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Fantasy रहस्यमयी टापू MAZIC Adventure (Completed)

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रहस्यमयी टापू--भाग (१४)..!!

सुवर्ण ने सभी लोगों से सलाह ली और सभी लोंग राजा विक्रम की सहायता करने के लिए तैयार हो गए, सुवर्ण ने विक्रम को उठाकर उसे पानी पिलाया और अघोरनाथ जी ने कुछ जंगली जड़ी बूटियां खोजकर विक्रम के घावों पर लगा दीं, जिससे विक्रम अब पहले से खुद को बेहतर महसूस कर रहा था।।
अब सब निकल पड़े उस मैदान की ओर जहां वो राक्षस तहखाने में रहता था, सभी उस मैदान को पार करते जा रहे थे, चलते चलते रात हो गई ,रास्तें मे एक बहुत बड़ा तालाब मिला,उस तालाब के किनारे एक पीपल का बहुत बड़ा पेड़ था,सबने उसी जगह पर विश्राम करने का इरादा किया और सब पेड़ के नीचे सो गए, तभी अचानक रात को बकबक के ऊपर कुछ लिसलिसा सा गरम गरम सा पदार्थ गिरा,वो चटपटा कर उठ बैठा और उसने ऊपर की ओर देखा तो दो चुड़ैलें, पेड़ से उलटी लटकी हुई थीं और उनके मुंह से लार टपक रही थी, उनके सिर के बाल इतने बड़े थे कि उनका चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था,उन भयानक चुड़ैलों को देखकर बकबक की चीख निकल गई,बकबक की चींख सुनकर सब जाग गए, तभी वो चुड़ैलें हवा में गोल गोल घूमती हुई,धम्म की आवाज के साथ नीचे आकर उन सब के सामने खड़ीं हो गई,सब बुरी तरह डर गए।।
लेकिन तभी उस समय सुवर्ण ने अपना दिमाग चलाया,जो जादू उसे आता था उसका इस्तेमाल किया
उसने दोनों चुड़ैलों को जादुई शक्ति से जमीन पर गिरा दिया और फुर्ती के साथ बारी बारी से मुट्ठी में बालों को भरा और काट दिया, दोनों के बाल कट जाने पर वो खूबसूरत पंखों वाली परियों में परिवर्तित हो गई, दोनों से एक सफेंद रोशनी आ रही थीं जिससे आसपास का वातावरण जगमग हो रहा था।।
सुवर्ण ने उन दोनों से पूछा__
कौन हो तुम दोनों?
उनमें से एक ने जवाब दिया__
हम दोनों बहनें हैं,इसका नाम स्वरांजलि और मेरा नाम गीतांजली हैं,हमारा भी एक खुशहाल परिवार था,हमारे परिवार मे हम दोनों जुड़वां बहने ,एक भाई भी हैं, मां पिताजी नहीं रहें, हमें जादूगर शंखनाद ने अपने जादू से चुड़ैल बना दिया था,उसनें कहा था कि अगर कोई तुम्हारे बाल काट देगा तो तुम दोनों अपने असली रूप में आ जाओगी लेकिन मेरी वजह से इधर कोई भी नहीं आ सकता इसलिए तुम लोग सदा के लिए ही चुड़ैले बनी रहोगी और इतना कहकर वो चला गया।।
और तुम्हारा भाई कहां हैं? अघोरनाथ जी ने पूछा।।
उसे शंखनाद ने एक राक्षस बना दिया हैं, उससे जो वो भी कहता है हमारा भाई वही करता है,उसनें उसे गुलाम बनाकर तहखाने मे रखा है, जब भी वो उसे आदेश देता है तो हमारा भाई सुंदर लडकियों को अगवा कर लेता हैं,उनमें से एक ने उत्तर दिया।।
और उन लडकियों को क्यों अगवा किया जाता हैं, कुछ बता सकती हो,क्योंकि मेरी बहन को उसने अगवा किया हैं,राजा विक्रम बोले।।
हां,यकीन के साथ तो नहीं कह सकती लेकिन वो उन लडकियों को मारकर उनकी त्वचा से एक तरह का पदार्थ बनाता हैं जिसे वो अपनी त्वचा पर लगाता हैं तभी इतनी उम्र हो जाने के बाद भी वो बूढ़ा दिखाई नहीं देता,गीतांजलि बोली।।
लेकिन हम उस राक्षस का सामना कैसे करेगें, कुछ ना कुछ उपाय तो होगा आपलोगों के पास,सुवर्ण ने पूछा।।
अभी तो रात हैं,सुबह इस समस्या का समाधान करते हैं, सुबह मैं आप लोगों को कुछ चीज दूंगी जिससे हमारा भाई अपने पहले वाले रूप मे वापस आ जाएगा, स्वरांजलि बोली।।
और फिर सब विश्राम करने लगे लेकिन फिर सारी रात अघोरनाथ जी सो नहीं पाए,उन्हें स्वरांजली और गीतांजली पर भरोसा नहीं था,उन्हेँ ये डर था कि ऐसा ना हो रात को फिर दोनों चुड़ैले बनकर सबको हानि पहुचाएं।
और उनकी इस शंका को बकबक भलीभांति समझ गया था,तीसरा पहर लगने को था तभी बकबक अघोरनाथ जी से बोला___
बाबा! अब आप थोड़ी देर के लिए विश्राम कर लीजिए,मुझे पता है आप रात भर सोए नही है।।
कैसे सो जाऊ?बकबक बेटा!! जब अपनी ही बेटी गलत राह पर चलकर,दूसरों के खून की प्यासी हो जाए तो इस अभागे बाप को नींद कैसे आ सकती हैं, अघोरनाथ जी बकबक से बोले।।
कोई बात नहीं बाबा!!अब शायद यही नियति थी,पहले आप सारी चिंताएं छोड़कर आराम करने की कोशिश कीजिए, फिर सोचते हैं कि क्या करना है, बकबक ने अघोरनाथ जी से कहा।।
और अघोरनाथ जी ने अपनी बांह की तकिया बनाई और सो गए।।
सुबह हो चुकी थी,सूरज की लाली ने आसमान को घेर लिया था,पीपल के पेड़ पर चिड़ियाँ चहचहा रहीं थीं,सबने देखा की तालाब मे बहुत से कमल के फूल खिले हुए हैं, बकबक और नीलकमल छोटे बच्चों की तरह कमल तोड़ने चल पडे़ लेकिन स्वरांजलि मना करते हुए बोली___
ये एक जादुई तालाब हैं और ये सारें कमल भी जादुई हैं, जो भी इन कमल को हाथ लगाता हैं पत्थर का बन जाता हैं,तभी स्वरांजलि ने ताली बजाई और एक हंस वहां प्रकट हुआ___
स्वरांजलि बोली, मुझे एक कमल चाहिए, एक कमल तोड़कर दो ताकि उसे स्पर्श करके हमारा भाई पुन: अपने रूप मे वापस आ सकें।।
और हंस ने अपनी चोंच के द्वारा एक कमल तोड़कर स्वरांजली को दिया और गायब हो गया, स्वरांजलि वो फूल अघोरनाथ जी को देते हुए बोली, आप इन सबमें सबसे बुजुर्ग हैं और मुझे आशा हैं कि आप अपने कर्तव्य का निर्वहन भलीभाँति करेगें,आप हमारे पिता के समान हैं।।
अघोरनाथ जी ने प्यार से स्वरांजलि के सिर पर हाथ रखते हुए कहा जीती रहो बेटी, काश मेरी बेटी भी तुम दोनों की तरह अच्छी होतीं।।
तब गीतांजलि ने पूछा, ऐसा क्यों कह रहें हैं आप?
तब नीलकमल ने स्वरांजलि और गीतांजलि को सारी कहानी कह सुनाई।।
स्वरांजलि और गीतांजलि अपने परीलोक वापस चली गई और अब सब अपने गंतव्य की ओर निकल पडे़, शाम होते होते सब उस तहखाने तक पहुंच गए जहाँ वो राक्षस रहता था।।
तब बकबक बोला,पहले मैं जाता हूं और अगर सब ठीक रहा तो मैं चिड़िया की आवाज निकालूँगा तब आप सब अंदर आ जाना।।
सब बकबक की बात पर रजामंद हो गए, बकबक तहखाने के अंदर पहुंचकर दो चार कदम चला,फिर उसनें सोचा अब साथियों को बुला लेना चाहिए और उसनें चिड़िया की आवाज़ निकालनी शुरु कर दी।।
चिड़िया की आवाज़ सुनकर, सबने अंदर जाने का सोचा और सब तहखाने के भीतर घुस पडे़, अंदर सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा था।।
सब अंदर की ओर धीरे धीरे बढ़ रहे थे, आगे बकबक भी उन्हें मिल गया और सब साथ मे चल पडे़,जैसे जैसे आगे बढ़ते जा रहे थे, वैसे वैसे अंधेरा और भी बढ़ता जा रहा था,तभी उन सब को किसी के लड़की के कराहने की आवाज़ आई,सब उस ओर गए तब बकबक बौने ने सबसे कहा___
ठहरों,मेरे पास एक नागमणी हैं, जो कभी मेरे पिताजी ने मुझे दी थी,उन्होंने कहा था कि जब तुम किसी की सहायता करना चाहोगे तब इसका इस्तेमाल करना और बकबक ने एक छोटी सी पोटली निकाली,उसके धांगों को जैसे ही सरकाया,पोटली खुली उसमें से एक सफेद रोशनी निकलती हुई दिखी,बकबक ने उसे अपनी हथेली पर रखा तो चारों ओर रोशनी ही रोशनी फैल गई, अब अंधेरा नहीं था और सबको साफ साफ दिखाई दे रहा था,वो सब उस कराहने वाली लड़की के पास पहुंचे, देखा तो वो एक सलाखों वाले कमरें मे बंद थीं__
बकबक ने उससे पूछा___
कौन हो तुम?
मैं पुलस्थ राज की रानी सांरन्धा हूं, इस राक्षस ने मुझे कै़द करके रखा हैं और भी लडकियों को कैद़ किया हैं,अभी शायद किसी राजकुमारी को अगवा किया हैं, उसके चीखने की आवाज़ आ रही थी।।
हां...हांं शायद वो मेरी बहन संयोगिता हैं, राजा विक्रम बोले।।
तभी,राजकुमार सुवर्ण ने पूछा, वो राक्षस कहाँ हैं?
वो अभी तहखाने से बाहर गया हैं,रानी सारन्धा बोली।।
तब तो ये बहुत अच्छा मौका है, सारी लड़कियों को छुडा़ने का,मानिक चंद बोला।।
हां,एकदम सही कहा, बकबक भी बोला।।
और सब एक एक करके सारी लड़कियों की सलाखें और बेड़ियां तोड़कर उन्हें बाहर निकालने लगे,तभी विक्रम को अपनी बहन संयोगिता भी मिल गई___
भइया!!आप आ गए, मुझे पता था कि आप जरूर आएंगे, संयोगिता अपने भाई विक्रम के गले लगते हुए बोली।।
सारी लड़कियों को निकालने के बाद सब तहखाने से बाहर आने लगे,सबसे आगे राजा विक्रम और बकबक थे ,बीच मे सारी लडकियाँ और सबसे पीछे राजकुमार सुवर्ण और मानिक थे,जैसे ही सब तहखाने से बाहर निकले,बकबक ने नागमणी पोटली मे रखी और अपनी कमर मे खोंस ली।।
सब थोड़ी दूर चले ही थे कि वहां राक्षस आ पहुंचा, उसने सब पर हमला करना शुरु कर दिया, तभी राजा विक्रम अपनी तलवार लेकर आगे बढ़े लेकिन राक्षस ने उन्हें भी हवा मे उछाल दिया,अब सुवर्ण भी अपनी तलवार लेकर आगे आया लेकिन राक्षस का वार वो भी नहीं सह पाया, तभी बकबक बोला,सुवर्ण उड़ने वाले घोड़े का इस्तेमाल करो,लेकिन जैसे ही सुवर्ण ने वो घोड़े वाला ताबीज हाथों मे लिया,राक्षस ने सुवर्ण पर जोर का वार किया और वो ताबीज सुवर्ण के हाथों से दूर जा गिरा।।
अब बात बेकाबू देखकर अघोरनाथ जी आगे आए,उन्होंने अपनी पोटली मे से जादुई कमल निकाला और कुछ मंत्र पढ़े और हवा में उड़ते हुए, राक्षस के सिर पर वो जादुई कमल गिरा दिया,जिससे वो राक्षस एक मानव में परिवर्तित हो गया।।
सभी को ये देखकर बहुत आश्चर्य हुआ और उस राक्षस से परिवर्तित मानव ने सबसे क्षमा मांगी और बोला__
मै परी देश का राजकुमार सुदर्शनशील हूं,माफ करना, मेरी वजह से आपलोगों को बहुत परेशानी हुई, मैं परीलोक वापस जाना चाहता हूँ,अब लोग मेरी थोड़ी सहायता करें तो आपलोगों की बहुत कृपा होगी।।
बकबक ने कहा, मैं तुम्हें अपने घोड़े पर तुमको छोड़कर आता हूं।।
और बारी बारी से बकबक ने सभी लड़कियों और सुदर्शनशील को उनके निवास स्थान पर पहुंचा दिया,रानी सारन्धा बोली लेकिन मैं तो आप लोगों की सहायता के लिए आप लोगों के साथ चलूँगी,आप लोगों ने भी तो मेरी सहायता की हैं,रानी सारन्धा की बात सुनकर राजा विक्रम भी बोले, कृपया आपलोग मेरी बहन संयोगिता को मेरे राज्य छोड़ आए और बकबक ने विक्रम की बात मानकर संयोगिता को उसके राज्य छोड़ दिया और संयोगिता को बकबक छोड़कर वापस आ गया फिर सभी शाकंभरी की सहायता करने निकल पडे़।।
Zabardast...
 
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भाग(१५)
सब आगे बढ़ चले उस जंगल की ओर शाकंभरी की सहायता करने,आगे बढ़ने पर रानी सारन्धा किसी पत्थर की ठोकर से गिर पडी़, उनके पैर में चोट लग गई थीं और वो अब चलने में असमर्थ थीं, रानी सारन्धा की स्थिति देखकर अघोरनाथ बोले___


जब तक रानी सारन्धा की स्थिति में सुधार नहीं होता ,तब तक हम इसी स्थान पर विश्राम करेगें, वैसे तो हम उड़ने वाले घोड़े के द्वारा रानी सारन्धा को उस वन मे भेज सकते हैं परन्तु उड़ने वाले घोड़े का ऐसा उपयोग उचित नहीं हैं क्योंकि सारन्धा जंगल में पहले पहुंच गई तो उसकी सुरक्षा का प्रश्न हैं और अगर हम एक एक करके गए भी तो कुछ इधर कुछ उधर,हमें बंटा हुआ देखकर शंखनाद इसका पूर्णतः उपयोग कर हमें हानि पहुंचा सकता हैं, इसलिए यही उचित होगा कि हम सब एकसाथ रहें।।


और अघोरनाथ जी का निर्णय सभी को उचित लगा,सब उस जगह ठहरकर रानी सारन्धा के स्वस्थ होने की प्रतीक्षा करने लगें, वहां एक बरगद के बडे़ से वृक्ष के तले सबने शरण ली,इस घटना में सबसे अच्छा ये रहा कि राजा विक्रम,रानी सारन्धा की देखभाल करने लगें, परन्तु इस बात से रानी सारन्धा को बहुत संकोच हो रहा था,वो ये नहीं चाहतीं थीं राजा विक्रम उनकी इतनी चिंता करें।।


रात्रि का समय सब सो चुके थे और राजा विक्रम पहरा दे रहे थे,गगन में तारें टिमटिमा रहें थें और चन्द्र का श्वेत प्रकाश संसार के कोने-कोने से अंधकार मिटाने का प्रयास कर रहा था,सारी धरती पर चन्द्र की रोशनी चांदी सी प्रतीत हो रही थीं,बस बीच बीच में किसी पक्षी या किसी झींगुर का स्वर सुनाई दे जाता,रानी सारन्धा भी अपनी बांह का तकिया बना कर वृक्ष के तले लेटी थीं,उनके मुख पर चन्द्र का प्रकाश पड़ने से उनके मुख की आभा बढ़ गई थी,ऐसी सुंदरता को देखकर कोई भी मोहित हो जाए, लेकिन मुझे देखकर रानी सारन्धा के मुख पर कोई भाव क्यो नही आते, उन्होंने आज तक कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी,कदाचित् ऐसा तो नहीं वो किसी और से प्रेम करतीं हो,आखिर क्या कारण हो सकता है उनकी शुष्कता का,ये ही सब सोचते-सोचते विक्रम को नींद आने लगी तब उसने सुवर्ण को जगा दिया, वैसे भी तीसरा पहर खत्म होने को था और सुवर्ण के पहरा देने का समय था।।


सुबह हुई,सब जागें,तभी अघोरनाथ जी रानी सारन्धा की स्थिति पूछने आए___


अब कैसा अनुभव हो रहा है,सारन्धा बेटी, अघोरनाथ जी ने सारन्धा से पूछा।।


अब पहले से अधिक अच्छा अनुभव कर रही हूं बाबा!,आज तो चल भी सकतीं हूं, संभवतः आज हम आगे बढ़ सकते हैं,रानी सारन्धा बोली।।


बहुत ही अच्छा हुआ, बेटी! मैं सबसे कहता हूँ कि आगें चलने की तैयारी करें और अघोरनाथ जी इतना कहकर चले गए।।सब तैयारी कर आगें बढ़ चलें, रास्ते में सारन्धा ने अपने पैर में दोबारा पीड़ा का अनुभव किया और वो एक पत्थर पर बैठकर बोली, मैं अब असमर्थ हूँ आगें नहीं बढ़ सकतीं।।


तभी, राजा विक्रम,सारन्धा के निकट आकर बोले, आपको कोई आपत्ति ना हो तो मैं कुछ आपकी सहायता कर सकता हूँ।।


मुझे आपकी सहायता की आवश्यकता नहीं हैं, क्यों आप मुझे प्रतिपल सताने आ जाते हैं, आपने जो पहले भी मेरी सहायता की हैं उसके लिए मैं सदा आपकी आभारी रहूंगी, परन्तु इस पल मुझे क्षमा करें, मैं वैसे भी बहुत ही कष्टनीय स्थिति में हूँ,मैंने अभी अपने परिवार को गँवाया हैं,जो मेरे लिए असहनीय हैं, आप मेरी अन्तर्वेदना को समझने का प्रयास करें,मुझे सब ज्ञात हैं कि इस समय आपके मन के भाव क्या हैं मेरे लिए, जैसे आप मुझसे प्रेम करने लगें उसी प्रकार मैं भी किसी से प्रेम करती थीं, रानी सारन्धा क्रोध से बोली।।


रानी सारन्धा! कृपया आप क्रोधित ना हो,आप मेरी बातों का आशय उचित नहीं समझ रहीं,राजा विक्रम बोले।।


मैं बिल्कुल उचित समझ रही हूँ, चलिए आज मैं आपको अपने विषय मे सब बता ही देतीं, सब जानकर ही आप मेरे विषय में उचित निर्णय ले कि मैं आपके प्रेम के योग्य हूँ कि नहीं और रानी सारन्धा ने अपने अतीत के विषय मे बोलना शुरू किया।।


पहाड़ो के पार,घने वन जहाँ पंक्षियों के कलरव से वहाँ का वातावरण सदैव गूँजता रहता,घनें वनों के बीच एक नदी बहती थीं, जिसका नाम सारन्धा था,उसके समीप एक राज्य बसता था जिसका नाम रूद्रनगर था,जहाँ के हरे भर खेत इस बात को प्रमाणित करते थे कि इस राज्य के वासी अत्यंत खुशहाल स्थिति में हैं, किसी को भी किसी प्रकार का कष्ट नहीं हैं,सबके घर धन धान्य से भरे हुए हैं और वहाँ के राजा अत्यंत दयालु प्रवृत्ति के थे,उनका नाम दर्शशील था,वे अपने राज्य के लोगों को कभी भी कोई कष्ट ना होने देते,उनकी रानी का नाम शैलजा था,परन्तु बहुत साल व्यतीत हुए राजा के कोई सन्तान ना हो हुई, इस दुख से दुखी होकर रानी शैलजा ने राजा से कहा कि वे अपना दूसरा विवाह कर लें किन्तु राजा दर्शशील दूसरे विवाह के लिए कदाचित् सहमत ना थे उन्होंने इस विषय पर अपने गुरुदेव से मिलने का विचार बनाया और वो अपने गुरू शाक्य ऋषि से मिलने रानी शैलजा के साथ शाक्य वन जा पहुंचे।।


उन दोनों से मिलने के पश्चात गुरदेव बोले___


इतने ब्याकुल ना हो राजन!तनिक धैर्य रखें,कुछ समय पश्चात आपको अवश्य संतान की प्राप्ति होगी और सारे जगत मे आपका मान-अभिमान बढ़ाएगी।।


इस बात से राजा दर्शशील बहुत प्रसन्न हुए और शाक्य वन में एक दो दिन ठहर कर अपने गुरदेव से आज्ञा लेकर लौट ही रहे थे कि मार्ग में बालकों के रोने का स्वर सुनाई दिया जिससे उनका मन द्रवित हो गया और रानी शैलजा भी ब्याकुल हो उठीं।।


राजा दर्शशील ने सारथी से अपना रथ रोकने को कहा और अपने रथ से उतरकर उन्होंने देखा कि कहीं दूर से झाड़ियों से वो स्वर आ रहा हैं,वो दोनों उस झाड़ी के समीप पहुंचे, देखा तो वस्त्र की तहों में एक डलिया में दो जुड़वां बालक रखें हैं,शैलजा से उन बालकों का रोना देखा ना गया और शीघ्रता से उन्होंने दोनो बालकों को अपनी गोद मे उठा लिया।।उन्होंने आसपास बहुत ढ़ूढ़ा,परन्तु कोई भी दिखाई ना दिया, तब दोनों ये निर्णय लिया कि दोनों बालकों को वो अपने राज्य ले जाएंगे, उनमें से एक बालक था और एक बालिका, दोनों पति पत्नी की जो इच्छा थी वो अब पूर्ण हो चुकी थीं,दोनों खुशी खुशी अब उनका लालनपालन करने लगें,उन्होंने बालिका नाम उस राज्य की नदी के नाम पर सारन्धा रखा जोकि मैं हूं और बालक का नाम चन्द्रभान रखा, धीरे धीरे दोनों बड़े होने लगें और कुछ सालों बाद दोनों अपने यौवनकाल में पहुंच गए, इसी प्रकार सबका जीवन ब्यतीत हो रहा था।।


इसी बीच एक दिन सारन्धा नौका विहार करने नदी पर गई, वहां उसने अपनी सखियों और दासियों से हठ की कि वो नाव खेकर अकेले ही नौका विहार करना चाहती हैं,सखियों ने बहुत समझाया,पर उसनें किसी की एक ना सुनी और अकेले ही नाव पर जा बैठी,नाव खेने लगी,कुछ समय उपरांत नदी में एक भँवर पड़ी जिसे दूर से ही देखकर,सारन्धा बचाओ...बचाओ... चिल्लाने लगी क्योंकि उसे नाव की दिशा बदलना नहीं आता था,उसका स्वर वहां उपस्थित एक नवयुवक ने सुना और वो नदी मे कूद पड़ा और तीव्र गति से तैरता हुआ सारन्धा की नाव तक पहुंच कर शीघ्रता से नाव पर चढ़ा और नाव को दूसरी दिशा में मोड़ दिया।।


सारन्धा ने नीचे की ओर मुख करके लजाते हुए उस नवयुवक को धन्यवाद दिया, उसने सारन्धा से उसका परिचय पूछा___


मैं रूद्रनगर के राजा दर्शशील की पुत्री हूँ,यहाँ नौका विहार के लिए अकेले ही निकल पड़ी,मार्ग में भँवर देखकर सहायता हेतु चिल्लाने लगी,सारन्धा ने उत्तर दिया।।


और महाशय आपका परिचय,सारन्धा ने उस नवयुवक से उसका परिचय पूछा।।


जी,मैं अमरेंद्र नगर का राजकुमार सूर्यदर्शन, यहाँ तक आखेट के लिए आ पहुंचा, आपका स्वर सुनकर विचलित होकर देखा तो आप बचाओ...बचाओ चिल्ला रहीं थीं तो शीघ्रता से नदी में कूद पड़ा,सूर्यदर्शन ने सारन्धा के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा।।


आपने आज मेरे प्राणों की रक्षा की हैं इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद, सारन्धा बोली।।


धन्यवाद किस बात का प्रिये!ये तो मेरा धर्म था,सूर्यदर्शन बोला।।


वो सब तो ठीक हैं, महाशय! परन्तु मैं आपकी प्रिये नहीं हूं, सारन्धा बोली।।


नहीं हैं तो हो जाएगीं,आप जैसी सुन्दर राजकुमारी को कौन अपनी प्रिये नही बनाना चाहेगा, सूर्यदर्शन बोला।।


आप भी राजकुमार! कैसा परिहास कर रहें हैं मुझसे, सारन्धा बोली।।


ये परिहास नहीं है राजकुमारी, ये सत्य हैं, लगता हैं आपकी सुन्दरता पर मैं अपना हृदय हार बैठा हूँ, परन्तु आप मेरी बात पर विश्वास नहीं करेंगीं,सूर्य दर्शन ने सारन्धा से कहा।।


अब रहने भी दीजिए राजकुमार, अत्यधिक बातें बना लीं आपने,कृपया कर अब मुझे मेरे राज्य तक पहुंचा आइए,सारन्धा ने राजकुमार से कहा।।


और नदी किनारे आते ही राजकुमार ने राजकुमारी को अपने अपने घोड़े द्वारा उनके राज्य तक पहुंचा दिया, रात्रि के समय सारन्धा की आँखों से निद्रा कोसों दूर थीं, वो केवल सूर्यदर्शन के विषय मे ही सोंच रही थी, कदाचित् सारन्धा को भी राजकुमार प्रिय लगने लगा था।।


धीरे धीरे सारन्धा और सूर्यदर्शन एक दूसरे के अत्यधिक निकट आ चुके थे औंर एकदूसरे से प्रेम करने लगे थे,जब ये बात राजा दर्शशील ने सुनी तो वे अत्यंत ही प्रसन्न हुए और राजकुमारी का विवाह सूर्यदर्शन से करने को सहमत हो गए, बडी़ धूमधाम से विवाह सामारोह की तैयारियां होने लगी और विवाह वाला दिन भी आ गया, परन्तु उस दिन जो हुआ उसकी आशा किसी को नहीं थीं।।


राजकुमार सूर्यदर्शन ने सारन्धा के साथ क्षल किया था,वो विवाह के सामारोह में जादूगर शंखनाद के साथ आया और महाराज दर्शशील, महारानी सारन्धा और राजकुमार चन्द्रभान की हत्या कर दी और रानी सारन्धा को राक्षस के निरीक्षण में तलघर मे बंदी बना दिया।।


ये थी मेरे जीवन की कथा,इसलिए पुनः किसी से प्रेम करके उस कथा को मैं नहीं दोहराना चाहतीं, बहुत बड़ा आघात पहुंचा हैं मुझे प्रेम में और इसका प्रतिशोध जब तक मैं उन दोनों से नहीं ले लेतीं, मैं कैसे किसी से प्रेम करने का सोच सकतीं हूं, इसलिए तो मैं आपलोगों के साथ यहां तक आईं हूं,रानी सारन्धा क्रोधित होकर बोली।।
 
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nice update ..vikram pyar karne laga hai rani sarandha se aur ye baat wo bhi jaan gayi hai isliye vikram se dur rehna pasand karti hai .
rani ne apni prem kahani sunayi jisme uske hone wale pati ne shankhnad ke saath milke uske pariwar ki hatya ki .
 

ashish_1982_in

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भाग(१५)
सब आगे बढ़ चले उस जंगल की ओर शाकंभरी की सहायता करने,आगे बढ़ने पर रानी सारन्धा किसी पत्थर की ठोकर से गिर पडी़, उनके पैर में चोट लग गई थीं और वो अब चलने में असमर्थ थीं, रानी सारन्धा की स्थिति देखकर अघोरनाथ बोले___


जब तक रानी सारन्धा की स्थिति में सुधार नहीं होता ,तब तक हम इसी स्थान पर विश्राम करेगें, वैसे तो हम उड़ने वाले घोड़े के द्वारा रानी सारन्धा को उस वन मे भेज सकते हैं परन्तु उड़ने वाले घोड़े का ऐसा उपयोग उचित नहीं हैं क्योंकि सारन्धा जंगल में पहले पहुंच गई तो उसकी सुरक्षा का प्रश्न हैं और अगर हम एक एक करके गए भी तो कुछ इधर कुछ उधर,हमें बंटा हुआ देखकर शंखनाद इसका पूर्णतः उपयोग कर हमें हानि पहुंचा सकता हैं, इसलिए यही उचित होगा कि हम सब एकसाथ रहें।।


और अघोरनाथ जी का निर्णय सभी को उचित लगा,सब उस जगह ठहरकर रानी सारन्धा के स्वस्थ होने की प्रतीक्षा करने लगें, वहां एक बरगद के बडे़ से वृक्ष के तले सबने शरण ली,इस घटना में सबसे अच्छा ये रहा कि राजा विक्रम,रानी सारन्धा की देखभाल करने लगें, परन्तु इस बात से रानी सारन्धा को बहुत संकोच हो रहा था,वो ये नहीं चाहतीं थीं राजा विक्रम उनकी इतनी चिंता करें।।


रात्रि का समय सब सो चुके थे और राजा विक्रम पहरा दे रहे थे,गगन में तारें टिमटिमा रहें थें और चन्द्र का श्वेत प्रकाश संसार के कोने-कोने से अंधकार मिटाने का प्रयास कर रहा था,सारी धरती पर चन्द्र की रोशनी चांदी सी प्रतीत हो रही थीं,बस बीच बीच में किसी पक्षी या किसी झींगुर का स्वर सुनाई दे जाता,रानी सारन्धा भी अपनी बांह का तकिया बना कर वृक्ष के तले लेटी थीं,उनके मुख पर चन्द्र का प्रकाश पड़ने से उनके मुख की आभा बढ़ गई थी,ऐसी सुंदरता को देखकर कोई भी मोहित हो जाए, लेकिन मुझे देखकर रानी सारन्धा के मुख पर कोई भाव क्यो नही आते, उन्होंने आज तक कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी,कदाचित् ऐसा तो नहीं वो किसी और से प्रेम करतीं हो,आखिर क्या कारण हो सकता है उनकी शुष्कता का,ये ही सब सोचते-सोचते विक्रम को नींद आने लगी तब उसने सुवर्ण को जगा दिया, वैसे भी तीसरा पहर खत्म होने को था और सुवर्ण के पहरा देने का समय था।।


सुबह हुई,सब जागें,तभी अघोरनाथ जी रानी सारन्धा की स्थिति पूछने आए___


अब कैसा अनुभव हो रहा है,सारन्धा बेटी, अघोरनाथ जी ने सारन्धा से पूछा।।


अब पहले से अधिक अच्छा अनुभव कर रही हूं बाबा!,आज तो चल भी सकतीं हूं, संभवतः आज हम आगे बढ़ सकते हैं,रानी सारन्धा बोली।।


बहुत ही अच्छा हुआ, बेटी! मैं सबसे कहता हूँ कि आगें चलने की तैयारी करें और अघोरनाथ जी इतना कहकर चले गए।।सब तैयारी कर आगें बढ़ चलें, रास्ते में सारन्धा ने अपने पैर में दोबारा पीड़ा का अनुभव किया और वो एक पत्थर पर बैठकर बोली, मैं अब असमर्थ हूँ आगें नहीं बढ़ सकतीं।।


तभी, राजा विक्रम,सारन्धा के निकट आकर बोले, आपको कोई आपत्ति ना हो तो मैं कुछ आपकी सहायता कर सकता हूँ।।


मुझे आपकी सहायता की आवश्यकता नहीं हैं, क्यों आप मुझे प्रतिपल सताने आ जाते हैं, आपने जो पहले भी मेरी सहायता की हैं उसके लिए मैं सदा आपकी आभारी रहूंगी, परन्तु इस पल मुझे क्षमा करें, मैं वैसे भी बहुत ही कष्टनीय स्थिति में हूँ,मैंने अभी अपने परिवार को गँवाया हैं,जो मेरे लिए असहनीय हैं, आप मेरी अन्तर्वेदना को समझने का प्रयास करें,मुझे सब ज्ञात हैं कि इस समय आपके मन के भाव क्या हैं मेरे लिए, जैसे आप मुझसे प्रेम करने लगें उसी प्रकार मैं भी किसी से प्रेम करती थीं, रानी सारन्धा क्रोध से बोली।।


रानी सारन्धा! कृपया आप क्रोधित ना हो,आप मेरी बातों का आशय उचित नहीं समझ रहीं,राजा विक्रम बोले।।


मैं बिल्कुल उचित समझ रही हूँ, चलिए आज मैं आपको अपने विषय मे सब बता ही देतीं, सब जानकर ही आप मेरे विषय में उचित निर्णय ले कि मैं आपके प्रेम के योग्य हूँ कि नहीं और रानी सारन्धा ने अपने अतीत के विषय मे बोलना शुरू किया।।


पहाड़ो के पार,घने वन जहाँ पंक्षियों के कलरव से वहाँ का वातावरण सदैव गूँजता रहता,घनें वनों के बीच एक नदी बहती थीं, जिसका नाम सारन्धा था,उसके समीप एक राज्य बसता था जिसका नाम रूद्रनगर था,जहाँ के हरे भर खेत इस बात को प्रमाणित करते थे कि इस राज्य के वासी अत्यंत खुशहाल स्थिति में हैं, किसी को भी किसी प्रकार का कष्ट नहीं हैं,सबके घर धन धान्य से भरे हुए हैं और वहाँ के राजा अत्यंत दयालु प्रवृत्ति के थे,उनका नाम दर्शशील था,वे अपने राज्य के लोगों को कभी भी कोई कष्ट ना होने देते,उनकी रानी का नाम शैलजा था,परन्तु बहुत साल व्यतीत हुए राजा के कोई सन्तान ना हो हुई, इस दुख से दुखी होकर रानी शैलजा ने राजा से कहा कि वे अपना दूसरा विवाह कर लें किन्तु राजा दर्शशील दूसरे विवाह के लिए कदाचित् सहमत ना थे उन्होंने इस विषय पर अपने गुरुदेव से मिलने का विचार बनाया और वो अपने गुरू शाक्य ऋषि से मिलने रानी शैलजा के साथ शाक्य वन जा पहुंचे।।


उन दोनों से मिलने के पश्चात गुरदेव बोले___


इतने ब्याकुल ना हो राजन!तनिक धैर्य रखें,कुछ समय पश्चात आपको अवश्य संतान की प्राप्ति होगी और सारे जगत मे आपका मान-अभिमान बढ़ाएगी।।


इस बात से राजा दर्शशील बहुत प्रसन्न हुए और शाक्य वन में एक दो दिन ठहर कर अपने गुरदेव से आज्ञा लेकर लौट ही रहे थे कि मार्ग में बालकों के रोने का स्वर सुनाई दिया जिससे उनका मन द्रवित हो गया और रानी शैलजा भी ब्याकुल हो उठीं।।


राजा दर्शशील ने सारथी से अपना रथ रोकने को कहा और अपने रथ से उतरकर उन्होंने देखा कि कहीं दूर से झाड़ियों से वो स्वर आ रहा हैं,वो दोनों उस झाड़ी के समीप पहुंचे, देखा तो वस्त्र की तहों में एक डलिया में दो जुड़वां बालक रखें हैं,शैलजा से उन बालकों का रोना देखा ना गया और शीघ्रता से उन्होंने दोनो बालकों को अपनी गोद मे उठा लिया।।उन्होंने आसपास बहुत ढ़ूढ़ा,परन्तु कोई भी दिखाई ना दिया, तब दोनों ये निर्णय लिया कि दोनों बालकों को वो अपने राज्य ले जाएंगे, उनमें से एक बालक था और एक बालिका, दोनों पति पत्नी की जो इच्छा थी वो अब पूर्ण हो चुकी थीं,दोनों खुशी खुशी अब उनका लालनपालन करने लगें,उन्होंने बालिका नाम उस राज्य की नदी के नाम पर सारन्धा रखा जोकि मैं हूं और बालक का नाम चन्द्रभान रखा, धीरे धीरे दोनों बड़े होने लगें और कुछ सालों बाद दोनों अपने यौवनकाल में पहुंच गए, इसी प्रकार सबका जीवन ब्यतीत हो रहा था।।


इसी बीच एक दिन सारन्धा नौका विहार करने नदी पर गई, वहां उसने अपनी सखियों और दासियों से हठ की कि वो नाव खेकर अकेले ही नौका विहार करना चाहती हैं,सखियों ने बहुत समझाया,पर उसनें किसी की एक ना सुनी और अकेले ही नाव पर जा बैठी,नाव खेने लगी,कुछ समय उपरांत नदी में एक भँवर पड़ी जिसे दूर से ही देखकर,सारन्धा बचाओ...बचाओ... चिल्लाने लगी क्योंकि उसे नाव की दिशा बदलना नहीं आता था,उसका स्वर वहां उपस्थित एक नवयुवक ने सुना और वो नदी मे कूद पड़ा और तीव्र गति से तैरता हुआ सारन्धा की नाव तक पहुंच कर शीघ्रता से नाव पर चढ़ा और नाव को दूसरी दिशा में मोड़ दिया।।


सारन्धा ने नीचे की ओर मुख करके लजाते हुए उस नवयुवक को धन्यवाद दिया, उसने सारन्धा से उसका परिचय पूछा___


मैं रूद्रनगर के राजा दर्शशील की पुत्री हूँ,यहाँ नौका विहार के लिए अकेले ही निकल पड़ी,मार्ग में भँवर देखकर सहायता हेतु चिल्लाने लगी,सारन्धा ने उत्तर दिया।।


और महाशय आपका परिचय,सारन्धा ने उस नवयुवक से उसका परिचय पूछा।।


जी,मैं अमरेंद्र नगर का राजकुमार सूर्यदर्शन, यहाँ तक आखेट के लिए आ पहुंचा, आपका स्वर सुनकर विचलित होकर देखा तो आप बचाओ...बचाओ चिल्ला रहीं थीं तो शीघ्रता से नदी में कूद पड़ा,सूर्यदर्शन ने सारन्धा के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा।।


आपने आज मेरे प्राणों की रक्षा की हैं इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद, सारन्धा बोली।।


धन्यवाद किस बात का प्रिये!ये तो मेरा धर्म था,सूर्यदर्शन बोला।।


वो सब तो ठीक हैं, महाशय! परन्तु मैं आपकी प्रिये नहीं हूं, सारन्धा बोली।।


नहीं हैं तो हो जाएगीं,आप जैसी सुन्दर राजकुमारी को कौन अपनी प्रिये नही बनाना चाहेगा, सूर्यदर्शन बोला।।


आप भी राजकुमार! कैसा परिहास कर रहें हैं मुझसे, सारन्धा बोली।।


ये परिहास नहीं है राजकुमारी, ये सत्य हैं, लगता हैं आपकी सुन्दरता पर मैं अपना हृदय हार बैठा हूँ, परन्तु आप मेरी बात पर विश्वास नहीं करेंगीं,सूर्य दर्शन ने सारन्धा से कहा।।


अब रहने भी दीजिए राजकुमार, अत्यधिक बातें बना लीं आपने,कृपया कर अब मुझे मेरे राज्य तक पहुंचा आइए,सारन्धा ने राजकुमार से कहा।।


और नदी किनारे आते ही राजकुमार ने राजकुमारी को अपने अपने घोड़े द्वारा उनके राज्य तक पहुंचा दिया, रात्रि के समय सारन्धा की आँखों से निद्रा कोसों दूर थीं, वो केवल सूर्यदर्शन के विषय मे ही सोंच रही थी, कदाचित् सारन्धा को भी राजकुमार प्रिय लगने लगा था।।


धीरे धीरे सारन्धा और सूर्यदर्शन एक दूसरे के अत्यधिक निकट आ चुके थे औंर एकदूसरे से प्रेम करने लगे थे,जब ये बात राजा दर्शशील ने सुनी तो वे अत्यंत ही प्रसन्न हुए और राजकुमारी का विवाह सूर्यदर्शन से करने को सहमत हो गए, बडी़ धूमधाम से विवाह सामारोह की तैयारियां होने लगी और विवाह वाला दिन भी आ गया, परन्तु उस दिन जो हुआ उसकी आशा किसी को नहीं थीं।।


राजकुमार सूर्यदर्शन ने सारन्धा के साथ क्षल किया था,वो विवाह के सामारोह में जादूगर शंखनाद के साथ आया और महाराज दर्शशील, महारानी सारन्धा और राजकुमार चन्द्रभान की हत्या कर दी और रानी सारन्धा को राक्षस के निरीक्षण में तलघर मे बंदी बना दिया।।


ये थी मेरे जीवन की कथा,इसलिए पुनः किसी से प्रेम करके उस कथा को मैं नहीं दोहराना चाहतीं, बहुत बड़ा आघात पहुंचा हैं मुझे प्रेम में और इसका प्रतिशोध जब तक मैं उन दोनों से नहीं ले लेतीं, मैं कैसे किसी से प्रेम करने का सोच सकतीं हूं, इसलिए तो मैं आपलोगों के साथ यहां तक आईं हूं,रानी सारन्धा क्रोधित होकर बोली।।
Fantastic update bhai maza aa gya ab dekhte hai ki aage kya hota hai
 

Hero tera

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nice update ..vikram pyar karne laga hai rani sarandha se aur ye baat wo bhi jaan gayi hai isliye vikram se dur rehna pasand karti hai .
rani ne apni prem kahani sunayi jisme uske
Fantastic update bhai maza aa gya ab dekhte hai ki aage kya hota hai

hone wale pati ne shankhnad ke saath milke uske par
Thanks bhai
 
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Hero tera

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--भाग(१६)

राजकुमारी सारन्धा की आंखें क्रोध से लाल थीं और उनसे अश्रुओं की धारा बह रहीं थीं, उनकी अन्त: पीड़ा को भलीभाँति समझकर नीलकमल आगें आई और सारन्धा को अपने गले लिया___
क्षमा करना बहन!आप कब से अपने भीतर अपार कष्ट को छिपाएँ बैठीं थीं और हम सब इसे ना समझ सकें, आपकी सहायता करने मे हम सब को अत्यंत खुशी मिलेगी, आप ये ना समझें की आपका कुटुम्ब आपके निकट नहीं हैं, हम सब भी तो आपका कुटुम्ब ही हैं,अब आप अपने अश्रु पोछ लिजिए और मुझे ही अपनी बहन समझिए,यहां हम सब भी शंखनाद के अत्याचारों से पीड़ित हैं,हम सब का पूर्ण सहयोग रहेगा आपके प्रतिशोध मे,आप स्वयं को असहाय मत समझिए,नीलकमल ने सारन्धा से कहा।।
धन्यवाद, बहन! और सबसे क्षमा चाहती हूँ जो अपने क्रोध को मैं वश मे ना रख सकीं,क्या करती? कोई मिला ही नहीं जिससे अपनी ब्यथा कहती,परन्तु आप सब जबसे मिले थे तो एक आशा की किरण दिखाई पड़ी कि आप लोग ही मुझे मेरे प्रतिशोध को पूर्ण करने मे सहयोग कर सकते हैं, सारन्धा ने सभी से कहा।।
तभी अघोरनाथ जी ने आगें आकर सारन्धा के सिर पर अपना हाथ रखते हुए कहा___
इतनी ब्यथित ना हो बेटी! तुम्हारे कष्ट को मैं भलीभाँति समझ रहा हूँ, जो ब्यतीत हो चुका उसे भूलने मे ही भलाई हैं, आज से तुम मुझे ही अपना पिता समझों।।
इतना सुनकर सारन्धा ने अघोरनाथ जी के चरण स्पर्श कर लिए और अघोरनाथ जी ने सारन्धा को गले से लगा लिया।।
तब राजा विक्रम,सारन्धा के सामने आकर बोले__
क्षमा करें राजकुमारी, बहुत बड़ी भूल हुई मुझसे और आपसे एक बात और ज्ञात करना चाहूँगा कि अमरेन्द्र नगर के राजकुमार सूर्यदर्शन के माता-पिता से आप कभी मिलीं हैं, राजा विक्रम ने सारन्धा से प्रश्न किया।।
नहीं, उन्होंने कहा कि उनके माता पिता का स्वर्गवास हो चुका हैं, राजकुमारी सारन्धा ने उत्तर दिया।।
तात्पर्य यह हैं कि आपसे भी उन्होंने ये राज छुपाया, राजा विक्रम बोले।।
तभी राजकुमार सुवर्ण बोले, क्या बात हैं मित्र! इतने समय से पहेलियाँ क्यों बुझा रहे हैं, हम सबको भी तो ज्ञात हो कदाचित् बात क्या है?
तब राजा विक्रम बोले___
मित्र! सुवर्ण, जिस राजकुमार सूर्यदर्शन की बात राजकुमारी सारन्धा कर रहीं हैं, वो सच मे बहुत धूर्त और पाखंडी हैं, राजा विक्रम बोले।।
तो,मित्र ! क्या आप भी सूर्यदर्शन से भलीभाँति परिचित हैं, सुवर्ण ने विक्रम से पूछा।।
जी,हां! राजकुमार सुवर्ण,वो सूर्यदर्शन नहीं,क्षल-कपट की मूर्ति हैं, उसने ना जाने कितने लोगों के साथ क्षल किया हैं___
आप विस्तार से बताएं, सूर्यदर्शन के विषय मे,सुवर्ण ने कहा।।
हां,तो आप सभी सुने,सूर्यदर्शन के विषय मे और राजा विक्रम ने कहना प्रारम्भ किया___
मानसरोवर नदी के तट पर एक सुंदर राज्य था जिसका नाम बांधवगढ़ था,उस राज्य के वनों में वन्यजीवों की कोई भी अल्पता नहीं थीं, राज्य के वासियों को उन वन्यजीवों का आखेट निषेध था,नागरिक अपना भरण पोषण उचित प्रकार से कर सकें इसके लिए वहां के राजा मानसिंह ने उचित प्रबन्ध कर रखें थे,वैसे भी राज्य मे किसी भी प्रकार की कोई भी अल्पता नहीं थी,मानसरोवर नदी ही वहाँ की जीविका की मुख्य स्श्रोत थी,चारों ओर खुशहाली ही खुशहाली थी।।
राजा सदैव नागरिकों की सहायता हेतु कुछ ना कुछ प्रयास करते रहते,उन्हें सदैव अपनी प्रजा अपनों प्राणों से भी प्रिय थीं,उनकी रानी विद्योत्तमा सदैव उनसे कहती की कि प्रजा के हित में उनका इतना चिंतन करना उचित नहीं हैं, इससें आपके स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता हैं परन्तु महाराज कहते कि ये प्रजा तो मेरे पुत्र पुत्री समान हैं, भला इनके विषय मे चिंतन करने से मुझे क्या हो सकता हैं।।
ऐसे ही दिन ब्यतीत हो रहे थे,राजा के अब दो संतानें हो चुकी थीं,उन्होंने पुत्र का नाम विक्रम और पुत्री का ना संयोगिता रखा,उनकी दोनों संतानें अब यौवनावस्था मे पहुंच चुकीं थीं ।।
तभी राज्य में चारों ओर से वन्यजीवों के आखेट की सूचनाएं आने लगीं,राजा मानसिंह इन सूचनाओं से अत्यधिक ब्याकुल रहने लगे और उन्होंने इन सबके कारणों के विषय में अपनी प्रजा और राज्य के मंत्रियों से विचार विमर्श किया, परन्तु कोई भी मार्ग ना सूझ सका और ना ही किसी को कोई कारण समझ मे आया,ना गुप्तचर ही कोई कारण सामने ला पाए।।
तब राजा मानसिंह ने निर्णय लिया कि वो ही वन में वेष बदलकर रहेंगे और कारणों को जानने का प्रयास करेंगे,राजा मानसिंह ने कुछ सैनिको के साथ वन की ओर प्रस्थान किया और आदिवासियों का रूप धरकर वन मे रहने लगें,इसी तरह कुछ दिन ब्यतीत हो गए परन्तु कोई भी कारण सामने ना आ सका,अब राजा और भी गहरी सोंच मे डूबे रहते।।

अन्ततः एक रात्रि उन्होंने कुछ अनुभव किया कि कोई आकृति वायु में उड़ते हुए आई और एक वन्यजीव पर कुल्हाड़ी से प्रहार किया,मृत पशु की त्वचा को शरीर से निकाला और पुनः वायु मे उड़ चला,मानसिंह ने अपने भाले से उस पर प्रहार किया, जिससे वो भयभीत हो गया और उसनें अपनी गति बढ़ा थी और वायु में अदृश्य हो गया, राजा उसके पीछे पीछे भागने लगे क्योंकि उस मृत पशु की त्वचा अदृश्य नहीं हुई थी और इस बार मानसिंह ने अपने बाण का उपयोग किया जिससे वो अदृश्य आकृति मूर्छित होकर धरती पर गिर पड़ी,मानसिंह भागकर उस स्थान पर गए,तब तक वो आकृति अपना रूप ले चुकी थी, राजा ने शीघ्र अपने सैनिकों को पुकारा और उसे बंदी बनाने को कहा___
उसे बंदी बनाने के उपरांत मानसिंह ने उससे उसका परिचय पूछा___
कौन हो तुम? और यहां क्या करने आए थे,ऊंचे स्वर मे मानसिंह ने पूछा।।
मैं हूं दृष्टिबंधक (जादूगर)शंखनाद, मैं यहाँ वन्यजीवों का आखेट करने आया था और राजन तुम मुझे अधिक समय तक बंदी बनाकर नहीं रख पाओगे, अभी मेरी शक्तियों से तुम परिचित नहीं हो,एक बार मेरी दृष्टि जिस पर पड़ गई,इसके उपरांत उस पर किसी का भी अधिकार नहीं रहता और अब ये वन मेरा हैं इस पर मेरा अधिकार हैं,शंखनाद बोला।।
और कुछ समय उपरांत शंखनाद पुनः अदृश्य आकृति मे परिवर्तित होकर वायु में अदृश्य हो गया,मानसिह और उनके सैनिकों ने चहुँ ओर अपनी दृष्टि डाली परन्तु वो कहीं भी नहीं दिखा।।
परन्तु उस रात्रि के उपरांत वन्यजीवों के आखेट की सूचनाएं नहीं आईं,अब राजा मानसिंह भी निश्चिन्त हो गए थे कि कदाचित् शंखनाद के भीतर भय ब्याप्त हो गया हैं,इसलिए वन्यजीवों का आखेट करना उसने छोड़ दिया हैं।।
परन्तु यहीं राजा मानसिंह से भूल हो गई और वे पुनः राजपाट मे ब्यस्त हो गए,इसी बीच एक दिन राजकुमारी संयोगिता के लिए अमरेन्द्रनगर के राजकुमार सूर्यदर्शन के विवाह सम्बन्ध का प्रस्ताव आया,राजा मानसिंह सहमत भी हो गए, परन्तु राजकुमार विक्रम बोले___
पिता श्री,मैं पहले अपने संदेह दूर कर लूं, इसके उपरांत आप विवाह का प्रस्ताव स्वीकार करें,मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी और राजा मानसिंह ने अपनी सहमति विक्रम को दे दी।।
विक्रम वेष बदलकर अमरेंद्र नगर पहुंचा,वहां वो कुछ दिनों तक अपनी पहचान छिपाकर रहा,उसने पता किया कि सूर्य दर्शन एक कपटी व्यक्ति हैं, वो अपने पिता सत्यजीत को बंदी बनाकर स्वयं राजा बन बैठा और अब कुछ समय से शंखनाद से मित्रता कर ली हैं और उसने धूर्तता की सारी सीमाएं लांघ लीं हैं,उसका चरित्र भी गिरा हुआ हैं, दिन रात्रि मद मे डूबा रहता हैं, विक्रम समय रहते जानकारी ज्ञात कर सारी सूचनाएं लेकर महाराज मानसिंह के समीप पहुंचे।।
ये सब सुनकर मानसिंह अत्यधिक क्रोधित हुए,उन्होंने सूर्यदर्शन के विवाह प्रस्ताव को सहमति नहीं दी और इस कारण सूर्यदर्शन को अपने अपमान का अनुभव किया और उसने राजा मानसिंह से प्रतिशोध लेने की सोचीं।।
और एक रात्रि सूर्यदर्शन, शंखनाद के संग महाराज मानसिंह के राज्य बांधवगढ़ पहुंचा,शंखनाद ने बांधवगढ़ की प्रजा के घरों में अग्नि लगाना प्रारम्भ कर दिया, सारा राज्य अग्नि के काल में समाने लगा, प्रजा त्राहि त्राहि कर उठीं, अपने महल के छज्जे से प्रजा की ऐसी दशा देखकर राजा मानसिंह बिलख पड़े।।
उसी समय महल से बाहर आए,परन्तु उसी समय शंखनाद ने अपने अदृश्य रूप में उनका वध कर दिया,रानी बिलखती हुई राजन..राजन करते हुए उनके समीप आईं तब रानी पर प्रहार कर राजकुमारी संयोगिता को अपने साथ उठा ले गया।।
तब मैं राजकुमार विक्रम अपनी बहन संयोगिता की खोज में ना जाने कितने दिनों तक भटकता रहा, मुझे ये ज्ञात हुआ कि शंखनाद और सूर्यदर्शन ने ये षणयंत्र रचा था और शंखनाद ने संयोगिता को ले जाकर बांधवगढ़ की सीमा पर छोड़ दिया था और उसे वहां से शंखनाद के जादू से बने राक्षस ने तलघर में बंदी बना लिया हैं, मैं उस तलघर के अत्यंत समीप पहुंच गया तभी उसी समय मुझ पर किसी ने प्रहार किया और मैं मूर्छित होकर धरती पर गिर पड़ा,इसके उपरांत आप सब मिले,उसके आगें की कथा तो आप सबको ज्ञात हैं।।
 

Hero tera

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भाग(१७)

इसका तात्पर्य है कि शंखनाद ने सबके जीवन को हानि पहुंचाई हैं,अब हम सबके प्रतिशोध लेने का समय आ गया है, शंखनाद और चित्रलेखा ने बहुत पाप कर लिए,अब उनके जीवन से मुक्ति लेने का समय आ गया है, अघोरनाथ जी क्रोधित होकर बोले।।
हां, बाबा! इतना पाप करके,इतने लोगों की हत्या करके अब तक कैसे जीवित है वो,बकबक ने कहा।।,
हां..बकबक,मैं भी यही सोच रहा था,सुवर्ण बोला।।
परन्तु, क्या हो सकता हैं अब,किसी के मस्तिष्क मे कोई विचार या कोई उपाय हैं,हम केवल सात लोंग हैं और शंखनाद इतना शक्तिशाली, हम किस प्रकार उसे पराजित कर सकते हैं, उसके साथ चित्रलेखा और सूर्यदर्शन भी हैं,हमें तो ये भी अभी ज्ञात नहीं कि सच मे चित्रलेखा के प्राण उस गिरगिट में हैं जो उसने अपने उस घर में छिपा रखा हैं, मानिक चंद बहुत ही अधीर होकर बोला ।।
आप!सत्य कह रहे हैं,मानिक चंद! इस समस्या का कोई भी समाधान नहीं सूझ रहा हैं, सुवर्ण ने कहा।।
अब जो भी हो परन्तु अभी तो सूर्य अस्त हो चुका हैं और रात्रि होने वाली हैं, रात्रि भर के विश्राम के लिए कोई उचित स्थान खोजकर विश्राम करते हैं, प्रातःकाल उठकर विचार करेंगे कि आगें क्या करना हैं?राजकुमार विक्रम बोले।।
सब उचित स्थान खोजकर विश्राम करने लगे,आज अमावस्या की रात्रि थी इसलिए चन्द्र का प्रकाश मद्धम था,घना वन जहाँ केवल साँय साँय का स्वर ही सुनाई दे रहा था,यदाकदा किसी पंक्षी,झींगुर का स्वर सुनाई दे जाता और झरने के गिरते हुए जल का स्वर कुछ उच्च स्वर से गिर रहा था,रात्रि का दूसरा पहर ब्यतीत हो चुका था,बकबक पहरा दे रहा था।।
एकाएक उसे पत्तों की सरसराहट का स्वर सुनाई दिया, ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे कोई रेंग रहा हैं, बकबक को भय का अनुभव हुआ, परन्तु कुछ समय पश्चात वो स्वर सुनाई देना बंद हो गया,बकबक ने सोचा होगा कोई वनीय जीव और वो पुनः निश्चिंत होकर पहरा देने लगा।।
तभी बकबक को अपने पैरों पर किसी वस्तु का अनुभव हुआ, वो कुछ सोंच पाता उससे पहले ही वो वृक्ष से उल्टा लटक चुका था और अब उसने बचाओं... बचाओ... का स्वर लगाना शुरू किया, उसका स्वर सुनकर सभी जागे और बकबक को छुड़ाने का प्रयास करने लगे,परन्तु तब तक वो सब भी वृक्षों के तनों से बांधे जा चुके थे, अंधकार होने से कुछ ठीक से दिखाई नहीं पड़ रहा था,सब दुविधा मे थे कि ये सब क्या हो रहा हैं।।
तभी मानिक चंद क्रोधित होकर बोला__
मैंने कहा था ना बाबा ! कि शंखनाद अवश्य कुछ ऐसा करेगा कि हम सब विवश हो जाए और हमसे जीतने के लिए फिर उसने अपनी शक्तियां भेंजी हैं, जिससे हम अपने उद्देश्य मे सफल ना हो सकें, जिससे वो हमारी विवशता का लाभ उठाकर हमारी हत्या कर सकें।।
हो सकता हैं कि ये शंखनाद का नहीं ,किसी और का कार्य हो,अघोरनाथ जी बोले।।एक संकट समाप्त नही होता कि दूसरा संकट आकर खड़ा हो जाता हैं, पता नहीं कौन सी अशुभ घड़ी थी जो मै इस द्वीप पर आया, मानिक चंद पुनः क्रोध से बोला।।
तभी एक प्रकाश सा हुआ और एक छोटा नर पिशाच प्रकट हुआ और सबके समक्ष आ खड़ा हुआ, जिसकी त्वचा लसलसी थी,जिसके कान का आकार बहुत बड़ा था ,नाक चपटी,हाथ पैर छोटे छोटे और पेट मटके के समान था,सबके समक्ष आकर उसने पूछा।।आप सब अभी किसके विषय में कह रहें थे___
तुम हो कौन?ये पूछने वाले,मानिकचंद गुस्से से बोला।।
कृपया,आप बताएं, कहीं आप दृष्टि बंधक(जादूगर) शंखनाद के विषय मे वार्तालाप तो नहीं कर रहें थे।।
परन्तु तुम कैसे जानते हो?शंखनाद को,सुवर्ण ने पूछा॥
क्योंकि शंखनाद हमारा भी शत्रु हैं, उस नर पिशाच ने कहा।।
परन्तु ,पहले ये बताओं कि तुम हो कौन?राजकुमार विक्रम ने पूछा।।
मैं इस स्थान के नरपिशाचों का राजा घगअनंग हूँ, मैं तो केवल अपना कर्तव्य कर रहा था,अपनी प्रजा की रक्षा करना मेरा धर्म हैं और मै तो केवल अपना धर्म निभा रहा था,आप सब को मेरे कारण इतना कष्ट उठाना पड़ा,उसके लिए मैं आप सबका क्षमाप्रार्थी हूं, घगअनंग बोला।।
यद्पि आपका परिचय पूर्ण हो गया हो महाशय तो कृपया, मुझ बंधक पर भी अपनी कृपादृष्टि डालें, कब तक ऐसे उल्टा लटका कर रखेगें मुझे, बकबक बोला।।
बकबक की बात सुनकर सब हंसने लगे।।
क्षमा करें, मान्यवर,मै तो भूल ही गया लीजिए अभी आप मुक्त हुए जाते। है, राजा घगअनंग बोले।।
और घगअनंग ने अपनी ताली बजाई और बहुत सी नर पिशाच सेना उपस्थित हो गई, राजा घगअनंग ने आदेश दिया कि सभी को मुक्त कर दिया जाए और सभी सैनिकों ने राजा घगअनंग के आदेश का पालन किया।।
सबके मुक्त हो जाने पर राजा घगअनंग ने अघोरनाथ जी से कहा___
कहिए, महाशय मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूं?
बस,इतनी सी कि अगर शंखनाद के विषय में अगर आपको कोई जानकारी हो तो हमें दीजिए, जिससे हम सब का प्रतिशोध सरल हो जाए,अघोरनाथ जी ने घगअनंग से कहा।।
जी,अवश्य, किन्तु पहले आप सब हमारें निवास स्थान चलकर कुछ स्वल्पाहार करें, आप सबका स्वागत करने मे मुझे अत्यंत खुश मिलेंगी,घनअनंग बोले।।
आप इतना आग्रह कर ही रहें तो चलिए, आपके निवास स्थान चलते हैं, अघोरनाथ जी बोले।।
ये सब देखकर मानिक चंद बोला।।
ये क्या बाबा, इन सब पर आपने विश्वास भी कर लिया, इन्होंने हमसे छल किया तो ,पुनः बंदी बना लिया तो,मानिक चंद मन मे संदेह लाते हुए बोला।।
सालों हो गए, मानवों को देखते हुए, कपटी और सज्जन मे अन्तर कर सकता हूँ, मानिक बेटा,ये केश सूर्य के प्रकाश में श्वेत नहीं हुए हैं,अघोर नाथ जी ने मानिक चंद से कहा।।
और अघोरनाथ जी सभी के साथ घगअनंग के निवास स्थान की ओर चल दिएअभी रात्रि बीती नहीं थीं,मार्ग बहुत ही अंधकारमय था,तभी बकबक ने अपना प्रकाश वाला पत्थर निकाला, जिससे मार्ग मे प्रकाश फैल गया, सभी घगअनंग के निवास स्थान पहुंचे।।
बहुत ही सुंदर स्थान था,विशाल विशाल वृक्षों के तनों में छोटे छोटे घर स्थित थे,जो प्रकाश से जगमगा रहें थें, उनकी छटा ही निराली थी,उनकी शोभा देखते ही बन रही थी,जो एक बार देखें मोहित हो जाए।।सभी उस स्थान की निराली छटा देखकर मोहित हो उठे,बारी बारी से महिला नर पिशाचिनी आईं और सबका स्वागत किया, जो भी उनके पास खाने योग्य आहार था,उन्होंने उपस्थित किया, घगअनंग की प्रजा बहुत प्रसन्न थी,बहुत समय पश्चात उनके निवास स्थान पर अतिथि आएं थे,कुछ संगीत और नृत्य के भी कार्यक्रम भी किए गए, बहुत दिनों पश्चात् सारन्धा के मुख पर हंसी देखकर विक्रम भी प्रसन्न था।।
विक्रम बस सारन्धा को ही निहारे जा रहा था,उसकी दृष्टि केवल सारन्धा की ओर थी,उसकी ऐसी अवस्था देखकर, सुवर्ण ने विक्रम को छेड़ते हुए कहा___
और मित्र!आनंद आ रहा ना।।
और विक्रम ने हल्की हंसते हुए, दूसरी ओर मुख फेरते हुए सुवर्ण से कहा___
मित्र! आप भी,कैसी बातें कर रहें हैं?
हां...हांं..मित्र, ये प्रेम होता ही कुछ ऐसा हैं,आप कितना भी छुपाएं, सबको आपकी दृष्टि से ज्ञात हो ही जाता हैं, सुवर्ण ने विक्रम से कहा।।
सच,मित्र! मै सारन्धा से प्रेम करने लगा हूँ किन्तु उनकी ऐसी अवस्था देखकर अपने हृदय की बात कहना अच्छा नहीं लगा,विक्रम ने अपने हृदय की बात सुवर्ण को सुनाते हुए कहा।।
कोई बात नहीं मित्र! अभी राजकुमारी सारन्धा की मनोदशा स्थिर नहीं हैं, बहुत बड़ा आघात पहुंचा हैं उन्हें, समय रहतें, वो अवश्य ही आपके निश्छल प्रेम को समझने का प्रयास करेंगी, आप अकारण ही चिंतित ना हो,सुवर्ण ने विक्रम को सांत्वना देते हुए कहा।।
हांं,अवश्य ही ऐसा होगा, मुझे अपने प्रेम पर विश्वास हैं, विक्रम ने सुवर्ण से कहा।।
 
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