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सगाई भी हो गई खुशियां भी आ गई मगर सबसे अच्छी बात ये रहीं इस रिश्ते में कि काजल और सुनील दोनो ने ही सुमन के अनुभव और समझ को ना सिर्फ मान्यता दी बल्कि उसको इस रिश्ते में अनुभवी पात्र निभाने के लिए कहा ताकि सुनील की अनुभवहीनता आगे चल कर इस रिश्ते के आड़े ना आए।
अमर की पहली प्रतिक्रिया वैसे ही थी जैसी किसी बेटे की इस अनोखे रिश्ते को देख कर होती मगर उसने जल्द ही खुद को संभाला और दिल से इस रिश्ते को स्वीकारा। बहुत ही खूबसूरत अपडेट।
मनोरम
और बड़े ही संतुलित तरीके से अमर की प्रतिक्रिया को दर्शाया गया है। काजल ने ही काफी हद तक foreshadowing कर दी थी कि अमर कैसी प्रतिक्रिया देगा। अपने मियांजी को खूब अच्छे से जानती है काजल।बहुत बहुत धन्यवाद मित्र!
अमर के अंदर का अंतर्द्वंद्व दिखाया गया है अपडेट #14 और उसके बाद में।
जी भाई, काजल को अमर का सब कुछ समझ में आता है।और बड़े ही संतुलित तरीके से अमर की प्रतिक्रिया को दर्शाया गया है। काजल ने ही काफी हद तक foreshadowing कर दी थी कि अमर कैसी प्रतिक्रिया देगा। अपने मियांजी को खूब अच्छे से जानती है काजल।
अमर की मनोस्तिथि काफी दुविधा भरी थी, एक तरफ दोनो के रिश्ते और उम्र के अंतर का ख्याल दूसरे बेटा होने के नाते मां के सुखदुख की चिंता, साथ अपनी दोनो प्रेयसियो से विछोह के कारण दिल में हमेशा कुछ गलत होने का खटका। इन सभी बातों ने अमर को थोड़ा चिंतित कर दिया था। साथ ही एक बार फिर से सबसे बिछड़ने का गम।अंतराल - विपर्यय - Update #14
मुझे लग रहा था कि शायद मैं उन दोनों से अधिक सोच रहा हूँ। जब एक परिस्थिति यूँ अचानक से सामने आ जाती है, तब शायद मनुष्य ऐसे ही करता है। मैंने दोनों की तरफ़ देखा - हाँलाकि दोनों अगल बगल बैठे हुए थे, फिर भी उन दोनों को साथ में ‘सोचना’ मुश्किल सा हो रहा था मेरे लिए। क्यों? समझ नहीं आ रहा था - शायद अपनी माँ को किसी ‘दूसरे’ पुरुष की पत्नी बने देखना मुझसे हजम नहीं हो रहा था; या फिर शायद यह बात कि सुनील को मैं तब से जानता था जब वो महज़ एक छोटा लड़का ही था! कारण चाहे जो कुछ हो, मैं न जाने कैसे और क्यों माँ को लेकर अचानक ही बहुत पज़ेसिव महसूस कर रहा था उस समय। जैसे अपनी कोई चीज़ पराई हो गई हो!
दिमाग में कितने ही विचार गुत्थमगुत्था हो रहे थे। एक समय मैं खुद ही माँ की दूसरी शादी की पैरवी कर रहा था, और अब ये! ऐसा उलट-पलट व्यवहार क्यों कर रहा था मैं? क्या इसलिए कि वो सुनील से शादी करना चाहती हैं, या फिर इसलिए कि वो अपनी इच्छा से शादी करना चाहती हैं, या फिर इसलिए कि मैं उनको अपने से दूर नहीं जाने देना चाहता? अभी अभी ही तो माँ और मेरे सम्बन्ध भी सुधरे हैं! शादी के बाद तो वो सुनील के साथ मुंबई चली जाएँगी! ऐसे कैसे चले जाने दूँ उनको? लेकिन, माँ के साथ सम्बन्ध में सुधार की वजह भी तो सुनील ही है! उसके कारण माँ सामान्य हो कर व्यवहार कर रही थीं। और उसी सुधार के कारण ही तो मैं वापस उनसे पुराने जैसे ही जुड़ पाया!
ओफ़्फ़्फ़!
और फिर सुनील चला गया तो काजल और लतिका भी चले जाएँगे साथ ही! फिर मैं केवल मिष्टी के साथ यूँ अकेला... नहीं नहीं! ऐसे कैसे हो पाएगा सब? अचानक ही मेरी ज़िन्दगी में उथल पुथल मच जाएगी यार! इस विचार से दिल बैठ गया।
काजल मुझको बहुत देर से ‘शून्य’ को निहारते देख रही थी। मैंने अचानक ही अपने कंधे पर उसका हाथ महसूस किया। वो मेरी पीठ को सहला रही थी,
“क्या सोच रहे हो?”
“कुछ नहीं!” मैंने झूठ कहा।
“अमर!” काजल मेरे चेहरे को देख कर मेरे विचार पढ़ सकती थी। कम से कम मुझे उससे तो झूठ नहीं कहना चाहिए।
मैंने कातरता से काजल की तरफ़ देखा। वो सब समझ गई।
“मैं कहीं नहीं जा रही हूँ!” उसने दबी आवाज़ में कहा, “सुनील की गृहस्थी में मैं अपनी टाँग अड़ाने थोड़े ही जाऊँगी! और मैं चली जाऊँगी तो मेरी गृहस्थी कौन देखेगा? मेरी प्यारी सी मिष्टी को कौन देखेगा?”
राहत आई! आँसू निकलने को होने वाले थे, लेकिन मैंने बड़ी मुश्किल से उनको पी लिया। जज़्बाती नहीं होना है इस समय। खुशियों का मौका है। मैं स्पॉइल स्पोर्ट क्यों बनूँ, जबकि सभी लोग खुश दिख रहे हैं?
**
कुछ देर बाद मुझे सुनील से अकेले में कुछ बातें करने का अवसर मिला। उससे बात करना आज कुछ अपरिचित सा, अनजाना सा लग रहा था। मैं मुस्कुराया। जबरदस्ती वाली मुस्कान! सच में, मैं खुद ही अपने व्यवहार से निराश होने लगा था। क्यों नहीं खुश हो पा रहा था मैं इन दोनों के लिए? ये दोनों - जो मेरे सबसे अजीज़ लोग हैं!
“भैया,” वो बोला, “आप सच में नाराज़ तो नहीं हैं?”
उसके प्रश्न से मेरा दिल ग्लानि से भर गया। इस लड़के ने अपने जीवन में हमेशा मुझे अपने पिता का स्थान दिया था। लेकिन मेरा दिल इतना छोटा है कि आज मैं उसकी ख़ुशी से खुश नहीं हो पा रहा था। ऐसा भी नहीं है कि उसने मुझसे कुछ माँग लिया हो - माँ मेरी व्यक्तिगत संपत्ति नहीं हैं। वो अपने निर्णय लेने के लिए, अपना जीवन अपने शर्तों पर जीने के लिए स्वतंत्र हैं। फिर मुझे मिर्च क्यों लग रही है?
“नहीं सुनील,” मैं कुछ पलों के लिए उसकी बात से अचकचा गया, “गुस्सा नहीं हूँ... बस, निराश हूँ।”
मेरी बात सुन कर सुनील सकते में आ गया। उसको लगा कि शायद मैं उस पर कोई इल्ज़ाम लगा रहा हूँ। मैंने बात सम्हाली,
“अपने आप से! अपने व्यवहार से! आई नो आई हैव बीन बिहेविंग लाइक अ बम! लेकिन ओनेस्टली, तुम दोनों को खुश देख कर अच्छा लग रहा है!”
“पक्की बात?” वो मुस्कुराया।
‘कितना मैच्योर है सुनील!’
“पक्की बात!” मैंने शांत स्वर में कहा, “सब कुछ ऐसे अचानक से मुझे पता चला न, इसलिए थोड़ा शॉक सा लग गया है। और कुछ नहीं। मैं ठीक हो जाऊँगा! आई ऍम हैप्पी फॉर यू गाइस!”
“उसके लिए अम्मा ज़िम्मेदार हैं भैया! उनको अचानक ही सनक सवार हो जाती है कुछ करने की न, इसलिए!” सुनील ठहर के बोला, “मैं आज शाम आप दोनों को सब बातें बताने वाला था। लेकिन अम्मा को पहले समझ आ गया, और उन्होंने हम दोनों को अकेले में ले जा कर पूछ-ताछ कर डाली। हम कुछ कहते या करते, उसके पहले ही उन्होंने ये सगाई वाला प्रोग्राम बना लिया। और आपको बताया भी नहीं।”
“अच्छा किया काजल ने! शायद मैं तब भी ऐसे ही बम के जैसे ही व्यवहार करता। वो समझती है मुझको!” मैं मुस्कुराया।
सुनील भी मुस्कुराया।
“भैया, आप और अम्मा मेरी... हमारी जड़ें हैं! आपसे दूर हो पाना पॉसिबल नहीं है हमारे लिए। इसलिए आप कभी मत सोचिएगा कि मुंबई जा कर हम आपसे दूर हो गए हैं।” सुनील वाकई बहुत मैच्योर था, “वैसे भी मुंबई - दिल्ली की फ्लाइट रोज़ ही कई सारी चलती हैं! जब मन करेगा हम मिल लेंगे!”
वो कैसे मुझे छोटे बच्चों के जैसे मान कर समझा रहा था। मैं समझ रहा था कि सुनील क्या कर रहा है, लेकिन फिर भी मुझे अच्छा लगा।
“सुनील,” मैंने कुछ देर चुप रहने के बाद कहा, “सुनील, तुम दोनों ने ठीक से सोच तो लिया है न?”
“जी भैया,” उसने बड़ी ख़ुशी ख़ुशी कहा, “आज से नहीं, बहुत दिनों से... सालों से... मैं सुमन को चाहता हूँ (उसने आज पहली बार मेरे सामने माँ को उनके नाम से बुलाया था... और वो भी बिना किसी झिझक के)! उनसे बेहतर, उनसे अच्छी कोई और लड़की नहीं है मेरे लिए!” वो बड़े गर्व से बोला, “एंड आई होप कि मैं भी उनके लिए सूटेबल मैन होऊँ!”
“वेल... माँ ने भी तो तुमको पसंद किया है न! तो... मेरे ख़याल से... तुम आलरेडी उनके लिए सूटेबल मैन हो!” मैंने उसको समझाया, “लेकिन मैं इस बारे में नहीं कह रहा था। शादी एक बड़ा निर्णय है। तुमने सारे कॉनसीक्वेंसेस के बारे में सोचा तो है न? तुम्हारी उम्र क्या है अभी? इक्कीस - बाईस? माँ तुमसे इतनी ही बड़ी हैं। जब तुम चालीस के होंगे, तो माँ साठ के ऊपर हो जाएँगी। समझ रहे हो न?”
पता नहीं सुनील को क्या समझ में आया।
“समझ रहा हूँ, भैया!” वो बड़े गंभीरता से बोला, “लेकिन... शादी में सेक्स ही तो सब कुछ नहीं होता। आई लव सुमन... एंड शी लव्स मी! मेरे ख़याल से प्यार सबसे बड़ी चीज़ है शादी में!”
“हाँ... वो तो है ही!”
मैंने कह तो दिया, लेकिन पूरी शाम में पहली बार मुझे चमका कि इन दोनों की शादी होगी, तो सेक्स भी तो होगा! सुनील के मेरी माँ के साथ होने वाले अंतरंग सम्बन्ध की अवश्यम्भावी स्थिति को सोच कर मुझे बहुत अजीब सा लगा! बहुत ही अजीब! और ऊपर से यह संज्ञान कि एक तरफ तो मैं खुद भी उसकी अम्मा के साथ सम्भोग करता रहता हूँ! मैं उसकी अम्मा के साथ, और अब वो मेरी अम्मा के साथ! हे भगवान!
जीवन में कैसे कैसे नाटकीय परिवर्तन आते हैं। लगता है जैसे कल की ही तो बात हो - जब मैं उसको क-ख-ग-घ सिखाता था! और आज!
“उनका ख़याल अच्छे से रखना सुनील। वो तुमको अपने दिलोजान से प्यार करेंगी!”
“ये भी कोई कहने वाली बात है भैया? आप कभी भी सुमन की चिंता न करिएगा अब!”
“गुड टू नो!” मैंने कहा, “आज मैं बहुत खुश हूँ! बहुत! थोड़ा मर्दों वाला सेलिब्रेशन करें? स्कॉच?”
यह पहली बार था जब मैंने सुनील को किसी भी प्रकार की मदिरा मेरे साथ पीने की पेशकश करी थी।
वो हिचकिचाया, फिर उसने माँ की तरफ़ देखा। माँ मुस्कुराईं और उन्होंने हल्के से ‘हाँ’ में सर हिलाया। मैंने ऐसा अभिनय किया कि दोनों को न लगे कि मैंने उनको ऐसा करते देखा है।
सुनील मेरी तरफ़ देख कर बोला, “थैंक यू भैया... यस प्लीज!”
स्कॉच पीते पीते मैंने सुझाव दिया कि आज बाहर चल कर किसी बढ़िया होटल में खाएँगे और वहाँ केक काट कर सेलिब्रेट करेंगे फिर से! सभी को ये सुझाव जँच गया। तो मैं, हम सभी को कार में लेकर उसी पाँच सितारा होटल ले कर गया, जहाँ सुनील और माँ के लिए रोमांटिक डिनर की बुकिंग करी थी। वहाँ आनन फानन में हमारी टेबल को उत्सव के अनुरूप ही सजा दिया गया! बढ़िया खाना, संगीत, हंसी मज़ाक करते हुए, चुटकुले सुनते सुनाते आज की शाम अच्छी बीत गई। माँ बहुत खुश लग रही थीं... ऐसा नहीं है कि उनको ऐसे दिखावटी प्रोग्राम की आवश्यकता थी। लेकिन फिर भी, उनको सबसे ख़ुशी इस बात की मिल रही थी कि हम सभी उनकी ख़ुशी में शामिल थे। उनके होंठों पर वही पुरानी वाली मुस्कान देख कर दिल आनंद से भर आया।
जब मेरा खुद का दिल भी विचारों से खाली हो गया, तब बस एक ही ख़याल आया - काश माँ हमेशा ऐसी ही रहें : हँसती मुस्कुराती और खूबसूरत! जब ये ख़याल आया, तब सुनील और उनका संग बिलकुल भी नहीं खला। सुनील ही उनका साथी है!
**
जब हम सभी वापस घर लौटे, तब तक साढ़े नौ के आस पास हुआ रहेगा। कोई देर नहीं थी। वैसे भी घर में सभी बड़े उत्साह में थे। दोनों बच्चों की गर्मी की छुट्टियाँ शुरू हो गई थीं, और आज वो सोने के मूड में लग भी नहीं रही थीं।
“बोऊ दी,” लतिका ने चहकते हुए कहा, “इतना ख़ुशी का ओकेशन है - आपकी और दादा की इंगेजमेंट हुई है! आप कोई मीठा मीठा सा गाना सुनाइए न हमको!”
“अरे, इंगेजमेंट तो दोनों की हुई है, और गाना केवल अपनी बोऊ दी का सुनना है?” काजल ने कहा।
“हाँ!” लतिका इठलाते हुए मेरी गोदी में बैठती हुई बोली, “वो इसलिए कि बोऊ दी की आवाज़ मीठी मीठी है न, अम्मा। दादा की आवाज़ भी ठीक ठाक है... लेकिन... दादा... आपको गाना गाना भी आता है क्या?” लतिका ने अपने बड़े भाई को छेड़ा।
“इतनी बेइज़्ज़ती!” सुनील ने ड्रामा करते हुए कहा, “इतनी बेइज़्ज़ती! गाँव वालों मैं जा रहा हूँ। बम्बई, मैं आ रहा हूँ!”
“हा हा हा हा हा!” उसके नाटक पर हम सभी ठठा कर हँसने लगे।
“हाँ, जाओ जाओ! बम्बई जाओ! लेकिन बहू को साथ ले कर जाना!” काजल ने कहा।
“हाँ ख़ुशी बेटा,” उधर मैंने लतिका की बात पर हामी भरते हुए कहा, “बात तो तुम्हारी बिलकुल ठीक है - दोनों की इंगेजमेंट हुई है, तो गाना भी दोनों को साथ ही में गाना पड़ेगा!”
“क्या कहती हो जानेमन?” सुनील बोला (माँ को ऐसे अंतरंग तरीके से बुलाने पर मुझे फिर से थोड़ा अजीब लगा - लेकिन मैंने फिर से अपनी भावनाओं को काबू में किया), “गाएँ क्या? इतनी बढ़िया ऑडिएंस कहाँ मिलेगी?”
माँ ने सबके सामने खुद को ‘जान-ए-मन’ कहे जाने से शरमाते हुए कहा, “आप शुरू कीजिए, मैं आपके पीछे गाऊँगी!”
माँ को ऐसे बोलते देख कर मुझे अच्छा लगा। माँ का गाना गाना - मतलब माँ काफ़ी नार्मल हो गई हैं। एक बेहद लम्बा अरसा हो गया। पहले रोज़ कोई न कोई गीत गुनगुनाती रहती थीं। पिछले डेढ़ साल से कुछ नहीं! कम से कम मेरे सामने तो कुछ नहीं!
सुनील ने गुनगुनाना शुरू किया,
“ओ... रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे”
“क्या बात है दादा! रोमांटिक सांग!” लतिका पहली लाइन पर ही चहकते हुए बोली।
“शहहह!” काजल ने उसको चुप रहने को कहा - काजल उनका गाना रिकॉर्ड भी कर रही थी।
सुनील ने बिना डिस्टर्ब हुए गाना जारी रखा,
“रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे, मोहे कहीं ले चल बाँहों के सहारे
बाग़ों में खेतों में नदिया किनारे, रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे”
माँ उस मधुर रोमांटिक गाने पर मुस्कुरा रही थीं! ऐसे सबके सामने सुनील उनके लिए ऐसा प्रेम गीत गा रहा था, इसलिए माँ के गाल शर्म से लाल हुए जा रहे थे। अपनी पंक्तियाँ ख़तम कर के सुनील ने माँ की तरफ़ इशारा किया - अब माँ की बारी थी।
कितने दिनों से उनकी गाने वाली आवाज़ सुनने को तरस गया था मैं!
“ओ... ओ ए सजनवा आजा तेरे बिना, ठंडी हवा... सही ना जाए
आ जा... हो... आ जा...
रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे, मोहे कहीं ले चल बाँहों के सहारे
हाँ... बाग़ों में खेतों में नदिया किनारे, रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे”
सुनील ने माँ के हाथ अपने हाथों में लिया, और उनको चूम लिया। अपने बेटे और बहू के इस प्रेम प्रदर्शन को देख कर काजल निहाल हुई जा रही थी। शाम से पहली बार मैं भी उन दोनों के लिए वाकई ‘बहुत खुश’ हुआ।
“ओ जैसे रुत पे छाए हरियाली, गहरी होए मुख पे... रंगत नेहा की
खेतों के संग झूमे पवन में, फुलवा सपनों के... डाली अरमां की
तेरे सिवा कछु सूझे नाहीं अब तो सांवरे”
सच में - माँ को सुनील के अलावा और कुछ सूझ ही नहीं रहा था! क्या जादू कर दिया था उस लड़के ने! उनके सूने जीवन में उसने प्रेम की मिठास घोल दी थी; प्रेम के रंग से उसने माँ को सराबोर कर दिया था!
“रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे, मोहे कहीं ले चल बाँहों के सहारे
हाँ बाग़ों में खेतों में नदिया किनारे, रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे”
ओ ओय सजनिया जान ले ले कोई मोसे, अब तो लागे नैना तोसे
आ जा, ओ आ जा”
सुनील की चंचलता और विनोदप्रियता किसी से छुपी नहीं थी - उसको इस बात की कोई परवाह नहीं कि कौन उसके साथ बैठा है। उसकी प्रेयसी, उसकी पत्नी उसके सामने थी, और वो उससे अपने प्रेम का इज़हार कर रहा था। उसको बस इसी बात से सरोकार था। मुझे यह देख कर अच्छा लगा कि उसको माँ से सच में बहुत प्रेम है।
“हो... मन कहता है दुनिया तज के, जानी बस जाऊँ, तेरी आँखों में
और मैं गोरी महकी-महकी घुल के रह जाऊं तेरी साँसों में
एक दूजे में यूँ खो जाएँ, जग देखा करे
रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे
मोहे कहीं ले चल बाँहों के सहारे
बाग़ों में खेतों में नदिया किनारे
रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे”
गाना खतम होते ही हम सभी उत्साह में तालियाँ बजाने लगे। लतिका मेरी गोदी से उछल कर उतरी, और अपनी ‘बोऊ दी’ के दोनों गालों का पिचका कर उनके होंठों को चूम ली। आभा ने भी अपनी दीदी की पूँछ होने के नाते वही किया। काजल भी माँ के सर को अपने सीने से लगा कर उनके माथे को चूम ली। बेचारे सुनील को किसी ने पूछा तक नहीं।
“बहुत बढ़िया सुनील!” मैंने ही उसके गाने की बढ़ाई करी।
“थैंक यू भैया!” उसने खींस निपोरते हुए कहा, “मुझे लगा कि मेरा गाना किसी को पसंद ही नहीं आया!”
“बहुत पसंद आया दादा,” आभा ने कहा, और अपने फ़ेवरिट ‘दादा’ की बढ़ाई करते हुए उनको भी चूमा।
“आह मेरी मिष्टी, मेरी बच्चू!” सुनील ने आभा को पकड़ कर कई बार चूमा।
“बोऊ दी, अब एक गाना आप गाइए!”
“हा हा हा! कौन सा मेरी बच्ची?”
“आपका जो मन हो! हमको तो बस आपकी मीठी सी आवाज़ में कुछ भी सुनने को मिल जाए!”
लतिका इतनी प्यारी बच्ची थी, और कैसी प्यारी प्यारी, लेकिन सयानी बातें करने लगी थी!
माँ ने एक क्षण सुनील को देखा, मुस्कुराईं और गाने लगीं,
“यशोमती मैया से बोले नंदलाला
राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला
राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला”
माँ गोरी गोरी थीं, और सुनील साँवला। दोनों की जोड़ी सुन्दर सी थी! यह गाना इस सिचुएशन पर बेहद सटीक फिट हो रहा था। लेकिन इस गाने के साथ एक बहुत पुरानी याद दौड़ती हुई चली आई - गैबी की याद! उसने भी यही गाना गाया था, जब गाँव में उसको गाने को कहा गया था!
“बोली मुस्काती मैया सुन मेरे प्यारे
बोली मुस्काती मैया सुन मेरे प्यारे
गोरी गोरी राधिका के नैन कजरारे
काले नैनों वाली ने, हो
काले नैनों वाली ने ऐसा जादू डाला
इसीलिए काला ”
“बहू जादूगर नहीं, देवी है! अप्सरा है!” काजल अपने में ही बड़बड़ा रही थी, “अच्छा हुआ मेरे इस लायक बेटे ने अपने लिए सच्चा सोना पहचान लिया! आज मैं इतनी खुश हूँ कि क्या कहूँ!”
“इतने में राधा प्यारी आई इठलाती
इतने में राधा प्यारी आई इठलाती
मैं ने न जादू डाला बोली बलखाती
मैया कन्हैया तेरा, हो
मैया कन्हैया तेरा जग से निराला
इसीलिए काला
यशोमती मैया से बोले नंदलाला
राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला”
गाना ख़तम क्या हुआ कि काजल ने भावातिरेक में आ कर माँ को अपने सीने से लगा लिया।
“अरे वाह वाह!” वो ख़ुशी से बोल पड़ी, “क्या मिठास! क्या सुन्दर गीत बहू!”
काजल को इस तरह से माँ पर अपना प्रेम बरसाते देख कर अलग सा लगा - अलग सा, और बहुत ही अच्छा! दोनों में हमेशा से ही प्रगाढ़ प्रेम था। लेकिन अब वो निर्बाध रूप से माँ को अपनी बेटी के रूप में दुलार कर रही थी। बहुत बढ़िया!
हम सभी ने भी तालियाँ बजाईं। सुनील के चेहरे पर गर्व की दमक साफ़ दिखाई दे रही थी। आनंद ही आनंद!
सभी का और जागने का मूड था। लेकिन मैं आज थक गया था। इसलिए मैंने सभी से माफ़ी मांगी, और वहाँ से निकल लिया, और अपने बिस्तर पर आ कर लेट कर सारी परस्थिति का जायज़ा लेने लगा।
Bahut hi sunder aur badhiyaa update hai
Dhanyawad Avsji
अमर की मनोस्तिथि काफी दुविधा भरी थी, एक तरफ दोनो के रिश्ते और उम्र के अंतर का ख्याल दूसरे बेटा होने के नाते मां के सुखदुख की चिंता, साथ अपनी दोनो प्रेयसियो से विछोह के कारण दिल में हमेशा कुछ गलत होने का खटका। इन सभी बातों ने अमर को थोड़ा चिंतित कर दिया था। साथ ही एक बार फिर से सबसे बिछड़ने का गम।
मगर सुनील से बात करके उसको कुछ तसल्ली मिली और फिर वो भी उनकी खुशी में खुश हुआ बाकिं की कसर डिनर और बाद में गाने के कार्यक्रम ने पूरी कर दी। अब शायद अमर एक बार सुनील अपनी कंपनी ज्वाइन करने का ऑफर दे ताकि मां और पूरा परिवार एक साथ रह सके। बहुत ही प्यारा अपडेट।
कोई बात नहीं भाईअरे भइया, मैं अपडेट १३ को ही १४ समझ बैठा, अभी पढ़ा। सुन्दर माहौल!