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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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बहुत ही शानदार अपडेट है । प्रथम मिलन का इतना अच्छी तरह ओर सजीव ढंग से वर्णन किया है जैसे हमारे सामने सब कुछ लाइव हो रहा है

बहुत बहुत धन्यवाद जीतेन्द्र! साथ में बने रहें!
 
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पहला प्यार - विवाह - Update #8


विवाह की लम्बी चौड़ी रस्में निभाते, और उसके बाद सुखद सम्भोग की श्रमसाध्य और भावनात्मक थकावट के कारण हम दोनों कुछ घंटों के लिए एक सुखदायक नींद में सो गए। हमारी नींद तब टूटी, जब दरवाजे पर एक दस्तक हुई। हमने अंदर से दरवाज़ा नहीं बंद किया था - काजल ने ही बाहर से कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया था। हम आँखें खोल ही रहे थे, कि माँ की आवाज़ आई। वो हमें इसलिए जगाने आईं थीं क्योंकि नई नवेली दुल्हन से मिलने और उसको बधाई देने के लिए कई सारे मेहमान आ रहे थे, या आने वाले थे। गैबी को उनसे मिलने के लिए तैयार करना था। तो हमें अब उठना पड़ा। हम उठ ही रहे थे कि माँ ने कमरे के भीतर प्रवेश किया। माँ के सामने ऐसे आने में मुझे कभी भी कोई आपत्ति नहीं हुई, और न ही गैबी को! माँ ने हम दोनों को पहले भी नग्न देखा हुआ था, इसलिए बिना वजह शर्म का नाटक करने की ज़रुरत नहीं थी। फिर भी मैंने अपनी कमर पर एक पतला सा तौलिया लपेट लिया था। लेकिन न जाने क्यों मुझे ठंड लग रही थी। तपता तो अभी भी जल रहा था! उधर गैबी को किसी नाटक से कोई सरोकार नहीं था। और वो पूरी तरह से नग्न रही।

माँ ने हम दोनों की तरफ मुस्कुराते हुए देखा! उनकी मुस्कराहट में शरारत, हँसी, विनोद, जैसा मिला-जुला भाव साफ़ दिख रहा था। गैबी और मैं नग्न थे, और स्पष्ट रूप से, हमने बस थोड़ी ही देर पहले अपने विवाहित जीवन का पहला सम्भोग किया था। लेकिन माँ की मुस्कराहट! न जाने ऐसा कौन सा रहस्य था, जिस पर वो इतना मुस्कुरा रहीं थी! माँ ने कुछ कहा नहीं, और वैसे ही चुपचाप, लेकिन मुस्कुराते हुए गैबी के पास चली गईं। मैंने उनके पीछे कमरे का दरवाजा बंद कर दिया। माँ अपने साथ पानी से भरा एक छोटा सा बर्तन, और कुछ तौलिये भी लाईं हुई थीं - गैबी को साफ करने के लिए! बिना अधिक कुछ कहे, माँ ने गैबी को बिस्तर पर लेटने के लिए कहा, और उसकी योनि को साफ किया। दिलचस्प बात यह है कि गैबी भी, बिना किसी हिचकिचाहट के उनकी आज्ञा का अनुपालन कर रही थी। मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि गैबी की योनि हमारे ताजे ताजे, और भीषण संभोग के कारण थोड़ा सूज गई थी। लेकिन माँ ऐसे व्यवहार कर रही थीं, जैसे कि यह सब बड़ी स्वाभाविक सी बात हो। हम तीनों हमारे विवाह और उसके उपरान्त भोजन के बारे में बात करने लगे, कि विवाह का समारोह कितना सुंदर था, कितने सारे लोग आए हुए थे, भोजन कितना स्वादिष्ट था, और अभी रात्रिभोज में कितने सारे लोग आने वाले हैं, इत्यादि! उन्होंने यह भी कहा (शायद डेढ़ सौवीं बार) कि अब गैबी हमारे परिवार का हिस्सा बन गई है - और इस बात पर वो अत्यंत प्रसन्न हैं!

मुझे लगता है कि यह एक स्वाभाविक सी प्रतिक्रिया है। जब एक लड़का और एक लड़की विवाह से पहले प्रेम सम्बन्ध बनाते हैं, तो बाकी लोग उनके यौन जीवन के बारे में उत्सुक होते रहते हैं; अटकलें लगाते हैं! लोग सोचते रहते हैं कि उन दोनों के बीच क्या चल रहा होगा; कैसा चल रहा होगा; सेक्स हो भी रहा है या नहीं? इत्यादि। लेकिन जब वो दोनों शादी कर लेते हैं, तो उनके बीच सेक्स होना स्वाभाविक मान लिया जाता है। उसके बारे में अटकलें नहीं लगाई जाती। उनका सेक्स स्वीकार्य हो जाता है। और तो और उनसे सेक्स करने की उम्मीद भी की जाती है - और न करने पर आश्चर्य किया जाता है! शायद माँ के साथ भी यही हो रहा था - पहले उनको गैबी और मेरी अंतरंगता के बारे में उत्सुकता थी, लेकिन अब ऐसा नहीं था।

गैबी की योनि को पानी से साफ करने के बाद, माँ ने उसकी योनि और पेट को सूखे तौलिये से पोंछा। कमरे में रखे तपते के बारे में एक दो टिप्पणी भी करी कि उसमें से आँच आनी कम हो गई है। मैंने उनसे डैड और काजल के बारे में पूछा, तो उन्होंने बताया कि दोनों रात्रिभोज के इंतजाम में व्यस्त हैं। उनके करने के लिए कुछ ख़ास नहीं था, लेकिन दोनों, और खास तौर पर काजल सुनिश्चित करना चाहते हैं कि खाने पीने का सब बंदोबस्त सही रहे। मेहमानों के लिए, हमारी शादी के बाद यही सबसे महत्वपूर्ण घटना है आज के लिए। डैड आने वाले मेहमानो के स्वागत में व्यस्त होने वाले थे। वैसे भी काफ़ी सारे लोग आ चुके थे, और नई बहू से मिलने को उत्सुक थे। फिर मेरी तरफ़ देख कर उन्होंने कहा,

“तुम तौलिया क्यों पहने हुए हो?” माँ ने गैबी का चेहरा साफ़ करते हुए मुझसे पूछा।

“माते! आर्यपुत्र अपनी माँताओं के सामने नग्न नहीं जाते।” मैंने एक पुराने सीरियल की तर्ज पर माँ से चुटकी ली।

“ओह, अच्छा! लेकिन ये कब हुआ? मुझे तो लगता है कि वे ऐसा कर सकते हैं! कम से कम इस आर्यपुत्र ने तो किया ही है। क्या तुमको पिछली बार की याद नहीं है?”

“माँ, लेकिन मैं अब एक शादीशुदा आदमी हूँ।”

“ओह, तो क्या इसलिए अब तुम को मुझसे शर्म आ रही है? बकवास! बेटा,” माँ ने गैबी से मुखातिब होते हुए पूछा, “अगर मैं तुम्हारे पति को नंगा देख लूँ, तो क्या तुम्हें बुरा लगेगा?”

“बिल्कुल भी नहीं माँ। हम दोनों ही आपके बच्चे हैं, और आप हमें जिस तरह से चाहें, देख सकती हैं।” गैबी शरमाते, मुस्कुराते बोली।

“तुमने सुना? तुम्हारी पत्नी को भी कोई आपत्ति नहीं है। चलो, अब इधर आओ, और मुझे मेरे बेटे को एक आदमी के रूप में देखने दो!”

“आपने मुझे पहले ही एक आदमी के रूप में देखा है, माँ!” मैंने कहा, जब तक माँ ने मेरी कमर पर बँधे तौलिए की गाँठ खोल दी।

“हाँ, लेकिन तुम्हारे ‘हस्बैंड’ बनने के बाद नहीं। यह एक प्रोग्रेस है।”

मैं शरमाते हुए हँसा, “माँ, मुझे ऐसा लग रहा है, कि जैसे मैं सुयोधन हूँ, जो अपनी माँ के सामने कपड़े उतार रहा है!”

माँ ने मेरे शरीर पर प्रशंसात्मक दृष्टि डालते हुए कहा, “अगर मैं कन्दहारी की ही तरह, तुम्हारे शरीर के किसी अंग को मजबूत बना पाती, तो मैं ज़रूर कर देती... खास कर तुम्हारी छुन्नी को। हा हा हा!”

मेरी माँ की बात का काट शायद ही किसी के पास हो!

“माँ!” मैंने झेंप कर कहा।

“इधर आओ तुम, मेरे शर्मीले नन्हू!” माँ ने बड़े दिनों बात मुझे ‘नन्हू’ कह कर पुकारा था। बचपन में यही मेरा प्यार वाला नाम था। लेकिन दसवीं के बाद मुझे हमेशा अमर कह कर ही बुलाया गया।

मैं माँ के पास आ कर खड़ा हो गया, और वो मेरे लिंग को वैसे ही साफ करने लगीं, जैसे उन्होंने अभी अभी गैबी को साफ किया था। माँ को ऐसे दुलार करते देख कर, गैबी खींस काढ़े मुस्कुरा रही थी। गैबी को अब तक यह समझ आ गया था, कि मेरे माता-पिता, विशेष रूप से मेरी माँ, बहुत खुले विचारों वाले हैं, फिर भी उसको विश्वास नहीं हो रहा था कि, ख़ास तौर पर भारतीय परिवेश में, यह सब होना संभव है।

“तुमको पता है?” माँ ने जैसे मुझे जाँचते हुए कहा, “तुम इतना वर्क-आउट करते हो, उसके हिसाब से तुम्हारी छुन्नी की नसें तुम्हारी बाहों की नसों के मुकाबले ज्यादा अधिक दिखतीं हैं!”

“माँ, वर्क-आउट नसें दिखाने के लिए नहीं किया जाता,” मैंने चिढ़ते हुए कहा - कोई मेरे वर्क-आउट पर टीका-टिप्पणी करता है, तो मुझे बहुत बुरा लगता है! व्यायाम मेरे लिए एक लाइफ स्टाइल है। जैसे कुछ लोगों को सवेरे घण्टों तक चाय के साथ अख़बार पढ़ना अच्छा लगता है, वैसे ही मुझे सवेरे व्यायाम करना अच्छा लगता है। अपनी लाइफ स्टाइल के ख़िलाफ़ शायद ही कोई टीका टिप्पणी सुनना पसंद करे!

“ओ मेला नन्हू!” माँ ने दुलारते और तुतलाते हुए कहा, “बुरा मान गया मेरी बात का? सॉरी बेटा! माफ़ कर दो। वैसे, तुम्हारा छुन्नू भी मज़बूत है!”

“धन्यवाद माँ, यू आर टू काइंड!” मैंने व्यंग्यात्मक ढंग से उनके मज़ाक का उत्तर दिया।

“... और... यह नई रूटीन के साथ और मज़बूत होता जाएगा…” माँ हमको बार-बार सेक्स करने की ओर इशारा कर रही थीं, और इसे एक व्यायाम के रूप में प्रस्तुत कर रही थीं।

किसी के शिश्न को इतना छेड़ा जाए, और सम्भोग करने की तरफ ऐसे इशारा किया जाए, तो क्या होगा? वही मेरे साथ भी हुआ - मेरे लिंग में स्तम्भन होने लगा। माँ ने उसको देखा। गैबी ने उसको देखा।

“अरे अरे! इसे कण्ट्रोल में रखो, मिस्टर!” माँ ने मुझे प्रसन्नता से चेतावनी दी, “अभी इतने सारे लोग आए हुए हैं! मेहमानों के जाने के बाद, तुम दोनों आराम से, जितना मन करे, सेक्स कर लेना।”

माँ ने कहा, जिस पर गैबी और माँ दोनों ही जोर-जोर से हंसने लगे। मेरी माँ कभी-कभी बहुत ही ज़्यादा बदमाश हो जाती हैं। गैबी के आ जाने बाद, अब वो मेरी टाँग खिंचाई करने से बाज़ नहीं आ रही थीं। मैं लगभग शर्मिंदगी से लाल हो गया। लेकिन माँ की हर बात में इतना प्यार होता है कि उनकी किसी भी बात का बुरा लग ही नहीं सकता।

फिर माँ ने वहाँ पर मेरा नया कैमरा पड़ा देखा, तो उत्साहित होते हुए बोली,

“चल! मैं तुम दोनों की तस्वीरें निकाल देती हूँ!”

“माँ! ऐसे?”

“क्यों, तुमने बहू की ऐसी तस्वीरें नहीं निकालीं क्या? हा हा हा!” माँ हँसते हुए बोली, “कोई बात नहीं, मैं तुम दोनों की एक साथ कुछ तस्वीरें ले लेती हूँ। बाद में तुम दोनों मुझे ‘थैंक यू माँ’ बोलोगे!”

उन्होंने बड़े विनोद से कहा, और फिर हम दोनों की साथ में कुछ नग्न तस्वीरें क्लिक करीं। फिर उन्होंने गैबी और मुझे बारी बारी से चूमा। सच में, माँ जब पास में होती हैं, तो उनके सामने छोटा बच्चा बनना इतना आसान है कि क्या कहें। माँ ने फिर गैबी को नए कपड़े पहनने में मदद करी। इस बार गैबी ने पूरी बाजू की चोली और लहंगा पहना, जो हमने राजस्थान की यात्रा से खरीदा था। यह पोशाक अधिक आरामदायक थी, क्योंकि चोली में अस्तर लगा हुआ था, जो शरीक को स्वाभाविक रूप से थोड़ा अधिक गर्म रखती। फिर उसने अपने सारे जेवर पहने। इसके बाद माँ ने गैबी का मेक-अप दुरुस्त किया। गैबी को बहुत मेक-अप की जरूरत नहीं थी - वह स्वाभाविक रूप से ही इतनी खूबसूरत थी! बस, ज़रा सी लिपस्टिक, और आँखों में काजल, और ठण्डे मौसम से बचाने के लिए चेहरे पर रक्षात्मक मेक-अप! इतना बहुत था! मैंने जींस, पूरी शर्ट और एक आरामदायक स्वेटर पहना। घर के अंदर, गर्म कपड़े पहनने की ज्यादा जरूरत नहीं थी : जैसा कि मैंने पहले भी बताया है, ठंड के महीनों में घर बाहर की तुलना में स्वाभाविक रूप से गर्म रहता था। फिर भी, माँ ने गैबी को वो पश्मीना शाल ओढ़ा दिया था।

जो लोग गैबी से मिलना चाहते थे, और उसको देखना चाहते थे, वो उसको आश्चर्य से देख रहे थे। उन्होंने अपने जीवन में पहले कभी किसी विदेशी लड़की को नहीं देखा था, इसलिए गैबी उनके लिए बिलकुल अनूठी थी। माँ हमारा एक एक कर के सभी मेहमानों से परिचय करा रही थीं, और गैबी और मैं, उनके पैर छू कर (लगभग सारे ही हमारे बड़े थे) उनका आशीर्वाद ले रहे थे। साथ ही साथ वो कुछ न कुछ ‘लक्ष्मी’ (धन) भी गैबी के हाथ में रख दे रहे थे। उन दिनों गाँव देहात में लोग पाँच, ग्यारह, या इक्कीस रुपए नेग में देते थे - इक्यावन या एक सौ एक रुपए बहुत बड़ी बात हो गई समझिए! वैसे भी, इस प्रकार के नेग का आकार नहीं देखना चाहिए, उसके पीछे लोगों की भावना देखनी चाहिए। ये लोग उतने समृद्ध नहीं थे - ग्यारह रुपए या इक्कीस रुपए भेंट में देना उनके लिए बहुत बड़ी - और अक्सर, सामर्थ्य के बाहर की बात थी। लेकिन आत्मीयता की भावना और स्नेह, लगभग सभी मिलने वालों में भरी हुई थी। यह भावना सभी के आशीर्वाद के रूप में दिख रही थी। एक बहुत बूढ़ी अम्मा ने गैबी को पाँच रुपए का सिक्का नेग में दिया! लेकिन उसको इतने प्रेम से, इतने स्नेह से आशीर्वाद दिया कि उसका वर्णन करना यहाँ कठिन है। बाद में माँ ने बताया कि वो किसी दूर के (गाँव के) रिश्तेदारी से डैड की दादी लगतीं हैं! लगभग पञ्चानवे वर्ष की उनकी आयु थी - मतलब वो पिछली शताब्दी में पैदा हुईं थीं! अब इस तरह के स्नेह का क्या मोल है?

मेहमानों में कुछ तो उसे छूना भी चाहते थे - विशेषकर युवा लड़कियाँ! गैबी बड़ी शालीनता से, और धैर्य से, उनसे मिल रही थी, और बातें करने की कोशिश कर रही थी। इतने सारे अनजान लोगों से मिलना बहुत उबाऊ और थका देने वाला काम होता है, लेकिन फिर भी गैबी पूरा समय मुस्कुराती रही। लोगों से मिलते हुए हमने अपना नाश्ता (पकोड़े और चाय) भी किया। हर छोटे से छोटे और बड़े से बड़े काम में गैबी की अदा और संभ्रान्तता उस काम को और भी ग्लैमरस (सम्मोहक) बना देती। अधिकतर लड़कियों और औरतों के मन में कहीं न कहीं उसके जैसी बनने की इच्छा उत्पन्न हो गई! ऐसे सभी से मिलते मिलाते शाम हो गई। शाम को भव्य भोज का आयोजन था, और उसमे गांव के सभी लोगों को आमंत्रित किया गया था। उसके पहले कुछ नृत्य और संगीत का कार्यक्रम भी था। पता चला कि जब हम सो रहे थे, तो हिजड़ों का पूरा समूह घर के द्वार पर गा बजा कर, और डैड से पूरे एक हज़ार एक रुपए (उस समय के लिए - ख़ास तौर पर हमारे गाँव के लिए - एक बहुत ही बड़ी रक़म) ले कर गए - और वायदा किया कि वो शाम को आएँगे नए वर-वधू को आशीर्वाद देने! तो हम शाम के मनोरंजन समारोह के लिए साथ में एक सजे हुए तख़्त पर साथ में बैठे हुए थे, और नृत्य का आनंद ले रहे थे। इतने में हिजड़ों का समूह आया और हमारे सामने नृत्य करने लगा। मेरे मन में उनको ले कर कोई बढ़िया छवि नहीं है, लेकिन सच में - उनका नृत्य उत्सव से भरा और मनोरंजक था। कोई घण्टे चले नृत्य और मनोरंजन समारोह के बाद उन्होंने हम दोनों को आशीर्वाद दिया और हमारे भविष्य के लिए शुभकामनाएँ दीं।

यह सब गाँव की अनोखी बातें हैं - वहाँ का समाज ऐसे ही चलता है (या था)। यह कहानी कोई सामाजिक आख्यान नहीं है - यदि वो सामाजिक आख्यान लिखने को बैठे तो पूरा ग्रन्थ ही लिख जाएगा। लेकिन आवश्यक है कि ऐसी सभी छोटी-बड़ी बातें पाठकों से साझा की जाएँ, जिससे उनको समझ आए कि मेरी सामाजिक पृष्ठभूमि क्या है। रात्रि-भोज के लिए पूरे गांव ने किसी न किसी प्रकार, हमारी सहायता करी। ताज़ी ताज़ी सब्ज़ियाँ सब हमारे खेतों से ही आईं। अनाज भी सब गाँव वालों ने ही मुहैया करवाया। डैड ने सभी को आग्रह कर कर के वस्तुओं के पैसे चुकाए। गाँव में धन की गरीबी थी, मन की नहीं।

असली गरीबी दरअसल होती है मन की - धन की गरीबी का इलाज हो सकता है, लेकिन मन की गरीबी का कोई इलाज नहीं है। जैसे इस फ़ोरम पर पाठक आते हैं, कहानियाँ पढ़ते हैं, और बिना किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया के, चुपके से निकल लेते हैं अगली कहानी पर! यह व्यवहार एक प्रकार की गरीबी ही है - मानसिक गरीबी! इस तरह की लाइलाज़ गरीबी का क्या तोड़ है?

महिलाओं ने खाना पकाने में मदद की, जबकि पुरुषों ने खाना बनाने में जाने वाली हर चीज की व्यवस्था करने में! हम भोजन पकाने के लिए बड़े पैसे खर्च करने को तैयार थे - हलवाई और उसके सहायकों को ला कर - लेकिन आपको आश्चर्य होगा कि हमारे बजट के अनुमान का केवल एक छोटा सा अंश ही खर्च हुआ! शाम के 5:30 बजे तक दावत शुरू हो गई - लोग पंगत (पंक्ति) में बैठ कर, पत्तल में खाना खाए। डैड ने सुनिश्चित किया था कि समाज का कोई भी व्यक्ति, बिना किसी ऊँच नीच के भेद-भाव के, एक समान हो कर भोजन कर सके। परम्परानुसार, शुरू के कुछ लोगों को (जो कि गाँव के समाज के अग्रणी और बुज़ुर्ग लोग थे) मैंने और गैबी ने खाना परोसा, और उनसे खाने का आग्रह किया। पेट्रोमैक्स और लालटेन की व्यवस्था कर दी गई थी, जिससे यदि बिजली चली जाए, तो मज़ा खराब न हो।
 
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पहला प्यार - विवाह - Update #9


भोज का खाना बेहद स्वादिष्ट था - इसके स्वाद में वो देहाती, पारम्परिक गुणवत्ता थी, और स्वाद था, जो मुझे अपने बचपन के गाँव की यात्राओं से याद है! भोजन पत्तलों (आमतौर पर साल या बरगद के पेड़ के चौड़े पत्तों से बनी प्लेटें) में परोसा गया, और पारंपरिक भारतीय तरीके से, यानि कि अपने हाथों का उपयोग करके खाया गया। गैबी अभी भी हाथ से खाने की शैली से सहज नहीं थी, इसलिए मैंने ही उसे अपने हाथों से खिलाया! यह भी वहाँ के लोगों के लिए एक नई अनोखी बात थी - नई बहू का चेहरा ही नहीं दिखता किसी को, लेकिन यहाँ मैं उसको पूरे समाज के सामने अपने हाथों से खाना खिला रहा था। अनोखी बात थी - विदेशी बहू थी, इसलिए वहाँ उपस्थित सभी लोगों का बहुत मनोरंजन भी हुआ। मुझे यह देख कर लगा कि हर कोई वास्तव में हमारे लिए खुश है। रात के लगभग 8 बजे तक, दावत लगभग समाप्त हो चुकी थी - और बहुत अंधेरा बढ़ गया था, और उसके साथ ही ठंडक भी। थोड़ी दूरी पर हल्के नीले धुएँ की एक छतरी देख सकते थे; कुछ कुछ धुंध भी हो गई थी।

लेकिन कोई भी नहीं चाहता था कि आज की रात खत्म हो जाए, जो लोग बच गए थे, वो सभी हमको घेर कर बैठ गए, और उन्होंने हमारे लिए ढेर सारे सवालों की बौछार कर दी। लेकिन डैड नहीं चाहते थे कि उनके बेटे और बहू ठंडक में बहुत देर तक रहें, इसलिए उन्होंने हमें ‘सोने’ के लिए कह दिया, और हमने भी खुशी-खुशी उनकी बात मान ली। खाना अच्छा था, और थोड़ी ऊर्जा निकल रही थी। हम निश्चित रूप से उस ऊर्जा का ‘सदुपयोग’ कर सकते थे! वैसे भी बाहर की ठण्डक के मुकाबले, मैं अपने कमरे की गर्माहट को प्राथमिकता देता। गैबी मेरे बगल में चल रही थी, और मैं उसके होठों पर एक हल्की सी मुस्कान देख सकता था। वो खुश थी! उसको ऐसे देख कर मुझे बहुत सुख मिला! माँ, डैड - दोनों ही इतना काम होने के बावज़ूद प्रसन्न लग रहे थे। काजल से मिलना कम हुआ आज, लेकिन जो भी थोड़ा समय उसके साथ मिला, वो कितनी खुश लग रही थी! सुनील पूरे दिन गायब था - उसको भी आज काफी तवज्जो मिली थी! उम्मीद है कि वो भी खुश रहा होगा। मुझे उस क्षण ऐसा लगा कि जैसे मैं किसी सपने में हूं। जब हम अपने घर पहुंचे तो वहां केवल हम दोनों ही थे। घर के दरवाजे पर ताला नहीं लगा था, जो कि कई लोगों के लिए हैरान कर देने वाली बात होगी। जिस घर में शादी होती है, वहां सामान, ज़ेवर इत्यादि चोरी होने का खतरा होता है। लेकिन यह सब मेरे गांव में नहीं होता। केवल कोई बाहरी व्यक्ति ही चोरी कर सकता है, और ऐसे किसी भी व्यक्ति को तुरंत पहचान लिया जाएगा। मुझे अंदेशा था कि मेल मुलाकात, और गाना बजाना आज देर रात तक चलता रहेगा। उस कारण, माँ और डैड को घर वापस आने में देर हो जाती। इसलिए, मैंने घर का दरवाजा तो खुला रखा, लेकिन अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया।

दरवाज़ा बंद करने की आवाज़ सुन कर गैबी धीरे से मेरी तरफ़ मुड़ी। हमारे आने वाले संसर्ग सत्र के बारे में सोचते हुए वो मुस्कुराई। मैं भी उसकी मुस्कान को समझ गया, और तुरंत काम पर लग गया। उसकी चोली को पीछे की तरफ डोरियों से बांधा गया था। मैंने थोड़ी मशक्कत कर के डोरियों के उस चक्रव्यूह को खोल दिया, और चोली उसके शरीर से हटा दी, और फिर उसके लहंगे की डोरी को कमर पर से खोल दिया, ताकि वो भी गिर जाए। दो ही मिनट में गैबी फिर से केवल अपने अन्तःवस्त्रों में ही मेरे सामने खड़ी हो गई।

“नॉटी नॉटी!” वो मुझ पर मुस्कुराई; उसके स्तनों को देख कर मेरे होंठों पर एक चौड़ी सी मुस्कान आ गई।

“मुझे बहुत अच्छा लगता है, जब तुमको ऐसे देखता हूँ!” मैंने हँसते हुए कहा।

“अच्छा जी! ऐसे ही? ब्रा पैंटी पहने हुए?” उसने मुझे चिढ़ाते हुए कहा।

“नहीं। पूरी नंगी ज्यादा अच्छी लगती हो।”

गैबी मुस्कुराई और पहले उसने अपने अन्तःवस्त्र हटाए, और फिर धीरे-धीरे अपने शरीर के प्रत्येक वक्र को दिखाने के लिए अपनी एड़ी पर थोड़ा घूम गई! कुछ ऐसा उसके एक स्तन का पहलू, और उसके नग्न नितम्ब मेरे सामने आ गए - वाह! सच में, बड़ी फुर्सत से प्रकृति ने मेरी गैबी को गढ़ा था! और गैबी ने प्रकृति प्रदत्त अपने सौंदर्य की सुरक्षा भी अच्छी तरह से की थी! लेकिन यह अंग-प्रदर्शन बहुत देर नहीं चल पाया - कमरे में ठंड हो रही थी, इसलिए गैबी बिस्तर पर चली गई। मैं भी उसके पीछे पीछे बिस्तर पर बैठ गया। हमने चुम्बन किया, जो जल्दी ही फ्रेंच-किस में बदल दिया। हमने कुछ देर तक चुम्बन का आदान प्रदान किया, और उस दौरान उसका हाथ मेरी जींस के अंदर, मेरा सख्त लण्ड खोजने में व्यस्त हो गया।

“तुम ठीक तो हो न, मेरी जान?” मैंने उससे पूछा।

“हाँ, क्यों?” उसने पूछा।

“उम्म, तुम्हारी वजाइना सूजी हुई लग रही है। क्या मैंने तुम्हें चोट पहुँचाई है?”

उसने झुक कर मेरे गाल को चूम लिया, और कहा, “आई ऍम ओके, हनी! मैंने इतने लंबे समय के बाद सेक्स किया है न! इसलिए ऐसा महसूस हुआ जैसे कि यह मेरा ‘फर्स्ट टाइम’ हो! और तुम भी तो इतने बड़े, और मजबूत हो न! तुमने खूब अच्छे से सेक्स किया मेरे साथ! इसलिए वहां थोड़ा ‘रॉ’ है! और कुछ नहीं। घबराओ मत। तुम्हारे साथ कुछ और बार सेक्स करने के बाद ये और नहीं दुखेगी... प्रॉमिस!”

“पक्का गैबी?”

“हाँ मेरे प्यारू! पक्का। तुम इसकी चिंता न करो। तुम बस ये याद रखो कि तुम्हारे साथ सेक्स करना मुझे सबसे अच्छा लगता है। दिस इस माय ड्रीम कम ट्रू!”

कह कर उसने मुझे एक और राउंड फ्रेंच-किस का दिया। फिर सकुचाते हुए बोली,

“हनी, क्या हम एक और बार सेक्स कर सकते हैं?”

मैं हँसा। स्साला, ये भी कोई पूछने वाली बात है?

“बेशक! तुम कितना सेक्स करना चाहती हो?” मैंने उसको चिढ़ाया।

“पूरा दिन!” गैबी ने शर्माते हुए कहा, “जितना तुम कर सकते हो, उतना!” कह कर वो हँसी और उसने मेरी गर्दन चूम ली।

मैं मुस्कराया। मेरा लिंग पहले से ही फड़क रहा था। मुझे यह सोचकर खुशी हुई कि गैबी मुझसे सम्भोग करने के लिए कितनी आतुर है। किसी स्वस्थ आदमी को सेक्स के लिए तैयार होने के लिए किसी वियाग्रा की नहीं, बस एक तत्पर साथी की ही ज़रुरत होती है। मैं जल्दी से अपने कपड़े उतारने लगा। जैसे ही मैं अपने कपड़ों की क़ैद से मुक्त हुआ, मैंने गैबी को हुक़्म दिया,

“लेट जाओ और अपने पैर फैला लो ... मुझे तुम्हारी चूत चाहिए!” मेरे कहने का अंदाज़ कुछ ऐसा था जैसे कि कोई सदियों से भूखा आदमी, खाने के सामने बैठा हो, और उससे रहा नहीं जा रहा हो।

गैबी हँसी, लेकिन उसने मेरी आज्ञा का अनुपालन किया। उसके सामने बैठ कर मैं उसकी योनि की महक लगभग सूंघ सकता था। दिल तो गैबी का भी मचल ही रहा था। उसने अपने निचले होंठों को काटा, जैसे ही मैंने उसे बिस्तर पर थोड़ा सा और समायोजित किया, बस यह सुनिश्चित करते हुए कि उसकी जाँघें थोड़ा और खुल जाएँ। फिर मैंने अपने मुँह को उसके योनि-रस के सागर में गोता लगवा दिया। कामुक उत्सुकता से वशीभूत हो कर, मैं उसकी योनि को अपनी जीभ से पीने लगा। ऐसे कोमल, अंतरंग, और कामुक स्पर्श को महसूस कर के गैबी बड़ी बेशर्मी से और पूर्ण आनंद के साथ रोने लगी। दिन में उसने खुद को ज़ब्त कर के रखा हुआ था, क्योंकि घर में कई लोग उपस्थित थे। लेकिन इस समय, इतने बड़े घर के अकेलेपन में, वो अपने तरीके से हमारे सम्भोग का आनंद उठाने, और उसकी अभिव्यक्ति करने के लिए स्वतंत्र थी। उसका हाथ जल्दी से मेरे सर के ऊपर आ गया, और उसने मुझे पकड़ कर अपनी योनि को मेरे मुँह की तरफ़ इस तरह हिलाया, जैसे वो मेरे चेहरे और जीभ को अपनी योनि में भेदना चाहती हो!

“ओह यस्स्स्स!” वह चिल्लाई, “यू आर अ गॉड विद योर टंग!”

गैबी को ऐसे उन्मुक्त हो कर सम्भोग का आनंद उठाते देख कर मुझे बड़ा अच्छा लगा, लेकिन मैंने कुछ कहा नहीं। कुछ कहने के लिए मेरा मुँह उपलब्ध नहीं था, क्योंकि मैं उसकी योनि के मीठे अमृत का आनंद लेने में व्यस्त था। लेकिन मैंने उसकी बढ़ाई का उत्तर अपनी जीभ की कारामात और बढ़ा कर दिया। गैबी थोड़ी ही देर में आप से बाहर हो गई, और मेरे मौखिक सम्भोग का आनंद उठाने लगी। कमरा जल्द ही मेरे चाटने और उसके कराहने की आवाज़ से भर गया। कुछ देर बाद उसने मुझे पीछे धकेल दिया।

हनी ... एंटर मी... प्लीज!” वो रिरियाई।

मैं जानता था कि लोहा अब पूरी तरह से गरम है। तो हथौड़ा मारने के लिए, मैं उसके ऊपर चढ़ गया, और धीरे-धीरे अपने लिंग को उसकी भीगी हुई योनि के होंठों के बीच की दरार पर ऊपर और नीचे सहलाने लगा। ऐसे छेड़ने के कारण उसकी जाँघें थोड़ी और खुल गईं और वो और रिरियाने लगी।

“गैबी, आई लव यू।” मैंने अपने प्यार का फिर से ऐलान किया, और लिंग को उसके अंदर गहरे तक धकेल दिया।

इस अभी भी अपरिचित आघात से गैबी की आँखें आश्चर्य और पीड़ा से चौड़ी हो गईं, और उसके गले से पीड़ा और कामुकता भरी एक चीख निकल गई। कुछ ही घण्टों पहले हमने पहली बार सम्भोग किया था, इसलिए मेरे लिंग के कारण उसकी योनि में जो खिंचाव की अनुभूति हुई, वो अभी भी अपरिचित थी। लेकिन इस आघात से दो-चार होने में उसके अनुभवी होने का कुछ लाभ मिला - उसने जल्दी से अपने हाथ-पैर मेरे पूरे शरीर पर लपेट लिया, और मुझे कस कर पकड़ लिया। मैंने भी उसको आलिंगनबध्द कर लिया। ऐसे में लम्बे लम्बे, गहरे धक्के लगाना मुश्किल है, लेकिन यह तो सुनिश्चित था कि हमारे शरीर यथासंभव अधिक से अधिक संपर्क में रहें।

फिर मैंने अपने पुरस्कार को भोगना शुरू कर दिया - हर धक्के के साथ गैबी के गले से कामुक आवाज़ें निकल रही थीं। अपनी कामुक सी, प्यारी सी पीड़ा में, गैबी ने मुझे कस कर पकड़ लिया - इतनी ज़ोर से कि उसके नाखून मेरी पीठ में धँस गए। मैंने भी जोश में आ कर बलपूर्वक धक्के लगाने शुरू कर दिए। मैंने उसकी आँखों में देखा। शर्म के मारे वो मुझसे नज़रें नहीं मिला पा रही थी। उसकी आँखों में चाहत के भाव थे... और मेरी आँखों में वासना के! गैबी लगभग सुलग रही थी। मेरे आलिंगन में बँधे हुए ऐसा लग रहा था जैसे कोई शेर किसी मृग का शिकार कर रहा हो! उसने मुझे बाद में बताया कि सम्भोग के समय उसको मेरा भार, मेरा धक्के लगाने का तरीका, मेरे चुम्बन - सब कुछ उसको अच्छा लगता है। मेरे भोगने का तरीका इतना अंतरंग है, कि वो खुद को मुझसे हर स्तर पर जुड़ा हुआ महसूस करती है।

“हे भगवान! हनी ... हाँ ... हाँ ... हाँ ... हाँ ... हाँ!” कह कर वो रोने लगी, और मुझे कस कर पकड़ कर अकड़ने लगी।

मैं भी हर धक्के के साथ जोश में आ कर गुर्रा रहा था।

“मैं तुम्हारी चूत को कूट डालूँगा!” मैं उसके कान में फुसफुसाया, फिर उसका एक चूचक अपने मुँह में ले कर चबाने लगा।

गैबी की योनि मेरे लिंग को जकड़ी हुई थी। मेरा लिंग उसकी छोटी सी योनि के लिए काफी मोटा था, लेकिन यह दया करने का समय नहीं था। मैं उसके चूचकों को काटता रहा और जोर-जोर से धक्के लगाता रहा। जल्द ही, गैबी का बाँध टूट गया, और उसकी योनि से रस निकलने लगा। चरमसुख का स्राव इतना गुदगुदी देने वाला था कि गैबी का रोना निकल गया। उसको ऐसे ओर्गास्म करते महसूस कर के मेरा खुद का भी बाँध टूट गया। चरमोत्कर्ष के शिखर पर हम दोनों एक साथ पहुँचे और एक दूसरे से बुरी तरह से लिपट गए - उसके हाथ और पैर मेरे चारों ओर, यथासंभव लिपटे हुए थे। बड़ा अच्छा लग रहा था, और मेरा लिंग वीर्य का भार एक बार फिर से गैबी की योनि में खाली कर रहा था।

“आह्ह्ह!” जैसे ही मैंने उसके अंदर विस्फोट किया, मैंने सिसकारने लगा। मेरा गर्म वीर्य उसके अंदर फूट पड़ा, जिससे एक बार फिर उसकी कोख भर गई।

मेरे वीर्य में मौजूद रसायन गैबी को अब आराम पहुँचा रहे थे। उसने मुझे अपने अनोखे आलिंगन में बाँधे रखा। मैं जब तक पूरी तरह खाली नहीं हो गया, उसके स्तनों के बीच अपना सर छुपा कर सिसकता रहा। जब थोड़ी शान्ति हुई, तो मैंने उसको पुकारा,

“हनी?”

उसने मेरी तरफ देखा, और मेरे बालों में अपनी उँगलियाँ घुमाई, “हाँ?”

“मैं तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ! हमेशा! मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ!”

“मैं भी तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, माय लव! मैं कहीं नहीं जा रही हूँ। मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ!” गैबी प्यार से फुसफुसाई, और मेरे सर पर चूमी।

हमारा सम्भोग ताबड़तोड़ तरीके से भले ही हुआ हो, लेकिन हमको अच्छा खासा समय लग रहा था। हर बार इतनी ऊर्जा व्यय हो रही थी कि हमको आराम करना पड़ रहा था। तो हमने थोड़ा आराम किया। गैबी बहुत खुश थी। बिस्तर पर लेटे हुए, जब से हम अपनी शादी के लिए गाँव आए थे तब से, वो यहाँ देखी हुई सारी घटनाओं को याद करने लगी थी। उसने मुझे अपने मेहंदी लगवाने के अनुभव के बारे में भी बताया। तीन महिलाओं ने अपने शरीर पर मेहंदी लगाई - एक ने उसके हाथों पर, एक ने उसके पैरों पर और तीसरी ने उसके स्तनों और योनि पर! उसने मुझे बताया कि उसकी योनि का रंग देखकर सारी महिलाएँ बड़ी हैरान थीं। इससे भी ज्यादा हैरानी उनको हुई जब उन्हें मालूम हुआ कि गैबी हिंदी भी बोल लेती है। जब गैबी ने उन्हें बताया कि उसको उनकी त्वचा का रंग भी पसंद है, तो उन्होंने उससे कहा कि उनकी योनि का रंग गहरा है - उसकी तरह गोरा नहीं। आश्चर्यजनक बात है न, कि महिलाएं एक-दूसरे के साथ इस तरह की अंतरंग बातचीत कैसे कर पाती हैं! पुरुष इस तरह बात नहीं कर सकते। उनके अंदर एक अंतर्निहित द्वंद्व है। अगर एक आदमी कहता है कि उसका लिंग X इंच लंबा है, तो दूसरा यह दावा करेगा कि उसका लिंग X से थोड़ा लंबा और मोटा है। लेकिन, मुझे लगता है कि महिलाएं अपने निजी अंगों के आकार को लेकर पुरुषों जितनी प्रतिस्पर्धी नहीं हैं।

गैबी ने मुझे और भी बातें बताईं। उसने कहा कि मेहंदी लगाने वाली महिलाओं ने माँ और काजल की तारीफ़ में भी उससे कई बातें कहीं। मेरे अनजाने में, माँ और डैड ने गाँव के अनेक कार्यों के लिए पैसे दान करना शुरू कर दिया था - खासकर वहाँ के स्कूल और उस मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए, जहाँ हमारी शादी हुई थी। फिर मुझे समझा - मेरे कॉलेज के अंतिम वर्ष में, मुझे छात्रवृत्ति मिली थी, और डैड का प्रमोशन भी हुआ था। घर में ज़रूरतें वैसे भी अधिक नहीं थीं, इसलिए जैसे ही माँ और डैड के पास कुछ अतिरिक्त पैसे आए, उन्होंने उसका अच्छा खासा भाग सामाजिक निहित उपयोग करना शुरू कर दिया। कई महिलाओं ने इसके लिए माँ की बड़ी तारीफ करी। गांव के लोग आपस में बातें करते हैं, तो सभी को मालूम पड़ गया कि उन्होंने क्या क्या किया - लोग वास्तव में इस तरह की मदद की सराहना करते हैं। डैड ने कुछ ग्रामीणों को खेती के लिए बैंक से ऋण दिलाने में भी मदद की, जिससे उन्हें अपने काम में आसानी हुई। कई महिलाओं ने गैबी से यह टिप्पणी भी करी कि माँ को अभी और बच्चे हो सकते हैं, क्योंकि उनकी उम्र अभी भी बहुत कम थी, और वो शारीरिक रूप से पूरी तरह से स्वस्थ और सक्षम थीं। इस गाँव में, औरतें चालीस-पैंतालीस तक की उम्र में भी गर्भवती हुई हैं, और उनके स्वस्थ बच्चे भी हुए हैं। इसलिए अभी तो माँ के बहुत समय है और बच्चे पैदा करने का! उनकी इस बात पर माँ ने कहा कि उनको पहले ही एक और बच्चा हो गया है - और वो है गैबी! भारत में बहुत सी सासें अपनी बहुओं के बारे में ऐसा नहीं कह सकतीं, और न ही बहुत सी बहुएँ अपनी सासों को अपनी माँ का स्थान ही दे पाती हैं। गैबी ने उनको बताया कि वो भी माँ को अपनी ही माँ मानती है, और यह कि उन दोनों का बंधन बहुत मजबूत है - क्योंकि माँ ने उसको स्तनपान कराया था।

इस तरह के निजी विवरण का खुलासा करने के लिए माँ ने शरमाते हुए, प्यार से गैबी को डाँटा। लेकिन वहां मौज़ूद महिलाओं ने इस बात पर कोई ख़ास प्रतिक्रिया नहीं दी। हाँ, उन्होंने इस बात पर आश्चर्य अवश्य व्यक्त किया कि माँ ने गैबी को अपना स्तन पिलाया, लेकिन फिर यह भी कहा कि यदि उनकी बहुएँ गैबी जैसी हों, तो वे भी अपनी बहुओं को स्तनपान ज़रूर करातीं। यूँ ही खेल खेल में किसी महिला ने माँ को गैबी को अपना दूध पिलाने को कहा, तो माँ भी सहर्ष उसको कुछ देर तक अपना स्तन पिलाने लगीं। वहां मौजूद महिलाएं आश्चर्य से हंस पड़ीं। एक ने तो यहां तक कह दिया कि गैबी अपने भाई से शादी करने जा रही थी, क्योंकि दोनों ने एक ही मां से स्तनपान किया है। माँ ने इस बात का न तो समर्थन किया और न ही विरोध - उन्होंने बस इतना ही कहा कि बहू तो बेटी ही होती है। गैबी ने तब खुलासा किया कि उसकी एक और भी माँ है - काजल! यह सुन कर काजल इस कदर भावुक हो गईं कि उसकी आँखों से आँसू आ गए। एक महिला ने काजल को छेड़ते हुए पूछा कि क्या उसने भी दुल्हन को स्तनपान कराया है। काजल कुछ कहती, उससे पहले ही गैबी ने ‘हाँ’ में जवाब दिया। माँ को इस बात पर आश्चर्य नहीं हुआ : चूँकि काजल मुझे नियमित रूप से स्तनपान कराती आई थी, इसलिए लाज़िमी है कि गैबी ने भी उसका दूध पिया हो। गैबी ने मुझे बताया कि माँ के अनुरोध पर काजल ने गैबी को अपना दूध पिलाया और ऐसा कर के उसको बहुत गर्व महसूस हुआ।

जब गैबी ने दूध पी लिया, तब एक महिला ने हंसते हुए कहा, “बहूरानी, अब तुम्हारी दूध पीने की नहीं, दूध पिलाने की उम्र है…”

इस बात पर किसी और ने कहा, “अरे, अभी कहाँ? बहूरानी अभी छोटी सी ही तो है!”

“हाँ! चौदह पंद्रह की ही तो है बस!” किसी अन्य ने कहा।

क्या करे? गैबी की त्वचा से उसकी उम्र का पता ही नहीं चलता! और ये किसी संतूर साबुन का कमाल नहीं है! बस, स्वस्थ, प्रसन्न जीवनचर्या और प्रकृति के मिले-जुले कृपा का असर था।

माँ उन सब की बातों पर केवल मुस्कुरा दीं - बोलीं कुछ भी नहीं।

गैबी ने उस बात पर रुक कर मुझसे पूछा, “हनी, मुझे पता है कि तुम अभी भी बहुत छोटे हो ... लेकिन परिवार शुरू करने के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है ... आई मीन, बेबीज?”

“गैबी, इम्पोर्टेन्ट यह है कि तुम्हारा क्या ख़याल है! तुमको ही नौ महीने तक बच्चे को अपने अंदर पालना है, और उसको जन्म देना है! यह मुझे तो नहीं करना है। अगर तुम ओके हो तो मैं भी ओके हूँ। मेरा मतलब है, मेरे पास अच्छी खासी नौकरी है... बढ़िया सैलरी है! काजल भी है - वो हमारी मदद करेगी। तो, मैं कहूंगा, मैं इस विषय पर न्यूट्रल हूँ। तो तुम्हारा क्या ख़याल है?”

“मुझे नहीं मालूम, हनी! अभी तक नहीं जानती। जाहिर सी बात है कि मैं चाहती हूँ, कि तुम्हारा अंश मेरे अंदर पले बढ़े, और मैं उसको जन्म दूँ... लेकिन कुछ महीने वेट करने में कोई खराबी भी नहीं है... मैं थोड़ा स्वार्थी भी तो हूँ! मैंने अभी-अभी तो तुम्हारा प्यार पाना शुरू किया है, और अभी उसको बाँटना नहीं चाहती - कम से कम कुछ और महीनों तक!” गैबी बड़ी अदा से, शर्माती हुई मुस्कुराई।

“मैं तुम्हें प्यार करना कभी बंद नहीं कर सकता।” मैंने कहा, और उसको चूमा, “मेरा प्यार कभी बँट ही नहीं सकता। और, हमारा बेबी भी तो हमारा ही होगा न - हम दोनों का अंश?”

“मुझे पता है जानू... और तुम्हारी हर बात सही है! लेकिन सोचो - हम दोनों अभी के जैसा एक बढ़िया सेशन कर रहे हों, और अचानक ही हमारा बच्चा रोने लगता है, क्योंकि उसने अपनी नैपी को गंदा कर दिया है ... हा हा!”

गैबी की बात पर हम दोनों हंस पड़े।

“जैसा कि मैंने पहले भी कहा है, बच्चे करने का निर्णय मैंने तुम पर छोड़ दिया है। तुम जो भी निर्णय लोगी, मैं उसका पूरा समर्थन करूँगा!” मैंने दोहराया।

हम ऐसी ही मीठी मीठी बातें करते हुए कब हम गहरी नींद में सो गए, मुझे याद नहीं।


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पहला प्यार - विवाह - Update #10


माँ और डैड रात में करीब दस बजे वापस घर आए। गाँव के कुछ लोगों ने सामान समेटने में मदद करने की पेशकश करी और उनसे आराम करने को कह दिया - तब जा कर उनका दिन ख़तम हुआ। वो भी थक गए थे, लेकिन बहुत प्रसन्न थे। उनके हिसाब से आज कई सारे शुभ कार्य संपन्न हुए थे - सबसे पहला काम हमारा विवाह, दूसरा मंदिर में पहला विवाह, और तीसरा पूरे गाँव को भोज कराना! उनका कमरा हमारे बगल वाला ही था। डैड ने माँ को बड़ी हसरत भरी नज़र से देखा - वो धीमी गति से अपने कपड़े उतार रही थीं। उनके होंठों पर एक स्निग्ध मुस्कान आ गई - माँ को पाना डैड के हिसाब से बड़ी किस्मत वाली बात थी। थोड़ा थोड़ा कर के माँ ने कितना कुछ संजोया था, और डैड के जीवन में इस तरह की संतुष्टि लाई थीं। माँ ने उनको अपनी तरफ़ देखते हुए देखा, तो वो भी मुस्कुराईं। दोनों की आँखें मिलीं।

“तुम बहुत सुन्दर हो मेरी जान!” डैड ने कहा, “मैं बहुत लकी हूँ!”

माँ डैड को बहुत प्यार करती थीं। उनकी बात सुन कर वो तुरंत पिघल गईं। डैड ने उनको अपनी बाँहों में भर लिया और अपने आलिंगन में बाँध लिया।

“आई होप कि बच्चे ठीक हों!” डैड ने बस कुछ कहने की गरज से बोला।

माँ हँसीं और उनको चूमते हुए बोलीं, “अब उनको छोड़ दीजिए। वो दोनों अपनी मस्ती में हैं!” फिर अर्थपूर्वक बोलीं, “आप मुझ पर कॉन्सेंट्रेट कीजिए। कहिए तो बच्चों के साथ हम भी सुहागरात मना लें?”

माँ की बात सुन कर डैड ख़ुशी से फूले नहीं समाए, “मेरा तो पूरा ध्यान तुम्ही पर लगा रहता है मेरी जान!” उन्होंने माँ की ब्लाउज के बटन खोलते हुए कहा। माँ ने आज ब्लाउज के नीचे ब्रा भी पहनी हुई थी। उन्होंने ब्रा का हुक हटाया, और उसको उतार कर एक तरफ़ फेंक दिया।

“क्या इरादे हैं मिस्टर सिंह?” माँ ने एक चौड़ी मुस्कान बिखेरते है कहा, “अपने बेटे और बहू को सेक्स करते हुए सोच कर आपको भी जोश चढ़ रहा है क्या?”

भी?” डैड ने झूठ मूठ का नाटक करते हुए कहा, “अरे बेग़म, वो सब करना मैंने ही तो सिखाया है उसको!”

“वो तो है!” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा।

“तुम और बहू, दोनों बहनें लगती हो!” डैड ने माँ की साड़ी उतारते हुए कहा, “अट्ठारह बीस साल की! ये सब साज सज्जा और सिन्दूर न लगाओ, तो लड़कियों जैसी ही लगोगी!”

“हा हा हा हा! मस्का लगाने की कोई ज़रुरत नहीं है सिंह साहब,” माँ ने दिल खोल कर हँसते हुए कहा, “आपके साथ सेक्स करने के लिए मैंने कभी मना नहीं किया, और न ही करूँगी!”

“मेरी जान, मस्का नहीं, आई ऍम थैंकफुल! आई ऍम लकी!” उन्होंने माँ की पेटीकोट का नाड़ा ढीला करते हुए कहा।

“वो तो हैं आप!” माँ बड़ी अदा से इठलाते हुए बोलीं, “मैं तो हमेशा आपकी वही, छोटी सी दुल्हन ही रहूँगी!”

डैड मुस्कुराए। उन्होंने माँ के स्तनों को अपनी हथेलियों से दबाया। माँ के चूचक कड़े हो कर उनकी हथेलियों पर चुभने लगे।

“सच में! कोई अंतर नहीं आया इतने सालों में!”

“अजी हटिए!” माँ फिर से, बड़ी अदा से ठुनकते हुए बोलीं, “कितने बड़े बड़े हो गए हैं ये!”

इनको बड़ा कहती हो?” उन्होंने माँ के स्तनों को दबाते हुए कहा, “सुन्दर सुन्दर नारंगियाँ हैं ये तो! छोटी छोटी! मीठी मीठी! रसीली रसीली!” उन्होंने कहा, और एक चूचक को मुँह में भर कर पीने लगे।

“आह!” माँ कामुकता से कराहीं! और बस यूँ ही, चुटकी बजाते ही उन्होंने अपने पुरुष को जीत लिया। कुछ देर तक उन दोनों के बीच यही खेल चलता रहा। इस बीच माँ ने डैड के कपड़े भी उतार दिए। अब मुख्य क्रिया की बारी आ गई थी।

“अंदर से कोई आवाज़ नहीं आ रही है!” डैड ने उत्सुकतावश कहा।

“हाँ, शायद दोनों सो गए!” माँ ने दरवाजे की ओर देखते हुए कहा, “आराम से करिएगा! शोर मत मचाइएगा!” माँ ने अपनी आँखों में शरारती चमक लिए हुए कहा।

“अरे, मैं क्यों शोर करूँगा?”

“बताती हूँ!” माँ ने कहा।

डैड कुछ कहते, उसके पहले ही वो उनके सामने घुटने टेक कर बैठ गईं और उनके उत्तेजित लिंग को प्रेम से अपने हाथों में पकड़ कर सहलाने लगीं। यह कुछ नया था। डैड उनको हैरत से देख ही रहे थे कि माँ ने अपना मुँह खोला, और डैड के लिंग को अपने मुँह में भर लिया! माँ ने डैड को मुख-मैथुन का सुख तो दिया था, लेकिन इस पोजीशन में पहली बार था! माँ डैड के लिंग के साथ मज़े से खेल रही थीं - वो उसको किसी लॉलीपॉप के ही समान चूम रही थीं, चूस रही थीं, और चाट रही थीं! सब कुछ नया था! एक नया अंदाज़! जब माँ डैड का लिंग चूस रह थीं, तो डैड आनंद के सागर में गोते लगाते हुए माँ को देख रहे थे। और उनकी आँखें माँ को बता रही थीं कि उनको यह नया अनुभव बहुत पसंद आ रहा है! कुछ देर के बाद डैड ने माँ के सर पर हाथ रखा और उनको हटाने के लिए धीरे से उनका नाम पुकारा - माँ को चेतावनी देने के लिए, कि उनका स्खलन सन्निकट है। लेकिन माँ ने अपना मुँह वहाँ से हटाया नहीं, और चूसना चूमना जारी रखा। अब डैड से बर्दाश्त नहीं हुआ - उनकी कमर में हरकत हुई और उनका स्खलन होने लगा। माँ ने उनका वीर्य पी लिया - एक बार, दो बार, और फिर साँस ले कर तीसरी बार! जब और वीर्य निकलना बंद हो गया, तो माँ ने डैड के कोमल होते लिंग को अपने मुँह से निकाल कर, उनको कुछ निचोड़ा! इससे जो थोड़ा बहुत वीर्य बचा हुआ था वो उसके सिरे पर रिसने लगा और उन्होंने एक आखिरी बार डैड के लिंग को चूसा और अपने होंठों को चाट लिया!

इतने वर्षों में माँ ने कभी डैड का वीर्य नहीं पिया था।

“जानेमन,” डैड ने उत्तेजना से हाँफते हुए कहा, “आज तो कमाल कर दिया तुमने!”

“आपको अच्छा लगा?”

“अच्छा? जान मेरी, मैं तो इस समय दसवें आसमान पर हूँ!”

“हा हा हा!” माँ डैड को खुश देख कर बहुत खुश थीं। उन्होंने पास में रखे गिलास से पानी पिया और बिस्तर पर आ गईं।

“ये करने का आईडिया कहाँ से आया मेरी जान?” डैड ने माँ की योनि को सहलाते हुए पूछा।

“बहू से,” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, “शादी से पहले दोनों ऐसे ही करते थे!”

“सही है यार!” डैड ने माँ की योनि को सहलाना जारी रखा, “अमर भी क्या बहू को मुँह से ही...?”

“हाँ!” माँ ने धीरे से कहा।

“मैं भी कर दूँ?” लगातार सहलाते रहने से माँ भी अब समुचित तरीके से उत्तेजित हो गई थीं, “तुम्हारी बुर तो गीली हो गई है!”

“आप इसको इतनी देर से छेड़ रहे हैं, बेचारी रोएगी भी नहीं?” माँ ने अपनी जाँघें और फैलाते हुए कहा।

“अभी चुप कराता हूँ इसको मेरी जान!” डैड ने माँ को छेड़ते हुए कहा।

माँ ने उत्सुकता से सर हिलाया - वो भी इस नए अनुभव के लिए उत्सुक दिख रही थीं।

डैड माँ के सामने अपने घुटनों के बल बिस्तर बैठ गए - फिर कुछ सोच कर उन्होंने माँ के दोनों पैर अपने कन्धों के ऊपर से अपनी पीठ पर रख दिया। ऐसा करने से माँ की पिंडलियाँ थोड़ा दब गईं और उनको दिन भर की थकावट से थोड़ा आराम सा मिला। मूड तो पहले ही बना हुआ था - लेकिन दर्द से थोड़ी राहत मिलने से मूड थोड़ा और रोमांटिक हो गया।

डैड माँ की योनि के पास झुक गए। यह एक अलग ही तरह की गंध थी - डैड यह निर्णय नहीं कर सके कि ये कैसी गंध थी! माँ हमेशा ही साफ़ सफ़ाई से रहती थीं, इसलिए वहाँ से साबुन की महक भी आ रही थी। उनकी योनि भी पूरी तरह से चिकनी, बाल-रहित थी। इतने वर्षों के बाद भी माँ की योनि वैसी ही, सुन्दर सी, और आकर्षक थी, जैसी उन्होंने पहली बार महसूस करी थी। कभी कभी प्रकृति किसी किसी पर कितनी मेहरबान हो सकती है। माँ इस बात को मज़ाक में लेती थीं, लेकिन वाक़ई, वो अपनी उम्र से काफी कम दिखती थीं। जैसा डैड ने अभी अभी कहा था, माँ सच में इक्कीस बीस साल की ही लगती थीं। उनके सामने मैं उनसे दो तीन साल बड़ा लगता था!

डैड ने जीभ निकाल कर उनके योनि के चीरे को चाटा - थोड़ा अलग स्वाद - ऐसा कि जिसका वर्णन वो नहीं कर सकते थे। थोड़ा तीखापन, थोड़ी खटास लिए हुए... लेकिन फिर भी थोड़ी अलग! माँ इतने में ही हांफने लगीं, क्योंकि अब डैड की जीभ उनकी योनि से चिपकी हुई थी, और उनके चीरे को नीचे से ऊपर तक चाट रही थी।

“आआअह्ह्ह्ह!” माँ के गले से कामुक कराह निकल गई। इस तरह का अनुभव उनको पहले कभी नहीं हुआ था।

डैड ने ऊपर माँ की ओर देखा और अपनी उंगली को होंठों पर रख कर उनको चुप रहने की चेतावनी दी। माँ इस अनोखे आनंद को मन ही मन अनुभव कर के रह गईं। लेकिन कसमसाहट में उनके हाथों ने बिस्तर की चादर को मुट्ठी में पकड़ लिया। डैड ने उनकी योनि के होंठों को अलग करने के लिए अपनी जीभ को कड़ा कर लिया। इसी छेड़खानी में उनकी जीभ की नोक माँ के भगशेफ़ पर फिसलने लगी। माँ की योनि छोटी थी और कसी हुई थी, इसलिए केवल जीभ से वो पर्याप्त चौड़ा नहीं हो पाई। डैड भी इस अनोखे क्रियाकलाप से आंदोलित हो गए थे। उन्होंने काँपते हुए हाथों से उनकी योनि के होंठ थोड़ा फैलाया और अपने होंठों को माँ के भगशेफ़ के चारों ओर चस्पा कर दिया।

बहुत कोशिश करने पर भी माँ अपने कामतिरेक पर नियन्त्रण नहीं रख सकीं। उनके गले से बहुत गहरी और कामुक चीख़ निकल गई। माँ की पीठ पीछे की तरफ़ झुकी हुई थी, और उनके पैर उन्माद में सख्त हो गए। चादर को पकड़ने वाला उनका हाथ डैड के बालों में उलझ गया, और उन्होंने डैड के सर को अपनी ओर खींच लिया। डैड को अचकनक ही सुनाई देना बंद हो गया, क्योंकि माँ की जाँघें उनके कानों पर बंद हो गईं और उनकी योनि डैड के चेहरे पर धकेल गई। डैड ने अपनी जीभ की नोक से माँ की योनि की कली को सहलाया, और उसे इधर-उधर धकेला! माँ का पूरा शरीर काँप गया। माँ को एक और कामोन्मादक चीख़ आने ही वाली थी कि उन्होंने दोनों हाथों से अपने मुँह को कसकर दबा लिया। बस एक घुटी हुई सी चीख़ निकल सकी। उनके पैर वापस खुल गए, और डैड अब उनकी साँसों की आवाज सुन सकते थे। ऐसा होने से माँ की योनि की कली उनके होठों से दूर हो गई, और उसको फिर से पाने के लिए डैड ने अपना चेहरा उनकी योनि के खिलाफ धकेल दिया।

माँ ने अभी भी अपने मुँह को अपने हाथों से कसकर ढँका हुआ था, और उनकी आँखें इस अभूतपूर्व आनंद के कारण चौड़ी हो गईं थीं। उनके गले से रह रह कर गुर्राहट की आवाज़ें निकल रही थीं। डैड ने रुक कर अपना सर उठा लिया और वो माँ को देखने लगे। माँ का ऐसा रूप उन्होंने नहीं देखा था। माँ को ऐसा नया अनुभव मिला था जो उन्होंने अपने अभी तक के जीवन में कभी महसूस नहीं किया।

डैड मुस्कराए। उन्होंने वापस माँ की योनि पर अपना मुँह चस्पा दिया और पुनः उसको चूसने लगे। कोई बीस सेकंड के भीतर ही डैड को समझ में आने लग गया कि माँ अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचने वाली हैं। उन्होंने माँ की कराहने वाली आवाज़ें सुनीं, लेकिन वे इतने ज़ोर से नहीं निकल रही थीं कि माँ को अपना मुँह ढँकना पड़े। इसलिए डैड माँ की योनि को तब तक चाटते और चूसते रहे जब तक कि माँ को रति निष्पत्ति का अनूठा अनुभव नहीं मिल गया। माँ का पूरा शरीर ढीला पड़ गया और उनकी एक टाँग डैड के कंधे से फिसल कर नीचे गिर गई। और माँ ज़ोर ज़ोर से हाँफ़ने लगीं। डैड अब अपनी ‘मुख मैथुन’ वाली पोजीशन से हट कर माँ के बगल आ कर लेट गए। गहरी गहरी साँसे भरने के कारण माँ के स्तन किसी स्वादिष्ट व्यंजन के जैसे लग रहे थे। डैड से रहा नहीं गया, और वो झुककर एक बार फिर से उनका एक स्तन चूसने लगे।

माँ ने अपनी आँखें खोलीं और अपना सर उठा कर डैड की तरफ देखा। वो हाँफ रही थीं, और बड़ी उत्सुकता डैड को अपना चूचक चूसते हुए देख रही थीं। जब डैड को माँ की आवाज़ आनी बंद हो गई, तो उन्होंने उनकी तरफ़ देखा। माँ मुस्कुराईं।

“बोलो मेरी जान, मज़ा आया?”

“ठाकुर साहब,” माँ ने थकी हुई मुस्कान देते हुए कहा, “हमारी शादी के बाइस साल हो गए हैं, लेकिन आप तो आज भी जादू करते हैं!”

माँ ने डैड को अपनी ओर खींच लिया, और उनको चूमने के लिए अपने होंठ आगे बढ़ाए। डैड ने सहर्ष उनको चूम लिया।

“हम्म्म” जब दोनों का चुम्बन टूटा, तो माँ ने कहा, “तो मेरा स्वाद ऐसा है?”

“तुम्हारा टेस्ट सबसे अच्छा है, मेरी जान! तुम्हारे हर अंग का स्वाद मस्त है!”

“अच्छा जी? मस्का मारना चालू है आपका! मारते रहिए मस्का!” माँ अदा से इठलाईं, “लेकिन सच में, ये वाकई शानदार था!”

माँ और डैड एक दूसरे की बाहों में लिपट कर, कम्बल के नीचे आराम से सो गए।

***
 

A.A.G.

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पहला प्यार - विवाह - Update #10


माँ और डैड रात में करीब दस बजे वापस घर आए। गाँव के कुछ लोगों ने सामान समेटने में मदद करने की पेशकश करी और उनसे आराम करने को कह दिया - तब जा कर उनका दिन ख़तम हुआ। वो भी थक गए थे, लेकिन बहुत प्रसन्न थे। उनके हिसाब से आज कई सारे शुभ कार्य संपन्न हुए थे - सबसे पहला काम हमारा विवाह, दूसरा मंदिर में पहला विवाह, और तीसरा पूरे गाँव को भोज कराना! उनका कमरा हमारे बगल वाला ही था। डैड ने माँ को बड़ी हसरत भरी नज़र से देखा - वो धीमी गति से अपने कपड़े उतार रही थीं। उनके होंठों पर एक स्निग्ध मुस्कान आ गई - माँ को पाना डैड के हिसाब से बड़ी किस्मत वाली बात थी। थोड़ा थोड़ा कर के माँ ने कितना कुछ संजोया था, और डैड के जीवन में इस तरह की संतुष्टि लाई थीं। माँ ने उनको अपनी तरफ़ देखते हुए देखा, तो वो भी मुस्कुराईं। दोनों की आँखें मिलीं।

“तुम बहुत सुन्दर हो मेरी जान!” डैड ने कहा, “मैं बहुत लकी हूँ!”

माँ डैड को बहुत प्यार करती थीं। उनकी बात सुन कर वो तुरंत पिघल गईं। डैड ने उनको अपनी बाँहों में भर लिया और अपने आलिंगन में बाँध लिया।

“आई होप कि बच्चे ठीक हों!” डैड ने बस कुछ कहने की गरज से बोला।

माँ हँसीं और उनको चूमते हुए बोलीं, “अब उनको छोड़ दीजिए। वो दोनों अपनी मस्ती में हैं!” फिर अर्थपूर्वक बोलीं, “आप मुझ पर कॉन्सेंट्रेट कीजिए। कहिए तो बच्चों के साथ हम भी सुहागरात मना लें?”

माँ की बात सुन कर डैड ख़ुशी से फूले नहीं समाए, “मेरा तो पूरा ध्यान तुम्ही पर लगा रहता है मेरी जान!” उन्होंने माँ की ब्लाउज के बटन खोलते हुए कहा। माँ ने आज ब्लाउज के नीचे ब्रा भी पहनी हुई थी। उन्होंने ब्रा का हुक हटाया, और उसको उतार कर एक तरफ़ फेंक दिया।

“क्या इरादे हैं मिस्टर सिंह?” माँ ने एक चौड़ी मुस्कान बिखेरते है कहा, “अपने बेटे और बहू को सेक्स करते हुए सोच कर आपको भी जोश चढ़ रहा है क्या?”

भी?” डैड ने झूठ मूठ का नाटक करते हुए कहा, “अरे बेग़म, वो सब करना मैंने ही तो सिखाया है उसको!”

“वो तो है!” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा।

“तुम और बहू, दोनों बहनें लगती हो!” डैड ने माँ की साड़ी उतारते हुए कहा, “अट्ठारह बीस साल की! ये सब साज सज्जा और सिन्दूर न लगाओ, तो लड़कियों जैसी ही लगोगी!”

“हा हा हा हा! मस्का लगाने की कोई ज़रुरत नहीं है सिंह साहब,” माँ ने दिल खोल कर हँसते हुए कहा, “आपके साथ सेक्स करने के लिए मैंने कभी मना नहीं किया, और न ही करूँगी!”

“मेरी जान, मस्का नहीं, आई ऍम थैंकफुल! आई ऍम लकी!” उन्होंने माँ की पेटीकोट का नाड़ा ढीला करते हुए कहा।

“वो तो हैं आप!” माँ बड़ी अदा से इठलाते हुए बोलीं, “मैं तो हमेशा आपकी वही, छोटी सी दुल्हन ही रहूँगी!”

डैड मुस्कुराए। उन्होंने माँ के स्तनों को अपनी हथेलियों से दबाया। माँ के चूचक कड़े हो कर उनकी हथेलियों पर चुभने लगे।

“सच में! कोई अंतर नहीं आया इतने सालों में!”

“अजी हटिए!” माँ फिर से, बड़ी अदा से ठुनकते हुए बोलीं, “कितने बड़े बड़े हो गए हैं ये!”

इनको बड़ा कहती हो?” उन्होंने माँ के स्तनों को दबाते हुए कहा, “सुन्दर सुन्दर नारंगियाँ हैं ये तो! छोटी छोटी! मीठी मीठी! रसीली रसीली!” उन्होंने कहा, और एक चूचक को मुँह में भर कर पीने लगे।

“आह!” माँ कामुकता से कराहीं! और बस यूँ ही, चुटकी बजाते ही उन्होंने अपने पुरुष को जीत लिया। कुछ देर तक उन दोनों के बीच यही खेल चलता रहा। इस बीच माँ ने डैड के कपड़े भी उतार दिए। अब मुख्य क्रिया की बारी आ गई थी।

“अंदर से कोई आवाज़ नहीं आ रही है!” डैड ने उत्सुकतावश कहा।

“हाँ, शायद दोनों सो गए!” माँ ने दरवाजे की ओर देखते हुए कहा, “आराम से करिएगा! शोर मत मचाइएगा!” माँ ने अपनी आँखों में शरारती चमक लिए हुए कहा।

“अरे, मैं क्यों शोर करूँगा?”

“बताती हूँ!” माँ ने कहा।

डैड कुछ कहते, उसके पहले ही वो उनके सामने घुटने टेक कर बैठ गईं और उनके उत्तेजित लिंग को प्रेम से अपने हाथों में पकड़ कर सहलाने लगीं। यह कुछ नया था। डैड उनको हैरत से देख ही रहे थे कि माँ ने अपना मुँह खोला, और डैड के लिंग को अपने मुँह में भर लिया! माँ ने डैड को मुख-मैथुन का सुख तो दिया था, लेकिन इस पोजीशन में पहली बार था! माँ डैड के लिंग के साथ मज़े से खेल रही थीं - वो उसको किसी लॉलीपॉप के ही समान चूम रही थीं, चूस रही थीं, और चाट रही थीं! सब कुछ नया था! एक नया अंदाज़! जब माँ डैड का लिंग चूस रह थीं, तो डैड आनंद के सागर में गोते लगाते हुए माँ को देख रहे थे। और उनकी आँखें माँ को बता रही थीं कि उनको यह नया अनुभव बहुत पसंद आ रहा है! कुछ देर के बाद डैड ने माँ के सर पर हाथ रखा और उनको हटाने के लिए धीरे से उनका नाम पुकारा - माँ को चेतावनी देने के लिए, कि उनका स्खलन सन्निकट है। लेकिन माँ ने अपना मुँह वहाँ से हटाया नहीं, और चूसना चूमना जारी रखा। अब डैड से बर्दाश्त नहीं हुआ - उनकी कमर में हरकत हुई और उनका स्खलन होने लगा। माँ ने उनका वीर्य पी लिया - एक बार, दो बार, और फिर साँस ले कर तीसरी बार! जब और वीर्य निकलना बंद हो गया, तो माँ ने डैड के कोमल होते लिंग को अपने मुँह से निकाल कर, उनको कुछ निचोड़ा! इससे जो थोड़ा बहुत वीर्य बचा हुआ था वो उसके सिरे पर रिसने लगा और उन्होंने एक आखिरी बार डैड के लिंग को चूसा और अपने होंठों को चाट लिया!

इतने वर्षों में माँ ने कभी डैड का वीर्य नहीं पिया था।

“जानेमन,” डैड ने उत्तेजना से हाँफते हुए कहा, “आज तो कमाल कर दिया तुमने!”

“आपको अच्छा लगा?”

“अच्छा? जान मेरी, मैं तो इस समय दसवें आसमान पर हूँ!”

“हा हा हा!” माँ डैड को खुश देख कर बहुत खुश थीं। उन्होंने पास में रखे गिलास से पानी पिया और बिस्तर पर आ गईं।

“ये करने का आईडिया कहाँ से आया मेरी जान?” डैड ने माँ की योनि को सहलाते हुए पूछा।

“बहू से,” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, “शादी से पहले दोनों ऐसे ही करते थे!”

“सही है यार!” डैड ने माँ की योनि को सहलाना जारी रखा, “अमर भी क्या बहू को मुँह से ही...?”

“हाँ!” माँ ने धीरे से कहा।

“मैं भी कर दूँ?” लगातार सहलाते रहने से माँ भी अब समुचित तरीके से उत्तेजित हो गई थीं, “तुम्हारी बुर तो गीली हो गई है!”

“आप इसको इतनी देर से छेड़ रहे हैं, बेचारी रोएगी भी नहीं?” माँ ने अपनी जाँघें और फैलाते हुए कहा।

“अभी चुप कराता हूँ इसको मेरी जान!” डैड ने माँ को छेड़ते हुए कहा।

माँ ने उत्सुकता से सर हिलाया - वो भी इस नए अनुभव के लिए उत्सुक दिख रही थीं।

डैड माँ के सामने अपने घुटनों के बल बिस्तर बैठ गए - फिर कुछ सोच कर उन्होंने माँ के दोनों पैर अपने कन्धों के ऊपर से अपनी पीठ पर रख दिया। ऐसा करने से माँ की पिंडलियाँ थोड़ा दब गईं और उनको दिन भर की थकावट से थोड़ा आराम सा मिला। मूड तो पहले ही बना हुआ था - लेकिन दर्द से थोड़ी राहत मिलने से मूड थोड़ा और रोमांटिक हो गया।

डैड माँ की योनि के पास झुक गए। यह एक अलग ही तरह की गंध थी - डैड यह निर्णय नहीं कर सके कि ये कैसी गंध थी! माँ हमेशा ही साफ़ सफ़ाई से रहती थीं, इसलिए वहाँ से साबुन की महक भी आ रही थी। उनकी योनि भी पूरी तरह से चिकनी, बाल-रहित थी। इतने वर्षों के बाद भी माँ की योनि वैसी ही, सुन्दर सी, और आकर्षक थी, जैसी उन्होंने पहली बार महसूस करी थी। कभी कभी प्रकृति किसी किसी पर कितनी मेहरबान हो सकती है। माँ इस बात को मज़ाक में लेती थीं, लेकिन वाक़ई, वो अपनी उम्र से काफी कम दिखती थीं। जैसा डैड ने अभी अभी कहा था, माँ सच में इक्कीस बीस साल की ही लगती थीं। उनके सामने मैं उनसे दो तीन साल बड़ा लगता था!

डैड ने जीभ निकाल कर उनके योनि के चीरे को चाटा - थोड़ा अलग स्वाद - ऐसा कि जिसका वर्णन वो नहीं कर सकते थे। थोड़ा तीखापन, थोड़ी खटास लिए हुए... लेकिन फिर भी थोड़ी अलग! माँ इतने में ही हांफने लगीं, क्योंकि अब डैड की जीभ उनकी योनि से चिपकी हुई थी, और उनके चीरे को नीचे से ऊपर तक चाट रही थी।

“आआअह्ह्ह्ह!” माँ के गले से कामुक कराह निकल गई। इस तरह का अनुभव उनको पहले कभी नहीं हुआ था।

डैड ने ऊपर माँ की ओर देखा और अपनी उंगली को होंठों पर रख कर उनको चुप रहने की चेतावनी दी। माँ इस अनोखे आनंद को मन ही मन अनुभव कर के रह गईं। लेकिन कसमसाहट में उनके हाथों ने बिस्तर की चादर को मुट्ठी में पकड़ लिया। डैड ने उनकी योनि के होंठों को अलग करने के लिए अपनी जीभ को कड़ा कर लिया। इसी छेड़खानी में उनकी जीभ की नोक माँ के भगशेफ़ पर फिसलने लगी। माँ की योनि छोटी थी और कसी हुई थी, इसलिए केवल जीभ से वो पर्याप्त चौड़ा नहीं हो पाई। डैड भी इस अनोखे क्रियाकलाप से आंदोलित हो गए थे। उन्होंने काँपते हुए हाथों से उनकी योनि के होंठ थोड़ा फैलाया और अपने होंठों को माँ के भगशेफ़ के चारों ओर चस्पा कर दिया।

बहुत कोशिश करने पर भी माँ अपने कामतिरेक पर नियन्त्रण नहीं रख सकीं। उनके गले से बहुत गहरी और कामुक चीख़ निकल गई। माँ की पीठ पीछे की तरफ़ झुकी हुई थी, और उनके पैर उन्माद में सख्त हो गए। चादर को पकड़ने वाला उनका हाथ डैड के बालों में उलझ गया, और उन्होंने डैड के सर को अपनी ओर खींच लिया। डैड को अचकनक ही सुनाई देना बंद हो गया, क्योंकि माँ की जाँघें उनके कानों पर बंद हो गईं और उनकी योनि डैड के चेहरे पर धकेल गई। डैड ने अपनी जीभ की नोक से माँ की योनि की कली को सहलाया, और उसे इधर-उधर धकेला! माँ का पूरा शरीर काँप गया। माँ को एक और कामोन्मादक चीख़ आने ही वाली थी कि उन्होंने दोनों हाथों से अपने मुँह को कसकर दबा लिया। बस एक घुटी हुई सी चीख़ निकल सकी। उनके पैर वापस खुल गए, और डैड अब उनकी साँसों की आवाज सुन सकते थे। ऐसा होने से माँ की योनि की कली उनके होठों से दूर हो गई, और उसको फिर से पाने के लिए डैड ने अपना चेहरा उनकी योनि के खिलाफ धकेल दिया।

माँ ने अभी भी अपने मुँह को अपने हाथों से कसकर ढँका हुआ था, और उनकी आँखें इस अभूतपूर्व आनंद के कारण चौड़ी हो गईं थीं। उनके गले से रह रह कर गुर्राहट की आवाज़ें निकल रही थीं। डैड ने रुक कर अपना सर उठा लिया और वो माँ को देखने लगे। माँ का ऐसा रूप उन्होंने नहीं देखा था। माँ को ऐसा नया अनुभव मिला था जो उन्होंने अपने अभी तक के जीवन में कभी महसूस नहीं किया।

डैड मुस्कराए। उन्होंने वापस माँ की योनि पर अपना मुँह चस्पा दिया और पुनः उसको चूसने लगे। कोई बीस सेकंड के भीतर ही डैड को समझ में आने लग गया कि माँ अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचने वाली हैं। उन्होंने माँ की कराहने वाली आवाज़ें सुनीं, लेकिन वे इतने ज़ोर से नहीं निकल रही थीं कि माँ को अपना मुँह ढँकना पड़े। इसलिए डैड माँ की योनि को तब तक चाटते और चूसते रहे जब तक कि माँ को रति निष्पत्ति का अनूठा अनुभव नहीं मिल गया। माँ का पूरा शरीर ढीला पड़ गया और उनकी एक टाँग डैड के कंधे से फिसल कर नीचे गिर गई। और माँ ज़ोर ज़ोर से हाँफ़ने लगीं। डैड अब अपनी ‘मुख मैथुन’ वाली पोजीशन से हट कर माँ के बगल आ कर लेट गए। गहरी गहरी साँसे भरने के कारण माँ के स्तन किसी स्वादिष्ट व्यंजन के जैसे लग रहे थे। डैड से रहा नहीं गया, और वो झुककर एक बार फिर से उनका एक स्तन चूसने लगे।

माँ ने अपनी आँखें खोलीं और अपना सर उठा कर डैड की तरफ देखा। वो हाँफ रही थीं, और बड़ी उत्सुकता डैड को अपना चूचक चूसते हुए देख रही थीं। जब डैड को माँ की आवाज़ आनी बंद हो गई, तो उन्होंने उनकी तरफ़ देखा। माँ मुस्कुराईं।

“बोलो मेरी जान, मज़ा आया?”

“ठाकुर साहब,” माँ ने थकी हुई मुस्कान देते हुए कहा, “हमारी शादी के बाइस साल हो गए हैं, लेकिन आप तो आज भी जादू करते हैं!”

माँ ने डैड को अपनी ओर खींच लिया, और उनको चूमने के लिए अपने होंठ आगे बढ़ाए। डैड ने सहर्ष उनको चूम लिया।

“हम्म्म” जब दोनों का चुम्बन टूटा, तो माँ ने कहा, “तो मेरा स्वाद ऐसा है?”

“तुम्हारा टेस्ट सबसे अच्छा है, मेरी जान! तुम्हारे हर अंग का स्वाद मस्त है!”

“अच्छा जी? मस्का मारना चालू है आपका! मारते रहिए मस्का!” माँ अदा से इठलाईं, “लेकिन सच में, ये वाकई शानदार था!”

माँ और डैड एक दूसरे की बाहों में लिपट कर, कम्बल के नीचे आराम से सो गए।

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shandaar update..!!
 
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