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[(३४ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा : तो दीदी ने कभी उसे डांटा क्यों नहीं?
-क्या दीदी भी चाहती थी की मैं उसे नग्न अवस्था में देखु?
इसलिए मोहिते ने हिम्मत करते हुए सिर उठा कर तूलिका से पूछा.
‘तू आज का विचारत आहे हे प्रश्न? चार वर्षानंतर-’ ( ये सवाल तुम आज क्यों पूछ रही हो? चार साल बाद -)
इस सवाल का तूलिका ने जो जवाब दिया वो मोहिते के फ़रिश्तो ने भी सोचा न था… ]
मोहिते
‘मुझे इतना गुस्सा आया था की तेरे कान के नीचे दो बजाने वाली थी…’
तूलिका ने कहा. मोहिते सहम गया. तभी कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई. मोहिते उठ कर दरवाजे के पास गया. दरवाजा खोला तो बाहर शालिनी और जगदीश खड़े थे.
‘तूलिका अब कैसी है?’ जगदीश ने पूछा.
‘गरम.’ मोहिते के मुंह से निकल गया.
यह सुन शालिनी ने चिंतित हो कर कमरे में दाखिल होने एक कदम बढ़ा कर पूछा. ‘मतलब अभी भी बुखार उतरा नहीं?’
मोहिते को एहसास हुआ की उसने बोलने में लोचा मारा है. बात सम्भालते हुए उसने कहा.
‘नहीं पर उतर जाएगा, दवाई ले कर अभी सोई है…’
‘ओके, कोई जरूरत पड़े तो हम यहीं पर है….’
‘ओके, थैंक्स-’
शालिनी और जगदीश अपने कमरे की ओर आगे बढ़े. मोहिते ने दरवाजा बंद करके गहरी सांस ले कर तूलिका की और देखा. वो अब तक अपनी जांघ खोले हुए बैठी थी.
‘तो फिर तुमने मेरे कान के नीचे बजाया क्यों नहीं ?’ तूलिका के पास जा कर मोहिते ने पूछा.
‘मुझे पक्का पता नहीं चला की कौन देख रहा था. छेद में आंख लगाने वाले को तो सामने वाला साफ़ दीखता है पर छेद पर किसने आंख लगाईं है वो छेद के दूसरी ओर वाले को कैसे समझेगा ? मुझे शक हुआ की तू हो सकता है या फिर कोई और भी… पर कौन? मेरी सटक गई, और तेजी से कपडे पहन कर मैं तुझे पूछने बाहर आई. पर तब तक तू मोहल्ले में क्रिकेट खेलने निकल गया था…’
मोहिते को कुछ याद नहीं आया, पर वो अक्सर क्रिकेट खेलने जाता था. वो सुनता रहा.
तूलिका ने कहा. ‘उस शाम को तू देर तक आया नहीं -तेरे दोस्तों से पूछने पर पता चला की आज बड़ी मैच थी और सबको तु बहुत रन बनाएगा ऐसी उम्मीद थी पर तु ज़ीरो पर आउट हो गया इसलिए उदास है और महोल्ले में लौटने में तुझे शर्म आ रही है. तु देर रात तक नहीं आया और मेरी आंख लग गई, रात को अचानक मेरी आंख खुली तो तू मेरे तकिये के नीचे कुछ रख रहा था. मैंने तुझे रोककर पूछा की क्या रख रहा है तो तू बोला की कुछ पैसे है ताई -तुझे काम आएंगे… मैंने कहा मुझे नहीं चाहिए पैसे… तूने जिद की - तुझे कुछ पर्सनल लेना हो तो… आई से पैसे मत मांग वो अपने टेंशन में होती है - दे नहीं पाती, गुस्सा करती है अगर कुछ मांगा तो…मुझे तुम पर चिढ आ रही थी - मुझे पूछना था की तू बाथरूम के छेद से मुझे देख रहा था क्या पर उसके पहले ये पैसे की बात बीच में आ गई… मैंने झुंझलाकर तुझे कहा था - मेरी चप्पल की फ़िक्र मत कर - बाबा लेने वाले है नई चप्पल. तूने मेरी ओर देखा फिर कहा, ‘और कुछ टूट गया हो या फट गया हो तो पैसे काम आयेंगे …’ इतना बोल कर तू कमरे के बाहर चला गया था…जब तूने कहा की -कुछ टूट गया हो या फट गया हो तो काम आयेंगे - तब एकदम से मुझे याद आया की आज नहा कर ब्रा पहनते वक्त मैं फ़टी ब्रा देख कर दुखी हो गई थी… जब चप्पल टूट गई तब मां ने इतना डांट दिया था की नई ब्रा लेने की बात करने की हिम्मत नहीं हो रही थी…’
मोहिते तूलिका को देखता रह गया, तूलिका की आंखों में आंसू थे. उसने मोहिते का चेहरा थाम कर कहा. ‘तब मुझे यकीं हो गया की बाथरूम के छेद से तू ही देख रहा था, पर तू सिर्फ मेरा नंगा बदन नहीं देखता था - मेरे कपड़े भी देखता था और ताई फ़टी ब्रा न पहने यह फ़िक्र भी करता था… बंड्या कैसे गुस्सा करती तुझ पर… तू सिर्फ मेरे शरीर को देखता नहीं था - बल्कि दूसरे बुरी नजर से न देखें यह फ़िक्र भी करता था… दूसरे दिन सुबह मां ने जब मुझे पूछा की ‘बंड्या को नया बेट लेना है - कितने दिन से पैसे जमा कर रहा है - तेरे पास कुछ है क्या?’ ..... बंड्या! नई बेट के बिना तू मैच हारने तैयार था पर अपनी ताई की छाती की फ़िक्र तुझे अपनी जित से ज्यादा थी- तब मेरे जी में आया की मेरी ब्रा फाड़ कर तुझे मेरी छाती से चिपका दूं….’
कहते हुए तूलिका की आंखें फिर भर आई.
मोहिते को समझ में नहीं आया की क्या बोले. उसने तूलिका के आंसू पोंछते हुए कहा. ‘तू रो क्यों रही है ताई?’
‘इसलिए की मैंने सिर्फ सोचा की मेरी ब्रा फाड़ कर तुझे अपनी छाती से चिपकाऊंगी, पर ऐसा कर नहीं पाई… तू बाथरूम के छेद से मुझे देखता रहा, पर मेरी हिम्मत नहीं हुई की बाथरूम का दरवाजा खोल कर तुझे ये कहु की ‘बंड्या - छुप छुप कर मत देख - हक़ से देख- जो फ़र्ज़ समझता है उसका हक़ भी बनता है…’ मैं यह कभी नहीं कह पाई… और मेरी शादी हो गई… और फिर अचानक एक दिन तूने मेरे साथ बात करनी बंध कर दी…’
मोहिते के लिए यह सब बहुत चौंका देने वाला था.
‘तूने मुझसे बात क्यों बंद कर दी? मेरी क्या गलती थी?’
‘ताई, जब तेरी शादी हुई तो मुझसे सहन नहीं हुआ, जो शरीर मैं रोज देखता था उसे कोई और छू रहा है, प्यार कर रहा है यह सोच कर मैं पागल हो जाता था… तू सामने आती थी तो तुझे बांहों में जकड़ कर भगा ले जाने का मन करता था…. मेरे पागलपन में मैं तेरे साथ कहीं कुछ उल्टा सीधा न कर दूं इसलिए मैंने तुझसे मिलना और बात करना ही बंद कर दिया…’
‘वेडा रे वेडा माझा बावळट बंड्या….’ (पगला कहीं का मेरा भोला भैया…) कहते हुए तूलिका ने मोहिते को खींच कर गले लगा दिया.
मोहिते एकदम भावुक हो गया. उसके कान में तूलिका ने होले से कहा. ‘आज मेरे मन की मुराद मैं पूरी कर के रहूंगी बंड्या…’
और मोहिते पूछे की कौनसी मुराद उससे पहले तूलिका ने अपना ब्लाउज़ खोल कर ,ब्रा फाड़ कार मोहिते का चहेरा अपने नग्न स्तनों में रगड़ना शुरू कर दिया…
***
जुगल
‘मैं आपको आगाह कर देना चाहता हूं मैं सम्मोहन थेरेपी से आपकी पत्नी का उपचार करूंगा. तेजी से रिजल्ट लाने में यह थेरेपी हेल्प कर सकती है. और मुझे आपका इस में सहयोग चाहिए.’
डॉ. प्रियदर्शी ने जुगल से कहा.
‘मुझे क्या करना होगा?’
‘आप को एक समझदार और प्रेमपूर्ण पति बन कर आपकी पत्नी को ठीक होने में एक्टिव सहयोग देना होगा.’
‘एक्टिव सहयोग?’
‘हम आपकी पत्नी के अतीत में जा कर उसकी फिलहाल की मानसिक स्थिति की दुर्दशा के मूल खोजने की कोशिश करेंगे. मी. रस्तोगी, ऐसा करने से कई अनजाने और कड़वे सच सामने आयेंगे। आपको उसे सहना होगा और अपनी पत्नी के प्रति स्नेह बनाये रखना होगा. किसी मोड़ पर आपके मेंटल और फिजिकल सपोर्ट की जरूरत भी पड सकती है…’
‘जी, मैं हर तरीके से को-ऑपरेट करूंगा डॉक्टर.’
‘गुड़. प्लीज़ बाहर जा कर आपकी पत्नी को ले आइए. हम पहला सेशन अभी शुरू करते है.’
जुगल धड़कते दिल के साथ चांदनी को लेने केबिन के बाहर गया.
***
जगदीश
रिसोर्ट देख शालिनी बहुत खुश हो गई.
‘यहां रुकेंगे हम भैया ? कितनी खूबसूरत जगह है - सच में यह तो कमाल का सरप्राइज़ है.’
जगदीश मुस्कुराकर बोला. ‘हां, दो दिन हमें यहां रुकना होगा. फिर डॉक्टर तुम्हे जांच ले उसके बाद मुंबई चले जायेंगे. ठीक है?’
‘ठीक नहीं, बढ़िया है.’
पलंग पर छोटे बच्चे की तरह बैठे बैठे हलके जम्प लेते हुए शालिनी बोली. ऐसा करने से उसकी कमीज़ में ब्रा हिन् स्तन सागर की मौज की तरह उछल रहे थे. जगदीश ने मुश्किल से अपनी नजरों पर काबू करते हुए शालिनी से कहा. ‘अब तुम थोड़ा आराम करो. मैं बाहर बालकनी में बैठता हूं.’
‘जहां जा कर बैठना हो बैठना पर अपना सरप्राइज़ भी तो देख लो!’ कहते हुए शालिनी ने प्लास्टिक की बड़ी बेग जगदीश के हाथों में थमा दी. जगदीश ने देखा तो उसके लिए चार पेंट, पांच शर्ट, दो बरम्यूडा, और चार अंडरवियर थे….’
‘अरे!’ जगदीश ने आश्चर्यचकित होकर पूछा. ‘अस्पताल के बेड पर पड़े पड़े कैसे यह शॉपिंग कर ली?’
‘वही तो सरप्राइज़ है भैया…’ शालिनी चमकते चहेरे के साथ बोली.
‘सब के कलर तो बढ़िया है शालिनी पर साइज़…?’
‘मेरा अंदाजा गलत तो नहीं होगा पर आप ट्राई कर लो-’
‘अभी करता हूं , ये कपडे पहने हुए काफी समय हो गया है…’ कह कर जगदीश दूसरे कमरे में जाने लगा.
‘भैया…’ शालिनी ने कहा.
जगदीश ने मुड़ कर देखा.
‘मेरी बात मानो तो अंडरवियर ट्राई मत करो, अभी आपको पहनना नहीं है…’
‘वैसे अब मैं ठीक हूं शालिनी…’
‘भगवान करे आप हमेशा ठीक रहे पर अभी अभी ठीक हुआ है वो हिस्सा…सो कुछ समय उन पर कोई दबाव न आये तो बेहतर….’
जगदीश को लगा की यह भी ठीक है. उसने मुस्कुराकर कहा. ‘ठीक, जो हुक्म रानी साहिबा का.’
शालिनी शरमाते हुए बोली. ‘मैं रानी नहीं, दासी हूं.’
जगदीश यह सुन कुछ बोल नहीं पाया. कपडे ट्राई करने चला गया.
***
मोहिते
तूलिका के उन्मुक्त स्तनों में अपना चहेरा रगड़ रगड़ कर मोहिते पागल हो गया. बारी बारी तूलिका के दोनों निपलों को चूसा, चाटा, फिर हलके से काटते हुए उसने नजरे उठा कर अपनी ताई की ओर देखा तब तूलिका ने हंस कर कहा. ‘बंड्या, देखता क्या है? तू इनको काट के अपने साथ ले जा तब भी मना नहीं करूंगी…’
इस बात से उत्तेजित हो कर मोहिते ने स्तनों को छोड़ तूलिका के होठ चूसने शुरू किये. होठ चूसते चूसते मोहिते ने तूलिका को पलंग पर अपने साथ लेटा दिया और अपने दोनों पैरो की कैंची में तूलिका के बदन को जकड़ लिया.तूलिका मुस्कुराने लगी.
‘हंस क्यों रही हो?’ मोहिते ने पूछा.
‘सोच रही थी बुखार उतरा तो भाई चढ़ गया…’ तूलिका मोहिते का चहेरा अपने चहेरे के साथ रगड़ते हुए बोली.
मोहिते ने कहा. ‘तू है ही ऐसी ताई, कोई भी चढ़ना चाहेगा…’
‘मेल्या… तू कोई नहीं,भाई है…’
‘ताई, मुझे अब भी मेरे नसीब पर यकीन नहीं हो रहा, क्या सच में तू बिना कपड़ो के मेरी बांहो में है?’
‘बुद्धू, मेरे चूचक के तने हुए निपल तेरी छाती में कील की तरह चुभ नहीं रहे क्या?
ऐसा पागलों की तरह चीखते हुए मोहिते तूलिका के बदन से जोंक की तरह चिपक गया. तूलिका को सांस लेने में तकलीफ होने लगी पर उसने तय किया था कि आज वो भाई को किसी बात से मना नहीं करेगी, भले वो उसे रौंद डाले…
***
जगदीश
जगदीश ने शालिनी के पास आ कर कहा. ‘थेंक यु शालिनी, सभी कपडे एकदम परफेक्ट साइज़ के है.’
‘चार दिनों में क्या कमाल हो गया भैया.’ शालिनी ने कहा. ‘मुंबई से निकले तब हम एक दूसरे की ओर देखने से हिचकिचाते थे और अब एक दूसरे के कपड़ो की साइज़ जुबानी हो गई है!’
जगदीश ने कहा. ‘हां शालिनी, ये तो सोचा न था…’ फिर सारे कपडे समेटते हुए आगे कहा. ‘अब तुम थोड़ा आराम कर लो, फिर तुम्हे दवाई लगानी है.’
‘भैया, अब की बार मुझे उल्लू मत बनाना, मेरे सामने दवाई लगाना -बोल देती हूं.’
‘तो आप ऐसी दासी हो जो हुकुम करती है?’ जगदीश ने हंस कर पूछा.
‘ओह भैया…’ कहते हुए लजा कर शालिनी ने अपना मुंह तकिये में छिपा लिया.
जगदीश हंस कर कपड़े ले कर वहां से चला गया.
***
मोहिते
मोहिते का जोश थोड़ा नरम पड़ा तब तूलिका ने अपने आप को उससे अलग करते हुए कहा.
‘मैं कहीं भागी नहीं जा रही भाई, थोड़ा आराम से.’
मोहिए झेंप गया और तूलिका से खुद को अलग कर पलंग पर से उठ कर खड़ा हुआ.
तूलिका भी पलंग पर से उतर कर खड़ी हुई और एक अंगड़ाई ली. मोहिते मंत्रमुग्ध हो कर तूलिका को देखता रह गया. तूलिका के बाल बिखरे हुए थे, आंसुओं के कारण काजल बह कर गालो पर फैला हुआ था जैसे किसी बच्चे ने रंग बिखेरा हो. तूलिका के होठ लगातार चूमने की वजह से भीग भीग कर और भी मनमोहक हो गए थे. अंगड़ाई लेते हुए तूलिका के उठे हुए दोनों हाथ उसकी अंग भंगिमा को अत्यंत आकर्षक बना रहे थे. उसका ब्लाउज़ खुला हुआ, ब्रा फटी हुई और उनमे से तने हुए स्तन यूं झांक रहे थे जैसे बिल में से दो खरगोश अपना मुंह बाहर निकाल कर दुनिया का नजारा कर रहे हो…नीचे कमर पर पहने पेटीकोट पर इतनी सिलवटे थी की मोहिते को लगा जैसे क्रिकेट का मैदान किसी ने बेतरतीबी से खोद डाला हो…
‘कशी वाटते ताई?’ मोहिते को यूं एकटक देखता हुआ देख तूलिका ने पूछा.
‘अप्सरा.’ मोहिते ने कहा.
‘जब बाथरूम के छेद से तू मुझे देखता था वैसी या अलग?’
‘बहुत अलग.’
‘क्या अलग? अब मोटी हो गई हूं ?’
‘ताई, तू मोटी नहीं हुई, अब तेरा बदन भर गया है… ये मम्मे तब तोतापुरी आम जैसे कुछ लंबे से थे जो अब हापुस आम जैसे गोल गोल हो गए है.’
‘और बताओ…’
‘और कुछ नहीं - कॉमेंट्री ख़तम.’
‘क्यों? और कुछ नहीं बोलने जैसा?’ तूलिका को आघात लगा.
‘और कुछ दिख ही नहीं रहा ताई…बाथरूम में तो तिजोरी के सारे दराज खुले होते थे - यहां तो सब ढका ढका है…’
‘हलकट… बेशर्म…’ तूलिका ने कृत्रिम गुस्से से कहा.
‘बस क्या ताई? छुप छुप कर देखता था तब सब दिखाती थी! अब सामने हूं तो सेंसर कर दिया?’
‘पागल है क्या? लड़की हूं, लाज तो आयेगी ना?’
‘ठीक है, तो मैं बाहर जाऊं?’ मोहिते ने पूछा.
यह सुन कर तूलिका एकदम से मोहिते के पास तेजी से जा कर चिपक जाते हुए बोली.
‘नहीं भाई तुझे बाहर नहीं, अब अंदर जाना है - इतना अंदर की बाहर की सारी दुनिया को हम दोनों भूल जाये…’
[(३४ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा : तो दीदी ने कभी उसे डांटा क्यों नहीं?
-क्या दीदी भी चाहती थी की मैं उसे नग्न अवस्था में देखु?
इसलिए मोहिते ने हिम्मत करते हुए सिर उठा कर तूलिका से पूछा.
‘तू आज का विचारत आहे हे प्रश्न? चार वर्षानंतर-’ ( ये सवाल तुम आज क्यों पूछ रही हो? चार साल बाद -)
इस सवाल का तूलिका ने जो जवाब दिया वो मोहिते के फ़रिश्तो ने भी सोचा न था… ]
मोहिते
‘मुझे इतना गुस्सा आया था की तेरे कान के नीचे दो बजाने वाली थी…’
तूलिका ने कहा. मोहिते सहम गया. तभी कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई. मोहिते उठ कर दरवाजे के पास गया. दरवाजा खोला तो बाहर शालिनी और जगदीश खड़े थे.
‘तूलिका अब कैसी है?’ जगदीश ने पूछा.
‘गरम.’ मोहिते के मुंह से निकल गया.
यह सुन शालिनी ने चिंतित हो कर कमरे में दाखिल होने एक कदम बढ़ा कर पूछा. ‘मतलब अभी भी बुखार उतरा नहीं?’
मोहिते को एहसास हुआ की उसने बोलने में लोचा मारा है. बात सम्भालते हुए उसने कहा.
‘नहीं पर उतर जाएगा, दवाई ले कर अभी सोई है…’
‘ओके, कोई जरूरत पड़े तो हम यहीं पर है….’
‘ओके, थैंक्स-’
शालिनी और जगदीश अपने कमरे की ओर आगे बढ़े. मोहिते ने दरवाजा बंद करके गहरी सांस ले कर तूलिका की और देखा. वो अब तक अपनी जांघ खोले हुए बैठी थी.
‘तो फिर तुमने मेरे कान के नीचे बजाया क्यों नहीं ?’ तूलिका के पास जा कर मोहिते ने पूछा.
‘मुझे पक्का पता नहीं चला की कौन देख रहा था. छेद में आंख लगाने वाले को तो सामने वाला साफ़ दीखता है पर छेद पर किसने आंख लगाईं है वो छेद के दूसरी ओर वाले को कैसे समझेगा ? मुझे शक हुआ की तू हो सकता है या फिर कोई और भी… पर कौन? मेरी सटक गई, और तेजी से कपडे पहन कर मैं तुझे पूछने बाहर आई. पर तब तक तू मोहल्ले में क्रिकेट खेलने निकल गया था…’
मोहिते को कुछ याद नहीं आया, पर वो अक्सर क्रिकेट खेलने जाता था. वो सुनता रहा.
तूलिका ने कहा. ‘उस शाम को तू देर तक आया नहीं -तेरे दोस्तों से पूछने पर पता चला की आज बड़ी मैच थी और सबको तु बहुत रन बनाएगा ऐसी उम्मीद थी पर तु ज़ीरो पर आउट हो गया इसलिए उदास है और महोल्ले में लौटने में तुझे शर्म आ रही है. तु देर रात तक नहीं आया और मेरी आंख लग गई, रात को अचानक मेरी आंख खुली तो तू मेरे तकिये के नीचे कुछ रख रहा था. मैंने तुझे रोककर पूछा की क्या रख रहा है तो तू बोला की कुछ पैसे है ताई -तुझे काम आएंगे… मैंने कहा मुझे नहीं चाहिए पैसे… तूने जिद की - तुझे कुछ पर्सनल लेना हो तो… आई से पैसे मत मांग वो अपने टेंशन में होती है - दे नहीं पाती, गुस्सा करती है अगर कुछ मांगा तो…मुझे तुम पर चिढ आ रही थी - मुझे पूछना था की तू बाथरूम के छेद से मुझे देख रहा था क्या पर उसके पहले ये पैसे की बात बीच में आ गई… मैंने झुंझलाकर तुझे कहा था - मेरी चप्पल की फ़िक्र मत कर - बाबा लेने वाले है नई चप्पल. तूने मेरी ओर देखा फिर कहा, ‘और कुछ टूट गया हो या फट गया हो तो पैसे काम आयेंगे …’ इतना बोल कर तू कमरे के बाहर चला गया था…जब तूने कहा की -कुछ टूट गया हो या फट गया हो तो काम आयेंगे - तब एकदम से मुझे याद आया की आज नहा कर ब्रा पहनते वक्त मैं फ़टी ब्रा देख कर दुखी हो गई थी… जब चप्पल टूट गई तब मां ने इतना डांट दिया था की नई ब्रा लेने की बात करने की हिम्मत नहीं हो रही थी…’
मोहिते तूलिका को देखता रह गया, तूलिका की आंखों में आंसू थे. उसने मोहिते का चेहरा थाम कर कहा. ‘तब मुझे यकीं हो गया की बाथरूम के छेद से तू ही देख रहा था, पर तू सिर्फ मेरा नंगा बदन नहीं देखता था - मेरे कपड़े भी देखता था और ताई फ़टी ब्रा न पहने यह फ़िक्र भी करता था… बंड्या कैसे गुस्सा करती तुझ पर… तू सिर्फ मेरे शरीर को देखता नहीं था - बल्कि दूसरे बुरी नजर से न देखें यह फ़िक्र भी करता था… दूसरे दिन सुबह मां ने जब मुझे पूछा की ‘बंड्या को नया बेट लेना है - कितने दिन से पैसे जमा कर रहा है - तेरे पास कुछ है क्या?’ ..... बंड्या! नई बेट के बिना तू मैच हारने तैयार था पर अपनी ताई की छाती की फ़िक्र तुझे अपनी जित से ज्यादा थी- तब मेरे जी में आया की मेरी ब्रा फाड़ कर तुझे मेरी छाती से चिपका दूं….’
कहते हुए तूलिका की आंखें फिर भर आई.
मोहिते को समझ में नहीं आया की क्या बोले. उसने तूलिका के आंसू पोंछते हुए कहा. ‘तू रो क्यों रही है ताई?’
‘इसलिए की मैंने सिर्फ सोचा की मेरी ब्रा फाड़ कर तुझे अपनी छाती से चिपकाऊंगी, पर ऐसा कर नहीं पाई… तू बाथरूम के छेद से मुझे देखता रहा, पर मेरी हिम्मत नहीं हुई की बाथरूम का दरवाजा खोल कर तुझे ये कहु की ‘बंड्या - छुप छुप कर मत देख - हक़ से देख- जो फ़र्ज़ समझता है उसका हक़ भी बनता है…’ मैं यह कभी नहीं कह पाई… और मेरी शादी हो गई… और फिर अचानक एक दिन तूने मेरे साथ बात करनी बंध कर दी…’
मोहिते के लिए यह सब बहुत चौंका देने वाला था.
‘तूने मुझसे बात क्यों बंद कर दी? मेरी क्या गलती थी?’
‘ताई, जब तेरी शादी हुई तो मुझसे सहन नहीं हुआ, जो शरीर मैं रोज देखता था उसे कोई और छू रहा है, प्यार कर रहा है यह सोच कर मैं पागल हो जाता था… तू सामने आती थी तो तुझे बांहों में जकड़ कर भगा ले जाने का मन करता था…. मेरे पागलपन में मैं तेरे साथ कहीं कुछ उल्टा सीधा न कर दूं इसलिए मैंने तुझसे मिलना और बात करना ही बंद कर दिया…’
‘वेडा रे वेडा माझा बावळट बंड्या….’ (पगला कहीं का मेरा भोला भैया…) कहते हुए तूलिका ने मोहिते को खींच कर गले लगा दिया.
मोहिते एकदम भावुक हो गया. उसके कान में तूलिका ने होले से कहा. ‘आज मेरे मन की मुराद मैं पूरी कर के रहूंगी बंड्या…’
और मोहिते पूछे की कौनसी मुराद उससे पहले तूलिका ने अपना ब्लाउज़ खोल कर ,ब्रा फाड़ कार मोहिते का चहेरा अपने नग्न स्तनों में रगड़ना शुरू कर दिया…
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जुगल
‘मैं आपको आगाह कर देना चाहता हूं मैं सम्मोहन थेरेपी से आपकी पत्नी का उपचार करूंगा. तेजी से रिजल्ट लाने में यह थेरेपी हेल्प कर सकती है. और मुझे आपका इस में सहयोग चाहिए.’
डॉ. प्रियदर्शी ने जुगल से कहा.
‘मुझे क्या करना होगा?’
‘आप को एक समझदार और प्रेमपूर्ण पति बन कर आपकी पत्नी को ठीक होने में एक्टिव सहयोग देना होगा.’
‘एक्टिव सहयोग?’
‘हम आपकी पत्नी के अतीत में जा कर उसकी फिलहाल की मानसिक स्थिति की दुर्दशा के मूल खोजने की कोशिश करेंगे. मी. रस्तोगी, ऐसा करने से कई अनजाने और कड़वे सच सामने आयेंगे। आपको उसे सहना होगा और अपनी पत्नी के प्रति स्नेह बनाये रखना होगा. किसी मोड़ पर आपके मेंटल और फिजिकल सपोर्ट की जरूरत भी पड सकती है…’
‘जी, मैं हर तरीके से को-ऑपरेट करूंगा डॉक्टर.’
‘गुड़. प्लीज़ बाहर जा कर आपकी पत्नी को ले आइए. हम पहला सेशन अभी शुरू करते है.’
जुगल धड़कते दिल के साथ चांदनी को लेने केबिन के बाहर गया.
***
जगदीश
रिसोर्ट देख शालिनी बहुत खुश हो गई.
‘यहां रुकेंगे हम भैया ? कितनी खूबसूरत जगह है - सच में यह तो कमाल का सरप्राइज़ है.’
जगदीश मुस्कुराकर बोला. ‘हां, दो दिन हमें यहां रुकना होगा. फिर डॉक्टर तुम्हे जांच ले उसके बाद मुंबई चले जायेंगे. ठीक है?’
‘ठीक नहीं, बढ़िया है.’
पलंग पर छोटे बच्चे की तरह बैठे बैठे हलके जम्प लेते हुए शालिनी बोली. ऐसा करने से उसकी कमीज़ में ब्रा हिन् स्तन सागर की मौज की तरह उछल रहे थे. जगदीश ने मुश्किल से अपनी नजरों पर काबू करते हुए शालिनी से कहा. ‘अब तुम थोड़ा आराम करो. मैं बाहर बालकनी में बैठता हूं.’
‘जहां जा कर बैठना हो बैठना पर अपना सरप्राइज़ भी तो देख लो!’ कहते हुए शालिनी ने प्लास्टिक की बड़ी बेग जगदीश के हाथों में थमा दी. जगदीश ने देखा तो उसके लिए चार पेंट, पांच शर्ट, दो बरम्यूडा, और चार अंडरवियर थे….’
‘अरे!’ जगदीश ने आश्चर्यचकित होकर पूछा. ‘अस्पताल के बेड पर पड़े पड़े कैसे यह शॉपिंग कर ली?’
‘वही तो सरप्राइज़ है भैया…’ शालिनी चमकते चहेरे के साथ बोली.
‘सब के कलर तो बढ़िया है शालिनी पर साइज़…?’
‘मेरा अंदाजा गलत तो नहीं होगा पर आप ट्राई कर लो-’
‘अभी करता हूं , ये कपडे पहने हुए काफी समय हो गया है…’ कह कर जगदीश दूसरे कमरे में जाने लगा.
‘भैया…’ शालिनी ने कहा.
जगदीश ने मुड़ कर देखा.
‘मेरी बात मानो तो अंडरवियर ट्राई मत करो, अभी आपको पहनना नहीं है…’
‘वैसे अब मैं ठीक हूं शालिनी…’
‘भगवान करे आप हमेशा ठीक रहे पर अभी अभी ठीक हुआ है वो हिस्सा…सो कुछ समय उन पर कोई दबाव न आये तो बेहतर….’
जगदीश को लगा की यह भी ठीक है. उसने मुस्कुराकर कहा. ‘ठीक, जो हुक्म रानी साहिबा का.’
शालिनी शरमाते हुए बोली. ‘मैं रानी नहीं, दासी हूं.’
जगदीश यह सुन कुछ बोल नहीं पाया. कपडे ट्राई करने चला गया.
***
मोहिते
तूलिका के उन्मुक्त स्तनों में अपना चहेरा रगड़ रगड़ कर मोहिते पागल हो गया. बारी बारी तूलिका के दोनों निपलों को चूसा, चाटा, फिर हलके से काटते हुए उसने नजरे उठा कर अपनी ताई की ओर देखा तब तूलिका ने हंस कर कहा. ‘बंड्या, देखता क्या है? तू इनको काट के अपने साथ ले जा तब भी मना नहीं करूंगी…’
इस बात से उत्तेजित हो कर मोहिते ने स्तनों को छोड़ तूलिका के होठ चूसने शुरू किये. होठ चूसते चूसते मोहिते ने तूलिका को पलंग पर अपने साथ लेटा दिया और अपने दोनों पैरो की कैंची में तूलिका के बदन को जकड़ लिया.तूलिका मुस्कुराने लगी.
‘हंस क्यों रही हो?’ मोहिते ने पूछा.
‘सोच रही थी बुखार उतरा तो भाई चढ़ गया…’ तूलिका मोहिते का चहेरा अपने चहेरे के साथ रगड़ते हुए बोली.
मोहिते ने कहा. ‘तू है ही ऐसी ताई, कोई भी चढ़ना चाहेगा…’
‘मेल्या… तू कोई नहीं,भाई है…’
‘ताई, मुझे अब भी मेरे नसीब पर यकीन नहीं हो रहा, क्या सच में तू बिना कपड़ो के मेरी बांहो में है?’
‘बुद्धू, मेरे चूचक के तने हुए निपल तेरी छाती में कील की तरह चुभ नहीं रहे क्या?
ऐसा पागलों की तरह चीखते हुए मोहिते तूलिका के बदन से जोंक की तरह चिपक गया. तूलिका को सांस लेने में तकलीफ होने लगी पर उसने तय किया था कि आज वो भाई को किसी बात से मना नहीं करेगी, भले वो उसे रौंद डाले…
***
जगदीश
जगदीश ने शालिनी के पास आ कर कहा. ‘थेंक यु शालिनी, सभी कपडे एकदम परफेक्ट साइज़ के है.’
‘चार दिनों में क्या कमाल हो गया भैया.’ शालिनी ने कहा. ‘मुंबई से निकले तब हम एक दूसरे की ओर देखने से हिचकिचाते थे और अब एक दूसरे के कपड़ो की साइज़ जुबानी हो गई है!’
जगदीश ने कहा. ‘हां शालिनी, ये तो सोचा न था…’ फिर सारे कपडे समेटते हुए आगे कहा. ‘अब तुम थोड़ा आराम कर लो, फिर तुम्हे दवाई लगानी है.’
‘भैया, अब की बार मुझे उल्लू मत बनाना, मेरे सामने दवाई लगाना -बोल देती हूं.’
‘तो आप ऐसी दासी हो जो हुकुम करती है?’ जगदीश ने हंस कर पूछा.
‘ओह भैया…’ कहते हुए लजा कर शालिनी ने अपना मुंह तकिये में छिपा लिया.
जगदीश हंस कर कपड़े ले कर वहां से चला गया.
***
मोहिते
मोहिते का जोश थोड़ा नरम पड़ा तब तूलिका ने अपने आप को उससे अलग करते हुए कहा.
‘मैं कहीं भागी नहीं जा रही भाई, थोड़ा आराम से.’
मोहिए झेंप गया और तूलिका से खुद को अलग कर पलंग पर से उठ कर खड़ा हुआ.
तूलिका भी पलंग पर से उतर कर खड़ी हुई और एक अंगड़ाई ली. मोहिते मंत्रमुग्ध हो कर तूलिका को देखता रह गया. तूलिका के बाल बिखरे हुए थे, आंसुओं के कारण काजल बह कर गालो पर फैला हुआ था जैसे किसी बच्चे ने रंग बिखेरा हो. तूलिका के होठ लगातार चूमने की वजह से भीग भीग कर और भी मनमोहक हो गए थे. अंगड़ाई लेते हुए तूलिका के उठे हुए दोनों हाथ उसकी अंग भंगिमा को अत्यंत आकर्षक बना रहे थे. उसका ब्लाउज़ खुला हुआ, ब्रा फटी हुई और उनमे से तने हुए स्तन यूं झांक रहे थे जैसे बिल में से दो खरगोश अपना मुंह बाहर निकाल कर दुनिया का नजारा कर रहे हो…नीचे कमर पर पहने पेटीकोट पर इतनी सिलवटे थी की मोहिते को लगा जैसे क्रिकेट का मैदान किसी ने बेतरतीबी से खोद डाला हो…
‘कशी वाटते ताई?’ मोहिते को यूं एकटक देखता हुआ देख तूलिका ने पूछा.
‘अप्सरा.’ मोहिते ने कहा.
‘जब बाथरूम के छेद से तू मुझे देखता था वैसी या अलग?’
‘बहुत अलग.’
‘क्या अलग? अब मोटी हो गई हूं ?’
‘ताई, तू मोटी नहीं हुई, अब तेरा बदन भर गया है… ये मम्मे तब तोतापुरी आम जैसे कुछ लंबे से थे जो अब हापुस आम जैसे गोल गोल हो गए है.’
‘और बताओ…’
‘और कुछ नहीं - कॉमेंट्री ख़तम.’
‘क्यों? और कुछ नहीं बोलने जैसा?’ तूलिका को आघात लगा.
‘और कुछ दिख ही नहीं रहा ताई…बाथरूम में तो तिजोरी के सारे दराज खुले होते थे - यहां तो सब ढका ढका है…’
‘हलकट… बेशर्म…’ तूलिका ने कृत्रिम गुस्से से कहा.
‘बस क्या ताई? छुप छुप कर देखता था तब सब दिखाती थी! अब सामने हूं तो सेंसर कर दिया?’
‘पागल है क्या? लड़की हूं, लाज तो आयेगी ना?’
‘ठीक है, तो मैं बाहर जाऊं?’ मोहिते ने पूछा.
यह सुन कर तूलिका एकदम से मोहिते के पास तेजी से जा कर चिपक जाते हुए बोली.
‘नहीं भाई तुझे बाहर नहीं, अब अंदर जाना है - इतना अंदर की बाहर की सारी दुनिया को हम दोनों भूल जाये…’
[(३४ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा : तो दीदी ने कभी उसे डांटा क्यों नहीं?
-क्या दीदी भी चाहती थी की मैं उसे नग्न अवस्था में देखु?
इसलिए मोहिते ने हिम्मत करते हुए सिर उठा कर तूलिका से पूछा.
‘तू आज का विचारत आहे हे प्रश्न? चार वर्षानंतर-’ ( ये सवाल तुम आज क्यों पूछ रही हो? चार साल बाद -)
इस सवाल का तूलिका ने जो जवाब दिया वो मोहिते के फ़रिश्तो ने भी सोचा न था… ]
मोहिते
‘मुझे इतना गुस्सा आया था की तेरे कान के नीचे दो बजाने वाली थी…’
तूलिका ने कहा. मोहिते सहम गया. तभी कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई. मोहिते उठ कर दरवाजे के पास गया. दरवाजा खोला तो बाहर शालिनी और जगदीश खड़े थे.
‘तूलिका अब कैसी है?’ जगदीश ने पूछा.
‘गरम.’ मोहिते के मुंह से निकल गया.
यह सुन शालिनी ने चिंतित हो कर कमरे में दाखिल होने एक कदम बढ़ा कर पूछा. ‘मतलब अभी भी बुखार उतरा नहीं?’
मोहिते को एहसास हुआ की उसने बोलने में लोचा मारा है. बात सम्भालते हुए उसने कहा.
‘नहीं पर उतर जाएगा, दवाई ले कर अभी सोई है…’
‘ओके, कोई जरूरत पड़े तो हम यहीं पर है….’
‘ओके, थैंक्स-’
शालिनी और जगदीश अपने कमरे की ओर आगे बढ़े. मोहिते ने दरवाजा बंद करके गहरी सांस ले कर तूलिका की और देखा. वो अब तक अपनी जांघ खोले हुए बैठी थी.
‘तो फिर तुमने मेरे कान के नीचे बजाया क्यों नहीं ?’ तूलिका के पास जा कर मोहिते ने पूछा.
‘मुझे पक्का पता नहीं चला की कौन देख रहा था. छेद में आंख लगाने वाले को तो सामने वाला साफ़ दीखता है पर छेद पर किसने आंख लगाईं है वो छेद के दूसरी ओर वाले को कैसे समझेगा ? मुझे शक हुआ की तू हो सकता है या फिर कोई और भी… पर कौन? मेरी सटक गई, और तेजी से कपडे पहन कर मैं तुझे पूछने बाहर आई. पर तब तक तू मोहल्ले में क्रिकेट खेलने निकल गया था…’
मोहिते को कुछ याद नहीं आया, पर वो अक्सर क्रिकेट खेलने जाता था. वो सुनता रहा.
तूलिका ने कहा. ‘उस शाम को तू देर तक आया नहीं -तेरे दोस्तों से पूछने पर पता चला की आज बड़ी मैच थी और सबको तु बहुत रन बनाएगा ऐसी उम्मीद थी पर तु ज़ीरो पर आउट हो गया इसलिए उदास है और महोल्ले में लौटने में तुझे शर्म आ रही है. तु देर रात तक नहीं आया और मेरी आंख लग गई, रात को अचानक मेरी आंख खुली तो तू मेरे तकिये के नीचे कुछ रख रहा था. मैंने तुझे रोककर पूछा की क्या रख रहा है तो तू बोला की कुछ पैसे है ताई -तुझे काम आएंगे… मैंने कहा मुझे नहीं चाहिए पैसे… तूने जिद की - तुझे कुछ पर्सनल लेना हो तो… आई से पैसे मत मांग वो अपने टेंशन में होती है - दे नहीं पाती, गुस्सा करती है अगर कुछ मांगा तो…मुझे तुम पर चिढ आ रही थी - मुझे पूछना था की तू बाथरूम के छेद से मुझे देख रहा था क्या पर उसके पहले ये पैसे की बात बीच में आ गई… मैंने झुंझलाकर तुझे कहा था - मेरी चप्पल की फ़िक्र मत कर - बाबा लेने वाले है नई चप्पल. तूने मेरी ओर देखा फिर कहा, ‘और कुछ टूट गया हो या फट गया हो तो पैसे काम आयेंगे …’ इतना बोल कर तू कमरे के बाहर चला गया था…जब तूने कहा की -कुछ टूट गया हो या फट गया हो तो काम आयेंगे - तब एकदम से मुझे याद आया की आज नहा कर ब्रा पहनते वक्त मैं फ़टी ब्रा देख कर दुखी हो गई थी… जब चप्पल टूट गई तब मां ने इतना डांट दिया था की नई ब्रा लेने की बात करने की हिम्मत नहीं हो रही थी…’
मोहिते तूलिका को देखता रह गया, तूलिका की आंखों में आंसू थे. उसने मोहिते का चेहरा थाम कर कहा. ‘तब मुझे यकीं हो गया की बाथरूम के छेद से तू ही देख रहा था, पर तू सिर्फ मेरा नंगा बदन नहीं देखता था - मेरे कपड़े भी देखता था और ताई फ़टी ब्रा न पहने यह फ़िक्र भी करता था… बंड्या कैसे गुस्सा करती तुझ पर… तू सिर्फ मेरे शरीर को देखता नहीं था - बल्कि दूसरे बुरी नजर से न देखें यह फ़िक्र भी करता था… दूसरे दिन सुबह मां ने जब मुझे पूछा की ‘बंड्या को नया बेट लेना है - कितने दिन से पैसे जमा कर रहा है - तेरे पास कुछ है क्या?’ ..... बंड्या! नई बेट के बिना तू मैच हारने तैयार था पर अपनी ताई की छाती की फ़िक्र तुझे अपनी जित से ज्यादा थी- तब मेरे जी में आया की मेरी ब्रा फाड़ कर तुझे मेरी छाती से चिपका दूं….’
कहते हुए तूलिका की आंखें फिर भर आई.
मोहिते को समझ में नहीं आया की क्या बोले. उसने तूलिका के आंसू पोंछते हुए कहा. ‘तू रो क्यों रही है ताई?’
‘इसलिए की मैंने सिर्फ सोचा की मेरी ब्रा फाड़ कर तुझे अपनी छाती से चिपकाऊंगी, पर ऐसा कर नहीं पाई… तू बाथरूम के छेद से मुझे देखता रहा, पर मेरी हिम्मत नहीं हुई की बाथरूम का दरवाजा खोल कर तुझे ये कहु की ‘बंड्या - छुप छुप कर मत देख - हक़ से देख- जो फ़र्ज़ समझता है उसका हक़ भी बनता है…’ मैं यह कभी नहीं कह पाई… और मेरी शादी हो गई… और फिर अचानक एक दिन तूने मेरे साथ बात करनी बंध कर दी…’
मोहिते के लिए यह सब बहुत चौंका देने वाला था.
‘तूने मुझसे बात क्यों बंद कर दी? मेरी क्या गलती थी?’
‘ताई, जब तेरी शादी हुई तो मुझसे सहन नहीं हुआ, जो शरीर मैं रोज देखता था उसे कोई और छू रहा है, प्यार कर रहा है यह सोच कर मैं पागल हो जाता था… तू सामने आती थी तो तुझे बांहों में जकड़ कर भगा ले जाने का मन करता था…. मेरे पागलपन में मैं तेरे साथ कहीं कुछ उल्टा सीधा न कर दूं इसलिए मैंने तुझसे मिलना और बात करना ही बंद कर दिया…’
‘वेडा रे वेडा माझा बावळट बंड्या….’ (पगला कहीं का मेरा भोला भैया…) कहते हुए तूलिका ने मोहिते को खींच कर गले लगा दिया.
मोहिते एकदम भावुक हो गया. उसके कान में तूलिका ने होले से कहा. ‘आज मेरे मन की मुराद मैं पूरी कर के रहूंगी बंड्या…’
और मोहिते पूछे की कौनसी मुराद उससे पहले तूलिका ने अपना ब्लाउज़ खोल कर ,ब्रा फाड़ कार मोहिते का चहेरा अपने नग्न स्तनों में रगड़ना शुरू कर दिया…
***
जुगल
‘मैं आपको आगाह कर देना चाहता हूं मैं सम्मोहन थेरेपी से आपकी पत्नी का उपचार करूंगा. तेजी से रिजल्ट लाने में यह थेरेपी हेल्प कर सकती है. और मुझे आपका इस में सहयोग चाहिए.’
डॉ. प्रियदर्शी ने जुगल से कहा.
‘मुझे क्या करना होगा?’
‘आप को एक समझदार और प्रेमपूर्ण पति बन कर आपकी पत्नी को ठीक होने में एक्टिव सहयोग देना होगा.’
‘एक्टिव सहयोग?’
‘हम आपकी पत्नी के अतीत में जा कर उसकी फिलहाल की मानसिक स्थिति की दुर्दशा के मूल खोजने की कोशिश करेंगे. मी. रस्तोगी, ऐसा करने से कई अनजाने और कड़वे सच सामने आयेंगे। आपको उसे सहना होगा और अपनी पत्नी के प्रति स्नेह बनाये रखना होगा. किसी मोड़ पर आपके मेंटल और फिजिकल सपोर्ट की जरूरत भी पड सकती है…’
‘जी, मैं हर तरीके से को-ऑपरेट करूंगा डॉक्टर.’
‘गुड़. प्लीज़ बाहर जा कर आपकी पत्नी को ले आइए. हम पहला सेशन अभी शुरू करते है.’
जुगल धड़कते दिल के साथ चांदनी को लेने केबिन के बाहर गया.
***
जगदीश
रिसोर्ट देख शालिनी बहुत खुश हो गई.
‘यहां रुकेंगे हम भैया ? कितनी खूबसूरत जगह है - सच में यह तो कमाल का सरप्राइज़ है.’
जगदीश मुस्कुराकर बोला. ‘हां, दो दिन हमें यहां रुकना होगा. फिर डॉक्टर तुम्हे जांच ले उसके बाद मुंबई चले जायेंगे. ठीक है?’
‘ठीक नहीं, बढ़िया है.’
पलंग पर छोटे बच्चे की तरह बैठे बैठे हलके जम्प लेते हुए शालिनी बोली. ऐसा करने से उसकी कमीज़ में ब्रा हिन् स्तन सागर की मौज की तरह उछल रहे थे. जगदीश ने मुश्किल से अपनी नजरों पर काबू करते हुए शालिनी से कहा. ‘अब तुम थोड़ा आराम करो. मैं बाहर बालकनी में बैठता हूं.’
‘जहां जा कर बैठना हो बैठना पर अपना सरप्राइज़ भी तो देख लो!’ कहते हुए शालिनी ने प्लास्टिक की बड़ी बेग जगदीश के हाथों में थमा दी. जगदीश ने देखा तो उसके लिए चार पेंट, पांच शर्ट, दो बरम्यूडा, और चार अंडरवियर थे….’
‘अरे!’ जगदीश ने आश्चर्यचकित होकर पूछा. ‘अस्पताल के बेड पर पड़े पड़े कैसे यह शॉपिंग कर ली?’
‘वही तो सरप्राइज़ है भैया…’ शालिनी चमकते चहेरे के साथ बोली.
‘सब के कलर तो बढ़िया है शालिनी पर साइज़…?’
‘मेरा अंदाजा गलत तो नहीं होगा पर आप ट्राई कर लो-’
‘अभी करता हूं , ये कपडे पहने हुए काफी समय हो गया है…’ कह कर जगदीश दूसरे कमरे में जाने लगा.
‘भैया…’ शालिनी ने कहा.
जगदीश ने मुड़ कर देखा.
‘मेरी बात मानो तो अंडरवियर ट्राई मत करो, अभी आपको पहनना नहीं है…’
‘वैसे अब मैं ठीक हूं शालिनी…’
‘भगवान करे आप हमेशा ठीक रहे पर अभी अभी ठीक हुआ है वो हिस्सा…सो कुछ समय उन पर कोई दबाव न आये तो बेहतर….’
जगदीश को लगा की यह भी ठीक है. उसने मुस्कुराकर कहा. ‘ठीक, जो हुक्म रानी साहिबा का.’
शालिनी शरमाते हुए बोली. ‘मैं रानी नहीं, दासी हूं.’
जगदीश यह सुन कुछ बोल नहीं पाया. कपडे ट्राई करने चला गया.
***
मोहिते
तूलिका के उन्मुक्त स्तनों में अपना चहेरा रगड़ रगड़ कर मोहिते पागल हो गया. बारी बारी तूलिका के दोनों निपलों को चूसा, चाटा, फिर हलके से काटते हुए उसने नजरे उठा कर अपनी ताई की ओर देखा तब तूलिका ने हंस कर कहा. ‘बंड्या, देखता क्या है? तू इनको काट के अपने साथ ले जा तब भी मना नहीं करूंगी…’
इस बात से उत्तेजित हो कर मोहिते ने स्तनों को छोड़ तूलिका के होठ चूसने शुरू किये. होठ चूसते चूसते मोहिते ने तूलिका को पलंग पर अपने साथ लेटा दिया और अपने दोनों पैरो की कैंची में तूलिका के बदन को जकड़ लिया.तूलिका मुस्कुराने लगी.
‘हंस क्यों रही हो?’ मोहिते ने पूछा.
‘सोच रही थी बुखार उतरा तो भाई चढ़ गया…’ तूलिका मोहिते का चहेरा अपने चहेरे के साथ रगड़ते हुए बोली.
मोहिते ने कहा. ‘तू है ही ऐसी ताई, कोई भी चढ़ना चाहेगा…’
‘मेल्या… तू कोई नहीं,भाई है…’
‘ताई, मुझे अब भी मेरे नसीब पर यकीन नहीं हो रहा, क्या सच में तू बिना कपड़ो के मेरी बांहो में है?’
‘बुद्धू, मेरे चूचक के तने हुए निपल तेरी छाती में कील की तरह चुभ नहीं रहे क्या?
ऐसा पागलों की तरह चीखते हुए मोहिते तूलिका के बदन से जोंक की तरह चिपक गया. तूलिका को सांस लेने में तकलीफ होने लगी पर उसने तय किया था कि आज वो भाई को किसी बात से मना नहीं करेगी, भले वो उसे रौंद डाले…
***
जगदीश
जगदीश ने शालिनी के पास आ कर कहा. ‘थेंक यु शालिनी, सभी कपडे एकदम परफेक्ट साइज़ के है.’
‘चार दिनों में क्या कमाल हो गया भैया.’ शालिनी ने कहा. ‘मुंबई से निकले तब हम एक दूसरे की ओर देखने से हिचकिचाते थे और अब एक दूसरे के कपड़ो की साइज़ जुबानी हो गई है!’
जगदीश ने कहा. ‘हां शालिनी, ये तो सोचा न था…’ फिर सारे कपडे समेटते हुए आगे कहा. ‘अब तुम थोड़ा आराम कर लो, फिर तुम्हे दवाई लगानी है.’
‘भैया, अब की बार मुझे उल्लू मत बनाना, मेरे सामने दवाई लगाना -बोल देती हूं.’
‘तो आप ऐसी दासी हो जो हुकुम करती है?’ जगदीश ने हंस कर पूछा.
‘ओह भैया…’ कहते हुए लजा कर शालिनी ने अपना मुंह तकिये में छिपा लिया.
जगदीश हंस कर कपड़े ले कर वहां से चला गया.
***
मोहिते
मोहिते का जोश थोड़ा नरम पड़ा तब तूलिका ने अपने आप को उससे अलग करते हुए कहा.
‘मैं कहीं भागी नहीं जा रही भाई, थोड़ा आराम से.’
मोहिते झेंप गया और तूलिका से खुद को अलग कर पलंग पर से उठ कर खड़ा हुआ.
तूलिका भी पलंग पर से उतर कर खड़ी हुई और एक अंगड़ाई ली. मोहिते मंत्रमुग्ध हो कर तूलिका को देखता रह गया. तूलिका के बाल बिखरे हुए थे, आंसुओं के कारण काजल बह कर गालो पर फैला हुआ था जैसे किसी बच्चे ने रंग बिखेरा हो. तूलिका के होठ लगातार चूमने की वजह से भीग भीग कर और भी मनमोहक हो गए थे. अंगड़ाई लेते हुए तूलिका के उठे हुए दोनों हाथ उसकी अंग भंगिमा को अत्यंत आकर्षक बना रहे थे. उसका ब्लाउज़ खुला हुआ, ब्रा फटी हुई और उनमे से तने हुए स्तन यूं झांक रहे थे जैसे बिल में से दो खरगोश अपना मुंह बाहर निकाल कर दुनिया का नजारा कर रहे हो…नीचे कमर पर पहने पेटीकोट पर इतनी सिलवटे थी की मोहिते को लगा जैसे क्रिकेट का मैदान किसी ने बेतरतीबी से खोद डाला हो…
‘कशी वाटते ताई?’ मोहिते को यूं एकटक देखता हुआ देख तूलिका ने पूछा.
‘अप्सरा.’ मोहिते ने कहा.
‘जब बाथरूम के छेद से तू मुझे देखता था वैसी या अलग?’
‘बहुत अलग.’
‘क्या अलग? अब मोटी हो गई हूं ?’
‘ताई, तू मोटी नहीं हुई, अब तेरा बदन भर गया है… ये मम्मे तब तोतापुरी आम जैसे कुछ लंबे से थे जो अब हापुस आम जैसे गोल गोल हो गए है.’
‘और बताओ…’
‘और कुछ नहीं - कॉमेंट्री ख़तम.’
‘क्यों? और कुछ नहीं बोलने जैसा?’ तूलिका को आघात लगा.
‘और कुछ दिख ही नहीं रहा ताई…बाथरूम में तो तिजोरी के सारे दराज खुले होते थे - यहां तो सब ढका ढका है…’
‘हलकट… बेशर्म…’ तूलिका ने कृत्रिम गुस्से से कहा.
‘बस क्या ताई? छुप छुप कर देखता था तब सब दिखाती थी! अब सामने हूं तो सेंसर कर दिया?’
‘पागल है क्या? लड़की हूं, लाज तो आयेगी ना?’
‘ठीक है, तो मैं बाहर जाऊं?’ मोहिते ने पूछा.
यह सुन कर तूलिका एकदम से मोहिते के पास तेजी से जा कर चिपक जाते हुए बोली.
‘नहीं भाई तुझे बाहर नहीं, अब अंदर जाना है - इतना अंदर की बाहर की सारी दुनिया को हम दोनों भूल जाये…’
बहुत अच्छीं तरीके से स्टोरी आगे बड़ रही है तीनो लव स्टोरी एक साथ आगे बड़ रही है देखते हैं की जगदीश का मन केसे बदलता है
और जुगल के सामने क्या क्या राज खुलते हैं
[(३३ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा : तूलिका, मोहिते , जगदीश, शालिनी, जुगल और चांदनी के साथ अगले कुछ घंटों में क्या बवंडर होने वाला है यह किसी को नहीं पता.
-जुगल का जो पहलू झनक के घर पर खुला उससे न की सिर्फ जुगल बल्कि जगदीश को भी फर्क पड़ने वाला है यह किसी को भी अंदाजा नहीं.
जिस तरह शतरंज की बाजी में घोड़ा ढाई कदम ही चलता है पर सारा सेटिंग हिला देता है - क्योंकि वो टेढ़ा चलता है.
उस तरह जीवन की बाजी में सेक्स यह ढाई अक्षर का तत्व सारा सेटिंग हिला देता है - क्योंकि यह भी टेढ़ा चलता है.
-सब चीजें कंट्रोल में नजर आ रही थी.
पर यह तूफ़ान के पहले की शांति थी. ]
मोहिते
‘ज्यांच्या गांडीत तीळ असते त्यांना सेक्स ची तहान जास्त असते रे बंड्या…’ (जिनकी गांड में तिल होता है उन्हें सेक्स की प्यास ज्यादा होती है रे बंड्या….)
चोरी छिपे ब्ल्यू फिल्म देखने के दिनों में इस तरह की अनेक थ्योरी मोहिते भी सीखा था. जो इस वक्त आलीशान रिसोर्ट में याद आ रहा था. यह थ्योरी कितनी सच है वो न तब पता है न आज पर इस तरह की कई थ्योरी उस दौरान सीखे थे, मसलन अधिक हस्तमैथुन करने से आदमी अंधा हो जाता है, जिसकी त्वचा पर बाल ज्यादा होते है वो सेक्सुअलि ज्यादा सक्रिय होते है... वगैरा वगैरा..
पलंग पर कंबल ओढ़ सोइ हुई तूलिका को को करवट बदलते देख मोहिते की सोच रुक गई. तूलिका से बात करना बंद करके करीब तीन साल होने आए थे. सुभाष इस हादसे में इस तरह घायल हो गया की तूलिका को सांत्वना देने के लिए मोहिते को अपना तूलिका से न बोलने का निश्चय तोडना पड़ा था.
वो तूलिका से कह रहा था की, ’हिम्मत मत हारो, हम सब तुम्हारे साथ है - कल जिसका परिचय हुआ है वैसा जगदीश भी इस मुसीबत में हमारे साथ खड़ा है -’ पर वो बोल नहीं पाया क्योंकि तूलिका ने जगदीश की नियत खराब है ऐसी शिकायते शुरू कर दी और मोहिते हतप्रभ रह गया. तूलिका ने जो शिकायते की वो जगदीश के चरित्र के साथ कोई मेल नहीं खा रही थी -जितना की वो जगदीश को समझ पाया था…
पर सुभाष की हालत नाजुक थी, तूलिका नर्वस मानसिकता में थी सो मोहिते को इस विषय में गहराई में जाने का मौका नहीं मिल रहा था. जगदीश से बात करने पर उसने एक नई थ्योरी थमा दी : वो सेक्सुअली तुम में इंट्रेस्टेड है ! -मोहिते को लगा उसके खयालो को पसीना आ रहा है… तूलिका उसके बारे में-अपने सग्गे छोटे भाई के बारे में - कामुक कामना रखें यह मोहिते को संभावना के तौर पर भी कल्पनीय नहीं था.
तूलिका कुछ बड़बड़ाई. मोहिते उठ कर तूलिका के चहेरे के करीब अपने कान ले गया क्योंकि तूलिका नींद में ही कुछ बड़बड़ा रही थी. क्या बोल रही थी वो समझना मुश्किल था. वो कुछ अस्पष्ट आवाज में कह रही थी. ‘मी वरण बनवते, जेऊन जायचे… ( मैं दाल बनाती हूं, खाना खा कर जाना)…टीवी बंध करा हो आता, तेच ते पाहुन वैतागली आता- ( अब टीवी बंद कर दो, वही वही देख कर कंटाल गई हूं-) आणि बंड्या ला विचारा येणार आहे की नाहीं तो ? ( और बंड्या से पूछो वो आने वाला है कि नहीं ?) — ऐसी असबंध बातें बोल रही थी. तूलिका को बुखार में इस तरह सन्निपात हो जाता था… मोहिते ने तूलिका के माथे को छू कर देखा - बहुत गर्म था - शायद उसे फिर बुखार चढ़ रहा था… इतने में तूलिका ने आंखें खोली और ‘पानी’ ऐसा बुदबुदाई. मोहिते ने पानी का प्याला भर कर उसे दिया, मुश्किल से दो घूंट पानी पी कर तूलिका ने ‘बस.’ कहा. मोहिते ने प्याला बाजू में रख दिया. तूलिका ने मोहिते का हाथ थाम कर पूछा. ‘बंड्या, रागवला आहे तू ? (बंड्या, मुझ से खफा हो क्या ?) ‘नाही ताई, तसं काही नाही…’ ( नहीं दीदी, ऐसा कुछ नहीं.)
‘राग येणारच की - तुझ्या मित्राच्या नाव मी उगाच…’ ( खफा तो होंगे ही, तुम्हारे दोस्त का नाम मैंने यूं ही…)
‘जाओ दे, नंतर बोलू आपण त्या विषय वर ताई..... ‘ ( छोडो, उस बारे में हम बाद में बात करेंगे.)
कह कर मोहिते उठ रहा था तब तूलिका ने उसका हाथ थाम कर कहा. ‘ऐक,बंड्या- मला तू हवा आहेस.’ ( सुनो, बंड्या मुझे तुम चाहिए.)
मोहिते यह सुन दंग रह गया. तूलिका का बदन बुखार से तप रहा था… उससे ठीक से बोला भी नहीं जाता था. डॉक्टर ने कहा था की अगर बुखार ज्यादा हो जाए तो एक गोली दे देना. मोहिते ने किसी तरह तूलिका को एक गोली पीलाई. और कम्बल ठीक से ओढ़ा कर फिर वो थोड़ी दुरी पर बैठ गया.
बुखार के सन्निपात में कुछ भी बड़बड़ा रही है - ऐसा सोचते हुए वो बैठे बैठे आंखें मूंद गया.
***
जुगल
जुगल और झनक चांदनी कर डॉ. प्रियदर्शी की क्लीनिक पर पहुंचे. सरदार जी ने फोन पर अपॉइंटमेंट ले रखी थी. दवाखाने की रिसेप्शनिस्ट ने पेशंट की जानकारी के लिए फॉर्म भरवाया उस में झनक ने जुगल का नाम बतौर चांदनी के पति लिखवाया. जुगल ने विरोध किया तब झनक ने कहा - ‘हम अगर ये कहेंगे की चांदनी भाभी के पति यहां नहीं है तो चांदनी भाभी का इलाज शुरू ही नहीं होगा क्योंकि यह मानसिक समस्या है और वो भी सेक्स्युअल एब्यूज़ की- कोई भी डॉक्टर पति की गैरमौजूदगी में इलाज नहीं कर सकता…अब तुम सोच लो - बुलाओगे अपने भैया को?
जुगल सख्ते में आ गया. नामरजी से उसने अपना नाम चांदनी के पति के तौर पर लिखवाया.
***
जगदीश
अस्पताल से शालिनी को डिस्चार्ज मिल गया. हेड नर्स ने जगदीश से कहा. ‘मैडम को ब्रेस्ट में अच्छे से दवाई लगाने के लिए ही यहां पर रोका था, पर वो काम तो हम लोगों से बेहतर आप कर रहे हो फिर यहां रुकने का कोई फायदा नहीं, घर पर इनको आराम करने दो.’
‘ओके.’ जगदीश ने कहा.
‘दिन में तीन बार ब्रेस्ट में दवाई लगानी है - दो दिन के बाद डॉक्टर को दिखाने आ जाइए.’
डिस्चार्ज के पेपर देते हुए नर्स ने जगदीश से कहा.
जगदीश ने पेपर्स चेक किये और शालिनी के पति के तौर पर अपना नाम पढ़ एक अजीब भाव महसूस किया.
***
मोहिते
‘बंड्या…बंड्या…जल्दी से पंखा चालू कर….’ पलंग पर अचानक उठ बैठते तूलिका ने कंबल बदन पर से फेंकते हुए कहा…
दवाई की असर से उसका बुखार उतर गया था - और अब उसे गर्मी लग रही थी… मोहिते ने तेजी से स्विच बोर्ड के पास जा कर पंखा ऑन किया, मूड कर तूलिका के पास जाते जाते रुक गया क्योंकि तूलिका अपनी साड़ी निकाल रही थी.
‘केवढी गर्मी रे बाबा…’ कहते हुए तूलिका ने अपनी साड़ी निकाल कर फेंक दी. तूलिका अब ब्लाउज़ और पेटीकोट में थी इसलिए मोहिते करीब जाने से रुक गया. पर बाद में जब तूलिका ने मारे गर्मी के अपना पेटीकोट भी जांघो तक चढ़ा लिया तब मोहिते मूड कर कमरे के बाहर जाते हुए बोला. ‘मी बाहेर चाललो ताई…’ ( मैं बाहर जाता हूं दीदी.)
कह कर मोहिते ने कमरे का दरवाजा खोला इतने में तूलिका ने कहा. ‘बंड्या!’
मोहिते ने मुड़ कर तूलिका को देखा.
‘कुठे चालला?’ ( कहाँ जा रहे हो?)
‘इथं च - बाहेर…’ (यहीं -बाहर… )
‘का बाहेर ?’ (बाहर क्यों ?)
मोहिते कुछ बोल नहीं पाया.
‘मी साडी काढली, आणि परकर वर केला म्हणून?’ ( मैंने साड़ी निकाल दी और पेटीकोट ऊपर कर दिया इसलिए?)
तूलिका के इस सीधे सवाल से मोहिते चौक गया.
‘असं काय विचारते हो ताई ?’ बौखला कर मोहिते ने पूछा. ( ऐसा सवाल क्यों करती हो दीदी?)
‘अरे मेल्या, माझा लगीन च्या आधी मी आंघोळ घेता ना तू नाही का मला लपून पाहायचा ? तेव्हां लाज नाही वाटली आणि आता ताईला कपडे सिवाय पाहुन लाज वाटते काय ?’ ( अरे मुए, मेरी शादी से पहले मैं नहाती थी तब क्या तुम चोरी छीपी मुझे देखते नहीं थे क्या? तब तो तुम्हे शर्म नहीं आई और अब दीदी को बिना कपड़ों के देख शर्म आ रही है?)
मोहिते के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. - तूलिका दीदी को पता था की नहाते वक्त मै उसे चोरी से देखता था !
***
जुगल
चांदनी को जांचने के बाद डॉ. प्रियदर्शी ने झनक और चांदनी को बाहर भेजा और जुगल से सारी डिटेल जानने के बाद कहा.
‘आपकी पत्नी को मानसिक रूप से गहरा सदमा लगा है, मी. रस्तोगी. आपने आदित्य वाली जो भी घटना सुनाई वो चांदनी के मन मस्तिष्क पर बहुत असर कर गई है - अतीत में उनके साथ हुई कोई और जबरदस्ती और शोषण की घटना के साथ यह त्रासदी धूल मिल गई है - अब चांदनी फिर से स्वस्थ हो इस लिए एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना होगा… छे महीने या एक साल तक आप को धीरज रखनी पड़ेगी…‘
‘इतना समय नहीं है मेरे पास - ज्यादा से ज्यादा एक महीना मैं रुक सकता हूं डॉक्टर, प्लीज़ कुछ कीजिये.’
‘एक महीना? मैं डॉक्टर हूं, जादूगर नहीं!’
‘जानता हूं, पर जादू कीजिये सर, मैं आपके हाथ जोड़ता हूं…’
कुछ सोच कर डॉक्टर प्रियदर्शी ने कहा. ‘एक रास्ता है पर थोड़ा रिस्की है…’
‘क्या रिज़ल्ट जल्दी मिलेगा?’
‘हां , हप्ता… या अधिक से अधिक पंद्रह दिन…’
‘परफेक्ट डॉक्टर - थैंक्स!’
‘पर मैंने कहा रिस्की है - रिस्क भी जान लो… ‘
जुगल सहम कर डॉक्टर को देखता रहा.
‘अगर सब कुछ सही हुआ तो आपकी वाइफ पंद्रह दिनों में ठीक हो जायेगी पर अगर यह एक्सपेरिमेंट फेल हुआ तो उनकी हालत और गंभीर भी हो सकती है…’
जुगल यह सुन परेशान हो गया.
***
जगदीश
‘चलें ?’
अस्पताल के बेड पर डिस्चार्ज की खबर सुनकर जाने को तैयार शालिनी के पास आ कर जगदीश ने पूछा.
‘जी.’ मुस्कुराकर शालिनी ने कहा और खड़ी हुई. शालिनी ने नया ड्रेस पहना था. ब्रा पहनने की अभी उसे इजाजत नहीं थी. इसलिए उसने बहुत सावधानी से अपनी छाती पर दुपट्टा ढका हुआ था.
जब शालिनी ने एक प्लास्टिक का बड़ा बेग उठाया जो बेड के पास पड़ा था तब जगदीश को आश्चर्य हुआ. ‘ये क्या है!?’
‘सरप्राइज़…. ‘ शालिनी ने हंसकर कहा और पूछा. ‘वैसे हम जा कहां रहे है?’
‘सरप्राइज़. ‘ जगदीश ने मुस्कुराकर कर जवाब दिया.
***
मोहिते
मोहिते मारे शर्म के पलंग पर गडा जा रहा था. तूलिका ने उसे जबरदस्ती अपने साथ पलंग पर बिठा दिया था. एक तो तूलिका केवल ब्लाउज़ और पेटीकोट पहने हुए थी और फिर उसने पेटीकोट अपनी जांघो तक चढ़ा दिया था. इस बात की तो मोहिते को शर्म आ ही रही थी पर इससे ज्यादा वजनदार बात यह थी की तूलिका दीदी को नहाते वक्त वो चोरी से देखता था यह बात तूलिका दीदी जानती थी और अभी पूछ रही थी की उसने ऐसा क्यों किया था - मोहिते क्या जवाब देता ?
‘आता बोल की?’ (अब बोलो भी?’)
मोहिते ने हिम्मत करते हुए सिर उठा कर तूलिका से पूछा.
‘तू आज का विचारत आहे हे प्रश्न?चार वर्षानंतर-’ ( ये सवाल तुम आज क्यों पूछ रही हो?चार साल बाद -)
तूलिका मोहिते की बड़ी बहन थी.. दो साल बड़ी. और तूलिका शुरू से दबंग लड़की रही थी. एक बार मोहिते और तूलिका बाजार में कुछ खरीद रहे थे. काफी भीड़ थी. और अचानक तूलिका ने भीड़ में उसके पीछे खड़े लड़के को तेजी से मूड कर एक झापड़ रसीद कर दी थी, यह कहते हुए की ‘कुतरया, तुला काय मी भोळी, बावळट मुलगी वाटली?’ ( कुत्ते, मुझे क्या तु भोली गंवार लड़की समझ रहा है?)
पल भर में वो लड़का कहां नव दो ग्यारह हो गया पता नहीं चला था. मोहिते को समझ गया था की उस लड़के ने कुछ गलत हरकत की होगी…और तूलिका बिंदास लड़की थी, इंट का जवाब पथ्थर से देनेवाली.
मोहिते तूलिका से छोटा होने के कारण ज्यादा उलझता नहीं था, और कुछ हद तक डरता भी था.
पर डर अपनी जगह और मोह अपनी जगह…अठरा उन्नीस की कामोत्सुक उम्र की अपनी ‘जरूरतें’ होती है. मोहिते की भी वैसी ‘जरूरत’ थी. सो अपनी बड़ी दीदी जिसका वो लिहाज करता था, और जिससे वो डरता भी था उसे बिना वस्त्रो के देखने की ललक को वो काबू में नहीं रख सका. जिससे हम डरते है उसे नग्न देखने में एक भिन्न अहम संतुष्टि होती है यह भी एक वजह रही होगी, जो भी हो बाथरूम की चारदीवारी में एक ऐसा छेद मोहिते ने ढूंढ ही लिया जो उसे तूलिका दीदी के नग्न देह की झांकी करवाता था.
दीदी का नग्न दर्शन करने के बाद उस छेद से नजर हटाते वक्त उसे ख़याल आता : अगर दीदी को पता चल गया की मैं ऐसे उनको बिना कपड़ो में झांकता हूं तो ? - दीदी उसका क्या हश्र करेगी यह कल्पना मात्र से मोहिते कांप उठता और रोज दीदी को नहाने के बाद, बदन पोंछ कर अंतत: ब्रा - पेंटी पहनते हुए देखते उस छेद से खुद को हटाते वक्त तय करता : कल से ये धंधा नहीं करना है - दीदी को पता चला तो मार डालेगी…
पर दूसरे दिन फिर जैसे जैसे तूलिका दीदी का नहाने का समय नजदीक आता वैसे वैसे मोहिते का ‘नहीं देखना’ यह इरादा नरम होता जाता और ‘बस आज का एक दिन देख लेता हूं…’ -ऐसा आश्वासन वो खुद को देते हुए बाथरूम के उस छेद की और ऐसे खिंचा चला जाता जैसे वहां कोई चुंबक हो.
और चुंबक था भी - तूलिका दीदी का अनुपम देह सौंदर्य. दीदी उस वक्त बीस साल की थी - यौवन के परवान पर.
बाथरूम में दीदी का वो एक के बाद एक वस्त्र हटाते हुए निर्वस्त्र होना…
दीदी के वो दृढ़ निश्चयी योद्धा जैसे तने हुए स्तन ! …वो स्तनों के दोनों निपलों का दादागिरी से पॉइंट ब्लेंक मिजाज में इस विश्व को ताकना !…मोहिते को लगता था अगर दीदी इस बाथरूम में दस साल बैठी नहाती रहे तो मैं दस साल तक इस छेद से नजर न हटाऊं और दस साल लगातार इन स्तनों को देखता रहूं…इतने में उसे कोई निहार रहा है इस हकीकत से बेखबर और अपनी ही धुन में खोई हुई तूलिका कमर से मूड कर अपने पैर, एड़ी और घुटने साबुन से रगड़ते हुए अनजाने में अपने शरीर सम्पत्ति की अन्य एक तिजोरी - अपने भरे भरे नितंब मोहिते की ओर कर देती.तूलिका के एक नितंब पर तिल था...वो तिल देख कर मोहिते को ब्ल्यू फिल्म में देखी हुई लड़की के नितंब पर का तिल और अपने दोस्त का जुमला याद आ जाते थे : ‘ज्यांच्या गांडीत तीळ असते त्यांना सेक्स ची तहान जास्त असते रे बंड्या…’ (जिनकी गांड में तिल होता है उन्हें सेक्स की प्यास ज्यादा होती है रे बंड्या….)
-क्या यह सच होगा ? दीदी के नितंब पर भी तिल है तो क्या दीदी को सेक्स की ज्यादा प्यास होगी? पर ऐसा हो तब भी वो प्यास बुझाने का मौका उसे थोड़े ही मिलेगा ! वो तो भाई है! ऑफिशियली कुछ नहीं मिलेगा बंड्या - यह अन ऑफिशियली जो देखने मिलता है इसीमे खुश रहो - ऐसा खुद को सामझाते हुए वो तूलिका दीदी के झुकने कारण अति आकर्षक बन पड़े नितंबो को एकटक निहारता…कमर से मुड़ने के कारण नितंब की गोलाइओ पर अधिक तनाव आ जाता और अपनी सामान्य स्थिति में भी जो गोले मोहिते के लिंग में हुल्ल्ड मचाने के लिए पर्याप्त से अधिक आक्रमक होते थे वे तूलिका के कमर से मुड़ने के कारण और भी दाहक हमलावर हो जाते थे. मोहिते को लगता की यह मृदु और नरम गुब्बार जैसे मासूम दीखते गोले वास्तव में दो बड़े बड़े त्वचा बम (स्किन बोम्ब) है जो खुद कभी नहीं फूटते बल्कि उनके अंदर लगे टाइमर से उसके लिंग में सेकंड कांटे की टिकटिक चालु हो जाती और मोहिते बेबस हो कर इस अजीब बमजोड़े को देखता रहता जो खुद इतनी दुरी पर होते हुए भी ऐसे तिलस्मी असरदार होते थे की मोहिते के लिंग में टाइमर चलने लगता और एक पॉइंट पर वो बम गोया मोहिते के लिंग में फूटते - और लावा फवारा बन कर लिंग से उछलता हुआ बाहर उड़ता….
उफ्फ्फ वो भी क्या दिन थे…
पर अभी तूलिका दीदी ने एक अजब राज़ परसे पर्दा हटाया था!
न जाने कितने दिनों दिन वो दीदी के शरीर का इस तरह से चोरी छिपे रस दर्शन करता रहा - दीदी की शादी तय हो गई और ब्याह के वो घर छोड़ कर चली गई तब तक - और अब उसे पता चल रहा है की दीदी को पता था की वो उसे छुप छुप कर नग्न अवस्था में देखता था !
तो दीदी ने कभी उसे डांटा क्यों नहीं?
-क्या दीदी भी चाहती थी की मैं उसे नग्न अवस्था में देखु?
इसलिए मोहिते ने हिम्मत करते हुए सिर उठा कर तूलिका से पूछा.
‘तू आज का विचारत आहे हे प्रश्न? चार वर्षानंतर-’ ( ये सवाल तुम आज क्यों पूछ रही हो? चार साल बाद -)
इस सवाल का तूलिका ने जो जवाब दिया वो मोहिते के फ़रिश्तो ने भी सोचा न था…