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Erotica मोहे रंग दे

komaalrani

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बिदेसिया

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बात चीत में मैं और जेठानी उसे चिढ़ाने में लगे रहते थे , बनारस और आजमगढ़ के मुकाबले ,

गुड्डी को हम लोग बोलते , असल में गाँव की ही तरह खाली कहने को शहर है ,


तो उस के पास एक पक्का जवाब था , ...लेकिन आप दोनों लोग आयी तो यही हमारे भैया के पास , अपने माँ बाप का घर छोड़ के ,



ये बात तो उस छोरी की एकदम सही थी , ...

सच्च में यार उस लड़के के लिए तो मैं कहीं चली जाती , ...

माना थोड़ा , थोड़ा नहीं काफी बुद्धू था , ..कुछ ज्यादा ही सीधा , और शर्मिला कितना ,...आजकल तो लड़कियां भी उतनी नहीं शर्माती , और लापरवाह भी एकदम , ...



उसे अपना जरा भी नहीं ख्याल , ...अगर मैं उसे कपडे न निकाल के दूँ न तो बस , ...


दोनों पैरों में अलग रंग के मोज़े पहन के चला जाय , ...

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लेकिन वो लड़का बैंगलोर , ...

पांच दिन इत्ती मुश्किल से कटते थे और जब वो आता था , फुर्र से समय उड़ जाता था ,...

मैं जानती थी इस लड़के के साथ यही होना है , एक दिन पूरी जिंदगी इसी तरह , हफ्ते महीनो में बदलेंगे , महीनो सालों में और एक दिन पूरी जिंदगी ,...


लेकिन बस ये सोच के ढांढ़स बंधाती थी , बच्चू बच के कहाँ जायेंगे , ...


पूरे सात जन्म के लिए लिखवा के लायी हूँ उसे ,... अगले जन्म में फिर करुँगी रगड़ाई उसकी , बच के कहाँ जायेगा ,...

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मम्मी जब से मेरी शादी तय हुयी , शादी के गाने और उन में से कुछ तो ऐसे मैं मना भी करती , लेकिन ,... एकदम



निमिया के पेड़ जिन कटाया मोरे बाबा , निमिया चिरैया क बसेर र ललनवा।

निमिया के पेड़ जिन कटाया मोरे बाबा , निमिया चिरैया क बसेर र ललनवा।

होतें बिहान चिरैया उड़ जाहिएँ , होय जाहिंएं निमिया अकेल र ललनवा ,



....होतें बिहान बेटी चल जाहिएँ , हो जाहिएँ मम्मी अकेल रे ललनावा

निमिया के पेड़ जिन कटाया मोरे बाबा , निमिया चिरैया क बसेर र ललनवा।



.... बेटी बिदेसिया के साथ रे ललनवा , होते बिहान बेटी चल जाहिए , हो जाहिए मम्मी अकेल रे ललनवा


मम्मी रोटी बनाती जाती थी , आंसू रुकते नहीं थे ,


और कहीं मैं पूछती थी तो बोलती थी नहीं कुछ नहीं , बस जरा धुंवा लग गया था , ...



पर मैं जानती नहीं थी क्या , .... जब तक बुआ भाभियाँ , चाचियां रहतीं , छेड़छाड़ , काम काज की बातें , लेकिन जैसे वो अकेले बैठती ,

बस सूनी आँखों से दरवाजे को निहारती रहतीं , ...

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जैसे इसी दरवाजे से कुछ दिन बाद मैं चली जाउंगी , फिर तो कभी काम काज कभी परब त्योहार , ....


सबसे बड़ी तीनो बहनों में मैं थी ,
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आज मैं. कल मंझली , फिर छुटकी , ... तीनो चिरैया , बारी बारी से फुर्र ,... और मम्मी दरवाजे के पास बैठी , अकेली

मैं समझती नहीं थी क्या , ... मैं भी आ के , उनके बगल में ,... उनकी गोद में अपना सर रख कर ,


कैसे छोटी बच्ची की तरह , मेरे रिबन बांधती , बाल संवारती , नाक छिदी तो कितना दर्द हुआ था , लेकिन बस मम्मी ने ऐसे ही गोदी में , ...

देर तक बस हम माँ बेटी ऐसे ही बिना बोले , वो बस मेरा बाल सहलाती रहतीं , और जब मैं सर ऊपर कर के देखती तो

उनकी दियली सी आँखों में , ... मुझे देखते ही वो आँख बंद कर लेती , झूठमूठ का आँख रगड़ने लगतीं , बोलती कुछ नहीं कुछ पड़ गया था ,

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पर शादी ब्याह का घर , गांव का माहोल ,... कोई न कोई कुछ काम ले के , ... और वो उठ के , ... मुझे अभी भी याद है , उनके आँचल में सारी चाभियाँ बंधी रहती थी , और थोड़ा सा फुटकर पैसा भी , ...

सोच के ,

कन्यादान के समय के गाने , ...

पाँव पूजी चलती रहती थी और आँख में आंसू भी , ...



जब हम जनतीं , धिया कोखिये होइए


प्रभु जी से रहतीं उछास

अरे लागल सेजिया उढ़स देतीं ,

कटती अंगनवा सारी रात ,

धिया के जनमते माहुरवा हम चटावती,
----

...... बेटी होली घर क सिंगार ,

गइया , भैंसिया भले दान करिया पापा , बेटी हो दूर जिन भेजिया बिदेस ,

कटोरवा कटोरवा दुधवा पियालुं और खियवली दूध भात ,

हो धियवा चलली सुन्दर बर के साथ ,...

होत भिनसरवा जाइबों हो पापा बड़ी हो दूर ,

होत भिन्सारवा जाइबो हो चाचा बड़ी हो दूर
.....

जब हम जनती कन्यादान करतीं पापा जी ,

खातीं जहर मर जातीं हो पापा जी

सोने के पिंजड़ा बना देती पापा जी ,

सुन्दर धियवा छुपा देतीं पापा जी
....

काठ के करेजवा पापा करैला बाटा हो हमरो के करैले बाटा हो


......

घूंघट के अंदर मैं बार बार अपनी आँखे बंद कर लेती , जोर जोर से भींच लेती , ...


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सहेलियां , भाभियाँ , नाउन , नाउन की बेटी मुझे सुना सुना के इन्हे छेड़ती ,

पर मैं जानती थी ये सब मेरा मन रखने को , ...



आखिर वो सब भी तो उसी रास्ते से गुजर के आयीं है , या जानेवाली हैं सब को उस का दर्द मालूम है , ...



कालेज से आती थी कहीं अपना बस्ता फेंका ,




कभी मंझली से झगड़ा करने बैठ गयी तो कभी मम्मी से दस ओरहन , ...



पर अब जब जाउंगी तो कोई बोलेगा , सामान यहाँ रखवा दो ,

मुझे बार बार उनकी एक ही बात याद आती थी , गुड़िया खेलने वाली , गुड़ियों की शादी रचाने वाली बेटियाँ जब कब खुद डोली पर चढ़ कर चली जाती हैं पता नहीं चलता ,

किसी तरह से झटक के मैंने उन यादों को अलग किया , जैसे पुराने अल्बम कहीं बक्से के कोने में , ... पर , ...



सच में , ... वो तो मेरी सास , इतनी अच्छी इतनी अच्छी , सास कम सहेली ज्यादा , मुझसे ज्यादा मेरा ख्याल रखने वाली

नहीं तो पहले दिन से ही मजाक में सही , सोहर की तैयारी शुरू ,

और अगर साल दो साल हो गए , ... तो फिर झाड़ फूंक , डाकटर बैद सब ,...


मैंने तो इन्ही से बोल दिया था , साफ़ साफ , और सासु से भी , ... पहले पांच साल कुछ नहीं , उसके बाद , ... एकदम ,...



दिन कटते नहीं थे , लेकिन चारा भी क्या था , ... बस वीकेंड के इंतजार में और आखिरी के हफ्ते में तो वो भी

उनको फॉरेन जाना पड़ा , ...


मेरे तो कुछ समझ में नहीं आता था



पता नहीं क्या क्या , ... बिग डाटा , आर्टिफिशयल इंटेलिजंस , डार्क वेब ,...


मुझे सिर्फ गुस्सा लगता था , इस के चक्कर में दस दिन और ,



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हाँ जब पहली बार जेनेवा से उनका फोन आया तो मैं एकदम उछल पड़ी ,



' बिदेस से बोल रहे हैं ,... "




मैं गाँव की लड़की , मेरे लिए कोई बनारस से लखनऊ चला जाए तो ,..
 
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komaalrani

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बिदेस
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हाँ जब पहली बार जेनेवा से उनका फोन आया तो मैं एकदम उछल पड़ी ,



' बिदेस से बोल रहे हैं ,... "



मैं गाँव की लड़की , मेरे लिए कोई बनारस से लखनऊ चला जाए तो ,..


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हम लोग जो ईस्टर्न यूपी वाले बिहार वाले हैं तो बिदेस तो जैसे उनकी किस्मत में , ....

आज से नहीं सैकड़ों साल से , एक दिन मैं मम्मी के साथ बी एच यू में मंन्दिर में , और कुछ वेस्टइंडीज की औरतें , वैसे तो फ्रेंच या पता नहीं क्या बोल रही थी पर गाना गाने लगीं तो एकदम भोजपुरी ,

सच में , फिजी , गुयाना , मारसिश और पता नहीं कितने कितने देस , ईस्ट इण्डिया कम्पनी के सिपाही बनकर चीन , बर्मा , मलाया , ...

मेरी सास बताती थीं , ...

उनकी सास ने बताया था , तब यहाँ बड़ी लाइन नहीं थी , सब लोग गाँव के , शाहगंज जाते थे गाँव से कोई जाता था कलकत्ता , उसे छोड़ने , चटकल की मिल में काम करें ,

इसी इलाके से , भोजपुरी इलाके से ही , भिखारी ठाकुर हो सकते थे , और बिदेसिया भी ,...



मैंने देखा तो नहीं लेकिन अपने गाँव में भी पुरानी औरतों से सुना था , ...

गौना हो के दुल्हिन आती थी , पहली रात को ही सब औरतें सीखा पढ़ा के


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अपनी आँखी की पुतरी में बंद कर लेना , पलक अच्छी तरह , ...


आठ दिन , हद से हद दस दिन , फिर वो कमाने ,... और उसके बाद बस कभी चिट्ठी का इन्तजार कभी छुट्टी का ,

और अभी भी , एक दिन मैं लखनऊ गयी थी , स्टेशन पर , कोई ट्रेन थी , हाँ पुष्पक , ठूंस ठूंस कर , जनरल डिब्बे में , ... सब लोग बंम्बई ,

बमबई , सूरत , पंजाब , और कुछ जुगाड़ लग गया , गहना गुरिया गिरवी रख के हाथ पैर जोड़ के कभी दुबई कभी कत्तर , कभी ,...

एक गाना मैं बहुत गाती थी , स्कूल में किसी कम्पटीशन में ,

रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे,

रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे ।

जौन टिकसवा से बलम मोरे जैहें, रे सजना मोरे जैहें,

पानी बरसे टिकस गल जाए रे, रेलिया बैरन ।।


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जौने सहरिया को बलमा मोरे जैहें, रे सजना मोरे जैहें,
आगी लागै सहर जल जाए रे, रेलिया बैरन ।।

जौन सवतिया पे बलमा मोरे रीझे, रे सजना मोरे रीझें,

खाए धतूरा सवत बौराए रे, रेलिया बैरन

लेकिन उसका मतलब अब समझ में आया , गाने का असली मतलब उसकी आखिरी लाइन में

ना रेलिया बैरन , न जहाजिया बैरन , इसे पइसवा बैरन हो ,....

देह की आग , मन की आग बहुत कठिन होती है लेकिन पेट की आग उससे भी ज्यादा , ...

गाँव में सुने एक गाने की लाइन अक्सर कान में गूँजती रहती है ,


भुखिया के मारे बिरहा बिसरिगै , बिसरैगे कजरी कबीर ,


अब देख देख गोरी क जोबना

न उठै करेजवा में पीर ,....


आप भी कहेंगे न कहाँ की बातें लेकर बैठ गयी मैं आज , पर मन में जो उमड़ता घुमड़ता रहता है न कभी वो वो आँख से फिसल पड़ता है तो कभी शब्द बनकर


एम्स्टर्डम में भी बजाय तीन दिन के दस दिन रहना पड़ा उन्हें , ...



मुझे सब से बड़ी चिंता यही लगी रहती थी खाएंगे क्या , वहां दाल चावल मिलेगा की नहीं ,


इनके नखड़े भी तो बहुत नहीं मिलेगा नहीं खाएंगे , कौन समझाये इन्हे

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लेकिन एक अच्छी बात थी ,

ज्यादा तो नहीं लेकिन बताया था इन्होने, एक लड़की मिल गयी थी , पंजाब की , काफी दिनों से एम्स्टर्डम में रहती है ,

वो भी इन्ही सबी चीजों में ,...


उसका कुछ बनारस से कभी का ,...

दूबे भाभी को अच्छी तरह जानती है , अरे वही औरंगाबाद वाली ,...

कुछ नाम बताया तो था उन्होंने , अच्छा सा नाम है , इनका ख्याल रखती है , ...



नाम उसका , ... हाँ याद आ गया ,







रीत।
 

Janu002

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बहुत खूब सूरत कड़ी l आपने सच में जीवन का हाल लिखा है
 
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Black horse

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रीत, कोमल की जानकार, रिश्ते में दूर की साली।

तो इस विरह के समय में, साली का काम, थोड़ी सी पेट पूजा, कभी भी, कहीं भी। और लाइन देने का काम साली का,

खाना खिलाना और हजम करवाना

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
 
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thode hi shabdo main kamal ke jajbaat likhe hai aapne maa aur beti ke beech ke...bahut khub komal...ji
aur Reet ki entry.. wow...


Acchi baat hai ,,ap sab logon ki Reet ki yaad hai , Apani Reet , .... ki
 
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Jaipara

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Yes .... lekin kahani me aaage kya hoga ye to aage ki kahani padh ke hi pata chalega

Hume ye ache se malum hai ki aage kya hoga wo kahani padh kar hi pta lagega aur jahan tak mera anuman hai aapko bhi kahani ka kahani se hi pta lagega. Qki aap khud kahti hain ki aap feelings me idhar udhar kab aur kahan tak nikal jati hain aapko bhi nahi pta.
 
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