Episode 10
सरपंच के घर से जाने के बाद, वेदांत हवेली की ओर बढ़ रहा था। सरपंच की कठोर आवाज़ और उसके बातचीत में कड़ापन के कारण, वो गुस्से में था। उसका दिल उसके अंदर की जाने की इच्छा से बहुत ही अधिक प्रेरित था, और उसकी ब्रह्माण्डिक सोच में उसके गुस्से को और भी भड़काने लगी थी।
वेदांत गुस्से और दुख के साथ सड़क के किनारे की ओर एक बेंच पर बैठ गया। वे आसपास के वातावरण में डूबे हुए थे, और उनके चेहरे पर गहरी विचलितता की छाया थी। उनके आँखों में उस समय के सभी घाव और आवाजों की यादें थीं।
तभी वो कल रात वाला पागल आदमी फिर आ गया, वह उसके पास आकर बैठ जाता है। उसके आसपास की माहौल में एक अजीब सी छाया बसी होती है, जो उसकी उत्सुकता और अनिश्चितता को छूने की कोशिश कर रही होती है। वेदांत से पूछता है, "तू गया नहीं अब तक?" उसकी आवाज़ में एक अनोखे तरह की भिन्नता होती है, जो वेदांत के आंतर मन को छूने की कोशिश कर रही होती है।
वेदांत अपने गुस्से और दुखभरी भावनाओं को दबाकर उस पागल आदमी का सामना करता है। उसकी आँखों में उस रात के घटनाओं की यादें और सरपंच के बातचीत की कड़ाहट होती है। उसके मन में उसके गुस्से की शिद्दत और उसके दुखभरे अंदर के आवाजों की गूँज महसूस होती है। वह पागल आदमी की दिशा में देखता है और धीरे से उससे कहता है, "जी, मैं नहीं गया, पर क्यों पूछ रहे हो?" उसकी आवाज़ में एक मिश्रण होता है - गुस्से की कुड़ित होती तथा उसके अंदर के दर्द की भीड़ होती है, जो वह बयां नहीं कर पा रहा है।
पागल आदमी: "उसका शिकार फिरसे शुरू हो गया है। अब हर अमावस्या और पूर्णिमा पर एक शिकार फिरसे होगा।"
वेदांत की आँखों में आश्चर्य देखकर पागल आदमी का मुख अधूरे गुस्से और उम्मीद के साथ खिल उठता है। उसकी आवाज़ में एक अजीब सी उत्साहितता है, जैसे कि उसने खुद को दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण बात सुना दी हो।
वेदांत: "हर अमावस्या और पूर्णिमा पर एक शिकार क्यों?"
पागल आदमी का चेहरा और भी उत्साहित हो जाता है, जैसे कि उसने वेदांत की प्रश्नों की प्रतीक्षा की हो। उसकी आँखों में गहराई से एक अजीब सा चमक होता है, जैसे कि उसने कुछ बड़ा खुलासा करने का इरादा किया हो।
वो पागल आदमी वेदांत को बताता है, "एक श्राप मिला हुआ है। आखिरी बार हवेली के आदमी का शिकार किया था, तबसे मैं शांत थी, लेकिन अब वो फिर से जागी हैं।
इतना कहते ही वो पागल आदमी, उठ कर चला जाता है। वेदांत की आँखों के सामने अपने शब्दों की छाया छोड़कर, वेदांत विचलित होकर बैठ जाता है। पागल आदमी के उकेरने वाले शब्दों का प्रभाव उसकी आवाज़ों की स्थिति पर पड़ता है।
वेदांत धीरे-धीरे उस आखिरी शिकार के बारे में सोचने लगता है। उस शिकार के पलों का दर्द उसके दिल में उभरने लगता है, जैसे कि एक गहराई से छूटी हुई पीड़ा का आभास हो। उसकी सांसें तेज़ होने लगती हैं, उसकी धड़कनें तेज़ हो जाती हैं। उसके अंदर एक अजीब सी बेचैनी का अहसास होने लगता है। उसकी आत्मा विचलित होने लगती है, जैसे कि किसी अजनबी सच्चाई का पर्दाफाश हो रहा हो। वह आखिरी शिकार के ख़्वाबों में खो जाता है, उसके अंदर दरारों के रूप में उतर जाता है।
वेदांत की आँखों से आंसू बहने लगते हैं, उसकी आवाज़ भी थम जाती है। उसके दिल में गहरी तरंगें उत्पन्न होने लगती हैं, जैसे कि एक भावनात्मक सुनामी आ रही हो। उसके अंदर का दर्द और अवसाद बढ़ते जाते हैं, और वह खुद को उस आखिरी शिकार के साथ जुड़ा हुवा हो।
वह आखरी शिकार उसके पिता का था।