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Incest राजकुमार देव और रानी माँ रत्ना देवी

Raj incest lover

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Update 5
राजमाता देवकी झटके से राजा के स्नानागार से बाहर निकलती है और बाहर निकलते समय रांझा का हाथ पकड़कर पूजा के कक्ष की ओर चल जाती है अभी उसे होश नहीं था. उसके मन में पश्चाताप की और पाप की भावना घर करने लगती है. वह मन ही मन अपने को कोसने लगती है कि उसने आज यह क्या कर दिया उसे आत्मग्लानि होने लगती हैं कि कैसे उसने अपने पुत्र का लंड अपने हाथ में ले लिया था और सबसे बड़ी बात यह कि अपने पुत्र का लंड अपने हाथ में पकड़े हुए रंझा ने उसे देख लिया। शायद रंझा ने अगर राजमाता को इस स्थिति में नहीं देखा होता तो शायद देवकी को आत्मग्लानि भी ना हो रही होती। वाकई वह खुद ही नहीं समझ पा रही थी कि वह खुश है या उसे पश्चाताप का अनुभव हो रहा है

राजा के कक्ष से पूजा के कक्ष तक पहुंचने में उसे ऐसा लग रहा था मानो यह दूरी खत्म ही नहीं हो रही थी कभी वाह यह सोचकर शर्मा रही थी की क्या वह अभी भी इतनी जवान और सुंदर है कि उसके पुत्र का लंड उसे देख कर खड़ा हो गया है । उसे क्या पता था की हर एक पुत्र अपनी मां को पाने की , उसे चोदने की आकांक्षा रखता है और जो पुत्र अपने माता के प्रति ऐसा प्रेम आकर्षण नहीं रखता है उसके तो पुरुष होने पर ही संदेह है देवकी फिर अपने पुत्र के लंड के स्पर्श के अनुभव को याद कर पुनः उत्तेजना महसूस करनी लगती है और सोचने लगती है कि कितना कड़क और गर्म लौड़ा है मेरे पुत्र का. अपने पुत्र के लंड के गुलाबी सुपारी को याद कर वह मंत्र मुग्ध हो जाती है ।

यही सोचते सोचते देवकी पूजा कक्ष के पहुंच जाती है जहां पूर्व से ही नंदिनी पूजा के सामानों की व्यवस्था में लगी हुई है नंदिनी ने यहां पर पूजा की थाली तैयार कर ली थी जिसमें चंदन रोली अक्षत और पूजा के सभी सामान रखे हुए थे तथा एक दूसरे वाले पात्र में रंग बिरंगे फूल रखे हुए थे राजमाता पूजा कक्ष में पहुंचकर नंदिनी से पूछती है क्या पूजा की सारी तैयारी हो चुकी है आपने पूजा के लिए सभी आवश्यक वस्तुएं एकत्रित कर ली है । नंदनी हां में जवाब देती है और बोलती है कि भ्राता यदि तैयार हो गए हो तो हम सभी चलने को तैयार हैं । देवकी इस पर क्या बोलती है नंदनी के ऐसा पूछने से उसे अभी कुछ समय पहले का घटनाक्रम उसकी आंखों के सामने से गुजर जाता है। वह कैसे बताए कि वह गई तो थी अपने पुत्र को जल्दी तैयार करने के लिए लेकिन वहां उसने खुद ही अपने पूत्रके मोटे लिंग का दर्शन कर लिया है दर्शन तो छोड़िए उसने लिंग को स्पर्श करके उसे मुट्ठी में बांध लिया था फिर भी वह नंदनी को बोलती है कि बेटा आपके भ्राता जल्दी तैयार होकर पर आ रहे हैं।

इधर राजा स्नानागार में इस घटना के बाद तुरंत स्नान करने के लिए दूध से भरे मिट्टी के बड़े टब में घुस जाता है तथा अपने पूरे शरीर को रगड़ करके, अपने मोटे लोड़े को दूध से रगड़ रगड़ कर साफ़ करने लगता है उसे अभी की घटी घटना का कोई पश्चाताप नहीं था बल्कि उसकी तो मनोकामना आज पूर्ण हुई है कि उसने अपनी प्रिय माता को अपना लंड दिखाया ही नहीं है बल्कि उसके हाथ में में अपना लन्ड भी दिया था। वह आज की घटना के एक बात से बहुत खुश था की उसकी माता देवकी ने अपने लल्ला का लंड हाथ में तो पकड़ा था लेकिन वह उसे छोड़ने का नाम नहीं ले रही थी जबकि अगर चाहती तो उसे लंड पर से हाथ हटाने का पूरा अवसर था

यह सोच कर राजा मंद मंद मुस्कुराए लगता है और सोचने लगता है की एक दूसरे के यौन अंगों और जननांगों को देखने की लालसा दोनों माता और पुत्र में लगी हुई है वह सोचने लगता है की मेरी माता की योनि कैसी होगी मेरी जन्मस्थली कैसी होगी क्या मैं कभी अपनी जन्मस्थली के दर्शन पाकर धन्य हो पाऊंगा और वह मन में सोचता है कि आज मैं अपने कुलदेवता से ही यही आशीर्वाद मांगुंगा की मुझे अपनी माता के घाघरे के नीचे स्थित योनि जोकि मेरी जन्म स्थली है मेरा जन्म स्थान है , उसके दर्शन का और उसे स्पर्श करने का आशीर्वाद प्रदान करें ।

राजा को इस बात की थोड़ी भी भनक नहीं थी कि उसकी माता राजमाता देवकी ने चंद घंटे पहले ही उसके लंड की कल्पना करते हुए अपनी योनि में उंगली किया था । उसने अपनी बुर को रगड़ रगड़ के पानी निकाला था उसे क्या पता था कि उसकी माता श्री उसके लंड के प्रति आकर्षित है

तभी राजा को याद आता है कि आज उसे कुलदेवता की पूजा के लिए जल्दी तैयार होना है ऐसा याद आते ही वह तुरंत दूध के टब से बाहर निकलता है और मुलायम कपड़े से जाकर वस्त्र कक्ष में अपने गीले शरीर को पूछता है तथा वह पूजा के लिए पीले रंग का मलमल का कुर्ता और उसके साथ लाल रंग की मलमल की धोती पहनता है उसके ऊपर कधे पर भूरे रंग का उत्तराईया रखता है तथा इसके बाद अपने सिर को रत्नों से चरित्र सोने का मुकुट पहन कर तैयार हो जाता है राजा को भी पूजा के लिए जाना था इसलिए वह नंगे पैर अपने कक्ष से बाहर निकलता है बाहर निकलकर वह आभूषणों से भरे कास्ट अलमारी में से हीरे और मोती से चढ़े माला पहनता है तथा बाजू में बाजू बंद पहनता है और अपने शरीर पर सोने का छत्र पहन कर तैयार हो जाता है

आज राजा खुद ही देवता के समान दिख रहा था उसके कक्ष से बाहर निकलते ही सभी संत्ररी सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाते हैं तथा वह पूजा कक्ष की ओर निकल चलता है उसके साथ 11 सैनिकों की एक टुकड़ी उसकी सुरक्षा देते हुए साथ में चल लेती है ।

राजा पूजा कक्ष में पहुंचकर सबसे पहले देवी देवताओं को प्रणाम करता है फिर वह अपनी माता देवकी के पैर छूता है और आशीर्वाद मांगता है देवकी उसे यशस्वी भव और विश्वविजय होने का आशीर्वाद देती है फिर राजा अपनी बड़ी बहन नंदिनी के पैर छूकर आशीर्वाद मांगता है नंदनी उसको कंधे से पकड़ कर उठाती है और सबसे पहले उसे उसके जन्मदिन की ढेरों बधाइयां देती है और उसे अपने गले से लगा लेती है तथा उसे दीर्घायु होने का आशीर्वाद देती है

राजा देवकी से पूछता है मां चले, क्या पूजा की सारी तैयारियां हो चुकी हैं और क्या हमें अब कुल देवता के मंदिर की ओर प्रस्थान करना चाहिए इस पर देवकी बोलती है की सारी तैयारियां तो हमारी पुत्री नंदिनी ने ही पूरी कर ली थी सारी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं इसलिए अब हम मंदिर की ओर प्रस्थान कर सकते हैं राजा अपनी माता देवकी और अपनी बड़ी बहन नंदिनी के साथ राजमहल के द्वार पर पहुंचता है जहां पहले से ही उन्हें ले जाने के लिए सेना की एक टुकड़ी हाथी के साथ खड़ी थी

राजमहल के द्वार पर खड़े हाथी पर राजा अपनी माता और प्रिय बहन के साथ बैठ जाता है । इस राजपरिवार का रिवाज रहा है कि जब भी कुलदेवता के मंदिर में दर्शन करने जाते थे तो हाथी पर ही बैठ कर जाते थे तथा पूरा परिवार एक ही हाथी पर बैठकर जाता था अब स्थिति यह थी कि हाथी के ऊपर बैठने के लिए एक मचान बना हुआ था जिस पर सबसे आगे राजा बैठा था तथा उनके पीछे एक तरफ राजमाता देवकी बैठी थी दूसरी तरफ उनकी बहन नंदिनी बैठी थी। परम्परा के अनुसार पूरा परिवार खुले हाथी पर बैठकर प्रजा का अभिवादन स्वीकार करके जाता था राजमहल से लेकर कुल देवता के मंदिर तक दोनों तरफ प्रजा थी तथा राजा की सेना उन्हें लेकर मंदिर की ओर जा थी । इसके आगे ढोल नगाड़े बजाते हुए सेना की टुकड़ी चल रही थी

प्रजा महाराज विक्रम की जय के नारे लगा रही थी साथ ही प्रजा महाराज विक्रम की जन्मदिन की ढेरों बधाइयां दे रहे थे । राज परिवार पर प्रजा अपने घर की छतों से पुष्प वर्षा कर रही थी पुष्पवर्षा ऐसी लग रही थी मानो पूरी सृष्टि राज परिवार के सदस्यों को पुष्प वर्षा कर आशीर्वाद दे रही थी। हाथी के ऊपर बैठे राजा , उनकी माता और बहन हाथी के चलने से कभी एक तरफ तो कभी दूसरी तरफ झुक जा रहे थे राजा आगे बैठे हुए थे तथा उन्होंने अपने हाथ अपनी जांघों पर रखे हुए थे जिससे उनके कुहुनी मुड़ी हुई थी ।

हाथी के चलने से राजा जैसे दाहिने झुकते हैं उनकी दाहिनी हाथ उनके पीछे बैठी माता की चूच्ची से को छू जा रही थी जिससे राजमाता को उत्तेजना का एहसास हो जाता है इसी तरह जब राजा बाईं तरफ झुकते हैं तब उनका बायां केहुनी नंदिनी के दाहिने चूची को छू जाता था इस तरह राजा की मां और बहन की चूची केबार-बार स्पर्श होने से उनमें उत्तेजना आने लगी थी क्योंकि हाथी के ऊपर बैठने के लिए जगह काफी नहीं था इसीलिए तीनों को सटकर ही बैठना पड़ रहा था । इसके अलावा उत्तेजना का अनुभव होने के कारण राजमाता जानबूझकर अपनी दाईं चूची को राजा केहुनि पर रगड़ती है।राजकुमारी नंदिनी भी अपने दाहिने चुची राजा के हाथ पर रगड़ कर उत्तेजना का मजा ले रही थी । राजमाता देवकि चुन्नी के अं द र से ले जाकर अपना एक हाथ अपनी दाहिनी चूची पर रख कर उसे दबाने लगी है और बाईं चूची को राजा के दाहिने केहूनी पर रगड़ती है ।

इसी तरह राजकुमारी नंदिनी अपनी दाहिनी चूची को राजा के हाथ से रगड़ती है । दूसरी तरफ अपना दाहिने हाथ से अपनी चूचीको रगड़ रहे थे साथ ही वह बीच-बीच में घाघरे के ऊपर से ही योनि को भी सहला देती हैं । राजा का काफिला आगे बढ़ते हुए जैसे ही मंदिर के दरवाजे पर पहुंचता है वहां पर 151 पंडित एक साथ शंख की ध्वनि करने लगते हैं जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि पूरी सृष्टि इस राज परिवार पर अपना खुशी दर्शा रही है।

इधर मंदिर के बड़े प्रांगणमें सभी राज्यों से आए हुए राजा अपनी सुंदर और कामुक रानी और राजकुमारियों तथा राजकुमारों के साथ अपना बैठने की निर्धारित स्थान को ग्रहण कर चुके थे ।राजा मंदिर के मुख्य द्वार पर हाथी से अपने माता तथा बहन के साथ उतरते हैं । राजपुरोहित उन्हें मंदिर के मुख्य द्वार पर आकर राजा का अभिनंदन करते हैं राजा के साथ उनकी बहन नंदनी तथा राजमाता देवकी भी खड़ी थी राजा राजपुरोहित का आशीर्वाद लेने के लिए उनके पैर छूते हैं उनके साथी नंदिनी और राज माता भी राजपुरोहित का आशीर्वाद लेने के लिए उनके चरण स्पर्श करती हैं राजपुरोहित का आशीर्वाद लेने के लिए तीनों एक साथ ही झुक जाते हैं और राजपुरोहित एक साथ ही तीनों को यशस्वी भव तथा सौभाग्यवती भव का आशीर्वाद देते हैं राजा अब मंदिर के गर्भ गृह की तरफ बढ़ने के लिए आगे बढ़ते हैं

इसके पहले वह पड़ोसी राज्यों के आए राजा से मिलने के लिए चल चलते हैं सबसे पहले वह टीकमगढ़ के राजा माधव सिंह से मिलते हैं माधव सिंह राजा के पिता के काफी घनिष्ठ मित्र थे दोनों एक ही गुरु के शिष्य थे राजा आगे बढ़कर उनके चरण स्पर्श करता है जिन्हें माधव सिंह ढेर सारा आशीर्वाद देते हैं राजा आगे बढ़ते हैं तथा रानी से आशीर्वाद लेते हैं रानी से आशीर्वाद लेकर राजा जैसे ही अपना सर ऊपर उठाते हैं उन्हें रानी के बगल में एक अप्सरा दिखाई देती है जिन्हें देखकर राजा का मुंह खुला रह जाता है यह और कोई नहीं टीकमगढ़ के राजा माधव सिंह के पुत्री राजकुमारी रत्ना थी । राजकुमारी रत्ना जो राजा विक्रम सिंह को देखने के लिए काफी उत्सुक थी क्योंकि राजा विक्रम सिंह के गठीला शरीर , चपलता और सुंदरता की दूर-दूर तक ख्याति थी, जिस राजकुमार को देखेने दूर दूर से रानी आई थी वह राजकुमार एक राजकुमारी के सामने प्रणय निवेदन की सोच रहा था उसकी नजरें राजकुमारी के चेहरे से हट ही नहीं रही थी , वह तो स्वर्ग से उतरी साक्षात अप्सरा दिख रही थी । राजकुमारी रत्ना 5 फीट 4 इंच लम्बी थी , संगमरमर जैसा गोरा बदन जिस पर ऐसा लगता था की उंगली रख दो तो चमड़ी फट जाएगी, उसकी खड़ी नाक, झील सी कजरारी आंखें, सुंदर होंठ , सुराही दार गर्दन उसकी सुंदरता में चार चांद लगा रहे थे । उसके उन्नत वक्ष राजा विक्रम को आकर्षित कर रहे थे । सुडौल नितंब राजा के लिंग में तनाव पैदा कर रहा था ।

राजा लगातार राजकुमारी रत्ना को देखे जा रहा था जिससे शरमा कर राजकुमारी रत्ना थोड़ा सा घुंघट कर लेती है लेकिन उसे यह क्या पता था कि भविष्य में यही राजा विक्रम सिंह उसके घूंघट को तो उठाएगा ही साथ ही साथ उसकी योनि के घुंघट को भी वही उठाएगा । लेकिन यह बातें तो भविष्य के गर्त में छुपी हुई थी

राजा को इस तरह बुत बना खड़ा देख राजकुमारी नंदिनी राजा के पास आती है जिससे राजा विक्रम की तन्द्रा टूटती है । अभी राजमाता देवकी विक्रम को छेड़ते हुए कहती है पुत्र अगर आपका हो गया हो तो पुत्र मन्दिर के गर्भ गृह में चलें । मंदिर के गर्भ गृह में पहुंचते ही राजपुरोहित राजा का तिलक करते हैं उनको अक्षत लगाते हैं तथा पूजा आरम्भ करते हैं । मंत्रों का उच्चारण कर कुल देवता का आह्वान करते हैं। राजा, राजमाता और राजकुमारी तीनों पूजा करते हैं

इस दौरान राजा के दाहिनी ओर राजमाता और बाई ओर राजकुमारी नंदिनी थी । राजा की माता और बहन दोनों भी बला की खूबसूरत थी ऐसा लग रहा था मानो दोनों राजा की मां और बहन ना होकर राजा की प्रेमिका , उनकी पत्नियां हैं तीनों साथ में ही जल अर्पण करते हैं ऐसा लगता है तीनों जन्म जनता जन्मांतर से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं ।

पूजा समाप्त होने पर राजपुरोहित राजा को लंबी आयु का आशीर्वाद देते हैं इस पर राजा राजपुरोहित के पैर छू का आशीर्वाद लेते हैं। फिर राजपुरोहित राजा को अपनी माता से आशीर्वाद लेने को बोलते हैं जिस पर राजा अपनी माता देवकी के पैर छूने के लिए के लिए झुकता है। राजमाता देवकी अपने दोनों हाथ राजा के सर पर रखकर राजा को दीर्घायु होने का आशीर्वाद देती है । राजा आशीर्वाद लेते समय थोड़ा रानी के नजदीक जाकर झुक गया था जिसके कारण उठते समय राजा का चेहरा राजमाता के घाघरे के उस जगह से छू जाती है जिसके नीचे राजमाता का खजाना उसकी योनि थी।

राजमाता की योनि से भीनी भीनी खुशबू आ रही होती है जो राजा को मदहोश कर देती है। राजमाता को इतने लोगों के सामने राजा का मुंह घागरे से छू जाने के कारण वह थोड़ी असहज हो जाती है। राजा के मुंह और राजमाता की योनि के बीच केवल घाघरे का एक कपड़ा था जो अगर इस वक्त नहीं होता तो राजा के सामने राजमाता की योनि, राजा की जन्मस्थली सामने दिख रही होती ।

राजा फिर अपनी बहन राजकुमारी नंदिनी का आशीर्वाद लेने के लिए झुकता है राजकुमारी उसे उठाकर अपने गले लगा लेती है राजकुमारी की दोनों चूचियां राजा की चौड़ी छाती में छिप जाती है जिससे राजा को मजा आता है, पहले से गरम नंदिनी को भी मस्ती चढ़ जाती है और वह राजकुमारी को सबके सामने भीच लेता है और उसकी नरम चूच्चियों को अपने सीने में दबा लेता है राजपुरोहित ने तीनों को हाथ जोड़कर कुलदेवता से आंख बंद करके कुछ मांगने को कहते हैं । इस तरह पूजा समाप्त होती है और राजा अपनी माता और बहन के साथ राजमहल की ओर लौट चलते हैं । आज रात राजमहल में राजा के जन्मदिन के अवसर पर एक बड़े भोज का आयोजन किया है । राजा सभी राजाओं को महाभोज में आने का निमंत्रण देकर वापस राजमहल की ओर अपनी माता और बहन के साथ चल देता हैं ।

रास्ते में राजकुमारी नंदिनी राजा को छेड़ते हुए कहती है भ्राता क्या आपको राजकुमारी रत्ना भा गई थी इस पर राजकुमार जवाब नहीं देते हैं और कहते हैं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन राज माता देवकी ने कहा कि राजकुमारी रत्ना बला की खूबसूरत है तथा वह हमारे लल्ला की छल्ला बनने की पूरी योग्यता रखती है जिस पर राजकुमारी नंदिनी भी मंद मंद मुस्कुराती हुई राजमहल की ओर निकल पड़ते हैं।

अब आगे देखेंगे की भोज में क्या होता है
Wahhh kya maroman driysh tha maza as Gaya
वैसे हर बेटे का अधिकार है अपने जनमस्थन को देखने का और उस जन्मस्थान को प्यार करके अपने लौड़ा के पानी से उसकी पूजा करने का
 

aamirhydkhan

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Raj incest lover

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Update 7

आज रात के महाभोज के आयोजन के पश्चात सभी अतिथिगण राजमहल से जा चुके थे। जन्मदिवस का कार्यक्रम समाप्त होते होते रात काफी बीत चुकी थी। रात्रि का तीसरा पहर चल रहा था। सभी लोग सो चुके थे , लेकिन कुछ लोगों की आंखों में नींद नहीं थी। राजा माधव सिंह उनकी रानी सुभद्रा देवी तथा राजकुमारी रत्ना राजकीय अतिथिशाला में विश्राम हेतु पहुंच जाते हैं। आज माधव सिंह और सुभद्रा दोनों अत्यंत ही प्रशन्न थे कि आज उनके मन की मुराद पूरी हो गई। वे दोनो अपनी पुत्री राजकुमारी रत्ना का विवाह राजा विक्रम सेन के साथ करना तो चाहते थे। किन्तु संकोचवश वे राजकुमारी के रिश्ते की बात राजमाता देवकी से नहीं कर पाते थे। और आज ऐसा सुखद संयोग हुआ की राजमाता देवकी ने ही अपने पुत्र राजा विक्रम सेन का विवाह राजकुमारी रत्ना से कराने का प्रस्ताव दे दिया।
अतिथगृह पहुंचकर राजा माधव सिंह रानी सुभद्रा से कहते हैं :

आज का दिन हमारे लिए खुशी का दिन है की राजमाता देवकी ने स्वयं हमारी पुत्री से अपने पुत्र का विवाह कराने का प्रस्ताव दे दिया,नहीं तो हम तो इस राजघराने में शादी का प्रस्ताव देने का सोच ही नहीं सकते थे।
राजन मै ना कहती थी आपसे की एक बार राजकुमारी रत्ना की शादी का प्रस्ताव ले तो जाइए। लेकिन आप ही यहां आने से हिचकिचाते थे। आखिर हमारी रत्ना भी सुंदरता में किसी अप्सरा से कम थोड़े ही है। देखा नहीं राजा विक्रम की नजरें रत्ना के मुख से हटती ही नहीं थी। लेकिन मै डरती थी की राजा विक्रम सेन का व्यक्तित्व इतना आकर्षक है कि रत्ना की सुंदरता इनके सामने फीकी पड़ जा रही थी और कहीं राजा विक्रम रत्ना से विवाह से इंकार ना कर दे।... रानी सुभद्रा ने कहा।
राजा विक्रम की बात कर रानी सुभद्रा का चेहरा बिल्कुल सुर्ख हो जाता है जिसे देख कर माधव सिंह सुभद्रा की छेड़ते हुए कहते हैं
क्या आपको भी राजा विक्रम भा गए हैं जो आप उनकी सुंदरता के पुल बांध रही है।
आप कुछ भी बोलते हैं, राजा विक्रम मेरी पुत्री के होनेवाले दूल्हे है, भला मै ऐसा कैसे सोच सकती हैं।और ऐसा कहकर वह मुंह घुमाकर बैठ जाती है।
मैं तो मजाक के रहा था मेरी रानी। ऐसा कह कर राजा माधव सिंह रानी सुभद्रा की ठुद्दी पकड़कर उनका चेहरा अपनी ओर घुमाते हैं।

छोड़िए राजन आप मुझसे बात मत करिए।

राजा माधव सिंह कहते हैं लो मैंने अपने कान पकड़ लिए।अब तो मान जाओ।

माधव सिंह के ऐसा कहने से सुभद्रा हल्के से मुस्कुरा देती है।

ऐसा ना करे राजन, मुझसे माफ़ी मांग कर नरक का भागी ना बनाए। लेकिन आगे से ऐसा मत बोलिएगा।राजा विक्रम सेन मेरी पुत्री के होने वाले पति हैं, उनको लेकर ऐसा मजाक मुझसे बिल्कुल मत कीजिएगा।

वो कहते हैं ना नारी त्रिया चरित्र की होती है, वो क्या सोचती है ,ये जानना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। यही रानी सुभद्रा आज सुबह के कार्यक्रम में राजा विक्रम सेन को देखकर उनके प्रति आसक्त हो गई थी और अपनी बुर को सहलाया था , उनसे चुदवाने का सपना देख रही थी और अभी पति द्वारा थोड़ा मजाक करने से नाराज़ ही गई थी। खैर माधव सिंह के निवेदन पर वह मान जाती है और मन ही मन एक कुटिल मुस्कान लेते हुए माधव सिंह के हाथ पर अपना हाथ रख देती है।

इधर राजकुमारी रत्ना अपने कमरे में लेटी हुई राजा विक्रम सेन के ख्यालों में डूबी रहती है , वह विक्रम सेन की नजरों को भुला ही नहीं पा रही थी जिन नजरों से वे रत्ना को देख रहे थे, उनकी नजरों में हवस नहीं था ,बल्कि एक अलग सा आकर्षण था जिसके मोह पास में रत्ना बांधती जा रही थी। रत्ना ख्यालों में डूबे डूबे राजा विक्रम सेन के लिंग की कल्पना करने लगती है ।

रत्ना मन में- हाय उनका लिंग कितना बड़ा होगा जब शरीर इतना गठीला है, कंधे इतने मजबूत और छाती इतनी चौड़ी है। अपने मोटे लिंग से वो मेरी नाजुक योनि चोदेंगे तो मेरी कोमल नाजुक योनि का क्या हाल होगा।

यही सोचते सोचते रत्ना कि सांसे तेज चलने लगती है और उसकी कामभावना भड़कने लगती है। वह अपना एक हाथ अपनी चूची के ऊपर ले जाती है और चोली के ऊपर से ही अपने चूचक रगड़ने लगती है और सोचती है कि राजा विक्रम अपने कड़क हाथों से मेरे इन्हीं स्तनों का मर्दन करेंगे। स्तन दबाने से उसकी उत्तेजना और बढ़ जाती है और सांसे और तेज चलने लगती हैं।उत्तेजना के वसीभूत होकर रत्ना अपना एक हाथ घाघरे के अंदर डाल देती है और अपनी योनि को स्पर्श करती है, फिर हथेली से अपनी योनि को दबोच लेती है और उत्तेजना में आंखे बंद कर कहती है

राजन मेरी योनि को रगड़ों,,,,इसे प्यार करो,,, इसे अपनी उंगलियों से रगडों,,,,इसमें अपनी उंगली डाल कर खूब जोर जोर से आगे पीछे कर के चोदो,,,,, मेरी योनि को अपने जीभ से चाटो,,,, मेरी योनि की फैलाकर इसमें अपना मोटा लन्ड डाल दो,,, मेरी योनि को खूब चोदो,,, मेरी चूचियों का मर्दन करो,,,,,इनका दूध पी लो,,,,,

रत्ना बड़बड़ाते जा रही थी और अपनी योनि की रगड़े जा रही थी। उत्तेजनावश वह अपनी चोली उतार फेकती है और अपने घाघरे का नाड़ा खोलकर घाघरे को भी पैरों के नीचे से निकाल देती है। अब वह मादरजात नंगी अपनी शैया पर लेटी हुई अपनी नंगी चूची को हाथ से मसले जा रही थी और कामुक आहें निकाल रही थी। दूसरे हाथ से अपनी योनि को फैलाकर रगड़ रही थी। उसकी योनि , योनि रस से गीली और चिकनी ही जाती है और उसकी अनामिका उंगली उसकी योनि में सरसराते हुए योनि की गहराइयों में चली जाती है।ये पहली बार था जब राजकुमारी रत्ना ने अपनी कुंवारी अनचूदी योनि में अपनी उंगली डाली थी। उसकी सांसे रुक जाती हैं। उसके योनिद्वार अभी ठीक से खुले भी नहीं थे। लेकिन योनि में ऊंगली की उपस्थिति अब उसे अच्छी लगने लगती है,,,धीरे धीरे वह अब सामान्य होती है। यह हस्तमैथुन का पहला अनुभव था। वह अपनी योनि में उंगली को तेजी से अंदर बाहर करने लगती है और बड़बड़ाने लगती है,,,,

चोदिये राजन चोदिए अपनी इस रानी को,,,,अपने मोटे लिंग से,,,,मेरी योनि बहुत प्यासी है जिसकी प्यास आपका मोटा लिंग ही बुझा सकता है। राजन मेरे स्तन चूसते हुए मेरी योनि की चोदिए। इसे फाड़ दीजिए। ऐसे चोदिए की आपका लिंग मेरी बच्चेदानी तक पहुंच जाए,,,, इस संसार में आपके लिंग से ही इस दिव्य योनि की प्यास बुझ सकती है,,,
ऐसे ही बड़बड़ाते हुए राजकुमारी रत्ना अपनी योनि में अपनी उंगली खूब तेजी से अंदर बाहर करने लगती है और करीब आधे घंटे के बाद चरमसुख को प्राप्त कर झड़ जाती है और उसकी योनि से भालभालाकर योनि रस की धार बहने लगती है। उसके हाथ योनि रस से भीग जाते हैं। वह योनि रस से भीगे हाथ अपने नक के पास लाती है और उसकी मादक सुगंध से मदहोश होने लगती है।

चुकी राजकुमारी रत्ना का हस्तमैथुन का ये पहला अनुभव था।अतः उन्हें यह अनुभव अदभुत लगता है। लगा जैसे शरीर हल्का होकर स्वर्ग की सैर कर रहा है। अपने पहले अनुभव के कारण राजकुमारी रत्ना यू ही बिल्कुल नग्न अवस्था में थक कर शैय्या पर सो जाती है और नींद में राजा विक्रम सेन के सपने देखने लगती है...........
वाह क्या मदहोश कर देने वाला अपडेट दिया

ऐसा मस्त स्टोरी एक्सफर्यम पर पहली बार पढ़ रहा हूं राइटर की जितनी भी तारीफ की जाए बहुत ही कम है
 

Lutgaya

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बहुत ही कामुक कहानी है रवि भाई मजा आ गया पढने में,
एक ही रात में पूरी कहानी पढ ली और खूब लण्ड हिलाया
ये इस फोरम पर पहली ऐसी कहानी होगी जिसमे पाठको ने अपनी कल्पनाओं को साकार करते हुए न्यूड फोटो की आहुतीयां डाली हैं।
बस यूं ही लिखते रहो और अब दोनों बच्चों की कहानी से उत्तेजित मां को भी बेटी के सामने ही चुदवा दो
राझां को कालू से चुदवा कर इनको भी इस खेल में शामिल कर लो
 

Incestlala

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Update 6
आज सुबह से ही राजमाता ,राजकुमारी और राजा विक्रम सेन सुबह से जगे होने के कारण काफी थके हुए थे और अभी तो संध्या का कार्यक्रम भी बचा हुआ था। तीनों थोड़ी देर अपने कक्ष में आराम करते हैं और फिर शाम के महाभोज के लिए तैयार होने लगते हैं । आज पूरा राजमहल दीपक की रोशनी से जगमगाया हुआ था ऐसा लग रहा था मानो राजा के जन्मदिन की खुशी में पूरी सृष्टि भी खुशी मना रही हो। शाम का वक्त था और हल्की हल्की धीमी धीमी हवा चल रही थी जो माहौल को और भी खूबसूरत बना रही थी आज शाम सभी अतिथि राजा अपनी रानियों और परिवार के साथ महा भोज पर आमंत्रित थे राजकुमारी नंदिनी स्वयं कार्यक्रम की सारी व्यवस्था देख रही थी आखिरकार वह राजा की बड़ी बहन जो ठहरी

धीरे-धीरे सभी अतिथियों का आगमन शुरू होता है तथा सभी मंत्री गण द्वार पर ही सभी अतिथियों का स्वागत करने के लिए खड़े रहते हैं राजमहल में राजा के कक्ष के बाहर एक बहुत बड़ा खुला स्थान था जिसपर राज्य के बड़े कार्यक्रम हुआ करते थे इसी बीच तूरहरी बजने लगती है तथा द्वारपाल टीकमगढ़ के राजा माधव सिंह के आगमन की घोषणा करता है राजा माधव सिंह अपनी सुंदर रानी तथा अत्यंत ही नाजुक राजकुमारी रत्ना के साथ राजमहल में प्रवेश करते हैं । राजकुमारी रत्ना राजा माधव सिंह की इकलौती संतान है जो देखने में किसी अप्सरा से कम नहीं है शायद अप्सरा भी इतनी खूबसूरत नहीं होगी जितनी खूबसूरत राजकुमारी रत्ना थी। महामंत्री राजा को द्वार से स्वागत के साथ आंगन में उनके बैठने हेतु निश्चित स्थान पर ले जाते हैं और उन्हें आदरपूर्वक बैठाते हैं तथा राज्य कर्मियों को उनके उनके लिए जलपान की व्यवस्था करने का आदेश देते हैं

राजकुमारी नंदिनी को भी राजा माधव सिंह की आगमन की सूचना मिलती है तो वह दौड़े-दौड़े राजा के पास पहुंचती है और कहती है कि उसे बहुत खुशी है कि राजा इस कार्यक्रम में पधारें। राजा माधव सिंह उसे बताते हैं कि उसके पिता बड़े अच्छे दोस्त थे और उनकी मृत्यु के बाद उनका यह दायित्व है कि वह उनके सारे कार्यक्रम में उपस्थित हो और यथासंभव सहायता करें यह सुनकर राजकुमारी नंदिनी गदगद हो जाती है

आज राजकुमारी नंदिनी भी सुबह से ही कहर ढा रही थी राजा माधव सिंह की पत्नी राजकुमारी नंदिनी की चपलता देखकर आश्चर्यचकित रह जाती है तथा उसके उन्नत वक्ष स्थल तथा उन्नत नितंबों को देखकर सोच में डूब जाती है की क्या किसी कुवारी राजकुमारी के वक्ष तथा नितंब बिना चुदाने के इतनी उठी हो सकती है। रत्ना अपनी माता को सोचमे डुबा देख कहती है
मातें आप किस सोच में डूबी हैं
तब रानी अपनी सोच से बाहर आती है और कहती है कि और कुछ भी तो नहीं सोच रही थी

तभी राजा विक्रम सेन अपने एक कक्ष से बाहर निकल कर कार्यक्रम स्थल पर पहुंचते हैं संतरी उन्हें सूचित करता है कि राजा माधव सिंह कार्यक्रम स्थल पर पहुंच चुके हैं राजा सम्मान पूर्वक राजा माधव सिंह के पास पहुंचता है तथा उनके चरण स्पर्श करता है तथा उनके आने पर उनके प्रति आभार व्यक्त करता है तभी राजा विक्रम सिंह की नजर राजकुमारी रत्ना पर पड़ती है जिसके सामने आज अप्सराएं भी पानी मांग रही थी राजा विक्रम सिंह की नजर रत्ना से मिलती है तो राजकुमारी भी नजरें नीची कर सोचती है की क्या मै इतनी सुंदर हो कि राजा मुझसे नजरें नहीं हटा पा रहे हैं उसका मन भी राजा को देखने को व्याकुल हुआ जा रहा था राजा विक्रम सिंह के शारीरिक शक्ति और गठीले शरीर की चर्चा दूर-दूर तक थी । राजकुमारी रत्ना को नहीं रहा गया उन्होंने धीरे से अपनी आंखें उठाकर राजा विक्रम सिंह को देखा जिन को देखते ही उनके तन बदन में झुनझुनी सी दौड़ गई । राजा विक्रम सेन अभी अपने राजा के पूरे परिधान में थे । उन्होंने लाल रंग की धोती पीले रंग का अचकन बाजू मे बाजू बंद सोने का कवच जो उनकी चौड़ी छाती पर लगा था तथा सोने का मुकुट पहना था ऐसा लग रहा था मानो देवता स्वयं धरती पर अवतरित हो गये हो । रत्ना की नजर भी राजा विक्रम सिंह से हटती ही नहीं थी । इधर आज राजा विक्रम द्वारा लगातार राजकुमारी रत्ना को देखता देख कर राजा विक्रम माधव सिंह और उनकी पत्नी मन ही मन बड़े खुश होते हैं

लेकिन राजकुमारी नंदिनी को थोड़ा सा अटपटा लगा था । वह धीरे से खांसती है और अपने छोटे भाई राजा विक्रम सेन को कहती है की अभी कई सारे काम बचे हुए हैं । इस पर राजा विक्रम सेन की तंद्रा टूटती है और कहते हैं कि
हां हां जल्दी चलो और भी कार्यक्रम की व्यवस्था देखनी है की नहीं
यह कहते हुए राजा चला जाता है लेकिन मन को काबू नहीं कर पाते हैं । उनकी नजरें राजकुमारी रत्ना को खोजती रहती हैं और इस दौरान उनकी नजर राजकुमार रत्ना से एक हो जाती है जिससे राजकुमारी देवकी शरमा जाती है और शर्म से नजरें नीची कर लेती हैं।
तभी राजमाता देवकी भी तैयार होकर इन लोगों के पास पहुंचती है राजमाता भी राजकुमारी रत्ना की सुंदरता देखकर मंत्रमुग्ध हो जाती है। राजमाता आज स्वयं परी लग रही थी जिन्होंने आज सुबह-सुबह राजा विक्रम सेन का लंड हाथ में पकड़ा था तथा अपनी दोनों चूचियों को अपने पुत्र राजा विक्रम सिंह के ऊपर भी रगड़ा था । राजकुमारी रत्ना की सुंदरता देखकर राजमाता भी मंत्रमुग्ध हो जाती हैं तथा वह राजा माधव सिंह को कहती हैं की उनकी पुत्री राजकुमारी रत्ना अब यौवनावस्था में प्रवेश कर चुकी है तथा उनसे राजकुमारी रत्ना के लिए एक अच्छा सा वर ढूंढ कर उसके हाथ पीले करने को कहती है । इधर राजा विक्रम सेन कार्यक्रम की सारी व्यवस्था भी देख रहे थे लेकिन उनकी नजर केवल और केवल राजकुमारी रत्ना पर ही थी। वह जिधर भी जाते उनकी नजर राजकुमारी रत्ना पर ही हुआ करते थे । इस बात को राजकुमारी नंदिनी तो देख ही रही थी राजकुमारी रत्ना को भी इसका पूरा ध्यान था ।
राजकुमारी नंदिनी बार-बार अपने भ्राता राजा विक्रम सेन द्वारा रत्ना को देखे जाने दे उकता कर कहती है

अब अगर देख लिया हो तो और भी काम कर लो

ये सुनकर राजा विक्रम सेन शरमा जाते हैं लेकिन राजा विक्रम सिंह की तो पांच उंगली घी ही में थीं क्योंकि उनकी माता राजमाता तथा बड़ी बहन राजकुमारी नंदिनी भी सुबह से ही कहर बरपा रही थी । राजकुमारी नंदिनी मन ही मन सोचती है कि आज राजमाता से अपने छोटे भाई राजा विक्रम सिंह की शादी राजकुमारी रत्ना से कराने का प्रस्ताव अवश्य रखेगी।
इसी बीच राजमाता देवकी को जोर से मूत्र त्याग की इच्छा होती है और वह अपनी सेविका रांझा को इशारे से बुला कर कहती है की उसे तुरंत ही मूत्र त्याग इच्छा हो रही है और वह यहां उसके मूत्र त्याग की व्यवस्था करें । इस पर रंझा बोलती है कि राजमाता आपका कक्ष यहां से काफी दूर है और वहां तक पहुंचते-पहुंचते हो सकता है कि आप अपने घागरे में ही मूत्र त्याग कर दें। इससे अच्छा होगा कि आप किसी नजदीक के कक्ष में ही जाकर मूत्र त्याग करें । वह कहती है की राजा विक्रम सेन का कक्ष भी पास में ही है । राजमाता उसे यह देखने भेजती है कि राजा विक्रम सेन का स्नानागार खाली है और कोई वहां है तो नहीं। रांझा जाकर देख आती है कि राजा के कक्ष में कोई नहीं है और राजमाता को सूचित करती है कि राजा विक्रम सिंह का स्नानागार बिल्कुल खाली है ।राजमाता को जोर से मूत्र त्याग की इच्छा हो रही थी ।अतः बिना कुछ ध्यान दिए हुए वह राजा विक्रम सिंह के कक्ष में घुस जाती है।

इधर राजा विक्रम सेन को भी बहुत जोरों से पेशाब आई हुई थी क्योंकि उन्होंने तो सुबह से ही मूत्र त्याग नहीं किया था । तो वह भी मूत्र त्याग के लिए स्नानागार की ओर निकल पड़ते हैं । इधर राजमाता राजा विक्रम सेन के स्नानागार में पहुंचकर अपने घागरे को ऊपर उठा कर नीचे बैठ जाती है और अपनी बुर को फैला कर जोर से पेशाब करने लगती है । इधर राजा विक्रम सेन भी दौड़ते हुए अपने हाथ से लंड को दबाए हुए स्नानघर का परदा हटाकर दाखिल होते हैं। और दाखिल होते ही वहां का नजारा देखकर उनका मुंह खुला का खुला राज आता है । थोड़ी ही दूर पर उनकी माता अपना घाघरा उठा हुए चूत खोल कर मूत्र त्याग कर रही हैं । इधर राजा विक्रम सेन भी जोर से पेशाब लगने के कारण अपना पेशाब रोक नहीं पाते हैं और अपना लंड निकाल कर अपनी माता को देखते हुए पेशाब करने लगते हैं जिसकी छीटें राजमाता तक चली जाती है। अभी दोनों मां-बेटे एक दूसरे के सामने अपने यौनांगों को दिखाते हुए खड़े थे ।यह देख कर राजा विक्रम सेन को अलग ही अनुभूति हो रही थी की उन्होंने अपनी ही माता के योनि के दर्शन कर लिए और सुबह अपना लन्ड अपनी माता को दिखा चुका है।

राजा पीछे घूमते हैं और तेजी से अपने कक्ष से बाहर निकल जाते हैं इधर राजमाता भी इस घटना से हक्का-बक्का रह जाती हैं और अपना घाघरा नीचे करके जल्दी से बाहर निकल जाती है तथा कार्यक्रम में शरीक होने चली जाती हैं । कार्यक्रम में तो दोनों ही मां बेटे ऐसे व्यवहार कर रहे थे जैसे अभी उनके बीच कुछ हुआ ही न हो जबकि इन्होंने अभी - अभी एक दूसरे के योनांगों के दर्शन किए थे । इधर महाभोज का कार्यक्रम शुरू होता है । एक बड़े टेबल के सामने राजा माधव सिंह उनकी पत्नी और उनकी बेटी राजकुमारी रत्ना बैठी हैं तो दूसरी तरफ राजा विक्रम सिंह राजमाता देवकी और राजकुमारी नंदिनी बैठे हुए हैं । सेवक भांति भांति के पकवान इन लोगों के सामने परोस रहे थे । इसी बीच राजमाता राजा माधव सिंह से कहती है कि राजकुमारी रत्ना अब यौवनावस्था को प्राप्त कर चुकी है तो क्यों ना इसकी शादी संपन्न करा दी जाए ।इस पर राजा माधव सिंह राजमाता को बताते हैं कि कोई अगर योग्य वर हो तो वे अपनी पुत्री रत्ना का विवाह संपन्न कराने को तैयार हैं । छूटते ही राजमाता ने कहा कि क्यों ना राजकुमारी रत्ना की शादी विक्रम सेन से करा दी जाए ।

सभी हतप्रभ रह जाते हैं कि क्या राजा माधव सिंह अपनी पुत्री का विवाह राजा विक्रम सिंह से करेंगे ।राजा माधव सिंह इस पर अत्यंत के प्रसन्न हुए तथा उन्होंने कहा

राजमाता आपने तो हमारे मुंह की बात छीन ली हम तो यह चाहते ही थी की राजकुमारी रत्ना का विवाह राजा विक्रम सिंह से संपन्न हो जाए किंतु हम सभी आपके सामने विवाह का प्रस्ताव रखने में हिचकीचा रहे थे क्योंकि आप इतने बड़े राज्य के राजा हैं और मैं एक छोटे से राज्य का राजा हूं शायद आप हमारे घर विवाह करना पसंद नहीं करते ।

राजकुमारी रत्ना से विवाह का प्रस्ताव तो मैंने स्वयं दिया है तो इसमें छोटे बड़े होने की क्या बात है, राजमाता ने कहा ।

विवाह की बात सुनकर राजकुमारी रत्ना भी मन ही मन बहुत खुश होती है और वह सोचती है की उसके बुर् का वनवास भी अब खत्म होगा तथा जल्दी ही उसकी बुर को एक मोटा तगड़ा लंड मिलेगा जो उसकी बुर को चोद कर उसकी बुर् की गर्मी को ठंडा करेगा और वह मन ही मन अपनी चुदाई के सपने देखने लगती है ।अपनी शादी की बात होती सुन राजकुमारी रत्ना शरमा कर प्रांगण के दूसरी ओर चली जाती है और दीवार की ओट में खड़े होकर इनकी बात सुनने लगती है। राजा माधव सिंह राजमाता को कहते हैं कि एक बार राजा विक्रम सिंह जी की भी इच्छा जान ली जाए और राजकुमारी रत्ना से वह इस बारे में बात कर लेंगे ।राजमाता ने इन दोनों की राय जानने में अपनी कोई आपत्ति व्यक्त नहीं की। बल्कि उन्होंने तो यहां तक कहा कि इन दोनों को अपना जीवन गुजारना है इसलिए दोनों की राय लेना सर्वथा उचित है ।

राजमाता राजा विक्रम सिंह से उनकी राय जानना चाहती है जिस पर राजा विक्रम सिंह ने तुरंत ही अपनी सहमति अपना सिर हिला कर दे दी। राजा विक्रम सिंह तो सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि वे राजकुमारी रत्ना से विवाह करने में विलंब करें । फिर राजा माधव सिंह अपनी पत्नी को राजकुमारी दिल की बात जानने को भेजते हैं । राजकुमारी रत्ना दीवाल की ओट में खड़े होकर यह सारी बातें सुन रही थी ।जैसे ही राजकुमारी सुनती है उसकी मां उसकी राय जानने के लिए आ रही है तो वह और आश्चर्य में पड़ जाती है । इधर रानी सोचती है कि राजा विक्रम सिंह को देखकर उसकी खुद की बुर में खलबली मची हुई है तो उसको देख कर मेरी पुत्री क्यों नहीं विवाह करना चाहेगी। जब रत्ना से उसकी मां पूछती है कि क्या वह राजा विक्रम सिंह के साथ शादी करना चाहती है । इस पर वह चुप रहती है और कोई जवाब नहीं देती है । रानी सोचती है कि शायद मेरी पुत्री को यह विवाह पसंद नहीं है और आश्चर्यचकित होती है कि जिस राजा विक्रम सेन के बारे में सोच कर उसकी बुर सुबह से पनियाई हुई है , उससे शादी करने को उसकी पुत्री हां क्यों नहीं कह रही है ,,,लगता है कि मेरी पुत्री को यह विवाह पसंद नहीं है और मुड़कर वापस जाने लगती है।

अपनी माता को जाता देख राजकुमारी रत्ना जल्दी से बोलती है कि हां हां हां मुझे मुझे यह विवाह मंजूर है । अपनी पुत्री की सहमति लेकर राजा माधव सिंह के पास पहुंचती है तथा उन्हें राजकुमारी की सहमति की सूचना देती है। इस पर राजा माधव सिंह जी बड़े प्रसन्न होते हैं और राजमाता को विवाह तय होने की बधाई देते हैं । राजमाता मिठाई मंगाती है और मिठाई से राजा माधव सिंह का मुंह मीठा कराती हैं । राजमाता राजज्योतिषी को बुलावा भेजती हैं जो कि उस वक्त राजमहल में उपस्थित थे । राज ज्योतिषी के आते ही राजमाता राजा विक्रम सिंह की शादी तय होने की सूचना देती हैं तथा उनसे शादी का शुभ मुहूर्त बताने का आग्रह करते हैं। राजपुरोहित चार माह पश्चात् की तिथि शादी के लिए निश्चित करते हैं जिस पर दोनों पक्ष खुशी-खुशी राजी हो जाते हैं। राजकुमारी रत्ना शादी तय हो जाने के बाद ख्वाबों में डूब जाती है कि राजा विक्रम सिंह का लौंडा कैसा होगा और वह कैसे मेरी बुर को चोदगा।
Superb update
 

Incestlala

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Update 7

आज रात के महाभोज के आयोजन के पश्चात सभी अतिथिगण राजमहल से जा चुके थे। जन्मदिवस का कार्यक्रम समाप्त होते होते रात काफी बीत चुकी थी। रात्रि का तीसरा पहर चल रहा था। सभी लोग सो चुके थे , लेकिन कुछ लोगों की आंखों में नींद नहीं थी। राजा माधव सिंह उनकी रानी सुभद्रा देवी तथा राजकुमारी रत्ना राजकीय अतिथिशाला में विश्राम हेतु पहुंच जाते हैं। आज माधव सिंह और सुभद्रा दोनों अत्यंत ही प्रशन्न थे कि आज उनके मन की मुराद पूरी हो गई। वे दोनो अपनी पुत्री राजकुमारी रत्ना का विवाह राजा विक्रम सेन के साथ करना तो चाहते थे। किन्तु संकोचवश वे राजकुमारी के रिश्ते की बात राजमाता देवकी से नहीं कर पाते थे। और आज ऐसा सुखद संयोग हुआ की राजमाता देवकी ने ही अपने पुत्र राजा विक्रम सेन का विवाह राजकुमारी रत्ना से कराने का प्रस्ताव दे दिया।
अतिथगृह पहुंचकर राजा माधव सिंह रानी सुभद्रा से कहते हैं :

आज का दिन हमारे लिए खुशी का दिन है की राजमाता देवकी ने स्वयं हमारी पुत्री से अपने पुत्र का विवाह कराने का प्रस्ताव दे दिया,नहीं तो हम तो इस राजघराने में शादी का प्रस्ताव देने का सोच ही नहीं सकते थे।
राजन मै ना कहती थी आपसे की एक बार राजकुमारी रत्ना की शादी का प्रस्ताव ले तो जाइए। लेकिन आप ही यहां आने से हिचकिचाते थे। आखिर हमारी रत्ना भी सुंदरता में किसी अप्सरा से कम थोड़े ही है। देखा नहीं राजा विक्रम की नजरें रत्ना के मुख से हटती ही नहीं थी। लेकिन मै डरती थी की राजा विक्रम सेन का व्यक्तित्व इतना आकर्षक है कि रत्ना की सुंदरता इनके सामने फीकी पड़ जा रही थी और कहीं राजा विक्रम रत्ना से विवाह से इंकार ना कर दे।... रानी सुभद्रा ने कहा।
राजा विक्रम की बात कर रानी सुभद्रा का चेहरा बिल्कुल सुर्ख हो जाता है जिसे देख कर माधव सिंह सुभद्रा की छेड़ते हुए कहते हैं
क्या आपको भी राजा विक्रम भा गए हैं जो आप उनकी सुंदरता के पुल बांध रही है।
आप कुछ भी बोलते हैं, राजा विक्रम मेरी पुत्री के होनेवाले दूल्हे है, भला मै ऐसा कैसे सोच सकती हैं।और ऐसा कहकर वह मुंह घुमाकर बैठ जाती है।
मैं तो मजाक के रहा था मेरी रानी। ऐसा कह कर राजा माधव सिंह रानी सुभद्रा की ठुद्दी पकड़कर उनका चेहरा अपनी ओर घुमाते हैं।

छोड़िए राजन आप मुझसे बात मत करिए।

राजा माधव सिंह कहते हैं लो मैंने अपने कान पकड़ लिए।अब तो मान जाओ।

माधव सिंह के ऐसा कहने से सुभद्रा हल्के से मुस्कुरा देती है।

ऐसा ना करे राजन, मुझसे माफ़ी मांग कर नरक का भागी ना बनाए। लेकिन आगे से ऐसा मत बोलिएगा।राजा विक्रम सेन मेरी पुत्री के होने वाले पति हैं, उनको लेकर ऐसा मजाक मुझसे बिल्कुल मत कीजिएगा।

वो कहते हैं ना नारी त्रिया चरित्र की होती है, वो क्या सोचती है ,ये जानना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। यही रानी सुभद्रा आज सुबह के कार्यक्रम में राजा विक्रम सेन को देखकर उनके प्रति आसक्त हो गई थी और अपनी बुर को सहलाया था , उनसे चुदवाने का सपना देख रही थी और अभी पति द्वारा थोड़ा मजाक करने से नाराज़ ही गई थी। खैर माधव सिंह के निवेदन पर वह मान जाती है और मन ही मन एक कुटिल मुस्कान लेते हुए माधव सिंह के हाथ पर अपना हाथ रख देती है।

इधर राजकुमारी रत्ना अपने कमरे में लेटी हुई राजा विक्रम सेन के ख्यालों में डूबी रहती है , वह विक्रम सेन की नजरों को भुला ही नहीं पा रही थी जिन नजरों से वे रत्ना को देख रहे थे, उनकी नजरों में हवस नहीं था ,बल्कि एक अलग सा आकर्षण था जिसके मोह पास में रत्ना बांधती जा रही थी। रत्ना ख्यालों में डूबे डूबे राजा विक्रम सेन के लिंग की कल्पना करने लगती है ।

रत्ना मन में- हाय उनका लिंग कितना बड़ा होगा जब शरीर इतना गठीला है, कंधे इतने मजबूत और छाती इतनी चौड़ी है। अपने मोटे लिंग से वो मेरी नाजुक योनि चोदेंगे तो मेरी कोमल नाजुक योनि का क्या हाल होगा।

यही सोचते सोचते रत्ना कि सांसे तेज चलने लगती है और उसकी कामभावना भड़कने लगती है। वह अपना एक हाथ अपनी चूची के ऊपर ले जाती है और चोली के ऊपर से ही अपने चूचक रगड़ने लगती है और सोचती है कि राजा विक्रम अपने कड़क हाथों से मेरे इन्हीं स्तनों का मर्दन करेंगे। स्तन दबाने से उसकी उत्तेजना और बढ़ जाती है और सांसे और तेज चलने लगती हैं।उत्तेजना के वसीभूत होकर रत्ना अपना एक हाथ घाघरे के अंदर डाल देती है और अपनी योनि को स्पर्श करती है, फिर हथेली से अपनी योनि को दबोच लेती है और उत्तेजना में आंखे बंद कर कहती है

राजन मेरी योनि को रगड़ों,,,,इसे प्यार करो,,, इसे अपनी उंगलियों से रगडों,,,,इसमें अपनी उंगली डाल कर खूब जोर जोर से आगे पीछे कर के चोदो,,,,, मेरी योनि को अपने जीभ से चाटो,,,, मेरी योनि की फैलाकर इसमें अपना मोटा लन्ड डाल दो,,, मेरी योनि को खूब चोदो,,, मेरी चूचियों का मर्दन करो,,,,,इनका दूध पी लो,,,,,

रत्ना बड़बड़ाते जा रही थी और अपनी योनि की रगड़े जा रही थी। उत्तेजनावश वह अपनी चोली उतार फेकती है और अपने घाघरे का नाड़ा खोलकर घाघरे को भी पैरों के नीचे से निकाल देती है। अब वह मादरजात नंगी अपनी शैया पर लेटी हुई अपनी नंगी चूची को हाथ से मसले जा रही थी और कामुक आहें निकाल रही थी। दूसरे हाथ से अपनी योनि को फैलाकर रगड़ रही थी। उसकी योनि , योनि रस से गीली और चिकनी ही जाती है और उसकी अनामिका उंगली उसकी योनि में सरसराते हुए योनि की गहराइयों में चली जाती है।ये पहली बार था जब राजकुमारी रत्ना ने अपनी कुंवारी अनचूदी योनि में अपनी उंगली डाली थी। उसकी सांसे रुक जाती हैं। उसके योनिद्वार अभी ठीक से खुले भी नहीं थे। लेकिन योनि में ऊंगली की उपस्थिति अब उसे अच्छी लगने लगती है,,,धीरे धीरे वह अब सामान्य होती है। यह हस्तमैथुन का पहला अनुभव था। वह अपनी योनि में उंगली को तेजी से अंदर बाहर करने लगती है और बड़बड़ाने लगती है,,,,

चोदिये राजन चोदिए अपनी इस रानी को,,,,अपने मोटे लिंग से,,,,मेरी योनि बहुत प्यासी है जिसकी प्यास आपका मोटा लिंग ही बुझा सकता है। राजन मेरे स्तन चूसते हुए मेरी योनि की चोदिए। इसे फाड़ दीजिए। ऐसे चोदिए की आपका लिंग मेरी बच्चेदानी तक पहुंच जाए,,,, इस संसार में आपके लिंग से ही इस दिव्य योनि की प्यास बुझ सकती है,,,
ऐसे ही बड़बड़ाते हुए राजकुमारी रत्ना अपनी योनि में अपनी उंगली खूब तेजी से अंदर बाहर करने लगती है और करीब आधे घंटे के बाद चरमसुख को प्राप्त कर झड़ जाती है और उसकी योनि से भालभालाकर योनि रस की धार बहने लगती है। उसके हाथ योनि रस से भीग जाते हैं। वह योनि रस से भीगे हाथ अपने नक के पास लाती है और उसकी मादक सुगंध से मदहोश होने लगती है।

चुकी राजकुमारी रत्ना का हस्तमैथुन का ये पहला अनुभव था।अतः उन्हें यह अनुभव अदभुत लगता है। लगा जैसे शरीर हल्का होकर स्वर्ग की सैर कर रहा है। अपने पहले अनुभव के कारण राजकुमारी रत्ना यू ही बिल्कुल नग्न अवस्था में थक कर शैय्या पर सो जाती है और नींद में राजा विक्रम सेन के सपने देखने लगती है...........
Update 7

आज रात के महाभोज के आयोजन के पश्चात सभी अतिथिगण राजमहल से जा चुके थे। जन्मदिवस का कार्यक्रम समाप्त होते होते रात काफी बीत चुकी थी। रात्रि का तीसरा पहर चल रहा था। सभी लोग सो चुके थे , लेकिन कुछ लोगों की आंखों में नींद नहीं थी। राजा माधव सिंह उनकी रानी सुभद्रा देवी तथा राजकुमारी रत्ना राजकीय अतिथिशाला में विश्राम हेतु पहुंच जाते हैं। आज माधव सिंह और सुभद्रा दोनों अत्यंत ही प्रशन्न थे कि आज उनके मन की मुराद पूरी हो गई। वे दोनो अपनी पुत्री राजकुमारी रत्ना का विवाह राजा विक्रम सेन के साथ करना तो चाहते थे। किन्तु संकोचवश वे राजकुमारी के रिश्ते की बात राजमाता देवकी से नहीं कर पाते थे। और आज ऐसा सुखद संयोग हुआ की राजमाता देवकी ने ही अपने पुत्र राजा विक्रम सेन का विवाह राजकुमारी रत्ना से कराने का प्रस्ताव दे दिया।
अतिथगृह पहुंचकर राजा माधव सिंह रानी सुभद्रा से कहते हैं :

आज का दिन हमारे लिए खुशी का दिन है की राजमाता देवकी ने स्वयं हमारी पुत्री से अपने पुत्र का विवाह कराने का प्रस्ताव दे दिया,नहीं तो हम तो इस राजघराने में शादी का प्रस्ताव देने का सोच ही नहीं सकते थे।
राजन मै ना कहती थी आपसे की एक बार राजकुमारी रत्ना की शादी का प्रस्ताव ले तो जाइए। लेकिन आप ही यहां आने से हिचकिचाते थे। आखिर हमारी रत्ना भी सुंदरता में किसी अप्सरा से कम थोड़े ही है। देखा नहीं राजा विक्रम की नजरें रत्ना के मुख से हटती ही नहीं थी। लेकिन मै डरती थी की राजा विक्रम सेन का व्यक्तित्व इतना आकर्षक है कि रत्ना की सुंदरता इनके सामने फीकी पड़ जा रही थी और कहीं राजा विक्रम रत्ना से विवाह से इंकार ना कर दे।... रानी सुभद्रा ने कहा।
राजा विक्रम की बात कर रानी सुभद्रा का चेहरा बिल्कुल सुर्ख हो जाता है जिसे देख कर माधव सिंह सुभद्रा की छेड़ते हुए कहते हैं
क्या आपको भी राजा विक्रम भा गए हैं जो आप उनकी सुंदरता के पुल बांध रही है।
आप कुछ भी बोलते हैं, राजा विक्रम मेरी पुत्री के होनेवाले दूल्हे है, भला मै ऐसा कैसे सोच सकती हैं।और ऐसा कहकर वह मुंह घुमाकर बैठ जाती है।
मैं तो मजाक के रहा था मेरी रानी। ऐसा कह कर राजा माधव सिंह रानी सुभद्रा की ठुद्दी पकड़कर उनका चेहरा अपनी ओर घुमाते हैं।

छोड़िए राजन आप मुझसे बात मत करिए।

राजा माधव सिंह कहते हैं लो मैंने अपने कान पकड़ लिए।अब तो मान जाओ।

माधव सिंह के ऐसा कहने से सुभद्रा हल्के से मुस्कुरा देती है।

ऐसा ना करे राजन, मुझसे माफ़ी मांग कर नरक का भागी ना बनाए। लेकिन आगे से ऐसा मत बोलिएगा।राजा विक्रम सेन मेरी पुत्री के होने वाले पति हैं, उनको लेकर ऐसा मजाक मुझसे बिल्कुल मत कीजिएगा।

वो कहते हैं ना नारी त्रिया चरित्र की होती है, वो क्या सोचती है ,ये जानना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। यही रानी सुभद्रा आज सुबह के कार्यक्रम में राजा विक्रम सेन को देखकर उनके प्रति आसक्त हो गई थी और अपनी बुर को सहलाया था , उनसे चुदवाने का सपना देख रही थी और अभी पति द्वारा थोड़ा मजाक करने से नाराज़ ही गई थी। खैर माधव सिंह के निवेदन पर वह मान जाती है और मन ही मन एक कुटिल मुस्कान लेते हुए माधव सिंह के हाथ पर अपना हाथ रख देती है।

इधर राजकुमारी रत्ना अपने कमरे में लेटी हुई राजा विक्रम सेन के ख्यालों में डूबी रहती है , वह विक्रम सेन की नजरों को भुला ही नहीं पा रही थी जिन नजरों से वे रत्ना को देख रहे थे, उनकी नजरों में हवस नहीं था ,बल्कि एक अलग सा आकर्षण था जिसके मोह पास में रत्ना बांधती जा रही थी। रत्ना ख्यालों में डूबे डूबे राजा विक्रम सेन के लिंग की कल्पना करने लगती है ।

रत्ना मन में- हाय उनका लिंग कितना बड़ा होगा जब शरीर इतना गठीला है, कंधे इतने मजबूत और छाती इतनी चौड़ी है। अपने मोटे लिंग से वो मेरी नाजुक योनि चोदेंगे तो मेरी कोमल नाजुक योनि का क्या हाल होगा।

यही सोचते सोचते रत्ना कि सांसे तेज चलने लगती है और उसकी कामभावना भड़कने लगती है। वह अपना एक हाथ अपनी चूची के ऊपर ले जाती है और चोली के ऊपर से ही अपने चूचक रगड़ने लगती है और सोचती है कि राजा विक्रम अपने कड़क हाथों से मेरे इन्हीं स्तनों का मर्दन करेंगे। स्तन दबाने से उसकी उत्तेजना और बढ़ जाती है और सांसे और तेज चलने लगती हैं।उत्तेजना के वसीभूत होकर रत्ना अपना एक हाथ घाघरे के अंदर डाल देती है और अपनी योनि को स्पर्श करती है, फिर हथेली से अपनी योनि को दबोच लेती है और उत्तेजना में आंखे बंद कर कहती है

राजन मेरी योनि को रगड़ों,,,,इसे प्यार करो,,, इसे अपनी उंगलियों से रगडों,,,,इसमें अपनी उंगली डाल कर खूब जोर जोर से आगे पीछे कर के चोदो,,,,, मेरी योनि को अपने जीभ से चाटो,,,, मेरी योनि की फैलाकर इसमें अपना मोटा लन्ड डाल दो,,, मेरी योनि को खूब चोदो,,, मेरी चूचियों का मर्दन करो,,,,,इनका दूध पी लो,,,,,

रत्ना बड़बड़ाते जा रही थी और अपनी योनि की रगड़े जा रही थी। उत्तेजनावश वह अपनी चोली उतार फेकती है और अपने घाघरे का नाड़ा खोलकर घाघरे को भी पैरों के नीचे से निकाल देती है। अब वह मादरजात नंगी अपनी शैया पर लेटी हुई अपनी नंगी चूची को हाथ से मसले जा रही थी और कामुक आहें निकाल रही थी। दूसरे हाथ से अपनी योनि को फैलाकर रगड़ रही थी। उसकी योनि , योनि रस से गीली और चिकनी ही जाती है और उसकी अनामिका उंगली उसकी योनि में सरसराते हुए योनि की गहराइयों में चली जाती है।ये पहली बार था जब राजकुमारी रत्ना ने अपनी कुंवारी अनचूदी योनि में अपनी उंगली डाली थी। उसकी सांसे रुक जाती हैं। उसके योनिद्वार अभी ठीक से खुले भी नहीं थे। लेकिन योनि में ऊंगली की उपस्थिति अब उसे अच्छी लगने लगती है,,,धीरे धीरे वह अब सामान्य होती है। यह हस्तमैथुन का पहला अनुभव था। वह अपनी योनि में उंगली को तेजी से अंदर बाहर करने लगती है और बड़बड़ाने लगती है,,,,

चोदिये राजन चोदिए अपनी इस रानी को,,,,अपने मोटे लिंग से,,,,मेरी योनि बहुत प्यासी है जिसकी प्यास आपका मोटा लिंग ही बुझा सकता है। राजन मेरे स्तन चूसते हुए मेरी योनि की चोदिए। इसे फाड़ दीजिए। ऐसे चोदिए की आपका लिंग मेरी बच्चेदानी तक पहुंच जाए,,,, इस संसार में आपके लिंग से ही इस दिव्य योनि की प्यास बुझ सकती है,,,
ऐसे ही बड़बड़ाते हुए राजकुमारी रत्ना अपनी योनि में अपनी उंगली खूब तेजी से अंदर बाहर करने लगती है और करीब आधे घंटे के बाद चरमसुख को प्राप्त कर झड़ जाती है और उसकी योनि से भालभालाकर योनि रस की धार बहने लगती है। उसके हाथ योनि रस से भीग जाते हैं। वह योनि रस से भीगे हाथ अपने नक के पास लाती है और उसकी मादक सुगंध से मदहोश होने लगती है।

चुकी राजकुमारी रत्ना का हस्तमैथुन का ये पहला अनुभव था।अतः उन्हें यह अनुभव अदभुत लगता है। लगा जैसे शरीर हल्का होकर स्वर्ग की सैर कर रहा है। अपने पहले अनुभव के कारण राजकुमारी रत्ना यू ही बिल्कुल नग्न अवस्था में थक कर शैय्या पर सो जाती है और नींद में राजा विक्रम सेन के सपने देखने लगती है...........
Superb update
 
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