- 1,883
- 4,476
- 159
३७ – ये तो सोचा न था…
[(३६ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :
बरम्यूडा नीचे होते ही जगदीश का पूर्ण रूप से तना हुआ लिंग शालिनी के सामने हिलोरे लेने लगा. शालनी चौंक पड़ी, टेस्टिकल नॉर्मल थे.शालिनी ऑक्वर्ड स्थिति में आ गई.जगदीश ने बरम्यूडा फिर से चढ़ा कर अपने लिंग को ढंकते हुए कहा.
‘रिलेक्स, शालिनी. न कोई सूजन है, न दर्द है, मुझे कुछ नहीं हुआ.’
‘जी पर वो आप ने हाथ अंदर किया था तो… मैं समझी..’
ढीली आवाज में शालिनी ने कहा, उसे सुझा नहीं की आगे क्या बोले.
‘मैं अपना लिंग सहला रहा था. ओके?’
जगदीश ने कहा.
‘ओह… आई एम सो सॉरी भैया –’
अपनी गलती पर लजा कर सर पीटते हुए शालिनी फिर अंदर भागती हुई सोचने लगी : क्या बुद्धू लड़की हूं मैं ! ऐसे कोई किसी की बरम्यूडा खींचता है क्या…! हे भगवान… मेरा क्या होगा…! ]
मोहिते
‘अब बस कर ताई… इसको जितना बड़ा करेगी तेरी कमर उतनी चौड़ी करेगा ये…’ मोहिते ने तूलिका का मुंह अपने लिंग से हटाते हुए कहा.
‘बंड्या, मेरी कमर का कमरा बना कर तू रहने आजा, लेकिन इसको मेरे सामने से मत हटा-’ कहते हुए तूलिका ने खड़े हो कर मोहिते के लिंग को मसलते हुए मोहिते कि छाती में अपना सिर रखा दिया और कहने लगी.
‘मेरी शादी हुई उससे पहले हमारे घर के पास मोहल्ले की कुत्ती ने आठ बच्चे जने थे वो याद है?’
‘हां, याद है.’
कुछ ही दिनों में वो सारे कुत्ते के पिल्ले बड़े हो गए थे- दो कुत्ती और छे कुत्ते थे…’
‘हां, पर उस बात का अभी क्या है?’
‘बंड्या, उन कुत्तों को देख कर मुझे बहुत जलन होती थी…’
‘जलन?’
‘और नहीं तो क्या वो सारे कुत्ते जब जी में आये तब किसी भी कुत्ती पर चढ़ जाते थे… कभी अपनी दोनों बहन कुत्तिया पर कभी अपनी मां कुत्ती पर…’
‘उफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ ताई….कितनी सेक्सी बातें करती हो… ’ कहते हुए मोहिते ने तपाक से तूलिका के पेटीकोट का नाडा खींच के खोल कर सरका दिया, अब तूलिका केवल पेंटी में थी… मोहिते ने पेंटी भी नीचे सरका दी. तब ‘ईश..श...श...श…’ कहते हुए अपनी नंगी योनि पर हाथ ढंक कर तूलिका शर्म से मूड गई. ऐसा करने से अब तूलिका के नितंब मोहिते के सामने आये. उन्हें दोनों हाथों से थाम कर मोहिते ने कहा. ’भाऊ ला गांड दाखवतेस का…’ ( भाई को गांड दिखा रही हो?)
upload pic
‘ईश..श्श्श… ‘ बोलते हुए लजा कर तूलिका ने अपने दोनों हाथों से अपने नितंब ढकने की बेमतलब कोशिश की. मोहिते ने आगे बढ़ कर तूलिका को पीछे से बांहों में खींचा और उसकी कमर पर अपने दोनों हाथ लपेटते हुए अपना तना लिंग तूलिका के नितंबों के गोलों के मध्य अवकाश में पिरोया. मोहिते का लिंग तूलिका के योनि मार्ग को होले से छूता हुआ, दो पैरों के बीच सट कर खड़ा रह गया. इस लिंग स्पर्श से तूलिका सिहर उठी. आंखें मूंद कर उसने हलकी सिसकारी भरी. मोहिते ने अब अपने दोनों हाथों में तूलिका के दोनों स्तनों को थामा और दोनों हाथों के अंगूठों से तूलिका के दोनों निपलों को इतनी नजाकत से छुआ जैसे कोई पुरानी किताब के पन्नों के बीच पड़े पीपल के सूखे पत्ते को होले से छूता है. ऐसे अपनी दोनों चूचियों की छुअन से तूलिका को लगा जैसे सूरज से तपती धरती पर बारिश की हल्की सी बौछार हुई हो. -ऐसी बौछार जो धरती को तृप्त तो नहीं करती बल्कि प्यास बढ़ाती है पर इस बढ़ी हुई प्यास में व्याकुलता नहीं होती किंतु शीतल अनुभव की नविन उत्साह पूर्ण अपेक्षा जगती है. तूलिका को इस अपेक्षा ने अधिक स्पर्श के लिए पूरे बदन में ललक जग गई. ‘बंड्या…’ तूलिका ने मदमत्त स्वर में कहा. इस स्वर में संबोधन नहीं था बल्कि यह उच्चारण एक प्रतिक्रिया थी, जैसे चातक पक्षी को बारिश की बूंदो की प्रतीक्षा रहती है वैसी स्पर्श प्रतीक्षा अब तूलिका के समग्र तन में व्याप्त हो चुकी थी और उस प्रतीक्षा का स्वर स्वरूप यह ‘बंड्या’ उच्चारण था. अर्थात इस उच्चारण में तड़प का निवेदन था.
‘काय झाल ग?’ (क्या हुआ ?) मोहिते ने तूलिका के कांधे पर अपना चहेरा रगड़ते हुए तूलिका के कान में सरगोशी से पूछा.
‘तू एवढी गरम का आहे ग, ताई ? ( तुम इतनी गरम क्यों हो दीदी?)
‘तू एवढा कामुक का आहे? ( तुम इतने कामुक क्यों हो?)
‘जिसकी बहन इतनी लावा जैसी उबल रही हो कि दिन में एक बार बदन की गोलाइयां और खाइयां देख लेने पर दिन भर लोडा नरम न हो वो भाई कामुक क्या होगा ताई, काम से जाएगा…’
‘जिसको खुद उसका भाई नजरो से नहला नहला कर तन बदन के एक एक इंच को आंखों से रोज चूमता हो वो बहन बर्फ होगी तब भी लावा बन जाएगी रे…’
‘ताई तू तो हलवा है हलवा… ‘ कहते हुए मोहिते ने झुक कर तूलिका की योनि सहलाई.
‘बंड्या…’ अत्यंत नशीले स्वर में तूलिका ने योनि स्पर्श से उत्तेजित होते हुए अपने दोनों पैरों को चौड़े करते हुए कहा. ‘ तेरी ताई का हलवा छब्बीस छब्बीस सालों से अपने भाई के लिए उबल रहा है - आज इसे ठंडा कर दे रे…’
‘ताई…’ तूलिका की योनि से अब झरने लगे रस में अपनी उंगलियों को मसलते हुए मोहिते ने जलती हुई आवाज में कहा.
‘भाई…’ अगन गोले की गर्मी से पिघलती मोम जैसे समर्पित स्वर में तूलिका ने कहा.
***
जुगल
जिस के साथ अनजाने में शालिनी समझ कर उसने सम्भोग किया था वो अपनी भाभी ही थी यह आघात जुगल के लिए होशलेवा था. वो सर थामे बैठ गया था पर झनक ने उसे होश खोने नहीं दिया.
‘जुगल, अभी इस बात का सोग मनाने का वक्त तुम्हारे पास नहीं है. हिम्मत रखो, यह बात मैंने अब तक नहीं बताई क्योंकि मैं समझ गई थी की तुम चांदनी का कितना सम्मान करते हो पर आज बताना पड़ा क्योंकि हो सकता है आज फिर तुम्हे चांदनी के साथ ऐसा कुछ करना पड़े जो केवल एक पति ही कर सकता है -’
जुगल इस तरह झनक के सामने देख उसकी बातें सुन रहा था जैसे वो उसे सजा ऐ मौत सुना रही हो.
‘जुगल, तुम सुन रहे हो?’
जुगल सिर्फ देखता रहा.
‘ठीक है, चलो यहां से चले जाते है. छोडो यह ट्रीटमेंट का चक्कर.’
झनक ने जुगल की बगल से खड़े होते हुए कहा.
जुगल ने चौंक कर पूछा. ‘तो फिर भाभी का क्या होगा?’
‘पता नहीं. तुम दोनों को संभालना मेरे बस में नहीं, अगर किसी रात नशे में तुमने तुम्हारी भाभी को पत्नी समझ कर चोद डाला था इस बात से तुम बौखला गए हो तो किसका इलाज करें? तुम्हारी भाभी को छोड़ कर अब क्या तुम्हारी ट्रीटमेंट करनी होगी? मैं तुम्हारी बहन हूं या साली? मुझे इतना सारा झंझट नहीं चाहिए, चलो.’
‘प्लीज़ नाराज मत हो झनक-’
‘मैं नाराज नहीं पर मेरे पास ऐसे चोचलो के लिए टाइम नहीं.’
इतने में डॉक्टर प्रियदर्शी ने बाहर आ कर जुगल से पूछा. ‘कोई समस्या है?’
‘नहीं डॉक्टर, चांदनी के लिए कुछ भी कर लूंगा, चलिए मैं रेडी हूं.’ जुगल ने खड़े होते हुए कहा और झनक की और देखा. डॉक्टर केबिन में जाने के लिए मुड़े और झनक ने जुगल को बांहो में खींच कर एक लिप किस कर के कहा. ‘गुड़ बॉय.’
******
जगदीश
जगदीश ने कमरे के दरवाजे को जांचा, खुला था. वो कमरे में दाखिल हुआ. बेड पर शालिनी औंधी पड़ी तकिये में मुंह छिपा कर सुबक सुबक कर रो रही थी. जगदीश उसके करीब जा कर बैठा और शालिनी की पीठ को सहलाते हुए बोला.
‘शालिनी?’
शालिनी ने तकिये से मुंह निकाला दुपट्टे से अपने आंसू पोंछे और जगदीश से थोड़ा दूर खिसक कर बैठते हुए बोली. ‘आप मुझ से नाराज नहीं?’
‘नहीं, तुम्हारा कोई कसूर नहीं, तुम्हे तो यह चिंता थी की कहीं मुझे कोई दर्द तो नहीं हो रहा. क्यों इस तरह खुद को कोस रही हो? यह रोना धोना क्या लगा रखा है?’
‘रोना किसी और बात का है, वो छोड़ो ना भैया.’
‘किस बात पर रो रही थी?’
‘आप क्यों पूछ रहे हो? मुझे नहीं बताना…’
‘क्यों नहीं बताना?’
‘भैया… क्यों जिद करते हो? वो मेरा पर्सनल मामला है - प्लीज़.’
‘ओके, ओके… एक शर्त पर.’
शालिनी ने जगदीश के सामने सवालिया नजरों से देखा.
‘मुस्कुरा दो.’ स्मित करते हुए कहा.
शालिनी साफ़ दिल से मुस्कुराते हुए बोली. ‘ भैया, आप बोलो तो कोई अपनी जान भी निकाल कर दे दे और आप मुस्कुराने की विनती कर रहे हो?’
‘शालिनी, तुम मुझे कुछ ज्यादा ही अच्छा आदमी समझ रही हो. बता दूं ऐसा है नहीं - किसी गलतफहमी में मत रहना.’
‘अच्छा ! आप बुरे काम भी कर लेते हो? सुनाओ मुझे भी जरा.’
‘सुनोगी तो बड़ा आघात लगेगा, रहने दो.’
‘अब तो सुन कर ही रहूंगी. बोलो क्या बुरा काम किया है आपने?’
‘जी करता है मेरी करनी बता ही दूं ताकि यह जो तुम मेरे लिए ‘महान इंसान’ का तगमा अपनी नजरों में लिए मुझे देखती हो वो तो बंद हो.’
‘हां हां, बताइये.’
जगदीश ने शालिनी को निहारा फिर कहा. ‘जब तुम ने देखा की मेरा हाथ मेरे बरम्यूडा में है तब तुम्हें अंदाजा भी नहीं था कि मैं अपना लिंग सहला रहा हूं…’
‘जी…’ शालिनी थोड़ी हिचकिचाई. ऐसी किसी बात की उसे उम्मीद नहीं थी.
‘मैं अपना लिंग किसी को याद करते हुए सहला रहा था…’
‘जी…’ शालिनी अभी भी अंदाजा नहीं लगा पा रही थी की बात किस ओर जायेगी.
‘क्या तुम ऐसी कल्पना भी कर सकती हो की मैं जिसे याद कर रहा था वो चांदनी नहीं थी, कोई और औरत थी?’
यह बात शालिनी के लिए बिलकुल अनपेक्षित थी. पर उसे आघात नहीं लगा. उसने कहा.
‘ओके. पर भैया, पराई औरत के ख़याल में यूं उत्तेजित होना कोई बहुत बुरी बात नहीं है…’
‘पराई औरत से प्यार करना? यह तो बुरी बात है?’
शालिनी कुछ बोल नहीं सकी. प्यार? प्यार तो वो भी जगदीश से करने लगी थी! क्या प्यार करना बुरी बात है? हां शायद आप शादीशुदा हो तो किसी और से प्यार नहीं करना चाहिए.
‘जी, यह तो बुरी बात है.’ शालिनी ने मुस्कुराकर कहा.
‘तुम्हे हंसी आ रही है?’
‘वो कोई और बात पर हंसी आई, छोड़िए न, यह बताइये आप किस पराई औरत से प्यार करने लगे और कब से?’
‘यह सब हाल ही में हुआ… शालिनी.’ जगदीश ने गंभीर चेहरे से कहा.
शालिनी का दिल एक पल धड़कन चूक गया : कहीं जेठ जी भी मुझ से ही तो प्यार नहीं कर रहे ! जगदीश उसे याद करते हुए अपना लिंग सहला रहा है ऐसी कल्पना मात्र से शालिनी के बदन में बिजली सी दौड़ गई. उसने कांपती आवाज़ में पूछा. ‘मैं जान सकती हूं वो कौन है जिसे आप प्यार करने लगे हो?’
‘प्यार करने लगा ऐसा तो नहीं पर उस औरत के प्रति मैं आकर्षित हो गया और यह आकर्षण मुझे दोबारा भी हो सकता है…’
शालिनी अभी भी हैरान थी की यह किस औरत की बात होगी.
‘क्या हुआ, कब हुआ कुछ बताओगे?’
‘बताने जितनी कोई बड़ी बात है ही नहीं.’
शालिनी को लगा की यह बात मेरी नहीं शायद किसी और औरत की है. पर कौन होगा वो?
शालिनी ने कहा. ‘भले कितनी भी छोटी बात हो, मुझे जानना है. बताओ.’
‘याद है एक दिन म मैं मोहिते के साथ कहीं गया था?’
‘जिस दिन मेरे लिए ड्रेस ले आये थे?’
‘हां , उस दिन मैं एक औरत से मिला. मसाज करवाने. मसाज करवाते मेरी आंख लग गई. पर अचानक मेरी आंख खुल गई क्योंकि…’ जगदीश एक पल के लिए हिचकिचाया, फिर उसने बोल ही दिया. ’...क्योंकि वो मेरा लिंग चाट रही थी…’
‘क्या!’ शालिनी ने चौंक कर पूछा.
‘हां , मुझे बड़ा अजीब लगा. मैंने उनको मना किया ऐसा करने से. तब वो मुझे चूमने लगी.फिर-’
जगदीश बोलते हुए रुक गया. शालिनी ने पूछा. ‘फिर क्या?’
‘शैली, उस औरत के चूमने में कुछ ऐसा जादू था कि मैं भूल गया कि मैं उसे मना कर रहा था…’
‘तो फिर? बाद में आपने उसे प्यार किया !’ शालिनी ने अचरज से पूछा.
‘हां. प्यार किया. उसके शरीर को मैंने बहुत प्यार से सहलाया चूमा चाटा, चूसा. पहली बार मुझे एहसास हुआ की संभोग किये बिना केवल स्पर्श और चूमने चाटने से भी संभोग समान सुख मिल सकता है. खेर, पर यह सब बातें मैं तुम्हें क्यों बता रहा हूं ? वजह है. और वजह यह है कि तुम किसी मुगालते में मर रहों कि तुम्हारा यह जेठ दूध का धुला है और न ही मुझे सज्जन पुरुष का सम्मान दो.’
‘यही कहना था?’
‘क्या यह कम है?’
‘काम तो नहीं भैया , बहुत बड़ी बात बता दी पर लगता है और भी कुछ बात है जो आप कहना चाहते हो…’
जगदीश चुप रहा फिर बोला. ‘हां, एक और बात है जिसने मुझे हैरान कर दिया है. और वो बात यह है की मैंने चांदनी को धोखा दिया. उसकी पीठ पीछे मैंने किसी और स्त्री से प्यार किया. इस बात का मुझे बुरा क्यों नहीं लगा रहा. मैंने कोई गुनाह किया है ऐसा अफ़सोस क्यों नहीं हो रहा?
शालिनी भी यह सुन कर हैरान हो गई. उसने पूछा. ‘आप दीदी को यह सब बता दोगे ?’
‘हां. सब कुछ.’
‘उससे क्या होगा?’
‘उसे जानने का हक़ है की मैं कैसा आदमी हूं.’
उसी वक्त जगदीश का सेलफोन बजा. जगदीश यह देख कर हैरान रह गया को कॉल शालिनी के पिताजी - अनुराग अंकल का फोन था.
जगदीश ने शालिनी से कहा. ‘तुम्हारे पिताजी का फोन है.’
शालिनी ने कहा. ‘कोई जरूरी बात होगी..’
जगदीश ने फोन रिसीव किया. कुछ औपचारिक बातों के बाद अनुराग अंकल मुद्दे पर आये. ‘शालिनी और जुगल के बीच कोई अनबन हुई है?’
‘नहीं तो, ऐसी कोई बात नहीं, आप ऐसा क्यों पूछ रहे हो?’
‘मैं परेशान हो गया हूं बेटा…’ अनुराग अंकल ने कहा. ‘कुछ देर पहले शालिनी का फोन आया था, उसने कहा की वो डिवोर्स लेना चाहती है.’
‘क्या !’ चौंक कर जगदीश ने पूछा और शालिनी की ओर देखा. वो स्वस्थ चेहरे से जगदीश को देख रही थी. जगदीश ने अविश्वास भरी आवाज में पूछा. ‘यह आप क्या कह रहे हो?’
‘कुछ समझ में नहीं आता की अचानक क्या हो गया. जुगल बहुत अच्छा लड़का है और तुम्हारे जैसा बड़ा भाई होते हुए शालिनी को कोई परेशानी कैसे हो सकती है? ये लड़की ऐसी बात क्यों कर रही होगी?’
‘आप बिलकुल फ़िक्र न करें, मैं शालिनी से बात करूंगा.भूल जाओ डिवोर्स की बातें, बिलकुल निश्चिंत हो जाइए.ऐसा कुछ नहीं होगा.’
‘ठीक है पर’-
‘शालिनी के साथ मैं बात करूंगा, आप इस बात का टेंशन दिमाग से हटा दीजिये, मानो की शालिनी का को कोई कॉल आया ही नहीं था.’
‘थैंक्स बेटा, बाद में बात करते है - तुम देखो मामला क्या है.’ कह कर अनुराग अंकल ने फोन काटा.
जगदीश शालिनी के करीब जा कर बैठा और पूछा.
‘डिवोर्स लेना चाहती हो?’
‘हां.’
‘वजह?’
‘मैं किसी और से प्यार करने लगी हूं, जुगल को धोखे में नहीं रखना चाहती.’
‘किस से प्यार करने लगी हो?’
‘मतलब नहीं उस बात का.’
‘कैसे मतलब नहीं! बात डिवोर्स तक आ गई और मतलब नहीं ?’
‘उसे तो पता ही नहीं कि मैं उससे प्यार करती हूं.’
जगदीश ने हैरान होकर पूछा. ‘डिवोर्स के बाद तुम उस आदमी के साथ नहीं रहोगी?’
‘नहीं.’
‘तो? डिवोर्स ले कर क्या करोगी?’
‘बैठ कर उसकी याद में आंसू बहाऊंगी.’
‘अब बताओगी भी की यह महान हीरो कौन है जिस से तुम्हे एक तरफ़ा प्यार भी हो गया और उस आदमी से बिना कोई बात किये तुम डिवोर्स भी ले लोगी? आखिर है कौन वो?’
‘आप.’
शालिनी ने कहा और जगदीश बूत बन देखता रह गया.
(३७ -ये तो सोचा न था…विराम, क्रमश
[(३६ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :
बरम्यूडा नीचे होते ही जगदीश का पूर्ण रूप से तना हुआ लिंग शालिनी के सामने हिलोरे लेने लगा. शालनी चौंक पड़ी, टेस्टिकल नॉर्मल थे.शालिनी ऑक्वर्ड स्थिति में आ गई.जगदीश ने बरम्यूडा फिर से चढ़ा कर अपने लिंग को ढंकते हुए कहा.
‘रिलेक्स, शालिनी. न कोई सूजन है, न दर्द है, मुझे कुछ नहीं हुआ.’
‘जी पर वो आप ने हाथ अंदर किया था तो… मैं समझी..’
ढीली आवाज में शालिनी ने कहा, उसे सुझा नहीं की आगे क्या बोले.
‘मैं अपना लिंग सहला रहा था. ओके?’
जगदीश ने कहा.
‘ओह… आई एम सो सॉरी भैया –’
अपनी गलती पर लजा कर सर पीटते हुए शालिनी फिर अंदर भागती हुई सोचने लगी : क्या बुद्धू लड़की हूं मैं ! ऐसे कोई किसी की बरम्यूडा खींचता है क्या…! हे भगवान… मेरा क्या होगा…! ]
मोहिते
‘अब बस कर ताई… इसको जितना बड़ा करेगी तेरी कमर उतनी चौड़ी करेगा ये…’ मोहिते ने तूलिका का मुंह अपने लिंग से हटाते हुए कहा.
‘बंड्या, मेरी कमर का कमरा बना कर तू रहने आजा, लेकिन इसको मेरे सामने से मत हटा-’ कहते हुए तूलिका ने खड़े हो कर मोहिते के लिंग को मसलते हुए मोहिते कि छाती में अपना सिर रखा दिया और कहने लगी.
‘मेरी शादी हुई उससे पहले हमारे घर के पास मोहल्ले की कुत्ती ने आठ बच्चे जने थे वो याद है?’
‘हां, याद है.’
कुछ ही दिनों में वो सारे कुत्ते के पिल्ले बड़े हो गए थे- दो कुत्ती और छे कुत्ते थे…’
‘हां, पर उस बात का अभी क्या है?’
‘बंड्या, उन कुत्तों को देख कर मुझे बहुत जलन होती थी…’
‘जलन?’
‘और नहीं तो क्या वो सारे कुत्ते जब जी में आये तब किसी भी कुत्ती पर चढ़ जाते थे… कभी अपनी दोनों बहन कुत्तिया पर कभी अपनी मां कुत्ती पर…’
‘उफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ ताई….कितनी सेक्सी बातें करती हो… ’ कहते हुए मोहिते ने तपाक से तूलिका के पेटीकोट का नाडा खींच के खोल कर सरका दिया, अब तूलिका केवल पेंटी में थी… मोहिते ने पेंटी भी नीचे सरका दी. तब ‘ईश..श...श...श…’ कहते हुए अपनी नंगी योनि पर हाथ ढंक कर तूलिका शर्म से मूड गई. ऐसा करने से अब तूलिका के नितंब मोहिते के सामने आये. उन्हें दोनों हाथों से थाम कर मोहिते ने कहा. ’भाऊ ला गांड दाखवतेस का…’ ( भाई को गांड दिखा रही हो?)
upload pic
‘ईश..श्श्श… ‘ बोलते हुए लजा कर तूलिका ने अपने दोनों हाथों से अपने नितंब ढकने की बेमतलब कोशिश की. मोहिते ने आगे बढ़ कर तूलिका को पीछे से बांहों में खींचा और उसकी कमर पर अपने दोनों हाथ लपेटते हुए अपना तना लिंग तूलिका के नितंबों के गोलों के मध्य अवकाश में पिरोया. मोहिते का लिंग तूलिका के योनि मार्ग को होले से छूता हुआ, दो पैरों के बीच सट कर खड़ा रह गया. इस लिंग स्पर्श से तूलिका सिहर उठी. आंखें मूंद कर उसने हलकी सिसकारी भरी. मोहिते ने अब अपने दोनों हाथों में तूलिका के दोनों स्तनों को थामा और दोनों हाथों के अंगूठों से तूलिका के दोनों निपलों को इतनी नजाकत से छुआ जैसे कोई पुरानी किताब के पन्नों के बीच पड़े पीपल के सूखे पत्ते को होले से छूता है. ऐसे अपनी दोनों चूचियों की छुअन से तूलिका को लगा जैसे सूरज से तपती धरती पर बारिश की हल्की सी बौछार हुई हो. -ऐसी बौछार जो धरती को तृप्त तो नहीं करती बल्कि प्यास बढ़ाती है पर इस बढ़ी हुई प्यास में व्याकुलता नहीं होती किंतु शीतल अनुभव की नविन उत्साह पूर्ण अपेक्षा जगती है. तूलिका को इस अपेक्षा ने अधिक स्पर्श के लिए पूरे बदन में ललक जग गई. ‘बंड्या…’ तूलिका ने मदमत्त स्वर में कहा. इस स्वर में संबोधन नहीं था बल्कि यह उच्चारण एक प्रतिक्रिया थी, जैसे चातक पक्षी को बारिश की बूंदो की प्रतीक्षा रहती है वैसी स्पर्श प्रतीक्षा अब तूलिका के समग्र तन में व्याप्त हो चुकी थी और उस प्रतीक्षा का स्वर स्वरूप यह ‘बंड्या’ उच्चारण था. अर्थात इस उच्चारण में तड़प का निवेदन था.
‘काय झाल ग?’ (क्या हुआ ?) मोहिते ने तूलिका के कांधे पर अपना चहेरा रगड़ते हुए तूलिका के कान में सरगोशी से पूछा.
‘तू एवढी गरम का आहे ग, ताई ? ( तुम इतनी गरम क्यों हो दीदी?)
‘तू एवढा कामुक का आहे? ( तुम इतने कामुक क्यों हो?)
‘जिसकी बहन इतनी लावा जैसी उबल रही हो कि दिन में एक बार बदन की गोलाइयां और खाइयां देख लेने पर दिन भर लोडा नरम न हो वो भाई कामुक क्या होगा ताई, काम से जाएगा…’
‘जिसको खुद उसका भाई नजरो से नहला नहला कर तन बदन के एक एक इंच को आंखों से रोज चूमता हो वो बहन बर्फ होगी तब भी लावा बन जाएगी रे…’
‘ताई तू तो हलवा है हलवा… ‘ कहते हुए मोहिते ने झुक कर तूलिका की योनि सहलाई.
‘बंड्या…’ अत्यंत नशीले स्वर में तूलिका ने योनि स्पर्श से उत्तेजित होते हुए अपने दोनों पैरों को चौड़े करते हुए कहा. ‘ तेरी ताई का हलवा छब्बीस छब्बीस सालों से अपने भाई के लिए उबल रहा है - आज इसे ठंडा कर दे रे…’
‘ताई…’ तूलिका की योनि से अब झरने लगे रस में अपनी उंगलियों को मसलते हुए मोहिते ने जलती हुई आवाज में कहा.
‘भाई…’ अगन गोले की गर्मी से पिघलती मोम जैसे समर्पित स्वर में तूलिका ने कहा.
***
जुगल
जिस के साथ अनजाने में शालिनी समझ कर उसने सम्भोग किया था वो अपनी भाभी ही थी यह आघात जुगल के लिए होशलेवा था. वो सर थामे बैठ गया था पर झनक ने उसे होश खोने नहीं दिया.
‘जुगल, अभी इस बात का सोग मनाने का वक्त तुम्हारे पास नहीं है. हिम्मत रखो, यह बात मैंने अब तक नहीं बताई क्योंकि मैं समझ गई थी की तुम चांदनी का कितना सम्मान करते हो पर आज बताना पड़ा क्योंकि हो सकता है आज फिर तुम्हे चांदनी के साथ ऐसा कुछ करना पड़े जो केवल एक पति ही कर सकता है -’
जुगल इस तरह झनक के सामने देख उसकी बातें सुन रहा था जैसे वो उसे सजा ऐ मौत सुना रही हो.
‘जुगल, तुम सुन रहे हो?’
जुगल सिर्फ देखता रहा.
‘ठीक है, चलो यहां से चले जाते है. छोडो यह ट्रीटमेंट का चक्कर.’
झनक ने जुगल की बगल से खड़े होते हुए कहा.
जुगल ने चौंक कर पूछा. ‘तो फिर भाभी का क्या होगा?’
‘पता नहीं. तुम दोनों को संभालना मेरे बस में नहीं, अगर किसी रात नशे में तुमने तुम्हारी भाभी को पत्नी समझ कर चोद डाला था इस बात से तुम बौखला गए हो तो किसका इलाज करें? तुम्हारी भाभी को छोड़ कर अब क्या तुम्हारी ट्रीटमेंट करनी होगी? मैं तुम्हारी बहन हूं या साली? मुझे इतना सारा झंझट नहीं चाहिए, चलो.’
‘प्लीज़ नाराज मत हो झनक-’
‘मैं नाराज नहीं पर मेरे पास ऐसे चोचलो के लिए टाइम नहीं.’
इतने में डॉक्टर प्रियदर्शी ने बाहर आ कर जुगल से पूछा. ‘कोई समस्या है?’
‘नहीं डॉक्टर, चांदनी के लिए कुछ भी कर लूंगा, चलिए मैं रेडी हूं.’ जुगल ने खड़े होते हुए कहा और झनक की और देखा. डॉक्टर केबिन में जाने के लिए मुड़े और झनक ने जुगल को बांहो में खींच कर एक लिप किस कर के कहा. ‘गुड़ बॉय.’
******
जगदीश
जगदीश ने कमरे के दरवाजे को जांचा, खुला था. वो कमरे में दाखिल हुआ. बेड पर शालिनी औंधी पड़ी तकिये में मुंह छिपा कर सुबक सुबक कर रो रही थी. जगदीश उसके करीब जा कर बैठा और शालिनी की पीठ को सहलाते हुए बोला.
‘शालिनी?’
शालिनी ने तकिये से मुंह निकाला दुपट्टे से अपने आंसू पोंछे और जगदीश से थोड़ा दूर खिसक कर बैठते हुए बोली. ‘आप मुझ से नाराज नहीं?’
‘नहीं, तुम्हारा कोई कसूर नहीं, तुम्हे तो यह चिंता थी की कहीं मुझे कोई दर्द तो नहीं हो रहा. क्यों इस तरह खुद को कोस रही हो? यह रोना धोना क्या लगा रखा है?’
‘रोना किसी और बात का है, वो छोड़ो ना भैया.’
‘किस बात पर रो रही थी?’
‘आप क्यों पूछ रहे हो? मुझे नहीं बताना…’
‘क्यों नहीं बताना?’
‘भैया… क्यों जिद करते हो? वो मेरा पर्सनल मामला है - प्लीज़.’
‘ओके, ओके… एक शर्त पर.’
शालिनी ने जगदीश के सामने सवालिया नजरों से देखा.
‘मुस्कुरा दो.’ स्मित करते हुए कहा.
शालिनी साफ़ दिल से मुस्कुराते हुए बोली. ‘ भैया, आप बोलो तो कोई अपनी जान भी निकाल कर दे दे और आप मुस्कुराने की विनती कर रहे हो?’
‘शालिनी, तुम मुझे कुछ ज्यादा ही अच्छा आदमी समझ रही हो. बता दूं ऐसा है नहीं - किसी गलतफहमी में मत रहना.’
‘अच्छा ! आप बुरे काम भी कर लेते हो? सुनाओ मुझे भी जरा.’
‘सुनोगी तो बड़ा आघात लगेगा, रहने दो.’
‘अब तो सुन कर ही रहूंगी. बोलो क्या बुरा काम किया है आपने?’
‘जी करता है मेरी करनी बता ही दूं ताकि यह जो तुम मेरे लिए ‘महान इंसान’ का तगमा अपनी नजरों में लिए मुझे देखती हो वो तो बंद हो.’
‘हां हां, बताइये.’
जगदीश ने शालिनी को निहारा फिर कहा. ‘जब तुम ने देखा की मेरा हाथ मेरे बरम्यूडा में है तब तुम्हें अंदाजा भी नहीं था कि मैं अपना लिंग सहला रहा हूं…’
‘जी…’ शालिनी थोड़ी हिचकिचाई. ऐसी किसी बात की उसे उम्मीद नहीं थी.
‘मैं अपना लिंग किसी को याद करते हुए सहला रहा था…’
‘जी…’ शालिनी अभी भी अंदाजा नहीं लगा पा रही थी की बात किस ओर जायेगी.
‘क्या तुम ऐसी कल्पना भी कर सकती हो की मैं जिसे याद कर रहा था वो चांदनी नहीं थी, कोई और औरत थी?’
यह बात शालिनी के लिए बिलकुल अनपेक्षित थी. पर उसे आघात नहीं लगा. उसने कहा.
‘ओके. पर भैया, पराई औरत के ख़याल में यूं उत्तेजित होना कोई बहुत बुरी बात नहीं है…’
‘पराई औरत से प्यार करना? यह तो बुरी बात है?’
शालिनी कुछ बोल नहीं सकी. प्यार? प्यार तो वो भी जगदीश से करने लगी थी! क्या प्यार करना बुरी बात है? हां शायद आप शादीशुदा हो तो किसी और से प्यार नहीं करना चाहिए.
‘जी, यह तो बुरी बात है.’ शालिनी ने मुस्कुराकर कहा.
‘तुम्हे हंसी आ रही है?’
‘वो कोई और बात पर हंसी आई, छोड़िए न, यह बताइये आप किस पराई औरत से प्यार करने लगे और कब से?’
‘यह सब हाल ही में हुआ… शालिनी.’ जगदीश ने गंभीर चेहरे से कहा.
शालिनी का दिल एक पल धड़कन चूक गया : कहीं जेठ जी भी मुझ से ही तो प्यार नहीं कर रहे ! जगदीश उसे याद करते हुए अपना लिंग सहला रहा है ऐसी कल्पना मात्र से शालिनी के बदन में बिजली सी दौड़ गई. उसने कांपती आवाज़ में पूछा. ‘मैं जान सकती हूं वो कौन है जिसे आप प्यार करने लगे हो?’
‘प्यार करने लगा ऐसा तो नहीं पर उस औरत के प्रति मैं आकर्षित हो गया और यह आकर्षण मुझे दोबारा भी हो सकता है…’
शालिनी अभी भी हैरान थी की यह किस औरत की बात होगी.
‘क्या हुआ, कब हुआ कुछ बताओगे?’
‘बताने जितनी कोई बड़ी बात है ही नहीं.’
शालिनी को लगा की यह बात मेरी नहीं शायद किसी और औरत की है. पर कौन होगा वो?
शालिनी ने कहा. ‘भले कितनी भी छोटी बात हो, मुझे जानना है. बताओ.’
‘याद है एक दिन म मैं मोहिते के साथ कहीं गया था?’
‘जिस दिन मेरे लिए ड्रेस ले आये थे?’
‘हां , उस दिन मैं एक औरत से मिला. मसाज करवाने. मसाज करवाते मेरी आंख लग गई. पर अचानक मेरी आंख खुल गई क्योंकि…’ जगदीश एक पल के लिए हिचकिचाया, फिर उसने बोल ही दिया. ’...क्योंकि वो मेरा लिंग चाट रही थी…’
‘क्या!’ शालिनी ने चौंक कर पूछा.
‘हां , मुझे बड़ा अजीब लगा. मैंने उनको मना किया ऐसा करने से. तब वो मुझे चूमने लगी.फिर-’
जगदीश बोलते हुए रुक गया. शालिनी ने पूछा. ‘फिर क्या?’
‘शैली, उस औरत के चूमने में कुछ ऐसा जादू था कि मैं भूल गया कि मैं उसे मना कर रहा था…’
‘तो फिर? बाद में आपने उसे प्यार किया !’ शालिनी ने अचरज से पूछा.
‘हां. प्यार किया. उसके शरीर को मैंने बहुत प्यार से सहलाया चूमा चाटा, चूसा. पहली बार मुझे एहसास हुआ की संभोग किये बिना केवल स्पर्श और चूमने चाटने से भी संभोग समान सुख मिल सकता है. खेर, पर यह सब बातें मैं तुम्हें क्यों बता रहा हूं ? वजह है. और वजह यह है कि तुम किसी मुगालते में मर रहों कि तुम्हारा यह जेठ दूध का धुला है और न ही मुझे सज्जन पुरुष का सम्मान दो.’
‘यही कहना था?’
‘क्या यह कम है?’
‘काम तो नहीं भैया , बहुत बड़ी बात बता दी पर लगता है और भी कुछ बात है जो आप कहना चाहते हो…’
जगदीश चुप रहा फिर बोला. ‘हां, एक और बात है जिसने मुझे हैरान कर दिया है. और वो बात यह है की मैंने चांदनी को धोखा दिया. उसकी पीठ पीछे मैंने किसी और स्त्री से प्यार किया. इस बात का मुझे बुरा क्यों नहीं लगा रहा. मैंने कोई गुनाह किया है ऐसा अफ़सोस क्यों नहीं हो रहा?
शालिनी भी यह सुन कर हैरान हो गई. उसने पूछा. ‘आप दीदी को यह सब बता दोगे ?’
‘हां. सब कुछ.’
‘उससे क्या होगा?’
‘उसे जानने का हक़ है की मैं कैसा आदमी हूं.’
उसी वक्त जगदीश का सेलफोन बजा. जगदीश यह देख कर हैरान रह गया को कॉल शालिनी के पिताजी - अनुराग अंकल का फोन था.
जगदीश ने शालिनी से कहा. ‘तुम्हारे पिताजी का फोन है.’
शालिनी ने कहा. ‘कोई जरूरी बात होगी..’
जगदीश ने फोन रिसीव किया. कुछ औपचारिक बातों के बाद अनुराग अंकल मुद्दे पर आये. ‘शालिनी और जुगल के बीच कोई अनबन हुई है?’
‘नहीं तो, ऐसी कोई बात नहीं, आप ऐसा क्यों पूछ रहे हो?’
‘मैं परेशान हो गया हूं बेटा…’ अनुराग अंकल ने कहा. ‘कुछ देर पहले शालिनी का फोन आया था, उसने कहा की वो डिवोर्स लेना चाहती है.’
‘क्या !’ चौंक कर जगदीश ने पूछा और शालिनी की ओर देखा. वो स्वस्थ चेहरे से जगदीश को देख रही थी. जगदीश ने अविश्वास भरी आवाज में पूछा. ‘यह आप क्या कह रहे हो?’
‘कुछ समझ में नहीं आता की अचानक क्या हो गया. जुगल बहुत अच्छा लड़का है और तुम्हारे जैसा बड़ा भाई होते हुए शालिनी को कोई परेशानी कैसे हो सकती है? ये लड़की ऐसी बात क्यों कर रही होगी?’
‘आप बिलकुल फ़िक्र न करें, मैं शालिनी से बात करूंगा.भूल जाओ डिवोर्स की बातें, बिलकुल निश्चिंत हो जाइए.ऐसा कुछ नहीं होगा.’
‘ठीक है पर’-
‘शालिनी के साथ मैं बात करूंगा, आप इस बात का टेंशन दिमाग से हटा दीजिये, मानो की शालिनी का को कोई कॉल आया ही नहीं था.’
‘थैंक्स बेटा, बाद में बात करते है - तुम देखो मामला क्या है.’ कह कर अनुराग अंकल ने फोन काटा.
जगदीश शालिनी के करीब जा कर बैठा और पूछा.
‘डिवोर्स लेना चाहती हो?’
‘हां.’
‘वजह?’
‘मैं किसी और से प्यार करने लगी हूं, जुगल को धोखे में नहीं रखना चाहती.’
‘किस से प्यार करने लगी हो?’
‘मतलब नहीं उस बात का.’
‘कैसे मतलब नहीं! बात डिवोर्स तक आ गई और मतलब नहीं ?’
‘उसे तो पता ही नहीं कि मैं उससे प्यार करती हूं.’
जगदीश ने हैरान होकर पूछा. ‘डिवोर्स के बाद तुम उस आदमी के साथ नहीं रहोगी?’
‘नहीं.’
‘तो? डिवोर्स ले कर क्या करोगी?’
‘बैठ कर उसकी याद में आंसू बहाऊंगी.’
‘अब बताओगी भी की यह महान हीरो कौन है जिस से तुम्हे एक तरफ़ा प्यार भी हो गया और उस आदमी से बिना कोई बात किये तुम डिवोर्स भी ले लोगी? आखिर है कौन वो?’
‘आप.’
शालिनी ने कहा और जगदीश बूत बन देखता रह गया.
(३७ -ये तो सोचा न था…विराम, क्रमश