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Fantasy रहस्यमयी टापू MAZIC Adventure (Completed)

ashish_1982_in

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भाग (९)..!!

मैं अपने और भी सहयोगियों से इस कार्य के लिए मदद मांगने गया था क्योंकि चित्रलेखा और शंखनाद अब इतने शक्तिशाली हो चुके हैं कि मैं अकेले ही उन दोनों के जादू को नहीं तोड़ सकता, अघोरनाथ बोले।।
लेकिन अब भी मैं आपके उत्तर से संतुष्ट नहीं हूं,मानिक चंद बोला।।
लेकिन क्यो? मैं सत्य बोल रहा हूं, अघोरनाथ बोले।।
लेकिन मैं कैसे मान लूं कि आप एकदम सत्य कह रहे हैं,हो सकता है वो नीलगिरी राज्य के महाराज का पत्र झूठा हो,मानिक चंद बोला।।
अच्छा,अब आप ही बताइए तो मैं ऐसा क्या कर सकता हूं,आपके लिए जिससे आपको मेरी बात पर विश्वास हो जाए, अघोरनाथ ने पूछा।।
अच्छा तो आप समुद्र तट पर चलकर पहले ये निश्चित करें कि वो जलपरी नीलकमल हैं और वो पंक्षी सुवर्ण है,आप उन्हें ये आश्वासन दे कि आप उनके प्राण बचा लेंगे,आप उनकी रक्षा के लिए ही नियुक्त किए गए हैं,मानिक चंद ने अघोरनाथ से कहा।।
हां.. हां..क्यो नही!!भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है,मेरा तो यही कार्य है, असहाय प्राणियों की रक्षा करना, मैं तो हमेशा ऐसे कार्यों के लिए तत्पर रहता हूं, मैंने तंत्र विद्या केवल इन्हीं कार्यो के लिए ही सीखी थी और आपको विश्वास दिलाने के लिए मैं अवश्य ही उन दोनों से मिलने चलूंगा, अघोरनाथ बोले।।
अघोरनाथ और मानिक चंद समुद्र तट की ओर चल पड़े, दोनों भूखे और प्यासे भी हो चले थे,रास्ते में कच्चे नारियल तोड़कर उन्होंने अपनी प्यास बुझाई, फिर समुद्र तट पर कुछ मछलियां पकड़ कर भूनी, उन्हें खाकर मानिक चंद तृप्त हुआ परंतु अघोरनाथ जी ने मछलियों का सेवन नहीं किया उन्होंने कहा कि मैं मांसाहार अभी नहीं कर सकता,हो सकता है मुझे अभी मंत्रों का उच्चारण करना पड़ जाए और ये निषेध हैं और वैसे भी मैं मांसाहार नहीं करता, इसमें मुझे रूचि नहीं है, मैं कुछ जड़ें भूनकर खा लेता हूं और खा पीकर दोनों लोग उसी जगह नीलकमल की प्रतीक्षा करने लगें, जहां मानिक चंद को नीलकमल मिली थीं।।
कुछ समय के पश्चात् नीलकमल समुद्र में तैरती हुई दिखी,मानिक चंद ने उसे आवाज़ लगाई।। नीलकमल पत्थरों पर आकर बैठ गई और मानिक चंद से पूछा।।
मैंने आपकी कितनी प्रतीक्षा की, कहां रह गए थे आप, कुछ पता किया आपने, चित्रलेखा के विषय में,कब तक मुझे इस रूप में सुवर्ण से अलग होकर रहना पड़ेगा, बहुत ही विक्षिप्त अवस्था है मेरी,मेरी अन्त: पीड़ा को समझने का प्रयास करें।।
इसलिए तो मैं इन महाशय को आपसे मिलवाने लाया था,मानिक चंद ने नीलकमल से कहा।।
कौन हैं ये?ये भी चित्रलेखा की तरह कोई मायावी ना हो, आपने कैसे इन पर विश्वास कर लिया, नीलकमल ने मानिक चंद से कहा।।
नहीं.. नहीं.. वैसे आपका सोचना एकदम सही है, कोई भी होता तो ऐसी ही प्रतिक्रिया देता लेकिन आप मुझ पर विश्वास रखें, मैं कभी भी आपको और सुवर्ण को कोई भी हानि नहीं होने दूंगा,मानिक चंद ने नीलकमल से कहा।।
आप कह रहे हैं तो मान लेती हूं, वैसे है कौन ये? नीलकमल बोली।।
ये बहुत बड़े तांत्रिक अघोरनाथ जी हैं,साथ में ये चित्रलेखा के बहुत बड़े शत्रु भी है और सबसे आश्चर्यजनक बात ये है कि चित्रलेखा के पिता भी है,इनकी ख्याति देखकर नीलगिरी के महाराज जोकि सुवर्ण के पिता हैं, उन्होंने ही इन्हें सुवर्ण के प्राणों की रक्षा हेतु नियुक्त किया है,मानिक चंद बोला।।
परंतु इसका क्या प्रमाण हैं कि ये जो बोल रहे हैं,वो सत्य ही होगा,हो सकता है कि ये कोई तांत्रिक ही ना हो,ये तुम्हें रि‌झाने के लिए कोई मायावी रूप धरकर आए हो, नीलकमल ने मानिक चंद से कहा।।
तो आपको मेरी बातों पर अब भी संदेह और अगर मैं आपको पुनः आपके वहीं पहले वाले रूप में लाने में सफल हो जाऊं तो क्या तब भी आपको किसी प्रमाण की आवश्यकता होगी, अघोरनाथ बोले।।
जी,अगर आपका प्रयास सफल हो तो मुझे और सुवर्ण को नया जीवन मिल जाएगा,हम आपका यह आभार जीवन भर नहीं भूलेंगे, नीलकमल बोली।।
तो ठीक है, कहां है सुवर्ण? उन्हें भी बुलाए, मैं अभी आप लोगों के पुराने रूप में लाने का प्रयास करता हूं,मेरे कारण आप लोग अपने पुराने रूप में आ गए तो सबसे ज़्यादा प्रसन्नता मुझे ही होगी, अघोरनाथ बोले।।
नीलकमल बोली, मैं अभी सुवर्ण को आवाज लगाती हूं
और नीलकमल ने सुवर्ण को जोर जोर से आवाज़ लगाई__
सुवर्ण.... सुवर्ण... कहां हो? यहां आओ,ये लोग तुम्हें कोई हानि नहीं पहुंचाएंगे,मेरी बात पर विश्वास रखों,इन महाशय को आपके पिताश्री ने ही आपकी रक्षा हेतु नियुक्त किया है,आप तनिक भी भयभीत ना हो।।
और थोड़ी देर बाद सुवर्ण वहां उड़ते हुए आ पहुंचा__
अघोरनाथ ने एक जगह बैठकर अग्नि जलाई,उस अग्नि के चारों ओर कुछ चिन्ह अंकित किए, तत्पश्चात् अपने नेत्र बंद करके कुछ मंत्रों का उच्चारण शुरू कर दिया, अपने कमण्डल से जल लेकर अग्नि पर जल का छिड़काव करते, बहुत देर की तपस्या के बाद उन्होंने अब की बार जल का छिड़काव नीलकमल और सुवर्ण पर किया और देखते ही देखते दोनों अपने पुनः वाले रूप में आ गए।।
नीलकमल अत्यधिक प्रसन्न हुई, उसने अघोरनाथ जी के चरणस्पर्श करते हुए कहा कि___
क्षमा करें!! बाबा,जो मैंने आप पर संदेह किया, बहुत बहुत आभार आपका, आपने हमें नया जीवन दिया है।।
सदा प्रसन्न रहो, पुत्री!! और आभार किस बात का तुम तो मेरी पुत्री समान हो,ये तो मेरा कर्त्तव्य था,ये तो मैंने मानवता वश किया, किसी की सहायता कर सकूं,ये तो मेरे लिए बड़े गौरव की बात होगी, अघोरनाथ बोले।।
नीलकमल बोली और मानिक भाई आपका भी बहुत बहुत धन्यवाद,आज से आप मेरे बड़े भाई हुए,अगर आप ना होते तो हम दोनों कतई भी अपने पहले वाले रूप नहीं आ पाते,आप ही बाबा को यहां लाए और उन्होंने हमारी सहायता की, नीलकमल ने मानिक चंद से कहा।।‌
ऐसा ना कहो, नीलकमल बहन,ये तो मेरा धर्म था,अपनी बहन की सहायता करना तो मेरा कर्तव्य है,मानिक चंद बोला।।
और उस दिन सब बहुत प्रसन्न थे,मानिक चंद की उलझन खत्म हो चुकी थीं, उसे अब अघोरनाथ पर संदेह नहीं रह गया, नीलकमल भी अपने पहले वाले रूप में आ चुकी थीं लेकिन अब यह सबसे बड़ी उलझन थी कि चित्रलेखा और शंखनाद का क्या किया जाए।।
बस,इसी बात को लेकर उन सब में वार्तालाप चल रहा था।।
मैं अभी तक शंखनाद की शक्तियों का पता नहीं लगा पाया हूं कि वो कितना शक्तिशाली हैं, उसके साथ चित्रलेखा भी है, चित्रलेखा को भी कम नहीं समझना चाहिए, अघोरनाथ बोले।।
लेकिन बाबा कुछ तो ऐसा होगा जो उन दोनों के जादू को तोड़ सकता हो,मानिक चंद बोला।।
अच्छा, भइया,आप चित्रलेखा के घर में रूके, आपको वहां कुछ भी ऐसा आश्चर्यजनक प्रतीत नहीं हुआ कि ये कैसे हो सकता है, सुवर्ण बोला।।
नहीं, सुवर्ण, ऐसा तो कुछ नहीं लगा,मानिक चंद बोला।।
परन्तु, कुछ ना कुछ तो ऐसा अवश्य होगा जो आपको लगा हो कि यहां नहीं होना चाहिए था,या ऐसी कोई घटना जो कुछ विचित्र प्रतीत हुई हो, नीलकमल बोली।।
नहीं ऐसा तो कुछ,याद नहीं आ रहा लेकिन याद आते ही बताऊंगा, मस्तिष्क पर जोर डालना पड़ेगा,मानिक चंद बोला।।
ऐसा कुछ तो अवश्य ही होना चाहिए, जिससे चित्रलेखा की दुर्बलता का पता चल सकें,ये तो वहीं जाकर ज्ञात हो सकता है, अघोरनाथ जी बोले।।
लेकिन ऐसा साहस कौन कर सकता है भला, क्योंकि अब तक तो मेरी सच्चाई भी चित्रलेखा को शंखनाद ने बता दी होगी और वो अत्यधिक सावधान हो गई होंगी, मानिक चंद बोला।।
हां,ये भी सत्य है, अघोरनाथ बोले।।
अब इसका क्या समाधान निकाला जाए, सुवर्ण बोला।।
very nice update bhai
 

Hero tera

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भाग (१०)

अघोरनाथ जी बोले___
अभी तो हम सब एक सुरक्षित स्थान ढूंढते हैं, रात्रि भी गहराने वाली, कुछ खाने पीने का प्रबन्ध करते हैं, इसके उपरांत विश्राम करके प्रात: सोचेंगे कि क्या करना है।।
तभी,मानिक चंद भी बोला__
आपका कहना उचित है बाबा!! चलिए सर्वप्रथम कोई झरना देखते हैं,इसके उपरांत वहीं अग्नि जलाकर विश्राम करेंगे।।
सब ने एक झरना ढूंढा और वहां अग्नि जलाकर खाने पीने का प्रबन्ध किया,इसके उपरांत सब खा पीकर विश्राम करने लगे।।
आधी रात होने को आई थीं,सब थके हुए थे इसलिए शीघ्र ही गहरी निद्रा में लीन हो गए।।
तीसरा पहर होने को था, तभी अघोरनाथ को किसी की पुकार सुनाई दी, उनकी आंख खुली, कुछ देर तक वो सुनते रहे परंतु कोई भी ध्वनि , कोई भी स्वर सुनाई नहीं दिया,तब उन्होंने सोचा कदाचित् कोई वनीय जीव होगा, अधिकांशतः जानवर रात को रोते हैं, उन्होंने फिर अपने हाथ को सर के नीचे रखा और सो गए, परंतु कुछ समय उपरांत वो स्वर फिर सुनाई दिया।।
अब अघोरनाथ जी को लगा,हो ना हो कोई ना कोई बात जरूर है , सावधान हो जाना चाहिए, ऐसा ना हो कि चित्रलेखा और शंखनाद का कोई षणयन्त्र हो,उसी समय उन्होंने सब को जगाया और उस स्वर को सुनने के लिए कहा।।
सबने अपना ध्यान लगाकर उस स्वर को सुनने का प्रयास किया, सभी को वो बीभत्स सा स्वर सुनाई दिया,सब बहुत भयभीत भी हो चुके थे।।
अघोरनाथ जी बोले,हम ऐसे हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकते,हो सकता वहां कोई विपत्ति में हो और हमें सहायता के लिए पुकार रहा हो परन्तु ये भी संदेह हो रहा है कि चित्रलेखा और शंखनाद का कोई षणयन्त्र ना हो,ये सब मेरी समझ से परे हैं।।
तभी सुवर्ण बोला__
बाबा!! आप सब यहां ठहरे, पहले मैं जाता हूं,अगर मैं कुछ समय तक ना लौटा तो आप सब भी आ जाना क्योंकि मुझे थोड़ा बहुत तो जादू आता है।।
अघोरनाथ बोले, हां !! यही उचित रहेगा।।
परंतु हम सब भी तुमसे अत्यधिक दूरी पर नहीं रहेंगे,हम भी साथ साथ ही रहेंगे परन्तु कुछ ही दूरी पर।।
सबने कहा, हां यही उचित रहेगा।।
और सब उस अंधेरी रात में उस ध्वनि की दिशा में चल पड़े।।
अत्यधिक निकट जाने पर सुवर्ण सावधान होकर उस स्थान पर पहुंच गया, उसने डरते हुए पूछा__
कौन है?..कौन है?... यहां पर,किसका स्वर हैं जो इतना पीड़ादायक हैं।।
तभी उधर से स्वर आया___
ये बताओ कि तुम कौन हो, मैं सब समझती हूं शंखनाद!! ये पुनः तुम्हारा कोई ना कोई षणयन्त्र है, परन्तु अब मेरे पास कुछ भी नहीं रह गया है,सब तो पहले ही ले जा चुके हो।।
परन्तु मैं शंखनाद नहीं हूं, मैं नीलगिरी राज्य का छोटा राजकुमार सुवर्ण हूं, कृपया आप चिंतित ना हों, मुझे अपनी समस्या बताएं, संभव हो सका तो मैं आपकी सहायता अवश्य करूंगा, मुझ पर विश्वास रखें, सुवर्ण बोला।।
परन्तु, मैं कैसे तुम पर विश्वास करूं,हो सकता है तुम कोई मायावी हो,हो सकता है तुम्हें शंखनाद ने भेजा हो,उधर से स्वर आया।।
तब तक अघोरनाथ और सब भी वहां पहुंच चुके थे, तभी अघोरनाथ बोले___
आप चिंतित ना हो, मैं अघोरनाथ हूं,आप अपनी समस्या मुझसे कहें ताकि मैं कोई समाधान कर सकूं।।
परन्तु मैं आप सब पर कैसे विश्वास करूं,उस स्वर ने कहा।।
हमने भी तो आपकी बातों पर विश्वास कर लिया ना, सुवर्ण ने कहा।।
अच्छा तो सुनिए मेरी कहानी___
उस स्वर ने कहना प्रारम्भ किया___
मैं इस वन की देवी हूं,मेरा नाम शाकंभरी है, मेरे पिताश्री इस वन के राजा थे,उनका नाम वेदांत था,वे इस वन की रक्षा किया करते, उनके पास बहुत सी शक्तियां थीं, उन्होंने बचपन से ही अपनी शक्तियां और ज्ञान मुझे देना शुरू कर दिया था।
यौवनकाल तक मुझमें बहुत सी शक्तियां आ गई, मैं इतनी शक्तिशाली थीं कि अपनी शक्तियों से अपने पंख भी प्राप्त कर लिए,जिनकी सहायता से उड़कर मैं किसी की भी सहायता करने वन में कहीं भी शीघ्र पहुंच सकती थीं।।
फिर पिताश्री ने घोषणा की कि वो मुझे इस वन की देवी। बनाना चाहते हैं और उन्होंने अपनी सारी शक्तियां मेरे पंखों में दे दीं जिससे मैं और भी शक्तिशाली हो गई,तब पिताश्री ने मुझे इस वन की देवी घोषित कर दिया।।
इस बात की सूचना शंखनाद को हो गई और वो एक लकड़हारे का रूप धर इस वन में रहने लगा और मेरे सारे क्रियाकलापों पर ध्यान देने लगा,उसे पता चल गया कि मेरे पास बहुत ही शक्तिशाली मायावी पंख हैं जिनका उपयोग में किसी भी असहाय की सहायता करने में करतीं हूं।
और इसी बात का उसने लाभ उठाया, उसने मेरे सामने अच्छा बनने का अभिनय किया और अपने मोहपाश में मुझे बांध लिया और मैं उसके प्रेम में पागल होकर अपने पिता के भी विरूद्ध हो गई,एक दिन शंखनाद ने मेरे पिता श्री को असहाय जानकर उनकी हत्या कर दी, उनकामृत शरीर मुझे वन में पड़ा हुआ मिला, तभी एक तोते ने मुझे सारी सच्चाई बताई जो कि मेरे पिताश्री का पालतू था,उस दिन मुझे शंखनाद की सच्चाई का पता लगा।‌
और एक रात मैंने शंखनाद से इस विषय में पूछा,तब उसने रोते हुए अपनी भूलों की क्षमा मांग ली,मेरा हृदय भी पसीज गया और मैंने उसे प्रेम के वशीभूत होकर उसे क्षमा कर दिया।।
परन्तु, मैं उस रात उसका षणयन्त्र समझ ना सकीं, उसने उस रात चित्रलेखा को जादू करने को बुला लिया था,वो यहां आकर वन के जीवों और पेड़ पौधों को हानि पहुंचाने लगी,तब शंखनाद ने कहा__
शाकंभरी!! अपने पंखों का उपयोग करों।
मैंने अपने पंख प्रकट कर उन सब जीवों की रक्षा करने लगी, मैं तो चित्रलेखा का जादू तोड़ने में ध्यानमग्न थी तभी शंखनाद ने अपनी पेड़ काटने वाली कुल्हाड़ी से मेरे पंख काटकर अपने साथ ले गया,उन पंखों के साथ मेरी सारी शक्तियां भी चली गई और इस वन की सुंदरता भी चली गई,उस रात से मैं आज तक रात को अपने पीड़ा से कराह उठती हूं,रात को रहकर रहकर पीड़ा उठती है, मैं अपनी शक्तियों के बिना असहाय हूं, मुझे मेरे पंख चाहिए।।
मेरा जीवन,मेरी सारी शक्तियां उन्हीं पंखों में है,तबसे शंखनाद और चित्रलेखा ने इस वन को नर्क बना दिया है,इस वन की सुंदरता नष्ट हो गई है, मैं इस वन की देवी हूं और मैं किसी की भी सहायता नहीं कर सकती, मुझे ये बात बहुत ही पीड़ा देती है।।
हे,वनदेवी !! कृपया आप इतनी दुखी ना हो,हम सब अवश्य आपकी सहायता करेंगे, परन्तु आपको भी हमारी सहायता करनी होगी की हम किस प्रकार उन दोनों से जीत सकते हैं कुछ तो ऐसा होगा, जो उन्हें भी भयभीत करता होगा, अघोरनाथ जी बोले।।
हां.. हां..क्यो नही, मुझे जो भी जानकारी उन लोगों के विषय में है वो मैं आप लोगों को अवश्य बताऊंगी, शाकंभरी बोली।।
लेकिन आप इतने अंधेरे में क्यो है?इस बड़े से वृक्ष के तने के भीतर क्यो बैठी है, कृपया बाहर आएं,हम सब आपको कोई भी हानि नहीं पहुंचाएंगे, सुवर्ण बोला।।
और इतना सुनकर शाकंभरी वृक्ष के तने से बाहर आई।।
 

ashish_1982_in

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भाग (१०)

अघोरनाथ जी बोले___
अभी तो हम सब एक सुरक्षित स्थान ढूंढते हैं, रात्रि भी गहराने वाली, कुछ खाने पीने का प्रबन्ध करते हैं, इसके उपरांत विश्राम करके प्रात: सोचेंगे कि क्या करना है।।
तभी,मानिक चंद भी बोला__
आपका कहना उचित है बाबा!! चलिए सर्वप्रथम कोई झरना देखते हैं,इसके उपरांत वहीं अग्नि जलाकर विश्राम करेंगे।।
सब ने एक झरना ढूंढा और वहां अग्नि जलाकर खाने पीने का प्रबन्ध किया,इसके उपरांत सब खा पीकर विश्राम करने लगे।।
आधी रात होने को आई थीं,सब थके हुए थे इसलिए शीघ्र ही गहरी निद्रा में लीन हो गए।।
तीसरा पहर होने को था, तभी अघोरनाथ को किसी की पुकार सुनाई दी, उनकी आंख खुली, कुछ देर तक वो सुनते रहे परंतु कोई भी ध्वनि , कोई भी स्वर सुनाई नहीं दिया,तब उन्होंने सोचा कदाचित् कोई वनीय जीव होगा, अधिकांशतः जानवर रात को रोते हैं, उन्होंने फिर अपने हाथ को सर के नीचे रखा और सो गए, परंतु कुछ समय उपरांत वो स्वर फिर सुनाई दिया।।
अब अघोरनाथ जी को लगा,हो ना हो कोई ना कोई बात जरूर है , सावधान हो जाना चाहिए, ऐसा ना हो कि चित्रलेखा और शंखनाद का कोई षणयन्त्र हो,उसी समय उन्होंने सब को जगाया और उस स्वर को सुनने के लिए कहा।।
सबने अपना ध्यान लगाकर उस स्वर को सुनने का प्रयास किया, सभी को वो बीभत्स सा स्वर सुनाई दिया,सब बहुत भयभीत भी हो चुके थे।।
अघोरनाथ जी बोले,हम ऐसे हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकते,हो सकता वहां कोई विपत्ति में हो और हमें सहायता के लिए पुकार रहा हो परन्तु ये भी संदेह हो रहा है कि चित्रलेखा और शंखनाद का कोई षणयन्त्र ना हो,ये सब मेरी समझ से परे हैं।।
तभी सुवर्ण बोला__
बाबा!! आप सब यहां ठहरे, पहले मैं जाता हूं,अगर मैं कुछ समय तक ना लौटा तो आप सब भी आ जाना क्योंकि मुझे थोड़ा बहुत तो जादू आता है।।
अघोरनाथ बोले, हां !! यही उचित रहेगा।।
परंतु हम सब भी तुमसे अत्यधिक दूरी पर नहीं रहेंगे,हम भी साथ साथ ही रहेंगे परन्तु कुछ ही दूरी पर।।
सबने कहा, हां यही उचित रहेगा।।
और सब उस अंधेरी रात में उस ध्वनि की दिशा में चल पड़े।।
अत्यधिक निकट जाने पर सुवर्ण सावधान होकर उस स्थान पर पहुंच गया, उसने डरते हुए पूछा__
कौन है?..कौन है?... यहां पर,किसका स्वर हैं जो इतना पीड़ादायक हैं।।
तभी उधर से स्वर आया___
ये बताओ कि तुम कौन हो, मैं सब समझती हूं शंखनाद!! ये पुनः तुम्हारा कोई ना कोई षणयन्त्र है, परन्तु अब मेरे पास कुछ भी नहीं रह गया है,सब तो पहले ही ले जा चुके हो।।
परन्तु मैं शंखनाद नहीं हूं, मैं नीलगिरी राज्य का छोटा राजकुमार सुवर्ण हूं, कृपया आप चिंतित ना हों, मुझे अपनी समस्या बताएं, संभव हो सका तो मैं आपकी सहायता अवश्य करूंगा, मुझ पर विश्वास रखें, सुवर्ण बोला।।
परन्तु, मैं कैसे तुम पर विश्वास करूं,हो सकता है तुम कोई मायावी हो,हो सकता है तुम्हें शंखनाद ने भेजा हो,उधर से स्वर आया।।
तब तक अघोरनाथ और सब भी वहां पहुंच चुके थे, तभी अघोरनाथ बोले___
आप चिंतित ना हो, मैं अघोरनाथ हूं,आप अपनी समस्या मुझसे कहें ताकि मैं कोई समाधान कर सकूं।।
परन्तु मैं आप सब पर कैसे विश्वास करूं,उस स्वर ने कहा।।
हमने भी तो आपकी बातों पर विश्वास कर लिया ना, सुवर्ण ने कहा।।
अच्छा तो सुनिए मेरी कहानी___
उस स्वर ने कहना प्रारम्भ किया___
मैं इस वन की देवी हूं,मेरा नाम शाकंभरी है, मेरे पिताश्री इस वन के राजा थे,उनका नाम वेदांत था,वे इस वन की रक्षा किया करते, उनके पास बहुत सी शक्तियां थीं, उन्होंने बचपन से ही अपनी शक्तियां और ज्ञान मुझे देना शुरू कर दिया था।
यौवनकाल तक मुझमें बहुत सी शक्तियां आ गई, मैं इतनी शक्तिशाली थीं कि अपनी शक्तियों से अपने पंख भी प्राप्त कर लिए,जिनकी सहायता से उड़कर मैं किसी की भी सहायता करने वन में कहीं भी शीघ्र पहुंच सकती थीं।।
फिर पिताश्री ने घोषणा की कि वो मुझे इस वन की देवी। बनाना चाहते हैं और उन्होंने अपनी सारी शक्तियां मेरे पंखों में दे दीं जिससे मैं और भी शक्तिशाली हो गई,तब पिताश्री ने मुझे इस वन की देवी घोषित कर दिया।।
इस बात की सूचना शंखनाद को हो गई और वो एक लकड़हारे का रूप धर इस वन में रहने लगा और मेरे सारे क्रियाकलापों पर ध्यान देने लगा,उसे पता चल गया कि मेरे पास बहुत ही शक्तिशाली मायावी पंख हैं जिनका उपयोग में किसी भी असहाय की सहायता करने में करतीं हूं।
और इसी बात का उसने लाभ उठाया, उसने मेरे सामने अच्छा बनने का अभिनय किया और अपने मोहपाश में मुझे बांध लिया और मैं उसके प्रेम में पागल होकर अपने पिता के भी विरूद्ध हो गई,एक दिन शंखनाद ने मेरे पिता श्री को असहाय जानकर उनकी हत्या कर दी, उनकामृत शरीर मुझे वन में पड़ा हुआ मिला, तभी एक तोते ने मुझे सारी सच्चाई बताई जो कि मेरे पिताश्री का पालतू था,उस दिन मुझे शंखनाद की सच्चाई का पता लगा।‌
और एक रात मैंने शंखनाद से इस विषय में पूछा,तब उसने रोते हुए अपनी भूलों की क्षमा मांग ली,मेरा हृदय भी पसीज गया और मैंने उसे प्रेम के वशीभूत होकर उसे क्षमा कर दिया।।
परन्तु, मैं उस रात उसका षणयन्त्र समझ ना सकीं, उसने उस रात चित्रलेखा को जादू करने को बुला लिया था,वो यहां आकर वन के जीवों और पेड़ पौधों को हानि पहुंचाने लगी,तब शंखनाद ने कहा__
शाकंभरी!! अपने पंखों का उपयोग करों।
मैंने अपने पंख प्रकट कर उन सब जीवों की रक्षा करने लगी, मैं तो चित्रलेखा का जादू तोड़ने में ध्यानमग्न थी तभी शंखनाद ने अपनी पेड़ काटने वाली कुल्हाड़ी से मेरे पंख काटकर अपने साथ ले गया,उन पंखों के साथ मेरी सारी शक्तियां भी चली गई और इस वन की सुंदरता भी चली गई,उस रात से मैं आज तक रात को अपने पीड़ा से कराह उठती हूं,रात को रहकर रहकर पीड़ा उठती है, मैं अपनी शक्तियों के बिना असहाय हूं, मुझे मेरे पंख चाहिए।।
मेरा जीवन,मेरी सारी शक्तियां उन्हीं पंखों में है,तबसे शंखनाद और चित्रलेखा ने इस वन को नर्क बना दिया है,इस वन की सुंदरता नष्ट हो गई है, मैं इस वन की देवी हूं और मैं किसी की भी सहायता नहीं कर सकती, मुझे ये बात बहुत ही पीड़ा देती है।।
हे,वनदेवी !! कृपया आप इतनी दुखी ना हो,हम सब अवश्य आपकी सहायता करेंगे, परन्तु आपको भी हमारी सहायता करनी होगी की हम किस प्रकार उन दोनों से जीत सकते हैं कुछ तो ऐसा होगा, जो उन्हें भी भयभीत करता होगा, अघोरनाथ जी बोले।।
हां.. हां..क्यो नही, मुझे जो भी जानकारी उन लोगों के विषय में है वो मैं आप लोगों को अवश्य बताऊंगी, शाकंभरी बोली।।
लेकिन आप इतने अंधेरे में क्यो है?इस बड़े से वृक्ष के तने के भीतर क्यो बैठी है, कृपया बाहर आएं,हम सब आपको कोई भी हानि नहीं पहुंचाएंगे, सुवर्ण बोला।।
और इतना सुनकर शाकंभरी वृक्ष के तने से बाहर आई।।
nice update bhai
 

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भाग (११)

शाकंभरी पेड़ के मोटे तने से जैसे ही बाहर निकली,इतने घुप्प अंधेरे में जंगल में रोशनी ही रोशनी फैल गई,उस नजारे को देखकर ऐसा लग रहा था कि हजारों-करोड़ो जुगनू जगमगा रहे हो।।
रोशनी को देखकर सबकी आंखें चौंधिया रही थीं, शाकंभरी की रोशनी से सारा जंगल जगमगा रहा था, थोड़ी देर में शाकंभरी ने खुद को एक लबादे से ढक लिया, ताकि उसकी रोशनी छिप जाए,अब केवल उसका चेहरा ही दिख रहा था।।
फिर बोली, मेरे पंख शंखनाद ने चुरा लिए है इसलिए मैं आपकी मदद नहीं कर सकतीं, क्योंकि मेरी सारी शक्तियां उन्हीं पंखों में है और उन पंखों की मदद के बिना मैं उड़ नहीं सकती, किसी का जादू नहीं तोड़ सकती, मैं आपलोगों की सहायता तभी कर पाऊंगी जब मैं उन सब का जादू तोड़ सकूं और इसके लिए मुझे कुछ ऐसी वस्तु चाहिए जिसकी सहायता से मैं उड़ सकूं।।
हां,हमें क्या करना होगा,हम आपकी सहायता के लिए तैयार है,मानिक चंद बोला।।
इसके लिए आप सबको एक कार्य करना होगा यहां से दक्षिण दिशा की ओर मेरा बहुत पुराना मित्र बकबक बौना रहता है उसके पास एक उड़ने वाला घोड़ा है जिस की सहायता से मैं तुम लोगों की मदद कर सकतीं हूं।।
परन्तु बकबक बौने को ढूंढना बहुत ही मुश्किल है, चूंकि वो बहुत ही छोटा है, इसलिए ना जाने कहां बिल बनाकर रह रहा होगा और अपने घोड़े को एक ताबीज में बदल कर हमेशा अपने गले में पहने रहता है, बहुत समय से मैं उससे नहीं मिली,अगर उसे इन सबकी सूचना मिल गई होती तो वो अवश्य ही अभी तक मेरी सहायता के लिए आ पहुंचता।।
परन्तु,हम किस तरह पहचान करेंगे कि वो ही बकबक बौना है,हो सकता है कि वहां और भी बौने रहते हो, सुवर्ण ने शाकंभरी से कहा।।
हां, राजकुमार सुवर्ण आप ठीक कह रहे हैं वो बौनो की ही बस्ती है, वहां बौने ही बौने बड़े बड़े पेड़ों के तनों के अंदर अपनी अपनी बस्तियां बनाकर रहते हैं और जरूरतमंदों की सहायता भी करते हैं, शाकंभरी बोली।।बकबक बौने का भी तो अपना परिवार होगा,जिनके साथ वो रहता होगा,मानिक चंद ने शाकंभरी से पूछा।
हां,था उसका भी एक परिवार था लेकिन अब नहीं रहा,इसके पीछे भी एक लम्बी कहानी है, शाकंभरी ने दुखी होकर कहा।।
लेकिन ऐसा भी क्या हुआ था, बेचारे बकबक बौने के साथ कि उसे अपना परिवार खोना पड़ा,नीलाम्बरा ने शाकंभरी से पूछा।।
तब शाकंभरी ने बकबक बौने की कहानी सुनानी शुरू की।।
बहुत समय पहले उसी जंगल में बुझक्कड़ बौना अपने परिवार के साथ रहता था,वो उस समय वहां का राजा था, तभी एक दिन कुछ बौने बुझक्कड़ बौने के पास फरियाद लेकर आए कि काले पहाड़ पर सर्पीली रानी रहती है जिसका चेहरा औरत जैसा और शरीर सांप जैसा है, उसने ना जाने कितने सांप पाल रखे थे,जिस भी बौने को वो देख लेती उसे तुरन्त ही अपने पाले हुए सांपों से निगलने के लिए कहती हैं फिर राक्षसी हंसी हंसकर आनन्द उठाती।।
ये सुनकर बुझक्कड़ बौने ने कहा कि तुम लोग काले पहाड़ पर जाना क्यो नही छोड़ देते।।
तब दूसरे बौने बोले,हम सब वहां नहीं जाते लेकिन सर्पीली रानी ने अपने सांपों को हमारे रहने के स्थान पर छोड़ दिया और वो सांप हर दिन किसी ना किसी बौने को निगल जाते हैं,आप जाकर सर्पीली रानी से कहें कि वो अपने सांपों को बुला ले।।
ठीक है, मैं आज ही कुछ लोगों को लेकर सर्पीली रानी के पास जाता ,बुझक्कड़ बौने ने कहा।।
ऐसा कहकर बुझक्कड़ बौना कुछ सैनिक बौने के साथ सर्पीली रानी के पास चल पड़ा।।
सर्पीली रानी के पास पहुंचते ही बुझक्कड़ बौने ने सर्पीली रानी से विनती की ,कि कृपया आप अपने सांपों को बौनों के जंगल से बुला लीजिए,आपके सांपों ने जंगल में तबाही मचा रखी है,हर रोज कई बौनो को निगल जाते हैं।।
लेकिन,सर्पीली रानी ,बुझक्कड़ बौने की बात सुनकर क्रोधित हो उठी और उसने कहा, यहां से चले जाओ नहीं तो मैं भी तुझे निगल जाऊंगी।।
लेकिन बुझक्कड़ बौना,सर्पीली रानी की बातों से डरा नहीं और अपने सैनिकों के साथ उस पर हमला कर दिया लेकिन सर्पीली रानी बहुत ताकतवर थी उसने बुझक्कड बौने को अपनी पूंछ से दूर उछाल दिया और बौने सैनिकों को निगल गई, फिर भी बुझक्कड़ बौने ने हार नहीं मानी फिर से तलवार लेकर सर्पीली की ऊपर हमला कर दिया लेकिन इस बार बुझक्कड़ बौना,सर्पीली रानी के वार से बच ना सका और अपनी जान से हाथ गंवा बैठा।।
बकबक बौने को इस बात का पता चला और वो सर्पीली रानी से बदला लेने चल पड़ा और अकेले ही रात के वक्त सर्पीली रानी से भिड़ गया,सर्पीली रानी की आंखों में बहुत सी धूल झोंक कर उसे घायल कर दिया लेकिन इस लड़ाई में बकबक बौने को अपनी एक आंख गंवानी पड़ी,इसकी वजह से बकबक बौने को अपना बदला अधूरा छोड़ कर ही लौटना पड़ा,उस दिन के बाद सारे बौने छुपकर रहने लगे और बकबक बौना अपनी सेना तैयार करने में जुटा है ताकि वो अपने पिता का बदला ले सकें,उस समय मैंने बकबक बौने से कहा था कि मैं तुम्हारी सहायता करूं लेकिन उसने ये कहकर मना कर दिया कि ये मेरी समस्या है और मैं ही समाधान करूंगा, शाकंभरी बोली।।तब अघोरनाथ बोले,इसका मतलब हमें अब ज्यादा देर नहीं करनी चाहिए,बकबक बौने को ढूंढकर जल्द ही उड़ने वाले घोड़े को लाना होगा।।
सबने कहा सही बात है और शाकंभरी से विदा मांगकर वो सब दक्षिण दिशा की ओर बकबक करते को ढूंढने चल पड़े।।
दो रात और दो दिन के लम्बे समय के बाद वो सब उस जंगल में पहुंचे जहां बकबक बौना रहता था ।।
 

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भाग (११)

शाकंभरी पेड़ के मोटे तने से जैसे ही बाहर निकली,इतने घुप्प अंधेरे में जंगल में रोशनी ही रोशनी फैल गई,उस नजारे को देखकर ऐसा लग रहा था कि हजारों-करोड़ो जुगनू जगमगा रहे हो।।
रोशनी को देखकर सबकी आंखें चौंधिया रही थीं, शाकंभरी की रोशनी से सारा जंगल जगमगा रहा था, थोड़ी देर में शाकंभरी ने खुद को एक लबादे से ढक लिया, ताकि उसकी रोशनी छिप जाए,अब केवल उसका चेहरा ही दिख रहा था।।
फिर बोली, मेरे पंख शंखनाद ने चुरा लिए है इसलिए मैं आपकी मदद नहीं कर सकतीं, क्योंकि मेरी सारी शक्तियां उन्हीं पंखों में है और उन पंखों की मदद के बिना मैं उड़ नहीं सकती, किसी का जादू नहीं तोड़ सकती, मैं आपलोगों की सहायता तभी कर पाऊंगी जब मैं उन सब का जादू तोड़ सकूं और इसके लिए मुझे कुछ ऐसी वस्तु चाहिए जिसकी सहायता से मैं उड़ सकूं।।
हां,हमें क्या करना होगा,हम आपकी सहायता के लिए तैयार है,मानिक चंद बोला।।
इसके लिए आप सबको एक कार्य करना होगा यहां से दक्षिण दिशा की ओर मेरा बहुत पुराना मित्र बकबक बौना रहता है उसके पास एक उड़ने वाला घोड़ा है जिस की सहायता से मैं तुम लोगों की मदद कर सकतीं हूं।।
परन्तु बकबक बौने को ढूंढना बहुत ही मुश्किल है, चूंकि वो बहुत ही छोटा है, इसलिए ना जाने कहां बिल बनाकर रह रहा होगा और अपने घोड़े को एक ताबीज में बदल कर हमेशा अपने गले में पहने रहता है, बहुत समय से मैं उससे नहीं मिली,अगर उसे इन सबकी सूचना मिल गई होती तो वो अवश्य ही अभी तक मेरी सहायता के लिए आ पहुंचता।।
परन्तु,हम किस तरह पहचान करेंगे कि वो ही बकबक बौना है,हो सकता है कि वहां और भी बौने रहते हो, सुवर्ण ने शाकंभरी से कहा।।
हां, राजकुमार सुवर्ण आप ठीक कह रहे हैं वो बौनो की ही बस्ती है, वहां बौने ही बौने बड़े बड़े पेड़ों के तनों के अंदर अपनी अपनी बस्तियां बनाकर रहते हैं और जरूरतमंदों की सहायता भी करते हैं, शाकंभरी बोली।।बकबक बौने का भी तो अपना परिवार होगा,जिनके साथ वो रहता होगा,मानिक चंद ने शाकंभरी से पूछा।
हां,था उसका भी एक परिवार था लेकिन अब नहीं रहा,इसके पीछे भी एक लम्बी कहानी है, शाकंभरी ने दुखी होकर कहा।।
लेकिन ऐसा भी क्या हुआ था, बेचारे बकबक बौने के साथ कि उसे अपना परिवार खोना पड़ा,नीलाम्बरा ने शाकंभरी से पूछा।।
तब शाकंभरी ने बकबक बौने की कहानी सुनानी शुरू की।।
बहुत समय पहले उसी जंगल में बुझक्कड़ बौना अपने परिवार के साथ रहता था,वो उस समय वहां का राजा था, तभी एक दिन कुछ बौने बुझक्कड़ बौने के पास फरियाद लेकर आए कि काले पहाड़ पर सर्पीली रानी रहती है जिसका चेहरा औरत जैसा और शरीर सांप जैसा है, उसने ना जाने कितने सांप पाल रखे थे,जिस भी बौने को वो देख लेती उसे तुरन्त ही अपने पाले हुए सांपों से निगलने के लिए कहती हैं फिर राक्षसी हंसी हंसकर आनन्द उठाती।।
ये सुनकर बुझक्कड़ बौने ने कहा कि तुम लोग काले पहाड़ पर जाना क्यो नही छोड़ देते।।
तब दूसरे बौने बोले,हम सब वहां नहीं जाते लेकिन सर्पीली रानी ने अपने सांपों को हमारे रहने के स्थान पर छोड़ दिया और वो सांप हर दिन किसी ना किसी बौने को निगल जाते हैं,आप जाकर सर्पीली रानी से कहें कि वो अपने सांपों को बुला ले।।
ठीक है, मैं आज ही कुछ लोगों को लेकर सर्पीली रानी के पास जाता ,बुझक्कड़ बौने ने कहा।।
ऐसा कहकर बुझक्कड़ बौना कुछ सैनिक बौने के साथ सर्पीली रानी के पास चल पड़ा।।
सर्पीली रानी के पास पहुंचते ही बुझक्कड़ बौने ने सर्पीली रानी से विनती की ,कि कृपया आप अपने सांपों को बौनों के जंगल से बुला लीजिए,आपके सांपों ने जंगल में तबाही मचा रखी है,हर रोज कई बौनो को निगल जाते हैं।।
लेकिन,सर्पीली रानी ,बुझक्कड़ बौने की बात सुनकर क्रोधित हो उठी और उसने कहा, यहां से चले जाओ नहीं तो मैं भी तुझे निगल जाऊंगी।।
लेकिन बुझक्कड़ बौना,सर्पीली रानी की बातों से डरा नहीं और अपने सैनिकों के साथ उस पर हमला कर दिया लेकिन सर्पीली रानी बहुत ताकतवर थी उसने बुझक्कड बौने को अपनी पूंछ से दूर उछाल दिया और बौने सैनिकों को निगल गई, फिर भी बुझक्कड़ बौने ने हार नहीं मानी फिर से तलवार लेकर सर्पीली की ऊपर हमला कर दिया लेकिन इस बार बुझक्कड़ बौना,सर्पीली रानी के वार से बच ना सका और अपनी जान से हाथ गंवा बैठा।।
बकबक बौने को इस बात का पता चला और वो सर्पीली रानी से बदला लेने चल पड़ा और अकेले ही रात के वक्त सर्पीली रानी से भिड़ गया,सर्पीली रानी की आंखों में बहुत सी धूल झोंक कर उसे घायल कर दिया लेकिन इस लड़ाई में बकबक बौने को अपनी एक आंख गंवानी पड़ी,इसकी वजह से बकबक बौने को अपना बदला अधूरा छोड़ कर ही लौटना पड़ा,उस दिन के बाद सारे बौने छुपकर रहने लगे और बकबक बौना अपनी सेना तैयार करने में जुटा है ताकि वो अपने पिता का बदला ले सकें,उस समय मैंने बकबक बौने से कहा था कि मैं तुम्हारी सहायता करूं लेकिन उसने ये कहकर मना कर दिया कि ये मेरी समस्या है और मैं ही समाधान करूंगा, शाकंभरी बोली।।तब अघोरनाथ बोले,इसका मतलब हमें अब ज्यादा देर नहीं करनी चाहिए,बकबक बौने को ढूंढकर जल्द ही उड़ने वाले घोड़े को लाना होगा।।
सबने कहा सही बात है और शाकंभरी से विदा मांगकर वो सब दक्षिण दिशा की ओर बकबक करते को ढूंढने चल पड़े।।
दो रात और दो दिन के लम्बे समय के बाद वो सब उस जंगल में पहुंचे जहां बकबक बौना रहता था ।।
Very nice update bhai maza aa gya ab dekhte hai ki aage kya hota hai
 
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भाग (१०)

अघोरनाथ जी बोले___
अभी तो हम सब एक सुरक्षित स्थान ढूंढते हैं, रात्रि भी गहराने वाली, कुछ खाने पीने का प्रबन्ध करते हैं, इसके उपरांत विश्राम करके प्रात: सोचेंगे कि क्या करना है।।
तभी,मानिक चंद भी बोला__
आपका कहना उचित है बाबा!! चलिए सर्वप्रथम कोई झरना देखते हैं,इसके उपरांत वहीं अग्नि जलाकर विश्राम करेंगे।।
सब ने एक झरना ढूंढा और वहां अग्नि जलाकर खाने पीने का प्रबन्ध किया,इसके उपरांत सब खा पीकर विश्राम करने लगे।।
आधी रात होने को आई थीं,सब थके हुए थे इसलिए शीघ्र ही गहरी निद्रा में लीन हो गए।।
तीसरा पहर होने को था, तभी अघोरनाथ को किसी की पुकार सुनाई दी, उनकी आंख खुली, कुछ देर तक वो सुनते रहे परंतु कोई भी ध्वनि , कोई भी स्वर सुनाई नहीं दिया,तब उन्होंने सोचा कदाचित् कोई वनीय जीव होगा, अधिकांशतः जानवर रात को रोते हैं, उन्होंने फिर अपने हाथ को सर के नीचे रखा और सो गए, परंतु कुछ समय उपरांत वो स्वर फिर सुनाई दिया।।
अब अघोरनाथ जी को लगा,हो ना हो कोई ना कोई बात जरूर है , सावधान हो जाना चाहिए, ऐसा ना हो कि चित्रलेखा और शंखनाद का कोई षणयन्त्र हो,उसी समय उन्होंने सब को जगाया और उस स्वर को सुनने के लिए कहा।।
सबने अपना ध्यान लगाकर उस स्वर को सुनने का प्रयास किया, सभी को वो बीभत्स सा स्वर सुनाई दिया,सब बहुत भयभीत भी हो चुके थे।।
अघोरनाथ जी बोले,हम ऐसे हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकते,हो सकता वहां कोई विपत्ति में हो और हमें सहायता के लिए पुकार रहा हो परन्तु ये भी संदेह हो रहा है कि चित्रलेखा और शंखनाद का कोई षणयन्त्र ना हो,ये सब मेरी समझ से परे हैं।।
तभी सुवर्ण बोला__
बाबा!! आप सब यहां ठहरे, पहले मैं जाता हूं,अगर मैं कुछ समय तक ना लौटा तो आप सब भी आ जाना क्योंकि मुझे थोड़ा बहुत तो जादू आता है।।
अघोरनाथ बोले, हां !! यही उचित रहेगा।।
परंतु हम सब भी तुमसे अत्यधिक दूरी पर नहीं रहेंगे,हम भी साथ साथ ही रहेंगे परन्तु कुछ ही दूरी पर।।
सबने कहा, हां यही उचित रहेगा।।
और सब उस अंधेरी रात में उस ध्वनि की दिशा में चल पड़े।।
अत्यधिक निकट जाने पर सुवर्ण सावधान होकर उस स्थान पर पहुंच गया, उसने डरते हुए पूछा__
कौन है?..कौन है?... यहां पर,किसका स्वर हैं जो इतना पीड़ादायक हैं।।
तभी उधर से स्वर आया___
ये बताओ कि तुम कौन हो, मैं सब समझती हूं शंखनाद!! ये पुनः तुम्हारा कोई ना कोई षणयन्त्र है, परन्तु अब मेरे पास कुछ भी नहीं रह गया है,सब तो पहले ही ले जा चुके हो।।
परन्तु मैं शंखनाद नहीं हूं, मैं नीलगिरी राज्य का छोटा राजकुमार सुवर्ण हूं, कृपया आप चिंतित ना हों, मुझे अपनी समस्या बताएं, संभव हो सका तो मैं आपकी सहायता अवश्य करूंगा, मुझ पर विश्वास रखें, सुवर्ण बोला।।
परन्तु, मैं कैसे तुम पर विश्वास करूं,हो सकता है तुम कोई मायावी हो,हो सकता है तुम्हें शंखनाद ने भेजा हो,उधर से स्वर आया।।
तब तक अघोरनाथ और सब भी वहां पहुंच चुके थे, तभी अघोरनाथ बोले___
आप चिंतित ना हो, मैं अघोरनाथ हूं,आप अपनी समस्या मुझसे कहें ताकि मैं कोई समाधान कर सकूं।।
परन्तु मैं आप सब पर कैसे विश्वास करूं,उस स्वर ने कहा।।
हमने भी तो आपकी बातों पर विश्वास कर लिया ना, सुवर्ण ने कहा।।
अच्छा तो सुनिए मेरी कहानी___
उस स्वर ने कहना प्रारम्भ किया___
मैं इस वन की देवी हूं,मेरा नाम शाकंभरी है, मेरे पिताश्री इस वन के राजा थे,उनका नाम वेदांत था,वे इस वन की रक्षा किया करते, उनके पास बहुत सी शक्तियां थीं, उन्होंने बचपन से ही अपनी शक्तियां और ज्ञान मुझे देना शुरू कर दिया था।
यौवनकाल तक मुझमें बहुत सी शक्तियां आ गई, मैं इतनी शक्तिशाली थीं कि अपनी शक्तियों से अपने पंख भी प्राप्त कर लिए,जिनकी सहायता से उड़कर मैं किसी की भी सहायता करने वन में कहीं भी शीघ्र पहुंच सकती थीं।।
फिर पिताश्री ने घोषणा की कि वो मुझे इस वन की देवी। बनाना चाहते हैं और उन्होंने अपनी सारी शक्तियां मेरे पंखों में दे दीं जिससे मैं और भी शक्तिशाली हो गई,तब पिताश्री ने मुझे इस वन की देवी घोषित कर दिया।।
इस बात की सूचना शंखनाद को हो गई और वो एक लकड़हारे का रूप धर इस वन में रहने लगा और मेरे सारे क्रियाकलापों पर ध्यान देने लगा,उसे पता चल गया कि मेरे पास बहुत ही शक्तिशाली मायावी पंख हैं जिनका उपयोग में किसी भी असहाय की सहायता करने में करतीं हूं।
और इसी बात का उसने लाभ उठाया, उसने मेरे सामने अच्छा बनने का अभिनय किया और अपने मोहपाश में मुझे बांध लिया और मैं उसके प्रेम में पागल होकर अपने पिता के भी विरूद्ध हो गई,एक दिन शंखनाद ने मेरे पिता श्री को असहाय जानकर उनकी हत्या कर दी, उनकामृत शरीर मुझे वन में पड़ा हुआ मिला, तभी एक तोते ने मुझे सारी सच्चाई बताई जो कि मेरे पिताश्री का पालतू था,उस दिन मुझे शंखनाद की सच्चाई का पता लगा।‌
और एक रात मैंने शंखनाद से इस विषय में पूछा,तब उसने रोते हुए अपनी भूलों की क्षमा मांग ली,मेरा हृदय भी पसीज गया और मैंने उसे प्रेम के वशीभूत होकर उसे क्षमा कर दिया।।
परन्तु, मैं उस रात उसका षणयन्त्र समझ ना सकीं, उसने उस रात चित्रलेखा को जादू करने को बुला लिया था,वो यहां आकर वन के जीवों और पेड़ पौधों को हानि पहुंचाने लगी,तब शंखनाद ने कहा__
शाकंभरी!! अपने पंखों का उपयोग करों।
मैंने अपने पंख प्रकट कर उन सब जीवों की रक्षा करने लगी, मैं तो चित्रलेखा का जादू तोड़ने में ध्यानमग्न थी तभी शंखनाद ने अपनी पेड़ काटने वाली कुल्हाड़ी से मेरे पंख काटकर अपने साथ ले गया,उन पंखों के साथ मेरी सारी शक्तियां भी चली गई और इस वन की सुंदरता भी चली गई,उस रात से मैं आज तक रात को अपने पीड़ा से कराह उठती हूं,रात को रहकर रहकर पीड़ा उठती है, मैं अपनी शक्तियों के बिना असहाय हूं, मुझे मेरे पंख चाहिए।।
मेरा जीवन,मेरी सारी शक्तियां उन्हीं पंखों में है,तबसे शंखनाद और चित्रलेखा ने इस वन को नर्क बना दिया है,इस वन की सुंदरता नष्ट हो गई है, मैं इस वन की देवी हूं और मैं किसी की भी सहायता नहीं कर सकती, मुझे ये बात बहुत ही पीड़ा देती है।।
हे,वनदेवी !! कृपया आप इतनी दुखी ना हो,हम सब अवश्य आपकी सहायता करेंगे, परन्तु आपको भी हमारी सहायता करनी होगी की हम किस प्रकार उन दोनों से जीत सकते हैं कुछ तो ऐसा होगा, जो उन्हें भी भयभीत करता होगा, अघोरनाथ जी बोले।।
हां.. हां..क्यो नही, मुझे जो भी जानकारी उन लोगों के विषय में है वो मैं आप लोगों को अवश्य बताऊंगी, शाकंभरी बोली।।
लेकिन आप इतने अंधेरे में क्यो है?इस बड़े से वृक्ष के तने के भीतर क्यो बैठी है, कृपया बाहर आएं,हम सब आपको कोई भी हानि नहीं पहुंचाएंगे, सुवर्ण बोला।।
और इतना सुनकर शाकंभरी वृक्ष के तने से बाहर आई।।
nice update ..
 
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भाग (११)

शाकंभरी पेड़ के मोटे तने से जैसे ही बाहर निकली,इतने घुप्प अंधेरे में जंगल में रोशनी ही रोशनी फैल गई,उस नजारे को देखकर ऐसा लग रहा था कि हजारों-करोड़ो जुगनू जगमगा रहे हो।।
रोशनी को देखकर सबकी आंखें चौंधिया रही थीं, शाकंभरी की रोशनी से सारा जंगल जगमगा रहा था, थोड़ी देर में शाकंभरी ने खुद को एक लबादे से ढक लिया, ताकि उसकी रोशनी छिप जाए,अब केवल उसका चेहरा ही दिख रहा था।।
फिर बोली, मेरे पंख शंखनाद ने चुरा लिए है इसलिए मैं आपकी मदद नहीं कर सकतीं, क्योंकि मेरी सारी शक्तियां उन्हीं पंखों में है और उन पंखों की मदद के बिना मैं उड़ नहीं सकती, किसी का जादू नहीं तोड़ सकती, मैं आपलोगों की सहायता तभी कर पाऊंगी जब मैं उन सब का जादू तोड़ सकूं और इसके लिए मुझे कुछ ऐसी वस्तु चाहिए जिसकी सहायता से मैं उड़ सकूं।।
हां,हमें क्या करना होगा,हम आपकी सहायता के लिए तैयार है,मानिक चंद बोला।।
इसके लिए आप सबको एक कार्य करना होगा यहां से दक्षिण दिशा की ओर मेरा बहुत पुराना मित्र बकबक बौना रहता है उसके पास एक उड़ने वाला घोड़ा है जिस की सहायता से मैं तुम लोगों की मदद कर सकतीं हूं।।
परन्तु बकबक बौने को ढूंढना बहुत ही मुश्किल है, चूंकि वो बहुत ही छोटा है, इसलिए ना जाने कहां बिल बनाकर रह रहा होगा और अपने घोड़े को एक ताबीज में बदल कर हमेशा अपने गले में पहने रहता है, बहुत समय से मैं उससे नहीं मिली,अगर उसे इन सबकी सूचना मिल गई होती तो वो अवश्य ही अभी तक मेरी सहायता के लिए आ पहुंचता।।
परन्तु,हम किस तरह पहचान करेंगे कि वो ही बकबक बौना है,हो सकता है कि वहां और भी बौने रहते हो, सुवर्ण ने शाकंभरी से कहा।।
हां, राजकुमार सुवर्ण आप ठीक कह रहे हैं वो बौनो की ही बस्ती है, वहां बौने ही बौने बड़े बड़े पेड़ों के तनों के अंदर अपनी अपनी बस्तियां बनाकर रहते हैं और जरूरतमंदों की सहायता भी करते हैं, शाकंभरी बोली।।बकबक बौने का भी तो अपना परिवार होगा,जिनके साथ वो रहता होगा,मानिक चंद ने शाकंभरी से पूछा।
हां,था उसका भी एक परिवार था लेकिन अब नहीं रहा,इसके पीछे भी एक लम्बी कहानी है, शाकंभरी ने दुखी होकर कहा।।
लेकिन ऐसा भी क्या हुआ था, बेचारे बकबक बौने के साथ कि उसे अपना परिवार खोना पड़ा,नीलाम्बरा ने शाकंभरी से पूछा।।
तब शाकंभरी ने बकबक बौने की कहानी सुनानी शुरू की।।
बहुत समय पहले उसी जंगल में बुझक्कड़ बौना अपने परिवार के साथ रहता था,वो उस समय वहां का राजा था, तभी एक दिन कुछ बौने बुझक्कड़ बौने के पास फरियाद लेकर आए कि काले पहाड़ पर सर्पीली रानी रहती है जिसका चेहरा औरत जैसा और शरीर सांप जैसा है, उसने ना जाने कितने सांप पाल रखे थे,जिस भी बौने को वो देख लेती उसे तुरन्त ही अपने पाले हुए सांपों से निगलने के लिए कहती हैं फिर राक्षसी हंसी हंसकर आनन्द उठाती।।
ये सुनकर बुझक्कड़ बौने ने कहा कि तुम लोग काले पहाड़ पर जाना क्यो नही छोड़ देते।।
तब दूसरे बौने बोले,हम सब वहां नहीं जाते लेकिन सर्पीली रानी ने अपने सांपों को हमारे रहने के स्थान पर छोड़ दिया और वो सांप हर दिन किसी ना किसी बौने को निगल जाते हैं,आप जाकर सर्पीली रानी से कहें कि वो अपने सांपों को बुला ले।।
ठीक है, मैं आज ही कुछ लोगों को लेकर सर्पीली रानी के पास जाता ,बुझक्कड़ बौने ने कहा।।
ऐसा कहकर बुझक्कड़ बौना कुछ सैनिक बौने के साथ सर्पीली रानी के पास चल पड़ा।।
सर्पीली रानी के पास पहुंचते ही बुझक्कड़ बौने ने सर्पीली रानी से विनती की ,कि कृपया आप अपने सांपों को बौनों के जंगल से बुला लीजिए,आपके सांपों ने जंगल में तबाही मचा रखी है,हर रोज कई बौनो को निगल जाते हैं।।
लेकिन,सर्पीली रानी ,बुझक्कड़ बौने की बात सुनकर क्रोधित हो उठी और उसने कहा, यहां से चले जाओ नहीं तो मैं भी तुझे निगल जाऊंगी।।
लेकिन बुझक्कड़ बौना,सर्पीली रानी की बातों से डरा नहीं और अपने सैनिकों के साथ उस पर हमला कर दिया लेकिन सर्पीली रानी बहुत ताकतवर थी उसने बुझक्कड बौने को अपनी पूंछ से दूर उछाल दिया और बौने सैनिकों को निगल गई, फिर भी बुझक्कड़ बौने ने हार नहीं मानी फिर से तलवार लेकर सर्पीली की ऊपर हमला कर दिया लेकिन इस बार बुझक्कड़ बौना,सर्पीली रानी के वार से बच ना सका और अपनी जान से हाथ गंवा बैठा।।
बकबक बौने को इस बात का पता चला और वो सर्पीली रानी से बदला लेने चल पड़ा और अकेले ही रात के वक्त सर्पीली रानी से भिड़ गया,सर्पीली रानी की आंखों में बहुत सी धूल झोंक कर उसे घायल कर दिया लेकिन इस लड़ाई में बकबक बौने को अपनी एक आंख गंवानी पड़ी,इसकी वजह से बकबक बौने को अपना बदला अधूरा छोड़ कर ही लौटना पड़ा,उस दिन के बाद सारे बौने छुपकर रहने लगे और बकबक बौना अपनी सेना तैयार करने में जुटा है ताकि वो अपने पिता का बदला ले सकें,उस समय मैंने बकबक बौने से कहा था कि मैं तुम्हारी सहायता करूं लेकिन उसने ये कहकर मना कर दिया कि ये मेरी समस्या है और मैं ही समाधान करूंगा, शाकंभरी बोली।।तब अघोरनाथ बोले,इसका मतलब हमें अब ज्यादा देर नहीं करनी चाहिए,बकबक बौने को ढूंढकर जल्द ही उड़ने वाले घोड़े को लाना होगा।।
सबने कहा सही बात है और शाकंभरी से विदा मांगकर वो सब दक्षिण दिशा की ओर बकबक करते को ढूंढने चल पड़े।।
दो रात और दो दिन के लम्बे समय के बाद वो सब उस जंगल में पहुंचे जहां बकबक बौना रहता था ।।
nice update .van devi ki kahani suni sabne aur ab bakbak baune ki kahani bhi batayi sabko vandevi ne .
 

Hero tera

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Bhaiyo phone hang ho raha hai mere paas etne paisa nahi hai ke new phone le lun kehte hain dard baatne se kam ho jata hai isliye emotional ho ke likh diya
 
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