Behtreen update३५ – ये तो सोचा न था…
[(३४ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :
तो दीदी ने कभी उसे डांटा क्यों नहीं?
-क्या दीदी भी चाहती थी की मैं उसे नग्न अवस्था में देखु?
इसलिए मोहिते ने हिम्मत करते हुए सिर उठा कर तूलिका से पूछा.
‘तू आज का विचारत आहे हे प्रश्न? चार वर्षानंतर-’ ( ये सवाल तुम आज क्यों पूछ रही हो? चार साल बाद -)
इस सवाल का तूलिका ने जो जवाब दिया वो मोहिते के फ़रिश्तो ने भी सोचा न था… ]
मोहिते
‘मुझे इतना गुस्सा आया था की तेरे कान के नीचे दो बजाने वाली थी…’
तूलिका ने कहा. मोहिते सहम गया. तभी कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई. मोहिते उठ कर दरवाजे के पास गया. दरवाजा खोला तो बाहर शालिनी और जगदीश खड़े थे.
‘तूलिका अब कैसी है?’ जगदीश ने पूछा.
‘गरम.’ मोहिते के मुंह से निकल गया.
यह सुन शालिनी ने चिंतित हो कर कमरे में दाखिल होने एक कदम बढ़ा कर पूछा. ‘मतलब अभी भी बुखार उतरा नहीं?’
मोहिते को एहसास हुआ की उसने बोलने में लोचा मारा है. बात सम्भालते हुए उसने कहा.
‘नहीं पर उतर जाएगा, दवाई ले कर अभी सोई है…’
‘ओके, कोई जरूरत पड़े तो हम यहीं पर है….’
‘ओके, थैंक्स-’
शालिनी और जगदीश अपने कमरे की ओर आगे बढ़े. मोहिते ने दरवाजा बंद करके गहरी सांस ले कर तूलिका की और देखा. वो अब तक अपनी जांघ खोले हुए बैठी थी.
‘तो फिर तुमने मेरे कान के नीचे बजाया क्यों नहीं ?’ तूलिका के पास जा कर मोहिते ने पूछा.
‘मुझे पक्का पता नहीं चला की कौन देख रहा था. छेद में आंख लगाने वाले को तो सामने वाला साफ़ दीखता है पर छेद पर किसने आंख लगाईं है वो छेद के दूसरी ओर वाले को कैसे समझेगा ? मुझे शक हुआ की तू हो सकता है या फिर कोई और भी… पर कौन? मेरी सटक गई, और तेजी से कपडे पहन कर मैं तुझे पूछने बाहर आई. पर तब तक तू मोहल्ले में क्रिकेट खेलने निकल गया था…’
मोहिते को कुछ याद नहीं आया, पर वो अक्सर क्रिकेट खेलने जाता था. वो सुनता रहा.
तूलिका ने कहा. ‘उस शाम को तू देर तक आया नहीं -तेरे दोस्तों से पूछने पर पता चला की आज बड़ी मैच थी और सबको तु बहुत रन बनाएगा ऐसी उम्मीद थी पर तु ज़ीरो पर आउट हो गया इसलिए उदास है और महोल्ले में लौटने में तुझे शर्म आ रही है. तु देर रात तक नहीं आया और मेरी आंख लग गई, रात को अचानक मेरी आंख खुली तो तू मेरे तकिये के नीचे कुछ रख रहा था. मैंने तुझे रोककर पूछा की क्या रख रहा है तो तू बोला की कुछ पैसे है ताई -तुझे काम आएंगे… मैंने कहा मुझे नहीं चाहिए पैसे… तूने जिद की - तुझे कुछ पर्सनल लेना हो तो… आई से पैसे मत मांग वो अपने टेंशन में होती है - दे नहीं पाती, गुस्सा करती है अगर कुछ मांगा तो…मुझे तुम पर चिढ आ रही थी - मुझे पूछना था की तू बाथरूम के छेद से मुझे देख रहा था क्या पर उसके पहले ये पैसे की बात बीच में आ गई… मैंने झुंझलाकर तुझे कहा था - मेरी चप्पल की फ़िक्र मत कर - बाबा लेने वाले है नई चप्पल. तूने मेरी ओर देखा फिर कहा, ‘और कुछ टूट गया हो या फट गया हो तो पैसे काम आयेंगे …’ इतना बोल कर तू कमरे के बाहर चला गया था…जब तूने कहा की -कुछ टूट गया हो या फट गया हो तो काम आयेंगे - तब एकदम से मुझे याद आया की आज नहा कर ब्रा पहनते वक्त मैं फ़टी ब्रा देख कर दुखी हो गई थी… जब चप्पल टूट गई तब मां ने इतना डांट दिया था की नई ब्रा लेने की बात करने की हिम्मत नहीं हो रही थी…’
मोहिते तूलिका को देखता रह गया, तूलिका की आंखों में आंसू थे. उसने मोहिते का चेहरा थाम कर कहा. ‘तब मुझे यकीं हो गया की बाथरूम के छेद से तू ही देख रहा था, पर तू सिर्फ मेरा नंगा बदन नहीं देखता था - मेरे कपड़े भी देखता था और ताई फ़टी ब्रा न पहने यह फ़िक्र भी करता था… बंड्या कैसे गुस्सा करती तुझ पर… तू सिर्फ मेरे शरीर को देखता नहीं था - बल्कि दूसरे बुरी नजर से न देखें यह फ़िक्र भी करता था… दूसरे दिन सुबह मां ने जब मुझे पूछा की ‘बंड्या को नया बेट लेना है - कितने दिन से पैसे जमा कर रहा है - तेरे पास कुछ है क्या?’ ..... बंड्या! नई बेट के बिना तू मैच हारने तैयार था पर अपनी ताई की छाती की फ़िक्र तुझे अपनी जित से ज्यादा थी- तब मेरे जी में आया की मेरी ब्रा फाड़ कर तुझे मेरी छाती से चिपका दूं….’
कहते हुए तूलिका की आंखें फिर भर आई.
मोहिते को समझ में नहीं आया की क्या बोले. उसने तूलिका के आंसू पोंछते हुए कहा. ‘तू रो क्यों रही है ताई?’
‘इसलिए की मैंने सिर्फ सोचा की मेरी ब्रा फाड़ कर तुझे अपनी छाती से चिपकाऊंगी, पर ऐसा कर नहीं पाई… तू बाथरूम के छेद से मुझे देखता रहा, पर मेरी हिम्मत नहीं हुई की बाथरूम का दरवाजा खोल कर तुझे ये कहु की ‘बंड्या - छुप छुप कर मत देख - हक़ से देख- जो फ़र्ज़ समझता है उसका हक़ भी बनता है…’ मैं यह कभी नहीं कह पाई… और मेरी शादी हो गई… और फिर अचानक एक दिन तूने मेरे साथ बात करनी बंध कर दी…’
मोहिते के लिए यह सब बहुत चौंका देने वाला था.
‘तूने मुझसे बात क्यों बंद कर दी? मेरी क्या गलती थी?’
‘ताई, जब तेरी शादी हुई तो मुझसे सहन नहीं हुआ, जो शरीर मैं रोज देखता था उसे कोई और छू रहा है, प्यार कर रहा है यह सोच कर मैं पागल हो जाता था… तू सामने आती थी तो तुझे बांहों में जकड़ कर भगा ले जाने का मन करता था…. मेरे पागलपन में मैं तेरे साथ कहीं कुछ उल्टा सीधा न कर दूं इसलिए मैंने तुझसे मिलना और बात करना ही बंद कर दिया…’
‘वेडा रे वेडा माझा बावळट बंड्या….’ (पगला कहीं का मेरा भोला भैया…) कहते हुए तूलिका ने मोहिते को खींच कर गले लगा दिया.
मोहिते एकदम भावुक हो गया. उसके कान में तूलिका ने होले से कहा. ‘आज मेरे मन की मुराद मैं पूरी कर के रहूंगी बंड्या…’
और मोहिते पूछे की कौनसी मुराद उससे पहले तूलिका ने अपना ब्लाउज़ खोल कर ,ब्रा फाड़ कार मोहिते का चहेरा अपने नग्न स्तनों में रगड़ना शुरू कर दिया…
***
जुगल
‘मैं आपको आगाह कर देना चाहता हूं मैं सम्मोहन थेरेपी से आपकी पत्नी का उपचार करूंगा. तेजी से रिजल्ट लाने में यह थेरेपी हेल्प कर सकती है. और मुझे आपका इस में सहयोग चाहिए.’
डॉ. प्रियदर्शी ने जुगल से कहा.
‘मुझे क्या करना होगा?’
‘आप को एक समझदार और प्रेमपूर्ण पति बन कर आपकी पत्नी को ठीक होने में एक्टिव सहयोग देना होगा.’
‘एक्टिव सहयोग?’
‘हम आपकी पत्नी के अतीत में जा कर उसकी फिलहाल की मानसिक स्थिति की दुर्दशा के मूल खोजने की कोशिश करेंगे. मी. रस्तोगी, ऐसा करने से कई अनजाने और कड़वे सच सामने आयेंगे। आपको उसे सहना होगा और अपनी पत्नी के प्रति स्नेह बनाये रखना होगा. किसी मोड़ पर आपके मेंटल और फिजिकल सपोर्ट की जरूरत भी पड सकती है…’
‘जी, मैं हर तरीके से को-ऑपरेट करूंगा डॉक्टर.’
‘गुड़. प्लीज़ बाहर जा कर आपकी पत्नी को ले आइए. हम पहला सेशन अभी शुरू करते है.’
जुगल धड़कते दिल के साथ चांदनी को लेने केबिन के बाहर गया.
***
जगदीश
रिसोर्ट देख शालिनी बहुत खुश हो गई.
‘यहां रुकेंगे हम भैया ? कितनी खूबसूरत जगह है - सच में यह तो कमाल का सरप्राइज़ है.’
जगदीश मुस्कुराकर बोला. ‘हां, दो दिन हमें यहां रुकना होगा. फिर डॉक्टर तुम्हे जांच ले उसके बाद मुंबई चले जायेंगे. ठीक है?’
‘ठीक नहीं, बढ़िया है.’
पलंग पर छोटे बच्चे की तरह बैठे बैठे हलके जम्प लेते हुए शालिनी बोली. ऐसा करने से उसकी कमीज़ में ब्रा हिन् स्तन सागर की मौज की तरह उछल रहे थे. जगदीश ने मुश्किल से अपनी नजरों पर काबू करते हुए शालिनी से कहा. ‘अब तुम थोड़ा आराम करो. मैं बाहर बालकनी में बैठता हूं.’
‘जहां जा कर बैठना हो बैठना पर अपना सरप्राइज़ भी तो देख लो!’ कहते हुए शालिनी ने प्लास्टिक की बड़ी बेग जगदीश के हाथों में थमा दी. जगदीश ने देखा तो उसके लिए चार पेंट, पांच शर्ट, दो बरम्यूडा, और चार अंडरवियर थे….’
‘अरे!’ जगदीश ने आश्चर्यचकित होकर पूछा. ‘अस्पताल के बेड पर पड़े पड़े कैसे यह शॉपिंग कर ली?’
‘वही तो सरप्राइज़ है भैया…’ शालिनी चमकते चहेरे के साथ बोली.
‘सब के कलर तो बढ़िया है शालिनी पर साइज़…?’
‘मेरा अंदाजा गलत तो नहीं होगा पर आप ट्राई कर लो-’
‘अभी करता हूं , ये कपडे पहने हुए काफी समय हो गया है…’ कह कर जगदीश दूसरे कमरे में जाने लगा.
‘भैया…’ शालिनी ने कहा.
जगदीश ने मुड़ कर देखा.
‘मेरी बात मानो तो अंडरवियर ट्राई मत करो, अभी आपको पहनना नहीं है…’
‘वैसे अब मैं ठीक हूं शालिनी…’
‘भगवान करे आप हमेशा ठीक रहे पर अभी अभी ठीक हुआ है वो हिस्सा…सो कुछ समय उन पर कोई दबाव न आये तो बेहतर….’
जगदीश को लगा की यह भी ठीक है. उसने मुस्कुराकर कहा. ‘ठीक, जो हुक्म रानी साहिबा का.’
शालिनी शरमाते हुए बोली. ‘मैं रानी नहीं, दासी हूं.’
जगदीश यह सुन कुछ बोल नहीं पाया. कपडे ट्राई करने चला गया.
***
मोहिते
तूलिका के उन्मुक्त स्तनों में अपना चहेरा रगड़ रगड़ कर मोहिते पागल हो गया. बारी बारी तूलिका के दोनों निपलों को चूसा, चाटा, फिर हलके से काटते हुए उसने नजरे उठा कर अपनी ताई की ओर देखा तब तूलिका ने हंस कर कहा. ‘बंड्या, देखता क्या है? तू इनको काट के अपने साथ ले जा तब भी मना नहीं करूंगी…’
इस बात से उत्तेजित हो कर मोहिते ने स्तनों को छोड़ तूलिका के होठ चूसने शुरू किये. होठ चूसते चूसते मोहिते ने तूलिका को पलंग पर अपने साथ लेटा दिया और अपने दोनों पैरो की कैंची में तूलिका के बदन को जकड़ लिया.तूलिका मुस्कुराने लगी.
‘हंस क्यों रही हो?’ मोहिते ने पूछा.
‘सोच रही थी बुखार उतरा तो भाई चढ़ गया…’ तूलिका मोहिते का चहेरा अपने चहेरे के साथ रगड़ते हुए बोली.
मोहिते ने कहा. ‘तू है ही ऐसी ताई, कोई भी चढ़ना चाहेगा…’
‘मेल्या… तू कोई नहीं,भाई है…’
‘ताई, मुझे अब भी मेरे नसीब पर यकीन नहीं हो रहा, क्या सच में तू बिना कपड़ो के मेरी बांहो में है?’
‘बुद्धू, मेरे चूचक के तने हुए निपल तेरी छाती में कील की तरह चुभ नहीं रहे क्या?
‘ओह.....ताई ई...ई ...ई ...ई ...ई ...ई ...ई ...ईई ई ई ई ई ई ई......’
ऐसा पागलों की तरह चीखते हुए मोहिते तूलिका के बदन से जोंक की तरह चिपक गया. तूलिका को सांस लेने में तकलीफ होने लगी पर उसने तय किया था कि आज वो भाई को किसी बात से मना नहीं करेगी, भले वो उसे रौंद डाले…
***
जगदीश
जगदीश ने शालिनी के पास आ कर कहा. ‘थेंक यु शालिनी, सभी कपडे एकदम परफेक्ट साइज़ के है.’
‘चार दिनों में क्या कमाल हो गया भैया.’ शालिनी ने कहा. ‘मुंबई से निकले तब हम एक दूसरे की ओर देखने से हिचकिचाते थे और अब एक दूसरे के कपड़ो की साइज़ जुबानी हो गई है!’
जगदीश ने कहा. ‘हां शालिनी, ये तो सोचा न था…’ फिर सारे कपडे समेटते हुए आगे कहा. ‘अब तुम थोड़ा आराम कर लो, फिर तुम्हे दवाई लगानी है.’
‘भैया, अब की बार मुझे उल्लू मत बनाना, मेरे सामने दवाई लगाना -बोल देती हूं.’
‘तो आप ऐसी दासी हो जो हुकुम करती है?’ जगदीश ने हंस कर पूछा.
‘ओह भैया…’ कहते हुए लजा कर शालिनी ने अपना मुंह तकिये में छिपा लिया.
जगदीश हंस कर कपड़े ले कर वहां से चला गया.
***
मोहिते
मोहिते का जोश थोड़ा नरम पड़ा तब तूलिका ने अपने आप को उससे अलग करते हुए कहा.
‘मैं कहीं भागी नहीं जा रही भाई, थोड़ा आराम से.’
मोहिते झेंप गया और तूलिका से खुद को अलग कर पलंग पर से उठ कर खड़ा हुआ.
तूलिका भी पलंग पर से उतर कर खड़ी हुई और एक अंगड़ाई ली. मोहिते मंत्रमुग्ध हो कर तूलिका को देखता रह गया. तूलिका के बाल बिखरे हुए थे, आंसुओं के कारण काजल बह कर गालो पर फैला हुआ था जैसे किसी बच्चे ने रंग बिखेरा हो. तूलिका के होठ लगातार चूमने की वजह से भीग भीग कर और भी मनमोहक हो गए थे. अंगड़ाई लेते हुए तूलिका के उठे हुए दोनों हाथ उसकी अंग भंगिमा को अत्यंत आकर्षक बना रहे थे. उसका ब्लाउज़ खुला हुआ, ब्रा फटी हुई और उनमे से तने हुए स्तन यूं झांक रहे थे जैसे बिल में से दो खरगोश अपना मुंह बाहर निकाल कर दुनिया का नजारा कर रहे हो…नीचे कमर पर पहने पेटीकोट पर इतनी सिलवटे थी की मोहिते को लगा जैसे क्रिकेट का मैदान किसी ने बेतरतीबी से खोद डाला हो…
‘कशी वाटते ताई?’ मोहिते को यूं एकटक देखता हुआ देख तूलिका ने पूछा.
‘अप्सरा.’ मोहिते ने कहा.
‘जब बाथरूम के छेद से तू मुझे देखता था वैसी या अलग?’
‘बहुत अलग.’
‘क्या अलग? अब मोटी हो गई हूं ?’
‘ताई, तू मोटी नहीं हुई, अब तेरा बदन भर गया है… ये मम्मे तब तोतापुरी आम जैसे कुछ लंबे से थे जो अब हापुस आम जैसे गोल गोल हो गए है.’
‘और बताओ…’
‘और कुछ नहीं - कॉमेंट्री ख़तम.’
‘क्यों? और कुछ नहीं बोलने जैसा?’ तूलिका को आघात लगा.
‘और कुछ दिख ही नहीं रहा ताई…बाथरूम में तो तिजोरी के सारे दराज खुले होते थे - यहां तो सब ढका ढका है…’
‘हलकट… बेशर्म…’ तूलिका ने कृत्रिम गुस्से से कहा.
‘बस क्या ताई? छुप छुप कर देखता था तब सब दिखाती थी! अब सामने हूं तो सेंसर कर दिया?’
‘पागल है क्या? लड़की हूं, लाज तो आयेगी ना?’
‘ठीक है, तो मैं बाहर जाऊं?’ मोहिते ने पूछा.
यह सुन कर तूलिका एकदम से मोहिते के पास तेजी से जा कर चिपक जाते हुए बोली.
‘नहीं भाई तुझे बाहर नहीं, अब अंदर जाना है - इतना अंदर की बाहर की सारी दुनिया को हम दोनों भूल जाये…’
(३५ -ये तो सोचा न था…विराम, क्रमश