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very nice update bhaiभाग(१८)
घगअनंग जी के निवास स्थान पर सभी रात्रि को विश्राम करने लगें, तब घग अनंग जी बोले_____
मैं अब आप सब को शंखनाद के सभी रहस्यों से अवगत करवाता हूँ!!
जी,हम सब यही ज्ञात करना चाहते थे,आपका बहुत बहुत आभार रहेगा हम सब पर क्योंकि वनदेवी शाकंभरी की स्थिति बहुत ही दयनीय थी,जितने शीघ्र हमें शंखनाद के रहस्य ज्ञात होगें, उतने ही शीघ्रता से हम उनकी सहायता कर पाएंगे एवं हम जितने भी सदस्य हैं उनमें से सभी को शंखनाद ने कष्ट पहुँचाया हैं,अघोरनाथ जी बोले।।
जी,अब उस शंखनाद की मृत्यु निश्चित हैं, जो रहस्य मुझे ज्ञात हैं,मैं आपको बता देता हूँ और कुछ रहस्य आपको हमारा गुप्तचर उड़नछू बताएगा, तभी ज्ञात हो सकेगा कि उसे शंखनाद के किन किन रहस्यों के विषय में ज्ञात हैं,घगअनंग जी बोले।।
जी,कुछ तो मुझे भी ज्ञात हैं क्योंकि मै चित्रलेखा के निवास स्थान पर रह चुका हूँ, परन्तु आश्चर्य की बात है कि उसने मुझे कोई भी हानि नहीं पहुँचाई,मानिक चंद बोला।।
किन्तु, आप वहां रहकर क्या क्या ज्ञात कर पाएं, घगअनंग जी ने पूछा।।
यहीं कि चित्रलेखा के प्राण किसी बक्से मे गिरगिट के रूप में बंद हैं और वो बक्सा उसने तलघर मे कहीं छिपा रखा हैं और ये तो सबको ज्ञात हैं कि शंखनाद मानवों के हृदय से बना एक तरल पदार्थ बनाता हैं जिसे पीकर मृत्यु उसके निकट नहीं आती और सुंदर कन्याओं की त्वचा से बना एक प्रकार का पदार्थ बनाता हैं जो वो अपनी त्वचा पर लगाता हैं जिससे वो वृद्धावस्था मे नहीं पहुंच रहा हैं,मानिक चंद बोला।।
परन्तु ये अभी तक किसी को ज्ञात नहीं है कि शंखनाद के प्राणों को उसने किस स्थान और किसके भीतर सुरक्षित कर रखा हैं? घगअनंग जी बोले।।
ये तो सत्य हैं, परन्तु ज्ञात कैसे किया जाए? अघोरनाथ जी बोले।।
मै अभी अपने गुप्तचर उड़नछू को किसी सैनिक द्वारा बुलवाता हूँ, वो सच्चाई बता सकता हैं, अपने निवास स्थान मे विश्राम कर रहा होगा, घगअनंग जी बोले।।
और घगअनंग जी ने अपने एक सैनिक को भेजकर उड़नछू को बुलवा भेजा, उड़नछू बहुत ही गहरी निद्रा मे था और उसे अभी भी निद्रा ने घेर रखा था,घगअनंग जी के आदेश पर उसे विवशता वश आना पड़ा,उसनें सर्वप्रथम घगअनंग जी को प्रणाम किया और शीघ्र बुलवाने का कारण पूछा___
लगता हैं, उड़नछू,अभी निद्रा रानी ने तुम्हें घेर रखा हैं, घगअनंग जी ने पूछा।।
हां,महाराज! अभी मेरा विश्राम पूर्ण ही कहाँ हुआ हैं, इतने दिनों के उपरांत लौटा था कि कुछ क्षण विश्राम करूँगा, परन्तु आपने विश्राम ही कहाँ करने दिया,उड़नछू ने घगअनंग जी से कहा।।
इन सबके के लिए अब एक पल का भी बिलम्ब करना उचित नहीं हैं,उधर वनदेवी शाकंभरी संकट में हैं, कदाचित् तुम इन्हें शंखनाद के सभी रहस्य बता दो तो प्रातःकाल ही शाकंभरी की सहायता हेतु निकल पड़ेगे, घगअनंग जी ने उड़नछू से कहा।।
जी महाराज, शंखनाद बहुत ही धूर्त और पाखंडी हैं,ये तो मुझे भी ज्ञात हो चुका हैं कि वनदेवी शाकंभरी के जादुई पंखो को शंखनाद ने एक विशाल बरगद के वृक्ष के तने मे एक बक्से के भीतर छुपा रखा हैं और उस वृक्ष को जादुई बाधाओं द्वारा बांध रखा हैं,उस बांधा को तो कोई जादूगर ही तोड़ सकता हैं, उड़नछू बोला।।
थोड़ा बहुत जादू तो मुझे भी आता हैं, मैं भी कुछ दिन रहा था शंखनाद के साथ,तभी सीखा हैं लेकिन शंखनाद जितना श्रेष्ठ नहीं हूँ, राजकुमार सुवर्ण बोला।।
परन्तु उसने अपने प्राणों को किस स्थान और किसके अंदर छुपा रखा हैं, बकबक ने पूछा।।
तो सुनिए, जहाँ उसका निवास स्थान हैं, वहाँ एक जलाशय हैं, उस जलाशय के बीचोंबीच एक स्त्री की मूर्ति हैं और उस स्त्री के हाथों में एक पत्थर का उल्लू हैं उस उल्लू के भीतर ही शंखनाद के प्राण हैं, उड़नछू बोला।।
तो ये तो बहुत ही सरल हुआ,जो अच्छा तैराक होगा वो इस कार्य मे सफल होगा, राजकुमार विक्रम बोला।।
इतना भी सरल नहीं हैं, उस जलाशय में ना जाने कितने प्रकार की बाधाएं डाल रखीं हैं शंखनाद, जादू और तंत्र विद्या दोनों प्रयोग किया गया हैं इस कार्य में,उड़नछू बोला।।
तंत्र विद्या मे तो बाबा जैसा कोई नहीं और थोड़ा बहुत जादू तो मैं कर ही लूँगा परन्तु फिर भी शंखनाद से जीतने के लिए, इतनी शक्तियां और कहाँ से आएंगी,राजकुमार सुवर्ण बोला।।
एक उपाय और हैं,उड़नछू बोला।।
वो क्या? बकबक ने पूछा।।वो ये कि जलाशय के निकट ही शंखनाद के माता पिता की समाधियां बनी हैं और शंखनाद कभी भी उन्हें नहीं छूता, क्योंकि शंखनाद के माता पिता बहुत ही सात्विक विचारों के थे,उन्हें शंखनाद के ये सब कार्य पसंद नहीं थे इसलिए,वो उन समाधियों को नहीं छू सकता और अगर कभी भूलवश छू लिया तो भस्म हो जाएगा, उड़नछू बोला।।
ये तो बहुत अच्छी बात बताई,अघोरनाथ जी बोले।।
हां,बस मुझे इतना ही ज्ञात है महाराज, अब मैं विश्राम करने जाऊँ और मैं सोच रहा था कि मैं भी इनके साथ चला ही जाता हूँ, मेरे इन सब के साथ जाने से इनका कार्य थोड़ा सरल हो जाएगा, उड़नछू बोला।।
हां..हां. क्यों नहीं, उड़नछू, तुमने तो मेरे मन की बात कह दी,घगअनंग जी बोले।।
तो फिर सब अब विश्राम करते हैं,कल बहुत मेहनत करनीं हैं,मानिक चंद बोला।।
और सब विश्राम करने लगें, प्रातःकाल पंक्षियों के कलरव से सब जाग उठे और स्नान ध्यान करके गंन्तव्य की ओर निकल पड़े।।
उड़नछू बोला, बाबा! क्या हम छोटे मार्ग से चलें जिससे हम शीघ्रता से शाकंभरी वनदेवी के पास पहुंच सकते हैं।।
जैसा तुम्हें उचित लगें, उड़नछू, हम सब को तो वहीं बड़ा मार्ग ज्ञात हैं जहां से हम आए थें।।
परन्तु उस मार्ग में दो बाधाएँ हैं, उड़नछू बोला।।
वो क्या हैं?बकबक ने पूछा।।
रास्ते में एक जादुई बोलने वाला वृक्ष मिलेगा जिसके आंखें भी हैं और मुंह भी और वो हमसे पूछेगा कि कहाँ जाना हैं? तो हम सब को एक साथ उत्तर देना हैं कि शाकंभरी के पास नहीं जाना और कहीं भी चले जाएंगें, उड़नछू बोला।।
ये कैसा उत्तर हुआ भला! नीलकमल ने पूछा।।
क्योंकि वो वृक्ष हम से कहेगा, नहीं तुम्हें तो शाकंभरी के पास ही जाना होगा और अपनी शाखा से एक एक पत्ते हम सब को देंगा जिसे हमें आगें मिलने वाली चुडै़ल को देने हैं, वो उन जादुई पत्तो का उपयोग अपना जादुई काढ़ा बनाने में करती है, जिससे वो खुश हो जाएगी और हमेँ आगे जाने देगीं, उड़न छू बोला।।
अच्छा तो ये बात हैं, बकबक बोला।।
और सब आगे बढ़ चलें,चलते चलते उन्हें वहीं चेहरे वाला वृक्ष मिला।।
उस पेड़ ने कहा,ठहरो!!
तब उड़नछू ने अभिनय करते हुए कहा,कौन..कौन हैं वहाँ?
मैं...मैं हूँ यहाँ.. उस वृक्ष ने उत्तर दिया।।
मैं कौन? उड़नछू ने पुनः पूछा।।
मै जादुई वृक्ष,कहाँ जा रहे हो तुम लोग,?उस वृक्ष ने पूछा।।
हम लोग शाकंभरी वनदेवी से मिलने नहीं जाना चाहते,सबने एक साथ उत्तर दिया।।
लेकिन तुम लोगों को जाना पड़ेगा,ये मेरी आज्ञा हैं और ये रहेंं, मेरी शाखाओं के पत्ते,उस मार्ग पर तुम्हें एक चुडै़ल मिलेगी, ये पत्ते उसी को दे देना,उस वृक्ष ने कहा।।
सबने एक एक पत्ता उठा लिया और जादुई वृक्ष को धन्यवाद देकर आगें बढ़ चले।।
आगे जाकर मार्ग में उन्हें वहीं चुड़ैल काढ़ा बनाते हुए दिखी।।
उसने भी पूछा, तुम सब कहाँ जा रहे हो।।
उड़नछू ने कहा,हम वनदेवी शाकंभरी के पास जा रहे हैं,हमें कृपया जाने दे।।
ठीक है जाओ,मैने कब रोका हैं, बस तुम लोग मुझे वो पत्ते देदो,जो तुम्हें जादुई वृक्ष ने दिए हैं।।
सबने अपने अपने पत्ते उस चुडै़ल को दे दिए,चुडै़ल बहुत प्रसन्न हुई और सबको जाने दिया।।
कुछ समय तक उस मार्ग पर चलने के पश्चात् वो सब शाकंभरी वनदेवी के समीप पहुंच गए, शाकंभरी ने जैसे ही बकबक को देखा अत्यधिक प्रसन्न हुई।।
अच्छा नहीं किया आपने,शाकंभरी, आप इतने कष्ट में थीं और मुझे सूचित भी नहीं किया, बकबक ने शाकंभरी से शिकायत करते हुए कहा।।
मेरे निकट कोई भी नहीं था जिससे मैं तुम तक सूचना पहुंचा कर सहायता मांग लेतीं, ये सब आए इन्होंने मेरी ब्यथा सुनी,तब मैने इन्हें सब बताया।।
तो ये लो उड़ने वाले घोड़े का ताबीज इसे इसी क्षण पहन लो और तुम कहो तो आज रात्रि मे ही शंखनाद पर आक्रमण कर देते हैं, बकबक ने कहा।।
परन्तु क्या रात्रि का समय आक्रमण के लिए उचित रहेगा? राजकुमार विक्रम ने पूछा।।
हां..हां क्यों नहीं, अघोरनाथ जी बोल।।
परन्तु, अभी आप लोग बहुत थक चुके हैं, कुछ क्षण विश्राम करें,अर्धरात्रि के समय हम ये कार्य प्रारम्भ करेगें, शाकंभरी वनदेवी बोली।।
Very nice update bhaiभाग(१९)
शाकंभरी की बात सुनकर सब विश्राम करने लगें और अर्धरात्रि के समय सब जाग उठे,जिससे जो बन पड़ा वैसे अस्त्र शस्त्र लेकर शंखनाद से प्रतिशोध लेने निकल पड़े,वनदेवी शाकंभरी उड़ने वाले घोड़े पर सवार हो गई अब उसने अपने लबादे को हटा दिया था,लबादा हटाते ही उसके शरीर से आते हुए प्रकाश ने सारे वन को जगमगा दिया।।
तभी अघोरनाथ जी बोले,पहले हम ये तो तय करें कि कौन कौन कहाँ कहाँ प्रवेश करेगा, इसके लिए हमे एक रणनीति बनानी होगी,मैं सोच रहा हूँ कि सर्वप्रथम हमें चित्रलेखा के निवास स्थान जाकर चित्र लेखा को समाप्त करना चाहिए, इसके लिए वहाँ राजकुमार सुवर्ण, वो इसलिए कि उन्हें जादू आता है, उनके साथ राजकुमार विक्रम क्योंकि वे बहादुर हैं और राजकुमारी सारन्धा जाएंगी।।
परन्तु ये सब वहाँ पहुंचेगे कैसे, बकबक ने पूछा।।
तभी शाकंभरी वनदेवी बोली, ये सब जाएंगें इस उड़ने वाले घोड़े से।।
हां! यही उचित रहेगा,बाबा अघोरनाथ जी बोले।।
तभी नीलकमल बोली,बाबा! मुझे भी जाने दीजिए।।
नहीं, पुत्री! नीलकमल, चित्रलेखा तुमसे भलीभाँति परिचित है और सुवर्ण का जाना इसलिए आवश्यक हैं कि उसे जादू आता हैं,अघोरनाथ जी बोले।।
और मै बाबा, मानिक चंद बोला।।
सब का अपना अपना कार्य होगा,तनिक सब धैर्य रखें, बाबा अघोरनाथ बोले।।
सुवर्ण, विक्रम और सारन्धा, अर्धरात्रि को ही उसी समय चित्रलेखा के निवास स्थान की ओर चल पड़े।।
घोड़ा तेज रफ्तार मे बादलों में उड़ता चला जा रहा था,सुवर्ण सबसे आगे,विक्रम और सारन्धा प्रतिशोध की ज्वाला आंखों मे भरे आगे बढ़ रहेंं थे,कुछ समय पश्चात् वो सब चित्रलेखा के निवास स्थान पहुँच गए, वो चित्रलेखा के निवास स्थान से उचित दूरी पर उड़ने वाले घोड़े के साथ उतरे।।

छिपते छिपाते वे सब वृक्षों की ओट और झाड़ियों से होते हुए,चुपके चुपके उसके निवास पर पहुंच गए, सुवर्ण ने अपने जादू से द्वार खोले,वे सब भीतर घुसे,अंदर बहुत ही अंधेरा था और चित्रलेखा कहीं भी नजर नहीं आ रही थीं, सबने चित्रलेखा को ढ़ूढ़ना शुरु किया।।
उन्होंने हर स्थान पर खोजने का प्रयास किया,किन्तु चित्रलेखा कहीं पर नहीं मिली,तभी उन्हें एक गुप्त द्वार दिखा,उन्होंने देखा कि वहाँ से नीचे जाने के लिए सीढियां हैं ,वे सब सावधानी के साथ नीचे उतरने लगे,उन्होंने जाकर देखा कि चित्रलेखा कुछ जादू करके तरल पदार्थ बना रही हैं और उसने उस बड़े से गिरगिट को अपने कंधे पर बैठा रखा था जिसमें उसके प्राण सुरक्षित थे,वो अपने कार्य मे इतनी बेसुध थी कि उसे उन सब के आने का क्षण भर भी संदेह ना हुआ और इसी समय का उन सबने लाभ उठाया।।

सबसे पहले सारन्धा ने चित्र लेखा पर जोर का वार किया, जिससें चित्रलेखा भूमि पर जा गिरी,विक्रम ने शीघ्रता से चित्रलेखा की जादुई किताब को अग्नि के सुपुर्द कर दिया, जिसे देखकर चित्रलेखा क्रोध से जल उठी,उसने नहीं.... के स्वर के साथ अपना एक जादुई वार किया, तब तक सारन्धा विक्रम और चित्रलेखा के मध्य आ चुकी थी,चित्रलेखा के इस वार से सारन्धा घायल हो कर धरती पर गिर पड़ी,तब तक सुवर्ण ने चित्रलेखा के जादुई पदार्थ से भरे हुए मटके को धरती पर उड़ेलकर मटके को फोड़ दिया, ये सब देखकर चित्रलेखा का क्रोध साँतवें आसमान पर पहुंच गया,अब वो ये सब सहन नहीं कर सकती थी,उसनें अपने जादुई शक्तियों का सहारा लेकर सुवर्ण पर वार किया, परन्तु सुवर्ण ने अपने जादू को इस कार्य में लाना प्रारम्भ कर दिया और विक्रम ने अपनी तलवार सम्भाल ली,चित्रलेखा ने अपने गिरगिट को (वातायन) खिड़की से बाहर भेजने का प्रयास किया परन्तु विक्रम ने अपनी तलवार से गिरगिट के दो टुकड़े कर डाले और तब तक टुकड़े करता रहा,जब तक की गिरगिट सूक्ष्म टुकड़ों मे ना विभाजित हो गया।।अब चित्रलेखा क्रोध से अपना संतुलन खो बैठी,उसने फिर जादुई शक्ति का वार किया, किन्तु इस बार सुवर्ण ने अपनी सारी शक्ति लगाकर ऐसा वार किया कि चित्रलेखा भस्म हो गई,सुवर्ण ने शीघ्रता से वहीं उपस्थिति अग्नि मे जिसमे चित्रलेखा अपना जादुई पदार्थ बना रही थीं,उसी अग्नि मे गिरगिट के रक्त से लथपथ टुकड़ों को डाल दिया, अब चित्रलेखा की जीवनलीला समाप्त हो चुकी थीं, परन्तु इन सब मे सारन्धा मूर्छित हो चुकी थीं।।
विक्रम ने सारन्धा को उठाने की कोशिश की परन्तु वह नहीं उठी,तब विक्रम ने अपनी तलवार सम्भाली और सुवर्ण से कहा___
मित्र! लगता हैं राजकुमारी सारन्धा की अवस्था अच्छी नहीं हैं, लगता हैं इन्हें गम्भीर क्षति पहुंची हैं, इन्हें तो बाबा ही स्वस्थ कर पाएंगे और चित्रलेखा तो इस संसार से जा चुकी हैं, अब ये शुभ सूचना हमें उन सबको भी देनी चाहिए,कदाचित् यहाँ अब अत्यधिक ठहरना हमारे प्राणों के लिए उचित ना होगा।।
हां ,मित्र! यही उचित रहेगा, आप राजकुमारी सारन्धा को गोद मे उठाइए,हम शीघ्र ही यहाँ से प्रस्थान करते हैं, राजकुमारी सारन्धा भी मूर्छित हैं, इनका उपचार बाबा ही कर पाएंगे, राजकुमार सुवर्ण बोला।।
और सब बाहर आकर उड़ने वाले घोड़े पर सवार हो कर चल दिए,कुछ समय पश्चात् वो सब शाकंभरी के पास पहुंचे और ये शुभ सूचना सुनाई।।
ये सूचना सुनकर, अघोरनाथ जी को बहुत कष्ट हुआ और कष्ट क्यों ना होगा, चित्रलेखा उनकी बेटी जो थीं, उनकी आंखों से दो बूंद आंसू भी ढ़ुलक पड़े,उनकी ऐसी अवस्था देखकर नीलकमल उनके निकट आकर बोली___
दुखी मत हों बाबा!आपने कहा था ना कि मैं भी आपकी ही पुत्री हूँ, बहुत विशाल हृदय हैं आपका जो आपने इतना बड़ा त्याग किया।।
हां,पुत्री! तुम और सारन्धा भी तो मेरी पुत्री हो,बाबा अघोरनाथ बोले।।
परन्तु बाबा! सारन्धा के प्राण इस समय संकट मे हैं, चित्रलेखा का जादुई वार उसने मेरे प्राण बचाने के लिए अपने ऊपर ले लिया, विक्रम ये कहते कहते रो पड़ा।।
तब सुवर्ण ने विक्रम को दिलासा देते हुए कहा,धैर्य रखो मित्र! राजकुमारी सारन्धा को कुछ नहीं होगा,
आशा तो यहीं हैं कि राजकुमारी को कुछ ना हो,राजकुमार विक्रम बोले।।
nice update .udanchhu ne bahut se raaz bata diye shankhnad ke sabko ,aur najdiki raste se vandevi ke paas pahucha diya sabko apne dimaag ka istemal karke .भाग(१८)
घगअनंग जी के निवास स्थान पर सभी रात्रि को विश्राम करने लगें, तब घग अनंग जी बोले_____
मैं अब आप सब को शंखनाद के सभी रहस्यों से अवगत करवाता हूँ!!
जी,हम सब यही ज्ञात करना चाहते थे,आपका बहुत बहुत आभार रहेगा हम सब पर क्योंकि वनदेवी शाकंभरी की स्थिति बहुत ही दयनीय थी,जितने शीघ्र हमें शंखनाद के रहस्य ज्ञात होगें, उतने ही शीघ्रता से हम उनकी सहायता कर पाएंगे एवं हम जितने भी सदस्य हैं उनमें से सभी को शंखनाद ने कष्ट पहुँचाया हैं,अघोरनाथ जी बोले।।
जी,अब उस शंखनाद की मृत्यु निश्चित हैं, जो रहस्य मुझे ज्ञात हैं,मैं आपको बता देता हूँ और कुछ रहस्य आपको हमारा गुप्तचर उड़नछू बताएगा, तभी ज्ञात हो सकेगा कि उसे शंखनाद के किन किन रहस्यों के विषय में ज्ञात हैं,घगअनंग जी बोले।।
जी,कुछ तो मुझे भी ज्ञात हैं क्योंकि मै चित्रलेखा के निवास स्थान पर रह चुका हूँ, परन्तु आश्चर्य की बात है कि उसने मुझे कोई भी हानि नहीं पहुँचाई,मानिक चंद बोला।।
किन्तु, आप वहां रहकर क्या क्या ज्ञात कर पाएं, घगअनंग जी ने पूछा।।
यहीं कि चित्रलेखा के प्राण किसी बक्से मे गिरगिट के रूप में बंद हैं और वो बक्सा उसने तलघर मे कहीं छिपा रखा हैं और ये तो सबको ज्ञात हैं कि शंखनाद मानवों के हृदय से बना एक तरल पदार्थ बनाता हैं जिसे पीकर मृत्यु उसके निकट नहीं आती और सुंदर कन्याओं की त्वचा से बना एक प्रकार का पदार्थ बनाता हैं जो वो अपनी त्वचा पर लगाता हैं जिससे वो वृद्धावस्था मे नहीं पहुंच रहा हैं,मानिक चंद बोला।।
परन्तु ये अभी तक किसी को ज्ञात नहीं है कि शंखनाद के प्राणों को उसने किस स्थान और किसके भीतर सुरक्षित कर रखा हैं? घगअनंग जी बोले।।
ये तो सत्य हैं, परन्तु ज्ञात कैसे किया जाए? अघोरनाथ जी बोले।।
मै अभी अपने गुप्तचर उड़नछू को किसी सैनिक द्वारा बुलवाता हूँ, वो सच्चाई बता सकता हैं, अपने निवास स्थान मे विश्राम कर रहा होगा, घगअनंग जी बोले।।
और घगअनंग जी ने अपने एक सैनिक को भेजकर उड़नछू को बुलवा भेजा, उड़नछू बहुत ही गहरी निद्रा मे था और उसे अभी भी निद्रा ने घेर रखा था,घगअनंग जी के आदेश पर उसे विवशता वश आना पड़ा,उसनें सर्वप्रथम घगअनंग जी को प्रणाम किया और शीघ्र बुलवाने का कारण पूछा___
लगता हैं, उड़नछू,अभी निद्रा रानी ने तुम्हें घेर रखा हैं, घगअनंग जी ने पूछा।।
हां,महाराज! अभी मेरा विश्राम पूर्ण ही कहाँ हुआ हैं, इतने दिनों के उपरांत लौटा था कि कुछ क्षण विश्राम करूँगा, परन्तु आपने विश्राम ही कहाँ करने दिया,उड़नछू ने घगअनंग जी से कहा।।
इन सबके के लिए अब एक पल का भी बिलम्ब करना उचित नहीं हैं,उधर वनदेवी शाकंभरी संकट में हैं, कदाचित् तुम इन्हें शंखनाद के सभी रहस्य बता दो तो प्रातःकाल ही शाकंभरी की सहायता हेतु निकल पड़ेगे, घगअनंग जी ने उड़नछू से कहा।।
जी महाराज, शंखनाद बहुत ही धूर्त और पाखंडी हैं,ये तो मुझे भी ज्ञात हो चुका हैं कि वनदेवी शाकंभरी के जादुई पंखो को शंखनाद ने एक विशाल बरगद के वृक्ष के तने मे एक बक्से के भीतर छुपा रखा हैं और उस वृक्ष को जादुई बाधाओं द्वारा बांध रखा हैं,उस बांधा को तो कोई जादूगर ही तोड़ सकता हैं, उड़नछू बोला।।
थोड़ा बहुत जादू तो मुझे भी आता हैं, मैं भी कुछ दिन रहा था शंखनाद के साथ,तभी सीखा हैं लेकिन शंखनाद जितना श्रेष्ठ नहीं हूँ, राजकुमार सुवर्ण बोला।।
परन्तु उसने अपने प्राणों को किस स्थान और किसके अंदर छुपा रखा हैं, बकबक ने पूछा।।
तो सुनिए, जहाँ उसका निवास स्थान हैं, वहाँ एक जलाशय हैं, उस जलाशय के बीचोंबीच एक स्त्री की मूर्ति हैं और उस स्त्री के हाथों में एक पत्थर का उल्लू हैं उस उल्लू के भीतर ही शंखनाद के प्राण हैं, उड़नछू बोला।।
तो ये तो बहुत ही सरल हुआ,जो अच्छा तैराक होगा वो इस कार्य मे सफल होगा, राजकुमार विक्रम बोला।।
इतना भी सरल नहीं हैं, उस जलाशय में ना जाने कितने प्रकार की बाधाएं डाल रखीं हैं शंखनाद, जादू और तंत्र विद्या दोनों प्रयोग किया गया हैं इस कार्य में,उड़नछू बोला।।
तंत्र विद्या मे तो बाबा जैसा कोई नहीं और थोड़ा बहुत जादू तो मैं कर ही लूँगा परन्तु फिर भी शंखनाद से जीतने के लिए, इतनी शक्तियां और कहाँ से आएंगी,राजकुमार सुवर्ण बोला।।
एक उपाय और हैं,उड़नछू बोला।।
वो क्या? बकबक ने पूछा।।वो ये कि जलाशय के निकट ही शंखनाद के माता पिता की समाधियां बनी हैं और शंखनाद कभी भी उन्हें नहीं छूता, क्योंकि शंखनाद के माता पिता बहुत ही सात्विक विचारों के थे,उन्हें शंखनाद के ये सब कार्य पसंद नहीं थे इसलिए,वो उन समाधियों को नहीं छू सकता और अगर कभी भूलवश छू लिया तो भस्म हो जाएगा, उड़नछू बोला।।
ये तो बहुत अच्छी बात बताई,अघोरनाथ जी बोले।।
हां,बस मुझे इतना ही ज्ञात है महाराज, अब मैं विश्राम करने जाऊँ और मैं सोच रहा था कि मैं भी इनके साथ चला ही जाता हूँ, मेरे इन सब के साथ जाने से इनका कार्य थोड़ा सरल हो जाएगा, उड़नछू बोला।।
हां..हां. क्यों नहीं, उड़नछू, तुमने तो मेरे मन की बात कह दी,घगअनंग जी बोले।।
तो फिर सब अब विश्राम करते हैं,कल बहुत मेहनत करनीं हैं,मानिक चंद बोला।।
और सब विश्राम करने लगें, प्रातःकाल पंक्षियों के कलरव से सब जाग उठे और स्नान ध्यान करके गंन्तव्य की ओर निकल पड़े।।
उड़नछू बोला, बाबा! क्या हम छोटे मार्ग से चलें जिससे हम शीघ्रता से शाकंभरी वनदेवी के पास पहुंच सकते हैं।।
जैसा तुम्हें उचित लगें, उड़नछू, हम सब को तो वहीं बड़ा मार्ग ज्ञात हैं जहां से हम आए थें।।
परन्तु उस मार्ग में दो बाधाएँ हैं, उड़नछू बोला।।
वो क्या हैं?बकबक ने पूछा।।
रास्ते में एक जादुई बोलने वाला वृक्ष मिलेगा जिसके आंखें भी हैं और मुंह भी और वो हमसे पूछेगा कि कहाँ जाना हैं? तो हम सब को एक साथ उत्तर देना हैं कि शाकंभरी के पास नहीं जाना और कहीं भी चले जाएंगें, उड़नछू बोला।।
ये कैसा उत्तर हुआ भला! नीलकमल ने पूछा।।
क्योंकि वो वृक्ष हम से कहेगा, नहीं तुम्हें तो शाकंभरी के पास ही जाना होगा और अपनी शाखा से एक एक पत्ते हम सब को देंगा जिसे हमें आगें मिलने वाली चुडै़ल को देने हैं, वो उन जादुई पत्तो का उपयोग अपना जादुई काढ़ा बनाने में करती है, जिससे वो खुश हो जाएगी और हमेँ आगे जाने देगीं, उड़न छू बोला।।
अच्छा तो ये बात हैं, बकबक बोला।।
और सब आगे बढ़ चलें,चलते चलते उन्हें वहीं चेहरे वाला वृक्ष मिला।।
उस पेड़ ने कहा,ठहरो!!
तब उड़नछू ने अभिनय करते हुए कहा,कौन..कौन हैं वहाँ?
मैं...मैं हूँ यहाँ.. उस वृक्ष ने उत्तर दिया।।
मैं कौन? उड़नछू ने पुनः पूछा।।
मै जादुई वृक्ष,कहाँ जा रहे हो तुम लोग,?उस वृक्ष ने पूछा।।
हम लोग शाकंभरी वनदेवी से मिलने नहीं जाना चाहते,सबने एक साथ उत्तर दिया।।
लेकिन तुम लोगों को जाना पड़ेगा,ये मेरी आज्ञा हैं और ये रहेंं, मेरी शाखाओं के पत्ते,उस मार्ग पर तुम्हें एक चुडै़ल मिलेगी, ये पत्ते उसी को दे देना,उस वृक्ष ने कहा।।
सबने एक एक पत्ता उठा लिया और जादुई वृक्ष को धन्यवाद देकर आगें बढ़ चले।।
आगे जाकर मार्ग में उन्हें वहीं चुड़ैल काढ़ा बनाते हुए दिखी।।
उसने भी पूछा, तुम सब कहाँ जा रहे हो।।
उड़नछू ने कहा,हम वनदेवी शाकंभरी के पास जा रहे हैं,हमें कृपया जाने दे।।
ठीक है जाओ,मैने कब रोका हैं, बस तुम लोग मुझे वो पत्ते देदो,जो तुम्हें जादुई वृक्ष ने दिए हैं।।
सबने अपने अपने पत्ते उस चुडै़ल को दे दिए,चुडै़ल बहुत प्रसन्न हुई और सबको जाने दिया।।
कुछ समय तक उस मार्ग पर चलने के पश्चात् वो सब शाकंभरी वनदेवी के समीप पहुंच गए, शाकंभरी ने जैसे ही बकबक को देखा अत्यधिक प्रसन्न हुई।।
अच्छा नहीं किया आपने,शाकंभरी, आप इतने कष्ट में थीं और मुझे सूचित भी नहीं किया, बकबक ने शाकंभरी से शिकायत करते हुए कहा।।
मेरे निकट कोई भी नहीं था जिससे मैं तुम तक सूचना पहुंचा कर सहायता मांग लेतीं, ये सब आए इन्होंने मेरी ब्यथा सुनी,तब मैने इन्हें सब बताया।।
तो ये लो उड़ने वाले घोड़े का ताबीज इसे इसी क्षण पहन लो और तुम कहो तो आज रात्रि मे ही शंखनाद पर आक्रमण कर देते हैं, बकबक ने कहा।।
परन्तु क्या रात्रि का समय आक्रमण के लिए उचित रहेगा? राजकुमार विक्रम ने पूछा।।
हां..हां क्यों नहीं, अघोरनाथ जी बोल।।
परन्तु, अभी आप लोग बहुत थक चुके हैं, कुछ क्षण विश्राम करें,अर्धरात्रि के समय हम ये कार्य प्रारम्भ करेगें, शाकंभरी वनदेवी बोली।।
lovely update ..to chitralekha ki kahani samapt kar di suvarn, vikram ne milke ,aur rani sarandha bich me aa gayi vikram ko jadu ke war se bachane jisse wo ghayal ho gayi hai .भाग(१९)
शाकंभरी की बात सुनकर सब विश्राम करने लगें और अर्धरात्रि के समय सब जाग उठे,जिससे जो बन पड़ा वैसे अस्त्र शस्त्र लेकर शंखनाद से प्रतिशोध लेने निकल पड़े,वनदेवी शाकंभरी उड़ने वाले घोड़े पर सवार हो गई अब उसने अपने लबादे को हटा दिया था,लबादा हटाते ही उसके शरीर से आते हुए प्रकाश ने सारे वन को जगमगा दिया।।
तभी अघोरनाथ जी बोले,पहले हम ये तो तय करें कि कौन कौन कहाँ कहाँ प्रवेश करेगा, इसके लिए हमे एक रणनीति बनानी होगी,मैं सोच रहा हूँ कि सर्वप्रथम हमें चित्रलेखा के निवास स्थान जाकर चित्र लेखा को समाप्त करना चाहिए, इसके लिए वहाँ राजकुमार सुवर्ण, वो इसलिए कि उन्हें जादू आता है, उनके साथ राजकुमार विक्रम क्योंकि वे बहादुर हैं और राजकुमारी सारन्धा जाएंगी।।
परन्तु ये सब वहाँ पहुंचेगे कैसे, बकबक ने पूछा।।
तभी शाकंभरी वनदेवी बोली, ये सब जाएंगें इस उड़ने वाले घोड़े से।।
हां! यही उचित रहेगा,बाबा अघोरनाथ जी बोले।।
तभी नीलकमल बोली,बाबा! मुझे भी जाने दीजिए।।
नहीं, पुत्री! नीलकमल, चित्रलेखा तुमसे भलीभाँति परिचित है और सुवर्ण का जाना इसलिए आवश्यक हैं कि उसे जादू आता हैं,अघोरनाथ जी बोले।।
और मै बाबा, मानिक चंद बोला।।
सब का अपना अपना कार्य होगा,तनिक सब धैर्य रखें, बाबा अघोरनाथ बोले।।
सुवर्ण, विक्रम और सारन्धा, अर्धरात्रि को ही उसी समय चित्रलेखा के निवास स्थान की ओर चल पड़े।।
घोड़ा तेज रफ्तार मे बादलों में उड़ता चला जा रहा था,सुवर्ण सबसे आगे,विक्रम और सारन्धा प्रतिशोध की ज्वाला आंखों मे भरे आगे बढ़ रहेंं थे,कुछ समय पश्चात् वो सब चित्रलेखा के निवास स्थान पहुँच गए, वो चित्रलेखा के निवास स्थान से उचित दूरी पर उड़ने वाले घोड़े के साथ उतरे।।

छिपते छिपाते वे सब वृक्षों की ओट और झाड़ियों से होते हुए,चुपके चुपके उसके निवास पर पहुंच गए, सुवर्ण ने अपने जादू से द्वार खोले,वे सब भीतर घुसे,अंदर बहुत ही अंधेरा था और चित्रलेखा कहीं भी नजर नहीं आ रही थीं, सबने चित्रलेखा को ढ़ूढ़ना शुरु किया।।
उन्होंने हर स्थान पर खोजने का प्रयास किया,किन्तु चित्रलेखा कहीं पर नहीं मिली,तभी उन्हें एक गुप्त द्वार दिखा,उन्होंने देखा कि वहाँ से नीचे जाने के लिए सीढियां हैं ,वे सब सावधानी के साथ नीचे उतरने लगे,उन्होंने जाकर देखा कि चित्रलेखा कुछ जादू करके तरल पदार्थ बना रही हैं और उसने उस बड़े से गिरगिट को अपने कंधे पर बैठा रखा था जिसमें उसके प्राण सुरक्षित थे,वो अपने कार्य मे इतनी बेसुध थी कि उसे उन सब के आने का क्षण भर भी संदेह ना हुआ और इसी समय का उन सबने लाभ उठाया।।

सबसे पहले सारन्धा ने चित्र लेखा पर जोर का वार किया, जिससें चित्रलेखा भूमि पर जा गिरी,विक्रम ने शीघ्रता से चित्रलेखा की जादुई किताब को अग्नि के सुपुर्द कर दिया, जिसे देखकर चित्रलेखा क्रोध से जल उठी,उसने नहीं.... के स्वर के साथ अपना एक जादुई वार किया, तब तक सारन्धा विक्रम और चित्रलेखा के मध्य आ चुकी थी,चित्रलेखा के इस वार से सारन्धा घायल हो कर धरती पर गिर पड़ी,तब तक सुवर्ण ने चित्रलेखा के जादुई पदार्थ से भरे हुए मटके को धरती पर उड़ेलकर मटके को फोड़ दिया, ये सब देखकर चित्रलेखा का क्रोध साँतवें आसमान पर पहुंच गया,अब वो ये सब सहन नहीं कर सकती थी,उसनें अपने जादुई शक्तियों का सहारा लेकर सुवर्ण पर वार किया, परन्तु सुवर्ण ने अपने जादू को इस कार्य में लाना प्रारम्भ कर दिया और विक्रम ने अपनी तलवार सम्भाल ली,चित्रलेखा ने अपने गिरगिट को (वातायन) खिड़की से बाहर भेजने का प्रयास किया परन्तु विक्रम ने अपनी तलवार से गिरगिट के दो टुकड़े कर डाले और तब तक टुकड़े करता रहा,जब तक की गिरगिट सूक्ष्म टुकड़ों मे ना विभाजित हो गया।।अब चित्रलेखा क्रोध से अपना संतुलन खो बैठी,उसने फिर जादुई शक्ति का वार किया, किन्तु इस बार सुवर्ण ने अपनी सारी शक्ति लगाकर ऐसा वार किया कि चित्रलेखा भस्म हो गई,सुवर्ण ने शीघ्रता से वहीं उपस्थिति अग्नि मे जिसमे चित्रलेखा अपना जादुई पदार्थ बना रही थीं,उसी अग्नि मे गिरगिट के रक्त से लथपथ टुकड़ों को डाल दिया, अब चित्रलेखा की जीवनलीला समाप्त हो चुकी थीं, परन्तु इन सब मे सारन्धा मूर्छित हो चुकी थीं।।
विक्रम ने सारन्धा को उठाने की कोशिश की परन्तु वह नहीं उठी,तब विक्रम ने अपनी तलवार सम्भाली और सुवर्ण से कहा___
मित्र! लगता हैं राजकुमारी सारन्धा की अवस्था अच्छी नहीं हैं, लगता हैं इन्हें गम्भीर क्षति पहुंची हैं, इन्हें तो बाबा ही स्वस्थ कर पाएंगे और चित्रलेखा तो इस संसार से जा चुकी हैं, अब ये शुभ सूचना हमें उन सबको भी देनी चाहिए,कदाचित् यहाँ अब अत्यधिक ठहरना हमारे प्राणों के लिए उचित ना होगा।।
हां ,मित्र! यही उचित रहेगा, आप राजकुमारी सारन्धा को गोद मे उठाइए,हम शीघ्र ही यहाँ से प्रस्थान करते हैं, राजकुमारी सारन्धा भी मूर्छित हैं, इनका उपचार बाबा ही कर पाएंगे, राजकुमार सुवर्ण बोला।।
और सब बाहर आकर उड़ने वाले घोड़े पर सवार हो कर चल दिए,कुछ समय पश्चात् वो सब शाकंभरी के पास पहुंचे और ये शुभ सूचना सुनाई।।
ये सूचना सुनकर, अघोरनाथ जी को बहुत कष्ट हुआ और कष्ट क्यों ना होगा, चित्रलेखा उनकी बेटी जो थीं, उनकी आंखों से दो बूंद आंसू भी ढ़ुलक पड़े,उनकी ऐसी अवस्था देखकर नीलकमल उनके निकट आकर बोली___
दुखी मत हों बाबा!आपने कहा था ना कि मैं भी आपकी ही पुत्री हूँ, बहुत विशाल हृदय हैं आपका जो आपने इतना बड़ा त्याग किया।।
हां,पुत्री! तुम और सारन्धा भी तो मेरी पुत्री हो,बाबा अघोरनाथ बोले।।
परन्तु बाबा! सारन्धा के प्राण इस समय संकट मे हैं, चित्रलेखा का जादुई वार उसने मेरे प्राण बचाने के लिए अपने ऊपर ले लिया, विक्रम ये कहते कहते रो पड़ा।।
तब सुवर्ण ने विक्रम को दिलासा देते हुए कहा,धैर्य रखो मित्र! राजकुमारी सारन्धा को कुछ नहीं होगा,
आशा तो यहीं हैं कि राजकुमारी को कुछ ना हो,राजकुमार विक्रम बोले।।