Rajesh Sarhadi
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कहानी के साथ रहने के लिए आपका आभारी हूं —----कहानी की जितनी तारीफ की जाए उतना कम है
लाजवाब
Jee Dekhen - kya hota hai-----------bahut khub, lagta hai biviyan badal jaayengi ant tak
OhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhBahut gajab update .. bus aaj ke update me laga jaise thoda adhura rah gaya …
मोहिते की तो लॉटरी निकल गई, दी जुगल की वाट लगने वाली है। शालिनी का कुछ भी नही हो सकता वो सिर्फ एक बेवकूफ लड़की है और कुछ नही। मस्त३६ – ये तो सोचा न था…
[(३५ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :
‘हलकट… बेशर्म…’ तूलिका ने कृत्रिम गुस्से से कहा.
‘बस क्या ताई? छुप छुप कर देखता था तब सब दिखाती थी! अब सामने हूं तो सेंसर कर दिया?’
‘पागल है क्या? लड़की हूं, लाज तो आयेगी ना?’
‘ठीक है, तो मैं बाहर जाऊं?’ मोहिते ने पूछा.
यह सुन कर तूलिका एकदम से मोहिते के पास तेजी से जा कर चिपक जाते हुए बोली.
‘नहीं भाई तुझे बाहर नहीं, अब अंदर जाना है - इतना अंदर की बाहर की सारी दुनिया को हम दोनों भूल जाये…’ ]
मोहिते
मोहिते ने तूलिका के चेहरे को थामा और आंखों में आंखें डाल कर पूछा.
‘मैं कौन हूं ?’
‘भाई.’
मोहिते ने तूलिका के होठो को चूसना शुरू किया. उस तरह जैसे तूलिका के होंठ होंठ न हो पर रस की कुप्पी हो, दूध से रिसता निपल हो, या जैसे तूलिका के होठ गीला वस्त्र हो और उसके खुद के होठ कड़कती धुप हो…
कुछ ही क्षणों में तूलिका को लगा जैसे उसके होंठ पर मोहिते ने होठों से कोई बीज बोया है - किसी फूल के पौधे का बीज और पौधा उग भी गया, कलियां भी फुट निकली और फूल भी खिल गये…रंग बिरंगी, अनगिनत फूल…होठों पर फूल, गालों पर फूल, आंखों में फूल, स्तन और नितंबों पर फूल, नाभि और योनि, कांख और नितंब मध्य रेखा, जांघें और कमर, एड़ी और घुटने, अरे यहां तक की हाथ पैरों की उंगलियां, शरीर के हर संभवित हिस्से में हजारों फूल खिल उठे… तूलिका को आश्चर्य हुआ - बंड्या मेरे होठों को चूस रहा है यह होठों में प्राण फूंक रहा है!
मोहिते तूलिका का चहेरा दोनों हाथों में थाम कर यूं उसके होंठ चूस रहा था जैसे सहरा की धुप में अपने अस्तित्व को टिकाये रखने की जद्दोजहद में कोई पेड़ की जड़ें भूगर्भ की मिट्टी में से नमी शोष रही हो. पर तूलिका को ऐसा अहसास हो रहा था की पेड़ तो वो खुद है और बंड्या के होंठ वो सूरज की किरणें है जो उसकी शाखा के पत्तों समान उसके होठों को चुम कर उसे प्राणवायु दे रहे है!
यह प्रेम का चमत्कार था जो जीवन दे रहा है वो जीवन देता हो ऐसा प्रतीत हो रहा था और जो जीवन ले रहा था वो जीवन देता लग रहा था. चुंबन तो आये दिन, आये पल होते रहते है, लाखों की तादात में पर कोई कोई चुंबन ऐसा अनन्य होता है जो प्राणप्रतिष्ठा के स्तर का होता है. तूलिका और मोहिते उन भाग्यवान में से दो थे जो प्रकृति के इस अदभुत वरदान को भोग रहे थे.
चुंबन प्रक्रिया में फिर विराम ले कर मोहिते ने तूलिका से पूछा.
‘मैं कौन हूं ?’
‘मेरी जान है, मेरा प्राण है, मेरा खून है, मेरा नसीब, मेरा प्रेम है…. बंड्या तू मेरा राजा है…’
तूलिका ने चुंबन रसपान की मत्त अवस्था के नशे में भटकती आवाज में जवाब दिया.
जिस तरह संभोग प्रक्रिया में लिंग सातत्य से योनि प्रवेश जारी रखता है उस तरह मोहिते के होंठों ने तूलिका के होंठों पर आक्रमण और समर्पण का मिश्र कृत्य क्रमशः निर्गत रखा.
***
जुगल
‘तुम एक अच्छी लड़की हो.’
‘जी, सर. मैं एक अच्छी लड़की हूं.’
‘मैं तुम्हारा सर नहीं डॉक्टर हूं.’
‘जी, डॉक्टर.’
‘डॉक्टर से कोई बात छुपाना नहीं चाहिए.’
‘जी, डॉक्टर.’
‘अब मैं जो भी पूछूंगा उसका तुम्हें सही सही जवाब देना होगा.’
‘जी डॉक्टर.’
‘तुम्हारा नाम क्या है?
‘चांदनी’
‘अपना पूरा नाम बताओ.’
‘चांदनी सोम सिंह जांगिड़ और चांदनी रायचंद महेश्वरी.’
‘क्या तुम्हारे दो नाम है?’
‘नहीं, डॉक्टर. सोम सिंह जांगिड़ मेरे प्रथम पिता का नाम है और रायचंद महेश्वरी मेरे सौतेले पिता का नाम है.’
‘क्या तुम जुगल रस्तोगी को जानती हो?’
‘नहीं डॉक्टर.’
‘तुम्हारी उम्र क्या है ?’
‘उन्नीस साल डॉक्टर.’
‘तुम क्या करती हो चांदनी?’
‘मैं कॉलेज में पढ़ाई करती हूं. घर के काम में मम्मी की हेल्प करती हूं.’
‘तुम मम्मी से प्यार करती हो?’
‘मैं मम्मी से बहुत प्यार करती हूं. डॉक्टर.’
‘और पापा से ? पापा से प्यार नहीं करती?’
‘पापा से बहुत डर लगता है.’
‘पापा से क्यों डर लगता है?’
‘पापा मम्मी को बहुत मारते है, गाली देते है, और मैं रोकू तो मुझे मारते है, गाली देते है.’
‘पापा तुमको कभी प्यार नहीं करते?’
‘नहीं पापा किसीको भी प्यार नहीं करते… पापा आ गये.......पापा मारेंगे… पापा मारेंगे… पापा...पापा…’
बोलते हुए चांदनी बेहोश हो गई.
झनक और जुगल ने डॉ. प्रियदर्शी की ओर देखा.
‘यह मेमोरी चांदनी के लिए बहुत वजनदार है, हम कुछ देर में फिर कोशिश करते है.’
डॉक्टर ने कहा.
***
जगदीश
शालिनी पलंग पर सो गई थी. जगदीश ने नहा कर कई दिनों के बाद ढंग के कपड़े पहने. एक ढीला चौड़ा शर्ट और बरम्यूडा पहन कर वो कमरे की बालकनी में आराम से सोफा चेयर पर बैठा था. और आगे क्या करना चाहिए यह सोच रहा था.
क्या हुस्न बानो को कुछ याद आएगा? क्या उसके पास कोई ऐसी जानकारी होगी जिससे मां के बारे में कुछ पता मिले? शालिनी को मुंबई सलामत छोड़ कर तुरंत फिर पूना आ कर हुस्न बानो को मिल कर कोशिश करनी चाहिए. - ऐसा सोचते हुए उसे हुस्न बानो के साथ की कामुक मुलाकात याद आ गई. अनजाने में जगदीश बरम्यूडा में हाथ डाले अपने लिंग को सहलाता आंखें मूंद कर हुस्न बानो के आकर्षक शरीर को याद करने लगा…. उफ्फ्फ कितना हरा भरा शरीर था हुस्न बानो का ! जगदीश अपने लिंग को सहलाते हुए हुस्न बानो की मधुर स्मृति में खोने लगा…
***
मोहिते
जब अपने गले पर तूलिका ने भीगा भीगा स्पर्श महसूस किया तब अपनी आंखें खोल कर उसने देखा तो मोहिते उसका गला चाट रहा था.
‘बंड्या खुप घाम आहे रे कशाला चाटते ….?’ ( बहुत पसीना है, क्यों चाट रहे हो?)
‘माझी बहिणीच्या घाम माझ्या साठी पंचामृत आहे…’ ( मेरी बहन का पसीना मेरे लिए पंचामृत आहे…)
मोहिते ने कहा और फिर तूलिका का गला चाटते चाटते वो उसका कंधा चाटने लगा. कंधा चाटने में तूलिका का ब्लाउज़ आड़े आ रहा था सो उसने ब्लाउज़ और ब्रा को हटा के फेंकते हुए तूलिका से कहा. ‘ऐसा लग रहा है जैसे गिफ्ट पैकेट का रेपर निकाल रहा हूं…’
‘इस गिफ्ट पर तेरा नाम बरसो पहले लिख दिया था बंड्या - डिलीवरी आज हुई है…’
‘ताई, इतनी देर से यह तोहफा मिला वो ठीक ही हुआ है- इस महाभोग को पचाने की लायकात भी मेरी तब नहीं थी शायद….’
‘काय रे महाभोग वगैरे ! काय काय बोलतो! मैं क्या तुम्हें इतनी अच्छी लगती हूं ?’
‘तुम मेरे लिए क्या हो यह अगर मैं शब्दों से बता पाता तो बता देता. पहली बार यह मौका मिला है की जबान से बता रहा हूं पर शब्दों के बिना.’ कह कर फिर मोहिते ने तूलिका के गले और स्तनों के बीच के हिस्से को चाटना शुरू किया… तूलिका मोहिते के इस अनोखे प्रेम प्रस्ताव को आंखें मूंद कर भोगने लगी… चाटते चाटते मोहिते ने तूलिका का एक हाथ उठा कर उसकी बगल के बाल चाटने शुरू किये तब तूलिका को बहुत ऑड लगा. मोहिते को दूर हटा कर तूलिका ने कहा, ‘काय करतोस रे वेड्या ? ये बगल के बाल है - कितना पसीना है यहां !’
मोहिते ने तूलिका को बांहों में खिंच कर आलिंगन में जकड़ कर कहा.’ताई, तु मेरे सपनो की देवी है और मैं तुम्हारा जीभ-अभिषेक कर रहा हूं - पूजा से पहले तुझे इस तरह स्वच्छ कर रहा हूं. तेरे शरीर की हर गोलाई और हर खाई, हर गली और हर पहाड़ को मैं जीभ से चाट चाट कर चखते चखते स्वाद के चटकारे लेते हुए भोगूंगा- मेरी जीभ मेरे प्यार का रेवन्यू स्टेम्प है और तेरा शरीर में अपने नाम कर रहा हूं.’
मोहिते की पगलाई बातो से तूलिका को उस पर बहुत स्नेह आ रहा था. उसका चेहरा दोनों हाथों में थाम कर तूलिका ने पूछा. ‘पूरे बदन को तेरे नाम करने के बाद इसका क्या करेगा ?’
‘बहुत कुछ करूंगा. खेती करूंगा…’ कह कर अपने पेंट की ज़िप खोल कर अपना लिंग तूलिका के हाथ में थमा कर कहा, ‘ये रहा हल. इसे चलाऊंगा तेरे शरीर पर…’
मोहिते के लिंग को सहला कर तूलिका ने एक आह भर कर कहा. ‘ ओह भाई…देखो ना कितना तन गया है…’
‘जब उसके मन की बात होती है तब तन जाता है ताई, यह अभी जो चल रह है वो इसका टाइम है, मैं तो अभी इसका गुलाम हूं. ‘
‘गप्प बस, इसकी गुलाम तो मैं हूं.’ कह कर तूलिका घुटनो के बल बैठ कर मोहिते के लिंग को सहला कर पूछा. ‘तू ही चाटता रहेगा या मुझे भी मौका देगा?’
और मोहिते के जवाब की राह देखे बिना तूलिका ने मोहिते के लिंग पर जुबान फेरना शुरू कर दिया. मोहिते कुछ कह नहीं सका. उसने तूलिका के सिर को सहलाना शुरू कर दिया…
***
जुगल
‘चांदनी….’
‘....’
‘चांदनी, तुम मुझे सुन सकती हो?’
‘जी.’
‘मैं डॉक्टर बोल रहा हूं। ‘
जी, डॉक्टर…’
‘चांदनी, क्या तुम्हारे पापा तुम्हें मारते है?’
‘पापा को पनिशमेंट करनी हो तब मारते है.’
‘पापा क्यों पनिशमेंट करते है?’
‘मेरी गलती हो जाए तो पापा पनिशमेंट करते है.’
‘कैसी गलती?’
‘उनकी बात न मानो तो पनिशमेंट करते है. पेंटी पहनो तो पनिशमेंट करते है.’
‘क्या पनिशमेंट करते है?’
‘मेरे बम्स पर चाबुक मारते है.. उह्ह्ह…अभी भी दुख रहा है डॉक्टर…’
‘चांदनी प्लीज़ रोना बंद करो, यहां तुम्हारे पापा नहीं है, तुम्हे कोई नहीं मारेगा…’
‘डॉक्टर मेरे बम्स बड़े है इस लिए पापा पनिशमेंट करते है…’
संमोहन की असर में चांदनी बोलती जा रही थी और जुगल की आंखों से आंसू थम नहीं रहे थे. झनक जुगल की पीठ सहलाते उसे सम्भाल रही थी.
‘चांदनी, अब रोना बंद करो, अब तुमको कोई पनिशमेंट नहीं देगा. पापा भी नहीं, कोई नहीं.’
‘नहीं डॉक्टर, पापा को कोई मना नहीं कर सकता. पापा को पनिशमेंट देने से कोई रोक नहीं सकता.’
‘चांदनी, तुम दस मिनिट के लिए सो रही हो.’
‘जी डॉक्टर…’
डॉ. प्रियदर्शी जुगल को केबिन के बाहर ले गए और कहा.
‘अब आपको आपकी पत्नी का प्रोटेक्टर बनना है, तैयार रहना.’
‘क्या करना होगा?’
‘प्यार. अपनी वाइफ को प्यार करना है...’
‘फिज़िकल प्यार?’
‘मे बी, जरूरत पड़ी तो वो भी करना पड सकता है, एनी प्रॉब्लम?’
जुगल कुछ बोल नहीं पाया. डॉक्टरने पूछा.
‘मी.रस्तोगी, आप अपनी पत्नी को प्यार तो करते हैं ना?’
‘जी...जी…’
‘फिर यह संकोच क्यों? यह भी ट्रीटमेंट का ही हिस्सा है…’
‘जी. डॉक्टर…’
जुगल हारे हुए जुआरी की तरह बोला.
‘प्लीज़, अपने आप को सम्हालिए मी. रस्तोगी.’
कह कर डॉक्टर फिर केबिन में गए, जुगल ठगा सा खड़ा रह गया. झनक ने बाहर आ कर पूछा.
‘क्या हुआ? क्या कहा डॉक्टर ने?’
‘वो भाभी से फिज़िकल प्यार करने कह रहे है झनक, ये मैं कैसे कर सकता हूं !’
‘जैसे इससे पहले किया था जुगल. उस रात नशे में तुमने चांदनी भाभी के साथ ही संभोग किया था.’
‘नहीं झनक…!’ फटी आवाज में जुगल ने कहा. ‘ये क्या कह रही हो!’
***
जगदीश
‘भैया…!’
शालिनी की चीख से जगदीश ने चौंक कर अपनी आंखें खोली. सामने शालिनी डर से फटी आँखों से जगदीश को देख रही थी.
‘क्या हुआ?’
जगदीश ने पूछा.
‘भैया ! आप क्या कर रहे हो? ‘
कहते हुए शालिनी ने जगदीश के बरम्यूडा की और इशारा किया.
जगदीश ने देखा तो उसका एक हाथ अपने बरम्यूडा में था. अपने लिंग को सहलाते हुए वो हुस्न बानो के ख्यालो में उलझा था. शालिनी के यूं पूछने पर उसने झेंप कर अपना हाथ बरम्यूडा के बाहर निकाल दिया.
‘आप को फिर से सूजन हो गई क्या? बताया क्यों नहीं मुझे ?’
‘नहीं, सूजन नहीं हुई…’
मैं लिंग सहला रहा था -यह कहना जगदीश को जमा नहीं.
‘मुझे कुछ नहीं सुनना , बताइये क्या हुआ है?’
पूछते हुए शालिनी जगदीश के लिंग के सामने बैठ पड़ी.
‘शालिनी, टेंशन मत लो..’
ऐसा जगदीश कह रहा था पर शालिनी की धीरज टूट गई, उसने तपाक से जगदीश का बरम्यूडा खींच कर नीचे उतार दिया. और जगदीश के टेस्टिकल को देखने की कोशिश की. पर बरम्यूडा नीचे होते ही जगदीश का पूर्ण रूप से तना हुआ लिंग शालिनी के सामने हिलोरे लेने लगा. शालनी चौंक पड़ी, टेस्टिकल नॉर्मल थे.शालिनी ऑक्वर्ड स्थिति में आ गई.जगदीश ने बरम्यूडा फिर से चढ़ा कर अपने लिंग को ढंकते हुए कहा.
‘रिलेक्स, शालिनी. न कोई सूजन है, न दर्द है, मुझे कुछ नहीं हुआ.’
‘जी पर वो आप ने हाथ अंदर किया था तो… मैं समझी..’
ढीली आवाज में शालिनी ने कहा, उसे सुझा नहीं की आगे क्या बोले.
‘मैं अपना लिंग सहला रहा था. ओके?’
जगदीश ने कहा.
‘ओह… आई एम सो सॉरी भैया – ‘
अपनी गलती पर लजा कर सर पीटते हुए शालिनी फिर अंदर भागती हुई सोचने लगी : क्या बुद्धू लड़की हूं मैं! ऐसे कोई किसी की बरम्यूडा खींचता है क्या…! हे भगवान… मेरा क्या होगा…!
(३६ -ये तो सोचा न था…विराम, क्रमश