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Incest राजकुमार देव और रानी माँ रत्ना देवी

Raja maurya

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Update 12

तो अभी नंदिनी के कक्ष में राजमाता देवकी अपने बेटे और बेटी को गले से लगाए बैठी थी। अब देवकी का गुस्सा तो शांत हो ही गया था , सुबकना भी कम हो गया था, लेकिन वो अंदर से हिल गई थी अपने बेटे और बेटी की चुदाई देख कर। राजा विक्रम अब स्थिति सामान्य होता देख बोलते हैं
आइए माते, आप आसन पर बैठिए।

राजा विक्रम के ऐसा कहने से देवकी की तंद्रा टूटती है और वह खड़ी हो जाती है और अपने पुत्र और पुत्री का हाथ पकड़कर अपने साथ आसन की ओर ले जाती है।अभी तक राजा विक्रम और राजकुमारी नंदिनी दोनो पूरे मादरजात नंगे ही थे। आसन ग्रहण कर राजमाता इन दोनो को नंगा देख कर कहती है

अरे कमबख्तों अब तो कम से कम अपने नंगे शरीर को चादर से ही ढक लो,,, तुमदोनो को अपनी मां के सामने नंगा खड़ा होने में शर्म नही आती और ऐसा कह कर वह हल्के से मुस्कुरा देती हैं।

राजमाता देवकी की बात सुन नंदिनी रेशम के चादर से खुद को ढक लेती है और एक चादर अपने भाई राजा विक्रम को दे देती है। देवकी के कहने पर दोनो आसन ग्रहण कर लेते हैं, फिर देवकी राजा विक्रम से पूछती है

पुत्र आपने ऐसा क्यों किया, मालूम है न ये आपकी बहन है और बहन के साथ कोई यौन संबंध नहीं बनाता। इस पर राजा विक्रम कहते हैं

राजमाता, मै नंदिनी से प्यार करता हूं और वो भी मुझसे उतना ही प्यार करती है, मै इसके बिना जीवित नहीं रह सकता।

प्रेम करते हो तो इसका मतलब ये तो नहीं है कि तुम अपनी बहन के साथ ही यौन संबंध स्थापित कर लोगे,,,, हरेक भाई अपनी बहन को प्यार करता है,,,तो इसका मतलब ये तो नहीं की हरेक भाई अपनी बहन को चोद ही दे।

लेकिन मै नंदिनी से सच्चा प्यार करता हूं मां और एक स्त्री और पुरुष के बीच यौन संबंध उसी प्रेम की पराकाष्ठा है,,,उसी प्रेम की स्वाभाविक परिणति है और मै तो मानता हूं कि स्त्री पुरुष का प्रेम यौन संबंध बना कर ही प्रकट किया जा सकता है भले ही रिश्ता कोई भी हो,,,,

मै भी भाई विक्रम की बातों से पूरी तरह सहमत हूं मां,,,नंदिनी ने कहा

अच्छा तो ये बात है,,तुम दोनों के बीच स्त्री पुरुष वाला प्रेम हो गया है,,,,लेकिन मै ये नहीं समझ पा रही हूं की तुम दोनों एक दूसरे के प्रति आकर्षित कैसे हो गए,,,

ये बहुत लंबी कहानी है मां और इसके लिए हमारे हालात भी जिम्मेवार है की हम दोनों एक दूसरे के करीब आते गए,,,राजा विक्रम ने कहा

फिर नंदिनी कहती है,,,पिता जी का गुजर जाना ,,विक्रम का राजा बनना हमारे नजदीक आने की परिस्थितियां बनाने लगा,,,हमे नजदीक आने का मौका ही मिलता चला गया,,,

क्या परिस्थितियां रहीं मेरे बच्चो की तुम दोनो एक दूसरे के साथ सहवास करने की सीमा तक पहुंच गए ,,,जब कि तुम्हे पता है कि भाई बहन के बीच सम्भोग तो शास्त्रों में भी वर्जित है,,,

राजा विक्रम __ माते आपको तो मालूम ही है हम दोनो बचपन में एक साथ नंगे नहाया करते थे,,,बल्कि आप ही तो हम दोनो को नंगा करके नहलाती थी,,,नंदिनी भले ही बड़ी बहन है, लेकिन मैं उसके नंगे शरीर के प्रति आकर्षित हो जाता था और शायद नंदिनी को भी मेरा नंगा बदन अच्छा लगता रहा होगा,,,और आप शायद सोचती रही होंगी की ये तो बच्चे हैं, ये नर और मादा के बारे में क्या समझते होंगे,,,ऐसा ही था ना मां

देवकी ___हां यही बात है,,मै तो तुम दोनों को नासमझ समझ कर नंगा नहलाया करती थी

लेकिन यहीं से तो हमारे बीच शारीरिक आकर्षण की शुरुआत हो गई,,,मुझे अपने भाई विक्रम को नंगा देखना अच्छा लगने लगा,,,मुझे उसके साथ रहना उसके साथ खेलना अच्छा लगने लगा,,,नहाते समय मैं इसका लन्ड ही देखा करती थी जो उसी समय बड़ा था और तो और जब विक्रम की नुन्नी पेशाब लगने पर थोड़ी कड़ी हो जाती तो मुझे बड़ा आश्चर्य होता था कि इतनी छोटी नुन्नि बड़ी कैसी हो जाती है,,,मै बड़ी बहन थी तो मुझमें समझ भी ज्यादा थी और यही समझ मुझे अपने छोटे भाई विक्रम के तरफ आकर्षित कर रही थी या यों कहें की मै ही विक्रम के प्रति ज्यादा आकर्षित हो गई थी,,, और आप जब कभी स्नानागार में हमें नंगे छोड़ कर जाती,,,मै ही आगे बढ़कर विक्रम को पकड़ लेती और उसके नंगे शरीर को अपने नंगे शरीर से चिपका लेती और मुझे असीम आनन्द की अनुभूति होती,,शायद विक्रम को भी आनंद मिलता रहा होगा,,,नंदिनी ने बीच में कहा।

हां ये सही है कि जब दीदी मुझे अपने नंगे बदन से चिपकाती तो मुझे भी अच्छा लगता,,,लेकिन क्या अच्छा लगता और क्यों अच्छा लगता था,, ये मुझे समझ नहीं आता था,,,मैं भी नहाते समय दीदी की बुर को ही देखा करता था,,,सोचता इसे नून्नी क्यों नहीं है,,,इसका नुन्नी के जगह पे सपाट क्यो है,,,लेकिन वो सपाट जगह मुझे बड़ी अच्छी लगती,,अब क्यों अच्छी लगती ये मेरी समझ से बाहर था,,,,मै सोचा करता था मैं तो नुन्नी से पेशाब कर लेता हूं लेकिन दीदी कहां से करती होगी,,,,तो एक दिन जब आप हमे छोड़ कर गई और दीदी ने मुझे अपने नग्न शरीर से चिपका लिया तो मैने दीदी से पूछा,,,,
दीदी एक बात पूछनी थी,,,
हां पूछ विक्रम
गुस्सा तो नहीं हो जाएगी
नहीं पगले मैं तुझसे कभी गुस्सा हो सकती हूं क्या,,तू तो मेरा प्यारा सा छोटा सा लाडला भाई है,,,मै क्यों तुझसे गुस्सा होने लगी भला,,,पूछो क्या पूछना है,,,
दीदी, मेरी तो नुन्नी है जहां से मैं पेशाब करता हूं,, लेकिन तुम्हारे तो नुन्नी है ही नही, तो तुम पेशाब कहां से करती होगी और तुम्हारे पास यहां पे नुन्नी क्यों नहीं है,,,मैंने अपना हाथ दीदी के बुर पर रख कर पूछा,,,

इस पर दीदी हसने लगी और कहा,,, अरे पगले पुरुष के पास नुन्नी होता है और स्त्रियों के पास नुन्नी पुरुषों की तरह नहीं होती,,,स्त्रियों के पास ऐसी ही नुन्नी होती है,,,और अपनी उंगली से अपनी बुर की और इशारा कर के बताया,,,
तो क्या हरेक स्त्री की नुन्नी ऐसी ही होती है,,,
हां, स्त्रियों की नुन्नी ऐसी ही होती है,,
तब तो मां की और धाय मां रांझा की भी नुन्नी ऐसी ही होगी,,,
हम्म्म,,मैने देखा तो नहीं है उनकी नुन्नी,,,लेकिन वो भी तो स्त्रियां है तो उनकी नूनी भी ऐसी ही होनी चाहिए,,,
ओह तो ये बात है,,,लेकिन एक बात बताऊं आपको,,,मुझे आपकी नुन्नी बड़ी ही सुंदर लगती है,,जब भी हम नहाने आते है,,मै आपकी नुन्नी ही देखता रहता हूं,,,
मुझे भी तुम्हारी नुन्नी बहुत प्यारी लगती है भाई,,,जब तू छोटा था और तेरी मालिश हो रही होती तो मै तुम्हारी नुन्नी अपने हाथों से पकड़ लिया करती थी,,,

अच्छा दीदी,, लेकिन तुम पेशाब कैसे करतीं हो दीदी,,,

मै यही से करती हूं पेशाब और नंदिनी ने अपनी बुर की ओर उंगली से इशारा करते हुए विक्रम को बताया,,

मुझे देखना है तुम्हे पेशाब करते हुए,,दिखाओगी मुझे पेशाब करके दीदी,,,,,

अच्छा तो मेले बाबू को देखना अपनी बहन को सुसु करते हुए,,
हां दीदी मुझे देखना है तुम पेशाब कैसे करती हो,,,

ठीक है मैं दिखाती हूं अपने बाबू को की मै सुसु कैसे करती हूं,,,

ऐसा कहकर नंदिनी नीचे जमीन पे पेशाब करने की मुद्रा में बैठ जाती है और बोलती है

विक्रम तू भी मेरे सामने आकर मेरी तरह बैठ जा तभी तो तू देखेगा की मै पेशाब कहां से करती हूं,,,

इस पर विक्रम भी नंदिनी के सामने आकर बैठ जाता है और नंदिनी उसके सामने पेशाब करने लगती है तथा उसकी चूत से सिटी की आवाज आने लगती है,,,अपनी बहन को पेशाब करता देख विक्रम को भी पेशाब आने लगती है और वो भी नंदिनी के सामने बैठे हुए पेशाब करने लगता है,,,दोनो भाई बहनों की पेशाब की छीटें भी एक दूसरे पर पड़ रही थी,,, लेकिन फिर भी दोनो एक दूसरे के सामने बैठ कर पेशाब कर रहे थे और एक दूसरे को पेशाब करते हुए देख रहे थे,

तो इस तरह मां हमदोनो एक दूसरे के प्रति आकर्षित होने लगे और दिन पर दिन हमारा ये एक दूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ता ही गया,,,, लेकिन शुरुआत तो यहीं से हुई थी,,,नंदिनी ने कहा

हम्मम, अच्छा तो ये बात है,,,इसका मतलब गलती मेरी ही है इसमें,,,ना मां तुमदोनो को साथ में नंगा नहलाती ,,ना ये सब तुम दोनो के बीच होता,,,देवकी ने कहा

नहीं मां,, इसमें तुम्हारा दोष नहीं है,,शायद परिस्थितियां ही ऐसी बन गईं थीं की हम दोनो भाई बहन होते हुए भी एक दूसरे के नजदीक आ गए थे,,, क्यों कि अगर आपका दोष होता तो हम दोनो थोड़ी समझदारी आने पर एक दूसरे के करीब नही आते,,,,बल्कि एक दूसरे से दूरी बना लेते,,,मगर ऐसा नहीं हुआ मां,,,शायद प्रकृति भी यही चाहती थी हम दोनो भाई बहन एकाकार हो जाएं,,,,नंदिनी ने कहा
क्योंकि जब हम थोड़े बड़े हुए तो हालांकि आपने हमे नंगा कर के नहलाना बंद कर दिया,,, लेकिन हमारे बीच आपसी आकर्षण बरकरार रहा,,,अब हम राजकुमार और राजकुमारी थे तो हमारा कोई दोस्त भी नही हो सकता था,,,केवल धाय मां का बेटा कालू ही था जो कभी कभार हमारे साथ खेला करता था,, नहीं तो केवल हम दोनों भाई बहन ही हमेशा साथ रहते,,,, तो इसलिए खेलते खेलते जब हम देखते की कक्ष में कोई नहीं है और हम दोनों बिल्कुल अकेले है ,,, तो मै बड़ी बहन होने के नाते पहल करती और विक्रम को पकड़ कर कक्ष के ऐसे कोने में ले जाती जहां हम दोनो छुप कर बैठ सकते थे,,,वहां नीचे जमीन पर उकडू बैठ जाती और विक्रम को भी अपने सामने बैठा लेती और मै अपना घाघरा उठा कर विक्रम को अपनी नंगी बुर दिखाती और विक्रम को भी धोती खोलने को बोलती तब विक्रम भी अपनी धोती खोलकर नंगा ही मेरे सामने बैठ जाता और अपना लंड मुझे दिखाता,, फिर हम दोनो काफी देर तक एक दूसरे के यौनांगों को निहारते रहते ,,,,फिर कुछ महीनों तक हम कुछ नहीं करते ,,,,
फिर मेरी माहवारी शुरू हो गई तो मेरी बुर पर झांटें भी उग आई,,,मुझे उत्सुकता हुई की क्या विक्रम के लंड पर भी झांट आए होंगे !!!
इसी बीच आप और पिताश्री आखेट के लिए कुछ दिनों के लिए जंगल गए,,,तो हमे फिर मौका मिल गया,,,जिस दिन आप दोनो आखेट के लिए राजकीय यात्रा पर गए उसी दिन मै आपके कक्ष में विक्रम का हाथ पकड़ कर उसी कोने में ले गई और नीचे बैठ गई,,,
और नीचे बैठ कर अपना घाघरा उठा लिया,,,विक्रम भी जानता ही था की उसे क्या करना है,,,तो वो भी अपनी धोती खोल कर फेंक दिया अपना लंड लटकाए हुए मेरे सामने बैठ गया और मेरी बुर देखंकर उसका मुंह आश्चर्य से खुला रह गया क्योंकि उसने मेरी बुर पे झांटे देख ली थी,,,हालाकि विक्रम की नुन्नी भी अब लंड बनने लगी थी और मेरी बुर देख कर उसका लंड अब खड़ा होने लगा था जो मुझे बहुत आकर्षित कर रहा था,,, हालांकि विक्रम के लंड पर अभी झांटे नहीं आई थी,,,हम दोनो फिर काफी देर तक एक दूसरे के यौनांगों को देखते रहे,,,फिर हमे कदमों की आहट सुनाई पड़ी तो हम दोनो खड़े हो गए और मैंने अपना घाघरा नीचे कर दिया और विक्रम ने धोती पहन ली,,,
लेकिन विक्रम के प्यारे लंड को देख मेरे शरीर में गर्मी बढ़ गई थी,,,,लेकिन हम दोनो इसके आगे कुछ नहीं कर पा रहे थे और न ही इससे आगे बढ़ ही पा रहे थे,,,आप और पिताश्री अब आखेट से भी आ चुके थे तो अब हमें कोई मौका नहीं मिल पा रहा था,,,

इधर हमे आप अपने कक्ष में ही एक ही शैय्या पर सुलाने लगी हीं थी,,,हम दोनों के अंदर पहले से आकर्षण तो था ही,,लेकिन अब हमारे बीच एक संकोच की दीवार भी थी,,,लेकिन परिस्थिति ने फिर हमारा साथ देना शुरू कर दिया,,,
मुझे अब महावारी आना शुरू हो गया था ,,,,मेरी आवाज और भी पतली हो गई थी और अब मेरी काम भावनाएं भी बढ़ने लगी थी,,,मेरे अंदर अब लंड की प्यास बढ़ने लगीं थी,,,लेकिन वो कहते हैं ना कि स्त्री अपनी भावनाओं को काबू करना सीख जाती है और समाज और रीति रिवाजों के बंधन में अपनी भावनाओं को दबा कर रखती है,,, तो मै भी स्त्री के स्वाभाविक व्यवहार के कारण अपनी भावनाओं को दबा कर रख रही थी,,,,
लेकिन आपको तो याद होगा मां की आप हमे अपने कक्ष में शैय्या पर सोता जानकर रात्रि में धीरे से उठकर पिता श्री के कक्ष में चली जाती थी,,,लेकिन हम दोनो की नींद तो रात में कई बार खुल ही जाती थी और हम लोग आपको आपके शय्या पर नहीं पाते थे,,,जिसकी जानकारी आपको कभी नहीं हो पाती,,,

हां ये तो है, मै तो तुम दोनों को सोता जान कर ही जाया करती थी और तुम दोनो कमबख्त जगे रहते थे,,, हाय राम ,,बड़े कमीने थे तुम दोनो बचपन से ही,,, हहाहा,,,,ऐसा कह कर देवकी हसने लगती है,,,

अपनी बातों को जारी रखते हुए नंदिनी ने कहा,,,
ऐसे ही एक रात्रि को जब मै और विक्रम सोए हुए थे तो मैं काफी कामुक हो रही थी और स्वप्न में एक बहुत ही कामुक दृश्य देख रही थी की एक पुरुष अपना लिंग मेरी झांटदार चूत से लड़ा रहा था तो मैं काफी कामुक हो गई और मुझे पसीने छूटने लगे और बुर पूरी पनिया गई थी ,,, मै इतनी कामुक हो गई थी की मैंने सपने में ही हाथ विक्रम के तरफ फेका तो मेरे हाथ में विक्रम का हाथ आ गया,,,मैंने जोश में विक्रम का हाथ अपनी जांघों के बीच ले जाकर बुर पर रख दिया और अपने दोनो पैरों से विक्रम के हाथ को जकड़ लिया और कामुक आवाज निकालते हुई विक्रम के हाथ को अपने बुर पे रगड़ने लगी,,,अब विक्रम की भी आंखे खुल गई थी और भी अपने हाथ से मेरी बुर जोर जोर से रगड़ने लगा था,,,,विक्रम का भी जवान बहन का जवान बुर सहलाने और रगड़ने का पहला अनुभव था और मेरा भी बुर रगड़वाने का पहला अनुभव था जिससे हम दोनों काफी उत्तेजित हो गए थे हालाकि ये बुर रगड़ाई घाघरे के ऊपर से ही हो रही थी,,,,,,लेकिन फिर भी बुर की रगड़ाई से मैं बहुत जल्दी झड़ गई और फिर मुझे होश आया कि मैंने विक्रम का हाथ अपनी बुर के ऊपर दबाया हुआ है,, मै शर्म से पानी पानी हो गई,,,,
लेकिन मुझे अब पेशाब लगी थी तो मैं उठ कर स्नानघर में चली गई,,,,तथा पेशाब कर के वापस आकर फिर शैय्या पर लेट गई,,लेकिन अब विक्रम जगा हुआ था और उसकी आंखों में नींद नहीं थी तो मेरी आंखों से भी नींद गायब थी,,,कुछ देर के बाद विक्रम ने मेरी तरफ करवट ली और अपना एक हाथ सीधे ले जाकर घाघरे के ऊपर से मेरी बुर पर रख दिया जिससे मेरी सिसकी निकल गई और वह मेरी बुर को सहलाते हुए मेरी आंखों में देख रहा था,,,मै भी उसकी आँखों में देखे जा रही थी,,, मै उसे अब मना भी नहीं कर सकती थी क्योंकि अभी थोड़ी देर पहले मैं खुद उससे अपनी बुर रगड़वा रही थी,,तो अब मना भी करती तो किस मुंह से करती और हम दोनो बिल्कुल खामोश होकर आंखो में आंखे डाले एक दूसरे को देखे जा रहे थे,,,,, फिर विक्रम ने अपनी धोती की गांठे खोलकर अलग कर दिया तो उसका लौड़ा खड़ा होकर मेरी आंखों के सामने आकर मुझे सलामी देने लगा,,,फिर उसने अपने हाथ से मेरा एक हाथ पकड़ कर अपने लंड के पास ले गया और मेरा हाथ अपने लंड पर रख दिया जिससे मै पूरी तरह गनगाना गई और उसके मोटे लंबे लौड़े को हाथ में पकड़ कर सहलाने लगी और उसके लंड पर से उसकी खोली हटा कर उसके गुलाबी सुपाड़े को बाहर निकाल लिया ,,,उसका सुपाड़ा भी कड़ा होकर एकदम चिकना हो गया था जिसे मैं अपने अंगूठे से सहलाए जा रही थी,,, और मुझे बहुत मजा आ रहा था,,,मेरी काम भावनाएं एकदम भड़क गई थी और मैं विक्रम के लंड को खा जाना चाहती थी,,,उसके गुलाबी सुपाड़े की चिकनाहट मुझे मदहोश किए जा रही थी ,,,मन कर रहा था कि अभी घाघरा खोलकर अपनी नंगी बुर अपने प्यारे भाई को दिखा दूँ और उसके प्यारे से मूसल लण्ड को अपनी प्यासी योनि में डालकर सो जाऊँ,,,लेकिन वो कहते हैं ना कि मर्यादा हमने बहुत कुछ करने से रोकती है भले ही हमारा मन वो करने को कर रहा हो,,,तो यही मर्यादा कि दिवार ही मुझे आगे बढ़ने से रोक रही थी

और मै ये सोचकर आगे नहीं बढ़ रहा था कि कहीं दीदी को बुरा ना लग जाए और कहीं उसने मना कर दिया तो मै वो भी नहीं कर पाऊँगा जो अभी कर रहा हूँ,,,,इसलिए जितना मिल रहा है उतने में ही ख़ुश रहना है,,मज़ा तो मुझे भी बहुत आ रहा था ,,समझ बढ़ने के बाद पहली बार मै और दीदी इस तरह का यौन सुख का आनन्द पहली बार ले रहे थे और आपको तो पता ही है की पहला प्यार और पहला यौन सुख का अहसास अलग तरह का ही होता है,,,मेरा भी लिंग अब मुस्तंड लौड़ा बन चुका था और मेरी जवानी भी अब हिलोरे मर रही थी ,,,मै खुद चाह रहा था की दीदी को नंगा कर के अभी के अभी अपना लिंग उसकी योनि में डाल दूँ,,,और जिस तरह से दीदी अपनी उँगलियों से मेरे सुपाड़े को छू रही थी, सहला रही थी मेरी उत्तेजना और बढ़ती जा रही थी,,,,,लेकिन एक तो डर और ऊपर से मर्यादा की दिवार मुझे भी ये करने से रोक रही थी,,,,राजा विक्रम ने कहा

नन्दिनी फिर बात को आगे बढ़ाते हुए बोलती है ,,,,फिर पता नहीं कब भाई का लिंग सहलाते सहलाते आँख लग गई पता ही नहीं चला और भाई भी मेरी बुर सहलाते सहलाते सो गया,,,वो तो अच्छा हुआ की आपके आने के पूर्व मेरी आँख खुल गई और अगर मेरी आँख नहीं खुलती तो शायद हमदोनो भाई बहन रंगे हाथ रंगरलियाँ मनाते हुए पकड़े जाते,,,जैसे ही मेरी आँख खुली मैंने भाई का हाथ घाघरे के ऊपर से अपनी योनि पर से हटाया और उसे जगाकर उसे धोती लपेटने को बोला,,,जिससे भाई ने भी तुरन्त ही धोती लपेटकर सो गया,,,वो तो अच्छा हुआ उस दिन की मेरी नींद खुल गई ,,नहीं तो अनर्थ ही हो जाना था उस दिन ,,,ये कहकर नन्दिनी मुस्कुराने लगती है,,,,

तब देवकी ने कहा,,,,तू तो बड़ी रण्डी निकली छिनाल,,,डायन भी सात घर छोड़कर वार करती है और तू अपने छोटे भई पर ही डोरे डाल रही थी ,,,अरे कुछ तो शरम कर लिया होता,,,मेरे प्यारे मासूम बेटे को अपने प्यार में फँसा लिया और ये कहते हुए देवकी मुस्कुराकर एक हल्की सी चपत नन्दिनी के सिर पर लगाती है,,,

उफ़्फ़ माँ,,,चोट लगती है,,,क्या करती हो तुम,,,बड़ा आया आपका मासूम बेटा ,,,आगे तो कहानी इसी ने बढ़ाई ना,,,,,, फिर नंदिनी ने आगे बोलना शुरू किया,,,

उस रात के बाद से हमने कई दिनों तक कुछ नहीं किया और बाहर हम दोनो भाई बहन ऐसे व्यवहार करते रहे की हमारे बीच कुछ हुआ ही न हो,,,लेकिन करीब 6 महीने बाद फिर एक घटना घटी,,, उस रात भी हम आपके कक्ष में सोए थे और प्रत्येक रात्रि की भांति आप पिताश्री के साथ सोने चली गई थीं और हमंदोनो भाई बहन अपने कक्ष में अकेले थे,,,मध्य रात्रि में अचानक मुझे लंड की जरूरत महसूस होने लगी और मैं काफी उत्तेजित हो गई जिससे मेरी नींद खुल गई,,मेरी आंख खुली तो मैंने देखा की आप कमरे में नहीं है और विक्रम मेरी तरफ पैर कर के सोया था,,मुझे अपने भाई पर खूब प्यार आ रहा था और मैने उत्तेजनावश विक्रम का पैर अपने बुर पर घाघरे के ऊपर से ही रख दिया और उसे अपने बुर पर दबा दिया,,,और अपने दोनो पैरों से उसके पैर को दबोच लिया और अपनी बुर उसके पैर पर रगड़ने लगी और यौन आनंद लेने लगी,,,मेरे द्वारा विक्रम के पैर पर बुर रगड़ने से विक्रमंकी भी आंख धीरे धीरे खुल गई और जब उसकी नींद खुली तो उसने मुझे अपनी बुर अपने पैर पर रगड़ता पाया,,,कुछ देर देखने के बाद उसने अपना पैर मेरी बुर पर से हटाने की कोशिश करने लगा और अपने पैर को छुड़ाने के इन्हें हिलाने लगा,,,
मै बहुत डर गई थी की लगता है की विक्रम को अब ये पसंद नहीं आ रहा है और मै मन ही मन ऊपर वाले से माफी मांगने लगी की अब नही करूंगी ये सब भाई के साथ,, हे ऊपरवाले आज के लिए संभाल लो मामला,,,फिर आगे से कभी ये गलती नहीं करूंगी,,,
लेकिन माते पुरुष तो पुरुष होता है ,, बस उसे योनि दिखनी चाहिए वो खुश हो जाता है,,,वैसे ही ये महाशय हैं,,,जब इन्होंने मेरे बुर के ऊपर से अपने पैर हटा लिए तो जनाब मेरे बगल में आकर लेट गए,,,मै द्वंद में थीं, कि क्या होने वाला है,,,ये जनाब मुझे डांटेंगे या पता नहीं क्या करेंगे,,, डर भी रही थी और कुछ अनहोनी की संभावना भी लग रही थी,,,
लेकिन विक्रम मेरे बगल में लेटकर मेरा मुंह देखता रहा ,,फिर उसने जो किया उसकी मैने कल्पना भी नहीं की थी,,,उसने अचानक से अपने होठ मेरे होठों पर रख दिया और उन्हें बेदर्दी से चूसने लगा,,,ये होंठो को चूसने का मेरा पहला अनुभव था इसलिए मैं आनंद के सागर में गोते लगाने लगी,,,और दूसरी बात ये की मैंने राहत की सांस ली की विक्रम को बुरा नही लगा है बल्कि वो तो हमारे बीच के संबंधों को एक ऊंचे स्तर पर ले जा रहा है,,,, अभी थोड़ी देर पहले ही मैं जो ऊपर वाले से माफी मांग रही थी की आगे से ये गलती नहीं करूंगी ,,वो मै भूल गई,, और मैं फिर से अपने भाई के साथ अवैध संबंधों को आगे बढ़ाने लगी,,,मनुष्य बहुत ही स्वार्थी प्राणी है,,उसके लिए उचित या अनुचित कुछ भी नही है,,,बस उसकी भूख शांत होती रहनी चाहिए ,,भले ही वह भूख पेट की हो या जिस्म की,,,
भाई द्वारा मेरे होंठों को अपने होठों के बीच दबाकर चूसा जाने लगा जिससे मेरी उत्तेजना और बढ़ गई,,,और मै भी अपने भाई का चुम्बन में साथ देने लगी,,,हम दोनो करीब 15 मिनट तक एक दूसरे के होठ चूसते रहे,,,कभी वो मेरी जीभ अपने मुंह में लेकर चूसता तो कभी मैं उसकी जीभ को अपने मुंह में लेकर चूसती,,,, कभी होठों को चबाती ,,,इस चुम्बन से हम दोनों की सांसे खूब तेज चलने लगी,,,फिर 15 मिनट बाद हम दोनो अलग हुए और ,,,,
विक्रम मेरी आंखों में आंखे डालकर एक टक से मुझे देखे जा रहा था और मैं उसकी आंखों में,,,ऐसे ही देखते हुए विक्रम बोल पड़ा,,,
आप बहुत सुंदर हो दीदी,,, बिल्कुल अप्सरा की तरह ,,,, मै कई सालों से ये तुम्हे कहना चाह रहा था लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी,,,सच में तुम्हारे ये गुलाबी होठ कितने मुलायम हैं,,,लगता है अभी इनसे खून निकल जाएगा,,,
और ऐसा बोलकर विक्रम ने मेरे माथे को प्यार से चूम लिया जिससे मैं शर्मा गई और शर्म से अपनी आंखे नीची कर ली,,,आज इतने वर्षों में पहली बार विक्रम ने मेरी सुंदरता की प्रशंसा की थी,,,इसके पूर्व वह केवल एक छोटे भाई की तरह मेरा कहना मान लिया करता था,,, लेकिन आज उसने एक पुरुष की भांति मेरे साथ व्यवहार किया था और मुझे नारी होने का अहसास दिलाया था,,,आज के पूर्व वह केवल एक छोटे भाई के रूप में मेरे साथ यौन क्रीड़ा में भाग लिया करता था ,,,लेकिन आज वह एक भाई होने के अलावे एक मर्द के रूप में पेश आया था और आज पहली बार उसने स्वयं कदम आगे बढ़ाते हुए मेरे करीब आकर मेरा चुम्बन लिया था,,,अभी तक हम दोनों केवल काम भावना के वशीभूत होकर एक दूसरे के साथ काम क्रीड़ा किया करते थे,,,लेकिन अभी विक्रम द्वारा बोले गए शब्दो में वासना नहीं ,,बल्कि एक पुरुष का एक स्त्री के प्रति प्रेम नजर आ रहा था,,,जिससे मुझे अलग ही प्रेम वाली अनुभूति हो रही थी,,,अब विक्रम के साथ प्रेम की मेरी तीन भावनाएं थी,,,पहला तो जग जाहिर है बड़ी बहन का छोटे भाई के प्रति प्यार ,लगाव जो उसकी रक्षा भी करती है,,,,दूसरी भावना काम भावना थी जिसके वशीभूत हम दोनों एक दूसरे के यौनांगों के साथ खेला करते थे,,,,और आज एक तीसरी भावना ने भी जन्म ले लिया और वो है एक नर का एक मादा के प्रति शास्वत पवित्र प्रेम,,,जिसमे मादा हमें नर के प्रेम में वशीभूत हो जाती है और उसकी ही बन कर रह जाती है और आज यही प्रेम मै विक्रम के अंदर अपने लिए देख रही थी और मैं स्वयं विक्रम के प्रति ये प्रेम महसूस कर रही थी,,,अब सोचो मां,, जब कोई किसी से इतने तरह का प्रेम करेगा तो उसका प्रेम कितना ऊंचा होगा,,,
इसके बाद विक्रम मेरे आंखों में देखते हुए अपना हाथ मेरे घाघरे के ऊपर से मेरी बुर पर रख दिया,,,और मेरी बुर को घाघरे के ऊपर से ही सहलाने लगा,,, चूकि रात में हम पतले कपड़े का घाघरा पहन कर सोते हैं इसलिए कपड़े होने के बावजूद विक्रम का हाथ मै अपनी बुर पर अच्छे से महसूस कर रही थी,,,फिर उसने अपनी धोती हटा दी तो उसका मोटा लंड मेरी आंखों के सामने आ गया जो पूरी तरह से खड़ा था और इतना टाइट था की उसका सुपाड़ा बिना खोल हटाए ही बाहर लंड से बाहर झांक रहा था और मेरी तरफ ऐसे खड़ा था मानों मुझे प्यार से निहार रहा हो,,,फिर विक्रम ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लौड़े पर रख दिया जिससे मैं पूरी तरह गनगना गई,,,मैने उसे कामुक आवाज में कहा मत कर विक्रम,,,लेकिन मौका रहते हुए भी मैने अपना हाथ उसके लंड पर से नहीं हटाया,,,उसे छोड़ने का जी ही नहीं कर रहा था,,, मै स्वय उसके लिंग को आगे पीछे करने लगी और विक्रम मेरी बुर को सहलाए जा रहा था जिससे मैं पूरी तरह गर्म हो गई थी।
इसी बीच विक्रम ने ऐसा काम किया था जिसकी मै कल्पना भी नही कर सकती थी,,,उसने अपना एक हाथ मेरी चोली के ऊपर रख कर मेरे स्तन दबाने लगा,,,स्तन दबवाने का ये मेरा पहला अनुभव था,,,मेरी उत्तेजना बढ़ती हिब्जा रही थी,,लेकिन मै विक्रम को ऊपरी मन से ऐसा नहीं करने को बोल रहीं थी,,,फिर अचानक विक्रम ने मेरी चोली ऊपर कर दी जिसकी मैने कल्पना भी नहीं की थी की विक्रम ऐसा कर सकता है,,,मेरी चोली उठा देने से मेरे दोनो स्तन नंगे होकर विक्रम की आंखों के सामने आ गए,,,मै उत्तेजित तो थी ही और उसी उत्तेजना के कारण मेरे दोनो स्तन इस तरह पूरे टाइट थे कि ऐसा लग रहा था दोनो विक्रम को निहार रहे हों,,,,मेरे नंगे स्तन देखकर विक्रम की आहें निकल गई और उसने बोला,,,
बहुत ही सुंदर स्तन हैं तुम्हारे दीदी,,,कितने गोरे हैं ये,,मै तो सपने में भी नहीं सोच सकता था की आपके स्तन इतने सुंदर होंगे,,, बिल्कुल संगमरमर की तरह चमक रहे हैं,,,और इस गोरे स्तन पे ये हल्की सी हरी नसें इसकी खुबसूरती में चार चांद लगा रहे है,,,मै बहुत सौभाग्यशाली हूं की मुझे आपके इतने सुंदर स्तन के दर्शन हो गए,,,मै धन्य हो गया बहन ,,,, और आपके स्तन के ये हल्के भूरे रंग के स्तनाग्र अर्थात चुचूक मुझे कितने प्यार से देख रहे है ,,
और ऐसा कह कर विक्रम ने अपनी दो उंगलियों से मेरी चुचूक को पकड़ कर मसल दिया जिससे मेरी आह् निकल गई क्योंकि मेरे चुचूक को पहली बार किसी मर्द ने अपनी उंगलियों से मसला था,,,मेरा पूरा शरीर अकड़ गया और जोश में मैने अपनी कमर उठाकर बुर को विक्रम के दूसरे हाथ पर दबा दिया,, जिससे विक्रम का हाथ मैं अपनी बुर पर पूरी तरीके से महसूस करने लगी,,,और मै उत्तेजना वश बोल पड़ी,,,
और जोर से रगड़ों विक्रम मेरी योनि को,,
और उसके हाथ पे अपना बुर रगड़ने लगी,,,और मै विक्रम के लंड को भी खूब तेजी से दबा दबा कर सहला रही थी जिससे विक्रम की भी आहें निकल रही थी,,,
आज विक्रम भी पूरे मूड में था,,,वह कभी उंगलियों से मेरे चुचको को कुरेदता तो कभी अपने हाथ से मेरी चूची को दबा देता ,,,जिससे मैं अत्यंत उत्तेजित होती जा रही थी,,
फिर अचानक विक्रम ने अपना मुंह मेरे स्तनों पर रख दिया और उसको प्यार से चूमने के बाद एक स्तन को मुह में लेकर चूसने लगा जैसे बच्चे अपनी मां का दूध उसके स्तन से चूसकर पीते हैं,,विक्रम द्वारा मेरे स्तन चूसे जाने से मैं और उत्तेजित हो गई और बड़बड़ाने लगी क्युकी मेरी जिंदगी में पहली बार कोई मेरे स्तन चूस रहा था,,,
चूसो भाई चूसो ,,अपनी बहन के स्तनों के दूध को चूसकर खाली कर दो ,,, इसका जहर निकल दो मेरे भाई,,, दूसरे वाले स्तन को चूसो ना भाई,,, वो भी तुम्हारे प्यार को तरस रही है विक्रम और ऐसा कहते हुए मै दूसरे स्तन के स्तनग्र को अपनी उंगलियों से मसल रही थी,,,
मेरा आदेश पाकर मेरा प्यारा भाई मेरी दूसरी चुची को चूसने लगा,,,जब वह दूसरे स्तन को चूसता तो मै पहले स्तन के चुचूक को उंगलियों से मसलती,,,और मै अपनी कमर उठा कर बार बार अपनी बुर विक्रम की हथेलियों पर रगड़ती,,
उसी बीच विक्रम बीच में बोल पड़ा,,
और माते , बहन का घाघरा इतना पतला था की मै उसकी योनि को साफ महसूस कर सकता था,,,बल्कि मै तो उसकी झांटों को भी महसूस कर रहा था,,,
फिर नंदिनी बोलती है,,,
हम पूरी तरह यौन संबंधों का आनंद उठा रहे थे,,,आपके कक्ष में हम भाई बहन की आहे और सिसकारियां गूंज रही थीं,,,
मै उसके लौड़े को दबोच दबोच कर सहला रही थी तो विक्रम मेरी बुर को रगड़ रगड़ कर सहला रहा था और मेरी चूची चूसे जा रहा था,,,और संयोग देखो मां,,हम दोनो भाई बहन एक साथ ही झड़ गए और मेरे हाथ पर विक्रम का पूरा वीर्य गिर गया तो विक्रम के हाथ पर मेरी योनि से निकला पानी लग गया और मेरा घाघरा भी योनि के स्थान पर हल्का सा गिला हो गया,,,

फिर हम दोनो की कामाग्नि शांत हुई तो विक्रम ने मेरी आंखों में आंखे डाल कर देखा और मेरे माथे को प्यार से चूम लिया ,,ऐसा लगा कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका को प्यार से चूम रहा हो ,,,फिर उसने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और मेरी चूचियां उसकी छाती में धंस गई,,,मैने भी उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया और आंखे बंद कर उसके आलिंगन का आनंद उठाने लगी।

हालाकि जो होता है अच्छे के लिए होता है,,,अगर उस दिन हम दोनो भाई बहन नहीं झड़े होते तो पता नहीं हम दोनों क्या कर बैठते,,,
और इस तरह हमंदोनो भाई बहन एक दूसरे की बाहों में सो गए,,,,

उम्मीद है आप लोगो को अपडेट पसंद आएगा
Mast update Bhai
 

Sanju@

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Update 12

तो अभी नंदिनी के कक्ष में राजमाता देवकी अपने बेटे और बेटी को गले से लगाए बैठी थी। अब देवकी का गुस्सा तो शांत हो ही गया था , सुबकना भी कम हो गया था, लेकिन वो अंदर से हिल गई थी अपने बेटे और बेटी की चुदाई देख कर। राजा विक्रम अब स्थिति सामान्य होता देख बोलते हैं
आइए माते, आप आसन पर बैठिए।

राजा विक्रम के ऐसा कहने से देवकी की तंद्रा टूटती है और वह खड़ी हो जाती है और अपने पुत्र और पुत्री का हाथ पकड़कर अपने साथ आसन की ओर ले जाती है।अभी तक राजा विक्रम और राजकुमारी नंदिनी दोनो पूरे मादरजात नंगे ही थे। आसन ग्रहण कर राजमाता इन दोनो को नंगा देख कर कहती है

अरे कमबख्तों अब तो कम से कम अपने नंगे शरीर को चादर से ही ढक लो,,, तुमदोनो को अपनी मां के सामने नंगा खड़ा होने में शर्म नही आती और ऐसा कह कर वह हल्के से मुस्कुरा देती हैं।

राजमाता देवकी की बात सुन नंदिनी रेशम के चादर से खुद को ढक लेती है और एक चादर अपने भाई राजा विक्रम को दे देती है। देवकी के कहने पर दोनो आसन ग्रहण कर लेते हैं, फिर देवकी राजा विक्रम से पूछती है

पुत्र आपने ऐसा क्यों किया, मालूम है न ये आपकी बहन है और बहन के साथ कोई यौन संबंध नहीं बनाता। इस पर राजा विक्रम कहते हैं

राजमाता, मै नंदिनी से प्यार करता हूं और वो भी मुझसे उतना ही प्यार करती है, मै इसके बिना जीवित नहीं रह सकता।

प्रेम करते हो तो इसका मतलब ये तो नहीं है कि तुम अपनी बहन के साथ ही यौन संबंध स्थापित कर लोगे,,,, हरेक भाई अपनी बहन को प्यार करता है,,,तो इसका मतलब ये तो नहीं की हरेक भाई अपनी बहन को चोद ही दे।

लेकिन मै नंदिनी से सच्चा प्यार करता हूं मां और एक स्त्री और पुरुष के बीच यौन संबंध उसी प्रेम की पराकाष्ठा है,,,उसी प्रेम की स्वाभाविक परिणति है और मै तो मानता हूं कि स्त्री पुरुष का प्रेम यौन संबंध बना कर ही प्रकट किया जा सकता है भले ही रिश्ता कोई भी हो,,,,

मै भी भाई विक्रम की बातों से पूरी तरह सहमत हूं मां,,,नंदिनी ने कहा

अच्छा तो ये बात है,,तुम दोनों के बीच स्त्री पुरुष वाला प्रेम हो गया है,,,,लेकिन मै ये नहीं समझ पा रही हूं की तुम दोनों एक दूसरे के प्रति आकर्षित कैसे हो गए,,,

ये बहुत लंबी कहानी है मां और इसके लिए हमारे हालात भी जिम्मेवार है की हम दोनों एक दूसरे के करीब आते गए,,,राजा विक्रम ने कहा

फिर नंदिनी कहती है,,,पिता जी का गुजर जाना ,,विक्रम का राजा बनना हमारे नजदीक आने की परिस्थितियां बनाने लगा,,,हमे नजदीक आने का मौका ही मिलता चला गया,,,

क्या परिस्थितियां रहीं मेरे बच्चो की तुम दोनो एक दूसरे के साथ सहवास करने की सीमा तक पहुंच गए ,,,जब कि तुम्हे पता है कि भाई बहन के बीच सम्भोग तो शास्त्रों में भी वर्जित है,,,

राजा विक्रम __ माते आपको तो मालूम ही है हम दोनो बचपन में एक साथ नंगे नहाया करते थे,,,बल्कि आप ही तो हम दोनो को नंगा करके नहलाती थी,,,नंदिनी भले ही बड़ी बहन है, लेकिन मैं उसके नंगे शरीर के प्रति आकर्षित हो जाता था और शायद नंदिनी को भी मेरा नंगा बदन अच्छा लगता रहा होगा,,,और आप शायद सोचती रही होंगी की ये तो बच्चे हैं, ये नर और मादा के बारे में क्या समझते होंगे,,,ऐसा ही था ना मां

देवकी ___हां यही बात है,,मै तो तुम दोनों को नासमझ समझ कर नंगा नहलाया करती थी

लेकिन यहीं से तो हमारे बीच शारीरिक आकर्षण की शुरुआत हो गई,,,मुझे अपने भाई विक्रम को नंगा देखना अच्छा लगने लगा,,,मुझे उसके साथ रहना उसके साथ खेलना अच्छा लगने लगा,,,नहाते समय मैं इसका लन्ड ही देखा करती थी जो उसी समय बड़ा था और तो और जब विक्रम की नुन्नी पेशाब लगने पर थोड़ी कड़ी हो जाती तो मुझे बड़ा आश्चर्य होता था कि इतनी छोटी नुन्नि बड़ी कैसी हो जाती है,,,मै बड़ी बहन थी तो मुझमें समझ भी ज्यादा थी और यही समझ मुझे अपने छोटे भाई विक्रम के तरफ आकर्षित कर रही थी या यों कहें की मै ही विक्रम के प्रति ज्यादा आकर्षित हो गई थी,,, और आप जब कभी स्नानागार में हमें नंगे छोड़ कर जाती,,,मै ही आगे बढ़कर विक्रम को पकड़ लेती और उसके नंगे शरीर को अपने नंगे शरीर से चिपका लेती और मुझे असीम आनन्द की अनुभूति होती,,शायद विक्रम को भी आनंद मिलता रहा होगा,,,नंदिनी ने बीच में कहा।

हां ये सही है कि जब दीदी मुझे अपने नंगे बदन से चिपकाती तो मुझे भी अच्छा लगता,,,लेकिन क्या अच्छा लगता और क्यों अच्छा लगता था,, ये मुझे समझ नहीं आता था,,,मैं भी नहाते समय दीदी की बुर को ही देखा करता था,,,सोचता इसे नून्नी क्यों नहीं है,,,इसका नुन्नी के जगह पे सपाट क्यो है,,,लेकिन वो सपाट जगह मुझे बड़ी अच्छी लगती,,अब क्यों अच्छी लगती ये मेरी समझ से बाहर था,,,,मै सोचा करता था मैं तो नुन्नी से पेशाब कर लेता हूं लेकिन दीदी कहां से करती होगी,,,,तो एक दिन जब आप हमे छोड़ कर गई और दीदी ने मुझे अपने नग्न शरीर से चिपका लिया तो मैने दीदी से पूछा,,,,
दीदी एक बात पूछनी थी,,,
हां पूछ विक्रम
गुस्सा तो नहीं हो जाएगी
नहीं पगले मैं तुझसे कभी गुस्सा हो सकती हूं क्या,,तू तो मेरा प्यारा सा छोटा सा लाडला भाई है,,,मै क्यों तुझसे गुस्सा होने लगी भला,,,पूछो क्या पूछना है,,,
दीदी, मेरी तो नुन्नी है जहां से मैं पेशाब करता हूं,, लेकिन तुम्हारे तो नुन्नी है ही नही, तो तुम पेशाब कहां से करती होगी और तुम्हारे पास यहां पे नुन्नी क्यों नहीं है,,,मैंने अपना हाथ दीदी के बुर पर रख कर पूछा,,,

इस पर दीदी हसने लगी और कहा,,, अरे पगले पुरुष के पास नुन्नी होता है और स्त्रियों के पास नुन्नी पुरुषों की तरह नहीं होती,,,स्त्रियों के पास ऐसी ही नुन्नी होती है,,,और अपनी उंगली से अपनी बुर की और इशारा कर के बताया,,,
तो क्या हरेक स्त्री की नुन्नी ऐसी ही होती है,,,
हां, स्त्रियों की नुन्नी ऐसी ही होती है,,
तब तो मां की और धाय मां रांझा की भी नुन्नी ऐसी ही होगी,,,
हम्म्म,,मैने देखा तो नहीं है उनकी नुन्नी,,,लेकिन वो भी तो स्त्रियां है तो उनकी नूनी भी ऐसी ही होनी चाहिए,,,
ओह तो ये बात है,,,लेकिन एक बात बताऊं आपको,,,मुझे आपकी नुन्नी बड़ी ही सुंदर लगती है,,जब भी हम नहाने आते है,,मै आपकी नुन्नी ही देखता रहता हूं,,,
मुझे भी तुम्हारी नुन्नी बहुत प्यारी लगती है भाई,,,जब तू छोटा था और तेरी मालिश हो रही होती तो मै तुम्हारी नुन्नी अपने हाथों से पकड़ लिया करती थी,,,

अच्छा दीदी,, लेकिन तुम पेशाब कैसे करतीं हो दीदी,,,

मै यही से करती हूं पेशाब और नंदिनी ने अपनी बुर की ओर उंगली से इशारा करते हुए विक्रम को बताया,,

मुझे देखना है तुम्हे पेशाब करते हुए,,दिखाओगी मुझे पेशाब करके दीदी,,,,,

अच्छा तो मेले बाबू को देखना अपनी बहन को सुसु करते हुए,,
हां दीदी मुझे देखना है तुम पेशाब कैसे करती हो,,,

ठीक है मैं दिखाती हूं अपने बाबू को की मै सुसु कैसे करती हूं,,,

ऐसा कहकर नंदिनी नीचे जमीन पे पेशाब करने की मुद्रा में बैठ जाती है और बोलती है

विक्रम तू भी मेरे सामने आकर मेरी तरह बैठ जा तभी तो तू देखेगा की मै पेशाब कहां से करती हूं,,,

इस पर विक्रम भी नंदिनी के सामने आकर बैठ जाता है और नंदिनी उसके सामने पेशाब करने लगती है तथा उसकी चूत से सिटी की आवाज आने लगती है,,,अपनी बहन को पेशाब करता देख विक्रम को भी पेशाब आने लगती है और वो भी नंदिनी के सामने बैठे हुए पेशाब करने लगता है,,,दोनो भाई बहनों की पेशाब की छीटें भी एक दूसरे पर पड़ रही थी,,, लेकिन फिर भी दोनो एक दूसरे के सामने बैठ कर पेशाब कर रहे थे और एक दूसरे को पेशाब करते हुए देख रहे थे,

तो इस तरह मां हमदोनो एक दूसरे के प्रति आकर्षित होने लगे और दिन पर दिन हमारा ये एक दूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ता ही गया,,,, लेकिन शुरुआत तो यहीं से हुई थी,,,नंदिनी ने कहा

हम्मम, अच्छा तो ये बात है,,,इसका मतलब गलती मेरी ही है इसमें,,,ना मां तुमदोनो को साथ में नंगा नहलाती ,,ना ये सब तुम दोनो के बीच होता,,,देवकी ने कहा

नहीं मां,, इसमें तुम्हारा दोष नहीं है,,शायद परिस्थितियां ही ऐसी बन गईं थीं की हम दोनो भाई बहन होते हुए भी एक दूसरे के नजदीक आ गए थे,,, क्यों कि अगर आपका दोष होता तो हम दोनो थोड़ी समझदारी आने पर एक दूसरे के करीब नही आते,,,,बल्कि एक दूसरे से दूरी बना लेते,,,मगर ऐसा नहीं हुआ मां,,,शायद प्रकृति भी यही चाहती थी हम दोनो भाई बहन एकाकार हो जाएं,,,,नंदिनी ने कहा
क्योंकि जब हम थोड़े बड़े हुए तो हालांकि आपने हमे नंगा कर के नहलाना बंद कर दिया,,, लेकिन हमारे बीच आपसी आकर्षण बरकरार रहा,,,अब हम राजकुमार और राजकुमारी थे तो हमारा कोई दोस्त भी नही हो सकता था,,,केवल धाय मां का बेटा कालू ही था जो कभी कभार हमारे साथ खेला करता था,, नहीं तो केवल हम दोनों भाई बहन ही हमेशा साथ रहते,,,, तो इसलिए खेलते खेलते जब हम देखते की कक्ष में कोई नहीं है और हम दोनों बिल्कुल अकेले है ,,, तो मै बड़ी बहन होने के नाते पहल करती और विक्रम को पकड़ कर कक्ष के ऐसे कोने में ले जाती जहां हम दोनो छुप कर बैठ सकते थे,,,वहां नीचे जमीन पर उकडू बैठ जाती और विक्रम को भी अपने सामने बैठा लेती और मै अपना घाघरा उठा कर विक्रम को अपनी नंगी बुर दिखाती और विक्रम को भी धोती खोलने को बोलती तब विक्रम भी अपनी धोती खोलकर नंगा ही मेरे सामने बैठ जाता और अपना लंड मुझे दिखाता,, फिर हम दोनो काफी देर तक एक दूसरे के यौनांगों को निहारते रहते ,,,,फिर कुछ महीनों तक हम कुछ नहीं करते ,,,,
फिर मेरी माहवारी शुरू हो गई तो मेरी बुर पर झांटें भी उग आई,,,मुझे उत्सुकता हुई की क्या विक्रम के लंड पर भी झांट आए होंगे !!!
इसी बीच आप और पिताश्री आखेट के लिए कुछ दिनों के लिए जंगल गए,,,तो हमे फिर मौका मिल गया,,,जिस दिन आप दोनो आखेट के लिए राजकीय यात्रा पर गए उसी दिन मै आपके कक्ष में विक्रम का हाथ पकड़ कर उसी कोने में ले गई और नीचे बैठ गई,,,
और नीचे बैठ कर अपना घाघरा उठा लिया,,,विक्रम भी जानता ही था की उसे क्या करना है,,,तो वो भी अपनी धोती खोल कर फेंक दिया अपना लंड लटकाए हुए मेरे सामने बैठ गया और मेरी बुर देखंकर उसका मुंह आश्चर्य से खुला रह गया क्योंकि उसने मेरी बुर पे झांटे देख ली थी,,,हालाकि विक्रम की नुन्नी भी अब लंड बनने लगी थी और मेरी बुर देख कर उसका लंड अब खड़ा होने लगा था जो मुझे बहुत आकर्षित कर रहा था,,, हालांकि विक्रम के लंड पर अभी झांटे नहीं आई थी,,,हम दोनो फिर काफी देर तक एक दूसरे के यौनांगों को देखते रहे,,,फिर हमे कदमों की आहट सुनाई पड़ी तो हम दोनो खड़े हो गए और मैंने अपना घाघरा नीचे कर दिया और विक्रम ने धोती पहन ली,,,
लेकिन विक्रम के प्यारे लंड को देख मेरे शरीर में गर्मी बढ़ गई थी,,,,लेकिन हम दोनो इसके आगे कुछ नहीं कर पा रहे थे और न ही इससे आगे बढ़ ही पा रहे थे,,,आप और पिताश्री अब आखेट से भी आ चुके थे तो अब हमें कोई मौका नहीं मिल पा रहा था,,,

इधर हमे आप अपने कक्ष में ही एक ही शैय्या पर सुलाने लगी हीं थी,,,हम दोनों के अंदर पहले से आकर्षण तो था ही,,लेकिन अब हमारे बीच एक संकोच की दीवार भी थी,,,लेकिन परिस्थिति ने फिर हमारा साथ देना शुरू कर दिया,,,
मुझे अब महावारी आना शुरू हो गया था ,,,,मेरी आवाज और भी पतली हो गई थी और अब मेरी काम भावनाएं भी बढ़ने लगी थी,,,मेरे अंदर अब लंड की प्यास बढ़ने लगीं थी,,,लेकिन वो कहते हैं ना कि स्त्री अपनी भावनाओं को काबू करना सीख जाती है और समाज और रीति रिवाजों के बंधन में अपनी भावनाओं को दबा कर रखती है,,, तो मै भी स्त्री के स्वाभाविक व्यवहार के कारण अपनी भावनाओं को दबा कर रख रही थी,,,,
लेकिन आपको तो याद होगा मां की आप हमे अपने कक्ष में शैय्या पर सोता जानकर रात्रि में धीरे से उठकर पिता श्री के कक्ष में चली जाती थी,,,लेकिन हम दोनो की नींद तो रात में कई बार खुल ही जाती थी और हम लोग आपको आपके शय्या पर नहीं पाते थे,,,जिसकी जानकारी आपको कभी नहीं हो पाती,,,

हां ये तो है, मै तो तुम दोनों को सोता जान कर ही जाया करती थी और तुम दोनो कमबख्त जगे रहते थे,,, हाय राम ,,बड़े कमीने थे तुम दोनो बचपन से ही,,, हहाहा,,,,ऐसा कह कर देवकी हसने लगती है,,,

अपनी बातों को जारी रखते हुए नंदिनी ने कहा,,,
ऐसे ही एक रात्रि को जब मै और विक्रम सोए हुए थे तो मैं काफी कामुक हो रही थी और स्वप्न में एक बहुत ही कामुक दृश्य देख रही थी की एक पुरुष अपना लिंग मेरी झांटदार चूत से लड़ा रहा था तो मैं काफी कामुक हो गई और मुझे पसीने छूटने लगे और बुर पूरी पनिया गई थी ,,, मै इतनी कामुक हो गई थी की मैंने सपने में ही हाथ विक्रम के तरफ फेका तो मेरे हाथ में विक्रम का हाथ आ गया,,,मैंने जोश में विक्रम का हाथ अपनी जांघों के बीच ले जाकर बुर पर रख दिया और अपने दोनो पैरों से विक्रम के हाथ को जकड़ लिया और कामुक आवाज निकालते हुई विक्रम के हाथ को अपने बुर पे रगड़ने लगी,,,अब विक्रम की भी आंखे खुल गई थी और भी अपने हाथ से मेरी बुर जोर जोर से रगड़ने लगा था,,,,विक्रम का भी जवान बहन का जवान बुर सहलाने और रगड़ने का पहला अनुभव था और मेरा भी बुर रगड़वाने का पहला अनुभव था जिससे हम दोनों काफी उत्तेजित हो गए थे हालाकि ये बुर रगड़ाई घाघरे के ऊपर से ही हो रही थी,,,,,,लेकिन फिर भी बुर की रगड़ाई से मैं बहुत जल्दी झड़ गई और फिर मुझे होश आया कि मैंने विक्रम का हाथ अपनी बुर के ऊपर दबाया हुआ है,, मै शर्म से पानी पानी हो गई,,,,
लेकिन मुझे अब पेशाब लगी थी तो मैं उठ कर स्नानघर में चली गई,,,,तथा पेशाब कर के वापस आकर फिर शैय्या पर लेट गई,,लेकिन अब विक्रम जगा हुआ था और उसकी आंखों में नींद नहीं थी तो मेरी आंखों से भी नींद गायब थी,,,कुछ देर के बाद विक्रम ने मेरी तरफ करवट ली और अपना एक हाथ सीधे ले जाकर घाघरे के ऊपर से मेरी बुर पर रख दिया जिससे मेरी सिसकी निकल गई और वह मेरी बुर को सहलाते हुए मेरी आंखों में देख रहा था,,,मै भी उसकी आँखों में देखे जा रही थी,,, मै उसे अब मना भी नहीं कर सकती थी क्योंकि अभी थोड़ी देर पहले मैं खुद उससे अपनी बुर रगड़वा रही थी,,तो अब मना भी करती तो किस मुंह से करती और हम दोनो बिल्कुल खामोश होकर आंखो में आंखे डाले एक दूसरे को देखे जा रहे थे,,,,, फिर विक्रम ने अपनी धोती की गांठे खोलकर अलग कर दिया तो उसका लौड़ा खड़ा होकर मेरी आंखों के सामने आकर मुझे सलामी देने लगा,,,फिर उसने अपने हाथ से मेरा एक हाथ पकड़ कर अपने लंड के पास ले गया और मेरा हाथ अपने लंड पर रख दिया जिससे मै पूरी तरह गनगाना गई और उसके मोटे लंबे लौड़े को हाथ में पकड़ कर सहलाने लगी और उसके लंड पर से उसकी खोली हटा कर उसके गुलाबी सुपाड़े को बाहर निकाल लिया ,,,उसका सुपाड़ा भी कड़ा होकर एकदम चिकना हो गया था जिसे मैं अपने अंगूठे से सहलाए जा रही थी,,, और मुझे बहुत मजा आ रहा था,,,मेरी काम भावनाएं एकदम भड़क गई थी और मैं विक्रम के लंड को खा जाना चाहती थी,,,उसके गुलाबी सुपाड़े की चिकनाहट मुझे मदहोश किए जा रही थी ,,,मन कर रहा था कि अभी घाघरा खोलकर अपनी नंगी बुर अपने प्यारे भाई को दिखा दूँ और उसके प्यारे से मूसल लण्ड को अपनी प्यासी योनि में डालकर सो जाऊँ,,,लेकिन वो कहते हैं ना कि मर्यादा हमने बहुत कुछ करने से रोकती है भले ही हमारा मन वो करने को कर रहा हो,,,तो यही मर्यादा कि दिवार ही मुझे आगे बढ़ने से रोक रही थी

और मै ये सोचकर आगे नहीं बढ़ रहा था कि कहीं दीदी को बुरा ना लग जाए और कहीं उसने मना कर दिया तो मै वो भी नहीं कर पाऊँगा जो अभी कर रहा हूँ,,,,इसलिए जितना मिल रहा है उतने में ही ख़ुश रहना है,,मज़ा तो मुझे भी बहुत आ रहा था ,,समझ बढ़ने के बाद पहली बार मै और दीदी इस तरह का यौन सुख का आनन्द पहली बार ले रहे थे और आपको तो पता ही है की पहला प्यार और पहला यौन सुख का अहसास अलग तरह का ही होता है,,,मेरा भी लिंग अब मुस्तंड लौड़ा बन चुका था और मेरी जवानी भी अब हिलोरे मर रही थी ,,,मै खुद चाह रहा था की दीदी को नंगा कर के अभी के अभी अपना लिंग उसकी योनि में डाल दूँ,,,और जिस तरह से दीदी अपनी उँगलियों से मेरे सुपाड़े को छू रही थी, सहला रही थी मेरी उत्तेजना और बढ़ती जा रही थी,,,,,लेकिन एक तो डर और ऊपर से मर्यादा की दिवार मुझे भी ये करने से रोक रही थी,,,,राजा विक्रम ने कहा

नन्दिनी फिर बात को आगे बढ़ाते हुए बोलती है ,,,,फिर पता नहीं कब भाई का लिंग सहलाते सहलाते आँख लग गई पता ही नहीं चला और भाई भी मेरी बुर सहलाते सहलाते सो गया,,,वो तो अच्छा हुआ की आपके आने के पूर्व मेरी आँख खुल गई और अगर मेरी आँख नहीं खुलती तो शायद हमदोनो भाई बहन रंगे हाथ रंगरलियाँ मनाते हुए पकड़े जाते,,,जैसे ही मेरी आँख खुली मैंने भाई का हाथ घाघरे के ऊपर से अपनी योनि पर से हटाया और उसे जगाकर उसे धोती लपेटने को बोला,,,जिससे भाई ने भी तुरन्त ही धोती लपेटकर सो गया,,,वो तो अच्छा हुआ उस दिन की मेरी नींद खुल गई ,,नहीं तो अनर्थ ही हो जाना था उस दिन ,,,ये कहकर नन्दिनी मुस्कुराने लगती है,,,,

तब देवकी ने कहा,,,,तू तो बड़ी रण्डी निकली छिनाल,,,डायन भी सात घर छोड़कर वार करती है और तू अपने छोटे भई पर ही डोरे डाल रही थी ,,,अरे कुछ तो शरम कर लिया होता,,,मेरे प्यारे मासूम बेटे को अपने प्यार में फँसा लिया और ये कहते हुए देवकी मुस्कुराकर एक हल्की सी चपत नन्दिनी के सिर पर लगाती है,,,

उफ़्फ़ माँ,,,चोट लगती है,,,क्या करती हो तुम,,,बड़ा आया आपका मासूम बेटा ,,,आगे तो कहानी इसी ने बढ़ाई ना,,,,,, फिर नंदिनी ने आगे बोलना शुरू किया,,,

उस रात के बाद से हमने कई दिनों तक कुछ नहीं किया और बाहर हम दोनो भाई बहन ऐसे व्यवहार करते रहे की हमारे बीच कुछ हुआ ही न हो,,,लेकिन करीब 6 महीने बाद फिर एक घटना घटी,,, उस रात भी हम आपके कक्ष में सोए थे और प्रत्येक रात्रि की भांति आप पिताश्री के साथ सोने चली गई थीं और हमंदोनो भाई बहन अपने कक्ष में अकेले थे,,,मध्य रात्रि में अचानक मुझे लंड की जरूरत महसूस होने लगी और मैं काफी उत्तेजित हो गई जिससे मेरी नींद खुल गई,,मेरी आंख खुली तो मैंने देखा की आप कमरे में नहीं है और विक्रम मेरी तरफ पैर कर के सोया था,,मुझे अपने भाई पर खूब प्यार आ रहा था और मैने उत्तेजनावश विक्रम का पैर अपने बुर पर घाघरे के ऊपर से ही रख दिया और उसे अपने बुर पर दबा दिया,,,और अपने दोनो पैरों से उसके पैर को दबोच लिया और अपनी बुर उसके पैर पर रगड़ने लगी और यौन आनंद लेने लगी,,,मेरे द्वारा विक्रम के पैर पर बुर रगड़ने से विक्रमंकी भी आंख धीरे धीरे खुल गई और जब उसकी नींद खुली तो उसने मुझे अपनी बुर अपने पैर पर रगड़ता पाया,,,कुछ देर देखने के बाद उसने अपना पैर मेरी बुर पर से हटाने की कोशिश करने लगा और अपने पैर को छुड़ाने के इन्हें हिलाने लगा,,,
मै बहुत डर गई थी की लगता है की विक्रम को अब ये पसंद नहीं आ रहा है और मै मन ही मन ऊपर वाले से माफी मांगने लगी की अब नही करूंगी ये सब भाई के साथ,, हे ऊपरवाले आज के लिए संभाल लो मामला,,,फिर आगे से कभी ये गलती नहीं करूंगी,,,
लेकिन माते पुरुष तो पुरुष होता है ,, बस उसे योनि दिखनी चाहिए वो खुश हो जाता है,,,वैसे ही ये महाशय हैं,,,जब इन्होंने मेरे बुर के ऊपर से अपने पैर हटा लिए तो जनाब मेरे बगल में आकर लेट गए,,,मै द्वंद में थीं, कि क्या होने वाला है,,,ये जनाब मुझे डांटेंगे या पता नहीं क्या करेंगे,,, डर भी रही थी और कुछ अनहोनी की संभावना भी लग रही थी,,,
लेकिन विक्रम मेरे बगल में लेटकर मेरा मुंह देखता रहा ,,फिर उसने जो किया उसकी मैने कल्पना भी नहीं की थी,,,उसने अचानक से अपने होठ मेरे होठों पर रख दिया और उन्हें बेदर्दी से चूसने लगा,,,ये होंठो को चूसने का मेरा पहला अनुभव था इसलिए मैं आनंद के सागर में गोते लगाने लगी,,,और दूसरी बात ये की मैंने राहत की सांस ली की विक्रम को बुरा नही लगा है बल्कि वो तो हमारे बीच के संबंधों को एक ऊंचे स्तर पर ले जा रहा है,,,, अभी थोड़ी देर पहले ही मैं जो ऊपर वाले से माफी मांग रही थी की आगे से ये गलती नहीं करूंगी ,,वो मै भूल गई,, और मैं फिर से अपने भाई के साथ अवैध संबंधों को आगे बढ़ाने लगी,,,मनुष्य बहुत ही स्वार्थी प्राणी है,,उसके लिए उचित या अनुचित कुछ भी नही है,,,बस उसकी भूख शांत होती रहनी चाहिए ,,भले ही वह भूख पेट की हो या जिस्म की,,,
भाई द्वारा मेरे होंठों को अपने होठों के बीच दबाकर चूसा जाने लगा जिससे मेरी उत्तेजना और बढ़ गई,,,और मै भी अपने भाई का चुम्बन में साथ देने लगी,,,हम दोनो करीब 15 मिनट तक एक दूसरे के होठ चूसते रहे,,,कभी वो मेरी जीभ अपने मुंह में लेकर चूसता तो कभी मैं उसकी जीभ को अपने मुंह में लेकर चूसती,,,, कभी होठों को चबाती ,,,इस चुम्बन से हम दोनों की सांसे खूब तेज चलने लगी,,,फिर 15 मिनट बाद हम दोनो अलग हुए और ,,,,
विक्रम मेरी आंखों में आंखे डालकर एक टक से मुझे देखे जा रहा था और मैं उसकी आंखों में,,,ऐसे ही देखते हुए विक्रम बोल पड़ा,,,
आप बहुत सुंदर हो दीदी,,, बिल्कुल अप्सरा की तरह ,,,, मै कई सालों से ये तुम्हे कहना चाह रहा था लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी,,,सच में तुम्हारे ये गुलाबी होठ कितने मुलायम हैं,,,लगता है अभी इनसे खून निकल जाएगा,,,
और ऐसा बोलकर विक्रम ने मेरे माथे को प्यार से चूम लिया जिससे मैं शर्मा गई और शर्म से अपनी आंखे नीची कर ली,,,आज इतने वर्षों में पहली बार विक्रम ने मेरी सुंदरता की प्रशंसा की थी,,,इसके पूर्व वह केवल एक छोटे भाई की तरह मेरा कहना मान लिया करता था,,, लेकिन आज उसने एक पुरुष की भांति मेरे साथ व्यवहार किया था और मुझे नारी होने का अहसास दिलाया था,,,आज के पूर्व वह केवल एक छोटे भाई के रूप में मेरे साथ यौन क्रीड़ा में भाग लिया करता था ,,,लेकिन आज वह एक भाई होने के अलावे एक मर्द के रूप में पेश आया था और आज पहली बार उसने स्वयं कदम आगे बढ़ाते हुए मेरे करीब आकर मेरा चुम्बन लिया था,,,अभी तक हम दोनों केवल काम भावना के वशीभूत होकर एक दूसरे के साथ काम क्रीड़ा किया करते थे,,,लेकिन अभी विक्रम द्वारा बोले गए शब्दो में वासना नहीं ,,बल्कि एक पुरुष का एक स्त्री के प्रति प्रेम नजर आ रहा था,,,जिससे मुझे अलग ही प्रेम वाली अनुभूति हो रही थी,,,अब विक्रम के साथ प्रेम की मेरी तीन भावनाएं थी,,,पहला तो जग जाहिर है बड़ी बहन का छोटे भाई के प्रति प्यार ,लगाव जो उसकी रक्षा भी करती है,,,,दूसरी भावना काम भावना थी जिसके वशीभूत हम दोनों एक दूसरे के यौनांगों के साथ खेला करते थे,,,,और आज एक तीसरी भावना ने भी जन्म ले लिया और वो है एक नर का एक मादा के प्रति शास्वत पवित्र प्रेम,,,जिसमे मादा हमें नर के प्रेम में वशीभूत हो जाती है और उसकी ही बन कर रह जाती है और आज यही प्रेम मै विक्रम के अंदर अपने लिए देख रही थी और मैं स्वयं विक्रम के प्रति ये प्रेम महसूस कर रही थी,,,अब सोचो मां,, जब कोई किसी से इतने तरह का प्रेम करेगा तो उसका प्रेम कितना ऊंचा होगा,,,
इसके बाद विक्रम मेरे आंखों में देखते हुए अपना हाथ मेरे घाघरे के ऊपर से मेरी बुर पर रख दिया,,,और मेरी बुर को घाघरे के ऊपर से ही सहलाने लगा,,, चूकि रात में हम पतले कपड़े का घाघरा पहन कर सोते हैं इसलिए कपड़े होने के बावजूद विक्रम का हाथ मै अपनी बुर पर अच्छे से महसूस कर रही थी,,,फिर उसने अपनी धोती हटा दी तो उसका मोटा लंड मेरी आंखों के सामने आ गया जो पूरी तरह से खड़ा था और इतना टाइट था की उसका सुपाड़ा बिना खोल हटाए ही बाहर लंड से बाहर झांक रहा था और मेरी तरफ ऐसे खड़ा था मानों मुझे प्यार से निहार रहा हो,,,फिर विक्रम ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लौड़े पर रख दिया जिससे मैं पूरी तरह गनगना गई,,,मैने उसे कामुक आवाज में कहा मत कर विक्रम,,,लेकिन मौका रहते हुए भी मैने अपना हाथ उसके लंड पर से नहीं हटाया,,,उसे छोड़ने का जी ही नहीं कर रहा था,,, मै स्वय उसके लिंग को आगे पीछे करने लगी और विक्रम मेरी बुर को सहलाए जा रहा था जिससे मैं पूरी तरह गर्म हो गई थी।
इसी बीच विक्रम ने ऐसा काम किया था जिसकी मै कल्पना भी नही कर सकती थी,,,उसने अपना एक हाथ मेरी चोली के ऊपर रख कर मेरे स्तन दबाने लगा,,,स्तन दबवाने का ये मेरा पहला अनुभव था,,,मेरी उत्तेजना बढ़ती हिब्जा रही थी,,लेकिन मै विक्रम को ऊपरी मन से ऐसा नहीं करने को बोल रहीं थी,,,फिर अचानक विक्रम ने मेरी चोली ऊपर कर दी जिसकी मैने कल्पना भी नहीं की थी की विक्रम ऐसा कर सकता है,,,मेरी चोली उठा देने से मेरे दोनो स्तन नंगे होकर विक्रम की आंखों के सामने आ गए,,,मै उत्तेजित तो थी ही और उसी उत्तेजना के कारण मेरे दोनो स्तन इस तरह पूरे टाइट थे कि ऐसा लग रहा था दोनो विक्रम को निहार रहे हों,,,,मेरे नंगे स्तन देखकर विक्रम की आहें निकल गई और उसने बोला,,,
बहुत ही सुंदर स्तन हैं तुम्हारे दीदी,,,कितने गोरे हैं ये,,मै तो सपने में भी नहीं सोच सकता था की आपके स्तन इतने सुंदर होंगे,,, बिल्कुल संगमरमर की तरह चमक रहे हैं,,,और इस गोरे स्तन पे ये हल्की सी हरी नसें इसकी खुबसूरती में चार चांद लगा रहे है,,,मै बहुत सौभाग्यशाली हूं की मुझे आपके इतने सुंदर स्तन के दर्शन हो गए,,,मै धन्य हो गया बहन ,,,, और आपके स्तन के ये हल्के भूरे रंग के स्तनाग्र अर्थात चुचूक मुझे कितने प्यार से देख रहे है ,,
और ऐसा कह कर विक्रम ने अपनी दो उंगलियों से मेरी चुचूक को पकड़ कर मसल दिया जिससे मेरी आह् निकल गई क्योंकि मेरे चुचूक को पहली बार किसी मर्द ने अपनी उंगलियों से मसला था,,,मेरा पूरा शरीर अकड़ गया और जोश में मैने अपनी कमर उठाकर बुर को विक्रम के दूसरे हाथ पर दबा दिया,, जिससे विक्रम का हाथ मैं अपनी बुर पर पूरी तरीके से महसूस करने लगी,,,और मै उत्तेजना वश बोल पड़ी,,,
और जोर से रगड़ों विक्रम मेरी योनि को,,
और उसके हाथ पे अपना बुर रगड़ने लगी,,,और मै विक्रम के लंड को भी खूब तेजी से दबा दबा कर सहला रही थी जिससे विक्रम की भी आहें निकल रही थी,,,
आज विक्रम भी पूरे मूड में था,,,वह कभी उंगलियों से मेरे चुचको को कुरेदता तो कभी अपने हाथ से मेरी चूची को दबा देता ,,,जिससे मैं अत्यंत उत्तेजित होती जा रही थी,,
फिर अचानक विक्रम ने अपना मुंह मेरे स्तनों पर रख दिया और उसको प्यार से चूमने के बाद एक स्तन को मुह में लेकर चूसने लगा जैसे बच्चे अपनी मां का दूध उसके स्तन से चूसकर पीते हैं,,विक्रम द्वारा मेरे स्तन चूसे जाने से मैं और उत्तेजित हो गई और बड़बड़ाने लगी क्युकी मेरी जिंदगी में पहली बार कोई मेरे स्तन चूस रहा था,,,
चूसो भाई चूसो ,,अपनी बहन के स्तनों के दूध को चूसकर खाली कर दो ,,, इसका जहर निकल दो मेरे भाई,,, दूसरे वाले स्तन को चूसो ना भाई,,, वो भी तुम्हारे प्यार को तरस रही है विक्रम और ऐसा कहते हुए मै दूसरे स्तन के स्तनग्र को अपनी उंगलियों से मसल रही थी,,,
मेरा आदेश पाकर मेरा प्यारा भाई मेरी दूसरी चुची को चूसने लगा,,,जब वह दूसरे स्तन को चूसता तो मै पहले स्तन के चुचूक को उंगलियों से मसलती,,,और मै अपनी कमर उठा कर बार बार अपनी बुर विक्रम की हथेलियों पर रगड़ती,,
उसी बीच विक्रम बीच में बोल पड़ा,,
और माते , बहन का घाघरा इतना पतला था की मै उसकी योनि को साफ महसूस कर सकता था,,,बल्कि मै तो उसकी झांटों को भी महसूस कर रहा था,,,
फिर नंदिनी बोलती है,,,
हम पूरी तरह यौन संबंधों का आनंद उठा रहे थे,,,आपके कक्ष में हम भाई बहन की आहे और सिसकारियां गूंज रही थीं,,,
मै उसके लौड़े को दबोच दबोच कर सहला रही थी तो विक्रम मेरी बुर को रगड़ रगड़ कर सहला रहा था और मेरी चूची चूसे जा रहा था,,,और संयोग देखो मां,,हम दोनो भाई बहन एक साथ ही झड़ गए और मेरे हाथ पर विक्रम का पूरा वीर्य गिर गया तो विक्रम के हाथ पर मेरी योनि से निकला पानी लग गया और मेरा घाघरा भी योनि के स्थान पर हल्का सा गिला हो गया,,,

फिर हम दोनो की कामाग्नि शांत हुई तो विक्रम ने मेरी आंखों में आंखे डाल कर देखा और मेरे माथे को प्यार से चूम लिया ,,ऐसा लगा कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका को प्यार से चूम रहा हो ,,,फिर उसने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और मेरी चूचियां उसकी छाती में धंस गई,,,मैने भी उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया और आंखे बंद कर उसके आलिंगन का आनंद उठाने लगी।

हालाकि जो होता है अच्छे के लिए होता है,,,अगर उस दिन हम दोनो भाई बहन नहीं झड़े होते तो पता नहीं हम दोनों क्या कर बैठते,,,
और इस तरह हमंदोनो भाई बहन एक दूसरे की बाहों में सो गए,,,,

उम्मीद है आप लोगो को अपडेट पसंद आएगा
Very hot update
excellent update
 

Dirty_mind

Love sex without any taboo
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वे अपनी माँ का हाथ पकड़ कर अपने लौड़े पर रख देते हैं जिसकी गर्मी देवकी को महसुस होती है. वह कहती है... ये क्या कर रहे हो पुत्र. लेकिन वह अपना हाथ अपने पुत्र के खड़े लौड़े से नहीं हटाती है, बल्कि मुट्ठी में पकडे रहती है. राजा विक्रम यह देखकर मंद मंद मुस्कुराते हैं और बोलते हैं...मां आज आप कितनी सुंदर लग रही है... लगता है आज स्वर्ग से अप्सरा धरती पर अवतरित हो गई है बिल्कुल नई नवेली दुल्हन लग रही है आप यह आपकी उन्नत चूचियां मुझे पागल कर रही है आपके सुंदर चेहरे से मैं नजर नहीं हटा पा रहा हूं.... इतना कहकर राजा अपने हाथ से अपनी माता की चुचियों को सहला देता है और अपने एक हाथ से उसके गालों को प्यार से सहलाने लगता है... अब राजा के स्नानागार में स्थिति यह थी कि राजमाता अपने पुत्र राजा विक्रम के लण्ड अपने को हाथ में पकड़ी हुई थी और राजा विक्रम अपनी माता देवकी की चुच्चियों को पकड़े हुआ था और एक हाथ से धीरे-धीरे गालो को प्यार से सहला रहा था..., राजा विक्रम बोलते हैं माते अब मुझसे रहा नहीं जाता .. मैं आप का दीवाना हो गया हूं ...मैं आपसे प्यार करना चाहता हूं क्या मैं आपकी गालों को चूम सकता हूं...मैं आप के गालों को चूमना चाहता हूं..राज माता कुछ भी बोलने की स्थिति मे नहीं थी...इसे मौन सहमति मान कर राजा अपनी माता के गालों पर चुंबन लेने लगता है ....इधर रन्झा भी राजा के कक्ष के बाहर राजमाता का इंतजार कर रही थी .... जब काफी देर हो गई तब वह राजमाता खोजते खोजते राजा के कक्ष के अंदर घुस आई... राजमाता को वहां ना पाकर है वह राजा के दूसरे कक्षों में ढूंढने लगी...जब वह दोनों कहीं नहीं दिखे तब अंततः रांझा राजा के स्नानागार की ओर बढ़ चली और वहां पहुंचकर जैसे ही उसने स्नानागार का पर्दा हटाया उसका मुंह खुला का खुला रहता है ..वह राजमाता राजमाता आवाज लगते हुए अंदर दाखिल होती है और सामने देखती है की राजमाता अपने पुत्र राजा विक्रम का लंड अपने हाथ में लिए हुए हैं... रन्झा की आवाज सुनकर दोनों मां बेटे अपने अलग होते हैं ...राजमाता अपने पुत्र का लंड से अपने हाथ हटाती हैं राजा भी अपना हाथ अपनी मां की वक्ष् से हटाता है और अपनी मां के गालों से चुंबन लेना बंद करके पीछे हट जाता है.. रांझा का मुह मां बेटे को इस स्थिति में देखकर खुला खुला रह जाता है ...वह सोचती है कि क्या राजघराने में भी एक मां और बेटे के बीच ऐसा खुला संबंध हो सकते हैं... रांझा की आवाज सुनकर दोनों मां-बेटे चौक जाते हैं और अलग हो जाते हैं राजमाता के मुख से अभी भी कोई शब्द नहीं निकल पा रहे थे तब तक रांझा की नजर राजा विक्रम की लंड पर पड़ती है जिसे देखकर मंत्रमुग्ध हो जाती हो और मन ही मन सोचती है कि काश इस लंड से मुझे चुदने का मौका मिल जाता.... वह फिर राजमाता को याद दिलाती है की सूर्योदय होने को है पूजा का समय होने जा रहा है.. तब राजमाता के मुख से आवाज निकलती है और वह अपने पुत्र को कहती हैं कि तुम जल्दी से तैयार हो जाओ हमें जल्दी ही पूजा में चलना होगा ..इतना कहकर है वह राजा के स्नानागर से बाहर निकल जाती है तथा पूजा की तैयारियां देखने चली जाती है.... उसके पीछे रन्झा भी भागी चली आती है....
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Ravi2019

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नंदिनी ने फिर बात को आगे बढ़ाया और बताने लगी,,

फिर तो मां हमारे ऊपर तो मुसीबते ही आ गईं,, पिता जी का यों अचानक चले जाना और राजदरबार की राजनीति ने तो हमें परेशान ही कर दिया था। वो तो भला हो राजा माधव सिंह का ,,, की हमारी जान बची,,

सच कहा बेटा,,अगर राजा माधव सिंह समय पर नहीं आते तो हम कहीं के नहीं रहते,,, वो तो उनके आने से राजदरबार में किसी की हिम्मत नही हुई की वे विक्रम को राजा घोषित किए जाने का विरोध कर सके और तो और ये राजा माधव सिंह की ही देन है कि तुम्हे उन्होंने राजा का मुख्य सलाहकार घोषित करवा दिया क्यों कि अभी विक्रम में इतनी परिपक्वता नहीं थी कि वह राज काज अकेले संभाल पाता और दरबारी पता नही इससे क्या क्या करवा बैठते,,,, वो तो मैने इसीलिए विक्रम की शादी राजकुमारी रत्ना से तय कर दी है,,,एक तो वह खूबसूरत भी बहुत है और दूसरे आखिर हमे ऐसे भले आदमी की जरूरत हमेशा पड़ेगी,,, और उन्होंने तो विपरीत परिस्थितियों में हमारा साथ दिया,,,शायद वो नहीं होते तो हम मार दिए गए होते,,,,राजमाता देवकी ने कहा

सच कहा मां, उनका कर्ज हम जिंदगी में कभी नहीं उतर पाएंगे,,,, लेकिन रत्ना तो मेरी सौतन बन कर ही आयेगी ना,,, नंदिनी ऐसा कह कर हस देती है,,,

चुप कर तू,,, बदमाश कहीं की,, रत्ना तुम्हारी सौतन कैसे होगी,,, तू विक्रम की धर्मपत्नी थोड़ी ही है,,,बहन है ,,,बहन बन कर ही रह,,, तुम दोनों के संबंध अवैध है और अवैध ही रहेंगे समझी,,, राजमाता देवकी ने समझाते हुए कहा और मुस्कुरा देती है,,,

लेकिन माते,, मैने तो बहन से विवाह कर ही लिया होता,,वो तो अच्छा हुआ की बहन ने मना कर दिया था,,,राजा विक्रम ने कहा और फिर बात आगे बढ़ाते हुए बोलते है,,,

माते , आपको तो याद ही होगा कि मेरे गद्दी संभालने के कुछ समय बाद मल्ल प्रदेश में सीमावर्ती राज्य से सीमा विवाद हुआ था जिससे निपटने के लिए मैं और नंदिनी बहन मल्ल प्रदेश गए थे। आप तो जानती ही हैं कि मल्ल प्रदेश हिमालय की तराई में स्थित है और बहुत ही रमणीक स्थल है और वहां हमारी राजकीय अतिथिशाला तो अत्यंत ही भव्य है जिसके सामने फूलों की बगिया है और उसके आगे हिमालय की पर्वत श्रृंखला है तथा अतिथिशाला के चारों ओर आम, अमरूद, सेव, संतरे के बगीचे है। मैने जिंदगी में पहली बार इतनी सुंदर जगह देखी थी। शायद दीदी ने भी पहली बार ही इतनी रमणीक जगह देखी थी। और हमारी विडंबना देखो राजमाता की हमारे वहां पहुंचते ही सीमा विवाद समाप्त हो गया क्योकि पड़ोसी राज्य के राजा से सीमा पर हमारी पहली मुलाकात में ही उन्होंने अपनी गलती मान ली और पूर्व निर्धारित सीमा पर पीछे हट गए।
सीमा विवाद समाप्त होने के बाद हम दोनो अब काफी हल्का महसूस कर रहे थे और हम दोनो भाई बहन ने कुछ दिन वही राजकीय अतिथिशाला में विश्राम करने का निर्णय लिया।
दूसरे दिन सुबह तैयार होकर हम दोनों बगीचा घूमने निकले। सुबह सुबह बहुत ही शीतल मद मस्त हवा बह रही थी। हम दोनों घूमते घूमते बगीचे के काफी अंदर चले गए। आम तो अभी नही लगे थे, लेकिन अमरूद और सेव के पेड़ों पर फल लगे हुए थे। हम दोनो एक अमरूद के पेड़ के पास पहुंचे जिसपे बड़े ही सुन्दर अमरूद लगे हुए थे। दीदी ने उसे तोड़ने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन उसकी टहनियां इतनी पतली थी की उस पर चढ़ना मुस्किल था और फल इतनी ऊंचाई पर था की उसे खड़े खड़े तोड़ नहीं सकते थे। तो मैने बहन से कहा,,

इसे तोड़ना मुश्किल है बहन। ये पेड़ चढ़ने लायक नहीं है और इसे नीचे से तोड़ भी नहीं सकते क्योंकि फल काफ़ी ऊपर लगा है
तो एक काम हो सकता है विक्रम। यदि कोई उठा सके तो हममें से कोई वहां तक पहुंच जाएगा।

ठीक है दीदी, मैं तुम्हारे कंधे पर बैठ जाता हूं और तुम मुझे उठा लेना।

अरे नहीं नहीं,,, मैं तुम्हे नहीं उठा पाऊंगी। मेरे तो कंधे ही टूट जायेंगे। तू एक काम कर भाई, तू मुझे कमर से पकड़ कर उठा ले और मै अमरूद तोड़ लूंगी।
नहीं नहीं, मैं तुम्हे उठा नहीं पाऊंगा बहन,,, तुझे उठाने के लिए तो दो दो लोग चाहिए ,,,,और ऐसा कहकर मैं दीदी को छेड़ते हुए हसने लगा।

अच्छा जी, तो मैं इतनी मोटी हो गई हूं क्या,,,जाओ तुम ही घूमो बाग में,,,मै तो चली आराम करने,,

हाहाहा, मै तो ऐसे ही मजाक कर रहा था मेरी प्यारी बहना, आओ मै तुम्हे उठता हूं,, और तुम अमरूद तोड़ लेना,,,

और ऐसा कहकर मैंने दीदी को सामने से कमर को पीछे की ओर नितम्ब के नीचे अपने हाथ लपेट कर जकड़ लिया और उन्हें ऊपर उठा लिया। ऊपर उठाने से भी वह अमरूद तक पहुंच नही पा रही थी और अपने शरीर को और ऊपर की ओर खीच रही थी जिससे उसकी कमर और पेट मेरे मुंह पर रगड़ खा रहे थे ,,लेकिन फिर भी वह वहां तक पहुंच नहीं पा रही थी। उसने कहा,,,

थोड़ा और ऊपर करो विक्रम ,,तभी मैं अमरूद तक पहुंच पाऊंगी,,

ऐसा कहने से मैने उसे थोड़ा और ऊपर किया,,जिससे उसका घाघरा मेरे मुंह के सामने आ गया और जैसे ही वह फल तोड़ने के लिए थोड़ा और आगे हुई ,,मेरा चेहरा उसके घाघरे के ऊपर उसकी योनि से सट गया। यह मेरा पहला अनुभव था जब मैंने उसकी योनि पे अपना मुंह लगाया हो। मुझे उसके घाघरे से उसकी योनि की मादक गंध आ रही थी जो मुझे मदहोश किए जा रही थी। मैने भी जोश में आकर अपना मूंह उसकी योनि में जोर से दबा दिया, लेकिन उसे अभी होश ही नहीं था और वह अभी अमरूद तोड़ने में ही व्यस्त थी। इधर मैं अपना मुंह उसके घाघरे में घुसा कर योनि पर रगड़ रहा था। तब तक उसने अमरूद तोड़ लिया था और तब उसे ध्यान आता है की उसकी योनि पे मेरा चेहरा सटा हुआ है तथा मै उसकी योनि पर अपना चेहरा रगड़ रहा हूं। दीदी भी गरम हो जाती है । उसे भी तो उसकी कामभावना तड़पा ही रही थी। उसे भी काफी समय से पुरुष प्रेम की , लिंग की तलाश थी ही ।

लेकिन कुछ देर बाद वह धीरे से कहती है,,

अब मुझे नीचे उतर दो विक्रम,,

नंदिनी के ऐसा कहने से मैने उसे धीरे धीरे नीचे उतारा । इस दौरान नीचे आते हुए उसका पेट और फिर उसके स्तन मेरे चेहरे से रगड़ खा रहे थे और उसके नीचे उतरते ही मैने उसे अपनी बाहों में दबोच कर ही रखा , तब दीदी ने कहा,,,

ये देख ,, अमरूद। खायेगा।

हां , ये तो बड़े अच्छे अमरूद है, । लेकिन अभी तो मुझे संतरे खाने है।

और ऐसा कह कर मैं उसके स्तन को देखने लगा जिससे दीदी शरमा गई। फिर उसने बोला,,,

अभी तू अमरूद ही खा।

तभी मैंने अचानक दीदी से पूछा,,,

बहन , तुम्हे कैसा लगा था उस रात।।।

मेरे ऐसा पूछने पर दीदी एकदम चुप हो गई और उसने अपनी आंखें नीची कर ली। वह बखूबी जान रही थी की मै किस रात की बात कर रहा हूं, लेकिन उसने कुछ नहीं बोला और ऐसे ही अपनी आंखे नीची किए अपने पैर के अंगूठे से मिट्टी कुरेदने लगी । वह सोच भी नहीं सकती थी की मै इतनी पुरानी बात का जिक्र आज अचानक उसके सामने कर दूंगा।
उसके चुप रहने पर मैं फिर बोलता हूं,,,

दीदी , मुझे जो चीज चाहिए वो तुम्हारे पास है और तुम्हे जो चीज़ चाहिए वो मेरे पास है। मै जानता हूं तुम भी बहुत तड़पती हो पुरुष संसर्ग के लिए,,,आओ ना हम दोनो एक दूसरे की प्यास बुझायें।

इस पर दीदी अब चुप्पी तोड़ती है और कहती हैं,,,

विक्रम, याद है मुझे उस रात की बात। लेकिन् उस समय हमसे गलती हो गई। ठीक है, मानती हूँ मुझे भी अच्छा लगा था उस रात । लेकिन इसका मतलब ये तो नही की वही गलती फिर दोहराई जाए। तुम मेरे अनुज हो और मैं तुम्हे एक छोटे भाई की तरह प्यार करती हूं ।और तो और मै किसी की अमानत हूं,, उसकी जिससे मेरी शादी होगी। मै उसके लिए खुद को बचा कर रखूंगी।

ठीक है दीदी। लेकिन मैं वादा करता हूं की, हम दोनो जो करेंगे छुप कर करेंगे और किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा। हम दोनों केवल एक दूसरे के यौनांगों को देखेंगे, लेकिन उन्हें छूएंगे नही। दुनिया वालों के लिए हम भाई बहन ही रहेंगे, लेकिन अकेले हम दोनो मजे करेंगे । नही तो हम दोनो यौन सुख के लिए तरसते ही रहेंगे। माना की तुम किसी और की हो जाओगी,,, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं की तुम भविष्य को लेकर वर्तमान में जीना छोड़ दोगी जब की तुम अभी अपनी कामाग्नी को शांत कर सकती हो।

राजा विक्रम की बातों से नंदिनी गर्म तो हो जाती है, लेकिन वह द्वंद में जी रही होती है की वह क्या करे। और शायद विक्रम ने यह बात गलत समय में छेड़ दिया था। वो कहते हैं ना की नारी जब बिस्तर पर गरम होती है तब वह सारी मान मर्यादा भूल जाती है। नंदिनी ने भी महावारी शुरू होने के बाद जितनी भी काम क्रीड़ा की थी, वह उसने बिस्तर में गरम होने के बाद कामेच्छा की आग भड़कने पर ही किया था।
नहीं विक्रम नही,,, ये गलत होगा। तुम भूल गए की तुम तो मेरे प्यारे से छोटे भाई हो। तुममे तो मेरी जान बसती है मेरे भाई। हमारे बीच जो भी हुआ है उसे भुल जाओ।
ऐसा कह कर नंदिनी राजा विक्रम का हाथ पकड़ कर मुड़ती है और बाग में पहाड़ों की तरफ चल देती है। साथ में राजा विक्रम भी पीछे पीछे चल देते है। चलते चलते वो दोनो काफी आगे निकल जाते हैं और वे पहाड़ी के नजदीक पहुंच जाते हैं तो उन्हें झरने की आवाज सुनाई देती है। नंदिनी कहती है...
इधर किसी झरने की आवाज आ रही है। लगता है इधर कोई झरना है।

हां बहन, आवाज तो आ रही है। अतिथिशाला के संतरी ने बताया था कि बाग के पीछे एक बहुत बड़ा झरना है। शायद यह वही झरना हो।

दोनो भाई बहन उस आवाज की तरफ बढ़ते हैं और जब वहां पहुंचते हैं तो उस रमणीक स्थल की खूबसूरती देख कर वे मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। उनके सामने पहाड़ की ऊंचाई से एक झरना गिरता दिख रहा था जिसके नीचे बिल्कुल साफ पानी का कुंड बन गया था। उसे देख कर राजा विक्रमं का मन कुंड में नहाने का करने लगता है। कुंड का पानी इतना साफ था की कुंड की तलहटी भी दिख रही थी। विक्रम बोलता है....

मुझे नहाना है दीदी,,,मैं यही नहा लेता हूं। आओ ना दीदी तुम भी नहा लो।

नहीं बिक्रम, मै नहीं नहा सकती। कपड़े नहीं लाई हूं। और तू भी मत नहा, तेरे कपड़े गीले हो जायेंगे , तो तू पहनेगा क्या ,,, तेरे कपड़े भी नहीं है यहां।

लेकिन दीदी मै तो नहाऊंगा और यहां कोई और है ही नही । मै तो कपड़े निकाल कर बाहर ही रख दूंगा,,,,,आओ तुम भी आओ ना।

बड़ा बेशर्म है तू , मै तो नहीं नहाती।

अच्छा बहन , ठीक है,, तू चेहरा उधर कर,, मै तब तक कपड़े निकाल लूं।

विक्रम के ऐसा कहने पर नंदिनी चेहरा घुमा लेती है और राजा विक्रम अपने सारे कपड़े निकाल कर कुंड के किनारे रख कर कुंड में कूद जाता है और नहाने लगता है। नंदिनी जब अपना चेहरा दुबारा घूमती है तो वह देखती रह जाती है। राजा विक्रम कुंड में पूरे नंगे नहाते दिख रहे थे क्यों कि कुंड का पानी बिलकुल साफ था और विक्रम नहाते हुए नंगे कुंड में दिख रहे थे। विक्रम को नहाते देख नंदिनी का भी नहाने का मन करने लगता है। वह कहती है...

मै भी नहा लेती हूं भाई। लेकिन मै बगल के कुंड में नहाऊंगी। तुम उधर मत आना क्यूंकि मैं भी कपड़े निकाल कर किनारे रख कर नहाने जाऊंगी ताकि मैं नहा कर फिर कपड़े पहन सकूं। राजा विक्रम अपनी बहन की ये बात सुन कर ही गरम हो जाते हैं कि वो भी नंगे ही कुंड में नहाने जा रही है । लेकिन वो कुछ नही करते बल्कि कुंड में शीतल जल में नहाने का आनंद ले रहे थे । जो मजा उन्हें आज तक नहीं मिला था । इधर नन्दिनी चारों ओर देख कर पहले निश्चिन्त हो जाती है की उसे कोई नही देख रहा है ,,,तो फिर वह धीरे धीरे अपनी घाघरा चोली निकाल कर पूरी नंगी हो जाती है और फिर वह कुंड में नहाने के लिए छलांग लगा देती है।
कुछ देर बाद राजा विक्रम को नन्दिनी के चिल्लाने की आवाज आती है तो वह एकदम से डर जाते हैं और उसी स्थिति में नग्नावस्था में ही कुंड से निकलते हैं और कुंड के दूसरी तरफ भागते हैं जहां से आवाज आ रही थी। वहां जाकर देखते है की नंदिनी कुंड में डूब रही थी। वो फटाफट कुंड में कूद जाते है जिसमे नंदिनी नंगे ही थी। वह तैरते हुए जाते हैं और नंदिनी को बाल से पकड़ कर खींचते हुए किनारों की ओर ले जाते हैं। और फिर किनारों पर उसे अपनी बाहों में उठाकर सुखी जमीन पर ले जाते हैं।
नंदिनी को ले जाते समय दोनो भाई बहन बिल्कुल नग्न रहते हैं। जमीन पर लेटा कर वे नंदिनी के हाथ और पैर को रगड़ते हैं जिससे नंदिनी आंखे खोलती है जिससे राजा विक्रम की जान में जान आती है। नंदिनी भी आंखे खोल कर अपने छोटे भाई को देखती है। और कहती है...

बहुत बहुत धन्यवाद भाई. ,,,, मै तुम्हारा एहसान जिंदगी भर नही भूल सकती। तुमने जान पर खेल कर मेरी जान बचाई है। अगर तुम आज यहां नही होते तो पता नहीं आज क्या होता।

दीदी , मेरा तो ये फर्ज था आपको बचाना । आपने धन्यवाद बोलकर मुझे शर्मिंदा कर दिया। मैने आपको आपकी रक्षा का वचन दिया है और आपको बचाना मेरा फर्ज है। लेकिन आप डूबने कैसे लगी ,,,आप तो अच्छी तैराक भी हैं।

क्या कहूं भाई, ये दूसरा कुंड बहुत खतरनाक है उसमे अंदर एक शिला ऊपर उठी हुई है जिसमें इतनी फिसलन है कि मेरा पैर पड़ते ही मैं फिसल गई और मेरा संतुलन बिगड़ गया जिसके कारण मैं कुंड के अंदर चलती चली गई। वो तो भला हुआ की तुम समय पर आ गए , नहीं तो मैं मर ही गई होती। ये कहते कहते नंदिनी थोड़ा उठ कर बैठती है।

नंदिनी के मरने की बात बोलने पर राजा विक्रम उसके होठों पर अपनी उंगली रख देते हैं और कहते है...
ऐसा ना कहें बहन,,, आपको कुछ हुआ तो मै जी नहीं पाऊंगा और फफक कर रो पड़ते है....

अरे !,! मेरा भाई मुझे इतना प्यार करता है,, ये तो मै जानती ही नहीं थी,,,चुप हो जा मेरे प्यारे भाई चुप हो जा

और ऐसा कह कर वो भी रोने लगती है,,, रोते रोते उन्हें ख्याल नही रहता है कि दोनो पूरे ही नंगे हैं,,,और वे एक दूसरे से लिपट जाते हैं । दोनो बिल्कुल नंगे एक दूसरे की बाहों मे सिसक रहे थे। विक्रम थोड़ा सा अलग होते हैं और नंदिनी की आंखों में देखते हुए,,
कसम खाओ दीदी,,,की आज के बाद कभी भी आप मरने की बात नहीं करेंगी।

नहीं करूंगी मरने की बात,,अब खुश। लेकिन मै तो जानती ही नहीं थी कि मेरा भाई मुझे इतना प्यार करता है,,,

और ये कहते हुए नंदिनी राजा विक्रम के गालों पर एक चुम्बन जड़ देती है। विक्रम भी नंदिनी को चुंबन देते है तो नंदिनी उसके गालों पर चुम्बनों की झड़ी लगा देती है। फिर अचानक नंदिनी विक्रम के होठों पे अपने होठ रख कर चूमने लगती है । राजा विक्रम भी उसका साथ देते हुए उसके होठों को अपने होठों में दबाकर चूसने लगते हैं।दोनो भाई बहन इसी आनंद में पंद्रह मिनट डूबे रहते हैं। फिर नंदिनी चुम्बन छोड़ विक्रम की आंखों में देखते हुए कहती है,,,,
उस रात भी तो हमने एक दूसरे के होंठ चूसे थे भाई,,,
और ऐसा। कह कर हल्का मुस्कुरा देती है। और फिर कहती है,,
चलो वापस देखो,, दोपहर गई है,,पूरी सेना अब हमें खोजती हुई आ रही होगी।।। और हमे हूं ही पूरी नंगी देख लेंगे सभी। कुछ तो ख्याल रखो हम दोनों बाहर है घर पे नहीं। और ऐसा कह कर नंदिनी मुस्कुरा देती है।

नंदिनी के ऐसा कहने पर विक्रम को भी होश आता है और राजा विक्रम हस्ते हुए कहते है
दीदी अभी तो आप कह रही थी की तुम इधर मत आना, मैं नहा रही हूं और अभी आपको नंगी ही मुझे निकालना पड़ा, और ये कह कर विक्रम हस दिए और नंदिनी भी मुस्कुराने लगी और कहा
अपनी बड़ी बहन को नंगी देख कर तुम्हें शर्म नही आती, बदमाश,,, और तो और तुम आंखे फाड़े देखे जा रहें हो मुझे, चलो वापस राजमहल, तो राजमाता से शिकायत करूंगी तुम्हारी बेशर्म,,,,और ये कह कर हस देती है
ठीक है कह देना माते से, लेकिन अभी मैं ये मौका क्यों गवाऊं,,,जी भर के देख तो लूं अपनी दीदी के नंगे सुंदर शरीर को,,बिल्कुल अप्सरा की तरह सुंदर हो तुम,,,आंखो में तुम्हारी खूबसूरती को कैद तो कर लूं,,,
इस पर नंदिनी खिलखिला कर हस देती है
दोनो एक दूसरे के सामने कपड़े पहन कर वापस अतिथिशाला की ओर चल देते है।

वहां पूरी सेना में खलबली मची हुई थी कि राजा और मुख्य सलाहकार कहा चले गए। इन्हे देख कर सेना ने भी राहत की सांस ली।

दोपहर हो चली थी तो सभी ने खाना खाया और आराम करने लगे । शाम में फिर इनकी एक राजकीय बैठक थी जिसमें काफी समय लग गया । फिर रात में खाना खाकर ये दोनो बरामदे में बैठे थे । सुहानी चांदनी रात थी और ठंडी ठंडी हवा बह रही थी। इस पूरे अतिथिशाला ने मे केवल राजा विक्रम और नंदिनी ही थे और दूर दूर कोई भी नही था। दोनो हाथों में हाथ लिए बैठे रहते हैं। फिर नंदिनी विक्रम के होठों पर चुम्बन देकर अपने कक्ष में चली जाती है और राजा विक्रम अपने कक्ष में। लेकिन दोनो की आंखों में नींद नहीं थी। थोड़ी देर बाद राजा विक्रम नंदिनी कक्ष में जाते हैं और दरवाजा को हल्का धक्का देते हैं जिससे दरवाजा तुरंत खुल जाता है क्यों कि ये अंदर से बंद ही नहीं था। दरवाजा खुलने से नंदिनी पूछती है,,,

कौन है ?
मै हूं दीदी।।।
क्या हुआ,,,

कुछ नहीं दीदी ,,, मै कभी अकेले इतने वीराने में नहीं रहा।।। मै सोचा जाऊं आपके पास

ओ हो ,, मेरे छोटे बाबू को डर लग रहा है,,, आ जा ,,मेंरे पास आ जा।।। और ऐसा बोल कर वह विक्रमंको चिढ़ाती है

विक्रम शैय्या पर जाते ही वह नंदिनी से लिपट जाते है और राजा विक्रम अपनी प्यारी बहन के होठ चूसने लगते हैं जिससे दोनो अत्यंत उत्तेजित हो जाते हैं। फिर विक्रम नंदिनी की चोली उठाकर उसके स्तन चूसने लगते हैं जिससे वह पूरी उत्तेजित हो जाती है और उत्तेजनावश विक्रम का हाथ पकड़ कर अपने बुर पर रख कर दबा देती है और इधर राजा विक्रम अपनी बहन की योनि को घाघरे के ऊपर से ही सहलाने लगते हैं।राजा विक्रम अपने मुंह से स्तन निकाल कर नंदिनी की आंखों में देखते हुए कहते हैं,,,
उस रात ये भी हुआ था ना बहन,,,

इससे नंदिनी शर्मा जाती है। फिर विक्रम ने वो किया जो नंदिनी ने सपने में भी नहीं सोचा था। उसने अचानक ही नंदिनी का घाघरा की डोरी खोलकर उसे नीचे कर दिया जिसको निकलने में नंदिनी ने अपनी चूतड़ उठा ली जिससे उसका घाघरा सरसरा कर निकल गया , विक्रम भी अपनी धोती खोलकर पूरा नंगा हो गया। अब नंदिनी और विक्रम दोनो नंगे थे और नंदिनी का हाथ पकड़ कर विक्रम अपने मोटे लौड़े पर रख देता है जो नंदिनी खुद चाह रही थीं और वह अपने भाई का लिंग अपने हाथ में लेकर खूब दबा दबा कर आगे पीछे करने लगती है। इधर विक्रम भी अपनी बहन की बुर सहलाए जा रहा था और उसके स्तन भी चूसे जा रहा था। दोनो पूरे उत्तेजित हो गए थे।
अचानक विक्रम स्तन चूसना छोड़ कर अलग हट गया और अपना मुंह नंदिनी की योनि पर लगा कर सूंघा और कहा।
बड़ी मादक गंध है तुम्हारी योनि की बहन ,,,

योनि की गंध अच्छी लगी मेरे भाई को,,,तो सूंघ ले इसे,,, तुम्हारी बहन की ही योनि है भ्राता,,,,इसकी रक्षा कर मेरे भाई

फिर विक्रम ने आव देखा न ताव और लगे नंदिनी की बुर चाटने और उसकी बुर फैला कर उसने अंदर तक जीभ डाल डाल कर जीभ से ही चोदने लगे और जीभ भीतर घुसा कर उसकी पत्तियों को चूसने लगा,,,
नंदिनी आहें भरने लगी,,,
और कर मेरे भाई , मेरे बालम और कर,,मै तेरी प्यासी हूं।फिर नंदिनी आहें भरते हुए विक्रम के लंड को अपनी योनि से सटाने लगी जिससे विक्रम की आहें निकल गईं।

विक्रम फटा फट नंदिनी के ऊपर आ गया और बोला...
दीदी,, मै तुम्हारी योनि में अपने लंड को डालना चाहता हूं।

तो डाल दे ना भाई। मना किसने किया है भाई। और तू अगर मुझसे यौन संबंध बना लेगा तो किसी को पता भी नहीं चलेगा , दुनियवालों के सामने तू मेरा भैया और अकेले में तू मेरा सैयाँ,,, और ऐसा कह कर मुस्कुरा देती है।

इतना सुनना था कि राजा विक्रम नंदिनी की योनि में पर अपना लिंग रगड़ने लगते हैं जिससे नन्दिनी तड़प जाती है और फिर विक्रम अपना लंड डालने लगते हैं।

तभी बाहर बिजली चमकती है और तेज बारिश होने लगती है। ऐसा लगता है मानो प्रकृति भी ऐसा चाह रही घी।
नंदिनी की योनि में विक्रम का मोटा लंड नही जा रहा था तो नंदिनी थोड़ा घी अपने भाई के लंड पर लगा कर बोलती है,,
अब करो विक्रम, आज तो हम भाई बहन की सुहागरात है और तू ही मेरा कौमार्य भंग करेगा। विक्रम मै तुमसे बहुत प्यार करती हूं बहुत प्यार।

नंदिनी के ऐसा कहने पर राजा विक्रम पूरे जोश में आ जाते है और अपना लंड झटके से नंदिनी की बुर में डाल देते है जिससे नंदिनी की सिसकी निकल जाती है लेकिन थोड़ी देर बाद वह सामान्य होती है तो।
...
और करो विक्रम और करो। मेरी बुर फाड़ दो विक्रम।
विक्रम भी
हां दीदी हाँ ,,,ये लो मेरा लौड़ा अपनी योनि में ,,,और बना दो मुझे अपने बच्चे का बाप,,,,,,,मै तुम्हे वैश्या की तरह चोदूंगा ,, ये लो मेरे लौड़ा ये लो,,,
और फिर दोनो करीब आधे घंटे की चुदाई के बाद झड़ जाते हैं।।।।
सुबह जब दोनो उठते हैं तो दोनो को चुदाई के बाद उस जगह खून के धब्बे दिखते है, जिन्हे देख नंदिनी कहती है।।
देख भई तूने आज मेरा कौमार्य भंग कर दिया,,,ये है उसकी निशानी,,,कल हमारी सुहागरात थी,,,एक भाई और बहन की सुहागरात,,,
कौमार्य भंग के खून के धब्बों को देख कर राजा विक्रम को एक अलग सी अनुभूति होती है की उसने ही अपनी बड़ी बहन का कौमार्य भंग किया है,,,और कहते हैं,,,
दीदी सुहागरात तो शादी के बाद मानते है ना,,,
हाँ ,,तो,,,
लेकिन हमने तो सुहागरात मना लिया ,,,लेकिन शादी नही की,,,तो आओ ना हम दोनो विवाह कर लेते हैं,,,
नही विक्रम हम ऐसा नही करनसकते,, हम भाई बहन है,,,चोरी चुपके यौन सम्बन्ध तक तो ठीक है ,,,लेकिन शादी नहीं,,,बिना शादी के भाई बहन की चुदाई का अलग मजा है,,,

ठीक है दीदी ,,तुम जैसा कहो
,,,




तो be continued
 
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Ravi2019

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Behut khub bhai badhiyan likh rahe ho behut soch vichar ke.
शानदार अपडेट है।
Shandar update bro.
बहुत ही अच्छा कहानी का चित्र आपकी लेखनी वाकई में एक अलग ही प्रकार की है
एक अति कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया :sex:
विक्रम और नंदिनी का देवकी को अपने नजदीक आने का बहुत ही सुंदर और उत्तेजक वर्णन है भाई
लेकीन प्रथम पुर्ण संभोग का वर्णन और भी धमाकेदार होना चाहिए
राजा विक्रम और नंदिनी की देवकी के सामने एक जोरदार तरीके से चुदाई होनी चाहिए जिससे देवकी भी कामातूर हो कर अपने बेटे से चुद जाये तो मजा आ जायेगा
अगले धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Nice update
Nicely narrated the whole situation from the beginning of their life where people's are curious about things
Well done :alright3: :yes1:🏅
Bahut hi jabardast update waiting for next
अपडेट की प्रतिक्षा है जल्दी से दिजिएगा
Nice start Bhai
Nice update Bhai
Waiting, :tufaan: sir ...............................:injail:
Nice update Bhai
Mast update Bhai
Nice update Bhai
Mast update Bhai
Great story great writer
Mast update Bhai
Mast update Bhai
Mast update Bhai
Mast update Bhai
Nice update Bhai
Mast update Bhai
Very hot update
excellent update
अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Thank you Bhai,,
Update posted
 

Lib am

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नंदिनी ने फिर बात को आगे बढ़ाया और बताने लगी,,
फिर तो मां हमारे ऊपर तो मुसीबते ही आ गईं,, पिता जी का यों अचानक चले जाना और राजदरबार की राजनीति ने तो हमें परेशान ही कर दिया था। वो तो भला हो राजा माधव सिंह का ,,, की हमारी जान बची,,

सच कहा बेटा,,अगर राजा माधव सिंह समय पर नहीं आते तो हमे कहीं के नहीं रहते,,, वो तो उनके आने से राजदरबार में किसी की हिम्मत नही हुई की वे विक्रम को राजा घोषित किए जाने का विरोध कर सके और तो और ये राजा माधव सिंह की ही देन है कि तुम्हे उन्होंने राजा का मुख्य सलाहकार घोषित करवा दिया क्यों कि अभी विक्रम में इतनी परिपक्वता नहीं थी कि वह राज काज अकेले संभाल पाता और दरबारी पता नही इससे क्या क्या करवा बैठते,,,, राजमाता देवकी ने कहा
वो तो मैने इसीलिए विक्रम की शादी राजकुमारी रत्ना से तय कर दी है,,,आखिर हमे ऐसे भले आदमी की जरूरत हमेशा पड़ेगी,,, और उन्होंने तो विपरीत परिस्थितियों में हमारा साथ दिया,,,शायद वो नहीं होते तो हम मार दिए गए होते।
सच कहा मां, उनका कर्ज हम जिंदगी में कभी नहीं उतर पाएंगे,,,, लेकिन रत्ना तो मेरी सौतन बन कर ही आयेगी ना,,, नंदिनी ऐसा कह कर हस देती है,,,

चुप कर तू,,, बदमाश कहीं की,, रत्ना तुम्हारी सौतन कैसे होगी,,, तू विक्रम की धर्मपत्नी थोड़ी ही है,,,बहन है ,,,बहन बन कर ही रह,,, तुम दोनों के संबंध अवैध है और अवैध ही रहेंगे समझी,,, राजमाता देवकी ने समझाते हुए कहा और मुस्कुरा देती है,,,
लेकिन माते,, मैने तो बहन से विवाह कर ही लिया होता,,वो तो अच्छा हुआ की बहन ने मना कर दिया था,,,राजा विक्रम ने कहा और फिर बात आगे बढ़ाते हुए बोलते है,,,
माते , आपको तो याद ही होगा कि मेरे गद्दी संभालने के कुछ समय बाद मल्ल प्रदेश में सीमावर्ती राज्य से सीमा विवाद हुआ था जिससे निपटने के लिए मैं और नंदिनी बहन मल्ल प्रदेश गए थे। आप तो जानती ही हैं कि मल्ल प्रदेश हिमालय की तराई में स्थित है और बहुत ही रमणीक स्थल है और वहां हमारी राजकीय अतिथिशाला तो अत्यंत ही भव्य है जिसके सामने फूलों की बगिया है और उसके आगे हिमालय की पर्वत श्रृंखला है तथा अतिथिशाला के चारों ओर आम, अमरूद, सेव, संतरे के बगीचे है। मैने जिंदगी में पहली बार इतनी सुंदर जगह देखी थी। शायद दीदी ने भी पहली बार ही इतनी रमणीक जगह देखी थी। और हमारी विडंबना देखो राजमाता की हमारे वहां पहुंचते ही सीमा विवाद समाप्त हो गया क्यो कि पड़ोसी राज्य के राजा से सीमा पर हमारी पहली मुलाकात में ही उन्होंने अपनी गलती मान ली और पूर्व निर्धारित सीमा पर पीछे हट गए।
सीमा विवाद समाप्त होने के बाद हम दोनो अब काफी हल्का महसूस कर रहे थे और हम दोनो भाई बहन ने कुछ दिन वही राजकीय अतिथिशाला में आराम करने का निर्णय लिया।
दूसरे दिन सुबह तैयार होकर हम दोनों बगीचा घूमने निकले। सुबह सुबह बहुत ही मद मस्त हवा बह रही थी। हम दोनों घूमते घूमते बगीचे के काफी अंदर चले गए। आम तो अभी नही लगे थे, लेकिन अमरूद और सेव के फल लगे हुए थे। हम दोनो एक अमरूद के पेड़ के पास पहुंचे जिसपे बड़े ही सुन्दर अमरूद लगे हुए थे। दीदी ने उसे तोड़ने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन उसकी टहनियां इतनी पतली थी की उस पर चढ़ना मुस्किल था और फल इतनी ऊंचाई पर था की उसे खड़े खड़े तोड़ नहीं सकते थे। मैने बहन से कहा,,
इसे तोड़ना मुश्किल है बहन। ये पेड़ चढ़ने लायक नहीं है और इसे नीचे से तोड़ भी नहीं सकते।
तो एक काम हो सकता है विक्रम। यदि कोई उठा सके तो हममें से कोई वहां तक पहुंच जाएगा।
ठीक है बहन, मैं तुम्हारे कंधे पर बैठ जाता हूं और तुम मुझे उठा लेना।
अरे नहीं नहीं,,, मैं तुम्हे नहीं उठा पाऊंगी। मेरे तो कंधे ही टूट जायेंगे। तू एक काम कर भाई। तू मुझे कमर से पकड़ कर उठा ले और मै अमरूद तोड़ लूंगी।
नहीं नहीं, मैं तुम्हे उठा नहीं पाऊंगा बहन,,, तुझे उठाने के लिए तो दो दो लोग चाहिए ,,,,और ऐसा कहकर मैं दीदी को छेड़ते हुए हसने लगा।
अच्छा जी, तो मैं इतनी मोटी हो गई हूं क्या,,,जाओ तुम ही घूमो बाग में,,,मै तो चली आराम करने,,
हाहाहा, मै तो ऐसे ही मजाक कर रहा था मेरी प्यारी बहना, आओ मै तुम्हे उठता हूं,, और तुम अमरूद तोड़ लेना,,,
और ऐसा कहकर मैंने दीदी को सामने से कमर पर अपने हाथ लपेट कर जकड़ लिया और उन्हें ऊपर उठा लिया। ऊपर उठने से भी वह अमरूद तक पहुंच नही पा रही थी और अपने शरीर को और ऊपर की ओर खीच रही थी जिससे उसकी कमर और पेट मेरे मुंह पी रगड़ खा रही थी। लेकिन फिर भी वह वहां तक पहुंच नहीं पा रही थी। उसने कहा,,,
थोड़ा और ऊपर करो विक्रम ,,तभी मैं अमरूद तक पहुंच पाऊंगी,,
ऐसा कहने से मैने उसे थोड़ा और ऊपर किया,,जिससे उसका घाघरा मेरे मुंह के सामने आ गया और जैसे ही वह फल तोड़ने के लिए थोड़ा आगे हुई ,,मेरा चेहरा उसके घाघरे के ऊपर उसकी योनि से सट गया। यह मेरा पहला अनुभव था जब मैंने उसकी योनि पे अपना मुंह लगा हो। मुझे उसके घाघरे से उसकी योनि की मादक गंध आ रही थी जो मुझे मदहोश किए जा रही थी। मैने भी जोश में आकर अपना मूंह उसकी योनि में जोर से दबा दिया, लेकिन उसे अभी होश ही नहीं था और वह अभी अमरूद तोड़ने में ही व्यस्त थी। इधर मैं अपना मुंह उसके घाघरे में घुसा कर योनि पर रगड़ रहा था। तब तक उसने अमरूद तोड़ लिया था और तब उसे ध्यान आता है की उसकी योनि पे मेरा चेहरा सटा हुआ है तथा मै उसकी योनि पर अपना चेहरा रगड़ रहा हूं। दीदी भी गरम हो जाती है । उसे भी तो उसकी कामभावना तड़पा ही रही थी। उसे भी काफी समय से पुरुष प्रेम की , लिंग की तलाश थी ही ।
लेकिन कुछ देर बाद वह धीरे से कहती है,,
अब मुझे नीचे उतर दो विक्रम,,
नंदिनी के ऐसा कहने से मैने उसे धीरे धीरे नीचे उतारा । इस दौरान नीचे आते हुए उसका पेट और फिर उसके स्तन मेरे चेहरे से रगड़ खा रहे थे और उसके नीचे उतरते ही मैने उसे अपनी बाहों में दबोच कर ही रखा , तब दीदी ने कहा,,,
ये देख ,, अमरूद। खायेगा।
हां , ये तो बड़े अच्छे अमरूद है, । लेकिन अभी तो मुझे संतरे खाने है।
और ऐसा कह कर मैं उसके स्तन को देखने लगा जिससे दीदी शरमा गई। फिर उसने बोला,,,
अभी तू अमरूद ही खा।
तभी मैंने अचानक दीदी से पूछा,,,
बहन , तुम्हे कैसा लगा था उस रात।।।
मेरे ऐसा पूछने पर दीदी एकदम चुप हो गई और उसने अपनी आंखें नीची कर ली। वह बखूबी जान रही थी की मै किस रात की बात कर रहा हूं, लेकिन वह कुछ नही बोलती है और ऐसे ही अपनी आंखे नीची किए अपने पैर के अंगूठे से मिट्टी कुरेद रही होती है। वह सोच भी नहीं सकती थी की मै इतनी पुरानी बात का जिक्र आज अचानक उसके सामने कर दूंगा।
उसके चुप रहने पर मैं फिर बोलता हूं,,,
दीदी , मुझे जो चीज चाहिए वो तुम्हारे पास है और तुम्हे जो चीज़ चाहिए वो मेरे पास है। मै जानता हूं तुम भी बहुत तड़पती हो पुरुष संसर्ग के लिए,,,आओ ना हम दोनो एक दूसरे की प्यास बुझायें।
इस पर दीदी अब चुप्पी तोड़ती है और कहती हैं,,,
विक्रम, याद है मुझे उस रात की बात। लेकिन्नस समय हम बच्चे थे, नादान थे। इसलिए गलती हो गई। ठीक है, मुझे भी अच्छा लगा था। लेकिन इसका मतलब ये तो नही की वही गलती फिर दोहराई जाए। तुम मेरे अनुज हो और मैं तुम्हे एक छोटे भाई की तरह प्यार करती हूं ।और तो और मै किसी की अमानत हूं,, उसकी जिससे मेरी शादी होगी। मै उसके लिए खुद को बचा कर रखूंगी।

ठीक है दीदी। लेकिन आओ ना, हम दोनो जो करेंगे छुप कर करेंगे और किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा। हम दोनों केवल एक दूसरे के यौनांगों को देखेंगे, लेकिन उन्हें छूएंगे नही। दुनिया वालों के लिए हम भाई बहन ही रहेंगे, लेकिन अकेले हम दोनो मजे करेंगे, नही तो हम दोनो यौन सुख के लिए तरसते रहेंगे। माना की तुम किसी और की हो जाओगी,,, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं की तुम भविष्य को लेकर वर्तमान में जीना छोड़ दोगी जब की तुम अभी अपनी कामाग्नी को शांत कर सकती हो।
राजा विक्रम की बातों से नंदिनी गर्म तो हो जाती है, लेकिन द्वंद में जी रही होती है की वह क्या करे। और शायद विक्रम ने यह बात गलत समय में छेड़ दिया था। वो कहते हैं ना की नारी जब बिस्तर पर गरम होती है तब वह सारी मान मर्यादा भूल जाती है। नंदिनी ने भी महावारी शुरू होने के बाद जितनी भी काम क्रीड़ा की थी, वह उसने बिस्तर में गरम होने के बाद कामेच्छा की आग भड़कने पर ही किया था।
नहीं विक्रम नही,,, ये गलत होगा। तुम भूल गए की अब हम बड़े हो गए हैं, हम दोनों अब बच्चे नहीं रहे और तुम तो मेरे प्यारे से छोटे भाई हो। तुममे तो मेरी जान बसती है मेरे भाई। हमारे बीच जो भी हुआ है उसे भुल जाओ।
ऐसा कह कर नंदिनी राजा विक्रम का हाथ पकड़ कर मुड़ती है और बाग में पहाड़ों की तरफ चल देती है। साथ में राजा विक्रम भी पीछे पीछे चल देते है। चलते चलते वो दोनो काफी आगे निकल जाते हैं और वे पहाड़ी के नजदीक पहुंच जाते हैं तो उन्हें झरने की आवाज सुनाई देती है। नंदिनी कहती है...
इधर किसी झरने की आवाज आ रही है। लगता है इधर कोई झरना है।
हां बहन, आवाज तो आ रही है। अतिथिशाला के संतरी ने बताया था कि बाग के पीछे एक बहुत बड़ा झरना है। शायद यह वही झरना हो।

दोनो भाई बहन उस आवाज की तरफ बढ़ते हैं और जब वहां पहुंचते हैं तो उस रमणीक जगह की खूबसूरती देख कर वे मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। उनके सामने पहाड़ की ऊंचाई से एक झरना गिरता दिख रहा था जिसके नीचे बिल्कुल साफ पानिबका कुंड बन गया था। उसे देख कर राजा विक्रमं का मन कुंड में नहाने का करने लगता है। कुंड का पानी इतना साफ था की कुंड की तलहटी भी दिख रही थी। विक्रम बोलता है....

मुझे नहाना है,,, यही नहा लेता हूं। आओ ना दीदी तुम भी नहा लो।
नहीं बिक्रम, मै नहीं नहा सकती। कपड़े नहीं लाई हूं। और तू भी मत नहा, तेरे कपड़े गीले हो जायेंगे , तो तू पहनेगा क्या ,,, तेरे कपड़े भी नहीं है यहां।
लेकिन दीदी मै तो नहाऊंगा और यहां कोई और है ही नही । मै तो कपड़े निकाल कर बाहर ही रख दूंगा,,,,,आओ तुम भी आओ ना।

बड़ा बेशर्म है तू , मै तो नहीं नहाती।
अच्छा बहन , ठीक है,, तू चेहरा उधर कर,, मै तब तक कपड़े निकाल लूं।

विक्रम के ऐसा कहने पर नंदिनी चेहरा घुमा लेती है और राजा विक्रम अपने सारे कपड़े निकाल कर कुंड के किनारे रख कर कुंड में कूद जाता है और नहाने लगता है। नंदिनी जब अपना चेहरा दुबारा घूमती है तो वह देखती रह जाती है। राजा विक्रम कुंड में पूरे नंगे नहाते दिख रहे थे क्यों कि कुंड का पानी बिलकुल साफ था और विक्रम नहाते हुए नंगे कुंड में दिख रहे थे। विक्रम को नहाते देख नंदिनी का भी नहाने का मन करने लगता है। वह कहती है...
मै भी नहा लेती हूं भाई। लेकिन मै बगल के कुंड में नहाऊंगी। तुम उधर मत आना क्यूंकि मैं भी कपड़े निकाल कर किनारे रख कर नहाने जाऊंगी ताकि मैं नहा कर फिर कपड़े पहन सकूं। राजा विक्रम अपनी बहन की ये बात सुन कर ही गरम हो जाते हैं कि वो भी नंगे ही कुंड में नहाने जा रही है । लेकिन वो कुछ नही करते बल्कि कुंड में शीतल जल में नहाने का आनंद के रहे थे जो मजा उन्हें आज तक नहीं मिला था ।
तभी उन्हें नंदिनी के चिल्लाने की आवाज आती है तो वह एकदम से डर जाते हैं और उसी स्थिति में नग्नावस्था में ही कुंड के दूसरी तरफ भागते हैं जहां से आवाज आ रही थी। वहां जाकर देखते है की नंदिनी कुंड में डूब रही थी। वो फटाफट कुंड में कूद जाते है जिसमे नंदिनी नंगे ही थी। वह तैरते हुए जाते हैं और नंदिनी को बाल से पकड़ कर खींचते हुए किनारों की ओर ले जाते हैं। और फिर किनारों पर उसे अपनी बाहों में उठाकर सुखी जमीन पर ले जाते हैं।
नंदिनी को ले जाते समय दोनो भाई बहन बिल्कुल नग्न रहते हैं। जमीन पर लेटा कर वे नंदिनी के हाथ और पैर को रगड़ते हैं जिससे नंदिनी आंखे खोलती है जिससे राजा विक्रम की जान में जान आती है। नंदिनी भी आंखे खोल कर अपने छोटे भाई को देखती है। और कहती है...
विक्रम, बहुत धन्यवाद भाई. मै तेरा एहसान जिंदगी भर नही भूल सकती। तुमने जान पर खेल कर मेरी जान बचाई है। अगर तुम आज यहां नही होते तो पता नहीं आज क्या होता।
दीदी , मेरा तो ये फर्ज था आपको बचाना । आपने धन्यवाद बोलकर मुझे शर्मिंदा कर दिया। मैने आपको आपकी रक्षा का वचन दिया है और आपको बचाना मेरा फर्ज है। लेकिन आप डूबने कैसे लगी ,,,आप तो अच्छी तैराक भी हैं।
क्या कहूं भाई, ये दूसरा कुंड बहुत खतरनाक है उसमे अंदर एक शिला ऊपर उठी हुई है और उसम इतनी फिसलन है कि मेरा पैर पड़ते ही मैं फिसल गई और मेरा संतुलन बिगड़ गया जिसके कारण मैं कुंड के अंदर चलती चली गई। वो तो भला हुआ की तुम समय पर आ गए , नहीं तो मैं मर ही गई होती। ये कहते कहते नंदिनी थोड़ा उठ कर बैठती है।
नंदिनी के मरने की बात बोलने पर राजा विक्रम उसके होठों पर अपनी उंगली रख देते हैं और कहते है...
ऐसा ना कहें बहन,,, आपको कुछ हुआ तो मै जी नहीं पाऊंगा और फफक कर रो पड़ते है....
अरे मेरा भाई मुझे इतना प्यार करता है,, ये तो मै जानती ही नहीं थी,,,चुप हो जा मेरे प्यारे भाई चुप हो जा
और ऐसा कह कर वो भी रोने लगती है,,, रोते रोते उन्हें ख्याल नही रहता है और वे एक दूसरे से लिपट जाते हैं । दोनो बिल्कुल नंगे एक दूसरे की बाहों मे सिसक रहे थे। विक्रम थोड़ा सा अलग होते हैं और नंदिनी की आंखों में देखते हुए,,
कसम खाओ दीदी,,,की आज के बाद कभी भी आप मरने की बात नहीं करेंगी।
नहीं करूंगी मरने की बात,,अब खुश। लेकिन मै तो जानती ही नहीं थी कि मेरा भाई मुझे इतना प्यार करता है,,,
और ये कहते हुए नंदिनी राजा विक्रम के गालों पर एक चुम्बन जड़ देती है। विक्रम भी नंदिनी को चुंबन देते है तो नंदिनी उसके गालों पर चुम्बन की झड़ी लगा देती है। फिर अचानक नंदिनी विक्रम के होठों पे अपने होठ रख कर चूमने लगती है । राजा विक्रम भी उसका साथ देते हुए उसके होठों को अपने होठों में दबाकर चूसने लगते हैं।दोनो भाई बहन इसी आनंद में पंद्रह मिनट डूबे रहते हैं। फिर नंदिनी चुम्बन छोड़ विक्रम की आंखों में देखते हुए कहती है,,,,
उस रात भी तो हमने एक दूसरे के होंठ चूसे थे भाई,,,
और ऐसा। कह कर हल्का मुस्कुरा देती है। और फिर कहती है,,
चलो वापस देखो,, दोपहर गई है,,पूरी सेना अब हमें खोजती हुई आ रही होगी।।।
नंदिनी के ऐसा कहने पर विराम।को भी होश आता है और दोनो कपड़े पहन कर वापस अतिथिशाला की ओर चल देते है।
वहां पूरी सेना में खलबली मची हुई थी कि राजा और मुख्य सलाहकार कहा चले गए। इन्हे देख कर सेना ने भी राहत की सांस ली।
दोपहर हो चली थी तो सभी ने खाना खाया और आराम करने लगे । शाम में फिर इनकी एक राजकीय बैठक थी जिसमें काफी समय लग गया । फिर रात में खाना खाकर ये दोनो बरामदे में बैठे थे । सुहानी चांदनी रात थी और ये ठंडी ठंडी हवा बह रही थी। इस पूरे अतिथिशाला ने मे केवल राजा विक्रम और नंदिनी ही थे और दूर दूर कोई भी नही था। दोनो हाथों में हाथ लिए बैठे रहते हैं। फिर नंदिनी विक्रम के होठों पर चुम्बन देकर अपने कक्ष में चली जाती है और राजा विक्रम अपने कक्ष में। लेकिन दोनो की आंखों में नींद नहीं थी। थोड़ी देर बाद राजा विक्रम नंदिनी कक्ष में जाते हैं और दरवाजा को हल्का धक्का देते हैं जिससे दरवाजा तुरंत खुल जाता है क्यों कि ये अंदर से बंद ही नहीं था। दरवाजा खुलने से नंदिनी पूछती है,,,

कौन है ?
मै हूं दीदी।।।
क्या हुआ,,,

मुझे डर लग रहा है बहन ,,, मै कभी अकेले इतने वीराने में नहीं रहा।।। मै सो जाऊं आपके साथ।

ओ हो ,, मेरे छोटे बाबू को डर लग रहा है,,, आ जा ,,में साथ में सो जा।।।
विक्रम शैय्या पर जाते ही वह नंदिनी से लिपट जाते है और राजा विक्रम अपनी प्यारी बहन के होठ चूसने लगते हैं जिससे दोनो अत्यंत उत्तेजित हो जाते हैं। फिर विक्रम नंदिनी की चोली उठाकर उसके स्तन चूसने लगते हैं जिससे वह पूरी उत्तेजित हो जाती है और उत्तेजनावश विक्रम का हाथ पकड़ कर अपने बुर पर रख कर सब देती है और राजा विक्रम अपनी बहन की योनि को घाघरे के ऊपर से ही सहलाने लगते हैं।राजा विक्रम अपने मुंह से स्तन निकाल कर नंदिनी की आंखों में देखते हुए कहते हैं,,,
उस रात ये भी हुआ था ना,,
इससे नंदिनी शर्मा जाती है। फिर विक्रमने वो किया जो नंदिनी ने अपने में भी नहीं सोचा था। उसने अचानक ही नंदिनी का घाघरा की डोरी खोलकर उसे नीचे कर दिया जिसको निकलने में नंदिनी ने अपनी चूतड़ उठा ली जिससे उसका घाघरा सरसरा कर निकल गया , विक्रम भी अपनी धोती खोलकर पूरा नंगा हो गया। अब नंदिनी और विक्रम दोनो नंगे थे और नंदिनी का हाथ पकड़ कर विक्रम अपने मोटे लौड़े पर रख देता है जो नंदिनी खुद चाह रही थीं और वह अपने भाई का लिंग अपने हाथ में लेकर खूब दबा दबा कर आगे पीछे करने लगती है। इधर विक्रम भी अपनी बहन की बुर सहलाए जा रहा था और उसके स्तन भी चूसे जा रहा था। दोनो पूरे उत्तेजित हो गए थे।
अचानक विक्रम में अपना मुंह नंदिनी की योनि पर लगा कर सूंघा और कहा।
बड़ी मादक गंध है तुम्हारी योनि की बहन ,,,
योनि की गंध अच्छी लगी मेरे भाई को,,,तो सूंघ ले इसे,,, इसकी रक्षा कर मेरे भाई
फिर विक्रम ने आव देखा न ताव और लगे नंदिनी की बुर चाटने और उसकी बुर फैला कर उसने अंदर तक जीभ डाल डाल कर चोदने लगे ।
नंदिनी आहें भरने लगी
और कर मेरे भाई , मेरे बालम और कर,,मै तेरी प्यासी हूं।फिर नंदिनी आहें भरते हुए विक्रम के लंड को अपनी योनि से सटाने लगी जिससे विक्रम की आहें निकल गईं।
तब विक्रम फटा फट नंदिनी के ऊपर आ गया और बोला...
दीदी,, मै तुम्हारी योनि में अपने लंड को डालना चाहता हूं।
तो डाल दे ना भाई। मना किसने किया है भाई। और तू अगर मुझसे यौन संबंध बना लेगा तो किसी को पता भी नहीं चलेगा। और ऐसा कह कर मुस्कुरा देती है।

इतना सुनना था कि राजा विक्रम नंदिनी की योनि में अपना लंड डालने लगते हैं।
तभी बाहर बिजली चमकती है और तेज बारिश होने लगती है। ऐसा लगता है मानो प्रकृति भी ऐसा चाह रही घी।
नंदिनी की योनि में विक्रम क्या मोटा लंड नही जा रहा था तो नंदिनी थोड़ा घी अपने भाई के लंड पर लगा कर बोलती है,,
अब करो विक्रम, आज तो हम भाई बहन की सुहागरात है और तू ही मेरा कौमार्य भंग करेगा। विक्रम मै तुमसे बहुत प्यार करती हूं बहुत प्यार।
नंदिनी के ऐसा कहने पर राजा विक्रम पूरे जोश में आ जाते है और अपना लंड झटके से नंदिनी की बुर में डाल देते है जिससे नंदिनी की सिसकी निकल जाती है लेकिन थोड़ी देर बाद वह सामान्य होती है तो।
...
और करो विक्रम और करो। मेरी बुर फाड़ दो विक्रम। विक्रम भी
हां दीदी आ,,,मै तुम्हे वैश्य की तरह चोदुगा ,, yelo मेरे लौड़ा ये लो
और फिर दोनो करीब आधे घंटे की चुदिंके बाद झड़ जाते हैं।।।।
चुदाई के बाद उस जगह खून के धब्बे दिखते है, जिन्हे देख नंदिनी कहती है।।
देख तूने आज मेरा कौमार्य भंग कर दिया



तो be continued
आखिरकार भाई बहन का प्यार सुदृढ़ हो ही गया। लगता नही है कि नंदिनी किसी और से शादी करेगी भविष्य में। राजमाता की कामाग्नि को संतुष्ट करवा दो Ravi2019 भाई ।
 
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