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बहुत ही बेहतरीन और भावुक अपडेट।दोस्तों - यह लीजिए आज का अपडेट! थोड़ी देरी के लिए माफ़ी चाहता हूँ।
यह अपडेट एक तरीके का अंतराल है - अमर-गैबी वाले phase से आगे वाले phase में जाने से पहले!
जैसा जीवन में होता है - यह अंतराल कुछ मिठास लिए हुए था, और कुछ खटास भी!
उम्मीद है पढ़ कर अच्छा लगा। जल्दी ही मिलते हैं, अमर के 'मोहब्बत के सफर' के अगले पड़ाव पर
अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव अवश्य बताएँ!!
nice update..!!पहला प्यार - पल दो पल का साथ - Update #4
गैबी की मौत ने मुझे गंभीर अवसाद में डाल दिया।
भाग्य के सिर्फ एक क्रूर झटके ने मेरा जीवन ही बदल दिया। मैंने अपने जीवन का प्यार खो दिया और मेरा अनमोल, अजन्मा बच्चा भी! यह क्रूरता नहीं थी, तो और क्या था? अगर ईश्वर को उसे मुझसे इतनी जल्दी वापस लेना था, तो उसे मुझको दिया ही क्यों? इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिलता - कभी नहीं! हमने अपनी पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ गैबी का अंतिम संस्कार कर दिया। मुझे नहीं पता था कि गैबी को अपना अंतिम संस्कार कैसा चाहिए था। भला कोई नवविवाहित जोड़ा ऐसी बातें करेगा? उस दौरान मुझे कई लोगों से मिलना और उनसे बात करना याद है, लेकिन मुझे न तो किसी का चेहरा याद है, और न ही यह कि मैंने उनसे क्या बातें करीं। गैबी के दाह संस्कार की रात केवल मेरे सबसे करीबी लोग ही मेरे साथ थे - माँ, डैड और काजल! मेरी ऐसी हालत थी, जिसका बयान तो मैं खुद ही नहीं कर सकता। ऐसे में माँ पर क्या बीत रही थी, डैड पर क्या बीत रही थी, और काजल पर क्या बीत रही थी, मैं कुछ कह नहीं सकता। हाँ, लेकिन तीनों ही मुझे स्वांत्वना देने की पूरी कोशिश कर रहे थे।
लेकिन फिर भी मुझे सुकून नहीं मिल सका। मेरा रुदन बिना रोक टोक जारी रहा। ऐसा दुःख मुझे पूरे जीवन भर कभी नहीं हुआ। इसलिए मैं अपने दिल के दर्द को दबा नहीं पाया। न जाने क्यों रह रह कर मुझे एक अपराध बोध सा हो रहा था - हाँलाकि मुझे मालूम था कि वो एक दुर्घटना थी, और मैं कुछ नहीं कर सकता था! फिर भी मन ही मन, रह रह कर यह ख़याल आता कि काश मैं भी गैबी के साथ ही चला जाता! दुःख का आलम यह था कि न तो भूख का ठिकाना था, और न ही प्यास का! मुझे लग रहा था कि जैसे मेरी जीवन-शक्ति ने मुझे छोड़ दिया है। मैं अपने कमरे में अकेला बैठा था - मृत! सच कहूँ, तो मैं भी मर जाना चाहता था। पहाड़ जैसे जीवन! उसको अकेले कैसे जिया जाय? गैबी के बिना जीने का मकसद क्या था? गैबी - मेरा प्यार! उसकी ख़ूबसूरत यादें लहरों के समान रह रह कर मेरे दिमाग में आ रही थीं! और हर याद पर मैं और रोना चाहता था... लेकिन, एक समय के बाद आँसू आने भी बंद हो गए!
मैं अपने कमरे में अकेला बैठा, न जाने क्या क्या सोच रहा था। सोच रहा था, या कोस रहा था - अपने आप को, अपनी नियति को, और न जाने किस किस को! रात में न जाने कब काजल मेरे कमरे में आई। माँ ने उसे कमरे के अंदर जाते हुए देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा! यह ऐसी दुःख की घड़ी थी कि कैसे भी कर के हमको थोड़ा भी राहत मिल सके, तो वो करना चाहिए! काजल कमरे में आई; उसने दरवाज़ा भेड़ा, और चुपचाप निर्वस्त्र होने लगी। कुछ ही देर में वह पूरी तरह से नग्न हो गई। मैं अपने बिस्तर पर बैठा हुआ उसे देख रहा था। चुपचाप! मुझे जैसे काठ मार गया हो - मैं उसके धीरे-धीरे कर के नग्न होते हुए, गर्भवती शरीर की सुंदरता पर कोई प्रतिक्रिया करने या दिखाने की मनःस्थिति में नहीं था। कोई और दिन होता, तो मैं उसकी नग्न सुंदरता की प्रशंसा करता, उसका स्वाद लेता, और उससे प्यार करता! लेकिन आज का दिन ‘कोई और’ दिन नहीं था। मेरे जीवन का सबसे काला दिन था! मैं बस चुपचाप होकर काजल को देखता रहा। मुझे समझ में आ रहा था कि काजल मुझे भावनात्मक सहारा देने के लिए ऐसा कर रही थी, लेकिन मैं समझ नहीं पा रहा था कि काजल, अपनी इस अवस्था में ऐसा क्यों करना चाहती है! मेरा दुःख बेहद व्यक्तिगत था, और उसे मुझे मेरे दुःख के साथ अकेला छोड़ देना चाहिए!
काजल मेरे पास बिस्तर पर बैठ गई, और इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता कि हो क्या रहा था, काजल ने मेरे सर को पकड़ कर थोड़ा नीचे की ओर झुकाया - अपने स्तनों की तरफ़। जल्दी ही मेरे होंठ उसके सुंदर, मुलायम आभूषणों के सामने आ गए। मैंने जब काजल को पिछली बार नग्न देखा था, तब से अब तक उसके स्तनों का आकार बढ़ गया था। यह कोई आश्चर्य वाली बात नहीं थी। गर्भावस्था में वैसे भी शरीर स्थूल हो ही जाता है। काजल के चूचक भी आकार में बढ़ गए थे और उनका रंग और भी गहरा हो गया था। दूध का या फिर गर्भावस्था का दबाव कुछ ऐसा था कि उसके चूचक लगभग पूरे समय खड़े रहते! कुल मिला कर काजल अलग सी तो दिख रही थी, लेकिन वो अभी भी खूबसूरत थी। काजल का पेट भी गर्भावस्था के कारण सूजा हुआ था।
“आओ,” वो कह रही थी, “पी लो!”
इससे पहले कि मैं कुछ सोच या समझ पाता, मैं उसका निप्पल चूसने लगा। लगभग यंत्रवत सा! मैंने एक साथ कई चीजें महसूस करीं - काजल का एरोला फूला हुआ था, और मेरे मुँह में भरा हुआ सा महसूस हो रहा था… उसके चूचक सतह पर थोड़े नम भी थे, जिससे मुझे एक अनोखी अनुभूति हो रही थी। जब मैंने उसके चूचक को अपनी जीभ और ऊपरी तालू के बीच दबाया, तो जैसे इनाम के रूप में, काजल के चूचक से मीठे दूध की एक तेज धारा निकल कर मेरे मुँह को भरने लगी।
काजल मुस्कुरा दी, “पियो!”
वो बड़ी मिठास से फुसफुसाई, और मैं पीने लग गया। उस पल, मैं काजल के बहुत करीब महसूस कर रहा था। उसके दिल की धड़कन मुझे साफ़ सुनाई दे रही थी। मुझे स्तनपान कराते हुए काजल मेरे बालों को सहला रही थी! मेरा पेट थोड़ा भरने लगा - न जाने कब से मैंने कुछ खाया नहीं था, और मैं अब धीरे धीरे थोड़ा ऊष्ण महसूस करने लगा। थोड़ी ही देर में मेरे मन का बोझ हल्का हो गया - अब समझ में आया कि कैसे रोते हुए बच्चे, माँ के स्तनों से चिपक कर शांत हो जाते हैं। जब एक स्तन खाली हो गया, तब मैं दूसरे स्तन को पीने लगा। जब अंततः दूसरा स्तन भी खाली हो गया, तब काजल बिस्तर पर बैठ गई, और उसने अपने पैर फैला दिए। बेचारी, मुझको दिलासा देने के लिए, मुझको शांत करने के लिए कुछ भी करने को तत्पर थी! मुझे काजल पर दया आ गई। मानवीय सम्बन्धों पर मुझे अगर कोई खरा सोना मिला है, तो वो काजल ही थी। हमारे सत्ताईस सालों के साथ में काजल ने मेरे लिए जो कुछ भी किया है, न तो मैं उसका पूरी तरह से धन्यवाद कर सकता हूँ, और न ही ठीक से उसकी प्रशंसा ही! हाँ, लेकिन एक बात मैं अवश्य कह सकता हूँ, और वो यह, कि काजल मेरे परिवार का एक अभिन्न हिस्सा है और हमेशा रहेगी!
काजल मेरे सामने पूर्ण नग्न हो कर बैठी हुई थी, और मुझे आमंत्रित कर रही थी। मुझे इस समय क्या करना चाहिए - यह बताने की कोई ज़रूरत नहीं थी! लेकिन सच में - काजल मेरे लिए क्या कुछ कर सकती है, उसका आख्यान करना अवास्तविक सा है! वो मेरे लिए कुछ करना चाहती थी - लेकिन अचानक से ही एक ख़याल दिमाग में कौंध गया कि मैं उसके लिए कुछ करता हूँ। मैंने उसकी टाँगें थोड़ी और खोलीं, और उसकी योनि के सामने नीचे झुक गया, और अपनी जीभ को उसकी योनि के होंठों पर फ़ेरा। काजल की सिसकियाँ निकल पड़ीं - उसने एक गहरी साँस भरी और सोचने लगी कि आखिरी बार मैंने उसे कब मौखिक सुख प्रदान किया था। काजल को मुख मैथुन केवल मैंने दिया था और वो भी एक ही बार। और उसको वो अनुभव अत्यंत पसंद आया था। उसको उम्मीद नहीं थी कि मुख-मैथुन से किसी स्त्री को परमानंद भी प्राप्त हो सकता है! वैसे भी काजल को अपने जीवन में जो भी सबसे सुखद संभोग के सुख मिले थे, वो सभी मुझसे ही मिले थे।
काजल को जल्दी ही फिर से वैसा ही सुखद अहसास होने लगा - जल्दी ही मेरी जीभ ने काजल को उसके कामुक आनंद के किनारे से परे धकेल दिया, और वो खुद को अपने बढ़ते हुए यौनानंद के सागर में विचरते पाने लगी। काजल मुझे सुख देने निकली थी, लेकिन अब स्वयं ही आनंद के सागर में गोते लगा रही थी। उसे नहीं पता कि उसने कितनी देर तक उस परमानंद को महसूस किया! लेकिन अंततः वो सुख के ज्वार से नीचे उतरी! गर्भावस्था में स्त्री शरीर की क्रिया-प्रणाली जैसे बदल जाती है। मुझे गैबी और काजल को कई कई बार यौन सुख देने की महारथ हासिल थी, लेकिन काजल मुझे एक और आश्चर्य देने वाली थी। जब काजल के यौन आनंद का ज्वार थमा, तब भी मैंने उसको मुख मैथुन देना जारी रखा। गर्भावस्था में उसकी योनि के होंठ मोटे हो गए थे; उसकी योनि रस का स्वाद भी बदल गया था। लेकिन फिर भी, काजल को प्रेम करना बंद नहीं किया जा सकता था। मैंने उसके भगशेफ़ और योनि के होंठों को अपनी जीभ से छेड़ना जारी रखा। कामातिरेक में आ कर वो मुझे रोकना चाहती थी, लेकिन रोक नहीं पा रही थी। पाँच मिनट के भीतर ही वो पुनः अपने चरमोत्कर्ष की कगार पर खड़ी थी। वो सर हिला हिला कर ‘न’ ‘न’ कर रही थी, लेकिन उसकी योनि और शरीर एक और चरमोत्कर्ष का आनंद लेने वाला था।
“ओ बाबा…” उसने एक दबी घुटी आवाज़ में कहा, लेकिन कुछ कह पाने से पहले ही वो एक और ओर्गास्म का आनंद लेने लगी।
मैंने ऊपर आँखें उठा कर देखा, तो पाया कि काजल के हाथ, उसके स्तन पर चले गए थे। उसकी तर्जनी और अंगूठा उसके एक एक चूचक को कुछ इस तरह मसल रहे थे कि उनमें से दूध की बूँदें निकलने लगी थीं और एरोला के इर्द-गिर्द चारों ओर फैल गईं। अब तो मेरे भी सब्र का पैमाना छलक गया था। काजल के सान्निध्य से मेरे मन का दुःख थोड़ा कम तो हो ही सकता था। मैंने अपने पायजामे का नाड़ा ढ़ीला किया और उसको अपने शरीर से तत्परता से हटा दिया। लेकिन मुखमैथुन तब तक जारी रखा, जब तक काजल को दूसरा ओर्गास्म पूरी तरह से नहीं मिल गया। जब वो थोड़ा शांत हुई, तब मैंने मैंने अपना लिंग उसकी योनि के सूजे हुए मुख के सामने रखा।
“रुको,” उसने कहा और बिस्तर पर ठीक से लेट गई।
कोई भी उसको देख कर कह सकता था कि सम्भोग के इस अंतिम कार्य के लिए वो कितनी तत्पर थी! काजल की अंतरंग अदाओं में एक खालिस शुद्धता थी। एक तरीके का अल्हड़पन था। उसने अपने पैरों को चौड़ा कर दिया, और उसके साथ उसकी योनि चौड़ी खुल गई! उसके नम, गुलाबी, मोटे होंठों, उसके पशम से घिरे हुए थे। हाँलाकि काजल की योनि का द्वार खुल गया था, लेकिन उसकी सुरंग ज्यादा नहीं खुली थी। पिछली बार जब हमने सम्भोग किया था तब उसका पेट इतना फूला हुआ नहीं था। लेकिन उस गर्भावस्था में भी वो बहुत सेक्सी लग रही थी।
“आई लव यू,” मैंने अपने लिंग को उसकी योनि में सरकाते हुए कहा।
हमारा यह सम्भोग बहुत संछिप्त होने वाला था - केवल कुछ ही धक्कों में हम दोनों हांफने लगे। मुझे अपने अंदर बहुत गर्म सा लग रहा था। काजल की योनि बहुत नरम और बहुत गीली महसूस हो रही थी। उघार काजल हमारे प्रथम सम्भोग को याद कर रही थी, कि कैसे उसने अपनी योनि को खिंचा हुआ महसूस किया था। वैसा ही अनुभव उसको इस समय हो रहा था, जबकि मैं मुश्किल से ही उसके अंदर था!
धक्के लगाते हुए मैं अपने कृत्या की नैतिकता और अनैतिकता के बारे में सोच रहा था। गैबी को इस संसार को छोड़े दो दिन हुए थे, और इतनी जल्दी उसके स्थान पर किसी अन्य स्त्री को रखना मुझे ठीक नहीं लग रहा था। लेकिन काजल के साथ सम्भोग करना इतना आनंददायक था कि मैं खुद को रोक ही नहीं पा रहा था। रोकना तो दूर की बात है, हमारे सम्भोग की गति भी तेज़ होने लगी। काजल की हरकतों से यह स्पष्ट था कि वो भी इसका मेरे जितना ही आनंद ले रही थी। उसके हाथ वापस उसके स्तनों पर आ गए थे, और उसके चूचकों को दबा कर उनसे दूध निकाल रहे थे! कामतिरेक से उसका मुंह खुला हुआ था। और मैं सोच रहा था कि क्या काजल को एक और ओर्गास्म आएगा!
मुझे उम्मीद तो थी, लेकिन मेरी उम्मीद से कहीं जल्दी काजल को तीसरा ओर्गास्म आ रहा था। इतने कम समय में तीन तीन ओर्गास्म! यह तो मैंने भी कभी नहीं सोचा था कि संभव है। लेकिन संभव है कि उसकी गर्भावस्था के कारण यह संभव हो सका! चरमोत्कर्ष की तीसरी लहार ने जल्दी ही काजल को अपनी चपेट में ले लिया, और ऐसा लिया कि उसे वापस उस शिखर से नीचे उतरने ही नहीं दिया। काजल को अपने पूरे शरीर में कामुक झुनझुनी होने लगी; उसकी योनि घर्षण के दर्द से जलने लगी; और मेरे धक्कों के प्रति उसकी संवेदनशीलता बढ़ती गई। उसके स्तन एक अलग ही तरह के यौनांग बन गए थे - उसकी सूजी हुई एरोला उसकी उंगली के प्रत्येक स्पर्श से एक मीठी मीठी कामुक तरंग उत्पन्न कर रही थी, और उसको पूरे शरीर में भेज रही थी। और उधर मुझे भी तीव्र स्खलन महसूस होने लगा। मेरे वीर्य से उसकी कोख भर तो गई, लेकिन उसमे तो पहले से ही एक बच्चा पल रहा था। लिहाज़ा, काजल को इस वीर्य से कोई लाभ नहीं मिलने वाला था।
उसने आँख खोल कर मुझे अपने आखिरी कुछ धक्के लगाते हुए देखा! यह उसके लिए एक बड़ा टर्न-ऑन था। मेरे चेहरे पर संतुष्टि के भाव देख कर काजल स्वयं भी संतुष्ट होती थी। जब मेरे शरीर की थिरकन भी शांत हुई, तो मैं काजल में गुत्थमगुत्थ हो कर लेट गया। जब कुछ पल ऐसे ही बिना कुछ कहे सुने बीत गए, तब तब हमने अपनी आँखें खोलीं। काजल शारीरिक रूप से चूर हो चुकी थी, और भावनात्मक रूप से भी। इतनी जल्दी जल्दी ओर्गास्म महसूस कर के उसको एक नए ही प्रकार की अनुभूति हो रही थी। वो मुझको ‘आराम’ देने चली थी, और खुद पूरी तरह से संतुष्ट हो चली थी।
“ओह अमर! तुम्हारा शिश्नो! मन करता है कि इसको हमेशा अपने अंदर ही रखे रहूँ!” उसने कहा।
“काजल,” मैंने गहरी साँस लेते हुए कहा, “क्या तुमको हो गया?”
काजल धीरे से हँसने लगी, “मेरे बुद्धू सनम, हाँ,” वो फुसफुसाते हुए बोली, “मेरा हो गया - एक बार नहीं, तीन तीन बार!”
उसने मुझे आलिंगन में भरते हुए कहा, “इधर आओ! मेरे पास!” और अपना एक स्तन मेरे मुँह में फिर से दे दिया।
मैंने भी अच्छे बच्चे की ही तरह उसके चूचक और स्तन का एक अच्छा-ख़ासा भाग अपने मुँह में भर लिया और पुनः उसको पीने लगा। तुरंत ही मुझे उसके मीठे दूध का आनंद मिलने लगा। काजल ने अपनी आँखें बंद कर लीं। सच कहूँ, मुझे कुछ पल पहले संपन्न हुए सम्भोग के मुकाबले, काजल का स्तनपान करने में अधिक सुख और शांति मिल रही थी। इसलिए मैं बड़ी फुर्सत से, काजल के सीने पर अपना सर टिकाकर, उसका स्तन पी रहा था। काजल भी बड़े प्रेम से मेरे सर के पिछले हिस्से पर हाथ रखे हुए मुझे आनंद लेने में मदद कर रही थी। लेकिन अंततः, उसके दोनों स्तन पुनः खाली हो गए।
“कैसा लगा, अमर?”
न जाने क्यों उसकी इस बात पर मेरा दिल दुःख गया - मुझे इस बात का बोध हो गया कि काजल ने क्यों खुद को मेरे सामने पेश किया? काजल के साथ प्रेम सम्भोग करना एक अलौकिक अनुभव था, लेकिन मुझे पता था कि यह काम उसने मुझे गैबी की मौत के दुःख से उबरने में मदद करने के लिए किया था। मैंने कुछ भी नहीं कहा। काजल ने कुछ पल इंतजार किया और फिर बोली,
“अमर, मेरी जान, ये तुम्हारा बच्चा है!” उसने लगभग चहकते हुए कहा।
इस पूरे घटनाक्रम के दौरान मैंने पहली बार काजल को अविश्वसनीय रूप से देखा... ‘क्या?’
काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “मेरे पेट में तुम्हारा बच्चा पल रहा है!” उसने बहुत प्यार भरे और शांत स्वर में अपनी बात दोहराई।
मुझे अभी भी विश्वास नहीं हुआ, ‘क्या! काजल ने ये क्या कहा?’
काजल इतने प्यार और स्नेह से मुस्कुराई कि मैं पिघल गया, “हाँ हनी... तुमने मुझे फिर से माँ बनने का उपहार दिया है…”
काजल कुछ देर और कुछ नहीं बोली; उधर मैं समझ ही नहीं पा रहा था कि इस नई खबर पर मैंने कैसी प्रतिक्रिया दूँ, “मैंने तुमको यह बात पहले नहीं बताई, क्योंकि दीदी भी पेट से थी... हर कोई सोचता है कि ये मेरे हस्बैंड का बच्चा है... लेकिन सच्चाई यह है कि यह तुम्हारा है। पिछले आठ महीने से मैंने उसको खुद को छूने भी नहीं दिया है!”
मैं मुँह खोले उसके आश्चर्यजनक बयान को सुन रहा था! काजल ने कहना जारी रखा,
“अमर... तुम चिंतित न हो... बिलकुल भी नहीं! मैं तुम पर किसी भी तरह का बोझ नहीं डालूँगी।”
मैंने उसे अविश्वास से देखा - ‘बोझ? चिंतित?’
अभी बस दो ही दिन पहले, मेरी जिंदगी पूरी तरह से टूट कर बिखर गई थी, लेकिन अब... अब फिर से रोशनी की एक किरण मुझे दिखाई देने लगी थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मन क्या कहूँ, और कैसी प्रतिक्रिया दूँ। मैं रोना चाहता था… मैं हँसना चाहता था… मैं इस बेहद महत्वपूर्ण जानकारी को मुझसे छिपाने के लिए काजल को थप्पड़ मारना चाहता था - लेकिन मैंने कुछ भी नहीं किया। बस अपलक दृष्टि से उसको देखता रहा।
nice update..!!पहला प्यार - पल दो पल का साथ - Update #5
और अचानक ही मेरा दिल एकदम से हल्का हो गया। मैंने अपना सर उसकी गोद में छुपा लिया।
“काजल, मुझसे शादी कर लो?” मैंने अंततः कहा!
“नहीं अमर।” काजल ने दृढ़ लेकिन बहुत नरम आवाज में कहा, जैसे कि वो पहले से जानती हो कि मैं क्या कहूंगा, “मुझे पता था कि तुम ऐसा ही कुछ कहोगे! तुम एक बेहद अच्छे इंसान हो। लेकिन मुझसे शादी मत करो। यह ठीक नहीं होगा। अगर मैं ग़ैर शादी-शुदा होती, तो तुरंत ‘हाँ’ कह देती। लेकिन अब नहीं। मुझे पता है कि तुम एक बाप के रूप में मेरे दोनों बच्चों को बहुत प्यार दोगे और मुझे अपनी बीवी के रूप में बहुत खुश रखोगे। लेकिन यह सही नहीं है।”
“लेकिन क्या यह ठीक होगा कि तुम्हारा हस्बैंड मेरे बच्चे की देखभाल करे?”
“अरे रुको तो सही! मेरी बात अभी ख़तम नहीं हुई है! देखो, मैं तुमसे शादी क्यों नहीं कर सकती - तुमको यह जानना बहुत ज़रूरी है। समाज में तुम्हारा एक कद है, प्रतिष्ठा है! मैं उस कद के सामने कहीं नहीं ठहरती हूँ। यह एक सच्चाई है, भले ही तुम इस बात को न मानो। ये बातें वास्तव में मायने रखती हैं।” उसने दो-टूक शब्दों में मुझे समझा दिया, और फिर बोली, “थोड़ा समय लो... लेकिन जितनी जल्दी हो सके गैबी दीदी की मौत के दुःख से बाहर निकलो... और जब तुम उस दुःख से थोड़ा उबर जाओ, तो प्लीज अपने लिए एक और अच्छी सी लड़की ढूंढो। मैं भी ढूँढूँगी।”
मेरे आँखों से आँसू निकलने लगे, “दीदी तो चली गई है। अब वो वापस नहीं आने वाली। इसलिए केवल उनकी यादों से सहारे जीवन बिताने का न सोचो! तुम्हारी उम्र ही क्या हुई है! अभी तुम जवान हो। तुमको फिर से प्यार मिलेगा, और तुमको फिर से प्यार मिलना भी चाहिए।”
काजल ने कहा, और मुझे देखा! मैं उसकी बात का जोरदार विरोध करना चाहता था, लेकिन मेरे दिल में, मैं समझ गया था कि उसने क्या कहा और यह कि उसकी बात सही भी थी। काजल ने जारी रखा,
“जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं हमेशा से तुम्हारी हूँ। मैं तुमसे प्यार करती हूँ। हमारा बच्चा हमारे प्यार की निशानी है। हम हमेशा ही इस बच्चे से जुड़े रहेंगे, चाहे हम कहीं भी हों।”
काजल की बातों पर मेरी आँखें भर आईं। मैं ठिठक गया। मैं कुछ कहना चाहता था - पता नहीं क्या - लेकिन कह नहीं पा रहा था। मुझे कभी भी इस तरह के भावनात्मक उतार-चढ़ाव की सवारी नहीं करनी पड़ी। लेकिन पिछले दो दिनों में जो कुछ मेरे साथ हो गया था, मुझे नहीं पता था कि उससे कैसे निपटना है। मुझे लग रहा था कि मेरा एक हिस्सा गैबी के साथ ही मर गया है, और अभी जा कर मालूम हुआ कि मेरा एक हिस्सा काजल के अंदर पनप रहा था, और जीवित था!
जीवन एक अद्भुत चीज है!
मैंने प्यार से काजल के पेट को छुआ। ‘काजल के पेट में मेरा बच्चा!’ कितनी अद्भुत सी बात है! कितनी बड़ी बात है! वो मेरे बच्चे को पाल रही थी। मेरे बच्चे को! यह दुर्भाग्यपूर्ण था कि उस बच्चे का पालन-पोषण कैसे हो, इस बारे में मेरी कोई दखलंदाज़ी नहीं होगी! एक पिता के रूप में ऐसे निर्णय लेने में मेरी कोई तो हिस्सेदारी होनी चाहिए न? काजल से इस बारे में उम्मीद तो थी कि वो इस बच्चे का लालन पालन अपने हिसाब से बेस्ट करेगी। लेकिन उसकी भी सीमाएं थीं। वो आर्थिक रूप से कमज़ोर थी। इस विचार ने मुझे फिर से दुःखी कर दिया। मेरी आँखों से फिर से आँसू ढलक गए तो काजल ने मुझे अपने सीने से लगा लिया। उसके इस ममता भरे आलिंगन का मुझ पर अजीब तरह से शांत करने वाला प्रभाव पड़ा।
मुझे नहीं पता कि मैं कब सो गया।
मैं तब जागा, जब मैंने माँ को मेरा नाम पुकारते हुए सुना। मैं काजल से लिपटा हुआ सो रहा था; वैसे माँ की आवाज़ सुन कर काजल भी जागने की प्रक्रिया में थी। माँ कमरे में थीं - इस बोध ने मुझे बिल्कुल भी परेशान नहीं किया। माँ से न तो मेरा ही कुछ छुपा हुआ था, और न ही काजल का! और तो और माँ को हमारे अंतरंग सम्बन्ध के बारे में मालूम भी था, और उसके लिए हमको उनका आशीर्वाद भी मिला हुआ था। एक तरह से माँ की वहाँ पर उपस्थिति, मुझे बहुत स्वाभाविक सी लगी।
“माँ…” मैंने कहना शुरू किया।
“अब तो कमरे का दरवाजा बंद करना शुरू दो!” मेरे बालों को सहलाते हुए वो मुस्कुराई।
तब तक काजल भी जगने लगी थी।
“तुम बहुत सुंदर लग रही हो, काजल, मेरे प्यारी बच्ची!” माँ ने उसके गाल को प्यार से सहलाते हुए कहा, “प्रेग्नेंट हो कर तो और भी प्यारी लग रही हो!” माँ ने कहा; उनकी आँखों से आँसू छलक पड़े। मुझे पता था - माँ के दिल में भी दर्द था। गैबी की मृत्यु से उनका दिल भी टूट गया था।
जवाब में काजल केवल मुस्कुराई। लेकिन वो थोड़ी शर्मिंदा थी कि माँ ने उसे उस नग्न, गर्भवती अवस्था में देख लिया था। उसने खुद को ढंकने की कोशिश की, लेकिन माँ ने उसे रोक लिया।
“नहीं नहीं। घबराओ नहीं! मुझे अपने आपको देखने दो, बेटा।”
माँ ने कहा और उसकी तरफ देखा; उन्होंने काजल के गर्भवती पेट और सूजे हुए स्तनों को प्यार से छुआ। काजल के स्तनों में पहले से ही अधिक दूध बन रहा था; लिहाज़ा उसके स्तनों को हल्का सा दबाने से ही दूध की कुछ बूँदें निकल गईं।
“तू पूरी सौभाग्यवती लग रही है मेरी बच्ची!” माँ ने बड़े लाड़ से कहा, और बोली, “सदा सुखी रहो! स्वस्थ रहो, प्रसन्न रहो! सौभाग्यवती रहो!” माँ ने कहा और काजल के माथे को चूमा और फिर कहा, “तेरा घर है ये! जैसा मन करे, वैसी रहा कर!” फिर कुछ देर ऐसे ही काजल को देखने के बाद, “अगर उठने का मन हो, तो उठा जाओ दोनों! डैड ने तुम दोनों को उठाने को बोला, इसलिए मैं आई!”
काजल ने शर्म से अपने हाथों से अपना चेहरा छुपा लिया। उसको लगा कि शायद डैड ने भी उसको ऐसी हालत में देखा ही होगा।
“शरमाओ मत बिटिया रानी! जैसा कि मैंने पहले भी कई बार कहा है कि हमारे लिए - मतलब मेरे और डैड के लिए - तुम हमारी बेटी ही हो! यहाँ तुमको जैसा मन करे, वैसे रहो! जो मन करे, वो करो! मेरी बेटी पर कोई रोक टोक नहीं होगी! कभी भी नहीं! हम तुमको अमर के जैसे ही प्यार करते हैं। समझी?” माँ कुछ देर रुकी और हमारी तरफ देखने लगी।
“अगर चाहो तो तैयार हो जाओ।” माँ ने अपने आँसुओं को रोकने के लिए हल्के से हँसने लगीं - साफ़ लग रहा था कि उनके मन में कितना दुःख है, “मैं सभी के लिए चाय बनाने जा रही हूँ। साथ में बैठ कर पीते हैं! न जाने किसकी नज़र लग गई मेरे परिवार को!”
माँ ने यह आखिरी वाला वाक्य बड़ी उदासी, बड़ी निराशा में कहा। आँसुओं की बड़ी-बड़ी बूँदें उनके गालों पर गिर पड़ीं। इस दृश्य ने न केवल मेरे ही दिल को, बल्कि साथ ही काजल के दिल को भी बींध दिया। मुझे पता था कि गैबी के निधन से माँ और डैड दोनों ही टूट गए थे! माँ उठीं और बाहर जाते जाते कमरे के दरवाज़े को बंद करती गईं।
“चाय से पहले थोड़ा दूध?” काजल ने माँ के जाने के बाद पेशकश की।
“कब तक ऐसा करती रहोगी काजल?”
“जब तक मैं कर सकती हूँ, मैं करती रहूँगी! समझे?” काजल ने ममतामई अंदाज़ में कहा, “तुम इस बच्चे के बाप हो, लेकिन कई मायनों में, तुम खुद भी मेरे बच्चे जैसे ही हो! बुरा मत मानना... लेकिन, अक्सर जब मैं तुमको देखती हूँ, तो मैं एक आदमी कम, और एक बच्चा ज्यादा देखती हूँ! मुझे तुम्हारी वैसी ही परवाह है जैसी मुझे सुनील और लतिका की है! यह एक अजीब सी बात है! और मैं इसे समझा नहीं सकती। लेकिन बस यही सच है!”
“आई लव यू, काजल।”
“मुझे पता है। मैं भी तुमसे प्यार करती हूँ। दूध नहीं पीना है, तो चलो, कपड़े पहन लें।”
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कमरे से बाहर आ कर मैंने माँ और डैड को काजल के होने वाले बच्चे के बारे में बताया... और मुझे आश्चर्य हुआ जब वे दोनों यह खबर सुनकर बेहद खुश हुए। मैंने उनसे कहा कि मैंने काजल को मुझसे शादी करने के लिए कहा था। मुझे लगा था कि शायद वो दोनों इस बात को ठीक से न लें, लेकिन दोनों ही इस बात से सहमत ही लगे।
“माँ, डैड - आप दोनो को एक बात बतानी है।”
“हाँ बेटे, बोलो।” डैड ने कहा।
“जी, वो, काजल... काजल मेरे बच्चे की माँ बनने वाली है!”
“क्या? क्या सच में?” माँ और डैड दोनों ही खुश होते हुए बोले।
काजल ने शर्म से अपना चेहरा नीचे कर लिया।
“हे भगवान!” माँ खुश होते हुए बोलीं, “तेरा लाख लाख शुक्र है प्रभु! मेरे परिवार पर अभी भी आपकी दया बनी हुई है!”
“काजल बेटा… अगर तुम दोनों एक दूसरे से शादी करना चाहते हो, तो हमें कोई आपत्ति नहीं है।” डैड ने बड़े स्नेह से काजल से कहा, “तुम हमारी बेटी ही हो, और तुमको अपनी बहू के रूप में स्वीकारने में हम दोनों को बहुत खुशी होगी।” डैड ने कहा।
“बाबूजी, आप लोग बहुत ही सज्जन लोग हैं! आपके परिवार का हिस्सा बनना तो किसी वरदान से कम नहीं होगा! आपने मुझे अपनी बेटी कहा, मैं तो उसके लिए ही हमेशा आपका आभारी रहूँगी।” काजल ने अश्रुपूरित होते हुए कहा, “लेकिन प्लीज! शादी के लिए न कहें! मैं आपकी स्थिति का - मजबूरी का - फ़ायदा नहीं उठाना चाहती! इस समय हम सभी बहुत दुःख में हैं... और जब हम शोक मना रहे हैं, तो फिलहाल शादी-ब्याह की बातें करना अच्छी बात नहीं है।”
“लेकिन बेटा, इसमें क्या बुराई है? और, ये तो अमर का ही तो बच्चा है ना!”
“जी, बाबूजी, ये अमर का ही बच्चा है। लेकिन मैं केवल इसलिये ही उस पर शादी का दबाव नहीं बना सकती!”
“दबाव? कैसा दबाव काजल!” मैंने विरोध किया!
“अमर, ज़रा एक मिनट रुको! मेरी बात ख़तम नहीं हुई है।” काजल ने मेरी बात को बीच में काटते हुए कहा, “मां... बाबूजी, अमर अभी भी बहुत छोटा है... बाइस का भी नहीं हुआ है! और मैं नहीं चाहती कि वो इतनी कम उम्र में अपने बच्चे के साथ साथ, मेरे भी दो बच्चों को पाले, और उनको बड़ा करे।”
“काजल बेटा! ये क्या कह दिया तुमने? हैं? एकदम से हमें पराया कर दिया? क्या तुम्हारे बच्चे हमारे कुछ नहीं लगते?”
“ऐसा नहीं है बाबूजी। बिलकुल लगते हैं! आप मेरी बात के लिए प्लीज मुझे माफ कर दीजिए! लेकिन मैंने यह सब आपको ठेस लगाने के इरादे से नहीं कहा। हम सब आपके ही हैं। आपके ही बच्चे हैं हम! आपके घर का, आपके ही परिवार का हिस्सा! और यह सच तो है ही कि सुनील अमर में अपने पिता की छवि देखता है। यह बात कभी बदलने वाली नहीं - चाहे अमर मुझसे शादी करे, या नहीं।”
“लेकिन बेटा, तुम्हारा हस्बैंड?” माँ ने चिंता जताई।
“हाँ, उसे संदेह है कि यह उसका बच्चा नहीं है। मुझे तो लगता है कि वो जानता है कि यह अमर का बच्चा है। पिछले आठ महीनों से हमने कुछ नहीं… कुछ नहीं किया…” काजल चुप हो गई, लेकिन हम सब समझ गए।
“लेकिन यह तो तुम सभी के लिए बहुत खतरनाक बात है, काजल! ख़ास कर बच्चों के लिए।” माँ की चिंता जायज़ थी।
“मैं उसे तलाक दे दूँगी, माँ जी। मैं उसके साथ नहीं रह सकती।”
“काजल… मेरी बच्ची, तू अपने हस्बैंड के साथ अगर खुश नहीं है तो उसे छोड़ दे।” माँ ने न केवल काजल को समझाया, बल्कि एक तरीके से उससे गुहार भी लगाई, “पति अगर प्रेम करे, तब ही वो अपनी पत्नी ला परमेश्वर होता है। मार-पीट करने वाला पति, पति नहीं होता! वो दुष्ट होता है! तू हमारे साथ रह!”
“क्या सच में माँ जी?”
“और क्या! ये कोई मज़ाक थोड़े ही है! तेरे और बच्चों के भविष्य का सवाल है!” डैड ने कहा।
“ओह बाबूजी, माँ जी! थैंक यू सो मच!”
“अच्छा, तो तू इतनी बड़ी हो गई कि हमको थैंक यू बोल सके?” डैड ने बड़े प्रेम से काजल को डाँटा, “मुझे तो लगता था कि माँ बाप का सब कुछ उनके बच्चों का ही होता है!”
“माफ़ कर दीजिए बाबूजी! मैं भूल गई थी!” काजल ने कहा।
डैड ने काजल को अपने आलिंगन में भरते हुए कहा, “काजल बेटे, तुम हमारी बेटी हो! विधाता ने कुछ सोच कर ही हमको मिलाया है! तुम उसको (अपने हस्बैंड को) छोड़ दो और हमारे साथ चलो! सुनील और लतिका को अमर के स्कूल में दाखिला मिल जाएगा। और इस बच्चे को एक सुरक्षित घर! तुम हमारे साथ रहो - यह तुम्हारा अधिकार है। और अपनी बेटी की रक्षा करना हमारा अधिकार और धर्म, दोनों है!”
यह कह कर डैड ने काजल का माथा चूम लिया! उधर काजल डैड के आलिंगन में सिमट कर ज़ोर ज़ोर, से सिसक सिसक कर, रोने लगी! मुझे मालूम था कि यह उसकी ख़ुशी के आँसू हैं। डैड ने उसको अपने से इस तरह दुबका लिया जैसे छोटे बच्चे को स्वांत्वना देने के लिए करते हैं।
हमने कुछ और देर तक साथ में बातें करीं और काजल से इस बच्चे के बारे में उसका प्लान जानना चाहा। माँ और डैड इस बात से निराश हुए कि काजल नहीं चाहती थी कि मैं उस बच्चे को अपना नाम दूँ । लेकिन जब काजल ने उनसे तथ्यों के साथ बहस की, तो वे मान गए! उन्होंने यह भी माना कि काजल का मुझसे शादी न करने का निर्णय अपनी जगह पर सही था। खैर, माँ और डैड उस अजन्मे बच्चे के लिए कुछ करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने उसके लिए एक जीवन बीमा लिया, जिससे उसको शिक्षा और शादी के लिए किसी भी चुनौती का सामना न करना पड़े। उसके साथ ही सुनील और लतिका के लिए भी बीमा लिया। सभी बच्चों की उम्र कम थी, और इसलिए बीमा का प्रीमियम भी बहुत कम था।
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माँ और डैड तीन चार और दिनों तक मेरे साथ रहे, लेकिन फिर उनको वापस जाना पड़ा। उनके जाने के बाद, मैं यह शहर छोड़ने और किसी दूसरी जगह पर नौकरी लेने का मन बनाने लगा। मुझे मालूम था कि अब इस घर पर मेरा अकेला रह पाना असंभव था। इस घर की लगभग हर चीज़ मुझे गैबी की याद दिलाती थी। और अगर मुझे आगे बढ़ना था, तो इतना बलिदान तो करना ही पड़ेगा!
हालाँकि, काजल इस फैसले के बारे में जान कर बेहद दुःखी हुई। उसने मुझे यहीं रुकने के लिए मनाने की बहुत कोशिश की। वह जानती थी कि गैबी की मौत ने मुझे कैसे प्रभावित किया है! इसलिए उसने मुझे मेरे दुःख से पार पाने में मदद करने के लिए यथासंभव सब कुछ करने का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया। अपने हस्बैंड के साथ उसका सम्बन्ध लगभग समाप्त हो गया था, इसलिए मेरे ही कहने पर वो फिलहाल सुनील और लतिका समेत मेरे साथ ही रहने लगी। आस पास थोड़ी बदनामी तो होने लगी थी, लेकिन मुझे उसकी कोई परवाह नहीं थी। लोगों के कहने पर न तो मैं कभी चला था, और न चलने वाला था। काजल को मेरी, और मुझको काजल की आवश्यकता थी।
काजल ने मेरी देखभाल तब तक करी जब तक वो कर सकती थी! लेकिन, आखिरकार अब उसको खुद ही देखभाल की जरूरत पड़ गई। मैं उसके लिए हवाई जहाज़ का टिकट बुक करना चाहता था, लेकिन वो काजल के लिए बहुत मुश्किल हो जाता! इसलिए, मैंने काजल, सुनील के लिए एक वातानुकूलित, द्वितीय श्रेणी के डिब्बे में रेल टिकट बुक किया। उधर, जाने से पहले काजल ने अपने पति से तलाक़ लेने की अर्ज़ी अदालत में दे दी। कम से कम एक स्यापा तो छूटे!
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nice update..!!दोस्तों - यह लीजिए आज का अपडेट! थोड़ी देरी के लिए माफ़ी चाहता हूँ।
यह अपडेट एक तरीके का अंतराल है - अमर-गैबी वाले phase से आगे वाले phase में जाने से पहले!
जैसा जीवन में होता है - यह अंतराल कुछ मिठास लिए हुए था, और कुछ खटास भी!
उम्मीद है पढ़ कर अच्छा लगा। जल्दी ही मिलते हैं, अमर के 'मोहब्बत के सफर' के अगले पड़ाव पर
अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव अवश्य बताएँ!!
waiting for next..!!पहला प्यार - पल दो पल का साथ - Update #6
उसका पति थोड़ा झंझट करना चाहता था, लेकिन मैंने उसको अपने जानकार लोगों की मदद से समझाया कि तलाक देने में ही उसकी भलाई है, क्योंकि काजल उससे खुद के लिए, और अपने बच्चों के लिए किसी तरह की अलीमनी नहीं मांग रही थी। लेकिन अगर वो तलाक देने में आनाकानी करता है, तब हमको अलीमनी माँगने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। इसके तुरंत बाद दोनों पार्टियाँ तलाक के लिए रज़ामंद हो गईं। अच्छा हुआ - उस बेवड़े और लम्पट आदमी से छुटकारा मिला। वो शराबी था और काजल और बच्चों को मारता पीटता था। कोर्ट में शुरू में उसने काजल के खिलाफ बेवफाई का केस किया था, लेकिन उसके खिलाफ पत्नी प्रताड़ना और डोमेस्टिक वायलेंस के इतने काफी सबूत थे कि उसने अपना केस वापस ले लिया। कोर्ट ने उसे कभी भी काजल या उसके बच्चों के पास भी न फ़टकने की हिदायद भी दी। ऐसा करने से उसको कम से कम एक साल की जेल हो जानी थी। काजल को उससे कोई गुजारा भत्ता नहीं मिला। यह कोई परेशानी वाली बात नहीं थी - वैसे भी वो जल्दी ही माँ और डैड के साथ रहने जा रही थी।
डैड की आय अब इतनी बढ़ चुकी थी कि वो माँ समेत, काजल और उसके बच्चों की सभी जरूरतों को आराम से पूरा कर सकें! वैसे काजल भी मितव्ययी थी - माँ के जैसी ही! जोड़ जोड़ कर घर बनाने में उसको भी उतना ही विश्वास था, जितना माँ को था। खैर, माँ डैड के साथ रहने में सबसे बड़ी अच्छी बात यह थी कि काजल और बच्चे स्वतंत्र रूप से और बड़ी खुशी से अपना जीवन जी सकते थे! बिना किसी ऋण या बाध्यता के! माँ और डैड के स्नेहमय संरक्षण में!
काजल उनके साथ रहने तो लगी, लेकिन इस शर्त पर कि वो घर का सारा काम करेगी। माँ ने उसका दिल रखने के लिए हाँ कह दी, क्योंकि बिना इसके वो ज़िद पकड़े हुए थी। बिना यह सोचे कि उसको आराम की आवश्यकता थी, और बच्चा होने के बाद उसकी देखभाल में उसका समय जाएगा। वैसे भी, गर्भावस्था में अधिकांश स्त्रियाँ थोड़ी सनकी हो ही जाती हैं! काजल भी कोई अपवाद नहीं थी!
मैं जिस स्कूल में पढ़ता था, उसमें ही सुनील का दाखिला हो गया। जुलाई का महीना था और उसकी दसवीं की क्लास शुरू ही होने वाली थी। ऐसे तो किसी बच्चे को दसवीं में सत्र के बीच में ही दाखिला नहीं मिलता, लेकिन सुनील के अब तक के प्रदर्शन और उसके लिए मेरी खुद की अनुशंसा पर उसको दाखिला मिल गया। इस समय तक, हमारा घर थोड़ा और बड़ा हो गया था! डैड ने घर में एक और कमरा जोड़ दिया था। यह नया कमरा सुनील को दे दिया गया था, जिससे वो अपनी पढ़ाई लिखाई पर बेहतर तरीके से ध्यान दे सके। मेरा कमरा काजल और लतिका को दे दिया गया था, क्योंकि लतिका अभी बहुत छोटी थी! उसको अपने खुद के कमरे की आवश्यकता नहीं थी।
उधर काजल के लिए यह समय उसके जीवन में एक अद्भुत मोड़ के जैसे आया! उसने कभी नहीं सोचा था कि उसके जीवनकाल में ऐसा कुछ संभव भी था। वो अधिकांश समय सुनील और लतिका को कुछ सुविधाएं मुहैया कराने का ही सपना देखती रहती थी कि वो दोनों ढंग से शिक्षित हो सकें, और अपने जीवन में कुछ मुकाम, कुछ सफलता हासिल कर सकें। अपने पति के साथ रहते हुए यह कुछ भी संभव नहीं हो पा रहा था, लेकिन अब, उससे अलग हो कर, और माँ और डैड के आशीर्वाद से, यह सब कुछ संभव होता जा रहा था! काजल माँ और डैड के साथ रहकर और उनकी देखभाल करके बहुत खुश थी। माँ और डैड अद्भुत प्राणी थे! वो दोनों ऐसे लोग थे, जो स्नेही लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करते थे। काजल बहुत स्नेही थी, और वो उनका सान्निध्य पा कर बहुत खुश हो गई थी।
जीवन बहुत अद्भुत तरीके से चलता है। हम कहाँ से आये हैं, और किधर को जाएँगे - यह सब कुछ ऊपर बैठा हुआ सृष्टि-निर्माता बहुत ही आश्चर्यजनक रूप से निर्धारित करता रहता है। हम मनुष्यों को उसकी चाल कुछ समझ में नहीं आती है! साल भर पहले मैं काजल को जानता भी नहीं था। और आज वो मेरे परिवार का अभिन्न हिस्सा बन गई थी! गैबी जिस गति में मेरे जीवन में आई, उसी गति से चली भी गई! माँ बा बनना था मुझे और गैबी को, और बन रहे थे मैं और काजल! और दुर्भाग्य ऐसा कि उस बच्चे को मेरा नाम नहीं मिलने वाला था! काजल मुझसे बंधी तो हुई थी, लेकिन स्वतंत्र भी थी! वैसे भविष्य में काजल और मेरे परिवार की बेल किस क़दर आपस में लिपट जाएगी, मैंने कभी उसकी कल्पना भी नहीं की थी! खैर, वो सब तो भविष्य के गर्भ में है! उसको अभी से जान कर क्या मिलने वाला है? फिलहाल तो हम वर्तमान में रहते हैं!
सुनील की हाई स्कूल की शिक्षा माँ और डैड के साथ रहते हुए ही शुरू हुई। वो तेजी से बड़ा हो रहा था... और वह बड़ा होते हुए, एक बहुत ही संवेदनशील, ईमानदार, और ज़िम्मेदार युवक बन रहा था। वो उन समस्त चुनौतियों को अच्छी तरह से समझता था जिनका सामना उसकी अम्मा ने अब तक अकेले ही किया था! मन ही मन वो डैड और माँ के उन सभी समर्थन के लिए आभार रखता था! आज के समय में कोई किसी के लिए यह सब नहीं करता! कोई अपना घर किसी अनजान के लिए यूँ नहीं खोल देता! वो अब एक सम्मानजनक जीवन जी रहा था, और अच्छी शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम था - यह सब माँ और डैड के पुण्य प्रताप से ही संभव हो रहा था! और वो इस अवसर का पूरा सदुपयोग करना चाहता था। इसलिए वो पूरी लगन और कड़ी मेहनत के साथ पढ़ाई कर रहा था। वो चाहता था कि मेरे ही समान, वो उच्च शिक्षा के एक विशिष्ट संस्थान में प्रवेश कर सके! और आने वाले जीवन के लिए खुद को अच्छी तरह से तैयार कर सके... ताकि वो अपनी अम्मा और छोटी बहन की ढंग से देखभाल कर सके।
सुनील को अपनी अम्मा की बढ़ती गर्भावस्था के बारे में पता था। काजल ने उसको बताया था कि यह बच्चा उसके और मेरे प्यार का फल था, जो उसके अंदर पल रहा था। सुनील को सेक्स की प्रक्रिया के बारे ज्ञान था। वो इस मामले में मेरे जैसा बुद्धू नहीं था। मेरे शरीर ने जवानी की अंगड़ाई देर से ली थी, लेकिन सुनील में नहीं। पिछले छः सात महीनों में वो किशोरावस्था से जवानी की दहलीज़ में कदम रख चुका था। लेकिन काजल ने उसको पाशविक सेक्स के बजाय उसके प्रेमपूर्ण, मानवीय पक्ष के बारे में जागरूक किया - वो पक्ष, जो केवल संभोग के कार्य पर केंद्रित नहीं है। सेक्स तो कोई भी कर सकता है - जानवर भी करते हैं। लेकिन मनुष्य में इसे सही कारणों से किया जाना चाहिए... प्रेम जैसे कारणों से! सेक्स और प्रेम साथ में चलना चाहिए - एक के बिना दूसरे का कोई औचित्य नहीं है। यह बात उसे समझ में आई। सुनील ने मेरे और गैबी के, और मेरे और काजल के प्रेम को देखा था, और उसको हमारे सक्रिय प्रेम जीवन के बारे में भी संज्ञान था। हमारे साथ ही उसको माँ और डैड के भी अंतरंग जीवन के बारे में मालूम हुआ! हम सभी से उसको यह मालूम हुआ कि हम अपने अपने साथियों से बेहद प्रेम करते थे। लिहाज़ा, सुनील को पक्का यकीन हो गया कि एक संतुष्टिदायक यौन संबंध होने के लिए सच्चा प्यार होना चाहिए…! उसको मालूम था कि उसके जीवन में भी यह पड़ाव आएगा - लेकिन फिलहाल नहीं! अभी उसे अपने काम पर ध्यान देना था - काम, मतलब लगन के साथ अपनी पढ़ाई पूरी करना!
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काजल की संगत और देख रेख में, माँ और डैड के जीवन में भी कई सारे सुधार हुए! उनको एक दूसरे के लिए थोड़ा और अधिक समय मिलने लगा। माँ को घर के काम से थोड़ी फुर्सत मिलने लगी। और सबसे बड़ी बात यह कि एक लम्बे अर्से के बाद, माँ को अपनी हमउम्र एक सहेली मिल गई। काजल बहुत ही जल्दी उनकी विश्वासपात्र बन गई, और माँ की बेहद करीबी दोस्त। दोनों उम्र में लगभग एक समान थीं, और हालाँकि, काजल माँ को ‘माँ जी’ कह कर संबोधित करती थी, उनका रिश्ता बहनों वाला अधिक था! दोनों के आपसी व्यवहार में चंचलता और स्नेह भरा हुआ था - सगी बहनों के जैसे! साथ में रहते हुए एक बार भी ऐसा नहीं हुआ कि किसी को भी एक दूसरे से कभी भी कोई शिकायत हुई हो! अपनी गर्भावस्था में भी काजल माँ और डैड की देखभाल करने की पूरी कोशिश करती। लेकिन माँ अपने तरीके से काजल, और उसके बच्चों की! कुल मिलाकर काजल का उनके साथ रहना बहुत ही अच्छी बात रही, और यह अनुभव उन पाँचों के लिए काफी मजेदार रहा। मेरे परिवार का कम से कम एक पक्ष इस समय खुशी से रह रहा था!
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गैबी की मृत्यु के कुछ दिनों के बाद मैंने गैबी के परिवार से संपर्क किया! उनका हमारी शादी को ले कर जो भी विचार था, वो गैबी के बारे में जानने के उनके अधिकार को वंचित नहीं कर सकता था। गैबी उनका परिवार थी, और उनको उसकी मृत्यु के बारे में जानना आवश्यक था। मैंने उनके फोन किया - फ़ोन गैबी की माँ ने ही उठाया। जब मैंने उनको अपना परिचय दिया, तो मैंने महसूस किया देखा कि वो पहले जैसे ‘गंध’ तरीके से बर्ताव नहीं कर रही थीं। अपितु बड़े सौहार्द से बातचीत कर रही थीं। वह अपने तौर-तरीकों में थोड़ी शांत लग रही थीं। शायद उनको यह भान हुआ हो कि अपने दामाद से इज़्ज़त और स्नेह से पेश आना चाहिए! हमने कुछ देर एक दूसरे के कुशल-क्षेम के बारे में जाने का प्रयास किया। लेकिन जब मैंने उनको गैबी के निधन के बारे में बताया, तो वो बिलकुल ही टूट गईं और बिलख बिलख कर रोने लगीं। उनको रोता हुआ देख कर गैबी के डैड और भाई मुझसे बात करने लगे। मैंने उन्हें गैबी की दुर्घटना के बारे में, उसकी मृत्यु के बारे में, उसकी गर्भावस्था के बारे में, और कैसे मैंने अपना सब कुछ खो दिया, उसके बारे में बताया। गैबी उनकी बेटी थी, इसलिए उसकी मृत्यु उनके लिए भी बहुत बड़ा सदमा बन कर आई। लेकिन उनको यह भी मालूम था कि हमारा प्रेम बहुत प्रगाढ़ था, इसलिए वो स्वयं रोने के साथ ही मुझको स्वांत्वना भी देते जा रहे थे। कुछ देर की मान मनौव्वल के बाद मैंने उन्हें बताया कि मुझे गैबी की जीवन बीमा राशि मिलने वाली है, और मैं वो धनराशि उनको भेजना चाहता हूँ। बीमा राशि करीब करीब पचास हजार ब्राज़ीलियाई रियल [उन दिनों पंद्रह लाख भारतीय रुपये] के करीब था। यह एक अच्छी धनराशि थी, और उनके काम आ सकती थी।
लेकिन मुझे घोर आश्चर्य तब हुआ जब गैबी की माँ ने बड़े सम्मानपूर्वक, पैसे लेने से मना कर दिया। उन्होंने अपने पहले के अशिष्ट व्यवहार के लिए मुझसे क्षमा भी माँगी। फिर उन्होंने मुझे गैबी की देखभाल करने और उससे शादी करने के लिए धन्यवाद भी किया। मुझे बहुत दुःख हुआ कि गैबी अपने जीवित रहते हुए हमारे इस सौहार्दपूर्ण वार्तालाप को नहीं सुन सकी! क्या वर्षा, जब कृषि सुखानी का इससे दुःखद उदाहरण नहीं मिल सकता। गैबी की माँ और उसके डैड ने मुझसे कहा कि मैं हमेशा ही उनके परिवार का एक हिस्सा रहूँगा और अगर कभी भगवान अनुमति होगी, तो वो दोनों किसी दिन मुझसे व्यक्तिगत रूप से मिलना पसंद करेंगे। चलते चलते उन्होंने मुझे समझाया कि मैं गैबी के ग़म में ही डूबा न रहूँ। अगर हो सके, तो दूसरी शादी करूँ। गैबी मेरी इस हरकत पर खुश ही होगी! मैंने उनका धन्यवाद किया, और उनको भारत आने का निमंत्रण दिया। अवश्य ही गैबी के मेरा संपर्क हमेशा के लिए टूट गया था, लेकिन हमारी आत्माएँ हमेशा आस पास ही थीं। उस कारण से गैबी का परिवार एक तरीके से मेरा परिवार भी था। और उनसे सम्मानजनक रूप से बात कर के मुझे उनसे भविष्य में भी संपर्क रखने का सम्बल मिला।
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जब भी संभव होता मैं काजल से मिलने घर अवश्य जाता! हर महीने में दो बार जाना होता ही था। जब काजल की डिलीवरी का समय नजदीक आया, तो काजल पश्चिम बंगाल में अपने गृहनगर के लिए रवाना हो गई। उसको अपने मायके की याद आ रही थी, और वो गर्भावस्था के इस महत्वपूर्ण चरण में उनके साथ रहना चाहती थी। लतिका उसके साथ चली गई, क्योंकि वो बहुत छोटी थी, लेकिन सुनील माँ और डैड के साथ ही रहा, क्योंकि काजल के साथ जाने पर उसकी पढ़ाई में बहुत हर्ज़ा होता। लगभग उसी समय, मैंने नई नौकरी देखना भी शुरू कर दिया। मुझे उम्मीद थी कि नई नौकरी किसी नए शहर में मिलेगी। कम से कम पुरानी यादों से थोड़ा छुटकारा तो मिलेगा।
चूँकि इस समय मैं बिलकुल अकेला था, इसलिए माँ मेरे साथ आकर रहना चाहती थीं। लेकिन मैंने उनको मना कर दिया। डैड का अभी भी रिटायरमेंट होने में पंद्रह साल का समय बचा हुआ था। उनको इस बीच कई प्रमोशन मिलते। साथ ही साथ माँ पर सुनील के देखभाल की भी जिम्मेदारी आ गई थी। इसलिए उनको वहाँ से हटाना उचित नहीं था। माँ और डैड मेरी बात समझ गए और मेरी कुछ महीने अकेले रहने की इच्छा पर सहमत हो गए। मैंने उनको अपनी नई नौकरी ढूंढ़ने के बारे में बताया और यह भी बताया कि नई नौकरी से मेरी ऊर्जा का सही इस्तेमाल होगा। व्यस्त रहूँगा तो मस्त भी रहूँगा।
अब चूँकि मैं अकेला ही था - मेरी देखभाल करने वाला कोई न होने के कारण, मैं अपने ऑफिस में बहुत समय बिताने लगा। मैं अपने घर का उपयोग केवल सोने के लिए करने लगा। गैबी के जाने का शॉक बहुत गहरा था। उसका सही सही आंकलन मैं अभी तक नहीं कर पाया था। इस नाज़ुक से समय में, मेरे एक बहुत करीबी दोस्त ने मुझे एक पेशेवर मदद लेने के लिए कहा। उसने मुझे समझाया कि मुझे किसी ढंग के मनोचिकित्सक से सलाह लेना चाहिए, और यदि आवश्यक हो तो दवाई का भी बंदोबस्त करना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि गैबी के जाने के भावनात्मक सदमे से मुझे कहीं अंदरूनी घाव न हो जाए! मैंने उसकी बात मान ली, और मैंने एक अच्छे मनोचिकित्सक को देखना शुरू हुआ! उसकी देखरेख में मुझे लाभ अवश्य मिला। जल्दी ही मैंने अपने तौर तरीके में सुधार लाना शुरू कर दिया।
उधर काजल के साथ हर सप्ताह कम से कम एक बार फ़ोन पर बात करना एक आवश्यक काम था। अगर उससे बात न होती, तो वो बहुत नाराज़ होती। जब उसकी डिलीवरी के दिन निकट आ रहे थे, तो मैंने उसके घर फोन किया। वहाँ किसी ने फोन उठाया नहीं। मैंने प्रतिदिन कॉल करना शुरू कर दिया, क्योंकि मुझे लग रहा था कि बच्चे की कोई खबर आने ही वाली है। कोई एक सप्ताह बाद मुझे किसी से मालूम हुआ कि मैं तीन दिन पहले एक प्यारी सी बच्ची का बाप बना था! क्या बात है! मैं इस खबर को सुन कर बेहद खुश हुआ, और थोड़ा उदास भी! उदास इसलिए क्योंकि मैं काजल के पास जाना चाहता था। लेकिन यह संभव नहीं था। काजल का पति नहीं था - अगर वो वहाँ नहीं था, तो मैं वहाँ किस हक़ से था? इस सवाल का उत्तर नहीं था मेरे पास! मेरी उपस्थिति से उसको भी कई मुश्किल प्रश्नो के उत्तर देने पड़ते! काजल ने मुझसे यह बात साफ़ साफ़ बोल दी थी, कि बिना उसकी अनुमति के मैं हमारे बच्चे के जीवन में कोई निर्णय नहीं ले सकता था। लिहाज़ा, हमने कुछ महीनों बाद मिलने का वायदा किया। मैं इस बीच इंतज़ार करने के अलावा और कुछ नहीं कर सकता था। बीच बीच में वो मुझसे पूछती, कि कोई लड़की मिली या नहीं। और मैं उसको बस डाँट कर चुप करा देता।
मेरी बच्ची से मेरी मुलाकात होती, उसके ही पहले मुझे एक और बुरी खबर मिली - जन्म से लगभग एक महीने बाद, डैड ने मुझे फोन कर के बताया कि मेरी बच्ची की मृत्यु इंसेफेलाइटिस से हो गई है। यह रोग उस समय काजल के गाँव में काफी प्रचिलित था। वहाँ पर पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं, लिहाज़ा, डॉक्टर उस बच्चे को बचा नहीं पाए! कैसी निराशाजनक सी बात थी यह! किसी अन्य जगह पर अगर काजल होती, तो इस तरह की दिक्कत होती ही न!
मैं परेशान हो गया था।
मैं निराश हो गया था।
मैं मायूस हो गया था।
किसको दोष दूँ अपने दुर्भाग्य के अतिरिक्त? मुझे ऐसा लगने लग गया था कि दुःख के अतिरिक्त मेरे जीवन में कुछ और नहीं बचा था! डैड ने मुझे खुद को सम्हालने को कहा और मुझे दिलासा दी। उन्होंने मुझे एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण दिया : उन्होंने मुझे समझाया कि जहाँ मैंने अपनी संतान खोई है, वहाँ काजल ने भी अपनी नवजात बेटी को खो दिया था! वो बच्ची काजल और मेरे प्यार का प्रतीक थी! उसने नौ महीने तक उस बच्चे को अपने अंदर पाला पोसा था। एक माँ के लिए अपनी संतान खोना कितने दुःख की बात होती है, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल था मेरे लिए! बात तो सही थी। मुझे डैड का दृष्टिकोण समझ में आ गया। फिर डैड ने मुझसे कहा कि वो काजल को घर लिवाने उसके गाँव जा रहे हैं। मुझे लगा कि यह अच्छी बात है।
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मेरी नई नौकरी गैबी के जाने के लगभग दस महीने बाद लगी। नया काम बहुत अच्छा था, और चुनौतीपूर्ण था! मेरे वेतन में भारी वृद्धि मिली थी, और काम में मुझे एक बेहतर रोल भी मिला था। मैंने अपना सारा ध्यान अपने नए काम में लगा दिया। गैबी, मेरी अजन्मी संतान, और मेरी काजल के साथ हुई बेटी - इन तीनों की मृत्यु के दुःख को कम करने का मेरा यही तरीका था! मैंने बहुत मेहनत से, और जी लगा कर काम किया और कुछ ही महीनों में मैं टीम का एक मूल्यवान सदस्य बन गया। किसी नए मेंबर ने मेरे जितनी जल्दी तरक्की नहीं करी। मैं अपने काम में लीन था, और जल्दी ही ऑफिस के महत्वपूर्ण सर्किलों में प्रसिद्ध हो गया।
जल्दी ही मैं अपने नए काम में सहज और सिद्धहस्त हो गया। और आगे जो हुआ, वो कभी पहले उस कंपनी में नहीं हुआ। मुझे छः महीने में उस कंपनी में प्रमोशन भी मिल गया। परिवीक्षा अवधि (प्रोविशनल पीरियड) स्वयं ही छः महीने लंबी थी, और उतनी अवधि में पदोन्नति प्राप्त करना एक अद्भुत उपलब्धि थी! कंपनी की लीडरशिप ने मुझे एक ‘फास्ट-ट्रैक लीडरशिप कैंडिडेट’ के रूप चिन्हित किया, जो कि मेरे करियर के लिए बेहद अच्छा संकेत था। कभी-कभी अपने खाली समय में मैं सोचता था कि मुझे इस तरह से अपने करियर में आगे बढ़ते हुए देखकर गैबी कितनी खुश होती! लेकिन फिर लगता कि अगर वो न होती, तो मैं खुद को इस तरह थोड़े ही जलाता! क्योंकि मैं अपना समय ऑफिस के काम पर खर्च करने के बजाय गैबी के साथ बिताता। गैबी नहीं थी, तो न तो मेरा कोई घर था और न ही संसार! मैं एक खानाबदोश था! सही बात है न?
इसी समय ही सुनील ने अपनी हाई स्कूल की परीक्षा भी उत्तीर्ण करी - वो देश और प्रदेश के टॉपर्स में से एक था! प्रदेश सरकार की तरफ से उसको आगे की पढ़ाई के लिए वजीफ़ा भी मिला! मुझे अब यकीन हो चला था, कि सुनील हम सबका नाम रोशन करेगा!