी!
सबसे ज्यादा बकवास अपडेट रहा।अंतराल - पहला प्यार - Update #14
बहुत दिनों बाद ऐसा कुछ हुआ था। माँ तैयार हो कर, स्वयं ही मंदिर जाने के लिए तैयार हुई थीं। मेरे लिए यह एक नई बात थी। आज मौसम सुहाना और सुन्दर था - थोड़े बादल घिरे हुए थे, और हलकी सी ठंडी बयार चल रही थी। उसी बयार के साथ सोंधी सोंधी महक आ रही थी - मतलब, कहीं पास ही बारिश हुई थी। मैं और सुनील बच्चों के साथ खेल रहे थे, और काजल घर के आवश्यक कार्यों में व्यस्त थी। आज का दिन बड़ा अच्छा बीता था - मुझे भी जिस आराम की आवश्यकता थी, वो मुझको मिल गया था। माँ के साथ अपने बिगड़े हुए सम्बन्ध को सुधारने के बाद मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा था।
माँ आज बहुत खुश थीं। उनकी ख़ुशी के कई सारे कारण थे। जीवन के मुश्किल भरे सफ़र में उनके एक जीवन साथी की सम्भावना बन गई थी, और बढ़ गई थी। यह एक अच्छी बात हो चली थी। और फिर, उनका मेरे साथ सम्बन्ध अचानक से ही सुधर गया था - उनकी नज़र में शायद ही वो कभी बिगड़ा हो - लेकिन इतना ही बहुत था कि कम से कम मैं वैसा नहीं सोच रहा था। उनका स्वास्थ्य सुधर गया था - लगभग पहले जैसा हो गया था। उनका दिल बहुत हल्का सा हो गया था - यह कहना कि उनके पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे, बिलकुल सटीक होगा। वो खुश थीं, और इसीलिए आज उन्होंने फीकी सी साड़ी नहीं पहनी थी। आज उन्होंने सरसों वाले पीले और हरे रंग की साड़ी पहनी थी। उनको ऐसे तैयार हुए देख कर मुझे बड़ा अच्छा लगा।
“अरे वाह दीदी! बढ़िया! हाँ - ऐसे ही रंग बिरंगी साड़ियाँ पहना करो न!” काजल ने उनको देखते ही मेरे मन की बात कह दी, “वैसे, किधर को चली सवारी?”
“मंदिर!” माँ ने एक छोटा सा उत्तर दिया - मुस्कुराते हुए, “अ आ... त... तुम भी चलो?”
माँ को समझा नहीं कि वो काजल को आप कहें, या तुम, अम्मा कहें, या काजल? अगर उनको सुनील के साथ अपने भविष्य को स्वीकारना था, तो यह भी उसी भविष्य की सच्चाई थी। काजल उनकी सास होने वाली थी। इसलिए उनको हिचक हुई। जो उनके मुँह से निकल सका, वो बोल दीं।
“नहीं नहीं! बहुत काम हैं आज तो। तुम हो आओ!” काजल ने कहा।
“अमर, बेटे, तुम चलोगे मेरे साथ?”
“कल एक क्लाइंट के साथ मीटिंग है माँ - उसके लिए थोड़ा तैयारी करनी थी!” मैंने कहा।
मुझे लगा कि माँ मायूस हो जाएँगी, लेकिन वैसा नहीं हुआ। शायद वो अकेली ही जाना चाहती थीं। मैं वापस अंदर चला गया - बच्चों के संग कुछ देर खेल कर, कल की मीटिंग की तैयारी करनी थी।
“क्यों न सुनील को साथ लेती जाओ?” उधर काजल ने सुझाया, “मैं उसको कह देती हूँ - सुनील?” कह कर काजल ने सुनील को आवाज़ लगाई।
“जी अम्मा?”
“इधर आओ!”
जब सुनील वहाँ आया तो काजल ने कहा, “जाओ, इसके साथ मंदिर हो आओ!”
सुनील ने पहले तो माँ को देखा, फिर अपनी अम्मा को और फिर बोला, “जी!”
“अरे वाह! सभ्य हो गया है मेरा बेटा तो!” काजल मुस्कुराते हुए बोली, “तुम्हारी सोहबत का असर हो गया है लगता है, दीदी!”
माँ कुछ न बोलीं, और सुनील केवल मुस्कुरा दिया।
काजल फिर कुछ सोच कर आगे बोली, “बस मुझे दो मिनट दो! मैं अभी आई!” और अपने कमरे में चली गई।
“दुल्हनिया,” सुनील ने दबी आवाज़ में माँ के कान में कहा, “तुम खूब सुन्दर लग रही हो। जैसी हो, वैसी!”
माँ वैसे भी सुनील से नज़रें नहीं मिला पा रही थीं। उसकी बात पर उनकी नज़रें और भी झुक गईं। वो अभी से ही नई-नवेली दुल्हन के जैसी महसूस करने लगी थीं। सब कुछ कितना जाना पहचाना सा, लेकिन कितना अनजाना भी!
“कुछ बोलो भी?” सुनील ने उनको छेड़ा।
माँ कुछ कहतीं, उसके पहले ही लतिका कमरे में आते हुए बोली, “मम्मा, मंदिर से मेरे लिए दो लड्डू चाहिए!”
बच्चे हमेशा उत्सुक रहते हैं कि उनके बड़े कहाँ जा रहे हैं। और अगर गुंजाईश होती है, तो मौके पर चौका मारना नहीं छोड़ते। जैसे ही लतिका ने सुना कि उसकी मम्मा मंदिर जा रही हैं, उसको मिठाई खाने का एक सुअवसर मिलता हुआ दिखने लगा। आभा भी कोई पीछे नहीं रहने वाली थी।
अपनी दीदी की देखा-देखी वो भी बोली, “मुझे भी मम्मा - ओह नॉट मम्मा - दादी!”
“मेरे बच्चों को लड्डू चाहिए?” सुनील ने आभा को लाड़ करते हुए कहा, “अरे तुम दोनों तो खुद ही मेरे लड्डू हो,” सुनील ने बारी बारी से दोनों के गाल चूमते हुए कहा, “म्मुआहहह! आह! आह! मीठे मीठे! प्यारे प्यारे! गोल गोल लड्डू! तुमको क्यों लड्डू चाहिए?”
सुनील की हरकत पर दोनों बच्चे खिलखिला कर हँसने लगे।
“दादा, नो चीटिंग!” लतिका ठुनकते हुए बोली, वो जानती थी कि बिना कहे भी उसके लिए लड्डू अवश्य आएँगे, “लड्डू चाहिए!”
“हाँ हाँ मेरी माँ, लेता आऊँगा!” सुनील हथियार डालते हुए बोला, “लेकिन, वापस आ कर दोनों को खाऊँगा! बारी बारी!”
“नहींननननन!” लतिका अपने गालों को अपनी हथेलियों से ढँकते हुए सुनील से दूर भागने लगी। और आभा उसकी इस हरकत पर ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी। मेरा घर इन दोनों बच्चों की हंसी से गुलज़ार रहता है हमेशा!
माँ भी उनको हँसते देख कर हँसने लगीं। फिर थोड़ा सम्हल कर, थोड़ा लजा कर बोलीं,
“आपको बच्चे बहुत पसंद हैं, न?”
“बहोत! और ये दोनों तो मेरी जान हैं, जान!” सुनील बड़े वात्सल्य भाव से बोला, “और वो इसलिए क्योंकि दोनों में ही तुम्हारी छाया है - पुचुकी तो छुटकू वर्शन ऑफ़ यू है! हूबहू तुम! और मिष्टी, वो तो खैर, तुम्हारा ही खून है!”
माँ सुनील की बात पर शर्म से मुस्कुरा दीं। वो समझ रही थीं कि सुनील का इशारा किस ओर है!
“आज देवी माँ से तुम्हे माँगूँगा दुल्हनिया - तुम्हे और तुम्हारे लिए हमेशा बस ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ!” सुनील पूरे निष्कपट भाव से बोला।
माँ के गाल सुनील की बात पर सेब जैसे लाल हो गए।
“मैं खुश हूँ!” माँ ने लजाते हुए कहा।
दोनों कुछ और कहते सुनते, कि इतने में काजल वहाँ आ गई।
सुनील के हाथों में एक छोटी सी डिबिया दे कर वो सुनील से बोली, “बेटा, इसको देवी माँ के चरणों में रख देना। यह प्रसाद बन जाए तो वापस ले आना! किसी को देना है!”
“क्या है अम्मा? और किसको देना है?”
“अरे, उपहार है! मेरी एक सहेली के यहाँ शादी है न। बहू को पहनाऊँगी!”
“ओह!” सुनील थोड़ा अचरज करते हुए बोला, “जी अम्मा! ठीक है!”
“और तू पहले ठीक से तैयार तो हो जा। दोनों साथ में जा रहे हो। इसके साथ जाने लायक तो बन जा!” काजल ने सुनील को उलाहना दी।
सुनील भाग कर अपने कमरे में गया और जल्दी से अपनी शर्ट बदल कर वापस आ गया। उसको ऐसी जल्दी में भागते देख कर काजल को हँसी आ गई। माँ क्या कहतीं - बस, संकोच में वहीं खड़ी रहीं।
दोनों बाहर निकलने ही वाले थे कि काजल ने सुनील को छतरी थमा दी। काजल माँ का ख़याल कुछ इस तरह रखती थी कि जैसे वो खुद ही उनकी माँ हो। घर से बाहर आ कर आज माँ को बहुत अच्छा लगा। अवसाद के चरम पर उनको घर की दीवारों के बीच में एक तरह की भावनात्मक सुरक्षा महसूस होती थी। लेकिन अब, जब वो काफी हद तक अवसाद को मिटा सकी थीं, तब बाहर की खुली हवा में उनको बहुत सुखद लग रहा था। जब तक दोनों मंदिर पहुँचे, तब तक हल्की बारिश होने लगी। रिमझिम वर्षा हवा के साथ बहते हुए तेज फुहारों में बदल गई।
सुन्दर माहौल!
**
यह मंदिर दिल्ली के जाने माने मंदिरों में से एक था - माँ वहाँ अक्सर ही जाती रहती थीं। मेरे ससुर जी के कारण हम लोगों की वहाँ के संस्थापक बाबा जी से काफ़ी बढ़िया जान पहचान हो गई थी। लेकिन उनकी कोई तीन साल पहले मृत्यु हो गई थी। फिर भी, हमारा वहाँ आना जाना कम नहीं हुआ था। माँ और डैड जब भी यहाँ आते, उस मंदिर में दर्शन करने प्रतिदिन जाते। तो वो दोनों भी पहचान वाले हो गए थे।
माँ वैसे तो किसी ही तरीके के वीआईपी उपचार से कतराती थीं, लेकिन उनको पहचानने वाले वहाँ कई लोग थे। मंदिर का कम से कम आधा स्टाफ़ उनको पहचानता था। पहचान के ही किसी पुजारी ने उन दोनों को मंदिर के गर्भगृह में लिवा लाया, और उनसे पूजा कराई। साथ ही साथ काजल की दी हुई डिबिया को माता के चरणों में चढ़ाया। दरअसल उस डिबिया में सोने की एक जंज़ीर थी। माँ उस जंज़ीर को पहचान गईं - काजल ने उसको अपनी होने वाली बहू के लिए बनवाया था। काजल को क्या हो गया है अचानक, माँ यह सोच रही थीं। इतने शौक से बनवाई हुई जंज़ीर वो किसी और को देने वाली है! कमाल है! अब इसको माँ की मूर्खता समझें, या भोलापन - उनको एक पल के लिए भी यह नहीं सूझा कि हो सकता है कि काजल यह उनको ही देना चाहती हो। अभी भी वो खुद को काजल की बहू के मूर्त रूप में नहीं देख पा रही थीं।
खैर, उन्होंने अपनी पूजा प्रार्थना ख़तम करी। पूजा कर के उन्होंने अपने बगल खड़े सुनील को देखा - जो पूरी गंभीरता से, आँखें बंद किये, गहरे ध्यान में, अपने हाथों को जोड़ कर भगवान के सामने खड़ा था।
‘ओह, कैसी अनोखी शांति है ‘इनके’ चेहरे पर!’ माँ का दिल लरज गया, ‘कितने हैंडसम लगते हैं ‘ये’!’
कुछ देर में सुनील ने अपनी आँखें खोलीं। उसको आँखें खोलता देख कर माँ तुरंत ही ईश्वर की प्रतिमा की ओर सम्मुख हो गईं, कि कहीं उनकी चोरी न पकड़ ली जाए। लेकिन सुनील का सारा ध्यान अपने आराध्य पर ही रहा। उसने भगवान के चरणों में माथा टेका, फिर पलट कर उसने माँ के पैर छुए। माँ उसकी इस हरकत पर न केवल शर्मा गईं बल्कि उनको बहुत अजीब सा भी लगा।
‘‘इन्होने’ मेरे पैर क्यों छुए?’
खैर, पूजा ख़तम करने के बाद और दान पेटिका में कुछ चढ़ावा डाल कर, और डिबिया ले कर दोनों वापस आने लगे।
“आपने मेरे पैर क्यों छुए?” माँ से रहा नहीं गया - चलते हुए उन्होंने पूछ ही लिया।
“दुल्हनिया, मैं तुमको बहुत प्यार करता हूँ, तुमसे शादी करना चाहता हूँ - लेकिन केवल इसी कारण से मेरे मन में तुम्हारे लिए आदर कम नहीं हो जाएगा! मैंने तुमसे बहुत कुछ सीखा है। दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ मुझे तुमसे मिली है - प्यार!” सुनील बड़ी गंभीरता से बोला, “और, हमारी नई लाइफ की शुरुवात इस देवी के आशीर्वाद के बिना नहीं हो सकती - इसलिए! वैसे भी अपने से बड़ों का आशीर्वाद लेने में क्या शर्म?”
“हस्बैंड अपनी वाइफ के पैर थोड़े ही छूते हैं!” माँ ने बहुत शरमाते हुए उसको समझाया।
“अभी मेरी वाइफ थोड़े ही बनी हो!” सुनील ने मुस्कुराते हुए कहा, “जब बन जाओगी, तब की तब देखेंगे!”
“तो फिर आप जो सब कुछ मेरे साथ करते हैं, वो किस हक़ से करते हैं?”
“प्रेमी के!” वो तपाक से बोला, “अभी हम कोर्टशिप वाले पीरियड में हैं मेरी जान!”
माँ के होंठों पर एक शर्म वाली हँसी फ़ैल गई। हँसते हँसते ही वो बोलीं, “आप और आपकी बातें! अच्छा सुनिए, अपनी चहेतियों के लिए लड्डू लेना न भूलिएगा!”
“तुमको लगता है कि केवल दो दो लड्डुओं से काम हो जाएगा मेरी लाडलियों का?” सुनील भी हँसते हुए बोला, “पूरी दूकान ले कर जाना पड़ेगा वापस घर!” उसने कहा, और दोनों पास की मिठाई की दूकान की तरफ़ चलने लगे।
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जब दोनों वापस आए, तब तक मैं अपने काम में व्यस्त था। मेरे स्टडी की खिड़की से बाहर का दृश्य दिखता था। मंदिर जाते समय माँ को ऐसी सुन्दर सी साड़ी और हल्का सा मेकअप पहने देख कर मुझे बड़ा अच्छा लगा। कितनी सुन्दर लग रही थीं मेरी माँ! लगभग पहले के जैसी! मतलब दो तीन साल पहले नहीं - करीब पंद्रह बीस साल पहले जैसी! बहुत सुन्दर हैं मेरी माँ! सच में - दुःख और अवसाद के बादल छँटने के साथ उनकी सुंदरता साफ़ दिखाई दे रही थी। एक लम्बे अंतराल के बाद मैंने उनके होंठों पर मुस्कान, और चेहरे पर जीवन की दमक देखी थी।
‘कैसी सुन्दर सी लगती थी मेरी माँ! क्या हालत हो गई है बेचारी की!’ मैंने सोचा... लेकिन फिर कुछ आश्चर्यचकित करने वाला दृश्य नोटिस किया।
बारिश में दोनों ही गीले हो गए थे - छतरी की हालत देख कर लग रहा था कि किसी तेज़ हवा में वो छतिग्रस्त हो गई थी। बात वो नहीं थी - सुनील और माँ साथ साथ ऐसे चल रहे थे जैसे कोई गहरी दोस्ती हो दोनों में! हँसते मुस्कुराते! माँ जैसी हो गई थीं, मुझे लगता था कि वो इस अवस्था में मेरे सामने भी न आतीं। लेकिन आज वो अलग ही लग रही थीं। बढ़िया! मानता हूँ कि सुनील और माँ की दोस्ती मेरे लिए एक नई सी बात थी! लेकिन मैंने इस बात को वैसे बहुत सीरियसली नहीं लिया। हाँ - इस बात को मैं पूरी तरह स्वीकार करता हूँ कि सुनील के आने से माँ पर कई सकारात्मक प्रभाव पड़े थे। जहाँ काजल ने उनको अवसाद के गर्त में और गहरे गिरने से बचाया था, वहीं सुनील ने उनको उस गर्त से बाहर लाने में एक अहम् भूमिका अदा करी थी। ऐसे में अगर दोनों में मित्रता हो गई है, तो क्या गलत हो गया? इन फैक्ट, यह तो बहुत ही अच्छी बात है। जैसे काजल उनकी सखी सहेली है, वैसे ही सुनील भी उनका दोस्त! अच्छी बात है। उधर लतिका भी तो माँ को अपनी माँ जैसा ही ट्रीट करती है। जबकि उन दोनों में रिश्ता ही क्या था?
माँ को जो भी ख़ुशी मिल पाए, उनको ले लेना चाहिए। हर ख़ुशी पर उनका हक़ है - उन्होंने कोई ऐसा काम नहीं किया कि उनको किसी तरह का कष्ट, या दुःख भोगना पड़े।
कल की मीटिंग के बारे में सुनील से थोड़ा बात चीत करने लगा। मैं चाहता था कि वो भी मेरे साथ चले, और उससे बातचीत कर ले। मैं सुनील से बोला,
“सुनील, यार कल मीटिंग और प्रेजेंटेशन है। थोड़ा मेरे साथ बैठोगे? तैयारी हो जाएगी मेरी!”
“हाँ भैया। बिलकुल। बस मुझे पाँच मिनट दीजिए। मैं कपड़े चेंज कर के तुरंत आया!”
उधर लतिका और आभा माँ को घेर कर मिठाई की ज़िद करने लगे। दोनों मेरी आँखों के तारे थे। लड़कियाँ वैसे भी किसी भी घर की रौनक होती हैं - और अगर लड़कियाँ इन दोनों परियों के जैसी प्यारी प्यारी, मीठी मीठी हों, तो कौन आदमी दुःखी हो सकता है भला? शाम को दोनों बच्चियाँ, सुनील और मैं - चारों जने देर तक कुछ भी मूर्खतापूर्ण वाले खेल खेलते रहे थे। और कितना मज़ा आया था! सच में - यह काम और बार करना चाहिए मुझे।
माँ दोनों बच्चों को बारी बारी से मिठाईयाँ खिला रही थीं। सच में, उन दोनों का केवल दो लड्डुओं से काम नहीं चलने वाला था। दोनों वापस आते समय चार पैकेट मिठाईयाँ लाए थे। और दोनों नन्ही चंचल शैतानें कुछ ही देर में हर डब्बे से कम से कम एक चौथाई मिठाईयाँ चट कर गईं। वैसे बच्चे अगर मीठा न खाएँगे, तो और कौन खाएगा?
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कपड़े बदलने के लिए माँ ने अभी बस अपनी साड़ी और पेटीकोट उतारी ही थी, कि लतिका उनके कमरे में आ जाती है। हमारे बच्चों को प्राइवेसी का कोई तुक नहीं समझ में आता था। उसकी मम्मा केवल चड्ढी पहने हुए बहुत क्यूट सी लग रही थीं।
“मम्मा?”
“हाँ बेटू,” कह कर माँ ने पलट कर देखा तो दरवाज़े पर लतिका को खड़े पाया।
लतिका की आदत थी कहीं भी, किसी के साथ भी सो जाने की। आभा ज्यादातर काजल के साथ सोती थी - क्योंकि काजल उसको सोने से पहले स्तनपान कराती थी, और बस कभी कभी ही माँ के साथ। लेकिन लतिका कभी भी, कहीं भी चली जाती थी, और सो जाती थी।
“हाS मम्मा - यू लुक सो क्यूट!” उसने चहकते हुए कहा।
माँ को तब ध्यान आया कि उनकी कैसी अवस्था थी। माँ शायद इतनी नग्नावस्था में लतिका से सामने कभी नहीं आई थीं। बारिश हो जाने से गर्मी की रात में थोड़ी राहत मिल रही थी! लेकिन हमेशा की ही तरह लतिका नंगू पंगू ही थी।
“चल, क्यूट की बच्ची!”
“हाँ - मैं हूँ न आपकी ही बच्ची!” लतिका ने बड़े लाड़ से कहा, फिर बोली, “मम्मा, आपको सूसू हो गया है क्या?”
“नन्ननहीं तो,” माँ हकलाते हुए बोली, “क्यों?”
“फिर आपकी कच्छी गीली गीली क्यूँ है?”
“बारिश में भीग गई हूँ बेटू!” माँ ने शर्माते हुए कहा।
“ओह, मम्मा! आई शुड हैव गॉन विद यू, इंस्टेड ऑफ़ दादा!”
माँ उसकी बातों पास मुस्कुराए बिना नहीं रह पाती थीं। लतिका थी भी तो खूब प्यारी! उसकी बातों पर बिना मुस्कुराए, बिना हँसे रहे ही नहीं जा सकता।
“हा हा हा!”
“कम मम्मा! रिमूव दिस गीलू गीलू कच्छी, एंड कम टू बेड ! आई विल स्लीप विद यू टुनाइट!”
“अरे, बट आई नीड टू हैव फ़ूड!”
“ओके, बट लाई विद मी टिल आई स्लीप?”
माँ ने लतिका की बात का अनुसरण किया - उन्होंने कमरे की बत्ती बुझाई, अपनी चड्ढी उतारी, और लतिका के बगल आ कर बिस्तर पर लेट गईं। दोनों मम्मा - बेटी / बोऊ-दी - ननद एक जैसी हो गईं।
“मम्मा, आप न्यूड हो कर बहुत सुन्दर लगती हैं!”
“हा हा हा! अच्छा जी? आपको सब दिखता है?”
“हाँ न! एकदम मॉडल जैसी लगती हैं आप!”
आप चाहे कुछ सोचें, लेकिन बच्चों की बातों की भोली सच्चाई को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। अपने बारे में सच सच जानना हो, तो किसी बच्चे से पूछें।
“हा हा हा! थैंक यू बेटू!”
लतिका ने उनका एक स्तन सहलाते हुए कहा, “मम्मा, आपके ब्रेस्ट्स भी बहुत क्यूट हैं, आपके ही जैसे!”
“क्या हो गया बच्चे?”
“मम्मा आई वांट टू ड्रिंक योर मिल्क!”
“तो पी लो न बेटू! मैंने कब मना किया है तुमको?”
“नहीं मम्मा! आई मीन, आई वांट टू ड्रिंक योर मिल्क... योर रियल मिल्क! योर एक्चुअल, स्वीट, एंड डिलीशियस मिल्क!”
“लेकिन मैंने तुमको बताया तो कि उसके लिए मुझे पहले शादी करनी होगी!” माँ ने उसका एक गाल प्यार से खींचते हुए और उसका मुँह चूमते हुए कहा।
“आई नो मम्मा!”
“हम्म्म, फिर किस से करूँ शादी? बताओ? कोई है आपकी नज़र में?”
“हम्म!” लतिका गहरी सोच में पड़ने का नाटक करने लगी।
“अब आई बात समझ में दादी माँ?”
“ओह, सो द प्रॉब्लम इस यू डोंट हैव अ प्रॉपर ग्रूम!”
“यस! टेल मी, डू यू हैव समवन इन योर फ्रेंड सर्किल?” माँ ने मज़ाक में पूछा।
“आई लाइक आयुष,” लतिका ने भी तपाक से बोल दिया, “ही इस काइंड ऑफ़ क्यूट!”
“काइंड ऑफ़ क्यूट?” माँ ने उसको छेड़ा, “यू वांट मी टू मैरी सम वन हू इस जस्ट काइंड ऑफ़ क्यूट?”
लतिका को समझ में आया कि हाँ उसकी मम्मा के लिए बेस्ट मैन चाहिए, उससे कम कुछ नहीं चलेगा, “यू आर राइट मम्मा! उसका साइड का एक दाँत टूटा हुआ है। ओन्ली अ हैंडसम ग्रूम विल बी सूटेबल फॉर यू! नो! नॉट हिम!”
माँ उसकी भोली सी बात पर हँसने लगीं, “चल, अब सो जा! बहुत रात हो गई!”
“नो! वेट न मम्मा! अंशुमान इस गुड लुकिंग!”
वो लतिका का बेस्ट फ्रेंड था, और क्लास में हमेशा फर्स्ट आता था। माँ को मालूम था उसके बारे में।
“बट ही फाइट्स विद यू!” लतिका अक्सर उसकी शिकायत घर आ कर करती थी, “हमारी शादी के बाद वो तुमसे झगड़ा करेगा, तो मैं उससे प्यार नहीं करूँगी। और प्यार नहीं करूँगी तो हमारे बच्चे कैसे होंगे?” माँ भी लतिका के खेल में शामिल हो गई थीं, “और... और अगर उसने तुमको दुद्धू पिलाने से मना कर दिया तो?”
“हाँ! ही कैन डू दैट मम्मा! ही कैन बी वैरी मीन!”
“और हमारी शादी के बाद तुम उसको क्या कह कर बुलाओगी?” माँ ने लतिका को छेड़ा, “डैडी?”
“ओह यक!”
“हा हा हा हा! चल अब सो जा!”
लेकिन लतिका ऐसे हार मानने वाली नहीं थी, “मम्मा?”
“हा हा हा, हाँ बेटू?”
“आप दादा से शादी कर लो न!” लतिका ने इतने भोलेपन से यह बात कही कि माँ समझ ही नहीं पाईं कि लतिका शरारत कर रही है, या सीरियस है, “ही इस हैंडसम! ही इस अ बिट डार्क कलर्ड, बट ही लुक्स हैंडसम! ही लव्स मी, ही लव्स यू! एंड ही लव्स एवरीवन! एंड आई विल नॉट माइंड कालिंग हिम डैडी!”
“सो जा बेटू,” माँ बड़े शांत स्वर में बोलीं - सुनील का नाम सुन कर उनको घबराहट नहीं हुई इस बार!
“सच में मम्मा! एंड आई विल आल्सो नॉट माइंड कालिंग यू माय बोऊ-दी!” लतिका ने अचूक दाँव मारा, “आई थिंक दादा विल लव यू खूब!”
“सच में बेटू?” माँ ने बड़े धीमे स्वर में कहा।
“हाँ मम्मा! आई थिंक ही लव्स यू!” लतिका ने फिर से कहा, “एंड... आई विल लव टू हैव यू ऍस माय बोऊ-दी!”
“हम्म्म!”
माँ लतिका की बात पर सोच में पड़ गईं कि कहीं सुनील ने ही तो लतिका को नहीं भेजा है उनको उलझाने!
“मम्मा?”
“हाँ बच्चे?”
“आई वंस सॉ अंकल एंड अम्मा मेकिंग लव!” लतिका ने मेरे और काजल के अंतरंग सम्बन्ध के बारे में खुलासा करते हुए कहा।
“ओह गॉड!”
“नो मम्मा! इट वास ऑलराइट! आई कुड सी दैट अम्मा वास वेरी हैप्पी! अंकल मेड अम्मा वेरी हैप्पी!”
माँ को अचम्भा हुआ, लेकिन फिर भी उन्होंने खुद को संयत करते हुए कहा, “तो आपको सब मालूम है?”
“सब नहीं, लेकिन कुछ कुछ तो मालूम है!” लतिका ने सयानेपन से कहा।
“क्या मालूम है आपको?” माँ जानना चाहती थीं कि लतिका कहीं किसी और बात को ‘लव मेकिंग’ से कन्फ्यूज़ तो नहीं कर रही है।
“व्हाट आई सॉ वास दैट अंकल वास थ्रस्टिंग हिज पीनस इन अम्मा!” लतिका ने कहा, और फिर अचानक ही भोलेपन से पूछ लिया, “नहीं मालूम होना चाहिए क्या मम्मा?”
“मालूम होना चाहिए मेरी बेटू, लेकिन अभी नहीं! इट इस टू अर्ली फॉर यू!”
“यू वर मैरीड एट फोर्टीन! आई ऍम टेन!” लतिका ने माँ को समझाते हुए कहा।
“जी दादी माँ! समझ गई!” माँ ने फिर से लतिका को छेड़ा - उनको हैरत हुई कि आज वो अपनी पुचुकी के साथ कैसा व्यवहार कर रही थीं! जैसे भाभी और ननद के बीच हँसी मज़ाक होता है, ठीक वैसा ही, “लेकिन तुम्हारी शादी चौदह में नहीं होने वाली! समझ जाओ मेरी लाडो रानी!”
लेकिन लतिका को तो जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था, “मम्मा, दादा विल आल्सो मेक यू वैरी हैप्पी!”
“अच्छा जी?”
“यस मम्मा!”
“चल अपने दादा की पूँछ! सो जा अब!” माँ ने बात बदलने की गरज से कहा।
“मम्मा, आई थिंक ही रियली रियली लव्स यू!” लतिका ने कुछ देर चुप रह कर कहा।
“सच में?” माँ के मुँह से अनायास ही यह दो शब्द निकल पड़े।
“आई स्वेर मम्मा! ही लव्स यू सो मच!”
“हम्म्म, और मैं उनसे शादी कर लूंगी, तो तुमको अच्छा लगेगा?”
“बहुत अच्छा लगेगा मम्मा! आई विल बी सो हैप्पी!” लतिका माँ को चूमते हुए बोली, “आप दोनों के बेबीज़ भी बहुत क्यूट होंगे!”
“हम्म्म! यू वांट मी टू हैव बेबीज विद योर दादा?”
“यस मम्मा! इट विल बी अमेज़िंग - डोंट यू थिंक सो?”
“हम्म, एंड यू वांट योर दादा टू मेक लव विद मी द वे अंकल मेड लव विद योर अम्मा?”
लतिका बोली, “मम्मा, आप कितनी उदास उदास रहती हैं! इफ दादा कैन मेक यू हैप्पी, देन यस - आई वांट हिम टू मेक लव टू यू एक्साक्ट्ली लाइक अंकल मेड लव टू अम्मा! आई वांट यू टू बी वेरी हैप्पी!”
“एंड डू यू थिंक दैट ही कैन मेक मी हैप्पी?”
“आप दादा के साथ कितना हँसती मुस्कुराती हैं!” लतिका ने पूरी स्पष्टता से कहा, “आप बाहर नहीं जाती थीं कभी! गाना नहीं गाती थीं कभी। अपने लिए नए कपड़े नहीं लेती थीं। लेकिन उनके कहने पर आप सब करने लगी हैं। ही मेक्स यू हैप्पी! आई नो यू एन्जॉय हिज कंपनी! एंड आई थिंक यू लव हिम एस वेल!”
बच्चों से कुछ छुपा नहीं रहता : उनको मनुष्य की सहज वृत्तियाँ खूब समझ आती हैं।
लतिका ने कहना जारी रखा “सो यस, आई नो दैट ही विल मेक यू वेरी हैप्पी!”
“हम्म... सोचेंगे बेटू, सोचेंगे!”
“पक्का न, मम्मा?”
“हाँ बेटू, पक्का! आई प्रॉमिस!”
“आई लव यू, मम्मा! ऑलवेज! आप अगर मेरी बोऊ-दी नहीं भी बनती हो, तब भी मैं आपको बहुत प्यार करूँगी। लेकिन उस केस में आप दादा से बेटर ग्रूम से शादी करना!”
लतिका ने कहा, और अपनी मम्मा के एक चूचक से जा लगी!
‘‘इनसे’ बेहतर ग्रूम कहाँ मिलेगा भला? प्रेम सबसे बड़ी बात है! मुझसे इतना प्रेम करने वाला भला और कौन हो सकता है?’
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लतिका की भोली बातें, सुनील के साथ बिताया हुआ समय, उसकी प्रेम भरी बातें - माँ को रात भर तड़पाती रहीं। जैसे तैसे वो सो तो गईं लेकिन आज रात भी सपने में उनके सुनील ही सुनील छाया हुआ था। उनको अचरज हुआ कि सवेरे उठ कर उनको अपना जो भी सपना याद आया, उन सभी में सुनील ही सुनील था! और जब वो बिस्तर से उठीं, तो उन्होंने देखा कि रात भर उनकी योनि से कामरस का ऐसा स्राव हुआ कि बिस्तर पर बिछे चादर पर एक बड़ा सा गीला धब्बा बन गया था! लतिका तब तक कमरे से जा चुकी थी। मतलब उसने भी उनकी वो दशा देख ली होगी।
‘हे भगवान्!’
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ये बलात्कार है, सुनील द्वारा अपनी मालकिन का , अपनी पालनहार का, शायद ये हरकतें या ऐसी बातें कोई बाहरी व्यक्ति करता तो सुमन जैसी संस्कारी महिला कतई बर्दास्त नहीं करती मगर सुनील को बर्दास्त कर रही है क्यों कि उसको अपना बच्चा माना है, उसके परिवार को अपने परिवार में मिलाया है अगर विरोध करेगी तो सबको पता चल सकता है या सुनील और सुनील का परिवारअपनी नजरों में गिर सकता है सुनील की वजह से वो काजल और लतिका से जुदा होने सोच ही नहीं सकती इस बात का सुनील फायदा उठा रहा है और इतना आगे बढ़ता जा रहा है वरना अगर आत्मा से सच्चा प्यार होता तो जब तक प्रपोज करने बाद सुमन हाँ नहीं कर देती तब तक हाथ भी नहीं लगाना था।अंतराल - पहला प्यार - Update #9
फिर उसने कमरे के दरवाज़े के तरफ देखा - वो खुला हुआ था। दोनों में इतनी अंतरंग बातें हो रही थीं, और उसमे किसी तीसरे के लिए स्थान नहीं था। हाँ - काजल अवश्य ही बाहर थी, लेकिन वो कभी भी वापस आ सकती थी। बच्चों का स्कूल दूर नहीं था। वो नहीं चाहता था कि तीनों अचानक से घर आ जाएँ और उन दोनों को ऐसी हालत में देख कर कोई अजीब सी प्रतिक्रिया न देने लगें। वो कुछ भी सह सकता था, लेकिन अपनी सुमन को शर्मिंदा होते नहीं देख सकता था।
“एक सेकंड,” उसने कहा, बिस्तर से उठा, और दरवाज़े का परदा बंद कर के वापस माँ के पास आ गया। किवाड़ लगाने से संभव है कि काजल सोचने लगती कि अंदर क्या हो रहा है! वैसे, परदे से कोई सुरक्षा नहीं मिलती, लेकिन फिर भी शक तो कम हो ही जाता है।
वापस आ कर वो इस बार माँ के सामने नहीं, बल्कि पीछे की तरफ़ बैठा - कुछ इस तरह से कि उसके दोनों पैर माँ के दोनों तरफ़ हो गए। वो माँ के पीछे, उनके बहुत करीब बैठा - माँ की पूरी पीठ, उसके सीने और पेट से सट गई थी। उसका स्तंभित लिंग माँ की पीठ के निचले हिस्से पर चुभने लगा। उस कठोर सी छुवन से माँ के शरीर में झुरझुरी सी फैलने लगी - एक अज्ञात सा डर उनके मन में बैठने लगा। उधर सुनील के हाथ फिर से, माँ के ब्लाउज के ऊपर से, उनके स्तनों पर चले गए, और उसके होंठ माँ के कँधों, पीठ और गर्दन के पीछे चूमने में व्यस्त हो गए।
सुनील इस समय किशोरवय अधीरता से काम कर रहा था। माँ ने उसके प्रणय निवेदन को स्वीकारा नहीं था - लेकिन अस्वीकार भी नहीं किया था। न जाने क्यों उसको लग रहा था कि वो जो कुछ कर रहा था, वो सब कर सकता है। लेकिन अभी भी वो अपने दायरे में ही था। किन्तु माँ कुछ मना नहीं कर रही थीं, इसलिए उसकी हिम्मत बढ़ती जा रही थी। उसने कुछ देर उनके स्तनों को दबाया, और फिर उनकी ब्लाउज के बटन खोलने की कोशिश करने लगा! उसने जब ब्लाउज का नीचे का एक बटन खोला, तब कहीं जा कर माँ अपनी लकवाग्रस्त स्थिति से बाहर निकली। सुनील के हाथों पर अपना हाथ रखते हुए वो हकलाते, फुसफुसाते हुए बोलीं - नहीं, बोलीं नहीं, बल्कि अनुनय करी,
“न... न... नहीं!”
“अभी नहीं?” सुनील ने पूछा।
माँ ने ‘न’ में सर हिलाया।
“बाद में?” सुनील ने शरारत से, और बड़ी उम्मीद से पूछा!
माँ ने उत्तर में कुछ कहा नहीं।
उनके हाथ सुनील के हाथों पर थे, लेकिन उसको कुछ भी करने से रोकने में शक्तिहीन थे। अगर सुनील माँ को नग्न करना चाहता, तो कर लेता। माँ उसको रोक न पातीं। उधर माँ ने भी महसूस किया कि हाँलाकि सुनील बड़े आत्मविश्वास से यह सब कर रहा था, लेकिन उसके हाथ भी काँप रहे थे। उसकी भी साँसें बढ़ी हुई थीं। लेकिन वो सभ्य आदमी था। उसके संस्कार दृढ़ थे। सुनील ने माँ की बात की लाज रख ली, और उसने बटन खोलना छोड़ कर वापस से उनके स्तन थाम लिए। माँ इस बात से हैरान नहीं थी कि सुनील उनको, उनके सारे शरीर को ऐसे खुलेआम छू रहा था, लेकिन इस बात पर हैरान थी कि वो उसे खुद को ऐसे छूने दे रही थी, और उसको रोक पाने में इतनी शक्तिहीन महसूस कर रही थी।
सुनील ने उनके कन्धों और गर्दन पर कई सारे चुम्बन दे डाले। माँ अपने कान में सुनील की उखड़ी हुई गर्म सांसें सुन सकती थी, और महसूस कर सकती थीं। उनकी खुद की हालत भी बहुत बढ़िया नहीं थी। उनका शरीर काँप रहा था। उनका आत्मनियंत्रण उनका साथ ऐसे छोड़ देगा, उनको अंदाजा भी नहीं था।
कुछ देर ऐसे मौन प्रेमाचार के बाद, सुनील ने माँ के साथ अपने भविष्य का अपना दृष्टिकोण रखना जारी रखा,
“सुमन... मैं तुमको दुनिया जहान की खुशियाँ देना चाहता हूँ। मैं तुमको खूब खुश रखना चाहता हूँ! मैं तुमको खूब प्यार करना चाहता हूँ! बहुत खुशियाँ देना चाहता हूँ! उसके लिए मैं जो भी कुछ कर सकता हूँ, वो सब करना चाहता हूँ! बहुत प्यार करता हूँ मैं तुमसे! सच में! बहुत! बहुत!”
उसने माँ की गर्दन के पीछे कुछ चुम्बन दिए। माँ का सर न जाने कैसे सुनील की तरफ़ हो कर उसके कंधे पर जा कर टिक गया। उनकी साँसे बहुत तेज़ चल रही थीं। माँ ने कुछ कहा नहीं, लेकिन उनके मुँह से एक आह ज़रूर निकल गई। सुनील ने महसूस किया कि यह माँ के स्तन-मर्दन की प्रतिक्रिया थी।
“सुमन?” उसने बड़ी कोमलता से पूछा, “दर्द हो रहा है?”
माँ ने कुछ नहीं कहा।
“इनको छोड़ दूँ?” उसने फिर पूछा।
माँ ने कुछ नहीं कहा।
“धीरे धीरे करूँ?” उसने फिर पूछा।
माँ ने कुछ नहीं कहा।
“मेरी सुमन... मेरी दुल्हनिया... कुछ तो बोलो!” इस बार उसने बहुत प्यार से पूछा।
माँ ने फिर भी कुछ नहीं कहा, लेकिन अपने लिए ‘मेरी दुल्हनिया’ शब्द सुन कर उनका दिल धमक गया।
“दुल्हनिया, इनको देखने का मेरा कितना मन है!”
माँ ने कुछ नहीं कहा।
“तुम्हारे इन प्यारे प्यारे दुद्धूओं को नंगा कर दूँ?” सुनील ने इस बार उनको छेड़ा।
माँ ने तुरंत ही ‘न’ में सर हिला कर उसको मना किया।
सुनील समझ सकता था कि माँ को शायद सब अजीब लग रहा हो। लेकिन माँ ने ही उसको कहा था कि यही मौका है, और आज के बाद वो इतनी धैर्यवान नहीं रहेंगी। तो जब एक मौका मिला था, तो उसको गँवाना बेवकूफी थी। वो उसका पूरा इस्तेमाल कर लेना चाहता था। इसलिए उसने फिर से अपनी बात माँ के कान में बड़ी कोमलता से कहना जारी रखा,
“ठीक है! कोई बात नहीं! इतने सालों तक वेट किया है, तो कुछ दिन और सही!” सुनील ने कहा!
उसके कहने का अंदाज़ कुछ ऐसा था कि जैसे माँ का उसके सामने नग्न होना कोई अवश्यम्भावी घटना हो! आज नहीं हुई तो क्या हुआ? जल्दी ही हो जाएगी!
माँ की भी चेष्टाएँ अद्भुत थीं - यहाँ आने के बाद शायद ही कोई ऐसा दिन गया हो जब सुनील ने उनके स्तनों को न देखा हो। लतिका या आभा - दोनों में से कोई न कोई उनके स्तनों के लगा ही रहता अक्सर, और उस दौरान अनेक अवसर होते थे, जब उनके स्तन अनावृत रहते थे! लेकिन इस समय उनको सुनील के सामने नग्न होना, न जाने क्यों लज्जास्पद लग रहा था।
ऐसा क्या बदल गया दोनों के बीच? पुत्र और प्रेमी में संभवतः यही अंतर होता है। पुत्र को माता से स्तनपान की भिक्षा मिलती है, और प्रेमी को अपनी प्रेमिका के स्तनों के आस्वादन का सुख!
सुनील ने कहना जारी रखा, “मेरी सुमन, एक बात कहूँ?”
माँ ने कुछ नहीं कहा, बस आँखें बंद किये, अपना सर सुनील के कंधे पर टिकाए उसकी बातें सुनती रहीं। तो सुनील ने कहना जारी रखा,
“मेरी एक इच्छा है... मैं चाहता हूँ कि जब हमारे बच्चे हों, तब तुम उनको अपना दूध, अपना अमृत कई सालों तक पिलाओ... आठ साल... दस साल... हो सके तो इससे भी अधिक!” माँ के स्तनों को सहलाते और धीरे धीरे से निचोड़ते हुए उसने कहा, “जब तक इनमें दूध आए, तब तक! भैया को भी तुमने ऐसे ही पाला पोसा था! और अम्मा भी तो यही कर रही हैं।”
माँ के चूचक उनके ब्लाउज के कपड़े से उभर कर सुनील की हथेली में चुभ रहे थे। माँ ने बहुत लंबे समय में ऐसा अंतरंग एहसास महसूस नहीं किया था। सुनील की परिचर्या पर उनके मुंह से एक बहुत ही अस्थिर सी, कांपती हुई सी, धीमी सी आह निकलने लगी।
“दुल्हनिया?” इस बार सुनील ने बड़ी कोमलता और बड़े प्यार से माँ को पुकारा।
“हम्म?”
कमाल है न? माँ सुनील के ‘दुल्हनिया’ कहने पर प्रतिक्रिया दे रही थीं। शायद उनको अपनी इस स्वतः-प्रतिक्रिया के बारे में मालूम भी न चला हो!
“कैसा लग रहा है?”
माँ ने कोई उत्तर नहीं दिया।
“अच्छा लग रहा है?”
“उम्!”
विगत वर्षों में सुनील का व्यक्तित्व अद्भुत तरीकों से विकसित हुआ था। वो अब न केवल एक आदमी था, बल्कि एक आत्मविश्वासी आदमी भी था। वो जानता था कि वो क्या चाहता है। वो एक प्रभावशाली, दमदार प्रस्ताव बनाना जानता था। इस समय वो माँ को मेरी माँ के रूप में नहीं देख रहा था; बल्कि वो उनको एक ऐसी लड़की के रूप में देख रहा था, जिसमें उसको प्रेम-रुचि है। वो माँ को ऐसी लड़की के रूप में देख रहा था, जिसे वो अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करना पसंद करेगा। और जब माँ ने उसको आज का एक मौका दिया, तो पूरी हिम्मत, आत्मविश्वास, ईमानदारी और अधिकार के साथ वो उस मौके का पूरा लाभ उठा रहा था।
“दुल्हनिया, ब्लाउज खोल दूँ?” सुनील बड़ी उम्मीद भरी आवाज़ में फुसफुसाते हुए फिर से उनको अपनी आरज़ू बताई।
“न... न... नहीं।” माँ ने जैसे तैसे, किसी तरह एक बहुत ही कमजोर अनुरोध किया, “प... प... लीज... अ... भी... न... नहीं।”
“ठीक है!” सुनील ने सरसाहट भरी आवाज़ में कहा। घबराहट तो उसको भी उतनी ही हो रही थी, जितनी माँ को।
उधर, माँ के ज़हन में बहुत सी पुरानी यादें दौड़ती हुई आ गईं। उनको याद आया कि जब वो पहली बार डैड के साथ अकेली हुई थीं, तब उन्होंने उनको कैसे छुआ था। वो कमजोर महसूस कर रही थी, वो घबराहट महसूस कर रही थी, उनको डर लग रहा था। इस समय माँ ठीक वैसा ही, फिर से महसूस कर रही थी। बस, केवल इन दोनों अनुभवों के बीच का लगभग तीस वर्षों का अंतर था!
जब माँ डैड की पत्नी बन कर आई थीं, तब उनमें स्त्री-पुरुष के प्रेम की कोई परिकल्पना नहीं थी। वो विधि के हिसाब से अभी अभी शादी के योग्य हुई थीं। उससे पहले उनका किसी पुरुष से अंतरंग संपर्क नहीं हुआ था। उन दोनों के बीच में कोई भावनाएँ पनपतीं, उसके पहले ही वो गर्भवती हो गईं। तो यूँ समझ लीजिए कि माँ और डैड के प्रेम के मूल में मैं ही था - मैं ही वो कॉमन डिनोमिनेटर था जिसके कारण वो आपस में प्रेम की भावना बढ़ा पाए। मेरे कारण डैड ने देखा कि माँ कितनी ममतामई, कितनी स्नेही स्त्री हैं; मेरे कारण माँ ने देखा कि डैड अपने परिवार के लिए कितने समर्पित हैं, कितने अडिग हैं, कितने परिश्रमी हैं। दोनों के गुण एक दूसरे को भा गए। ऐसे ही उन दोनों में कालांतर में प्रगाढ़ता बढ़ी और प्रेम भी! वो कहते हैं न - हमारे देश में लड़का लड़की का पहले विवाह होता है... और अगर उनमें प्रेम होता है, तो वो विवाह के बाद होता है। वो बात माँ और डैड के लिए भी सत्य थी। इसी बात से माँ भी परिचित थीं - ख़ास कर स्वयं के लिए!
उन्होंने सुनील से संयम रखने का अनुरोध तो किया था, लेकिन उनको इस बात का कोई भरोसा नहीं था कि उनका अनुरोध सुनील को कैसा सुनाई दिया होगा, या उनको खुद को उस अनुरोध के बारे में कैसा महसूस हो रहा था। माँ के दिमाग के एक हिस्से को उम्मीद थी कि सुनील जो कर रहा है, वो करता रहे। जबकि एक दूसरे हिस्से को उम्मीद थी कि वो उन्हें अकेला छोड़ दे।
सुनील को भी माँ के उहापोह का एहसास हो गया होगा!
“अच्छा, मेरी सुमन - तुमको मुझ पर भरोसा है?”
माँ ने बड़े आश्चर्य से सुनील की तरफ़ देखा - ‘ये कैसा प्रश्न?’
समझिए कि यह प्रश्न किसी भी रिश्ते की अग्नि परीक्षा होती है। अगर भरोसा नहीं, विश्वास नहीं, तो प्रेम नहीं हो सकता! सुनील पर अविश्वास न करने का आज तक तो कोई कारण नहीं मिला। उनको सुनील पर भरोसा तो था ही! अगर यह सम्बन्ध न बने, तो भी! माँ का सर स्वतः ही ‘हाँ’ में हिल गया।
“ऐसे नहीं!” उसने बड़े दुलार से कहा, “बोल कर बताओ!”
“हाँ!” माँ घबरा गईं - इस बात को स्वीकार करना समझिए एक तरीके से उनके और सुनील के सम्बन्ध के नवांकुर को जल और खाद देने समान था, “भरोसा है!”
“तो अगर मैं तुमसे कुछ कहूँ, तो तुम मेरा भरोसा कर लोगी?”
माँ ने फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाया, लेकिन कुछ कहा नहीं।
“तो दुल्हनिया मेरी, मुझे अपनी ब्लाउज के बटन खोलने दो…”
“लेकि…” माँ कुछ कहने वाली हुईं, कि सुनील ने बीच में टोका,
“दुल्हनिया, मैं केवल बटन खोलूँगा, और कुछ नहीं! प्रॉमिस!” सुनील ने कहा, कुछ देर माँ के उत्तर का इंतज़ार किया, और फिर उसने बड़ी कोमलता, बड़े स्नेह और बड़े आदर से बोला, “समझ लो, कि यह मेरा तुम्हारे लिए मेरे प्यार का इम्तहान है!”
माँ उहापोह में पड़ गईं - अगर वो सुनील को मना करती हैं, तो उसके लिए साफ़ साफ़ संकेत है कि उनको उस पर भरोसा नहीं। और अगर मना नहीं करती हैं, तो सुनील दूसरा आदमी बन जायेगा, जो उनकी ब्लाउज के बटन खोलेगा! कैसा धर्म-संकट है ये!
उसने कहा और कुछ देर इंतज़ार कर के कहा, “कर दूँ?”
“ठ… ठीक है!” माँ ने थूक गटकते हुए स्वीकृति दे दी। न जाने क्यों? शायद वो खुद भी देखना चाहती थीं कि क्या यह व्यक्ति अपनी बात का, और उनके सम्मान का मान रख सकता है या नहीं!
सुनील समझ रहा था, कि उसके प्रयासों का माँ पर एकदम सही प्रभाव पड़ रहा है। उसने माँ से अपने प्रेम की, और उनसे विवाह करने की अपनी इच्छा व्यक्त कर दी थी, और वो जानता था कि उसने अपनी उम्मीदवारी के लिए बड़ा मजबूत मामला बनाया है। अपने मन में वो पहले से ही खुद को माँ का प्रेमी मान चुका था, और इसलिए वो उनके प्रेमी के ही रूप में कार्य करना चाहता था। उसे यह विश्वास था कि सुमन उसे ऐसा कुछ भी करने से रोक देगी, जो उनको पसंद नहीं है। वास्तव में, माँ के लिए उसके इरादे शुद्ध प्रेम वाले ही थे; लेकिन माँ जैसी सुंदरी से वो बेचारा एक अदना सा आदमी दूरी बनाए रखे भी तो कैसे?
सुनील मुस्कुराया, और उसने धीरे धीरे, एक एक कर के उसने माँ की ब्लाउज के सारे बटन खोल दिए, और अपने वायदे के अनुसार, उनके दोनों पटों को बिना उनके स्तनों से हटाए उनके स्तनों के बीच, सीने पर अपना हाथ फिराया। गज़ब की अनुभूति! कैसी चिकनी कोमल त्वचा! एकदम कोमल कोमल, बेहद बारीक बारीक रोएँ! अप्सराओं के बारे में जैसी कहानियाँ सुनी और पढ़ी थीं, उसकी सुमन बिलकुल वैसी ही थी! अब तो आत्मनियंत्रण की जो थोड़ी बहुत गुंजाईश थी, वो भी जाती रही।
माँ से किए वायदे के अनुरूप उसने उनके स्तनों को नग्न करने का प्रयास तो बंद कर दिया, लेकिन उनके शरीर पर अपने प्रेम की मोहर लगाने में उसके कोई कोताही नहीं बरती। और ऐसे ही चूमते चूमते वो फिर से उनके सामने आ गया। उसको उनकी ब्लाउज की पटों के बीच उनका सीना दिखा। बिलकुल शफ़्फ़ाक़ त्वचा! साफ़! शुद्ध! उसके दिल में करोड़ों अरमान एक साथ जाग गए! लेकिन क्या कर सकता था वो? अपने ‘जीवन के प्यार’ से वायदा जो किया था - अब उसको निभाना तो पड़ेगा ही, न? उसने चेहरा आगे बढ़ा कर माँ के दोनों स्तनों के बीच के भाग को - जो इस समय अनावृत था, उसको चूम लिया।
“दुल्हनिया? इनको भी चूम लूँ?” उसने बड़ी उम्मीद से कहा, “ब्लाउज के ऊपर से ही?”
माँ ने बड़ी निरीहता से उसको देखा - न तो वो उसको मना कर सकीं और न ही उसको अनुमति दे सकीं।
“बस एक बार, मेरी दुल्हनिया?”
माँ को मालूम था कि सुनील की दशा उस समय कैसी होगी! सही बात भी है - अगर कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका को ऐसी हालत में देखे, तो स्वयं पर नियंत्रण कैसे धरे? संभव ही नहीं है। और उस पर भी वो उनसे अनुरोध कर रहा था। अपनी बिगड़ी हुई, ऐसी प्रतिकूल परिस्थिति में भी माँ का दिल पसीज गया। उनका सर बस हल्का सा ‘हाँ’ में हिला।
बस फिर क्या था, सुनील के होंठ तत्क्षण माँ के ब्लाउज के ऊपर से उभरे हुए एक चूचक पर जा कर जम गए!
पहली बार! सुनील के जीवन में पहली बार माँ के स्तन उसके मुँह में थे!
काफ़ी पहले से ही माँ सुनील को अपना स्तनपान करने की पेशकश करती आई थीं - और सुनील हमेशा ही उस पेशकश को मना करता रहा था। लेकिन आज बात अलग थी... आज सुनील ने उसकी माँग करी थी, और माँ झिझक रही थीं। और क्यों न हो? माँ की पहले की पेशकश और सुनील की अभी की चेष्टा में ज़मीन और आसमान का अंतर था। आज से पहले माँ की स्तनपान की पेशकश ममता से भरी हुई थी - उसको स्वीकारने का मतलब था उनका बेटा बन जाना। लेकिन सुनील हमेशा से ही उनका प्रेमी बनना चाहता था, उनका पति बनना चाहता था।
माँ को ऐसा लगा कि जैसे सुनील के होंठों से उत्पन्न हो कर विद्युत की कोई तरंग उनके पूरे शरीर में फैल गई हो। और उस तरंग का झटका ऐसा था कि जैसे उनकी जान ही निकल जाए!
सुनील का उनके स्तनों को प्रेम करने का अंदाज़ प्रेमी वाला था - पुत्र वाला नहीं! अगर उनको थोड़ी भी शंका बची हुई थी, तो वो अब जाती रही। वो सुनील के लिए उसकी प्रियतमा ही थीं! माँ इस बात से अवश्य प्रभावित हुईं कि अगर सुनील चाहता, तो अपनी उंगली की एक छोटी सी हरकत मात्र से उनके स्तनों को निर्वस्त्र कर सकता था। लेकिन उसने वैसा कुछ भी नहीं किया! छोटी छोटी बातें, लेकिन उनका कितना बड़ा प्रभाव! सही ही कहते हैं - अगर किसी के चरित्र के बारे में जानना हो, तो बस ये देखें कि वो छोटी छोटी बातों पर कैसी प्रतिक्रिया देता है।
फिर वो पीछे हट गया। एकाएक।
“सुमन... मेरी प्यारी दुल्हनिया... तुम मेरा प्यार हो… मेरा सच्चा प्यार… मेरे जन्म जन्मांतर का प्यार!” सुनील ने बड़े प्रेम से, लेकिन ज़ोर देकर कहा, “मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। और तुमको मैं बहुत रेस्पेक्ट भी करता हूँ! और मैं अपनी पूरी उम्र करता रहूँगा। तुम मेरे लिए एकदम परफेक्ट हो, और मुझे उम्मीद है कि मैं भी तुम्हारे लिए कम से कम ‘सही’ तो हूँ!”
उसने बहुत प्यार से माँ के गालों को सहलाया, “मैंने अभी जो कुछ भी किया, वो सिर्फ इसलिए किया क्योंकि मैं तुमसे प्यार करता हूँ। बहुत प्यार! मैं हमारे बीच बहुत मजबूत बंधन महसूस करता हूँ। इतने सालों से मैं केवल तुम्हारे साथ ही अपना जीवन बिताने का सपना देख रहा हूँ। मुझे तुमसे प्यार है। अगर तुम मेरी किसी बात पर भरोसा कर सकती हो, तो प्लीज मेरा विश्वास करो कि मैंने तुम्हारे अलावा कभी भी किसी और लड़की को देखा तक नहीं है। किसी और लड़की के बारे में सोचा तक नहीं!”
उसने माँ के माथे को चूमा। माँ को फिर से वही, अपनी त्वचा झुलसने और चुम्बन का उनकी त्वचा में समाने का एहसास हुआ।
“मैं तुमको अपनी मानता हूँ! ... और उम्मीद करता हूँ कि तुम भी मुझको अपना मान लोगी!” उसने मनुहार किया, फिर मुस्कुरा कर बोला, “मैं अब जा रहा हूँ... और अगर मैं यह बात पहले कहने में चूक गया हूँ, तो एक बार और सुनो : मैं तुमसे प्यार करता हूँ सुमन... बहुत प्यार! और मैं हमेशा तुमको प्यार करता रहूँगा! अपनी उम्र भर! मैं चाहता हूँ... और मुझे उम्मीद है कि तुम मेरी पत्नी बन जाओ। प्लीज इस बारे में सोचो।”
उसने एक नज़र भर के माँ को एक आखिरी बार और देखा, उनके गालों को प्यार से छुआ, और “आई लव यू” बोल कर कमरे से बाहर निकल गया।
सुनील के कमरे से बाहर जाने ही जैसे माँ को होश आया - उन्होंने फौरन अपने कपड़े दुरुस्त किए और अपनी ब्लाउज के बटन लगाए। उनकी साँसे भारी भारी हो गई थीं, और उनके दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं। बड़े यत्न से वो अपने आप को सामान्य करने की कोशिश करने लगीं; और साथ ही साथ सुनील ने जो कुछ उनसे कहा था, और किया था, उस पर विचार करने लगीं। ठन्डे दिमाग से सोचने पर उनको लगा कि सुनील ने जो कुछ भी उनके साथ किया था, जो कुछ भी उनसे कहा था, वो सब जायज़ था। उसकी सभी बातों में ईमानदारी थी, और उसकी हरकतों में शरारत थी। सुनील ने उनको ऐसे छुआ था जैसे कि वो हमेशा से ही उसकी हों - उसकी प्रेमिका और उसकी पत्नी!
माँ यह सब सोच कर शर्म से काँप गईं।
शायद सुनील अपनी बातें उनसे कहने से पहले ही उनको अपनी पत्नी के रूप में देखने लगा है!
शायद सुनील पहले से ही उनके बारे में ऐसा सोच रहा है।
माँ ने सोचा, कि अगर उनकी उम्र अधिक नहीं होती - अगर वो सुनील की हम-उम्र होतीं, तो क्या वो तब भी सुनील से शादी करने के विचार पर इतनी झिझक महसूस करती? शायद नहीं! ‘शायद नहीं’ का क्या मतलब? बिलकुल भी नहीं झिझकतीं! सुनील सचमुच बहुत ही हैंडसम, आत्मविश्वासी, मर्दाना और हिम्मती आदमी था! वो एक मेहनती और गौरवान्वित आदमी भी था। सर्वगुण संपन्न है सुनील! एक काबिल आदमी है वो! उसके साथ वैवाहिक जीवन में माँ को आर्थिक सुरक्षा भी मिलेगी, जो उनके एक छोटे से संसार के निर्माण की अनुमति देगा। माँ यह सब सोचते समय इस बात को भूल गईं कि उनके दिए गए पैसों से ही मैंने अपना बिज़नेस खड़ा किया था, और उस बिजनेस में मेजर शेयरहोल्डिंग के कारण, वो अपनी जानकारी और आँकलन से कहीं अधिक संपन्न और समृद्ध महिला थीं, और आगे और भी अधिक समृद्ध होने वाली थीं! लेकिन उनको उस बात से कोई सरोकार ही नहीं था जैसे! माँ के संस्कार में पति का धन ही पत्नी का धन होता है! तो अगर उनका अगला आशियाना बनेगा, तो सुनील के साथ! और इन सभी बातों से सबसे बड़ी, सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि सुनील उनसे प्यार करता है! बहुत प्यार! और यह बात अब उनके मानस पटल पर पूरी तरह से स्पष्ट हो चली थी।
सुखी विवाह के लिए सभी ‘महत्वपूर्ण’ बातें जब इतनी अनुकूल थीं, तो वो सुनील से शादी करने में इतनी संकोच क्यों कर रही थीं? क्या उनका यह पूर्वाग्रह किसी विधवा के पुनर्विवाह की हठधर्मिता के कारण था? या फिर एक बड़ी उम्र की महिला का एक छोटे उम्र के आदमी से शादी करने की हठधर्मिता के कारण था? सुनील सही कहता है - उनको इस बात की परवाह क्यों करनी चाहिए कि दूसरे क्या सोचते हैं, या क्या कहते हैं? अगर उनके लोग, उनका परिवार सुनील के साथ उनकी शादी को स्वीकार कर सकते हैं, तो उनको एक खुशहाल विवाहित जीवन जीने का एक और प्रयास क्यों नहीं करना चाहिए? वो क्यों न अपने मन की वर्षों से दबी हुई इच्छाओं को पूरा करें? ऐसी कौन सी अनहोनी इच्छा है उनकी? वो बस अपना एक बड़ा सा परिवार ही तो चाहती हैं - कई सारी महिलाओं की यही इच्छा होती है! उनकी जब शादी हुई, तब से वो बस सुहागिन ही मरना चाहती थीं - मतलब जीवन पर्यन्त विवाहिता रहना चाहती थीं, और अभी भी उनकी यही इच्छा है! सारी विवाहित महिलाओं की यही इच्छा होती है! यह सब कोई अनोखी इच्छाएँ तो नहीं है! और सुनील उनकी यह इच्छाएँ पूरी करना चाहता है - वो उनको विधि-पूर्वक अपनी पत्नी बनाना चाहता है। जब उसके इरादे साफ़ हैं, तो उनको संशय क्यों हो?
लेकिन अगर सुनील केवल उनके साथ सिर्फ कोई खेल खेल रहा हो, तो?
यह एक अविश्वसनीय विचार था, क्योंकि उनको मालूम था कि सुनील बहुत ही शरीफ़ और सौम्य व्यक्ति है! लेकिन कौन जाने? इस उम्र में बहुत से लड़कों को न जाने कैसी कैसी फंतासी होने लगती है। उनके शरीर में हॉर्मोन उबाल मार रहे होते हैं, और ऐसे में वो किसी भी औरत को अपने नीचे लिटाने में ही अपनी मर्दानगी समझते हैं! सुनील अभी अभी हॉस्टल से लौटा है। क्या पता - वहाँ रहते रहते कहीं उसका व्यक्तित्व न बदल गया हो?
वो कहते हैं न, देयर इस नो फूल लाइक एन ओल्ड फूल?
अगर ऐसा है, तो वो खुद को मूर्ख तो नहीं बनाना चाहेगी, है ना? वो भी इस उम्र में! ऐसी बेइज़्ज़ती के साथ वो एक पल भी जी नहीं सकेंगी! लेकिन सुनील के व्यवहार, उसके आचार को देख कर ऐसा लगता तो नहीं। आदमी परखने में ऐसी भयंकर भूल तो नहीं होती! और ये तो अपने सामने पला बढ़ा लड़का है! वो उनके साथ, अपनी अम्मा के साथ, और अपने भैया के साथ ऐसा विश्वासघात क्यों करेगा?
सबसे ज्यादा बकवास अपडेट रहा।
10 सील की पुचुकी 50 साल की महिला की तरह हैन्डल करना, अंग्रेजी जैसे पी एच डी होल्डर हो या विदेश की ही पैदाइश हो।
घर में नौकरानी का काम करने वाली काजल भी ग्रेजुएट हो गई गांव से ब्लॉग करने वाली 14 साल की विवाहित सुमन भी फर्राटा इंगलिश अब 18 साल की अनछुई कन्या बन गई। काजल की कमाई का कोई जरिया नहीं पूरी तरह अमर पर आश्रित, उसका पुत्र सुनील उस देवी के दिमाग का बलात्कार करके अपने फेवर में कर लेता है।50 साल की माँ की शादी का जबरदस्ती प्रयास तो है जिसको जीवन में जरूरत ही नहीं दिखी और ना ही उसको कभी किसी ने बॉडी रियेक्सन से ये देखा कि सुमन को शारिरिक नीड है मगर अमर की शादी करना जरूरी नहीं है उसके लिये रखैल मन्जूर है काजल की शादी का ख्याल नहीं जो कई सालों से तलाक सुदा जीवन व्यतीत कर रही है जबकि उसका बेटा भी जानता है बेटी भी जानती है अमर,और सुमन भी जानते है कि काजल को चुदाई की इच्छा होती है।
एक व्यक्ति से सम्बन्ध बदलते ही सबके प्रति भाषा और उच्चारण बदल जाता है मान सम्मान बदल जाता है। पिछला सब खतम हो जाता है ।
आपने सही कहा लेखक भइया झटके लगेंगे, लग रहे है दिमाग का दही हो गया है। इससे आपके बारे में भी कोई धारणा नहीं बनी पा रहा कि आप कैसे लेखक हो बस इतना ही समझ रहा हूं कि आपका शब्द ज्ञान है वो जबर दस्त है
ये बलात्कार है, सुनील द्वारा अपनी मालकिन का , अपनी पालनहार का, शायद ये हरकतें या ऐसी बातें कोई बाहरी व्यक्ति करता तो सुमन जैसी संस्कारी महिला कतई बर्दास्त नहीं करती मगर सुनील को बर्दास्त कर रही है क्यों कि उसको अपना बच्चा माना है, उसके परिवार को अपने परिवार में मिलाया है अगर विरोध करेगी तो सबको पता चल सकता है या सुनील और सुनील का परिवारअपनी नजरों में गिर सकता है सुनील की वजह से वो काजल और लतिका से जुदा होने सोच ही नहीं सकती इस बात का सुनील फायदा उठा रहा है और इतना आगे बढ़ता जा रहा है वरना अगर आत्मा से सच्चा प्यार होता तो जब तक प्रपोज करने बाद सुमन हाँ नहीं कर देती तब तक हाथ भी नहीं लगाना था।
अब बात आती सुमन की तो भाई अब कोई लड़का किसी औरत को इस तरह उसकी मजबूरी का फायदा उठाकर उसके प्राईवेट पार्टों को छूयेगा तो कब तक महिला पानी पानी नहीं होगी । 70 साल की महिला को भी सेक्सुअल टच किया जाये तो वो भी एक्साइटेड हो जायेगी ।
अब बात रही लेखक भइया कि तो भइया ये आपकी कल्पना है अब आपकी कल्पना में सत्तर साल की महिला के होंठ गुलाब के फूल की तरह कोमल, केले के पेड़ की तरह जंघायें कसा हुआ बदन, मुलायम और तने हुये स्तन, टाइट कसी हुई योनी मतलब सोलह साल की लड़की दिखाई देती है तो जरूरी नहीं कि पाठकों को भी वहीं महसूस हो।
सुमन की उम्र, परिवार में उसकी पोजिशन, उसके संस्कार, परिवार के प्रति प्यार,और बाहर वालों के दिल में दया और मदद की भावनाओं को देखते हुये पाठकों ने विरोधी कमेंट किये है ना कि कहानी या लेखनी को ।
पाठको को अच्छी लगे तो वा वाह करदेना चाहिये वरना चुप चाप रह कर पढो नही तो पढ़ना बन्द कर दो। आप कमेंट और लाइक की इच्छा रखते है तो पाठक देते है तो जैसा पाठक महसूस करेंगे वैसा ही तो कमेंटमेन्ट करेंगे।
समझने की कोशिश करना हम क्या कहना चाहते है अगर बुरा लगे और समझ ना आये तो। और क्षमा कर देना