- 4,210
- 23,499
- 159
![b6ed43d2-5e8a-4e85-9747-f27d0e966b2c b6ed43d2-5e8a-4e85-9747-f27d0e966b2c](https://i.ibb.co/mhSNsfC/b6ed43d2-5e8a-4e85-9747-f27d0e966b2c.jpg)
Last edited:
Nice update..!!नया सफ़र - विवाह - Update #14
देवयानी का परिप्रेक्ष्य :
आज की सुबह मैं बहुत जल्दी उठ गई! घड़ी देखी तो केवल चार ही बज रहे थे! कैसी गहरी ख़ामोशी पसरी हुई थी चारों ओर! केवल समुद्र की लहरों की आवाज़ें! रात अमर ने मुझे थका दिया, फिर भी नींद खुल गई - और ऐसी खुली कि लग रहा है कि पूरी तरह से फ्रेश हूँ। अमर को देखा - वो अभी भी सो रहे हैं - मैं मुस्कुराई - कभी सोचा भी न था कि वो मेरे हस्बैंड भी बनेंगे! मैंने अलसाई हुई अंगड़ाई ली - शरीर जैसे टूट रहा हो! लेकिन आँखों से नींद गायब है! मैं चुपके से बिस्तर से उठी, और दबे पाँव चलते हुए क्लोसेट तक गई, वहाँ अपनी नाइटी उठाई, पहनी, और कमरे से बाहर झोपड़ी के आहाते में आ कर आराम-कुर्सी पर बैठ गई। समुद्र की नमी वाली हवा, अँधेरा, और लहरों की आवाज़ - यह इतना आराम देने वाला एहसास था कि क्या कहूँ!
आराम-कुर्सी पर पसर के मैं बीते कुछ महीनों की बातें सोचने लगी।
कुछ कहानियाँ परी-कथाओं जैसी होती हैं! उनको कहने सुनने में कोरी गप्प जैसी लगती हैं। मेरी और अमर की कहानी भी बहुत कुछ वैसी ही लगती है। जब मैं अमर से पहली बार मिली थी, तब वो इंटरव्यू देने ऑफिस आया हुआ था। कुछ लोग बहुत ही बुद्धिमान होते हैं और लगते भी हैं। अमर भी उन्ही लोगों जैसा था - लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब सी उदासी देखी थी मैंने। उदासी या गुस्सा? कुछ ठीक से कहना मुश्किल है। ऐसा नहीं है कि मैं उसकी पर्सनालिटी से बहुत इम्प्रेस हो गई हूँ। सच कहूँ, तो उसकी पर्सनालिटी में वैसा कुछ भी नहीं था। हाँ, देखने भालने में हैंडसम तो था, लेकिन बस इतना ही। अपने में खोया हुआ सा! चुप-चाप! रिजर्व्ड! जैसे अपने चारों तरफ़ क़िले की दीवार बना रखी हो! इतनी कम उम्र का इतना सीरियस आदमी मैंने नहीं देखा था - यह बात तो सच है। लेकिन बस इतना ही। फिर इंटरव्यू के बाद उसके मैनेजर्स ने उसकी इतनी बढ़ाई करी, कि मुझे लगा कि बढ़िया कैंडिडेट है। तब तक लोग एक इंटरव्यू में ही अपॉइंट कर लिए जाते थे। लेकिन अमर का दो और राउंड इंटरव्यू हुआ - उसके मैनेजर्स सोच रहे थे कि क्या उसको टीम-लीडर का रोल दिया जा सकता है या नहीं! और फिर कमाल ही हो गया। शायद वो सबसे कम उम्र का टीम लीडर बनाया गया। हाँ - तब मुझे उसके बारे में वाकई एक क्यूरिऑसिटी तो हुई!
लेकिन फिर भी, काम के अलावा उससे बातें करने, उससे दोस्ती करने की कोई वजह भी तो नहीं थी! एक रिलेशनशिप में धोखा खाने के बाद मेरा मन भर गया था। और अब आदमियों से अंतरंग दोस्ती करने का मेरा कोई इरादा नहीं था। लेकिन कहते हैं न - जोड़ियाँ तो वहाँ, ऊपर, बनाई जाती हैं! जब भाग्य का चक्र चलता है, तब सब कुछ संभव हो जाता है। और वही मेरे साथ भी हुआ। मसूरी में मैंने जब अमर को सबसे दूर, अकेले में खड़े देखा, तो न जाने किस प्रेरणावश मैं उसकी तरफ़ खिंची चली गई। अभी सोच कर लगता है कि अच्छा किया! लेकिन तब ऐसा कोई ख़याल नहीं था। कोई लड़की अपने से नौ - सवा नौ साल छोटे ‘लड़के’ से भला कोई रोमांस करने का सोचती भी है? लेकिन न जाने क्या बात थी कि कुछ ही दिनों में मेरे दिल-ओ-दिमाग में बस अमर ही अमर होने लगा। न जाने क्या बात थी उसमें! न जाने क्या बात है उसमें कि उसके सामने आते ही मेरे दिल की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं! अभी भी नहीं समझ आई। शुरू शुरू में लगता था कि वो कैसा गंवार टाइप का आदमी है - न बात करने का शऊर, और न ही किसी के लिए कोई इज़्ज़त। लेकिन जल्दी ही मालूम चल गया कि ये दोनों ही बातें गलत थीं। अमर को सभी के लिए बहुत इज़्ज़त है - उसने किसी से भी कभी भी गलत तरीके से बात नहीं करी। और जहाँ तक गँवारी वाली बात है, वो इसलिए क्योंकि हम दोनों ही बहुत ही अलग बैकग्राउंड से आये हुए थे।
जान पहचान हुई, तो यारी भी हो गई। कैसे न होती? उससे बातें करना कितना आसान था। जल्दी ही यह बात समझ में आ गई कि उसके मन में जो कड़वाहट थी वो अपनी बीवी की असमय मौत के कारण थी। अचानक ही सब समझ आ गया। ऐसा नहीं है कि उसको किसी साथी की ज़रुरत थी, या फिर मुझे किसी की ज़रुरत थी। लेकिन फिर भी साथ बन गया। मैं अक्सर उसके ऑफ़िस जा कर उससे मिलने लगी। उसके टीम के लोग, और उसके दोस्त, सभी हमारा मज़ाक करते। मुझको देखते ही मुझे ‘भाभी’ ‘भाभी’ कह कर पुकारने लगते। शुरू शुरू में मुझे बुरा लगता, लेकिन कुछ ही दिनों में सामान्य सा लगने लगा। मुझको लगने लगा कि क्यों मैं अमर के साथ अपनी ज़िन्दगी नहीं बिता सकती? क्यों मैं उसको वो प्यार नहीं दे सकती जो उसने हाल ही में खो दिया है! क्यों मैं वो प्यार नहीं पा सकती, जो मुझे अभी तक नहीं मिला। क्या हुआ कि हमारे बीच उम्र का ऐसा फैसला है? लेकिन यह सारी बातें मैं उसको बोल नहीं पाई - कैसे कहती? बेइज़्ज़ती का डर था। इस बात का भी डर था कि कहीं हमारी यारी न टूट जाए!
और फिर आई दिवाली! अमर ने मुझसे कहा कि वो अपने परिवार के लिए कुछ खरीदना चाहता है, और उसके लिए वो मेरी हेल्प चाहता है। शॉपिंग किस लड़की को नहीं पसंद है? लेकिन ये शॉपिंग अनोखी थी। आज अपने लिए नहीं, बल्कि किसी और के लिए शॉपिंग करनी थी। मैंने ही सब पसंद किया, सारा मोल भाव किया! इससे मुझे उसके घर के सभी लोगों के बारे में मालूम चला। और जब हम चलने वाले थे, तो अमर ने मेरे लिए बेहद सुन्दर सा चिकन का काम किया हुआ कुर्ता और चूड़ीदार पजामी ख़रीदी। दिवाली का गिफ्ट! पहला गिफ्ट! मैंने जब उसको लेने से मना किया तो दुकानदार बोला, 'भाभी जी, ले लीजिए न - भाई साहब इतना ज़ोर दे रहे हैं तो! अभी शादी नहीं हुई है, तो क्या हुआ - हो जाएगी!'
उफ़्फ़! सभी को मैं ‘भाभी’ लगने लगी हूँ! तो क्यों न बन जाऊँ भाभी... मेरा मतलब अमर की बीवी?
अमर की बीवी - एक नई आइडेंटिटी! सच में - लड़की की आइडेंटिटी बदल जाती है शादी के बाद। कैसा लगेगा अगर मैं मिसेज़ सिंह बन जाऊँ? बाप रे! सोच कर ही दिल धाड़ धाड़ कर धड़कने लगा। उस दिन के जैसी बॉन्डिंग - ओह - पॉसिबल ही नहीं थी। पूरे दिवाली में बस अमर की ही यादें। क्या उसने मेरे बारे में अपने घर में बताया होगा? अगर हाँ, तो उसके घर वालों ने क्या कहा होगा? दीदी और डैडी दोनों पूछते रहे कि मैं कहाँ गुमसुम बैठी हूँ! अब उनको क्या बताऊँ? पहली बार दीदी के बच्चों को देख कर मुझे अपने बच्चे करने की इच्छा होने लगी। ओह अमर - ये क्या कर रहे हो तुम मेरे साथ! और जब वो वापस आया तो मेरे लिए ‘माँ’ का दिया हुआ गिफ़्ट था - एक और शलवार कुर्ता सेट - कितना सुन्दर सा! जामदानी मसलिन के कपड़े पर रेशमी चिकन के क़सीदे! ऐसा कुछ मैंने अपनी पूरी लाइफ में नहीं देखा। सच में - ऐसा गिफ़्ट तो कोई अपनी होने वाली ‘बहू’ को ही दे सकता है! उस दिन जैसी ख़ुशी मुझे कभी नहीं हुई।
अब समय आ गया था कि हम दोनों खुल कर अपने बारे में बातें करें। अगर रिलेशनशिप आगे बढ़ाना है तो ये रिस्क तो लेना ही पड़ेगा। हम दोनों को मालूम होना चाहिए कि हमको अपनी अपनी लाइफ से क्या चाहिए। गेस-वर्क से तो रिलेशनशिप आगे नहीं बढ़ता न! तो हम एक ‘कॉफ़ी डेट’ पर गए। कम से कम अमर अब इतना सीरियस हो रहा था, कि वो मुझे डेट पर ले जाए। उस शाम हमने अपने लाइफ और कई पर्सनल मैटर्स को देर तक डिसकस किया। अमर ने खुद ही अपनी प्रीवियस मैरिड लाइफ के बारे में मुझे बताया - गैबी के बारे में बताया! उसने मुझे काजल के बारे में भी बताया - सुन कर थोड़ा अजीब तो लगा, लेकिन फिर जब मैंने सोचा तो उतना अजीब भी नहीं लगा। काजल या गैबी उसका पर्सनल मैटर था - और मुझसे पहले हुआ था। मेरी अब की लाइफ में उसका कोई इन्फ्लुएंस नहीं होने वाला था। इसलिए मैंने काजल के मसले पर कुछ कहा नहीं।
जब मैंने देखा कि अमर मुझसे इस तरह से खुल कर सब बता रहा था, तो मैंने भी उसको अपने और अपने स्ट्रगल के बारे में बताया। मैंने उसको बताया कि तीस के ऊपर हो जाने के कारण मैं ‘उतनी’ मैरिजिएबल नहीं हूँ, जितनी तीन चार साल पहले थी। डैडी आई ए एस ऑफ़िसर रहते, तो अलग बात थी। अब वो रिटायर हो गए थे, तो बातें और भी अनफ़ेवरेबल हो गई थीं। दहेज़ तो मैं वैसे भी किसी को एक धेला नहीं देने वाली थी। ऊपर से बढ़ती उम्र के कारण प्रेग्नेंसी का इशू हो सकता था। प्लस, मैं क्वालिफाइड भी बहुत थी, और कमा भी बहुत रही थी। ये सब देख कर ज्यादातर मैच घबरा जाते कि मैं कैसे घर का काम सम्हालूँगी। कुल मिला कर मैं बढ़िए मैच नहीं थी।
लेकिन अमर की सोच तो बहुत अलग निकली - उसने मुझसे कहा कि काश उसकी मेरी जैसी वाइफ हो! और यह कि अगर हमारा सम्बन्ध बनता है तो उसको बहुत प्राउड फील होगा! बड़ी बात थी! तो उसको मुझसे शादी करने में इंटरेस्ट था। बढ़िया! यही मौका था - मैंने उसको मेरे प्रीवियस, अनसक्सेसफुल अफेयर के बारे में बताया। मैंने उसको हिंट भी दिया कि मैं वर्जिन नहीं थी। लेकिन शायद अमर के लिए वो कोई बात ही नहीं थी। कमाल की सोच! तेईस चौबीस साल के लड़के के लिए कितनी मैच्योर सोच! अब बिना वजह रुकने का कोई कारण नहीं था। मैंने अमर से पूछा ही लिया कि क्या वो अब किसी रिलेशनशिप के लिए तैयार है, तो उसने बड़ी ईमानदारी से मुझसे कहा कि गैबी की यादें अभी भी उसके मन में ताज़ा हैं! सच में - ऐसे ईमानदार आदमी से कोई कैसे प्यार न कर बैठे! अब तक तो मैं भी फिसल चुकी थी।
मैंने उससे कहा कि वो प्यार को एक और चांस दे - उसकी उम्र बहुत कम है! अकेले रहने के लिए बहुत लम्बी लाइफ पड़ी हुई है। मैं उसको समझा रही थी तो उसने भी मुझसे पूछ लिया कि क्या मैं भी किसी रिलेशनशिप और मैरिज के लिए रेडी हूँ! तो मैंने भी ईमानदारी से कह दिया कि मुझे कोई बहुत होप नहीं है कि मुझे कोई मिलेगा। लेकिन मन की बात उसको बतानी ज़रूरी थी - इसलिए मैंने कह दिया कि अगर मुझे कोई एक्साइटिंग पार्टनर मिलता है, तो मैं ज़रूर उसको ओपन-आर्म्स से अपनी लाइफ में वेलकम करूँगी! काश वो मेरा इशारा समझ जाए!
अमर ने मेरा इशारा समझा! उसने मुझे डिनर डेट पर बुलाया। लेकिन लास्ट मोमेंट पर जैसे मुझे लकवा मार गया हो। इतना डर लगा कि मैं गई ही नहीं। मैं उससे इतनी बड़ी हूँ उम्र में कि मुझे गलत सा लगा! क्या मैं सही कर रही हूँ उसके साथ? यही सोच कर मैंने डिनर डेट कैंसिल कर दी। लेकिन अमर ने हार नहीं मानी, और एक और डिनर डेट पर मुझे इनवाइट किया - जाहिर सी बात है, मैं भी उसको पसंद तो थी! ज्यादा नखरा करने से मुझे भी नुकसान तो था ही। तो मैंने मान लिया। लेकिन फिर भी कुछ डाउट थे मन में - इसलिए मैंने उसको ढाबे पर खाने के लिए मना लिया। लेकिन वो तो इतना सरल निकला कि उसको ढाबे में भी मज़ा आ गया! सच में, उसी दिन से मैं पूरी तरह से कायल हो गई अमर की। अब कोई बहाना नहीं बचा था। और बहाना करना मेरी बेवकूफी होगी! यह बात मुझे अच्छी तरह से मालूम हो गई थी अब!
इसलिए जब अमर ने मुझे डिनर डेट के बाद प्रोपोज़ किया, तो उसके प्रपोजल को एक्सेप्ट करने के अलावा मेरे पास कोई और चारा ही नहीं था। लेकिन यह बहुत ही अनएक्सपेक्टेड था। मैंने फिर से उससे सोच लेने को कहा - मेरी उम्र बढ़ रही थी। कहीं बेबी होने में कोई प्रॉब्लम हुई तो! लेकिन अमर को उन सब बातों से कोई मतलब ही नहीं था। उसको बस मेरा साथ चाहिए था! आखिरकार मुझे मेरा मनचाहा साथी मिल ही गया था! मैंने उसको खुद से दूर करने की कितनी सारी कोशिशें करी, लेकिन वो सभी टस से मस नहीं हुआ। उस दिन मैंने पहली बार अमर को ‘आई लव यू’ बोला! मेरे लिए ये तीन शब्द हल्के नहीं थे। अमर के अलावा मैं अब ये तीन शब्द शायद ही किसी और से कहूँ! और उसी दिन अमर ने मुझे चूमा! होंठों पर नहीं - मेरे ही कहने पर - बल्कि माथे पर! ओह, उस किस का एहसास आज भी है मुझे! एक परमानेंट किस बन गया है वो!
मुझे अब लगता है कि अमर ने खुद पर किस तरह से कण्ट्रोल किया होगा - वो बहुत ही हॉट हैं! लेकिन मेरे कहने पर उन्होंने किस तरह से खुद को ज़ब्त किया हुआ था। सच है - प्यार हमेशा फिजिकल हो, यह ज़रूरी नहीं। मैं हमेशा सोचती थी कि हमारा रिलेशनशिप छुपा ढँका है - लेकिन क्रिसमस पार्टी वाले रोज़ ‘रोस्ट’ में मालूम पड़ा कि सभी को हमारे बारे में मालूम है। उस दिन कितनी शर्म आई थी मुझे! लेकिन अच्छा भी लगा कि ‘राज़’ का यह बोझ उतरा! अब हम दोनों आराम से साथ हो सकते थे! इसीलिए मैंने अमर को अपने घर आने का न्योता दे दिया कि आ कर डैडी से बात कर ले! फिर हमारी फिल्म डेट - उस दिन अमर से अपने आप पर काबू नहीं रखा जा सका। और बहुत अच्छी बात थी कि काबू नहीं रखा। मेरे ब्रेस्ट्स पर अमर के होंठों की छुवन - आह! एक आग सी लग गई थी! एक वो दिन था, और आज का दिन है - अमर के साथ हर दिन रंगीन, हर दिन हॉट रहा है! कोई भी दिन ऐसा नहीं रहा जिसमें एक्साइटमेन्ट न रहा हो!
और सबसे बड़ी बात है कि अमर के साथ जीने का मज़ा सौ गुना बढ़ गया है। सच में - मैं अब तक कितनी अकेली थी, यह बात मुझे अमर के संग के बाद ही मालूम हुई। अपने मन की हर बात मैं अमर से कह सकती हूँ और कहती भी हूँ! ऐसा कोई अभी तक नहीं मिला। दीदी से कितनी सारी बातें होती हैं - लेकिन फिर भी, उनसे भी तो बहुत कुछ छुपा लेती हूँ! लेकिन अमर के साथ ऐसा कुछ भी नहीं होता। और अमर से कुछ छुपाना भी क्यों है? लाइफ पार्टनर वो ऐसे थोड़े ही है!
मेरा पहला बॉयफ्रेंड - उसको बस एक ही चीज़ चाहिए थी! और वो है सेक्स। अपना काम बन गया, तो उसके लिए उतना ही ठीक था। एक नंबर का मतलबी और लम्पट आदमी। न जाने कैसे मैं उसके चक्कर में पड़ भी गई थी। उस आदमी के कारण मेरा प्यार मोहब्बत से भरोसा ही उठ गया था। आदमी का मतलब केवल सेक्स! ऐसे तो लाइफ नहीं चलती न! मेरा मन था घर बसाने का। माँ बनने का! मेरी डिजायर, मेरी विशेज़ का क्या? लेकिन अमर ने मेरी हर डिजायर, मेरी है विशेज़ को पंख दिया। जब उसने मुझे अपने - ओह, आई ऍम सॉरी - हमारे घर की चाबी, मेरे हाथों में दी, तब मैं समझ गई कि अमर ही मेरा घर हैं। मैंने उनके सामने जाहिर नहीं होने दिया - लेकिन उस दिन मेरे दिल में, मेरे मन में उनके लिए इतनी रेस्पेक्ट आ गई, कि मुझे खुद ही यकीन नहीं हुआ। अमर मुझसे कितने छोटे हैं उम्र में - लेकिन सच में, अब उनको ‘तुम’ के बजाय ‘आप’ कहने का मन होने लगा। आई थिंक उस दिन मैंने पूरी तरह से डिसाइड कर लिया कि अगर शादी करूँगी तो सिर्फ और सिर्फ अमर से नहीं तो उम्र भर ऐसी ही रहूँगी - अकेली! और, अगर मेरे बच्चे होंगे, तो अमर से ही होंगे!
जब मैं पहली बार उस घर के अंदर गई, तो मेरा दिल तेजी से धड़क उठा : ‘मेरा घर’ - बस यही एक ख़याल मेरे मन में आया। और कितनी साफ़ सफाई से रखा हुआ था घर को अमर ने! लेकिन रहते वो थे बिलकुल सन्यासी जैसे - केवल उनके कमरे में ही सबसे अधिक फर्नीचर थे; हॉल में सोफ़े और टेबल; रसोई में फ्रिज; इंटरटेनमेंट के लिए सोनी का एक हाई-फाई म्यूजिक सिस्टम! ‘चलो! साहब को कुछ शौक तो हैं!’ फ्रिज खोला, तो देखा कि वहाँ भी बस ज़रुरत की ही चीज़ें थीं - मिल्क, बटर, ब्रेड, अंकुरित अनाज, और कुछ सब्ज़ियाँ! बेहद साफ़ सुथरा किचन - नाश्ते में जो प्लेट और मग यूज़ हुआ था, बस वो सिंक में था! राशन की अलमारियाँ खोलीं - तो सब कुछ बेसिक सा ही था। पहले तो लगा कि अमर को कोई शौक ही नहीं है - लेकिन फिर सोचा कि वो अकेले करें भी तो क्या क्या? और, अनहेल्दी शौक पाल कर वो अपनी सेहत थोड़े ही खराब करेंगे! बाथरूम भी बाकी के घर जैसा ही साफ़ सुथरा, और सूखा! उनके कमरे में देखा तो सब कपड़े करीने से लगे हुए थे अलमारी में। बिस्तर पर सब कुछ तरीके से तह कर के रखा गया था। बालकनी में आई, तो चिड़ियों के चुगने के लिए बर्ड-फ़ीडर लगा हुआ था, और उसमें से पाँच छः गौरैयाँ दाना चुग रही थीं! कुछ देर मैं उनका गाना चहकना सुनती रही! कैसी शांति मिली! अब समझ में आया कि इतनी शांति में भी मनोरंजन कैसे किया जा सकता है!
मुझे मालूम था कि काजल दीदी के बाद उन्होंने किसी को भी अपने यहाँ काम करने नहीं रखा था - मतलब वो घर का सारा काम खुद ही करते थे! मेरे मन में उनके लिए और भी अधिक रेस्पेक्ट आ गई।
साफ़ सुथरा घर - यह किसी आदमी के बारे में बहुत कुछ बता देता है। मुझे मालूम हो गया कि अमर जैसे सिंपल से, अनप्रिटेंशियस से दिखते हैं, वो वैसे हैं भी। साफ़ सुथरा घर - कोरे कैनवास जैसा! इस घर को ज़रुरत थी इसकी दीवारों में रंग भरने वाली की! तो उसके लिए मैं हूँ न! मैंने अमर से बिना पूछे, हमारे घर के लिए कुछ सजावट के सामान, और अन्य वस्तुएँ खरीदनी शुरू कर दीं। काम के सिलसिले में मैं देश और विदेश घूमती रहती थी, और वहाँ से अपनी पसंद के सामान लाती रहती थी। अब वो सब कुछ हमारे घर में था। अमर को भी मेरा किया हुआ काम पसंद आता,
‘वो नए वाले पर्दे बहुत सुन्दर है, डेवी!’ एक दिन अमर ने ऑफिस में कॉल कर के कहा।
‘हमारे बेडरूम वाले, या हॉल वाले, या गेस्ट रूम वाले, या फिर डाइनिंग हॉल वाले?’ मैंने उनकी खिंचाई करते हुए कहा।
‘सब! हा हा हा!’
‘मेरे भोलूराम, गेस्ट रूम और डाइनिंग हॉल में तो अभी लगाए ही नहीं हैं!’ कह कर मैं खूब हँसी।
फिर एक और दिन जब मैं हमारे घर गई, वो अमर भी वहीं पर थे। मेरी खरीददारी देख कर वो चौंक गए।
‘डेवी, यार! ये तो बोन चाइना की क्रॉकरी सेट है सब!’ उन्होंने पैकेट पलट कर देखा, ‘अरे! ये तो इम्पोर्टेड भी है!’
‘हाँ! तो?’
‘मतलब, कॉस्टली होगा?’
‘होता रहे!’
‘कितने का खरीदा! कम से कम इसका दाम तो बता दो!’
मैं हाथ को अपने पीछे बाँध कर इठलाती हुई उनके पास गई, और मुस्कुराते हुए उनके गाल को सहलाते हुए, अचानक ही उनके कानों को पकड़ कर उमेठ दिया।
‘आऊ!’ उन्होंने झूठ-मूठ का रोना रोया।
‘अब बोलो, मुझसे चीज़ों का दाम पूछोगे?’
‘नहीं मेरी माँ, कभी नहीं!’
हम कुछ देर इस खेल पर हँसते रहे, लेकिन फिर मैंने उनको अपना साइड समझाते हुए कहा,
‘जानू, तुम ऐसे न सोचो कि मैं कोई फ़िज़ूलखर्च औरत हूँ! हम दोनों ही अच्छा कमाते हैं, तो उस पैसे का मज़ा भी लेना चाहिए। थोड़ा अच्छा रहने में कोई बुराई तो नहीं! हम फालतू के सामानों पर पैसे थोड़े ही ख़र्च कर रहे हैं!’
‘हाँ, लेकिन मुझे भी तो खर्चने दो?’
‘हम्म! दूँगी! लेकिन कभी और! और वैसे भी, मैं तुमसे उम्र में बड़ी हूँ, और पोजीशन में भी! इसलिए मेरा इतना हक़ तो बनता ही है न!’
‘अच्छा जी! तो आप मेरी असिस्टेंट जनरल मैनेजर हैं?’
‘उम हम,’ मैंने ‘न’ में सर हिलाया, ‘जनरल मैनेजर’ मैंने उनको अपने प्रमोशन का सरप्राइज भी दिया!
‘व्हाट! ओह वाओ वाओ! अमेजिंग! वेल डिज़र्व्ड! आई ऍम सो हैप्पी माय लव! कांग्रेचुलेशन्स!’ कह कर अमर ने मुझे अपनी गोद में उठा लिया था!
‘लेकिन किसी को बताना नहीं!’ मैंने अमर को हिदायद दी, ‘अभी तक ऑफिशियली ये बात बाहर नहीं आई है।’
‘नहीं बताऊँगा मेरी जान! लेकिन तुमको नहीं, तो और किसको बनाएँगे जनरल मैनेजर!’
कह कर उन्होंने मुझे कई बार चूमा!
‘कब बताएँगे ऑफिशियली?’
‘जनवरी में! आफ्टर द वेकेशन!’
‘ओके! देन पार्टी इस ऑन मी!’
आज पहली बार हुआ था कि मैंने अपने प्रमोशन की खबर अपने घर वालों को न सुना कर, अमर को सुनाई थी। और मैं इस बात की ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी। अमर ऐसे खुश हो रहे थे, जैसे मुझे नहीं, उनको मिला हो ये प्रमोशन! अब से मेरी लाइफ की हर छोटी बड़ी बात जानने का सबसे पहला हक़ मेरे अमर का होगा! ऐसा हस्बैंड पा कर मुझे सच में अपनी किस्मत पर घमण्ड होने लग गया था।
और फिर, जैसा मुझे उम्मीद थी, अमर ने मुझे बताया कि उनके मम्मी डैडी मुझसे मिलना चाहते हैं! मुझे यह सुन कर बहुत अच्छा लगा! मतलब उनके घर वालों को मेरे बारे में मालूम था! नाइस! मैं भी तो मिलना चाहती थी उनसे! लेकिन अंदर ही अंदर डर भी बहुत लगा - मेरे और अमर की उम्र में इतना गैप है कि कहीं वो हमारी शादी पर ऑब्जेक्ट न करने लगें। और फिर मेरे डैडी और दीदी से भी तो मिलवाना था अमर को!
ये सब जब होना था तब होना था - लेकिन उसके पहले अमर के साथ सेक्स हो गया। सच में, मैंने वो कभी प्लान नहीं किया था। अमर जैसे खुद को कण्ट्रोल कर के रहते थे, उससे मुझको यकीन हो गया था कि हमारे बीच सेक्स शादी के बाद ही होगा।
ही एक्चुअली सरप्राइज़्ड मी! एंड व्हाट अ सरप्राइज इट वास!
ओह! अमर की छुवन, उनके किसेज़, मेरे ब्रेस्ट्स और निप्पल्स पर उनका प्यार, और फिर सेक्स! ओह, ऐसा कम्पलीटनेस महसूस हुआ जो मुझे पहले बॉयफ्रेंड के साथ नहीं हुआ। क्या कुछ मिस कर रही थी मैं अपनी लाइफ में! सच में - अमर जैसा जवां मर्द पा कर मैं धन्य हो गई। मैं तो उनकी मुरीद हो गई पूरी तरह से। मैं अब उस राह पर चल निकली थी, जहाँ पर वापस जाने का कोई रास्ता नहीं होता। मैं अमर की थी और हूँ और रहूँगी। हमारी उम्र का अंतर कोई मायने नहीं रखता हमारे बीच! वो मेरे सब कुछ हैं। मेरा घर, मेरा संसार, मेरी आत्मा, और मेरा प्यार!
थैंक गॉड - डैडी को भी और दीदी को भी अमर खूब पसंद आए। उन्होंने मुझे बाद में बोला कि अमर एक सच्चा आदमी है और यह कि वो मेरे लिए बहुत खुश हैं। दीदी तो इतनी खुश हैं कि क्या कहें - अगर मेरी जगह वो होतीं, तो वो खुद भी अमर से शादी कर लेतीं - मुझे तो ऐसा लगता है। इतना सब होने के बाद मुझे एक डर सा लगने लगा कि क्या मैं भी उनके घर वालों को इतना पसंद आऊँगी? ऐसा न हो कि वो मुझे पसंद न करें! मेरे सारे सपने चूर हो जाएंगे।
लेकिन जब माँ डैड और काजल दी उस दिन हमारे घर आए, तो मैं समझ गई कि मेरे लिए उससे अधिक सुन्दर ससुराल कोई हो ही नहीं सकती। उस दिन समझ में आया कि अमर ऐसे क्यों हैं! उनको कितने अफ़ेक्शन से पाल पास कर बड़ा किया गया है - उन्होंने उसके अलावा और कुछ देखा ही नहीं। इसलिए उनको गुस्सा नहीं आता; वो हमेशा मुस्कुराते रहते हैं! माँ भी वो वैसी ही हैं - सिंपल, सुन्दर! ओह! सच में - मेरी माँ भी तो उनके जैसी ही सुन्दर और अफेक्शनेट थीं! लेकिन जब मैंने उनसे मज़ाक मज़ाक में ही कह दिया कि मैं उनको दीदी कहूँगी, तो भी उनको बुरा नहीं लगा। और हम दोनों - सॉरी - तीनों (मतलब काजल दी भी) कितनी अच्छी सहेलियाँ बन गई हैं!
कभी सोचा ही नहीं था कि मैं काजल दी को दी (दीदी) कह कर पुकारूँगी। सुन कर मुझे कैसा खराब लगा था कि पहले तो अपनी नौकरानी से अमर ने सेक्स किया, उससे बच्चा किया, और फिर वही नौकरानी अब उनके घर में रह रही है। कितना खराब लगता है न! लेकिन काजल दी तो कैसी अच्छी हैं। अमर सही बोल रहे थे, सच में - काजल दी उनकी दीदी जैसी ही हैं। उनकी गार्जियन! उनकी कहानी तो सभी जानते हैं। और माँ और डैड कितने अमेज़िंग हैं न - उन्होंने काजल दी को और उनके बच्चों को पनाह दिया, सहारा दिया। जितने टाइम मैं उनके साथ रही, मुझे लगा कि जैसे जयंती दीदी ही मेरे साथ में हैं! इतनी अच्छी कैसे हैं वो! और उनके बच्चे! वाह! कितने कल्चर्ड! लतिका तो गुड़िया है! सुनील थोड़ा शांत रहता है, लेकिन कितनी मेहनत करता है पढ़ाई लिखाई में! बोलता है कि मेरे पास बस यही एक काम है और मैं इसको अच्छी तरह से करना चाहता हूँ! सच कह रही हूँ - वो बहुत तरक्की करेगा!
ऐसे घर में अपना बच्चा लाने की तमन्ना है मुझको। यहाँ उसको इतना प्यार मिलेगा कि बयान करना मुश्किल है! अमर को मैंने कितनी बार डराया कि शायद मुझे बच्चा न हो! मैं देखना चाहती थी कि मेरे लिए अमर के मन में कितना प्यार है। लेकिन वो तो जैसे ये सब सुनने को तैयार ही नहीं थे। ‘बच्चा न हुआ तो क्या? गोद ले लेंगे!’ उन्होंने कहा था - लेकिन पत्नी के रूप में मैं ही उनको चाहिए थी! है न कमाल के वो?
और अब मैं आप सबको एक राज़ की बात बताऊँ?
शायद आई ऍम प्रेग्नेंट! इट इस अ बिट टू अर्ली टू से, बट आई मिस्ड माय पीरियड्स डिस मंथ!
हाँ हाँ - हम लोग अभी भी हनीमून पर हैं! लेकिन हमने पहली बार सेक्स तो डेढ़ महीना पहले किया था न?
तो पॉसिबल तो है!
अमर को कब बताऊँ? बताऊँ भी कि नहीं? उनको कैसा लगेगा?
बाप रे - आल दिस फील्स लाइक अ ड्रीम!
-----
प्रिय पाठकों - देवयानी का परिप्रेक्ष्य (perspective) लिखने की सलाह अंजली ने दी है। वो बोलीं कि हमेशा male (Amar’s) perspective से ही कहानी नहीं लिखनी चाहिए। कुछ तो देवयानी के बारे में भी लिखो। उनको क्या फ़ील हुआ होगा? वो क्या सोच रही थीं? तो इस अपडेट का काफ़ी कुछ अंजली ने ही लिखा (मेरा मतलब dictate किया है - देवनागरी में मैंने लिखा है) है! बताएँ कि यह प्रयास कैसा रहा? कहानी का तार-तम्य टूटा तो नहीं न? ज्यादातर तो recap जैसा ही हो गया है। आपके feedback की प्रतीक्षा रहेगी! धन्यवाद!
बहुत बहुत धन्यवाद भाई मेरेDevyani ka POV bada pyara laga, bohat sundar
बहुत बहुत धन्यवाद भाई मेरेDevyani ka POV bada pyara laga, bohat sundar
Waiting for nextनया सफ़र - विवाह - Update #14
देवयानी का परिप्रेक्ष्य :
आज की सुबह मैं बहुत जल्दी उठ गई! घड़ी देखी तो केवल चार ही बज रहे थे! कैसी गहरी ख़ामोशी पसरी हुई थी चारों ओर! केवल समुद्र की लहरों की आवाज़ें! रात अमर ने मुझे थका दिया, फिर भी नींद खुल गई - और ऐसी खुली कि लग रहा है कि पूरी तरह से फ्रेश हूँ। अमर को देखा - वो अभी भी सो रहे हैं - मैं मुस्कुराई - कभी सोचा भी न था कि वो मेरे हस्बैंड भी बनेंगे! मैंने अलसाई हुई अंगड़ाई ली - शरीर जैसे टूट रहा हो! लेकिन आँखों से नींद गायब है! मैं चुपके से बिस्तर से उठी, और दबे पाँव चलते हुए क्लोसेट तक गई, वहाँ अपनी नाइटी उठाई, पहनी, और कमरे से बाहर झोपड़ी के आहाते में आ कर आराम-कुर्सी पर बैठ गई। समुद्र की नमी वाली हवा, अँधेरा, और लहरों की आवाज़ - यह इतना आराम देने वाला एहसास था कि क्या कहूँ!
आराम-कुर्सी पर पसर के मैं बीते कुछ महीनों की बातें सोचने लगी।
कुछ कहानियाँ परी-कथाओं जैसी होती हैं! उनको कहने सुनने में कोरी गप्प जैसी लगती हैं। मेरी और अमर की कहानी भी बहुत कुछ वैसी ही लगती है। जब मैं अमर से पहली बार मिली थी, तब वो इंटरव्यू देने ऑफिस आया हुआ था। कुछ लोग बहुत ही बुद्धिमान होते हैं और लगते भी हैं। अमर भी उन्ही लोगों जैसा था - लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब सी उदासी देखी थी मैंने। उदासी या गुस्सा? कुछ ठीक से कहना मुश्किल है। ऐसा नहीं है कि मैं उसकी पर्सनालिटी से बहुत इम्प्रेस हो गई हूँ। सच कहूँ, तो उसकी पर्सनालिटी में वैसा कुछ भी नहीं था। हाँ, देखने भालने में हैंडसम तो था, लेकिन बस इतना ही। अपने में खोया हुआ सा! चुप-चाप! रिजर्व्ड! जैसे अपने चारों तरफ़ क़िले की दीवार बना रखी हो! इतनी कम उम्र का इतना सीरियस आदमी मैंने नहीं देखा था - यह बात तो सच है। लेकिन बस इतना ही। फिर इंटरव्यू के बाद उसके मैनेजर्स ने उसकी इतनी बढ़ाई करी, कि मुझे लगा कि बढ़िया कैंडिडेट है। तब तक लोग एक इंटरव्यू में ही अपॉइंट कर लिए जाते थे। लेकिन अमर का दो और राउंड इंटरव्यू हुआ - उसके मैनेजर्स सोच रहे थे कि क्या उसको टीम-लीडर का रोल दिया जा सकता है या नहीं! और फिर कमाल ही हो गया। शायद वो सबसे कम उम्र का टीम लीडर बनाया गया। हाँ - तब मुझे उसके बारे में वाकई एक क्यूरिऑसिटी तो हुई!
लेकिन फिर भी, काम के अलावा उससे बातें करने, उससे दोस्ती करने की कोई वजह भी तो नहीं थी! एक रिलेशनशिप में धोखा खाने के बाद मेरा मन भर गया था। और अब आदमियों से अंतरंग दोस्ती करने का मेरा कोई इरादा नहीं था। लेकिन कहते हैं न - जोड़ियाँ तो वहाँ, ऊपर, बनाई जाती हैं! जब भाग्य का चक्र चलता है, तब सब कुछ संभव हो जाता है। और वही मेरे साथ भी हुआ। मसूरी में मैंने जब अमर को सबसे दूर, अकेले में खड़े देखा, तो न जाने किस प्रेरणावश मैं उसकी तरफ़ खिंची चली गई। अभी सोच कर लगता है कि अच्छा किया! लेकिन तब ऐसा कोई ख़याल नहीं था। कोई लड़की अपने से नौ - सवा नौ साल छोटे ‘लड़के’ से भला कोई रोमांस करने का सोचती भी है? लेकिन न जाने क्या बात थी कि कुछ ही दिनों में मेरे दिल-ओ-दिमाग में बस अमर ही अमर होने लगा। न जाने क्या बात थी उसमें! न जाने क्या बात है उसमें कि उसके सामने आते ही मेरे दिल की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं! अभी भी नहीं समझ आई। शुरू शुरू में लगता था कि वो कैसा गंवार टाइप का आदमी है - न बात करने का शऊर, और न ही किसी के लिए कोई इज़्ज़त। लेकिन जल्दी ही मालूम चल गया कि ये दोनों ही बातें गलत थीं। अमर को सभी के लिए बहुत इज़्ज़त है - उसने किसी से भी कभी भी गलत तरीके से बात नहीं करी। और जहाँ तक गँवारी वाली बात है, वो इसलिए क्योंकि हम दोनों ही बहुत ही अलग बैकग्राउंड से आये हुए थे।
जान पहचान हुई, तो यारी भी हो गई। कैसे न होती? उससे बातें करना कितना आसान था। जल्दी ही यह बात समझ में आ गई कि उसके मन में जो कड़वाहट थी वो अपनी बीवी की असमय मौत के कारण थी। अचानक ही सब समझ आ गया। ऐसा नहीं है कि उसको किसी साथी की ज़रुरत थी, या फिर मुझे किसी की ज़रुरत थी। लेकिन फिर भी साथ बन गया। मैं अक्सर उसके ऑफ़िस जा कर उससे मिलने लगी। उसके टीम के लोग, और उसके दोस्त, सभी हमारा मज़ाक करते। मुझको देखते ही मुझे ‘भाभी’ ‘भाभी’ कह कर पुकारने लगते। शुरू शुरू में मुझे बुरा लगता, लेकिन कुछ ही दिनों में सामान्य सा लगने लगा। मुझको लगने लगा कि क्यों मैं अमर के साथ अपनी ज़िन्दगी नहीं बिता सकती? क्यों मैं उसको वो प्यार नहीं दे सकती जो उसने हाल ही में खो दिया है! क्यों मैं वो प्यार नहीं पा सकती, जो मुझे अभी तक नहीं मिला। क्या हुआ कि हमारे बीच उम्र का ऐसा फैसला है? लेकिन यह सारी बातें मैं उसको बोल नहीं पाई - कैसे कहती? बेइज़्ज़ती का डर था। इस बात का भी डर था कि कहीं हमारी यारी न टूट जाए!
और फिर आई दिवाली! अमर ने मुझसे कहा कि वो अपने परिवार के लिए कुछ खरीदना चाहता है, और उसके लिए वो मेरी हेल्प चाहता है। शॉपिंग किस लड़की को नहीं पसंद है? लेकिन ये शॉपिंग अनोखी थी। आज अपने लिए नहीं, बल्कि किसी और के लिए शॉपिंग करनी थी। मैंने ही सब पसंद किया, सारा मोल भाव किया! इससे मुझे उसके घर के सभी लोगों के बारे में मालूम चला। और जब हम चलने वाले थे, तो अमर ने मेरे लिए बेहद सुन्दर सा चिकन का काम किया हुआ कुर्ता और चूड़ीदार पजामी ख़रीदी। दिवाली का गिफ्ट! पहला गिफ्ट! मैंने जब उसको लेने से मना किया तो दुकानदार बोला, 'भाभी जी, ले लीजिए न - भाई साहब इतना ज़ोर दे रहे हैं तो! अभी शादी नहीं हुई है, तो क्या हुआ - हो जाएगी!'
उफ़्फ़! सभी को मैं ‘भाभी’ लगने लगी हूँ! तो क्यों न बन जाऊँ भाभी... मेरा मतलब अमर की बीवी?
अमर की बीवी - एक नई आइडेंटिटी! सच में - लड़की की आइडेंटिटी बदल जाती है शादी के बाद। कैसा लगेगा अगर मैं मिसेज़ सिंह बन जाऊँ? बाप रे! सोच कर ही दिल धाड़ धाड़ कर धड़कने लगा। उस दिन के जैसी बॉन्डिंग - ओह - पॉसिबल ही नहीं थी। पूरे दिवाली में बस अमर की ही यादें। क्या उसने मेरे बारे में अपने घर में बताया होगा? अगर हाँ, तो उसके घर वालों ने क्या कहा होगा? दीदी और डैडी दोनों पूछते रहे कि मैं कहाँ गुमसुम बैठी हूँ! अब उनको क्या बताऊँ? पहली बार दीदी के बच्चों को देख कर मुझे अपने बच्चे करने की इच्छा होने लगी। ओह अमर - ये क्या कर रहे हो तुम मेरे साथ! और जब वो वापस आया तो मेरे लिए ‘माँ’ का दिया हुआ गिफ़्ट था - एक और शलवार कुर्ता सेट - कितना सुन्दर सा! जामदानी मसलिन के कपड़े पर रेशमी चिकन के क़सीदे! ऐसा कुछ मैंने अपनी पूरी लाइफ में नहीं देखा। सच में - ऐसा गिफ़्ट तो कोई अपनी होने वाली ‘बहू’ को ही दे सकता है! उस दिन जैसी ख़ुशी मुझे कभी नहीं हुई।
अब समय आ गया था कि हम दोनों खुल कर अपने बारे में बातें करें। अगर रिलेशनशिप आगे बढ़ाना है तो ये रिस्क तो लेना ही पड़ेगा। हम दोनों को मालूम होना चाहिए कि हमको अपनी अपनी लाइफ से क्या चाहिए। गेस-वर्क से तो रिलेशनशिप आगे नहीं बढ़ता न! तो हम एक ‘कॉफ़ी डेट’ पर गए। कम से कम अमर अब इतना सीरियस हो रहा था, कि वो मुझे डेट पर ले जाए। उस शाम हमने अपने लाइफ और कई पर्सनल मैटर्स को देर तक डिसकस किया। अमर ने खुद ही अपनी प्रीवियस मैरिड लाइफ के बारे में मुझे बताया - गैबी के बारे में बताया! उसने मुझे काजल के बारे में भी बताया - सुन कर थोड़ा अजीब तो लगा, लेकिन फिर जब मैंने सोचा तो उतना अजीब भी नहीं लगा। काजल या गैबी उसका पर्सनल मैटर था - और मुझसे पहले हुआ था। मेरी अब की लाइफ में उसका कोई इन्फ्लुएंस नहीं होने वाला था। इसलिए मैंने काजल के मसले पर कुछ कहा नहीं।
जब मैंने देखा कि अमर मुझसे इस तरह से खुल कर सब बता रहा था, तो मैंने भी उसको अपने और अपने स्ट्रगल के बारे में बताया। मैंने उसको बताया कि तीस के ऊपर हो जाने के कारण मैं ‘उतनी’ मैरिजिएबल नहीं हूँ, जितनी तीन चार साल पहले थी। डैडी आई ए एस ऑफ़िसर रहते, तो अलग बात थी। अब वो रिटायर हो गए थे, तो बातें और भी अनफ़ेवरेबल हो गई थीं। दहेज़ तो मैं वैसे भी किसी को एक धेला नहीं देने वाली थी। ऊपर से बढ़ती उम्र के कारण प्रेग्नेंसी का इशू हो सकता था। प्लस, मैं क्वालिफाइड भी बहुत थी, और कमा भी बहुत रही थी। ये सब देख कर ज्यादातर मैच घबरा जाते कि मैं कैसे घर का काम सम्हालूँगी। कुल मिला कर मैं बढ़िए मैच नहीं थी।
लेकिन अमर की सोच तो बहुत अलग निकली - उसने मुझसे कहा कि काश उसकी मेरी जैसी वाइफ हो! और यह कि अगर हमारा सम्बन्ध बनता है तो उसको बहुत प्राउड फील होगा! बड़ी बात थी! तो उसको मुझसे शादी करने में इंटरेस्ट था। बढ़िया! यही मौका था - मैंने उसको मेरे प्रीवियस, अनसक्सेसफुल अफेयर के बारे में बताया। मैंने उसको हिंट भी दिया कि मैं वर्जिन नहीं थी। लेकिन शायद अमर के लिए वो कोई बात ही नहीं थी। कमाल की सोच! तेईस चौबीस साल के लड़के के लिए कितनी मैच्योर सोच! अब बिना वजह रुकने का कोई कारण नहीं था। मैंने अमर से पूछा ही लिया कि क्या वो अब किसी रिलेशनशिप के लिए तैयार है, तो उसने बड़ी ईमानदारी से मुझसे कहा कि गैबी की यादें अभी भी उसके मन में ताज़ा हैं! सच में - ऐसे ईमानदार आदमी से कोई कैसे प्यार न कर बैठे! अब तक तो मैं भी फिसल चुकी थी।
मैंने उससे कहा कि वो प्यार को एक और चांस दे - उसकी उम्र बहुत कम है! अकेले रहने के लिए बहुत लम्बी लाइफ पड़ी हुई है। मैं उसको समझा रही थी तो उसने भी मुझसे पूछ लिया कि क्या मैं भी किसी रिलेशनशिप और मैरिज के लिए रेडी हूँ! तो मैंने भी ईमानदारी से कह दिया कि मुझे कोई बहुत होप नहीं है कि मुझे कोई मिलेगा। लेकिन मन की बात उसको बतानी ज़रूरी थी - इसलिए मैंने कह दिया कि अगर मुझे कोई एक्साइटिंग पार्टनर मिलता है, तो मैं ज़रूर उसको ओपन-आर्म्स से अपनी लाइफ में वेलकम करूँगी! काश वो मेरा इशारा समझ जाए!
अमर ने मेरा इशारा समझा! उसने मुझे डिनर डेट पर बुलाया। लेकिन लास्ट मोमेंट पर जैसे मुझे लकवा मार गया हो। इतना डर लगा कि मैं गई ही नहीं। मैं उससे इतनी बड़ी हूँ उम्र में कि मुझे गलत सा लगा! क्या मैं सही कर रही हूँ उसके साथ? यही सोच कर मैंने डिनर डेट कैंसिल कर दी। लेकिन अमर ने हार नहीं मानी, और एक और डिनर डेट पर मुझे इनवाइट किया - जाहिर सी बात है, मैं भी उसको पसंद तो थी! ज्यादा नखरा करने से मुझे भी नुकसान तो था ही। तो मैंने मान लिया। लेकिन फिर भी कुछ डाउट थे मन में - इसलिए मैंने उसको ढाबे पर खाने के लिए मना लिया। लेकिन वो तो इतना सरल निकला कि उसको ढाबे में भी मज़ा आ गया! सच में, उसी दिन से मैं पूरी तरह से कायल हो गई अमर की। अब कोई बहाना नहीं बचा था। और बहाना करना मेरी बेवकूफी होगी! यह बात मुझे अच्छी तरह से मालूम हो गई थी अब!
इसलिए जब अमर ने मुझे डिनर डेट के बाद प्रोपोज़ किया, तो उसके प्रपोजल को एक्सेप्ट करने के अलावा मेरे पास कोई और चारा ही नहीं था। लेकिन यह बहुत ही अनएक्सपेक्टेड था। मैंने फिर से उससे सोच लेने को कहा - मेरी उम्र बढ़ रही थी। कहीं बेबी होने में कोई प्रॉब्लम हुई तो! लेकिन अमर को उन सब बातों से कोई मतलब ही नहीं था। उसको बस मेरा साथ चाहिए था! आखिरकार मुझे मेरा मनचाहा साथी मिल ही गया था! मैंने उसको खुद से दूर करने की कितनी सारी कोशिशें करी, लेकिन वो सभी टस से मस नहीं हुआ। उस दिन मैंने पहली बार अमर को ‘आई लव यू’ बोला! मेरे लिए ये तीन शब्द हल्के नहीं थे। अमर के अलावा मैं अब ये तीन शब्द शायद ही किसी और से कहूँ! और उसी दिन अमर ने मुझे चूमा! होंठों पर नहीं - मेरे ही कहने पर - बल्कि माथे पर! ओह, उस किस का एहसास आज भी है मुझे! एक परमानेंट किस बन गया है वो!
मुझे अब लगता है कि अमर ने खुद पर किस तरह से कण्ट्रोल किया होगा - वो बहुत ही हॉट हैं! लेकिन मेरे कहने पर उन्होंने किस तरह से खुद को ज़ब्त किया हुआ था। सच है - प्यार हमेशा फिजिकल हो, यह ज़रूरी नहीं। मैं हमेशा सोचती थी कि हमारा रिलेशनशिप छुपा ढँका है - लेकिन क्रिसमस पार्टी वाले रोज़ ‘रोस्ट’ में मालूम पड़ा कि सभी को हमारे बारे में मालूम है। उस दिन कितनी शर्म आई थी मुझे! लेकिन अच्छा भी लगा कि ‘राज़’ का यह बोझ उतरा! अब हम दोनों आराम से साथ हो सकते थे! इसीलिए मैंने अमर को अपने घर आने का न्योता दे दिया कि आ कर डैडी से बात कर ले! फिर हमारी फिल्म डेट - उस दिन अमर से अपने आप पर काबू नहीं रखा जा सका। और बहुत अच्छी बात थी कि काबू नहीं रखा। मेरे ब्रेस्ट्स पर अमर के होंठों की छुवन - आह! एक आग सी लग गई थी! एक वो दिन था, और आज का दिन है - अमर के साथ हर दिन रंगीन, हर दिन हॉट रहा है! कोई भी दिन ऐसा नहीं रहा जिसमें एक्साइटमेन्ट न रहा हो!
और सबसे बड़ी बात है कि अमर के साथ जीने का मज़ा सौ गुना बढ़ गया है। सच में - मैं अब तक कितनी अकेली थी, यह बात मुझे अमर के संग के बाद ही मालूम हुई। अपने मन की हर बात मैं अमर से कह सकती हूँ और कहती भी हूँ! ऐसा कोई अभी तक नहीं मिला। दीदी से कितनी सारी बातें होती हैं - लेकिन फिर भी, उनसे भी तो बहुत कुछ छुपा लेती हूँ! लेकिन अमर के साथ ऐसा कुछ भी नहीं होता। और अमर से कुछ छुपाना भी क्यों है? लाइफ पार्टनर वो ऐसे थोड़े ही है!
मेरा पहला बॉयफ्रेंड - उसको बस एक ही चीज़ चाहिए थी! और वो है सेक्स। अपना काम बन गया, तो उसके लिए उतना ही ठीक था। एक नंबर का मतलबी और लम्पट आदमी। न जाने कैसे मैं उसके चक्कर में पड़ भी गई थी। उस आदमी के कारण मेरा प्यार मोहब्बत से भरोसा ही उठ गया था। आदमी का मतलब केवल सेक्स! ऐसे तो लाइफ नहीं चलती न! मेरा मन था घर बसाने का। माँ बनने का! मेरी डिजायर, मेरी विशेज़ का क्या? लेकिन अमर ने मेरी हर डिजायर, मेरी है विशेज़ को पंख दिया। जब उसने मुझे अपने - ओह, आई ऍम सॉरी - हमारे घर की चाबी, मेरे हाथों में दी, तब मैं समझ गई कि अमर ही मेरा घर हैं। मैंने उनके सामने जाहिर नहीं होने दिया - लेकिन उस दिन मेरे दिल में, मेरे मन में उनके लिए इतनी रेस्पेक्ट आ गई, कि मुझे खुद ही यकीन नहीं हुआ। अमर मुझसे कितने छोटे हैं उम्र में - लेकिन सच में, अब उनको ‘तुम’ के बजाय ‘आप’ कहने का मन होने लगा। आई थिंक उस दिन मैंने पूरी तरह से डिसाइड कर लिया कि अगर शादी करूँगी तो सिर्फ और सिर्फ अमर से नहीं तो उम्र भर ऐसी ही रहूँगी - अकेली! और, अगर मेरे बच्चे होंगे, तो अमर से ही होंगे!
जब मैं पहली बार उस घर के अंदर गई, तो मेरा दिल तेजी से धड़क उठा : ‘मेरा घर’ - बस यही एक ख़याल मेरे मन में आया। और कितनी साफ़ सफाई से रखा हुआ था घर को अमर ने! लेकिन रहते वो थे बिलकुल सन्यासी जैसे - केवल उनके कमरे में ही सबसे अधिक फर्नीचर थे; हॉल में सोफ़े और टेबल; रसोई में फ्रिज; इंटरटेनमेंट के लिए सोनी का एक हाई-फाई म्यूजिक सिस्टम! ‘चलो! साहब को कुछ शौक तो हैं!’ फ्रिज खोला, तो देखा कि वहाँ भी बस ज़रुरत की ही चीज़ें थीं - मिल्क, बटर, ब्रेड, अंकुरित अनाज, और कुछ सब्ज़ियाँ! बेहद साफ़ सुथरा किचन - नाश्ते में जो प्लेट और मग यूज़ हुआ था, बस वो सिंक में था! राशन की अलमारियाँ खोलीं - तो सब कुछ बेसिक सा ही था। पहले तो लगा कि अमर को कोई शौक ही नहीं है - लेकिन फिर सोचा कि वो अकेले करें भी तो क्या क्या? और, अनहेल्दी शौक पाल कर वो अपनी सेहत थोड़े ही खराब करेंगे! बाथरूम भी बाकी के घर जैसा ही साफ़ सुथरा, और सूखा! उनके कमरे में देखा तो सब कपड़े करीने से लगे हुए थे अलमारी में। बिस्तर पर सब कुछ तरीके से तह कर के रखा गया था। बालकनी में आई, तो चिड़ियों के चुगने के लिए बर्ड-फ़ीडर लगा हुआ था, और उसमें से पाँच छः गौरैयाँ दाना चुग रही थीं! कुछ देर मैं उनका गाना चहकना सुनती रही! कैसी शांति मिली! अब समझ में आया कि इतनी शांति में भी मनोरंजन कैसे किया जा सकता है!
मुझे मालूम था कि काजल दीदी के बाद उन्होंने किसी को भी अपने यहाँ काम करने नहीं रखा था - मतलब वो घर का सारा काम खुद ही करते थे! मेरे मन में उनके लिए और भी अधिक रेस्पेक्ट आ गई।
साफ़ सुथरा घर - यह किसी आदमी के बारे में बहुत कुछ बता देता है। मुझे मालूम हो गया कि अमर जैसे सिंपल से, अनप्रिटेंशियस से दिखते हैं, वो वैसे हैं भी। साफ़ सुथरा घर - कोरे कैनवास जैसा! इस घर को ज़रुरत थी इसकी दीवारों में रंग भरने वाली की! तो उसके लिए मैं हूँ न! मैंने अमर से बिना पूछे, हमारे घर के लिए कुछ सजावट के सामान, और अन्य वस्तुएँ खरीदनी शुरू कर दीं। काम के सिलसिले में मैं देश और विदेश घूमती रहती थी, और वहाँ से अपनी पसंद के सामान लाती रहती थी। अब वो सब कुछ हमारे घर में था। अमर को भी मेरा किया हुआ काम पसंद आता,
‘वो नए वाले पर्दे बहुत सुन्दर है, डेवी!’ एक दिन अमर ने ऑफिस में कॉल कर के कहा।
‘हमारे बेडरूम वाले, या हॉल वाले, या गेस्ट रूम वाले, या फिर डाइनिंग हॉल वाले?’ मैंने उनकी खिंचाई करते हुए कहा।
‘सब! हा हा हा!’
‘मेरे भोलूराम, गेस्ट रूम और डाइनिंग हॉल में तो अभी लगाए ही नहीं हैं!’ कह कर मैं खूब हँसी।
फिर एक और दिन जब मैं हमारे घर गई, वो अमर भी वहीं पर थे। मेरी खरीददारी देख कर वो चौंक गए।
‘डेवी, यार! ये तो बोन चाइना की क्रॉकरी सेट है सब!’ उन्होंने पैकेट पलट कर देखा, ‘अरे! ये तो इम्पोर्टेड भी है!’
‘हाँ! तो?’
‘मतलब, कॉस्टली होगा?’
‘होता रहे!’
‘कितने का खरीदा! कम से कम इसका दाम तो बता दो!’
मैं हाथ को अपने पीछे बाँध कर इठलाती हुई उनके पास गई, और मुस्कुराते हुए उनके गाल को सहलाते हुए, अचानक ही उनके कानों को पकड़ कर उमेठ दिया।
‘आऊ!’ उन्होंने झूठ-मूठ का रोना रोया।
‘अब बोलो, मुझसे चीज़ों का दाम पूछोगे?’
‘नहीं मेरी माँ, कभी नहीं!’
हम कुछ देर इस खेल पर हँसते रहे, लेकिन फिर मैंने उनको अपना साइड समझाते हुए कहा,
‘जानू, तुम ऐसे न सोचो कि मैं कोई फ़िज़ूलखर्च औरत हूँ! हम दोनों ही अच्छा कमाते हैं, तो उस पैसे का मज़ा भी लेना चाहिए। थोड़ा अच्छा रहने में कोई बुराई तो नहीं! हम फालतू के सामानों पर पैसे थोड़े ही ख़र्च कर रहे हैं!’
‘हाँ, लेकिन मुझे भी तो खर्चने दो?’
‘हम्म! दूँगी! लेकिन कभी और! और वैसे भी, मैं तुमसे उम्र में बड़ी हूँ, और पोजीशन में भी! इसलिए मेरा इतना हक़ तो बनता ही है न!’
‘अच्छा जी! तो आप मेरी असिस्टेंट जनरल मैनेजर हैं?’
‘उम हम,’ मैंने ‘न’ में सर हिलाया, ‘जनरल मैनेजर’ मैंने उनको अपने प्रमोशन का सरप्राइज भी दिया!
‘व्हाट! ओह वाओ वाओ! अमेजिंग! वेल डिज़र्व्ड! आई ऍम सो हैप्पी माय लव! कांग्रेचुलेशन्स!’ कह कर अमर ने मुझे अपनी गोद में उठा लिया था!
‘लेकिन किसी को बताना नहीं!’ मैंने अमर को हिदायद दी, ‘अभी तक ऑफिशियली ये बात बाहर नहीं आई है।’
‘नहीं बताऊँगा मेरी जान! लेकिन तुमको नहीं, तो और किसको बनाएँगे जनरल मैनेजर!’
कह कर उन्होंने मुझे कई बार चूमा!
‘कब बताएँगे ऑफिशियली?’
‘जनवरी में! आफ्टर द वेकेशन!’
‘ओके! देन पार्टी इस ऑन मी!’
आज पहली बार हुआ था कि मैंने अपने प्रमोशन की खबर अपने घर वालों को न सुना कर, अमर को सुनाई थी। और मैं इस बात की ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी। अमर ऐसे खुश हो रहे थे, जैसे मुझे नहीं, उनको मिला हो ये प्रमोशन! अब से मेरी लाइफ की हर छोटी बड़ी बात जानने का सबसे पहला हक़ मेरे अमर का होगा! ऐसा हस्बैंड पा कर मुझे सच में अपनी किस्मत पर घमण्ड होने लग गया था।
और फिर, जैसा मुझे उम्मीद थी, अमर ने मुझे बताया कि उनके मम्मी डैडी मुझसे मिलना चाहते हैं! मुझे यह सुन कर बहुत अच्छा लगा! मतलब उनके घर वालों को मेरे बारे में मालूम था! नाइस! मैं भी तो मिलना चाहती थी उनसे! लेकिन अंदर ही अंदर डर भी बहुत लगा - मेरे और अमर की उम्र में इतना गैप है कि कहीं वो हमारी शादी पर ऑब्जेक्ट न करने लगें। और फिर मेरे डैडी और दीदी से भी तो मिलवाना था अमर को!
ये सब जब होना था तब होना था - लेकिन उसके पहले अमर के साथ सेक्स हो गया। सच में, मैंने वो कभी प्लान नहीं किया था। अमर जैसे खुद को कण्ट्रोल कर के रहते थे, उससे मुझको यकीन हो गया था कि हमारे बीच सेक्स शादी के बाद ही होगा।
ही एक्चुअली सरप्राइज़्ड मी! एंड व्हाट अ सरप्राइज इट वास!
ओह! अमर की छुवन, उनके किसेज़, मेरे ब्रेस्ट्स और निप्पल्स पर उनका प्यार, और फिर सेक्स! ओह, ऐसा कम्पलीटनेस महसूस हुआ जो मुझे पहले बॉयफ्रेंड के साथ नहीं हुआ। क्या कुछ मिस कर रही थी मैं अपनी लाइफ में! सच में - अमर जैसा जवां मर्द पा कर मैं धन्य हो गई। मैं तो उनकी मुरीद हो गई पूरी तरह से। मैं अब उस राह पर चल निकली थी, जहाँ पर वापस जाने का कोई रास्ता नहीं होता। मैं अमर की थी और हूँ और रहूँगी। हमारी उम्र का अंतर कोई मायने नहीं रखता हमारे बीच! वो मेरे सब कुछ हैं। मेरा घर, मेरा संसार, मेरी आत्मा, और मेरा प्यार!
थैंक गॉड - डैडी को भी और दीदी को भी अमर खूब पसंद आए। उन्होंने मुझे बाद में बोला कि अमर एक सच्चा आदमी है और यह कि वो मेरे लिए बहुत खुश हैं। दीदी तो इतनी खुश हैं कि क्या कहें - अगर मेरी जगह वो होतीं, तो वो खुद भी अमर से शादी कर लेतीं - मुझे तो ऐसा लगता है। इतना सब होने के बाद मुझे एक डर सा लगने लगा कि क्या मैं भी उनके घर वालों को इतना पसंद आऊँगी? ऐसा न हो कि वो मुझे पसंद न करें! मेरे सारे सपने चूर हो जाएंगे।
लेकिन जब माँ डैड और काजल दी उस दिन हमारे घर आए, तो मैं समझ गई कि मेरे लिए उससे अधिक सुन्दर ससुराल कोई हो ही नहीं सकती। उस दिन समझ में आया कि अमर ऐसे क्यों हैं! उनको कितने अफ़ेक्शन से पाल पास कर बड़ा किया गया है - उन्होंने उसके अलावा और कुछ देखा ही नहीं। इसलिए उनको गुस्सा नहीं आता; वो हमेशा मुस्कुराते रहते हैं! माँ भी वो वैसी ही हैं - सिंपल, सुन्दर! ओह! सच में - मेरी माँ भी तो उनके जैसी ही सुन्दर और अफेक्शनेट थीं! लेकिन जब मैंने उनसे मज़ाक मज़ाक में ही कह दिया कि मैं उनको दीदी कहूँगी, तो भी उनको बुरा नहीं लगा। और हम दोनों - सॉरी - तीनों (मतलब काजल दी भी) कितनी अच्छी सहेलियाँ बन गई हैं!
कभी सोचा ही नहीं था कि मैं काजल दी को दी (दीदी) कह कर पुकारूँगी। सुन कर मुझे कैसा खराब लगा था कि पहले तो अपनी नौकरानी से अमर ने सेक्स किया, उससे बच्चा किया, और फिर वही नौकरानी अब उनके घर में रह रही है। कितना खराब लगता है न! लेकिन काजल दी तो कैसी अच्छी हैं। अमर सही बोल रहे थे, सच में - काजल दी उनकी दीदी जैसी ही हैं। उनकी गार्जियन! उनकी कहानी तो सभी जानते हैं। और माँ और डैड कितने अमेज़िंग हैं न - उन्होंने काजल दी को और उनके बच्चों को पनाह दिया, सहारा दिया। जितने टाइम मैं उनके साथ रही, मुझे लगा कि जैसे जयंती दीदी ही मेरे साथ में हैं! इतनी अच्छी कैसे हैं वो! और उनके बच्चे! वाह! कितने कल्चर्ड! लतिका तो गुड़िया है! सुनील थोड़ा शांत रहता है, लेकिन कितनी मेहनत करता है पढ़ाई लिखाई में! बोलता है कि मेरे पास बस यही एक काम है और मैं इसको अच्छी तरह से करना चाहता हूँ! सच कह रही हूँ - वो बहुत तरक्की करेगा!
ऐसे घर में अपना बच्चा लाने की तमन्ना है मुझको। यहाँ उसको इतना प्यार मिलेगा कि बयान करना मुश्किल है! अमर को मैंने कितनी बार डराया कि शायद मुझे बच्चा न हो! मैं देखना चाहती थी कि मेरे लिए अमर के मन में कितना प्यार है। लेकिन वो तो जैसे ये सब सुनने को तैयार ही नहीं थे। ‘बच्चा न हुआ तो क्या? गोद ले लेंगे!’ उन्होंने कहा था - लेकिन पत्नी के रूप में मैं ही उनको चाहिए थी! है न कमाल के वो?
और अब मैं आप सबको एक राज़ की बात बताऊँ?
शायद आई ऍम प्रेग्नेंट! इट इस अ बिट टू अर्ली टू से, बट आई मिस्ड माय पीरियड्स डिस मंथ!
हाँ हाँ - हम लोग अभी भी हनीमून पर हैं! लेकिन हमने पहली बार सेक्स तो डेढ़ महीना पहले किया था न?
तो पॉसिबल तो है!
अमर को कब बताऊँ? बताऊँ भी कि नहीं? उनको कैसा लगेगा?
बाप रे - आल दिस फील्स लाइक अ ड्रीम!
-----
प्रिय पाठकों - देवयानी का परिप्रेक्ष्य (perspective) लिखने की सलाह अंजली ने दी है। वो बोलीं कि हमेशा male (Amar’s) perspective से ही कहानी नहीं लिखनी चाहिए। कुछ तो देवयानी के बारे में भी लिखो। उनको क्या फ़ील हुआ होगा? वो क्या सोच रही थीं? तो इस अपडेट का काफ़ी कुछ अंजली ने ही लिखा (मेरा मतलब dictate किया है - देवनागरी में मैंने लिखा है) है! बताएँ कि यह प्रयास कैसा रहा? कहानी का तार-तम्य टूटा तो नहीं न? ज्यादातर तो recap जैसा ही हो गया है। आपके feedback की प्रतीक्षा रहेगी! धन्यवाद!