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Horror यक्षिणी

vicky4289

Full time web developer.
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Bilkul sahmat hai .. bus aap kahani ko adhura mat chorna or updates regularly dete rahna … sex se jayada kahani ke romanch mein Maza hai … sex ke liye toh kahaniyon ki bharmar hai…. Waiting for next big update ….👏🏻👏🏻👏🏻
आपकी प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद। मैंने अभी अपने ऑफिस का समय पूरा किया है, अब मैं नया अपडेट लिख रहा हूँ।
 
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vicky4289

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Episode 11

वेदांत अपने जज्बातों को संभालकर उठकर खड़ा होता है और बाजार की ओर बढ़ता है। पिता की यादों में खोये हुए, वह अपने सवालों के जवाब ढूँढ़ने के लिए उसी रास्ते पर आगे बढ़ता है। वह अपने अंदर की उलझनों का सामना कर रहा होता है, जैसे कि उसके मन में चल रहे विचारों और भावनाओं की उबान हो।

उसी रास्ते पर सामने से एक लड़का आता दिखाई देता है। उसके लम्बे बाल और चश्मे की वजह से वह दिखता है कि वह एक अलग तरीके का इंसान है, कुछ ऐसा जिसमें रहस्यमयता और जिज्ञासा दोनों ही मिलती हैं। उसकी काली टीशर्ट पर थोड़ी रंगीनी छबियाँ बनी हुई हैं, जैसे कि उसने खुद ही उन्हें बनाया हो, और वह जींस पहने हुए होता है। वेदांत और वह लड़का आपस में नजरें मिलाते हैं और एक-दूसरे की दिशा में देखते हैं, उनकी आँखों में एक खास प्रकार की ताक़त और समझ बिखरी होती है, जैसे कि वे एक-दूसरे की बातों को बिना शब्दों के ही समझ सकते हैं।

वेदांत के सामने अचानक आकर खड़ा हो गया। उसके लम्बे बाल और चश्मे ने उसे एक अलग ही दिखने वाले इंसान की तस्वीर दी। वेदांत ने उसकी ओर देखा, उसके आंखों में उस रात की घटनाओं की यादें थीं, लेकिन वह उसकी पहचान नहीं कर पाया।

लड़का: अरे वेदांत, तुम कब आए?

वेदांत थोड़ी सी गंभीरता में उसकी ओर देखता है, उसकी आवाज़ में छिपी रहस्यमयता को महसूस करता है।

वेदांत: ओह, राहुल, हाँ, मैं कल रात ही आया। तुमने मुझे पहचान लिया?

राहुल की आँखों में खुशी और चमक होती है, जैसे कि वह अपने साथी के साथ दुनिया की सबसे बड़ी खोज में सफल हो गया हो।

राहुल: हां, यार, तू तो वैसे ही हो। तुम कैसे हो?

वेदांत: मैं ठीक हूँ, यार। बस, ये जगह बदल गई है, तुझसे मिलकर अच्छा लगा।

राहुल: वाकई, यार, बहुत दिनों बाद मिल रहे हैं।

दोनों के बीच में ख़ास एक प्रकार की बोंद बसती है, जो उनकी दोस्ती की गहराई और समझ को दर्शाती है। वे एक-दूसरे की आँखों में देखकर अपने अंदर के भावनाओं को समझते हैं, जैसे कि उनके बिना कुछ कहे ही वे दूसरे के दिल की बातें समझ सकते हैं।

वेदांत बड़े रोमांचक रूप से उस लड़के की ओर इशारा करते हुए कहता है, ये क्या हुलिया बनाया है? इतने लम्बे बाल?

राहुल, जिसके चेहरे पर एक खिलखिलाहट छिपी होती है, मुस्कराते हुए उत्तर देता है, "अरे, मैं पैरानॉर्मल इन्वेस्टिगेटर हूँ।"

वेदांत की आँखों में चमक आती है, और वह उत्सुकता से पूछता है, पैरानॉर्मल इन्वेस्टिगेटर? यह क्या होता है?

राहुल वेदांत की दिशा में देखकर बड़ी मुस्कान देता है और उसे बताता है, पैरानॉर्मल इन्वेस्टिगेटर एक ऐसा व्यक्ति होता है जो असामान्य और अद्भुत चीज़ों की खोज में लगता है। वो विभिन्न प्रकार की असामान्य घटनाओं का पता लगाने का प्रयास करता है, जैसे कि भूत-प्रेत, अतीत की आत्माएँ, अजीब जगहों की कहानियाँ आदि। मैंने बहुत सी अद्भुत और रहस्यमयी घटनाएँ देखी है और उनका पता लगाने का प्रयास किया है।

वेदांत उसकी बातों पर मुस्कराता है, जैसे कि उसके मित्र के विचारों में उसे खासी मज़ा आ रहा है। अरे, ऐसा तो थोड़ी होता है। आज के समय में भूत-प्रेत जैसा कुछ नहीं होता,"। वेदांत बोलता है और उसके चेहरे पर एक हसी छान जाती है। वह आजकल के विज्ञान और तकनीकी युग में आस्थाओं की बातों पर हँस रहा है, जैसे कि उसका मानना है कि भूत-प्रेत जैसे रहस्यमय और अत्याधुनिक बातें आजकल की दुनिया में कुछ भी नहीं होती है।

राहुल वेदांत की मुस्कान को देखकर खुश होकर कहता है, होता है, वक़्त आने पे मैं साबित करके दिखाऊँगा। उसके आवाज़ में एक उम्मीद और निश्चितता की भावना होती है, जैसे कि वह खुद को यह साबित करने का आश्वासन देने के लिए तैयार है कि भूत-प्रेत और रहस्यमय घटनाएँ असल में मौजूद हैं।

राहुल: अरे ये सब छोडो, चलो मेरे साथ चलो।

वेदांत: कहाँ जाना है?

राहुल: अरे चलो तो सही।

फिर दोनों साथ में मार्केट के रास्ते पर चलने लगते हैं, दोनों हॉस्पिटल के थोड़े आगे एक नस्ते के ढाबे के पास आकर रुकते हैं।

राहुल एक लड़के की ओर देखता है जो ढाबे के सामने रखी बेंच पर बैठा था। उसके पास 4-5 बच्चे खड़े होते हैं।

राहुल उसे पुकारता है और कहता है, "आदि, ये देख कौन आया है!"

आदित्य जिसे आदि कहते हैं, वह राहुल और वेदांत की ओर देखता है और वेदांत को पहचानता है। उसके पास आकर वेदांत को गले मिलकर कहता है, तुम कब आए?

वेदांत मुस्कराता है, उसकी आँखों में यादें ताजगी भर उठती हैं। वह जानता है कि यह उनके बचपन का दोस्त, जिसके साथ वे बचपन में अनगिनत यादें बिताते थे। कविता के छोटे छोटे शब्दों में व्यक्त आदित्य की खासियत और उसके साथ बिताए गए पलों की यादें वेदांत की आँखों के सामने सामान्य हो जाती हैं।

वेदांत: कल ही आया।

आदित्य भी खुशी से भरकर, प्रिया को बुलाता है।

वेदांत की आँखों में जानकर बड़ी खुशी होती है, लेकिन उसके दिल में एक अजीब सी उत्सुकता भी होती है।

आदित्य: (प्रिया की ओर इशारा करते हुए) प्रिया, यहाँ आओ!

वेदांत: (अपने दोस्तों की ओर इशारा करते हुए) मुझे तुम दोनों तो याद हो, पर ये प्रिया कौन है?

राहुल: (उनकी यादों को ताजगी से देखकर) तुम्हें प्रिया नहीं याद? वो वही थी, जिसके साथ हम सब बचपन में अनगिनत मस्ती करते थे। (वह थोड़ी देर के लिए ठहरता है, उसकी आँखों में वो यादें और खुशियाँ फिर से बस जाती हैं) और फिर आदित्य का मजाक उड़ते हुए कहता है, "इसका एक तरफा प्यार।"

प्रिया भी वहाँ आकर वेदांत को पहचानने की कोशिश करने लगती है। कई सालों से न मिलने के कारण उसे थोड़ी देर लगती है, लेकिन उसकी याद आजाती है। वो खुश होती है और उसे नास्ते के लिए पूछती है।

वेदांत उसे मना करता है, तो प्रिया अपने दबाव में उस धाबे पे काम करने वाले लड़के को राहुल और वेदांत के लिए चाय लाने का कहती है। फिर वेदांत की ओर घूमकर उससे पूछती है।

प्रिया: बड़े सालों बाद तुम्हें गाँव की याद आई है?

वेदांत: हां, पढ़ाई और नौकरी के कारण यहाँ आने का समय नहीं मिलता था।

तभी राहुल को पीछे से आवाज़ आती है,

मैं तुम्हारा वहाँ इंतजार कर रहा हूँ और तुम यहाँ गप्पे लगा रहे हो।

राहुल वेदांत की ओर देखते हुए।

लो, आया हमारी टोली का चौथा साथी। याद है तुम्हें?

वेदांत को पहचानने में देर नहीं लगती और वह पूछता है, क्या ये शिद्धार्थ है?

राहुल: हां, ये वही कचुवा छाप शिद्धार्थ है।

वो चारों बचपन से शिद्धार्थ को कचुवा कहकर बुलाते थे, उसके धीमे चलने और धीले स्वभाव के कारण।

शिद्धार्थ भी चारों के पास आता है। और आते ही राहुल पर थोड़ा गुस्सा करता है।

शिद्धार्थ: अगर यहाँ गप्पे ही लड़ाने थे तो मुझे वहाँ धूप में क्यों खड़ा किया था, कबसे तेरा वेट कर रहा हूँ।

राहुल: अरे, रास्ते में मुझे वेदांत मिल गया था, उसे लेकर यहाँ आ गया सबको मिलवाने।

शिद्धार्थ: ये कब आया? और क्यों आया? बड़े दिनों बाद हमारी याद आयी इसे?

वेदांत: अरे, अब आ गया न, अब तो मुझसे ठीक से बात कर ले।

फिर दोनों गले मिलते हैं। उतनी देर में एक लड़का राहुल और वेदांत के लिए चाय लाके आता है।

आदि और शिद्धार्थ एक साथ बोल उठते हैं, "हमारे लिए?"

प्रिया: तुम तो हमेशा यही पड़े रहते, तो तुम्हें चाय नहीं मिलेगी।

ऐसे ही पंचों बात करते हैं। बातें करते करते शाम का समय हो जाता है।

वेदांत उन सभी से विदाई लेने की कहता है।

तब शिद्धार्थ उससे पूछता है, "कहाँ रुके हुए हो? तुम्हारे बड़े पापा (सरपंच) के यहाँ?"

वेदांत का रुख बदल जाता है, और वह डर की तरफ एक आवाज़ करता है, "अरे नहीं, वहाँ नहीं, मैं तो अपने पापा की हवेली में रुका हुआ हूँ। वही तो हमारा घर है ना।"

हवेली का नाम सुनकर राहुल, आदित्य, प्रिया, शिद्धार्थ चारों चौंक पड़ते हैं और साथ में पूछ बैठते हैं:

"क्या तुम हवेली में रह रहे हो?" उनके आवाज़ में डर और आतंक की भावना होती है, जैसे कि कुछ अद्भुत और रहस्यमय बातें उनके सामने आ गई हों।
 

vicky4289

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क्षमा करें दोस्तो, नौकरी की वजह से समय पर अपडेट नहीं मिल पा रहे हैं। आप धैर्य रखे. शायद अपडेट 2-3 दिन देर से आएंगे, पर आएंगे जरूर।
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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सबसे पहले, देवनागरी में कहानी लिखने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
अब तक आपकी कहानी के सात अपडेट पढ़ चुका हूँ और उसी के आधार पर लिख रहा हूँ।

आपकी भाषा बहुत कठिन है - इस बात पर विचार अवश्य करें! भाषा की सरलता बढ़ने से पाठकों की संख्या बढ़ेगी!
आपकी राह मुश्किल है - वैसे भी इस फ़ोरम में अधिकतर पाठकों को देवनागरी समझ में नहीं आती, ऊपर से भाषा कठिन, और ऊपर से हॉरर केटेगरी की कहानी!
आपने एक बहुत ही छोटा कोना (niche) पकड़ा है! अधिक पाठक नहीं मिलेंगे आपको! इसलिए परेशान मत होईएगा।

अभी तक का कथानक रुचिकर रहा। समझ में आ रहा है कि क्या हो रहा है, और किस दिशा में जाने वाली है कहानी।
यक्षिणी इस कथा के मूल में है। सब-इंस्पेक्टर राठौर और सरपंच सोलंकी संभवतः यक्षिणी के इर्द-गिर्द के किरदार रहेंगे! आशा है कि कहानी बढ़िया बन पड़ेगी!

आगे के लिए आपका उत्साह बढ़ाते रहेंगे हम! ऐसे ही लिखते रहिए। :)
 

vicky4289

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सबसे पहले, देवनागरी में कहानी लिखने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
अब तक आपकी कहानी के सात अपडेट पढ़ चुका हूँ और उसी के आधार पर लिख रहा हूँ।

आपकी भाषा बहुत कठिन है - इस बात पर विचार अवश्य करें! भाषा की सरलता बढ़ने से पाठकों की संख्या बढ़ेगी!
आपकी राह मुश्किल है - वैसे भी इस फ़ोरम में अधिकतर पाठकों को देवनागरी समझ में नहीं आती, ऊपर से भाषा कठिन, और ऊपर से हॉरर केटेगरी की कहानी!
आपने एक बहुत ही छोटा कोना (niche) पकड़ा है! अधिक पाठक नहीं मिलेंगे आपको! इसलिए परेशान मत होईएगा।

अभी तक का कथानक रुचिकर रहा। समझ में आ रहा है कि क्या हो रहा है, और किस दिशा में जाने वाली है कहानी।
यक्षिणी इस कथा के मूल में है। सब-इंस्पेक्टर राठौर और सरपंच सोलंकी संभवतः यक्षिणी के इर्द-गिर्द के किरदार रहेंगे! आशा है कि कहानी बढ़िया बन पड़ेगी!

आगे के लिए आपका उत्साह बढ़ाते रहेंगे हम! ऐसे ही लिखते रहिए। :)
आपकी प्रतिक्रिया के लिए आपका धन्यवाद।
मैं इसे आसान बनाने के लिए शब्दों का ध्यान रखूंगा
 

vicky4289

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Episode 12

"क्या तुम हवेली में रह रहे हो?" उनके आवाज़ में डर और आतंक की भावना होती है।


आदित्य: क्या सचमें तुम हवेली में रह रहे हो?

वेदांत: हाँ

आदित्य: तुम्हें पता भी है वह किसकी है?

वेदांत: हाँ, मेरे पापा की है।

आदित्य (डरावनी आवाज़ में): अरे, मेरा मतलब यह है कि यहाँ दो स्थान हैं - समुंद्र किनारे की वह हवेली और गाँव के पश्चिम में बहती वो नदी। वहाँ यक्षिणी का आतंक मचता है।

वेदांत: मैं इन सब बातों पर विश्वास नहीं करता और अगर ऐसा होता तो कल रात मुझे कुछ होना चाहिए था। मैं वहाँ अकेला सोया था

राहुल (डरावनी आवाज़ में): मैंने सुना है कि यक्षिणी को केद किया गया था। इसीलिए तुझे कुछ नहीं हुआ।

शिद्धार्थ (तनावपूर्ण भावनाओं के साथ, डरपूरी आँखों से देखते हुए): मैंने तुझे इसी बात के लिए बुलाया था कल रात एक नया शिकार फिर से हुआ है, इतने सालों के बाद। वो आज़ाद हो गयी हे।

तभी पीछे से प्रिया की माँ की आवाज़ आती है, प्रिया, तू यहाँ आ!

प्रिया तुरंत सभी को छोड़कर अपनी माँ की ओर बढ़ती है। उनकी माँ के आगमन से सभी की बातें रुक जाती हैं। थोड़ी देर बाद चारों फिर से बातचीत में लग जाते हैं। उनकी आवाज़ें तनावपूर्ण हो जाती हैं। वही धाबे पे बैठा एक बुजुर्ग आदमी, जिसकी उम्र करीब 64-65 साल की होगी, सबकी बातों को ध्यान से सुन रहा था। उसके सफेद बाल उसकी वृद्धावस्था की गवाही देते थे, और उसकी मुख पर छोटी-छोटी जुर्रियाँ दिखाई देने लगी थीं, जैसे कि वो जीवन के सारे उपहारों और कठिनाइयों के एक अद्वितीय प्रतीक हों।

आदमी: तुम सब हवेली की बात कर रहे हो?

राहुल: हाँ चाचा, हम हवेली और यक्षिणी के बारे में बात कर रहे हैं। क्या आपको कुछ मालूम है?

आदमी: (अपनी आवाज़ में गहराई से) हाँ, आखिरी बार उसने उस हवेली में रहने वाले एक लेखक साहब को मार डाला था। वो अदृश्य हवेली के अंधकार में उसकी जान लेने आई थी, और उस दिन से हवेली में एक खौफ छाया है, जो आज तक उसकी दीवारों में बसा है। लोग मानते थे कि यक्षिणी उन्हें कुछ नहीं करती थी, लेकिन उस बाबू के मौत के बाद, हर किसी की आंखों में एक नया डर पैदा हो गया था।

शिद्धार्थ: (अपनी आवाज़ में थोड़ी डरावनी शब्दों में) उसी दिन से शायद यक्षिणी का शिकार शायद बंद हो गया था!

आदमी: (अपनी आवाज में गंभीर देर हुवे) शिकार बंद नहीं हुआ था, यक्षिणी को हवेली में बंद कर दिया गया था। उसे शांत कर दिया गया था। तीनो धर्म के गुरुओं ने मिलके हमें यक्षिणी को अपनी कुर्बानी देके शांत किया था और हवेली को हमेशा के लिए बंद कर दिया था।


वेदांत फिर से अपने पापा की मौत की घाटना को सुनाता है, उसका दिल फिर से दुख से भर जाता है। और अपने पापा की यादो में खो जाता है।
 
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sunoanuj

Well-Known Member
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Bahut hi behtarin updates mitr bahut jabardast likh rahe ho.. 👏🏻👏🏻👏🏻
 

vicky4289

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Episode 13

आदमी: (अपनी आवाज में गंभीर देर हुवे) शिकार बंद नहीं हुआ था, यक्षिणी को हवेली में बंद कर दिया गया था। उसे शांत कर दिया गया था। तीनो धर्म के गुरुओं ने मिलके हमें यक्षिणी को अपनी कुर्बानी देके शांत किया था और हवेली को हमेशा के लिए बंद कर दिया था।

वेदांत फिर से अपने पापा की मौत की घाटना को सुनाता है, उसका दिल फिर से दुख से भर जाता है। और अपने पापा की यादो में खो जाता है।


आदमी: क्या तुमने हवेली का वह कमरा खोला जिसमें यक्षिणी बंद थी?

वेदांत: नहीं, मैं कल रात बहुत थका हुआ था। मैं हॉल में सोफे पर ही सो गया था।

आदमी: फिर वह कैसे मुक्त हो गई?

राहुल: वेदांत, क्या तुम सचमें बता रहे हो?

वेदांत: बिल्कुल, मैं झूठ क्यों बोलता?

राहुल: शायद तुम्हारे बड़े पापा के डर से या गाँव के लोगों डर से।

वेदांत: नहीं, मैं उन बातों पर विश्वास नहीं करता। किसी ने मेरे पिता को मारने की कोशिश की होगी।

राहुल: वेदांत, हमारी दुनिया में अजीब-अजीब शक्तियाँ और चीजें होती हैं, जिनके बारे में हमें पूरी जानकारी नहीं होती। जैसे कि हम भगवान में विश्वास करते हैं, वैसे ही बुरी शक्तियों की भी मौजूदगी संभावना होती है।

वेदांत की आंखों में चिंता और संदेह की बुनाई हुई थी, वह अपने दोस्तों की आवाज़ों में आध्यात्मिकता और आतंक के मिलते जुलते परिप्रेक्ष्य में खोया हुआ था।

राहुल: हमें हवेली जाकर पता करना चाहिए कि दरवाज़ा बंद है या नहीं?

वेदांत: चलो चलें

सिद्धार्थ और आदित्य एक साथ: क्या तुम लोग पागल हो? यह यखसिनी का स्थान है और कल रात शिकार हो चुका है। क्या आपको नहीं लगता कि दरवाज़ा पहले ही खुल चुका है और वह आज़ाद हो गई है।

राहुल: हो सकता है किसी ने उसे मार दिया हो? हमें पता नहीं। आइये जाँच करें और पुष्टि करें। इसके अलावा, यदि उसने पिछली रात ही शिकार कर लिया है, तो अगला शिकार होने से पहले हमारे पास 15 दिन हैं। इसलिए मुझे लगता है कि हम सुरक्षित हैं.

आदित्य: तुम इस बारे में कैसे आश्वस्त हो?

राहुल: मैंने इसके बारे में शोध कि है, पैरानोमल इन्वेस्टिगेटर के रूप में मैं यही करता हूं।

चर्चा के बाद वे चारों हवेली की ओर चल देते हैं।

पुलिस स्टेशन

रुद्र अपनी कुर्सी पर बैठा था, सुबह के हत्या मामले पर विचार करते हुए। अचानक, फोन की लाउड आवाज़ से वो जग उठा।

रुद्र: हैलो, यह रुद्र बोल रहा हूँ।

दूसरी ओर की आवाज़: नमस्ते सर, मैं अस्पताल से बात कर रहा हूँ। डॉ. नीलम आपसे पोस्ट-मोर्टम के बारे में बात करना चाहती है।

रुद्र: ठीक है, मैं जल्द ही पहुँचूंगा।

रुद्र ने फोन को कट किया और सुरज से उसके साथ चलने की कही। अस्पताल दूर नहीं था, इसलिए वो पैदल ही जा सकते थे।

रिसेप्शन काउंटर पर सूरज ने डॉक्टर नीलम के बारे में पूछा।

रिसेप्शनिस्ट: वो आपका इंतज़ार कर रही है मुर्दाघर में।

सुरज: धन्यवाद।

रुद्र और सुरज ने मुर्दाघर के दरवाज़े की ओर बढ़ते हुए ठंडी हवा के बीच में चलते हुए।

कमरे में, एक शव मेज़ पर पड़ा था, एक सफेद कपड़े से ढंका हुआ। जांच के उपकरण निकले हुए थे। एक तरफ एक महिला कुर्सी पर बैठी थी, चाय पीती हुई।

सुरज: नमस्ते, डॉ. नीलम।

डॉ. नीलम: नमस्ते, मैं तुम्हारी उम्मीद में बैठी थी।

सुरज: डॉक्टर, आप यहाँ चाय कैसे पी सकती हैं? मैं तो यहाँ खड़ा भी नहीं रह सकता।

रुद्र: सुरज, हम चाय पर नहीं, काम पर आए हैं।

सुरज: क्षमा करें, कृपया जारी रखें।

रुद्र: तो, डॉक्टर नीलम, आप हमसे क्या बात करना चाहती हैं?

डॉ. नीलम: इंस्पेक्टर रुद्र, मैंने पोस्ट-मोर्टम परीक्षण पूरा कर लिया है। मृतक के शरीर पर बर्बरता के संकेत हैं। शरीर पर खरोंच, चोट और गहरी कटाई के निशान हैं, मानों की किसी ने पंजों से मारा हो। लेकिन मुझे लगता है यह वास्तविक जानवर की हमला नहीं है। यह किसी ने ऐसे बनाया है कि वो जानवर की हमला की नकल कर रहा है।

रुद्र: डॉक्टर नीलम, हम पहले से यह जानते थे। क्या आप इसके और विस्तार से बता सकती हैं? और दिल की हालत के बारे में क्या कह सकती हैं?

डॉ. नीलम: बिल्कुल। दिल की स्थिति ऐसी लगती है कि किसी ने उसे अस्त-व्यस्त रूप में बाहर निकाल दिया है, लेकिन जिस तरीके से यह किया गया है, वो अच्छा और स्पष्ट नहीं है। ऐसा लगता है मानों किसी ने मनचले तरीके से इसे काटने की कोशिश की है, जैसे कि वो असली मौत की वजह को छिपाने का प्रयास कर रहा है जानवर की हमला की एक दिखावटी चेहरे की मिसाल के रूप में।

अंदर की आवाज़ मौन रह जाती है, जैसे कि डॉ. नीलम की बातों ने काम में तेजी और रुद्र और सुरज के भीतर उत्कंठ को गहराती है।

रुद्र: ठीक है, डॉक्टर, हम अभी जा रहे हैं। अगर आपको कुछ और मिले तो हमें जरूर बताएं।

रुद्र और सूर्य बाहर जा रहे थे। डॉ. नीलम: इंस. रूद्र रुको.

रुद्र और सुरज रुक गये, डॉ. नीलम की आवाज़ सुनकर उनकी और मुड़कर देखा।

डॉ. नीलम: इंस्पेक्टर रुद्र, मुझे अभी याद आया, मैं तुम्हें कुछ और बताना भूल गई। मैंने अपने रिकॉर्ड्स में खोज की तो मुझे याद आया कि मैंने ऐसे मामले पहले देख गये हे, लेकिन वो लगभग 13-15 साल पहले के हैं। यह आपके लिए उस रिकार्ड की कॉपी है। आप इसे पुलिस रिकॉर्ड्स में भी जांच सकते हैं।

रुद्र और सुरज को डॉ. नीलम ने कॉपी दिया और वे उसे ध्यान से पढ़ने लगे। यह नई जानकारी ने मामले में एक नई दिशा दी।
 
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vicky4289

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नमस्कार दोस्तो, आप लोग अब तक की कहानी के बारे में क्या सोचते हैं?
 
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