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Incest ये तो सोचा न था…

Sandip2021

दीवाना चूत का
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३७ – ये तो सोचा न था…

[(३६ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :

बरम्यूडा नीचे होते ही जगदीश का पूर्ण रूप से तना हुआ लिंग शालिनी के सामने हिलोरे लेने लगा. शालनी चौंक पड़ी, टेस्टिकल नॉर्मल थे.शालिनी ऑक्वर्ड स्थिति में आ गई.जगदीश ने बरम्यूडा फिर से चढ़ा कर अपने लिंग को ढंकते हुए कहा.
‘रिलेक्स, शालिनी. न कोई सूजन है, न दर्द है, मुझे कुछ नहीं हुआ.’

‘जी पर वो आप ने हाथ अंदर किया था तो… मैं समझी..’

ढीली आवाज में शालिनी ने कहा, उसे सुझा नहीं की आगे क्या बोले.

‘मैं अपना लिंग सहला रहा था. ओके?’

जगदीश ने कहा.

‘ओह… आई एम सो सॉरी भैया –’

अपनी गलती पर लजा कर सर पीटते हुए शालिनी फिर अंदर भागती हुई सोचने लगी : क्या बुद्धू लड़की हूं मैं ! ऐसे कोई किसी की बरम्यूडा खींचता है क्या…! हे भगवान… मेरा क्या होगा…! ]


मोहिते

‘अब बस कर ताई… इसको जितना बड़ा करेगी तेरी कमर उतनी चौड़ी करेगा ये…’ मोहिते ने तूलिका का मुंह अपने लिंग से हटाते हुए कहा.

‘बंड्या, मेरी कमर का कमरा बना कर तू रहने आजा, लेकिन इसको मेरे सामने से मत हटा-’ कहते हुए तूलिका ने खड़े हो कर मोहिते के लिंग को मसलते हुए मोहिते कि छाती में अपना सिर रखा दिया और कहने लगी.

‘मेरी शादी हुई उससे पहले हमारे घर के पास मोहल्ले की कुत्ती ने आठ बच्चे जने थे वो याद है?’

‘हां, याद है.’

कुछ ही दिनों में वो सारे कुत्ते के पिल्ले बड़े हो गए थे- दो कुत्ती और छे कुत्ते थे…’

‘हां, पर उस बात का अभी क्या है?’

‘बंड्या, उन कुत्तों को देख कर मुझे बहुत जलन होती थी…’

‘जलन?’

‘और नहीं तो क्या वो सारे कुत्ते जब जी में आये तब किसी भी कुत्ती पर चढ़ जाते थे… कभी अपनी दोनों बहन कुत्तिया पर कभी अपनी मां कुत्ती पर…’

‘उफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ ताई….कितनी सेक्सी बातें करती हो… ’ कहते हुए मोहिते ने तपाक से तूलिका के पेटीकोट का नाडा खींच के खोल कर सरका दिया, अब तूलिका केवल पेंटी में थी… मोहिते ने पेंटी भी नीचे सरका दी. तब ‘ईश..श...श...श…’ कहते हुए अपनी नंगी योनि पर हाथ ढंक कर तूलिका शर्म से मूड गई. ऐसा करने से अब तूलिका के नितंब मोहिते के सामने आये. उन्हें दोनों हाथों से थाम कर मोहिते ने कहा. ’भाऊ ला गांड दाखवतेस का…’ ( भाई को गांड दिखा रही हो?)



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‘ईश..श्श्श… ‘ बोलते हुए लजा कर तूलिका ने अपने दोनों हाथों से अपने नितंब ढकने की बेमतलब कोशिश की. मोहिते ने आगे बढ़ कर तूलिका को पीछे से बांहों में खींचा और उसकी कमर पर अपने दोनों हाथ लपेटते हुए अपना तना लिंग तूलिका के नितंबों के गोलों के मध्य अवकाश में पिरोया. मोहिते का लिंग तूलिका के योनि मार्ग को होले से छूता हुआ, दो पैरों के बीच सट कर खड़ा रह गया. इस लिंग स्पर्श से तूलिका सिहर उठी. आंखें मूंद कर उसने हलकी सिसकारी भरी. मोहिते ने अब अपने दोनों हाथों में तूलिका के दोनों स्तनों को थामा और दोनों हाथों के अंगूठों से तूलिका के दोनों निपलों को इतनी नजाकत से छुआ जैसे कोई पुरानी किताब के पन्नों के बीच पड़े पीपल के सूखे पत्ते को होले से छूता है. ऐसे अपनी दोनों चूचियों की छुअन से तूलिका को लगा जैसे सूरज से तपती धरती पर बारिश की हल्की सी बौछार हुई हो. -ऐसी बौछार जो धरती को तृप्त तो नहीं करती बल्कि प्यास बढ़ाती है पर इस बढ़ी हुई प्यास में व्याकुलता नहीं होती किंतु शीतल अनुभव की नविन उत्साह पूर्ण अपेक्षा जगती है. तूलिका को इस अपेक्षा ने अधिक स्पर्श के लिए पूरे बदन में ललक जग गई. ‘बंड्या…’ तूलिका ने मदमत्त स्वर में कहा. इस स्वर में संबोधन नहीं था बल्कि यह उच्चारण एक प्रतिक्रिया थी, जैसे चातक पक्षी को बारिश की बूंदो की प्रतीक्षा रहती है वैसी स्पर्श प्रतीक्षा अब तूलिका के समग्र तन में व्याप्त हो चुकी थी और उस प्रतीक्षा का स्वर स्वरूप यह ‘बंड्या’ उच्चारण था. अर्थात इस उच्चारण में तड़प का निवेदन था.

‘काय झाल ग?’ (क्या हुआ ?) मोहिते ने तूलिका के कांधे पर अपना चहेरा रगड़ते हुए तूलिका के कान में सरगोशी से पूछा.

‘तू एवढी गरम का आहे ग, ताई ? ( तुम इतनी गरम क्यों हो दीदी?)

‘तू एवढा कामुक का आहे? ( तुम इतने कामुक क्यों हो?)

‘जिसकी बहन इतनी लावा जैसी उबल रही हो कि दिन में एक बार बदन की गोलाइयां और खाइयां देख लेने पर दिन भर लोडा नरम न हो वो भाई कामुक क्या होगा ताई, काम से जाएगा…’

‘जिसको खुद उसका भाई नजरो से नहला नहला कर तन बदन के एक एक इंच को आंखों से रोज चूमता हो वो बहन बर्फ होगी तब भी लावा बन जाएगी रे…’

‘ताई तू तो हलवा है हलवा… ‘ कहते हुए मोहिते ने झुक कर तूलिका की योनि सहलाई.

‘बंड्या…’ अत्यंत नशीले स्वर में तूलिका ने योनि स्पर्श से उत्तेजित होते हुए अपने दोनों पैरों को चौड़े करते हुए कहा. ‘ तेरी ताई का हलवा छब्बीस छब्बीस सालों से अपने भाई के लिए उबल रहा है - आज इसे ठंडा कर दे रे…’

‘ताई…’ तूलिका की योनि से अब झरने लगे रस में अपनी उंगलियों को मसलते हुए मोहिते ने जलती हुई आवाज में कहा.

‘भाई…’ अगन गोले की गर्मी से पिघलती मोम जैसे समर्पित स्वर में तूलिका ने कहा.

***


जुगल

जिस के साथ अनजाने में शालिनी समझ कर उसने सम्भोग किया था वो अपनी भाभी ही थी यह आघात जुगल के लिए होशलेवा था. वो सर थामे बैठ गया था पर झनक ने उसे होश खोने नहीं दिया.

‘जुगल, अभी इस बात का सोग मनाने का वक्त तुम्हारे पास नहीं है. हिम्मत रखो, यह बात मैंने अब तक नहीं बताई क्योंकि मैं समझ गई थी की तुम चांदनी का कितना सम्मान करते हो पर आज बताना पड़ा क्योंकि हो सकता है आज फिर तुम्हे चांदनी के साथ ऐसा कुछ करना पड़े जो केवल एक पति ही कर सकता है -’

जुगल इस तरह झनक के सामने देख उसकी बातें सुन रहा था जैसे वो उसे सजा ऐ मौत सुना रही हो.

‘जुगल, तुम सुन रहे हो?’

जुगल सिर्फ देखता रहा.

‘ठीक है, चलो यहां से चले जाते है. छोडो यह ट्रीटमेंट का चक्कर.’

झनक ने जुगल की बगल से खड़े होते हुए कहा.

जुगल ने चौंक कर पूछा. ‘तो फिर भाभी का क्या होगा?’

‘पता नहीं. तुम दोनों को संभालना मेरे बस में नहीं, अगर किसी रात नशे में तुमने तुम्हारी भाभी को पत्नी समझ कर चोद डाला था इस बात से तुम बौखला गए हो तो किसका इलाज करें? तुम्हारी भाभी को छोड़ कर अब क्या तुम्हारी ट्रीटमेंट करनी होगी? मैं तुम्हारी बहन हूं या साली? मुझे इतना सारा झंझट नहीं चाहिए, चलो.’

‘प्लीज़ नाराज मत हो झनक-’

‘मैं नाराज नहीं पर मेरे पास ऐसे चोचलो के लिए टाइम नहीं.’

इतने में डॉक्टर प्रियदर्शी ने बाहर आ कर जुगल से पूछा. ‘कोई समस्या है?’

‘नहीं डॉक्टर, चांदनी के लिए कुछ भी कर लूंगा, चलिए मैं रेडी हूं.’ जुगल ने खड़े होते हुए कहा और झनक की और देखा. डॉक्टर केबिन में जाने के लिए मुड़े और झनक ने जुगल को बांहो में खींच कर एक लिप किस कर के कहा. ‘गुड़ बॉय.’

******


जगदीश

जगदीश ने कमरे के दरवाजे को जांचा, खुला था. वो कमरे में दाखिल हुआ. बेड पर शालिनी औंधी पड़ी तकिये में मुंह छिपा कर सुबक सुबक कर रो रही थी. जगदीश उसके करीब जा कर बैठा और शालिनी की पीठ को सहलाते हुए बोला.

‘शालिनी?’

शालिनी ने तकिये से मुंह निकाला दुपट्टे से अपने आंसू पोंछे और जगदीश से थोड़ा दूर खिसक कर बैठते हुए बोली. ‘आप मुझ से नाराज नहीं?’

‘नहीं, तुम्हारा कोई कसूर नहीं, तुम्हे तो यह चिंता थी की कहीं मुझे कोई दर्द तो नहीं हो रहा. क्यों इस तरह खुद को कोस रही हो? यह रोना धोना क्या लगा रखा है?’

‘रोना किसी और बात का है, वो छोड़ो ना भैया.’

‘किस बात पर रो रही थी?’

‘आप क्यों पूछ रहे हो? मुझे नहीं बताना…’

‘क्यों नहीं बताना?’

‘भैया… क्यों जिद करते हो? वो मेरा पर्सनल मामला है - प्लीज़.’

‘ओके, ओके… एक शर्त पर.’

शालिनी ने जगदीश के सामने सवालिया नजरों से देखा.

‘मुस्कुरा दो.’ स्मित करते हुए कहा.

शालिनी साफ़ दिल से मुस्कुराते हुए बोली. ‘ भैया, आप बोलो तो कोई अपनी जान भी निकाल कर दे दे और आप मुस्कुराने की विनती कर रहे हो?’

‘शालिनी, तुम मुझे कुछ ज्यादा ही अच्छा आदमी समझ रही हो. बता दूं ऐसा है नहीं - किसी गलतफहमी में मत रहना.’

‘अच्छा ! आप बुरे काम भी कर लेते हो? सुनाओ मुझे भी जरा.’

‘सुनोगी तो बड़ा आघात लगेगा, रहने दो.’

‘अब तो सुन कर ही रहूंगी. बोलो क्या बुरा काम किया है आपने?’

‘जी करता है मेरी करनी बता ही दूं ताकि यह जो तुम मेरे लिए ‘महान इंसान’ का तगमा अपनी नजरों में लिए मुझे देखती हो वो तो बंद हो.’

‘हां हां, बताइये.’

जगदीश ने शालिनी को निहारा फिर कहा. ‘जब तुम ने देखा की मेरा हाथ मेरे बरम्यूडा में है तब तुम्हें अंदाजा भी नहीं था कि मैं अपना लिंग सहला रहा हूं…’

‘जी…’ शालिनी थोड़ी हिचकिचाई. ऐसी किसी बात की उसे उम्मीद नहीं थी.

‘मैं अपना लिंग किसी को याद करते हुए सहला रहा था…’

‘जी…’ शालिनी अभी भी अंदाजा नहीं लगा पा रही थी की बात किस ओर जायेगी.

‘क्या तुम ऐसी कल्पना भी कर सकती हो की मैं जिसे याद कर रहा था वो चांदनी नहीं थी, कोई और औरत थी?’

यह बात शालिनी के लिए बिलकुल अनपेक्षित थी. पर उसे आघात नहीं लगा. उसने कहा.

‘ओके. पर भैया, पराई औरत के ख़याल में यूं उत्तेजित होना कोई बहुत बुरी बात नहीं है…’

‘पराई औरत से प्यार करना? यह तो बुरी बात है?’

शालिनी कुछ बोल नहीं सकी. प्यार? प्यार तो वो भी जगदीश से करने लगी थी! क्या प्यार करना बुरी बात है? हां शायद आप शादीशुदा हो तो किसी और से प्यार नहीं करना चाहिए.

‘जी, यह तो बुरी बात है.’ शालिनी ने मुस्कुराकर कहा.

‘तुम्हे हंसी आ रही है?’

‘वो कोई और बात पर हंसी आई, छोड़िए न, यह बताइये आप किस पराई औरत से प्यार करने लगे और कब से?’

‘यह सब हाल ही में हुआ… शालिनी.’ जगदीश ने गंभीर चेहरे से कहा.

शालिनी का दिल एक पल धड़कन चूक गया : कहीं जेठ जी भी मुझ से ही तो प्यार नहीं कर रहे ! जगदीश उसे याद करते हुए अपना लिंग सहला रहा है ऐसी कल्पना मात्र से शालिनी के बदन में बिजली सी दौड़ गई. उसने कांपती आवाज़ में पूछा. ‘मैं जान सकती हूं वो कौन है जिसे आप प्यार करने लगे हो?’

‘प्यार करने लगा ऐसा तो नहीं पर उस औरत के प्रति मैं आकर्षित हो गया और यह आकर्षण मुझे दोबारा भी हो सकता है…’

शालिनी अभी भी हैरान थी की यह किस औरत की बात होगी.

‘क्या हुआ, कब हुआ कुछ बताओगे?’

‘बताने जितनी कोई बड़ी बात है ही नहीं.’

शालिनी को लगा की यह बात मेरी नहीं शायद किसी और औरत की है. पर कौन होगा वो?

शालिनी ने कहा. ‘भले कितनी भी छोटी बात हो, मुझे जानना है. बताओ.’

‘याद है एक दिन म मैं मोहिते के साथ कहीं गया था?’

‘जिस दिन मेरे लिए ड्रेस ले आये थे?’

‘हां , उस दिन मैं एक औरत से मिला. मसाज करवाने. मसाज करवाते मेरी आंख लग गई. पर अचानक मेरी आंख खुल गई क्योंकि…’ जगदीश एक पल के लिए हिचकिचाया, फिर उसने बोल ही दिया. ’...क्योंकि वो मेरा लिंग चाट रही थी…’

‘क्या!’ शालिनी ने चौंक कर पूछा.

‘हां , मुझे बड़ा अजीब लगा. मैंने उनको मना किया ऐसा करने से. तब वो मुझे चूमने लगी.फिर-’

जगदीश बोलते हुए रुक गया. शालिनी ने पूछा. ‘फिर क्या?’

‘शैली, उस औरत के चूमने में कुछ ऐसा जादू था कि मैं भूल गया कि मैं उसे मना कर रहा था…’

‘तो फिर? बाद में आपने उसे प्यार किया !’ शालिनी ने अचरज से पूछा.

‘हां. प्यार किया. उसके शरीर को मैंने बहुत प्यार से सहलाया चूमा चाटा, चूसा. पहली बार मुझे एहसास हुआ की संभोग किये बिना केवल स्पर्श और चूमने चाटने से भी संभोग समान सुख मिल सकता है. खेर, पर यह सब बातें मैं तुम्हें क्यों बता रहा हूं ? वजह है. और वजह यह है कि तुम किसी मुगालते में मर रहों कि तुम्हारा यह जेठ दूध का धुला है और न ही मुझे सज्जन पुरुष का सम्मान दो.’

‘यही कहना था?’

‘क्या यह कम है?’

‘काम तो नहीं भैया , बहुत बड़ी बात बता दी पर लगता है और भी कुछ बात है जो आप कहना चाहते हो…’

जगदीश चुप रहा फिर बोला. ‘हां, एक और बात है जिसने मुझे हैरान कर दिया है. और वो बात यह है की मैंने चांदनी को धोखा दिया. उसकी पीठ पीछे मैंने किसी और स्त्री से प्यार किया. इस बात का मुझे बुरा क्यों नहीं लगा रहा. मैंने कोई गुनाह किया है ऐसा अफ़सोस क्यों नहीं हो रहा?

शालिनी भी यह सुन कर हैरान हो गई. उसने पूछा. ‘आप दीदी को यह सब बता दोगे ?’

‘हां. सब कुछ.’

‘उससे क्या होगा?’

‘उसे जानने का हक़ है की मैं कैसा आदमी हूं.’

उसी वक्त जगदीश का सेलफोन बजा. जगदीश यह देख कर हैरान रह गया को कॉल शालिनी के पिताजी - अनुराग अंकल का फोन था.

जगदीश ने शालिनी से कहा. ‘तुम्हारे पिताजी का फोन है.’

शालिनी ने कहा. ‘कोई जरूरी बात होगी..’

जगदीश ने फोन रिसीव किया. कुछ औपचारिक बातों के बाद अनुराग अंकल मुद्दे पर आये. ‘शालिनी और जुगल के बीच कोई अनबन हुई है?’

‘नहीं तो, ऐसी कोई बात नहीं, आप ऐसा क्यों पूछ रहे हो?’

‘मैं परेशान हो गया हूं बेटा…’ अनुराग अंकल ने कहा. ‘कुछ देर पहले शालिनी का फोन आया था, उसने कहा की वो डिवोर्स लेना चाहती है.’

‘क्या !’ चौंक कर जगदीश ने पूछा और शालिनी की ओर देखा. वो स्वस्थ चेहरे से जगदीश को देख रही थी. जगदीश ने अविश्वास भरी आवाज में पूछा. ‘यह आप क्या कह रहे हो?’

‘कुछ समझ में नहीं आता की अचानक क्या हो गया. जुगल बहुत अच्छा लड़का है और तुम्हारे जैसा बड़ा भाई होते हुए शालिनी को कोई परेशानी कैसे हो सकती है? ये लड़की ऐसी बात क्यों कर रही होगी?’

‘आप बिलकुल फ़िक्र न करें, मैं शालिनी से बात करूंगा.भूल जाओ डिवोर्स की बातें, बिलकुल निश्चिंत हो जाइए.ऐसा कुछ नहीं होगा.’

‘ठीक है पर’-

‘शालिनी के साथ मैं बात करूंगा, आप इस बात का टेंशन दिमाग से हटा दीजिये, मानो की शालिनी का को कोई कॉल आया ही नहीं था.’

‘थैंक्स बेटा, बाद में बात करते है - तुम देखो मामला क्या है.’ कह कर अनुराग अंकल ने फोन काटा.

जगदीश शालिनी के करीब जा कर बैठा और पूछा.

‘डिवोर्स लेना चाहती हो?’

‘हां.’

‘वजह?’

‘मैं किसी और से प्यार करने लगी हूं, जुगल को धोखे में नहीं रखना चाहती.’

‘किस से प्यार करने लगी हो?’

‘मतलब नहीं उस बात का.’

‘कैसे मतलब नहीं! बात डिवोर्स तक आ गई और मतलब नहीं ?’

‘उसे तो पता ही नहीं कि मैं उससे प्यार करती हूं.’

जगदीश ने हैरान होकर पूछा. ‘डिवोर्स के बाद तुम उस आदमी के साथ नहीं रहोगी?’

‘नहीं.’

‘तो? डिवोर्स ले कर क्या करोगी?’

‘बैठ कर उसकी याद में आंसू बहाऊंगी.’

‘अब बताओगी भी की यह महान हीरो कौन है जिस से तुम्हे एक तरफ़ा प्यार भी हो गया और उस आदमी से बिना कोई बात किये तुम डिवोर्स भी ले लोगी? आखिर है कौन वो?’

‘आप.’

शालिनी ने कहा और जगदीश बूत बन देखता रह गया.


(३७ -ये तो सोचा न था…विराम, क्रमश:)
बहुत ही शानदार कहानी
लव triangle बहुत ही लाजवाब है।
 

SKYESH

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३७ – ये तो सोचा न था…

[(३६ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :

बरम्यूडा नीचे होते ही जगदीश का पूर्ण रूप से तना हुआ लिंग शालिनी के सामने हिलोरे लेने लगा. शालनी चौंक पड़ी, टेस्टिकल नॉर्मल थे.शालिनी ऑक्वर्ड स्थिति में आ गई.जगदीश ने बरम्यूडा फिर से चढ़ा कर अपने लिंग को ढंकते हुए कहा.
‘रिलेक्स, शालिनी. न कोई सूजन है, न दर्द है, मुझे कुछ नहीं हुआ.’

‘जी पर वो आप ने हाथ अंदर किया था तो… मैं समझी..’

ढीली आवाज में शालिनी ने कहा, उसे सुझा नहीं की आगे क्या बोले.

‘मैं अपना लिंग सहला रहा था. ओके?’

जगदीश ने कहा.

‘ओह… आई एम सो सॉरी भैया –’

अपनी गलती पर लजा कर सर पीटते हुए शालिनी फिर अंदर भागती हुई सोचने लगी : क्या बुद्धू लड़की हूं मैं ! ऐसे कोई किसी की बरम्यूडा खींचता है क्या…! हे भगवान… मेरा क्या होगा…! ]


मोहिते

‘अब बस कर ताई… इसको जितना बड़ा करेगी तेरी कमर उतनी चौड़ी करेगा ये…’ मोहिते ने तूलिका का मुंह अपने लिंग से हटाते हुए कहा.

‘बंड्या, मेरी कमर का कमरा बना कर तू रहने आजा, लेकिन इसको मेरे सामने से मत हटा-’ कहते हुए तूलिका ने खड़े हो कर मोहिते के लिंग को मसलते हुए मोहिते कि छाती में अपना सिर रखा दिया और कहने लगी.

‘मेरी शादी हुई उससे पहले हमारे घर के पास मोहल्ले की कुत्ती ने आठ बच्चे जने थे वो याद है?’

‘हां, याद है.’

कुछ ही दिनों में वो सारे कुत्ते के पिल्ले बड़े हो गए थे- दो कुत्ती और छे कुत्ते थे…’

‘हां, पर उस बात का अभी क्या है?’

‘बंड्या, उन कुत्तों को देख कर मुझे बहुत जलन होती थी…’

‘जलन?’

‘और नहीं तो क्या वो सारे कुत्ते जब जी में आये तब किसी भी कुत्ती पर चढ़ जाते थे… कभी अपनी दोनों बहन कुत्तिया पर कभी अपनी मां कुत्ती पर…’

‘उफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ ताई….कितनी सेक्सी बातें करती हो… ’ कहते हुए मोहिते ने तपाक से तूलिका के पेटीकोट का नाडा खींच के खोल कर सरका दिया, अब तूलिका केवल पेंटी में थी… मोहिते ने पेंटी भी नीचे सरका दी. तब ‘ईश..श...श...श…’ कहते हुए अपनी नंगी योनि पर हाथ ढंक कर तूलिका शर्म से मूड गई. ऐसा करने से अब तूलिका के नितंब मोहिते के सामने आये. उन्हें दोनों हाथों से थाम कर मोहिते ने कहा. ’भाऊ ला गांड दाखवतेस का…’ ( भाई को गांड दिखा रही हो?)



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‘ईश..श्श्श… ‘ बोलते हुए लजा कर तूलिका ने अपने दोनों हाथों से अपने नितंब ढकने की बेमतलब कोशिश की. मोहिते ने आगे बढ़ कर तूलिका को पीछे से बांहों में खींचा और उसकी कमर पर अपने दोनों हाथ लपेटते हुए अपना तना लिंग तूलिका के नितंबों के गोलों के मध्य अवकाश में पिरोया. मोहिते का लिंग तूलिका के योनि मार्ग को होले से छूता हुआ, दो पैरों के बीच सट कर खड़ा रह गया. इस लिंग स्पर्श से तूलिका सिहर उठी. आंखें मूंद कर उसने हलकी सिसकारी भरी. मोहिते ने अब अपने दोनों हाथों में तूलिका के दोनों स्तनों को थामा और दोनों हाथों के अंगूठों से तूलिका के दोनों निपलों को इतनी नजाकत से छुआ जैसे कोई पुरानी किताब के पन्नों के बीच पड़े पीपल के सूखे पत्ते को होले से छूता है. ऐसे अपनी दोनों चूचियों की छुअन से तूलिका को लगा जैसे सूरज से तपती धरती पर बारिश की हल्की सी बौछार हुई हो. -ऐसी बौछार जो धरती को तृप्त तो नहीं करती बल्कि प्यास बढ़ाती है पर इस बढ़ी हुई प्यास में व्याकुलता नहीं होती किंतु शीतल अनुभव की नविन उत्साह पूर्ण अपेक्षा जगती है. तूलिका को इस अपेक्षा ने अधिक स्पर्श के लिए पूरे बदन में ललक जग गई. ‘बंड्या…’ तूलिका ने मदमत्त स्वर में कहा. इस स्वर में संबोधन नहीं था बल्कि यह उच्चारण एक प्रतिक्रिया थी, जैसे चातक पक्षी को बारिश की बूंदो की प्रतीक्षा रहती है वैसी स्पर्श प्रतीक्षा अब तूलिका के समग्र तन में व्याप्त हो चुकी थी और उस प्रतीक्षा का स्वर स्वरूप यह ‘बंड्या’ उच्चारण था. अर्थात इस उच्चारण में तड़प का निवेदन था.

‘काय झाल ग?’ (क्या हुआ ?) मोहिते ने तूलिका के कांधे पर अपना चहेरा रगड़ते हुए तूलिका के कान में सरगोशी से पूछा.

‘तू एवढी गरम का आहे ग, ताई ? ( तुम इतनी गरम क्यों हो दीदी?)

‘तू एवढा कामुक का आहे? ( तुम इतने कामुक क्यों हो?)

‘जिसकी बहन इतनी लावा जैसी उबल रही हो कि दिन में एक बार बदन की गोलाइयां और खाइयां देख लेने पर दिन भर लोडा नरम न हो वो भाई कामुक क्या होगा ताई, काम से जाएगा…’

‘जिसको खुद उसका भाई नजरो से नहला नहला कर तन बदन के एक एक इंच को आंखों से रोज चूमता हो वो बहन बर्फ होगी तब भी लावा बन जाएगी रे…’

‘ताई तू तो हलवा है हलवा… ‘ कहते हुए मोहिते ने झुक कर तूलिका की योनि सहलाई.

‘बंड्या…’ अत्यंत नशीले स्वर में तूलिका ने योनि स्पर्श से उत्तेजित होते हुए अपने दोनों पैरों को चौड़े करते हुए कहा. ‘ तेरी ताई का हलवा छब्बीस छब्बीस सालों से अपने भाई के लिए उबल रहा है - आज इसे ठंडा कर दे रे…’

‘ताई…’ तूलिका की योनि से अब झरने लगे रस में अपनी उंगलियों को मसलते हुए मोहिते ने जलती हुई आवाज में कहा.

‘भाई…’ अगन गोले की गर्मी से पिघलती मोम जैसे समर्पित स्वर में तूलिका ने कहा.

***


जुगल

जिस के साथ अनजाने में शालिनी समझ कर उसने सम्भोग किया था वो अपनी भाभी ही थी यह आघात जुगल के लिए होशलेवा था. वो सर थामे बैठ गया था पर झनक ने उसे होश खोने नहीं दिया.

‘जुगल, अभी इस बात का सोग मनाने का वक्त तुम्हारे पास नहीं है. हिम्मत रखो, यह बात मैंने अब तक नहीं बताई क्योंकि मैं समझ गई थी की तुम चांदनी का कितना सम्मान करते हो पर आज बताना पड़ा क्योंकि हो सकता है आज फिर तुम्हे चांदनी के साथ ऐसा कुछ करना पड़े जो केवल एक पति ही कर सकता है -’

जुगल इस तरह झनक के सामने देख उसकी बातें सुन रहा था जैसे वो उसे सजा ऐ मौत सुना रही हो.

‘जुगल, तुम सुन रहे हो?’

जुगल सिर्फ देखता रहा.

‘ठीक है, चलो यहां से चले जाते है. छोडो यह ट्रीटमेंट का चक्कर.’

झनक ने जुगल की बगल से खड़े होते हुए कहा.

जुगल ने चौंक कर पूछा. ‘तो फिर भाभी का क्या होगा?’

‘पता नहीं. तुम दोनों को संभालना मेरे बस में नहीं, अगर किसी रात नशे में तुमने तुम्हारी भाभी को पत्नी समझ कर चोद डाला था इस बात से तुम बौखला गए हो तो किसका इलाज करें? तुम्हारी भाभी को छोड़ कर अब क्या तुम्हारी ट्रीटमेंट करनी होगी? मैं तुम्हारी बहन हूं या साली? मुझे इतना सारा झंझट नहीं चाहिए, चलो.’

‘प्लीज़ नाराज मत हो झनक-’

‘मैं नाराज नहीं पर मेरे पास ऐसे चोचलो के लिए टाइम नहीं.’

इतने में डॉक्टर प्रियदर्शी ने बाहर आ कर जुगल से पूछा. ‘कोई समस्या है?’

‘नहीं डॉक्टर, चांदनी के लिए कुछ भी कर लूंगा, चलिए मैं रेडी हूं.’ जुगल ने खड़े होते हुए कहा और झनक की और देखा. डॉक्टर केबिन में जाने के लिए मुड़े और झनक ने जुगल को बांहो में खींच कर एक लिप किस कर के कहा. ‘गुड़ बॉय.’

******


जगदीश

जगदीश ने कमरे के दरवाजे को जांचा, खुला था. वो कमरे में दाखिल हुआ. बेड पर शालिनी औंधी पड़ी तकिये में मुंह छिपा कर सुबक सुबक कर रो रही थी. जगदीश उसके करीब जा कर बैठा और शालिनी की पीठ को सहलाते हुए बोला.

‘शालिनी?’

शालिनी ने तकिये से मुंह निकाला दुपट्टे से अपने आंसू पोंछे और जगदीश से थोड़ा दूर खिसक कर बैठते हुए बोली. ‘आप मुझ से नाराज नहीं?’

‘नहीं, तुम्हारा कोई कसूर नहीं, तुम्हे तो यह चिंता थी की कहीं मुझे कोई दर्द तो नहीं हो रहा. क्यों इस तरह खुद को कोस रही हो? यह रोना धोना क्या लगा रखा है?’

‘रोना किसी और बात का है, वो छोड़ो ना भैया.’

‘किस बात पर रो रही थी?’

‘आप क्यों पूछ रहे हो? मुझे नहीं बताना…’

‘क्यों नहीं बताना?’

‘भैया… क्यों जिद करते हो? वो मेरा पर्सनल मामला है - प्लीज़.’

‘ओके, ओके… एक शर्त पर.’

शालिनी ने जगदीश के सामने सवालिया नजरों से देखा.

‘मुस्कुरा दो.’ स्मित करते हुए कहा.

शालिनी साफ़ दिल से मुस्कुराते हुए बोली. ‘ भैया, आप बोलो तो कोई अपनी जान भी निकाल कर दे दे और आप मुस्कुराने की विनती कर रहे हो?’

‘शालिनी, तुम मुझे कुछ ज्यादा ही अच्छा आदमी समझ रही हो. बता दूं ऐसा है नहीं - किसी गलतफहमी में मत रहना.’

‘अच्छा ! आप बुरे काम भी कर लेते हो? सुनाओ मुझे भी जरा.’

‘सुनोगी तो बड़ा आघात लगेगा, रहने दो.’

‘अब तो सुन कर ही रहूंगी. बोलो क्या बुरा काम किया है आपने?’

‘जी करता है मेरी करनी बता ही दूं ताकि यह जो तुम मेरे लिए ‘महान इंसान’ का तगमा अपनी नजरों में लिए मुझे देखती हो वो तो बंद हो.’

‘हां हां, बताइये.’

जगदीश ने शालिनी को निहारा फिर कहा. ‘जब तुम ने देखा की मेरा हाथ मेरे बरम्यूडा में है तब तुम्हें अंदाजा भी नहीं था कि मैं अपना लिंग सहला रहा हूं…’

‘जी…’ शालिनी थोड़ी हिचकिचाई. ऐसी किसी बात की उसे उम्मीद नहीं थी.

‘मैं अपना लिंग किसी को याद करते हुए सहला रहा था…’

‘जी…’ शालिनी अभी भी अंदाजा नहीं लगा पा रही थी की बात किस ओर जायेगी.

‘क्या तुम ऐसी कल्पना भी कर सकती हो की मैं जिसे याद कर रहा था वो चांदनी नहीं थी, कोई और औरत थी?’

यह बात शालिनी के लिए बिलकुल अनपेक्षित थी. पर उसे आघात नहीं लगा. उसने कहा.

‘ओके. पर भैया, पराई औरत के ख़याल में यूं उत्तेजित होना कोई बहुत बुरी बात नहीं है…’

‘पराई औरत से प्यार करना? यह तो बुरी बात है?’

शालिनी कुछ बोल नहीं सकी. प्यार? प्यार तो वो भी जगदीश से करने लगी थी! क्या प्यार करना बुरी बात है? हां शायद आप शादीशुदा हो तो किसी और से प्यार नहीं करना चाहिए.

‘जी, यह तो बुरी बात है.’ शालिनी ने मुस्कुराकर कहा.

‘तुम्हे हंसी आ रही है?’

‘वो कोई और बात पर हंसी आई, छोड़िए न, यह बताइये आप किस पराई औरत से प्यार करने लगे और कब से?’

‘यह सब हाल ही में हुआ… शालिनी.’ जगदीश ने गंभीर चेहरे से कहा.

शालिनी का दिल एक पल धड़कन चूक गया : कहीं जेठ जी भी मुझ से ही तो प्यार नहीं कर रहे ! जगदीश उसे याद करते हुए अपना लिंग सहला रहा है ऐसी कल्पना मात्र से शालिनी के बदन में बिजली सी दौड़ गई. उसने कांपती आवाज़ में पूछा. ‘मैं जान सकती हूं वो कौन है जिसे आप प्यार करने लगे हो?’

‘प्यार करने लगा ऐसा तो नहीं पर उस औरत के प्रति मैं आकर्षित हो गया और यह आकर्षण मुझे दोबारा भी हो सकता है…’

शालिनी अभी भी हैरान थी की यह किस औरत की बात होगी.

‘क्या हुआ, कब हुआ कुछ बताओगे?’

‘बताने जितनी कोई बड़ी बात है ही नहीं.’

शालिनी को लगा की यह बात मेरी नहीं शायद किसी और औरत की है. पर कौन होगा वो?

शालिनी ने कहा. ‘भले कितनी भी छोटी बात हो, मुझे जानना है. बताओ.’

‘याद है एक दिन म मैं मोहिते के साथ कहीं गया था?’

‘जिस दिन मेरे लिए ड्रेस ले आये थे?’

‘हां , उस दिन मैं एक औरत से मिला. मसाज करवाने. मसाज करवाते मेरी आंख लग गई. पर अचानक मेरी आंख खुल गई क्योंकि…’ जगदीश एक पल के लिए हिचकिचाया, फिर उसने बोल ही दिया. ’...क्योंकि वो मेरा लिंग चाट रही थी…’

‘क्या!’ शालिनी ने चौंक कर पूछा.

‘हां , मुझे बड़ा अजीब लगा. मैंने उनको मना किया ऐसा करने से. तब वो मुझे चूमने लगी.फिर-’

जगदीश बोलते हुए रुक गया. शालिनी ने पूछा. ‘फिर क्या?’

‘शैली, उस औरत के चूमने में कुछ ऐसा जादू था कि मैं भूल गया कि मैं उसे मना कर रहा था…’

‘तो फिर? बाद में आपने उसे प्यार किया !’ शालिनी ने अचरज से पूछा.

‘हां. प्यार किया. उसके शरीर को मैंने बहुत प्यार से सहलाया चूमा चाटा, चूसा. पहली बार मुझे एहसास हुआ की संभोग किये बिना केवल स्पर्श और चूमने चाटने से भी संभोग समान सुख मिल सकता है. खेर, पर यह सब बातें मैं तुम्हें क्यों बता रहा हूं ? वजह है. और वजह यह है कि तुम किसी मुगालते में मर रहों कि तुम्हारा यह जेठ दूध का धुला है और न ही मुझे सज्जन पुरुष का सम्मान दो.’

‘यही कहना था?’

‘क्या यह कम है?’

‘काम तो नहीं भैया , बहुत बड़ी बात बता दी पर लगता है और भी कुछ बात है जो आप कहना चाहते हो…’

जगदीश चुप रहा फिर बोला. ‘हां, एक और बात है जिसने मुझे हैरान कर दिया है. और वो बात यह है की मैंने चांदनी को धोखा दिया. उसकी पीठ पीछे मैंने किसी और स्त्री से प्यार किया. इस बात का मुझे बुरा क्यों नहीं लगा रहा. मैंने कोई गुनाह किया है ऐसा अफ़सोस क्यों नहीं हो रहा?

शालिनी भी यह सुन कर हैरान हो गई. उसने पूछा. ‘आप दीदी को यह सब बता दोगे ?’

‘हां. सब कुछ.’

‘उससे क्या होगा?’

‘उसे जानने का हक़ है की मैं कैसा आदमी हूं.’

उसी वक्त जगदीश का सेलफोन बजा. जगदीश यह देख कर हैरान रह गया को कॉल शालिनी के पिताजी - अनुराग अंकल का फोन था.

जगदीश ने शालिनी से कहा. ‘तुम्हारे पिताजी का फोन है.’

शालिनी ने कहा. ‘कोई जरूरी बात होगी..’

जगदीश ने फोन रिसीव किया. कुछ औपचारिक बातों के बाद अनुराग अंकल मुद्दे पर आये. ‘शालिनी और जुगल के बीच कोई अनबन हुई है?’

‘नहीं तो, ऐसी कोई बात नहीं, आप ऐसा क्यों पूछ रहे हो?’

‘मैं परेशान हो गया हूं बेटा…’ अनुराग अंकल ने कहा. ‘कुछ देर पहले शालिनी का फोन आया था, उसने कहा की वो डिवोर्स लेना चाहती है.’

‘क्या !’ चौंक कर जगदीश ने पूछा और शालिनी की ओर देखा. वो स्वस्थ चेहरे से जगदीश को देख रही थी. जगदीश ने अविश्वास भरी आवाज में पूछा. ‘यह आप क्या कह रहे हो?’

‘कुछ समझ में नहीं आता की अचानक क्या हो गया. जुगल बहुत अच्छा लड़का है और तुम्हारे जैसा बड़ा भाई होते हुए शालिनी को कोई परेशानी कैसे हो सकती है? ये लड़की ऐसी बात क्यों कर रही होगी?’

‘आप बिलकुल फ़िक्र न करें, मैं शालिनी से बात करूंगा.भूल जाओ डिवोर्स की बातें, बिलकुल निश्चिंत हो जाइए.ऐसा कुछ नहीं होगा.’

‘ठीक है पर’-

‘शालिनी के साथ मैं बात करूंगा, आप इस बात का टेंशन दिमाग से हटा दीजिये, मानो की शालिनी का को कोई कॉल आया ही नहीं था.’

‘थैंक्स बेटा, बाद में बात करते है - तुम देखो मामला क्या है.’ कह कर अनुराग अंकल ने फोन काटा.

जगदीश शालिनी के करीब जा कर बैठा और पूछा.

‘डिवोर्स लेना चाहती हो?’

‘हां.’

‘वजह?’

‘मैं किसी और से प्यार करने लगी हूं, जुगल को धोखे में नहीं रखना चाहती.’

‘किस से प्यार करने लगी हो?’

‘मतलब नहीं उस बात का.’

‘कैसे मतलब नहीं! बात डिवोर्स तक आ गई और मतलब नहीं ?’

‘उसे तो पता ही नहीं कि मैं उससे प्यार करती हूं.’

जगदीश ने हैरान होकर पूछा. ‘डिवोर्स के बाद तुम उस आदमी के साथ नहीं रहोगी?’

‘नहीं.’

‘तो? डिवोर्स ले कर क्या करोगी?’

‘बैठ कर उसकी याद में आंसू बहाऊंगी.’

‘अब बताओगी भी की यह महान हीरो कौन है जिस से तुम्हे एक तरफ़ा प्यार भी हो गया और उस आदमी से बिना कोई बात किये तुम डिवोर्स भी ले लोगी? आखिर है कौन वो?’

‘आप.’

शालिनी ने कहा और जगदीश बूत बन देखता रह गया.


(३७ -ये तो सोचा न था…विराम, क्रमश:)

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३७ – ये तो सोचा न था…

[(३६ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :

बरम्यूडा नीचे होते ही जगदीश का पूर्ण रूप से तना हुआ लिंग शालिनी के सामने हिलोरे लेने लगा. शालनी चौंक पड़ी, टेस्टिकल नॉर्मल थे.शालिनी ऑक्वर्ड स्थिति में आ गई.जगदीश ने बरम्यूडा फिर से चढ़ा कर अपने लिंग को ढंकते हुए कहा.
‘रिलेक्स, शालिनी. न कोई सूजन है, न दर्द है, मुझे कुछ नहीं हुआ.’

‘जी पर वो आप ने हाथ अंदर किया था तो… मैं समझी..’

ढीली आवाज में शालिनी ने कहा, उसे सुझा नहीं की आगे क्या बोले.

‘मैं अपना लिंग सहला रहा था. ओके?’

जगदीश ने कहा.

‘ओह… आई एम सो सॉरी भैया –’

अपनी गलती पर लजा कर सर पीटते हुए शालिनी फिर अंदर भागती हुई सोचने लगी : क्या बुद्धू लड़की हूं मैं ! ऐसे कोई किसी की बरम्यूडा खींचता है क्या…! हे भगवान… मेरा क्या होगा…! ]


मोहिते

‘अब बस कर ताई… इसको जितना बड़ा करेगी तेरी कमर उतनी चौड़ी करेगा ये…’ मोहिते ने तूलिका का मुंह अपने लिंग से हटाते हुए कहा.

‘बंड्या, मेरी कमर का कमरा बना कर तू रहने आजा, लेकिन इसको मेरे सामने से मत हटा-’ कहते हुए तूलिका ने खड़े हो कर मोहिते के लिंग को मसलते हुए मोहिते कि छाती में अपना सिर रखा दिया और कहने लगी.

‘मेरी शादी हुई उससे पहले हमारे घर के पास मोहल्ले की कुत्ती ने आठ बच्चे जने थे वो याद है?’

‘हां, याद है.’

कुछ ही दिनों में वो सारे कुत्ते के पिल्ले बड़े हो गए थे- दो कुत्ती और छे कुत्ते थे…’

‘हां, पर उस बात का अभी क्या है?’

‘बंड्या, उन कुत्तों को देख कर मुझे बहुत जलन होती थी…’

‘जलन?’

‘और नहीं तो क्या वो सारे कुत्ते जब जी में आये तब किसी भी कुत्ती पर चढ़ जाते थे… कभी अपनी दोनों बहन कुत्तिया पर कभी अपनी मां कुत्ती पर…’

‘उफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ ताई….कितनी सेक्सी बातें करती हो… ’ कहते हुए मोहिते ने तपाक से तूलिका के पेटीकोट का नाडा खींच के खोल कर सरका दिया, अब तूलिका केवल पेंटी में थी… मोहिते ने पेंटी भी नीचे सरका दी. तब ‘ईश..श...श...श…’ कहते हुए अपनी नंगी योनि पर हाथ ढंक कर तूलिका शर्म से मूड गई. ऐसा करने से अब तूलिका के नितंब मोहिते के सामने आये. उन्हें दोनों हाथों से थाम कर मोहिते ने कहा. ’भाऊ ला गांड दाखवतेस का…’ ( भाई को गांड दिखा रही हो?)



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‘ईश..श्श्श… ‘ बोलते हुए लजा कर तूलिका ने अपने दोनों हाथों से अपने नितंब ढकने की बेमतलब कोशिश की. मोहिते ने आगे बढ़ कर तूलिका को पीछे से बांहों में खींचा और उसकी कमर पर अपने दोनों हाथ लपेटते हुए अपना तना लिंग तूलिका के नितंबों के गोलों के मध्य अवकाश में पिरोया. मोहिते का लिंग तूलिका के योनि मार्ग को होले से छूता हुआ, दो पैरों के बीच सट कर खड़ा रह गया. इस लिंग स्पर्श से तूलिका सिहर उठी. आंखें मूंद कर उसने हलकी सिसकारी भरी. मोहिते ने अब अपने दोनों हाथों में तूलिका के दोनों स्तनों को थामा और दोनों हाथों के अंगूठों से तूलिका के दोनों निपलों को इतनी नजाकत से छुआ जैसे कोई पुरानी किताब के पन्नों के बीच पड़े पीपल के सूखे पत्ते को होले से छूता है. ऐसे अपनी दोनों चूचियों की छुअन से तूलिका को लगा जैसे सूरज से तपती धरती पर बारिश की हल्की सी बौछार हुई हो. -ऐसी बौछार जो धरती को तृप्त तो नहीं करती बल्कि प्यास बढ़ाती है पर इस बढ़ी हुई प्यास में व्याकुलता नहीं होती किंतु शीतल अनुभव की नविन उत्साह पूर्ण अपेक्षा जगती है. तूलिका को इस अपेक्षा ने अधिक स्पर्श के लिए पूरे बदन में ललक जग गई. ‘बंड्या…’ तूलिका ने मदमत्त स्वर में कहा. इस स्वर में संबोधन नहीं था बल्कि यह उच्चारण एक प्रतिक्रिया थी, जैसे चातक पक्षी को बारिश की बूंदो की प्रतीक्षा रहती है वैसी स्पर्श प्रतीक्षा अब तूलिका के समग्र तन में व्याप्त हो चुकी थी और उस प्रतीक्षा का स्वर स्वरूप यह ‘बंड्या’ उच्चारण था. अर्थात इस उच्चारण में तड़प का निवेदन था.

‘काय झाल ग?’ (क्या हुआ ?) मोहिते ने तूलिका के कांधे पर अपना चहेरा रगड़ते हुए तूलिका के कान में सरगोशी से पूछा.

‘तू एवढी गरम का आहे ग, ताई ? ( तुम इतनी गरम क्यों हो दीदी?)

‘तू एवढा कामुक का आहे? ( तुम इतने कामुक क्यों हो?)

‘जिसकी बहन इतनी लावा जैसी उबल रही हो कि दिन में एक बार बदन की गोलाइयां और खाइयां देख लेने पर दिन भर लोडा नरम न हो वो भाई कामुक क्या होगा ताई, काम से जाएगा…’

‘जिसको खुद उसका भाई नजरो से नहला नहला कर तन बदन के एक एक इंच को आंखों से रोज चूमता हो वो बहन बर्फ होगी तब भी लावा बन जाएगी रे…’

‘ताई तू तो हलवा है हलवा… ‘ कहते हुए मोहिते ने झुक कर तूलिका की योनि सहलाई.

‘बंड्या…’ अत्यंत नशीले स्वर में तूलिका ने योनि स्पर्श से उत्तेजित होते हुए अपने दोनों पैरों को चौड़े करते हुए कहा. ‘ तेरी ताई का हलवा छब्बीस छब्बीस सालों से अपने भाई के लिए उबल रहा है - आज इसे ठंडा कर दे रे…’

‘ताई…’ तूलिका की योनि से अब झरने लगे रस में अपनी उंगलियों को मसलते हुए मोहिते ने जलती हुई आवाज में कहा.

‘भाई…’ अगन गोले की गर्मी से पिघलती मोम जैसे समर्पित स्वर में तूलिका ने कहा.

***


जुगल

जिस के साथ अनजाने में शालिनी समझ कर उसने सम्भोग किया था वो अपनी भाभी ही थी यह आघात जुगल के लिए होशलेवा था. वो सर थामे बैठ गया था पर झनक ने उसे होश खोने नहीं दिया.

‘जुगल, अभी इस बात का सोग मनाने का वक्त तुम्हारे पास नहीं है. हिम्मत रखो, यह बात मैंने अब तक नहीं बताई क्योंकि मैं समझ गई थी की तुम चांदनी का कितना सम्मान करते हो पर आज बताना पड़ा क्योंकि हो सकता है आज फिर तुम्हे चांदनी के साथ ऐसा कुछ करना पड़े जो केवल एक पति ही कर सकता है -’

जुगल इस तरह झनक के सामने देख उसकी बातें सुन रहा था जैसे वो उसे सजा ऐ मौत सुना रही हो.

‘जुगल, तुम सुन रहे हो?’

जुगल सिर्फ देखता रहा.

‘ठीक है, चलो यहां से चले जाते है. छोडो यह ट्रीटमेंट का चक्कर.’

झनक ने जुगल की बगल से खड़े होते हुए कहा.

जुगल ने चौंक कर पूछा. ‘तो फिर भाभी का क्या होगा?’

‘पता नहीं. तुम दोनों को संभालना मेरे बस में नहीं, अगर किसी रात नशे में तुमने तुम्हारी भाभी को पत्नी समझ कर चोद डाला था इस बात से तुम बौखला गए हो तो किसका इलाज करें? तुम्हारी भाभी को छोड़ कर अब क्या तुम्हारी ट्रीटमेंट करनी होगी? मैं तुम्हारी बहन हूं या साली? मुझे इतना सारा झंझट नहीं चाहिए, चलो.’

‘प्लीज़ नाराज मत हो झनक-’

‘मैं नाराज नहीं पर मेरे पास ऐसे चोचलो के लिए टाइम नहीं.’

इतने में डॉक्टर प्रियदर्शी ने बाहर आ कर जुगल से पूछा. ‘कोई समस्या है?’

‘नहीं डॉक्टर, चांदनी के लिए कुछ भी कर लूंगा, चलिए मैं रेडी हूं.’ जुगल ने खड़े होते हुए कहा और झनक की और देखा. डॉक्टर केबिन में जाने के लिए मुड़े और झनक ने जुगल को बांहो में खींच कर एक लिप किस कर के कहा. ‘गुड़ बॉय.’

******


जगदीश

जगदीश ने कमरे के दरवाजे को जांचा, खुला था. वो कमरे में दाखिल हुआ. बेड पर शालिनी औंधी पड़ी तकिये में मुंह छिपा कर सुबक सुबक कर रो रही थी. जगदीश उसके करीब जा कर बैठा और शालिनी की पीठ को सहलाते हुए बोला.

‘शालिनी?’

शालिनी ने तकिये से मुंह निकाला दुपट्टे से अपने आंसू पोंछे और जगदीश से थोड़ा दूर खिसक कर बैठते हुए बोली. ‘आप मुझ से नाराज नहीं?’

‘नहीं, तुम्हारा कोई कसूर नहीं, तुम्हे तो यह चिंता थी की कहीं मुझे कोई दर्द तो नहीं हो रहा. क्यों इस तरह खुद को कोस रही हो? यह रोना धोना क्या लगा रखा है?’

‘रोना किसी और बात का है, वो छोड़ो ना भैया.’

‘किस बात पर रो रही थी?’

‘आप क्यों पूछ रहे हो? मुझे नहीं बताना…’

‘क्यों नहीं बताना?’

‘भैया… क्यों जिद करते हो? वो मेरा पर्सनल मामला है - प्लीज़.’

‘ओके, ओके… एक शर्त पर.’

शालिनी ने जगदीश के सामने सवालिया नजरों से देखा.

‘मुस्कुरा दो.’ स्मित करते हुए कहा.

शालिनी साफ़ दिल से मुस्कुराते हुए बोली. ‘ भैया, आप बोलो तो कोई अपनी जान भी निकाल कर दे दे और आप मुस्कुराने की विनती कर रहे हो?’

‘शालिनी, तुम मुझे कुछ ज्यादा ही अच्छा आदमी समझ रही हो. बता दूं ऐसा है नहीं - किसी गलतफहमी में मत रहना.’

‘अच्छा ! आप बुरे काम भी कर लेते हो? सुनाओ मुझे भी जरा.’

‘सुनोगी तो बड़ा आघात लगेगा, रहने दो.’

‘अब तो सुन कर ही रहूंगी. बोलो क्या बुरा काम किया है आपने?’

‘जी करता है मेरी करनी बता ही दूं ताकि यह जो तुम मेरे लिए ‘महान इंसान’ का तगमा अपनी नजरों में लिए मुझे देखती हो वो तो बंद हो.’

‘हां हां, बताइये.’

जगदीश ने शालिनी को निहारा फिर कहा. ‘जब तुम ने देखा की मेरा हाथ मेरे बरम्यूडा में है तब तुम्हें अंदाजा भी नहीं था कि मैं अपना लिंग सहला रहा हूं…’

‘जी…’ शालिनी थोड़ी हिचकिचाई. ऐसी किसी बात की उसे उम्मीद नहीं थी.

‘मैं अपना लिंग किसी को याद करते हुए सहला रहा था…’

‘जी…’ शालिनी अभी भी अंदाजा नहीं लगा पा रही थी की बात किस ओर जायेगी.

‘क्या तुम ऐसी कल्पना भी कर सकती हो की मैं जिसे याद कर रहा था वो चांदनी नहीं थी, कोई और औरत थी?’

यह बात शालिनी के लिए बिलकुल अनपेक्षित थी. पर उसे आघात नहीं लगा. उसने कहा.

‘ओके. पर भैया, पराई औरत के ख़याल में यूं उत्तेजित होना कोई बहुत बुरी बात नहीं है…’

‘पराई औरत से प्यार करना? यह तो बुरी बात है?’

शालिनी कुछ बोल नहीं सकी. प्यार? प्यार तो वो भी जगदीश से करने लगी थी! क्या प्यार करना बुरी बात है? हां शायद आप शादीशुदा हो तो किसी और से प्यार नहीं करना चाहिए.

‘जी, यह तो बुरी बात है.’ शालिनी ने मुस्कुराकर कहा.

‘तुम्हे हंसी आ रही है?’

‘वो कोई और बात पर हंसी आई, छोड़िए न, यह बताइये आप किस पराई औरत से प्यार करने लगे और कब से?’

‘यह सब हाल ही में हुआ… शालिनी.’ जगदीश ने गंभीर चेहरे से कहा.

शालिनी का दिल एक पल धड़कन चूक गया : कहीं जेठ जी भी मुझ से ही तो प्यार नहीं कर रहे ! जगदीश उसे याद करते हुए अपना लिंग सहला रहा है ऐसी कल्पना मात्र से शालिनी के बदन में बिजली सी दौड़ गई. उसने कांपती आवाज़ में पूछा. ‘मैं जान सकती हूं वो कौन है जिसे आप प्यार करने लगे हो?’

‘प्यार करने लगा ऐसा तो नहीं पर उस औरत के प्रति मैं आकर्षित हो गया और यह आकर्षण मुझे दोबारा भी हो सकता है…’

शालिनी अभी भी हैरान थी की यह किस औरत की बात होगी.

‘क्या हुआ, कब हुआ कुछ बताओगे?’

‘बताने जितनी कोई बड़ी बात है ही नहीं.’

शालिनी को लगा की यह बात मेरी नहीं शायद किसी और औरत की है. पर कौन होगा वो?

शालिनी ने कहा. ‘भले कितनी भी छोटी बात हो, मुझे जानना है. बताओ.’

‘याद है एक दिन म मैं मोहिते के साथ कहीं गया था?’

‘जिस दिन मेरे लिए ड्रेस ले आये थे?’

‘हां , उस दिन मैं एक औरत से मिला. मसाज करवाने. मसाज करवाते मेरी आंख लग गई. पर अचानक मेरी आंख खुल गई क्योंकि…’ जगदीश एक पल के लिए हिचकिचाया, फिर उसने बोल ही दिया. ’...क्योंकि वो मेरा लिंग चाट रही थी…’

‘क्या!’ शालिनी ने चौंक कर पूछा.

‘हां , मुझे बड़ा अजीब लगा. मैंने उनको मना किया ऐसा करने से. तब वो मुझे चूमने लगी.फिर-’

जगदीश बोलते हुए रुक गया. शालिनी ने पूछा. ‘फिर क्या?’

‘शैली, उस औरत के चूमने में कुछ ऐसा जादू था कि मैं भूल गया कि मैं उसे मना कर रहा था…’

‘तो फिर? बाद में आपने उसे प्यार किया !’ शालिनी ने अचरज से पूछा.

‘हां. प्यार किया. उसके शरीर को मैंने बहुत प्यार से सहलाया चूमा चाटा, चूसा. पहली बार मुझे एहसास हुआ की संभोग किये बिना केवल स्पर्श और चूमने चाटने से भी संभोग समान सुख मिल सकता है. खेर, पर यह सब बातें मैं तुम्हें क्यों बता रहा हूं ? वजह है. और वजह यह है कि तुम किसी मुगालते में मर रहों कि तुम्हारा यह जेठ दूध का धुला है और न ही मुझे सज्जन पुरुष का सम्मान दो.’

‘यही कहना था?’

‘क्या यह कम है?’

‘काम तो नहीं भैया , बहुत बड़ी बात बता दी पर लगता है और भी कुछ बात है जो आप कहना चाहते हो…’

जगदीश चुप रहा फिर बोला. ‘हां, एक और बात है जिसने मुझे हैरान कर दिया है. और वो बात यह है की मैंने चांदनी को धोखा दिया. उसकी पीठ पीछे मैंने किसी और स्त्री से प्यार किया. इस बात का मुझे बुरा क्यों नहीं लगा रहा. मैंने कोई गुनाह किया है ऐसा अफ़सोस क्यों नहीं हो रहा?

शालिनी भी यह सुन कर हैरान हो गई. उसने पूछा. ‘आप दीदी को यह सब बता दोगे ?’

‘हां. सब कुछ.’

‘उससे क्या होगा?’

‘उसे जानने का हक़ है की मैं कैसा आदमी हूं.’

उसी वक्त जगदीश का सेलफोन बजा. जगदीश यह देख कर हैरान रह गया को कॉल शालिनी के पिताजी - अनुराग अंकल का फोन था.

जगदीश ने शालिनी से कहा. ‘तुम्हारे पिताजी का फोन है.’

शालिनी ने कहा. ‘कोई जरूरी बात होगी..’

जगदीश ने फोन रिसीव किया. कुछ औपचारिक बातों के बाद अनुराग अंकल मुद्दे पर आये. ‘शालिनी और जुगल के बीच कोई अनबन हुई है?’

‘नहीं तो, ऐसी कोई बात नहीं, आप ऐसा क्यों पूछ रहे हो?’

‘मैं परेशान हो गया हूं बेटा…’ अनुराग अंकल ने कहा. ‘कुछ देर पहले शालिनी का फोन आया था, उसने कहा की वो डिवोर्स लेना चाहती है.’

‘क्या !’ चौंक कर जगदीश ने पूछा और शालिनी की ओर देखा. वो स्वस्थ चेहरे से जगदीश को देख रही थी. जगदीश ने अविश्वास भरी आवाज में पूछा. ‘यह आप क्या कह रहे हो?’

‘कुछ समझ में नहीं आता की अचानक क्या हो गया. जुगल बहुत अच्छा लड़का है और तुम्हारे जैसा बड़ा भाई होते हुए शालिनी को कोई परेशानी कैसे हो सकती है? ये लड़की ऐसी बात क्यों कर रही होगी?’

‘आप बिलकुल फ़िक्र न करें, मैं शालिनी से बात करूंगा.भूल जाओ डिवोर्स की बातें, बिलकुल निश्चिंत हो जाइए.ऐसा कुछ नहीं होगा.’

‘ठीक है पर’-

‘शालिनी के साथ मैं बात करूंगा, आप इस बात का टेंशन दिमाग से हटा दीजिये, मानो की शालिनी का को कोई कॉल आया ही नहीं था.’

‘थैंक्स बेटा, बाद में बात करते है - तुम देखो मामला क्या है.’ कह कर अनुराग अंकल ने फोन काटा.

जगदीश शालिनी के करीब जा कर बैठा और पूछा.

‘डिवोर्स लेना चाहती हो?’

‘हां.’

‘वजह?’

‘मैं किसी और से प्यार करने लगी हूं, जुगल को धोखे में नहीं रखना चाहती.’

‘किस से प्यार करने लगी हो?’

‘मतलब नहीं उस बात का.’

‘कैसे मतलब नहीं! बात डिवोर्स तक आ गई और मतलब नहीं ?’

‘उसे तो पता ही नहीं कि मैं उससे प्यार करती हूं.’

जगदीश ने हैरान होकर पूछा. ‘डिवोर्स के बाद तुम उस आदमी के साथ नहीं रहोगी?’

‘नहीं.’

‘तो? डिवोर्स ले कर क्या करोगी?’

‘बैठ कर उसकी याद में आंसू बहाऊंगी.’

‘अब बताओगी भी की यह महान हीरो कौन है जिस से तुम्हे एक तरफ़ा प्यार भी हो गया और उस आदमी से बिना कोई बात किये तुम डिवोर्स भी ले लोगी? आखिर है कौन वो?’

‘आप.’

शालिनी ने कहा और जगदीश बूत बन देखता रह गया.


(३७ -ये तो सोचा न था…विराम, क्रमश:)
ये तो कुछ अलग की कहानी शुरू हो गई है, जुगल चांदनी के साथ पति पत्नी वाला रोल कर रहा है और शालिनी जगदीश के लिए डिवोर्स लेने को तैयार है। कही ये दोनो जोड़ी में क्रॉस कनेक्शन तो नही होने वाला है। उधर मोहिते अपनी बहन पर फिदा हो गया है। मस्त हो रहा है सब।
 

Tiger 786

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ये तो सोचा न था


(दोस्तों,
यह मेरी पहली इरोटिक कहानी है.
अपनी प्रतिक्रिया दीजिये. ताकि मुझे मार्गदर्शन मिले और मैं बेहतर कहानी लिख सकूं.

-राकेश बक्षी)


ये तो सोचा न था…अनुक्रमणिका



प्रकरण - ३७प्रकरण - ३८प्रकरण - ३९प्रकरण - ४०
















१ – ये तो सोचा था

शालिनी और जगदीश दोनों के लिए यह एक ऑक्वर्ड परिस्थिति थी. शायद शालिनी के लिए अधिक. क्योंकि जगदीश शालिनी का जेठ था. और मुंबई से पूना तक उन दोनों को एक ही कार में जाना पड़े ऐसा संजोग खड़ा हुआ था.
वैसे तो दो कार मुंबई से पूना जाने वाली थी. दोनों भाई अपनी अपनी कार में अपनी पत्नियों के साथ पूना उनके फैमिली फ्रेंड के घर शादी में पहुँच रहे थे. शनि वार शाम को दोनों भाई पूना के लिए निकलने वाले थे और रात नौ-दस बजे तक पहुँच जाने वाले थे. जगदीश शाम को चार बजे तक घर पहुंचेगा और पांच बजे दोनों कार पूना के लिए रवाना होगी यह प्लान था.
शनिवार को जगदीश के छोटे भाई जुगल को छुट्टी होती थी. सो वो घर पर ही था. और जगदीश की पत्नी चांदनी अपनी देवरानी शालिनी को मेहंदी लगाने की तैयारी कर रही थी क्योंकि चांदनी मेहंदी लगाने में एक्सपर्ट थी.
पर शालिनी को लगा की सुबह से उसकी जेठानी चांदनी कुछ उदास है. पर क्या वजह हो सकती है उदासी की? शालिनी ने बहुत सोचा पर वो ताड़ नहीं पाई. पूना में जिस फेमिली फ्रेंड के यहाँ शादी थी वो लोग करीबी थे. उनके यहां शादी में जाने का उन चारों लोगों को उत्साह था. और कैसे कब जाना यह भी कई दिनों से तय था फिर अब जाने के दिन अचानक चांदनी को क्या हुआ?

सरल और निश्छल स्वभाव की शालिनी ने हार कर चांदनी से पूछ लेना ही तय किया. जब चांदनी शालिनी के हाथों में मेहंदी लगाने आई तब शालिनी ने कहा ‘दीदी, मैं मेहंदी तभी लगवाउंगी जब तुम अपनी उदासी की वजह बताओ. सुबह से तुम्हारा चेहरा कितना फीका लग रहा है!’
चांदनी ने तुरंत जवाब दिया ‘कोई बड़ी बात नहीं पर मुझे मेरे पिताजी की फ़िक्र हो रही है. रात को माँ का फोन आया था की उन की तबीयत कुछ ठीक नहीं.’
शालिनी यह सुन चिंता करने लगी. चांदनी के माँ- पिताजी न्यू बॉम्बे रहते थे. जो की मुंबई से पूना जाते वक्त रास्ते में पड़ता था. शालिनी ने कहा ‘अरे दी, इतना क्या मन भारी कर रही हो ? पूना जाते जाते हम सब आप के पिताजी को मिलते हुए जाएंगे, रास्ते में ही तो घर है!’
चांदनी ने फीकी मुस्कान के साथ कहा की ‘तुम्हारे जेठ ने भी यही कहा है और शाम को उनसे मिलते हुए ही जाना है यह पता है पर दिल तो आखिर दिल है- पिताजी के बारे में सोच कर आँखे भर आती है - पर कोई बात नहीं, शाम तक की ही तो बात है!’
शालिनी ने कुछ सोचा और खड़ी हो कर बोली ‘मैं आई एक मिनिट.’
‘अरे पर मेहंदी लगानी है न ?’
‘बस एक मिनिट… ‘ कह कर शालिनी तेजी से गई. चांदनी महेंदी लिए राह देखती रही और बजाय एक मिनिट के पांच मिनिट के बाद शालिनी आई अपने पति जुगल के साथ. शालिनी को देख कर चांदनी ने कहा ‘चल अब कोई टाइम पास नहीं, बैठ भी जा… मैं मेहंदी लगाऊंगी कब और वो सूखेगी कब! ‘

‘आप मेहंदी नहीं लगाओगी दी, आप जुगल के साथ नवी मुंबई के लिए निकल जाओ… ‘
‘क्या !’ चांदनी ने आश्चर्य से पूछा.
जुगल ने कहा ‘हाँ भाभी मेरी कार में नवी मुंबई चलते है. अभी दोपहर के दो बजे है. भैया को आते आते चार बज जाएंगे, फिर हम सब पांच बजे निकलेंगे और नवी मुंबई तक पहुंचने में साढ़े छे - सात बज जाएंगे, फिर हमें पूना पहुँचने की जल्दी होगी तो आप के पिताजी के पास आप सुकून से दो पल बैठ भी नहीं पाओगो…’
यह सुन कर चांदनी सोच में पड़ गई. शालिनी ने आगे कहा ‘बजाय इस के आप अभी जुगल के साथ नवी मुंबई पहुंचो और जेठ जी आएंगे तब मैं उन के साथ आ जाउंगी… आप को मा - पिताजी के साथ रुकने को कम से कम तीन घंटे मिल जाएंगे.’

‘अरे पर निकलने से पहले यहां कितने काम बाकी है, ऐसे कैसे निकल जाऊं !’ चांदनी ने कहना चाहा पर उस की बात को आधे से काट कर शालिनी ने कहा ‘पता है क्या क्या काम है- हम दोनों की साडी का बॉर्डर लगवाना है, साढ़े तीन बजे पूना के लिए शादी में जो गिफ्ट ले जानी है उसकी डिलीवरी घर पर होगी और चार बजे इलेक्ट्रीशियन आएगा उस से हॉल का फेन चेंज करवाना है पर ये सभी काम तो मैं भी निपटा सकती हूँ न ? इसी लिए तो मैं रुक जाती हूँ और जेठ जी के साथ आ जाउंगी, आप तो अपने माँ - पिताजी से मिलने निकल जाइए!’
‘और तेरी मेहंदी? शादी में तू की बिना मेहंदी के आएगी?’
‘बीसियों ब्यूटी पार्लर है दी अपने शहर में, मेहंदी कोई इस्यु नहीं पर पिताजी से मिलना ज्यादा जरूरी है.’
बात सही थी. चांदनी ने फोन पर अपने पति जगदीश की राय ली. उसे भी यह बात ठीक लगी. उसने कहा ‘एकदम प्रेक्टिकल बात है. तुम लोग चलो, मैं बहु को ले कर पहुंचता हूँ, नवी मुंबई से फिर चारों साथ में निकल कर पूना जाएंगे.’
और चांदनी जुगल के साथ अपने माँ - पिताजी को मिलने निकल गई.

शाम को शालिनी ने अपने सारे काम निपटा दिए. साडी - हॉल में फेन - गिफ्ट की डिलीवरी - हाथों में महेंदी…. सब काम ठीक से किये. और सफर के लिए एक अच्छा सा पंजाबी सूट पहन कर तैयार हो गई.
जगदीश भी चार बजे पहुंच गया. और साढ़े चार बजे तो शालिनी और जगदीश घर से निकल कर कार की और बढ़ने लगे.

पर-

शालिनी ने बोल तो दिया था की वो जेठजी के साथ नवी मुंबई आ जायेगी और जगदीश ने भी चांदनी से कह दिया था की वो बहु को ले के नवी मुंबई पहुँच जाएगा पर पर जब कार में बैठने की बारी आई तब शालिनी और जगदीश दोनों की हालत अजीब हो गई.

हालत अजीब होने की वजह थी जगदीश - जुगल के घर का माहौल.

शालिनी इस घर में ब्याह कर चार साल पहले आई थी. पर इन चार सालों में उसका और जगदीश का कभी भी कोई बातचीत का व्यवहार भी अकेले में नहीं हुआ था. बड़ो को आदर सम्मान देते है इस परंपरा के चलते शालिनी अपने जेठ को बड़ा भाई मानती थी और उन की इज्जत करती थी पर जगदीश को और शालिनी को एक दूजे से कोई काम कभी पड़ा ही नहीं था. कोई सूरत ही नहीं थी की उनको एक दूसरे से कोई बात अलग से करनी पड़े. बड़ी बहु होने के नाते चांदनी के सर घर का सारा जिम्मा था और छोटा होने के नाते जुगल घर के बाकी काम की खाना पूर्ति कर लेता था. और शालिनी बहु होने के नाते हमेंशा अपने जेठ से एक सोशियल डिस्टंस में ही रही थी.

जगदीश भी एक संस्कारी और संयम शील इंसान था. उसे शालिनी का कोई काम कभी पड़ा ही नहीं था.

ऐसा नहीं की जगदीश ने शालिनी को कभी नोटिस ही नहीं किया हो. कई बार अनजाने में जगदीश नई नजर शालिनी के स्तन पर चली जाती. हालांकि वो तुरंत अपनी नजरे फेर लेता इस ख़याल के साथ के शालिनी के स्तन बड़े है. कम से कम अपनी पत्नी चांदनी से तो बड़े. पर इस दिशा में वो आगे नहीं सोचता. बहु के बारे में ऐसा नहीं सोचना चाहिए यह वो समझता था.

ऐसा भी नहीं की दोनों में आपस में कभी बात नहीं होती थी पर हमेशा या चांदनी मौजूद होती थी या जुगल. अकेले में कभी नहीं.

घर से निकल कर कार तक जाते हुए जगदीश को लगा की सोसायटी का वॉचमेन शालिनी को अजीब तरह से घूर रहा है. उसने वॉचमेन की नजरो का पीछा किया तो वो शालिनी की छाती को घूर रहा था. शालिनी ने सफर के लिए एक घरेलु किसम का पीला सलवार सूट पहना था और दुपट्टा था पर वो उसने गले के इतने करीब से पीठ की और मोड़ा हुआ था की उसके स्तन ढंक नहीं रहे थे. जगदीश को लगा की शालिनी ने इस बात का ख़याल रखना चाहिए. पर इस पर क्या हो सकता है? शालिनी को यह कहना की दुपट्टा ठीक से ओढो तो बड़ा अजीब लगेगा. और देखनेवालों को भी कुछ कहा नहीं जा सकता. जगदीश ने सर को एक झटका दे कर ऐसे ख्यालो को हटाने की जैसे कोशिश की. जब दोनों कार तक पहुंचे तब तक दोनों के मन में एक ही सवाल था : शालिनी ने पीछे की सीट पर बैठना चाहिए या आगे जगदीश के बगल में?

अगर शालिनी पीछे बैठेगी तो न चाहते हुए भी जगदीश ड्राइवर हो और शालिनी कार मालकिन ऐसा चित्र बनेगा.
अगर शालिनी आगे जगदीश के बगल में बैठेगी तो क्या जेठ और बहु साथ साथ बैठ कर कार में जाएंगे?

अब ?

न तो जगदीश को सूझ रहा था की शालिनी ने कहाँ बैठना चाहिए न तो उसे शालिनी से इस बारे में बात करने का साहस हो रहा था.
यही हाल शालिनी का था !


(१ – ये
तो सोचा थासमाप्त, क्रमश:)
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(२ - ये तो सोचा था)

[(१ – ये तो सोचा थामें आपने पढ़ा :जब दोनों कार तक पहुंचे तब तक दोनों के मन में एक ही सवाल था : शालिनी ने पीछे की सीट पर बैठना चाहिए या आगे जगदीश के बगल में?
अगर शालिनी पीछे बैठेगी तो न चाहते हुए भी जगदीश ड्राइवर हो और शालिनी कार मालकिन ऐसा चित्र बनेगा.
अगर शालिनी आगे जगदीश के बगल में बैठेगी तो क्या जेठ और बहु साथ साथ बैठ कर कार में जाएंगे?
अब ?
न तो जगदीश को सूझ रहा था की शालिनी ने कहाँ बैठना चाहिए न तो उसे शालिनी से इस बारे में बात करने का साहस हो रहा था.
यही हाल शालिनी का था !
]


पर उन दोनों की उलझन का तोड़ अपने आप आ गया जब पूना, शादी में ले जाने का गिफ्ट का पैकेट इतना बड़ा साबित हुआ की वो डिकी में जा नहीं पाया और मजबूरन उसे कार की पीछे की सीट पर रखना पड़ा! अब शालिनी चाहे तब भी पीछे नहीं बैठ सकती थी!

इस गिफ्ट पैकेट की वजह से जब कोई चॉइस ही नहीं रही और शालिनी को आगे, जगदीश के बगल में बैठना पड़ा तब दोनों ने ही अपने मन में सुकून की सांस ली. इस लिए नहीं की दोनों बगल में बैठना चाहते थे पर इस लिए क्योंकि दोनों यह कभी तय नहीं कर पाते की शालिनी को कहाँ बैठना चाहिए. यह फैसला लेना इस लिए कठिन था क्योंकि की दोनों ही विकल्प दोनों ही व्यक्ति के लिए असहज थे.

वैसे तो यह बहुत छोटी बात है पर गौरतलब बात यही है की जगदीश और शालिनी एक दूसरे की बहुत इज्जत करते है और एक दूसरे को अनकम्फर्टेबल सिच्युएशन में देख नहीं सकते थे.

खेर, कार चालु करते वक्त जगदीश ने सोचा : बस नवी मुंबई तक की बात है. यह सफर किसी तरह कट जाए, फिर शालिनी जुगल की कार में चली जायेगी और चांदनी इस कार में आ जाएगी…

शालिनी भी ऐसा ही कुछ सोच रही थी की नवी मुंबई तक लाज और परंपरा के लिहाज में चुपचाप बूत की तरह रहना होगा. फिर जुगल के साथ होने पर नॉर्मली सफर हो पाएगी.

यहाँ तक सब बिल्कुल ठीक था.

लेकिन…

***

कार मुंबई के ट्राफिक को चीरते हुए हाइवे की और जाने लगी. पर हाइवे पर पहुँचते ही दोनों हाइवे की स्थिति देख दांग रह गए. मेट्रो ट्रेन का काम चल रहा था सो कई जगह पर हाइवे पर खुदाई हो रही थी सो ट्राफिक बहुत जाम था.

‘ऐसे ट्राफिक में तो हमें नवी मुंबई पहुंचने में ही तीन घंटे लग जाएंगे!’ जगदीश ने मायूसी से कहा.

‘जी, मैं जुगल को बता देती हूँ की ट्रैफिक बहुत है… वो लोग राह देख रहे होंगे.’

कहते हुए शालिनी ने अपना मोबाइल डायल किया. पर जुगल का फोन बिज़ी आ रहा था.

काफी ट्राई करने के बाद भी जब जुगल का फोन नहीं लगा तब शालिनी ने चांदनी को फोन लगाने की सोची पर तभी जगदीश का फोन बजा. जगदीश ने देखा तो चांदनी का फोन था. जगदीश ड्राइव कर रहा था इस लिए उसने शालिनी को फोन उठाने कहा.

शालिनी ने फोन उठाया तब चांदनी ने कहा ‘आप लोग कब तक पहुंचोगे यहां मेरे मायके?’

शालिनी ने कहा ‘दी, यहां पर बहुत ट्रैफिक है, कुछ कह नहीं सकते.’

चांदनी ने कहा ‘एक प्रॉब्लम हुई है.’

‘आपके बाबूजी ठीक तो है?’ शालिनी ने चिंतित हो फोन स्पीकर पर रखते हुए पूछा.

‘बाबूजी एकदम ठीक है, प्रॉब्लम पूना में हुई है. दुल्हन को मेहंदी लगाने वाली का पता नहीं और आखिरी मौके पर उनको कोई दुल्हन की मेहंदी लगाने वाली एक्सपर्ट मिल नहीं रही.’

‘तो अब?’ शालिनी ने पूछा.

‘तो हम लोग तुम्हारी राह देख रहे है, मुझे अब दुल्हन की मेहंदी लगानी है…पूना जल्द पहुंचना होगा.’

‘पर यहाँ तो ट्रैफिक का सैलाब है चांदनी, हम को काफी समय लगेगा.’ जगदीश ने ड्राइव करते हुए कहा.

‘तो मैं और जुगल निकल जाये पूना ? आप लोग आइए पीछे ?’ चांदनी ने पूछा.

जगदीश और शालिनी ने एक दूसरे को देखा. कोई कुछ बोल नहीं पाया.

‘हैल्लो? जगदीश ? हैल्लो...'

‘हाँ चांदनी…’

‘मैं कह रही हूँ पूना पहुंचना होगा जितना हो सके उतना जल्दी…’

‘तो क्या करें अब?’ उलझन के साथ शालिनी की और देखते हुए जगदीश ने कहा. शालिनी भी इस स्थिति से हैरान हो गई थी.

‘ठीक है चांदनी तुम और जुगल पूना के लिए निकल जाओ.’

शालिनी ने चौंक कर जगदीश की और देखा. चांदनी ने कहा ‘ हैलो शालिनी?’

‘हाँ दी?’

‘तुम जगदीश के साथ आ जाओ पूना, मुझे निकलना होगा - ठीक है?’

‘जी दी, मैंने सुना सब.प्लीज़ जुगल को दीजिये बात करनी है.’

‘हाँ शालिनी?’ जुगल लाइन पर आया.

‘क्या बोलूं मैं अब !’ शालिनी को कुछ सुझा नहीं.

‘परेशानी की कोई बात नहीं, भैया अच्छे ड्राइवर है. आप लोग आइए मैं भाभी को ले कर निकल जाता हूँ. ओके?’

‘जी.…’ शालिनी ने कहा.

फोन कट गया. शालिनी ने आँखे मूंद ली. इस तरह की सफर के लिए मानसिक रूप से बिल्कुल तैयार नहीं थी.

पेशोपेश में तो जगदीश भी था.

पर किसी के पास कहाँ कोई चॉइस थी?

वो चुपचाप गाडी ड्राइव करता रहा. शालिनी गुमसुम हो कर बेमतलब बाहर देखती रही.

करीब दस मिनिट के बाद जगदीश को ख़याल आया की शालिनी कितना अजीब महसूस करती होगी. उसने कहा ‘ बहु…’

शालिनी ने जगदीश की और देखा. जगदीश ने कहा.

‘हम हालत के हाथो फंस गए है. पर तुम जी छोटा न करो. यह ट्रैफिक हल्का होते मैं फटाफट ड्राइव कर के गाड़ी पूना पहुंचा दूंगा.’

अपने जेठ को यूँ तसल्ली देते देख शालिनी को परेशानी में भी हंसी आ गई. वो बोली ‘जी भैया, कोई बात नहीं यह सब अचानक हो गया इस लिए मैं परेशान हो गई.’

‘परेशान तो मैं भी हूँ. हम लोग इतना समय कभी अकेले नहीं रहे और अब अचानक इतना लम्बा सफर! पर तुम फ़िक्र मत करो. आँखे मूंद कर सो जाओ. तुम मेरी.. मतलब एक तरह से मेरी बेटी हो…’ जगदीश को सूझ नहीं रहा था की शालिनी को सहज महसूस कराने वो क्या कहे.

जगदीश की बात से शालिनी भावुक हो गई. ‘थेंक्स भैय्या.’ इतना ही कह पाई.

जगदीश मन ही मन ट्रैफिक को कोसते हुए गाड़ी चलाता रहा.

कुछ देर में शालिनी ने आँखे मूंद ली. जगदीश ने सोचा अब शालिनी की आँख खुले इससे पहले पूना आ जाए तो कितना अच्छा !’

हाई वे पर कार चलाते हुए बगल की कार वाले ने जगदीश को उसकी कार का साइड मिरर टेढ़ा हो गया है यह इशारा किया. जगदीश साइड मिरर सीधा करने लगा. तब उसे मिरर में सोइ हुई शालिनी दिखी. सहसा उसकी बड़ी छाती दिखाई दी. शालिनी का दुपट्टा अभी भी स्तनों को ढांक नहीं रहा था. ऊपर की और मुड़ा हुआ था.

जगदीश को अजीब लगा. उसने ड्राइविंग पर तवज्जो दिया. पर खयालो को कैसे रोके? शालिनी की छाती को एक बार फिर उसने साइड मिरर से निहारा. फिर तुरंत खुद को कोसा : अभी अभी उसे बेटी कहा और अब यूँ छाती देखना क्या अच्छी बात है?

उसने शालिनी के सारे ख़याल हटा कर ड्राइविंग में खुद को जोत दिया.

***


(२ - ये तो सोचा न था… समाप्त, क्रमश:)

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- ये तो सोचा था

[(- ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :जगदीश साइड मिरर सीधा करने लगा. तब उसे मिरर में सोइ हुई शालिनी दिखी. सहसा उसकी बड़ी छाती दिखाई दी. शालिनी का दुपट्टा अभी भी स्तनों को ढाक नहीं रहा था. ऊपर की और मुड़ा हुआ था.

जगदीश को अजीब लगा. उसने ड्राइविंग पर तवज्जो दिया. पर खयालो को कैसे रोके? शालिनी की छाती को एक बार फिर उसने साइड मिरर से निहारा. फिर तुरंत खुद को कोसा : अभी अभी उसे बेटी कहा और अब यूँ छाती देखना क्या अच्छी बात है?

उसने शालिनी के सारे ख़याल हटा कर ड्राइविंग में खुद को जोत दिया.]



कार दौड़े जा रही थी. मुंबई पीछे छूट गया था. ट्राफिक भी अब नॉर्मल हो गया था. सूरज अभी पूरा डूबा नहीं था. शालिनी की आँख लग गई थी.

-अचानक.

अचानक एक धमाका हुआ. जगदीश ने कार रोक दी. शालिनी चौंक कर उठ गई.

‘क्या हुआ भैय्या?’ उसने गभराते हुए पूछा.

‘देखता हूँ.’ कहते हुए जगदीश कार के बाहर निकला.

देखा तो टायर ब्रस्ट हो गया था. जगदीश ने किसी तरह कार साइड में ली. शालिनी भी कार के बाहर आ गई.

‘किस्मत!’ जगदीश ने फीकी मुस्कान के साथ कहा. और स्टेपनी टायर बदलने की शुरुआत कर दी. शालिनी बगल में खड़े है वे के ट्राफिक को निहारने लगी.

जगदीश ने नोटिस किया की शालिनी ने एकदम मामूली किस्म के कपडे पहने थे. शायद सफर के कपडे थे. पर जगदीश ठीक से तैयार हुआ था. सो उसे शालिनी को मामूली कपड़ो में देख बड़ा अजीब लग रहा था. पर वो कुछ बोला नहीं.

इतने में उन के करीब एक बाइक रुकी. बाइक पर दो नौजवान बैठे थे. वो शालिनी को देख कर मुस्कुराये. शालिनी ने नजरें फेर दी. जगदीश देखने लगा की बात क्या है?

बाइक पर से एक जन ने शालिनी से पूछा ‘चलती है क्या?’

शालिनी दंग रह गई और जगदीश का माथा फिर गया. वो खड़ा हुआ. और उसने गुस्से में बाइक वाले से पूछा ‘क्या बोला ?’

दोनों बाइकवालो ने अब जगदीश को देखा. दूसरे ने जगदीश को पूछा ‘ये तेरे साथ है क्या?’

‘किस किस्म की भाषा है यह?’ जगदीश के सर पर खून सवार हो गया.

‘अबे तेरे को पूछा ये रांड तेरे साथ है क्या?’ बाइकवाले ने कहा.

फिर कब कैसे क्या हुआ यह किसी को समझ में नहीं आया. पर दो पल के बाद दोनों बाइकवाले जमीं पर गिर पड़े थे. बाइक भी जमीन पर गिर गई थी. और जगदीश गुस्से से काँप रहा था. शालिनी ने डरते हुए जगदीश को देखा. वो गुस्से से शालिनी से बोला. ‘बैठ जाओ कार में’

शालिनी तुरंत कार में बैठ गई.

दोनों बाइकवाले बाइक के साथ गिर पड़े थे. कराहते हुए खड़े हुए. जगदीश को घूरते हुए अपनी बाइक सम्हाली और चले गए.

जगदीश का सर भन्ना रहा था वो फिर टायर लगाने लगा और शालिनी सहम कर कार में बैठी रही. उसे यह समझ में नहीं आ रहा था की कोई उसे रांड कैसे समझ सकता है! और अपने जेठ के सामने उसे रांड कैसे बुला सकता है!

जगदीश को टायर बदलते हुए ख़याल आ रहा था की शालिनी ने कपडे मामूली पहने है और फिर उस की छाती…

उसने अपने आप को आगे सोचने से रोक दिया.

पंद्रह मिनिट के बाद टायर लग चूका. जगदीश कार में दाखिल हो उससे पहले चार बाइक पर गुंडे जैसे लोग कार को घेर खड़े हुए. उन में से दो जन अभी जगदीश के हाथो मार खा कार गए थे वो भी थे.

एक आदमी ने बड़ा छुरा दिखाते हुए कहा ‘ओ हीरो, चल.’

‘कहाँ ?’ जगदीश ने हैरान होकर पूछा.

‘तेरी माँ की शादी में. चल रे छमक छल्लो बाहर निकल.’ दूसरे ने कार का दरवाजा खोल कर शालिनी को बाहर खींचते हुए कहा.’

‘अरे अरे उसे कुछ मत…’ ऐसा जगदीश बोलने गया पर पहले आदमी ने जगदीश के पेट पर छुरा लगाते हुए कहा. ‘चल बोला ना?’

जगदीश और शालिनी को कार छोड़ कर उनके साथ जबरन जाना पड़ा.

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(३ - ये तो सोचा थासमाप्त, क्रमश:)

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