Raj incest lover
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Wahhh kya maroman driysh tha maza as GayaUpdate 5
राजमाता देवकी झटके से राजा के स्नानागार से बाहर निकलती है और बाहर निकलते समय रांझा का हाथ पकड़कर पूजा के कक्ष की ओर चल जाती है अभी उसे होश नहीं था. उसके मन में पश्चाताप की और पाप की भावना घर करने लगती है. वह मन ही मन अपने को कोसने लगती है कि उसने आज यह क्या कर दिया उसे आत्मग्लानि होने लगती हैं कि कैसे उसने अपने पुत्र का लंड अपने हाथ में ले लिया था और सबसे बड़ी बात यह कि अपने पुत्र का लंड अपने हाथ में पकड़े हुए रंझा ने उसे देख लिया। शायद रंझा ने अगर राजमाता को इस स्थिति में नहीं देखा होता तो शायद देवकी को आत्मग्लानि भी ना हो रही होती। वाकई वह खुद ही नहीं समझ पा रही थी कि वह खुश है या उसे पश्चाताप का अनुभव हो रहा है
राजा के कक्ष से पूजा के कक्ष तक पहुंचने में उसे ऐसा लग रहा था मानो यह दूरी खत्म ही नहीं हो रही थी कभी वाह यह सोचकर शर्मा रही थी की क्या वह अभी भी इतनी जवान और सुंदर है कि उसके पुत्र का लंड उसे देख कर खड़ा हो गया है । उसे क्या पता था की हर एक पुत्र अपनी मां को पाने की , उसे चोदने की आकांक्षा रखता है और जो पुत्र अपने माता के प्रति ऐसा प्रेम आकर्षण नहीं रखता है उसके तो पुरुष होने पर ही संदेह है देवकी फिर अपने पुत्र के लंड के स्पर्श के अनुभव को याद कर पुनः उत्तेजना महसूस करनी लगती है और सोचने लगती है कि कितना कड़क और गर्म लौड़ा है मेरे पुत्र का. अपने पुत्र के लंड के गुलाबी सुपारी को याद कर वह मंत्र मुग्ध हो जाती है ।
यही सोचते सोचते देवकी पूजा कक्ष के पहुंच जाती है जहां पूर्व से ही नंदिनी पूजा के सामानों की व्यवस्था में लगी हुई है नंदिनी ने यहां पर पूजा की थाली तैयार कर ली थी जिसमें चंदन रोली अक्षत और पूजा के सभी सामान रखे हुए थे तथा एक दूसरे वाले पात्र में रंग बिरंगे फूल रखे हुए थे राजमाता पूजा कक्ष में पहुंचकर नंदिनी से पूछती है क्या पूजा की सारी तैयारी हो चुकी है आपने पूजा के लिए सभी आवश्यक वस्तुएं एकत्रित कर ली है । नंदनी हां में जवाब देती है और बोलती है कि भ्राता यदि तैयार हो गए हो तो हम सभी चलने को तैयार हैं । देवकी इस पर क्या बोलती है नंदनी के ऐसा पूछने से उसे अभी कुछ समय पहले का घटनाक्रम उसकी आंखों के सामने से गुजर जाता है। वह कैसे बताए कि वह गई तो थी अपने पुत्र को जल्दी तैयार करने के लिए लेकिन वहां उसने खुद ही अपने पूत्रके मोटे लिंग का दर्शन कर लिया है दर्शन तो छोड़िए उसने लिंग को स्पर्श करके उसे मुट्ठी में बांध लिया था फिर भी वह नंदनी को बोलती है कि बेटा आपके भ्राता जल्दी तैयार होकर पर आ रहे हैं।
इधर राजा स्नानागार में इस घटना के बाद तुरंत स्नान करने के लिए दूध से भरे मिट्टी के बड़े टब में घुस जाता है तथा अपने पूरे शरीर को रगड़ करके, अपने मोटे लोड़े को दूध से रगड़ रगड़ कर साफ़ करने लगता है उसे अभी की घटी घटना का कोई पश्चाताप नहीं था बल्कि उसकी तो मनोकामना आज पूर्ण हुई है कि उसने अपनी प्रिय माता को अपना लंड दिखाया ही नहीं है बल्कि उसके हाथ में में अपना लन्ड भी दिया था। वह आज की घटना के एक बात से बहुत खुश था की उसकी माता देवकी ने अपने लल्ला का लंड हाथ में तो पकड़ा था लेकिन वह उसे छोड़ने का नाम नहीं ले रही थी जबकि अगर चाहती तो उसे लंड पर से हाथ हटाने का पूरा अवसर था
यह सोच कर राजा मंद मंद मुस्कुराए लगता है और सोचने लगता है की एक दूसरे के यौन अंगों और जननांगों को देखने की लालसा दोनों माता और पुत्र में लगी हुई है वह सोचने लगता है की मेरी माता की योनि कैसी होगी मेरी जन्मस्थली कैसी होगी क्या मैं कभी अपनी जन्मस्थली के दर्शन पाकर धन्य हो पाऊंगा और वह मन में सोचता है कि आज मैं अपने कुलदेवता से ही यही आशीर्वाद मांगुंगा की मुझे अपनी माता के घाघरे के नीचे स्थित योनि जोकि मेरी जन्म स्थली है मेरा जन्म स्थान है , उसके दर्शन का और उसे स्पर्श करने का आशीर्वाद प्रदान करें ।
राजा को इस बात की थोड़ी भी भनक नहीं थी कि उसकी माता राजमाता देवकी ने चंद घंटे पहले ही उसके लंड की कल्पना करते हुए अपनी योनि में उंगली किया था । उसने अपनी बुर को रगड़ रगड़ के पानी निकाला था उसे क्या पता था कि उसकी माता श्री उसके लंड के प्रति आकर्षित है
तभी राजा को याद आता है कि आज उसे कुलदेवता की पूजा के लिए जल्दी तैयार होना है ऐसा याद आते ही वह तुरंत दूध के टब से बाहर निकलता है और मुलायम कपड़े से जाकर वस्त्र कक्ष में अपने गीले शरीर को पूछता है तथा वह पूजा के लिए पीले रंग का मलमल का कुर्ता और उसके साथ लाल रंग की मलमल की धोती पहनता है उसके ऊपर कधे पर भूरे रंग का उत्तराईया रखता है तथा इसके बाद अपने सिर को रत्नों से चरित्र सोने का मुकुट पहन कर तैयार हो जाता है राजा को भी पूजा के लिए जाना था इसलिए वह नंगे पैर अपने कक्ष से बाहर निकलता है बाहर निकलकर वह आभूषणों से भरे कास्ट अलमारी में से हीरे और मोती से चढ़े माला पहनता है तथा बाजू में बाजू बंद पहनता है और अपने शरीर पर सोने का छत्र पहन कर तैयार हो जाता है
आज राजा खुद ही देवता के समान दिख रहा था उसके कक्ष से बाहर निकलते ही सभी संत्ररी सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाते हैं तथा वह पूजा कक्ष की ओर निकल चलता है उसके साथ 11 सैनिकों की एक टुकड़ी उसकी सुरक्षा देते हुए साथ में चल लेती है ।
राजा पूजा कक्ष में पहुंचकर सबसे पहले देवी देवताओं को प्रणाम करता है फिर वह अपनी माता देवकी के पैर छूता है और आशीर्वाद मांगता है देवकी उसे यशस्वी भव और विश्वविजय होने का आशीर्वाद देती है फिर राजा अपनी बड़ी बहन नंदिनी के पैर छूकर आशीर्वाद मांगता है नंदनी उसको कंधे से पकड़ कर उठाती है और सबसे पहले उसे उसके जन्मदिन की ढेरों बधाइयां देती है और उसे अपने गले से लगा लेती है तथा उसे दीर्घायु होने का आशीर्वाद देती है
राजा देवकी से पूछता है मां चले, क्या पूजा की सारी तैयारियां हो चुकी हैं और क्या हमें अब कुल देवता के मंदिर की ओर प्रस्थान करना चाहिए इस पर देवकी बोलती है की सारी तैयारियां तो हमारी पुत्री नंदिनी ने ही पूरी कर ली थी सारी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं इसलिए अब हम मंदिर की ओर प्रस्थान कर सकते हैं राजा अपनी माता देवकी और अपनी बड़ी बहन नंदिनी के साथ राजमहल के द्वार पर पहुंचता है जहां पहले से ही उन्हें ले जाने के लिए सेना की एक टुकड़ी हाथी के साथ खड़ी थी
राजमहल के द्वार पर खड़े हाथी पर राजा अपनी माता और प्रिय बहन के साथ बैठ जाता है । इस राजपरिवार का रिवाज रहा है कि जब भी कुलदेवता के मंदिर में दर्शन करने जाते थे तो हाथी पर ही बैठ कर जाते थे तथा पूरा परिवार एक ही हाथी पर बैठकर जाता था अब स्थिति यह थी कि हाथी के ऊपर बैठने के लिए एक मचान बना हुआ था जिस पर सबसे आगे राजा बैठा था तथा उनके पीछे एक तरफ राजमाता देवकी बैठी थी दूसरी तरफ उनकी बहन नंदिनी बैठी थी। परम्परा के अनुसार पूरा परिवार खुले हाथी पर बैठकर प्रजा का अभिवादन स्वीकार करके जाता था राजमहल से लेकर कुल देवता के मंदिर तक दोनों तरफ प्रजा थी तथा राजा की सेना उन्हें लेकर मंदिर की ओर जा थी । इसके आगे ढोल नगाड़े बजाते हुए सेना की टुकड़ी चल रही थी
प्रजा महाराज विक्रम की जय के नारे लगा रही थी साथ ही प्रजा महाराज विक्रम की जन्मदिन की ढेरों बधाइयां दे रहे थे । राज परिवार पर प्रजा अपने घर की छतों से पुष्प वर्षा कर रही थी पुष्पवर्षा ऐसी लग रही थी मानो पूरी सृष्टि राज परिवार के सदस्यों को पुष्प वर्षा कर आशीर्वाद दे रही थी। हाथी के ऊपर बैठे राजा , उनकी माता और बहन हाथी के चलने से कभी एक तरफ तो कभी दूसरी तरफ झुक जा रहे थे राजा आगे बैठे हुए थे तथा उन्होंने अपने हाथ अपनी जांघों पर रखे हुए थे जिससे उनके कुहुनी मुड़ी हुई थी ।
हाथी के चलने से राजा जैसे दाहिने झुकते हैं उनकी दाहिनी हाथ उनके पीछे बैठी माता की चूच्ची से को छू जा रही थी जिससे राजमाता को उत्तेजना का एहसास हो जाता है इसी तरह जब राजा बाईं तरफ झुकते हैं तब उनका बायां केहुनी नंदिनी के दाहिने चूची को छू जाता था इस तरह राजा की मां और बहन की चूची केबार-बार स्पर्श होने से उनमें उत्तेजना आने लगी थी क्योंकि हाथी के ऊपर बैठने के लिए जगह काफी नहीं था इसीलिए तीनों को सटकर ही बैठना पड़ रहा था । इसके अलावा उत्तेजना का अनुभव होने के कारण राजमाता जानबूझकर अपनी दाईं चूची को राजा केहुनि पर रगड़ती है।राजकुमारी नंदिनी भी अपने दाहिने चुची राजा के हाथ पर रगड़ कर उत्तेजना का मजा ले रही थी । राजमाता देवकि चुन्नी के अं द र से ले जाकर अपना एक हाथ अपनी दाहिनी चूची पर रख कर उसे दबाने लगी है और बाईं चूची को राजा के दाहिने केहूनी पर रगड़ती है ।
इसी तरह राजकुमारी नंदिनी अपनी दाहिनी चूची को राजा के हाथ से रगड़ती है । दूसरी तरफ अपना दाहिने हाथ से अपनी चूचीको रगड़ रहे थे साथ ही वह बीच-बीच में घाघरे के ऊपर से ही योनि को भी सहला देती हैं । राजा का काफिला आगे बढ़ते हुए जैसे ही मंदिर के दरवाजे पर पहुंचता है वहां पर 151 पंडित एक साथ शंख की ध्वनि करने लगते हैं जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि पूरी सृष्टि इस राज परिवार पर अपना खुशी दर्शा रही है।
इधर मंदिर के बड़े प्रांगणमें सभी राज्यों से आए हुए राजा अपनी सुंदर और कामुक रानी और राजकुमारियों तथा राजकुमारों के साथ अपना बैठने की निर्धारित स्थान को ग्रहण कर चुके थे ।राजा मंदिर के मुख्य द्वार पर हाथी से अपने माता तथा बहन के साथ उतरते हैं । राजपुरोहित उन्हें मंदिर के मुख्य द्वार पर आकर राजा का अभिनंदन करते हैं राजा के साथ उनकी बहन नंदनी तथा राजमाता देवकी भी खड़ी थी राजा राजपुरोहित का आशीर्वाद लेने के लिए उनके पैर छूते हैं उनके साथी नंदिनी और राज माता भी राजपुरोहित का आशीर्वाद लेने के लिए उनके चरण स्पर्श करती हैं राजपुरोहित का आशीर्वाद लेने के लिए तीनों एक साथ ही झुक जाते हैं और राजपुरोहित एक साथ ही तीनों को यशस्वी भव तथा सौभाग्यवती भव का आशीर्वाद देते हैं राजा अब मंदिर के गर्भ गृह की तरफ बढ़ने के लिए आगे बढ़ते हैं
इसके पहले वह पड़ोसी राज्यों के आए राजा से मिलने के लिए चल चलते हैं सबसे पहले वह टीकमगढ़ के राजा माधव सिंह से मिलते हैं माधव सिंह राजा के पिता के काफी घनिष्ठ मित्र थे दोनों एक ही गुरु के शिष्य थे राजा आगे बढ़कर उनके चरण स्पर्श करता है जिन्हें माधव सिंह ढेर सारा आशीर्वाद देते हैं राजा आगे बढ़ते हैं तथा रानी से आशीर्वाद लेते हैं रानी से आशीर्वाद लेकर राजा जैसे ही अपना सर ऊपर उठाते हैं उन्हें रानी के बगल में एक अप्सरा दिखाई देती है जिन्हें देखकर राजा का मुंह खुला रह जाता है यह और कोई नहीं टीकमगढ़ के राजा माधव सिंह के पुत्री राजकुमारी रत्ना थी । राजकुमारी रत्ना जो राजा विक्रम सिंह को देखने के लिए काफी उत्सुक थी क्योंकि राजा विक्रम सिंह के गठीला शरीर , चपलता और सुंदरता की दूर-दूर तक ख्याति थी, जिस राजकुमार को देखेने दूर दूर से रानी आई थी वह राजकुमार एक राजकुमारी के सामने प्रणय निवेदन की सोच रहा था उसकी नजरें राजकुमारी के चेहरे से हट ही नहीं रही थी , वह तो स्वर्ग से उतरी साक्षात अप्सरा दिख रही थी । राजकुमारी रत्ना 5 फीट 4 इंच लम्बी थी , संगमरमर जैसा गोरा बदन जिस पर ऐसा लगता था की उंगली रख दो तो चमड़ी फट जाएगी, उसकी खड़ी नाक, झील सी कजरारी आंखें, सुंदर होंठ , सुराही दार गर्दन उसकी सुंदरता में चार चांद लगा रहे थे । उसके उन्नत वक्ष राजा विक्रम को आकर्षित कर रहे थे । सुडौल नितंब राजा के लिंग में तनाव पैदा कर रहा था ।
राजा लगातार राजकुमारी रत्ना को देखे जा रहा था जिससे शरमा कर राजकुमारी रत्ना थोड़ा सा घुंघट कर लेती है लेकिन उसे यह क्या पता था कि भविष्य में यही राजा विक्रम सिंह उसके घूंघट को तो उठाएगा ही साथ ही साथ उसकी योनि के घुंघट को भी वही उठाएगा । लेकिन यह बातें तो भविष्य के गर्त में छुपी हुई थी
राजा को इस तरह बुत बना खड़ा देख राजकुमारी नंदिनी राजा के पास आती है जिससे राजा विक्रम की तन्द्रा टूटती है । अभी राजमाता देवकी विक्रम को छेड़ते हुए कहती है पुत्र अगर आपका हो गया हो तो पुत्र मन्दिर के गर्भ गृह में चलें । मंदिर के गर्भ गृह में पहुंचते ही राजपुरोहित राजा का तिलक करते हैं उनको अक्षत लगाते हैं तथा पूजा आरम्भ करते हैं । मंत्रों का उच्चारण कर कुल देवता का आह्वान करते हैं। राजा, राजमाता और राजकुमारी तीनों पूजा करते हैं
इस दौरान राजा के दाहिनी ओर राजमाता और बाई ओर राजकुमारी नंदिनी थी । राजा की माता और बहन दोनों भी बला की खूबसूरत थी ऐसा लग रहा था मानो दोनों राजा की मां और बहन ना होकर राजा की प्रेमिका , उनकी पत्नियां हैं तीनों साथ में ही जल अर्पण करते हैं ऐसा लगता है तीनों जन्म जनता जन्मांतर से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं ।
पूजा समाप्त होने पर राजपुरोहित राजा को लंबी आयु का आशीर्वाद देते हैं इस पर राजा राजपुरोहित के पैर छू का आशीर्वाद लेते हैं। फिर राजपुरोहित राजा को अपनी माता से आशीर्वाद लेने को बोलते हैं जिस पर राजा अपनी माता देवकी के पैर छूने के लिए के लिए झुकता है। राजमाता देवकी अपने दोनों हाथ राजा के सर पर रखकर राजा को दीर्घायु होने का आशीर्वाद देती है । राजा आशीर्वाद लेते समय थोड़ा रानी के नजदीक जाकर झुक गया था जिसके कारण उठते समय राजा का चेहरा राजमाता के घाघरे के उस जगह से छू जाती है जिसके नीचे राजमाता का खजाना उसकी योनि थी।
राजमाता की योनि से भीनी भीनी खुशबू आ रही होती है जो राजा को मदहोश कर देती है। राजमाता को इतने लोगों के सामने राजा का मुंह घागरे से छू जाने के कारण वह थोड़ी असहज हो जाती है। राजा के मुंह और राजमाता की योनि के बीच केवल घाघरे का एक कपड़ा था जो अगर इस वक्त नहीं होता तो राजा के सामने राजमाता की योनि, राजा की जन्मस्थली सामने दिख रही होती ।
राजा फिर अपनी बहन राजकुमारी नंदिनी का आशीर्वाद लेने के लिए झुकता है राजकुमारी उसे उठाकर अपने गले लगा लेती है राजकुमारी की दोनों चूचियां राजा की चौड़ी छाती में छिप जाती है जिससे राजा को मजा आता है, पहले से गरम नंदिनी को भी मस्ती चढ़ जाती है और वह राजकुमारी को सबके सामने भीच लेता है और उसकी नरम चूच्चियों को अपने सीने में दबा लेता है राजपुरोहित ने तीनों को हाथ जोड़कर कुलदेवता से आंख बंद करके कुछ मांगने को कहते हैं । इस तरह पूजा समाप्त होती है और राजा अपनी माता और बहन के साथ राजमहल की ओर लौट चलते हैं । आज रात राजमहल में राजा के जन्मदिन के अवसर पर एक बड़े भोज का आयोजन किया है । राजा सभी राजाओं को महाभोज में आने का निमंत्रण देकर वापस राजमहल की ओर अपनी माता और बहन के साथ चल देता हैं ।
रास्ते में राजकुमारी नंदिनी राजा को छेड़ते हुए कहती है भ्राता क्या आपको राजकुमारी रत्ना भा गई थी इस पर राजकुमार जवाब नहीं देते हैं और कहते हैं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन राज माता देवकी ने कहा कि राजकुमारी रत्ना बला की खूबसूरत है तथा वह हमारे लल्ला की छल्ला बनने की पूरी योग्यता रखती है जिस पर राजकुमारी नंदिनी भी मंद मंद मुस्कुराती हुई राजमहल की ओर निकल पड़ते हैं।
अब आगे देखेंगे की भोज में क्या होता है
वैसे हर बेटे का अधिकार है अपने जनमस्थन को देखने का और उस जन्मस्थान को प्यार करके अपने लौड़ा के पानी से उसकी पूजा करने का