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बहुत ही सुंदर प्रस्तुति थी। भाई आपकी लेखनी का क्या कहना पर अपडेट 2 से 3 दिन में दो क्योकि इंतज़ार करना बहुत ही मुश्किल हो जाता है। अमर गेबी के दुख से उभर रहा था पर बच्ची की मौत ने फिर उसे गम में डाल दिया। समय सभी दुखो को अंत कर सुखद यादो में परिवर्तित कर देता है। एक साल का अंतराल आपने इन अपडेट्स में दिखया जिससे कहानी को नई दिशा और गति मिली। अगले सुंदर अपडेट्स के इंतजार में .....पहला प्यार - पल दो पल का साथ - Update #6
उसका पति थोड़ा झंझट करना चाहता था, लेकिन मैंने उसको अपने जानकार लोगों की मदद से समझाया कि तलाक देने में ही उसकी भलाई है, क्योंकि काजल उससे खुद के लिए, और अपने बच्चों के लिए किसी तरह की अलीमनी नहीं मांग रही थी। लेकिन अगर वो तलाक देने में आनाकानी करता है, तब हमको अलीमनी माँगने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। इसके तुरंत बाद दोनों पार्टियाँ तलाक के लिए रज़ामंद हो गईं। अच्छा हुआ - उस बेवड़े और लम्पट आदमी से छुटकारा मिला। वो शराबी था और काजल और बच्चों को मारता पीटता था। कोर्ट में शुरू में उसने काजल के खिलाफ बेवफाई का केस किया था, लेकिन उसके खिलाफ पत्नी प्रताड़ना और डोमेस्टिक वायलेंस के इतने काफी सबूत थे कि उसने अपना केस वापस ले लिया। कोर्ट ने उसे कभी भी काजल या उसके बच्चों के पास भी न फ़टकने की हिदायद भी दी। ऐसा करने से उसको कम से कम एक साल की जेल हो जानी थी। काजल को उससे कोई गुजारा भत्ता नहीं मिला। यह कोई परेशानी वाली बात नहीं थी - वैसे भी वो जल्दी ही माँ और डैड के साथ रहने जा रही थी।
डैड की आय अब इतनी बढ़ चुकी थी कि वो माँ समेत, काजल और उसके बच्चों की सभी जरूरतों को आराम से पूरा कर सकें! वैसे काजल भी मितव्ययी थी - माँ के जैसी ही! जोड़ जोड़ कर घर बनाने में उसको भी उतना ही विश्वास था, जितना माँ को था। खैर, माँ डैड के साथ रहने में सबसे बड़ी अच्छी बात यह थी कि काजल और बच्चे स्वतंत्र रूप से और बड़ी खुशी से अपना जीवन जी सकते थे! बिना किसी ऋण या बाध्यता के! माँ और डैड के स्नेहमय संरक्षण में!
काजल उनके साथ रहने तो लगी, लेकिन इस शर्त पर कि वो घर का सारा काम करेगी। माँ ने उसका दिल रखने के लिए हाँ कह दी, क्योंकि बिना इसके वो ज़िद पकड़े हुए थी। बिना यह सोचे कि उसको आराम की आवश्यकता थी, और बच्चा होने के बाद उसकी देखभाल में उसका समय जाएगा। वैसे भी, गर्भावस्था में अधिकांश स्त्रियाँ थोड़ी सनकी हो ही जाती हैं! काजल भी कोई अपवाद नहीं थी!
मैं जिस स्कूल में पढ़ता था, उसमें ही सुनील का दाखिला हो गया। जुलाई का महीना था और उसकी दसवीं की क्लास शुरू ही होने वाली थी। ऐसे तो किसी बच्चे को दसवीं में सत्र के बीच में ही दाखिला नहीं मिलता, लेकिन सुनील के अब तक के प्रदर्शन और उसके लिए मेरी खुद की अनुशंसा पर उसको दाखिला मिल गया। इस समय तक, हमारा घर थोड़ा और बड़ा हो गया था! डैड ने घर में एक और कमरा जोड़ दिया था। यह नया कमरा सुनील को दे दिया गया था, जिससे वो अपनी पढ़ाई लिखाई पर बेहतर तरीके से ध्यान दे सके। मेरा कमरा काजल और लतिका को दे दिया गया था, क्योंकि लतिका अभी बहुत छोटी थी! उसको अपने खुद के कमरे की आवश्यकता नहीं थी।
उधर काजल के लिए यह समय उसके जीवन में एक अद्भुत मोड़ के जैसे आया! उसने कभी नहीं सोचा था कि उसके जीवनकाल में ऐसा कुछ संभव भी था। वो अधिकांश समय सुनील और लतिका को कुछ सुविधाएं मुहैया कराने का ही सपना देखती रहती थी कि वो दोनों ढंग से शिक्षित हो सकें, और अपने जीवन में कुछ मुकाम, कुछ सफलता हासिल कर सकें। अपने पति के साथ रहते हुए यह कुछ भी संभव नहीं हो पा रहा था, लेकिन अब, उससे अलग हो कर, और माँ और डैड के आशीर्वाद से, यह सब कुछ संभव होता जा रहा था! काजल माँ और डैड के साथ रहकर और उनकी देखभाल करके बहुत खुश थी। माँ और डैड अद्भुत प्राणी थे! वो दोनों ऐसे लोग थे, जो स्नेही लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करते थे। काजल बहुत स्नेही थी, और वो उनका सान्निध्य पा कर बहुत खुश हो गई थी।
जीवन बहुत अद्भुत तरीके से चलता है। हम कहाँ से आये हैं, और किधर को जाएँगे - यह सब कुछ ऊपर बैठा हुआ सृष्टि-निर्माता बहुत ही आश्चर्यजनक रूप से निर्धारित करता रहता है। हम मनुष्यों को उसकी चाल कुछ समझ में नहीं आती है! साल भर पहले मैं काजल को जानता भी नहीं था। और आज वो मेरे परिवार का अभिन्न हिस्सा बन गई थी! गैबी जिस गति में मेरे जीवन में आई, उसी गति से चली भी गई! माँ बा बनना था मुझे और गैबी को, और बन रहे थे मैं और काजल! और दुर्भाग्य ऐसा कि उस बच्चे को मेरा नाम नहीं मिलने वाला था! काजल मुझसे बंधी तो हुई थी, लेकिन स्वतंत्र भी थी! वैसे भविष्य में काजल और मेरे परिवार की बेल किस क़दर आपस में लिपट जाएगी, मैंने कभी उसकी कल्पना भी नहीं की थी! खैर, वो सब तो भविष्य के गर्भ में है! उसको अभी से जान कर क्या मिलने वाला है? फिलहाल तो हम वर्तमान में रहते हैं!
सुनील की हाई स्कूल की शिक्षा माँ और डैड के साथ रहते हुए ही शुरू हुई। वो तेजी से बड़ा हो रहा था... और वह बड़ा होते हुए, एक बहुत ही संवेदनशील, ईमानदार, और ज़िम्मेदार युवक बन रहा था। वो उन समस्त चुनौतियों को अच्छी तरह से समझता था जिनका सामना उसकी अम्मा ने अब तक अकेले ही किया था! मन ही मन वो डैड और माँ के उन सभी समर्थन के लिए आभार रखता था! आज के समय में कोई किसी के लिए यह सब नहीं करता! कोई अपना घर किसी अनजान के लिए यूँ नहीं खोल देता! वो अब एक सम्मानजनक जीवन जी रहा था, और अच्छी शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम था - यह सब माँ और डैड के पुण्य प्रताप से ही संभव हो रहा था! और वो इस अवसर का पूरा सदुपयोग करना चाहता था। इसलिए वो पूरी लगन और कड़ी मेहनत के साथ पढ़ाई कर रहा था। वो चाहता था कि मेरे ही समान, वो उच्च शिक्षा के एक विशिष्ट संस्थान में प्रवेश कर सके! और आने वाले जीवन के लिए खुद को अच्छी तरह से तैयार कर सके... ताकि वो अपनी अम्मा और छोटी बहन की ढंग से देखभाल कर सके।
सुनील को अपनी अम्मा की बढ़ती गर्भावस्था के बारे में पता था। काजल ने उसको बताया था कि यह बच्चा उसके और मेरे प्यार का फल था, जो उसके अंदर पल रहा था। सुनील को सेक्स की प्रक्रिया के बारे ज्ञान था। वो इस मामले में मेरे जैसा बुद्धू नहीं था। मेरे शरीर ने जवानी की अंगड़ाई देर से ली थी, लेकिन सुनील में नहीं। पिछले छः सात महीनों में वो किशोरावस्था से जवानी की दहलीज़ में कदम रख चुका था। लेकिन काजल ने उसको पाशविक सेक्स के बजाय उसके प्रेमपूर्ण, मानवीय पक्ष के बारे में जागरूक किया - वो पक्ष, जो केवल संभोग के कार्य पर केंद्रित नहीं है। सेक्स तो कोई भी कर सकता है - जानवर भी करते हैं। लेकिन मनुष्य में इसे सही कारणों से किया जाना चाहिए... प्रेम जैसे कारणों से! सेक्स और प्रेम साथ में चलना चाहिए - एक के बिना दूसरे का कोई औचित्य नहीं है। यह बात उसे समझ में आई। सुनील ने मेरे और गैबी के, और मेरे और काजल के प्रेम को देखा था, और उसको हमारे सक्रिय प्रेम जीवन के बारे में भी संज्ञान था। हमारे साथ ही उसको माँ और डैड के भी अंतरंग जीवन के बारे में मालूम हुआ! हम सभी से उसको यह मालूम हुआ कि हम अपने अपने साथियों से बेहद प्रेम करते थे। लिहाज़ा, सुनील को पक्का यकीन हो गया कि एक संतुष्टिदायक यौन संबंध होने के लिए सच्चा प्यार होना चाहिए…! उसको मालूम था कि उसके जीवन में भी यह पड़ाव आएगा - लेकिन फिलहाल नहीं! अभी उसे अपने काम पर ध्यान देना था - काम, मतलब लगन के साथ अपनी पढ़ाई पूरी करना!
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काजल की संगत और देख रेख में, माँ और डैड के जीवन में भी कई सारे सुधार हुए! उनको एक दूसरे के लिए थोड़ा और अधिक समय मिलने लगा। माँ को घर के काम से थोड़ी फुर्सत मिलने लगी। और सबसे बड़ी बात यह कि एक लम्बे अर्से के बाद, माँ को अपनी हमउम्र एक सहेली मिल गई। काजल बहुत ही जल्दी उनकी विश्वासपात्र बन गई, और माँ की बेहद करीबी दोस्त। दोनों उम्र में लगभग एक समान थीं, और हालाँकि, काजल माँ को ‘माँ जी’ कह कर संबोधित करती थी, उनका रिश्ता बहनों वाला अधिक था! दोनों के आपसी व्यवहार में चंचलता और स्नेह भरा हुआ था - सगी बहनों के जैसे! साथ में रहते हुए एक बार भी ऐसा नहीं हुआ कि किसी को भी एक दूसरे से कभी भी कोई शिकायत हुई हो! अपनी गर्भावस्था में भी काजल माँ और डैड की देखभाल करने की पूरी कोशिश करती। लेकिन माँ अपने तरीके से काजल, और उसके बच्चों की! कुल मिलाकर काजल का उनके साथ रहना बहुत ही अच्छी बात रही, और यह अनुभव उन पाँचों के लिए काफी मजेदार रहा। मेरे परिवार का कम से कम एक पक्ष इस समय खुशी से रह रहा था!
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गैबी की मृत्यु के कुछ दिनों के बाद मैंने गैबी के परिवार से संपर्क किया! उनका हमारी शादी को ले कर जो भी विचार था, वो गैबी के बारे में जानने के उनके अधिकार को वंचित नहीं कर सकता था। गैबी उनका परिवार थी, और उनको उसकी मृत्यु के बारे में जानना आवश्यक था। मैंने उनके फोन किया - फ़ोन गैबी की माँ ने ही उठाया। जब मैंने उनको अपना परिचय दिया, तो मैंने महसूस किया देखा कि वो पहले जैसे ‘गंध’ तरीके से बर्ताव नहीं कर रही थीं। अपितु बड़े सौहार्द से बातचीत कर रही थीं। वह अपने तौर-तरीकों में थोड़ी शांत लग रही थीं। शायद उनको यह भान हुआ हो कि अपने दामाद से इज़्ज़त और स्नेह से पेश आना चाहिए! हमने कुछ देर एक दूसरे के कुशल-क्षेम के बारे में जाने का प्रयास किया। लेकिन जब मैंने उनको गैबी के निधन के बारे में बताया, तो वो बिलकुल ही टूट गईं और बिलख बिलख कर रोने लगीं। उनको रोता हुआ देख कर गैबी के डैड और भाई मुझसे बात करने लगे। मैंने उन्हें गैबी की दुर्घटना के बारे में, उसकी मृत्यु के बारे में, उसकी गर्भावस्था के बारे में, और कैसे मैंने अपना सब कुछ खो दिया, उसके बारे में बताया। गैबी उनकी बेटी थी, इसलिए उसकी मृत्यु उनके लिए भी बहुत बड़ा सदमा बन कर आई। लेकिन उनको यह भी मालूम था कि हमारा प्रेम बहुत प्रगाढ़ था, इसलिए वो स्वयं रोने के साथ ही मुझको स्वांत्वना भी देते जा रहे थे। कुछ देर की मान मनौव्वल के बाद मैंने उन्हें बताया कि मुझे गैबी की जीवन बीमा राशि मिलने वाली है, और मैं वो धनराशि उनको भेजना चाहता हूँ। बीमा राशि करीब करीब पचास हजार ब्राज़ीलियाई रियल [उन दिनों पंद्रह लाख भारतीय रुपये] के करीब था। यह एक अच्छी धनराशि थी, और उनके काम आ सकती थी।
लेकिन मुझे घोर आश्चर्य तब हुआ जब गैबी की माँ ने बड़े सम्मानपूर्वक, पैसे लेने से मना कर दिया। उन्होंने अपने पहले के अशिष्ट व्यवहार के लिए मुझसे क्षमा भी माँगी। फिर उन्होंने मुझे गैबी की देखभाल करने और उससे शादी करने के लिए धन्यवाद भी किया। मुझे बहुत दुःख हुआ कि गैबी अपने जीवित रहते हुए हमारे इस सौहार्दपूर्ण वार्तालाप को नहीं सुन सकी! क्या वर्षा, जब कृषि सुखानी का इससे दुःखद उदाहरण नहीं मिल सकता। गैबी की माँ और उसके डैड ने मुझसे कहा कि मैं हमेशा ही उनके परिवार का एक हिस्सा रहूँगा और अगर कभी भगवान अनुमति होगी, तो वो दोनों किसी दिन मुझसे व्यक्तिगत रूप से मिलना पसंद करेंगे। चलते चलते उन्होंने मुझे समझाया कि मैं गैबी के ग़म में ही डूबा न रहूँ। अगर हो सके, तो दूसरी शादी करूँ। गैबी मेरी इस हरकत पर खुश ही होगी! मैंने उनका धन्यवाद किया, और उनको भारत आने का निमंत्रण दिया। अवश्य ही गैबी के मेरा संपर्क हमेशा के लिए टूट गया था, लेकिन हमारी आत्माएँ हमेशा आस पास ही थीं। उस कारण से गैबी का परिवार एक तरीके से मेरा परिवार भी था। और उनसे सम्मानजनक रूप से बात कर के मुझे उनसे भविष्य में भी संपर्क रखने का सम्बल मिला।
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जब भी संभव होता मैं काजल से मिलने घर अवश्य जाता! हर महीने में दो बार जाना होता ही था। जब काजल की डिलीवरी का समय नजदीक आया, तो काजल पश्चिम बंगाल में अपने गृहनगर के लिए रवाना हो गई। उसको अपने मायके की याद आ रही थी, और वो गर्भावस्था के इस महत्वपूर्ण चरण में उनके साथ रहना चाहती थी। लतिका उसके साथ चली गई, क्योंकि वो बहुत छोटी थी, लेकिन सुनील माँ और डैड के साथ ही रहा, क्योंकि काजल के साथ जाने पर उसकी पढ़ाई में बहुत हर्ज़ा होता। लगभग उसी समय, मैंने नई नौकरी देखना भी शुरू कर दिया। मुझे उम्मीद थी कि नई नौकरी किसी नए शहर में मिलेगी। कम से कम पुरानी यादों से थोड़ा छुटकारा तो मिलेगा।
चूँकि इस समय मैं बिलकुल अकेला था, इसलिए माँ मेरे साथ आकर रहना चाहती थीं। लेकिन मैंने उनको मना कर दिया। डैड का अभी भी रिटायरमेंट होने में पंद्रह साल का समय बचा हुआ था। उनको इस बीच कई प्रमोशन मिलते। साथ ही साथ माँ पर सुनील के देखभाल की भी जिम्मेदारी आ गई थी। इसलिए उनको वहाँ से हटाना उचित नहीं था। माँ और डैड मेरी बात समझ गए और मेरी कुछ महीने अकेले रहने की इच्छा पर सहमत हो गए। मैंने उनको अपनी नई नौकरी ढूंढ़ने के बारे में बताया और यह भी बताया कि नई नौकरी से मेरी ऊर्जा का सही इस्तेमाल होगा। व्यस्त रहूँगा तो मस्त भी रहूँगा।
अब चूँकि मैं अकेला ही था - मेरी देखभाल करने वाला कोई न होने के कारण, मैं अपने ऑफिस में बहुत समय बिताने लगा। मैं अपने घर का उपयोग केवल सोने के लिए करने लगा। गैबी के जाने का शॉक बहुत गहरा था। उसका सही सही आंकलन मैं अभी तक नहीं कर पाया था। इस नाज़ुक से समय में, मेरे एक बहुत करीबी दोस्त ने मुझे एक पेशेवर मदद लेने के लिए कहा। उसने मुझे समझाया कि मुझे किसी ढंग के मनोचिकित्सक से सलाह लेना चाहिए, और यदि आवश्यक हो तो दवाई का भी बंदोबस्त करना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि गैबी के जाने के भावनात्मक सदमे से मुझे कहीं अंदरूनी घाव न हो जाए! मैंने उसकी बात मान ली, और मैंने एक अच्छे मनोचिकित्सक को देखना शुरू हुआ! उसकी देखरेख में मुझे लाभ अवश्य मिला। जल्दी ही मैंने अपने तौर तरीके में सुधार लाना शुरू कर दिया।
उधर काजल के साथ हर सप्ताह कम से कम एक बार फ़ोन पर बात करना एक आवश्यक काम था। अगर उससे बात न होती, तो वो बहुत नाराज़ होती। जब उसकी डिलीवरी के दिन निकट आ रहे थे, तो मैंने उसके घर फोन किया। वहाँ किसी ने फोन उठाया नहीं। मैंने प्रतिदिन कॉल करना शुरू कर दिया, क्योंकि मुझे लग रहा था कि बच्चे की कोई खबर आने ही वाली है। कोई एक सप्ताह बाद मुझे किसी से मालूम हुआ कि मैं तीन दिन पहले एक प्यारी सी बच्ची का बाप बना था! क्या बात है! मैं इस खबर को सुन कर बेहद खुश हुआ, और थोड़ा उदास भी! उदास इसलिए क्योंकि मैं काजल के पास जाना चाहता था। लेकिन यह संभव नहीं था। काजल का पति नहीं था - अगर वो वहाँ नहीं था, तो मैं वहाँ किस हक़ से था? इस सवाल का उत्तर नहीं था मेरे पास! मेरी उपस्थिति से उसको भी कई मुश्किल प्रश्नो के उत्तर देने पड़ते! काजल ने मुझसे यह बात साफ़ साफ़ बोल दी थी, कि बिना उसकी अनुमति के मैं हमारे बच्चे के जीवन में कोई निर्णय नहीं ले सकता था। लिहाज़ा, हमने कुछ महीनों बाद मिलने का वायदा किया। मैं इस बीच इंतज़ार करने के अलावा और कुछ नहीं कर सकता था। बीच बीच में वो मुझसे पूछती, कि कोई लड़की मिली या नहीं। और मैं उसको बस डाँट कर चुप करा देता।
मेरी बच्ची से मेरी मुलाकात होती, उसके ही पहले मुझे एक और बुरी खबर मिली - जन्म से लगभग एक महीने बाद, डैड ने मुझे फोन कर के बताया कि मेरी बच्ची की मृत्यु इंसेफेलाइटिस से हो गई है। यह रोग उस समय काजल के गाँव में काफी प्रचिलित था। वहाँ पर पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं, लिहाज़ा, डॉक्टर उस बच्चे को बचा नहीं पाए! कैसी निराशाजनक सी बात थी यह! किसी अन्य जगह पर अगर काजल होती, तो इस तरह की दिक्कत होती ही न!
मैं परेशान हो गया था।
मैं निराश हो गया था।
मैं मायूस हो गया था।
किसको दोष दूँ अपने दुर्भाग्य के अतिरिक्त? मुझे ऐसा लगने लग गया था कि दुःख के अतिरिक्त मेरे जीवन में कुछ और नहीं बचा था! डैड ने मुझे खुद को सम्हालने को कहा और मुझे दिलासा दी। उन्होंने मुझे एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण दिया : उन्होंने मुझे समझाया कि जहाँ मैंने अपनी संतान खोई है, वहाँ काजल ने भी अपनी नवजात बेटी को खो दिया था! वो बच्ची काजल और मेरे प्यार का प्रतीक थी! उसने नौ महीने तक उस बच्चे को अपने अंदर पाला पोसा था। एक माँ के लिए अपनी संतान खोना कितने दुःख की बात होती है, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल था मेरे लिए! बात तो सही थी। मुझे डैड का दृष्टिकोण समझ में आ गया। फिर डैड ने मुझसे कहा कि वो काजल को घर लिवाने उसके गाँव जा रहे हैं। मुझे लगा कि यह अच्छी बात है।
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मेरी नई नौकरी गैबी के जाने के लगभग दस महीने बाद लगी। नया काम बहुत अच्छा था, और चुनौतीपूर्ण था! मेरे वेतन में भारी वृद्धि मिली थी, और काम में मुझे एक बेहतर रोल भी मिला था। मैंने अपना सारा ध्यान अपने नए काम में लगा दिया। गैबी, मेरी अजन्मी संतान, और मेरी काजल के साथ हुई बेटी - इन तीनों की मृत्यु के दुःख को कम करने का मेरा यही तरीका था! मैंने बहुत मेहनत से, और जी लगा कर काम किया और कुछ ही महीनों में मैं टीम का एक मूल्यवान सदस्य बन गया। किसी नए मेंबर ने मेरे जितनी जल्दी तरक्की नहीं करी। मैं अपने काम में लीन था, और जल्दी ही ऑफिस के महत्वपूर्ण सर्किलों में प्रसिद्ध हो गया।
जल्दी ही मैं अपने नए काम में सहज और सिद्धहस्त हो गया। और आगे जो हुआ, वो कभी पहले उस कंपनी में नहीं हुआ। मुझे छः महीने में उस कंपनी में प्रमोशन भी मिल गया। परिवीक्षा अवधि (प्रोविशनल पीरियड) स्वयं ही छः महीने लंबी थी, और उतनी अवधि में पदोन्नति प्राप्त करना एक अद्भुत उपलब्धि थी! कंपनी की लीडरशिप ने मुझे एक ‘फास्ट-ट्रैक लीडरशिप कैंडिडेट’ के रूप चिन्हित किया, जो कि मेरे करियर के लिए बेहद अच्छा संकेत था। कभी-कभी अपने खाली समय में मैं सोचता था कि मुझे इस तरह से अपने करियर में आगे बढ़ते हुए देखकर गैबी कितनी खुश होती! लेकिन फिर लगता कि अगर वो न होती, तो मैं खुद को इस तरह थोड़े ही जलाता! क्योंकि मैं अपना समय ऑफिस के काम पर खर्च करने के बजाय गैबी के साथ बिताता। गैबी नहीं थी, तो न तो मेरा कोई घर था और न ही संसार! मैं एक खानाबदोश था! सही बात है न?
इसी समय ही सुनील ने अपनी हाई स्कूल की परीक्षा भी उत्तीर्ण करी - वो देश और प्रदेश के टॉपर्स में से एक था! प्रदेश सरकार की तरफ से उसको आगे की पढ़ाई के लिए वजीफ़ा भी मिला! मुझे अब यकीन हो चला था, कि सुनील हम सबका नाम रोशन करेगा!
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति थी। भाई आपकी लेखनी का क्या कहना पर अपडेट 2 से 3 दिन में दो क्योकि इंतज़ार करना बहुत ही मुश्किल हो जाता है। अमर गेबी के दुख से उभर रहा था पर बच्ची की मौत ने फिर उसे गम में डाल दिया। समय सभी दुखो को अंत कर सुखद यादो में परिवर्तित कर देता है। एक साल का अंतराल आपने इन अपडेट्स में दिखया जिससे कहानी को नई दिशा और गति मिली। अगले सुंदर अपडेट्स के इंतजार में .....पहला प्यार - पल दो पल का साथ - Update #6
उसका पति थोड़ा झंझट करना चाहता था, लेकिन मैंने उसको अपने जानकार लोगों की मदद से समझाया कि तलाक देने में ही उसकी भलाई है, क्योंकि काजल उससे खुद के लिए, और अपने बच्चों के लिए किसी तरह की अलीमनी नहीं मांग रही थी। लेकिन अगर वो तलाक देने में आनाकानी करता है, तब हमको अलीमनी माँगने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। इसके तुरंत बाद दोनों पार्टियाँ तलाक के लिए रज़ामंद हो गईं। अच्छा हुआ - उस बेवड़े और लम्पट आदमी से छुटकारा मिला। वो शराबी था और काजल और बच्चों को मारता पीटता था। कोर्ट में शुरू में उसने काजल के खिलाफ बेवफाई का केस किया था, लेकिन उसके खिलाफ पत्नी प्रताड़ना और डोमेस्टिक वायलेंस के इतने काफी सबूत थे कि उसने अपना केस वापस ले लिया। कोर्ट ने उसे कभी भी काजल या उसके बच्चों के पास भी न फ़टकने की हिदायद भी दी। ऐसा करने से उसको कम से कम एक साल की जेल हो जानी थी। काजल को उससे कोई गुजारा भत्ता नहीं मिला। यह कोई परेशानी वाली बात नहीं थी - वैसे भी वो जल्दी ही माँ और डैड के साथ रहने जा रही थी।
डैड की आय अब इतनी बढ़ चुकी थी कि वो माँ समेत, काजल और उसके बच्चों की सभी जरूरतों को आराम से पूरा कर सकें! वैसे काजल भी मितव्ययी थी - माँ के जैसी ही! जोड़ जोड़ कर घर बनाने में उसको भी उतना ही विश्वास था, जितना माँ को था। खैर, माँ डैड के साथ रहने में सबसे बड़ी अच्छी बात यह थी कि काजल और बच्चे स्वतंत्र रूप से और बड़ी खुशी से अपना जीवन जी सकते थे! बिना किसी ऋण या बाध्यता के! माँ और डैड के स्नेहमय संरक्षण में!
काजल उनके साथ रहने तो लगी, लेकिन इस शर्त पर कि वो घर का सारा काम करेगी। माँ ने उसका दिल रखने के लिए हाँ कह दी, क्योंकि बिना इसके वो ज़िद पकड़े हुए थी। बिना यह सोचे कि उसको आराम की आवश्यकता थी, और बच्चा होने के बाद उसकी देखभाल में उसका समय जाएगा। वैसे भी, गर्भावस्था में अधिकांश स्त्रियाँ थोड़ी सनकी हो ही जाती हैं! काजल भी कोई अपवाद नहीं थी!
मैं जिस स्कूल में पढ़ता था, उसमें ही सुनील का दाखिला हो गया। जुलाई का महीना था और उसकी दसवीं की क्लास शुरू ही होने वाली थी। ऐसे तो किसी बच्चे को दसवीं में सत्र के बीच में ही दाखिला नहीं मिलता, लेकिन सुनील के अब तक के प्रदर्शन और उसके लिए मेरी खुद की अनुशंसा पर उसको दाखिला मिल गया। इस समय तक, हमारा घर थोड़ा और बड़ा हो गया था! डैड ने घर में एक और कमरा जोड़ दिया था। यह नया कमरा सुनील को दे दिया गया था, जिससे वो अपनी पढ़ाई लिखाई पर बेहतर तरीके से ध्यान दे सके। मेरा कमरा काजल और लतिका को दे दिया गया था, क्योंकि लतिका अभी बहुत छोटी थी! उसको अपने खुद के कमरे की आवश्यकता नहीं थी।
उधर काजल के लिए यह समय उसके जीवन में एक अद्भुत मोड़ के जैसे आया! उसने कभी नहीं सोचा था कि उसके जीवनकाल में ऐसा कुछ संभव भी था। वो अधिकांश समय सुनील और लतिका को कुछ सुविधाएं मुहैया कराने का ही सपना देखती रहती थी कि वो दोनों ढंग से शिक्षित हो सकें, और अपने जीवन में कुछ मुकाम, कुछ सफलता हासिल कर सकें। अपने पति के साथ रहते हुए यह कुछ भी संभव नहीं हो पा रहा था, लेकिन अब, उससे अलग हो कर, और माँ और डैड के आशीर्वाद से, यह सब कुछ संभव होता जा रहा था! काजल माँ और डैड के साथ रहकर और उनकी देखभाल करके बहुत खुश थी। माँ और डैड अद्भुत प्राणी थे! वो दोनों ऐसे लोग थे, जो स्नेही लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करते थे। काजल बहुत स्नेही थी, और वो उनका सान्निध्य पा कर बहुत खुश हो गई थी।
जीवन बहुत अद्भुत तरीके से चलता है। हम कहाँ से आये हैं, और किधर को जाएँगे - यह सब कुछ ऊपर बैठा हुआ सृष्टि-निर्माता बहुत ही आश्चर्यजनक रूप से निर्धारित करता रहता है। हम मनुष्यों को उसकी चाल कुछ समझ में नहीं आती है! साल भर पहले मैं काजल को जानता भी नहीं था। और आज वो मेरे परिवार का अभिन्न हिस्सा बन गई थी! गैबी जिस गति में मेरे जीवन में आई, उसी गति से चली भी गई! माँ बा बनना था मुझे और गैबी को, और बन रहे थे मैं और काजल! और दुर्भाग्य ऐसा कि उस बच्चे को मेरा नाम नहीं मिलने वाला था! काजल मुझसे बंधी तो हुई थी, लेकिन स्वतंत्र भी थी! वैसे भविष्य में काजल और मेरे परिवार की बेल किस क़दर आपस में लिपट जाएगी, मैंने कभी उसकी कल्पना भी नहीं की थी! खैर, वो सब तो भविष्य के गर्भ में है! उसको अभी से जान कर क्या मिलने वाला है? फिलहाल तो हम वर्तमान में रहते हैं!
सुनील की हाई स्कूल की शिक्षा माँ और डैड के साथ रहते हुए ही शुरू हुई। वो तेजी से बड़ा हो रहा था... और वह बड़ा होते हुए, एक बहुत ही संवेदनशील, ईमानदार, और ज़िम्मेदार युवक बन रहा था। वो उन समस्त चुनौतियों को अच्छी तरह से समझता था जिनका सामना उसकी अम्मा ने अब तक अकेले ही किया था! मन ही मन वो डैड और माँ के उन सभी समर्थन के लिए आभार रखता था! आज के समय में कोई किसी के लिए यह सब नहीं करता! कोई अपना घर किसी अनजान के लिए यूँ नहीं खोल देता! वो अब एक सम्मानजनक जीवन जी रहा था, और अच्छी शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम था - यह सब माँ और डैड के पुण्य प्रताप से ही संभव हो रहा था! और वो इस अवसर का पूरा सदुपयोग करना चाहता था। इसलिए वो पूरी लगन और कड़ी मेहनत के साथ पढ़ाई कर रहा था। वो चाहता था कि मेरे ही समान, वो उच्च शिक्षा के एक विशिष्ट संस्थान में प्रवेश कर सके! और आने वाले जीवन के लिए खुद को अच्छी तरह से तैयार कर सके... ताकि वो अपनी अम्मा और छोटी बहन की ढंग से देखभाल कर सके।
सुनील को अपनी अम्मा की बढ़ती गर्भावस्था के बारे में पता था। काजल ने उसको बताया था कि यह बच्चा उसके और मेरे प्यार का फल था, जो उसके अंदर पल रहा था। सुनील को सेक्स की प्रक्रिया के बारे ज्ञान था। वो इस मामले में मेरे जैसा बुद्धू नहीं था। मेरे शरीर ने जवानी की अंगड़ाई देर से ली थी, लेकिन सुनील में नहीं। पिछले छः सात महीनों में वो किशोरावस्था से जवानी की दहलीज़ में कदम रख चुका था। लेकिन काजल ने उसको पाशविक सेक्स के बजाय उसके प्रेमपूर्ण, मानवीय पक्ष के बारे में जागरूक किया - वो पक्ष, जो केवल संभोग के कार्य पर केंद्रित नहीं है। सेक्स तो कोई भी कर सकता है - जानवर भी करते हैं। लेकिन मनुष्य में इसे सही कारणों से किया जाना चाहिए... प्रेम जैसे कारणों से! सेक्स और प्रेम साथ में चलना चाहिए - एक के बिना दूसरे का कोई औचित्य नहीं है। यह बात उसे समझ में आई। सुनील ने मेरे और गैबी के, और मेरे और काजल के प्रेम को देखा था, और उसको हमारे सक्रिय प्रेम जीवन के बारे में भी संज्ञान था। हमारे साथ ही उसको माँ और डैड के भी अंतरंग जीवन के बारे में मालूम हुआ! हम सभी से उसको यह मालूम हुआ कि हम अपने अपने साथियों से बेहद प्रेम करते थे। लिहाज़ा, सुनील को पक्का यकीन हो गया कि एक संतुष्टिदायक यौन संबंध होने के लिए सच्चा प्यार होना चाहिए…! उसको मालूम था कि उसके जीवन में भी यह पड़ाव आएगा - लेकिन फिलहाल नहीं! अभी उसे अपने काम पर ध्यान देना था - काम, मतलब लगन के साथ अपनी पढ़ाई पूरी करना!
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काजल की संगत और देख रेख में, माँ और डैड के जीवन में भी कई सारे सुधार हुए! उनको एक दूसरे के लिए थोड़ा और अधिक समय मिलने लगा। माँ को घर के काम से थोड़ी फुर्सत मिलने लगी। और सबसे बड़ी बात यह कि एक लम्बे अर्से के बाद, माँ को अपनी हमउम्र एक सहेली मिल गई। काजल बहुत ही जल्दी उनकी विश्वासपात्र बन गई, और माँ की बेहद करीबी दोस्त। दोनों उम्र में लगभग एक समान थीं, और हालाँकि, काजल माँ को ‘माँ जी’ कह कर संबोधित करती थी, उनका रिश्ता बहनों वाला अधिक था! दोनों के आपसी व्यवहार में चंचलता और स्नेह भरा हुआ था - सगी बहनों के जैसे! साथ में रहते हुए एक बार भी ऐसा नहीं हुआ कि किसी को भी एक दूसरे से कभी भी कोई शिकायत हुई हो! अपनी गर्भावस्था में भी काजल माँ और डैड की देखभाल करने की पूरी कोशिश करती। लेकिन माँ अपने तरीके से काजल, और उसके बच्चों की! कुल मिलाकर काजल का उनके साथ रहना बहुत ही अच्छी बात रही, और यह अनुभव उन पाँचों के लिए काफी मजेदार रहा। मेरे परिवार का कम से कम एक पक्ष इस समय खुशी से रह रहा था!
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गैबी की मृत्यु के कुछ दिनों के बाद मैंने गैबी के परिवार से संपर्क किया! उनका हमारी शादी को ले कर जो भी विचार था, वो गैबी के बारे में जानने के उनके अधिकार को वंचित नहीं कर सकता था। गैबी उनका परिवार थी, और उनको उसकी मृत्यु के बारे में जानना आवश्यक था। मैंने उनके फोन किया - फ़ोन गैबी की माँ ने ही उठाया। जब मैंने उनको अपना परिचय दिया, तो मैंने महसूस किया देखा कि वो पहले जैसे ‘गंध’ तरीके से बर्ताव नहीं कर रही थीं। अपितु बड़े सौहार्द से बातचीत कर रही थीं। वह अपने तौर-तरीकों में थोड़ी शांत लग रही थीं। शायद उनको यह भान हुआ हो कि अपने दामाद से इज़्ज़त और स्नेह से पेश आना चाहिए! हमने कुछ देर एक दूसरे के कुशल-क्षेम के बारे में जाने का प्रयास किया। लेकिन जब मैंने उनको गैबी के निधन के बारे में बताया, तो वो बिलकुल ही टूट गईं और बिलख बिलख कर रोने लगीं। उनको रोता हुआ देख कर गैबी के डैड और भाई मुझसे बात करने लगे। मैंने उन्हें गैबी की दुर्घटना के बारे में, उसकी मृत्यु के बारे में, उसकी गर्भावस्था के बारे में, और कैसे मैंने अपना सब कुछ खो दिया, उसके बारे में बताया। गैबी उनकी बेटी थी, इसलिए उसकी मृत्यु उनके लिए भी बहुत बड़ा सदमा बन कर आई। लेकिन उनको यह भी मालूम था कि हमारा प्रेम बहुत प्रगाढ़ था, इसलिए वो स्वयं रोने के साथ ही मुझको स्वांत्वना भी देते जा रहे थे। कुछ देर की मान मनौव्वल के बाद मैंने उन्हें बताया कि मुझे गैबी की जीवन बीमा राशि मिलने वाली है, और मैं वो धनराशि उनको भेजना चाहता हूँ। बीमा राशि करीब करीब पचास हजार ब्राज़ीलियाई रियल [उन दिनों पंद्रह लाख भारतीय रुपये] के करीब था। यह एक अच्छी धनराशि थी, और उनके काम आ सकती थी।
लेकिन मुझे घोर आश्चर्य तब हुआ जब गैबी की माँ ने बड़े सम्मानपूर्वक, पैसे लेने से मना कर दिया। उन्होंने अपने पहले के अशिष्ट व्यवहार के लिए मुझसे क्षमा भी माँगी। फिर उन्होंने मुझे गैबी की देखभाल करने और उससे शादी करने के लिए धन्यवाद भी किया। मुझे बहुत दुःख हुआ कि गैबी अपने जीवित रहते हुए हमारे इस सौहार्दपूर्ण वार्तालाप को नहीं सुन सकी! क्या वर्षा, जब कृषि सुखानी का इससे दुःखद उदाहरण नहीं मिल सकता। गैबी की माँ और उसके डैड ने मुझसे कहा कि मैं हमेशा ही उनके परिवार का एक हिस्सा रहूँगा और अगर कभी भगवान अनुमति होगी, तो वो दोनों किसी दिन मुझसे व्यक्तिगत रूप से मिलना पसंद करेंगे। चलते चलते उन्होंने मुझे समझाया कि मैं गैबी के ग़म में ही डूबा न रहूँ। अगर हो सके, तो दूसरी शादी करूँ। गैबी मेरी इस हरकत पर खुश ही होगी! मैंने उनका धन्यवाद किया, और उनको भारत आने का निमंत्रण दिया। अवश्य ही गैबी के मेरा संपर्क हमेशा के लिए टूट गया था, लेकिन हमारी आत्माएँ हमेशा आस पास ही थीं। उस कारण से गैबी का परिवार एक तरीके से मेरा परिवार भी था। और उनसे सम्मानजनक रूप से बात कर के मुझे उनसे भविष्य में भी संपर्क रखने का सम्बल मिला।
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जब भी संभव होता मैं काजल से मिलने घर अवश्य जाता! हर महीने में दो बार जाना होता ही था। जब काजल की डिलीवरी का समय नजदीक आया, तो काजल पश्चिम बंगाल में अपने गृहनगर के लिए रवाना हो गई। उसको अपने मायके की याद आ रही थी, और वो गर्भावस्था के इस महत्वपूर्ण चरण में उनके साथ रहना चाहती थी। लतिका उसके साथ चली गई, क्योंकि वो बहुत छोटी थी, लेकिन सुनील माँ और डैड के साथ ही रहा, क्योंकि काजल के साथ जाने पर उसकी पढ़ाई में बहुत हर्ज़ा होता। लगभग उसी समय, मैंने नई नौकरी देखना भी शुरू कर दिया। मुझे उम्मीद थी कि नई नौकरी किसी नए शहर में मिलेगी। कम से कम पुरानी यादों से थोड़ा छुटकारा तो मिलेगा।
चूँकि इस समय मैं बिलकुल अकेला था, इसलिए माँ मेरे साथ आकर रहना चाहती थीं। लेकिन मैंने उनको मना कर दिया। डैड का अभी भी रिटायरमेंट होने में पंद्रह साल का समय बचा हुआ था। उनको इस बीच कई प्रमोशन मिलते। साथ ही साथ माँ पर सुनील के देखभाल की भी जिम्मेदारी आ गई थी। इसलिए उनको वहाँ से हटाना उचित नहीं था। माँ और डैड मेरी बात समझ गए और मेरी कुछ महीने अकेले रहने की इच्छा पर सहमत हो गए। मैंने उनको अपनी नई नौकरी ढूंढ़ने के बारे में बताया और यह भी बताया कि नई नौकरी से मेरी ऊर्जा का सही इस्तेमाल होगा। व्यस्त रहूँगा तो मस्त भी रहूँगा।
अब चूँकि मैं अकेला ही था - मेरी देखभाल करने वाला कोई न होने के कारण, मैं अपने ऑफिस में बहुत समय बिताने लगा। मैं अपने घर का उपयोग केवल सोने के लिए करने लगा। गैबी के जाने का शॉक बहुत गहरा था। उसका सही सही आंकलन मैं अभी तक नहीं कर पाया था। इस नाज़ुक से समय में, मेरे एक बहुत करीबी दोस्त ने मुझे एक पेशेवर मदद लेने के लिए कहा। उसने मुझे समझाया कि मुझे किसी ढंग के मनोचिकित्सक से सलाह लेना चाहिए, और यदि आवश्यक हो तो दवाई का भी बंदोबस्त करना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि गैबी के जाने के भावनात्मक सदमे से मुझे कहीं अंदरूनी घाव न हो जाए! मैंने उसकी बात मान ली, और मैंने एक अच्छे मनोचिकित्सक को देखना शुरू हुआ! उसकी देखरेख में मुझे लाभ अवश्य मिला। जल्दी ही मैंने अपने तौर तरीके में सुधार लाना शुरू कर दिया।
उधर काजल के साथ हर सप्ताह कम से कम एक बार फ़ोन पर बात करना एक आवश्यक काम था। अगर उससे बात न होती, तो वो बहुत नाराज़ होती। जब उसकी डिलीवरी के दिन निकट आ रहे थे, तो मैंने उसके घर फोन किया। वहाँ किसी ने फोन उठाया नहीं। मैंने प्रतिदिन कॉल करना शुरू कर दिया, क्योंकि मुझे लग रहा था कि बच्चे की कोई खबर आने ही वाली है। कोई एक सप्ताह बाद मुझे किसी से मालूम हुआ कि मैं तीन दिन पहले एक प्यारी सी बच्ची का बाप बना था! क्या बात है! मैं इस खबर को सुन कर बेहद खुश हुआ, और थोड़ा उदास भी! उदास इसलिए क्योंकि मैं काजल के पास जाना चाहता था। लेकिन यह संभव नहीं था। काजल का पति नहीं था - अगर वो वहाँ नहीं था, तो मैं वहाँ किस हक़ से था? इस सवाल का उत्तर नहीं था मेरे पास! मेरी उपस्थिति से उसको भी कई मुश्किल प्रश्नो के उत्तर देने पड़ते! काजल ने मुझसे यह बात साफ़ साफ़ बोल दी थी, कि बिना उसकी अनुमति के मैं हमारे बच्चे के जीवन में कोई निर्णय नहीं ले सकता था। लिहाज़ा, हमने कुछ महीनों बाद मिलने का वायदा किया। मैं इस बीच इंतज़ार करने के अलावा और कुछ नहीं कर सकता था। बीच बीच में वो मुझसे पूछती, कि कोई लड़की मिली या नहीं। और मैं उसको बस डाँट कर चुप करा देता।
मेरी बच्ची से मेरी मुलाकात होती, उसके ही पहले मुझे एक और बुरी खबर मिली - जन्म से लगभग एक महीने बाद, डैड ने मुझे फोन कर के बताया कि मेरी बच्ची की मृत्यु इंसेफेलाइटिस से हो गई है। यह रोग उस समय काजल के गाँव में काफी प्रचिलित था। वहाँ पर पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं, लिहाज़ा, डॉक्टर उस बच्चे को बचा नहीं पाए! कैसी निराशाजनक सी बात थी यह! किसी अन्य जगह पर अगर काजल होती, तो इस तरह की दिक्कत होती ही न!
मैं परेशान हो गया था।
मैं निराश हो गया था।
मैं मायूस हो गया था।
किसको दोष दूँ अपने दुर्भाग्य के अतिरिक्त? मुझे ऐसा लगने लग गया था कि दुःख के अतिरिक्त मेरे जीवन में कुछ और नहीं बचा था! डैड ने मुझे खुद को सम्हालने को कहा और मुझे दिलासा दी। उन्होंने मुझे एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण दिया : उन्होंने मुझे समझाया कि जहाँ मैंने अपनी संतान खोई है, वहाँ काजल ने भी अपनी नवजात बेटी को खो दिया था! वो बच्ची काजल और मेरे प्यार का प्रतीक थी! उसने नौ महीने तक उस बच्चे को अपने अंदर पाला पोसा था। एक माँ के लिए अपनी संतान खोना कितने दुःख की बात होती है, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल था मेरे लिए! बात तो सही थी। मुझे डैड का दृष्टिकोण समझ में आ गया। फिर डैड ने मुझसे कहा कि वो काजल को घर लिवाने उसके गाँव जा रहे हैं। मुझे लगा कि यह अच्छी बात है।
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मेरी नई नौकरी गैबी के जाने के लगभग दस महीने बाद लगी। नया काम बहुत अच्छा था, और चुनौतीपूर्ण था! मेरे वेतन में भारी वृद्धि मिली थी, और काम में मुझे एक बेहतर रोल भी मिला था। मैंने अपना सारा ध्यान अपने नए काम में लगा दिया। गैबी, मेरी अजन्मी संतान, और मेरी काजल के साथ हुई बेटी - इन तीनों की मृत्यु के दुःख को कम करने का मेरा यही तरीका था! मैंने बहुत मेहनत से, और जी लगा कर काम किया और कुछ ही महीनों में मैं टीम का एक मूल्यवान सदस्य बन गया। किसी नए मेंबर ने मेरे जितनी जल्दी तरक्की नहीं करी। मैं अपने काम में लीन था, और जल्दी ही ऑफिस के महत्वपूर्ण सर्किलों में प्रसिद्ध हो गया।
जल्दी ही मैं अपने नए काम में सहज और सिद्धहस्त हो गया। और आगे जो हुआ, वो कभी पहले उस कंपनी में नहीं हुआ। मुझे छः महीने में उस कंपनी में प्रमोशन भी मिल गया। परिवीक्षा अवधि (प्रोविशनल पीरियड) स्वयं ही छः महीने लंबी थी, और उतनी अवधि में पदोन्नति प्राप्त करना एक अद्भुत उपलब्धि थी! कंपनी की लीडरशिप ने मुझे एक ‘फास्ट-ट्रैक लीडरशिप कैंडिडेट’ के रूप चिन्हित किया, जो कि मेरे करियर के लिए बेहद अच्छा संकेत था। कभी-कभी अपने खाली समय में मैं सोचता था कि मुझे इस तरह से अपने करियर में आगे बढ़ते हुए देखकर गैबी कितनी खुश होती! लेकिन फिर लगता कि अगर वो न होती, तो मैं खुद को इस तरह थोड़े ही जलाता! क्योंकि मैं अपना समय ऑफिस के काम पर खर्च करने के बजाय गैबी के साथ बिताता। गैबी नहीं थी, तो न तो मेरा कोई घर था और न ही संसार! मैं एक खानाबदोश था! सही बात है न?
इसी समय ही सुनील ने अपनी हाई स्कूल की परीक्षा भी उत्तीर्ण करी - वो देश और प्रदेश के टॉपर्स में से एक था! प्रदेश सरकार की तरफ से उसको आगे की पढ़ाई के लिए वजीफ़ा भी मिला! मुझे अब यकीन हो चला था, कि सुनील हम सबका नाम रोशन करेगा!
बहुत ही बेहतरीन और भावुक अपडेट।
बहुत ही बेहतरीन अपडेट
nice update..!!
marvelous update
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति थी। भाई आपकी लेखनी का क्या कहना पर अपडेट 2 से 3 दिन में दो क्योकि इंतज़ार करना बहुत ही मुश्किल हो जाता है। अमर गेबी के दुख से उभर रहा था पर बच्ची की मौत ने फिर उसे गम में डाल दिया। समय सभी दुखो को अंत कर सुखद यादो में परिवर्तित कर देता है। एक साल का अंतराल आपने इन अपडेट्स में दिखया जिससे कहानी को नई दिशा और गति मिली। अगले सुंदर अपडेट्स के इंतजार में .....
nice update..!!
amar aur gabby ka pyaar bahot achha tha lekin jo hogaya usko toh badal nahi sakte..lekin kajol aur amar ka bachha bhi nahi bach paya..unki pyaar ki nishani bhi nahi rahi..lekin kajol fir se pregnant toh ho sakti hai..!! muze lagta hai ab rachana ki entry hogi fir se apne hero ki zindagi me..!!