• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

Status
Not open for further replies.

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,039
22,451
159
b6ed43d2-5e8a-4e85-9747-f27d0e966b2c

प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
Last edited:

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,039
22,451
159
ये तो 50 सालों की ही थी, श्राप भी इतनी लंबी ही लगती है मुझे तो, या शायद और ज्यादा हो।

करीब करीब डेढ़ सौ साल लम्बी...
 
  • Haha
Reactions: Riky007

DesiPriyaRai

Active Reader
1,428
1,757
144
नींव - पहली लड़की - Update 18


रचना का हमारे घर आना जाना बरकरार रहा। मैं उसके घर जाता, तो उसकी मम्मी ऐसा व्यवहार करतीं कि जैसे उनके घर में अगर मैं एक घंटे से अधिक बैठ जाऊँगा, तो जैसे किसी की मौत हो जाएगी। लेकिन, मुझे मजबूरन वहाँ जाना पड़ता - क्योंकि अगर मैं न जाता, तो उनको एक और बहाना मिल जाता रचना को रोकने का। रचना माँ से अक्सर यह शिकायत करती थी कि कैसे उसके माता-पिता, ख़ास तौर पर उसकी मम्मी उसको यहाँ आने से हतोत्साहित करती हैं। मैंने देखा कि रचना का स्कर्ट / ब्लाउज पहनना काफी कम हो गया था, और वो अब ज्यादातर शलवार-कुरता-दुपट्टा ही पहनती। उसकी माँ रोज़ उसको कहती कि अब वो ‘बड़ी’ हो गई है, इसलिए उसको ऐसे ही शालीन कपड़े पहनने चाहिए। मैं समझ नहीं पाया कि इसका क्या मतलब है, लेकिन माँ समझ गई। माँ ने एक नई तरक़ीब तैयार करी, जिससे रचना के माँ बाप को उसको हमारे घर आने पर ज्यादा आपत्ति न हो। माँ ने उसे कुछ खास व्यंजन पकाना सिखाना शुरू कर दिया। रचना ने यह सब सीखा, और अपने घर पर पका कर खिलाया। और तो और, वो घर के कामों में भी अपनी मम्मी की मदद करने लगी। यह सब होने से उसके मम्मी डैडी काफ़ी खुश हुए, और उनकी अनिच्छा काफ़ी दर्ज़े तक कम हो गई। उन्होंने सोचा कि क्योंकि मेरी माँ का उनकी बेटी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा था, इसलिए उसका हमारे घर आना जाना ठीक है!

मैंने कुछ बार देखा कि या तो उसकी मम्मी, या फिर उसके मम्मी डैडी दोनों ही, अचानक ही, जैसे इंस्पेक्शन करने, हमारे घर आ धमके थे। मुझे तो उसकी अम्मा बिलकुल भी ठीक नहीं लगती थीं। इसलिए मैं उनसे अपनी दूरी बना कर रखता था। ख़ैर, वो दोनों रचना को अपेक्षित ‘पारंपरिक’ और ‘संस्कारी’ तरीके से व्यवहार करते देखकर वे खुश थे। लेकिन उनको मालूम नहीं था कि जब वो दोनों अपनी बेटी पर विभिन्न प्रकार के प्रतिबंध लगा रहे थे, तो मेरी माँ उसको अपनी मर्ज़ी के अनुसार बड़ा होने में मदद करने की कोशिश कर रही थी। अपने खुद के घर पर रचना को शलवार कुर्ता के अलावा कुछ और पहनने की इजाजत नहीं थी। लेकिन मेरे घर में उसका जैसा मन था, वो वैसे रह सकती है। वो सब कुछ कर सकती थी जो उसे पसंद है। हमारे घर में मिलने वाली आज़ादी उसको बहुत पसंद थी। वो यहाँ डान्स कर सकती थी, हाफ पैंट पहन सकती थी, या फिर बिना कपड़ों के भी रह सकती थी। जब उसे पीरियड्स होते थे तो वह कपड़े पहनती थी, लेकिन कभी-कभी वह कम से कम या बिना कपड़े पहनती थी। डैड के सामने उसको थोड़ी सी झिझक महसूस होती थी, लेकिन उनका व्यवहार उस दिन जैसा ही रहा हमेशा। रचना भी उनको अब ‘डैड’ ही कह कर बुलाती थी। बस उसके अपने माँ बाप के सामने, मेरे माँ डैड अंकल जी, आंटी जी बन जाते।


**

एक दिन, हम तीनों बिस्तर पर आराम से लेटे हुए थे और बातें कर रही थे। ऐसे ही बातों ही बातों में रचना ने माँ की ब्लाउज के बटन खोलना शुरू कर दिया। माँ ने सोचा कि रचना यह सब संभवतः सामान्य स्तनपान की इच्छा के लिए कर रही है, लेकिन उसने ब्लाउज के बाद माँ की साड़ी को उतारना शुरू। यह कुछ अलग था।

“क्या बिटिया, अपनी माँ को नंगा कर देगी आज?”

रचना ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“हा हा हा!” माँ थोड़ा नर्वस हो कर हँसीं, “अरे मैं तेरे जैसी ही तो दिखती हूँ!”

माँ ने कहा लेकिन उन्होंने रचना को नहीं रोका। जल्द ही माँ पूरी तरह से नग्न हो गईं। आज माँ को पहली बार इस तरह नग्न देखकर रचना बहुत खुश थी। उसके मन में कुछ और ही बात थी, जो तब तक न मैं समझ पाया, और न ही माँ! लेकिन फिर आगे जो उसने किया, हमको सब बात समझ आ गई। वह घुटनों के बल माँ के सामने बैठ गई, और फिर हाथ जोड़कर उनको सम्मान से प्रणाम किया। उसको ऐसा करते देख कर माँ बहुत भावुक हो गईं, और उनकी आँखों में आँसू आ गए। रचना भी बहुत भावुक हो गई। मैं मूर्खों के समान बैठा हुआ सोच रहा था कि क्या करूँ! मैं सोच रहा था कि अगर रचना माँ के प्रति अपना आदर और प्रेम दिखा रही है, तो इसमें रोने वाली क्या बात है?

“माँ, मैं कितनी लकी होती अगर मैंने आप से जन्म लिया होता!” रचना ने भाव विभोर होते हुए कहा।

“ओह बेटा! मेरी बच्ची! यहाँ आओ बेटा, यहाँ आओ! मेरे पास!” माँ ने रोते हुए कहा, और रचना को इतने प्यार से गले लगा लिया कि शब्द उसका वर्णन नहीं कर सकते। मुझे अभी तक याद है कि उस दिन कैसे माँ ने खुद ही रचना के होठों में अपना चूचक दिया था जिससे वो अपनी माँ से स्तनपान कर सके। यह एक सम्मोहक दृश्य था। माँ और रचना को ऐसी ममत्व भरे संयोजन में देखना अद्भुत था। मैं उस दृश्य को बस देखता रह गया, और सराहता रह गया।

**

कुछ महीनों बाद, ऐसी ही एक और दोपहर में रचना मेरे लिंग के साथ खिलवाड़ कर रही थी। वो उसे अपनी उंगलियों से सहला रही थी, और धीरे-धीरे, हल्के हल्के से निचोड़ रही थी। यह इतना अलग अनुभव था कि मैं देखने लग गया कि वो क्या कर रही है! वो जो भी कुछ कर रही थी, मुझे उसमे बड़ा आनंद आ रहा था।

“अच्छा लग रहा है?” उसने मेरे चेहरे के आते जाते भावों को देख कर पूछा। उसकी आवाज़ में जिज्ञासा और प्रसन्नता वाले भाव सुनाई दे रहे थे।

“हाँ” मैं फुसफुसाते हुए हामी भरी।

रचना के इस इंटिमेट और सेक्सी स्पर्श ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया था। अब वो मेरे लिंग के सिरे को एक अलग तरीके से गुदगुदा रही थी।

“और ये?”

“बहुत अच्छा रचना!”

“और जब मैं इस तरह से दबाती हूँ, तब?”

“ऊहहह ... बहुत ... आह! ऐसे ही!”

रचना लगातार मेरी प्रतिक्रियाओं को देखते हुए, मुझे अपने हाथों से प्यार करती रही। वह बहुत चुपके चुपके मुझसे बात कर रही थी, जैसे कि कोई हमें सुन न ले। मैंने एक नई बात देखी - मेरे लिंग का आकार पहले से बड़ा हो गया था। हाँ, स्तम्भन में भी! यह मेरे लिए एक नई बात थी। मैं चाहता था कि हम अपने कमरे में जा कर करें। यह कुछ बहुत ही निजी सा लग रहा था। कहीं माँ ने हमें यह करते देख लिया, तो वो क्या सोचेंगी! मेरे लिंग का स्तम्भन आप पूर्ण हो चुका था। रचना का हाथ मेरे लिंग पर लिपटा हुआ था, और कम से कम एक इंच बाहर भी निकला हुआ था। कुछ महीने पहले जब वो ऐसे पकड़ती थी तो कुछ भी बाहर नहीं निकला होता था! अचानक ही रचना मेरे लिंग को कोमलता से पंप करने लगी।

उसके चेहरे को देख कर लग रहा था कि वो मेरे इरेक्शन के आकार से खुश थी! उसने एक दो बार प्रशंसात्मक टिप्पणियाँ भी करीं, जैसे कि मेरी छुन्नी अब वाकई लण्ड बन रही थी। उसने पंप करना जारी रखा और उसके कुछ मिनटों की पंपिंग के बाद, मैंने अपने पहले स्खलन का अनुभव किया! यह कोई जबरदस्त स्खलन नहीं था। इसमें मेरा वीर्य विस्फोट के जैसे नहीं निकला, बस बह गया। वीर्य की मात्रा भी कम ही थी। लेकिन मेरे गले से ऐसी ऐसी आवाज़ें निकलीं कि उसको बताना मुश्किल है! ज़िन्दगी का पहला स्खलन - वो भी मेरी सबसे अच्छी दोस्त के कारण! यह अनुभव जीवन पर्यन्त याद रहेगा मुझे! मेरे लिंग से निकल कर मेरा वीर्य उसके हाथ पर फ़ैल गया। उसने अपना हाथ देखा और मुस्कुराई,

“बन्दर कहीं के! अब तुमसे बच कर रहना पड़ेगा!”

“क्यों?”

“बुद्धूराम, अब तुम एक आदमी बन गए हो! तुमसे बच कर न रही तो तुम मुझ में एक बच्चा डाल दोगे!”

“ऐसा क्या?”

“हाँ। इसे देखो [उसने मुझे मेरा वीर्य दिखाया] - यह तुम्हारा बीज है। यह मुझे प्रेग्नेंट कर सकता है।”

“क्या सच में, रचना?” उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “तो फिर, तो फिर, तुम मुझे अपने चीरे में अपनी छुन्नी डालने दो न?”

“यही तो मैं तुमसे कह रही हूँ... अगर तुम अपनी छुन्नी मेरे अंदर डालोगे, तो चाहो न चाहो, तुम अपना बीज मेरे डाल दोगे। और फिर मैं प्रेग्नेंट जाऊँगी!”

“तो फिर हमको एक बच्चा होगा?”

“हाँ! समझे बुद्धू जी?”

“मैं समझ गया... लेकिन तुम क्या कभी मुझे यह करने दोगी?”

“अरे मेरा बन्दर! मेरे साथ ये सब छी छी काम करेगा? तुझसे बड़ी हूँ। दीदी हूँ तेरी!”

“दीदी नहीं, बीवी! माँ तुमको अपनी बहू मान कर प्यार करती हैं!” मैंने चिढ़ कर कहा। जवानी आ गई थी, लेकिन बचपना थोड़े ही गया!

“ओली ओली! ये लाल पुट्ठों वाला बन्दर, मुझसे शादी करेगा! हा हा हा हा!” मुझको चिढ़ता देख कर रचना मुझे और चिढ़ाने लगी।

मैं कुछ और प्रतिक्रिया देता, कि तभी मुझे माँ की बातें याद आ गईं। मैं थोड़ा सा रुका और फिर सोच कर इस बात की दिशा ही बदल दी।

“रचना, मैं तुमको खुश रखूँगा! बहुत खुश! इस घर में तुम बहुत खुश रहोगी। सब तुमको बहुत प्यार करेंगे - अभी भी करते हैं - लेकिन तब और भी ज़्यादा करेंगे!”

इस बदली हुई बात का रचना के पास कोई काट नहीं था। मैं उसकी कही हुई बात पर चिढ़ा नहीं, वो उसी से ही निःशस्त्र हो गई थी, लेकिन ये वाला तो एक ब्रम्हास्त्र था! वो चुप हो गई - वो मुस्कुरा रही थी, लेकिन उसकी चुप्पी एक गंभीर चुप्पी थी।

“अब बोलो! मैं क्या इतना ख़राब हूँ?”

उसने मुस्कुराते हुए ही ‘न’ में सर हिलाया।

“तो फिर?”

“हा हा! ठीक है बाबा! अगर तुम ऐसे ही अच्छे बच्चे के जैसे बिहैव करोगे, तो सोचूँगी... लेकिन यार यह सब खतरनाक हो सकता है! अगर मैं पकड़ी गई, तो बहुत बुरा होगा मेरे साथ!”

मैंने उससे और कुछ नहीं कहा, क्योंकि रचना ने आगे जो किया वह और भी आश्चर्यजनक था। उसने अपने हाथ पर लगा हुआ मेरा वीर्य थोड़ा सा चाट लिया। फिर मुझसे बोली,

“चखोगे?”

मैंने कोई हील हुज्जत नहीं दिखाई - अगर वो मेरा ही अंश चख सकती है, तो मैं खुद क्यों नहीं? मैंने भी थोड़ा सा चाट लिया।

“नॉट बैड, राइट?” उसने पूछा।

“हाँ। नॉट बैड!”

मैंने उसकी तरफ देखा - आज रचना बहुत खूबसूरत लग रही थी। उसने रोज़ के जैसे ही शलवार और कुर्ता पहन रखा था, लेकिन उसकी कशिश, उसकी सुंदरता आज बाकी दिनों से अलग लग रही थी। मुझे ऐसे देखते हुए देख कर वो शरमा गई और बोली,

“मैं हाथ धो कर आती हूँ!”

“मैं भी आता हूँ!”

हम दोनों ही बाथरूम गए, जहाँ रचना ने अपना हाथ धोया और मैंने अपना लिंग साफ किया। जब हम बाथरूम से बाहर निकल रहे थे तो माँ ने हमको देखा। लेकिन उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया - यह तो अक्सर ही होता था।

“बच्चों, कुछ चाहिए खाने को, या पीने को?” माँ ने पूछा।

“नहीं माँ!” हम दोनों ने एक साथ ही जवाब दिया।
बहुत ही खूबसूरत अपडेट था।
वह घुटनों के बल माँ के सामने बैठ गई, और फिर हाथ जोड़कर उनको सम्मान से प्रणाम किया।
दिल छू लिया लेखक बाबू आपने।
 
  • Love
Reactions: avsji

DesiPriyaRai

Active Reader
1,428
1,757
144
नींव - पहली लड़की - Update 19


हमको ऐसे बोलते देख कर माँ मुस्कुरा दीं, और अपने कमरे में चली गईं आराम करने। बाथरूम से हम सीधा मेरे कमरे में चले गए। जब हम अपने कमरे के अंदर गए, तो मैंने कमरे के किवाड़ लगा लिए। आज यह मैंने पहली बार किया था। न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि रचना और मुझे थोड़ी प्राइवेसी चाहिए। रचना ने भी यह नोटिस किया, लेकिन वो कुछ बोली नहीं। हम जब बिस्तर पर लेट गए, तब मैंने रचना से पूछा,

“रचना, तुमको कैसा लड़का चाहिए?”

“किसलिए?” वो जानती थी, लेकिन जान बूझ कर नादान बन रही थी।

“अरे शादी करने के लिए! कैसे लड़के की बीवी बनना चाहोगी?”

“तुम में क्या खराबी है?”

“मतलब मैं तुम्हारे लिए अच्छा हूँ?”

“हाँ! तुम अच्छे हो। हैंडसम दिखते हो। तुम्हारे माँ और डैड भी कूल हैं!” वो आगे कुछ कहना चाहती थी, लेकिन कहते कहते रुक गई।

मैंने कुछ पल इंतज़ार किया कि शायद वो और कुछ बोले, लेकिन जब उसने कुछ नहीं कहा, तो मैंने ही कहा,

“मैं तुमको प्यार कर लूँ?”

“मतलब?”

“मतलब, एस अ हस्बैंड?”

“अच्छा जी? मतलब आपका छुन्नू अभी अभी खड़ा होना शुरू हुआ है, और आपको अभी अभी मेरा हस्बैंड भी बनना है?”

“करने दो न?”

“हा हा हा! मैंने रोका ही कब है?”

रचना का यह कहना ही था कि मैंने लपक कर उसके कुर्ते का बटन खोलना शुरू कर दिया। मेरी अधीरता देख कर वो खिलखिला कर हँसने लगी। मैंने उसकी टी-शर्ट / ब्लाउज / शर्ट तो उतारी थी, लेकिन कुरता कभी नहीं। खैर, निर्वस्त्र करने की प्रक्रिया तो एक जैसी ही होती है। कुरता उतरा तो मैंने देखा कि उसने ब्रा पहनी हुई है।

“इसको क्यों पहना?” मुझे उत्सुकता हुई।

“बिना ब्रा पहने कैसे घर से बाहर निकलूँगी? मम्मी जान खा लेंगी!”

“वो क्यों?”

“अरे - इसको नहीं पहनती हूँ तो कपड़े के नीचे से मेरे निप्पल दिखने लगते हैं। और ब्रेस्ट्स को भी सपोर्ट मिलता है।”

“ओह तो इसलिए माँ भी बाहर जाते समय इनको पहनती हैं?”

“और क्या! नहीं तो आदमियों की आँखें खा लें हमको!”

मैंने उसके स्तनों की त्वचा को छुआ,

“कितने सॉफ्ट हैं तुम्हारे ब्रेस्ट्स!” फिर मैंने उनका आकार देखा, “थोड़े बड़े लग रहे हैं, पहले से!”

“हा हा! हाँ, माँ के हाथ का खाना मेरे शरीर को लग रहा है!”

“इतना कसा हुआ है! दर्द नहीं होता?”

“अरे बहुत दर्द होता है! मुझे इसे पहनने से नफरत है!”

कह कर वो मुड़ गई; उसकी पीठ मेरी तरफ हो गई। मेरी ट्यूबलाइट जलने में कुछ समय लगा, फिर समझा कि वो मुझे ब्रा हटाने या उतारने के लिए कह रही है। मैंने देखा कि पीठ पर ब्रा के पट्टे पर दो छोटे छोटे हुक लगे हुए थे। मैंने उनको खोला, और उसकी ब्रा उतार दी। उसके स्तनों और पीठ पर जहाँ जहाँ ब्रा का किनारा था, वहाँ वहाँ लाल निशान पड़ गए थे।

“अरे यार! इस पर कुछ लगा दूँ? कोई क्रीम?”

“ओह, ये? नहीं, अभी ठीक हो जायेगा।” लेकिन अपने लिए मेरी चिंता देख कर रचना प्रभावित ज़रूर हुई।

मैंने उन निशानों पर सहलाते हुए उंगली चलाई, तो रचना की आह निकल गई। जल्दी ही मैं उसके चूचकों को छूने लगा। मैंने एक स्तन को हाथ में पकड़ कर थोड़ा सा दबाया - फलस्वरूप उसका चूचक सामने की तरफ और उभर आया - मानों मुझे आमंत्रित कर रहा हो, या फिर मानों वो मेरे मुँह में आने को लालायित हो रहा हो। मैंने उस कोमल अंग को निराश नहीं होने दिया, और मुँह में भर कर उसको चूसने लगा। उसके कोमल चूचक की अनुभूति मेरे मुँह में हमेशा की ही तरह अद्भुत थी। रचना मीठे दर्द से कराह उठी, और मुस्कुरा दी। मैं उसकी सांसों को गहरी होते हुए सुन रहा था, जैसा कि उसके साथ हमेशा ही होता था। एक स्तन को पीते पीते ही मेरा लिंग पुनः स्तंभित हो गया। जब रचना ने यह देखा तो वो बहुत खुश हुई और हैरान भी!

“अरे वाह! तुम्हारे छुन्नू जी तो फिर से सल्यूट मारने लगे!”

मैं पीते पीते ही मुस्कुराया।

“डैडी का तो इतनी जल्दी कभी खड़ा नहीं होता!”

“आर यू इम्प्रेस्सड?” मैंने पूछ ही लिया।

उसने हाँ में सर हिलाया, “बहुत!”

“तो फिर ईनाम?”

“हा हा ... होने वाले पतिदेव जी, आपने अपना ईनाम अपने हाथ में पकड़ा हुआ है!” उसने मुझे प्रसन्नतापूर्वक याद दिलाया।

“बीवी जी, अपना दूध तो आप मुझे हमेशा ही पिलाती हैं। इस बार मुझे अपने अंदर जाने दीजिये न?”

रचना शरमा कर हँसी। वह समझ गई कि मैं क्या चाहता हूं। मुझे लगता है कि वो भी मन ही मन हमारे समागम की संभावना के बारे में सोच रही होगी। उसने संकोच नहीं किया। उसने अपनी शलवार का नाड़ा खोलना शुरू किया, और एक ही बार में उसने अपनी शलवार और चड्ढी दोनों ही नीचे की तरफ़ खिसका दिया। आज महीनों बाद वो इतने करीब वो बाद मेरे सामने नंगी बैठी हुई थी। वह बिस्तर पर लेट गई और मुझे ठीक से देखने के लिए उसने अपनी जाँघें फैला दी। साथ ही साथ उसने मेरे उत्तेजित लिंग पर अपना हाथ फेर दिया।

“तुम एक शरारती लड़के हो,” वह हंसी, “मैं तुमसे बड़ी हूँ, लेकिन मुझको नंगा करने में तुमको शर्म नहीं आती?”

मैं मुस्कराया, “तुम मेरी बीवी हो!”

उसने मेरा हाथ थाम लिया और मुझे अपनी ओर खींच लिया। जब मैं उसके ऊपर आ गया तो उसने मेरे माथे को चूमा और फुसफुसाते हुए कहा, “तुम एक बहुत हैंडसम और एक बहुत शरारती लड़के हो!”

मैं मुस्कुराया।

“लेकिन जब हमारी शादी होगी, तब मैं तुम्हारे पैर नहीं छूवूँगी! तुम मुझसे छोटे हो। तुम मेरे पैर छूना!”

मैं उठा, और उठ कर उसके पैरों की तरफ गया। मैंने बारी बारी से उसके दोनों पैरों की अपने सर से लगाया और चूमा। वो मेरी इस हरकत से दंग रह गई। मैंने अपने सामने नंगी लेटी रचना को प्यार से देखा। कितनी सुन्दर लड़की! माँ का सपना था कि वो हमारे घर में आए! शायद अब ये होने वाला था। मेरा लिंग रक्त प्रवाह के कारण झटके खा रहा था। रचना बहुत कमसिन, छरहरी, लेकिन मज़बूत लड़की थी! उसके पैर लंबे और कमर क्षीण लग रही थी; उसके नितम्ब गोल नहीं, बल्कि अंडाकार, और ठोस थे! उसकी योनि बाल वसीम के जैसे ही घुँघराले और थोड़े कड़े हो गए थे। योनि के दोनों होंठ अभी भी पतले ही थे; उनमें कोई परिवर्तन नहीं आया था।

“पसंद आई अपनी बीवी?” उसने बड़ी कोमलता, बड़े स्नेह से पूछा।

मैंने ‘हाँ’ सर हिलाया, और वो भी बड़े उत्साह से।

“और मैं?”

“तुम तो मुझे हमेशा से पसंद हो! मैं किसी बन्दर के पास थोड़े ही जाऊँगी हमेशा! आओ, अब अपना ईनाम ले लो। धीरे धीरे से अंदर आना! ठीक है?”

माँ और डैड ने सिखाया तो था, लेकिन न जाने क्यों मुझे लग रहा था कि कुछ कमी है मेरे ज्ञान में। ये वैसा ही है जैसे टीवी पर देख कर तैराकी सीखना! ख़ैर, मैंने अपने लिंग का सर उसकी योनि के द्वार पर टिका दिया।

“बहुत धीरे धीरे! ठीक है?” उसने मुझे फिर से चेताया।

“तुमने पहले कभी किया है यह?” मैंने पूछ लिया।

“तुम्हें क्या लगता है कि मैं क्या हूँ? वेश्या?” रचना का सारा ढंग एक झटके में बदल गया।

“आई ऍम सॉरी यार! मेरा मतलब उस तरह से नहीं था। मैं बस ये कहना चाहता हूँ मुझे नहीं पता कि कैसे करना है। यदि तुमको मालूम हो, तो तुम मुझे गाइड कर देना! प्लीज!”

मेरी बात का उस पर सही प्रभाव पड़ा। वो फिर से शांत हो गई,

“ओह। अच्छा! मुझे लगता है कि हम खुद ही जान जाएँगे कि कैसे करना है। बस इसे मेरे अंदर धीरे-धीरे स्लाइड करने की कोशिश करो। धीरे धीरे! मुझे अंदर कोई चोट नहीं चाहिए!”

मतलब मुझे डैड ने जो कुछ सिखाया था, उसी पर पूरा भरोसा करना था। अपने लिंग को पकड़कर, मैंने उसकी योनि की फाँकों के बीच फँसाया और धीरे से दबाव बनाया। रचना प्रतिक्रिया में अपनी योनि का मुँह बंद कर ले रही थी, लेकिन धीरे धीरे करने से लिंग का कुछ हिस्सा उसके अंदर चला गया। मुझे यह देखकर खुशी हुई। रचना सांस रोके अपने अंदर होने वाली इस घुसपैठ को महसूस कर रही थी। जब मैं रुका, तो उसने साँस वापस भरी। मैं उसी स्थिति में रुका रहा, और अनजाने में ही उसकी योनि को इस अपरिचित घुसपैठ के अनुकूल होने दिया।

“तुम ठीक हो?” मैं उसके माथे से बालों की लटें हटाते हुए पूछा।

उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“मैं तुम्हारे अंदर आ गया हूँ, देखो?”

रचना ने नीचे की ओर देखा, जहाँ हम जुड़े हुए थे,

“तुम थोड़ा और अंदर आ सकते हो!”

हम दोनों को ही नहीं पता था कि हमारे पहले समागम के दौरान हम किस तरह के अनुभव की उम्मीद करें! लेकिन जैसे जैसे मैं उसके अंदर घुसता गया, रचना के चेहरे पर आश्चर्य, प्रसन्नता, और दर्द का मिला जुला भाव दिखता गया। अंत में उसने आँखें खोल कर मुझे आश्चर्य भरी निगाहों से देखा,

“हे भगवान! अमर... यह बहुत बड़ा है!”

“क्या? मेरा छुन्नू?”

“हाँ!”

“छुन्नू तो उतना बड़ा नहीं है अभी! लेकिन तुम्हारी चूत छोटी सी ज़रूर है।”

रचना ने उत्तर में मेरे गाल पर प्यार भरी चपत लगाईं, “बदमाश लड़का!”

उसकी बातों से मुझे लगा कि जैसे मेरा लिंग उसके अंदर जा कर थोड़ा मोटा हो गया है। मैं उस समय बिलकुल भी हिल-डुल नहीं रहा था, और रचना के अंदर उसी स्थिति में था। योनि के भीतर रहने वाली भावना का वर्णन कैसे किया जाए? यह वैसा सुखद एहसास नहीं था, जैसा कि मेरे माँ और डैड दावा कर रहे थे। लेकिन उसके अंदर जा कर अच्छा लग रहा था - उसकी योनि की माँस-पेशियाँ मेरे लिंग की लंबाई को पकड़े हुए थीं। अंदर गर्मी भी थी, और चिकनाई भी।

“रुके क्यों हो? करो न?”

“क्या?”

“मुझसे प्यार!”

मुझे लगता है कि आप अधिक समय तक प्राकृतिक, सहज-ज्ञान को रोक कर नहीं रख सकते हैं। मैंने लिंग को थोड़ा सा बाहर निकाला और फिर वापस अंदर डाल दिया। धीरे से।

“फिर से करो?” उसने कहा।

मैंने फिर से किया। उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया। हमारी सहज-वृत्ति हमारे मैथुन को दिशा दे रही थी। चार पांच बार धीरे धीरे करने के बाद मैंने इस बार थोड़ा तेज़ से धक्का लगाया। रचना ने एक दम घुटने वाली आह निकाली। मैंने न जाने क्यों, उसकी आह की परवाह नहीं की, और फिर से उसी गति में धक्का लगाया। रचना भी समझ गई होगी कि जिस पोजीशन में वो थी, उसमे रह कर मुझ पर नियंत्रण कर पाना मुश्किल था। उसने खुद को मेरे रहमोकरम पर छोड़ दिया, और मैंने उसके साथ धीमे और स्थिर लय में सम्भोग करना शुरू कर दिया। शायद उत्तेजना के कारण रचना का मुँह खुल गया। उसकी योनि की आंतरिक माँस-पेशियां मुझे सिकुड़ती हुई महसूस हुईं।

“ओह अमर। आखिरकार तुमने मुझे अपनी बीवी बना ही लिया! ओह्ह्ह! बहुत अच्छा लग रहा है।” रचना बुदबुदाई, “जो तुम कर रहे हो वही करते रहो।”

तो मैंने वही करना जारी रखा। लगभग दो मिनट बाद मैंने महसूस किया कि रचना का शरीर अकड़ने लगा; उसकी आँखें संकुचित हो गई थी, और उसकी उँगलियाँ मेरी बाँहों में जैसे घुसने को बेताब हो रही थी। और मुझे यह भी लगा कि वो धीरे धीरे रो भी रही है। मुझे नहीं मालूम था, लेकिन रचना का सारा शरीर सुख-सागर में गोते लगा रहा था। चूँकि यह मेरा भी पहला अनुभव था, इसलिए मुझे नहीं पता था कि हमारे मैथुन से क्या उम्मीद की जाए! लगभग उसी समय, मेरे लिंग से भी वीर्य की बूँदें छूटीं! एक बार, दूसरी बार, और फिर तीसरी बार! मेरा शरीर भी थरथरा रहा था। रचना ने मेरे शरीर में यह परिवर्तन महसूस किया, तो उसकी आँखें खुशी से चमक उठीं। एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया में, मैंने इस आनंद को थोड़ा और बढ़ाने की उम्मीद में, धक्के लगाने की गति धीमी कर दी। फिर मैंने चौथी बार भी वही आनंद महसूस किया, जो अभी तीन बार किया था। इस बार मैं आनंद से कराह उठा।

जैसे ही मेरा स्खलन समाप्त हुआ, रचना भी अपने चरमोत्कर्ष से बाहर आ गई, लेकिन थकावट के कारण लेटी रही। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं, मुझे अपनी ओर खींच लिया और फिर से सामान्य रूप से साँस लेने लगी। न जाने क्यों उसको चूमने का मन हुआ। मैंने उसके कान को चूमा, फिर गले को, और फिर उसके स्तनों के बीच में अपना चेहरा छुपा दिया। रचना मुझे अपने सीने में भींचे लेटी रही।

वो कोमलता से बोली, “क्या तुमको अपना ईनाम पसंद आया?”

“हाँ। बहुत!”

मेरी बात पर हम दोनों ही मुस्कुराने लगे।

“तुझे तो आया मज़ा.... तुझे तो सूझी हँसी.... मेरी तो जान फँसी रे....” उसने एक बहुत ही प्रसिद्द गाने की पंक्तियाँ गुनगुनाई।

“अरे! तुम्हारी जान कैसे फंसी?”

“वाह जी! पहले तो मार मार के मेरी छोटी सी चूत का भरता बना दिया, और अब पूछते हैं कि मेरी जान कैसे फंसी! अगर मुझे बच्चा ठहर गया, तो मेरे साथ साथ तेरी जान भी फंस जाएगी!”

“सच में ऐसा हो सकता है क्या?”

“उम्म्म नहीं.... शायद। चांस तो कम है। लेकिन हमको सावधान रहना चाहिए।”

रचना ने कहा और बिस्तर से उठ बैठी। इसके तुरंत बाद हमने कपड़े पहने। मै बिस्तर पर बैठा उसको अपने बाल सँवारते हुए देख रहा था। उसने मुझे आईने में मेरे प्रतिबिंब को देखा,

“क्या?” वह मुस्कुराई और धीरे से पूछा।

“रचना?”

“हाँ?”

“क्या हम इसे फिर से करेंगे कभी?”

उसका बाल सँवारना रुक गया, “ओह, अमर।”

“अरे! मैं तो बस पूछ रहा था।” मैंने कहा।

“हा हा! करेंगे! करेंगे!” उसने कहा, “लेकिन किसी को बताना मत!” फिर थोड़ा सोच कर, “उम्म्म माँ और डैड के अलावा किसी और को नहीं! ठीक है? क्योंकि... क्योंकि…” वो बोलते बोलते रुक गई, जैसे उपयुक्त शब्दों की तलाश कर रही हो, “क्योंकि... बाकी लोग कहेंगे कि यह सब नहीं करना चाहिए। या यह कि प्यार करना गन्दा काम है। और फिर हम दोनों मुश्किल में पड़ जाएंगे। हमारे साथ साथ शायद हमारे पेरेंट्स भी।”

मैंने पूछा, “लेकिन किसी और को हम क्या करते हैं वो देख कर बुरा क्यों लगना चाहिए?”

“लोग ऐसे ही होते हैं अमर,” रचना बड़े सयानेपन से बोली, “दूसरों के काम में टाँग लगाने वाले!”

“हम्म्म!” मैंने कुछ देर सोचा और कहा, “रचना, हम ये दोबारा करें या नहीं, लेकिन तुम हमेशा मेरी दोस्त रहना। मेरी बेस्ट फ्रेंड! तुम मुझे सबसे अच्छी लगती हो!”

“वाक़ई?” उसकी आँखों में एक चमक सी उठी।

“हाँ। मुझे तुम्हारा साथ बहुत अच्छा लगता है!”

वह मुस्कुराई, “जानकर खुशी हुई।”

**

जीवन का पहला सेक्स अनुभव हमेशा याद रहता है। कोई तीस बत्तीस साल पहले हुई यह घटना मुझे आज भी याद है। सब कुछ मेरे ज़ेहन में ताज़ा तरीन है!

इस प्रकार के अनोखे अनुभव और लोगों से शेयर करने का मन तो होता है, लेकिन मैंने किसी को नहीं बताया - न तो माँ को और न ही डैड को। लेकिन रचना से रहा नहीं गया। उसने माँ से सारी बातें कह दीं। उसी दिन। कमरे से निकल कर जब मैं कोई और काम कर रहा था तब रचना ने हमारे यौन सम्बन्ध का पूरा ब्यौरा माँ को दे दिया। माँ ने उसकी बात को पूरे ध्यान से सुना और उसके बाद उन्होंने जो किया वह अद्भुत था। माँ ने रचना को गले से लगाया और उसको चूम लिया।

“मेरी बिटिया!” माँ ने स्नेह से कहा, “तुम जुग जुग जियो! अगर तू आगे चल कर मेरे अमर को अपनाना चाहेगी, तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा।”

“हा हा हा! माँ, मैं तो बस आपके लिए ही इस बन्दर से शादी करूँगी।” रचना के कहने के अंदाज़ पर माँ खिलखिला कर हँसने लगीं, “मुझे तो आप माँ के रूप में मिल जाएँ तो आनंद आ जाए! मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ, आपको अपनी माँ मानती हूँ, और मुझे मालूम है कि आपके साथ मैं बहुत खुश रहूंगी!” उसने कहा।

**


कहानी जारी रहेगी
क्या खूब लिखा है लेखक बाबू। सम्भोग को इतनी सालिनता से सिर्फ आप ही लिख सकते हो। बहुत खूब।
 
  • Love
Reactions: avsji

DesiPriyaRai

Active Reader
1,428
1,757
144
आत्मनिर्भर - नए अनुभव - Update 1


इस घटना के बाद माँ ने स्वयं भी रचना की मम्मी से हमारी शादी की संभावना के बारे में बात की। मुझे यह तो नहीं पता कि उन्होंने क्या चर्चा की, लेकिन रचना की मम्मी ने माँ से साफ़ साफ़ कह दिया कि हमारा सम्बन्ध संभव नहीं था। रचना का परिवार ब्राह्मण था और वो हमसे जाति में उच्च थे। और तो और वे अपनी इकलौती बेटी से अपनी ही जाति में करना चाहते थे। रचना की मम्मी ने माँ को आश्वासन दिया कि उन्हें मेरे, और हमारे परिवार के बारे में सब कुछ पसंद है - उन्होंने स्वीकारा कि हमारा रचना के व्यवहार और आचरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा था। वह अब अच्छी तरह से पढ़ाई कर रही थी, घर का काम काज भी सीख रही थी, और हमारे संपर्क में आने के बाद से उसका व्यवहार बेहतर हो गया था। उन्होंने माँ से यह भी कहा कि मैं एक अच्छा लड़का हूँ, और वो मुझे रचना के संभावित पति के रूप में पसंद करती हैं, वो अपने समाज से अलग हो कर कोई निर्णय नहीं ले सकेंगी। और वैसे भी यह सब सोचने में अभी समय था - पहले मुझे अपने पैरों पर खड़ा हो जाना चाहिए; कुछ बन जाना चाहिए।

कहने की जरूरत नहीं है कि इसके बाद अचानक ही रचना का हमारे घर आना जाना काफ़ी कम हो गया। अब हम एक दूसरे से ज्यादातर कॉलेज में ही मिलते थे। एक बार कारण पूछने पर उसने मुझे बताया कि उसकी मम्मी ने उसको कहा था कि अब हम उसको ‘उलझाने’ के लिए उससे मीठी-मीठी बातें करेंगे, विभिन्न प्रलोभन देंगे, और उसको बरग़लायेंगे! और भी बातें कही गईं, लेकिन वो छुपा गई। रचना नहीं चाहती थी कि हम में से किसी पर भी, और ख़ास तौर पर माँ पर, ऐसा कोई भी इलज़ाम लगे। इसलिए अब वो बस कभी कभी ही घर आ सकेगी, और वो भी बस कुछ देर के लिए। यह सब मुझे सुन कर ख़राब तो बहुत लगा लेकिन कुछ कर नहीं सकते थे। मित्रता का ढोंग करने वाली उसकी मम्मी में इतना कपट भरा होगा, मैं सोच भी नहीं सकता था। सत्य है - मुँह में राम, बगल में छूरा वाली कहावत चरितार्थ हो गई थी यहाँ। माँ को भी थोड़ा दुःख तो हुआ, लेकिन उनकी प्रवृत्ति ही ऐसी थी कि वो सबको क्षमा कर देती थीं, और सबकी बुरी बातें भूल जाती थीं।

जल्द ही हमने अपनी अपनी स्नातक की शिक्षा शुरू कर दी। रचना का दाख़िला उसी राज्य के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया [क्योंकि उसके पेरेंट्स उसको घर से बाहर जाने नहीं देना चाहते थे - क्या पता अगर उनकी लड़की हाथ से निकल गई, तो?], जबकि मैं अपनी स्नातक की शिक्षा के लिए भारत के सबसे अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेजों में से एक में गया। पढ़ाई लिखाई में की गई मेरी मेहनत रंग लाई। और इसी के साथ रचना और मेरा नवोदित रिश्ता खत्म हो गया। चार साल की दूरी बहुत होती है। वैसे भी इंजीनियरिंग कॉलेजों में छात्रों का व्यक्तित्व बदल जाता है। हम दोनों भी बहुत बदल जाएँगे।

लेकिन रचना और मेरी कहानी का अंत यह नहीं था। रचना बाद में मेरे जीवन में लौटने वाली थी।

**

इंजीनियरिंग कॉलेज का मेरा अनुभव बहुत अच्छा रहा - और उसका कारण था वहाँ का मुझ पर, और मेरे व्यक्तित्व पर काफी परिवर्तनकारी प्रभाव! अपने कस्बे की दुनिया से दूर, एक अलग ही दुनिया देखने को मिली वहाँ। पूरे देश भर से छात्र-छात्राएँ वहां पर आये थे, और सभी के जीवन के अनुभव अलग अलग थे। कुछ ही समय में मैं कुएँ के मेंढक से कुछ अलग बन गया। सोचने समझने की क्षमता भी काफी आई। सभी सहपाठियों से बहुत कुछ जानने और सीखने को मिला। मेरे बोलने और रहने सहने का ढंग भी काफ़ी बदला। दो साल के बाद मैं अच्छी अंग्रेजी भी बोलने लगा, जो की आगे चल कर मेरे लिए एक वरदान साबित हुआ। नए स्पोर्ट्स, जैसे कि लॉन टेनिस और तैराकी भी सीखी। अपना इंजीनियरिंग का विषय तो सीख ही रहा था। मेरी सोच भी काफ़ी विकसित हुई। समसामयिक विषयों की जानकारी और उनका विश्लेषण करने की क्षमता आई। संगीत भी सीखा - गिटार जैसे वाद्य-यंत्र मैं अब बजा लेता था। सबसे अच्छी बात यह थी कि यह सब करने में मुझे कैसा भी अतिरिक्त खर्च नहीं करना पड़ा। मेरा इंजीनियरिंग कॉलेज साधन संपन्न था, और छात्रों को अपने व्यक्तिगत विकास की सारी सुविधाएँ निःशुल्क उपलब्ध थीं। लेकिन एक कमी भी थी।

ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे कामदेव ने मेरी स्नातक शिक्षा के दौरान मेरा साथ छोड़ दिया था। विपरीत लिंग, अर्थात लड़कियों से निकट जाने का कोई अवसर नहीं मिल रहा था। हालाँकि, मेरे आसपास बहुत सारी लड़कियाँ थीं, मुझे उनमें से कोई भी आकर्षक नहीं लगी। या शायद, उन्होंने मुझे आकर्षक नहीं पाया। मेरी सहपाठिनियों के मुकाबले रचना तो अप्सरा कहलाएगी। रचना से जैसी सन्निकटता हुई थी, यहाँ तो सोचना मुश्किल हो गया था। आप देखते हैं, जब कॉलेज और छात्रावास की नई नई आजादी मिलती है, तो लड़कियां उसका भरपूर इस्तेमाल करती हैं - लड़कियां ही क्या, लड़के भी। लेकिन लड़कियाँ आमतौर पर उन ‘तथाकथित’ ‘स्टड लड़कों’ की ओर झुकाव दिखाती हैं, जो प्रायः अमीर परिवार से होते हैं, और जिनके पास मोटरसाइकिल होती हैं! हो सकता है कि यह सब पिछले कुछ दशकों के दौरान बदल गया हो सकता है, लेकिन मेरे इंजीनियरिंग कॉलेज के दिनों में ऐसा ही था। मुझे यह कहते हुए कोई शर्म नहीं आती कि मेरे पास न तो फालतू पैसे थे, और न ही मोटरसाइकिल! और तो और मेरे पास साइकिल भी नहीं थी। मुझे अपने माता-पिता से बहुत थोड़ा सा पॉकेट मनी मिलता था। यह हॉस्टल की कैंटीन में कभी-कभार परांठे और चाय के लिए पर्याप्त था, लेकिन किसी भी तरह के भोग विलास की अनुमति देने के लिए पर्याप्त नहीं था।

इसलिए, जब कॉलेज के समय के रोमांस के लिए मेरे पास कोई अवसर नहीं था। लोग, जिन्होंने इंजीनियरिंग कॉलेजों में भाग लिया है या भाग ले रहे हैं, इस तथ्य की पुष्टि करेंगे कि वास्तव में अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेजों में सुन्दर लड़कियाँ बिरले ही आ पाती हैं। ब्यूटी एंड ब्रेन एक मुश्किल कॉम्बिनेशन है। फेमिनिस्ट लोग - यह सब केवल मेरा सीमित अवलोकन हो सकता है ... यह मैं जो भी बता रहा हूँ वो मेरे कई दशकों पहले के, एक अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज में बिताए गए चार सालों के अवलोकन [कुल मिला कर सात (7) देखे गए बैच] पर आधारित है। मुझे स्त्रियों और लड़कियों के लिए बहुत आदर है - लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं अँधा हूँ।

ठीक है, इससे पहले कि मैं मूल विषय से बहुत अधिक दूर हट जाऊँ, मैं वापस कहानी पर आता हूँ।

एक और काम जो मैंने अपने कॉलेज के दिनों में ‘सही’ किया था, वह था अपनी शरीर निर्माण का कार्य। मैं अर्नोल्ड श्वार्ज़नेगर के व्यक्तित्व से बेहद प्रेरित था, उनकी कई फिल्में [खास तौर पर टर्मिनेटर, प्रिडेटर, टोटल रिकॉल] देख कर, और यह जानते हुए भी कि मैं उनके जैसा कभी नहीं बना सकता, मैं एक अच्छी गढ़न वाले, मजबूत शरीर बनाने के लिए प्रेरित था। मेरी शकल भी ठीक-ठाक ही थी। तो एक बढ़िया मस्कुलर शरीर के साथ मैं काफी प्रेसेंटेबल और हैंडसम दिखता था। उस समय बैगी और पैरेलल [सामानांतर] पैन्ट्स का फैशन चल रहा था। लेकिन वो कपड़े मुझे कभी पसंद नहीं आते थे। मैं हमेशा चुस्त पैन्ट्स सिलवाता था। वैसी ही चुस्त शर्ट्स भी। तो कपड़ों से सीने और बाहों की माँसपेशियों की बनावट दिखती थी। कपड़े सिलवाना सस्ता पड़ता था। जब तक मैंने अपनी पहली नौकरी शुरू नहीं की, तब तक मैंने अपनी पहली जोड़ी जींस नहीं खरीदी। लेकिन सस्ते कपड़ों में कमाल का गेटअप आपको नहीं मिल सकता। आज कल लोग कॉटन की शर्ट पहनना पसंद करते हैं, तब लोग ज्यादातर सिंथेटिक कपड़े पहनते थे। क्योंकि उसका ‘फॉल’ या ‘गेट अप’ अच्छा आता था। लेकिन मैंने पाया था कि अगर कॉटन के कपड़े ढीले वाले न सिलवाए जाएँ, तो उनका गेट अप भी अच्छा आता है।

वर्कआउट करने के अलावा, मैंने कॉलेज के दिनों में अपने सामाजिक कौशल पर भी ध्यान केंद्रित किया, जिससे मुझे एक बेहतर इंसान बनने में बहुत मदद मिली। मैंने अंग्रेजी में वाद-विवाद [डिबेट] प्रतियोगिताओं और सार्वजनिक भाषण [पब्लिक स्पीकिंग] में भाग लिया, और मैं दो साल तक छात्र प्रतिनिधि के रूप में काम करने के लिए चुनाव भी जीता। इन सभी चीजों ने मुझे एक परिपक्व व्यक्ति के रूप में विकसित किया।

मैं बहुत भाग्यशाली था कि मैं ऐसे इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ा, जो पहाड़ों के करीब स्थित था [कृपया मुझसे उस कॉलेज का नाम न पूछें - इस कहानी में पात्रों की गोपनीयता की रक्षा करना अनिवार्य है]! पहाड़ों की तलहटी में ऐसे कई रास्ते थे जिनसे आप पहाड़ो के ऊपर जा सकते थे और आसपास के क्षेत्र को ऊपर से देख सकते थे। कॉलेज में साहसिक खेलों [एडवेंचर स्पोर्ट्स], जैसे साइकिल चलाना, नौकायन, ट्रेकिंग इत्यादि की एक पुरानी संस्कृति थी। व्यायाम के एक अभिन्न अंग के रूप में, मैंने साइकिल बहुत चलाई [सहपाठियों से मांग मांग कर], खासकर पहाड़ी की तरफ! साइकिलिंग शरीर को शक्ति और सहनशक्ति दोनों देता है, और साथ-साथ में शरीर की चर्बी कम करने में मदद करता है।

मैं घर भी बहुत कम ही जाता था - कॉलेज में कुछ न कुछ करने को रहता ही था हमेशा। पहले दो साल एक एक महीने के लिए गर्मी की छुट्टियों में घर गया, उसके बाद नहीं। पूरे चार साल में, कुल मिला कर मैं बस तीन या साढ़े तीन महीने ही छुट्टियां बिताने घर गया। इंटर्नशिप, या किसी प्रोफेसर के साथ काम - या किसी और बहाने, मैं वहीं रहता था। यह सब करने के कुछ अतिरिक्त पैसे भी मिल जाते थे, और खर्चा भी कम होता था। और सच कहूँ, तो अब वापस कस्बे में जाने का मन नहीं होता था। यहाँ की दुनिया में बहुत कुछ सीखने को था, और मैं यह मौका दोनों हाथों से समेट लेना चाहता था।
पता तो था की रचना अमर से दूर जानेवाली है, पर इतनी जल्दी। पर बहुत ही अच्छा अपडेट था।
 
  • Love
Reactions: avsji

DesiPriyaRai

Active Reader
1,428
1,757
144
आत्मनिर्भर - नए अनुभव - Update 2


ऐसी ही एक सर्दी की सुबह मैंने देखा कि सुन्दर खुशनुमा मौसम है। उस दिन इतवार था, तो मैंने सोचा कि साइकिलिंग और ट्रैकिंग एक साथ करी जाए। इस काम के लिए पूरा दिन पड़ा था, क्योंकि मेरे पास उस दिन करने के लिए और कुछ नहीं था। इसलिए, मैं उस दिन को अन्य लड़कों की तरह सोने में बर्बाद होने के बजाय बस इस खुशनुमा ठंडे मौसम का आनंद लेना चाहता था। मैंने अपना नाश्ता बहुत जल्दी कर लिया; मेस से कुछ फल, सैंडविच, पानी उठाया और अपनी दूरबीन को अपने बैग में पैक कर के बाहर चला गया।

आज एक अच्छी हल्की सर्दी वाला दिन था, और मैंने साइकिल चलाने का भरपूर आनंद लिया। कोई दो घण्टा साइकिल चलाने के बाद मैं पहाड़ियों के एक सुनसान हिस्से पर ट्रैकिंग करते करते ऊपर तक चढ़ गया। वहाँ से मुझे नीचे शहर का शानदार दृश्य दिया। मैंने दृश्य देखने के लिए अपनी दूरबीन निकाली। सूर्य की सुनहरी धूप, हरियाली और धुंध, तीनों मिल कर एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे। मैंने देखा कि जिस जगह मैं था, वहाँ पर मेरे अलावा कुछ और भी ट्रेकर्स थे, लेकिन वे किसी और तरफ जा रहे थे। मैं थोड़ा और आगे की तरफ़ चला, तो पंद्रह मिनट में ही एक सूनसान सा क्षेत्र आ गया। वहां मैंने दूरबीन इधर उधर घुमा कर देखा तो एक आश्चर्यजनक दृश्य दिखा। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं ऐसा कुछ देखूंगा!

मैंने अपनी दूरबीन से देखा कि एक घने पेड़ के नीचे, एक युवा माँ थी जो अपने बच्चे को सुखपूर्वक दूध पिला रही थी। जहां मैं खड़ा था, वो वहाँ से बहुत दूर नहीं थी, इसलिए, यहाँ से वो साफ़ साफ़ दिख रही थी। वह एक स्थानीय निवासी थी - मैंने अनुमान लगाया कि शायद वो ‘राजी’ या ऐसी ही किसी जनजाति की थी; वह संभवतः तेईस से पच्चीस साल की होगी। राजी लोगों को वनवासी के रूप में जाना जाता है और इसलिए यह समझना मुश्किल नहीं कि वो वहां क्यों और कैसे थी। लेकिन, ऐसे खुले में स्तनपान कराना एक अलग बात थी। उसने एक कुर्ता-नुमा चोली पहनी हुई थी, जिसके बटन पूरी तरह से खुले हुए थे। इस कारण उसके गोरे/सुनहरे रंग के स्तन पूरी तरह से उजागर हो गए थे। उसके स्तन बेहद खूबसूरत थे! न जाने किस प्रेरणावश मेरा मन हुआ कि उसको पास से देखा जाए। मैंने किसी तरह थोड़ी हिम्मत की और सोचा कि मैं ऐसे एक्टिंग करूंगा कि जैसे मैं पगडंडी पर ट्रैकिंग कर रहा हूँ, और फिर उसके करीब रुक कर उसके खूबसूरत स्तनों को देखने का आनंद उठाऊँगा। अगर वो औरत तब भी अपने बच्चे को स्तनपान कराना जारी रखती है, तो समझो किस्मत अच्छी! लेकिन अगर वो चली जाती है, तो कोई बात नहीं! इसी बहाने थोड़ी और ट्रैकिंग हो गई समझो! कुल मिलाकर मेरे पास खोने के लिए कुछ नहीं था और पाने के लिए सब कुछ था।

मैंने अपनी दूरबीन को वापस अपने बैग में रखा, और तेजी से उसकी ओर बढ़ा, ताकि देर न हो जाए। जैसे जैसे मैं उसके करीब आ रहा था, मैंने यह सुनिश्चित किया कि वो मुझे अपनी तरफ आते हुए सुन ले, ताकि चौंक न जाए। पहाड़ पर तेजी से चलते चलते साँस फूलने लगी। खैर, जब मैं उसके पास आ गया, तो मैंने एक गहरी सांस ली और मुस्कुराते हुए ‘नमस्ते’ कहा। मुझे लगा कि मुझे अपने इतना पास देख कर वो कम से कम अपने स्तन जल्दी से ढँक लेगी, या फिर अगर वो मेरी उपस्थिति से नाराज़ हुई तो दो चार गालियाँ भी दे देगी। लेकिन उसने ये दोनों ही काम नहीं किए और मेरी उम्मीद के विपरीत उसने बड़ी शालीनता से मेरे अभिवादन का उत्तर दिया। मुझे बड़ा ही सुखद आश्चर्य हुआ।

“मैं यहाँ बैठ जाऊँ? आपके साथ?”

“हाँ, बैठो।” उसने कहा।

मैंने साइकिल वहीँ लिटा दी, और अपना बैग उतार दिया, फिर उसके सामने बैठ गया। मैंने खाने के लिए एक सैंडविच निकाल दिया। इस बीच वो औरत न तो घबराई और न ही शरमाई, और उसने अपने खुले हुए स्तनों को ढँकने का भी कोई प्रयास किया। उसने बच्चे को पहले के ही जैसे स्तनपान कराना जारी रखा। जैसे कि मेरे रहने से उसको कोई फ़र्क़ ही न पड़ा हो। हम बीच बीच में बातें भी कर रहे थे, लेकिन मेरा ध्यान उसके स्तनों की तरफ था। उसके स्तन बहुत गोरे थे : उनमें नीली नीली नसों का जाल साफ़ दिख रहा था। उसके चूचकों का घेरा [अरीओला] उसके स्तनों के आकर के मुकाबले काफी बड़ा था - करीब ढाई इंच व्यास का; उसके बच्चे का मुँह उस घेरे को पूरी तरह से ढक नहीं सकता था। अरीओला का रंग नारंगी भूरे रंग का कोई शेड था। और उसी रंग के उसके चूचक थे। लेकिन पिए जाने के कारण उनका रंग थोड़ा लाल हो गया था। पिए जाने के कारण वो उसके स्तनों से करीब एक इंच बाहर निकले हुए थे। वह अपने बच्चे को ऐसे ही दूध पिलाती रही। तब तक मेरा सैंडविच खाना ख़तम हो गया। जब एक स्तन खाली हो गया, तो उसने बच्चे को दूसरा स्तन पीने के लिए दे दिया। अभी भी उसने अपने स्तनों को नहीं ढँका। इसने मुझे ब्लाउज से बाहर झांकते हुए स्तन बड़े सुन्दर लग रहे थे। उसके स्तन सख्त थे - ढीले ढाले नहीं। मैं जिस तरह से उसके स्तनों को काफी देर से घूर रहा था, उससे उसको समझ आ गया कि मैं उसके स्तनों को देख कर हतप्रभ हो गया था।

“तुम यहाँ अक्सर आते हो क्या?” उसने मुझसे पूछा।

“जी? अक्सर तो नहीं, लेकिन कभी कभी आता हूँ। इस तरफ पहली बार आया हूँ। साइकिल चला कर शहर तक तो आता रहता हूँ, लेकिन पहाड़ की चढ़ाई आज पहली बार की है!”

“हम्म्म! काफी मेहनत हो गई! मुझे यहाँ अच्छा लगता है। कोई शोर नहीं, कोई लोग नहीं। जब घर के काम ख़तम हो जाते हैं, तो मैं इधर आ जाती हूँ।”

“आपका बेटा है या बेटी?”

“बेटा!”

“कितना बड़ा है अभी?”

“एक साल का होने वाला है!”

“बढ़िया! जन्मदिन की बहुत बहुत बधाइयाँ बच्चे को! आप सैंडविच लेंगीं?”

“नहीं?”

“ओह! अच्छा, मेरे पास ये कुछ केले हैं?” मैंने बैग से निकाले।

वो मुस्कुराई और उसने केले स्वीकार कर लिए। मुझे लगता है कि ज़मीन से जुड़े लोग साफ़ सुथरा खाना ही पसंद करते हैं। जंक खाना नहीं। हमने कुछ देर खाया। फिर, अचानक ही उसने मुझसे पूछा,

“तुमको दूध पीते हुए बच्चे देखने पसंद हैं?”

मैं उस सवाल पर चौंक गया, लेकिन चूँकि झूठ बोलने वाली आदत नहीं थी, इसलिए मैंने ईमानदारी से जवाब दिया,

“जी... पसंद तो है। आपको दूर से दूध पिलाते हुए देखा, तो मन किया कि पास से देखूँ। इसलिए चला आया।”

“हा हा हा हा! मुझे लगा तुम इस बात से इंकार कर दोगे।”

“नहीं। मैं झूठ बहुत कम बोलता हूँ। लेकिन सच में आपके स्तन बहुत सुंदर हैं।”

वो सर हिलाते हुए मुस्कुराई, “क्या तुमने कभी माँ का दूध पिया है?”

उसके सवाल पर कई सारी पुरानी यादें दौड़ती हुई वापस आ गईं।

“सारे ही बच्चे माँ का दूध पीते हैं!” मैंने बोला।

“बचपन में नहीं, अभी?”

मैंने ‘न’ में सर हिलाया। मेरी उम्मीद से बेहतर जा रहा था यह तो!

वह मुस्कुराई, और अपने स्तन पर से ब्लाउज के फ्लैप को हटाते हुए बोली, “पियोगे?”

मैं अवाक रह गया। उसने अभी अभी जो कहा, मुझे उस बात पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।

“आप सच में मुझे पिलाएँगीं?”

“हाँ! इसीलिए तो पूछा।” उसने सामान्य तरीके से कहा, “मुझे काफ़ी दूध आता है। इसलिए अभी भी बचा हुआ है ... तुम सभ्य लगे, इसलिए वह मुझको तुमसे डर नहीं लग रहा है।”

सच में, मुझे उस दिन लगा कि मैं धरती से सबसे भाग्यशाली लोगों में एक होऊँगा! जैसे-जैसे मैं उसकी तरफ सरक कर जा रहा था, वैसे वैसे मेरा दिल जोर से धड़क रहा था। उस महिला ने मुझे वो स्तन को लेने का इशारा किया, जिसमे अधिक दूध था। इतने सालों के बाद पुनः दूध भरे चूचक को मुँह में लेना एक स्वर्गीय एहसास था। मैंने स्तनपान शुरू किया और लगभग तुरंत ही ताज़ा, गर्म, और लगभग मीठा दूध मेरे पूरे मुँह में भर गया। मुझे दूध पिलाते हुए, उसने मेरे सर को प्यार से पकड़ लिया और धीरे से बोली,

“आराम से पियो! बहुत दूध है!”

दूध पीते हुए मैं एक अलग ही दुनिया में चला गया - माँ का दूध पिए कितने ही साल हो गए थे! जैसे जैसे दूध की धारा खुलकर मेरे मुँह में बहने लगी, वैसे वैसे मैं दीन दुनिया से बेखबर होता चला गया! मैंने करीब पाँच मिनट तक उस स्तन का दूध पिया होगा - लेकिन मुझे लगा जैसे मैंने पंद्रह मिनट तक पिया हो! जब वो स्तन खाली हो गया, तो मैंने उसकी ओर देखा। उसने मुझे दूसरा स्तन पीने को बोला, जो मैंने ख़ुशी ख़ुशी से पी लिया। सच में - स्तनपान करने से मैं कभी अघा नहीं सकता। लेकिन फिर कोई उधर आ न जाए, इस डर से मैंने अंत में उसका दूध पीना बंद कर दिया। वैसे भी उसके दोनों स्तन अब पूरी तरह से खाली हो गए थे। उसने मुझसे पूछा,

“पेट भर गया?”

“न तो पेट भरा, और न ही मन!”

“तो फिर पीते रहो।”

“नहीं नहीं! मैं आपको अधिक देर तक नहीं रोक सकता। लेकिन, सच में - आपको बहुत बहुत धन्यवाद! उम्मीद है, कि आपसे फिर कभी मुलाकात हो!”

वो मुस्कुराई और फिर उसने बड़ी कुशलता से अपनी चोली के बटन लगा दिए। मैंने उससे पूछा कि वह कहाँ रहती है लेकिन उसने मुझे बताने से इनकार कर दिया। उसने बच्चे को गोद में लिया और जंगल में कहाँ चली गई, समझ नहीं आया। मैंने एक बार उसका पीछा करने के बारे में सोचा, लेकिन सोचा कि ऐसा नहीं करना चाहिए।

तो वह था - इंजीनियरिंग कॉलेज से स्नातक होने से पहले मैं लगभग सबसे अच्छा, या कहिये कि एकलौता लगभग ‘यौन’ अनुभव था। लेकिन यह इतना कीमती अनुभव था कि मैं इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करके इसकी सुंदरता, इसकी ममता बर्बाद नहीं करना चाहता था। मैं उसके बाद भी कई बार पहाड़ की तरफ गया, लेकिन वह महिला नहीं मिली। मुझे कभी कभी तो लगता है कि वो कोई वनदेवी रही होगी!
बहुत खूब, स्तनपान का वर्णन करने में आपने महिरता हासिल की हो ऐसा लगता है। अभी तक कई बार आपने जीकर किया, पर हर बार नया अनुभव।
 
  • Love
Reactions: avsji

DesiPriyaRai

Active Reader
1,428
1,757
144
आत्मनिर्भर - नए अनुभव - Update 7


मैं सुबह उठा - आज मैं कल से बेहतर महसूस कर रहा था। हाँ, मुझे बुखार तो था, लेकिन कम था - और कमज़ोरी तो थी, लेकिन कम थी। कल की घटनाओं के कारण मुझे अधिक आत्मविश्वास भी महसूस हो रहा था! अब मेरे और काजल के बीच औपचारिकता की अदृश्य दीवार टूट गई थी, इसलिए मेरे पास काजल से छिपाने के लिए कुछ भी नहीं था। इसलिए फिलहाल मुझे कोई कपड़े पहनने की जरूरत महसूस नहीं हुई। मैं वैसे ही नंगा कमरे से बाहर निकला तो मैंने बाथरूम से कुछ आवाजें सुनीं- काजल कपड़े धो रही थी।

‘शुक्र है! काजल अभी भी यहाँ है।’ मैंने सोचा और फ्रेश होने के लिए आगे बढ़ा।

जब मैं बाथरूम से बाहर आया तो काजल बालकनी से लौट रही थी। इस समय उसने नए कपड़े पहने हुए थे। इसका मतलब है कि वो सवेरे उठ कर अपने घर गई होगी, वहां घर का काम किया होगा, और अब वापस यहाँ का काम कर रही थी।

‘बाप रे! कितनी मेहनत करती है!’

उसने मुझे देखा तो मुझ पर मुस्कुराई ... शायद उसके गालों पर थोड़ी सी लालिमा भी आ गई थी।

“अभी कैसा लग रहा है?” उसने तापमान जांचने के लिए मेरे माथे और गाल को अपनी हथेली के पिछले हिस्से से छुआ।

मैं उसके सामने नंगा खड़ा था, लेकिन वो इस बात से परेशान नहीं लग रही थी।

“बुखार कुछ कम हो गया लगता है।” उसने कहा।

हमने कल से पहले कभी एक-दूसरे को कभी नहीं छुआ था - कुछ ही घंटों में हमारे बीच में कितना कुछ बदल गया था!

“हाँ! अभी थोड़ा बेहतर महसूस कर रहा हूँ... थैंक यू काजल!” मैंने बड़ी ईमानदारी से कहा। बिना काजल की देखभाल के, न जाने मेरा क्या होता।

वो मुस्कुराई, “भूख लगी है?”

मेंने ‘हाँ’ में सर हिलाया। क्या काजल किसी और तरफ़ भी इशारा कर रही थी? या यह बात सिर्फ मेरा दिमाग की उपज थी?

उसने कहा, “जाओ, जल्दी से ब्रश कर लो। मैंने अच्छा सा नाश्ता बनाया है - लुची तरकारी। आज सोचा तुमको बंगाली व्यंजनों का मज़ा दिया जाए! जल्दी से आओ, हम सब साथ में खाते हैं!”

“मैं तो कल से ही बंगाली व्यंजनों का मज़ा ले रहा हूं …” मैंने काजल को छेड़ा।

काजल ने मेरी पसलियों में मज़ाक मज़ाक में मुक्का मारा, और मेरे लिंग के सिरे पर हलकी सी चिकोटी काट ली। मेरे नग्न रहने पर उसने कुछ नहीं कहा - जैसे यह कोई बड़ी बात नहीं हो। मैं अपने दाँत ब्रश करने लगा। तब तक सुनील भी उठ गया था। मुझे ऐसे पूरी तरह से नंगा देखकर उसे बहुत अजीब लगा। लेकिन चूंकि मैं और काजल सामान्य व्यवहार कर रहे थे, इसलिए उसने भी इस बारे में ज्यादा नहीं सोचा। काजल ने उसको देखा और कहा,

“सुनील, जल्दी से फ्रेश हो जा। फिर तुझको नहला देती हूँ!”

“ठीक है, अम्मा!”

यह बात मेरे लिए उत्सुक्तवर्धक थी - सुनील छोटा तो था, लेकिन बच्चा नहीं था। उस उम्र में उसे उसकी माँ द्वारा नहलाया जाना मेरे लिए एक नई बात थी। उसने मुझे मेरे बचपन की याद दिला दी। काजल ने मुझे भी नहाने के लिए भी कहा, लेकिन मैंने कई बहाने बनाने की कोशिश की। तो उसने माँ के जैसे ही मुझे समझाया कि नहाना अच्छा क्यों है, भले ही आपको बुखार हो…। तो, मैं अंत में मान गया।

सुनील को नहलाने के लिए काजल उसे नंगा करना चाहती थी, जैसा कि वह आमतौर पर रोज़ करती थी। लेकिन आज वो शरमा रहा था, क्योंकि मैं भी वहां था। उसको इस बात से सरोकार नहीं था कि मैं खुद भी नंगा था; उसकी घबराहट इस बात से थी कि मैं उसको नंगा देख लूँगा।

“सुनील, इतना लजा क्यों रहा है! चल, आज तुझको और तेरे भैया दोनों को साथ में नहला देती हूँ!” काजल ने कहा।

“हैं?” मैं उसकी बात सुन कर सदमे में आ गया!

“और क्या! देखो न, भैया भी नोग्नो हैं। इसलिए तुमको शरमाने की कोई जरूरत नहीं!”

सुनील को काजल का प्रस्ताव काफी उचित लगा होगा। कुछ ही देर में हम दोनों पूरे नंगे काजल के सामने खड़े थे। उसको मुझे ऐसे नग्न देख कर वास्तव में अजीब सा लग रहा होगा। उस समय हम दोनों के ही नुनु लगभग एक जैसे ही दिख रहे थे - मेरा बस उससे थोड़ा ही बड़ा रहा होगा। तो उस समय वो अपनी तुलना मुझसे करने लगा, लेकिन काजल के छूने पर जब मेरा लिंग स्तंभित होने लगा, तो वह डर गया। उसके पास चिंतित होने और डरने के वाज़िब कारण भी थे - पूर्ण स्तम्भन होने पर मेरा लिंग आकार में बहुत बड़ा हो गया था - उसकी मोटाई काजल की कलाई से भी अधिक थी, और लम्बाई उसकी हथेली के बराबर थी। स्तम्भन होने कारण लिंग की नसों में बड़ी मात्रा में रक्त बह रहा था, और वो स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहीं थीं। सच में, मेरा लिंग इस समय बदसूरत सा और राक्षसी सा लग रहा था। सुनील का डर वाज़िब था।

“डरो मत सुनील,” मैंने उसे दिलासा दिया, “जब तुम भी बड़े हो जाओगे, और मेरे बराबर हो जाओगे, तो तुम्हारा नुनु भी मेरे जितना बड़ा हो जाएगा; क्या पता, इससे भी बड़ा हो जाए!”

“सच में भैया?” उसने पूछा। उसको मेरी बात पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।

“हाँ! जब मैं तुम्हारे जितना था, तब ये भी मूंगफली की फली के जितना था। लेकिन अब देखो यह कितना बड़ा हो गया है!”

बेशक, मेरा छुन्नू मूंगफली की फली की तरह नहीं था, बल्कि बहुत कुछ वैसा ही था जैसा कि अभी सुनील का छुन्नू था, लेकिन इस झूठ से सुनील का डर हटाने और उसका मूड ठीक करने में मदद मिली।

“लेकिन,” मैंने आगे जोड़ा, “तुमको अपनी अम्मा का दूध पीते रहना चाहिए।”

“धत्त!” काजल ने कहा।

“सच में भैया?”

“हाँ! इसीलिए तो मेरा भी इतना बड़ा हुआ है!”

“ओह! लेकिन... यह आपके जैसा बड़ा क्यों हो जाएगा?”

“बेटा... जब तुम बड़े होगे न, तब तुमको खुद ही पता चल जाएगा। अभी के लिए बस इतना ही जान लो, कि इससे औरतों को बहुत खुशी मिलती है!”

काजल ने मेरी बात सुन कर नकली गुस्से में मेरी तरफ देखा।

“तुम मेरे बेटे को खराब मत करो! सुनील, भैया की बात मत सुनो। यह सब बकवास है।”

“हा हा! सुनील, कोई भी बात बकवास नहीं है। अच्छा, ठीक है - अम्मा जी, अभी हमें नहलाएं। हम और कब तक इंतजार करते रहेंगे? भूख भी लग रही है!”

तो, काजल ने हमें बारी बारी से नहलाया - पहले सुनील के साथ जो करती, वही फिर मेरे साथ दोहराती। काजल ने साबुन लिया और उसके छुन्नू पर लगाया, और उसको ठीक से साफ करने के लिए उसकी चमड़ी को पीछे खिसकाया। फिर उसने वही काम मेरे साथ करने की कोशिश करी - लेकिन दिक्कत यह थी कि पूर्ण स्तम्भन की अवस्था में मेरी चमड़ी को पीछे खिसकाना कोई आसान काम नहीं था। अब चूँकि उसकी माँ मेरे लिंग को छू रही थी, तो सुनील भी उसको छूना चाहता था। लेकिन मैंने यह कहकर मना कर दिया कि पुरुष एक-दूसरे के नुनु नहीं छूते हैं। यह काम केवल महिलाएं ही करती हैं, और वह भी तब जब वे उस पुरुष से प्यार करती हैं! खुद को एक आदमी कहलाने पर वह बहुत खुश और गौरवान्वित हुआ। काजल भी मेरे ‘प्यार करने’ वाले इस परोक्ष बयान से खुश थी, जिससे हमारे नवोदित सम्बन्ध पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा।

खैर, नहाने के बाद हम दोनों लड़के बाथरुम से बाहर आ गए - नंगे और गीले - अपना शरीर पोंछने के लिए। काजल स्पष्ट रूप से हम दोनों लड़कों की इस तरह से ममतामयी देखभाल करने का आनंद ले रही थी। उसने जल्दी से सुनील को पोंछा और फिर मेरे साथ भी ऐसा ही करने लगी। जब तक मैं पोंछा जाता, सुनील पूरे घर में उछल-उछल कर दौड़ता रहा। काजल भी आराम से पोंछाई कर रही थी। उसने मेरे लिंग पर कुछ ज्यादा ही समय बिताया और फिर आखिरकार काम हो गया। अब कपड़े पहनाने की बारी आई। पहले सुनील का नंबर था - तो, मैं अपनी बारी के इंतज़ार में बैठा रहा। जब काजल उसको पैंट पहना रही थी, तो खेल खेल में उसने सुनील के छुन्नू को चूम लिया। सुनील बहुत खुश हुआ। इससे पहले कि आप लोगो किसी भी उल्टे सीधे निष्कर्ष पर कूदें, मैं यह बता दूँ कि यह एक बहुत ही प्यार भरा और मातृत्व-युक्त चुंबन था। मैंने देखा है कि कई सारी माएँ अपने बच्चों के छुन्नू चूमती हैं। मुझे तो लगता है कि यह एक सामान्य सी घटना है, चाहे आप लोग सहमत हों, या नहीं। खैर, जब काजल ने सुनील को कपड़े पहना दिए, तो मेरी तरफ मुख़ातिब हुई।

“मुझे भी चुम्मा चाहिए…” मैंने कहा।

“मालूम था…” काजल ने हँसते हुए मुझे चिढ़ाया।

“तो?”

“मिलेगा। तुमको भी चुम्मा मिलेगा!” काजल मुस्कुराई और मेरे सामने बैठ गई।

उसने अपने हाथ में मेरे लिंग को पकड़ा और उसके सर पर एक बेहद गैर-मातृत्व भरा चुम्बन जड़ दिया। सुनील के शिश्न पर बस काजल के होंठ छू भर गए थे, लेकिन मेरे लिंग पर बहुत ज़ोर से उसने होंठ भिड़ाए थे - थोड़ा सा हिस्सा उसके होंठों के अंदर चला गया था। यह चुम्बन वास्तव में बहुत ही सुखद था। फिर, उसने लिंग की चमड़ी को पीछे खींच लिया और अपनी जीभ से लिंगमुण्ड को सहलाया। क्या बताऊँ - मैं सचमुच में स्वर्ग सिधार गया। फिर वो मुझसे अलग हो गई और मुझसे बिना आवाज़ ‘बाद में’ बोल कर उठ गई। फिर उसने मेरे पहनने के लिए कपड़े निकाले लेकिन मैंने मना कर दिया।

“आज कोई कपड़े पहनने के मूड में नहीं है?” उसने मुझे प्रसन्नतापूर्वक चिढ़ाया।

मैं बस मुस्कुरा दिया।

उसने कहा, “ठीक है - चलो अभी - देर हो रही है। अब हम खा लेते हैं।”

हम तीनों ने शांति से नाश्ता किया; कभी-कभी चुटकुले सुनाते हुए, और कभी-कभी मेरी नग्नता पर हँसते हुए। काजल फिर सुनील को उसके स्कूल छोड़ने के लिए निकली और आधे घंटे में वापस आ गई। इस बीच में लतिका जग गई थी, तो मैंने उसको दूध की बोतल दे दी थी, और हमारे बीच घटी अब तक की सारी घटनाओं पर विचार करने लगा। जब वह लौटी तो मैं अभी भी नग्न था, जिसे देख कर उसे बहुत प्रसन्नता हुई। उसने मुझे बिस्तर पर आराम करने को कहा, और फिर लतिका की देखभाल और घर की सफाई करने लगी। जब सब काम निबट गए, और लतिका अपने खेल में व्यस्त हो गई, तो काजल नाशपाती से भरी थाली लेकर लौटी। उन फलों ने मुझे उसके स्तनों की पुनः याद दिला दी। जैसे ही उसने मेरे लिए नाशपाती छीली, मैं उसके स्वादिष्ट, ताजे दूध की दावत करने के लिए तरसने गया। उसने मुझे फल देने से पहले एक फल का एक टुकड़ा चखा।

“बहुत मीठा है!” उसने कहा।

मैंने उसे अपने हाथ से मुझको खिलाने के लिए इशारा करते हुए अपना मुंह खोला, तो उसने फल का टुकड़ा मेरे मुँह में डाल दिया।

“बच्ची अब दूध नहीं पीती है?” मैंने खाते खाते पूछा।

“बहुत कम पीती है। इसको अब मसालेदार खाने का स्वाद लग गया है न।”

“पिलाया करो न!”

“जब वो पीती ही नहीं, तो जबरदस्ती कैसे करूँ?” फिर थोड़ा सोच कर, “और वो सुनील को क्या उलटी सीधी पट्टी पढ़ा रहे थे नहाते समय?”

“अरे! उलटी सीधी पट्टी नहीं। सब सही बातें हैं। सुनील को पिलाया करो। उसके लिए अच्छा है।”

चूंकि काजल के जीवन के बारे में बहुत सी नई बातें सामने आई थीं, इसलिए मैंने सोचा कि मुझे भी अपने बारे में उसको बताना चाहिए। तो मैंने काजल को अपने बचपन के बारे में बताया और बताया कि कैसे मेरी माँ मुझे बहुत बड़ी उम्र तक स्तनपान कराती रहीं थीं। काजल सब बातें सुन कर मुस्कुराई और बोली कि शायद इसीलिए मैं इतना मजबूत और सुंदर युवक बन पाया। उसने मुझे यह भी बताया कि वो बच्चों को दूध पिलाना चाहती है, लेकिन लतिका को अब स्तन का दूध पसंद नहीं था और उसको स्वाद वाले, ठोस खाद्य पदार्थों में अधिक दिलचस्पी थी। उसने मुझे यह भी बताया कि सुनील को अभी कुछ समय पहले ही दूध का चस्का फिर से लगा है, और वो उसको पिलाती है। यही कारण है कि उसको अभी भी दूध बन रहा था।

मैंने उससे कहा कि उसे अब इसके बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि अब से मैं भी पिया करूँगा।

“अच्छा जी! मान न मान, मैं तेरा मेहमान?” काजल ने मुझे चिढ़ाते हुए कहा।

“मैं ऐसा ही हूँ!”

“माँ और बाबूजी से कह कर तुम्हारी शादी करा देनी चाहिए। ऐसे उल्टे सीधे विचार नहीं आएँगे तब!”

“अरे तो करवा दो न!” कह कर मैं उसको पकड़ने को हुआ, लेकिन वो झटक कर भाग खड़ी हुई।

“सो जाओ। मैं बाकी जगह काम निबटा कर आती हूँ।”
Bahut hi acha update tha.
 
  • Love
Reactions: avsji

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,039
22,451
159
बहुत ही खूबसूरत अपडेट था।

दिल छू लिया लेखक बाबू आपने।

बहुत बहुत धन्यवाद मित्र!!

क्या खूब लिखा है लेखक बाबू। सम्भोग को इतनी सालिनता से सिर्फ आप ही लिख सकते हो। बहुत खूब।

:) पुनः धन्यवाद!
मुझे तो अपने अनुभव में यही समझ आया है कि सम्भोग में शालीनता होती है।
उत्साह का मतलब अनादर करना नहीं होता :)

पता तो था की रचना अमर से दूर जानेवाली है, पर इतनी जल्दी। पर बहुत ही अच्छा अपडेट था।

:)

बहुत खूब, स्तनपान का वर्णन करने में आपने महिरता हासिल की हो ऐसा लगता है। अभी तक कई बार आपने जीकर किया, पर हर बार नया अनुभव।

हा हा!
हर बार अलग अलग परिस्थितियों में स्तनपान हुआ है न, इसलिए!

Bahut hi acha update tha.

धन्यवाद मित्र! बहुत बहुत धन्यवाद :)
 
  • Like
Reactions: DesiPriyaRai

DesiPriyaRai

Active Reader
1,428
1,757
144
आत्मनिर्भर - नए अनुभव - Update 8


काजल के जाने के बाद मैं फिर सो गया। जब उठा तो दोपहर हो रही थी। मैं उठ कर हॉल में आ गया, और टीवी देखने लगा। भारत और वेस्टइंडीज़ के बीच वन-डे मैच चल रहा था। उस समय ढाई सौ के ऊपर रन बन जाएँ तो जीत लगभग निश्चित हो जाती थी। और जब वेस्टइंडीज़ का स्कोर दो सौ सत्तर के ऊपर चला गया, मैं समझ गया कि अब कुछ नहीं हो सकता। और फिर तेंदुलकर भी शून्य पर आउट हो गया, तो मैंने टीवी बंद कर दी। मैच का नतीज़ा मालूम हो गया था। ठीक उसी समय काजल वापस आई। उसने आने से पहले अपनी बेटी को एक शिशु-सदन में रख दिया था, जहाँ वो अपने साथ के बच्चो के साथ खेलती।

“उठ गए?” उसने कहा।

“हाँ, थोड़ी देर से उठा हुआ हूँ।”

“अच्छी बात है! मैं खाना पका देती हूँ।”

“अरे! वो सवेरे की लुची तरकारी ख़तम हो गई सब?”

“नहीं! तरकारी है। वो खाना है?”

“हाँ! खूब स्वादिष्ट थी!”

काजल ने हँसते हुए कहा, “बहुत अच्छी बात है! तुम भी बंगाली बनते जा रहे हो। रुको, मैं ताज़ी ताज़ी लुची छान कर लाती हूँ।”

कुछ देर में मैं खाना खा चुका और जबरदस्ती कर के काजल को भी खिलाया।

“काजल, तुम अपने और दोनों बच्चों के लिए भी खाना यहीं से ले जाया करो, या यहीं पर खा लिया करो न। ठीक से खाना खाना बहुत ज़रूरी है।”

“क्या बात है, बहुत प्यार आ रहा है?”

“हा हा हा! नहीं। ऐसी बात नहीं है।” फिर मैं थोड़ा गंभीर होते हुए बोला, “काजल, तुम अब से थोड़े और पैसे ले लिया करो?”

“क्यों?” काजल ने कहा, उसका व्यवहार बदलते देर नहीं लगी, “अब हम यह सब कर रहे हैं, इसलिए तुम मुझे और पैसे देना चाहते हो?”

मुझे लग गया कि कुछ गड़बड़ तो हो गई है, इसलिए मैंने कुछ कहा नहीं। रचना के साथ भी ऐसा ही हुआ था। मैं काजल को नाराज़ नहीं करना चाहता था।

“बोलो? यही बात है न? तुमको क्या लगता है? मैं कोई वेश्या हूँ?”

काजल नाराज़ तो हो गई थी। लेकिन वो उस तरह से अपनी नाराज़गी नहीं दिखा सकती थी, जैसी रचना ने दिखाई थी।

“वो बात नहीं है काजल। प्लीज मेरे पास बैठो और दो पल के लिए मेरी बात सुनो। प्लीज?”

कुछ सोच कर वो मेरे बगल बैठ गई।

“काजल, आपने मेरी जिस तरह से देखभाल करी है - कैसी बुरी हालत थी! बिस्तर से उठ भी नहीं पा रहा था मैं! लेकिन आपने बढ़ चढ़ कर मेरी देखभाल करी। आपको वो सब करने की क्या ज़रुरत थी? पड़े रहने देतीं?” मैंने आवेश में आ कर यह सब कह दिया, “सच कहूँ, तो मैंने आपको मेड की नज़र से कभी नहीं देखा। आप मेरे लिए हमेशा मेरी गार्जियन जैसी रही हैं - मैं कोई रिश्ता नहीं जोड़ना चाहता, लेकिन मेरे मन में आप के लिए जो आदर है वो वैसा है जैसे कि आप मेरी मेरी बड़ी बहन, या दोस्त हैं। आप इतना कुछ करती हैं मेरे लिए, तो मुझे भी तो कुछ करना चाहिए?” मैंने कहा, “है न?”

“तुमने किया तो है! सुनील के दाखिले के लिए और उसको पढ़ाने की तुमको क्या ज़रुरत थी? तुम भी तो कर रहे हो न हमारे लिए बहुत कुछ!” काजल मेरी बात सुन कर संयत हो गई थी।

“फिर भी काजल। आपकी ज़रुरत मेरे से अधिक हैं।”

काजल मुझसे बहस नहीं करना चाहती थी, इसलिए वो बोली,

“अच्छा! तो एक काम करते हैं। एक गुल्लक ले आते हैं। उसको यहीं रखेंगे। तुमको मुझे जितना भी एक्स्ट्रा पैसा देना रहा करे, उसमे डाल दिया करो। मुझे जब भी ज़रुरत होगी, मैं उसमे से ले लूंगी। ठीक है? मेरा मरद मेरे हाथ में ज्यादा पैसे देखेगा, तो सब उड़ा देगा। उसका निकम्मापन और भी बढ़ जाएगा!” उसने स्नेह से मेरी तरफ देखा, “ठीक है?”

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया। वो मुस्कुराई। अचानक ही उसकी आँखों में ममता वाले भाव दिखे,

“तुम बहुत भोले हो, अमर!” उसने प्रेम से मेरा एक गाल सहलाते हुए कहा, “किससे मिला है ये भोलापन? माँ से या बाबू जी से?”

“दोनों से!” उनकी याद आते ही मेरे चेहरे पर ख़ुशी की लहर दौड़ गई।

“भगवान उन दोनों को, और तुमको हमेशा खुश रखें!”

मैं मुस्कुराया, “मिलवाऊँगा तुमको! तुम तीनों एक दूसरे को बहुत पसंद करोगे - मुझे पक्का भरोसा है।” मैंने कहा, और फिर कुछ सोचते हुए मैंने जोड़ा, “लेकिन कम से कम खाना तो यहीं से ले जाया करो, या यहीं खा लिया करो?”

“ठीक है मालिक!” काजल ने बनावटी अंदाज़ में कहा।

“मारूँगा तुमको!” कह कर मैंने उसको मारने के लिए घूँसा बनाया।

“अच्छा जी, तो घर के सारे काम भी मुझ ही से करवाओगे, मेरा दूध भी पियोगे, और मारोगे भी मुझे ही!”

“ऐसी बातें करोगी, तो मरूँगा सच में!”

“तुम किसी को नहीं मार सकते, अमर!” उसने बड़ी कोमलता से बोला, “तुम बहुत अच्छे हो। मैंने तुम जैसा कोई और आदमी नहीं देखा!”

“ठीक है, तब तो तुमको मेरे पिताश्री से ज़रूर मिलना चाहिए!”

“हाय मेरी किस्मत! काश, माँ जी से पहले मिली होती मैं उनसे!”

“हा हा हा हा हा!”

“सच में अमर!” कह कर वो बिस्तर से उठने लगी। मैंने हाथ से पकड़ कर उसको रोक लिया।

“जाने दो न,” उसने अपना हाथ छुड़ाने की कोई कोशिश नहीं करी, कुछ काम ही निबटा लूँ!”

“हमेशा काम करती रहती हो! आज मौका मिला है, मेरे पास रहो!”

मैंने कहा और पलंग के किनारे पर बैठ गया। वह खड़े खड़े मुझे देख रही थी, अनिश्चित। बिलकुल अचानक ही हम दोनों के बीच की स्नेह भरी बातें, कामुक माहौल में बदल गईं। मैंने उसकी कमर पकड़कर अपने पास भींच लिया - मेरा सर उसके स्तनों के बीच में था और होंठ उसके पेट पर। मैंने उसी अवस्था में उसको चूम लिया। काजल के शरीर में एक जानी-पहचानी सी कंपकंपी उठ रही थी। मैंने ऊपर देखा, तो उसकी आँखें बंद थीं। मैंने उसकी तरफ देखते हुए ही उसकी साड़ी का पल्लू तब तक खींचा जब तक कि वह केवल अपने ब्लाउज और पेटीकोट में ही न रह गई। मैंने देखा कि उसके पेटीकोट की डोरी उसकी कमर के बाईं तरफ बंधी हुई थी! मैं उसको खोलना चाहता था, लेकिन उससे पहले मैं उसको उसके परिचित तरीके से ही नग्न करना चाहता था। मैंने उसका ब्लाउज खोलना शुरू कर दिया।

“अभी नहीं?” वो बोली।

उसका विरोध बिल्कुल भी गंभीर नहीं लग रहा था, इसलिए मैंने भी न सुनने का नाटक किया।

“सवेरे से दूध नहीं मिला!” मैंने शिकायत करी।

“इतना सब खिलाया, फिर भी तुम हमेशा भूखे हो... और तुम्हारा नुनु भी बिलकुल शैतान बच्चे जैसा हो गया है!” काजल ने मेरे शिश्न को देखते हुए कहा, “एकदम ढीठ!”

लेकिन न तो वो हटी और न ही उसने विरोध किया। मैंने जल्दी ही उसका ब्लाउज खोला और उसके कंधों से खिसका दिया।

“अम्मा बहुत सुंदर है,” मैं उसकी तारीफ़ करता हूँ - ब्रा में से उसका वक्ष-विदरण बेहद खूबसूरत लग रहा था।

“मैं तुम्हारी अम्मा नहीं हूँ,” उसने शिकायत किया।

मैंने उसकी बात पर कोई टिप्पणी नहीं की और जो कुछ मैं कर रहा था उसे करना जारी रखा।

“बिल्कुल नहीं,” इस समय मैं उसकी ब्रा खोल रहा था, “अब बस! और मत करो।” वो अपने होंठ काटते हुए बोली; उसकी आवाज़ में निश्चय का पूरा अभाव सुनाई दे रहा था।

माँ ने समझाया था कि स्त्री की अनुमति के बिना उसके साथ कुछ भी नहीं करना - लेकिन यहाँ काजल केवल शरमाती हुई लग रही थी। एक मूक अनुमति तो थी। उसके स्तन पुनः स्वतंत्र हो गए थे।

इस समय काजल थोड़ी शर्मीली सी लग रही थी। शायद इसलिए क्योंकि दिन का समय था, और उसके नंगे शरीर के सारे विवरण मुझे दिख रहे थे। लेकिन फिर भी उसकी आवाज़ में कुछ ऐसा था जिससे लग रहा था कि मैं उसके साथ जो भी कुछ कर रहा था, वो उन सभी हरकतों पर खुश थी। वह इस बात से खुश लग रही थी कि अब मैं उसको एक आकर्षक अभीष्ट महिला के रूप में देख रहा था, चाह रहा था, और उसकी प्रशंसा कर रहा था। अक्सर औरतों के स्तन ऐसे भारी भारी से होते हैं कि आपस में जुड़े / चिपके से रहते हैं, लेकिन काजल के स्तन एक दूसरे से अलग थे। उसके चूचक पिए जाने के पूर्वाभास में सीधे खड़े हुए थे। कल रात तो नहीं दिखे, लेकिन बढ़िया रौशनी में उसके एरीओला के चारों ओर छोटे छोटे उभार भी दिख रहे थे - माँ के भी ऐसे ही थे। मैंने सहज रूप से उसके दोनों स्तनों को अपने हाथों में लिया - शायद काजल को इस बात की उम्मीद थी, इसलिए वो मुझसे दूर नहीं गई। उसका तो नहीं मालूम, लेकिन मुझे तो अपने हाथों में स्तनों को महसूस करना बिलकुल स्वर्गिक आनंद दे रहा था। जैसे ही मैंने उसके स्तनों को थोड़ा दबाया, उसकी आँखें बंद हो गईं। कितनी सुंदर लग रही थी काजल... बिलकुल देवी की तरह!

मैं अब उसके शरीर के विभिन्न हिस्सों को चूम रहा था और वो प्यार से मेरे गाल सहला रही थी। मैं बीच बीच में उसके स्तन भी पीने लगा। एक बार जब स्तनों से दूध निकलने लगता है, तो बूँद बूँद कर के टपकने लगता है। तो जब मैं उसके पेट को चूमता, तब उसके स्तनों से दूध की बूँदें मेरे सर या कन्धों पर गिरतीं! इसको कहते हैं दूध में स्नान करना! काजल भी मुझे बड़ी कोमलता से सहला रही थी - उसके स्पर्श में इतनी कोमलता थी कि मैं मन ही मन पिघल गया। यह मेरे आनंद की पराकाष्ठा थी!!!!

“बस... थोड़ा ही। ठीक है?” उसने कहा।

‘थोड़ा ही?’ क्या इस तरह के प्रेम संबंधों में कोई सीमा होती है?

काजल खुद जानती थी कि अब हमारे बीच की जो दीवार टूटी है, तो उसमें होने वाले लेन देन की सीमा अब हमारी सज्जनता ही तय कर सकती थी। ये छोटे मोटे, अनिश्चित सी सलाहें वो काम नहीं कर सकतीं। मैं उसके स्वादिष्ट दूध का आनंद उठाने लगा। उसके पूरे शरीर पर, जहाँ भी मैं चाहता था, वहाँ वहाँ मेरे होंठों की छाप लगी हुई थी। उसने न तो मुझे रोका, और न ही कोई शिकायत करी। वो खुद भी बदले में मुझ पर बेपनाह प्यार बरसा रही थी - वो कभी मेरे सर को, तो कभी चेहरे को चूम ले रही थी। यह मेरे लिए इतना भावनात्मक सम्बन्ध था कि मेरी आँखों से आँसू निकलने लगे। उस शहर के अकेलेपन में काजल मेरा सहारा थी - वो मेरे लिए अब मेरा परिवार थी। सब प्रकार की भावनाएँ उभर कर सामने आ रही थीं - मेरा लिंग भी स्तंभित हो गया था, और उसको मेरे इरादों के बारे में चेतावनी दे रहा था। लेकिन काजल को जैसे उसकी परवाह ही नहीं थी। मैं उसके स्तन पीता रहा, और वो अंततः खाली हो गए। मैंने चैन भरी साँस ली, और बिस्तर पर लेट गया।

“मेरे ऊपर बैठो ... अपने पैर मेरे दोनों तरफ कर के,” मैंने उससे कहा।

“इस तरह?” काजल मंत्रमुग्ध सी मेरे ऊपर चढ़ते हुए बोली।

उसने अपने दोनों पैर मेरे दाएँ बाएँ कर लिए, और अपने घुटनों और पैरों के सहारे मेरे ऊपर बैठ गई। ‘वुमन ऑन टॉप’ जैसी पोजीशन बन गई। मैंने उसकी बाहें पकड़ कर अपनी तरफ खींचा - जैसे ही उसका चेहरा मेरे चेहरे के पास आया, उसके नितंब मेरे लिंग पर आ गए।

“हाँ, ऐसे ही!” मैंने उसके होंठ चूम लिए।

मेरी इस हरकत से वो स्तब्ध रह गई। उसने मुझे अजीब सी नज़रों से देखा।

“अमर ....” उसने कोमलता से कहा, “हमें यह नहीं करना चाहिए …”

हमारे बीच सज्जनता अभी भी बची हुई थी। उसने हल्का सा विरोध किया, जबकि उसका हाथ मेरे सीने से ले कर नीचे मेरे पेट तक फिसल रहा था। और मेरा हाथ उसके नितंबों को दबा रहा था।

“कितना बड़ा सा है तुम्हारा ... नुनु!” जैसे ही उसका हाथ मेरे लिंग पर गया, उसने कहा।

“नुनु?”

उसका पेटीकोट हमारे स्पर्श में बाधा दे रहा था, मैंने उसके निचले सर को पकड़ कर ऊपर उठा दिया, ताकि वो मुझ पर ठीक से बैठ सके।

“हाँ,” काजल प्यार से मुस्कुराते हुए बोली, “नुनु! मैं इसको प्यार से यही कहूँगी!”

मैंने उसके स्तनों का और नितम्बों का मर्दन, चुम्बन और चूषण जारी रखा। दोनों स्तन, बारी बारी। मैं उस समय तक पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था। काजल भी यौन आनंद ले रही थी, हर किसी भी चीज़ से बेखबर हो कर! क्योंकि मेरा मुँह उसके कामुक शरीर के लगभग हर अंग को चूमने चुभलाने में व्यस्त था।

मेरा लिंग सीधे उसकी योनि की तरफ देख रहा था। कामुक स्त्री नग्न ही सुन्दर लगती है। इसलिए, मैंने उसकी पेटीकोट की डोरी खोल दी। उसने अचानक ही अपनी कमर पर ढीलापन सा महसूस हुआ, लेकिन इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती, मैंने पेटीकोट को उसके नितंबों से नीचे खिसका दिया। उसने उसे पकड़ने की कोशिश तो की, लेकिन मैंने उसे इतनी ताकत से खींचा कि काजल पीछे की ओर लगभग गिर सी गई। वो शिकायती लहजे में मुस्कुराई। मैं भी मुस्कुराया।

“अब बस! बहुत हो गए कपड़े हमारे बीच!”

“बोका!” उसने मुस्कुराते हुए कहा।

काजल अब मेरे सामने पूरी तरह से नग्न बैठी थी! मैंने उसको हाथों से पकड़ कर अपनी ओर खींचा। वो मेरे सीने पर गिर गई। सब कुछ बहुत कामुक था! कामुक माहौल! उसने मुझे कुछ उत्सुकता और कुछ शरारत से देखा। मंद मंद मुस्कुराते हुए उसने मुझसे मज़ाक मज़ाक में कहा,

“अगर मैं कुँवारी लड़की होती, तो मैं अभी के अभी तुमसे शादी कर लेती!”

मैं मुस्कुराया। शायद यह वाक्य मेरे साथ सेक्स करने की इच्छा रखने का उसका अपना ही एक विनम्र तरीका था। मैंने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि उसने मेरे होंठों पर ऊँगली रख दी, और मुस्कुराते हुए कहना जारी रखा,

“... लेकिन उसके लिए बहुत देर हो चुकी है!”

यह कह कर काजल मेरी गोद से नीचे उतर गई। मैं उसे फिर से अपनी ओर खींचने लगा, पर उसने मुझे रोक लिया,

“नहीं। रुको तो! मेरी बात तो सुन लो!”

मैंने इंतजार किया।

“तुम्हें पता है अमर, मुझे न जाने कैसे तुम्हारे सामने ऐसे.... ऐसे नंगी खड़े होने में शर्म भी नहीं आ रही है!”

मैं उसे फिर से अपनी ओर खींचने लगा।

“अरे रुको तो! बोका!” वो हँसते हुए मुझसे बोली, “प्लीज मेरी बात तो सुन लो ... मैं औरत हूँ, शादी-शुदा हूँ, इसलिए यह [उसने अपनी योनि की तरफ संकेत किया] मेरे पति के लिए है। लेकिन ... लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं तुमको सुख नहीं दे सकती …”

और यह कहते हुए, काजल बिस्तर पर लेट गई और उसने अपने हाथों से अपने स्तनों को जोड़ कर सटा दिया। अब दोनों स्तनों के बीच, उनके तल पर एक सँकरी सी नलिका बन गई - योनि की सुरंग के जैसी!

“यहाँ करो ... इनके बीच। तुमको मेरे स्तन पसंद भी हैं। जब तुम करोगे, तो मैं तुमको देखना चाहती हूँ!”

मैं काजल की बात का मतलब समझ गया और उसके ऊपर आ गया। मुझे इस समय सम्भोग करने की बड़ी प्रबल इच्छा हो रही थी। मुझे अब सेक्स करना ही था चाहे वो काजल के अंदर हो, या काजल के बाहर! मैंने दोनों स्तनों के बीच अपना लिंग डाला, तो उसने घर्षण और पकड़ बढ़ाने के लिए अपने स्तनों को एक साथ दबाया। मेरा पूरी तरह से तना हुआ लिंग उसके चेहरे के काफ़ी करीब था। काजल ने मेरे शिश्न को एक छोटा सा चुम्बन दिया, और मुझे अपना काम करने के लिए अपना सर हिला कर इशारा किया। फिर क्या था! मैंने स्तन मैथुन करना शुरू कर दिया। यह अनुभव मेरे लिए अपने आप में बहुत शानदार था। उसके दोनों स्तनों के बीच की सुरंग सँकरी और गर्म थी, और उसमे अपने आप में थोड़ी तैलीय चिकनाई थी, जो शायद त्वचा के प्राकृतिक तैल या फिर किसी क्रीम के कारण हो सकती है। मैंने थोड़ी देर में अपनी ले बाँध ली, और मैथुन की गति तेज़ कर दी। जैसा अनुभव योनि मैथुन में होता है, यह अनुभव उससे बहुत अलग था। लेकिन उस समय काजल के साथ यह करना ही मेरे लिए एक रोमांचक घटना थी। मैंने लगभग तीस चालीस धक्के लगाए, और उसके बाद अपने वृषणों में हलचल होती महसूस करी।

“आ... आ रहा हूँ... काजल ... आह! निकलने वाला हूँ ... ओह!” मैंने मैथुन के चरमोन्माद के पास पहुँच कर जोर से घोषणा की।

“चिंता मत करो ... बस करते रहो।” काजल ने मुझे प्रोत्साहित किया।

तो मैंने धक्के लगाने की गति कम नहीं करी। आठ दस और धक्के लगाए, और फिर फट पड़ा! मेरा वीर्य उड़ता हुआ उसके नाक, मुँह और गले पर गिरा। वो बेचारी इस तरह के हमले के लिए तैयार नहीं थी और एक तरह से चौंक गई। फिर भी उसने अपने स्तनों पर दबाव बनाए रखा, जब तक मैं कुछ और झटके लगाने के बाद पूरी तरह से मैं रुक न गया। स्खलित होने के बाद मैं पूरी तरह संतुष्ट और खुश था।

“आह! मज़ा आ गया, काजल! थैंक यू!” मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “... थैंक यू! थैंक यू! थैंक यू!”

“हा हा हा! अरे बस बस!” उसने खिलखिलाते हुए कहा।

मैं लगभग दस मिनट तक बिस्तर पर पड़ा रहा - थका हुआ; और अपनी साँसों को स्थिर करने की कोशिश करता रहा। इस बीच काजल बिस्तर से उठी; उसने अपना चेहरा और शरीर के अन्य हिस्सों को धोया, और फिर वापस बिस्तर पर आ गई। मेरे बगल करवट में लेट कर वो मुझे मुस्कुराते हुए देख रही थी। सब कुछ बड़े हसीन ख़्वाब जैसा था। मैंने उसे अपनी ओर देखते हुए देखा। मैं मुस्कुराया - संतुष्ट और प्रसन्न!

“थैंक यू, काजल। थैंक यू! तुमने मेरी ज़िन्दगी बदल दी है।”

“आज पहली बार किया है?” उसने पूछा - शायद मेरा अनाड़ीपन उसको समझ में आ गया था।

“हाँ!” मैंने झूठ बोला।

वह संतुष्ट और प्रसन्न होकर मुस्कुराई, “बहुत अच्छा। कोई लड़की किसी दिन बहुत खुशनसीब होने वाली है!”

“हा हा हा!”

“सच में! और तुम्हारा नुनु भी खूब बढ़िया है। लम्बा, मोटा और मज़बूत! यहाँ ऐसा लग रहा था तो वहाँ ....” काजल जैसे खुद में ही खोई हुई कुछ भी बड़बड़ा रही थी।

“अरे तो एक बार अंदर ले कर देखो!” मैंने उसको छेड़ा।

“हा हा हा! बोका हो पूरे तुम!” मानो अपने होश में वापस आते हुए बोली।

**
आत्मनिर्भर - नए अनुभव - Update 9

उस दिन के बाद से काजल और मेरी बहुत अच्छी बॉन्डिंग हो गई। और हमारे बीच एक बहुत ही करीबी रिश्ता बन गया! मुझे उस समय तक भी नहीं मालूम था कि आगे चल कर, हमारी निकटता का कैसा अत्यंत दूरगामी परिणाम होने वाला है! वैसे भी, भविष्य के गर्भ में क्या है, वो पहले से ही जानने का प्रयास नहीं करना चाहिए। इस समय तो बस केवल यही जान लेना पर्याप्त है कि काजल और मैं - बहुत अच्छे दोस्त हो गए। आपको जानकर हैरानी होगी कि हमारा रिश्ता, यौन निकटता से अधिक, आपसी सम्मान और विश्वास पर आधारित था। काजल की निकटता ने मुझ पर बहुत सकारात्मक प्रभाव डाला। उसके आने के बाद से मेरा जीवन वैसे ही काफ़ी व्यवस्थित हो गया था; लेकिन अब मुझे जीवन का सुख भी मिलने लगा था। एक कुँवारे पुरुष के जीवन में जब एक स्त्री का आगमन होता है तो उसको सुख तो मिलता ही है। काजल के साथ अंतरंगता बढ़ने के साथ ही मैंने उसको अपने जीवन के कई रहस्यों से अवगत कराया। मैंने उसे अपने बचपन के बारे में बताया - मैंने उसको बताया कि बचपन में मुझे कैसे नग्न रहना पसंद था। तो उसने मुझे अभी भी नग्न रहने के लिए प्रोत्साहित किया। मैंने उसको यह भी बताया कि बचपन में मुझे माँ के स्तनों से दूध पीना बहुत पसंद था। तो उसने मुझे अभी भी उसका दूध पीते रहने के लिए प्रोत्साहित किया। काजल मेरे स्तनपान करने की इच्छा से बहुत खुश थी, और उसने मुझे अपने स्तनों को पीने से मुझे कभी नहीं रोका। जब भी मुझे उसका दूध पीने की इच्छा होती, तो मुझे बस इतना करना था कि मैं उसका ब्लाउज खोल दूं और पीने लग जाऊँ। मुझको नियमित रूप से रोज़ स्तनपान कराने के कारण काजल को मेरे घर पर अब अधिक समय लगने लगा। इसलिए मैंने उसको कहा कि घर की सफाई सप्ताह में एक दो बार ही किया करे।

काजल मेरे लिंग को चूमना कभी नहीं भूलती थी - दिन में कम से कम दो बार मुझे उसका चुम्मा मिलता था। जैसे सुनील को मिलता था। यह सारे रूटीन तभी टूटते थे जब मेरे माँ डैड या अन्य मेहमान मुझसे मिलने आते थे। हमारे बीच में अब गहरी अंतरंगता थी, लेकिन यह भी सच था कि उसने मुझे कभी अपनी योनि में नहीं पहुंचने दिया। किसी भी तरह की पहुंच नहीं - न तो लिंग और न ही उंगली या मुँह! मैंने भी कभी उस पर जबरदस्ती करने की कोशिश नहीं की। मुझे उसके शरीर के अन्य सभी अंगों को छूने की अनुमति थी। मैंने एक बार उसके पहनने के लिए एक सेक्सी ब्रा-पैंटी सेट खरीदा था। यह उपहार पा कर काजल बहुत हैरान भी हुई और खुश थी! वह कभी-कभी केवल उन्हें पहन कर मेरे घर में रहती थी। बड़ा मज़ेदार सा माहौल हो जाता - जब वो शाम को घर आती, और मुझे कपड़े पहने देखती, तो वो मेरे पास चली आती, और मुझे नंगा कर देती। सुनील को भी मुझे वैसे ही देखने की आदत हो गई। जब वह काम कर रही होती, तो मैं अक्सर रसोई में चला जाता, वहाँ उसके साथ बातें करता रहता। मुझे हस्तमैथुन और मुखमैथुन का आनंद देने में भी उसको कोई संकोच नहीं होता था।

काजल अब महीने में तीन चार बार मेरे घर पर ही सोने लगी, और हर बार मैं भी उसके और उसके बच्चों के साथ ही सो जाता था। उन दिनों में हम चारों, एक परिवार के सदस्यों जैसे ही होते थे - काजल और मैं, मम्मी-पापा के रोल में, और सुनील और लतिका, हमारे बच्चों के रोल में। एक रात जब हम सोने की तैयारी कर रहे थे - सुनील काजल के बाईं तरफ था, जबकि मैं दाईं तरफ। जैसे ही हम लेट गए, मैंने काजल के ब्लाउज के बटन खोलना शुरू कर दिया। काजल सुनील के सामने ऐसा किये जाने से घबरा गई, और ‘न न’ कहती रही, लेकिन मैं तभी रुका, जब उसके स्तन पूरी तरह से नंगे हो गए। फिर सुनील और मैंने खुशी-खुशी उन शानदार स्तनों से दावत का आनंद उठाया। सुनील को केवल इस बात पर आपत्ति थी कि मैं काजल के स्तन का अधिक हिस्सा अपने मुँह में लेने में ले रहा था, जो उसे लगता था कि मेरे बड़े होने का मुझको एक अनुचित लाभ था। उस रात के बाद जब हम साथ सोते थे तो काजल और मैं ज्यादातर नंगे रहते थे।

सच कहूँ, मुझे उन तीनों से बहुत अधिक अपनापन लगने लगा था। वास्तव में वो तीनों मुझे मेरे ही परिवार का हिस्सा लगने लगे थे। सुनील भी मुझे अपने पिता के जैसे ही देखने लग गया था - मुझे नहीं मालूम कि काजल ने उसको यह करने को कहा था या नहीं, लेकिन अब वो जब भी मुझसे मिलता, एक बेटे के समान ही मेरे पैर छूता और मेरा आशीर्वाद लेता! मुझे नहीं पता कि काजल के पति को हमारी नज़दीकियाँ कैसी लगती थीं, या उसका हमारे बारे में क्या नज़रिया था! हम उसके बारे में कभी बातें नहीं करते थे; काजल भी अपनी तरफ से उसके बारे में कुछ कहती नहीं थी। कभी-कभी जब काजल मेरे घर आती, तो वह सीधे मेरे पास आ कर मेरी गोद में बैठ जाती, और घर का कोई भी काम शुरू करने से पहले अपने स्तन मेरे मुँह में दे देती। जब मेरा पेट भर जाता तब वो काम शुरू करती। कुल मिलाकर काजल के साथ मेरा जीवन काफी खुशनुमा बन गया था। वह मेरी मैट्रन, मेरी दोस्त, मेरी प्रेमी और मेरी साथी - सब कुछ थी।

चूँकि मैंने माँ और डैड से, खासकर अपनी माँ से कभी कुछ भी नहीं छिपाया था, मैंने उनको काजल और मेरे सम्बन्धों के बारे में सब कुछ बता दिया। यह सब सुनकर माँ शुरू शुरू में असहज तो ज़रूर हुईं - इस बात से नहीं कि काजल की आर्थिक पृष्ठभूमि कमज़ोर थी, बल्कि इस बात से कि वो पहले से शादी-शुदा थी - अभी भी है - और दो बच्चो की माँ थी, और मुझसे उम्र में काफी बड़ी थी। और तो और उसका पति भी ठीक आदमी नहीं था। इसलिए माँ ने मुझे सावधान रहने को कहा। उसने मुझको समझाया कि क्योंकि काजल एक विवाहित महिला थी, इसलिए हम जो कुछ आपस में कर रहे थे वह वास्तव में व्यभिचार की श्रेणी में आता है, जो कि नहीं होना चाहिए।

लेकिन फिर माँ और डैड काजल से मिले। आपको यकीन नहीं होगा कि काजल से मिल कर माँ कितनी अधिक प्रसन्न हुईं, और डैड भी! काजल ने माँ और डैड के पैर छुए, और उनसे बहुत ही सभ्य तरीके से बात चीत की। माँ और काजल लगभग तुरंत ही एक दूसरे से घुल मिल गए। डैड और माँ, दोनों बच्चों के लिए कई सारे उपहार - जैसे कपड़े, जूते, और खिलौने - भी ले कर आए थे, जिनको पा कर सुनील और लतिका बहुत प्रसन्न हुए। माँ के कहने पर काजल एक रात को हमारे घर पर ही रुकने को तैयार हो गई। और दो ही दिनों में ही माँ को काजल के बारे में सब कुछ मालूम पड़ गया। उनको इस बात को जान कर बहुत दुःख हुआ कि इतनी संस्कारी स्त्री को गरीबी के कारण दूसरे लोगों के घर में काम करना पड़ रहा था। मुझे सावधान रहने की सलाह देने वाली मेरी माँ, काजल के साथ तुरंत दोस्त बन गईं। गौरतलब है कि माँ और काजल की उम्र में कोई अधिक अंतर नहीं है। माँ काजल से शायद कोई दो या बहुत अधिक तो तीन साल ही बड़ी थीं। इसलिए जब काजल उन्हें ‘माँ जी’ और मुझे ‘भैया’ कहकर संबोधित करती थी तो उन्हें यह बहुत अजीब लगता था। उन्होंने काजल से कहा कि वो मुझे मेरे नाम से ही बुलाया करे। उन्होंने काजल को समझाया कि जब सम्बन्ध सेक्सुअल हो जाए, तो अपने प्रेमी को ‘भैया’ नहीं कहना चाहिए। हाँ, लेकिन प्रेमी की माँ को ‘माँ जी’ कहना अनुचित नहीं है।

एक शाम, जब काजल का दूध पिए तीन दिन हो गए, तब काजल मेरे कमरे में किसी काम से आई। मुझसे अब रहा नहीं जा रहा था। मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने बगल बैठा लिया, और उसके ब्लाउज के बटन खोलने लगा। काजल कातरता से ‘न न’ कह कर गिड़गिड़ाने लगी - कहने लगी कि अगर माँ जी ने देख लिया वो वो क्या बोलेंगी; क्या सोचेंगी!! लेकिन मैं रुकना नहीं चाहता था। आज उसके स्तन खाली करने की ज़िद पकड़ ली थी मैंने। मुझे पता था कि दूध बनने के कारण काजल को भी स्तनों में दर्द हो रहा होगा। जब से मैंने उसका दूध पीना शुरू किया था, तब से उसको और भी अधिक दूध बनना शुरू हो गया था। सुनील पीता था, लेकिन उतना नहीं। लतिका का पीना तो कम ही था। मेरे ही कारण से अचानक से उसका उत्पादन बढ़ गया था। तीन दिनों से उसके स्तन खाली नहीं हुए थे, इसलिए काजल को भी दिक्कत हो रही होगी। वो भी मुझे पिलाना चाहती थी, लेकिन उसे इस बात की चिंता थी कि माँ जी क्या कहेंगी!

अभी हमारी ज़ोरा ज़ोरी चल ही रही थी कि माँ ने कमरे में आकर कहा,

“काजल बेटा, प्लीज अमर को अपना दूध पिला दो। खाना मैं देख लूँगी। और तुम दोनों जो कुछ कर रहे हो, उस पर मुझे कोई आपत्ति नहीं है... इसलिए बेफ़िक्र रहो। मुझे पता है कि तुम्हारे दूधों में दर्द हो रहा होगा। पिला दो - तुम्हारा दर्द भी कम हो जाएगा और इसका मन भी भर जाएगा!”

“देखो ... मैंने तुमसे कहा था न कि माँ हमको बुरा भला नहीं कहेंगी! ठीक है न माँ?”

माँ ने काजल से जो कहा, उसे मैंने उसको दोहराया और उसके ब्लाउज को शरीर से अलग कर के, झट से मैं उसके एक चूचक को मुँह में ले कर पीने लगा।

बेचारी काजल असहाय होकर बैठने, और कभी-कभी शर्म से हँसने के अलावा और कुछ नहीं कर सकती थी। कभी-कभी वो अपना चेहरा अपने हाथों के पीछे छिपा लेती थी, क्योंकि जब मैं काजल से स्तनपान कर रहा था, माँ बड़े मजे से हमको देख रही थीं। सामान्यतः, मुझे उसके एक स्तन का दूध खाली करने में लगभग तीन से चार मिनट लगते थे, लेकिन उस दिन मुझे करीब आठ मिनट का समय लगा। जैसे जैसे काजल का दर्द कम हुआ, वो भी सामान्य हो गई। जब स्तनपान संपन्न हो गया, तब माँ ने बड़े आभार से काजल से कहा,

“काजल बेटा, मैं सच में तुम्हारी बहुत आभारी हूँ! तुमने मेरे बेटे की इतनी अच्छी तरह से देखभाल करी है।”

माँ ने काजल का माथा चूमा। माँ ऐसी ही थीं - प्रेम, स्नेह उनके रोम रोम से बरसता था! मैं कभी-कभी सोचता हूँ कि मेरी माँ क्या कभी किसी बात पर नाराज़ भी हो सकती हैं? उनके लिए कोई भी बात अपराध नहीं थी; और सारे अपराध क्षम्य थे। अब तो काजल भी समझ गई थी कि माँ के पास प्यार और स्नेह का एक अनंत भंडार है।

“माँ जी… मैं अपने पूरे जीवन में आप जैसी किसी और औरत से नहीं मिली! आप बहुत स्नेही हैं। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि आपका बेटा भी आपके और बाबूजी के जैसा ही दिल का साफ़ है!”

मेरी बढ़ाई सुनकर मैं जोश में आ कर उसका स्तन चूसने लगा, जिससे शायद उसे तकलीफ हुई हो।

“आहहह!... लेकिन माँ जी, ये बहुत बदमाश और शरारती हो गया है …” काजल ने मेरी मीठी शिकायत की।

मैंने उसके चूचक को थोड़ा जोर से दबाया; काजल के होंठों से ‘सीईई’ जैसी सीत्कार निकल गई।

“बदमाश? कैसे?” माँ ने उत्सुकतावश पूछा।

मैंने इलास्टिक बैंड वाला पायजामा पहना हुआ था। काजल जानती थी कि उसके नीचे मैंने कुछ नहीं पहना हुआ था। काजल ने पायजामा मेरी कमर के नीचे खिसका दिया। मैं सोच भी नहीं सकता था कि काजल माँ के सामने ऐसा कुछ कर सकती है, इसलिए मैं इसके लिए तैयार नहीं थी। मेरा लिंग उस समय पूरी तरह से तना हुआ था!

“इसे देखिए! जब देखो तब इसका नुनु खड़ा ही रहता है!”

“ओह्ह! हा हा!” माँ हँस पड़ीं, “तुम तो सच में बड़े हो गए हो बेटा!”

करीब से निरीक्षण करने के लिए माँ मेरे करीब आ गईं और फिर कुछ देर बाद, उन्होंने उसने मेरे एक नितंब पर चपत लगाई।

“मेरा अमर तुम्हारी वजह से बदमाश बन गया है, काजल बेटा। तुम उसको इतना प्यार जो करती हो, इसलिए वो अब वो अच्छी तरह फल फूल रहा है। तुम दोनों जो कर रहे हो, उसे करते रहो! तुम दोनों के बीच जो भी है - उसको सुरक्षित रखो! मैं तुम दोनों को सुरक्षित रखूँगी! यह मेरा वायदा है!”

माँ ने कहा, और काजल का माथा चूम लिया।

बाद में माँ ने मुझे बताया कि काजल से मिलने के बाद उन्हें समझ में आया कि मैं उसको इतना पसंद क्यों करता हूँ! उन्होंने कहा कि हमारे बीच में जो भी कुछ था, वो बहुत सुन्दर था। माँ ने मुझसे वायदा किया कि वो मेरी और काजल और हमारे संबंधों की रक्षा करेंगीं। लेकिन उन्होंने मुझसे यह भी कहा कि मुझे एक ऐसी प्रेमिका की तलाश करनी चाहिए जो ‘सिंगल’ हो। काजल भी माँ की इस बात से पूरी तरह सहमत थी। वो खुद को मेरे गार्जियन के रूप में अधिक देखती थी... प्रेमिका के रूप में नहीं। बहुत अधिक करीबी कुछ हुआ तो जैसे मेरी बड़ी बहन! इसलिए, काजल ने मेरे लिए एक उपयुक्त साथी खोजने का जिम्मा भी अपने ऊपर ले लिया। वह अक्सर मुझे जहाँ जहाँ वो काम करने जाती थी, वहाँ या उनसे जुडी हुई अगर कोई मेरे लिए उपयुक्त लड़की होती थी, तो मुझे बताती थी। काजल का यह प्रयास मुझे बहुत क्यूट लगता था, लेकिन मैंने उसे यह तलाश रोकने के लिए कहा ... क्योंकि मुझे लग रहा था कि शायद मुझे अपने लिए एक साथी मिल गई है।

***
बहोत ही खूब, दोनो ही अपडेट थोड़े कामूक और बहोत ही प्यारे थे। काजल का क्या किरदार लिखा है आपने लेखक बाबू।

पहले भी कहा है, आज फिर से कहती हूं आप की कहानी सारे किरदारों को आंखो के सामने ला खड़ा कर देती है।
 
Last edited:
  • Love
Reactions: avsji

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,039
22,451
159
बहोत ही खूब, दोनो ही अपडेट थोड़े कामूक और बहोत ही प्यारे थे।

पुनश्च, बहुत बहुत धन्यवाद मित्र!

काजल का क्या किरदार लिखा है आपने लेखक बाबू।

काजल का किरदार आपको आगे भी बहुत पता चलेगा।

पहले भी कहा है, आज फिर से कहती हूं आप की कहानी सारे किरदारों को आंखो के सामने ला खड़ा कर देती है।

बहुत बहुत धन्यवाद! मतलब, कोशिश सफ़ल रही :)
कहानी का आनंद लेती रहें :)
 
  • Like
Reactions: DesiPriyaRai

DesiPriyaRai

Active Reader
1,428
1,757
144
पहला प्यार - Update #1


वो पहली लड़की, जिसे मैं अपनी प्रेमिका भी मान सकता था, वो दरअसल एक विदेशी लड़की थी - एक ब्राज़ीलियाई लड़की। और बड़ी दिलचस्प बात यह भी है कि मैं उस लड़की से कभी व्यक्तिगत रूप से नहीं मिला। उसका नाम गैब्रिएला [गैबी] था। हम उस समय के एक बहुत ही नए चैट रूम [वो चैट रूम यूनिक्स सिस्टम पर आधारित था और उस पर अधिकतर टेक्स्ट पर ही बात हो पाती थी। अटैचमेंट में कभी कभी चित्र भेज सकते थे, लेकिन उनको डाउनलोड होने में बहुत समय लगता था। आज कल तो उस चैट रूम को डायनासौर के युग का माना जायेगा - वैसे आज कल भी चैट रूम्स होते हैं क्या?] में यूँ ही अचानक से मिल गए थे। यह बात तब की है जब मैं इंजीनियरिंग के आख़िरी साल में था। मेरे इंजीनियरिंग कॉलेज में एक सुव्यवस्थित कंप्यूटर सेंटर था, जिसका उपयोग बहुत कम ही लोग करते थे। यहाँ इंटरनेट कनेक्टिविटी अच्छी थी, हालाँकि आपको इसके लिए अग्रिम बुकिंग और नगद भुगतान करने की आवश्यकता होती थी। चूंकि फीस बहुत अधिक नहीं थी, इसलिए मैं यह खर्चा उठा लेता था। ज्यादातर छात्र उस कंप्यूटर सेंटर का इस्तेमाल चैटिंग से संबंधित गतिविधियों के लिए ही करते थे। तो, मैं भारत से संबंधित एक चैट रूम में बातचीत करने के दौरान गैबी से मिला। उस समय भारत से संबंधित शायद ही कोई चैट रूम था, और मैं यह देखने और जानने के लिए उत्सुक था कि वहाँ पर क्या चर्चा हो रही है! और जब मैंने देखा कि एक विदेशी लड़की भारत से सम्बंधित विषयों पर इतनी ज्ञान भरी चर्चा कर रही है, तो मेरा ध्यान उसकी ओर आकर्षित होना स्वाभाविक ही था [उन दिनों, इंटरनेट पर लोग उपनामों (alias) का अधिक उपयोग नहीं करते थे, और केवल उनके स्क्रीन नामों से एक-दूसरे के असली नामों के बारे में अंदाज़ा लगाना बहुत आसान था]।

जब मैंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की और अपनी नई नौकरी शुरू की, तो मैंने एक नए व्यक्तिगत कंप्यूटर और इंटरनेट कनेक्शन में निवेश किया [उस समय केवल डायल-अप कनेक्शन मिलता था, जो कि बेहद धीमा, अविश्वसनीय और बहुत मँहगा होता था]। मेरे माँ और डैड को न तो कंप्यूटर और न ही इंटरनेट का सर पता था, और न ही उसकी पूँछ! उनको इसकी उपयोगिता के बारे में भी कुछ पता नहीं था। लेकिन मुझे यह बहुत उपयोगी लगा, क्योंकि एक तो मेरे कई दोस्तों सहपाठियों को विदेशों में नौकरी मिल गई थी [देश, जैसे अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड और जर्मनी] और अलग-अलग समय क्षेत्रों में रहने के बावज़ूद सभी से एक ही समय में बात करने में सक्षम होना, एक मजेदार अनुभव था। प्रौद्योगिकी के ‘अत्याधुनिकिकरण’ के मेरे ज्ञानवर्द्धन में मेरे वो दोस्त और सहपाठी मेरे कोच और मार्गदर्शक थे। उन्होंने मुझे चैट रूम की अवधारणा [कांसेप्ट] के बारे में बताया। जो लोग इस तरह की चीजें जानते हैं वे बेहतर बता सकते हैं। ख़ैर, मैं इंटरनेट रुपी इस विलासिता का ख़र्च वहन करने में सक्षम था, क्योंकि मेरी नौकरी से मुझे अच्छा वेतन मिलता था, और मेरे पास शायद ही कोई खर्च था।

जब हम ब्राजील के बारे में सोचते हैं, तो हमारे ज़हन में एक ऐसे देश का ख़ाका खिंच जाता है, जहाँ की लड़कियाँ और महिलाएं तंग बिकनी पहनती हैं, और अपना शरीर-प्रदर्शन करती हैं, खासकर विश्व प्रसिद्ध कार्निवल के दौरान! हम सभी ने उन विचित्र वेश-भूषाओं को देखा ही है, है ना? लेकिन यहां मेरे सभी पाठकों के लिए यह आश्चर्य की बात होगी कि ब्राजील की अति-कामुक वैश्विक छवि के विपरीत, वहाँ का समाज काफ़ी रूढ़िवादी है। कुछ ज्ञानी और जानकार लोगों ने ब्राजील को ‘महान विरोधाभासों’ का देश कहा है। एक तरह से यह ठीक टिप्पणी है। ब्राज़ील जहाँ कार्निवल की भूमि भी है, तो वहीं यह एक ऐसी जगह भी है, जहां कई पारंपरिक दृष्टिकोण और सामाजिक मूल्य आज भी कायम हैं।

अब मैं अपनी कहानी से थोड़ा अलग जाऊँगा - ताकि मैं ब्राजील और वहाँ के लोगों के बारे में अपनी समझ को बेहतर ढंग से प्रस्तुत कर सकूं। ब्राजीलियाई मुख्य रूप से तीन जातियों का मिश्रण हैं - मूल-निवासी, यूरोपीय इमिग्रेंट्स, और अफ्रीकी दास-बंदी। वर्तमान में ब्राजीलियाई नस्ल, दरअसल, इन तीनों नस्लों का मिश्रण है। यह भी कहा जा सकता है कि ब्राजीलियाई वर्तमान में दुनिया के किसी भी हिस्से की तुलना में नस्ल-मिश्रण के बारे में अधिक खुला हुआ दृष्टिकोण रखते हैं। नस्ल के प्रति ऐसे उदारवादी रवैये के बावजूद, ब्राज़ील में आश्चर्यजनक रूप से अंतर्निहित नस्लवाद उपस्थित है। रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि वहाँ अश्वेत लोगों को रोजगार मिलने की संभावना कम होती है, और इसलिए उनके गरीब होने की संभावना भी अधिक होती है। और ग़रीबी वहां की एक बड़ी सामाजिक समस्या है। रिओ द जनेरिओ की बीस प्रतिशत जनसँख्या स्लम में रहती है। ग़रीबी और आर्थिक विसमानताओं के कारण, वहाँ अपराध भी काफ़ी अधिक होता है - हत्या, डकैती, चोरी, अपहरण - यह सब वहाँ बहुत है। ड्रग्स की समस्या भी बहुत है। और उसके कारण गैंग-वॉर भी काफ़ी होती है, किसके चपेट में आम लोग भी अक्सर ही आ जाते हैं। इन सभी विषमताओं के बीच, एक चीज है जो ब्राज़ील के समाज को बांधे रखती है, और वह है संगीत और नृत्य के प्रति उनका प्रेम। अधिकांश ब्राज़ीलियाई बहुत कम उम्र से ही नृत्य करना सीखना शुरू कर देते हैं। साम्बा, जोंगो, बुम्बा, और फोर्रो यह सब यहाँ के प्रमुख नृत्य हैं। तो नृत्य, संगीत, जीवन के प्रति प्रेम - यह सब बातें ब्राज़ील को अन्य देशों से अलग बनाती हैं।

खैर, इसके पहले कि मैं हमारे मुख्य विषय से बहुत दूर चला जाऊँ, मुझे गैबी पर वापस आना चाहिए। गैबी भारत देश, यहाँ के दर्शन, संस्कृति, और भारत से जुड़ी लगभग हर चीज पर मोहित थी - और वो भी बचपन से ही। भारत के बारे में उसको अपने स्कूल की लाइब्रेरी से जानने सीखने को मिला, और आगे चल कर उसको और जानने का एक तरीके का पागलपन सा हो गया! उसको भारत के बारे में इतनी उत्सुकता थी कि इस उत्साह में वो ‘हरे कृष्ण’ संप्रदाय में भी शामिल हो गई - तब वो शायद चौदह पंद्रह साल की ही थी! बेशक, उस जुड़ाव के बाद, गैबी का भारत और हिंदू धर्म के बारे में ज्ञान काफी बढ़ गया। लेकिन उसका ज्ञान बहुत रूढ़िवादी और पुराना था - भारत स्वयं भी परिवर्तित होता हुआ देश है। तो जब चैट रूम में उससे मुलाकात हुई, तो मैंने सोचा कि मैं उसे एक-दो नई बातें मैं भी बता सकता हूँ, और साथ ही साथ मैं उसका एक ‘अंतरराष्ट्रीय’ दोस्त भी बन सकता हूँ। हमारी पहली की कुछ बातचीतों में मैं जान गया कि गैबी बहुत बुद्धिमान थी। उसमे विभिन्न विषयों का गहन अवलोकन [डीप ऑब्जरवेशन] करने, और उन पर अंतर्दृष्टि [इनसाइट] विकसित करने की अद्भुत क्षमता थी। मुझे गैबी की बुध्दिमत्ता, और भारत की संस्कृति के विभिन्न विषयों पर उसका ज्ञान बहुत पसंद आया। मुझे कई मुद्दों पर गैबी के अलग दृष्टिकोण से बहुत कुछ नया सीखने को मिला। संस्कृति और धर्म के कई विषयों पर गैबी के प्रश्नों और उन पर उसके दृष्टिकोण को देखने सममझने में बिताया गया समय मेरे लिए सबसे अधिक उत्पादक समय था। उसके सवालों के जवाब तलाशने ने कई बार मुझे बौद्धिक रूप से चुनौती दी।

गैबी की बुद्धिमत्ता ने मुझे उसकी ओर आकर्षित किया। कुछ ही समय में मुझे उसे देखने की तीव्र इच्छा होने लगी थी। लेकिन न जाने क्यों, मैं उससे उसकी तस्वीरें नहीं मांग पा रहा था। लेकिन फिर, उन शुरुआती कुछ दिनों को छोड़कर, मैंने इस बात पर ध्यान देना बंद कर दिया कि गैबी कैसी दिखती है [उसने शुरुआत में कभी भी अपनी तस्वीरें मुझसे शेयर नहीं कीं]। मैं उसकी बुद्धिमत्ता पर पूरी तरह से मोहित हो गया था। और निश्चित रूप से, मैंने भी उसका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया। हमने अपने अपने ईमेल एक दूसरे के साथ शेयर किये, और फिर हमारा रोज़ का ईमेल का लेन-देन शुरू हो गया। जब आप मित्र बन जाते हैं, तब औपचारिकताएँ भी कम हो जाती हैं। मुझे जल्दी ही मालूम पड़ा कि गैबी का सेन्स ऑफ़ ह्यूमर भी काफ़ी अच्छा था।

मैंने उसे भारत में रहने के अपने अनुभव, हमारे तौर-तरीके, यहाँ की परम्पराओं, और हमारे काम करने के तरीकों आदि के बारे में बताया। पढ़ाई के दौरान, मैं आस-पास के कई पहाड़ों की यात्रा करी थी, और मैं अपनी यात्रा की कहानियों को गैबी के साथ शेयर करता था। मैं खींची हुई तस्वीरों को स्कैन कर के गैबी को ईमेल करता था। स्कैन करने, कॉपी करने और ईमेल करने में उन दिनों बहुत समय लगता था, लेकिन यह बहुत मजेदार होता था। उसने मुझे बताया कि जब मैं अपनी स्नातक की परीक्षा समाप्त कर रहा हूँगा, तब वो अपनी स्नातकोत्तर की शिक्षा पूरी कर लेगी। और उसके बाद वो पीएचडी के लिए आवेदन करना चाहती थी - उसको उम्मीद थी कि उसको भारत के किसी अच्छे विश्वविद्यालय में प्रवेश मिल जाएगा, क्योंकि वह भारतीय संस्कृति से संबंधित शोध करना चाहती थी। क्योंकि गैबी मुझसे पढ़ाई में आगे थी, मुझे पता था कि वो मुझसे उम्र में कम से कम दो, या तीन साल बड़ी तो होगी! वैसे भी मेरे लिए यह बात कोई मायने नहीं रखती थी, क्योंकि उस समय तक मुझे अपने से बड़ी उम्र की महिलाओं के प्रति अपने स्वाभाविक लगाव का एहसास हो गया था। ऐसा नहीं है कि मैं ढूंढ़ ढूंढ़ कर अपने से बड़ी उम्र की लड़कियों से रोमांस कर रहा था, बस यह कि अभी तक जो भी लड़कियाँ मेरे जीवन में आईं थी, सभी मुझसे बड़ी थीं। हो सकता है कि मेरे इस झुकाव का कारण, मेरा मेरी माँ के साथ जो अत्यधिक लगाव था, उस से कुछ लेना-देना हो।

ख़ैर, आखिरकार गैबी ने मेरे साथ अपनी तस्वीरें शेयर करीं। यह करने में उसने लगभग छः महीने का समय लिया। उसने कुल मिला कर पाँच तस्वीरें भेजीं - दो सामान्य तस्वीरें थीं जिनमे गैबी ने स्कर्ट और ब्लाउज पहना हुआ था, लेकिन बाकी तीन में उसने बिकिनी पहनी हुई थी। गैबी लगभग चौबीस - पच्चीस वर्ष की श्वेत लड़की थी। उसका शरीर धाविकाओं जैसा पुष्ट था, और वो खूबसूरत भी बहुत थी। उसके स्तन कोई 34B साइज़ के रहे होंगे [मुझे उसके स्तनों का आकार बाद में पता चला ... बहुत बाद में] - बिकिनी के अंदर से उनका आकार बहुत प्यारा लग रहा था । उसके नितम्बों का आकार भी सौम्य और सुन्दर था। हालाँकि वो मेरी तुलना में छोटे कद काठी की थी, लेकिन वो ऐसी कोई समस्या नहीं लग रही थी। फोटो मिलने से पहले से ही मैं गैबी के व्यक्तित्व से प्रभावित था, और उसके बाद भी। और वैसे भी, उसको देखने या न देखने से क्या फ़र्क़ पड़ने वाला था? ऐसा तो नहीं था कि हम कभी मिलने वाले थे - है ना? इसलिए जब मैंने अपनी पहली जॉब शुरू करी, तो हमने अपनी ईमेल पर अपनी कहानियों और तस्वीरों का आदान प्रदान करना जारी रखा। वो यह जानकर बहुत खुश हुई कि मैंने अपनी पहली नौकरी शुरू कर दी है, और मुझसे नियमित रूप से पूछती थी कि मैं जॉब में कैसा परफॉर्म कर रहा हूँ, और मुझे नई जॉब में क्या पसंद आ रहा है, और क्या नहीं?

इस बार हम और भी अधिक व्यक्तिगत बातों पर चर्चा करने लगे। उसने मुझे बताया कि वह आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवार से है - जो कि एक अलग सी बात थी - वहाँ श्वेत लोगों में ग़रीबी बहुत कम थी। उसने बताया कि उसको स्नातकोत्तर तक की अपनी शिक्षा प्राप्त करने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ी थी। उसे परिवार से वो प्यार, वो प्रोत्साहन नहीं मिला, जिसका बच्चों के विकास में इतना महत्व है। और तो और, उसकी माँ ने उसे किसी भी प्रयास के लिए हमेशा हतोत्साहित किया, चाहे वह शैक्षिक ही क्यों न हो। यहाँ तक कि उन्होंने गैबी के दुबले पतले दिखने पर भी उसका उपहास किया - कभी यह कह कर कि वो बदसूरत दिखती है, तो कभी यह कह कर कि बच्चा कहाँ रखेगी। यह खुलासा शुरुआत में मेरे लिए एक बड़े झटके के रूप में आया। लेकिन बाद में मुझे पता चला कि भारत की ही तरह ब्राजील का सामाजिक ताना-बाना भी पुरुषों की ओर झुका हुआ है। वहां भी यहाँ की ही तरह स्त्री और पुरुष के बीच बड़ी असमानता है - वहां भी महिलाएं पुरुषों के औसत वेतन का केवल दो तिहाई ही कमाती हैं, और लोग बच्चों में नर बच्चे ही चाहते हैं। मैंने उससे कहा कि भारत में भी सब कुछ वैसा ही है और मैं भी एक मामूली परिवार से हूँ, लेकिन चूंकि मैं अपने माँ बाप का एकलौता बेटा था, इसलिए मेरे लिए सब कुछ थोड़ा अधिक आसान था। इसके अलावा, मेरी शिक्षा का खर्च कम था, मेरे माता-पिता इसे वहन कर सकते थे। लेकिन अब मेरे पास एक अच्छी नौकरी थी, जहाँ वेतन बहुत अच्छा था, और मैं इस बात से खुश था, कि मैं अपने माँ और डैड को उनके कुछ सपनों को जीने में अब मदद कर सकता था।
बहुत ही अच्छा अपडेट। ब्राजील के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला, वैसे थोड़ा बहुत तो पता था, पर आप जब कहानी के माध्यम से बताते हो तो मजा आता है।

चैटबॉक्स, सायद आपको पता हो २०१२—१३ में याहू मैसेंजर बहुत प्रचलित था। वहा दुनिया भर के अलग अलग ओपन चैट रूम्स हुवा करते थे। फिर करीब १ २ साल बाद उन्होंने ओपन चैट रूम की सुविधा बंध करदी!!!
 
  • Love
Reactions: avsji
Status
Not open for further replies.
Top