Update 12
तो अभी नंदिनी के कक्ष में राजमाता देवकी अपने बेटे और बेटी को गले से लगाए बैठी थी। अब देवकी का गुस्सा तो शांत हो ही गया था , सुबकना भी कम हो गया था, लेकिन वो अंदर से हिल गई थी अपने बेटे और बेटी की चुदाई देख कर। राजा विक्रम अब स्थिति सामान्य होता देख बोलते हैं
आइए माते, आप आसन पर बैठिए।
राजा विक्रम के ऐसा कहने से देवकी की तंद्रा टूटती है और वह खड़ी हो जाती है और अपने पुत्र और पुत्री का हाथ पकड़कर अपने साथ आसन की ओर ले जाती है।अभी तक राजा विक्रम और राजकुमारी नंदिनी दोनो पूरे मादरजात नंगे ही थे। आसन ग्रहण कर राजमाता इन दोनो को नंगा देख कर कहती है
अरे कमबख्तों अब तो कम से कम अपने नंगे शरीर को चादर से ही ढक लो,,, तुमदोनो को अपनी मां के सामने नंगा खड़ा होने में शर्म नही आती और ऐसा कह कर वह हल्के से मुस्कुरा देती हैं।
राजमाता देवकी की बात सुन नंदिनी रेशम के चादर से खुद को ढक लेती है और एक चादर अपने भाई राजा विक्रम को दे देती है। देवकी के कहने पर दोनो आसन ग्रहण कर लेते हैं, फिर देवकी राजा विक्रम से पूछती है
पुत्र आपने ऐसा क्यों किया, मालूम है न ये आपकी बहन है और बहन के साथ कोई यौन संबंध नहीं बनाता। इस पर राजा विक्रम कहते हैं
राजमाता, मै नंदिनी से प्यार करता हूं और वो भी मुझसे उतना ही प्यार करती है, मै इसके बिना जीवित नहीं रह सकता।
प्रेम करते हो तो इसका मतलब ये तो नहीं है कि तुम अपनी बहन के साथ ही यौन संबंध स्थापित कर लोगे,,,, हरेक भाई अपनी बहन को प्यार करता है,,,तो इसका मतलब ये तो नहीं की हरेक भाई अपनी बहन को चोद ही दे।
लेकिन मै नंदिनी से सच्चा प्यार करता हूं मां और एक स्त्री और पुरुष के बीच यौन संबंध उसी प्रेम की पराकाष्ठा है,,,उसी प्रेम की स्वाभाविक परिणति है और मै तो मानता हूं कि स्त्री पुरुष का प्रेम यौन संबंध बना कर ही प्रकट किया जा सकता है भले ही रिश्ता कोई भी हो,,,,
मै भी भाई विक्रम की बातों से पूरी तरह सहमत हूं मां,,,नंदिनी ने कहा
अच्छा तो ये बात है,,तुम दोनों के बीच स्त्री पुरुष वाला प्रेम हो गया है,,,,लेकिन मै ये नहीं समझ पा रही हूं की तुम दोनों एक दूसरे के प्रति आकर्षित कैसे हो गए,,,
ये बहुत लंबी कहानी है मां और इसके लिए हमारे हालात भी जिम्मेवार है की हम दोनों एक दूसरे के करीब आते गए,,,राजा विक्रम ने कहा
फिर नंदिनी कहती है,,,पिता जी का गुजर जाना ,,विक्रम का राजा बनना हमारे नजदीक आने की परिस्थितियां बनाने लगा,,,हमे नजदीक आने का मौका ही मिलता चला गया,,,
क्या परिस्थितियां रहीं मेरे बच्चो की तुम दोनो एक दूसरे के साथ सहवास करने की सीमा तक पहुंच गए ,,,जब कि तुम्हे पता है कि भाई बहन के बीच सम्भोग तो शास्त्रों में भी वर्जित है,,,
राजा विक्रम __ माते आपको तो मालूम ही है हम दोनो बचपन में एक साथ नंगे नहाया करते थे,,,बल्कि आप ही तो हम दोनो को नंगा करके नहलाती थी,,,नंदिनी भले ही बड़ी बहन है, लेकिन मैं उसके नंगे शरीर के प्रति आकर्षित हो जाता था और शायद नंदिनी को भी मेरा नंगा बदन अच्छा लगता रहा होगा,,,और आप शायद सोचती रही होंगी की ये तो बच्चे हैं, ये नर और मादा के बारे में क्या समझते होंगे,,,ऐसा ही था ना मां
देवकी ___हां यही बात है,,मै तो तुम दोनों को नासमझ समझ कर नंगा नहलाया करती थी
लेकिन यहीं से तो हमारे बीच शारीरिक आकर्षण की शुरुआत हो गई,,,मुझे अपने भाई विक्रम को नंगा देखना अच्छा लगने लगा,,,मुझे उसके साथ रहना उसके साथ खेलना अच्छा लगने लगा,,,नहाते समय मैं इसका लन्ड ही देखा करती थी जो उसी समय बड़ा था और तो और जब विक्रम की नुन्नी पेशाब लगने पर थोड़ी कड़ी हो जाती तो मुझे बड़ा आश्चर्य होता था कि इतनी छोटी नुन्नि बड़ी कैसी हो जाती है,,,मै बड़ी बहन थी तो मुझमें समझ भी ज्यादा थी और यही समझ मुझे अपने छोटे भाई विक्रम के तरफ आकर्षित कर रही थी या यों कहें की मै ही विक्रम के प्रति ज्यादा आकर्षित हो गई थी,,, और आप जब कभी स्नानागार में हमें नंगे छोड़ कर जाती,,,मै ही आगे बढ़कर विक्रम को पकड़ लेती और उसके नंगे शरीर को अपने नंगे शरीर से चिपका लेती और मुझे असीम आनन्द की अनुभूति होती,,शायद विक्रम को भी आनंद मिलता रहा होगा,,,नंदिनी ने बीच में कहा।
हां ये सही है कि जब दीदी मुझे अपने नंगे बदन से चिपकाती तो मुझे भी अच्छा लगता,,,लेकिन क्या अच्छा लगता और क्यों अच्छा लगता था,, ये मुझे समझ नहीं आता था,,,मैं भी नहाते समय दीदी की बुर को ही देखा करता था,,,सोचता इसे नून्नी क्यों नहीं है,,,इसका नुन्नी के जगह पे सपाट क्यो है,,,लेकिन वो सपाट जगह मुझे बड़ी अच्छी लगती,,अब क्यों अच्छी लगती ये मेरी समझ से बाहर था,,,,मै सोचा करता था मैं तो नुन्नी से पेशाब कर लेता हूं लेकिन दीदी कहां से करती होगी,,,,तो एक दिन जब आप हमे छोड़ कर गई और दीदी ने मुझे अपने नग्न शरीर से चिपका लिया तो मैने दीदी से पूछा,,,,
दीदी एक बात पूछनी थी,,,
हां पूछ विक्रम
गुस्सा तो नहीं हो जाएगी
नहीं पगले मैं तुझसे कभी गुस्सा हो सकती हूं क्या,,तू तो मेरा प्यारा सा छोटा सा लाडला भाई है,,,मै क्यों तुझसे गुस्सा होने लगी भला,,,पूछो क्या पूछना है,,,
दीदी, मेरी तो नुन्नी है जहां से मैं पेशाब करता हूं,, लेकिन तुम्हारे तो नुन्नी है ही नही, तो तुम पेशाब कहां से करती होगी और तुम्हारे पास यहां पे नुन्नी क्यों नहीं है,,,मैंने अपना हाथ दीदी के बुर पर रख कर पूछा,,,
इस पर दीदी हसने लगी और कहा,,, अरे पगले पुरुष के पास नुन्नी होता है और स्त्रियों के पास नुन्नी पुरुषों की तरह नहीं होती,,,स्त्रियों के पास ऐसी ही नुन्नी होती है,,,और अपनी उंगली से अपनी बुर की और इशारा कर के बताया,,,
तो क्या हरेक स्त्री की नुन्नी ऐसी ही होती है,,,
हां, स्त्रियों की नुन्नी ऐसी ही होती है,,
तब तो मां की और धाय मां रांझा की भी नुन्नी ऐसी ही होगी,,,
हम्म्म,,मैने देखा तो नहीं है उनकी नुन्नी,,,लेकिन वो भी तो स्त्रियां है तो उनकी नूनी भी ऐसी ही होनी चाहिए,,,
ओह तो ये बात है,,,लेकिन एक बात बताऊं आपको,,,मुझे आपकी नुन्नी बड़ी ही सुंदर लगती है,,जब भी हम नहाने आते है,,मै आपकी नुन्नी ही देखता रहता हूं,,,
मुझे भी तुम्हारी नुन्नी बहुत प्यारी लगती है भाई,,,जब तू छोटा था और तेरी मालिश हो रही होती तो मै तुम्हारी नुन्नी अपने हाथों से पकड़ लिया करती थी,,,
अच्छा दीदी,, लेकिन तुम पेशाब कैसे करतीं हो दीदी,,,
मै यही से करती हूं पेशाब और नंदिनी ने अपनी बुर की ओर उंगली से इशारा करते हुए विक्रम को बताया,,
मुझे देखना है तुम्हे पेशाब करते हुए,,दिखाओगी मुझे पेशाब करके दीदी,,,,,
अच्छा तो मेले बाबू को देखना अपनी बहन को सुसु करते हुए,,
हां दीदी मुझे देखना है तुम पेशाब कैसे करती हो,,,
ठीक है मैं दिखाती हूं अपने बाबू को की मै सुसु कैसे करती हूं,,,
ऐसा कहकर नंदिनी नीचे जमीन पे पेशाब करने की मुद्रा में बैठ जाती है और बोलती है
विक्रम तू भी मेरे सामने आकर मेरी तरह बैठ जा तभी तो तू देखेगा की मै पेशाब कहां से करती हूं,,,
इस पर विक्रम भी नंदिनी के सामने आकर बैठ जाता है और नंदिनी उसके सामने पेशाब करने लगती है तथा उसकी चूत से सिटी की आवाज आने लगती है,,,अपनी बहन को पेशाब करता देख विक्रम को भी पेशाब आने लगती है और वो भी नंदिनी के सामने बैठे हुए पेशाब करने लगता है,,,दोनो भाई बहनों की पेशाब की छीटें भी एक दूसरे पर पड़ रही थी,,, लेकिन फिर भी दोनो एक दूसरे के सामने बैठ कर पेशाब कर रहे थे और एक दूसरे को पेशाब करते हुए देख रहे थे,
तो इस तरह मां हमदोनो एक दूसरे के प्रति आकर्षित होने लगे और दिन पर दिन हमारा ये एक दूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ता ही गया,,,, लेकिन शुरुआत तो यहीं से हुई थी,,,नंदिनी ने कहा
हम्मम, अच्छा तो ये बात है,,,इसका मतलब गलती मेरी ही है इसमें,,,ना मां तुमदोनो को साथ में नंगा नहलाती ,,ना ये सब तुम दोनो के बीच होता,,,देवकी ने कहा
नहीं मां,, इसमें तुम्हारा दोष नहीं है,,शायद परिस्थितियां ही ऐसी बन गईं थीं की हम दोनो भाई बहन होते हुए भी एक दूसरे के नजदीक आ गए थे,,, क्यों कि अगर आपका दोष होता तो हम दोनो थोड़ी समझदारी आने पर एक दूसरे के करीब नही आते,,,,बल्कि एक दूसरे से दूरी बना लेते,,,मगर ऐसा नहीं हुआ मां,,,शायद प्रकृति भी यही चाहती थी हम दोनो भाई बहन एकाकार हो जाएं,,,,नंदिनी ने कहा
क्योंकि जब हम थोड़े बड़े हुए तो हालांकि आपने हमे नंगा कर के नहलाना बंद कर दिया,,, लेकिन हमारे बीच आपसी आकर्षण बरकरार रहा,,,अब हम राजकुमार और राजकुमारी थे तो हमारा कोई दोस्त भी नही हो सकता था,,,केवल धाय मां का बेटा कालू ही था जो कभी कभार हमारे साथ खेला करता था,, नहीं तो केवल हम दोनों भाई बहन ही हमेशा साथ रहते,,,, तो इसलिए खेलते खेलते जब हम देखते की कक्ष में कोई नहीं है और हम दोनों बिल्कुल अकेले है ,,, तो मै बड़ी बहन होने के नाते पहल करती और विक्रम को पकड़ कर कक्ष के ऐसे कोने में ले जाती जहां हम दोनो छुप कर बैठ सकते थे,,,वहां नीचे जमीन पर उकडू बैठ जाती और विक्रम को भी अपने सामने बैठा लेती और मै अपना घाघरा उठा कर विक्रम को अपनी नंगी बुर दिखाती और विक्रम को भी धोती खोलने को बोलती तब विक्रम भी अपनी धोती खोलकर नंगा ही मेरे सामने बैठ जाता और अपना लंड मुझे दिखाता,, फिर हम दोनो काफी देर तक एक दूसरे के यौनांगों को निहारते रहते ,,,,फिर कुछ महीनों तक हम कुछ नहीं करते ,,,,
फिर मेरी माहवारी शुरू हो गई तो मेरी बुर पर झांटें भी उग आई,,,मुझे उत्सुकता हुई की क्या विक्रम के लंड पर भी झांट आए होंगे !!!
इसी बीच आप और पिताश्री आखेट के लिए कुछ दिनों के लिए जंगल गए,,,तो हमे फिर मौका मिल गया,,,जिस दिन आप दोनो आखेट के लिए राजकीय यात्रा पर गए उसी दिन मै आपके कक्ष में विक्रम का हाथ पकड़ कर उसी कोने में ले गई और नीचे बैठ गई,,,
और नीचे बैठ कर अपना घाघरा उठा लिया,,,विक्रम भी जानता ही था की उसे क्या करना है,,,तो वो भी अपनी धोती खोल कर फेंक दिया अपना लंड लटकाए हुए मेरे सामने बैठ गया और मेरी बुर देखंकर उसका मुंह आश्चर्य से खुला रह गया क्योंकि उसने मेरी बुर पे झांटे देख ली थी,,,हालाकि विक्रम की नुन्नी भी अब लंड बनने लगी थी और मेरी बुर देख कर उसका लंड अब खड़ा होने लगा था जो मुझे बहुत आकर्षित कर रहा था,,, हालांकि विक्रम के लंड पर अभी झांटे नहीं आई थी,,,हम दोनो फिर काफी देर तक एक दूसरे के यौनांगों को देखते रहे,,,फिर हमे कदमों की आहट सुनाई पड़ी तो हम दोनो खड़े हो गए और मैंने अपना घाघरा नीचे कर दिया और विक्रम ने धोती पहन ली,,,
लेकिन विक्रम के प्यारे लंड को देख मेरे शरीर में गर्मी बढ़ गई थी,,,,लेकिन हम दोनो इसके आगे कुछ नहीं कर पा रहे थे और न ही इससे आगे बढ़ ही पा रहे थे,,,आप और पिताश्री अब आखेट से भी आ चुके थे तो अब हमें कोई मौका नहीं मिल पा रहा था,,,
इधर हमे आप अपने कक्ष में ही एक ही शैय्या पर सुलाने लगी हीं थी,,,हम दोनों के अंदर पहले से आकर्षण तो था ही,,लेकिन अब हमारे बीच एक संकोच की दीवार भी थी,,,लेकिन परिस्थिति ने फिर हमारा साथ देना शुरू कर दिया,,,
मुझे अब महावारी आना शुरू हो गया था ,,,,मेरी आवाज और भी पतली हो गई थी और अब मेरी काम भावनाएं भी बढ़ने लगी थी,,,मेरे अंदर अब लंड की प्यास बढ़ने लगीं थी,,,लेकिन वो कहते हैं ना कि स्त्री अपनी भावनाओं को काबू करना सीख जाती है और समाज और रीति रिवाजों के बंधन में अपनी भावनाओं को दबा कर रखती है,,, तो मै भी स्त्री के स्वाभाविक व्यवहार के कारण अपनी भावनाओं को दबा कर रख रही थी,,,,
लेकिन आपको तो याद होगा मां की आप हमे अपने कक्ष में शैय्या पर सोता जानकर रात्रि में धीरे से उठकर पिता श्री के कक्ष में चली जाती थी,,,लेकिन हम दोनो की नींद तो रात में कई बार खुल ही जाती थी और हम लोग आपको आपके शय्या पर नहीं पाते थे,,,जिसकी जानकारी आपको कभी नहीं हो पाती,,,
हां ये तो है, मै तो तुम दोनों को सोता जान कर ही जाया करती थी और तुम दोनो कमबख्त जगे रहते थे,,, हाय राम ,,बड़े कमीने थे तुम दोनो बचपन से ही,,, हहाहा,,,,ऐसा कह कर देवकी हसने लगती है,,,
अपनी बातों को जारी रखते हुए नंदिनी ने कहा,,,
ऐसे ही एक रात्रि को जब मै और विक्रम सोए हुए थे तो मैं काफी कामुक हो रही थी और स्वप्न में एक बहुत ही कामुक दृश्य देख रही थी की एक पुरुष अपना लिंग मेरी झांटदार चूत से लड़ा रहा था तो मैं काफी कामुक हो गई और मुझे पसीने छूटने लगे और बुर पूरी पनिया गई थी ,,, मै इतनी कामुक हो गई थी की मैंने सपने में ही हाथ विक्रम के तरफ फेका तो मेरे हाथ में विक्रम का हाथ आ गया,,,मैंने जोश में विक्रम का हाथ अपनी जांघों के बीच ले जाकर बुर पर रख दिया और अपने दोनो पैरों से विक्रम के हाथ को जकड़ लिया और कामुक आवाज निकालते हुई विक्रम के हाथ को अपने बुर पे रगड़ने लगी,,,अब विक्रम की भी आंखे खुल गई थी और भी अपने हाथ से मेरी बुर जोर जोर से रगड़ने लगा था,,,,विक्रम का भी जवान बहन का जवान बुर सहलाने और रगड़ने का पहला अनुभव था और मेरा भी बुर रगड़वाने का पहला अनुभव था जिससे हम दोनों काफी उत्तेजित हो गए थे हालाकि ये बुर रगड़ाई घाघरे के ऊपर से ही हो रही थी,,,,,,लेकिन फिर भी बुर की रगड़ाई से मैं बहुत जल्दी झड़ गई और फिर मुझे होश आया कि मैंने विक्रम का हाथ अपनी बुर के ऊपर दबाया हुआ है,, मै शर्म से पानी पानी हो गई,,,,
लेकिन मुझे अब पेशाब लगी थी तो मैं उठ कर स्नानघर में चली गई,,,,तथा पेशाब कर के वापस आकर फिर शैय्या पर लेट गई,,लेकिन अब विक्रम जगा हुआ था और उसकी आंखों में नींद नहीं थी तो मेरी आंखों से भी नींद गायब थी,,,कुछ देर के बाद विक्रम ने मेरी तरफ करवट ली और अपना एक हाथ सीधे ले जाकर घाघरे के ऊपर से मेरी बुर पर रख दिया जिससे मेरी सिसकी निकल गई और वह मेरी बुर को सहलाते हुए मेरी आंखों में देख रहा था,,,मै भी उसकी आँखों में देखे जा रही थी,,, मै उसे अब मना भी नहीं कर सकती थी क्योंकि अभी थोड़ी देर पहले मैं खुद उससे अपनी बुर रगड़वा रही थी,,तो अब मना भी करती तो किस मुंह से करती और हम दोनो बिल्कुल खामोश होकर आंखो में आंखे डाले एक दूसरे को देखे जा रहे थे,,,,, फिर विक्रम ने अपनी धोती की गांठे खोलकर अलग कर दिया तो उसका लौड़ा खड़ा होकर मेरी आंखों के सामने आकर मुझे सलामी देने लगा,,,फिर उसने अपने हाथ से मेरा एक हाथ पकड़ कर अपने लंड के पास ले गया और मेरा हाथ अपने लंड पर रख दिया जिससे मै पूरी तरह गनगाना गई और उसके मोटे लंबे लौड़े को हाथ में पकड़ कर सहलाने लगी और उसके लंड पर से उसकी खोली हटा कर उसके गुलाबी सुपाड़े को बाहर निकाल लिया ,,,उसका सुपाड़ा भी कड़ा होकर एकदम चिकना हो गया था जिसे मैं अपने अंगूठे से सहलाए जा रही थी,,, और मुझे बहुत मजा आ रहा था,,,मेरी काम भावनाएं एकदम भड़क गई थी और मैं विक्रम के लंड को खा जाना चाहती थी,,,उसके गुलाबी सुपाड़े की चिकनाहट मुझे मदहोश किए जा रही थी ,,,मन कर रहा था कि अभी घाघरा खोलकर अपनी नंगी बुर अपने प्यारे भाई को दिखा दूँ और उसके प्यारे से मूसल लण्ड को अपनी प्यासी योनि में डालकर सो जाऊँ,,,लेकिन वो कहते हैं ना कि मर्यादा हमने बहुत कुछ करने से रोकती है भले ही हमारा मन वो करने को कर रहा हो,,,तो यही मर्यादा कि दिवार ही मुझे आगे बढ़ने से रोक रही थी
और मै ये सोचकर आगे नहीं बढ़ रहा था कि कहीं दीदी को बुरा ना लग जाए और कहीं उसने मना कर दिया तो मै वो भी नहीं कर पाऊँगा जो अभी कर रहा हूँ,,,,इसलिए जितना मिल रहा है उतने में ही ख़ुश रहना है,,मज़ा तो मुझे भी बहुत आ रहा था ,,समझ बढ़ने के बाद पहली बार मै और दीदी इस तरह का यौन सुख का आनन्द पहली बार ले रहे थे और आपको तो पता ही है की पहला प्यार और पहला यौन सुख का अहसास अलग तरह का ही होता है,,,मेरा भी लिंग अब मुस्तंड लौड़ा बन चुका था और मेरी जवानी भी अब हिलोरे मर रही थी ,,,मै खुद चाह रहा था की दीदी को नंगा कर के अभी के अभी अपना लिंग उसकी योनि में डाल दूँ,,,और जिस तरह से दीदी अपनी उँगलियों से मेरे सुपाड़े को छू रही थी, सहला रही थी मेरी उत्तेजना और बढ़ती जा रही थी,,,,,लेकिन एक तो डर और ऊपर से मर्यादा की दिवार मुझे भी ये करने से रोक रही थी,,,,राजा विक्रम ने कहा
नन्दिनी फिर बात को आगे बढ़ाते हुए बोलती है ,,,,फिर पता नहीं कब भाई का लिंग सहलाते सहलाते आँख लग गई पता ही नहीं चला और भाई भी मेरी बुर सहलाते सहलाते सो गया,,,वो तो अच्छा हुआ की आपके आने के पूर्व मेरी आँख खुल गई और अगर मेरी आँख नहीं खुलती तो शायद हमदोनो भाई बहन रंगे हाथ रंगरलियाँ मनाते हुए पकड़े जाते,,,जैसे ही मेरी आँख खुली मैंने भाई का हाथ घाघरे के ऊपर से अपनी योनि पर से हटाया और उसे जगाकर उसे धोती लपेटने को बोला,,,जिससे भाई ने भी तुरन्त ही धोती लपेटकर सो गया,,,वो तो अच्छा हुआ उस दिन की मेरी नींद खुल गई ,,नहीं तो अनर्थ ही हो जाना था उस दिन ,,,ये कहकर नन्दिनी मुस्कुराने लगती है,,,,
तब देवकी ने कहा,,,,तू तो बड़ी रण्डी निकली छिनाल,,,डायन भी सात घर छोड़कर वार करती है और तू अपने छोटे भई पर ही डोरे डाल रही थी ,,,अरे कुछ तो शरम कर लिया होता,,,मेरे प्यारे मासूम बेटे को अपने प्यार में फँसा लिया और ये कहते हुए देवकी मुस्कुराकर एक हल्की सी चपत नन्दिनी के सिर पर लगाती है,,,
उफ़्फ़ माँ,,,चोट लगती है,,,क्या करती हो तुम,,,बड़ा आया आपका मासूम बेटा ,,,आगे तो कहानी इसी ने बढ़ाई ना,,,,,, फिर नंदिनी ने आगे बोलना शुरू किया,,,
उस रात के बाद से हमने कई दिनों तक कुछ नहीं किया और बाहर हम दोनो भाई बहन ऐसे व्यवहार करते रहे की हमारे बीच कुछ हुआ ही न हो,,,लेकिन करीब 6 महीने बाद फिर एक घटना घटी,,, उस रात भी हम आपके कक्ष में सोए थे और प्रत्येक रात्रि की भांति आप पिताश्री के साथ सोने चली गई थीं और हमंदोनो भाई बहन अपने कक्ष में अकेले थे,,,मध्य रात्रि में अचानक मुझे लंड की जरूरत महसूस होने लगी और मैं काफी उत्तेजित हो गई जिससे मेरी नींद खुल गई,,मेरी आंख खुली तो मैंने देखा की आप कमरे में नहीं है और विक्रम मेरी तरफ पैर कर के सोया था,,मुझे अपने भाई पर खूब प्यार आ रहा था और मैने उत्तेजनावश विक्रम का पैर अपने बुर पर घाघरे के ऊपर से ही रख दिया और उसे अपने बुर पर दबा दिया,,,और अपने दोनो पैरों से उसके पैर को दबोच लिया और अपनी बुर उसके पैर पर रगड़ने लगी और यौन आनंद लेने लगी,,,मेरे द्वारा विक्रम के पैर पर बुर रगड़ने से विक्रमंकी भी आंख धीरे धीरे खुल गई और जब उसकी नींद खुली तो उसने मुझे अपनी बुर अपने पैर पर रगड़ता पाया,,,कुछ देर देखने के बाद उसने अपना पैर मेरी बुर पर से हटाने की कोशिश करने लगा और अपने पैर को छुड़ाने के इन्हें हिलाने लगा,,,
मै बहुत डर गई थी की लगता है की विक्रम को अब ये पसंद नहीं आ रहा है और मै मन ही मन ऊपर वाले से माफी मांगने लगी की अब नही करूंगी ये सब भाई के साथ,, हे ऊपरवाले आज के लिए संभाल लो मामला,,,फिर आगे से कभी ये गलती नहीं करूंगी,,,
लेकिन माते पुरुष तो पुरुष होता है ,, बस उसे योनि दिखनी चाहिए वो खुश हो जाता है,,,वैसे ही ये महाशय हैं,,,जब इन्होंने मेरे बुर के ऊपर से अपने पैर हटा लिए तो जनाब मेरे बगल में आकर लेट गए,,,मै द्वंद में थीं, कि क्या होने वाला है,,,ये जनाब मुझे डांटेंगे या पता नहीं क्या करेंगे,,, डर भी रही थी और कुछ अनहोनी की संभावना भी लग रही थी,,,
लेकिन विक्रम मेरे बगल में लेटकर मेरा मुंह देखता रहा ,,फिर उसने जो किया उसकी मैने कल्पना भी नहीं की थी,,,उसने अचानक से अपने होठ मेरे होठों पर रख दिया और उन्हें बेदर्दी से चूसने लगा,,,ये होंठो को चूसने का मेरा पहला अनुभव था इसलिए मैं आनंद के सागर में गोते लगाने लगी,,,और दूसरी बात ये की मैंने राहत की सांस ली की विक्रम को बुरा नही लगा है बल्कि वो तो हमारे बीच के संबंधों को एक ऊंचे स्तर पर ले जा रहा है,,,, अभी थोड़ी देर पहले ही मैं जो ऊपर वाले से माफी मांग रही थी की आगे से ये गलती नहीं करूंगी ,,वो मै भूल गई,, और मैं फिर से अपने भाई के साथ अवैध संबंधों को आगे बढ़ाने लगी,,,मनुष्य बहुत ही स्वार्थी प्राणी है,,उसके लिए उचित या अनुचित कुछ भी नही है,,,बस उसकी भूख शांत होती रहनी चाहिए ,,भले ही वह भूख पेट की हो या जिस्म की,,,
भाई द्वारा मेरे होंठों को अपने होठों के बीच दबाकर चूसा जाने लगा जिससे मेरी उत्तेजना और बढ़ गई,,,और मै भी अपने भाई का चुम्बन में साथ देने लगी,,,हम दोनो करीब 15 मिनट तक एक दूसरे के होठ चूसते रहे,,,कभी वो मेरी जीभ अपने मुंह में लेकर चूसता तो कभी मैं उसकी जीभ को अपने मुंह में लेकर चूसती,,,, कभी होठों को चबाती ,,,इस चुम्बन से हम दोनों की सांसे खूब तेज चलने लगी,,,फिर 15 मिनट बाद हम दोनो अलग हुए और ,,,,
विक्रम मेरी आंखों में आंखे डालकर एक टक से मुझे देखे जा रहा था और मैं उसकी आंखों में,,,ऐसे ही देखते हुए विक्रम बोल पड़ा,,,
आप बहुत सुंदर हो दीदी,,, बिल्कुल अप्सरा की तरह ,,,, मै कई सालों से ये तुम्हे कहना चाह रहा था लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी,,,सच में तुम्हारे ये गुलाबी होठ कितने मुलायम हैं,,,लगता है अभी इनसे खून निकल जाएगा,,,
और ऐसा बोलकर विक्रम ने मेरे माथे को प्यार से चूम लिया जिससे मैं शर्मा गई और शर्म से अपनी आंखे नीची कर ली,,,आज इतने वर्षों में पहली बार विक्रम ने मेरी सुंदरता की प्रशंसा की थी,,,इसके पूर्व वह केवल एक छोटे भाई की तरह मेरा कहना मान लिया करता था,,, लेकिन आज उसने एक पुरुष की भांति मेरे साथ व्यवहार किया था और मुझे नारी होने का अहसास दिलाया था,,,आज के पूर्व वह केवल एक छोटे भाई के रूप में मेरे साथ यौन क्रीड़ा में भाग लिया करता था ,,,लेकिन आज वह एक भाई होने के अलावे एक मर्द के रूप में पेश आया था और आज पहली बार उसने स्वयं कदम आगे बढ़ाते हुए मेरे करीब आकर मेरा चुम्बन लिया था,,,अभी तक हम दोनों केवल काम भावना के वशीभूत होकर एक दूसरे के साथ काम क्रीड़ा किया करते थे,,,लेकिन अभी विक्रम द्वारा बोले गए शब्दो में वासना नहीं ,,बल्कि एक पुरुष का एक स्त्री के प्रति प्रेम नजर आ रहा था,,,जिससे मुझे अलग ही प्रेम वाली अनुभूति हो रही थी,,,अब विक्रम के साथ प्रेम की मेरी तीन भावनाएं थी,,,पहला तो जग जाहिर है बड़ी बहन का छोटे भाई के प्रति प्यार ,लगाव जो उसकी रक्षा भी करती है,,,,दूसरी भावना काम भावना थी जिसके वशीभूत हम दोनों एक दूसरे के यौनांगों के साथ खेला करते थे,,,,और आज एक तीसरी भावना ने भी जन्म ले लिया और वो है एक नर का एक मादा के प्रति शास्वत पवित्र प्रेम,,,जिसमे मादा हमें नर के प्रेम में वशीभूत हो जाती है और उसकी ही बन कर रह जाती है और आज यही प्रेम मै विक्रम के अंदर अपने लिए देख रही थी और मैं स्वयं विक्रम के प्रति ये प्रेम महसूस कर रही थी,,,अब सोचो मां,, जब कोई किसी से इतने तरह का प्रेम करेगा तो उसका प्रेम कितना ऊंचा होगा,,,
इसके बाद विक्रम मेरे आंखों में देखते हुए अपना हाथ मेरे घाघरे के ऊपर से मेरी बुर पर रख दिया,,,और मेरी बुर को घाघरे के ऊपर से ही सहलाने लगा,,, चूकि रात में हम पतले कपड़े का घाघरा पहन कर सोते हैं इसलिए कपड़े होने के बावजूद विक्रम का हाथ मै अपनी बुर पर अच्छे से महसूस कर रही थी,,,फिर उसने अपनी धोती हटा दी तो उसका मोटा लंड मेरी आंखों के सामने आ गया जो पूरी तरह से खड़ा था और इतना टाइट था की उसका सुपाड़ा बिना खोल हटाए ही बाहर लंड से बाहर झांक रहा था और मेरी तरफ ऐसे खड़ा था मानों मुझे प्यार से निहार रहा हो,,,फिर विक्रम ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लौड़े पर रख दिया जिससे मैं पूरी तरह गनगना गई,,,मैने उसे कामुक आवाज में कहा मत कर विक्रम,,,लेकिन मौका रहते हुए भी मैने अपना हाथ उसके लंड पर से नहीं हटाया,,,उसे छोड़ने का जी ही नहीं कर रहा था,,, मै स्वय उसके लिंग को आगे पीछे करने लगी और विक्रम मेरी बुर को सहलाए जा रहा था जिससे मैं पूरी तरह गर्म हो गई थी।
इसी बीच विक्रम ने ऐसा काम किया था जिसकी मै कल्पना भी नही कर सकती थी,,,उसने अपना एक हाथ मेरी चोली के ऊपर रख कर मेरे स्तन दबाने लगा,,,स्तन दबवाने का ये मेरा पहला अनुभव था,,,मेरी उत्तेजना बढ़ती हिब्जा रही थी,,लेकिन मै विक्रम को ऊपरी मन से ऐसा नहीं करने को बोल रहीं थी,,,फिर अचानक विक्रम ने मेरी चोली ऊपर कर दी जिसकी मैने कल्पना भी नहीं की थी की विक्रम ऐसा कर सकता है,,,मेरी चोली उठा देने से मेरे दोनो स्तन नंगे होकर विक्रम की आंखों के सामने आ गए,,,मै उत्तेजित तो थी ही और उसी उत्तेजना के कारण मेरे दोनो स्तन इस तरह पूरे टाइट थे कि ऐसा लग रहा था दोनो विक्रम को निहार रहे हों,,,,मेरे नंगे स्तन देखकर विक्रम की आहें निकल गई और उसने बोला,,,
बहुत ही सुंदर स्तन हैं तुम्हारे दीदी,,,कितने गोरे हैं ये,,मै तो सपने में भी नहीं सोच सकता था की आपके स्तन इतने सुंदर होंगे,,, बिल्कुल संगमरमर की तरह चमक रहे हैं,,,और इस गोरे स्तन पे ये हल्की सी हरी नसें इसकी खुबसूरती में चार चांद लगा रहे है,,,मै बहुत सौभाग्यशाली हूं की मुझे आपके इतने सुंदर स्तन के दर्शन हो गए,,,मै धन्य हो गया बहन ,,,, और आपके स्तन के ये हल्के भूरे रंग के स्तनाग्र अर्थात चुचूक मुझे कितने प्यार से देख रहे है ,,
और ऐसा कह कर विक्रम ने अपनी दो उंगलियों से मेरी चुचूक को पकड़ कर मसल दिया जिससे मेरी आह् निकल गई क्योंकि मेरे चुचूक को पहली बार किसी मर्द ने अपनी उंगलियों से मसला था,,,मेरा पूरा शरीर अकड़ गया और जोश में मैने अपनी कमर उठाकर बुर को विक्रम के दूसरे हाथ पर दबा दिया,, जिससे विक्रम का हाथ मैं अपनी बुर पर पूरी तरीके से महसूस करने लगी,,,और मै उत्तेजना वश बोल पड़ी,,,
और जोर से रगड़ों विक्रम मेरी योनि को,,
और उसके हाथ पे अपना बुर रगड़ने लगी,,,और मै विक्रम के लंड को भी खूब तेजी से दबा दबा कर सहला रही थी जिससे विक्रम की भी आहें निकल रही थी,,,
आज विक्रम भी पूरे मूड में था,,,वह कभी उंगलियों से मेरे चुचको को कुरेदता तो कभी अपने हाथ से मेरी चूची को दबा देता ,,,जिससे मैं अत्यंत उत्तेजित होती जा रही थी,,
फिर अचानक विक्रम ने अपना मुंह मेरे स्तनों पर रख दिया और उसको प्यार से चूमने के बाद एक स्तन को मुह में लेकर चूसने लगा जैसे बच्चे अपनी मां का दूध उसके स्तन से चूसकर पीते हैं,,विक्रम द्वारा मेरे स्तन चूसे जाने से मैं और उत्तेजित हो गई और बड़बड़ाने लगी क्युकी मेरी जिंदगी में पहली बार कोई मेरे स्तन चूस रहा था,,,
चूसो भाई चूसो ,,अपनी बहन के स्तनों के दूध को चूसकर खाली कर दो ,,, इसका जहर निकल दो मेरे भाई,,, दूसरे वाले स्तन को चूसो ना भाई,,, वो भी तुम्हारे प्यार को तरस रही है विक्रम और ऐसा कहते हुए मै दूसरे स्तन के स्तनग्र को अपनी उंगलियों से मसल रही थी,,,
मेरा आदेश पाकर मेरा प्यारा भाई मेरी दूसरी चुची को चूसने लगा,,,जब वह दूसरे स्तन को चूसता तो मै पहले स्तन के चुचूक को उंगलियों से मसलती,,,और मै अपनी कमर उठा कर बार बार अपनी बुर विक्रम की हथेलियों पर रगड़ती,,
उसी बीच विक्रम बीच में बोल पड़ा,,
और माते , बहन का घाघरा इतना पतला था की मै उसकी योनि को साफ महसूस कर सकता था,,,बल्कि मै तो उसकी झांटों को भी महसूस कर रहा था,,,
फिर नंदिनी बोलती है,,,
हम पूरी तरह यौन संबंधों का आनंद उठा रहे थे,,,आपके कक्ष में हम भाई बहन की आहे और सिसकारियां गूंज रही थीं,,,
मै उसके लौड़े को दबोच दबोच कर सहला रही थी तो विक्रम मेरी बुर को रगड़ रगड़ कर सहला रहा था और मेरी चूची चूसे जा रहा था,,,और संयोग देखो मां,,हम दोनो भाई बहन एक साथ ही झड़ गए और मेरे हाथ पर विक्रम का पूरा वीर्य गिर गया तो विक्रम के हाथ पर मेरी योनि से निकला पानी लग गया और मेरा घाघरा भी योनि के स्थान पर हल्का सा गिला हो गया,,,
फिर हम दोनो की कामाग्नि शांत हुई तो विक्रम ने मेरी आंखों में आंखे डाल कर देखा और मेरे माथे को प्यार से चूम लिया ,,ऐसा लगा कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका को प्यार से चूम रहा हो ,,,फिर उसने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और मेरी चूचियां उसकी छाती में धंस गई,,,मैने भी उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया और आंखे बंद कर उसके आलिंगन का आनंद उठाने लगी।
हालाकि जो होता है अच्छे के लिए होता है,,,अगर उस दिन हम दोनो भाई बहन नहीं झड़े होते तो पता नहीं हम दोनों क्या कर बैठते,,,
और इस तरह हमंदोनो भाई बहन एक दूसरे की बाहों में सो गए,,,,
उम्मीद है आप लोगो को अपडेट पसंद आएगा