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Incest राजकुमार देव और रानी माँ रत्ना देवी

Nevil singh

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Update 8

इधर राजमहल में भी शान्ति छाई हुई थी। सभी अतथियों के जाने के बाद राजपरिवार के सभी सदस्य अपने अपने कक्ष में आराम करने के लिए जा चुके थे। रात्रि का तीसरा पहर था। राजमहल में चारों ओर मसालें जल रही थी। रांझा कोई गीत गुनगनाते हुए घूम रही थी कि सेवकों ने सभी सामान वापस जगह पर रखा है कि नहीं। आखिर वो भी राजमाता की मुंहबोली सेविका जो थी और इस राजपरिवार के लिए परिवार के सदस्य से कम नहीं थी, राजा विक्रम सेन और राजकुमारी नंदिनी उसे धाईं मां बुलाते थे, ,,,बचपन में
उन्होंने रांझा का दूध जो पिया है। रांझा केवल कहने को दासी थी ,,,,,लेकिन उसकी हैसियत राजपरिवार के किसी सदस्य से कम ना थी। उसका पुत्र कालू राजा विक्रम के उम्र का ही था,,,तभी तो वह राजा विक्रम को बचपन में दूध पिला पाती थी क्युकी उस समय उसके स्तनों में दूध आता था और जब राजमाता देवकी रात में महाराज सुर सेन की बाहों में नंगी होकर सम्भोग में लीन रहती,,,,उस समय रांझा ही देवकी के पुत्र पुत्री को अपने पुत्र के साथ संभालती और उन्हें अपने स्तनों से दूध पिलाती। महाराज सुर सेन देवकी की शारीरिक सुंदरता के इतने दीवाने थे कि हर रात देवकी को बिना चोदे नहीं मानते थे,,,,तभी तो देवकी को भी संभोग की लत लग गई थी,,,,यहां तक की देवकी को जब माहवारी आई होती तब भी महाराज उसे चोदे बिना नहीं छोड़ते थे।

इधर रंझा सारी व्यवस्था देखकर राजमाता देवकी के कक्ष की ओर चल देती है जहां देवकी अब सोने की तैयारी कर रही थी। देवकी ने भी राजकीय वस्त्र निकाल कर पतले कपड़े की चोली और घाघरा पहन लिया था जो वह सोते समय पहना करती थी । रं झा देवकी के कक्ष के बाहर पहुंच कर द्वार से ही प्रवेश की अनुमति मांगती है...

राजमाता क्या मै अंदर आ सकती हूं ,,,

कौन है,,, रांझा,,,, आजा तुझे किसने रोका है कमिनी,,,

जो आज्ञा राजमाता,,,,ऐसा कहकर वह कक्ष में प्रवेश कर जाती है और देखती है की देवकी सोने की तैयारी कर रही थी,,,,

मैंने आपको परेशान तो नहीं किया देवकी इतनी रात को

अरे नहीं ,,,, कौन सा मै सुहागन हूं जो पति के साथ बिस्तर गर्म करने के लिए रात का इंतजार करती हूं। और तू मुई मेरे जले पर नमक छिड़कती है। ,,,, ऐसा बोलकर देवकी मुस्कुरा देती है

राजमाता मुझे माफ़ करना,,,मेरा कहने का ये मतलब नहीं था,,,,

तू तो वास्तव में डर गई पगली,,,मै तो मजाक कर रही थी

हे हे हे,,, मैं भी तो मजाक ही कर रही थी,,, मैं क्यों डरूं तुमसे,,,तुम्हारे कई राज जानती हूं मै,,,,ऐसा बोलकर रांझा दांत निकाल कर वह हस देती है।

आजा रांझा,,,,क्या बताऊं ,,,,आज बहुत थकावट सी हो गई है,,,दिन भर दौड़ते ही रहे,,,और फिर रात में महाभोज,,,,पूरा शरीर टूट रहा है,,,, और कमर में बहुत दर्द हो रहा है,,,लगता है अब मै बूढ़ी हो गई हूं,,,

अरे तो मै तो हूं ना,,तुम्हारी दासी,,,आओ लेट जाओ बिस्तर पर,,,मै तुम्हारे शरीर की मालिश कर देती हूं,, और तू बूढ़ी कहां हुई है,,,अभी भी तुझे देखकर बुड्ढों के लिंग तुम्हहारी योनि को सलामी देने के लिए खड़े हो जाएं,,,,

अब बस कर,,, ये ठीक रहेगा,, आ जा थोड़ी मालिश कर दे और हां ,,, थोड़ा तेल भी ले ले,,,तेल से मालिश कर देगी तो सारा दर्द दूर हो जाएगा,,

अभी लाती हूं देवकी,,,तू तब तक बिस्तर पे लेट जा

रांझा फटाफट जाती है और औषधीय तेल की शीशी ले आती है जो राज वैद्य ने खास तैयार किया था। तब तक देवकी बिस्तर पे पेट के बल लेट जाती है,,,

रांझा देवकी के पीठ पर तेल गिर।कर तेल मालिश करने लगती है और उसके कंधे से लेकर कमर तक मालिश करने लगती है। लेकिन बीच में देवकी की चोली मालिश करने में दिक्कत कर रही थी। तो रांझा बोलती है

देवकी तेरी चोली परेशान के रही है मालिश करने में,,,निकाल दे इसे तो मै अच्छे से तेरी मालिश कर दू,,,

ठीक है,,,तू रुक जरा,, मेरी चोली की डोर तो खोल दे पीछे से।

देवकी के कहने पर रांझा उसकी चोली की डोर खोल देती है और चोली के दोनो भागो को अलग कर देती है जिससे देवकी की पूरी पीठ नंगी हो जाती है। रांझा अब पूरे पीठ पे अच्छे से मालिश करने लगती है और हाथ उसकी कमर तक ले जाती है जहां से देवकी का घाघरा शुरु होता था और देवकी से कहती है

देवकी तेरी नंगी पीठ कितनी चिकनी है,, मन करता है इसकी सहलाती ही रहूं

चुप छीनाल,,,तू बड़ी वैश्या है रे,,,औरत होकर औरत की नंगी पीठ तुझे अच्छी लगती है,,,

अब तेरा शरीर है ही संगमरमर की तरह तो क्यों ना अच्छा लगे मुझे,,,,रांझा ने कहा

अच्छा ठीक है चुप कर,,, अब मालिश पे ध्यान दे,,,देवकी ने जवाब दिया लेकिन मन ही मन अपनी
जवानी की प्रशंसा सुनकर वह रोमांचित ही रही थी,,,

फिर रांझा बात छेड़ते हुए कहती है,,,देवकी आज तो तु गजब की सुन्दर लग रही थी,,,राजकुमारी नंदिनी तुम्हारे सामने फीकी पड़ गई थी,,,तुम तो नंदिनी की बहन लग रही थी,,

तू कुछ भी बोलती रहती है रांझा,,,कहा राजकुमारी नंदिनी का कोमल यौवन और कहां मेरा बूढ़ा बदन,,,कोई तुलना ही नहीं है,,,तू केवल मेरा मन रखने को बोलती है,,,

नहीं देवकी, मै सच बोल रही हूं,,,,देखा नहीं सभी तुम्हे कैसे घुर रहे थे,,,और तो और तुम्हारा प्रिय पुत्र विक्रम भी तुम्हारे यौवन का रस पिये जा रहा था,,,और ऐसा बोलकर रांझा एक कुटिल मुस्कान मुस्कुराती है,,,

ये सुनकर देवकी शरमा जाती है और तकिए में अपना मुंह छिपा लेती है।

अब जरा सीधी लेट जा देवकी ,,आगे भी मालिश कर दूं,,,

ऐसा कहने पर देवकी सीधी लेट जाती है जिसके स्तन अभी चोली से ढके होते है,,,रांझा देवकी के कंधे ,गर्दन से होते हुए चोली के खुले भाग तक मालिश करने लगती है, लेकिन चोली के कारण वह ठीक से मालिश नहीं कर पाती है और कहती है,,,

ये चोली तो हटा देवकी,,,कितनी परेशानी हो रही है मालिश करने में और तेरी चुची की भी मालिश नहीं हो पा रही है,,,

नहीं नहीं ,,,रहने दे,,,ऐसे ही मालिश कर दे

तू आज शरमा क्यों रही है,,तू तो ऐसे शर्मा रही है जैसे मैंने तुम्हारी चूचियों को नंगा देखा ही नहीं है,,,ले हटा ,,,मै ही इसे हटा देती हूं और ऐसा बोलकर देवकी के स्तन पर से चोली हटा देती है,,,,और अब देवकी की चूची पूरी नंगी होकर बाहर निकाल जाती है जिसे देखकर रांझा आश्चर्य से बोलती है,,

ये क्या देवकी तुम्हारे स्तन तो पूरे खड़े है,,,,क्या बात है महाराज की याद आ रही है या फिर ------

अब तू नंगी करके मालिश करेगी तो चूची तो कड़क होगी ही ना,,,चल तू मालिश कर

रांझा फिर मालिश करने लगती है और इस बार हाथो में तेल लेकर उसकी चूची पे लगने लगती है और जोर जोर से मालिश करने लगती है। देवकी के बड़े बड़े स्तन को हाथों ने भरकर उसे मसलने लगती है और शरारत करती हुई उसके चूचुकों की अपनी उंगलियों से मसल देती है जिससे देवकी की आह निकल जाती है,,,और उसकी काम भावना उमंगे मारने लगती है,,,,वह रांझा से बोलती है,,,,

ये क्या कर रही है छीनल,, देख नहीं रही मुझे दर्द हो था है,,,,

देवकी ये दर्द की सिसकारी नहीं,ये तो मजा की सिसकारी है और ऐसा बोलकर उसकी एक चूची को अपने मुंह में लेकर चूस लेती है,, जिस पर देवकी उसके सर पर एक चपत लगती है और कहती है

अब हो गया रण्डी साली,,,तू मालिश कर और एक हल्दी सी कामुक मुस्कान देती है

रांझा देवकी की छाती और पेट की मालिश करती है और फिर पैर की मालिश करने देवकी के पैरो के तरफ जाकर बैठ जाती है,,,और उसके पैरो के तलवे और पिंडली की मालिश करने लगती है,,,और देवकी से कहती हैi----

अपना घाघरा थोड़ा ऊपर उठा लो तो मै अच्छे से तुम्हारे पैरों की मालिश कर दूं

इस पर देवकी अपना घाघरा घुटनों तक के लेती है और रांझा उसके पैरो पर घटनो तक मालिश करने लगती है

तू बहुत अचछा मालिश करती है रांझा,,,मेरे पैरो का दर्द बहुत कम हो गया है,,,देवकी ने कहा

अभी कहा मालिश हुई है ठीक से,,,अभी मै तुम्हारे जांघों की मालिश करूंगी तब देखना तुम्हारे शरीर का दर्द कैसे खत्म होता है और ऐसा कहते हुए देवकी के घाघरे को उसके घुटनो से ऊपर सरकाकर जांघों के ऊपर चढ़ा देती है,,,जिससे देवकी की दोनो टांगे जांघों तक नंगी हो जाती है,,,वह उपर से तो नंगी थी ही अब नीचे भी उसके पैर नंगे हो जाते हैं,,,,वह देवकी के पैरों की अच्छे से मालिश करने लगती है और हाथो को नीचे से ले जाकर उसके जांघों की जड़ों तक घाघरे के अंदर से हाथ ले जाती है,,,फिर वह देवकी से कहती है,,,

देवकी अपना घाघरा भी निकाल दे, नहीं तो तेल से तेरा घाघरा गंदा हो जाएगा और ये तेल तो और दाग छोड़ता है ,एक बार लग गया तो छूटता ही नहीं है,,,लेकिन देवकी घाघरा खोलने में आना काना करती है और कहती है,,,,,

मुझे शरम आ रही है रांझा,,,आज मै पूरी नंगी नहीं होऊंगी

अगर घाघरा नहीं उतरोगी तो एक तो घाघरा गंदा होगा,,, दूसरे तुम्हारी मालिश ठीक से नहीं हो पाएगी

ठीक है,,,तो एक शर्त है,,,तू क्यों कपड़े पहने है,,,चल तू भी निकाल कपड़े,,,

ये कौनसी बड़ी बात है ,,,ये लो मैं निकाल देती हूं अपने कपड़े और एक ही झटके में अपनी चोली निकाल कर फेंक देती है,,,,

घाघरा भी तो निकाल दे,,,देवकी ने कहा

इस पर रांझा कुछ सोचती है,,,तब तक देवकी उसके घाघरे का नाड़ा खोल देती है जिससे रांझा का घाघरा सरसराता हुआ उसके पैरों में गिर जाता है और वह पूरी मादरजात नंगी हो जाती है,,,उसकी बुर आज पहली बार देवकी की सामने थी जिसे देखकर देवकी मुस्कुरा देती है और कहती है

तेरी बुर पर तो बहुत घने जंगल है रांझा ,,, इस जंगल को पार कर गुफा तक पहुंचना बहुत मुश्किल होता होगा और ये कहकर देवकी उसके बुर को अपने हाथ से सहला देती है जिससे रांझा की आह निकल जाती है,,,,और देवकी मुस्कुराने लगती है,,,,तब देवकी कहती है,,,

अब तो खुश राजमाता ,,,, जो मुझे पूरी नंगी कर दिया,,,,आओ अब मै तुम्हारी मालिश कर दूं और ऐसा बोलकर उसके घाघरे को उसके पैरो से निकालने लगती है जिसे देवकी के उन्नत नितंब रोक रहे थे,,,देवकी समझ जाती है और अपने गान्ड थोड़ी सी ऊपर उठती है जिससे देवकी का घाघरा आराम से उसके पैरो से निकल जाता है और वह पूरी नंगी अपने बिस्तर पर लेटी रहती है ,,,रांझा हाथों में तेल लेकर देवकी के पैरों की मालिश करने लगती है और अब अपने हाथ से उसके जांघ की मालिश करने लगती है,,,वह मालिश करते हुए जैसे हाथ उपर ले जाती उसकी उंगलियां देवकी की योनि के बालों से छू जाती,,,रांझा मालिश करते हुए कहती है,,,,

एक बात कहूं,,,, तुम्हारी योनि में आज अलौकिक चमक दिख रही है,,,क्या किसी ने दर्शन कर लिए आपकी योनि के,,,,

चुप कर बेशरम ,,,ऐसा क्या है इस योनि में जो आज ये अलौकिक हो गई,,,

रांझा मालिश करते करते अपने हाथ में तेल लेकर देवकी की बुर पे हाथ रख देती है जिससे देवकी गन गना जाती है,,,रांझा बड़े प्यार से देवकी की योनि की मालिश करने लगती है और उसको निहारने लगती है,,,,

रांझा देवकी की बुर को मालिश करते हुए कहती है

एक बात पूछूं,,, बुरा तो नहीं मानोगी,,,

नहीं , पूछ क्या पूछना है,,आज तू बड़ी पूछ पूछ कर बातें कर रही है

रांझा उसकी बुर को सहलाते हुए कहती है,,,

देवकी ,,,तुम्हे तुम्हारे बेटे का लंड आज सुबह देख कर कैसा लगा,,,

देवकी ने इस प्रश्न की आशा नहीं की थी, क्यों की उसने सोचा की ये बात रांझा संकोचवश कहीं ये बात नहीं बोलेगी,,,लेकिन यहां रांझा ने तो प्रश्न कर दिया था,,,
राजमाता के कक्ष में सन्नाटा छा गया था ,,,केवल दो सांसे बहुत तेज चल रही थी,,,एक तो देवकी की ओर दूसरे रांझा की,,,लेकिन रांझा कहा रुकनेवाला थी,,,उसने फिर कहा,,,,

बताओ ना देवकी ,,कैसा लगा तुम्हे अपने प्यारे बेटे का लंड

और ऐसा कहते हुए उसकी कामुक सिसकियां भी निकल रही थी और वह देवकी की बुर को भी हौले हौले सहलाए जा रही थी।

ये तू क्या पूछ रही है रांझा ,,,तू नहीं जानती वो मेरा पुत्र है और एक मा अपने पुत्र के बारे में ऐसा नहीं सोच सकती,,, (अब देवकी क्या बताएं की वह अपने पुत्र का लंड देखकर खुद पागल हो गई है )

देवकी मैंने खुद देखा है तुम्हे उसका खड़ा लंड अपने हाथ में पकड़े हुए,,,मुझसे ना छुपाओ,,,,योनि बेटा या पति नहीं देखती,,उसे तो बस मोटा लौड़ा चाहिए होता भले ही वह उसके बेटे का ही क्यों ना हो।

रांझा की बातो से देवकी गरम हो जाती है और उसकी बुर पनिया जाती है जिसे रांझा महसूस करती है और यह देख कर वह एक हाथ ऊपर ले जाकर उसकी चूचियों को मसलने लगती है और उसके चुचुकों को अपनी उंगली के बीच फसाकर मसलने लगती है जिससे देवकी पूरी गरम हो जाती है। ऐसा देख कर रांझा देवकी की योनि के भग्नासे ( clutorics ) को अपनी उंगली से रगड़ने लगती है जिससे देवकी ओर गरम हो जाती है और मचलने लगती है। रांझा समझ जाती है कि देवकी गरम हो गई है,,,,, और फिर वह बात आगे बढ़ती है,,,,

बताओ ना देवकी चुप क्यों हो,,,मैंने अपनी आंखो से देखा था कि तुमने अपने पुत्र का लौड़ा हाथ में पकड़ा हुआ था और तुम उसके लन्ड को छोड़ ही नहीं रही थी और उधर विक्रम भी तुम्हारी चूची को पकड़े हुआ था,,,मुझे तो बहुत दमदार लंड लगा तेरे पुत्र का,,, अगर वो मेरा बेटा होता तो मै आज ही उससे चुदवा ली होती,,,

ऐसा बोलते बोलते रांझा अपनी एक उंगली देवकी की बुर में डाल देती है और जोर जोर से रगड़ने लगती है।।। वह अपनी ऊंगली देवकी की बुर में खूब अंदर बाहर करने लगती है जिससे देवकी सिसकने लगती है और पूरी मस्ती में आ जाती है,,
रांझा फिर कहती है,,,
देवकी मैंने देखा था तुम कैसी ललचाई नजरों से अपने बेटे के लंड को देख रही थी,,,मेरी भी आंखे उसके लौड़े से हट ही नहीं रहीं थीं,,,

इस पर देवकी सिसकियां लेते हुए मस्ती मे कहती है,,,,,

हां मैंने अपने पुत्र का लंड देखा है,,बहुत प्यारा लंड है उसका ,,, उसके लन्ड की गोरी चमड़ी और गुलाबी सुपाड़ा,,, हाय क्या गजब ढा रहा था,,, और उस पर उसकी फूली हुई नसें मुझे पागल बना रही थी,,,मेरी नज़रे तो उसके लौड़े से हट ही नहीं रहीं थी रांझा,,,मै आज दिन भर उसी की यादों में खोई रही,,,रांझा जरा जल्दी जल्दी मेरी योनि में उंगली कर,,,सहा नहीं जा रहा,,,,आज उसका मोटा लौड़ा हाथ में लेकर छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा था,,,वो तो अच्छा हुआ की तू आ गई ,,,नहीं तो आज पता नहीं क्या हो जाता,,,विक्रम के लौड़े में इतनी जान है की अगर कोई स्त्री एक बार देख ले तो बिना सम्भोग किए नहीं मानेगी,,,,

देवकी ऐसे ही बड़बड़ाए जा रही थी मस्ती में और रांझा उसके बुर में उंगली किए का रही थी,,,कमरे में देवकी की योनि की खुशबू फैल गई थी,,,जिस पर रांझा कहती हा

देवकी तुम्हारे योनि की मदमस्त गंध पूरे कक्ष में फ़ैल गई है,,,, मै ना कहती थी कि आज तुम्हारी योनि में आज अलौकिक सुंदरता दिख रही है मुझे,,,

अरे ये मेरी योनि की अलौकिक सुंदरता तो मेरे पुत्र के लिंग के दर्शन का कमाल है,,,जबसे उसका लन्ड देखा है,,,,या यों कहें कि जबसे उसके लिंग को हाथ में लेकर पकड़ा है तबसे मेरी बुर में भूचाल मचा हुआ है,,,सुबह से ही मेरी बुर पानी छोड़ रही है,,,क्या बताऊं महाराज के जाने के बाद आज पहली बार लंड पकड़ा था और वह भी इतना शानदार लंड,,,,देवकी ने कहा,,,

देवकी अगर अपने पुत्र का लंड देख कर तेरी योनि का यह हाल है तो तू अपने पुत्र के साथ संभोग क्यों नहीं कर लेती,,,आखिर उसी ने ना तुम्हारे हाथ में अपना लन्ड दिया होगा ,,,और तो और उसने तो तुम्हारी चूचियों को भी पकड़ रखा था,,,और दबा भी रहा था,, आखिर उसे भी तुम्हारे साथ यौन संबंध बनाने की इच्छा रही होगी,,,

ऐसा कैसे हो सकता है रांझा,,,आखिर वो मेरा पुत्र है,,,मेरी कोख से जन्मा है,,,और उसी कोख में उसके लंड से चुदवा कर मै उसका वीर्य कैसे गिरवा सकती हूं,,तेरे में बड़ी आग लगी है तो तू ही अपने पुत्र के साथ क्यों नहीं सम्भोग करती ,,,,जो तू मुझे समझा रही है,,,,

राजा विक्रम यदि मेरे पुत्र होते तो मै तो कब का उनसे चुदवा ली होती देवकी,,,,उनका खड़ा लंड तो मुझे भूल ही नहीं रहा है,,

रांझा और देवकी के बीच कामुक वार्ता लप चल रही थी और रांझा देवकी की बुर में अपनी दो उंगलियां घुसेड़ कर चोदन करने लगती जिससे देवकी को और भी मस्ती च ढ़ जाती है और वह कामुक सिसकियां निकालने लगती है,,, और वह कहती हैं

इतनी ही गर्मी अगर तेरे बुर में लगी है तो चुदवा ले ना अपने बेटे से ,,, वह भी तो विक्रम का हमउम्र ही है और लंबा चौड़ा भी है,,, उसका लन्ड भी तो मोटा ही होगा,,,,क्यों री रांझा,,

ऐसा ना बोल देवकी वो मेरा बेटा है,,,

तो ऐसे ही विक्रम भी तेरा पुत्र है छिनाल जिससे चुदवाने की तू मुझे बोल रही है,,,मा और पुत्र के बीच यौन संबंध अवैध होता है जिसकी इजाजत समाज कभी नहीं देता है,,,

तो मै कौन सा समाज के सामने चुदवाने को बोल रही हूं,,, अकेले में छुप कर चुदवा ले ,,,किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा,,,,

रांझा की कामुक बातों से राजमाता देवकी की यौन भावनाएं एकदम बढ़ गई थीं जिसमें देवकी को खूब मजा आ रहा था ,,, क्यों कि कामुक बातों के साथ रांझा देवकी की बुर भी अपनी उंगलियों से चोद रही थी,,,,

और तेज चोद रांझा,,,और तेज,,,और तेज,,,,मै झड़ने वाली हूं,,,और ऐसा बोलते बोलते देवकी चरमोत्कर्ष पा लेती है और वह झड़ जाती है ,,,,उसका बदन अचानक अकड़ जाता है,,,उसकी बुर से योनि रस की धार बह निकलती है जिससे रांझा की पूरी हथेली गीली हो जाती है जिसे रांझा अपने नाक के पास लाकर सुंग्घटी है और कहती है,,

अदभुत,,अत्यंत मादक सुंगध है देवकी,,तुम्हारे बुर से निकले हुए अमृत का,,,

और ऐसा बोलकर वह देवकी के बुर से निकले पानी की वह चाट लेती है,,,,

छी तू बड़ी गन्दी है रांझा,,कोई बुर का पानी चाटता है क्या,,,देवकी ने कहा,,,अब झड़ने के बाद देवकी को थोड़ी आत्मग्लानि होती है कि अभी थोड़ी देर पहले वह कैसे बातें कर रही थी,,,, और उसके चेहरे पर शर्म का भाव आ जाता है,,,,

आज के लिए बस इस अपडेट में इतना ही,,,,आगे देखते है और क्या होता है,,,
Kaamuk update dost
 

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Update 7

आज रात के महाभोज के आयोजन के पश्चात सभी अतिथिगण राजमहल से जा चुके थे। जन्मदिवस का कार्यक्रम समाप्त होते होते रात काफी बीत चुकी थी। रात्रि का तीसरा पहर चल रहा था। सभी लोग सो चुके थे , लेकिन कुछ लोगों की आंखों में नींद नहीं थी। राजा माधव सिंह उनकी रानी सुभद्रा देवी तथा राजकुमारी रत्ना राजकीय अतिथिशाला में विश्राम हेतु पहुंच जाते हैं। आज माधव सिंह और सुभद्रा दोनों अत्यंत ही प्रशन्न थे कि आज उनके मन की मुराद पूरी हो गई। वे दोनो अपनी पुत्री राजकुमारी रत्ना का विवाह राजा विक्रम सेन के साथ करना तो चाहते थे। किन्तु संकोचवश वे राजकुमारी के रिश्ते की बात राजमाता देवकी से नहीं कर पाते थे। और आज ऐसा सुखद संयोग हुआ की राजमाता देवकी ने ही अपने पुत्र राजा विक्रम सेन का विवाह राजकुमारी रत्ना से कराने का प्रस्ताव दे दिया।
अतिथगृह पहुंचकर राजा माधव सिंह रानी सुभद्रा से कहते हैं :

आज का दिन हमारे लिए खुशी का दिन है की राजमाता देवकी ने स्वयं हमारी पुत्री से अपने पुत्र का विवाह कराने का प्रस्ताव दे दिया,नहीं तो हम तो इस राजघराने में शादी का प्रस्ताव देने का सोच ही नहीं सकते थे।
राजन मै ना कहती थी आपसे की एक बार राजकुमारी रत्ना की शादी का प्रस्ताव ले तो जाइए। लेकिन आप ही यहां आने से हिचकिचाते थे। आखिर हमारी रत्ना भी सुंदरता में किसी अप्सरा से कम थोड़े ही है। देखा नहीं राजा विक्रम की नजरें रत्ना के मुख से हटती ही नहीं थी। लेकिन मै डरती थी की राजा विक्रम सेन का व्यक्तित्व इतना आकर्षक है कि रत्ना की सुंदरता इनके सामने फीकी पड़ जा रही थी और कहीं राजा विक्रम रत्ना से विवाह से इंकार ना कर दे।... रानी सुभद्रा ने कहा।
राजा विक्रम की बात कर रानी सुभद्रा का चेहरा बिल्कुल सुर्ख हो जाता है जिसे देख कर माधव सिंह सुभद्रा की छेड़ते हुए कहते हैं
क्या आपको भी राजा विक्रम भा गए हैं जो आप उनकी सुंदरता के पुल बांध रही है।
आप कुछ भी बोलते हैं, राजा विक्रम मेरी पुत्री के होनेवाले दूल्हे है, भला मै ऐसा कैसे सोच सकती हैं।और ऐसा कहकर वह मुंह घुमाकर बैठ जाती है।
मैं तो मजाक के रहा था मेरी रानी। ऐसा कह कर राजा माधव सिंह रानी सुभद्रा की ठुद्दी पकड़कर उनका चेहरा अपनी ओर घुमाते हैं।

छोड़िए राजन आप मुझसे बात मत करिए।

राजा माधव सिंह कहते हैं लो मैंने अपने कान पकड़ लिए।अब तो मान जाओ।

माधव सिंह के ऐसा कहने से सुभद्रा हल्के से मुस्कुरा देती है।

ऐसा ना करे राजन, मुझसे माफ़ी मांग कर नरक का भागी ना बनाए। लेकिन आगे से ऐसा मत बोलिएगा।राजा विक्रम सेन मेरी पुत्री के होने वाले पति हैं, उनको लेकर ऐसा मजाक मुझसे बिल्कुल मत कीजिएगा।

वो कहते हैं ना नारी त्रिया चरित्र की होती है, वो क्या सोचती है ,ये जानना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। यही रानी सुभद्रा आज सुबह के कार्यक्रम में राजा विक्रम सेन को देखकर उनके प्रति आसक्त हो गई थी और अपनी बुर को सहलाया था , उनसे चुदवाने का सपना देख रही थी और अभी पति द्वारा थोड़ा मजाक करने से नाराज़ ही गई थी। खैर माधव सिंह के निवेदन पर वह मान जाती है और मन ही मन एक कुटिल मुस्कान लेते हुए माधव सिंह के हाथ पर अपना हाथ रख देती है।

इधर राजकुमारी रत्ना अपने कमरे में लेटी हुई राजा विक्रम सेन के ख्यालों में डूबी रहती है , वह विक्रम सेन की नजरों को भुला ही नहीं पा रही थी जिन नजरों से वे रत्ना को देख रहे थे, उनकी नजरों में हवस नहीं था ,बल्कि एक अलग सा आकर्षण था जिसके मोह पास में रत्ना बांधती जा रही थी। रत्ना ख्यालों में डूबे डूबे राजा विक्रम सेन के लिंग की कल्पना करने लगती है ।

रत्ना मन में- हाय उनका लिंग कितना बड़ा होगा जब शरीर इतना गठीला है, कंधे इतने मजबूत और छाती इतनी चौड़ी है। अपने मोटे लिंग से वो मेरी नाजुक योनि चोदेंगे तो मेरी कोमल नाजुक योनि का क्या हाल होगा।

यही सोचते सोचते रत्ना कि सांसे तेज चलने लगती है और उसकी कामभावना भड़कने लगती है। वह अपना एक हाथ अपनी चूची के ऊपर ले जाती है और चोली के ऊपर से ही अपने चूचक रगड़ने लगती है और सोचती है कि राजा विक्रम अपने कड़क हाथों से मेरे इन्हीं स्तनों का मर्दन करेंगे। स्तन दबाने से उसकी उत्तेजना और बढ़ जाती है और सांसे और तेज चलने लगती हैं।उत्तेजना के वसीभूत होकर रत्ना अपना एक हाथ घाघरे के अंदर डाल देती है और अपनी योनि को स्पर्श करती है, फिर हथेली से अपनी योनि को दबोच लेती है और उत्तेजना में आंखे बंद कर कहती है

राजन मेरी योनि को रगड़ों,,,,इसे प्यार करो,,, इसे अपनी उंगलियों से रगडों,,,,इसमें अपनी उंगली डाल कर खूब जोर जोर से आगे पीछे कर के चोदो,,,,, मेरी योनि को अपने जीभ से चाटो,,,, मेरी योनि की फैलाकर इसमें अपना मोटा लन्ड डाल दो,,, मेरी योनि को खूब चोदो,,, मेरी चूचियों का मर्दन करो,,,,,इनका दूध पी लो,,,,,

रत्ना बड़बड़ाते जा रही थी और अपनी योनि की रगड़े जा रही थी। उत्तेजनावश वह अपनी चोली उतार फेकती है और अपने घाघरे का नाड़ा खोलकर घाघरे को भी पैरों के नीचे से निकाल देती है। अब वह मादरजात नंगी अपनी शैया पर लेटी हुई अपनी नंगी चूची को हाथ से मसले जा रही थी और कामुक आहें निकाल रही थी। दूसरे हाथ से अपनी योनि को फैलाकर रगड़ रही थी। उसकी योनि , योनि रस से गीली और चिकनी ही जाती है और उसकी अनामिका उंगली उसकी योनि में सरसराते हुए योनि की गहराइयों में चली जाती है।ये पहली बार था जब राजकुमारी रत्ना ने अपनी कुंवारी अनचूदी योनि में अपनी उंगली डाली थी। उसकी सांसे रुक जाती हैं। उसके योनिद्वार अभी ठीक से खुले भी नहीं थे। लेकिन योनि में ऊंगली की उपस्थिति अब उसे अच्छी लगने लगती है,,,धीरे धीरे वह अब सामान्य होती है। यह हस्तमैथुन का पहला अनुभव था। वह अपनी योनि में उंगली को तेजी से अंदर बाहर करने लगती है और बड़बड़ाने लगती है,,,,

चोदिये राजन चोदिए अपनी इस रानी को,,,,अपने मोटे लिंग से,,,,मेरी योनि बहुत प्यासी है जिसकी प्यास आपका मोटा लिंग ही बुझा सकता है। राजन मेरे स्तन चूसते हुए मेरी योनि की चोदिए। इसे फाड़ दीजिए। ऐसे चोदिए की आपका लिंग मेरी बच्चेदानी तक पहुंच जाए,,,, इस संसार में आपके लिंग से ही इस दिव्य योनि की प्यास बुझ सकती है,,,
ऐसे ही बड़बड़ाते हुए राजकुमारी रत्ना अपनी योनि में अपनी उंगली खूब तेजी से अंदर बाहर करने लगती है और करीब आधे घंटे के बाद चरमसुख को प्राप्त कर झड़ जाती है और उसकी योनि से भालभालाकर योनि रस की धार बहने लगती है। उसके हाथ योनि रस से भीग जाते हैं। वह योनि रस से भीगे हाथ अपने नक के पास लाती है और उसकी मादक सुगंध से मदहोश होने लगती है।

चुकी राजकुमारी रत्ना का हस्तमैथुन का ये पहला अनुभव था।अतः उन्हें यह अनुभव अदभुत लगता है। लगा जैसे शरीर हल्का होकर स्वर्ग की सैर कर रहा है। अपने पहले अनुभव के कारण राजकुमारी रत्ना यू ही बिल्कुल नग्न अवस्था में थक कर शैय्या पर सो जाती है और नींद में राजा विक्रम सेन के सपने देखने लगती है...........
रानी सुभद्रा का पर्दा हटना सुरु हो गया है


 
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आज सुबह से ही राजमाता ,राजकुमारी और राजा विक्रम सेन सुबह से जगे होने के कारण काफी थके हुए थे और अभी तो संध्या का कार्यक्रम भी बचा हुआ था। तीनों थोड़ी देर अपने कक्ष में आराम करते हैं और फिर शाम के महाभोज के लिए तैयार होने लगते हैं । आज पूरा राजमहल दीपक की रोशनी से जगमगाया हुआ था ऐसा लग रहा था मानो राजा के जन्मदिन की खुशी में पूरी सृष्टि भी खुशी मना रही हो। शाम का वक्त था और हल्की हल्की धीमी धीमी हवा चल रही थी जो माहौल को और भी खूबसूरत बना रही थी आज शाम सभी अतिथि राजा अपनी रानियों और परिवार के साथ महा भोज पर आमंत्रित थे राजकुमारी नंदिनी स्वयं कार्यक्रम की सारी व्यवस्था देख रही थी आखिरकार वह राजा की बड़ी बहन जो ठहरी

धीरे-धीरे सभी अतिथियों का आगमन शुरू होता है तथा सभी मंत्री गण द्वार पर ही सभी अतिथियों का स्वागत करने के लिए खड़े रहते हैं राजमहल में राजा के कक्ष के बाहर एक बहुत बड़ा खुला स्थान था जिसपर राज्य के बड़े कार्यक्रम हुआ करते थे इसी बीच तूरहरी बजने लगती है तथा द्वारपाल टीकमगढ़ के राजा माधव सिंह के आगमन की घोषणा करता है राजा माधव सिंह अपनी सुंदर रानी तथा अत्यंत ही नाजुक राजकुमारी रत्ना के साथ राजमहल में प्रवेश करते हैं । राजकुमारी रत्ना राजा माधव सिंह की इकलौती संतान है जो देखने में किसी अप्सरा से कम नहीं है शायद अप्सरा भी इतनी खूबसूरत नहीं होगी जितनी खूबसूरत राजकुमारी रत्ना थी। महामंत्री राजा को द्वार से स्वागत के साथ आंगन में उनके बैठने हेतु निश्चित स्थान पर ले जाते हैं और उन्हें आदरपूर्वक बैठाते हैं तथा राज्य कर्मियों को उनके उनके लिए जलपान की व्यवस्था करने का आदेश देते हैं

राजकुमारी नंदिनी को भी राजा माधव सिंह की आगमन की सूचना मिलती है तो वह दौड़े-दौड़े राजा के पास पहुंचती है और कहती है कि उसे बहुत खुशी है कि राजा इस कार्यक्रम में पधारें। राजा माधव सिंह उसे बताते हैं कि उसके पिता बड़े अच्छे दोस्त थे और उनकी मृत्यु के बाद उनका यह दायित्व है कि वह उनके सारे कार्यक्रम में उपस्थित हो और यथासंभव सहायता करें यह सुनकर राजकुमारी नंदिनी गदगद हो जाती है

आज राजकुमारी नंदिनी भी सुबह से ही कहर ढा रही थी राजा माधव सिंह की पत्नी राजकुमारी नंदिनी की चपलता देखकर आश्चर्यचकित रह जाती है तथा उसके उन्नत वक्ष स्थल तथा उन्नत नितंबों को देखकर सोच में डूब जाती है की क्या किसी कुवारी राजकुमारी के वक्ष तथा नितंब बिना चुदाने के इतनी उठी हो सकती है। रत्ना अपनी माता को सोचमे डुबा देख कहती है
मातें आप किस सोच में डूबी हैं
तब रानी अपनी सोच से बाहर आती है और कहती है कि और कुछ भी तो नहीं सोच रही थी

तभी राजा विक्रम सेन अपने एक कक्ष से बाहर निकल कर कार्यक्रम स्थल पर पहुंचते हैं संतरी उन्हें सूचित करता है कि राजा माधव सिंह कार्यक्रम स्थल पर पहुंच चुके हैं राजा सम्मान पूर्वक राजा माधव सिंह के पास पहुंचता है तथा उनके चरण स्पर्श करता है तथा उनके आने पर उनके प्रति आभार व्यक्त करता है तभी राजा विक्रम सिंह की नजर राजकुमारी रत्ना पर पड़ती है जिसके सामने आज अप्सराएं भी पानी मांग रही थी राजा विक्रम सिंह की नजर रत्ना से मिलती है तो राजकुमारी भी नजरें नीची कर सोचती है की क्या मै इतनी सुंदर हो कि राजा मुझसे नजरें नहीं हटा पा रहे हैं उसका मन भी राजा को देखने को व्याकुल हुआ जा रहा था राजा विक्रम सिंह के शारीरिक शक्ति और गठीले शरीर की चर्चा दूर-दूर तक थी । राजकुमारी नंदिनी को नहीं रहा गया उन्होंने धीरे से अपनी आंखें उठाकर राजा विक्रम सिंह को देखा जिन को देखते ही उनके तन बदन में झुनझुनी सी दौड़ गई । राजा विक्रम सेन अभी अपने राजा के पूरे परिधान में थे । उन्होंने लाल रंग की धोती पीले रंग का अचकन बाजू मे बाजू बंद सोने का कवच जो उनकी चौड़ी छाती पर लगा था तथा सोने का मुकुट पहना था ऐसा लग रहा था मानो देवता स्वयं धरती पर अवतरित हो गये हो । रत्ना की नजर भी राजा विक्रम सिंह से हटती ही नहीं थी । इधर आज राजा विक्रम द्वारा लगातार राजकुमारी देवकी को देखता देख कर राजा विक्रम माधव सिंह और उनकी पत्नी मन ही मन बड़े खुश होते हैं

लेकिन राजकुमारी नंदिनी को थोड़ा सा अटपटा लगा था । वह धीरे से खांसती है और अपने छोटे भाई राजा विक्रम सेन को कहती है की अभी कई सारे काम बचे हुए हैं । इस पर राजा विक्रम सेन की तंद्रा टूटती है और कहते हैं कि
हां हां जल्दी चलो और भी कार्यक्रम की व्यवस्था देखनी है की नहीं
यह कहते हुए राजा चला जाता है लेकिन मन को काबू नहीं कर पाते हैं । उनकी नजरें राजकुमारी रत्ना को खोजती रहती हैं और इस दौरान उनकी नजर राजकुमार रत्ना से एक हो जाती है जिससे राजकुमारी देवकी शरमा जाती है और शर्म से नजरें नीची कर लेती हैं।
तभी राजमाता देवकी भी तैयार होकर इन लोगों के पास पहुंचती है राजमाता भी राजकुमारी देवकी की सुंदरता देखकर मंत्रमुग्ध हो जाती है। राजमाता आज स्वयं परी लग रही थी जिन्होंने आज सुबह-सुबह राजा विक्रम सेन का लंड हाथ में पकड़ा था तथा अपनी दोनों चूचियों को अपने पुत्र राजा विक्रम सिंह के ऊपर भी रगड़ा था । राजकुमारी देवकी की सुंदरता देखकर राजमाता भी मंत्रमुग्ध हो जाती हैं तथा वह राजा माधव सिंह को कहती हैं की उनकी पुत्री राजकुमारी रत्ना अब यौवनावस्था में प्रवेश कर चुकी है तथा उनसे राजकुमारी रत्ना के लिए एक अच्छा सा वर ढूंढ कर उसके हाथ पीले करने को कहती है । इधर राजा विक्रम सेन कार्यक्रम की सारी व्यवस्था भी देख रहे थे लेकिन उनकी नजर केवल और केवल राजकुमारी रत्ना पर ही थी। वह जिधर भी जाते उनकी नजर राजकुमारी रत्ना पर ही हुआ करते थे । इस बात को राजकुमारी नंदिनी तो देख ही रही थी राजकुमारी रत्ना को भी इसका पूरा ध्यान था ।
राजकुमारी नंदिनी बार-बार अपने भ्राता राजा विक्रम सेन द्वारा रत्ना को देखे जाने दे उकता कर कहती है

अब अगर देख लिया हो तो और भी काम कर लो

ये सुनकर राजा विक्रम सेन शर्मा जाते थे लेकिन राजा विक्रम सिंह की तो पांच उंगली घी ही में थे क्योंकि उनकी माता राजमाता तथा बड़ी बहन राजकुमारी नंदिनी भी सुबह से ही कहर बरपा रही थी । राजकुमारी नंदिनी मन ही मन सोचती है कि आज राजमाता से अपने छोटे भाई राजा विक्रम सिंह की शादी राजकुमारी रत्ना से कराने का प्रस्ताव अवश्य रखेगी। इसी बीच राजमाता देवकी को जोर से मूत्र त्याग की इच्छा होती है और वह अपनी सेविका रांझा को इशारे से बुला कर कहती है की उसे तुरंत ही मूत्र त्याग इच्छा हो रही है और वह यहां उसके मूत्र त्याग की व्यवस्था करें । इस पर रंझा बोलती है कि राजमाता आपका कक्ष यहां से काफी दूर है और वहां तक पहुंचते-पहुंचते हो सकता है कि आप अपने घागरे में ही मूत्र त्याग कर दें। इससे अच्छा होगा कि आप किसी नजदीक के कक्ष में ही जाकर मूत्र त्याग करें । वह कहती है की राजा विक्रम सेन का कक्ष भी पास में ही है । राजमाता उसे यह देखने भेजती है कि राजा विक्रम सेन का स्नानागार खाली है और कोई वहां है तो नहीं। रांझा जाकर देख आती है कि राजा के कक्ष में कोई नहीं है और राजमाता को सूचित करती है कि राजा विक्रम सिंह का स्नानागार बिल्कुल खाली है ।राजमाता को जोर से मूत्र त्याग की इच्छा हो रही थी ।अतः बिना कुछ ध्यान दिए हुए वह राजा विक्रम सिंह के कक्ष में घुस जाती है।

इधर राजा विक्रम सेन को भी बहुत जोरों से पेशाब आई हुई थी क्योंकि उन्होंने तो सुबह से ही मूत्र त्याग नहीं किया था । तो वह भी मूत्र त्याग के लिए स्नानागार की ओर निकल पड़ते हैं । इधर राजमाता राजा विक्रम सेन के स्नानागार में पहुंचकर अपने घागरे को ऊपर उठा कर नीचे बैठ जाती है और अपनी बुर को फैला कर जोर से पेशाब करने लगती है । इधर राजा विक्रम सेन भी दौड़ते हुए अपने हाथ से लंड को दबाए हुए स्नानघर का परदा हटाकर दाखिल होते हैं। और दाखिल होते ही वहां का नजारा देखकर उनका मुंह खुला का खुला राज आता है । थोड़ी ही दूर पर उनकी माता अपना घाघरा उठा हुए चूत खोल कर मूत्र त्याग कर रही हैं । इधर राजा विक्रम सेन भी जोर से पेशाब लगने के कारण अपना पेशाब रोक नहीं पाते हैं और अपना लंड निकाल कर अपनी माता को देखते हुए पेशाब करने लगते हैं जिसकी छीटें राजमाता तक चली जाती है। अभी दोनों मां-बेटे एक दूसरे के सामने अपने योनागो को दिखाते हुए खड़े थे ।यह देख कर राजा विक्रम सेन को अलग ही अनुभूति हो रही थी की उन्होंने अपनी ही माता के योनि के दर्शन कर लिए और सुबह अपना लन्ड अपनी माता को दिखा चुका है।

राजा पीछे घूमते हैं और तेजी से अपने कक्ष से बाहर निकल जाते हैं इधर राजमाता भी इस घटना से हक्का-बक्का रह जाती हैं और अपना घाघरा नीचे करके जल्दी से बाहर निकल जाती है तथा कार्यक्रम में शरीक होने चली जाती हैं । कार्यक्रम में तो दोनों ही मां बेटे ऐसे व्यवहार कर रहे थे जैसे अभी उनके बीच कुछ हुआ ही न हो जबकि इन्होंने अभी - अभी एक दूसरे के योनांगों का दर्शन किया है । इधर महाभोज का कार्यक्रम शुरू होता है । एक बड़े टेबल के सामने राजा माधव सिंह उनकी पत्नी और उनकी बेटी राजकुमारी रत्ना बैठी हैं तो दूसरी तरफ राजा विक्रम सिंह राजमाता और राजकुमारी नंदिनी बैठे हुए हैं । सेवक भांति भांति के पकवान इन लोगों के सामने परोस रहे थे । इसी बीच राजमाता राजा माधव सिंह से कहती है कि राजकुमारी रत्ना इतनी यौवनावस्था को प्राप्त कर चुकी है तो क्यों ना इसकी शादी संपन्न करा दी जाए ।इस पर राजा माधव सिंह राजमाता को बताते हैं कि कोई अगर योग्य वर हो तो वे अपनी पुत्री रत्ना का विवाह संपन्न कराने को तैयार हैं । छूटते ही राजमाता ने कहा कि क्यों ना राजकुमारी रत्ना की शादी विक्रम सेन से करा दी जाए ।

सभी हतप्रभ रह जाते हैं कि क्या राजा माधव सिंह अपनी पुत्री का विवाह राजा विक्रम सिंह से करेंगे ।राजा माधव सिंह इस पर अत्यंत के प्रसन्न हुए तथा उन्होंने कहा

राजमाता आपने तो हमारे मुंह की बात छीन ली हम तो यह चाहते ही थी की राजकुमारी देवकी का विवाह राजा विक्रम सिंह से संपन्न हो जाए किंतु हम सभी आपके सामने विवाह का प्रस्ताव रखने में हिचकीचा रहे थे क्योंकि आप इतने बड़े राज्य के राजा हैं और मैं एक छोटे से राज्य का राजा हूं शायद आप हमारे घर विवाह करना पसंद नहीं करते ।

राजकुमार देवकी की से विवाह का प्रस्ताव तो मैंने स्वयं दिया है तो इसमें छोटे बड़े होने की क्या बात है, राजमाता ने कहा
विवाह की बात सुनकर राजकुमारी रत्ना भी मन ही मन बहुत खुश होती है और वह सोचती है की उसके बुर् भी वनवास खत्म होगा तथा जल्दी ही उसकी बुर को एक मोटा तगड़ा लंड मिलेगा जो उसकी बुर को चोद कर उसकी बुर् की गर्मी को ठंडा करेगा और वह मन ही मन अपनी चुदाई के सपने देखने लगती है ।अपनी शादी की बात होती सुन राजकुमारी रत्ना शरमा कर प्रांगण के दूसरी ओर चली जाती है और दीवार की ओट में खड़े होकर इनकी बात सुनने लगती है। राजा माधव सिंह राजमाता को कहते हैं कि एक बार राजा विक्रम सिंह जी भी उनकी इच्छा जान ली जाए और राजकुमारी रत्ना से वह इस बारे में बात कर लेंगे ।राजमाता ने इन दोनों की राय जानने में अपनी कोई आपत्ति व्यक्त नहीं की। बल्कि उन्होंने तो यहां तक कहा कि इन दोनों को अपना जीवन गुजारना है इसलिए दोनों की राय लेना सर्वथा उचित है ।

राजमाता राजा विक्रम सिंह से उनकी राय जानना चाहती है जिस पर राजा विक्रम सिंह ने तुरंत ही अपनी सहमति अपना सिर हिला कर दे दी। राजा विक्रम सिंह तो सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि वे राजकुमारी रत्ना से विवाह करने में विलंब करें । फिर राजा माधव सिंह अपनी पत्नी को राजकुमारी दिल की बात जानने को भेजते हैं । राजकुमारी रत्ना दीवाल की ओट में खड़े होकर यह सारी बातें सुन रही थी ।जैसे ही राजकुमारी सुनती है उसकी मां उसकी राय जानने के लिए आ रही है तो वह और आश्चर्य में पड़ जाती है । इधर रानी सोचती है कि राजा विक्रम सिंह को देखकर उसकी खुद की बुर में खलबली मची हुई है तो उसको देख कर मेरी पुत्री क्यों नहीं विवाह करना चाहेगी। जब रत्ना से उसकी मां पूछती है कि क्या वह राजा विक्रम सिंह के साथ शादी करना चाहती है । इस पर वह चुप रहती है और कोई जवाब नहीं देती है । रानी सोचती है कि शायद मेरी पुत्री को यह विवाह पसंद नहीं है और आश्चर्यचकित होती है कि जिस राजा विक्रम सेन के बारे में सोच कर उसकी बुर सुबह से पनियाई हुई है , उससे शादी करने को उसकी पुत्री ही हां क्यों नहीं कह रही है ,,,लगता है कि मेरी पुत्री को यह विवाह पसंद नहीं है और जाने लगती है।

अपनी माता को जाता देख राजकुमारी रत्ना जल्दी से बोलती है कि हां हां हां मुझे मुझे यह विवाह मंजूर है । अपनी पुत्री की सहमति लेकर राजा माधव सिंह के पास पहुंचती है तथा उन्हें राजकुमारी की सहमति की सूचना देती है। इस पर राजा माधव सिंह जी बड़े प्रसन्न होते हैं और राजमाता को विवाह तय होने की बधाई देते हैं । राजमाता मिठाई मंगाती है और मिठाई से राजा माधव सिंह का मुंह मीठा कराती हैं । राजमाता राजज्योतिषी को बुलावा भेजती हैं जो कि उस वक्त राजमहल में उपस्थित थे । राज ज्योतिषी के आते ही राजमाता राजा विक्रम सिंह के शादी तय होने की सूचना देती हैं तथा उनसे शादी का शुभ मुहूर्त बताने का आग्रह करते हैं। राजपुरोहित चार माह पश्चात् की तिथि शादी के लिए निश्चित करते हैं जिस पर दोनों पक्ष खुशी-खुशी राजी हो जाते हैं। राजकुमारी रत्ना शादी तय हो जाने के बाद ख्वाबों में डूब जाती है कि राजा विक्रम सिंह का लौंडा कैसा होगा और वह कैसे मेरी बुर को चोदगा।
जबरदस्त गरमा गर्म अपडेट है
 

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Update 7

आज रात के महाभोज के आयोजन के पश्चात सभी अतिथिगण राजमहल से जा चुके थे। जन्मदिवस का कार्यक्रम समाप्त होते होते रात काफी बीत चुकी थी। रात्रि का तीसरा पहर चल रहा था। सभी लोग सो चुके थे , लेकिन कुछ लोगों की आंखों में नींद नहीं थी। राजा माधव सिंह उनकी रानी सुभद्रा देवी तथा राजकुमारी रत्ना राजकीय अतिथिशाला में विश्राम हेतु पहुंच जाते हैं। आज माधव सिंह और सुभद्रा दोनों अत्यंत ही प्रशन्न थे कि आज उनके मन की मुराद पूरी हो गई। वे दोनो अपनी पुत्री राजकुमारी रत्ना का विवाह राजा विक्रम सेन के साथ करना तो चाहते थे। किन्तु संकोचवश वे राजकुमारी के रिश्ते की बात राजमाता देवकी से नहीं कर पाते थे। और आज ऐसा सुखद संयोग हुआ की राजमाता देवकी ने ही अपने पुत्र राजा विक्रम सेन का विवाह राजकुमारी रत्ना से कराने का प्रस्ताव दे दिया।
अतिथगृह पहुंचकर राजा माधव सिंह रानी सुभद्रा से कहते हैं :

आज का दिन हमारे लिए खुशी का दिन है की राजमाता देवकी ने स्वयं हमारी पुत्री से अपने पुत्र का विवाह कराने का प्रस्ताव दे दिया,नहीं तो हम तो इस राजघराने में शादी का प्रस्ताव देने का सोच ही नहीं सकते थे।
राजन मै ना कहती थी आपसे की एक बार राजकुमारी रत्ना की शादी का प्रस्ताव ले तो जाइए। लेकिन आप ही यहां आने से हिचकिचाते थे। आखिर हमारी रत्ना भी सुंदरता में किसी अप्सरा से कम थोड़े ही है। देखा नहीं राजा विक्रम की नजरें रत्ना के मुख से हटती ही नहीं थी। लेकिन मै डरती थी की राजा विक्रम सेन का व्यक्तित्व इतना आकर्षक है कि रत्ना की सुंदरता इनके सामने फीकी पड़ जा रही थी और कहीं राजा विक्रम रत्ना से विवाह से इंकार ना कर दे।... रानी सुभद्रा ने कहा।
राजा विक्रम की बात कर रानी सुभद्रा का चेहरा बिल्कुल सुर्ख हो जाता है जिसे देख कर माधव सिंह सुभद्रा की छेड़ते हुए कहते हैं
क्या आपको भी राजा विक्रम भा गए हैं जो आप उनकी सुंदरता के पुल बांध रही है।
आप कुछ भी बोलते हैं, राजा विक्रम मेरी पुत्री के होनेवाले दूल्हे है, भला मै ऐसा कैसे सोच सकती हैं।और ऐसा कहकर वह मुंह घुमाकर बैठ जाती है।
मैं तो मजाक के रहा था मेरी रानी। ऐसा कह कर राजा माधव सिंह रानी सुभद्रा की ठुद्दी पकड़कर उनका चेहरा अपनी ओर घुमाते हैं।

छोड़िए राजन आप मुझसे बात मत करिए।

राजा माधव सिंह कहते हैं लो मैंने अपने कान पकड़ लिए।अब तो मान जाओ।

माधव सिंह के ऐसा कहने से सुभद्रा हल्के से मुस्कुरा देती है।

ऐसा ना करे राजन, मुझसे माफ़ी मांग कर नरक का भागी ना बनाए। लेकिन आगे से ऐसा मत बोलिएगा।राजा विक्रम सेन मेरी पुत्री के होने वाले पति हैं, उनको लेकर ऐसा मजाक मुझसे बिल्कुल मत कीजिएगा।

वो कहते हैं ना नारी त्रिया चरित्र की होती है, वो क्या सोचती है ,ये जानना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। यही रानी सुभद्रा आज सुबह के कार्यक्रम में राजा विक्रम सेन को देखकर उनके प्रति आसक्त हो गई थी और अपनी बुर को सहलाया था , उनसे चुदवाने का सपना देख रही थी और अभी पति द्वारा थोड़ा मजाक करने से नाराज़ ही गई थी। खैर माधव सिंह के निवेदन पर वह मान जाती है और मन ही मन एक कुटिल मुस्कान लेते हुए माधव सिंह के हाथ पर अपना हाथ रख देती है।

इधर राजकुमारी रत्ना अपने कमरे में लेटी हुई राजा विक्रम सेन के ख्यालों में डूबी रहती है , वह विक्रम सेन की नजरों को भुला ही नहीं पा रही थी जिन नजरों से वे रत्ना को देख रहे थे, उनकी नजरों में हवस नहीं था ,बल्कि एक अलग सा आकर्षण था जिसके मोह पास में रत्ना बांधती जा रही थी। रत्ना ख्यालों में डूबे डूबे राजा विक्रम सेन के लिंग की कल्पना करने लगती है ।

रत्ना मन में- हाय उनका लिंग कितना बड़ा होगा जब शरीर इतना गठीला है, कंधे इतने मजबूत और छाती इतनी चौड़ी है। अपने मोटे लिंग से वो मेरी नाजुक योनि चोदेंगे तो मेरी कोमल नाजुक योनि का क्या हाल होगा।

यही सोचते सोचते रत्ना कि सांसे तेज चलने लगती है और उसकी कामभावना भड़कने लगती है। वह अपना एक हाथ अपनी चूची के ऊपर ले जाती है और चोली के ऊपर से ही अपने चूचक रगड़ने लगती है और सोचती है कि राजा विक्रम अपने कड़क हाथों से मेरे इन्हीं स्तनों का मर्दन करेंगे। स्तन दबाने से उसकी उत्तेजना और बढ़ जाती है और सांसे और तेज चलने लगती हैं।उत्तेजना के वसीभूत होकर रत्ना अपना एक हाथ घाघरे के अंदर डाल देती है और अपनी योनि को स्पर्श करती है, फिर हथेली से अपनी योनि को दबोच लेती है और उत्तेजना में आंखे बंद कर कहती है

राजन मेरी योनि को रगड़ों,,,,इसे प्यार करो,,, इसे अपनी उंगलियों से रगडों,,,,इसमें अपनी उंगली डाल कर खूब जोर जोर से आगे पीछे कर के चोदो,,,,, मेरी योनि को अपने जीभ से चाटो,,,, मेरी योनि की फैलाकर इसमें अपना मोटा लन्ड डाल दो,,, मेरी योनि को खूब चोदो,,, मेरी चूचियों का मर्दन करो,,,,,इनका दूध पी लो,,,,,

रत्ना बड़बड़ाते जा रही थी और अपनी योनि की रगड़े जा रही थी। उत्तेजनावश वह अपनी चोली उतार फेकती है और अपने घाघरे का नाड़ा खोलकर घाघरे को भी पैरों के नीचे से निकाल देती है। अब वह मादरजात नंगी अपनी शैया पर लेटी हुई अपनी नंगी चूची को हाथ से मसले जा रही थी और कामुक आहें निकाल रही थी। दूसरे हाथ से अपनी योनि को फैलाकर रगड़ रही थी। उसकी योनि , योनि रस से गीली और चिकनी ही जाती है और उसकी अनामिका उंगली उसकी योनि में सरसराते हुए योनि की गहराइयों में चली जाती है।ये पहली बार था जब राजकुमारी रत्ना ने अपनी कुंवारी अनचूदी योनि में अपनी उंगली डाली थी। उसकी सांसे रुक जाती हैं। उसके योनिद्वार अभी ठीक से खुले भी नहीं थे। लेकिन योनि में ऊंगली की उपस्थिति अब उसे अच्छी लगने लगती है,,,धीरे धीरे वह अब सामान्य होती है। यह हस्तमैथुन का पहला अनुभव था। वह अपनी योनि में उंगली को तेजी से अंदर बाहर करने लगती है और बड़बड़ाने लगती है,,,,

चोदिये राजन चोदिए अपनी इस रानी को,,,,अपने मोटे लिंग से,,,,मेरी योनि बहुत प्यासी है जिसकी प्यास आपका मोटा लिंग ही बुझा सकता है। राजन मेरे स्तन चूसते हुए मेरी योनि की चोदिए। इसे फाड़ दीजिए। ऐसे चोदिए की आपका लिंग मेरी बच्चेदानी तक पहुंच जाए,,,, इस संसार में आपके लिंग से ही इस दिव्य योनि की प्यास बुझ सकती है,,,
ऐसे ही बड़बड़ाते हुए राजकुमारी रत्ना अपनी योनि में अपनी उंगली खूब तेजी से अंदर बाहर करने लगती है और करीब आधे घंटे के बाद चरमसुख को प्राप्त कर झड़ जाती है और उसकी योनि से भालभालाकर योनि रस की धार बहने लगती है। उसके हाथ योनि रस से भीग जाते हैं। वह योनि रस से भीगे हाथ अपने नक के पास लाती है और उसकी मादक सुगंध से मदहोश होने लगती है।

चुकी राजकुमारी रत्ना का हस्तमैथुन का ये पहला अनुभव था।अतः उन्हें यह अनुभव अदभुत लगता है। लगा जैसे शरीर हल्का होकर स्वर्ग की सैर कर रहा है। अपने पहले अनुभव के कारण राजकुमारी रत्ना यू ही बिल्कुल नग्न अवस्था में थक कर शैय्या पर सो जाती है और नींद में राजा विक्रम सेन के सपने देखने लगती है...........
मस्त अपडेट हैअब तो शादी से पहले ही राजकुमारी रत्ना का नंबर लगने वाला है
 

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इधर राजमहल में भी शान्ति छाई हुई थी। सभी अतथियों के जाने के बाद राजपरिवार के सभी सदस्य अपने अपने कक्ष में आराम करने के लिए जा चुके थे। रात्रि का तीसरा पहर था। राजमहल में चारों ओर मसालें जल रही थी। रांझा कोई गीत गुनगनाते हुए घूम रही थी कि सेवकों ने सभी सामान वापस जगह पर रखा है कि नहीं। आखिर वो भी राजमाता की मुंहबोली सेविका जो थी और इस राजपरिवार के लिए परिवार के सदस्य से कम नहीं थी, राजा विक्रम सेन और राजकुमारी नंदिनी उसे धाईं मां बुलाते थे, ,,,बचपन में
उन्होंने रांझा का दूध जो पिया है। रांझा केवल कहने को दासी थी ,,,,,लेकिन उसकी हैसियत राजपरिवार के किसी सदस्य से कम ना थी। उसका पुत्र कालू राजा विक्रम के उम्र का ही था,,,तभी तो वह राजा विक्रम को बचपन में दूध पिला पाती थी क्युकी उस समय उसके स्तनों में दूध आता था और जब राजमाता देवकी रात में महाराज सुर सेन की बाहों में नंगी होकर सम्भोग में लीन रहती,,,,उस समय रांझा ही देवकी के पुत्र पुत्री को अपने पुत्र के साथ संभालती और उन्हें अपने स्तनों से दूध पिलाती। महाराज सुर सेन देवकी की शारीरिक सुंदरता के इतने दीवाने थे कि हर रात देवकी को बिना चोदे नहीं मानते थे,,,,तभी तो देवकी को भी संभोग की लत लग गई थी,,,,यहां तक की देवकी को जब माहवारी आई होती तब भी महाराज उसे चोदे बिना नहीं छोड़ते थे।

इधर रंझा सारी व्यवस्था देखकर राजमाता देवकी के कक्ष की ओर चल देती है जहां देवकी अब सोने की तैयारी कर रही थी। देवकी ने भी राजकीय वस्त्र निकाल कर पतले कपड़े की चोली और घाघरा पहन लिया था जो वह सोते समय पहना करती थी । रं झा देवकी के कक्ष के बाहर पहुंच कर द्वार से ही प्रवेश की अनुमति मांगती है...

राजमाता क्या मै अंदर आ सकती हूं ,,,

कौन है,,, रांझा,,,, आजा तुझे किसने रोका है कमिनी,,,

जो आज्ञा राजमाता,,,,ऐसा कहकर वह कक्ष में प्रवेश कर जाती है और देखती है की देवकी सोने की तैयारी कर रही थी,,,,

मैंने आपको परेशान तो नहीं किया देवकी इतनी रात को

अरे नहीं ,,,, कौन सा मै सुहागन हूं जो पति के साथ बिस्तर गर्म करने के लिए रात का इंतजार करती हूं। और तू मुई मेरे जले पर नमक छिड़कती है। ,,,, ऐसा बोलकर देवकी मुस्कुरा देती है

राजमाता मुझे माफ़ करना,,,मेरा कहने का ये मतलब नहीं था,,,,

तू तो वास्तव में डर गई पगली,,,मै तो मजाक कर रही थी

हे हे हे,,, मैं भी तो मजाक ही कर रही थी,,, मैं क्यों डरूं तुमसे,,,तुम्हारे कई राज जानती हूं मै,,,,ऐसा बोलकर रांझा दांत निकाल कर वह हस देती है।

आजा रांझा,,,,क्या बताऊं ,,,,आज बहुत थकावट सी हो गई है,,,दिन भर दौड़ते ही रहे,,,और फिर रात में महाभोज,,,,पूरा शरीर टूट रहा है,,,, और कमर में बहुत दर्द हो रहा है,,,लगता है अब मै बूढ़ी हो गई हूं,,,

अरे तो मै तो हूं ना,,तुम्हारी दासी,,,आओ लेट जाओ बिस्तर पर,,,मै तुम्हारे शरीर की मालिश कर देती हूं,, और तू बूढ़ी कहां हुई है,,,अभी भी तुझे देखकर बुड्ढों के लिंग तुम्हहारी योनि को सलामी देने के लिए खड़े हो जाएं,,,,

अब बस कर,,, ये ठीक रहेगा,, आ जा थोड़ी मालिश कर दे और हां ,,, थोड़ा तेल भी ले ले,,,तेल से मालिश कर देगी तो सारा दर्द दूर हो जाएगा,,

अभी लाती हूं देवकी,,,तू तब तक बिस्तर पे लेट जा

रांझा फटाफट जाती है और औषधीय तेल की शीशी ले आती है जो राज वैद्य ने खास तैयार किया था। तब तक देवकी बिस्तर पे पेट के बल लेट जाती है,,,

रांझा देवकी के पीठ पर तेल गिर।कर तेल मालिश करने लगती है और उसके कंधे से लेकर कमर तक मालिश करने लगती है। लेकिन बीच में देवकी की चोली मालिश करने में दिक्कत कर रही थी। तो रांझा बोलती है

देवकी तेरी चोली परेशान के रही है मालिश करने में,,,निकाल दे इसे तो मै अच्छे से तेरी मालिश कर दू,,,

ठीक है,,,तू रुक जरा,, मेरी चोली की डोर तो खोल दे पीछे से।

देवकी के कहने पर रांझा उसकी चोली की डोर खोल देती है और चोली के दोनो भागो को अलग कर देती है जिससे देवकी की पूरी पीठ नंगी हो जाती है। रांझा अब पूरे पीठ पे अच्छे से मालिश करने लगती है और हाथ उसकी कमर तक ले जाती है जहां से देवकी का घाघरा शुरु होता था और देवकी से कहती है

देवकी तेरी नंगी पीठ कितनी चिकनी है,, मन करता है इसकी सहलाती ही रहूं

चुप छीनाल,,,तू बड़ी वैश्या है रे,,,औरत होकर औरत की नंगी पीठ तुझे अच्छी लगती है,,,

अब तेरा शरीर है ही संगमरमर की तरह तो क्यों ना अच्छा लगे मुझे,,,,रांझा ने कहा

अच्छा ठीक है चुप कर,,, अब मालिश पे ध्यान दे,,,देवकी ने जवाब दिया लेकिन मन ही मन अपनी
जवानी की प्रशंसा सुनकर वह रोमांचित ही रही थी,,,

फिर रांझा बात छेड़ते हुए कहती है,,,देवकी आज तो तु गजब की सुन्दर लग रही थी,,,राजकुमारी नंदिनी तुम्हारे सामने फीकी पड़ गई थी,,,तुम तो नंदिनी की बहन लग रही थी,,

तू कुछ भी बोलती रहती है रांझा,,,कहा राजकुमारी नंदिनी का कोमल यौवन और कहां मेरा बूढ़ा बदन,,,कोई तुलना ही नहीं है,,,तू केवल मेरा मन रखने को बोलती है,,,

नहीं देवकी, मै सच बोल रही हूं,,,,देखा नहीं सभी तुम्हे कैसे घुर रहे थे,,,और तो और तुम्हारा प्रिय पुत्र विक्रम भी तुम्हारे यौवन का रस पिये जा रहा था,,,और ऐसा बोलकर रांझा एक कुटिल मुस्कान मुस्कुराती है,,,

ये सुनकर देवकी शरमा जाती है और तकिए में अपना मुंह छिपा लेती है।

अब जरा सीधी लेट जा देवकी ,,आगे भी मालिश कर दूं,,,

ऐसा कहने पर देवकी सीधी लेट जाती है जिसके स्तन अभी चोली से ढके होते है,,,रांझा देवकी के कंधे ,गर्दन से होते हुए चोली के खुले भाग तक मालिश करने लगती है, लेकिन चोली के कारण वह ठीक से मालिश नहीं कर पाती है और कहती है,,,

ये चोली तो हटा देवकी,,,कितनी परेशानी हो रही है मालिश करने में और तेरी चुची की भी मालिश नहीं हो पा रही है,,,

नहीं नहीं ,,,रहने दे,,,ऐसे ही मालिश कर दे

तू आज शरमा क्यों रही है,,तू तो ऐसे शर्मा रही है जैसे मैंने तुम्हारी चूचियों को नंगा देखा ही नहीं है,,,ले हटा ,,,मै ही इसे हटा देती हूं और ऐसा बोलकर देवकी के स्तन पर से चोली हटा देती है,,,,और अब देवकी की चूची पूरी नंगी होकर बाहर निकाल जाती है जिसे देखकर रांझा आश्चर्य से बोलती है,,

ये क्या देवकी तुम्हारे स्तन तो पूरे खड़े है,,,,क्या बात है महाराज की याद आ रही है या फिर ------

अब तू नंगी करके मालिश करेगी तो चूची तो कड़क होगी ही ना,,,चल तू मालिश कर

रांझा फिर मालिश करने लगती है और इस बार हाथो में तेल लेकर उसकी चूची पे लगने लगती है और जोर जोर से मालिश करने लगती है। देवकी के बड़े बड़े स्तन को हाथों ने भरकर उसे मसलने लगती है और शरारत करती हुई उसके चूचुकों की अपनी उंगलियों से मसल देती है जिससे देवकी की आह निकल जाती है,,,और उसकी काम भावना उमंगे मारने लगती है,,,,वह रांझा से बोलती है,,,,

ये क्या कर रही है छीनल,, देख नहीं रही मुझे दर्द हो था है,,,,

देवकी ये दर्द की सिसकारी नहीं,ये तो मजा की सिसकारी है और ऐसा बोलकर उसकी एक चूची को अपने मुंह में लेकर चूस लेती है,, जिस पर देवकी उसके सर पर एक चपत लगती है और कहती है

अब हो गया रण्डी साली,,,तू मालिश कर और एक हल्दी सी कामुक मुस्कान देती है

रांझा देवकी की छाती और पेट की मालिश करती है और फिर पैर की मालिश करने देवकी के पैरो के तरफ जाकर बैठ जाती है,,,और उसके पैरो के तलवे और पिंडली की मालिश करने लगती है,,,और देवकी से कहती हैi----

अपना घाघरा थोड़ा ऊपर उठा लो तो मै अच्छे से तुम्हारे पैरों की मालिश कर दूं

इस पर देवकी अपना घाघरा घुटनों तक के लेती है और रांझा उसके पैरो पर घटनो तक मालिश करने लगती है

तू बहुत अचछा मालिश करती है रांझा,,,मेरे पैरो का दर्द बहुत कम हो गया है,,,देवकी ने कहा

अभी कहा मालिश हुई है ठीक से,,,अभी मै तुम्हारे जांघों की मालिश करूंगी तब देखना तुम्हारे शरीर का दर्द कैसे खत्म होता है और ऐसा कहते हुए देवकी के घाघरे को उसके घुटनो से ऊपर सरकाकर जांघों के ऊपर चढ़ा देती है,,,जिससे देवकी की दोनो टांगे जांघों तक नंगी हो जाती है,,,वह उपर से तो नंगी थी ही अब नीचे भी उसके पैर नंगे हो जाते हैं,,,,वह देवकी के पैरों की अच्छे से मालिश करने लगती है और हाथो को नीचे से ले जाकर उसके जांघों की जड़ों तक घाघरे के अंदर से हाथ ले जाती है,,,फिर वह देवकी से कहती है,,,

देवकी अपना घाघरा भी निकाल दे, नहीं तो तेल से तेरा घाघरा गंदा हो जाएगा और ये तेल तो और दाग छोड़ता है ,एक बार लग गया तो छूटता ही नहीं है,,,लेकिन देवकी घाघरा खोलने में आना काना करती है और कहती है,,,,,

मुझे शरम आ रही है रांझा,,,आज मै पूरी नंगी नहीं होऊंगी

अगर घाघरा नहीं उतरोगी तो एक तो घाघरा गंदा होगा,,, दूसरे तुम्हारी मालिश ठीक से नहीं हो पाएगी

ठीक है,,,तो एक शर्त है,,,तू क्यों कपड़े पहने है,,,चल तू भी निकाल कपड़े,,,

ये कौनसी बड़ी बात है ,,,ये लो मैं निकाल देती हूं अपने कपड़े और एक ही झटके में अपनी चोली निकाल कर फेंक देती है,,,,

घाघरा भी तो निकाल दे,,,देवकी ने कहा

इस पर रांझा कुछ सोचती है,,,तब तक देवकी उसके घाघरे का नाड़ा खोल देती है जिससे रांझा का घाघरा सरसराता हुआ उसके पैरों में गिर जाता है और वह पूरी मादरजात नंगी हो जाती है,,,उसकी बुर आज पहली बार देवकी की सामने थी जिसे देखकर देवकी मुस्कुरा देती है और कहती है

तेरी बुर पर तो बहुत घने जंगल है रांझा ,,, इस जंगल को पार कर गुफा तक पहुंचना बहुत मुश्किल होता होगा और ये कहकर देवकी उसके बुर को अपने हाथ से सहला देती है जिससे रांझा की आह निकल जाती है,,,,और देवकी मुस्कुराने लगती है,,,,तब देवकी कहती है,,,

अब तो खुश राजमाता ,,,, जो मुझे पूरी नंगी कर दिया,,,,आओ अब मै तुम्हारी मालिश कर दूं और ऐसा बोलकर उसके घाघरे को उसके पैरो से निकालने लगती है जिसे देवकी के उन्नत नितंब रोक रहे थे,,,देवकी समझ जाती है और अपने गान्ड थोड़ी सी ऊपर उठती है जिससे देवकी का घाघरा आराम से उसके पैरो से निकल जाता है और वह पूरी नंगी अपने बिस्तर पर लेटी रहती है ,,,रांझा हाथों में तेल लेकर देवकी के पैरों की मालिश करने लगती है और अब अपने हाथ से उसके जांघ की मालिश करने लगती है,,,वह मालिश करते हुए जैसे हाथ उपर ले जाती उसकी उंगलियां देवकी की योनि के बालों से छू जाती,,,रांझा मालिश करते हुए कहती है,,,,

एक बात कहूं,,,, तुम्हारी योनि में आज अलौकिक चमक दिख रही है,,,क्या किसी ने दर्शन कर लिए आपकी योनि के,,,,

चुप कर बेशरम ,,,ऐसा क्या है इस योनि में जो आज ये अलौकिक हो गई,,,

रांझा मालिश करते करते अपने हाथ में तेल लेकर देवकी की बुर पे हाथ रख देती है जिससे देवकी गन गना जाती है,,,रांझा बड़े प्यार से देवकी की योनि की मालिश करने लगती है और उसको निहारने लगती है,,,,

रांझा देवकी की बुर को मालिश करते हुए कहती है

एक बात पूछूं,,, बुरा तो नहीं मानोगी,,,

नहीं , पूछ क्या पूछना है,,आज तू बड़ी पूछ पूछ कर बातें कर रही है

रांझा उसकी बुर को सहलाते हुए कहती है,,,

देवकी ,,,तुम्हे तुम्हारे बेटे का लंड आज सुबह देख कर कैसा लगा,,,

देवकी ने इस प्रश्न की आशा नहीं की थी, क्यों की उसने सोचा की ये बात रांझा संकोचवश कहीं ये बात नहीं बोलेगी,,,लेकिन यहां रांझा ने तो प्रश्न कर दिया था,,,
राजमाता के कक्ष में सन्नाटा छा गया था ,,,केवल दो सांसे बहुत तेज चल रही थी,,,एक तो देवकी की ओर दूसरे रांझा की,,,लेकिन रांझा कहा रुकनेवाला थी,,,उसने फिर कहा,,,,

बताओ ना देवकी ,,कैसा लगा तुम्हे अपने प्यारे बेटे का लंड

और ऐसा कहते हुए उसकी कामुक सिसकियां भी निकल रही थी और वह देवकी की बुर को भी हौले हौले सहलाए जा रही थी।

ये तू क्या पूछ रही है रांझा ,,,तू नहीं जानती वो मेरा पुत्र है और एक मा अपने पुत्र के बारे में ऐसा नहीं सोच सकती,,, (अब देवकी क्या बताएं की वह अपने पुत्र का लंड देखकर खुद पागल हो गई है )

देवकी मैंने खुद देखा है तुम्हे उसका खड़ा लंड अपने हाथ में पकड़े हुए,,,मुझसे ना छुपाओ,,,,योनि बेटा या पति नहीं देखती,,उसे तो बस मोटा लौड़ा चाहिए होता भले ही वह उसके बेटे का ही क्यों ना हो।

रांझा की बातो से देवकी गरम हो जाती है और उसकी बुर पनिया जाती है जिसे रांझा महसूस करती है और यह देख कर वह एक हाथ ऊपर ले जाकर उसकी चूचियों को मसलने लगती है और उसके चुचुकों को अपनी उंगली के बीच फसाकर मसलने लगती है जिससे देवकी पूरी गरम हो जाती है। ऐसा देख कर रांझा देवकी की योनि के भग्नासे ( clutorics ) को अपनी उंगली से रगड़ने लगती है जिससे देवकी ओर गरम हो जाती है और मचलने लगती है। रांझा समझ जाती है कि देवकी गरम हो गई है,,,,, और फिर वह बात आगे बढ़ती है,,,,

बताओ ना देवकी चुप क्यों हो,,,मैंने अपनी आंखो से देखा था कि तुमने अपने पुत्र का लौड़ा हाथ में पकड़ा हुआ था और तुम उसके लन्ड को छोड़ ही नहीं रही थी और उधर विक्रम भी तुम्हारी चूची को पकड़े हुआ था,,,मुझे तो बहुत दमदार लंड लगा तेरे पुत्र का,,, अगर वो मेरा बेटा होता तो मै आज ही उससे चुदवा ली होती,,,

ऐसा बोलते बोलते रांझा अपनी एक उंगली देवकी की बुर में डाल देती है और जोर जोर से रगड़ने लगती है।।। वह अपनी ऊंगली देवकी की बुर में खूब अंदर बाहर करने लगती है जिससे देवकी सिसकने लगती है और पूरी मस्ती में आ जाती है,,
रांझा फिर कहती है,,,
देवकी मैंने देखा था तुम कैसी ललचाई नजरों से अपने बेटे के लंड को देख रही थी,,,मेरी भी आंखे उसके लौड़े से हट ही नहीं रहीं थीं,,,

इस पर देवकी सिसकियां लेते हुए मस्ती मे कहती है,,,,,

हां मैंने अपने पुत्र का लंड देखा है,,बहुत प्यारा लंड है उसका ,,, उसके लन्ड की गोरी चमड़ी और गुलाबी सुपाड़ा,,, हाय क्या गजब ढा रहा था,,, और उस पर उसकी फूली हुई नसें मुझे पागल बना रही थी,,,मेरी नज़रे तो उसके लौड़े से हट ही नहीं रहीं थी रांझा,,,मै आज दिन भर उसी की यादों में खोई रही,,,रांझा जरा जल्दी जल्दी मेरी योनि में उंगली कर,,,सहा नहीं जा रहा,,,,आज उसका मोटा लौड़ा हाथ में लेकर छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा था,,,वो तो अच्छा हुआ की तू आ गई ,,,नहीं तो आज पता नहीं क्या हो जाता,,,विक्रम के लौड़े में इतनी जान है की अगर कोई स्त्री एक बार देख ले तो बिना सम्भोग किए नहीं मानेगी,,,,

देवकी ऐसे ही बड़बड़ाए जा रही थी मस्ती में और रांझा उसके बुर में उंगली किए का रही थी,,,कमरे में देवकी की योनि की खुशबू फैल गई थी,,,जिस पर रांझा कहती हा

देवकी तुम्हारे योनि की मदमस्त गंध पूरे कक्ष में फ़ैल गई है,,,, मै ना कहती थी कि आज तुम्हारी योनि में आज अलौकिक सुंदरता दिख रही है मुझे,,,

अरे ये मेरी योनि की अलौकिक सुंदरता तो मेरे पुत्र के लिंग के दर्शन का कमाल है,,,जबसे उसका लन्ड देखा है,,,,या यों कहें कि जबसे उसके लिंग को हाथ में लेकर पकड़ा है तबसे मेरी बुर में भूचाल मचा हुआ है,,,सुबह से ही मेरी बुर पानी छोड़ रही है,,,क्या बताऊं महाराज के जाने के बाद आज पहली बार लंड पकड़ा था और वह भी इतना शानदार लंड,,,,देवकी ने कहा,,,

देवकी अगर अपने पुत्र का लंड देख कर तेरी योनि का यह हाल है तो तू अपने पुत्र के साथ संभोग क्यों नहीं कर लेती,,,आखिर उसी ने ना तुम्हारे हाथ में अपना लन्ड दिया होगा ,,,और तो और उसने तो तुम्हारी चूचियों को भी पकड़ रखा था,,,और दबा भी रहा था,, आखिर उसे भी तुम्हारे साथ यौन संबंध बनाने की इच्छा रही होगी,,,

ऐसा कैसे हो सकता है रांझा,,,आखिर वो मेरा पुत्र है,,,मेरी कोख से जन्मा है,,,और उसी कोख में उसके लंड से चुदवा कर मै उसका वीर्य कैसे गिरवा सकती हूं,,तेरे में बड़ी आग लगी है तो तू ही अपने पुत्र के साथ क्यों नहीं सम्भोग करती ,,,,जो तू मुझे समझा रही है,,,,

राजा विक्रम यदि मेरे पुत्र होते तो मै तो कब का उनसे चुदवा ली होती देवकी,,,,उनका खड़ा लंड तो मुझे भूल ही नहीं रहा है,,

रांझा और देवकी के बीच कामुक वार्ता लप चल रही थी और रांझा देवकी की बुर में अपनी दो उंगलियां घुसेड़ कर चोदन करने लगती जिससे देवकी को और भी मस्ती च ढ़ जाती है और वह कामुक सिसकियां निकालने लगती है,,, और वह कहती हैं

इतनी ही गर्मी अगर तेरे बुर में लगी है तो चुदवा ले ना अपने बेटे से ,,, वह भी तो विक्रम का हमउम्र ही है और लंबा चौड़ा भी है,,, उसका लन्ड भी तो मोटा ही होगा,,,,क्यों री रांझा,,

ऐसा ना बोल देवकी वो मेरा बेटा है,,,

तो ऐसे ही विक्रम भी तेरा पुत्र है छिनाल जिससे चुदवाने की तू मुझे बोल रही है,,,मा और पुत्र के बीच यौन संबंध अवैध होता है जिसकी इजाजत समाज कभी नहीं देता है,,,

तो मै कौन सा समाज के सामने चुदवाने को बोल रही हूं,,, अकेले में छुप कर चुदवा ले ,,,किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा,,,,

रांझा की कामुक बातों से राजमाता देवकी की यौन भावनाएं एकदम बढ़ गई थीं जिसमें देवकी को खूब मजा आ रहा था ,,, क्यों कि कामुक बातों के साथ रांझा देवकी की बुर भी अपनी उंगलियों से चोद रही थी,,,,

और तेज चोद रांझा,,,और तेज,,,और तेज,,,,मै झड़ने वाली हूं,,,और ऐसा बोलते बोलते देवकी चरमोत्कर्ष पा लेती है और वह झड़ जाती है ,,,,उसका बदन अचानक अकड़ जाता है,,,उसकी बुर से योनि रस की धार बह निकलती है जिससे रांझा की पूरी हथेली गीली हो जाती है जिसे रांझा अपने नाक के पास लाकर सुंग्घटी है और कहती है,,

अदभुत,,अत्यंत मादक सुंगध है देवकी,,तुम्हारे बुर से निकले हुए अमृत का,,,

और ऐसा बोलकर वह देवकी के बुर से निकले पानी की वह चाट लेती है,,,,

छी तू बड़ी गन्दी है रांझा,,कोई बुर का पानी चाटता है क्या,,,देवकी ने कहा,,,अब झड़ने के बाद देवकी को थोड़ी आत्मग्लानि होती है कि अभी थोड़ी देर पहले वह कैसे बातें कर रही थी,,,, और उसके चेहरे पर शर्म का भाव आ जाता है,,,,

आज के लिए बस इस अपडेट में इतना ही,,,,आगे देखते है और क्या होता है,,,
Very hot update
देवकी का भी नंबर लगेगा साथ में रांझा का भी
 

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Update 7

आज रात के महाभोज के आयोजन के पश्चात सभी अतिथिगण राजमहल से जा चुके थे। जन्मदिवस का कार्यक्रम समाप्त होते होते रात काफी बीत चुकी थी। रात्रि का तीसरा पहर चल रहा था। सभी लोग सो चुके थे , लेकिन कुछ लोगों की आंखों में नींद नहीं थी। राजा माधव सिंह उनकी रानी सुभद्रा देवी तथा राजकुमारी रत्ना राजकीय अतिथिशाला में विश्राम हेतु पहुंच जाते हैं। आज माधव सिंह और सुभद्रा दोनों अत्यंत ही प्रशन्न थे कि आज उनके मन की मुराद पूरी हो गई। वे दोनो अपनी पुत्री राजकुमारी रत्ना का विवाह राजा विक्रम सेन के साथ करना तो चाहते थे। किन्तु संकोचवश वे राजकुमारी के रिश्ते की बात राजमाता देवकी से नहीं कर पाते थे। और आज ऐसा सुखद संयोग हुआ की राजमाता देवकी ने ही अपने पुत्र राजा विक्रम सेन का विवाह राजकुमारी रत्ना से कराने का प्रस्ताव दे दिया।
अतिथगृह पहुंचकर राजा माधव सिंह रानी सुभद्रा से कहते हैं :

आज का दिन हमारे लिए खुशी का दिन है की राजमाता देवकी ने स्वयं हमारी पुत्री से अपने पुत्र का विवाह कराने का प्रस्ताव दे दिया,नहीं तो हम तो इस राजघराने में शादी का प्रस्ताव देने का सोच ही नहीं सकते थे।
राजन मै ना कहती थी आपसे की एक बार राजकुमारी रत्ना की शादी का प्रस्ताव ले तो जाइए। लेकिन आप ही यहां आने से हिचकिचाते थे। आखिर हमारी रत्ना भी सुंदरता में किसी अप्सरा से कम थोड़े ही है। देखा नहीं राजा विक्रम की नजरें रत्ना के मुख से हटती ही नहीं थी। लेकिन मै डरती थी की राजा विक्रम सेन का व्यक्तित्व इतना आकर्षक है कि रत्ना की सुंदरता इनके सामने फीकी पड़ जा रही थी और कहीं राजा विक्रम रत्ना से विवाह से इंकार ना कर दे।... रानी सुभद्रा ने कहा।
राजा विक्रम की बात कर रानी सुभद्रा का चेहरा बिल्कुल सुर्ख हो जाता है जिसे देख कर माधव सिंह सुभद्रा की छेड़ते हुए कहते हैं
क्या आपको भी राजा विक्रम भा गए हैं जो आप उनकी सुंदरता के पुल बांध रही है।
आप कुछ भी बोलते हैं, राजा विक्रम मेरी पुत्री के होनेवाले दूल्हे है, भला मै ऐसा कैसे सोच सकती हैं।और ऐसा कहकर वह मुंह घुमाकर बैठ जाती है।
मैं तो मजाक के रहा था मेरी रानी। ऐसा कह कर राजा माधव सिंह रानी सुभद्रा की ठुद्दी पकड़कर उनका चेहरा अपनी ओर घुमाते हैं।

छोड़िए राजन आप मुझसे बात मत करिए।

राजा माधव सिंह कहते हैं लो मैंने अपने कान पकड़ लिए।अब तो मान जाओ।

माधव सिंह के ऐसा कहने से सुभद्रा हल्के से मुस्कुरा देती है।

ऐसा ना करे राजन, मुझसे माफ़ी मांग कर नरक का भागी ना बनाए। लेकिन आगे से ऐसा मत बोलिएगा।राजा विक्रम सेन मेरी पुत्री के होने वाले पति हैं, उनको लेकर ऐसा मजाक मुझसे बिल्कुल मत कीजिएगा।

वो कहते हैं ना नारी त्रिया चरित्र की होती है, वो क्या सोचती है ,ये जानना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। यही रानी सुभद्रा आज सुबह के कार्यक्रम में राजा विक्रम सेन को देखकर उनके प्रति आसक्त हो गई थी और अपनी बुर को सहलाया था , उनसे चुदवाने का सपना देख रही थी और अभी पति द्वारा थोड़ा मजाक करने से नाराज़ ही गई थी। खैर माधव सिंह के निवेदन पर वह मान जाती है और मन ही मन एक कुटिल मुस्कान लेते हुए माधव सिंह के हाथ पर अपना हाथ रख देती है।

इधर राजकुमारी रत्ना अपने कमरे में लेटी हुई राजा विक्रम सेन के ख्यालों में डूबी रहती है , वह विक्रम सेन की नजरों को भुला ही नहीं पा रही थी जिन नजरों से वे रत्ना को देख रहे थे, उनकी नजरों में हवस नहीं था ,बल्कि एक अलग सा आकर्षण था जिसके मोह पास में रत्ना बांधती जा रही थी। रत्ना ख्यालों में डूबे डूबे राजा विक्रम सेन के लिंग की कल्पना करने लगती है ।

रत्ना मन में- हाय उनका लिंग कितना बड़ा होगा जब शरीर इतना गठीला है, कंधे इतने मजबूत और छाती इतनी चौड़ी है। अपने मोटे लिंग से वो मेरी नाजुक योनि चोदेंगे तो मेरी कोमल नाजुक योनि का क्या हाल होगा।

यही सोचते सोचते रत्ना कि सांसे तेज चलने लगती है और उसकी कामभावना भड़कने लगती है। वह अपना एक हाथ अपनी चूची के ऊपर ले जाती है और चोली के ऊपर से ही अपने चूचक रगड़ने लगती है और सोचती है कि राजा विक्रम अपने कड़क हाथों से मेरे इन्हीं स्तनों का मर्दन करेंगे। स्तन दबाने से उसकी उत्तेजना और बढ़ जाती है और सांसे और तेज चलने लगती हैं।उत्तेजना के वसीभूत होकर रत्ना अपना एक हाथ घाघरे के अंदर डाल देती है और अपनी योनि को स्पर्श करती है, फिर हथेली से अपनी योनि को दबोच लेती है और उत्तेजना में आंखे बंद कर कहती है

राजन मेरी योनि को रगड़ों,,,,इसे प्यार करो,,, इसे अपनी उंगलियों से रगडों,,,,इसमें अपनी उंगली डाल कर खूब जोर जोर से आगे पीछे कर के चोदो,,,,, मेरी योनि को अपने जीभ से चाटो,,,, मेरी योनि की फैलाकर इसमें अपना मोटा लन्ड डाल दो,,, मेरी योनि को खूब चोदो,,, मेरी चूचियों का मर्दन करो,,,,,इनका दूध पी लो,,,,,

रत्ना बड़बड़ाते जा रही थी और अपनी योनि की रगड़े जा रही थी। उत्तेजनावश वह अपनी चोली उतार फेकती है और अपने घाघरे का नाड़ा खोलकर घाघरे को भी पैरों के नीचे से निकाल देती है। अब वह मादरजात नंगी अपनी शैया पर लेटी हुई अपनी नंगी चूची को हाथ से मसले जा रही थी और कामुक आहें निकाल रही थी। दूसरे हाथ से अपनी योनि को फैलाकर रगड़ रही थी। उसकी योनि , योनि रस से गीली और चिकनी ही जाती है और उसकी अनामिका उंगली उसकी योनि में सरसराते हुए योनि की गहराइयों में चली जाती है।ये पहली बार था जब राजकुमारी रत्ना ने अपनी कुंवारी अनचूदी योनि में अपनी उंगली डाली थी। उसकी सांसे रुक जाती हैं। उसके योनिद्वार अभी ठीक से खुले भी नहीं थे। लेकिन योनि में ऊंगली की उपस्थिति अब उसे अच्छी लगने लगती है,,,धीरे धीरे वह अब सामान्य होती है। यह हस्तमैथुन का पहला अनुभव था। वह अपनी योनि में उंगली को तेजी से अंदर बाहर करने लगती है और बड़बड़ाने लगती है,,,,

चोदिये राजन चोदिए अपनी इस रानी को,,,,अपने मोटे लिंग से,,,,मेरी योनि बहुत प्यासी है जिसकी प्यास आपका मोटा लिंग ही बुझा सकता है। राजन मेरे स्तन चूसते हुए मेरी योनि की चोदिए। इसे फाड़ दीजिए। ऐसे चोदिए की आपका लिंग मेरी बच्चेदानी तक पहुंच जाए,,,, इस संसार में आपके लिंग से ही इस दिव्य योनि की प्यास बुझ सकती है,,,
ऐसे ही बड़बड़ाते हुए राजकुमारी रत्ना अपनी योनि में अपनी उंगली खूब तेजी से अंदर बाहर करने लगती है और करीब आधे घंटे के बाद चरमसुख को प्राप्त कर झड़ जाती है और उसकी योनि से भालभालाकर योनि रस की धार बहने लगती है। उसके हाथ योनि रस से भीग जाते हैं। वह योनि रस से भीगे हाथ अपने नक के पास लाती है और उसकी मादक सुगंध से मदहोश होने लगती है।

चुकी राजकुमारी रत्ना का हस्तमैथुन का ये पहला अनुभव था।अतः उन्हें यह अनुभव अदभुत लगता है। लगा जैसे शरीर हल्का होकर स्वर्ग की सैर कर रहा है। अपने पहले अनुभव के कारण राजकुमारी रत्ना यू ही बिल्कुल नग्न अवस्था में थक कर शैय्या पर सो जाती है और नींद में राजा विक्रम सेन के सपने देखने लगती है...........
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
 

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Update 8

इधर राजमहल में भी शान्ति छाई हुई थी। सभी अतथियों के जाने के बाद राजपरिवार के सभी सदस्य अपने अपने कक्ष में आराम करने के लिए जा चुके थे। रात्रि का तीसरा पहर था। राजमहल में चारों ओर मसालें जल रही थी। रांझा कोई गीत गुनगनाते हुए घूम रही थी कि सेवकों ने सभी सामान वापस जगह पर रखा है कि नहीं। आखिर वो भी राजमाता की मुंहबोली सेविका जो थी और इस राजपरिवार के लिए परिवार के सदस्य से कम नहीं थी, राजा विक्रम सेन और राजकुमारी नंदिनी उसे धाईं मां बुलाते थे, ,,,बचपन में
उन्होंने रांझा का दूध जो पिया है। रांझा केवल कहने को दासी थी ,,,,,लेकिन उसकी हैसियत राजपरिवार के किसी सदस्य से कम ना थी। उसका पुत्र कालू राजा विक्रम के उम्र का ही था,,,तभी तो वह राजा विक्रम को बचपन में दूध पिला पाती थी क्युकी उस समय उसके स्तनों में दूध आता था और जब राजमाता देवकी रात में महाराज सुर सेन की बाहों में नंगी होकर सम्भोग में लीन रहती,,,,उस समय रांझा ही देवकी के पुत्र पुत्री को अपने पुत्र के साथ संभालती और उन्हें अपने स्तनों से दूध पिलाती। महाराज सुर सेन देवकी की शारीरिक सुंदरता के इतने दीवाने थे कि हर रात देवकी को बिना चोदे नहीं मानते थे,,,,तभी तो देवकी को भी संभोग की लत लग गई थी,,,,यहां तक की देवकी को जब माहवारी आई होती तब भी महाराज उसे चोदे बिना नहीं छोड़ते थे।

इधर रंझा सारी व्यवस्था देखकर राजमाता देवकी के कक्ष की ओर चल देती है जहां देवकी अब सोने की तैयारी कर रही थी। देवकी ने भी राजकीय वस्त्र निकाल कर पतले कपड़े की चोली और घाघरा पहन लिया था जो वह सोते समय पहना करती थी । रं झा देवकी के कक्ष के बाहर पहुंच कर द्वार से ही प्रवेश की अनुमति मांगती है...

राजमाता क्या मै अंदर आ सकती हूं ,,,

कौन है,,, रांझा,,,, आजा तुझे किसने रोका है कमिनी,,,

जो आज्ञा राजमाता,,,,ऐसा कहकर वह कक्ष में प्रवेश कर जाती है और देखती है की देवकी सोने की तैयारी कर रही थी,,,,

मैंने आपको परेशान तो नहीं किया देवकी इतनी रात को

अरे नहीं ,,,, कौन सा मै सुहागन हूं जो पति के साथ बिस्तर गर्म करने के लिए रात का इंतजार करती हूं। और तू मुई मेरे जले पर नमक छिड़कती है। ,,,, ऐसा बोलकर देवकी मुस्कुरा देती है

राजमाता मुझे माफ़ करना,,,मेरा कहने का ये मतलब नहीं था,,,,

तू तो वास्तव में डर गई पगली,,,मै तो मजाक कर रही थी

हे हे हे,,, मैं भी तो मजाक ही कर रही थी,,, मैं क्यों डरूं तुमसे,,,तुम्हारे कई राज जानती हूं मै,,,,ऐसा बोलकर रांझा दांत निकाल कर वह हस देती है।

आजा रांझा,,,,क्या बताऊं ,,,,आज बहुत थकावट सी हो गई है,,,दिन भर दौड़ते ही रहे,,,और फिर रात में महाभोज,,,,पूरा शरीर टूट रहा है,,,, और कमर में बहुत दर्द हो रहा है,,,लगता है अब मै बूढ़ी हो गई हूं,,,

अरे तो मै तो हूं ना,,तुम्हारी दासी,,,आओ लेट जाओ बिस्तर पर,,,मै तुम्हारे शरीर की मालिश कर देती हूं,, और तू बूढ़ी कहां हुई है,,,अभी भी तुझे देखकर बुड्ढों के लिंग तुम्हहारी योनि को सलामी देने के लिए खड़े हो जाएं,,,,

अब बस कर,,, ये ठीक रहेगा,, आ जा थोड़ी मालिश कर दे और हां ,,, थोड़ा तेल भी ले ले,,,तेल से मालिश कर देगी तो सारा दर्द दूर हो जाएगा,,

अभी लाती हूं देवकी,,,तू तब तक बिस्तर पे लेट जा

रांझा फटाफट जाती है और औषधीय तेल की शीशी ले आती है जो राज वैद्य ने खास तैयार किया था। तब तक देवकी बिस्तर पे पेट के बल लेट जाती है,,,

रांझा देवकी के पीठ पर तेल गिर।कर तेल मालिश करने लगती है और उसके कंधे से लेकर कमर तक मालिश करने लगती है। लेकिन बीच में देवकी की चोली मालिश करने में दिक्कत कर रही थी। तो रांझा बोलती है

देवकी तेरी चोली परेशान के रही है मालिश करने में,,,निकाल दे इसे तो मै अच्छे से तेरी मालिश कर दू,,,

ठीक है,,,तू रुक जरा,, मेरी चोली की डोर तो खोल दे पीछे से।

देवकी के कहने पर रांझा उसकी चोली की डोर खोल देती है और चोली के दोनो भागो को अलग कर देती है जिससे देवकी की पूरी पीठ नंगी हो जाती है। रांझा अब पूरे पीठ पे अच्छे से मालिश करने लगती है और हाथ उसकी कमर तक ले जाती है जहां से देवकी का घाघरा शुरु होता था और देवकी से कहती है

देवकी तेरी नंगी पीठ कितनी चिकनी है,, मन करता है इसकी सहलाती ही रहूं

चुप छीनाल,,,तू बड़ी वैश्या है रे,,,औरत होकर औरत की नंगी पीठ तुझे अच्छी लगती है,,,

अब तेरा शरीर है ही संगमरमर की तरह तो क्यों ना अच्छा लगे मुझे,,,,रांझा ने कहा

अच्छा ठीक है चुप कर,,, अब मालिश पे ध्यान दे,,,देवकी ने जवाब दिया लेकिन मन ही मन अपनी
जवानी की प्रशंसा सुनकर वह रोमांचित ही रही थी,,,

फिर रांझा बात छेड़ते हुए कहती है,,,देवकी आज तो तु गजब की सुन्दर लग रही थी,,,राजकुमारी नंदिनी तुम्हारे सामने फीकी पड़ गई थी,,,तुम तो नंदिनी की बहन लग रही थी,,

तू कुछ भी बोलती रहती है रांझा,,,कहा राजकुमारी नंदिनी का कोमल यौवन और कहां मेरा बूढ़ा बदन,,,कोई तुलना ही नहीं है,,,तू केवल मेरा मन रखने को बोलती है,,,

नहीं देवकी, मै सच बोल रही हूं,,,,देखा नहीं सभी तुम्हे कैसे घुर रहे थे,,,और तो और तुम्हारा प्रिय पुत्र विक्रम भी तुम्हारे यौवन का रस पिये जा रहा था,,,और ऐसा बोलकर रांझा एक कुटिल मुस्कान मुस्कुराती है,,,

ये सुनकर देवकी शरमा जाती है और तकिए में अपना मुंह छिपा लेती है।

अब जरा सीधी लेट जा देवकी ,,आगे भी मालिश कर दूं,,,

ऐसा कहने पर देवकी सीधी लेट जाती है जिसके स्तन अभी चोली से ढके होते है,,,रांझा देवकी के कंधे ,गर्दन से होते हुए चोली के खुले भाग तक मालिश करने लगती है, लेकिन चोली के कारण वह ठीक से मालिश नहीं कर पाती है और कहती है,,,

ये चोली तो हटा देवकी,,,कितनी परेशानी हो रही है मालिश करने में और तेरी चुची की भी मालिश नहीं हो पा रही है,,,

नहीं नहीं ,,,रहने दे,,,ऐसे ही मालिश कर दे

तू आज शरमा क्यों रही है,,तू तो ऐसे शर्मा रही है जैसे मैंने तुम्हारी चूचियों को नंगा देखा ही नहीं है,,,ले हटा ,,,मै ही इसे हटा देती हूं और ऐसा बोलकर देवकी के स्तन पर से चोली हटा देती है,,,,और अब देवकी की चूची पूरी नंगी होकर बाहर निकाल जाती है जिसे देखकर रांझा आश्चर्य से बोलती है,,

ये क्या देवकी तुम्हारे स्तन तो पूरे खड़े है,,,,क्या बात है महाराज की याद आ रही है या फिर ------

अब तू नंगी करके मालिश करेगी तो चूची तो कड़क होगी ही ना,,,चल तू मालिश कर

रांझा फिर मालिश करने लगती है और इस बार हाथो में तेल लेकर उसकी चूची पे लगने लगती है और जोर जोर से मालिश करने लगती है। देवकी के बड़े बड़े स्तन को हाथों ने भरकर उसे मसलने लगती है और शरारत करती हुई उसके चूचुकों की अपनी उंगलियों से मसल देती है जिससे देवकी की आह निकल जाती है,,,और उसकी काम भावना उमंगे मारने लगती है,,,,वह रांझा से बोलती है,,,,

ये क्या कर रही है छीनल,, देख नहीं रही मुझे दर्द हो था है,,,,

देवकी ये दर्द की सिसकारी नहीं,ये तो मजा की सिसकारी है और ऐसा बोलकर उसकी एक चूची को अपने मुंह में लेकर चूस लेती है,, जिस पर देवकी उसके सर पर एक चपत लगती है और कहती है

अब हो गया रण्डी साली,,,तू मालिश कर और एक हल्दी सी कामुक मुस्कान देती है

रांझा देवकी की छाती और पेट की मालिश करती है और फिर पैर की मालिश करने देवकी के पैरो के तरफ जाकर बैठ जाती है,,,और उसके पैरो के तलवे और पिंडली की मालिश करने लगती है,,,और देवकी से कहती हैi----

अपना घाघरा थोड़ा ऊपर उठा लो तो मै अच्छे से तुम्हारे पैरों की मालिश कर दूं

इस पर देवकी अपना घाघरा घुटनों तक के लेती है और रांझा उसके पैरो पर घटनो तक मालिश करने लगती है

तू बहुत अचछा मालिश करती है रांझा,,,मेरे पैरो का दर्द बहुत कम हो गया है,,,देवकी ने कहा

अभी कहा मालिश हुई है ठीक से,,,अभी मै तुम्हारे जांघों की मालिश करूंगी तब देखना तुम्हारे शरीर का दर्द कैसे खत्म होता है और ऐसा कहते हुए देवकी के घाघरे को उसके घुटनो से ऊपर सरकाकर जांघों के ऊपर चढ़ा देती है,,,जिससे देवकी की दोनो टांगे जांघों तक नंगी हो जाती है,,,वह उपर से तो नंगी थी ही अब नीचे भी उसके पैर नंगे हो जाते हैं,,,,वह देवकी के पैरों की अच्छे से मालिश करने लगती है और हाथो को नीचे से ले जाकर उसके जांघों की जड़ों तक घाघरे के अंदर से हाथ ले जाती है,,,फिर वह देवकी से कहती है,,,

देवकी अपना घाघरा भी निकाल दे, नहीं तो तेल से तेरा घाघरा गंदा हो जाएगा और ये तेल तो और दाग छोड़ता है ,एक बार लग गया तो छूटता ही नहीं है,,,लेकिन देवकी घाघरा खोलने में आना काना करती है और कहती है,,,,,

मुझे शरम आ रही है रांझा,,,आज मै पूरी नंगी नहीं होऊंगी

अगर घाघरा नहीं उतरोगी तो एक तो घाघरा गंदा होगा,,, दूसरे तुम्हारी मालिश ठीक से नहीं हो पाएगी

ठीक है,,,तो एक शर्त है,,,तू क्यों कपड़े पहने है,,,चल तू भी निकाल कपड़े,,,

ये कौनसी बड़ी बात है ,,,ये लो मैं निकाल देती हूं अपने कपड़े और एक ही झटके में अपनी चोली निकाल कर फेंक देती है,,,,

घाघरा भी तो निकाल दे,,,देवकी ने कहा

इस पर रांझा कुछ सोचती है,,,तब तक देवकी उसके घाघरे का नाड़ा खोल देती है जिससे रांझा का घाघरा सरसराता हुआ उसके पैरों में गिर जाता है और वह पूरी मादरजात नंगी हो जाती है,,,उसकी बुर आज पहली बार देवकी की सामने थी जिसे देखकर देवकी मुस्कुरा देती है और कहती है

तेरी बुर पर तो बहुत घने जंगल है रांझा ,,, इस जंगल को पार कर गुफा तक पहुंचना बहुत मुश्किल होता होगा और ये कहकर देवकी उसके बुर को अपने हाथ से सहला देती है जिससे रांझा की आह निकल जाती है,,,,और देवकी मुस्कुराने लगती है,,,,तब देवकी कहती है,,,

अब तो खुश राजमाता ,,,, जो मुझे पूरी नंगी कर दिया,,,,आओ अब मै तुम्हारी मालिश कर दूं और ऐसा बोलकर उसके घाघरे को उसके पैरो से निकालने लगती है जिसे देवकी के उन्नत नितंब रोक रहे थे,,,देवकी समझ जाती है और अपने गान्ड थोड़ी सी ऊपर उठती है जिससे देवकी का घाघरा आराम से उसके पैरो से निकल जाता है और वह पूरी नंगी अपने बिस्तर पर लेटी रहती है ,,,रांझा हाथों में तेल लेकर देवकी के पैरों की मालिश करने लगती है और अब अपने हाथ से उसके जांघ की मालिश करने लगती है,,,वह मालिश करते हुए जैसे हाथ उपर ले जाती उसकी उंगलियां देवकी की योनि के बालों से छू जाती,,,रांझा मालिश करते हुए कहती है,,,,

एक बात कहूं,,,, तुम्हारी योनि में आज अलौकिक चमक दिख रही है,,,क्या किसी ने दर्शन कर लिए आपकी योनि के,,,,

चुप कर बेशरम ,,,ऐसा क्या है इस योनि में जो आज ये अलौकिक हो गई,,,

रांझा मालिश करते करते अपने हाथ में तेल लेकर देवकी की बुर पे हाथ रख देती है जिससे देवकी गन गना जाती है,,,रांझा बड़े प्यार से देवकी की योनि की मालिश करने लगती है और उसको निहारने लगती है,,,,

रांझा देवकी की बुर को मालिश करते हुए कहती है

एक बात पूछूं,,, बुरा तो नहीं मानोगी,,,

नहीं , पूछ क्या पूछना है,,आज तू बड़ी पूछ पूछ कर बातें कर रही है

रांझा उसकी बुर को सहलाते हुए कहती है,,,

देवकी ,,,तुम्हे तुम्हारे बेटे का लंड आज सुबह देख कर कैसा लगा,,,

देवकी ने इस प्रश्न की आशा नहीं की थी, क्यों की उसने सोचा की ये बात रांझा संकोचवश कहीं ये बात नहीं बोलेगी,,,लेकिन यहां रांझा ने तो प्रश्न कर दिया था,,,
राजमाता के कक्ष में सन्नाटा छा गया था ,,,केवल दो सांसे बहुत तेज चल रही थी,,,एक तो देवकी की ओर दूसरे रांझा की,,,लेकिन रांझा कहा रुकनेवाला थी,,,उसने फिर कहा,,,,

बताओ ना देवकी ,,कैसा लगा तुम्हे अपने प्यारे बेटे का लंड

और ऐसा कहते हुए उसकी कामुक सिसकियां भी निकल रही थी और वह देवकी की बुर को भी हौले हौले सहलाए जा रही थी।

ये तू क्या पूछ रही है रांझा ,,,तू नहीं जानती वो मेरा पुत्र है और एक मा अपने पुत्र के बारे में ऐसा नहीं सोच सकती,,, (अब देवकी क्या बताएं की वह अपने पुत्र का लंड देखकर खुद पागल हो गई है )

देवकी मैंने खुद देखा है तुम्हे उसका खड़ा लंड अपने हाथ में पकड़े हुए,,,मुझसे ना छुपाओ,,,,योनि बेटा या पति नहीं देखती,,उसे तो बस मोटा लौड़ा चाहिए होता भले ही वह उसके बेटे का ही क्यों ना हो।

रांझा की बातो से देवकी गरम हो जाती है और उसकी बुर पनिया जाती है जिसे रांझा महसूस करती है और यह देख कर वह एक हाथ ऊपर ले जाकर उसकी चूचियों को मसलने लगती है और उसके चुचुकों को अपनी उंगली के बीच फसाकर मसलने लगती है जिससे देवकी पूरी गरम हो जाती है। ऐसा देख कर रांझा देवकी की योनि के भग्नासे ( clutorics ) को अपनी उंगली से रगड़ने लगती है जिससे देवकी ओर गरम हो जाती है और मचलने लगती है। रांझा समझ जाती है कि देवकी गरम हो गई है,,,,, और फिर वह बात आगे बढ़ती है,,,,

बताओ ना देवकी चुप क्यों हो,,,मैंने अपनी आंखो से देखा था कि तुमने अपने पुत्र का लौड़ा हाथ में पकड़ा हुआ था और तुम उसके लन्ड को छोड़ ही नहीं रही थी और उधर विक्रम भी तुम्हारी चूची को पकड़े हुआ था,,,मुझे तो बहुत दमदार लंड लगा तेरे पुत्र का,,, अगर वो मेरा बेटा होता तो मै आज ही उससे चुदवा ली होती,,,

ऐसा बोलते बोलते रांझा अपनी एक उंगली देवकी की बुर में डाल देती है और जोर जोर से रगड़ने लगती है।।। वह अपनी ऊंगली देवकी की बुर में खूब अंदर बाहर करने लगती है जिससे देवकी सिसकने लगती है और पूरी मस्ती में आ जाती है,,
रांझा फिर कहती है,,,
देवकी मैंने देखा था तुम कैसी ललचाई नजरों से अपने बेटे के लंड को देख रही थी,,,मेरी भी आंखे उसके लौड़े से हट ही नहीं रहीं थीं,,,

इस पर देवकी सिसकियां लेते हुए मस्ती मे कहती है,,,,,

हां मैंने अपने पुत्र का लंड देखा है,,बहुत प्यारा लंड है उसका ,,, उसके लन्ड की गोरी चमड़ी और गुलाबी सुपाड़ा,,, हाय क्या गजब ढा रहा था,,, और उस पर उसकी फूली हुई नसें मुझे पागल बना रही थी,,,मेरी नज़रे तो उसके लौड़े से हट ही नहीं रहीं थी रांझा,,,मै आज दिन भर उसी की यादों में खोई रही,,,रांझा जरा जल्दी जल्दी मेरी योनि में उंगली कर,,,सहा नहीं जा रहा,,,,आज उसका मोटा लौड़ा हाथ में लेकर छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा था,,,वो तो अच्छा हुआ की तू आ गई ,,,नहीं तो आज पता नहीं क्या हो जाता,,,विक्रम के लौड़े में इतनी जान है की अगर कोई स्त्री एक बार देख ले तो बिना सम्भोग किए नहीं मानेगी,,,,

देवकी ऐसे ही बड़बड़ाए जा रही थी मस्ती में और रांझा उसके बुर में उंगली किए का रही थी,,,कमरे में देवकी की योनि की खुशबू फैल गई थी,,,जिस पर रांझा कहती हा

देवकी तुम्हारे योनि की मदमस्त गंध पूरे कक्ष में फ़ैल गई है,,,, मै ना कहती थी कि आज तुम्हारी योनि में आज अलौकिक सुंदरता दिख रही है मुझे,,,

अरे ये मेरी योनि की अलौकिक सुंदरता तो मेरे पुत्र के लिंग के दर्शन का कमाल है,,,जबसे उसका लन्ड देखा है,,,,या यों कहें कि जबसे उसके लिंग को हाथ में लेकर पकड़ा है तबसे मेरी बुर में भूचाल मचा हुआ है,,,सुबह से ही मेरी बुर पानी छोड़ रही है,,,क्या बताऊं महाराज के जाने के बाद आज पहली बार लंड पकड़ा था और वह भी इतना शानदार लंड,,,,देवकी ने कहा,,,

देवकी अगर अपने पुत्र का लंड देख कर तेरी योनि का यह हाल है तो तू अपने पुत्र के साथ संभोग क्यों नहीं कर लेती,,,आखिर उसी ने ना तुम्हारे हाथ में अपना लन्ड दिया होगा ,,,और तो और उसने तो तुम्हारी चूचियों को भी पकड़ रखा था,,,और दबा भी रहा था,, आखिर उसे भी तुम्हारे साथ यौन संबंध बनाने की इच्छा रही होगी,,,

ऐसा कैसे हो सकता है रांझा,,,आखिर वो मेरा पुत्र है,,,मेरी कोख से जन्मा है,,,और उसी कोख में उसके लंड से चुदवा कर मै उसका वीर्य कैसे गिरवा सकती हूं,,तेरे में बड़ी आग लगी है तो तू ही अपने पुत्र के साथ क्यों नहीं सम्भोग करती ,,,,जो तू मुझे समझा रही है,,,,

राजा विक्रम यदि मेरे पुत्र होते तो मै तो कब का उनसे चुदवा ली होती देवकी,,,,उनका खड़ा लंड तो मुझे भूल ही नहीं रहा है,,

रांझा और देवकी के बीच कामुक वार्ता लप चल रही थी और रांझा देवकी की बुर में अपनी दो उंगलियां घुसेड़ कर चोदन करने लगती जिससे देवकी को और भी मस्ती च ढ़ जाती है और वह कामुक सिसकियां निकालने लगती है,,, और वह कहती हैं

इतनी ही गर्मी अगर तेरे बुर में लगी है तो चुदवा ले ना अपने बेटे से ,,, वह भी तो विक्रम का हमउम्र ही है और लंबा चौड़ा भी है,,, उसका लन्ड भी तो मोटा ही होगा,,,,क्यों री रांझा,,

ऐसा ना बोल देवकी वो मेरा बेटा है,,,

तो ऐसे ही विक्रम भी तेरा पुत्र है छिनाल जिससे चुदवाने की तू मुझे बोल रही है,,,मा और पुत्र के बीच यौन संबंध अवैध होता है जिसकी इजाजत समाज कभी नहीं देता है,,,

तो मै कौन सा समाज के सामने चुदवाने को बोल रही हूं,,, अकेले में छुप कर चुदवा ले ,,,किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा,,,,

रांझा की कामुक बातों से राजमाता देवकी की यौन भावनाएं एकदम बढ़ गई थीं जिसमें देवकी को खूब मजा आ रहा था ,,, क्यों कि कामुक बातों के साथ रांझा देवकी की बुर भी अपनी उंगलियों से चोद रही थी,,,,

और तेज चोद रांझा,,,और तेज,,,और तेज,,,,मै झड़ने वाली हूं,,,और ऐसा बोलते बोलते देवकी चरमोत्कर्ष पा लेती है और वह झड़ जाती है ,,,,उसका बदन अचानक अकड़ जाता है,,,उसकी बुर से योनि रस की धार बह निकलती है जिससे रांझा की पूरी हथेली गीली हो जाती है जिसे रांझा अपने नाक के पास लाकर सुंग्घटी है और कहती है,,

अदभुत,,अत्यंत मादक सुंगध है देवकी,,तुम्हारे बुर से निकले हुए अमृत का,,,

और ऐसा बोलकर वह देवकी के बुर से निकले पानी की वह चाट लेती है,,,,

छी तू बड़ी गन्दी है रांझा,,कोई बुर का पानी चाटता है क्या,,,देवकी ने कहा,,,अब झड़ने के बाद देवकी को थोड़ी आत्मग्लानि होती है कि अभी थोड़ी देर पहले वह कैसे बातें कर रही थी,,,, और उसके चेहरे पर शर्म का भाव आ जाता है,,,,

आज के लिए बस इस अपडेट में इतना ही,,,,आगे देखते है और क्या होता है,,,
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है मजा आ गया
 
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