aamirhydkhan
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राजकुमारी नंदनी महाराज विक्रम के साथइतना सुनना था कि राजा विक्रम नंदिनी की योनि में पर अपना लिंग रगड़ने लगते हैं जिससे नन्दिनी तड़प जाती है और फिर विक्रम अपना लंड डालने लगते हैं।
तभी बाहर बिजली चमकती है और तेज बारिश होने लगती है। ऐसा लगता है मानो प्रकृति भी ऐसा चाह रही घी।
नंदिनी की योनि में विक्रम का मोटा लंड नही जा रहा था तो नंदिनी थोड़ा घी अपने भाई के लंड पर लगा कर बोलती है,,
अब करो विक्रम, आज तो हम भाई बहन की सुहागरात है और तू ही मेरा कौमार्य भंग करेगा। विक्रम मै तुमसे बहुत प्यार करती हूं बहुत प्यार।
नंदिनी के ऐसा कहने पर राजा विक्रम पूरे जोश में आ जाते है और अपना लंड झटके से नंदिनी की बुर में डाल देते है जिससे नंदिनी की सिसकी निकल जाती है लेकिन थोड़ी देर बाद वह सामान्य होती है तो।
...
और करो विक्रम और करो। मेरी बुर फाड़ दो विक्रम।
विक्रम भी
हां दीदी हाँ ,,,ये लो मेरा लौड़ा अपनी योनि में ,,,और बना दो मुझे अपने बच्चे का बाप,,,,,,,मै तुम्हे वैश्या की तरह चोदूंगा ,, ये लो मेरे लौड़ा ये लो,,,
और फिर दोनो करीब आधे घंटे की चुदाई के बाद झड़ जाते हैं।।।।
सुबह जब दोनो उठते हैं तो दोनो को चुदाई के बाद उस जगह खून के धब्बे दिखते है, जिन्हे देख नंदिनी कहती है।।
देख भई तूने आज मेरा कौमार्य भंग कर दिया,,,ये है उसकी निशानी,,,कल हमारी सुहागरात थी,,,एक भाई और बहन की सुहागरात,,,
कौमार्य भंग के खून के धब्बों को देख कर राजा विक्रम को एक अलग सी अनुभूति होती है की उसने ही अपनी बड़ी बहन का कौमार्य भंग किया है,,,और कहते हैं,,,
दीदी सुहागरात तो शादी के बाद मानते है ना,,,
हाँ ,,तो,,,
लेकिन हमने तो सुहागरात मना लिया ,,,लेकिन शादी नही की,,,तो आओ ना हम दोनो विवाह कर लेते हैं,,,
नही विक्रम हम ऐसा नही करनसकते,, हम भाई बहन है,,,चोरी चुपके यौन सम्बन्ध तक तो ठीक है ,,,लेकिन शादी नहीं,,,बिना शादी के भाई बहन की चुदाई का अलग मना है,,,
ठीक है दीदी ,,तुम जैसा कहो
तो be continued
अपनी माँ को कहते हैं.... ये वही लण्ड है माते जिसे आप मुझे नहलाते समय रगड़ रगड़ धोया करती थी और मुट्ठी में भर कर नाप लेती थी. याद है ना आपको. ये आपकी मालिश का ही नतीजा है माते की आपके लल्ला का ये लण्ड इतना लम्बा और मोटा हो गया है...इस लण्ड पर आपका ही अधिकार है माते...और इतना कह कर वे अपनी माँ का हाथ पकड़ कर अपने लौड़े पर रख देते हैं जिसकी गर्मी देवकी को महसुस होती है. वह कहती है... ये क्या कर रहे हो पुत्र. लेकिन वह अपना हाथ अपने पुत्र के खड़े लौड़े से नहीं हटाती है, बल्कि मुट्ठी में पकडे रहती है. राजा विक्रम यह देखकर मंद मंद मुस्कुराते हैं और बोलते हैं...मां आज आप कितनी सुंदर लग रही है... लगता है आज स्वर्ग से अप्सरा धरती पर अवतरित हो गई है बिल्कुल नई नवेली दुल्हन लग रही है आप यह आपकी उन्नत चूचियां मुझे पागल कर रही है आपके सुंदर चेहरे से मैं नजर नहीं हटा पा रहा हूं.... इतना कहकर राजा अपने हाथ से अपनी माता की चुचियों को सहला देता है और अपने एक हाथ से उसके गालों को प्यार से सहलाने लगता है... अब राजा के स्नानागार में स्थिति यह थी कि राजमाता अपने पुत्र राजा विक्रम के लण्ड अपने को हाथ में पकड़ी हुई थी और राजा विक्रम अपनी माता देवकी की चुच्चियों को पकड़े हुआ था और एक हाथ से धीरे-धीरे गालो को प्यार से सहला रहा था..., राजा विक्रम बोलते हैं माते अब मुझसे रहा नहीं जाता .. मैं आप का दीवाना हो गया हूं ...मैं आपसे प्यार करना चाहता हूं क्या मैं आपकी गालों को चूम सकता हूं...मैं आप के गालों को चूमना चाहता हूं..राज माता कुछ भी बोलने की स्थिति मे नहीं थी...इसे मौन सहमति मान कर राजा अपनी माता के गालों पर चुंबन लेने लगता है ....इधर रन्झा भी राजा के कक्ष के बाहर राजमाता का इंतजार कर रही थी .... जब काफी देर हो गई तब वह राजमाता खोजते खोजते राजा के कक्ष के अंदर घुस आई... राजमाता को वहां ना पाकर है वह राजा के दूसरे कक्षों में ढूंढने लगी...जब वह दोनों कहीं नहीं दिखे तब अंततः रांझा राजा के स्नानागार की ओर बढ़ चली और वहां पहुंचकर जैसे ही उसने स्नानागार का पर्दा हटाया उसका मुंह खुला का खुला रहता है ..वह राजमाता राजमाता आवाज लगते हुए अंदर दाखिल होती है और सामने देखती है की राजमाता अपने पुत्र राजा विक्रम का लंड अपने हाथ में लिए हुए हैं... रन्झा की आवाज सुनकर दोनों मां बेटे अपने अलग होते हैं ...राजमाता अपने पुत्र का लंड से अपने हाथ हटाती हैं राजा भी अपना हाथ अपनी मां की वक्ष् से हटाता है और अपनी मां के गालों से चुंबन लेना बंद करके पीछे हट जाता है.. रांझा का मुह मां बेटे को इस स्थिति में देखकर खुला खुला रह जाता है ...वह सोचती है कि क्या राजघराने में भी एक मां और बेटे के बीच ऐसा खुला संबंध हो सकते हैं... रांझा की आवाज सुनकर दोनों मां-बेटे चौक जाते हैं और अलग हो जाते हैं राजमाता के मुख से अभी भी कोई शब्द नहीं निकल पा रहे थे तब तक रांझा की नजर राजा विक्रम की लंड पर पड़ती है जिसे देखकर मंत्रमुग्ध हो जाती हो और मन ही मन सोचती है कि काश इस लंड से मुझे चुदने का मौका मिल जाता.... वह फिर राजमाता को याद दिलाती है की सूर्योदय होने को है पूजा का समय होने जा रहा है.. तब राजमाता के मुख से आवाज निकलती है और वह अपने पुत्र को कहती हैं कि तुम जल्दी से तैयार हो जाओ हमें जल्दी ही पूजा में चलना होगा ..इतना कहकर है वह राजा के स्नानागर से बाहर निकल जाती है तथा पूजा की तैयारियां देखने चली जाती है.... उसके पीछे रन्झा भी भागी चली आती है....
थोड़ी ही दूर पर उनकी माता अपना घाघरा उठा हुए चूत खोल कर मूत्र त्याग कर रही हैं । इधर राजा विक्रम सेन भी जोर से पेशाब लगने के कारण अपना पेशाब रोक नहीं पाते हैं और अपना लंड निकाल कर अपनी माता को देखते हुए पेशाब करने लगते हैं जिसकी छीटें राजमाता तक चली जाती है। अभी दोनों मां-बेटे एक दूसरे के सामने अपने यौनांगों को दिखाते हुए खड़े थे ।यह देख कर राजा विक्रम सेन को अलग ही अनुभूति हो रही थी की उन्होंने अपनी ही माता के योनि के दर्शन कर लिए और सुबह अपना लन्ड अपनी माता को दिखा चुका है।
राजा पीछे घूमते हैं और तेजी से अपने कक्ष से बाहर निकल जाते हैं इधर राजमाता भी इस घटना से हक्का-बक्का रह जाती हैं और अपना घाघरा नीचे करके जल्दी से बाहर निकल जाती है तथा कार्यक्रम में शरीक होने चली जाती हैं । कार्यक्रम में तो दोनों ही मां बेटे ऐसे व्यवहार कर रहे थे जैसे अभी उनके बीच कुछ हुआ ही न हो जबकि इन्होंने अभी - अभी एक दूसरे के योनांगों के दर्शन किए थे । इधर महाभोज का कार्यक्रम शुरू होता है । एक बड़े टेबल के सामने राजा माधव सिंह उनकी पत्नी और उनकी बेटी राजकुमारी रत्ना बैठी हैं तो दूसरी तरफ राजा विक्रम सिंह राजमाता देवकी और राजकुमारी नंदिनी बैठे हुए हैं । सेवक भांति भांति के पकवान इन लोगों के सामने परोस रहे थे । इसी बीच राजमाता राजा माधव सिंह से कहती है कि राजकुमारी रत्ना अब यौवनावस्था को प्राप्त कर चुकी है तो क्यों ना इसकी शादी संपन्न करा दी जाए ।इस पर राजा माधव सिंह राजमाता को बताते हैं कि कोई अगर योग्य वर हो तो वे अपनी पुत्री रत्ना का विवाह संपन्न कराने को तैयार हैं । छूटते ही राजमाता ने कहा कि क्यों ना राजकुमारी रत्ना की शादी विक्रम सेन से करा दी जाए ।
सभी हतप्रभ रह जाते हैं कि क्या राजा माधव सिंह अपनी पुत्री का विवाह राजा विक्रम सिंह से करेंगे ।राजा माधव सिंह इस पर अत्यंत के प्रसन्न हुए तथा उन्होंने कहा
राजमाता आपने तो हमारे मुंह की बात छीन ली हम तो यह चाहते ही थी की राजकुमारी रत्ना का विवाह राजा विक्रम सिंह से संपन्न हो जाए किंतु हम सभी आपके सामने विवाह का प्रस्ताव रखने में हिचकीचा रहे थे क्योंकि आप इतने बड़े राज्य के राजा हैं और मैं एक छोटे से राज्य का राजा हूं शायद आप हमारे घर विवाह करना पसंद नहीं करते ।
राजकुमारी रत्ना से विवाह का प्रस्ताव तो मैंने स्वयं दिया है तो इसमें छोटे बड़े होने की क्या बात है, राजमाता ने कहा ।
विवाह की बात सुनकर राजकुमारी रत्ना भी मन ही मन बहुत खुश होती है और वह सोचती है की उसके बुर् का वनवास भी अब खत्म होगा तथा जल्दी ही उसकी बुर को एक मोटा तगड़ा लंड मिलेगा जो उसकी बुर को चोद कर उसकी बुर् की गर्मी को ठंडा करेगा और वह मन ही मन अपनी चुदाई के सपने देखने लगती है ।अपनी शादी की बात होती सुन राजकुमारी रत्ना शरमा कर प्रांगण के दूसरी ओर चली जाती है और दीवार की ओट में खड़े होकर इनकी बात सुनने लगती है। राजा माधव सिंह राजमाता को कहते हैं कि एक बार राजा विक्रम सिंह जी की भी इच्छा जान ली जाए और राजकुमारी रत्ना से वह इस बारे में बात कर लेंगे ।राजमाता ने इन दोनों की राय जानने में अपनी कोई आपत्ति व्यक्त नहीं की। बल्कि उन्होंने तो यहां तक कहा कि इन दोनों को अपना जीवन गुजारना है इसलिए दोनों की राय लेना सर्वथा उचित है ।
राजमाता राजा विक्रम सिंह से उनकी राय जानना चाहती है जिस पर राजा विक्रम सिंह ने तुरंत ही अपनी सहमति अपना सिर हिला कर दे दी। राजा विक्रम सिंह तो सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि वे राजकुमारी रत्ना से विवाह करने में विलंब करें । फिर राजा माधव सिंह अपनी पत्नी को राजकुमारी दिल की बात जानने को भेजते हैं । राजकुमारी रत्ना दीवाल की ओट में खड़े होकर यह सारी बातें सुन रही थी ।जैसे ही राजकुमारी सुनती है उसकी मां उसकी राय जानने के लिए आ रही है तो वह और आश्चर्य में पड़ जाती है । इधर रानी सोचती है कि राजा विक्रम सिंह को देखकर उसकी खुद की बुर में खलबली मची हुई है तो उसको देख कर मेरी पुत्री क्यों नहीं विवाह करना चाहेगी। जब रत्ना से उसकी मां पूछती है कि क्या वह राजा विक्रम सिंह के साथ शादी करना चाहती है । इस पर वह चुप रहती है और कोई जवाब नहीं देती है । रानी सोचती है कि शायद मेरी पुत्री को यह विवाह पसंद नहीं है और आश्चर्यचकित होती है कि जिस राजा विक्रम सेन के बारे में सोच कर उसकी बुर सुबह से पनियाई हुई है , उससे शादी करने को उसकी पुत्री हां क्यों नहीं कह रही है ,,,लगता है कि मेरी पुत्री को यह विवाह पसंद नहीं है और मुड़कर वापस जाने लगती है।
अपनी माता को जाता देख राजकुमारी रत्ना जल्दी से बोलती है कि हां हां हां मुझे मुझे यह विवाह मंजूर है । अपनी पुत्री की सहमति लेकर राजा माधव सिंह के पास पहुंचती है तथा उन्हें राजकुमारी की सहमति की सूचना देती है। इस पर राजा माधव सिंह जी बड़े प्रसन्न होते हैं और राजमाता को विवाह तय होने की बधाई देते हैं । राजमाता मिठाई मंगाती है और मिठाई से राजा माधव सिंह का मुंह मीठा कराती हैं । राजमाता राजज्योतिषी को बुलावा भेजती हैं जो कि उस वक्त राजमहल में उपस्थित थे । राज ज्योतिषी के आते ही राजमाता राजा विक्रम सिंह की शादी तय होने की सूचना देती हैं तथा उनसे शादी का शुभ मुहूर्त बताने का आग्रह करते हैं। राजपुरोहित चार माह पश्चात् की तिथि शादी के लिए निश्चित करते हैं जिस पर दोनों पक्ष खुशी-खुशी राजी हो जाते हैं। राजकुमारी रत्ना शादी तय हो जाने के बाद ख्वाबों में डूब जाती है कि राजा विक्रम सिंह का लौंडा कैसा होगा और वह कैसे मेरी बुर को चोदगा।