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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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23,500
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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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Kala Nag

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नया सफ़र - विवाह - Update #12


अगले दिन हम साइकिल चलाते हुए पोर्ट ब्लेयर से वंडूर गए - हमारे होटल से कोई बीस किलोमीटर की दूरी थी।

जैसा कि मैंने पहले भी बताया, उस समय अंडमान में ऐसी किच किच नहीं होती थी, जैसी कि आज है, इसलिए साइकिल चलाना आसान था। हाँ, बस समय अधिक लगा। लोगों ने बताया कि वहाँ मरीन पार्क था, और समुद्र में वहाँ तैराकी करी जा सकती थी। मरीन पार्क दरअसल कई छोटे छोटे द्वीपों का समूह था। इस कारण से समुद्री जीव जंतुओं को फलने फूलने में सुरक्षा प्राप्त थी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि वहाँ कोरल रीफ़ देखे जा सकते थे। तो हमने अपना तैराकी का सामान उठाया, और साइकिल चलाते वंडूर चले गए। वहाँ एक नाव वाले से बात कर के तीन चार द्वीपों तक जाने और वापस आने का सौदा किया। अभी सारे नाम नहीं याद आते, लेकिन शायद उन द्वीपों के नाम ग्रब, चेस्टर, बेले, और स्नॉब थे। प्रत्येक द्वीप निर्जन, शांत, और स्वच्छ! ग्रब द्वीप पर हमने तैराकी के लिए कपड़े बदले - मैंने तो खैर तैराकी वाला नेकर पहना, और देवयानी ने अपना बिकिनी [जो आज कल मोनोकिनी के नाम से जाना जाता है] पहना। रंगीला फ़िल्म में उर्मिला ने जैसी काली बिकिनी पहनी थी - देवयानी की भी वैसी ही थी। कोई कहने की आवश्यकता नहीं कि वो इस समय बड़ी सेक्सी लग रही थी। मेरे मन में एक ख़याल आया - और सोचा कि उसका क्रियान्वयन अवश्य करूँगा।

खैर, हर जगह मैंने और देवयानी ने तैराकी करी। समुद्री पानी में वैसे तो आँखें खोलना आसान नहीं होता, लेकिन अगर स्विमिंग गॉगल्स लगा लें, तो बड़ी आसानी हो जाती है। ख़ास कर वो बड़े वाइसर वाले! नहीं तो स्नॉर्केलिंग गियर एक बेहतर ऑप्शन होता है। अच्छी बात यह थी कि हमारे नाविक के पास स्नॉर्केलिंग गियर थे। तो हमको पानी के अंदर कोरल, असंख्य और विभिन्न प्रकार की रंग-बिरंगी मछलियाँ, क्लैम, समुद्री घास, सॉफ्ट कोरल, अलग प्रकार की स्टार फिश, इत्यादि देखने को मिले। सच में - समुद्र के अंदर का नज़ारा बहुत अलग होता है। विज्ञान के छात्रों को ज्ञात होगा कि ध्वनि की गति जल में वायु की अपेक्षा तीव्र होती है। तो हमको अलग ही तरह की आवाज़ें सुनाई दे रही थीं पानी के अंदर! एक अलग ही दुनिया का अद्भुत नज़ारा होता है समुद्र के अंदर! और हाँलाकि ऊपर से देखने पर समुद्र तल बहुत पास लगता है, लेकिन होता बहुत गहरा है। मछलियों का आकार भी अपेक्षाकृत बड़ा लगता है क्योंकि स्नॉर्केलिंग गियर इस तरह का भ्रम पैदा कर सकता है। कुछ मछलियाँ बहुत बदमाश थीं - वो हमारे पैरों को दाँत से काट रही थीं। बाद में नाविक ने बताया कि शायद हम उनके घोंसले के काफी करीब होंगे, इसलिए वो ऐसा कर रही थीं।

यही सब करते करते जब हम आखिरी द्वीप पर पहुँचे, तो अपने ख़याल को क्रियान्वित करने की इच्छा जागृत हो गई। दरअसल देवयानी वाकई इतनी सेक्सी लग रही थी कि मेरे मन में उसके साथ सम्भोग करने की तीव्र इच्छा हो रही थी। शरीर में ऐसा जोश भर गया था, कि मेरे लिए रुकना लगभग असंभव हो गया था। ऐसी इच्छा तो पहले कभी नहीं हुई! शायद नाविक को भी मेरी इच्छा समझ में आ रही थी - इतना तो वो समझ ही गया था कि हमारी नई नई शादी हुई थी और हम यहाँ हनीमून के लिए आये हुए थे। लिहाज़ा, खुले में सेक्स करने के लिए यहाँ से बेहतर स्थान और क्या हो सकता था? बढ़िया नरम नरम, और सफ़ेद रेत थी वहाँ, और एक तरफ़ सिर्फ बीच! ऊपर नरम गरम धूप फैली हुई थी। बहुत ही सुखद माहौल! टापू के इस तरफ सब खुला खुला था, और नारियल के पेड़ टापू के दूसरी तरफ़ थे।

उसने कहा, “साहब, ये बढ़िया टापू है! आप लोग थोड़ा आराम कर लें कुछ देर! मैं कहीं से डाब (नारियल) तोड़ कर ले आता हूँ!”

पानी में बहुत देर तक रहने से भूख लगने लगती है। हम अपने साथ कुछ चॉकलेट लाए थे, जिसमे से कुछ हमने नाविक को दिया, और कुछ हमने खुद रख लिए। डाब पीने और खाने से भूख कम तो हो ही जाती।

“ठीक है दादा,” मैंने नाविक से कहा, “तीन चार डाब चाहिए होगा हम दोनों को!”

“आप चिंता न करें साहब,” नाविक ने समझते हुए कहा, “कम से कम आधा दर्ज़न लेता आऊँगा!”

उसने कहा, और हमको वहीं किनारे पर छोड़ कर दूसरी तरफ जाने लगा। जब नाविक जा रहा था, तो मैंने उसको आँख मार कर इशारा किया - बदले में उसने भी मुस्कुरा कर सर हिलाया। प्लान तो वो भी समझ गया था। जब कुछ देर बाद वो आँखों से ओझल हो गया, तो मैंने देवयानी को अपनी बाहों में भर के चूमना शुरू कर दिया।

मेरी इस बेसब्री वाली हरकत से वो हँसने लगी।

‘ये हस्बैंड लोग भी न! कैसे बच्चों जैसे होते हैं!’ देवयानी ने मन ही मन सोचा, ‘अपने ऊपर कोई कण्ट्रोल ही नहीं! न तो इनको टाइम का ख़याल होता है, और न ही प्लेस का! बस जहाँ देखो तहाँ, जब मन खेलने का मन किया, तब अपनी वाइफ को छेड़ने लगते हैं! लाइसेंस टू किल!’

मेरे बारे में देवयानी को अब तक लगभग सब कुछ मालूम चल गया था। मैंने अपने बारे में कोई भी बात उससे राज़ बना कर नहीं रखी कभी भी! तो उसको मेरी पसंद, नापसंद - हर बात मालूम थी। उसके कहने पर मैंने उसको गैबी और मेरे बारे में, और काजल और मेरे बारे में सब कुछ बता दिया। गैबी के नाम के एल्बम उससे छिपे नहीं थे। उधर पिछले कुछ दिनों में माँ और काजल भी उसकी करीबी सहेलियाँ बन गई थीं, और जो बातें मुझसे रह गई हों, वो सब उन दोनों से उसको मालूम पड़ गई थीं। अपनी पत्नी या प्रेमिका के साथ मैं बहुत कामुक हो जाता हूँ - यह बात देवयानी अच्छी तरह से जानती थी। और उसको इस बात से कोई शिकायत भी नहीं थी। अगर हस्बैंड वाइफ ‘हॉट’ सेक्स नहीं करेंगे, तो फिर कौन करेगा?

मेरा लिंग कठोर हो कर उसके पेट पर गड़ा जा रहा था। और उधर, मेरे द्वारा लिया जाने वाला चुम्बन, और साथ में किया जाने वाला उसका स्तन-मर्दन - देवयानी की सिसकियाँ बढ़ रही थीं, और उसको भी अपार आनंद मिल रहा था। लेकिन यह भी कोई जगह थी उसको इस तरह उकसाने की?

“क्या इरादे हैं, ठाकुर साहब?”

“नेक तो बिलकुल भी नहीं है ठकुराईन!” मैंने भी खिलंदड़े अंदाज़ में कहा।

“हा हा! अरे थोड़ा तो सब्र रखिए न! वो आदमी आ जाएगा!”

“नहीं आएगा इतनी जल्दी - अब तो वो आपका ‘केक’ कटने के बाद ही आएगा!”

“केक? हा हा हा! बद्तमीज़!”

“ओह, हाँ - सॉरी! केक नहीं! चूत!”

देवयानी ने मेरी बात पर पहले तो मुझे एक चपत लगाई और फिर मेरे गले में अपनी बाहें डाल कर झूलती हुई बोली, “बहुत बेशर्म हो गए हैं आप ठाकुर साहब?”

“अब अपनी बीवी से भी शर्म करूँ फिर तो हो गया काम हमारा!”

“हा हा! तो फिर मत करिए शर्म!” डेवी की अदा वाकई निराली थी - उसने अचानक ही सुर बदलते हुए, बड़ी सेक्सी अदा से कहा, “लेकिन आपका ‘केक’ मीठा नहीं रहा, बल्कि नमकीन हो गया है!”

“मेरी जान, हनीमून में तो नमकीन केक ही खाने में मज़ा आता है!”

देवयानी का शरीर, और उसको सेक्सी बातें, हमेशा ही मुझे रोमांचित कर देने के लिए काफी थीं! मैंने उसकी बिकिनी को उसके कन्धों की तरफ से, किसी केले के छिलके की तरह उतारते हुए उसको अर्धनग्न कर दिया, और फिर उसके शरीर के हर अंश को चूमने लगा।

देवयानी सिसकारी भरने लगी, “जानू! अभी नहीं! होटल में करते हैं न? ओह्ह… अगर वो आदमी आ गया तो?”

“तो क्या? तुम भी तो एक और लण्ड सैंपल करना चाहती हो न? उसी को बोल दूँगा!”

मेरी बात से देवयानी चौंक गई - “आह्ह! धत्त! नहींन्न!”

“क्यों? नहीं चाहिए?”

“जानू! वो मेरी फंतासी है! लेकिन वो मैं केवल एक बार करना चाहती हूँ! इसलिए अगर करना है, तो स्पेशल करवाना! नहीं तो आई ऍम मोर दैन फुल्ली सैटिस्फाइड!”

“हम्म! ठीक है मेरी जान! लेकिन वो आदमी इतनी जल्दी वापस नहीं आएगा! कम से कम आधा घंटा लेगा!”

“हा हा! आपका आधे घंटे में होता भी क्या है?”

“क्यों? कल की क्विकी में मज़ा नहीं आया?”

“बहुत मज़ा आया,” उसने कहा, और फिर मेरे स्विम-निक्कर को नीचे सरका कर बोली, “लेकिन पहले आपके नमकीन केले को मीठा बना दूँ?”

उसने कहा, और मेरे सामने रेत पर घुटने के बल बैठ गई, और मेरे उत्तेजित लिंग को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी! देवयानी को अभी भी सीखना बाकी था, लेकिन फिर भी, वो जो कर रही थी, उसमे मुझे असीम आनंद मिल रहा था! उसने केवल एक या दो मिनट ही मुख-मैथुन किया होगा, लेकिन मुझे उतने में ही ऐसी कामुक गुदगुदी हुई, कि मैं क्या कहूँ! मैंने उसको जल्दी ही रोक दिया, कि कहीं उसके मुँह में ही स्खलित न हो जाऊँ!

“क्या हुआ?” उसने आश्चर्य से पूछा, “मज़ा नहीं आया क्या बाबू?”

“बहुत मज़ा आया मेरी जान!” मैंने उसके मुख को चूमते हुए कहा, “लेकिन चाकू इस समय तेज़ है! केक काट देता हूँ!”

“हा हा हा हा!” डेवी दिल खोल कर हँसी, “ओह! ये बात है?”

मैंने उसका स्विमसूट जल्दी से उतार दिया और उसको पूर्ण नग्न कर दिया। मारे आवेश में उसकी बिकिनी मैंने थोड़ी दूर फेंक दी।

“हाँ जी! ये तेज़, गरम चाकू, इस केक को अच्छी तरह से काटेगा अब!”

“काट दो मेरे राजा!” देवयानी ने बड़ी कामुक अदा से कहा, “जैसा मन करे, वैसे काटो इस केक को!”

मेरी और देवयानी दोनों की ही हालत बहुत खराब थी - मेरा लिंग तो ऐसा कठोर हो रखा था कि मानों हल्के से दबाव से फट जाए। और उधर देवयानी की योनि भी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी। मुझसे अब और रहा नहीं जा रहा था - मैंने बिना किसी भूमिका के, डेवी के होंठ चूमते हुए अपने, लिंग को उसकी योनि के द्वार पर सटा कर एक ज़ोर का धक्का लगाया… मेरा लिंग वाकई उसकी योनि में ऐसे सरकता चला गया, जैसे किसी केक को चाकू से काट दिया गया हो। डेवी के मुँह से एक कामुक सी आवाज़ निकल गई।

“आह्ह्ह्ह जानू! फ़क मीईईई!” वो कामुकता से कराही, “फ़क मी हार्ड! इम्प्रेग्नेट मी!”

वैसे तो लग रहा था कि लगभग तुरंत ही स्खलित हो जाऊँगा, लेकिन देवयानी के अंदर जा कर लगा कि मोर्चा कुछ देर तक सम्हाला जा सकता है। उसके साथ तेजी से सम्भोग गया, लेकिन फिर भी कोई पाँच मिनट बीत गए। सोचा, कि कुछ मज़ा और बढ़ाते हैं - इसलिए मैंने डेवी को ऊपर उठा लिया, और खुद उसके नीचे आ गया। यह मज़ेदार था - देवयानी िस्तनी मस्त हो चली थी, कि शायद उसको हमारी इस बदली हुई अवस्था का ध्यान भी न रहा हो! वो मेरे लिंग पर अपनी योनि को निर्धारित कर के पहले की ही भांति धक्के लगाने लगी। इस अवस्था में मुझको खुद पर अधिक नियंत्रण महसूस हो रहा था। कोई पाँच मिनट और बीत गए, और इस नए ‘आसन’ में सम्भोग की पूरी क्रिया के दौरान देवयानी का शरीर इस तरह थरथराता रहा कि जैसे वो पूरा समय ओर्गास्म महसूस कर रही हो!

“कैसा लग रहा है मेरी जान?” मैंने पूछा।

ओह गॉड! यू विल किल मी, हनी!”

देवयानी वाकई बहुत ही कामुक थी! उसके साथ सम्भोग कर के मुझे किसी राजा के ही जैसा महसूस होता था। अब हमारा खेल अपने पूरे शबाब पर पहुँच गया था। मैंने देवयानी को नीचे से ही भोगते हुए, उसके नितम्बों को सहलाना आरम्भ कर दिया। मैं जल्दी ही स्खलित होने वाला था; और अधिक देर खलने की हिम्मत अब नहीं थी। समुद्र के पानी ने पहले ही बहुत ताकत निकाल दी थी, और ऊपर से तीव्र सम्भोग!

मैंने अचानक ही एक बलवान झटका मारा, और देवयानी के गर्भ की गहराई में जा कर मेरे लिंग ने अपना ‘पे लोड’ छोड़ना शुरू कर दिया! कुछ ही क्षणों में मेरी बीवी की कोख मेरे वीर्य से भर गई…

“आह मेरी जान… आह! मज़ा आ गया…”

मैं देवयानी के ऊपर ही निढाल हो गया। डेवी भी संयत होकर गहरी साँसे भरती हुई लेट गई! लेकिन वो ऐसे आसानी से छूटने वाली नहीं थी। मैंने उसके होंठों, आँखों, कानों, गले और स्तनों पर अपने गर्म चुंबनो की झड़ी लगा दी। कुछ ही देर बाद मेरा लिंग सिकुड़ कर खुद ही उसकी योनि से बाहर आ गया।

हम दोनों अभी भी एक दूसरे के आलिंगन में बंधे हुए थे।

“अमर?” डेवी ने बड़ी ही कोमलता से मुझे पुकारा।

“हम्म?”

“एक बात कहूँ?”

“बोलो न?” मैंने उसके एक चूचक को चूमते हुए कहा।

“मैं चाहती हूँ कि हमारा बच्चा तुम्हारे जैसा हो!”

“मेरे जैसा? क्यों?”

“तुम बहुत भोले हो! इसलिए!” उसने मुझे प्यार से देखते हुए कहा।

“मैं भोला हूँ?”

देवयानी ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“और जो मैं हमेशा ये तुम्हारा ‘केक’ काटता हूँ, वो?” मैंने देवयानी को छेड़ते हुए कहा।

“प्यार करना भी तो भोलेपन की ही निशानी है!” वो बोली, “मुझे मालूम है कि तुम बहुत ‘हॉट’ हो! लेकिन तुम्हारा सारा प्यार मुझ पर ही निछावर है!”

“और किसको प्यार करूँ?” मैंने भावनात्मक अंदाज़ में कहा, “तुमने मुझे उस समय जीने की आस दिखाई, जब मैं बस एक मशीन बन कर रह गया था! इमोशनलेस! तुमने मुझे दिखाया कि फिर से जिया जा सकता है! तुमको नहीं, तो फिर और किसको प्यार करूँ!”

“इसीलिए तो कह रही हूँ, अमर, कि मैं चाहती हूँ कि हमारा बच्चा तुम पर जाए!” वो प्यार से मुस्कुराई, “तुम्हारी जैसी सच्चाई, तुम्हारे जैसी मोहब्बत, हमारे बच्चे में चाहिए मुझे!”

मैंने उसको प्यार से चूमा, “और मैं चाहता हूँ कि हमारा बच्चा तुम पर जाए! तुम्हारे जैसी खूबसूरती - शरीर की भी, और मन की भी! तुम्हारी बुद्धिमानी! तुम्हारे जैसा प्यार! सब क्वालिटीज़ चाहिए!”

“हा हा हा! मिस्टर सिंह, बच्चों में बुद्धिमानी उनकी माँ से ही आती है!”

“ये तो और अच्छी बात है! मुझसे तो बस ‘भोलापन’ ही मिलेगा!”

“हा हा हा हा हा!” डेवी ज़ोर से हँसी; फिर मेरे सीने पर अपनी उंगली से वृत्त बनाते हुए बोली, “तुमको मालूम है - पहले मैं सोचती थी कि मुझे काजल से जलन होगी, या फिर कम्पटीशन जैसा लगेगा!”

काजल का नाम सुन कर मेरे कान खड़े हो गए - कहीं कोई शिकायत तो नहीं है डेवी को!

“लेकिन,” उसने कहना जारी रखा, “सरप्राइसिंगली मुझे वैसा कुछ भी फील नहीं होता उसके लिए! वो मुझे बहुत प्यार करती है! और... मैं भी!”

“हम्म्म! तो आपको भी काजल अच्छी लगने लगी?”

“हाँ न! आई ऍम सरप्राइज़्ड!”

“हा हा हा! हाँ, वो है ही ऐसी! मेरा खुद का रिलेशनशिप उसके साथ कितना बदल गया है! आई थी वो मेड बन कर! लेकिन अब तो वो मेरी बड़ी बहन - या गार्जियन - जैसी है!”

“हाँ! मुझे भी बड़ी बहन के ही जैसे ट्रीट करती हैं!”

“अरे वो बहुत अच्छे घर से है! बस, अपने घरवालों की बैकवर्ड थिंकिंग, और फिर ग़लत शादी के कारण उसकी ऐसी हालत हो गई! नहीं तो वो बहुत कुछ कर सकती थी अपनी लाइफ में!”

“अच्छा, एक बात पूछूँ? सही सही बताओगे?”

“ज़रूर! तुमसे कभी कुछ नहीं छुपाऊँगा!”

“उम्म्म... काजल या गैबी के साथ सेक्स करने में कैसा लगता था? मतलब, वो क्या अच्छा करती थी? मुझे क्या करना चाहिए?”

“अरे यार! कैसी बात पूछ रही हो मेरी जान? इसका आंसर कैसे दूँ?”

“देखो, तुमने प्रॉमिस किया है!”

“हम्म्म! कैसा लगता था? बहुत अच्छा लगता था - ठीक वैसा ही जैसे तुम्हारे साथ लगता है! सुख! संतुष्टि! पीस! पूरा मन और शरीर शांत हो जाता है! और तुमको कुछ भी अलग करने की ज़रुरत नहीं है! आई ऍम वैरी वैरी वैरी हैप्पी विद यू!”

“ठीक है! मान लेते हैं!” डेवी ने अदा से कहा, “लेकिन मुझको बताना ज़रूर अगर कुछ वेरिएशन चाहिए हो, तो!”

“ठीक है ठकुराईन!”

“हा हा हा! अब जाओ, जल्दी से नाव से मेरे सूखे कपड़े निकाल लाओ! ये बिकिनी तो अब मैं नहीं पहन पाऊँगी!”

जब तक नाविक वापस आया, तब तक हम दोनों अपने अपने सूखे, हलके कपड़े पहन कर तैयार हो गए। नाविक के लाए हुए नारियल का पानी पिया, और उसकी मलाई खाई। कुछ संतुष्टि मिली। मुझे पक्का यकीन था कि हमारे शरीर की रंगत बहुत साँवली हो चली है - ऐसी चटक धूप में और क्या उम्मीद करी जाए? लेकिन उससे क्या फ़र्क़ पड़ता है? शरीर में विटामिन डी भी तो बन रहा था खूब! हमारे लिए वही बहुत है!

***
केक, चाकू, विटामिन, नमकीन, मीठा
वाह वाह वाह
अब क्या कहूँ नायक कितना भोला और भला है
👌👌👌☺️☺️☺️
सच है यह एक फैंटेसी ही है
और इसके लिए
वाव
 
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नया सफ़र - विवाह - Update #13


अगले दो तीन दिन ऐसे ही बीत गए।

हम खाना खाते, अपनी अपनी साईकिलें उठाईं, और अपने आस पास घूमने चल देते। यही हमारा रूटीन हो गया। खुली, गुनगुनी धूप में और समुद्री महक वाली हवा में साईकिल चलना बहुत अच्छा लगता है। समुद्र का फिरोज़ी नीला जल, उसमें उठती बैठती अनंत लहरें, लहरों का शोर और लहरों की ही शांति! सच में - इससे अधिक सुख संभव नहीं है! बहुत अनूठा अनुभव होता है ये। समुद्र के शोर में भी असीम शांति होती है। मैं और डेवी यही बातें करते कि जैसे यहाँ वर्षों तक रहा जा सकता है। जब मन करता हम समुद्र में तैराकी करते, इधर उधर घूमते, और फिर जहाँ मौका मिलता, वहाँ जम कर गर्मागरम सेक्स करते!

नए नए शादी-शुदा जोड़े, अपने हनीमून में और क्या करें?

हम इस पूरे समय यहीं, पोर्ट ब्लेयर में ही रहे।

एक दिन हम दोनों अपने दैनिक गतिविधियों का आनंद लेने के बाद एक ढाबे में पकौड़े और चाय का आनंद ले रहे थे। एक बात तो है - चाय और पकौड़े बढ़िया मिलते थे उस समय! हम अदरक वाली चाय की चुस्कियाँ ले ही रहे थे कि,

“नमस्ते?” एक बेहद अंग्रेज़ बोली में किसी स्त्री की आवाज़ आई।

“हैलो?” मैंने मुड़ कर कहा, लेकिन फिर सम्हल कर, “नमस्ते!”

पीछे मुड़ा तो देखा कि एक श्वेत मूल की महिला हमारी तरफ़ देख कर मुस्कुरा रही थी। लेकिन वो न तो अमेरिकन थी, और न ही अंग्रेज़। जैसा मैंने कहा - उसकी बोली (एक्सेंट) अलग थी।

आई थिंक यू हैव कम हेयर फॉर योर हनीमून?” महिला ने कहा, “आई हैव सीन अ फ्यू मैरिड वीमेन वेअरिंग हेंना ऑन दीयर हैंड्स इन इंडिया! ऍम आई राइट?”

यस!” डेवी ने चहकते हुए कहा, “वी मैरीड जस्ट फोर डेज बिफोर!”

ओह वाओ! अमेजिंग! कोंग्रेचुलेशन्स टू बोथ ऑफ़ यू!!” उस महिला ने कहा!

थैंक यू सो मच!” मैंने और डेवी दोनों ने साथ में उसका धन्यवाद किया।

आई ऍम मरी, बाई दी वे!” उसने अपना परिचय दिया, “एंड दिस इस माय हस्बैंड, गेल!”

सो नाइस टू मीट यू, मरी एंड गेल!” मैंने उनसे हाथ मिलाते हुए कहा, “आई ऍम अमर, एंड शी इस माय लवली वाइफ, डेवी!”

“अमर, डेवी!” गेल ने हमसे हाथ मिलाते हुए हमारा अभिवादन किया।

व्हाई डोंट यू ज्वाइन अस फॉर टी?” डेवी ने उन दोनों को निमंत्रण दिया।

व्हाई थैंक यू!” मरी ने अपने सीने पर हाथ रखते हुए इस निमंत्रण को सहर्ष स्वीकार कर लिया।

जब दोनों हमारे साथ बैठ गए, तो गेल पहली बार पूरे वाक्य में बोला, “डिड यू लाइक योर स्टे इन पोर्ट ब्लेयर सो फार?”

ओह, वी फाउंड इट टू बी अमेजिंग!” देवयानी ने कहा, “वी डिड नॉट सी अ मोर ब्यूटीफुल प्लेस इन इंडिया बिफोर!”

ग्रेट टू नो!” गेल ने कहा, “वी लिव इन फ्राँस... इन अ ब्यूटीफुल सिटी कॉल्ड नीस! एंड आई एग्री विद यू - अंडमान इस वे मोर ब्यूटीफुल! ग्रेट प्लेस फॉर हनीमून!”

सो हाऊ लॉन्ग हैव यू बीन इन हियर?” मैंने पूछा।

डू यू मीन इन अंडमान, ऑर इन इंडिया?”

“ओह! आई मीन बोथ!”

“ओह! वी आल्सो केम हियर फॉर आवर हनीमून - आई मीन, काइंड ऑफ़! वी लैंडेड इन डेल्ही एंड टुक अ फ्लाइट टू पोर्ट ब्लेयर! सो, वी हैव बीन हियर फॉर अबाउट अ वीक नाउ!” मरी बोली, “फ्रॉम हियर, वी आर गोईंग टू हैवलॉक आइलैंड! आई हैव हर्ड दैट हैवलॉक इस इवन मोर ब्यूटीफुल!”

“ओह?”

यस!” मरी ने उत्साह में आते हुए कहा, “वी विल लीव टुमारो... अर्ली मॉर्निंग!”

नाइस!”

हमने उन दोनों के लिए भी चाय और पकौड़े आर्डर किए। खाते पीते उन्होंने बताया कि वो फ़्रांस से हैं, नीस नामक शहर में रहते हैं। गेल की उम्र चौंतीस साल है, और मरी की तैंतीस साल! दोनों इन्वेस्टमेंट बैंकर थे, और बहुत ही व्यस्त रहते थे। एक बेहद लम्बे अर्से के बाद दोनों ने कोई लम्बी छुट्टी ली थी - वो दोनों कोई तीन महीने की छुट्टी पर थे। ठीक भी है - अगर बिना छुट्टी काम करते हुए कोई एक दशक बीत जाय, तो तीन महीने की छुट्टी की क्या बिसात है? उनको लगा कि भारत में उस छुट्टी का आनंद उठाया जाए! बढ़िया बात है - हमारे देश में उस समय पर्यटन सस्ता था, और हम विकास की ओर नए नए अग्रसर हो रहे थे। भारतीय बाज़ार खुले हुए बस पाँच छः साल ही हुए थे। उन्होंने ही बताया कि उनको अंडमान बहुत ही बढ़िया जगह लगी, और उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि चूंकि हम दोनों हनीमून पर थे, अंडमान हमारे लिए एक बेहतरीन अनुभव होने वाला था!

फिर बातों ही बातों में बात इस बात पर आ गई कि क्यों न हम भी हैवलॉक चलें? हम हनीमून पर आए हुए थे, और हैवलॉक में बहुत ही अधिक एकांत था। वहाँ कोई अधिक लोग जाते भी नहीं थे, और अभी भी बहुत ही बेसिक सी जगह थी वो! हाँ, खाने पीने को मिल जाता है। हमने जब पूछा कि उनको इतना कैसे मालूम है, तो उन्होंने बताया कि उनके दोस्त यहाँ हाल ही में आए थे।

अच्छी बात थी - हमने उनसे कहा कि हम इस बारे में सोचेंगे, और अगर बात बनती है, तो हम अवश्य ही आएँगे। शाम को हमने अपने अपने घरों में कॉल किया कि हम दोनों बढ़िया से हैं, और अपनी शादी-शुदा ज़िन्दगी का भरपूर आनंद ले रहे हैं। देवयानी के डैडी से बात कर के हमने हैवलॉक जाने का आईडिया डिसकस किया। उन्होंने भी बताया कि उन्होंने भी सुना है वहाँ के बारे में। और हम अवश्य वहां जाएँ! न जाने फिर से वहां जाने ला अवसर कब मिले! एक बार बच्चे हो जाते हैं, फिर घूमने फिरने के मौके तलाशने पड़ते हैं। हमने शाम को ही अपने होटल वाले को बोला कि हम सवेरे हैवलॉक जाएँगे। ऐसे अचानक से होटल छोड़ने से वो दुःखी नहीं हुआ - बल्कि उसने हमारी हैवलॉक यात्रा के लिए जो भी संभव था, वो सब किया।

तो अगली सुबह हैवलॉक द्वीप की ओर चल पड़े!

हैवलॉक द्वीप पोर्ट ब्लेयर से कोई चालीस किलोमीटर दूर होगा, लेकिन पानी में जाने के कारण समय बहुत लग जाता है। आज कल इस द्वीप का नाम स्वराज रख दिया गया है, लेकिन असल में इसका नाम हैवलॉक पड़ा था एक अंग्रेज़ जनरल हेनरी हैवलॉक के कारण! हैवलॉक ने आज़ादी के पहले संग्राम में स्वतंत्रता सेनानियों को हारने, और कानपुर पर फिर से अंग्रेज़ों का कब्ज़ा जमाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उसकी मृत्यु उसी युद्ध के दौरान पेचिश से हुई - सोचिए! खैर, उसके परिवार को अंग्रेज़ी हुकूमत की तरफ़ से एक हज़ार पॉउंड का पेंशन दिया गया - जो आज के कोई सवा सौ हज़ार पॉउंड के बराबर है! मतलब एक बहुत ही बड़ी रकम! अगर आप लखनऊ जाएँ, तो आलमबाग में उसकी कब्र आज भी मौज़ूद है! खैर, ये तो हुआ थोड़ा इतिहास!

हैवलॉक द्वीप कोई 150 वर्ग किलोमीटर के आकार का छोटा सा द्वीप है। वहाँ जाने का एकमात्र साधन एक सरकारी नौका थी। आज कल निजी कम्पनियाँ भी नौकाएँ चलाती हैं, लेकिन तब केवल सरकारी नौका चलती थी। वो नौका ‘भारतीय मानक समय’ मतलब, इंडियन स्टैण्डर्ड टाइम पर चलती थीं - कहने का मतलब ये है कि उनके चलने का एक नियत समय तो था, लेकिन वो अपने नियत समय पर शायद ही कभी चलती थीं! हमेशा लेट! तो अगर किसी को पोर्ट ब्लेयर से हैवलॉक जाने की जल्दी हो, तो वो अपने अनुभव से अवश्य ही निराश हो सकता था! लेकिन, चूँकि हम वहाँ अपने वेकेशन पर गए थे, इसलिए ऐसी देरी से हमको कोई दिक्कत नहीं थी।

सप्ताह के बीच का दिन था, इसलिए अधिक सवारियाँ नहीं चढ़ी थीं। फिर भी नौका बड़ी देर से निकली। चलते समय हमने कुछ पकौड़े पैक करवा लिए थे - और अच्छा किया कि हमने वो काम किया। नहीं तो भूख से बिलबिला जाते हैवलॉक जाते जाते! पोर्ट ब्लेयर से हैवलॉक जाना बड़ा सुखद अनुभव था। धीरे धीरे चलती नौका, गहरा नीला-फ़िरोज़ी समुद्र, हलकी हलकी लहरें, नीला आसमान! क्या आनंद! सबसे अच्छी बात यह कि गेल और मरी, दोनों ही मज़ेदार लोग थे। पूरा समय वो हमको अपने जीवन की कोई न कोई रोचक कहानी सुनाते रहे। एक अलग देश के बारे में जानना वैसे भी मुझे हमेशा से पसंद था। उसी जिज्ञासा के कारण मुझे गैबी मिली थी!

गेल ने बताया कि उनकी शादी को कोई बारह साल हो गए थे। इस दौरान वो दोनों अपने काम और पैसे कमाने के चक्कर में लगे हुए थे। लेकिन अब उनको अपनी एक संतान करने का मन था। पिछले दो साल से वो अपना बच्चा पैदा करने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन न जाने क्यों वो मुश्किल हो रहा था। बहुत कोशिश के बाद भी मरी गर्भधारण नहीं कर पा रही थी। उनका मानना था कि अगर वो अपने संसार के सारे झंझट और जंजाल एक तरफ़ रख कर, कुछ दिन आराम से, किसी शानदार छुट्टी में बिताएँ, और बढ़िया खाना खाएँ और किसी सुन्दर जगह में रहें, तो संभव है कि मरी प्रेग्नेंट हो जाए। हो भी सकता है - हम जानते हैं कि तनाव भरे जीवन में गर्भ-धारण करना कठिन होता है। यदि स्त्री और पुरुष दोनों प्रसन्न हो, स्वस्थ हो, तो चालीस, पैंतालीस की उम्र में भी प्राकृतिक रूप से गर्भ-धारण करना संभव है। उन्होंने जब हमसे हमारे बच्चों के प्लान के बारे में पूछा, तो देवयानी ने तुरंत कह दिया कि वो तो चाहती है कि वो हनीमून के दौरान ही प्रेग्नेंट हो जाए! मुझे इस बात से कोई परेशानी नहीं थी - मुझको बच्चे पसंद थे और हैं! माँ और डैड भी चाहते थे कि हमारा परिवार आगे बढ़े। इसलिए देवयानी की जल्दबाज़ी हास्यास्पद सही, लेकिन मुझे पूरी तरह स्वीकार्य थी!

पोर्ट ब्लेयर की तुलना में हैवलॉक की जनसंख्या और भी कम थी - मतलब बहुत ही कम! शायद कोई पाँच हज़ार के आस पास! देश में इतनी कम जनसँख्या छोटे गाँवों में ही देखने को मिलती है। स्थानीय लोगों के अतिरिक्त, अधिकांश लोग देशी और विदेशी पर्यटक, बैकपैकर, और हनीमून करने वाले लोग होते थे वहाँ। एक बात बड़ी दिलचस्प थी - देसी लोगों के मुकाबले, विदेशी लोगों को अंडमान के बारे में अधिक पता था, और उन्ही पर्यटकों में वो बहुत प्रसिद्ध भी था। भारतीय पर्यटकों को अपने ही देश के हिस्से के बारे में बहुत कम मालूम था! हम दोनों को भी वही मालूम चल रहा था जो गेल और मरी बता रहे थे।

उन्होंने ही बताया कि उन्होंने एक सुन्दर से झोपड़े में रहने का प्लान किया है। आज कल ये एक तरह का चलन है, लेकिन उस समय हैवलॉक में बहुत ही कम ऑप्शन उपलब्ध थे। उन्होंने ही बताया कि वो बेसिक सा इंतजाम है, लेकिन समुद्र के किनारे है और ऊपर से वहाँ बड़ी शांति है। और सस्ता भी! तो हमने भी वहीं रुकने की सोची! जब हम रास्ते में एक खटारा बस से अपने ‘रिसोर्ट’ के पास उतरे, तो पाया कि एक बहुत ही सुन्दर बीच के बगल, फूस की, विशाल झोपड़ियाँ बनी हुई थीं! हर झोपड़ी बहुत बेसिक सी थी - उनमें एयर कंडीशनिंग नहीं थी - सीलिंग पंखे भी नहीं थे। हाँ, टेबल/पैडस्टल पंखे थे! बल्ब भी थे। लेकिन बिजली का इंतजाम कोई ठीक नहीं था। हवा में समुद्री नमी साफ़ महसूस हो रही थी, और उसके कारण शरीर में पसीना भी बन रहा था। लेकिन क्या सुन्दर और स्वच्छ जगह थी वो! झोपड़ियों के बगल से ही लगभग सफ़ेद रेत और पारदर्शी समुद्री पानी! असंभव दृश्य! इतना पारदर्शी कि आप किनारे पर खड़े होकर पानी में मछलियों को तैरते हुए देख सकते थे।

यह ‘रिसॉर्ट’ एक स्थानीय व्यक्ति का था। वो वहीं पास ही में रहता था। काम करने के लिए उसने कुछ निकोबारी लोगों को नियुक्त किया हुआ था - उनको अपनी भाषा और बंगाली भाषा आती थी। हिंदी और अंग्रेजी में उनका हाथ तंग था, लेकिन काम चल जाता था। हैवलॉक में उन दिनों बिजली का विश्वसनीय इंतजाम नहीं था। कुछ स्थानों पर डीजल जनरेटर लगे हुए थे, लेकिन वो भी उनका बहुत कम ही इस्तेमाल करते थे। तो, हमारी दिन की सारी गतिविधियाँ - सुबह उठने से लेकर रात में सोने तक - सूर्य की चाल से ही जुड़ी हुई थीं। वहाँ खाना भी मामूली था, लेकिन बहुत स्वादिष्ट था! मछली या समुद्री खाना खाने वालों के लिए तो समझिए स्वर्ग था। लेकिन ऐसा नहीं है कि मेरे खाने के लिए कुछ भी नहीं था। मुझको भी स्वादिष्ट सब्ज़ियाँ, दाल, चावल, दही, पनीर इत्यादि उपलब्ध था!

कुल मिलाकर उस झोपड़ी के रिसॉर्ट में रहने का हमारा अनुभव अनोखा, और शानदार था। रिज़ॉर्ट के आसपास का क्षेत्र एक हरा-भरा जंगल था, और जिसमें आप स्थानीय वन्यजीवन आसानी से देख सकते थे। हर्मिट केकड़े, अंडमान गेक्को, अनेक प्रकार की तितलियाँ, और विभिन्न प्रकार के पक्षी - जिनमें गोल्डन ओरियोल, किंगफिशर, वुडपेकर, अंडमान सरपेंट ईगल शामिल हैं! और तो और, एक हरे रंग का साँप भी देखा हमने। हैवलॉक के समुद्र तट और बीच ज्यादातर खाली ही थे! खुद के लिए एकांत खोजना बहुत ही आसान था। समुद्र तट अनछुए थे, उनकी रेत सफेद और साफ थी, और पानी थोड़ा गर्म और स्वच्छ था। यह हमारी रोमांटिक कल्पनाओं का एक दृश्य था... ये था हमारा स्वर्ग!

पहले ही दिन देवयानी और मैंने निश्चित किया कि हम अपनी बाकी का हनीमून यहीं हैवलॉक द्वीप में ही बिताएंगे!
हैवलॉक द्वीप का नाम स्वराज सुभाष चंद्र बोस जी ने रखा था l बाकी जिस तरह का विवरण आपने दिया है मुझे नहीं लगता ऐसा वातावरण आज भी वहाँ पर होगा
खैर उम्दा अपडेट
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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केक, चाकू, विटामिन, नमकीन, मीठा
वाह वाह वाह
अब क्या कहूँ नायक कितना भोला और भला है
👌👌👌☺️☺️☺️
सच है यह एक फैंटेसी ही है
और इसके लिए
वाव

भाई साहब - सेक्स करना, सेक्सी होना - यह कोई बेईमानी की निशानी तो नहीं! खासतौर पर तब जब अपनी ही पत्नी से किया जाए और पूरी शिद्दत से किया जाए! इसलिए कहानी का नायक भोला तो है ही। भला भी बहुत है - उसकी भलाई की कहानियाँ आप बहुत शुरुवात में पढ़ ही चुके हैं। :)
कहानी कहने सुनने का मज़ा ही तभी है जब उसमे थोड़ा मिर्च मसाला पड़ा हुआ हो। नहीं तो ढर्रे की लाइफ की कहानी किसको कहनी सुननी होती है? इसलिए फंतासी का पुट होना आवश्यक है।
 

avsji

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हैवलॉक द्वीप का नाम स्वराज सुभाष चंद्र बोस जी ने रखा था l बाकी जिस तरह का विवरण आपने दिया है मुझे नहीं लगता ऐसा वातावरण आज भी वहाँ पर होगा
खैर उम्दा अपडेट

हाँ - हैवलॉक का नाम नेता जी ने ही दिया था। मारे इमोशन के उन्होंने एक द्वीप का नाम शहीद भी रख दिया था! भला सोचो - द्वीप कैसे शहीद हो सकता है? 🤦‍♂️
बिकिनी एटोल भी एटम बम दगाने के बाद बचा हुआ है!
हैवलॉक का नाम अभी हाल ही में स्वराज रखा गया है - ऑफिशियली।
 

Kala Nag

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भाई साहब - सेक्स करना, सेक्सी होना - यह कोई बेईमानी की निशानी तो नहीं! खासतौर पर तब जब अपनी ही पत्नी से किया जाए और पूरी शिद्दत से किया जाए! इसलिए कहानी का नायक भोला तो है ही। भला भी बहुत है - उसकी भलाई की कहानियाँ आप बहुत शुरुवात में पढ़ ही चुके हैं। :)
हाँ भाई सच कहा पर वह क्या है कि हम दुदु और सुसु से आगे बढ़ ही नहीं पाए l क्या करें
और चारदीवारी से बाहर एडवेंचर करने की हिम्मत ना थी ना है
😉
कहानी कहने सुनने का मज़ा ही तभी है जब उसमे थोड़ा मिर्च मसाला पड़ा हुआ हो। नहीं तो ढर्रे की लाइफ की कहानी किसको कहनी सुननी होती है? इसलिए फंतासी का पुट होना आवश्यक है।
तभी तो जो जी ना सके वह इमेजिन कर लेते हैं अब चूँकि द्वीपों की भौगोलिक वर्णन इतना सुंदर है आपकी कहानी को याद करने के लिए अंडमान इस वर्ष के दशहरे के छुट्टी में जाएंगे जरूर
 

Kala Nag

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हाँ - हैवलॉक का नाम नेता जी ने ही दिया था। मारे इमोशन के उन्होंने एक द्वीप का नाम शहीद भी रख दिया था! भला सोचो - द्वीप कैसे शहीद हो सकता है? 🤦‍♂️
बिकिनी एटोल भी एटम बम दगाने के बाद बचा हुआ है!
हैवलॉक का नाम अभी हाल ही में स्वराज रखा गया है - ऑफिशियली।
सही कहा आपने
 

avsji

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हाँ भाई सच कहा पर वह क्या है कि हम दुदु और सुसु से आगे बढ़ ही नहीं पाए l क्या करें
और चारदीवारी से बाहर एडवेंचर करने की हिम्मत ना थी ना है
😉

अरे तो आप भी भोले हैं 😅

तभी तो जो जी ना सके वह इमेजिन कर लेते हैं अब चूँकि द्वीपों की भौगोलिक वर्णन इतना सुंदर है आपकी कहानी को याद करने के लिए अंडमान इस वर्ष के दशहरे के छुट्टी में जाएंगे जरूर

ज़रूर जाएँ 👍 उम्मीद है कि मज़ा आएगा
दशहरे में त्योहार का माहौल भी रहता है वहाँ
 

Kala Nag

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अरे तो आप भी भोले हैं 😅
😁🙏😁🙏😁😛😂
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दशहरे में त्योहार का माहौल भी रहता है वहाँ
👍👍👍
 
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नया सफ़र - विवाह - Update #14


देवयानी का परिप्रेक्ष्य :


आज की सुबह मैं बहुत जल्दी उठ गई! घड़ी देखी तो केवल चार ही बज रहे थे! कैसी गहरी ख़ामोशी पसरी हुई थी चारों ओर! केवल समुद्र की लहरों की आवाज़ें! रात अमर ने मुझे थका दिया, फिर भी नींद खुल गई - और ऐसी खुली कि लग रहा है कि पूरी तरह से फ्रेश हूँ। अमर को देखा - वो अभी भी सो रहे हैं - मैं मुस्कुराई - कभी सोचा भी न था कि वो मेरे हस्बैंड भी बनेंगे! मैंने अलसाई हुई अंगड़ाई ली - शरीर जैसे टूट रहा हो! लेकिन आँखों से नींद गायब है! मैं चुपके से बिस्तर से उठी, और दबे पाँव चलते हुए क्लोसेट तक गई, वहाँ अपनी नाइटी उठाई, पहनी, और कमरे से बाहर झोपड़ी के आहाते में आ कर आराम-कुर्सी पर बैठ गई। समुद्र की नमी वाली हवा, अँधेरा, और लहरों की आवाज़ - यह इतना आराम देने वाला एहसास था कि क्या कहूँ!

आराम-कुर्सी पर पसर के मैं बीते कुछ महीनों की बातें सोचने लगी।

कुछ कहानियाँ परी-कथाओं जैसी होती हैं! उनको कहने सुनने में कोरी गप्प जैसी लगती हैं। मेरी और अमर की कहानी भी बहुत कुछ वैसी ही लगती है। जब मैं अमर से पहली बार मिली थी, तब वो इंटरव्यू देने ऑफिस आया हुआ था। कुछ लोग बहुत ही बुद्धिमान होते हैं और लगते भी हैं। अमर भी उन्ही लोगों जैसा था - लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब सी उदासी देखी थी मैंने। उदासी या गुस्सा? कुछ ठीक से कहना मुश्किल है। ऐसा नहीं है कि मैं उसकी पर्सनालिटी से बहुत इम्प्रेस हो गई हूँ। सच कहूँ, तो उसकी पर्सनालिटी में वैसा कुछ भी नहीं था। हाँ, देखने भालने में हैंडसम तो था, लेकिन बस इतना ही। अपने में खोया हुआ सा! चुप-चाप! रिजर्व्ड! जैसे अपने चारों तरफ़ क़िले की दीवार बना रखी हो! इतनी कम उम्र का इतना सीरियस आदमी मैंने नहीं देखा था - यह बात तो सच है। लेकिन बस इतना ही। फिर इंटरव्यू के बाद उसके मैनेजर्स ने उसकी इतनी बढ़ाई करी, कि मुझे लगा कि बढ़िया कैंडिडेट है। तब तक लोग एक इंटरव्यू में ही अपॉइंट कर लिए जाते थे। लेकिन अमर का दो और राउंड इंटरव्यू हुआ - उसके मैनेजर्स सोच रहे थे कि क्या उसको टीम-लीडर का रोल दिया जा सकता है या नहीं! और फिर कमाल ही हो गया। शायद वो सबसे कम उम्र का टीम लीडर बनाया गया। हाँ - तब मुझे उसके बारे में वाकई एक क्यूरिऑसिटी तो हुई!

लेकिन फिर भी, काम के अलावा उससे बातें करने, उससे दोस्ती करने की कोई वजह भी तो नहीं थी! एक रिलेशनशिप में धोखा खाने के बाद मेरा मन भर गया था। और अब आदमियों से अंतरंग दोस्ती करने का मेरा कोई इरादा नहीं था। लेकिन कहते हैं न - जोड़ियाँ तो वहाँ, ऊपर, बनाई जाती हैं! जब भाग्य का चक्र चलता है, तब सब कुछ संभव हो जाता है। और वही मेरे साथ भी हुआ। मसूरी में मैंने जब अमर को सबसे दूर, अकेले में खड़े देखा, तो न जाने किस प्रेरणावश मैं उसकी तरफ़ खिंची चली गई। अभी सोच कर लगता है कि अच्छा किया! लेकिन तब ऐसा कोई ख़याल नहीं था। कोई लड़की अपने से नौ - सवा नौ साल छोटे ‘लड़के’ से भला कोई रोमांस करने का सोचती भी है? लेकिन न जाने क्या बात थी कि कुछ ही दिनों में मेरे दिल-ओ-दिमाग में बस अमर ही अमर होने लगा। न जाने क्या बात थी उसमें! न जाने क्या बात है उसमें कि उसके सामने आते ही मेरे दिल की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं! अभी भी नहीं समझ आई। शुरू शुरू में लगता था कि वो कैसा गंवार टाइप का आदमी है - न बात करने का शऊर, और न ही किसी के लिए कोई इज़्ज़त। लेकिन जल्दी ही मालूम चल गया कि ये दोनों ही बातें गलत थीं। अमर को सभी के लिए बहुत इज़्ज़त है - उसने किसी से भी कभी भी गलत तरीके से बात नहीं करी। और जहाँ तक गँवारी वाली बात है, वो इसलिए क्योंकि हम दोनों ही बहुत ही अलग बैकग्राउंड से आये हुए थे।

जान पहचान हुई, तो यारी भी हो गई। कैसे न होती? उससे बातें करना कितना आसान था। जल्दी ही यह बात समझ में आ गई कि उसके मन में जो कड़वाहट थी वो अपनी बीवी की असमय मौत के कारण थी। अचानक ही सब समझ आ गया। ऐसा नहीं है कि उसको किसी साथी की ज़रुरत थी, या फिर मुझे किसी की ज़रुरत थी। लेकिन फिर भी साथ बन गया। मैं अक्सर उसके ऑफ़िस जा कर उससे मिलने लगी। उसके टीम के लोग, और उसके दोस्त, सभी हमारा मज़ाक करते। मुझको देखते ही मुझे ‘भाभी’ ‘भाभी’ कह कर पुकारने लगते। शुरू शुरू में मुझे बुरा लगता, लेकिन कुछ ही दिनों में सामान्य सा लगने लगा। मुझको लगने लगा कि क्यों मैं अमर के साथ अपनी ज़िन्दगी नहीं बिता सकती? क्यों मैं उसको वो प्यार नहीं दे सकती जो उसने हाल ही में खो दिया है! क्यों मैं वो प्यार नहीं पा सकती, जो मुझे अभी तक नहीं मिला। क्या हुआ कि हमारे बीच उम्र का ऐसा फैसला है? लेकिन यह सारी बातें मैं उसको बोल नहीं पाई - कैसे कहती? बेइज़्ज़ती का डर था। इस बात का भी डर था कि कहीं हमारी यारी न टूट जाए!

और फिर आई दिवाली! अमर ने मुझसे कहा कि वो अपने परिवार के लिए कुछ खरीदना चाहता है, और उसके लिए वो मेरी हेल्प चाहता है। शॉपिंग किस लड़की को नहीं पसंद है? लेकिन ये शॉपिंग अनोखी थी। आज अपने लिए नहीं, बल्कि किसी और के लिए शॉपिंग करनी थी। मैंने ही सब पसंद किया, सारा मोल भाव किया! इससे मुझे उसके घर के सभी लोगों के बारे में मालूम चला। और जब हम चलने वाले थे, तो अमर ने मेरे लिए बेहद सुन्दर सा चिकन का काम किया हुआ कुर्ता और चूड़ीदार पजामी ख़रीदी। दिवाली का गिफ्ट! पहला गिफ्ट! मैंने जब उसको लेने से मना किया तो दुकानदार बोला, 'भाभी जी, ले लीजिए न - भाई साहब इतना ज़ोर दे रहे हैं तो! अभी शादी नहीं हुई है, तो क्या हुआ - हो जाएगी!'

उफ़्फ़! सभी को मैं ‘भाभी’ लगने लगी हूँ! तो क्यों न बन जाऊँ भाभी... मेरा मतलब अमर की बीवी?

अमर की बीवी - एक नई आइडेंटिटी! सच में - लड़की की आइडेंटिटी बदल जाती है शादी के बाद। कैसा लगेगा अगर मैं मिसेज़ सिंह बन जाऊँ? बाप रे! सोच कर ही दिल धाड़ धाड़ कर धड़कने लगा। उस दिन के जैसी बॉन्डिंग - ओह - पॉसिबल ही नहीं थी। पूरे दिवाली में बस अमर की ही यादें। क्या उसने मेरे बारे में अपने घर में बताया होगा? अगर हाँ, तो उसके घर वालों ने क्या कहा होगा? दीदी और डैडी दोनों पूछते रहे कि मैं कहाँ गुमसुम बैठी हूँ! अब उनको क्या बताऊँ? पहली बार दीदी के बच्चों को देख कर मुझे अपने बच्चे करने की इच्छा होने लगी। ओह अमर - ये क्या कर रहे हो तुम मेरे साथ! और जब वो वापस आया तो मेरे लिए ‘माँ’ का दिया हुआ गिफ़्ट था - एक और शलवार कुर्ता सेट - कितना सुन्दर सा! जामदानी मसलिन के कपड़े पर रेशमी चिकन के क़सीदे! ऐसा कुछ मैंने अपनी पूरी लाइफ में नहीं देखा। सच में - ऐसा गिफ़्ट तो कोई अपनी होने वाली ‘बहू’ को ही दे सकता है! उस दिन जैसी ख़ुशी मुझे कभी नहीं हुई।

अब समय आ गया था कि हम दोनों खुल कर अपने बारे में बातें करें। अगर रिलेशनशिप आगे बढ़ाना है तो ये रिस्क तो लेना ही पड़ेगा। हम दोनों को मालूम होना चाहिए कि हमको अपनी अपनी लाइफ से क्या चाहिए। गेस-वर्क से तो रिलेशनशिप आगे नहीं बढ़ता न! तो हम एक ‘कॉफ़ी डेट’ पर गए। कम से कम अमर अब इतना सीरियस हो रहा था, कि वो मुझे डेट पर ले जाए। उस शाम हमने अपने लाइफ और कई पर्सनल मैटर्स को देर तक डिसकस किया। अमर ने खुद ही अपनी प्रीवियस मैरिड लाइफ के बारे में मुझे बताया - गैबी के बारे में बताया! उसने मुझे काजल के बारे में भी बताया - सुन कर थोड़ा अजीब तो लगा, लेकिन फिर जब मैंने सोचा तो उतना अजीब भी नहीं लगा। काजल या गैबी उसका पर्सनल मैटर था - और मुझसे पहले हुआ था। मेरी अब की लाइफ में उसका कोई इन्फ्लुएंस नहीं होने वाला था। इसलिए मैंने काजल के मसले पर कुछ कहा नहीं।

जब मैंने देखा कि अमर मुझसे इस तरह से खुल कर सब बता रहा था, तो मैंने भी उसको अपने और अपने स्ट्रगल के बारे में बताया। मैंने उसको बताया कि तीस के ऊपर हो जाने के कारण मैं ‘उतनी’ मैरिजिएबल नहीं हूँ, जितनी तीन चार साल पहले थी। डैडी आई ए एस ऑफ़िसर रहते, तो अलग बात थी। अब वो रिटायर हो गए थे, तो बातें और भी अनफ़ेवरेबल हो गई थीं। दहेज़ तो मैं वैसे भी किसी को एक धेला नहीं देने वाली थी। ऊपर से बढ़ती उम्र के कारण प्रेग्नेंसी का इशू हो सकता था। प्लस, मैं क्वालिफाइड भी बहुत थी, और कमा भी बहुत रही थी। ये सब देख कर ज्यादातर मैच घबरा जाते कि मैं कैसे घर का काम सम्हालूँगी। कुल मिला कर मैं बढ़िए मैच नहीं थी।

लेकिन अमर की सोच तो बहुत अलग निकली - उसने मुझसे कहा कि काश उसकी मेरी जैसी वाइफ हो! और यह कि अगर हमारा सम्बन्ध बनता है तो उसको बहुत प्राउड फील होगा! बड़ी बात थी! तो उसको मुझसे शादी करने में इंटरेस्ट था। बढ़िया! यही मौका था - मैंने उसको मेरे प्रीवियस, अनसक्सेसफुल अफेयर के बारे में बताया। मैंने उसको हिंट भी दिया कि मैं वर्जिन नहीं थी। लेकिन शायद अमर के लिए वो कोई बात ही नहीं थी। कमाल की सोच! तेईस चौबीस साल के लड़के के लिए कितनी मैच्योर सोच! अब बिना वजह रुकने का कोई कारण नहीं था। मैंने अमर से पूछा ही लिया कि क्या वो अब किसी रिलेशनशिप के लिए तैयार है, तो उसने बड़ी ईमानदारी से मुझसे कहा कि गैबी की यादें अभी भी उसके मन में ताज़ा हैं! सच में - ऐसे ईमानदार आदमी से कोई कैसे प्यार न कर बैठे! अब तक तो मैं भी फिसल चुकी थी।

मैंने उससे कहा कि वो प्यार को एक और चांस दे - उसकी उम्र बहुत कम है! अकेले रहने के लिए बहुत लम्बी लाइफ पड़ी हुई है। मैं उसको समझा रही थी तो उसने भी मुझसे पूछ लिया कि क्या मैं भी किसी रिलेशनशिप और मैरिज के लिए रेडी हूँ! तो मैंने भी ईमानदारी से कह दिया कि मुझे कोई बहुत होप नहीं है कि मुझे कोई मिलेगा। लेकिन मन की बात उसको बतानी ज़रूरी थी - इसलिए मैंने कह दिया कि अगर मुझे कोई एक्साइटिंग पार्टनर मिलता है, तो मैं ज़रूर उसको ओपन-आर्म्स से अपनी लाइफ में वेलकम करूँगी! काश वो मेरा इशारा समझ जाए!

अमर ने मेरा इशारा समझा! उसने मुझे डिनर डेट पर बुलाया। लेकिन लास्ट मोमेंट पर जैसे मुझे लकवा मार गया हो। इतना डर लगा कि मैं गई ही नहीं। मैं उससे इतनी बड़ी हूँ उम्र में कि मुझे गलत सा लगा! क्या मैं सही कर रही हूँ उसके साथ? यही सोच कर मैंने डिनर डेट कैंसिल कर दी। लेकिन अमर ने हार नहीं मानी, और एक और डिनर डेट पर मुझे इनवाइट किया - जाहिर सी बात है, मैं भी उसको पसंद तो थी! ज्यादा नखरा करने से मुझे भी नुकसान तो था ही। तो मैंने मान लिया। लेकिन फिर भी कुछ डाउट थे मन में - इसलिए मैंने उसको ढाबे पर खाने के लिए मना लिया। लेकिन वो तो इतना सरल निकला कि उसको ढाबे में भी मज़ा आ गया! सच में, उसी दिन से मैं पूरी तरह से कायल हो गई अमर की। अब कोई बहाना नहीं बचा था। और बहाना करना मेरी बेवकूफी होगी! यह बात मुझे अच्छी तरह से मालूम हो गई थी अब!

इसलिए जब अमर ने मुझे डिनर डेट के बाद प्रोपोज़ किया, तो उसके प्रपोजल को एक्सेप्ट करने के अलावा मेरे पास कोई और चारा ही नहीं था। लेकिन यह बहुत ही अनएक्सपेक्टेड था। मैंने फिर से उससे सोच लेने को कहा - मेरी उम्र बढ़ रही थी। कहीं बेबी होने में कोई प्रॉब्लम हुई तो! लेकिन अमर को उन सब बातों से कोई मतलब ही नहीं था। उसको बस मेरा साथ चाहिए था! आखिरकार मुझे मेरा मनचाहा साथी मिल ही गया था! मैंने उसको खुद से दूर करने की कितनी सारी कोशिशें करी, लेकिन वो सभी टस से मस नहीं हुआ। उस दिन मैंने पहली बार अमर को ‘आई लव यू’ बोला! मेरे लिए ये तीन शब्द हल्के नहीं थे। अमर के अलावा मैं अब ये तीन शब्द शायद ही किसी और से कहूँ! और उसी दिन अमर ने मुझे चूमा! होंठों पर नहीं - मेरे ही कहने पर - बल्कि माथे पर! ओह, उस किस का एहसास आज भी है मुझे! एक परमानेंट किस बन गया है वो!

मुझे अब लगता है कि अमर ने खुद पर किस तरह से कण्ट्रोल किया होगा - वो बहुत ही हॉट हैं! लेकिन मेरे कहने पर उन्होंने किस तरह से खुद को ज़ब्त किया हुआ था। सच है - प्यार हमेशा फिजिकल हो, यह ज़रूरी नहीं। मैं हमेशा सोचती थी कि हमारा रिलेशनशिप छुपा ढँका है - लेकिन क्रिसमस पार्टी वाले रोज़ ‘रोस्ट’ में मालूम पड़ा कि सभी को हमारे बारे में मालूम है। उस दिन कितनी शर्म आई थी मुझे! लेकिन अच्छा भी लगा कि ‘राज़’ का यह बोझ उतरा! अब हम दोनों आराम से साथ हो सकते थे! इसीलिए मैंने अमर को अपने घर आने का न्योता दे दिया कि आ कर डैडी से बात कर ले! फिर हमारी फिल्म डेट - उस दिन अमर से अपने आप पर काबू नहीं रखा जा सका। और बहुत अच्छी बात थी कि काबू नहीं रखा। मेरे ब्रेस्ट्स पर अमर के होंठों की छुवन - आह! एक आग सी लग गई थी! एक वो दिन था, और आज का दिन है - अमर के साथ हर दिन रंगीन, हर दिन हॉट रहा है! कोई भी दिन ऐसा नहीं रहा जिसमें एक्साइटमेन्ट न रहा हो!

और सबसे बड़ी बात है कि अमर के साथ जीने का मज़ा सौ गुना बढ़ गया है। सच में - मैं अब तक कितनी अकेली थी, यह बात मुझे अमर के संग के बाद ही मालूम हुई। अपने मन की हर बात मैं अमर से कह सकती हूँ और कहती भी हूँ! ऐसा कोई अभी तक नहीं मिला। दीदी से कितनी सारी बातें होती हैं - लेकिन फिर भी, उनसे भी तो बहुत कुछ छुपा लेती हूँ! लेकिन अमर के साथ ऐसा कुछ भी नहीं होता। और अमर से कुछ छुपाना भी क्यों है? लाइफ पार्टनर वो ऐसे थोड़े ही है!

मेरा पहला बॉयफ्रेंड - उसको बस एक ही चीज़ चाहिए थी! और वो है सेक्स। अपना काम बन गया, तो उसके लिए उतना ही ठीक था। एक नंबर का मतलबी और लम्पट आदमी। न जाने कैसे मैं उसके चक्कर में पड़ भी गई थी। उस आदमी के कारण मेरा प्यार मोहब्बत से भरोसा ही उठ गया था। आदमी का मतलब केवल सेक्स! ऐसे तो लाइफ नहीं चलती न! मेरा मन था घर बसाने का। माँ बनने का! मेरी डिजायर, मेरी विशेज़ का क्या? लेकिन अमर ने मेरी हर डिजायर, मेरी है विशेज़ को पंख दिया। जब उसने मुझे अपने - ओह, आई ऍम सॉरी - हमारे घर की चाबी, मेरे हाथों में दी, तब मैं समझ गई कि अमर ही मेरा घर हैं। मैंने उनके सामने जाहिर नहीं होने दिया - लेकिन उस दिन मेरे दिल में, मेरे मन में उनके लिए इतनी रेस्पेक्ट आ गई, कि मुझे खुद ही यकीन नहीं हुआ। अमर मुझसे कितने छोटे हैं उम्र में - लेकिन सच में, अब उनको ‘तुम’ के बजाय ‘आप’ कहने का मन होने लगा। आई थिंक उस दिन मैंने पूरी तरह से डिसाइड कर लिया कि अगर शादी करूँगी तो सिर्फ और सिर्फ अमर से नहीं तो उम्र भर ऐसी ही रहूँगी - अकेली! और, अगर मेरे बच्चे होंगे, तो अमर से ही होंगे!

जब मैं पहली बार उस घर के अंदर गई, तो मेरा दिल तेजी से धड़क उठा : ‘मेरा घर’ - बस यही एक ख़याल मेरे मन में आया। और कितनी साफ़ सफाई से रखा हुआ था घर को अमर ने! लेकिन रहते वो थे बिलकुल सन्यासी जैसे - केवल उनके कमरे में ही सबसे अधिक फर्नीचर थे; हॉल में सोफ़े और टेबल; रसोई में फ्रिज; इंटरटेनमेंट के लिए सोनी का एक हाई-फाई म्यूजिक सिस्टम! ‘चलो! साहब को कुछ शौक तो हैं!’ फ्रिज खोला, तो देखा कि वहाँ भी बस ज़रुरत की ही चीज़ें थीं - मिल्क, बटर, ब्रेड, अंकुरित अनाज, और कुछ सब्ज़ियाँ! बेहद साफ़ सुथरा किचन - नाश्ते में जो प्लेट और मग यूज़ हुआ था, बस वो सिंक में था! राशन की अलमारियाँ खोलीं - तो सब कुछ बेसिक सा ही था। पहले तो लगा कि अमर को कोई शौक ही नहीं है - लेकिन फिर सोचा कि वो अकेले करें भी तो क्या क्या? और, अनहेल्दी शौक पाल कर वो अपनी सेहत थोड़े ही खराब करेंगे! बाथरूम भी बाकी के घर जैसा ही साफ़ सुथरा, और सूखा! उनके कमरे में देखा तो सब कपड़े करीने से लगे हुए थे अलमारी में। बिस्तर पर सब कुछ तरीके से तह कर के रखा गया था। बालकनी में आई, तो चिड़ियों के चुगने के लिए बर्ड-फ़ीडर लगा हुआ था, और उसमें से पाँच छः गौरैयाँ दाना चुग रही थीं! कुछ देर मैं उनका गाना चहकना सुनती रही! कैसी शांति मिली! अब समझ में आया कि इतनी शांति में भी मनोरंजन कैसे किया जा सकता है!

मुझे मालूम था कि काजल दीदी के बाद उन्होंने किसी को भी अपने यहाँ काम करने नहीं रखा था - मतलब वो घर का सारा काम खुद ही करते थे! मेरे मन में उनके लिए और भी अधिक रेस्पेक्ट आ गई।

साफ़ सुथरा घर - यह किसी आदमी के बारे में बहुत कुछ बता देता है। मुझे मालूम हो गया कि अमर जैसे सिंपल से, अनप्रिटेंशियस से दिखते हैं, वो वैसे हैं भी। साफ़ सुथरा घर - कोरे कैनवास जैसा! इस घर को ज़रुरत थी इसकी दीवारों में रंग भरने वाली की! तो उसके लिए मैं हूँ न! मैंने अमर से बिना पूछे, हमारे घर के लिए कुछ सजावट के सामान, और अन्य वस्तुएँ खरीदनी शुरू कर दीं। काम के सिलसिले में मैं देश और विदेश घूमती रहती थी, और वहाँ से अपनी पसंद के सामान लाती रहती थी। अब वो सब कुछ हमारे घर में था। अमर को भी मेरा किया हुआ काम पसंद आता,

‘वो नए वाले पर्दे बहुत सुन्दर है, डेवी!’ एक दिन अमर ने ऑफिस में कॉल कर के कहा।

‘हमारे बेडरूम वाले, या हॉल वाले, या गेस्ट रूम वाले, या फिर डाइनिंग हॉल वाले?’ मैंने उनकी खिंचाई करते हुए कहा।

‘सब! हा हा हा!’

‘मेरे भोलूराम, गेस्ट रूम और डाइनिंग हॉल में तो अभी लगाए ही नहीं हैं!’ कह कर मैं खूब हँसी।

फिर एक और दिन जब मैं हमारे घर गई, वो अमर भी वहीं पर थे। मेरी खरीददारी देख कर वो चौंक गए।

‘डेवी, यार! ये तो बोन चाइना की क्रॉकरी सेट है सब!’ उन्होंने पैकेट पलट कर देखा, ‘अरे! ये तो इम्पोर्टेड भी है!’

‘हाँ! तो?’

‘मतलब, कॉस्टली होगा?’

‘होता रहे!’

‘कितने का खरीदा! कम से कम इसका दाम तो बता दो!’

मैं हाथ को अपने पीछे बाँध कर इठलाती हुई उनके पास गई, और मुस्कुराते हुए उनके गाल को सहलाते हुए, अचानक ही उनके कानों को पकड़ कर उमेठ दिया।

‘आऊ!’ उन्होंने झूठ-मूठ का रोना रोया।

‘अब बोलो, मुझसे चीज़ों का दाम पूछोगे?’

‘नहीं मेरी माँ, कभी नहीं!’

हम कुछ देर इस खेल पर हँसते रहे, लेकिन फिर मैंने उनको अपना साइड समझाते हुए कहा,

‘जानू, तुम ऐसे न सोचो कि मैं कोई फ़िज़ूलखर्च औरत हूँ! हम दोनों ही अच्छा कमाते हैं, तो उस पैसे का मज़ा भी लेना चाहिए। थोड़ा अच्छा रहने में कोई बुराई तो नहीं! हम फालतू के सामानों पर पैसे थोड़े ही ख़र्च कर रहे हैं!’

‘हाँ, लेकिन मुझे भी तो खर्चने दो?’

‘हम्म! दूँगी! लेकिन कभी और! और वैसे भी, मैं तुमसे उम्र में बड़ी हूँ, और पोजीशन में भी! इसलिए मेरा इतना हक़ तो बनता ही है न!’

‘अच्छा जी! तो आप मेरी असिस्टेंट जनरल मैनेजर हैं?’

‘उम हम,’ मैंने ‘न’ में सर हिलाया, ‘जनरल मैनेजर’ मैंने उनको अपने प्रमोशन का सरप्राइज भी दिया!

‘व्हाट! ओह वाओ वाओ! अमेजिंग! वेल डिज़र्व्ड! आई ऍम सो हैप्पी माय लव! कांग्रेचुलेशन्स!’ कह कर अमर ने मुझे अपनी गोद में उठा लिया था!

‘लेकिन किसी को बताना नहीं!’ मैंने अमर को हिदायद दी, ‘अभी तक ऑफिशियली ये बात बाहर नहीं आई है।’

‘नहीं बताऊँगा मेरी जान! लेकिन तुमको नहीं, तो और किसको बनाएँगे जनरल मैनेजर!’

कह कर उन्होंने मुझे कई बार चूमा!

‘कब बताएँगे ऑफिशियली?’

‘जनवरी में! आफ्टर द वेकेशन!’

‘ओके! देन पार्टी इस ऑन मी!’

आज पहली बार हुआ था कि मैंने अपने प्रमोशन की खबर अपने घर वालों को न सुना कर, अमर को सुनाई थी। और मैं इस बात की ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी। अमर ऐसे खुश हो रहे थे, जैसे मुझे नहीं, उनको मिला हो ये प्रमोशन! अब से मेरी लाइफ की हर छोटी बड़ी बात जानने का सबसे पहला हक़ मेरे अमर का होगा! ऐसा हस्बैंड पा कर मुझे सच में अपनी किस्मत पर घमण्ड होने लग गया था।

और फिर, जैसा मुझे उम्मीद थी, अमर ने मुझे बताया कि उनके मम्मी डैडी मुझसे मिलना चाहते हैं! मुझे यह सुन कर बहुत अच्छा लगा! मतलब उनके घर वालों को मेरे बारे में मालूम था! नाइस! मैं भी तो मिलना चाहती थी उनसे! लेकिन अंदर ही अंदर डर भी बहुत लगा - मेरे और अमर की उम्र में इतना गैप है कि कहीं वो हमारी शादी पर ऑब्जेक्ट न करने लगें। और फिर मेरे डैडी और दीदी से भी तो मिलवाना था अमर को!

ये सब जब होना था तब होना था - लेकिन उसके पहले अमर के साथ सेक्स हो गया। सच में, मैंने वो कभी प्लान नहीं किया था। अमर जैसे खुद को कण्ट्रोल कर के रहते थे, उससे मुझको यकीन हो गया था कि हमारे बीच सेक्स शादी के बाद ही होगा।

ही एक्चुअली सरप्राइज़्ड मी! एंड व्हाट अ सरप्राइज इट वास!

ओह! अमर की छुवन, उनके किसेज़, मेरे ब्रेस्ट्स और निप्पल्स पर उनका प्यार, और फिर सेक्स! ओह, ऐसा कम्पलीटनेस महसूस हुआ जो मुझे पहले बॉयफ्रेंड के साथ नहीं हुआ। क्या कुछ मिस कर रही थी मैं अपनी लाइफ में! सच में - अमर जैसा जवां मर्द पा कर मैं धन्य हो गई। मैं तो उनकी मुरीद हो गई पूरी तरह से। मैं अब उस राह पर चल निकली थी, जहाँ पर वापस जाने का कोई रास्ता नहीं होता। मैं अमर की थी और हूँ और रहूँगी। हमारी उम्र का अंतर कोई मायने नहीं रखता हमारे बीच! वो मेरे सब कुछ हैं। मेरा घर, मेरा संसार, मेरी आत्मा, और मेरा प्यार!

थैंक गॉड - डैडी को भी और दीदी को भी अमर खूब पसंद आए। उन्होंने मुझे बाद में बोला कि अमर एक सच्चा आदमी है और यह कि वो मेरे लिए बहुत खुश हैं। दीदी तो इतनी खुश हैं कि क्या कहें - अगर मेरी जगह वो होतीं, तो वो खुद भी अमर से शादी कर लेतीं - मुझे तो ऐसा लगता है। इतना सब होने के बाद मुझे एक डर सा लगने लगा कि क्या मैं भी उनके घर वालों को इतना पसंद आऊँगी? ऐसा न हो कि वो मुझे पसंद न करें! मेरे सारे सपने चूर हो जाएंगे।

लेकिन जब माँ डैड और काजल दी उस दिन हमारे घर आए, तो मैं समझ गई कि मेरे लिए उससे अधिक सुन्दर ससुराल कोई हो ही नहीं सकती। उस दिन समझ में आया कि अमर ऐसे क्यों हैं! उनको कितने अफ़ेक्शन से पाल पास कर बड़ा किया गया है - उन्होंने उसके अलावा और कुछ देखा ही नहीं। इसलिए उनको गुस्सा नहीं आता; वो हमेशा मुस्कुराते रहते हैं! माँ भी वो वैसी ही हैं - सिंपल, सुन्दर! ओह! सच में - मेरी माँ भी तो उनके जैसी ही सुन्दर और अफेक्शनेट थीं! लेकिन जब मैंने उनसे मज़ाक मज़ाक में ही कह दिया कि मैं उनको दीदी कहूँगी, तो भी उनको बुरा नहीं लगा। और हम दोनों - सॉरी - तीनों (मतलब काजल दी भी) कितनी अच्छी सहेलियाँ बन गई हैं!

कभी सोचा ही नहीं था कि मैं काजल दी को दी (दीदी) कह कर पुकारूँगी। सुन कर मुझे कैसा खराब लगा था कि पहले तो अपनी नौकरानी से अमर ने सेक्स किया, उससे बच्चा किया, और फिर वही नौकरानी अब उनके घर में रह रही है। कितना खराब लगता है न! लेकिन काजल दी तो कैसी अच्छी हैं। अमर सही बोल रहे थे, सच में - काजल दी उनकी दीदी जैसी ही हैं। उनकी गार्जियन! उनकी कहानी तो सभी जानते हैं। और माँ और डैड कितने अमेज़िंग हैं न - उन्होंने काजल दी को और उनके बच्चों को पनाह दिया, सहारा दिया। जितने टाइम मैं उनके साथ रही, मुझे लगा कि जैसे जयंती दीदी ही मेरे साथ में हैं! इतनी अच्छी कैसे हैं वो! और उनके बच्चे! वाह! कितने कल्चर्ड! लतिका तो गुड़िया है! सुनील थोड़ा शांत रहता है, लेकिन कितनी मेहनत करता है पढ़ाई लिखाई में! बोलता है कि मेरे पास बस यही एक काम है और मैं इसको अच्छी तरह से करना चाहता हूँ! सच कह रही हूँ - वो बहुत तरक्की करेगा!

ऐसे घर में अपना बच्चा लाने की तमन्ना है मुझको। यहाँ उसको इतना प्यार मिलेगा कि बयान करना मुश्किल है! अमर को मैंने कितनी बार डराया कि शायद मुझे बच्चा न हो! मैं देखना चाहती थी कि मेरे लिए अमर के मन में कितना प्यार है। लेकिन वो तो जैसे ये सब सुनने को तैयार ही नहीं थे। ‘बच्चा न हुआ तो क्या? गोद ले लेंगे!’ उन्होंने कहा था - लेकिन पत्नी के रूप में मैं ही उनको चाहिए थी! है न कमाल के वो?

और अब मैं आप सबको एक राज़ की बात बताऊँ?

शायद आई ऍम प्रेग्नेंट! इट इस अ बिट टू अर्ली टू से, बट आई मिस्ड माय पीरियड्स डिस मंथ!

हाँ हाँ - हम लोग अभी भी हनीमून पर हैं! लेकिन हमने पहली बार सेक्स तो डेढ़ महीना पहले किया था न?

तो पॉसिबल तो है!

अमर को कब बताऊँ? बताऊँ भी कि नहीं? उनको कैसा लगेगा?

बाप रे - आल दिस फील्स लाइक अ ड्रीम!

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प्रिय पाठकों - देवयानी का परिप्रेक्ष्य (perspective) लिखने की सलाह अंजली ने दी है। वो बोलीं कि हमेशा male (Amar’s) perspective से ही कहानी नहीं लिखनी चाहिए। कुछ तो देवयानी के बारे में भी लिखो। उनको क्या फ़ील हुआ होगा? वो क्या सोच रही थीं? तो इस अपडेट का काफ़ी कुछ अंजली ने ही लिखा (मेरा मतलब dictate किया है - देवनागरी में मैंने लिखा है) है! बताएँ कि यह प्रयास कैसा रहा? कहानी का तार-तम्य टूटा तो नहीं न? ज्यादातर तो recap जैसा ही हो गया है। आपके feedback की प्रतीक्षा रहेगी! धन्यवाद!
 
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नया सफ़र - विवाह - Update #14


देवयानी का परिप्रेक्ष्य :


आज की सुबह मैं बहुत जल्दी उठ गई! घड़ी देखी तो केवल चार ही बज रहे थे! कैसी गहरी ख़ामोशी पसरी हुई थी चारों ओर! केवल समुद्र की लहरों की आवाज़ें! रात अमर ने मुझे थका दिया, फिर भी नींद खुल गई - और ऐसी खुली कि लग रहा है कि पूरी तरह से फ्रेश हूँ। अमर को देखा - वो अभी भी सो रहे हैं - मैं मुस्कुराई - कभी सोचा भी न था कि वो मेरे हस्बैंड भी बनेंगे! मैंने अलसाई हुई अंगड़ाई ली - शरीर जैसे टूट रहा हो! लेकिन आँखों से नींद गायब है! मैं चुपके से बिस्तर से उठी, और दबे पाँव चलते हुए क्लोसेट तक गई, वहाँ अपनी नाइटी उठाई, पहनी, और कमरे से बाहर झोपड़ी के आहाते में आ कर आराम-कुर्सी पर बैठ गई। समुद्र की नमी वाली हवा, अँधेरा, और लहरों की आवाज़ - यह इतना आराम देने वाला एहसास था कि क्या कहूँ!

आराम-कुर्सी पर पसर के मैं बीते कुछ महीनों की बातें सोचने लगी।

कुछ कहानियाँ परी-कथाओं जैसी होती हैं! उनको कहने सुनने में कोरी गप्प जैसी लगती हैं। मेरी और अमर की कहानी भी बहुत कुछ वैसी ही लगती है। जब मैं अमर से पहली बार मिली थी, तब वो इंटरव्यू देने ऑफिस आया हुआ था। कुछ लोग बहुत ही बुद्धिमान होते हैं और लगते भी हैं। अमर भी उन्ही लोगों जैसा था - लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब सी उदासी देखी थी मैंने। उदासी या गुस्सा? कुछ ठीक से कहना मुश्किल है। ऐसा नहीं है कि मैं उसकी पर्सनालिटी से बहुत इम्प्रेस हो गई हूँ। सच कहूँ, तो उसकी पर्सनालिटी में वैसा कुछ भी नहीं था। हाँ, देखने भालने में हैंडसम तो था, लेकिन बस इतना ही। अपने में खोया हुआ सा! चुप-चाप! रिजर्व्ड! जैसे अपने चारों तरफ़ क़िले की दीवार बना रखी हो! इतनी कम उम्र का इतना सीरियस आदमी मैंने नहीं देखा था - यह बात तो सच है। लेकिन बस इतना ही। फिर इंटरव्यू के बाद उसके मैनेजर्स ने उसकी इतनी बढ़ाई करी, कि मुझे लगा कि बढ़िया कैंडिडेट है। तब तक लोग एक इंटरव्यू में ही अपॉइंट कर लिए जाते थे। लेकिन अमर का दो और राउंड इंटरव्यू हुआ - उसके मैनेजर्स सोच रहे थे कि क्या उसको टीम-लीडर का रोल दिया जा सकता है या नहीं! और फिर कमाल ही हो गया। शायद वो सबसे कम उम्र का टीम लीडर बनाया गया। हाँ - तब मुझे उसके बारे में वाकई एक क्यूरिऑसिटी तो हुई!

लेकिन फिर भी, काम के अलावा उससे बातें करने, उससे दोस्ती करने की कोई वजह भी तो नहीं थी! एक रिलेशनशिप में धोखा खाने के बाद मेरा मन भर गया था। और अब आदमियों से अंतरंग दोस्ती करने का मेरा कोई इरादा नहीं था। लेकिन कहते हैं न - जोड़ियाँ तो वहाँ, ऊपर, बनाई जाती हैं! जब भाग्य का चक्र चलता है, तब सब कुछ संभव हो जाता है। और वही मेरे साथ भी हुआ। मसूरी में मैंने जब अमर को सबसे दूर, अकेले में खड़े देखा, तो न जाने किस प्रेरणावश मैं उसकी तरफ़ खिंची चली गई। अभी सोच कर लगता है कि अच्छा किया! लेकिन तब ऐसा कोई ख़याल नहीं था। कोई लड़की अपने से नौ - सवा नौ साल छोटे ‘लड़के’ से भला कोई रोमांस करने का सोचती भी है? लेकिन न जाने क्या बात थी कि कुछ ही दिनों में मेरे दिल-ओ-दिमाग में बस अमर ही अमर होने लगा। न जाने क्या बात थी उसमें! न जाने क्या बात है उसमें कि उसके सामने आते ही मेरे दिल की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं! अभी भी नहीं समझ आई। शुरू शुरू में लगता था कि वो कैसा गंवार टाइप का आदमी है - न बात करने का शऊर, और न ही किसी के लिए कोई इज़्ज़त। लेकिन जल्दी ही मालूम चल गया कि ये दोनों ही बातें गलत थीं। अमर को सभी के लिए बहुत इज़्ज़त है - उसने किसी से भी कभी भी गलत तरीके से बात नहीं करी। और जहाँ तक गँवारी वाली बात है, वो इसलिए क्योंकि हम दोनों ही बहुत ही अलग बैकग्राउंड से आये हुए थे।

जान पहचान हुई, तो यारी भी हो गई। कैसे न होती? उससे बातें करना कितना आसान था। जल्दी ही यह बात समझ में आ गई कि उसके मन में जो कड़वाहट थी वो अपनी बीवी की असमय मौत के कारण थी। अचानक ही सब समझ आ गया। ऐसा नहीं है कि उसको किसी साथी की ज़रुरत थी, या फिर मुझे किसी की ज़रुरत थी। लेकिन फिर भी साथ बन गया। मैं अक्सर उसके ऑफ़िस जा कर उससे मिलने लगी। उसके टीम के लोग, और उसके दोस्त, सभी हमारा मज़ाक करते। मुझको देखते ही मुझे ‘भाभी’ ‘भाभी’ कह कर पुकारने लगते। शुरू शुरू में मुझे बुरा लगता, लेकिन कुछ ही दिनों में सामान्य सा लगने लगा। मुझको लगने लगा कि क्यों मैं अमर के साथ अपनी ज़िन्दगी नहीं बिता सकती? क्यों मैं उसको वो प्यार नहीं दे सकती जो उसने हाल ही में खो दिया है! क्यों मैं वो प्यार नहीं पा सकती, जो मुझे अभी तक नहीं मिला। क्या हुआ कि हमारे बीच उम्र का ऐसा फैसला है? लेकिन यह सारी बातें मैं उसको बोल नहीं पाई - कैसे कहती? बेइज़्ज़ती का डर था। इस बात का भी डर था कि कहीं हमारी यारी न टूट जाए!

और फिर आई दिवाली! अमर ने मुझसे कहा कि वो अपने परिवार के लिए कुछ खरीदना चाहता है, और उसके लिए वो मेरी हेल्प चाहता है। शॉपिंग किस लड़की को नहीं पसंद है? लेकिन ये शॉपिंग अनोखी थी। आज अपने लिए नहीं, बल्कि किसी और के लिए शॉपिंग करनी थी। मैंने ही सब पसंद किया, सारा मोल भाव किया! इससे मुझे उसके घर के सभी लोगों के बारे में मालूम चला। और जब हम चलने वाले थे, तो अमर ने मेरे लिए बेहद सुन्दर सा चिकन का काम किया हुआ कुर्ता और चूड़ीदार पजामी ख़रीदी। दिवाली का गिफ्ट! पहला गिफ्ट! मैंने जब उसको लेने से मना किया तो दुकानदार बोला, 'भाभी जी, ले लीजिए न - भाई साहब इतना ज़ोर दे रहे हैं तो! अभी शादी नहीं हुई है, तो क्या हुआ - हो जाएगी!'

उफ़्फ़! सभी को मैं ‘भाभी’ लगने लगी हूँ! तो क्यों न बन जाऊँ भाभी... मेरा मतलब अमर की बीवी?

अमर की बीवी - एक नई आइडेंटिटी! सच में - लड़की की आइडेंटिटी बदल जाती है शादी के बाद। कैसा लगेगा अगर मैं मिसेज़ सिंह बन जाऊँ? बाप रे! सोच कर ही दिल धाड़ धाड़ कर धड़कने लगा। उस दिन के जैसी बॉन्डिंग - ओह - पॉसिबल ही नहीं थी। पूरे दिवाली में बस अमर की ही यादें। क्या उसने मेरे बारे में अपने घर में बताया होगा? अगर हाँ, तो उसके घर वालों ने क्या कहा होगा? दीदी और डैडी दोनों पूछते रहे कि मैं कहाँ गुमसुम बैठी हूँ! अब उनको क्या बताऊँ? पहली बार दीदी के बच्चों को देख कर मुझे अपने बच्चे करने की इच्छा होने लगी। ओह अमर - ये क्या कर रहे हो तुम मेरे साथ! और जब वो वापस आया तो मेरे लिए ‘माँ’ का दिया हुआ गिफ़्ट था - एक और शलवार कुर्ता सेट - कितना सुन्दर सा! जामदानी मसलिन के कपड़े पर रेशमी चिकन के क़सीदे! ऐसा कुछ मैंने अपनी पूरी लाइफ में नहीं देखा। सच में - ऐसा गिफ़्ट तो कोई अपनी होने वाली ‘बहू’ को ही दे सकता है! उस दिन जैसी ख़ुशी मुझे कभी नहीं हुई।

अब समय आ गया था कि हम दोनों खुल कर अपने बारे में बातें करें। अगर रिलेशनशिप आगे बढ़ाना है तो ये रिस्क तो लेना ही पड़ेगा। हम दोनों को मालूम होना चाहिए कि हमको अपनी अपनी लाइफ से क्या चाहिए। गेस-वर्क से तो रिलेशनशिप आगे नहीं बढ़ता न! तो हम एक ‘कॉफ़ी डेट’ पर गए। कम से कम अमर अब इतना सीरियस हो रहा था, कि वो मुझे डेट पर ले जाए। उस शाम हमने अपने लाइफ और कई पर्सनल मैटर्स को देर तक डिसकस किया। अमर ने खुद ही अपनी प्रीवियस मैरिड लाइफ के बारे में मुझे बताया - गैबी के बारे में बताया! उसने मुझे काजल के बारे में भी बताया - सुन कर थोड़ा अजीब तो लगा, लेकिन फिर जब मैंने सोचा तो उतना अजीब भी नहीं लगा। काजल या गैबी उसका पर्सनल मैटर था - और मुझसे पहले हुआ था। मेरी अब की लाइफ में उसका कोई इन्फ्लुएंस नहीं होने वाला था। इसलिए मैंने काजल के मसले पर कुछ कहा नहीं।

जब मैंने देखा कि अमर मुझसे इस तरह से खुल कर सब बता रहा था, तो मैंने भी उसको अपने और अपने स्ट्रगल के बारे में बताया। मैंने उसको बताया कि तीस के ऊपर हो जाने के कारण मैं ‘उतनी’ मैरिजिएबल नहीं हूँ, जितनी तीन चार साल पहले थी। डैडी आई ए एस ऑफ़िसर रहते, तो अलग बात थी। अब वो रिटायर हो गए थे, तो बातें और भी अनफ़ेवरेबल हो गई थीं। दहेज़ तो मैं वैसे भी किसी को एक धेला नहीं देने वाली थी। ऊपर से बढ़ती उम्र के कारण प्रेग्नेंसी का इशू हो सकता था। प्लस, मैं क्वालिफाइड भी बहुत थी, और कमा भी बहुत रही थी। ये सब देख कर ज्यादातर मैच घबरा जाते कि मैं कैसे घर का काम सम्हालूँगी। कुल मिला कर मैं बढ़िए मैच नहीं थी।

लेकिन अमर की सोच तो बहुत अलग निकली - उसने मुझसे कहा कि काश उसकी मेरी जैसी वाइफ हो! और यह कि अगर हमारा सम्बन्ध बनता है तो उसको बहुत प्राउड फील होगा! बड़ी बात थी! तो उसको मुझसे शादी करने में इंटरेस्ट था। बढ़िया! यही मौका था - मैंने उसको मेरे प्रीवियस, अनसक्सेसफुल अफेयर के बारे में बताया। मैंने उसको हिंट भी दिया कि मैं वर्जिन नहीं थी। लेकिन शायद अमर के लिए वो कोई बात ही नहीं थी। कमाल की सोच! तेईस चौबीस साल के लड़के के लिए कितनी मैच्योर सोच! अब बिना वजह रुकने का कोई कारण नहीं था। मैंने अमर से पूछा ही लिया कि क्या वो अब किसी रिलेशनशिप के लिए तैयार है, तो उसने बड़ी ईमानदारी से मुझसे कहा कि गैबी की यादें अभी भी उसके मन में ताज़ा हैं! सच में - ऐसे ईमानदार आदमी से कोई कैसे प्यार न कर बैठे! अब तक तो मैं भी फिसल चुकी थी।

मैंने उससे कहा कि वो प्यार को एक और चांस दे - उसकी उम्र बहुत कम है! अकेले रहने के लिए बहुत लम्बी लाइफ पड़ी हुई है। मैं उसको समझा रही थी तो उसने भी मुझसे पूछ लिया कि क्या मैं भी किसी रिलेशनशिप और मैरिज के लिए रेडी हूँ! तो मैंने भी ईमानदारी से कह दिया कि मुझे कोई बहुत होप नहीं है कि मुझे कोई मिलेगा। लेकिन मन की बात उसको बतानी ज़रूरी थी - इसलिए मैंने कह दिया कि अगर मुझे कोई एक्साइटिंग पार्टनर मिलता है, तो मैं ज़रूर उसको ओपन-आर्म्स से अपनी लाइफ में वेलकम करूँगी! काश वो मेरा इशारा समझ जाए!

अमर ने मेरा इशारा समझा! उसने मुझे डिनर डेट पर बुलाया। लेकिन लास्ट मोमेंट पर जैसे मुझे लकवा मार गया हो। इतना डर लगा कि मैं गई ही नहीं। मैं उससे इतनी बड़ी हूँ उम्र में कि मुझे गलत सा लगा! क्या मैं सही कर रही हूँ उसके साथ? यही सोच कर मैंने डिनर डेट कैंसिल कर दी। लेकिन अमर ने हार नहीं मानी, और एक और डिनर डेट पर मुझे इनवाइट किया - जाहिर सी बात है, मैं भी उसको पसंद तो थी! ज्यादा नखरा करने से मुझे भी नुकसान तो था ही। तो मैंने मान लिया। लेकिन फिर भी कुछ डाउट थे मन में - इसलिए मैंने उसको ढाबे पर खाने के लिए मना लिया। लेकिन वो तो इतना सरल निकला कि उसको ढाबे में भी मज़ा आ गया! सच में, उसी दिन से मैं पूरी तरह से कायल हो गई अमर की। अब कोई बहाना नहीं बचा था। और बहाना करना मेरी बेवकूफी होगी! यह बात मुझे अच्छी तरह से मालूम हो गई थी अब!

इसलिए जब अमर ने मुझे डिनर डेट के बाद प्रोपोज़ किया, तो उसके प्रपोजल को एक्सेप्ट करने के अलावा मेरे पास कोई और चारा ही नहीं था। लेकिन यह बहुत ही अनएक्सपेक्टेड था। मैंने फिर से उससे सोच लेने को कहा - मेरी उम्र बढ़ रही थी। कहीं बेबी होने में कोई प्रॉब्लम हुई तो! लेकिन अमर को उन सब बातों से कोई मतलब ही नहीं था। उसको बस मेरा साथ चाहिए था! आखिरकार मुझे मेरा मनचाहा साथी मिल ही गया था! मैंने उसको खुद से दूर करने की कितनी सारी कोशिशें करी, लेकिन वो सभी टस से मस नहीं हुआ। उस दिन मैंने पहली बार अमर को ‘आई लव यू’ बोला! मेरे लिए ये तीन शब्द हल्के नहीं थे। अमर के अलावा मैं अब ये तीन शब्द शायद ही किसी और से कहूँ! और उसी दिन अमर ने मुझे चूमा! होंठों पर नहीं - मेरे ही कहने पर - बल्कि माथे पर! ओह, उस किस का एहसास आज भी है मुझे! एक परमानेंट किस बन गया है वो!

मुझे अब लगता है कि अमर ने खुद पर किस तरह से कण्ट्रोल किया होगा - वो बहुत ही हॉट हैं! लेकिन मेरे कहने पर उन्होंने किस तरह से खुद को ज़ब्त किया हुआ था। सच है - प्यार हमेशा फिजिकल हो, यह ज़रूरी नहीं। मैं हमेशा सोचती थी कि हमारा रिलेशनशिप छुपा ढँका है - लेकिन क्रिसमस पार्टी वाले रोज़ ‘रोस्ट’ में मालूम पड़ा कि सभी को हमारे बारे में मालूम है। उस दिन कितनी शर्म आई थी मुझे! लेकिन अच्छा भी लगा कि ‘राज़’ का यह बोझ उतरा! अब हम दोनों आराम से साथ हो सकते थे! इसीलिए मैंने अमर को अपने घर आने का न्योता दे दिया कि आ कर डैडी से बात कर ले! फिर हमारी फिल्म डेट - उस दिन अमर से अपने आप पर काबू नहीं रखा जा सका। और बहुत अच्छी बात थी कि काबू नहीं रखा। मेरे ब्रेस्ट्स पर अमर के होंठों की छुवन - आह! एक आग सी लग गई थी! एक वो दिन था, और आज का दिन है - अमर के साथ हर दिन रंगीन, हर दिन हॉट रहा है! कोई भी दिन ऐसा नहीं रहा जिसमें एक्साइटमेन्ट न रहा हो!

और सबसे बड़ी बात है कि अमर के साथ जीने का मज़ा सौ गुना बढ़ गया है। सच में - मैं अब तक कितनी अकेली थी, यह बात मुझे अमर के संग के बाद ही मालूम हुई। अपने मन की हर बात मैं अमर से कह सकती हूँ और कहती भी हूँ! ऐसा कोई अभी तक नहीं मिला। दीदी से कितनी सारी बातें होती हैं - लेकिन फिर भी, उनसे भी तो बहुत कुछ छुपा लेती हूँ! लेकिन अमर के साथ ऐसा कुछ भी नहीं होता। और अमर से कुछ छुपाना भी क्यों है? लाइफ पार्टनर वो ऐसे थोड़े ही है!

मेरा पहला बॉयफ्रेंड - उसको बस एक ही चीज़ चाहिए थी! और वो है सेक्स। अपना काम बन गया, तो उसके लिए उतना ही ठीक था। एक नंबर का मतलबी और लम्पट आदमी। न जाने कैसे मैं उसके चक्कर में पड़ भी गई थी। उस आदमी के कारण मेरा प्यार मोहब्बत से भरोसा ही उठ गया था। आदमी का मतलब केवल सेक्स! ऐसे तो लाइफ नहीं चलती न! मेरा मन था घर बसाने का। माँ बनने का! मेरी डिजायर, मेरी विशेज़ का क्या? लेकिन अमर ने मेरी हर डिजायर, मेरी है विशेज़ को पंख दिया। जब उसने मुझे अपने - ओह, आई ऍम सॉरी - हमारे घर की चाबी, मेरे हाथों में दी, तब मैं समझ गई कि अमर ही मेरा घर हैं। मैंने उनके सामने जाहिर नहीं होने दिया - लेकिन उस दिन मेरे दिल में, मेरे मन में उनके लिए इतनी रेस्पेक्ट आ गई, कि मुझे खुद ही यकीन नहीं हुआ। अमर मुझसे कितने छोटे हैं उम्र में - लेकिन सच में, अब उनको ‘तुम’ के बजाय ‘आप’ कहने का मन होने लगा। आई थिंक उस दिन मैंने पूरी तरह से डिसाइड कर लिया कि अगर शादी करूँगी तो सिर्फ और सिर्फ अमर से नहीं तो उम्र भर ऐसी ही रहूँगी - अकेली! और, अगर मेरे बच्चे होंगे, तो अमर से ही होंगे!

जब मैं पहली बार उस घर के अंदर गई, तो मेरा दिल तेजी से धड़क उठा : ‘मेरा घर’ - बस यही एक ख़याल मेरे मन में आया। और कितनी साफ़ सफाई से रखा हुआ था घर को अमर ने! लेकिन रहते वो थे बिलकुल सन्यासी जैसे - केवल उनके कमरे में ही सबसे अधिक फर्नीचर थे; हॉल में सोफ़े और टेबल; रसोई में फ्रिज; इंटरटेनमेंट के लिए सोनी का एक हाई-फाई म्यूजिक सिस्टम! ‘चलो! साहब को कुछ शौक तो हैं!’ फ्रिज खोला, तो देखा कि वहाँ भी बस ज़रुरत की ही चीज़ें थीं - मिल्क, बटर, ब्रेड, अंकुरित अनाज, और कुछ सब्ज़ियाँ! बेहद साफ़ सुथरा किचन - नाश्ते में जो प्लेट और मग यूज़ हुआ था, बस वो सिंक में था! राशन की अलमारियाँ खोलीं - तो सब कुछ बेसिक सा ही था। पहले तो लगा कि अमर को कोई शौक ही नहीं है - लेकिन फिर सोचा कि वो अकेले करें भी तो क्या क्या? और, अनहेल्दी शौक पाल कर वो अपनी सेहत थोड़े ही खराब करेंगे! बाथरूम भी बाकी के घर जैसा ही साफ़ सुथरा, और सूखा! उनके कमरे में देखा तो सब कपड़े करीने से लगे हुए थे अलमारी में। बिस्तर पर सब कुछ तरीके से तह कर के रखा गया था। बालकनी में आई, तो चिड़ियों के चुगने के लिए बर्ड-फ़ीडर लगा हुआ था, और उसमें से पाँच छः गौरैयाँ दाना चुग रही थीं! कुछ देर मैं उनका गाना चहकना सुनती रही! कैसी शांति मिली! अब समझ में आया कि इतनी शांति में भी मनोरंजन कैसे किया जा सकता है!

मुझे मालूम था कि काजल दीदी के बाद उन्होंने किसी को भी अपने यहाँ काम करने नहीं रखा था - मतलब वो घर का सारा काम खुद ही करते थे! मेरे मन में उनके लिए और भी अधिक रेस्पेक्ट आ गई।

साफ़ सुथरा घर - यह किसी आदमी के बारे में बहुत कुछ बता देता है। मुझे मालूम हो गया कि अमर जैसे सिंपल से, अनप्रिटेंशियस से दिखते हैं, वो वैसे हैं भी। साफ़ सुथरा घर - कोरे कैनवास जैसा! इस घर को ज़रुरत थी इसकी दीवारों में रंग भरने वाली की! तो उसके लिए मैं हूँ न! मैंने अमर से बिना पूछे, हमारे घर के लिए कुछ सजावट के सामान, और अन्य वस्तुएँ खरीदनी शुरू कर दीं। काम के सिलसिले में मैं देश और विदेश घूमती रहती थी, और वहाँ से अपनी पसंद के सामान लाती रहती थी। अब वो सब कुछ हमारे घर में था। अमर को भी मेरा किया हुआ काम पसंद आता,

‘वो नए वाले पर्दे बहुत सुन्दर है, डेवी!’ एक दिन अमर ने ऑफिस में कॉल कर के कहा।

‘हमारे बेडरूम वाले, या हॉल वाले, या गेस्ट रूम वाले, या फिर डाइनिंग हॉल वाले?’ मैंने उनकी खिंचाई करते हुए कहा।

‘सब! हा हा हा!’

‘मेरे भोलूराम, गेस्ट रूम और डाइनिंग हॉल में तो अभी लगाए ही नहीं हैं!’ कह कर मैं खूब हँसी।

फिर एक और दिन जब मैं हमारे घर गई, वो अमर भी वहीं पर थे। मेरी खरीददारी देख कर वो चौंक गए।

‘डेवी, यार! ये तो बोन चाइना की क्रॉकरी सेट है सब!’ उन्होंने पैकेट पलट कर देखा, ‘अरे! ये तो इम्पोर्टेड भी है!’

‘हाँ! तो?’

‘मतलब, कॉस्टली होगा?’

‘होता रहे!’

‘कितने का खरीदा! कम से कम इसका दाम तो बता दो!’

मैं हाथ को अपने पीछे बाँध कर इठलाती हुई उनके पास गई, और मुस्कुराते हुए उनके गाल को सहलाते हुए, अचानक ही उनके कानों को पकड़ कर उमेठ दिया।

‘आऊ!’ उन्होंने झूठ-मूठ का रोना रोया।

‘अब बोलो, मुझसे चीज़ों का दाम पूछोगे?’

‘नहीं मेरी माँ, कभी नहीं!’

हम कुछ देर इस खेल पर हँसते रहे, लेकिन फिर मैंने उनको अपना साइड समझाते हुए कहा,

‘जानू, तुम ऐसे न सोचो कि मैं कोई फ़िज़ूलखर्च औरत हूँ! हम दोनों ही अच्छा कमाते हैं, तो उस पैसे का मज़ा भी लेना चाहिए। थोड़ा अच्छा रहने में कोई बुराई तो नहीं! हम फालतू के सामानों पर पैसे थोड़े ही ख़र्च कर रहे हैं!’

‘हाँ, लेकिन मुझे भी तो खर्चने दो?’

‘हम्म! दूँगी! लेकिन कभी और! और वैसे भी, मैं तुमसे उम्र में बड़ी हूँ, और पोजीशन में भी! इसलिए मेरा इतना हक़ तो बनता ही है न!’

‘अच्छा जी! तो आप मेरी असिस्टेंट जनरल मैनेजर हैं?’

‘उम हम,’ मैंने ‘न’ में सर हिलाया, ‘जनरल मैनेजर’ मैंने उनको अपने प्रमोशन का सरप्राइज भी दिया!

‘व्हाट! ओह वाओ वाओ! अमेजिंग! वेल डिज़र्व्ड! आई ऍम सो हैप्पी माय लव! कांग्रेचुलेशन्स!’ कह कर अमर ने मुझे अपनी गोद में उठा लिया था!

‘लेकिन किसी को बताना नहीं!’ मैंने अमर को हिदायद दी, ‘अभी तक ऑफिशियली ये बात बाहर नहीं आई है।’

‘नहीं बताऊँगा मेरी जान! लेकिन तुमको नहीं, तो और किसको बनाएँगे जनरल मैनेजर!’

कह कर उन्होंने मुझे कई बार चूमा!

‘कब बताएँगे ऑफिशियली?’

‘जनवरी में! आफ्टर द वेकेशन!’

‘ओके! देन पार्टी इस ऑन मी!’

आज पहली बार हुआ था कि मैंने अपने प्रमोशन की खबर अपने घर वालों को न सुना कर, अमर को सुनाई थी। और मैं इस बात की ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी। अमर ऐसे खुश हो रहे थे, जैसे मुझे नहीं, उनको मिला हो ये प्रमोशन! अब से मेरी लाइफ की हर छोटी बड़ी बात जानने का सबसे पहला हक़ मेरे अमर का होगा! ऐसा हस्बैंड पा कर मुझे सच में अपनी किस्मत पर घमण्ड होने लग गया था।

और फिर, जैसा मुझे उम्मीद थी, अमर ने मुझे बताया कि उनके मम्मी डैडी मुझसे मिलना चाहते हैं! मुझे यह सुन कर बहुत अच्छा लगा! मतलब उनके घर वालों को मेरे बारे में मालूम था! नाइस! मैं भी तो मिलना चाहती थी उनसे! लेकिन अंदर ही अंदर डर भी बहुत लगा - मेरे और अमर की उम्र में इतना गैप है कि कहीं वो हमारी शादी पर ऑब्जेक्ट न करने लगें। और फिर मेरे डैडी और दीदी से भी तो मिलवाना था अमर को!

ये सब जब होना था तब होना था - लेकिन उसके पहले अमर के साथ सेक्स हो गया। सच में, मैंने वो कभी प्लान नहीं किया था। अमर जैसे खुद को कण्ट्रोल कर के रहते थे, उससे मुझको यकीन हो गया था कि हमारे बीच सेक्स शादी के बाद ही होगा।

ही एक्चुअली सरप्राइज़्ड मी! एंड व्हाट अ सरप्राइज इट वास!

ओह! अमर की छुवन, उनके किसेज़, मेरे ब्रेस्ट्स और निप्पल्स पर उनका प्यार, और फिर सेक्स! ओह, ऐसा कम्पलीटनेस महसूस हुआ जो मुझे पहले बॉयफ्रेंड के साथ नहीं हुआ। क्या कुछ मिस कर रही थी मैं अपनी लाइफ में! सच में - अमर जैसा जवां मर्द पा कर मैं धन्य हो गई। मैं तो उनकी मुरीद हो गई पूरी तरह से। मैं अब उस राह पर चल निकली थी, जहाँ पर वापस जाने का कोई रास्ता नहीं होता। मैं अमर की थी और हूँ और रहूँगी। हमारी उम्र का अंतर कोई मायने नहीं रखता हमारे बीच! वो मेरे सब कुछ हैं। मेरा घर, मेरा संसार, मेरी आत्मा, और मेरा प्यार!

थैंक गॉड - डैडी को भी और दीदी को भी अमर खूब पसंद आए। उन्होंने मुझे बाद में बोला कि अमर एक सच्चा आदमी है और यह कि वो मेरे लिए बहुत खुश हैं। दीदी तो इतनी खुश हैं कि क्या कहें - अगर मेरी जगह वो होतीं, तो वो खुद भी अमर से शादी कर लेतीं - मुझे तो ऐसा लगता है। इतना सब होने के बाद मुझे एक डर सा लगने लगा कि क्या मैं भी उनके घर वालों को इतना पसंद आऊँगी? ऐसा न हो कि वो मुझे पसंद न करें! मेरे सारे सपने चूर हो जाएंगे।

लेकिन जब माँ डैड और काजल दी उस दिन हमारे घर आए, तो मैं समझ गई कि मेरे लिए उससे अधिक सुन्दर ससुराल कोई हो ही नहीं सकती। उस दिन समझ में आया कि अमर ऐसे क्यों हैं! उनको कितने अफ़ेक्शन से पाल पास कर बड़ा किया गया है - उन्होंने उसके अलावा और कुछ देखा ही नहीं। इसलिए उनको गुस्सा नहीं आता; वो हमेशा मुस्कुराते रहते हैं! माँ भी वो वैसी ही हैं - सिंपल, सुन्दर! ओह! सच में - मेरी माँ भी तो उनके जैसी ही सुन्दर और अफेक्शनेट थीं! लेकिन जब मैंने उनसे मज़ाक मज़ाक में ही कह दिया कि मैं उनको दीदी कहूँगी, तो भी उनको बुरा नहीं लगा। और हम दोनों - सॉरी - तीनों (मतलब काजल दी भी) कितनी अच्छी सहेलियाँ बन गई हैं!

कभी सोचा ही नहीं था कि मैं काजल दी को दी (दीदी) कह कर पुकारूँगी। सुन कर मुझे कैसा खराब लगा था कि पहले तो अपनी नौकरानी से अमर ने सेक्स किया, उससे बच्चा किया, और फिर वही नौकरानी अब उनके घर में रह रही है। कितना खराब लगता है न! लेकिन काजल दी तो कैसी अच्छी हैं। अमर सही बोल रहे थे, सच में - काजल दी उनकी दीदी जैसी ही हैं। उनकी गार्जियन! उनकी कहानी तो सभी जानते हैं। और माँ और डैड कितने अमेज़िंग हैं न - उन्होंने काजल दी को और उनके बच्चों को पनाह दिया, सहारा दिया। जितने टाइम मैं उनके साथ रही, मुझे लगा कि जैसे जयंती दीदी ही मेरे साथ में हैं! इतनी अच्छी कैसे हैं वो! और उनके बच्चे! वाह! कितने कल्चर्ड! लतिका तो गुड़िया है! सुनील थोड़ा शांत रहता है, लेकिन कितनी मेहनत करता है पढ़ाई लिखाई में! बोलता है कि मेरे पास बस यही एक काम है और मैं इसको अच्छी तरह से करना चाहता हूँ! सच कह रही हूँ - वो बहुत तरक्की करेगा!

ऐसे घर में अपना बच्चा लाने की तमन्ना है मुझको। यहाँ उसको इतना प्यार मिलेगा कि बयान करना मुश्किल है! अमर को मैंने कितनी बार डराया कि शायद मुझे बच्चा न हो! मैं देखना चाहती थी कि मेरे लिए अमर के मन में कितना प्यार है। लेकिन वो तो जैसे ये सब सुनने को तैयार ही नहीं थे। ‘बच्चा न हुआ तो क्या? गोद ले लेंगे!’ उन्होंने कहा था - लेकिन पत्नी के रूप में मैं ही उनको चाहिए थी! है न कमाल के वो?

और अब मैं आप सबको एक राज़ की बात बताऊँ?

शायद आई ऍम प्रेग्नेंट! इट इस अ बिट टू अर्ली टू से, बट आई मिस्ड माय पीरियड्स डिस मंथ!

हाँ हाँ - हम लोग अभी भी हनीमून पर हैं! लेकिन हमने पहली बार सेक्स तो डेढ़ महीना पहले किया था न?

तो पॉसिबल तो है!

अमर को कब बताऊँ? बताऊँ भी कि नहीं? उनको कैसा लगेगा?

बाप रे - आल दिस फील्स लाइक अ ड्रीम!

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प्रिय पाठकों - देवयानी का परिप्रेक्ष्य (perspective) लिखने की सलाह अंजली ने दी है। वो बोलीं कि हमेशा male (Amar’s) perspective से ही कहानी नहीं लिखनी चाहिए। कुछ तो देवयानी के बारे में भी लिखो। उनको क्या फ़ील हुआ होगा? वो क्या सोच रही थीं? तो इस अपडेट का काफ़ी कुछ अंजली ने ही लिखा (मेरा मतलब dictate किया है - देवनागरी में मैंने लिखा है) है! बताएँ कि यह प्रयास कैसा रहा? कहानी का तार-तम्य टूटा तो नहीं न? ज्यादातर तो recap जैसा ही हो गया है। आपके feedback की प्रतीक्षा रहेगी! धन्यवाद!
सबसे पहले अंजलि भाभी जी को तह दिल से शुक्रिया
क्या ऐसी कहानी में सिर्फ पुरुषों के भावनाओं का वक्त करना अनिवार्य है
स्त्रियों का क्यूँ नहीं...
बहरहाल आपका कथन सत्य है डैवी की फिलिंग के जरिए आपकी कहानी का recap हुआ है फिर भी यह प्रयोग बढ़िया रहा
👍
 
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