• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest राजकुमार देव और रानी माँ रत्ना देवी

Raja maurya

Well-Known Member
5,082
10,608
173
अपडेट 13
नंदिनी ने फिर बात को आगे बढ़ाया और बताने लगी,,
फिर तो मां हमारे ऊपर तो मुसीबते ही आ गईं,, पिता जी का यों अचानक चले जाना और राजदरबार की राजनीति ने तो हमें परेशान ही कर दिया था। वो तो भला हो राजा माधव सिंह का ,,, की हमारी जान बची,,

सच कहा बेटा,,अगर राजा माधव सिंह समय पर नहीं आते तो हमे कहीं के नहीं रहते,,, वो तो उनके आने से राजदरबार में किसी की हिम्मत नही हुई की वे विक्रम को राजा घोषित किए जाने का विरोध कर सके और तो और ये राजा माधव सिंह की ही देन है कि तुम्हे उन्होंने राजा का मुख्य सलाहकार घोषित करवा दिया क्यों कि अभी विक्रम में इतनी परिपक्वता नहीं थी कि वह राज काज अकेले संभाल पाता और दरबारी पता नही इससे क्या क्या करवा बैठते,,,, राजमाता देवकी ने कहा
वो तो मैने इसीलिए विक्रम की शादी राजकुमारी रत्ना से तय कर दी है,,,आखिर हमे ऐसे भले आदमी की जरूरत हमेशा पड़ेगी,,, और उन्होंने तो विपरीत परिस्थितियों में हमारा साथ दिया,,,शायद वो नहीं होते तो हम मार दिए गए होते।
सच कहा मां, उनका कर्ज हम जिंदगी में कभी नहीं उतर पाएंगे,,,, लेकिन रत्ना तो मेरी सौतन बन कर ही आयेगी ना,,, नंदिनी ऐसा कह कर हस देती है,,,

चुप कर तू,,, बदमाश कहीं की,, रत्ना तुम्हारी सौतन कैसे होगी,,, तू विक्रम की धर्मपत्नी थोड़ी ही है,,,बहन है ,,,बहन बन कर ही रह,,, तुम दोनों के संबंध अवैध है और अवैध ही रहेंगे समझी,,, राजमाता देवकी ने समझाते हुए कहा और मुस्कुरा देती है,,,
लेकिन माते,, मैने तो बहन से विवाह कर ही लिया होता,,वो तो अच्छा हुआ की बहन ने मना कर दिया था,,,राजा विक्रम ने कहा और फिर बात आगे बढ़ाते हुए बोलते है,,,
माते , आपको तो याद ही होगा कि मेरे गद्दी संभालने के कुछ समय बाद मल्ल प्रदेश में सीमावर्ती राज्य से सीमा विवाद हुआ था जिससे निपटने के लिए मैं और नंदिनी बहन मल्ल प्रदेश गए थे। आप तो जानती ही हैं कि मल्ल प्रदेश हिमालय की तराई में स्थित है और बहुत ही रमणीक स्थल है और वहां हमारी राजकीय अतिथिशाला तो अत्यंत ही भव्य है जिसके सामने फूलों की बगिया है और उसके आगे हिमालय की पर्वत श्रृंखला है तथा अतिथिशाला के चारों ओर आम, अमरूद, सेव, संतरे के बगीचे है। मैने जिंदगी में पहली बार इतनी सुंदर जगह देखी थी। शायद दीदी ने भी पहली बार ही इतनी रमणीक जगह देखी थी। और हमारी विडंबना देखो राजमाता की हमारे वहां पहुंचते ही सीमा विवाद समाप्त हो गया क्यो कि पड़ोसी राज्य के राजा से सीमा पर हमारी पहली मुलाकात में ही उन्होंने अपनी गलती मान ली और पूर्व निर्धारित सीमा पर पीछे हट गए।
सीमा विवाद समाप्त होने के बाद हम दोनो अब काफी हल्का महसूस कर रहे थे और हम दोनो भाई बहन ने कुछ दिन वही राजकीय अतिथिशाला में आराम करने का निर्णय लिया।
दूसरे दिन सुबह तैयार होकर हम दोनों बगीचा घूमने निकले। सुबह सुबह बहुत ही मद मस्त हवा बह रही थी। हम दोनों घूमते घूमते बगीचे के काफी अंदर चले गए। आम तो अभी नही लगे थे, लेकिन अमरूद और सेव के फल लगे हुए थे। हम दोनो एक अमरूद के पेड़ के पास पहुंचे जिसपे बड़े ही सुन्दर अमरूद लगे हुए थे। दीदी ने उसे तोड़ने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन उसकी टहनियां इतनी पतली थी की उस पर चढ़ना मुस्किल था और फल इतनी ऊंचाई पर था की उसे खड़े खड़े तोड़ नहीं सकते थे। मैने बहन से कहा,,
इसे तोड़ना मुश्किल है बहन। ये पेड़ चढ़ने लायक नहीं है और इसे नीचे से तोड़ भी नहीं सकते।
तो एक काम हो सकता है विक्रम। यदि कोई उठा सके तो हममें से कोई वहां तक पहुंच जाएगा।
ठीक है बहन, मैं तुम्हारे कंधे पर बैठ जाता हूं और तुम मुझे उठा लेना।
अरे नहीं नहीं,,, मैं तुम्हे नहीं उठा पाऊंगी। मेरे तो कंधे ही टूट जायेंगे। तू एक काम कर भाई। तू मुझे कमर से पकड़ कर उठा ले और मै अमरूद तोड़ लूंगी।
नहीं नहीं, मैं तुम्हे उठा नहीं पाऊंगा बहन,,, तुझे उठाने के लिए तो दो दो लोग चाहिए ,,,,और ऐसा कहकर मैं दीदी को छेड़ते हुए हसने लगा।
अच्छा जी, तो मैं इतनी मोटी हो गई हूं क्या,,,जाओ तुम ही घूमो बाग में,,,मै तो चली आराम करने,,
हाहाहा, मै तो ऐसे ही मजाक कर रहा था मेरी प्यारी बहना, आओ मै तुम्हे उठता हूं,, और तुम अमरूद तोड़ लेना,,,
और ऐसा कहकर मैंने दीदी को सामने से कमर पर अपने हाथ लपेट कर जकड़ लिया और उन्हें ऊपर उठा लिया। ऊपर उठने से भी वह अमरूद तक पहुंच नही पा रही थी और अपने शरीर को और ऊपर की ओर खीच रही थी जिससे उसकी कमर और पेट मेरे मुंह पी रगड़ खा रही थी। लेकिन फिर भी वह वहां तक पहुंच नहीं पा रही थी। उसने कहा,,,
थोड़ा और ऊपर करो विक्रम ,,तभी मैं अमरूद तक पहुंच पाऊंगी,,
ऐसा कहने से मैने उसे थोड़ा और ऊपर किया,,जिससे उसका घाघरा मेरे मुंह के सामने आ गया और जैसे ही वह फल तोड़ने के लिए थोड़ा आगे हुई ,,मेरा चेहरा उसके घाघरे के ऊपर उसकी योनि से सट गया। यह मेरा पहला अनुभव था जब मैंने उसकी योनि पे अपना मुंह लगा हो। मुझे उसके घाघरे से उसकी योनि की मादक गंध आ रही थी जो मुझे मदहोश किए जा रही थी। मैने भी जोश में आकर अपना मूंह उसकी योनि में जोर से दबा दिया, लेकिन उसे अभी होश ही नहीं था और वह अभी अमरूद तोड़ने में ही व्यस्त थी। इधर मैं अपना मुंह उसके घाघरे में घुसा कर योनि पर रगड़ रहा था। तब तक उसने अमरूद तोड़ लिया था और तब उसे ध्यान आता है की उसकी योनि पे मेरा चेहरा सटा हुआ है तथा मै उसकी योनि पर अपना चेहरा रगड़ रहा हूं। दीदी भी गरम हो जाती है । उसे भी तो उसकी कामभावना तड़पा ही रही थी। उसे भी काफी समय से पुरुष प्रेम की , लिंग की तलाश थी ही ।
लेकिन कुछ देर बाद वह धीरे से कहती है,,
अब मुझे नीचे उतर दो विक्रम,,
नंदिनी के ऐसा कहने से मैने उसे धीरे धीरे नीचे उतारा । इस दौरान नीचे आते हुए उसका पेट और फिर उसके स्तन मेरे चेहरे से रगड़ खा रहे थे और उसके नीचे उतरते ही मैने उसे अपनी बाहों में दबोच कर ही रखा , तब दीदी ने कहा,,,
ये देख ,, अमरूद। खायेगा।
हां , ये तो बड़े अच्छे अमरूद है, । लेकिन अभी तो मुझे संतरे खाने है।
और ऐसा कह कर मैं उसके स्तन को देखने लगा जिससे दीदी शरमा गई। फिर उसने बोला,,,
अभी तू अमरूद ही खा।
तभी मैंने अचानक दीदी से पूछा,,,
बहन , तुम्हे कैसा लगा था उस रात।।।
मेरे ऐसा पूछने पर दीदी एकदम चुप हो गई और उसने अपनी आंखें नीची कर ली। वह बखूबी जान रही थी की मै किस रात की बात कर रहा हूं, लेकिन वह कुछ नही बोलती है और ऐसे ही अपनी आंखे नीची किए अपने पैर के अंगूठे से मिट्टी कुरेद रही होती है। वह सोच भी नहीं सकती थी की मै इतनी पुरानी बात का जिक्र आज अचानक उसके सामने कर दूंगा।
उसके चुप रहने पर मैं फिर बोलता हूं,,,
दीदी , मुझे जो चीज चाहिए वो तुम्हारे पास है और तुम्हे जो चीज़ चाहिए वो मेरे पास है। मै जानता हूं तुम भी बहुत तड़पती हो पुरुष संसर्ग के लिए,,,आओ ना हम दोनो एक दूसरे की प्यास बुझायें।
इस पर दीदी अब चुप्पी तोड़ती है और कहती हैं,,,
विक्रम, याद है मुझे उस रात की बात। लेकिन्नस समय हम बच्चे थे, नादान थे। इसलिए गलती हो गई। ठीक है, मुझे भी अच्छा लगा था। लेकिन इसका मतलब ये तो नही की वही गलती फिर दोहराई जाए। तुम मेरे अनुज हो और मैं तुम्हे एक छोटे भाई की तरह प्यार करती हूं ।और तो और मै किसी की अमानत हूं,, उसकी जिससे मेरी शादी होगी। मै उसके लिए खुद को बचा कर रखूंगी।

ठीक है दीदी। लेकिन आओ ना, हम दोनो जो करेंगे छुप कर करेंगे और किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा। हम दोनों केवल एक दूसरे के यौनांगों को देखेंगे, लेकिन उन्हें छूएंगे नही। दुनिया वालों के लिए हम भाई बहन ही रहेंगे, लेकिन अकेले हम दोनो मजे करेंगे, नही तो हम दोनो यौन सुख के लिए तरसते रहेंगे। माना की तुम किसी और की हो जाओगी,,, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं की तुम भविष्य को लेकर वर्तमान में जीना छोड़ दोगी जब की तुम अभी अपनी कामाग्नी को शांत कर सकती हो।
राजा विक्रम की बातों से नंदिनी गर्म तो हो जाती है, लेकिन द्वंद में जी रही होती है की वह क्या करे। और शायद विक्रम ने यह बात गलत समय में छेड़ दिया था। वो कहते हैं ना की नारी जब बिस्तर पर गरम होती है तब वह सारी मान मर्यादा भूल जाती है। नंदिनी ने भी महावारी शुरू होने के बाद जितनी भी काम क्रीड़ा की थी, वह उसने बिस्तर में गरम होने के बाद कामेच्छा की आग भड़कने पर ही किया था।
नहीं विक्रम नही,,, ये गलत होगा। तुम भूल गए की अब हम बड़े हो गए हैं, हम दोनों अब बच्चे नहीं रहे और तुम तो मेरे प्यारे से छोटे भाई हो। तुममे तो मेरी जान बसती है मेरे भाई। हमारे बीच जो भी हुआ है उसे भुल जाओ।
ऐसा कह कर नंदिनी राजा विक्रम का हाथ पकड़ कर मुड़ती है और बाग में पहाड़ों की तरफ चल देती है। साथ में राजा विक्रम भी पीछे पीछे चल देते है। चलते चलते वो दोनो काफी आगे निकल जाते हैं और वे पहाड़ी के नजदीक पहुंच जाते हैं तो उन्हें झरने की आवाज सुनाई देती है। नंदिनी कहती है...
इधर किसी झरने की आवाज आ रही है। लगता है इधर कोई झरना है।
हां बहन, आवाज तो आ रही है। अतिथिशाला के संतरी ने बताया था कि बाग के पीछे एक बहुत बड़ा झरना है। शायद यह वही झरना हो।

दोनो भाई बहन उस आवाज की तरफ बढ़ते हैं और जब वहां पहुंचते हैं तो उस रमणीक जगह की खूबसूरती देख कर वे मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। उनके सामने पहाड़ की ऊंचाई से एक झरना गिरता दिख रहा था जिसके नीचे बिल्कुल साफ पानिबका कुंड बन गया था। उसे देख कर राजा विक्रमं का मन कुंड में नहाने का करने लगता है। कुंड का पानी इतना साफ था की कुंड की तलहटी भी दिख रही थी। विक्रम बोलता है....

मुझे नहाना है,,, यही नहा लेता हूं। आओ ना दीदी तुम भी नहा लो।
नहीं बिक्रम, मै नहीं नहा सकती। कपड़े नहीं लाई हूं। और तू भी मत नहा, तेरे कपड़े गीले हो जायेंगे , तो तू पहनेगा क्या ,,, तेरे कपड़े भी नहीं है यहां।
लेकिन दीदी मै तो नहाऊंगा और यहां कोई और है ही नही । मै तो कपड़े निकाल कर बाहर ही रख दूंगा,,,,,आओ तुम भी आओ ना।

बड़ा बेशर्म है तू , मै तो नहीं नहाती।
अच्छा बहन , ठीक है,, तू चेहरा उधर कर,, मै तब तक कपड़े निकाल लूं।

विक्रम के ऐसा कहने पर नंदिनी चेहरा घुमा लेती है और राजा विक्रम अपने सारे कपड़े निकाल कर कुंड के किनारे रख कर कुंड में कूद जाता है और नहाने लगता है। नंदिनी जब अपना चेहरा दुबारा घूमती है तो वह देखती रह जाती है। राजा विक्रम कुंड में पूरे नंगे नहाते दिख रहे थे क्यों कि कुंड का पानी बिलकुल साफ था और विक्रम नहाते हुए नंगे कुंड में दिख रहे थे। विक्रम को नहाते देख नंदिनी का भी नहाने का मन करने लगता है। वह कहती है...
मै भी नहा लेती हूं भाई। लेकिन मै बगल के कुंड में नहाऊंगी। तुम उधर मत आना क्यूंकि मैं भी कपड़े निकाल कर किनारे रख कर नहाने जाऊंगी ताकि मैं नहा कर फिर कपड़े पहन सकूं। राजा विक्रम अपनी बहन की ये बात सुन कर ही गरम हो जाते हैं कि वो भी नंगे ही कुंड में नहाने जा रही है । लेकिन वो कुछ नही करते बल्कि कुंड में शीतल जल में नहाने का आनंद के रहे थे जो मजा उन्हें आज तक नहीं मिला था ।
तभी उन्हें नंदिनी के चिल्लाने की आवाज आती है तो वह एकदम से डर जाते हैं और उसी स्थिति में नग्नावस्था में ही कुंड के दूसरी तरफ भागते हैं जहां से आवाज आ रही थी। वहां जाकर देखते है की नंदिनी कुंड में डूब रही थी। वो फटाफट कुंड में कूद जाते है जिसमे नंदिनी नंगे ही थी। वह तैरते हुए जाते हैं और नंदिनी को बाल से पकड़ कर खींचते हुए किनारों की ओर ले जाते हैं। और फिर किनारों पर उसे अपनी बाहों में उठाकर सुखी जमीन पर ले जाते हैं।
नंदिनी को ले जाते समय दोनो भाई बहन बिल्कुल नग्न रहते हैं। जमीन पर लेटा कर वे नंदिनी के हाथ और पैर को रगड़ते हैं जिससे नंदिनी आंखे खोलती है जिससे राजा विक्रम की जान में जान आती है। नंदिनी भी आंखे खोल कर अपने छोटे भाई को देखती है। और कहती है...
विक्रम, बहुत धन्यवाद भाई. मै तेरा एहसान जिंदगी भर नही भूल सकती। तुमने जान पर खेल कर मेरी जान बचाई है। अगर तुम आज यहां नही होते तो पता नहीं आज क्या होता।
दीदी , मेरा तो ये फर्ज था आपको बचाना । आपने धन्यवाद बोलकर मुझे शर्मिंदा कर दिया। मैने आपको आपकी रक्षा का वचन दिया है और आपको बचाना मेरा फर्ज है। लेकिन आप डूबने कैसे लगी ,,,आप तो अच्छी तैराक भी हैं।
क्या कहूं भाई, ये दूसरा कुंड बहुत खतरनाक है उसमे अंदर एक शिला ऊपर उठी हुई है और उसम इतनी फिसलन है कि मेरा पैर पड़ते ही मैं फिसल गई और मेरा संतुलन बिगड़ गया जिसके कारण मैं कुंड के अंदर चलती चली गई। वो तो भला हुआ की तुम समय पर आ गए , नहीं तो मैं मर ही गई होती। ये कहते कहते नंदिनी थोड़ा उठ कर बैठती है।
नंदिनी के मरने की बात बोलने पर राजा विक्रम उसके होठों पर अपनी उंगली रख देते हैं और कहते है...
ऐसा ना कहें बहन,,, आपको कुछ हुआ तो मै जी नहीं पाऊंगा और फफक कर रो पड़ते है....
अरे मेरा भाई मुझे इतना प्यार करता है,, ये तो मै जानती ही नहीं थी,,,चुप हो जा मेरे प्यारे भाई चुप हो जा
और ऐसा कह कर वो भी रोने लगती है,,, रोते रोते उन्हें ख्याल नही रहता है और वे एक दूसरे से लिपट जाते हैं । दोनो बिल्कुल नंगे एक दूसरे की बाहों मे सिसक रहे थे। विक्रम थोड़ा सा अलग होते हैं और नंदिनी की आंखों में देखते हुए,,
कसम खाओ दीदी,,,की आज के बाद कभी भी आप मरने की बात नहीं करेंगी।
नहीं करूंगी मरने की बात,,अब खुश। लेकिन मै तो जानती ही नहीं थी कि मेरा भाई मुझे इतना प्यार करता है,,,
और ये कहते हुए नंदिनी राजा विक्रम के गालों पर एक चुम्बन जड़ देती है। विक्रम भी नंदिनी को चुंबन देते है तो नंदिनी उसके गालों पर चुम्बन की झड़ी लगा देती है। फिर अचानक नंदिनी विक्रम के होठों पे अपने होठ रख कर चूमने लगती है । राजा विक्रम भी उसका साथ देते हुए उसके होठों को अपने होठों में दबाकर चूसने लगते हैं।दोनो भाई बहन इसी आनंद में पंद्रह मिनट डूबे रहते हैं। फिर नंदिनी चुम्बन छोड़ विक्रम की आंखों में देखते हुए कहती है,,,,
उस रात भी तो हमने एक दूसरे के होंठ चूसे थे भाई,,,
और ऐसा। कह कर हल्का मुस्कुरा देती है। और फिर कहती है,,
चलो वापस देखो,, दोपहर गई है,,पूरी सेना अब हमें खोजती हुई आ रही होगी।।।
नंदिनी के ऐसा कहने पर विराम।को भी होश आता है और दोनो कपड़े पहन कर वापस अतिथिशाला की ओर चल देते है।
वहां पूरी सेना में खलबली मची हुई थी कि राजा और मुख्य सलाहकार कहा चले गए। इन्हे देख कर सेना ने भी राहत की सांस ली।
दोपहर हो चली थी तो सभी ने खाना खाया और आराम करने लगे । शाम में फिर इनकी एक राजकीय बैठक थी जिसमें काफी समय लग गया । फिर रात में खाना खाकर ये दोनो बरामदे में बैठे थे । सुहानी चांदनी रात थी और ये ठंडी ठंडी हवा बह रही थी। इस पूरे अतिथिशाला ने मे केवल राजा विक्रम और नंदिनी ही थे और दूर दूर कोई भी नही था। दोनो हाथों में हाथ लिए बैठे रहते हैं। फिर नंदिनी विक्रम के होठों पर चुम्बन देकर अपने कक्ष में चली जाती है और राजा विक्रम अपने कक्ष में। लेकिन दोनो की आंखों में नींद नहीं थी। थोड़ी देर बाद राजा विक्रम नंदिनी कक्ष में जाते हैं और दरवाजा को हल्का धक्का देते हैं जिससे दरवाजा तुरंत खुल जाता है क्यों कि ये अंदर से बंद ही नहीं था। दरवाजा खुलने से नंदिनी पूछती है,,,

कौन है ?
मै हूं दीदी।।।
क्या हुआ,,,

मुझे डर लग रहा है बहन ,,, मै कभी अकेले इतने वीराने में नहीं रहा।।। मै सो जाऊं आपके साथ।

ओ हो ,, मेरे छोटे बाबू को डर लग रहा है,,, आ जा ,,में साथ में सो जा।।।
विक्रम शैय्या पर जाते ही वह नंदिनी से लिपट जाते है और राजा विक्रम अपनी प्यारी बहन के होठ चूसने लगते हैं जिससे दोनो अत्यंत उत्तेजित हो जाते हैं। फिर विक्रम नंदिनी की चोली उठाकर उसके स्तन चूसने लगते हैं जिससे वह पूरी उत्तेजित हो जाती है और उत्तेजनावश विक्रम का हाथ पकड़ कर अपने बुर पर रख कर सब देती है और राजा विक्रम अपनी बहन की योनि को घाघरे के ऊपर से ही सहलाने लगते हैं।राजा विक्रम अपने मुंह से स्तन निकाल कर नंदिनी की आंखों में देखते हुए कहते हैं,,,
उस रात ये भी हुआ था ना,,
इससे नंदिनी शर्मा जाती है। फिर विक्रमने वो किया जो नंदिनी ने अपने में भी नहीं सोचा था। उसने अचानक ही नंदिनी का घाघरा की डोरी खोलकर उसे नीचे कर दिया जिसको निकलने में नंदिनी ने अपनी चूतड़ उठा ली जिससे उसका घाघरा सरसरा कर निकल गया , विक्रम भी अपनी धोती खोलकर पूरा नंगा हो गया। अब नंदिनी और विक्रम दोनो नंगे थे और नंदिनी का हाथ पकड़ कर विक्रम अपने मोटे लौड़े पर रख देता है जो नंदिनी खुद चाह रही थीं और वह अपने भाई का लिंग अपने हाथ में लेकर खूब दबा दबा कर आगे पीछे करने लगती है। इधर विक्रम भी अपनी बहन की बुर सहलाए जा रहा था और उसके स्तन भी चूसे जा रहा था। दोनो पूरे उत्तेजित हो गए थे।
अचानक विक्रम में अपना मुंह नंदिनी की योनि पर लगा कर सूंघा और कहा।
बड़ी मादक गंध है तुम्हारी योनि की बहन ,,,
योनि की गंध अच्छी लगी मेरे भाई को,,,तो सूंघ ले इसे,,, इसकी रक्षा कर मेरे भाई
फिर विक्रम ने आव देखा न ताव और लगे नंदिनी की बुर चाटने और उसकी बुर फैला कर उसने अंदर तक जीभ डाल डाल कर चोदने लगे ।
नंदिनी आहें भरने लगी
और कर मेरे भाई , मेरे बालम और कर,,मै तेरी प्यासी हूं।फिर नंदिनी आहें भरते हुए विक्रम के लंड को अपनी योनि से सटाने लगी जिससे विक्रम की आहें निकल गईं।
तब विक्रम फटा फट नंदिनी के ऊपर आ गया और बोला...
दीदी,, मै तुम्हारी योनि में अपने लंड को डालना चाहता हूं।
तो डाल दे ना भाई। मना किसने किया है भाई। और तू अगर मुझसे यौन संबंध बना लेगा तो किसी को पता भी नहीं चलेगा। और ऐसा कह कर मुस्कुरा देती है।

इतना सुनना था कि राजा विक्रम नंदिनी की योनि में अपना लंड डालने लगते हैं।
तभी बाहर बिजली चमकती है और तेज बारिश होने लगती है। ऐसा लगता है मानो प्रकृति भी ऐसा चाह रही घी।
नंदिनी की योनि में विक्रम क्या मोटा लंड नही जा रहा था तो नंदिनी थोड़ा घी अपने भाई के लंड पर लगा कर बोलती है,,
अब करो विक्रम, आज तो हम भाई बहन की सुहागरात है और तू ही मेरा कौमार्य भंग करेगा। विक्रम मै तुमसे बहुत प्यार करती हूं बहुत प्यार।
नंदिनी के ऐसा कहने पर राजा विक्रम पूरे जोश में आ जाते है और अपना लंड झटके से नंदिनी की बुर में डाल देते है जिससे नंदिनी की सिसकी निकल जाती है लेकिन थोड़ी देर बाद वह सामान्य होती है तो।
...
और करो विक्रम और करो। मेरी बुर फाड़ दो विक्रम। विक्रम भी
हां दीदी आ,,,मै तुम्हे वैश्य की तरह चोदुगा ,, yelo मेरे लौड़ा ये लो
और फिर दोनो करीब आधे घंटे की चुदिंके बाद झड़ जाते हैं।।।।
चुदाई के बाद उस जगह खून के धब्बे दिखते है, जिन्हे देख नंदिनी कहती है।।
देख तूने आज मेरा कौमार्य भंग कर दिया



तो be continued
Mast update Bhai
 

Ravi2019

Member
220
1,423
124
आखिरकार भाई बहन का प्यार सुदृढ़ हो ही गया। लगता नही है कि नंदिनी किसी और से शादी करेगी भविष्य में। राजमाता की कामाग्नि को संतुष्ट करवा दो Ravi2019 भाई ।
Superb apdate
Super updates
बहुत ही रमणीय वर्णन और चित्रण
Mast update Bhai
Thank you all
 

sunoanuj

Well-Known Member
3,377
9,007
159
Bahut he kamuk khani hai … sajiv varnan jaise chalchitr chal raha ho …
 

Ajay

Well-Known Member
6,895
33,149
218
अपडेट 13
नंदिनी ने फिर बात को आगे बढ़ाया और बताने लगी,,
फिर तो मां हमारे ऊपर तो मुसीबते ही आ गईं,, पिता जी का यों अचानक चले जाना और राजदरबार की राजनीति ने तो हमें परेशान ही कर दिया था। वो तो भला हो राजा माधव सिंह का ,,, की हमारी जान बची,,

सच कहा बेटा,,अगर राजा माधव सिंह समय पर नहीं आते तो हमे कहीं के नहीं रहते,,, वो तो उनके आने से राजदरबार में किसी की हिम्मत नही हुई की वे विक्रम को राजा घोषित किए जाने का विरोध कर सके और तो और ये राजा माधव सिंह की ही देन है कि तुम्हे उन्होंने राजा का मुख्य सलाहकार घोषित करवा दिया क्यों कि अभी विक्रम में इतनी परिपक्वता नहीं थी कि वह राज काज अकेले संभाल पाता और दरबारी पता नही इससे क्या क्या करवा बैठते,,,, राजमाता देवकी ने कहा
वो तो मैने इसीलिए विक्रम की शादी राजकुमारी रत्ना से तय कर दी है,,,आखिर हमे ऐसे भले आदमी की जरूरत हमेशा पड़ेगी,,, और उन्होंने तो विपरीत परिस्थितियों में हमारा साथ दिया,,,शायद वो नहीं होते तो हम मार दिए गए होते।
सच कहा मां, उनका कर्ज हम जिंदगी में कभी नहीं उतर पाएंगे,,,, लेकिन रत्ना तो मेरी सौतन बन कर ही आयेगी ना,,, नंदिनी ऐसा कह कर हस देती है,,,

चुप कर तू,,, बदमाश कहीं की,, रत्ना तुम्हारी सौतन कैसे होगी,,, तू विक्रम की धर्मपत्नी थोड़ी ही है,,,बहन है ,,,बहन बन कर ही रह,,, तुम दोनों के संबंध अवैध है और अवैध ही रहेंगे समझी,,, राजमाता देवकी ने समझाते हुए कहा और मुस्कुरा देती है,,,
लेकिन माते,, मैने तो बहन से विवाह कर ही लिया होता,,वो तो अच्छा हुआ की बहन ने मना कर दिया था,,,राजा विक्रम ने कहा और फिर बात आगे बढ़ाते हुए बोलते है,,,
माते , आपको तो याद ही होगा कि मेरे गद्दी संभालने के कुछ समय बाद मल्ल प्रदेश में सीमावर्ती राज्य से सीमा विवाद हुआ था जिससे निपटने के लिए मैं और नंदिनी बहन मल्ल प्रदेश गए थे। आप तो जानती ही हैं कि मल्ल प्रदेश हिमालय की तराई में स्थित है और बहुत ही रमणीक स्थल है और वहां हमारी राजकीय अतिथिशाला तो अत्यंत ही भव्य है जिसके सामने फूलों की बगिया है और उसके आगे हिमालय की पर्वत श्रृंखला है तथा अतिथिशाला के चारों ओर आम, अमरूद, सेव, संतरे के बगीचे है। मैने जिंदगी में पहली बार इतनी सुंदर जगह देखी थी। शायद दीदी ने भी पहली बार ही इतनी रमणीक जगह देखी थी। और हमारी विडंबना देखो राजमाता की हमारे वहां पहुंचते ही सीमा विवाद समाप्त हो गया क्यो कि पड़ोसी राज्य के राजा से सीमा पर हमारी पहली मुलाकात में ही उन्होंने अपनी गलती मान ली और पूर्व निर्धारित सीमा पर पीछे हट गए।
सीमा विवाद समाप्त होने के बाद हम दोनो अब काफी हल्का महसूस कर रहे थे और हम दोनो भाई बहन ने कुछ दिन वही राजकीय अतिथिशाला में आराम करने का निर्णय लिया।
दूसरे दिन सुबह तैयार होकर हम दोनों बगीचा घूमने निकले। सुबह सुबह बहुत ही मद मस्त हवा बह रही थी। हम दोनों घूमते घूमते बगीचे के काफी अंदर चले गए। आम तो अभी नही लगे थे, लेकिन अमरूद और सेव के फल लगे हुए थे। हम दोनो एक अमरूद के पेड़ के पास पहुंचे जिसपे बड़े ही सुन्दर अमरूद लगे हुए थे। दीदी ने उसे तोड़ने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन उसकी टहनियां इतनी पतली थी की उस पर चढ़ना मुस्किल था और फल इतनी ऊंचाई पर था की उसे खड़े खड़े तोड़ नहीं सकते थे। मैने बहन से कहा,,
इसे तोड़ना मुश्किल है बहन। ये पेड़ चढ़ने लायक नहीं है और इसे नीचे से तोड़ भी नहीं सकते।
तो एक काम हो सकता है विक्रम। यदि कोई उठा सके तो हममें से कोई वहां तक पहुंच जाएगा।
ठीक है बहन, मैं तुम्हारे कंधे पर बैठ जाता हूं और तुम मुझे उठा लेना।
अरे नहीं नहीं,,, मैं तुम्हे नहीं उठा पाऊंगी। मेरे तो कंधे ही टूट जायेंगे। तू एक काम कर भाई। तू मुझे कमर से पकड़ कर उठा ले और मै अमरूद तोड़ लूंगी।
नहीं नहीं, मैं तुम्हे उठा नहीं पाऊंगा बहन,,, तुझे उठाने के लिए तो दो दो लोग चाहिए ,,,,और ऐसा कहकर मैं दीदी को छेड़ते हुए हसने लगा।
अच्छा जी, तो मैं इतनी मोटी हो गई हूं क्या,,,जाओ तुम ही घूमो बाग में,,,मै तो चली आराम करने,,
हाहाहा, मै तो ऐसे ही मजाक कर रहा था मेरी प्यारी बहना, आओ मै तुम्हे उठता हूं,, और तुम अमरूद तोड़ लेना,,,
और ऐसा कहकर मैंने दीदी को सामने से कमर पर अपने हाथ लपेट कर जकड़ लिया और उन्हें ऊपर उठा लिया। ऊपर उठने से भी वह अमरूद तक पहुंच नही पा रही थी और अपने शरीर को और ऊपर की ओर खीच रही थी जिससे उसकी कमर और पेट मेरे मुंह पी रगड़ खा रही थी। लेकिन फिर भी वह वहां तक पहुंच नहीं पा रही थी। उसने कहा,,,
थोड़ा और ऊपर करो विक्रम ,,तभी मैं अमरूद तक पहुंच पाऊंगी,,
ऐसा कहने से मैने उसे थोड़ा और ऊपर किया,,जिससे उसका घाघरा मेरे मुंह के सामने आ गया और जैसे ही वह फल तोड़ने के लिए थोड़ा आगे हुई ,,मेरा चेहरा उसके घाघरे के ऊपर उसकी योनि से सट गया। यह मेरा पहला अनुभव था जब मैंने उसकी योनि पे अपना मुंह लगा हो। मुझे उसके घाघरे से उसकी योनि की मादक गंध आ रही थी जो मुझे मदहोश किए जा रही थी। मैने भी जोश में आकर अपना मूंह उसकी योनि में जोर से दबा दिया, लेकिन उसे अभी होश ही नहीं था और वह अभी अमरूद तोड़ने में ही व्यस्त थी। इधर मैं अपना मुंह उसके घाघरे में घुसा कर योनि पर रगड़ रहा था। तब तक उसने अमरूद तोड़ लिया था और तब उसे ध्यान आता है की उसकी योनि पे मेरा चेहरा सटा हुआ है तथा मै उसकी योनि पर अपना चेहरा रगड़ रहा हूं। दीदी भी गरम हो जाती है । उसे भी तो उसकी कामभावना तड़पा ही रही थी। उसे भी काफी समय से पुरुष प्रेम की , लिंग की तलाश थी ही ।
लेकिन कुछ देर बाद वह धीरे से कहती है,,
अब मुझे नीचे उतर दो विक्रम,,
नंदिनी के ऐसा कहने से मैने उसे धीरे धीरे नीचे उतारा । इस दौरान नीचे आते हुए उसका पेट और फिर उसके स्तन मेरे चेहरे से रगड़ खा रहे थे और उसके नीचे उतरते ही मैने उसे अपनी बाहों में दबोच कर ही रखा , तब दीदी ने कहा,,,
ये देख ,, अमरूद। खायेगा।
हां , ये तो बड़े अच्छे अमरूद है, । लेकिन अभी तो मुझे संतरे खाने है।
और ऐसा कह कर मैं उसके स्तन को देखने लगा जिससे दीदी शरमा गई। फिर उसने बोला,,,
अभी तू अमरूद ही खा।
तभी मैंने अचानक दीदी से पूछा,,,
बहन , तुम्हे कैसा लगा था उस रात।।।
मेरे ऐसा पूछने पर दीदी एकदम चुप हो गई और उसने अपनी आंखें नीची कर ली। वह बखूबी जान रही थी की मै किस रात की बात कर रहा हूं, लेकिन वह कुछ नही बोलती है और ऐसे ही अपनी आंखे नीची किए अपने पैर के अंगूठे से मिट्टी कुरेद रही होती है। वह सोच भी नहीं सकती थी की मै इतनी पुरानी बात का जिक्र आज अचानक उसके सामने कर दूंगा।
उसके चुप रहने पर मैं फिर बोलता हूं,,,
दीदी , मुझे जो चीज चाहिए वो तुम्हारे पास है और तुम्हे जो चीज़ चाहिए वो मेरे पास है। मै जानता हूं तुम भी बहुत तड़पती हो पुरुष संसर्ग के लिए,,,आओ ना हम दोनो एक दूसरे की प्यास बुझायें।
इस पर दीदी अब चुप्पी तोड़ती है और कहती हैं,,,
विक्रम, याद है मुझे उस रात की बात। लेकिन्नस समय हम बच्चे थे, नादान थे। इसलिए गलती हो गई। ठीक है, मुझे भी अच्छा लगा था। लेकिन इसका मतलब ये तो नही की वही गलती फिर दोहराई जाए। तुम मेरे अनुज हो और मैं तुम्हे एक छोटे भाई की तरह प्यार करती हूं ।और तो और मै किसी की अमानत हूं,, उसकी जिससे मेरी शादी होगी। मै उसके लिए खुद को बचा कर रखूंगी।

ठीक है दीदी। लेकिन आओ ना, हम दोनो जो करेंगे छुप कर करेंगे और किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा। हम दोनों केवल एक दूसरे के यौनांगों को देखेंगे, लेकिन उन्हें छूएंगे नही। दुनिया वालों के लिए हम भाई बहन ही रहेंगे, लेकिन अकेले हम दोनो मजे करेंगे, नही तो हम दोनो यौन सुख के लिए तरसते रहेंगे। माना की तुम किसी और की हो जाओगी,,, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं की तुम भविष्य को लेकर वर्तमान में जीना छोड़ दोगी जब की तुम अभी अपनी कामाग्नी को शांत कर सकती हो।
राजा विक्रम की बातों से नंदिनी गर्म तो हो जाती है, लेकिन द्वंद में जी रही होती है की वह क्या करे। और शायद विक्रम ने यह बात गलत समय में छेड़ दिया था। वो कहते हैं ना की नारी जब बिस्तर पर गरम होती है तब वह सारी मान मर्यादा भूल जाती है। नंदिनी ने भी महावारी शुरू होने के बाद जितनी भी काम क्रीड़ा की थी, वह उसने बिस्तर में गरम होने के बाद कामेच्छा की आग भड़कने पर ही किया था।
नहीं विक्रम नही,,, ये गलत होगा। तुम भूल गए की अब हम बड़े हो गए हैं, हम दोनों अब बच्चे नहीं रहे और तुम तो मेरे प्यारे से छोटे भाई हो। तुममे तो मेरी जान बसती है मेरे भाई। हमारे बीच जो भी हुआ है उसे भुल जाओ।
ऐसा कह कर नंदिनी राजा विक्रम का हाथ पकड़ कर मुड़ती है और बाग में पहाड़ों की तरफ चल देती है। साथ में राजा विक्रम भी पीछे पीछे चल देते है। चलते चलते वो दोनो काफी आगे निकल जाते हैं और वे पहाड़ी के नजदीक पहुंच जाते हैं तो उन्हें झरने की आवाज सुनाई देती है। नंदिनी कहती है...
इधर किसी झरने की आवाज आ रही है। लगता है इधर कोई झरना है।
हां बहन, आवाज तो आ रही है। अतिथिशाला के संतरी ने बताया था कि बाग के पीछे एक बहुत बड़ा झरना है। शायद यह वही झरना हो।

दोनो भाई बहन उस आवाज की तरफ बढ़ते हैं और जब वहां पहुंचते हैं तो उस रमणीक जगह की खूबसूरती देख कर वे मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। उनके सामने पहाड़ की ऊंचाई से एक झरना गिरता दिख रहा था जिसके नीचे बिल्कुल साफ पानिबका कुंड बन गया था। उसे देख कर राजा विक्रमं का मन कुंड में नहाने का करने लगता है। कुंड का पानी इतना साफ था की कुंड की तलहटी भी दिख रही थी। विक्रम बोलता है....

मुझे नहाना है,,, यही नहा लेता हूं। आओ ना दीदी तुम भी नहा लो।
नहीं बिक्रम, मै नहीं नहा सकती। कपड़े नहीं लाई हूं। और तू भी मत नहा, तेरे कपड़े गीले हो जायेंगे , तो तू पहनेगा क्या ,,, तेरे कपड़े भी नहीं है यहां।
लेकिन दीदी मै तो नहाऊंगा और यहां कोई और है ही नही । मै तो कपड़े निकाल कर बाहर ही रख दूंगा,,,,,आओ तुम भी आओ ना।

बड़ा बेशर्म है तू , मै तो नहीं नहाती।
अच्छा बहन , ठीक है,, तू चेहरा उधर कर,, मै तब तक कपड़े निकाल लूं।

विक्रम के ऐसा कहने पर नंदिनी चेहरा घुमा लेती है और राजा विक्रम अपने सारे कपड़े निकाल कर कुंड के किनारे रख कर कुंड में कूद जाता है और नहाने लगता है। नंदिनी जब अपना चेहरा दुबारा घूमती है तो वह देखती रह जाती है। राजा विक्रम कुंड में पूरे नंगे नहाते दिख रहे थे क्यों कि कुंड का पानी बिलकुल साफ था और विक्रम नहाते हुए नंगे कुंड में दिख रहे थे। विक्रम को नहाते देख नंदिनी का भी नहाने का मन करने लगता है। वह कहती है...
मै भी नहा लेती हूं भाई। लेकिन मै बगल के कुंड में नहाऊंगी। तुम उधर मत आना क्यूंकि मैं भी कपड़े निकाल कर किनारे रख कर नहाने जाऊंगी ताकि मैं नहा कर फिर कपड़े पहन सकूं। राजा विक्रम अपनी बहन की ये बात सुन कर ही गरम हो जाते हैं कि वो भी नंगे ही कुंड में नहाने जा रही है । लेकिन वो कुछ नही करते बल्कि कुंड में शीतल जल में नहाने का आनंद के रहे थे जो मजा उन्हें आज तक नहीं मिला था ।
तभी उन्हें नंदिनी के चिल्लाने की आवाज आती है तो वह एकदम से डर जाते हैं और उसी स्थिति में नग्नावस्था में ही कुंड के दूसरी तरफ भागते हैं जहां से आवाज आ रही थी। वहां जाकर देखते है की नंदिनी कुंड में डूब रही थी। वो फटाफट कुंड में कूद जाते है जिसमे नंदिनी नंगे ही थी। वह तैरते हुए जाते हैं और नंदिनी को बाल से पकड़ कर खींचते हुए किनारों की ओर ले जाते हैं। और फिर किनारों पर उसे अपनी बाहों में उठाकर सुखी जमीन पर ले जाते हैं।
नंदिनी को ले जाते समय दोनो भाई बहन बिल्कुल नग्न रहते हैं। जमीन पर लेटा कर वे नंदिनी के हाथ और पैर को रगड़ते हैं जिससे नंदिनी आंखे खोलती है जिससे राजा विक्रम की जान में जान आती है। नंदिनी भी आंखे खोल कर अपने छोटे भाई को देखती है। और कहती है...
विक्रम, बहुत धन्यवाद भाई. मै तेरा एहसान जिंदगी भर नही भूल सकती। तुमने जान पर खेल कर मेरी जान बचाई है। अगर तुम आज यहां नही होते तो पता नहीं आज क्या होता।
दीदी , मेरा तो ये फर्ज था आपको बचाना । आपने धन्यवाद बोलकर मुझे शर्मिंदा कर दिया। मैने आपको आपकी रक्षा का वचन दिया है और आपको बचाना मेरा फर्ज है। लेकिन आप डूबने कैसे लगी ,,,आप तो अच्छी तैराक भी हैं।
क्या कहूं भाई, ये दूसरा कुंड बहुत खतरनाक है उसमे अंदर एक शिला ऊपर उठी हुई है और उसम इतनी फिसलन है कि मेरा पैर पड़ते ही मैं फिसल गई और मेरा संतुलन बिगड़ गया जिसके कारण मैं कुंड के अंदर चलती चली गई। वो तो भला हुआ की तुम समय पर आ गए , नहीं तो मैं मर ही गई होती। ये कहते कहते नंदिनी थोड़ा उठ कर बैठती है।
नंदिनी के मरने की बात बोलने पर राजा विक्रम उसके होठों पर अपनी उंगली रख देते हैं और कहते है...
ऐसा ना कहें बहन,,, आपको कुछ हुआ तो मै जी नहीं पाऊंगा और फफक कर रो पड़ते है....
अरे मेरा भाई मुझे इतना प्यार करता है,, ये तो मै जानती ही नहीं थी,,,चुप हो जा मेरे प्यारे भाई चुप हो जा
और ऐसा कह कर वो भी रोने लगती है,,, रोते रोते उन्हें ख्याल नही रहता है और वे एक दूसरे से लिपट जाते हैं । दोनो बिल्कुल नंगे एक दूसरे की बाहों मे सिसक रहे थे। विक्रम थोड़ा सा अलग होते हैं और नंदिनी की आंखों में देखते हुए,,
कसम खाओ दीदी,,,की आज के बाद कभी भी आप मरने की बात नहीं करेंगी।
नहीं करूंगी मरने की बात,,अब खुश। लेकिन मै तो जानती ही नहीं थी कि मेरा भाई मुझे इतना प्यार करता है,,,
और ये कहते हुए नंदिनी राजा विक्रम के गालों पर एक चुम्बन जड़ देती है। विक्रम भी नंदिनी को चुंबन देते है तो नंदिनी उसके गालों पर चुम्बन की झड़ी लगा देती है। फिर अचानक नंदिनी विक्रम के होठों पे अपने होठ रख कर चूमने लगती है । राजा विक्रम भी उसका साथ देते हुए उसके होठों को अपने होठों में दबाकर चूसने लगते हैं।दोनो भाई बहन इसी आनंद में पंद्रह मिनट डूबे रहते हैं। फिर नंदिनी चुम्बन छोड़ विक्रम की आंखों में देखते हुए कहती है,,,,
उस रात भी तो हमने एक दूसरे के होंठ चूसे थे भाई,,,
और ऐसा। कह कर हल्का मुस्कुरा देती है। और फिर कहती है,,
चलो वापस देखो,, दोपहर गई है,,पूरी सेना अब हमें खोजती हुई आ रही होगी।।।
नंदिनी के ऐसा कहने पर विराम।को भी होश आता है और दोनो कपड़े पहन कर वापस अतिथिशाला की ओर चल देते है।
वहां पूरी सेना में खलबली मची हुई थी कि राजा और मुख्य सलाहकार कहा चले गए। इन्हे देख कर सेना ने भी राहत की सांस ली।
दोपहर हो चली थी तो सभी ने खाना खाया और आराम करने लगे । शाम में फिर इनकी एक राजकीय बैठक थी जिसमें काफी समय लग गया । फिर रात में खाना खाकर ये दोनो बरामदे में बैठे थे । सुहानी चांदनी रात थी और ये ठंडी ठंडी हवा बह रही थी। इस पूरे अतिथिशाला ने मे केवल राजा विक्रम और नंदिनी ही थे और दूर दूर कोई भी नही था। दोनो हाथों में हाथ लिए बैठे रहते हैं। फिर नंदिनी विक्रम के होठों पर चुम्बन देकर अपने कक्ष में चली जाती है और राजा विक्रम अपने कक्ष में। लेकिन दोनो की आंखों में नींद नहीं थी। थोड़ी देर बाद राजा विक्रम नंदिनी कक्ष में जाते हैं और दरवाजा को हल्का धक्का देते हैं जिससे दरवाजा तुरंत खुल जाता है क्यों कि ये अंदर से बंद ही नहीं था। दरवाजा खुलने से नंदिनी पूछती है,,,

कौन है ?
मै हूं दीदी।।।
क्या हुआ,,,

मुझे डर लग रहा है बहन ,,, मै कभी अकेले इतने वीराने में नहीं रहा।।। मै सो जाऊं आपके साथ।

ओ हो ,, मेरे छोटे बाबू को डर लग रहा है,,, आ जा ,,में साथ में सो जा।।।
विक्रम शैय्या पर जाते ही वह नंदिनी से लिपट जाते है और राजा विक्रम अपनी प्यारी बहन के होठ चूसने लगते हैं जिससे दोनो अत्यंत उत्तेजित हो जाते हैं। फिर विक्रम नंदिनी की चोली उठाकर उसके स्तन चूसने लगते हैं जिससे वह पूरी उत्तेजित हो जाती है और उत्तेजनावश विक्रम का हाथ पकड़ कर अपने बुर पर रख कर सब देती है और राजा विक्रम अपनी बहन की योनि को घाघरे के ऊपर से ही सहलाने लगते हैं।राजा विक्रम अपने मुंह से स्तन निकाल कर नंदिनी की आंखों में देखते हुए कहते हैं,,,
उस रात ये भी हुआ था ना,,
इससे नंदिनी शर्मा जाती है। फिर विक्रमने वो किया जो नंदिनी ने अपने में भी नहीं सोचा था। उसने अचानक ही नंदिनी का घाघरा की डोरी खोलकर उसे नीचे कर दिया जिसको निकलने में नंदिनी ने अपनी चूतड़ उठा ली जिससे उसका घाघरा सरसरा कर निकल गया , विक्रम भी अपनी धोती खोलकर पूरा नंगा हो गया। अब नंदिनी और विक्रम दोनो नंगे थे और नंदिनी का हाथ पकड़ कर विक्रम अपने मोटे लौड़े पर रख देता है जो नंदिनी खुद चाह रही थीं और वह अपने भाई का लिंग अपने हाथ में लेकर खूब दबा दबा कर आगे पीछे करने लगती है। इधर विक्रम भी अपनी बहन की बुर सहलाए जा रहा था और उसके स्तन भी चूसे जा रहा था। दोनो पूरे उत्तेजित हो गए थे।
अचानक विक्रम में अपना मुंह नंदिनी की योनि पर लगा कर सूंघा और कहा।
बड़ी मादक गंध है तुम्हारी योनि की बहन ,,,
योनि की गंध अच्छी लगी मेरे भाई को,,,तो सूंघ ले इसे,,, इसकी रक्षा कर मेरे भाई
फिर विक्रम ने आव देखा न ताव और लगे नंदिनी की बुर चाटने और उसकी बुर फैला कर उसने अंदर तक जीभ डाल डाल कर चोदने लगे ।
नंदिनी आहें भरने लगी
और कर मेरे भाई , मेरे बालम और कर,,मै तेरी प्यासी हूं।फिर नंदिनी आहें भरते हुए विक्रम के लंड को अपनी योनि से सटाने लगी जिससे विक्रम की आहें निकल गईं।
तब विक्रम फटा फट नंदिनी के ऊपर आ गया और बोला...
दीदी,, मै तुम्हारी योनि में अपने लंड को डालना चाहता हूं।
तो डाल दे ना भाई। मना किसने किया है भाई। और तू अगर मुझसे यौन संबंध बना लेगा तो किसी को पता भी नहीं चलेगा। और ऐसा कह कर मुस्कुरा देती है।

इतना सुनना था कि राजा विक्रम नंदिनी की योनि में अपना लंड डालने लगते हैं।
तभी बाहर बिजली चमकती है और तेज बारिश होने लगती है। ऐसा लगता है मानो प्रकृति भी ऐसा चाह रही घी।
नंदिनी की योनि में विक्रम क्या मोटा लंड नही जा रहा था तो नंदिनी थोड़ा घी अपने भाई के लंड पर लगा कर बोलती है,,
अब करो विक्रम, आज तो हम भाई बहन की सुहागरात है और तू ही मेरा कौमार्य भंग करेगा। विक्रम मै तुमसे बहुत प्यार करती हूं बहुत प्यार।
नंदिनी के ऐसा कहने पर राजा विक्रम पूरे जोश में आ जाते है और अपना लंड झटके से नंदिनी की बुर में डाल देते है जिससे नंदिनी की सिसकी निकल जाती है लेकिन थोड़ी देर बाद वह सामान्य होती है तो।
...
और करो विक्रम और करो। मेरी बुर फाड़ दो विक्रम। विक्रम भी
हां दीदी आ,,,मै तुम्हे वैश्य की तरह चोदुगा ,, yelo मेरे लौड़ा ये लो
और फिर दोनो करीब आधे घंटे की चुदिंके बाद झड़ जाते हैं।।।।
चुदाई के बाद उस जगह खून के धब्बे दिखते है, जिन्हे देख नंदिनी कहती है।।
देख तूने आज मेरा कौमार्य भंग कर दिया



तो be continued
Mast update bhai
 

Jay1990

Active Member
636
865
93
Screenshot-20210121-210915-Chrome.jpg

Screenshot-20210121-210934-Chrome.jpg
😍😍😍🤩🤩🔥🔥
 
Top