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Incest ये तो सोचा न था…

Ek number

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३५ – ये तो सोचा न था…

[(३४ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :
तो दीदी ने कभी उसे डांटा क्यों नहीं?

-क्या दीदी भी चाहती थी की मैं उसे नग्न अवस्था में देखु?

इसलिए मोहिते ने हिम्मत करते हुए सिर उठा कर तूलिका से पूछा.

‘तू आज का विचारत आहे हे प्रश्न? चार वर्षानंतर-’ ( ये सवाल तुम आज क्यों पूछ रही हो? चार साल बाद -)

इस सवाल का तूलिका ने जो जवाब दिया वो मोहिते के फ़रिश्तो ने भी सोचा न था… ]


मोहिते

‘मुझे इतना गुस्सा आया था की तेरे कान के नीचे दो बजाने वाली थी…’

तूलिका ने कहा. मोहिते सहम गया. तभी कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई. मोहिते उठ कर दरवाजे के पास गया. दरवाजा खोला तो बाहर शालिनी और जगदीश खड़े थे.

‘तूलिका अब कैसी है?’ जगदीश ने पूछा.

‘गरम.’ मोहिते के मुंह से निकल गया.

यह सुन शालिनी ने चिंतित हो कर कमरे में दाखिल होने एक कदम बढ़ा कर पूछा. ‘मतलब अभी भी बुखार उतरा नहीं?’

मोहिते को एहसास हुआ की उसने बोलने में लोचा मारा है. बात सम्भालते हुए उसने कहा.

‘नहीं पर उतर जाएगा, दवाई ले कर अभी सोई है…’

‘ओके, कोई जरूरत पड़े तो हम यहीं पर है….’

‘ओके, थैंक्स-’

शालिनी और जगदीश अपने कमरे की ओर आगे बढ़े. मोहिते ने दरवाजा बंद करके गहरी सांस ले कर तूलिका की और देखा. वो अब तक अपनी जांघ खोले हुए बैठी थी.

‘तो फिर तुमने मेरे कान के नीचे बजाया क्यों नहीं ?’ तूलिका के पास जा कर मोहिते ने पूछा.


T-2

‘मुझे पक्का पता नहीं चला की कौन देख रहा था. छेद में आंख लगाने वाले को तो सामने वाला साफ़ दीखता है पर छेद पर किसने आंख लगाईं है वो छेद के दूसरी ओर वाले को कैसे समझेगा ? मुझे शक हुआ की तू हो सकता है या फिर कोई और भी… पर कौन? मेरी सटक गई, और तेजी से कपडे पहन कर मैं तुझे पूछने बाहर आई. पर तब तक तू मोहल्ले में क्रिकेट खेलने निकल गया था…’

मोहिते को कुछ याद नहीं आया, पर वो अक्सर क्रिकेट खेलने जाता था. वो सुनता रहा.

तूलिका ने कहा. ‘उस शाम को तू देर तक आया नहीं -तेरे दोस्तों से पूछने पर पता चला की आज बड़ी मैच थी और सबको तु बहुत रन बनाएगा ऐसी उम्मीद थी पर तु ज़ीरो पर आउट हो गया इसलिए उदास है और महोल्ले में लौटने में तुझे शर्म आ रही है. तु देर रात तक नहीं आया और मेरी आंख लग गई, रात को अचानक मेरी आंख खुली तो तू मेरे तकिये के नीचे कुछ रख रहा था. मैंने तुझे रोककर पूछा की क्या रख रहा है तो तू बोला की कुछ पैसे है ताई -तुझे काम आएंगे… मैंने कहा मुझे नहीं चाहिए पैसे… तूने जिद की - तुझे कुछ पर्सनल लेना हो तो… आई से पैसे मत मांग वो अपने टेंशन में होती है - दे नहीं पाती, गुस्सा करती है अगर कुछ मांगा तो…मुझे तुम पर चिढ आ रही थी - मुझे पूछना था की तू बाथरूम के छेद से मुझे देख रहा था क्या पर उसके पहले ये पैसे की बात बीच में आ गई… मैंने झुंझलाकर तुझे कहा था - मेरी चप्पल की फ़िक्र मत कर - बाबा लेने वाले है नई चप्पल. तूने मेरी ओर देखा फिर कहा, ‘और कुछ टूट गया हो या फट गया हो तो पैसे काम आयेंगे …’ इतना बोल कर तू कमरे के बाहर चला गया था…जब तूने कहा की -कुछ टूट गया हो या फट गया हो तो काम आयेंगे - तब एकदम से मुझे याद आया की आज नहा कर ब्रा पहनते वक्त मैं फ़टी ब्रा देख कर दुखी हो गई थी… जब चप्पल टूट गई तब मां ने इतना डांट दिया था की नई ब्रा लेने की बात करने की हिम्मत नहीं हो रही थी…’

मोहिते तूलिका को देखता रह गया, तूलिका की आंखों में आंसू थे. उसने मोहिते का चेहरा थाम कर कहा. ‘तब मुझे यकीं हो गया की बाथरूम के छेद से तू ही देख रहा था, पर तू सिर्फ मेरा नंगा बदन नहीं देखता था - मेरे कपड़े भी देखता था और ताई फ़टी ब्रा न पहने यह फ़िक्र भी करता था… बंड्या कैसे गुस्सा करती तुझ पर… तू सिर्फ मेरे शरीर को देखता नहीं था - बल्कि दूसरे बुरी नजर से न देखें यह फ़िक्र भी करता था… दूसरे दिन सुबह मां ने जब मुझे पूछा की ‘बंड्या को नया बेट लेना है - कितने दिन से पैसे जमा कर रहा है - तेरे पास कुछ है क्या?’ ..... बंड्या! नई बेट के बिना तू मैच हारने तैयार था पर अपनी ताई की छाती की फ़िक्र तुझे अपनी जित से ज्यादा थी- तब मेरे जी में आया की मेरी ब्रा फाड़ कर तुझे मेरी छाती से चिपका दूं….’

कहते हुए तूलिका की आंखें फिर भर आई.

मोहिते को समझ में नहीं आया की क्या बोले. उसने तूलिका के आंसू पोंछते हुए कहा. ‘तू रो क्यों रही है ताई?’

‘इसलिए की मैंने सिर्फ सोचा की मेरी ब्रा फाड़ कर तुझे अपनी छाती से चिपकाऊंगी, पर ऐसा कर नहीं पाई… तू बाथरूम के छेद से मुझे देखता रहा, पर मेरी हिम्मत नहीं हुई की बाथरूम का दरवाजा खोल कर तुझे ये कहु की ‘बंड्या - छुप छुप कर मत देख - हक़ से देख- जो फ़र्ज़ समझता है उसका हक़ भी बनता है…’ मैं यह कभी नहीं कह पाई… और मेरी शादी हो गई… और फिर अचानक एक दिन तूने मेरे साथ बात करनी बंध कर दी…’

मोहिते के लिए यह सब बहुत चौंका देने वाला था.

‘तूने मुझसे बात क्यों बंद कर दी? मेरी क्या गलती थी?’

‘ताई, जब तेरी शादी हुई तो मुझसे सहन नहीं हुआ, जो शरीर मैं रोज देखता था उसे कोई और छू रहा है, प्यार कर रहा है यह सोच कर मैं पागल हो जाता था… तू सामने आती थी तो तुझे बांहों में जकड़ कर भगा ले जाने का मन करता था…. मेरे पागलपन में मैं तेरे साथ कहीं कुछ उल्टा सीधा न कर दूं इसलिए मैंने तुझसे मिलना और बात करना ही बंद कर दिया…’

‘वेडा रे वेडा माझा बावळट बंड्या….’ (पगला कहीं का मेरा भोला भैया…) कहते हुए तूलिका ने मोहिते को खींच कर गले लगा दिया.

मोहिते एकदम भावुक हो गया. उसके कान में तूलिका ने होले से कहा. ‘आज मेरे मन की मुराद मैं पूरी कर के रहूंगी बंड्या…’

और मोहिते पूछे की कौनसी मुराद उससे पहले तूलिका ने अपना ब्लाउज़ खोल कर ,ब्रा फाड़ कार मोहिते का चहेरा अपने नग्न स्तनों में रगड़ना शुरू कर दिया…

***


जुगल

‘मैं आपको आगाह कर देना चाहता हूं मैं सम्मोहन थेरेपी से आपकी पत्नी का उपचार करूंगा. तेजी से रिजल्ट लाने में यह थेरेपी हेल्प कर सकती है. और मुझे आपका इस में सहयोग चाहिए.’

डॉ. प्रियदर्शी ने जुगल से कहा.

‘मुझे क्या करना होगा?’

‘आप को एक समझदार और प्रेमपूर्ण पति बन कर आपकी पत्नी को ठीक होने में एक्टिव सहयोग देना होगा.’

‘एक्टिव सहयोग?’

‘हम आपकी पत्नी के अतीत में जा कर उसकी फिलहाल की मानसिक स्थिति की दुर्दशा के मूल खोजने की कोशिश करेंगे. मी. रस्तोगी, ऐसा करने से कई अनजाने और कड़वे सच सामने आयेंगे। आपको उसे सहना होगा और अपनी पत्नी के प्रति स्नेह बनाये रखना होगा. किसी मोड़ पर आपके मेंटल और फिजिकल सपोर्ट की जरूरत भी पड सकती है…’

‘जी, मैं हर तरीके से को-ऑपरेट करूंगा डॉक्टर.’

‘गुड़. प्लीज़ बाहर जा कर आपकी पत्नी को ले आइए. हम पहला सेशन अभी शुरू करते है.’

जुगल धड़कते दिल के साथ चांदनी को लेने केबिन के बाहर गया.

***


जगदीश

रिसोर्ट देख शालिनी बहुत खुश हो गई.

‘यहां रुकेंगे हम भैया ? कितनी खूबसूरत जगह है - सच में यह तो कमाल का सरप्राइज़ है.’

जगदीश मुस्कुराकर बोला. ‘हां, दो दिन हमें यहां रुकना होगा. फिर डॉक्टर तुम्हे जांच ले उसके बाद मुंबई चले जायेंगे. ठीक है?’

‘ठीक नहीं, बढ़िया है.’

पलंग पर छोटे बच्चे की तरह बैठे बैठे हलके जम्प लेते हुए शालिनी बोली. ऐसा करने से उसकी कमीज़ में ब्रा हिन् स्तन सागर की मौज की तरह उछल रहे थे. जगदीश ने मुश्किल से अपनी नजरों पर काबू करते हुए शालिनी से कहा. ‘अब तुम थोड़ा आराम करो. मैं बाहर बालकनी में बैठता हूं.’

‘जहां जा कर बैठना हो बैठना पर अपना सरप्राइज़ भी तो देख लो!’ कहते हुए शालिनी ने प्लास्टिक की बड़ी बेग जगदीश के हाथों में थमा दी. जगदीश ने देखा तो उसके लिए चार पेंट, पांच शर्ट, दो बरम्यूडा, और चार अंडरवियर थे….’

‘अरे!’ जगदीश ने आश्चर्यचकित होकर पूछा. ‘अस्पताल के बेड पर पड़े पड़े कैसे यह शॉपिंग कर ली?’

‘वही तो सरप्राइज़ है भैया…’ शालिनी चमकते चहेरे के साथ बोली.

‘सब के कलर तो बढ़िया है शालिनी पर साइज़…?’

‘मेरा अंदाजा गलत तो नहीं होगा पर आप ट्राई कर लो-’

‘अभी करता हूं , ये कपडे पहने हुए काफी समय हो गया है…’ कह कर जगदीश दूसरे कमरे में जाने लगा.

‘भैया…’ शालिनी ने कहा.

जगदीश ने मुड़ कर देखा.

‘मेरी बात मानो तो अंडरवियर ट्राई मत करो, अभी आपको पहनना नहीं है…’

‘वैसे अब मैं ठीक हूं शालिनी…’

‘भगवान करे आप हमेशा ठीक रहे पर अभी अभी ठीक हुआ है वो हिस्सा…सो कुछ समय उन पर कोई दबाव न आये तो बेहतर….’

जगदीश को लगा की यह भी ठीक है. उसने मुस्कुराकर कहा. ‘ठीक, जो हुक्म रानी साहिबा का.’

शालिनी शरमाते हुए बोली. ‘मैं रानी नहीं, दासी हूं.’

जगदीश यह सुन कुछ बोल नहीं पाया. कपडे ट्राई करने चला गया.

***


मोहिते

तूलिका के उन्मुक्त स्तनों में अपना चहेरा रगड़ रगड़ कर मोहिते पागल हो गया. बारी बारी तूलिका के दोनों निपलों को चूसा, चाटा, फिर हलके से काटते हुए उसने नजरे उठा कर अपनी ताई की ओर देखा तब तूलिका ने हंस कर कहा. ‘बंड्या, देखता क्या है? तू इनको काट के अपने साथ ले जा तब भी मना नहीं करूंगी…’

इस बात से उत्तेजित हो कर मोहिते ने स्तनों को छोड़ तूलिका के होठ चूसने शुरू किये. होठ चूसते चूसते मोहिते ने तूलिका को पलंग पर अपने साथ लेटा दिया और अपने दोनों पैरो की कैंची में तूलिका के बदन को जकड़ लिया.तूलिका मुस्कुराने लगी.

‘हंस क्यों रही हो?’ मोहिते ने पूछा.

‘सोच रही थी बुखार उतरा तो भाई चढ़ गया…’ तूलिका मोहिते का चहेरा अपने चहेरे के साथ रगड़ते हुए बोली.

मोहिते ने कहा. ‘तू है ही ऐसी ताई, कोई भी चढ़ना चाहेगा…’

‘मेल्या… तू कोई नहीं,भाई है…’

‘ताई, मुझे अब भी मेरे नसीब पर यकीन नहीं हो रहा, क्या सच में तू बिना कपड़ो के मेरी बांहो में है?’

‘बुद्धू, मेरे चूचक के तने हुए निपल तेरी छाती में कील की तरह चुभ नहीं रहे क्या?

‘ओह.....ताई ई...ई ...ई ...ई ...ई ...ई ...ई ...ईई ई ई ई ई ई ई......’

ऐसा पागलों की तरह चीखते हुए मोहिते तूलिका के बदन से जोंक की तरह चिपक गया. तूलिका को सांस लेने में तकलीफ होने लगी पर उसने तय किया था कि आज वो भाई को किसी बात से मना नहीं करेगी, भले वो उसे रौंद डाले…

***


जगदीश

जगदीश ने शालिनी के पास आ कर कहा. ‘थेंक यु शालिनी, सभी कपडे एकदम परफेक्ट साइज़ के है.’

‘चार दिनों में क्या कमाल हो गया भैया.’ शालिनी ने कहा. ‘मुंबई से निकले तब हम एक दूसरे की ओर देखने से हिचकिचाते थे और अब एक दूसरे के कपड़ो की साइज़ जुबानी हो गई है!’

जगदीश ने कहा. ‘हां शालिनी, ये तो सोचा न था…’ फिर सारे कपडे समेटते हुए आगे कहा. ‘अब तुम थोड़ा आराम कर लो, फिर तुम्हे दवाई लगानी है.’

‘भैया, अब की बार मुझे उल्लू मत बनाना, मेरे सामने दवाई लगाना -बोल देती हूं.’

‘तो आप ऐसी दासी हो जो हुकुम करती है?’ जगदीश ने हंस कर पूछा.

‘ओह भैया…’ कहते हुए लजा कर शालिनी ने अपना मुंह तकिये में छिपा लिया.

जगदीश हंस कर कपड़े ले कर वहां से चला गया.

***


मोहिते

मोहिते का जोश थोड़ा नरम पड़ा तब तूलिका ने अपने आप को उससे अलग करते हुए कहा.

‘मैं कहीं भागी नहीं जा रही भाई, थोड़ा आराम से.’

मोहिते झेंप गया और तूलिका से खुद को अलग कर पलंग पर से उठ कर खड़ा हुआ.

तूलिका भी पलंग पर से उतर कर खड़ी हुई और एक अंगड़ाई ली. मोहिते मंत्रमुग्ध हो कर तूलिका को देखता रह गया. तूलिका के बाल बिखरे हुए थे, आंसुओं के कारण काजल बह कर गालो पर फैला हुआ था जैसे किसी बच्चे ने रंग बिखेरा हो. तूलिका के होठ लगातार चूमने की वजह से भीग भीग कर और भी मनमोहक हो गए थे. अंगड़ाई लेते हुए तूलिका के उठे हुए दोनों हाथ उसकी अंग भंगिमा को अत्यंत आकर्षक बना रहे थे. उसका ब्लाउज़ खुला हुआ, ब्रा फटी हुई और उनमे से तने हुए स्तन यूं झांक रहे थे जैसे बिल में से दो खरगोश अपना मुंह बाहर निकाल कर दुनिया का नजारा कर रहे हो…नीचे कमर पर पहने पेटीकोट पर इतनी सिलवटे थी की मोहिते को लगा जैसे क्रिकेट का मैदान किसी ने बेतरतीबी से खोद डाला हो…

‘कशी वाटते ताई?’ मोहिते को यूं एकटक देखता हुआ देख तूलिका ने पूछा.

‘अप्सरा.’ मोहिते ने कहा.

‘जब बाथरूम के छेद से तू मुझे देखता था वैसी या अलग?’

‘बहुत अलग.’

‘क्या अलग? अब मोटी हो गई हूं ?’

‘ताई, तू मोटी नहीं हुई, अब तेरा बदन भर गया है… ये मम्मे तब तोतापुरी आम जैसे कुछ लंबे से थे जो अब हापुस आम जैसे गोल गोल हो गए है.’

‘और बताओ…’

‘और कुछ नहीं - कॉमेंट्री ख़तम.’

‘क्यों? और कुछ नहीं बोलने जैसा?’ तूलिका को आघात लगा.

‘और कुछ दिख ही नहीं रहा ताई…बाथरूम में तो तिजोरी के सारे दराज खुले होते थे - यहां तो सब ढका ढका है…’

‘हलकट… बेशर्म…’ तूलिका ने कृत्रिम गुस्से से कहा.

‘बस क्या ताई? छुप छुप कर देखता था तब सब दिखाती थी! अब सामने हूं तो सेंसर कर दिया?’

‘पागल है क्या? लड़की हूं, लाज तो आयेगी ना?’

‘ठीक है, तो मैं बाहर जाऊं?’ मोहिते ने पूछा.

यह सुन कर तूलिका एकदम से मोहिते के पास तेजी से जा कर चिपक जाते हुए बोली.

‘नहीं भाई तुझे बाहर नहीं, अब अंदर जाना है - इतना अंदर की बाहर की सारी दुनिया को हम दोनों भूल जाये…’


(३५ -ये तो सोचा न था…विराम, क्रमश:)
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३६ – ये तो सोचा न था…

[(३५ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :

‘हलकट… बेशर्म…’ तूलिका ने कृत्रिम गुस्से से कहा.

‘बस क्या ताई? छुप छुप कर देखता था तब सब दिखाती थी! अब सामने हूं तो सेंसर कर दिया?’

‘पागल है क्या? लड़की हूं, लाज तो आयेगी ना?’

‘ठीक है, तो मैं बाहर जाऊं?’ मोहिते ने पूछा.

यह सुन कर तूलिका एकदम से मोहिते के पास तेजी से जा कर चिपक जाते हुए बोली.

‘नहीं भाई तुझे बाहर नहीं, अब अंदर जाना है - इतना अंदर की बाहर की सारी दुनिया को हम दोनों भूल जाये…’ ]


मोहिते

मोहिते ने तूलिका के चेहरे को थामा और आंखों में आंखें डाल कर पूछा.

‘मैं कौन हूं ?’

‘भाई.’

मोहिते ने तूलिका के होठो को चूसना शुरू किया. उस तरह जैसे तूलिका के होंठ होंठ न हो पर रस की कुप्पी हो, दूध से रिसता निपल हो, या जैसे तूलिका के होठ गीला वस्त्र हो और उसके खुद के होठ कड़कती धुप हो…

कुछ ही क्षणों में तूलिका को लगा जैसे उसके होंठ पर मोहिते ने होठों से कोई बीज बोया है - किसी फूल के पौधे का बीज और पौधा उग भी गया, कलियां भी फुट निकली और फूल भी खिल गये…रंग बिरंगी, अनगिनत फूल…होठों पर फूल, गालों पर फूल, आंखों में फूल, स्तन और नितंबों पर फूल, नाभि और योनि, कांख और नितंब मध्य रेखा, जांघें और कमर, एड़ी और घुटने, अरे यहां तक की हाथ पैरों की उंगलियां, शरीर के हर संभवित हिस्से में हजारों फूल खिल उठे… तूलिका को आश्चर्य हुआ - बंड्या मेरे होठों को चूस रहा है यह होठों में प्राण फूंक रहा है!



T-M

मोहिते तूलिका का चहेरा दोनों हाथों में थाम कर यूं उसके होंठ चूस रहा था जैसे सहरा की धुप में अपने अस्तित्व को टिकाये रखने की जद्दोजहद में कोई पेड़ की जड़ें भूगर्भ की मिट्टी में से नमी शोष रही हो. पर तूलिका को ऐसा अहसास हो रहा था की पेड़ तो वो खुद है और बंड्या के होंठ वो सूरज की किरणें है जो उसकी शाखा के पत्तों समान उसके होठों को चुम कर उसे प्राणवायु दे रहे है!

यह प्रेम का चमत्कार था जो जीवन दे रहा है वो जीवन देता हो ऐसा प्रतीत हो रहा था और जो जीवन ले रहा था वो जीवन देता लग रहा था. चुंबन तो आये दिन, आये पल होते रहते है, लाखों की तादात में पर कोई कोई चुंबन ऐसा अनन्य होता है जो प्राणप्रतिष्ठा के स्तर का होता है. तूलिका और मोहिते उन भाग्यवान में से दो थे जो प्रकृति के इस अदभुत वरदान को भोग रहे थे.

चुंबन प्रक्रिया में फिर विराम ले कर मोहिते ने तूलिका से पूछा.

‘मैं कौन हूं ?’

‘मेरी जान है, मेरा प्राण है, मेरा खून है, मेरा नसीब, मेरा प्रेम है…. बंड्या तू मेरा राजा है…’

तूलिका ने चुंबन रसपान की मत्त अवस्था के नशे में भटकती आवाज में जवाब दिया.

जिस तरह संभोग प्रक्रिया में लिंग सातत्य से योनि प्रवेश जारी रखता है उस तरह मोहिते के होंठों ने तूलिका के होंठों पर आक्रमण और समर्पण का मिश्र कृत्य क्रमशः निर्गत रखा.

***


जुगल

‘तुम एक अच्छी लड़की हो.’

‘जी, सर. मैं एक अच्छी लड़की हूं.’

‘मैं तुम्हारा सर नहीं डॉक्टर हूं.’

‘जी, डॉक्टर.’

‘डॉक्टर से कोई बात छुपाना नहीं चाहिए.’

‘जी, डॉक्टर.’

‘अब मैं जो भी पूछूंगा उसका तुम्हें सही सही जवाब देना होगा.’

‘जी डॉक्टर.’

‘तुम्हारा नाम क्या है?

‘चांदनी’

‘अपना पूरा नाम बताओ.’

‘चांदनी सोम सिंह जांगिड़ और चांदनी रायचंद महेश्वरी.’

‘क्या तुम्हारे दो नाम है?’

‘नहीं, डॉक्टर. सोम सिंह जांगिड़ मेरे प्रथम पिता का नाम है और रायचंद महेश्वरी मेरे सौतेले पिता का नाम है.’

‘क्या तुम जुगल रस्तोगी को जानती हो?’

‘नहीं डॉक्टर.’

‘तुम्हारी उम्र क्या है ?’

‘उन्नीस साल डॉक्टर.’

‘तुम क्या करती हो चांदनी?’

‘मैं कॉलेज में पढ़ाई करती हूं. घर के काम में मम्मी की हेल्प करती हूं.’

‘तुम मम्मी से प्यार करती हो?’

‘मैं मम्मी से बहुत प्यार करती हूं. डॉक्टर.’

‘और पापा से ? पापा से प्यार नहीं करती?’

‘पापा से बहुत डर लगता है.’

‘पापा से क्यों डर लगता है?’

‘पापा मम्मी को बहुत मारते है, गाली देते है, और मैं रोकू तो मुझे मारते है, गाली देते है.’

‘पापा तुमको कभी प्यार नहीं करते?’

‘नहीं पापा किसीको भी प्यार नहीं करते… पापा आ गये.......पापा मारेंगे… पापा मारेंगे… पापा...पापा…’

बोलते हुए चांदनी बेहोश हो गई.

झनक और जुगल ने डॉ. प्रियदर्शी की ओर देखा.

‘यह मेमोरी चांदनी के लिए बहुत वजनदार है, हम कुछ देर में फिर कोशिश करते है.’

डॉक्टर ने कहा.

***


जगदीश

शालिनी पलंग पर सो गई थी. जगदीश ने नहा कर कई दिनों के बाद ढंग के कपड़े पहने. एक ढीला चौड़ा शर्ट और बरम्यूडा पहन कर वो कमरे की बालकनी में आराम से सोफा चेयर पर बैठा था. और आगे क्या करना चाहिए यह सोच रहा था.

क्या हुस्न बानो को कुछ याद आएगा? क्या उसके पास कोई ऐसी जानकारी होगी जिससे मां के बारे में कुछ पता मिले? शालिनी को मुंबई सलामत छोड़ कर तुरंत फिर पूना आ कर हुस्न बानो को मिल कर कोशिश करनी चाहिए. - ऐसा सोचते हुए उसे हुस्न बानो के साथ की कामुक मुलाकात याद आ गई. अनजाने में जगदीश बरम्यूडा में हाथ डाले अपने लिंग को सहलाता आंखें मूंद कर हुस्न बानो के आकर्षक शरीर को याद करने लगा…. उफ्फ्फ कितना हरा भरा शरीर था हुस्न बानो का ! जगदीश अपने लिंग को सहलाते हुए हुस्न बानो की मधुर स्मृति में खोने लगा…



Husno-Banu3

***

मोहिते

जब अपने गले पर तूलिका ने भीगा भीगा स्पर्श महसूस किया तब अपनी आंखें खोल कर उसने देखा तो मोहिते उसका गला चाट रहा था.

‘बंड्या खुप घाम आहे रे कशाला चाटते ….?’ ( बहुत पसीना है, क्यों चाट रहे हो?)

‘माझी बहिणीच्या घाम माझ्या साठी पंचामृत आहे…’ ( मेरी बहन का पसीना मेरे लिए पंचामृत आहे…)

मोहिते ने कहा और फिर तूलिका का गला चाटते चाटते वो उसका कंधा चाटने लगा. कंधा चाटने में तूलिका का ब्लाउज़ आड़े आ रहा था सो उसने ब्लाउज़ और ब्रा को हटा के फेंकते हुए तूलिका से कहा. ‘ऐसा लग रहा है जैसे गिफ्ट पैकेट का रेपर निकाल रहा हूं…’

‘इस गिफ्ट पर तेरा नाम बरसो पहले लिख दिया था बंड्या - डिलीवरी आज हुई है…’

‘ताई, इतनी देर से यह तोहफा मिला वो ठीक ही हुआ है- इस महाभोग को पचाने की लायकात भी मेरी तब नहीं थी शायद….’

‘काय रे महाभोग वगैरे ! काय काय बोलतो! मैं क्या तुम्हें इतनी अच्छी लगती हूं ?’

‘तुम मेरे लिए क्या हो यह अगर मैं शब्दों से बता पाता तो बता देता. पहली बार यह मौका मिला है की जबान से बता रहा हूं पर शब्दों के बिना.’ कह कर फिर मोहिते ने तूलिका के गले और स्तनों के बीच के हिस्से को चाटना शुरू किया… तूलिका मोहिते के इस अनोखे प्रेम प्रस्ताव को आंखें मूंद कर भोगने लगी… चाटते चाटते मोहिते ने तूलिका का एक हाथ उठा कर उसकी बगल के बाल चाटने शुरू किये तब तूलिका को बहुत ऑड लगा. मोहिते को दूर हटा कर तूलिका ने कहा, ‘काय करतोस रे वेड्या ? ये बगल के बाल है - कितना पसीना है यहां !’

मोहिते ने तूलिका को बांहों में खिंच कर आलिंगन में जकड़ कर कहा.’ताई, तु मेरे सपनो की देवी है और मैं तुम्हारा जीभ-अभिषेक कर रहा हूं - पूजा से पहले तुझे इस तरह स्वच्छ कर रहा हूं. तेरे शरीर की हर गोलाई और हर खाई, हर गली और हर पहाड़ को मैं जीभ से चाट चाट कर चखते चखते स्वाद के चटकारे लेते हुए भोगूंगा- मेरी जीभ मेरे प्यार का रेवन्यू स्टेम्प है और तेरा शरीर में अपने नाम कर रहा हूं.’

मोहिते की पगलाई बातो से तूलिका को उस पर बहुत स्नेह आ रहा था. उसका चेहरा दोनों हाथों में थाम कर तूलिका ने पूछा. ‘पूरे बदन को तेरे नाम करने के बाद इसका क्या करेगा ?’

‘बहुत कुछ करूंगा. खेती करूंगा…’ कह कर अपने पेंट की ज़िप खोल कर अपना लिंग तूलिका के हाथ में थमा कर कहा, ‘ये रहा हल. इसे चलाऊंगा तेरे शरीर पर…’

मोहिते के लिंग को सहला कर तूलिका ने एक आह भर कर कहा. ‘ ओह भाई…देखो ना कितना तन गया है…’

‘जब उसके मन की बात होती है तब तन जाता है ताई, यह अभी जो चल रह है वो इसका टाइम है, मैं तो अभी इसका गुलाम हूं. ‘

‘गप्प बस, इसकी गुलाम तो मैं हूं.’ कह कर तूलिका घुटनो के बल बैठ कर मोहिते के लिंग को सहला कर पूछा. ‘तू ही चाटता रहेगा या मुझे भी मौका देगा?’

और मोहिते के जवाब की राह देखे बिना तूलिका ने मोहिते के लिंग पर जुबान फेरना शुरू कर दिया. मोहिते कुछ कह नहीं सका. उसने तूलिका के सिर को सहलाना शुरू कर दिया…

***


जुगल

‘चांदनी….’

‘....’

‘चांदनी, तुम मुझे सुन सकती हो?’

‘जी.’

‘मैं डॉक्टर बोल रहा हूं। ‘

जी, डॉक्टर…’

‘चांदनी, क्या तुम्हारे पापा तुम्हें मारते है?’

‘पापा को पनिशमेंट करनी हो तब मारते है.’

‘पापा क्यों पनिशमेंट करते है?’

‘मेरी गलती हो जाए तो पापा पनिशमेंट करते है.’

‘कैसी गलती?’

‘उनकी बात न मानो तो पनिशमेंट करते है. पेंटी पहनो तो पनिशमेंट करते है.’

‘क्या पनिशमेंट करते है?’

‘मेरे बम्स पर चाबुक मारते है.. उह्ह्ह…अभी भी दुख रहा है डॉक्टर…’

‘चांदनी प्लीज़ रोना बंद करो, यहां तुम्हारे पापा नहीं है, तुम्हे कोई नहीं मारेगा…’

‘डॉक्टर मेरे बम्स बड़े है इस लिए पापा पनिशमेंट करते है…’

संमोहन की असर में चांदनी बोलती जा रही थी और जुगल की आंखों से आंसू थम नहीं रहे थे. झनक जुगल की पीठ सहलाते उसे सम्भाल रही थी.

‘चांदनी, अब रोना बंद करो, अब तुमको कोई पनिशमेंट नहीं देगा. पापा भी नहीं, कोई नहीं.’

‘नहीं डॉक्टर, पापा को कोई मना नहीं कर सकता. पापा को पनिशमेंट देने से कोई रोक नहीं सकता.’

‘चांदनी, तुम दस मिनिट के लिए सो रही हो.’

‘जी डॉक्टर…’

डॉ. प्रियदर्शी जुगल को केबिन के बाहर ले गए और कहा.

‘अब आपको आपकी पत्नी का प्रोटेक्टर बनना है, तैयार रहना.’

‘क्या करना होगा?’

‘प्यार. अपनी वाइफ को प्यार करना है...’

‘फिज़िकल प्यार?’

‘मे बी, जरूरत पड़ी तो वो भी करना पड सकता है, एनी प्रॉब्लम?’

जुगल कुछ बोल नहीं पाया. डॉक्टरने पूछा.

‘मी.रस्तोगी, आप अपनी पत्नी को प्यार तो करते हैं ना?’

‘जी...जी…’

‘फिर यह संकोच क्यों? यह भी ट्रीटमेंट का ही हिस्सा है…’

‘जी. डॉक्टर…’

जुगल हारे हुए जुआरी की तरह बोला.

‘प्लीज़, अपने आप को सम्हालिए मी. रस्तोगी.’

कह कर डॉक्टर फिर केबिन में गए, जुगल ठगा सा खड़ा रह गया. झनक ने बाहर आ कर पूछा.

‘क्या हुआ? क्या कहा डॉक्टर ने?’

‘वो भाभी से फिज़िकल प्यार करने कह रहे है झनक, ये मैं कैसे कर सकता हूं !’

‘जैसे इससे पहले किया था जुगल. उस रात नशे में तुमने चांदनी भाभी के साथ ही संभोग किया था.’

‘नहीं झनक…!’ फटी आवाज में जुगल ने कहा. ‘ये क्या कह रही हो!’

***


जगदीश

‘भैया…!’

शालिनी की चीख से जगदीश ने चौंक कर अपनी आंखें खोली. सामने शालिनी डर से फटी आँखों से जगदीश को देख रही थी.

‘क्या हुआ?’

जगदीश ने पूछा.

‘भैया ! आप क्या कर रहे हो? ‘

कहते हुए शालिनी ने जगदीश के बरम्यूडा की और इशारा किया.

जगदीश ने देखा तो उसका एक हाथ अपने बरम्यूडा में था. अपने लिंग को सहलाते हुए वो हुस्न बानो के ख्यालो में उलझा था. शालिनी के यूं पूछने पर उसने झेंप कर अपना हाथ बरम्यूडा के बाहर निकाल दिया.

‘आप को फिर से सूजन हो गई क्या? बताया क्यों नहीं मुझे ?’

‘नहीं, सूजन नहीं हुई…’


मैं लिंग सहला रहा था -यह कहना जगदीश को जमा नहीं.

‘मुझे कुछ नहीं सुनना , बताइये क्या हुआ है?’

पूछते हुए शालिनी जगदीश के लिंग के सामने बैठ पड़ी.

‘शालिनी, टेंशन मत लो..’

ऐसा जगदीश कह रहा था पर शालिनी की धीरज टूट गई, उसने तपाक से जगदीश का बरम्यूडा खींच कर नीचे उतार दिया. और जगदीश के टेस्टिकल को देखने की कोशिश की. पर बरम्यूडा नीचे होते ही जगदीश का पूर्ण रूप से तना हुआ लिंग शालिनी के सामने हिलोरे लेने लगा. शालनी चौंक पड़ी, टेस्टिकल नॉर्मल थे.शालिनी ऑक्वर्ड स्थिति में आ गई.जगदीश ने बरम्यूडा फिर से चढ़ा कर अपने लिंग को ढंकते हुए कहा.

‘रिलेक्स, शालिनी. न कोई सूजन है, न दर्द है, मुझे कुछ नहीं हुआ.’

‘जी पर वो आप ने हाथ अंदर किया था तो… मैं समझी..’

ढीली आवाज में शालिनी ने कहा, उसे सुझा नहीं की आगे क्या बोले.

‘मैं अपना लिंग सहला रहा था. ओके?’

जगदीश ने कहा.

‘ओह… आई एम सो सॉरी भैया – ‘

अपनी गलती पर लजा कर सर पीटते हुए शालिनी फिर अंदर भागती हुई सोचने लगी : क्या बुद्धू लड़की हूं मैं! ऐसे कोई किसी की बरम्यूडा खींचता है क्या…! हे भगवान… मेरा क्या होगा…!


(३६ -ये तो सोचा न था…विराम, क्रमश:)
 
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rakeshhbakshi

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बहुत अच्छीं तरीके से स्टोरी आगे बड़ रही है तीनो लव स्टोरी एक साथ आगे बड़ रही है देखते हैं की जगदीश का मन केसे बदलता है
और जुगल के सामने क्या क्या राज खुलते हैं
आपका बहुत बहुत धन्यवाद-----
:thankyou:
:thankyou::thankyou:
 

rakeshhbakshi

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Bahut hi behtarin kahani hai … kuch nahin ho raha or fir bhi sab kuch ho raha hai.. jabardast hot thrilling … 👏🏻👏🏻
इतने बहेतरीन शब्दों से मेरा होंसला बढ़ाने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद –

:rose2:

:rose2::rose2:
 
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