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Fantasy रहस्यमयी टापू MAZIC Adventure (Completed)

Hero tera

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भाग (८)

अब चलो सुनो आगे की कहानी, सुवर्ण ने मानिक चंद से कहा__
मैंने अपने जादू से चित्रलेखा को जलपरी और शंखनाद को पंक्षी का रूप तो दिया लेकिन चित्रलेखा जलपरी बनकर मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती थी क्योंकि वो ज्यादा देर तक पानी से बाहर नहीं रह सकती थी, लेकिन शंखनाद तो मेरी जान के पीछे ही पड़ गया।।
मैं हमेशा उससे बचा बचा फिरने लगा, नीलकमल से भी तो कहीं दिनों तक मिलने नहीं जा सका,उस दौरान मैं ऐसे घने जंगलों में रहने लगा जहां सूरज की रोशनी भी नहीं जा सकती थी क्योंकि शंखनाद तो पंक्षी था तो वो मुझे कहीं से भी आकर ढूंढ सकता था और मैं खुद को उससे बचाने का प्रयास कर रहा था।
मुझे इतना ज़्यादा जादू भी नहीं आता कि मैं उससे जीत पाता, लेकिन इतना छुपने के बावजूद भी उसने मुझे एक दिन ढूंढ ही लिया, जैसे ही उसने मुझे देखा उसने मेरा पीछा करना शुरू कर दिया और मैं घने जंगलों की ओर भागा चला जा रहा था...भागा चला जा रहा था लेकिन फिर भी वो मेरे सामने आ पहुंचा, मैं उसके वार से खुद को बचाता रहा,बस उसने तो उस दिन मुझे मारने की जैसे ठान ही ली थीं, उसने मुझे बहुत चोट पहुंचाई, मैं लड़ते लड़ते थक चुका था चूंकि वो पंक्षी था तो किसी भी दिशा की ओर से आकर वो मुझ पर हमला करता,बाद में मुझमें उस का वार सहने की क्षमता नहीं रह गई और मैं घायल हो चुका था।।
लेकिन जब मुझे होश आया तो मुझसे एक बुजुर्ग ने पूछा__
अब, कैसे हो तुम?
मैंने कहा, ठीक लग रहा है।।
उन्होंने कहा,तुम अब से मेरी निगरानी में रहोगे।।
मैंने पूछा__ लेकिन क्यो?
उन्होंने कहा__ मैं चाहता हूं,तुम सुरक्षित रहो।।
मैंने पूछा__लेकिन आप मेरा भला क्यो चाहने लगे,इसका कोई कारण।।
उन्होंने कहा __हां
मैंने पूछा__ क्यो?
उन्होंने कहा__ मैं अघोरनाथ, चित्रलेखा का पिता, मैं एक तांत्रिक हूं और तुम्हारी रक्षा के लिए नीलगिरी के महाराज यानि के तुम्हारे पिता ने मुझे नियुक्त किया है ताकि तुम्हारा हाल शुद्धोधन की तरह ना हो।।
मैंने पूछा_ लेकिन आप तो चित्रलेखा के पिता होकर,मेरी भलाई के बारे में क्यो सोचने लगे भला!!
वो बोले__ मेरी पुत्री बहुत बड़ी अपराधिनी है, उसने मेरी पत्नी की हत्या के साथ साथ और ना जाने कितने लोगों की हत्या की है,इसके लिए मैं उसे कभी क्षमा नहीं कर सकता और उसके किए की सजा उसे अवश्य मिलनी चाहिए।।
उसने अपनी विद्या का उपयोग गलत कामों के लिए किया है और ये मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता, मैं भी तो एक तांत्रिक हूं लेकिन मैंने अपनी विद्या का उपयोग कभी भी ग़लत कामों में नहीं किया, इसलिए महाराज ने मुझे नियुक्त किया है और अब से तुम्हारी सुरक्षा की जिम्मेदारी मेरी होगी।।
और उसके बाद मैं ने अघोरनाथ से कुछ तंत्र विद्या सीखी, फिर एक दिन वो बोले, मुझे किसी जरूरी काम से जाना होगा और तुम्हे वहां अपने साथ नहीं ले जा सकता इसलिए मैं तुम्हें दो दिनों के लिए गुफा में क़ैद कर के जाऊंगा और वो चले गए, सुवर्ण बोला।।
लेकिन अघोरनाथ गए कहां?,मानिक चंद ने पूछा।।
मुझे भी नहीं पता, सुवर्ण बोला।।
तुमने अघोरनाथ पर भरोसा कैसे कर लिया,हो सकता है वो भी कोई साजिश रचने वाला हो तो,मानिक चंद ने कहा।।
अच्छा!! अभी ये सब छोड़ो,आधी रात होने को आई,अब थोड़ा विश्राम कर लें, बहुत थक चुका हूं मैं, सुवर्ण बोला।।
अच्छा ठीक है मित्र, जैसी तुम्हारी मंशा, मैं भी थक चुका हूं,अब तुम्हारी बातें सुनकर मेरा मन हल्का हो गया,अब शायद मैं भी चैन से सो सकूं और इतना कहकर मानिक गहरी निंद्रा में लीन हो गया।। रात का गहरा अंधेरा,ऊपर से घना जंगल,तरह तरह के पंक्षियों का कर्कश शोर,आग भी बुझने को थीं क्योंकि लकड़ियां जल चुकी थीं केवल कोयलें ही सुलग रहे थे और उनसे ही हल्की रोशनी थी, तभी एकाएक मानिक चंद को ऐसा लगा कि कोई उसका गला घोंट रहा है, अचानक उसने अपनी आंखें खोली और गला घोंटने वाले को देखने का प्रयास करने लगा लेकिन इतना अंधेरा था वो कुछ देख नहीं पा रहा था, बड़ी मेहनत मसक्कत के बाद वो खुद को छुड़ाने में कामयाब रहा, छूटते ही जंगल में भागना शुरू कर दिया,वो बार बार पीछे मुड़कर देख रहा था लेकिन उसे कोई दिखाई नहीं दे रहा था,सूखे पत्तों में किसी के कदमों की आहट आ रही थी,बस ऐसा लग रहा था कि कोई उसका पीछा कर रहा है।।
वो भागते जा रहा था...भागते जा रहा था लेकिन वो शक्ति उसे दिख नहीं रही थीं,बस मानिक को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें,वो भाग भागकर थक चुका था लेकिन वो शक्ति उसका पीछा नहीं छोड़ रही थी।।
वो भागते भागते किसी पेड़ के टूटे हुए तने से टकराकर गिर पड़ा,अब तो उस शक्ति ने उसे हवा में उछाल दिया, वो मुंह के बल आकर जमीन पर फिर से गिर पड़ा, उसके माथे पर बहुत गहरी चोट लग चुकी थीं और बहुत खून बह रहा था, वो पूरी हिम्मत लगाकर खड़ा हुआ तो उस शक्ति ने चाकू से उसके सीने पर वार किया लेकिन उसी समय किसी ने धक्का देकर उसे धकेल दिया जिससे चाकू का वार खाली चला गया।।
उसे धक्का देने वाले व्यक्ति ने उसी समय कुछ मंत्र पढ़ें और वो शक्ति हवा में गायब हो गई।।
उस व्यक्ति ने मानिक चंद को सहारा देकर खड़ा किया और पूछा__
ठीक हो, ज्यादा चोट तो नहीं लगी।।मानिक चंद उन्हें हैरानी के साथ देखते हुए बोला__
मैं ठीक हूं, बहुत बहुत धन्यवाद आपका जो समय पर आकर आपने मेरी जान बचाई।।
मुझे मालूम था कि शंखनाद ऐसी कोई हरकत जरूर करेगा इसलिए मैं उसे गुफा में क़ैद करके गया था, पता नहीं गुफा से उसे किसने आज़ाद कर दिया,वो व्यक्ति बोला।।
जी, मैंने उसे आजाद किया लेकिन वो तो सुवर्ण था,मानिक चंद फिर हैरान होकर पूछा।।
तुम्हें किसने कहा कि वो शंखनाद नहीं सुवर्ण था,उस व्यक्ति ने मानिक चंद से पूछा।।
मुझे तो उसने खुद बताया कि वो सुवर्ण है और जो उस घर में रह रही हैं वो नीलकमल हैं,जो समुद्र तट पर जलपरी मिली थी वो चित्रलेखा थीं,जो समुद्र तट में पंक्षी था वो शंखनाद है,मानिक चंद एक सांस में सब कह गया।।अच्छा तो ये बात है, उसने तुम्हें गुमराह करने की कोशिश की,उस व्यक्ति ने कहा।।
लेकिन महाशय!! आखिर आप कौन हैं? मेरा तो सर चकरा रहा हैं,हर बार किसी ना किसी के मिलने पर नई कहानी,अब आप भी सच बोल रहे हैं या झूठ, मैं ये कैसे मानूं,मानिक चंद खींज कर बोला।।
मैं अघोरनाथ हूं,उस व्यक्ति ने कहा।।
अच्छा तो आप ही चित्रलेखा के पिता हैं,मानिक चंद बोला।।
हां, मैं ही उसका अभागा बाप हूं जिसकी इतनी क्रूर बेटी हैं, मैं जिंदगी भर लोगों की भलाई करता रहा और मेरी बेटी ने तो इन्सानियत की हद ही पार कर दी, अघोरनाथ बोला।।
अब, मैं कैसे मान लूं कि आप सच बोल रहे हैं,मानिक चंद ने कहा।।
हां,तुम बिल्कुल सही कह रहे हो,ये तिलिस्म से भरा टापू हैं यहां एक बार जो आ गया वो वापस नहीं जा सकता क्योंकि शंखनाद सबके हृदय निकाल कर अपना जीवन बढ़ाने वाला तरल बनाता है और इस काम में उसका पूरा पूरा सहयोग मेरी बेटी चित्रलेखा करती है, अघोरनाथ बोला।।इसलिए तो मुझे संदेह हो रहा कि आप सच में अघोरनाथ ही हैं,मानिक चंद बोला।।
अच्छा,ये लो परिमाण, नीलगिरी राज्य के राजा का पत्र, उन्होंने मुझे अपने छोटे बेटे सुवर्ण की रक्षा के लिए नियुक्त किया है, अघोरनाथ ने पत्र,मानिक चंद के हाथ में सौंपते हुए कहा।।
मानिक चंद ने वो पत्र पढ़ा और बोला___
मानिक चंद बोला, परंतु आप यहां से कहां गए थे,शंखनाद को उस गुफा में कैद़ करके।।
 

ashish_1982_in

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भाग (५)

नीलाम्बरा, शुद्धोधन से बिना बात किए आ तो गई लेकिन अब उसे अफ़सोस हो रहा था कि अगर थोड़ी देर ठहर कर शुद्धोधन से बात कर भी लेती तो क्या बिगड़ जाता,बेचारा कितनी आश लिए बैठा था।।
सारे काम धाम निपटा कर बिस्तर पर गई लेकिन आंखों में नींद कहां थी, आंखें तो बस शुद्धोधन को ही देखना चाहती थी फिर वो चाहे खुली हो या बंद,शायद शुद्धोधन के प्रेम जाल में क़ैद हो चुकी थी नीलाम्बरा।।
उधर शुद्धोधन का भी वही हाल था,हर घड़ी आंखें बस नीलाम्बरा को ही देखना चाहतीं थीं,दिल में बस एक ही नाम बस चुका था और वो था नीलाम्बरा।।
अब धीरे-धीरे नीलाम्बरा और शुद्धोधन के प्रेम ने गहराई का रूप ले लिया था, दोनों एक-दूसरे को देखें बिना,मिले बिना रह नहीं पाते,अब दोनों रोज ही जंगल में मिलने लगे, एक-दूसरे से अपनी भावनाएं व्यक्त करने लगे।।
इसी तरह एक दिन बातों बातों में नीलाम्बरा ने अपनी सौतेली मां का सच, शुद्धोधन से कह सुनाया, शुद्धोधन ने भी अपनी सच्चाई नीलाम्बरा को बता दी,सारी बातें सुनकर नीलाम्बरा बोली,
मां को तुम कहीं क़ैद कर देना लेकिन मारना मत।।
शुद्धोधन बोला,वो तो आगे देखा जाएगा लेकिन मुझे पहले सारा राज तो पता चलने दो,अगर तुम बता दोगी तो कुछ आसान हो जाएगा।।
लेकिन मुझे भी सारी बातें कहां मालूम है,नीलाम्बरा बोली।।
तो मालूम करके मुझे बताओं,मासूम लोगों की जान का सवाल है, मुझे बहुत से लोगों की जान बचानी है, शुद्धोधन बोला।।
ठीक है, मैं कोशिश करती हूं,नीलाम्बरा बोली।।
ऐसे ही नीलाम्बरा और शुद्धोधन रोज रात को मिलते, ढ़ेर सी बातें करते,नीलाम्बरा अपनी सौतेली मां के कुछ राज बताती और शुद्धोधन सुनकर उन पर अमल करता।।
लेकिन नीलाम्बरा को ऐसे खुश देखकर सौतेली मां को कुछ शक़ हुआ और वो इसका पता करने के लिए नीलाम्बरा की जासूसी करने लगी,उसका पीछा करने लगी कि आखिर ऐसी क्या बात है जो नीलाम्बरा इतना खुश रहने लगी है।।
और काफ़ी खोजबीन करने के बाद उसने पता लगा लिया कि नीलाम्बरा किसी से मिलने जाती है उसका नाम शुद्धोधन है,वो नीलगिरी का राजकुमार है और शायद दोनों एक-दूसरे से प्यार भी करते हैं।।
नीलाम्बरा की सौतेली मां को ये शक़ भी हो गया कि ऐसा ना हो नीलाम्बरा ने मेरी सारी सच्चाई उस राजकुमार को बता दी हो और वो मेरे बारे में पता लगाने आया हो।।
अब वो जादूगरनी इसी ताक में रहने लगी कि अच्छा हो अगर मैं उस राजकुमार को ही खत्म कर दूं तो सारी समस्याएं ही खत्म हो जाएगी और एक रोज नीलाम्बरा की सौतेली मां को शुद्धोधन के बारे में सब पता चल गया और उसने मन में ठान लिया कि अब वो शुद्धोधन को जीवित नहीं रहने देगी क्योंकि अब शुद्धोधन से उसकी जान को खतरा है।।
हर रात नीलाम्बरा और शुद्धोधन जंगल में उसी झरने के पास मिला करते थे,इस बात की भनक सौतेली मां को लग गई और उस रात बहुत बारिश हो रही थी,नीलाम्बरा हर रात की तरह उस रात भी शुद्धोधन का इंतज़ार कर रही थी और शुद्धोधन आया तो लेकिन मृत अवस्था में उसका घोड़ा उसका शव लेकर नीलाम्बरा के पास आया था।।
शुद्धोधन के मृत शरीर को देखकर नीलाम्बरा फूट फूट कर रो पड़ी, तभी उसकी सौतेली मां उसके पास आकर बोली__

इसे मैंने ही मारा है और अगर तुम अपनी भलाई चाहती हो तो अपना मुंह बंद रखना और इसके मृत शरीर को मैं अपने जादू के जोर पर राख में बदल देती हूं।।
और सौतेली मां ने ऐसा ही किया, देखते ही देखते शुद्धोधन का शरीर राख में परिवर्तित हो गया,ये सब देखकर नीलाम्बरा बहुत दुखी हुई,वो घर तो आ गई लेकिन बहुत ही हताश और निराश हालत में, उसने सबकुछ अपनी छोटी बहन से कह दिया,एक दो दिन तक वो रोती रही, फिर उससे दुःख ना सहा गया और एक रात उसने कुएं में कूदकर अपनी जान दे दी।।
फिर एक रोज शुद्धोधन का छोटा भाई सुवर्ण अपने बड़े भाई को खोजते हुए आया और उसने भी जादूगरनी के विषय में सारी जानकारी इकट्ठी कर ली, फिर से वही कहानी दोहराई गई,इस बार सुवर्ण को नीलाम्बरा की छोटी बहन से प्यार हो गया।।
लेकिन इस बार भी जादूगरनी को सबकुछ पता लग गया और एक रोज सुवर्ण और नीलाम्बरा की छोटी बहन इसी समुद्र के किनारे मिले तभी जादूगरनी आ पहुंची।।
तभी मानिक चंद ने नीलकमल से पूछा___
लेकिन तुम्हें ये सब कैसे पता है?
नीलकमल बोली__
अभी बताती हूं__
नीलकमल ने आगे की कहानी बताना शुरू की___
जादूगरनी यहां आ पहुंची और उसने मुझे जलपरी बना दिया और सुवर्ण को एक बड़ा सा पंक्षी।।
तभी मानिक चंद चौंकते हुए बोला__
तो तुम ही नीलाम्बरा की छोटी बहन नीलकमल हो और वो पंक्षी शुद्धोधन का भाई सुवर्ण है।।
हां, नीलकमल बोली।।
रूको..रूको.. पहले मुझे सारी बात समझने दो,मानिक चंद बोला।।
नीलकमल बोली__
इसमें ना समझने लायक तो कुछ भी नहीं!!
है, कैसे नहीं, क्योंकि मुझसे तो चित्रलेखा ने कहा था कि उस जादूगरनी को तो शुद्धोधन के छोटे भाई सुवर्ण ने मार दिया था,इसका मतलब या तो तुम झूठ बोल रही हो या तो चित्रलेखा, मानिक चंद बोला।।
तुम कैसे जानते हो? चित्रलेखा को, नीलकमल बोली।।
तुम्हारे कहने का क्या मतलब है?मानिक चंद ने पूछा।।
पहले तुम बताओ कि तुम चित्रलेखा को कैसे जानते हो, नीलकमल ने फिर से मानिक चंद से पूछा।।
अरे, मैं चित्रलेखा के घर में ही तो रह रहा हूं,मानिक चंद बोला।।
और अब तक जिंदा हो, नीलकमल आश्चर्य से बोली।।
क्यो क्या हुआ? मानिक चंद ने हैरान होकर पूछा।।
तो तुम्हें नहीं मालूम, नीलकमल बोली।।
अरे,क्या? सच सच बताओ, पहेलियां मत बुझाओ, मानिक चंद ने नीलकमल से कहा।।
अरे, चित्रलेखा ही वो जादूगरनी है, नीलकमल बोली।।
मानिक चंद बोला, लेकिन वो तो एकदम बूढ़ी और बदसूरत है।।
नीलकमल बोली, सालों से उसे किसी नवयुवक का हृदय नहीं मिला, जिससे वो जवान और खूबसूरत दिखने वाला अद्भुत तरल बनाती थी, इसलिए अब बूढ़ी और बदसूरत दिखने लगी है।।
अच्छा तो ये बात है,मानिक चंद बोला।।
लेकिन ताज्जुब वाली बात है कि उसने अभी तक तुम्हें मारा क्यो नही, नीलकमल बोली।।
very nice update bhai
 

ashish_1982_in

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(६)

मानिक चंद ने नीलकमल से पूछा __
तुम्हें और क्या क्या पता है चित्रलेखा के बारे में...
बस, जितना मुझे पता है,वो मैं सब बता चुकी हूं, हां एक बात मुझे भी अब पता चली हैं।।
वो क्या? मानिक चंद ने पूछा।।
चित्रलेखा ने किसी इंसान को वहां कैद कर रखा है, जिस गुफा पहले शुद्धोधन रहा करता था, नीलकमल बोली।।
अच्छा मुझे तुम उस जगह का पता बता सकती हो, आखिर वो जगह कहां है?मानिक चंद ने पूछा।।
हां.. हां..क्यो नही, तुम्हें वहां सुवर्ण लेकर जा सकता है,वो तो उड़कर जाएगा तो किसी को कुछ भी पता नहीं चलेगा, नीलकमल बोली।।
हां,ये अच्छा सुझाव है,मानिक चंद बोला।।
हां,तो कल तैयार रहना और यहां जल्दी आना लेकिन चित्रलेखा को ये भनक ना लगने पाएं कि तुम मुझसे मिल चुके हो, नहीं तो तुम्हारी खैर नहीं, नीलकमल बोली।।
अच्छा ठीक है!! और इतना कहकर मानिक चंद चित्रलेखा के ठिकाने की ओर बढ़ चला।।
मानिक चंद जब चित्रलेखा के घर पहुंचा तब तक अंधेरा गहराने लगा था।
चित्रलेखा ने दरवाज़ा खोला और बोली___
आज बहुत देर कर दी!!
हां,आज नाव की मरम्मत करने बैठ गया, सोचा यहां से जाने का कुछ तो जुगाड़ हो,मानिक चंद बोला।।
अच्छा,ये बताओ कुछ खाओगे या आज फिर से भुनी हुई मछलियां लाए हो, चित्रलेखा ने पूछा।।
नहीं,आज तो समय ही नहीं मिला,नाव की मरम्मत करने में ब्यस्त था,मानिक चंद बोला।।
अच्छा,तो मैं कुछ खाने पीने का प्रबन्ध करती हूं, चित्रलेखा बोली।।
इसी बीच मानिक चंद को मौका मिल गया, उसने पूरे घर की तो नहीं लेकिन इतने कम समय में जितनी भी जगह वो खंगाल सकता था,खंगाल ली और जैसे ही चित्रलेखा की आहट सुनाई दी,वो चुपचाप आकर अपनी जगह बैठ गया।।
चित्रलेखा ने फिर से कुछ भुना मांस और कुछ पत्तेदार चीज़ों के ब्यंजन परोस कर मानिक चंद से बोली__
लो खाओ।।
और मानिक चंद खाने लगा, उसने खाते खाते बातों ही बातों में पूछा__
आप यहां ऐसी जगह कैसे रह लेती है? आपको परेशानी नहीं होती, यहां अकेले रहने में कैसे अच्छा लग सकता है किसी इंसान को ,इस वीरान से सुनसान टापू पर,मेरा तो दम घुटता है लगता है कि कितनी जल्दी यहां से वापस जाऊं।‌‌।
बस, सालों हो गए यहां रहते हुए, मैंने खुद को इस वातावरण में ढा़ल लिया है, मैं यहां से जाने का अब सोच भी नहीं सकतीं, बहुत कुछ जुड़ा है मेरे जीवन का इस जगह से,यह जगह मेरे जीवन का अभिन्न अंग बन चुकी है, मरते दम तक मैं यहीं रहना चाहूंगी, चित्रलेखा बोली।।
मानिक चंद बोला, ऐसा भी क्या लगाव है आपको इस जगह से,ना खाने को ना पीने को और ना ही लोग देखने को मिलते हैं,मेरी नाव बन जाए, यहां से जाने का जैसे ही कुछ जुगाड़ होता है तो आप भी मेरे साथ चल चलिएगा, यहां क्या करेंगी अकेले रहकर।।
नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकतीं,अभी बहुत से काम करने हैं, मुझे यहां रहकर, बहुत सी चीजें ठीक करनी हैं, पता नहीं कब कैसे ठीक होगा, चित्रलेखा बोली।।
ऐसा क्या सही करना है आपको इस जगह का,मानिक चंद ने चित्रलेखा से पूछा।।
हैं किसी की जिंदगी और मौत का सवाल,जो मुझे ही ठीक करना होगा, चित्रलेखा बोली।।
ऐसा भी क्या है,मानिक ने पूछा।।
फिर कभी बताऊंगी,अब रात काफ़ी हो चली है,नींद आ रही है और इतना कहकर चित्रलेखा सोने चली गई।।
मानिक चंद को चित्रलेखा की बात सुनकर ऐसा लगा,हो ना हो कोई बात जरूर है, मुझे इन सब बातों का पता लगाना होगा कि आखिर उस गुफा में कौन क़ैद है और किसने उसे क़ैद कर रखा है,क्या चित्रलेखा सच में वही जादूगरनी हैं या वो जलपरी नीलकमल ना होकर कोई और है,इन सब बातों को सोचते हुए मानिक को कब नींद आ गई उसे पता ही नहीं चला।।
दूसरे दिन सुबह हुई,मानिक चंद यह सोचकर जागा कि आज पक्का उस गुफा की ओर जाएगा, जहां चित्रलेखा ने किसी को क़ैद कर रखा है, उससे मिलकर ही पता चलेगा कि आखिर क्या माजरा है ?और वो उस दिशा में चल पड़ा।।
नीलकमल ने तो कहा कि पंक्षी बने सुवर्ण को भी साथ ले ले क्योंकि रास्ता बताने में ही वो उसकी मदद कर सकता था लेकिन मानिक चंद ने ऐसा नहीं किया, उससे खुद से ज़्यादा किसी पर भी भरोसा नहीं रह गया था।।
मानिक चंद जिस दिशा में बढ़ा जा रहा था,वो बहुत ही घना जंगल था, इतना घना कि सूरज की रोशनी भी उधर नहीं पड़ती थी,इतने बड़े बड़े मच्छर जैसे कि कोई मधुमक्खी हो,इतने मोटे मोटे तनों वाली लाताएं,ना जाने कौन-कौन से किस्म के पेड़ वहां दिख रहे थे, उसने अपना चाकू भी साथ में ले रखा था, जहां कहीं कोई अड़चन आती तो वो उन्हें काटकर आगे बढ़ जाता।।
इसी तरह वो शाम तक जंगल पार करके गुफा तक पहुंच ही गया, उसने गुफा के पास जाकर देखा तो गुफा का दरवाज़ा दो तीन बड़े बड़े पत्थरों से बंद था,उसको पत्थर सरकाने में बहुत मेहनत लगी,आखिर काफ़ी मेहनत मसक्कत के बाद वो अपने कार्य में सफल हो गया।।
वो धीरे धीरे गुफा के अंदर बढ़ने लगा,अंदर कुछ अंधेरा भी था लेकिन उतना भी नहीं, वो सब साफ़ साफ़ देख पा रहा था, गुफा काफ़ी लम्बी दिख रही थी,वो चलते चला जा रहा था.....वो चलते चला जा रहा था।।
तभी अचानक सामने से उसे एक मर्दाना आवाज सुनाई दी___
कौन है?
कौन हो तुम?
मानिक चंद डर कर बोला__
मैं!!
मैं कौन? उस आवाज़ वाले व्यक्ति ने पूछा।।
मैं!! मानिक चंद,मानिक ने कहा।।
कौन ?मानिक चंद।।,उस व्यक्ति ने पूछा।।
मैं एक व्यापारी हूं,मानिक चंद बोला।।
ठीक है, पहले तुम मेरे नज़दीक आकर मेरी बेड़ियां खोल दो,उस व्यक्ति ने कहा।।
इतना सुनकर मानिक चंद ने अपना चाकू हाथ में लिया और डर डर कर उस आवाज़ वाली दिशा में बढ़ने लगा।।
नज़दीक जाकर देखा कि सच में कोई बेचारा बेड़ियों में जकड़ा हुआ है।।
मानिक चंद उसके नज़दीक गया , वहीं पड़ा एक बड़ा सा पत्थर उठाकर बेड़ियों में लगा ताला तोड़ा और उसकी बेड़ियां खोलकर पूछा।।
कौन हो भाई?तुम!!
उस व्यक्ति ने अपनी बेड़ियां दूर फेंकते हुए कहा___
मैं नीलगिरी राज्य का छोटा राजकुमार सुवर्ण हूं।।
इतना सुनकर मानिक चंद अचंभित होकर बोला__
तुम सुवर्ण हो तो,वो कौन था?
सुवर्ण बोला__
जरा विस्तार से बताओ,तुम किसकी बात कर रहे हो।।
nice update bhai
 

ashish_1982_in

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भाग (७)

मानिक चंद बोला__
वहीं पंक्षी जिसे वो जलपरी कह रहीं थीं कि वो ही सुवर्ण है।।
अच्छा तो ये बात है, उसने इतना झूठ कहा तुमसे, सुवर्ण बोला।।
हां, लेकिन असल बात क्या है? क्या तुम मुझे विस्तार से बता सकते हो,मानिक चंद ने सुवर्ण से कहा।।
सुवर्ण बोला,सब बताता हूं...सब बताता हूं, पहले इस गुफा से बाहर तो निकलें, फिर सारी बातें इत्मीनान से बताता हूं।।
दोनों निकल कर गुफा से बाहर आएं और एक सुरक्षित जगह खोजकर एक पेड़ के नीचे बैठ गये, वहीं पास में एक झरना भी बह रहा था,तब तक शाम और भी गहरा आई थी, मानिक चंद ने पत्थरों से रगड़ कर आग जलाई और कुछ पौधे की जड़ें उसी आग में भूनी और मिलकर खाई फिर झरने से पानी पीकर दोनों उसी आग के इर्द गिर्द बैठ गए।।
अब, सुवर्ण ने कहानी कहना शुरू किया।।
ये तो तुम्हें पता होगा कि जादूगरनी की दो बेटियां थीं जो कि उसकी नहीं थीं उसके पति के पहली पत्नी से थीं,नीलाम्बरा और नीलकमल,फिर नीलगिरी राज्य का राजकुमार शुद्धोधन यानि के मेरे बड़े भाई आए उस जादूगरनी के बारे में पता लगाने, शुद्धोधन को जादूगरनी की बड़ी बेटी नीलाम्बरा से प्यार हो गया,नीलाम्बरा ने जादूगरनी के सब राज शुद्धोधन को बता दिए,इस बात का जादूगरनी को पता चल गया और उसने एक रात शुद्धोधन की हत्या कर दी,नीलाम्बरा ने ये सब बातें अपनी छोटी बहन नीलकमल को बता दी,नीलाम्बरा, शुद्धोधन की मौत को बर्दाश्त ना कर सकी और एक रात कुएं में कूदकर उसने आत्महत्या कर ली।।
अपने बड़े की मौत की खबर सुनकर शुद्धोधन का छोटा भाई सुवर्ण (यानि की मैं)वहां जा पहुंचा और फिर से वही प्रेम-कहानी दोहराई गई,नीलम्बरा की छोटी बहन नीलकमल से सुवर्ण को प्रेम हो गया,उस दौरान मैंने भी किसी जादूगर से कुछ जादू सीख डाले लेकिन मुझे पता नहीं था कि वो जादूगर उस जादूगरनी को अच्छी तरह जानता है,वो जादूगरनी और जादूगर आपस में बहुत समय पहले से ही एक-दूसरे से प्रेम करते थे।
और दोनों ने मिलकर ही नीलाम्बरा और नीलकमल के पिता को मारने की साज़िश रची थी।।
एक रोज उस जादूगरनी ने मुझे (यानि सुवर्ण को) और नीलकमल को साथ साथ झरने के पास बैठा देख लिया और नीलकमल को उसने अपने जादू के जोर पर बदसूरत और बूढ़ा बना दिया तब मैंने भी अपना जादू का जोर आजमाया ये देखकर वो डर गई ,पता नहीं हवा में कहां गायब हो गई, मैंने नीलकमल से कहा कि तुम घबराओ मत मैं तुम्हें ठीक कर लूंगा,अभी तुम उसी घर में जाकर रहो और कोई भी पूछे तो तुम कहना कि तुम ही चित्रलेखा हो और तब से नीलकमल उसी घर में रह रही हैं चित्रलेखा बनकर।।
तभी मानिक चंद बोला, मैं ये कैसे मान लूं कि तुम सच बोल रहे हो।।
सुवर्ण बोला,मैं अभी तुम्हारे सारे संदेह दूर करें देता हूं।।
मैं यूं ही उस जादूगरनी चित्रलेखा को कई दिनों तक ढूंढता रहा,एक दिन वो और उसका प्रेमी शंखनाद समुद्र तट पर बैठे थे, मैंने उन्हें पीछे देखा और जादू के जोर पर चित्रलेखा को जलपरी बना दिया और शंखनाद को पंक्षी, दोनों तब से उसी अवस्था में हैं।।
लेकिन ये बताओ जब तुमने चित्रलेखा को जलपरी और शंखनाद को पंक्षी बना दिया तो तुम्हें गुफा ने किसने कैद किया और तुम्हारे कैद होने के विषय में चित्रलेखा मुझे क्यो बताने लगी भला!! वो तो तुम्हारी दुश्मन हैं आखिर वो क्यो चाहेंगी कि तुम गुफा से रिहा हो,मानिक चंद ने सुवर्ण से पूछा।।
इसके पीछे भी एक कहानी है,अभी बहुत रात हो गई है, थोड़ा आराम कर लेते हैं फिर सुबह मैं सारी कहानी तुमसे कहूंगा, सुवर्ण बोला।।
लेकिन रात भर मुझे नींद नहीं आएगी,डर लगा रहेगा कि तुम सुवर्ण ही हो क्योंकि यहां आकर जिससे भी मिला उसने एक अलग ही कहानी सुनाई,अब डर लग रहा कि कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ,मानिक चंद बोला।।
अच्छा तो तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है, सुवर्ण बोला।।
हां, नहीं है,अपनी जान को लेकर कौन सजग नहीं रहता,क्या भरोसा तुम्हारा,आधी रात गए तुम मुझे सांप-बिच्छू बना दो तो मैं क्या बिगाड़ लूंगा तुम्हारा,तुम ठहरे जादूगर और ये भी तो पक्का पता नहीं है कि तुम ही सुवर्ण हो,मानिक चंद बोला।।
इसका मतलब तुम्हारा सोने का कोई इरादा नहीं है, सुवर्ण बोला।।
ऐसा ही कुछ समझो,मानिक चंद बोला।।
तो सुनो,अब पूरी कहानी ही सुन लो,शायद तुम्हें मुझ पर भरोसा हो जाए।।
जिसने मुझे कैंद़ किया,वो एक तांत्रिक था जिसका नाम अघोरनाथ था,वो बहुत बड़ा अघोरी था, उसने मेरी सुरक्षा के लिए मुझे उस गुफा में क़ैद किया था ताकि मैं सुरक्षित रहूं, सुवर्ण बोला।।
अब ये क्या फिर से एक नई कहानी,आखिर सच क्या है? पूरी बात ठीक से बताओ,मानिक चंद खींजकर बोला।।
सुवर्ण हंसकर बोला___
अच्छा ठीक है तो सुनो पूरी कहानी।।
जितनी पहले सुनाई वो सारी कहानी सच हैऔर जो अब सुनाने जा रहा हूं,वो भी पूरी तरह सच है।।
अच्छा.. अच्छा... ठीक है,अब सुनाओ भी,मानिक चंद बोला।।
हुआ यूं कि ___
बहुत साल पहले की बात है,एक आदमी था जिसका नाम अघोरनाथ था,उसे तांत्रिक बनने की बहुत इच्छा थी, उसके परिवार में उसकी पत्नी और बेटी ही थे,उसकी भीतर तांत्रिक बनने की इतनी तीव्र इच्छा हुई कि उसने अपना घर छोड़कर शवदाहगृह में अपना बसेरा कर लिया।।
वहां उसे और भी कई अघोरियों का साथ मिल गया,वो घंटों जलते हुए शव पर अपनी तंत्र विद्या आजमाता, उसने इस तपस्या में अपने जीवन के ना जाने कितने साल गंवा दिए,इस दौरान वो अपने घर भी नहीं लौटा वहां उसकी पत्नी और बेटी उसकी राह देखते रहे।।
अब बेटी जवान और सयानी हो चुकी थी,इसी दौरान उसे किसी जादूगर ने अपने प्रेम जाल में फंसा लिया,वो लड़की कोई और नहीं चित्रलेखा थीं और वो जादूगर शंखनाद था।।
चित्रलेखा, शंखनाद के प्रेम में वशीभूत होकर,उसकी सारी बातें मानने लगी, धीरे धीरे शंखनाद ने उसे अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया,उसे जादूगरी में परांगत कर दिया लेकिन ये सब चित्रलेखा की मां को बिल्कुल भी पसंद नहीं था,वो नहीं चाहती थीं कि उसकी बेटी जादूगरनी बनकर, लोगों को नुकसान पहुंचाए।।
एक रोज मां बेटी में बहुत बहस हुई और गुस्से में आकर चित्रलेखा ने अपनी मां की हत्या कर दी,ये बात उसने शंखनाद को बताई और इस बात का पूरा पूरा फायदा शंखनाद ने उठाया, उसने चित्रलेखा को जरिया बनाया अपना मक़सद पूरा करने में, क्योंकि चित्रलेखा को नहीं शंखनाद को नवयुवकों के हृदय से बने तरल पदार्थ पीने की आवश्यकता थी क्योंकि उसे लम्बी उम्र चाहिए थी।।
और इस साज़िश का शिकार पहले नीलाम्बरा और नीलकमल के पिता हुए और बाद में मेरा बड़ा भाई शुद्धोधन,उसका हृदय निकालकर उसके मृत शरीर को घोड़े पर भेज दिया गया था।।
जब मुझे ये पता चला कि मेरा बड़ा भाई शुद्धोधन नहीं रहा तो मुझे यहां आना पड़ा और इसके बाद की कहानी तो मैं तुम्हें बता ही चुका हूं, सुवर्ण ने कहा।।
ये सब तो मैं समझ गया लेकिन तुमने ये नहीं बताया कि तुम उस गुफा में क़ैद कैसे हुए,मानिक चंद ने पूछा।।
हां.. हां..भाई सब बताता हूं थोड़ा सब्र रखो, सुवर्ण हंसते हुए बोला।।
very nice update bhai
 

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भाग (८)

अब चलो सुनो आगे की कहानी, सुवर्ण ने मानिक चंद से कहा__
मैंने अपने जादू से चित्रलेखा को जलपरी और शंखनाद को पंक्षी का रूप तो दिया लेकिन चित्रलेखा जलपरी बनकर मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती थी क्योंकि वो ज्यादा देर तक पानी से बाहर नहीं रह सकती थी, लेकिन शंखनाद तो मेरी जान के पीछे ही पड़ गया।।
मैं हमेशा उससे बचा बचा फिरने लगा, नीलकमल से भी तो कहीं दिनों तक मिलने नहीं जा सका,उस दौरान मैं ऐसे घने जंगलों में रहने लगा जहां सूरज की रोशनी भी नहीं जा सकती थी क्योंकि शंखनाद तो पंक्षी था तो वो मुझे कहीं से भी आकर ढूंढ सकता था और मैं खुद को उससे बचाने का प्रयास कर रहा था।
मुझे इतना ज़्यादा जादू भी नहीं आता कि मैं उससे जीत पाता, लेकिन इतना छुपने के बावजूद भी उसने मुझे एक दिन ढूंढ ही लिया, जैसे ही उसने मुझे देखा उसने मेरा पीछा करना शुरू कर दिया और मैं घने जंगलों की ओर भागा चला जा रहा था...भागा चला जा रहा था लेकिन फिर भी वो मेरे सामने आ पहुंचा, मैं उसके वार से खुद को बचाता रहा,बस उसने तो उस दिन मुझे मारने की जैसे ठान ही ली थीं, उसने मुझे बहुत चोट पहुंचाई, मैं लड़ते लड़ते थक चुका था चूंकि वो पंक्षी था तो किसी भी दिशा की ओर से आकर वो मुझ पर हमला करता,बाद में मुझमें उस का वार सहने की क्षमता नहीं रह गई और मैं घायल हो चुका था।।
लेकिन जब मुझे होश आया तो मुझसे एक बुजुर्ग ने पूछा__
अब, कैसे हो तुम?
मैंने कहा, ठीक लग रहा है।।
उन्होंने कहा,तुम अब से मेरी निगरानी में रहोगे।।
मैंने पूछा__ लेकिन क्यो?
उन्होंने कहा__ मैं चाहता हूं,तुम सुरक्षित रहो।।
मैंने पूछा__लेकिन आप मेरा भला क्यो चाहने लगे,इसका कोई कारण।।
उन्होंने कहा __हां
मैंने पूछा__ क्यो?
उन्होंने कहा__ मैं अघोरनाथ, चित्रलेखा का पिता, मैं एक तांत्रिक हूं और तुम्हारी रक्षा के लिए नीलगिरी के महाराज यानि के तुम्हारे पिता ने मुझे नियुक्त किया है ताकि तुम्हारा हाल शुद्धोधन की तरह ना हो।।
मैंने पूछा_ लेकिन आप तो चित्रलेखा के पिता होकर,मेरी भलाई के बारे में क्यो सोचने लगे भला!!
वो बोले__ मेरी पुत्री बहुत बड़ी अपराधिनी है, उसने मेरी पत्नी की हत्या के साथ साथ और ना जाने कितने लोगों की हत्या की है,इसके लिए मैं उसे कभी क्षमा नहीं कर सकता और उसके किए की सजा उसे अवश्य मिलनी चाहिए।।
उसने अपनी विद्या का उपयोग गलत कामों के लिए किया है और ये मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता, मैं भी तो एक तांत्रिक हूं लेकिन मैंने अपनी विद्या का उपयोग कभी भी ग़लत कामों में नहीं किया, इसलिए महाराज ने मुझे नियुक्त किया है और अब से तुम्हारी सुरक्षा की जिम्मेदारी मेरी होगी।।
और उसके बाद मैं ने अघोरनाथ से कुछ तंत्र विद्या सीखी, फिर एक दिन वो बोले, मुझे किसी जरूरी काम से जाना होगा और तुम्हे वहां अपने साथ नहीं ले जा सकता इसलिए मैं तुम्हें दो दिनों के लिए गुफा में क़ैद कर के जाऊंगा और वो चले गए, सुवर्ण बोला।।
लेकिन अघोरनाथ गए कहां?,मानिक चंद ने पूछा।।
मुझे भी नहीं पता, सुवर्ण बोला।।
तुमने अघोरनाथ पर भरोसा कैसे कर लिया,हो सकता है वो भी कोई साजिश रचने वाला हो तो,मानिक चंद ने कहा।।
अच्छा!! अभी ये सब छोड़ो,आधी रात होने को आई,अब थोड़ा विश्राम कर लें, बहुत थक चुका हूं मैं, सुवर्ण बोला।।
अच्छा ठीक है मित्र, जैसी तुम्हारी मंशा, मैं भी थक चुका हूं,अब तुम्हारी बातें सुनकर मेरा मन हल्का हो गया,अब शायद मैं भी चैन से सो सकूं और इतना कहकर मानिक गहरी निंद्रा में लीन हो गया।। रात का गहरा अंधेरा,ऊपर से घना जंगल,तरह तरह के पंक्षियों का कर्कश शोर,आग भी बुझने को थीं क्योंकि लकड़ियां जल चुकी थीं केवल कोयलें ही सुलग रहे थे और उनसे ही हल्की रोशनी थी, तभी एकाएक मानिक चंद को ऐसा लगा कि कोई उसका गला घोंट रहा है, अचानक उसने अपनी आंखें खोली और गला घोंटने वाले को देखने का प्रयास करने लगा लेकिन इतना अंधेरा था वो कुछ देख नहीं पा रहा था, बड़ी मेहनत मसक्कत के बाद वो खुद को छुड़ाने में कामयाब रहा, छूटते ही जंगल में भागना शुरू कर दिया,वो बार बार पीछे मुड़कर देख रहा था लेकिन उसे कोई दिखाई नहीं दे रहा था,सूखे पत्तों में किसी के कदमों की आहट आ रही थी,बस ऐसा लग रहा था कि कोई उसका पीछा कर रहा है।।
वो भागते जा रहा था...भागते जा रहा था लेकिन वो शक्ति उसे दिख नहीं रही थीं,बस मानिक को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें,वो भाग भागकर थक चुका था लेकिन वो शक्ति उसका पीछा नहीं छोड़ रही थी।।
वो भागते भागते किसी पेड़ के टूटे हुए तने से टकराकर गिर पड़ा,अब तो उस शक्ति ने उसे हवा में उछाल दिया, वो मुंह के बल आकर जमीन पर फिर से गिर पड़ा, उसके माथे पर बहुत गहरी चोट लग चुकी थीं और बहुत खून बह रहा था, वो पूरी हिम्मत लगाकर खड़ा हुआ तो उस शक्ति ने चाकू से उसके सीने पर वार किया लेकिन उसी समय किसी ने धक्का देकर उसे धकेल दिया जिससे चाकू का वार खाली चला गया।।
उसे धक्का देने वाले व्यक्ति ने उसी समय कुछ मंत्र पढ़ें और वो शक्ति हवा में गायब हो गई।।
उस व्यक्ति ने मानिक चंद को सहारा देकर खड़ा किया और पूछा__
ठीक हो, ज्यादा चोट तो नहीं लगी।।मानिक चंद उन्हें हैरानी के साथ देखते हुए बोला__
मैं ठीक हूं, बहुत बहुत धन्यवाद आपका जो समय पर आकर आपने मेरी जान बचाई।।
मुझे मालूम था कि शंखनाद ऐसी कोई हरकत जरूर करेगा इसलिए मैं उसे गुफा में क़ैद करके गया था, पता नहीं गुफा से उसे किसने आज़ाद कर दिया,वो व्यक्ति बोला।।
जी, मैंने उसे आजाद किया लेकिन वो तो सुवर्ण था,मानिक चंद फिर हैरान होकर पूछा।।
तुम्हें किसने कहा कि वो शंखनाद नहीं सुवर्ण था,उस व्यक्ति ने मानिक चंद से पूछा।।
मुझे तो उसने खुद बताया कि वो सुवर्ण है और जो उस घर में रह रही हैं वो नीलकमल हैं,जो समुद्र तट पर जलपरी मिली थी वो चित्रलेखा थीं,जो समुद्र तट में पंक्षी था वो शंखनाद है,मानिक चंद एक सांस में सब कह गया।।अच्छा तो ये बात है, उसने तुम्हें गुमराह करने की कोशिश की,उस व्यक्ति ने कहा।।
लेकिन महाशय!! आखिर आप कौन हैं? मेरा तो सर चकरा रहा हैं,हर बार किसी ना किसी के मिलने पर नई कहानी,अब आप भी सच बोल रहे हैं या झूठ, मैं ये कैसे मानूं,मानिक चंद खींज कर बोला।।
मैं अघोरनाथ हूं,उस व्यक्ति ने कहा।।
अच्छा तो आप ही चित्रलेखा के पिता हैं,मानिक चंद बोला।।
हां, मैं ही उसका अभागा बाप हूं जिसकी इतनी क्रूर बेटी हैं, मैं जिंदगी भर लोगों की भलाई करता रहा और मेरी बेटी ने तो इन्सानियत की हद ही पार कर दी, अघोरनाथ बोला।।
अब, मैं कैसे मान लूं कि आप सच बोल रहे हैं,मानिक चंद ने कहा।।
हां,तुम बिल्कुल सही कह रहे हो,ये तिलिस्म से भरा टापू हैं यहां एक बार जो आ गया वो वापस नहीं जा सकता क्योंकि शंखनाद सबके हृदय निकाल कर अपना जीवन बढ़ाने वाला तरल बनाता है और इस काम में उसका पूरा पूरा सहयोग मेरी बेटी चित्रलेखा करती है, अघोरनाथ बोला।।इसलिए तो मुझे संदेह हो रहा कि आप सच में अघोरनाथ ही हैं,मानिक चंद बोला।।
अच्छा,ये लो परिमाण, नीलगिरी राज्य के राजा का पत्र, उन्होंने मुझे अपने छोटे बेटे सुवर्ण की रक्षा के लिए नियुक्त किया है, अघोरनाथ ने पत्र,मानिक चंद के हाथ में सौंपते हुए कहा।।
मानिक चंद ने वो पत्र पढ़ा और बोला___
मानिक चंद बोला, परंतु आप यहां से कहां गए थे,शंखनाद को उस गुफा में कैद़ करके।।
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भाग (७)

मानिक चंद बोला__
वहीं पंक्षी जिसे वो जलपरी कह रहीं थीं कि वो ही सुवर्ण है।।
अच्छा तो ये बात है, उसने इतना झूठ कहा तुमसे, सुवर्ण बोला।।
हां, लेकिन असल बात क्या है? क्या तुम मुझे विस्तार से बता सकते हो,मानिक चंद ने सुवर्ण से कहा।।
सुवर्ण बोला,सब बताता हूं...सब बताता हूं, पहले इस गुफा से बाहर तो निकलें, फिर सारी बातें इत्मीनान से बताता हूं।।
दोनों निकल कर गुफा से बाहर आएं और एक सुरक्षित जगह खोजकर एक पेड़ के नीचे बैठ गये, वहीं पास में एक झरना भी बह रहा था,तब तक शाम और भी गहरा आई थी, मानिक चंद ने पत्थरों से रगड़ कर आग जलाई और कुछ पौधे की जड़ें उसी आग में भूनी और मिलकर खाई फिर झरने से पानी पीकर दोनों उसी आग के इर्द गिर्द बैठ गए।।
अब, सुवर्ण ने कहानी कहना शुरू किया।।
ये तो तुम्हें पता होगा कि जादूगरनी की दो बेटियां थीं जो कि उसकी नहीं थीं उसके पति के पहली पत्नी से थीं,नीलाम्बरा और नीलकमल,फिर नीलगिरी राज्य का राजकुमार शुद्धोधन यानि के मेरे बड़े भाई आए उस जादूगरनी के बारे में पता लगाने, शुद्धोधन को जादूगरनी की बड़ी बेटी नीलाम्बरा से प्यार हो गया,नीलाम्बरा ने जादूगरनी के सब राज शुद्धोधन को बता दिए,इस बात का जादूगरनी को पता चल गया और उसने एक रात शुद्धोधन की हत्या कर दी,नीलाम्बरा ने ये सब बातें अपनी छोटी बहन नीलकमल को बता दी,नीलाम्बरा, शुद्धोधन की मौत को बर्दाश्त ना कर सकी और एक रात कुएं में कूदकर उसने आत्महत्या कर ली।।
अपने बड़े की मौत की खबर सुनकर शुद्धोधन का छोटा भाई सुवर्ण (यानि की मैं)वहां जा पहुंचा और फिर से वही प्रेम-कहानी दोहराई गई,नीलम्बरा की छोटी बहन नीलकमल से सुवर्ण को प्रेम हो गया,उस दौरान मैंने भी किसी जादूगर से कुछ जादू सीख डाले लेकिन मुझे पता नहीं था कि वो जादूगर उस जादूगरनी को अच्छी तरह जानता है,वो जादूगरनी और जादूगर आपस में बहुत समय पहले से ही एक-दूसरे से प्रेम करते थे।
और दोनों ने मिलकर ही नीलाम्बरा और नीलकमल के पिता को मारने की साज़िश रची थी।।
एक रोज उस जादूगरनी ने मुझे (यानि सुवर्ण को) और नीलकमल को साथ साथ झरने के पास बैठा देख लिया और नीलकमल को उसने अपने जादू के जोर पर बदसूरत और बूढ़ा बना दिया तब मैंने भी अपना जादू का जोर आजमाया ये देखकर वो डर गई ,पता नहीं हवा में कहां गायब हो गई, मैंने नीलकमल से कहा कि तुम घबराओ मत मैं तुम्हें ठीक कर लूंगा,अभी तुम उसी घर में जाकर रहो और कोई भी पूछे तो तुम कहना कि तुम ही चित्रलेखा हो और तब से नीलकमल उसी घर में रह रही हैं चित्रलेखा बनकर।।
तभी मानिक चंद बोला, मैं ये कैसे मान लूं कि तुम सच बोल रहे हो।।
सुवर्ण बोला,मैं अभी तुम्हारे सारे संदेह दूर करें देता हूं।।
मैं यूं ही उस जादूगरनी चित्रलेखा को कई दिनों तक ढूंढता रहा,एक दिन वो और उसका प्रेमी शंखनाद समुद्र तट पर बैठे थे, मैंने उन्हें पीछे देखा और जादू के जोर पर चित्रलेखा को जलपरी बना दिया और शंखनाद को पंक्षी, दोनों तब से उसी अवस्था में हैं।।
लेकिन ये बताओ जब तुमने चित्रलेखा को जलपरी और शंखनाद को पंक्षी बना दिया तो तुम्हें गुफा ने किसने कैद किया और तुम्हारे कैद होने के विषय में चित्रलेखा मुझे क्यो बताने लगी भला!! वो तो तुम्हारी दुश्मन हैं आखिर वो क्यो चाहेंगी कि तुम गुफा से रिहा हो,मानिक चंद ने सुवर्ण से पूछा।।
इसके पीछे भी एक कहानी है,अभी बहुत रात हो गई है, थोड़ा आराम कर लेते हैं फिर सुबह मैं सारी कहानी तुमसे कहूंगा, सुवर्ण बोला।।
लेकिन रात भर मुझे नींद नहीं आएगी,डर लगा रहेगा कि तुम सुवर्ण ही हो क्योंकि यहां आकर जिससे भी मिला उसने एक अलग ही कहानी सुनाई,अब डर लग रहा कि कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ,मानिक चंद बोला।।
अच्छा तो तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है, सुवर्ण बोला।।
हां, नहीं है,अपनी जान को लेकर कौन सजग नहीं रहता,क्या भरोसा तुम्हारा,आधी रात गए तुम मुझे सांप-बिच्छू बना दो तो मैं क्या बिगाड़ लूंगा तुम्हारा,तुम ठहरे जादूगर और ये भी तो पक्का पता नहीं है कि तुम ही सुवर्ण हो,मानिक चंद बोला।।
इसका मतलब तुम्हारा सोने का कोई इरादा नहीं है, सुवर्ण बोला।।
ऐसा ही कुछ समझो,मानिक चंद बोला।।
तो सुनो,अब पूरी कहानी ही सुन लो,शायद तुम्हें मुझ पर भरोसा हो जाए।।
जिसने मुझे कैंद़ किया,वो एक तांत्रिक था जिसका नाम अघोरनाथ था,वो बहुत बड़ा अघोरी था, उसने मेरी सुरक्षा के लिए मुझे उस गुफा में क़ैद किया था ताकि मैं सुरक्षित रहूं, सुवर्ण बोला।।
अब ये क्या फिर से एक नई कहानी,आखिर सच क्या है? पूरी बात ठीक से बताओ,मानिक चंद खींजकर बोला।।
सुवर्ण हंसकर बोला___
अच्छा ठीक है तो सुनो पूरी कहानी।।
जितनी पहले सुनाई वो सारी कहानी सच हैऔर जो अब सुनाने जा रहा हूं,वो भी पूरी तरह सच है।।
अच्छा.. अच्छा... ठीक है,अब सुनाओ भी,मानिक चंद बोला।।
हुआ यूं कि ___
बहुत साल पहले की बात है,एक आदमी था जिसका नाम अघोरनाथ था,उसे तांत्रिक बनने की बहुत इच्छा थी, उसके परिवार में उसकी पत्नी और बेटी ही थे,उसकी भीतर तांत्रिक बनने की इतनी तीव्र इच्छा हुई कि उसने अपना घर छोड़कर शवदाहगृह में अपना बसेरा कर लिया।।
वहां उसे और भी कई अघोरियों का साथ मिल गया,वो घंटों जलते हुए शव पर अपनी तंत्र विद्या आजमाता, उसने इस तपस्या में अपने जीवन के ना जाने कितने साल गंवा दिए,इस दौरान वो अपने घर भी नहीं लौटा वहां उसकी पत्नी और बेटी उसकी राह देखते रहे।।
अब बेटी जवान और सयानी हो चुकी थी,इसी दौरान उसे किसी जादूगर ने अपने प्रेम जाल में फंसा लिया,वो लड़की कोई और नहीं चित्रलेखा थीं और वो जादूगर शंखनाद था।।
चित्रलेखा, शंखनाद के प्रेम में वशीभूत होकर,उसकी सारी बातें मानने लगी, धीरे धीरे शंखनाद ने उसे अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया,उसे जादूगरी में परांगत कर दिया लेकिन ये सब चित्रलेखा की मां को बिल्कुल भी पसंद नहीं था,वो नहीं चाहती थीं कि उसकी बेटी जादूगरनी बनकर, लोगों को नुकसान पहुंचाए।।
एक रोज मां बेटी में बहुत बहस हुई और गुस्से में आकर चित्रलेखा ने अपनी मां की हत्या कर दी,ये बात उसने शंखनाद को बताई और इस बात का पूरा पूरा फायदा शंखनाद ने उठाया, उसने चित्रलेखा को जरिया बनाया अपना मक़सद पूरा करने में, क्योंकि चित्रलेखा को नहीं शंखनाद को नवयुवकों के हृदय से बने तरल पदार्थ पीने की आवश्यकता थी क्योंकि उसे लम्बी उम्र चाहिए थी।।
और इस साज़िश का शिकार पहले नीलाम्बरा और नीलकमल के पिता हुए और बाद में मेरा बड़ा भाई शुद्धोधन,उसका हृदय निकालकर उसके मृत शरीर को घोड़े पर भेज दिया गया था।।
जब मुझे ये पता चला कि मेरा बड़ा भाई शुद्धोधन नहीं रहा तो मुझे यहां आना पड़ा और इसके बाद की कहानी तो मैं तुम्हें बता ही चुका हूं, सुवर्ण ने कहा।
ये सब तो मैं समझ गया लेकिन तुमने ये नहीं बताया कि तुम उस गुफा में क़ैद कैसे हुए,मानिक चंद ने पूछा।।
हां.. हां..भाई सब बताता हूं थोड़ा सब्र रखो, सुवर्ण हंसते हुए बोला।।
nice update .lagta hai ye wala aadmi bhi jhooth hi bol raha hai ,,chitralekha ko agar pyar ho gaya tha shankhnad se to usne nilambara ke baap se kyu shadi ki 🤔🤔🤔.. kisi aadmi ka dil to wo shankhnad se shadi karke bhi nikal sakti thi ..
 
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भाग (८)

अब चलो सुनो आगे की कहानी, सुवर्ण ने मानिक चंद से कहा__
मैंने अपने जादू से चित्रलेखा को जलपरी और शंखनाद को पंक्षी का रूप तो दिया लेकिन चित्रलेखा जलपरी बनकर मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती थी क्योंकि वो ज्यादा देर तक पानी से बाहर नहीं रह सकती थी, लेकिन शंखनाद तो मेरी जान के पीछे ही पड़ गया।।
मैं हमेशा उससे बचा बचा फिरने लगा, नीलकमल से भी तो कहीं दिनों तक मिलने नहीं जा सका,उस दौरान मैं ऐसे घने जंगलों में रहने लगा जहां सूरज की रोशनी भी नहीं जा सकती थी क्योंकि शंखनाद तो पंक्षी था तो वो मुझे कहीं से भी आकर ढूंढ सकता था और मैं खुद को उससे बचाने का प्रयास कर रहा था।
मुझे इतना ज़्यादा जादू भी नहीं आता कि मैं उससे जीत पाता, लेकिन इतना छुपने के बावजूद भी उसने मुझे एक दिन ढूंढ ही लिया, जैसे ही उसने मुझे देखा उसने मेरा पीछा करना शुरू कर दिया और मैं घने जंगलों की ओर भागा चला जा रहा था...भागा चला जा रहा था लेकिन फिर भी वो मेरे सामने आ पहुंचा, मैं उसके वार से खुद को बचाता रहा,बस उसने तो उस दिन मुझे मारने की जैसे ठान ही ली थीं, उसने मुझे बहुत चोट पहुंचाई, मैं लड़ते लड़ते थक चुका था चूंकि वो पंक्षी था तो किसी भी दिशा की ओर से आकर वो मुझ पर हमला करता,बाद में मुझमें उस का वार सहने की क्षमता नहीं रह गई और मैं घायल हो चुका था।।
लेकिन जब मुझे होश आया तो मुझसे एक बुजुर्ग ने पूछा__
अब, कैसे हो तुम?
मैंने कहा, ठीक लग रहा है।।
उन्होंने कहा,तुम अब से मेरी निगरानी में रहोगे।।
मैंने पूछा__ लेकिन क्यो?
उन्होंने कहा__ मैं चाहता हूं,तुम सुरक्षित रहो।।
मैंने पूछा__लेकिन आप मेरा भला क्यो चाहने लगे,इसका कोई कारण।।
उन्होंने कहा __हां
मैंने पूछा__ क्यो?
उन्होंने कहा__ मैं अघोरनाथ, चित्रलेखा का पिता, मैं एक तांत्रिक हूं और तुम्हारी रक्षा के लिए नीलगिरी के महाराज यानि के तुम्हारे पिता ने मुझे नियुक्त किया है ताकि तुम्हारा हाल शुद्धोधन की तरह ना हो।।
मैंने पूछा_ लेकिन आप तो चित्रलेखा के पिता होकर,मेरी भलाई के बारे में क्यो सोचने लगे भला!!
वो बोले__ मेरी पुत्री बहुत बड़ी अपराधिनी है, उसने मेरी पत्नी की हत्या के साथ साथ और ना जाने कितने लोगों की हत्या की है,इसके लिए मैं उसे कभी क्षमा नहीं कर सकता और उसके किए की सजा उसे अवश्य मिलनी चाहिए।।
उसने अपनी विद्या का उपयोग गलत कामों के लिए किया है और ये मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता, मैं भी तो एक तांत्रिक हूं लेकिन मैंने अपनी विद्या का उपयोग कभी भी ग़लत कामों में नहीं किया, इसलिए महाराज ने मुझे नियुक्त किया है और अब से तुम्हारी सुरक्षा की जिम्मेदारी मेरी होगी।।
और उसके बाद मैं ने अघोरनाथ से कुछ तंत्र विद्या सीखी, फिर एक दिन वो बोले, मुझे किसी जरूरी काम से जाना होगा और तुम्हे वहां अपने साथ नहीं ले जा सकता इसलिए मैं तुम्हें दो दिनों के लिए गुफा में क़ैद कर के जाऊंगा और वो चले गए, सुवर्ण बोला।।
लेकिन अघोरनाथ गए कहां?,मानिक चंद ने पूछा।।
मुझे भी नहीं पता, सुवर्ण बोला।।
तुमने अघोरनाथ पर भरोसा कैसे कर लिया,हो सकता है वो भी कोई साजिश रचने वाला हो तो,मानिक चंद ने कहा।।
अच्छा!! अभी ये सब छोड़ो,आधी रात होने को आई,अब थोड़ा विश्राम कर लें, बहुत थक चुका हूं मैं, सुवर्ण बोला।।
अच्छा ठीक है मित्र, जैसी तुम्हारी मंशा, मैं भी थक चुका हूं,अब तुम्हारी बातें सुनकर मेरा मन हल्का हो गया,अब शायद मैं भी चैन से सो सकूं और इतना कहकर मानिक गहरी निंद्रा में लीन हो गया।। रात का गहरा अंधेरा,ऊपर से घना जंगल,तरह तरह के पंक्षियों का कर्कश शोर,आग भी बुझने को थीं क्योंकि लकड़ियां जल चुकी थीं केवल कोयलें ही सुलग रहे थे और उनसे ही हल्की रोशनी थी, तभी एकाएक मानिक चंद को ऐसा लगा कि कोई उसका गला घोंट रहा है, अचानक उसने अपनी आंखें खोली और गला घोंटने वाले को देखने का प्रयास करने लगा लेकिन इतना अंधेरा था वो कुछ देख नहीं पा रहा था, बड़ी मेहनत मसक्कत के बाद वो खुद को छुड़ाने में कामयाब रहा, छूटते ही जंगल में भागना शुरू कर दिया,वो बार बार पीछे मुड़कर देख रहा था लेकिन उसे कोई दिखाई नहीं दे रहा था,सूखे पत्तों में किसी के कदमों की आहट आ रही थी,बस ऐसा लग रहा था कि कोई उसका पीछा कर रहा है।।
वो भागते जा रहा था...भागते जा रहा था लेकिन वो शक्ति उसे दिख नहीं रही थीं,बस मानिक को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें,वो भाग भागकर थक चुका था लेकिन वो शक्ति उसका पीछा नहीं छोड़ रही थी।।
वो भागते भागते किसी पेड़ के टूटे हुए तने से टकराकर गिर पड़ा,अब तो उस शक्ति ने उसे हवा में उछाल दिया, वो मुंह के बल आकर जमीन पर फिर से गिर पड़ा, उसके माथे पर बहुत गहरी चोट लग चुकी थीं और बहुत खून बह रहा था, वो पूरी हिम्मत लगाकर खड़ा हुआ तो उस शक्ति ने चाकू से उसके सीने पर वार किया लेकिन उसी समय किसी ने धक्का देकर उसे धकेल दिया जिससे चाकू का वार खाली चला गया।।
उसे धक्का देने वाले व्यक्ति ने उसी समय कुछ मंत्र पढ़ें और वो शक्ति हवा में गायब हो गई।।
उस व्यक्ति ने मानिक चंद को सहारा देकर खड़ा किया और पूछा__
ठीक हो, ज्यादा चोट तो नहीं लगी।।मानिक चंद उन्हें हैरानी के साथ देखते हुए बोला__
मैं ठीक हूं, बहुत बहुत धन्यवाद आपका जो समय पर आकर आपने मेरी जान बचाई।।
मुझे मालूम था कि शंखनाद ऐसी कोई हरकत जरूर करेगा इसलिए मैं उसे गुफा में क़ैद करके गया था, पता नहीं गुफा से उसे किसने आज़ाद कर दिया,वो व्यक्ति बोला।।
जी, मैंने उसे आजाद किया लेकिन वो तो सुवर्ण था,मानिक चंद फिर हैरान होकर पूछा।।
तुम्हें किसने कहा कि वो शंखनाद नहीं सुवर्ण था,उस व्यक्ति ने मानिक चंद से पूछा।।
मुझे तो उसने खुद बताया कि वो सुवर्ण है और जो उस घर में रह रही हैं वो नीलकमल हैं,जो समुद्र तट पर जलपरी मिली थी वो चित्रलेखा थीं,जो समुद्र तट में पंक्षी था वो शंखनाद है,मानिक चंद एक सांस में सब कह गया।।अच्छा तो ये बात है, उसने तुम्हें गुमराह करने की कोशिश की,उस व्यक्ति ने कहा।।
लेकिन महाशय!! आखिर आप कौन हैं? मेरा तो सर चकरा रहा हैं,हर बार किसी ना किसी के मिलने पर नई कहानी,अब आप भी सच बोल रहे हैं या झूठ, मैं ये कैसे मानूं,मानिक चंद खींज कर बोला।।
मैं अघोरनाथ हूं,उस व्यक्ति ने कहा।।
अच्छा तो आप ही चित्रलेखा के पिता हैं,मानिक चंद बोला।।
हां, मैं ही उसका अभागा बाप हूं जिसकी इतनी क्रूर बेटी हैं, मैं जिंदगी भर लोगों की भलाई करता रहा और मेरी बेटी ने तो इन्सानियत की हद ही पार कर दी, अघोरनाथ बोला।।
अब, मैं कैसे मान लूं कि आप सच बोल रहे हैं,मानिक चंद ने कहा।।
हां,तुम बिल्कुल सही कह रहे हो,ये तिलिस्म से भरा टापू हैं यहां एक बार जो आ गया वो वापस नहीं जा सकता क्योंकि शंखनाद सबके हृदय निकाल कर अपना जीवन बढ़ाने वाला तरल बनाता है और इस काम में उसका पूरा पूरा सहयोग मेरी बेटी चित्रलेखा करती है, अघोरनाथ बोला।।इसलिए तो मुझे संदेह हो रहा कि आप सच में अघोरनाथ ही हैं,मानिक चंद बोला।।
अच्छा,ये लो परिमाण, नीलगिरी राज्य के राजा का पत्र, उन्होंने मुझे अपने छोटे बेटे सुवर्ण की रक्षा के लिए नियुक्त किया है, अघोरनाथ ने पत्र,मानिक चंद के हाथ में सौंपते हुए कहा।।
मानिक चंद ने वो पत्र पढ़ा और बोला___
मानिक चंद बोला, परंतु आप यहां से कहां गए थे,शंखनाद को उस गुफा में कैद़ करके।।
majedar update ..ab ek aur suspense jisse ye pata chala ki jisko kaid se chhudaya wo suvarna nahi balki shankhnad tha 🤣..
aghornath ne bacha liya manik ko .
 
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भाग (९)..!!

मैं अपने और भी सहयोगियों से इस कार्य के लिए मदद मांगने गया था क्योंकि चित्रलेखा और शंखनाद अब इतने शक्तिशाली हो चुके हैं कि मैं अकेले ही उन दोनों के जादू को नहीं तोड़ सकता, अघोरनाथ बोले।।
लेकिन अब भी मैं आपके उत्तर से संतुष्ट नहीं हूं,मानिक चंद बोला।।
लेकिन क्यो? मैं सत्य बोल रहा हूं, अघोरनाथ बोले।।
लेकिन मैं कैसे मान लूं कि आप एकदम सत्य कह रहे हैं,हो सकता है वो नीलगिरी राज्य के महाराज का पत्र झूठा हो,मानिक चंद बोला।।
अच्छा,अब आप ही बताइए तो मैं ऐसा क्या कर सकता हूं,आपके लिए जिससे आपको मेरी बात पर विश्वास हो जाए, अघोरनाथ ने पूछा।।
अच्छा तो आप समुद्र तट पर चलकर पहले ये निश्चित करें कि वो जलपरी नीलकमल हैं और वो पंक्षी सुवर्ण है,आप उन्हें ये आश्वासन दे कि आप उनके प्राण बचा लेंगे,आप उनकी रक्षा के लिए ही नियुक्त किए गए हैं,मानिक चंद ने अघोरनाथ से कहा।।
हां.. हां..क्यो नही!!भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है,मेरा तो यही कार्य है, असहाय प्राणियों की रक्षा करना, मैं तो हमेशा ऐसे कार्यों के लिए तत्पर रहता हूं, मैंने तंत्र विद्या केवल इन्हीं कार्यो के लिए ही सीखी थी और आपको विश्वास दिलाने के लिए मैं अवश्य ही उन दोनों से मिलने चलूंगा, अघोरनाथ बोले।।
अघोरनाथ और मानिक चंद समुद्र तट की ओर चल पड़े, दोनों भूखे और प्यासे भी हो चले थे,रास्ते में कच्चे नारियल तोड़कर उन्होंने अपनी प्यास बुझाई, फिर समुद्र तट पर कुछ मछलियां पकड़ कर भूनी, उन्हें खाकर मानिक चंद तृप्त हुआ परंतु अघोरनाथ जी ने मछलियों का सेवन नहीं किया उन्होंने कहा कि मैं मांसाहार अभी नहीं कर सकता,हो सकता है मुझे अभी मंत्रों का उच्चारण करना पड़ जाए और ये निषेध हैं और वैसे भी मैं मांसाहार नहीं करता, इसमें मुझे रूचि नहीं है, मैं कुछ जड़ें भूनकर खा लेता हूं और खा पीकर दोनों लोग उसी जगह नीलकमल की प्रतीक्षा करने लगें, जहां मानिक चंद को नीलकमल मिली थीं।।
कुछ समय के पश्चात् नीलकमल समुद्र में तैरती हुई दिखी,मानिक चंद ने उसे आवाज़ लगाई।। नीलकमल पत्थरों पर आकर बैठ गई और मानिक चंद से पूछा।।
मैंने आपकी कितनी प्रतीक्षा की, कहां रह गए थे आप, कुछ पता किया आपने, चित्रलेखा के विषय में,कब तक मुझे इस रूप में सुवर्ण से अलग होकर रहना पड़ेगा, बहुत ही विक्षिप्त अवस्था है मेरी,मेरी अन्त: पीड़ा को समझने का प्रयास करें।।
इसलिए तो मैं इन महाशय को आपसे मिलवाने लाया था,मानिक चंद ने नीलकमल से कहा।।
कौन हैं ये?ये भी चित्रलेखा की तरह कोई मायावी ना हो, आपने कैसे इन पर विश्वास कर लिया, नीलकमल ने मानिक चंद से कहा।।
नहीं.. नहीं.. वैसे आपका सोचना एकदम सही है, कोई भी होता तो ऐसी ही प्रतिक्रिया देता लेकिन आप मुझ पर विश्वास रखें, मैं कभी भी आपको और सुवर्ण को कोई भी हानि नहीं होने दूंगा,मानिक चंद ने नीलकमल से कहा।।
आप कह रहे हैं तो मान लेती हूं, वैसे है कौन ये? नीलकमल बोली।।
ये बहुत बड़े तांत्रिक अघोरनाथ जी हैं,साथ में ये चित्रलेखा के बहुत बड़े शत्रु भी है और सबसे आश्चर्यजनक बात ये है कि चित्रलेखा के पिता भी है,इनकी ख्याति देखकर नीलगिरी के महाराज जोकि सुवर्ण के पिता हैं, उन्होंने ही इन्हें सुवर्ण के प्राणों की रक्षा हेतु नियुक्त किया है,मानिक चंद बोला।।
परंतु इसका क्या प्रमाण हैं कि ये जो बोल रहे हैं,वो सत्य ही होगा,हो सकता है कि ये कोई तांत्रिक ही ना हो,ये तुम्हें रि‌झाने के लिए कोई मायावी रूप धरकर आए हो, नीलकमल ने मानिक चंद से कहा।।
तो आपको मेरी बातों पर अब भी संदेह और अगर मैं आपको पुनः आपके वहीं पहले वाले रूप में लाने में सफल हो जाऊं तो क्या तब भी आपको किसी प्रमाण की आवश्यकता होगी, अघोरनाथ बोले।।
जी,अगर आपका प्रयास सफल हो तो मुझे और सुवर्ण को नया जीवन मिल जाएगा,हम आपका यह आभार जीवन भर नहीं भूलेंगे, नीलकमल बोली।।
तो ठीक है, कहां है सुवर्ण? उन्हें भी बुलाए, मैं अभी आप लोगों के पुराने रूप में लाने का प्रयास करता हूं,मेरे कारण आप लोग अपने पुराने रूप में आ गए तो सबसे ज़्यादा प्रसन्नता मुझे ही होगी, अघोरनाथ बोले।।
नीलकमल बोली, मैं अभी सुवर्ण को आवाज लगाती हूं
और नीलकमल ने सुवर्ण को जोर जोर से आवाज़ लगाई__
सुवर्ण.... सुवर्ण... कहां हो? यहां आओ,ये लोग तुम्हें कोई हानि नहीं पहुंचाएंगे,मेरी बात पर विश्वास रखों,इन महाशय को आपके पिताश्री ने ही आपकी रक्षा हेतु नियुक्त किया है,आप तनिक भी भयभीत ना हो।।
और थोड़ी देर बाद सुवर्ण वहां उड़ते हुए आ पहुंचा__
अघोरनाथ ने एक जगह बैठकर अग्नि जलाई,उस अग्नि के चारों ओर कुछ चिन्ह अंकित किए, तत्पश्चात् अपने नेत्र बंद करके कुछ मंत्रों का उच्चारण शुरू कर दिया, अपने कमण्डल से जल लेकर अग्नि पर जल का छिड़काव करते, बहुत देर की तपस्या के बाद उन्होंने अब की बार जल का छिड़काव नीलकमल और सुवर्ण पर किया और देखते ही देखते दोनों अपने पुनः वाले रूप में आ गए।।
नीलकमल अत्यधिक प्रसन्न हुई, उसने अघोरनाथ जी के चरणस्पर्श करते हुए कहा कि___
क्षमा करें!! बाबा,जो मैंने आप पर संदेह किया, बहुत बहुत आभार आपका, आपने हमें नया जीवन दिया है।।
सदा प्रसन्न रहो, पुत्री!! और आभार किस बात का तुम तो मेरी पुत्री समान हो,ये तो मेरा कर्त्तव्य था,ये तो मैंने मानवता वश किया, किसी की सहायता कर सकूं,ये तो मेरे लिए बड़े गौरव की बात होगी, अघोरनाथ बोले।।
नीलकमल बोली और मानिक भाई आपका भी बहुत बहुत धन्यवाद,आज से आप मेरे बड़े भाई हुए,अगर आप ना होते तो हम दोनों कतई भी अपने पहले वाले रूप नहीं आ पाते,आप ही बाबा को यहां लाए और उन्होंने हमारी सहायता की, नीलकमल ने मानिक चंद से कहा।।‌
ऐसा ना कहो, नीलकमल बहन,ये तो मेरा धर्म था,अपनी बहन की सहायता करना तो मेरा कर्तव्य है,मानिक चंद बोला।।
और उस दिन सब बहुत प्रसन्न थे,मानिक चंद की उलझन खत्म हो चुकी थीं, उसे अब अघोरनाथ पर संदेह नहीं रह गया, नीलकमल भी अपने पहले वाले रूप में आ चुकी थीं लेकिन अब यह सबसे बड़ी उलझन थी कि चित्रलेखा और शंखनाद का क्या किया जाए।।
बस,इसी बात को लेकर उन सब में वार्तालाप चल रहा था।।
मैं अभी तक शंखनाद की शक्तियों का पता नहीं लगा पाया हूं कि वो कितना शक्तिशाली हैं, उसके साथ चित्रलेखा भी है, चित्रलेखा को भी कम नहीं समझना चाहिए, अघोरनाथ बोले।।
लेकिन बाबा कुछ तो ऐसा होगा जो उन दोनों के जादू को तोड़ सकता हो,मानिक चंद बोला।।
अच्छा, भइया,आप चित्रलेखा के घर में रूके, आपको वहां कुछ भी ऐसा आश्चर्यजनक प्रतीत नहीं हुआ कि ये कैसे हो सकता है, सुवर्ण बोला।।
नहीं, सुवर्ण, ऐसा तो कुछ नहीं लगा,मानिक चंद बोला।।
परन्तु, कुछ ना कुछ तो ऐसा अवश्य होगा जो आपको लगा हो कि यहां नहीं होना चाहिए था,या ऐसी कोई घटना जो कुछ विचित्र प्रतीत हुई हो, नीलकमल बोली।।
नहीं ऐसा तो कुछ,याद नहीं आ रहा लेकिन याद आते ही बताऊंगा, मस्तिष्क पर जोर डालना पड़ेगा,मानिक चंद बोला।।
ऐसा कुछ तो अवश्य ही होना चाहिए, जिससे चित्रलेखा की दुर्बलता का पता चल सकें,ये तो वहीं जाकर ज्ञात हो सकता है, अघोरनाथ जी बोले।।
लेकिन ऐसा साहस कौन कर सकता है भला, क्योंकि अब तक तो मेरी सच्चाई भी चित्रलेखा को शंखनाद ने बता दी होगी और वो अत्यधिक सावधान हो गई होंगी, मानिक चंद बोला।।
हां,ये भी सत्य है, अघोरनाथ बोले।।
अब इसका क्या समाधान निकाला जाए, सुवर्ण बोला।।
 
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lovely update ..manik ka shak dur karne ke liye aghornath ne neelkamal aur suvarna ko unka asli roop lauta diya .
ab chitralekha ki kamjori janna chahte hai jisse uska khatma ho sake par kisiko nahi pata uski kamjori .
par neelkamal se jaankari le li thi pehle suvarna ne chitralekha ke baare me 🤔🤔🤔.
 
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