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Incest राजकुमार देव और रानी माँ रत्ना देवी

Incestlala

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2,029
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159
Update 8

इधर राजमहल में भी शान्ति छाई हुई थी। सभी अतथियों के जाने के बाद राजपरिवार के सभी सदस्य अपने अपने कक्ष में आराम करने के लिए जा चुके थे। रात्रि का तीसरा पहर था। राजमहल में चारों ओर मसालें जल रही थी। रांझा कोई गीत गुनगनाते हुए घूम रही थी कि सेवकों ने सभी सामान वापस जगह पर रखा है कि नहीं। आखिर वो भी राजमाता की मुंहबोली सेविका जो थी और इस राजपरिवार के लिए परिवार के सदस्य से कम नहीं थी, राजा विक्रम सेन और राजकुमारी नंदिनी उसे धाईं मां बुलाते थे, ,,,बचपन में
उन्होंने रांझा का दूध जो पिया है। रांझा केवल कहने को दासी थी ,,,,,लेकिन उसकी हैसियत राजपरिवार के किसी सदस्य से कम ना थी। उसका पुत्र कालू राजा विक्रम के उम्र का ही था,,,तभी तो वह राजा विक्रम को बचपन में दूध पिला पाती थी क्युकी उस समय उसके स्तनों में दूध आता था और जब राजमाता देवकी रात में महाराज सुर सेन की बाहों में नंगी होकर सम्भोग में लीन रहती,,,,उस समय रांझा ही देवकी के पुत्र पुत्री को अपने पुत्र के साथ संभालती और उन्हें अपने स्तनों से दूध पिलाती। महाराज सुर सेन देवकी की शारीरिक सुंदरता के इतने दीवाने थे कि हर रात देवकी को बिना चोदे नहीं मानते थे,,,,तभी तो देवकी को भी संभोग की लत लग गई थी,,,,यहां तक की देवकी को जब माहवारी आई होती तब भी महाराज उसे चोदे बिना नहीं छोड़ते थे।

इधर रंझा सारी व्यवस्था देखकर राजमाता देवकी के कक्ष की ओर चल देती है जहां देवकी अब सोने की तैयारी कर रही थी। देवकी ने भी राजकीय वस्त्र निकाल कर पतले कपड़े की चोली और घाघरा पहन लिया था जो वह सोते समय पहना करती थी । रं झा देवकी के कक्ष के बाहर पहुंच कर द्वार से ही प्रवेश की अनुमति मांगती है...

राजमाता क्या मै अंदर आ सकती हूं ,,,

कौन है,,, रांझा,,,, आजा तुझे किसने रोका है कमिनी,,,

जो आज्ञा राजमाता,,,,ऐसा कहकर वह कक्ष में प्रवेश कर जाती है और देखती है की देवकी सोने की तैयारी कर रही थी,,,,

मैंने आपको परेशान तो नहीं किया देवकी इतनी रात को

अरे नहीं ,,,, कौन सा मै सुहागन हूं जो पति के साथ बिस्तर गर्म करने के लिए रात का इंतजार करती हूं। और तू मुई मेरे जले पर नमक छिड़कती है। ,,,, ऐसा बोलकर देवकी मुस्कुरा देती है

राजमाता मुझे माफ़ करना,,,मेरा कहने का ये मतलब नहीं था,,,,

तू तो वास्तव में डर गई पगली,,,मै तो मजाक कर रही थी

हे हे हे,,, मैं भी तो मजाक ही कर रही थी,,, मैं क्यों डरूं तुमसे,,,तुम्हारे कई राज जानती हूं मै,,,,ऐसा बोलकर रांझा दांत निकाल कर वह हस देती है।

आजा रांझा,,,,क्या बताऊं ,,,,आज बहुत थकावट सी हो गई है,,,दिन भर दौड़ते ही रहे,,,और फिर रात में महाभोज,,,,पूरा शरीर टूट रहा है,,,, और कमर में बहुत दर्द हो रहा है,,,लगता है अब मै बूढ़ी हो गई हूं,,,

अरे तो मै तो हूं ना,,तुम्हारी दासी,,,आओ लेट जाओ बिस्तर पर,,,मै तुम्हारे शरीर की मालिश कर देती हूं,, और तू बूढ़ी कहां हुई है,,,अभी भी तुझे देखकर बुड्ढों के लिंग तुम्हहारी योनि को सलामी देने के लिए खड़े हो जाएं,,,,

अब बस कर,,, ये ठीक रहेगा,, आ जा थोड़ी मालिश कर दे और हां ,,, थोड़ा तेल भी ले ले,,,तेल से मालिश कर देगी तो सारा दर्द दूर हो जाएगा,,

अभी लाती हूं देवकी,,,तू तब तक बिस्तर पे लेट जा

रांझा फटाफट जाती है और औषधीय तेल की शीशी ले आती है जो राज वैद्य ने खास तैयार किया था। तब तक देवकी बिस्तर पे पेट के बल लेट जाती है,,,

रांझा देवकी के पीठ पर तेल गिर।कर तेल मालिश करने लगती है और उसके कंधे से लेकर कमर तक मालिश करने लगती है। लेकिन बीच में देवकी की चोली मालिश करने में दिक्कत कर रही थी। तो रांझा बोलती है

देवकी तेरी चोली परेशान के रही है मालिश करने में,,,निकाल दे इसे तो मै अच्छे से तेरी मालिश कर दू,,,

ठीक है,,,तू रुक जरा,, मेरी चोली की डोर तो खोल दे पीछे से।

देवकी के कहने पर रांझा उसकी चोली की डोर खोल देती है और चोली के दोनो भागो को अलग कर देती है जिससे देवकी की पूरी पीठ नंगी हो जाती है। रांझा अब पूरे पीठ पे अच्छे से मालिश करने लगती है और हाथ उसकी कमर तक ले जाती है जहां से देवकी का घाघरा शुरु होता था और देवकी से कहती है

देवकी तेरी नंगी पीठ कितनी चिकनी है,, मन करता है इसकी सहलाती ही रहूं

चुप छीनाल,,,तू बड़ी वैश्या है रे,,,औरत होकर औरत की नंगी पीठ तुझे अच्छी लगती है,,,

अब तेरा शरीर है ही संगमरमर की तरह तो क्यों ना अच्छा लगे मुझे,,,,रांझा ने कहा

अच्छा ठीक है चुप कर,,, अब मालिश पे ध्यान दे,,,देवकी ने जवाब दिया लेकिन मन ही मन अपनी
जवानी की प्रशंसा सुनकर वह रोमांचित ही रही थी,,,

फिर रांझा बात छेड़ते हुए कहती है,,,देवकी आज तो तु गजब की सुन्दर लग रही थी,,,राजकुमारी नंदिनी तुम्हारे सामने फीकी पड़ गई थी,,,तुम तो नंदिनी की बहन लग रही थी,,

तू कुछ भी बोलती रहती है रांझा,,,कहा राजकुमारी नंदिनी का कोमल यौवन और कहां मेरा बूढ़ा बदन,,,कोई तुलना ही नहीं है,,,तू केवल मेरा मन रखने को बोलती है,,,

नहीं देवकी, मै सच बोल रही हूं,,,,देखा नहीं सभी तुम्हे कैसे घुर रहे थे,,,और तो और तुम्हारा प्रिय पुत्र विक्रम भी तुम्हारे यौवन का रस पिये जा रहा था,,,और ऐसा बोलकर रांझा एक कुटिल मुस्कान मुस्कुराती है,,,

ये सुनकर देवकी शरमा जाती है और तकिए में अपना मुंह छिपा लेती है।

अब जरा सीधी लेट जा देवकी ,,आगे भी मालिश कर दूं,,,

ऐसा कहने पर देवकी सीधी लेट जाती है जिसके स्तन अभी चोली से ढके होते है,,,रांझा देवकी के कंधे ,गर्दन से होते हुए चोली के खुले भाग तक मालिश करने लगती है, लेकिन चोली के कारण वह ठीक से मालिश नहीं कर पाती है और कहती है,,,

ये चोली तो हटा देवकी,,,कितनी परेशानी हो रही है मालिश करने में और तेरी चुची की भी मालिश नहीं हो पा रही है,,,

नहीं नहीं ,,,रहने दे,,,ऐसे ही मालिश कर दे

तू आज शरमा क्यों रही है,,तू तो ऐसे शर्मा रही है जैसे मैंने तुम्हारी चूचियों को नंगा देखा ही नहीं है,,,ले हटा ,,,मै ही इसे हटा देती हूं और ऐसा बोलकर देवकी के स्तन पर से चोली हटा देती है,,,,और अब देवकी की चूची पूरी नंगी होकर बाहर निकाल जाती है जिसे देखकर रांझा आश्चर्य से बोलती है,,

ये क्या देवकी तुम्हारे स्तन तो पूरे खड़े है,,,,क्या बात है महाराज की याद आ रही है या फिर ------

अब तू नंगी करके मालिश करेगी तो चूची तो कड़क होगी ही ना,,,चल तू मालिश कर

रांझा फिर मालिश करने लगती है और इस बार हाथो में तेल लेकर उसकी चूची पे लगने लगती है और जोर जोर से मालिश करने लगती है। देवकी के बड़े बड़े स्तन को हाथों ने भरकर उसे मसलने लगती है और शरारत करती हुई उसके चूचुकों की अपनी उंगलियों से मसल देती है जिससे देवकी की आह निकल जाती है,,,और उसकी काम भावना उमंगे मारने लगती है,,,,वह रांझा से बोलती है,,,,

ये क्या कर रही है छीनल,, देख नहीं रही मुझे दर्द हो था है,,,,

देवकी ये दर्द की सिसकारी नहीं,ये तो मजा की सिसकारी है और ऐसा बोलकर उसकी एक चूची को अपने मुंह में लेकर चूस लेती है,, जिस पर देवकी उसके सर पर एक चपत लगती है और कहती है

अब हो गया रण्डी साली,,,तू मालिश कर और एक हल्दी सी कामुक मुस्कान देती है

रांझा देवकी की छाती और पेट की मालिश करती है और फिर पैर की मालिश करने देवकी के पैरो के तरफ जाकर बैठ जाती है,,,और उसके पैरो के तलवे और पिंडली की मालिश करने लगती है,,,और देवकी से कहती हैi----

अपना घाघरा थोड़ा ऊपर उठा लो तो मै अच्छे से तुम्हारे पैरों की मालिश कर दूं

इस पर देवकी अपना घाघरा घुटनों तक के लेती है और रांझा उसके पैरो पर घटनो तक मालिश करने लगती है

तू बहुत अचछा मालिश करती है रांझा,,,मेरे पैरो का दर्द बहुत कम हो गया है,,,देवकी ने कहा

अभी कहा मालिश हुई है ठीक से,,,अभी मै तुम्हारे जांघों की मालिश करूंगी तब देखना तुम्हारे शरीर का दर्द कैसे खत्म होता है और ऐसा कहते हुए देवकी के घाघरे को उसके घुटनो से ऊपर सरकाकर जांघों के ऊपर चढ़ा देती है,,,जिससे देवकी की दोनो टांगे जांघों तक नंगी हो जाती है,,,वह उपर से तो नंगी थी ही अब नीचे भी उसके पैर नंगे हो जाते हैं,,,,वह देवकी के पैरों की अच्छे से मालिश करने लगती है और हाथो को नीचे से ले जाकर उसके जांघों की जड़ों तक घाघरे के अंदर से हाथ ले जाती है,,,फिर वह देवकी से कहती है,,,

देवकी अपना घाघरा भी निकाल दे, नहीं तो तेल से तेरा घाघरा गंदा हो जाएगा और ये तेल तो और दाग छोड़ता है ,एक बार लग गया तो छूटता ही नहीं है,,,लेकिन देवकी घाघरा खोलने में आना काना करती है और कहती है,,,,,

मुझे शरम आ रही है रांझा,,,आज मै पूरी नंगी नहीं होऊंगी

अगर घाघरा नहीं उतरोगी तो एक तो घाघरा गंदा होगा,,, दूसरे तुम्हारी मालिश ठीक से नहीं हो पाएगी

ठीक है,,,तो एक शर्त है,,,तू क्यों कपड़े पहने है,,,चल तू भी निकाल कपड़े,,,

ये कौनसी बड़ी बात है ,,,ये लो मैं निकाल देती हूं अपने कपड़े और एक ही झटके में अपनी चोली निकाल कर फेंक देती है,,,,

घाघरा भी तो निकाल दे,,,देवकी ने कहा

इस पर रांझा कुछ सोचती है,,,तब तक देवकी उसके घाघरे का नाड़ा खोल देती है जिससे रांझा का घाघरा सरसराता हुआ उसके पैरों में गिर जाता है और वह पूरी मादरजात नंगी हो जाती है,,,उसकी बुर आज पहली बार देवकी की सामने थी जिसे देखकर देवकी मुस्कुरा देती है और कहती है

तेरी बुर पर तो बहुत घने जंगल है रांझा ,,, इस जंगल को पार कर गुफा तक पहुंचना बहुत मुश्किल होता होगा और ये कहकर देवकी उसके बुर को अपने हाथ से सहला देती है जिससे रांझा की आह निकल जाती है,,,,और देवकी मुस्कुराने लगती है,,,,तब देवकी कहती है,,,

अब तो खुश राजमाता ,,,, जो मुझे पूरी नंगी कर दिया,,,,आओ अब मै तुम्हारी मालिश कर दूं और ऐसा बोलकर उसके घाघरे को उसके पैरो से निकालने लगती है जिसे देवकी के उन्नत नितंब रोक रहे थे,,,देवकी समझ जाती है और अपने गान्ड थोड़ी सी ऊपर उठती है जिससे देवकी का घाघरा आराम से उसके पैरो से निकल जाता है और वह पूरी नंगी अपने बिस्तर पर लेटी रहती है ,,,रांझा हाथों में तेल लेकर देवकी के पैरों की मालिश करने लगती है और अब अपने हाथ से उसके जांघ की मालिश करने लगती है,,,वह मालिश करते हुए जैसे हाथ उपर ले जाती उसकी उंगलियां देवकी की योनि के बालों से छू जाती,,,रांझा मालिश करते हुए कहती है,,,,

एक बात कहूं,,,, तुम्हारी योनि में आज अलौकिक चमक दिख रही है,,,क्या किसी ने दर्शन कर लिए आपकी योनि के,,,,

चुप कर बेशरम ,,,ऐसा क्या है इस योनि में जो आज ये अलौकिक हो गई,,,

रांझा मालिश करते करते अपने हाथ में तेल लेकर देवकी की बुर पे हाथ रख देती है जिससे देवकी गन गना जाती है,,,रांझा बड़े प्यार से देवकी की योनि की मालिश करने लगती है और उसको निहारने लगती है,,,,

रांझा देवकी की बुर को मालिश करते हुए कहती है

एक बात पूछूं,,, बुरा तो नहीं मानोगी,,,

नहीं , पूछ क्या पूछना है,,आज तू बड़ी पूछ पूछ कर बातें कर रही है

रांझा उसकी बुर को सहलाते हुए कहती है,,,

देवकी ,,,तुम्हे तुम्हारे बेटे का लंड आज सुबह देख कर कैसा लगा,,,

देवकी ने इस प्रश्न की आशा नहीं की थी, क्यों की उसने सोचा की ये बात रांझा संकोचवश कहीं ये बात नहीं बोलेगी,,,लेकिन यहां रांझा ने तो प्रश्न कर दिया था,,,
राजमाता के कक्ष में सन्नाटा छा गया था ,,,केवल दो सांसे बहुत तेज चल रही थी,,,एक तो देवकी की ओर दूसरे रांझा की,,,लेकिन रांझा कहा रुकनेवाला थी,,,उसने फिर कहा,,,,

बताओ ना देवकी ,,कैसा लगा तुम्हे अपने प्यारे बेटे का लंड

और ऐसा कहते हुए उसकी कामुक सिसकियां भी निकल रही थी और वह देवकी की बुर को भी हौले हौले सहलाए जा रही थी।

ये तू क्या पूछ रही है रांझा ,,,तू नहीं जानती वो मेरा पुत्र है और एक मा अपने पुत्र के बारे में ऐसा नहीं सोच सकती,,, (अब देवकी क्या बताएं की वह अपने पुत्र का लंड देखकर खुद पागल हो गई है )

देवकी मैंने खुद देखा है तुम्हे उसका खड़ा लंड अपने हाथ में पकड़े हुए,,,मुझसे ना छुपाओ,,,,योनि बेटा या पति नहीं देखती,,उसे तो बस मोटा लौड़ा चाहिए होता भले ही वह उसके बेटे का ही क्यों ना हो।

रांझा की बातो से देवकी गरम हो जाती है और उसकी बुर पनिया जाती है जिसे रांझा महसूस करती है और यह देख कर वह एक हाथ ऊपर ले जाकर उसकी चूचियों को मसलने लगती है और उसके चुचुकों को अपनी उंगली के बीच फसाकर मसलने लगती है जिससे देवकी पूरी गरम हो जाती है। ऐसा देख कर रांझा देवकी की योनि के भग्नासे ( clutorics ) को अपनी उंगली से रगड़ने लगती है जिससे देवकी ओर गरम हो जाती है और मचलने लगती है। रांझा समझ जाती है कि देवकी गरम हो गई है,,,,, और फिर वह बात आगे बढ़ती है,,,,

बताओ ना देवकी चुप क्यों हो,,,मैंने अपनी आंखो से देखा था कि तुमने अपने पुत्र का लौड़ा हाथ में पकड़ा हुआ था और तुम उसके लन्ड को छोड़ ही नहीं रही थी और उधर विक्रम भी तुम्हारी चूची को पकड़े हुआ था,,,मुझे तो बहुत दमदार लंड लगा तेरे पुत्र का,,, अगर वो मेरा बेटा होता तो मै आज ही उससे चुदवा ली होती,,,

ऐसा बोलते बोलते रांझा अपनी एक उंगली देवकी की बुर में डाल देती है और जोर जोर से रगड़ने लगती है।।। वह अपनी ऊंगली देवकी की बुर में खूब अंदर बाहर करने लगती है जिससे देवकी सिसकने लगती है और पूरी मस्ती में आ जाती है,,
रांझा फिर कहती है,,,
देवकी मैंने देखा था तुम कैसी ललचाई नजरों से अपने बेटे के लंड को देख रही थी,,,मेरी भी आंखे उसके लौड़े से हट ही नहीं रहीं थीं,,,

इस पर देवकी सिसकियां लेते हुए मस्ती मे कहती है,,,,,

हां मैंने अपने पुत्र का लंड देखा है,,बहुत प्यारा लंड है उसका ,,, उसके लन्ड की गोरी चमड़ी और गुलाबी सुपाड़ा,,, हाय क्या गजब ढा रहा था,,, और उस पर उसकी फूली हुई नसें मुझे पागल बना रही थी,,,मेरी नज़रे तो उसके लौड़े से हट ही नहीं रहीं थी रांझा,,,मै आज दिन भर उसी की यादों में खोई रही,,,रांझा जरा जल्दी जल्दी मेरी योनि में उंगली कर,,,सहा नहीं जा रहा,,,,आज उसका मोटा लौड़ा हाथ में लेकर छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा था,,,वो तो अच्छा हुआ की तू आ गई ,,,नहीं तो आज पता नहीं क्या हो जाता,,,विक्रम के लौड़े में इतनी जान है की अगर कोई स्त्री एक बार देख ले तो बिना सम्भोग किए नहीं मानेगी,,,,

देवकी ऐसे ही बड़बड़ाए जा रही थी मस्ती में और रांझा उसके बुर में उंगली किए का रही थी,,,कमरे में देवकी की योनि की खुशबू फैल गई थी,,,जिस पर रांझा कहती हा

देवकी तुम्हारे योनि की मदमस्त गंध पूरे कक्ष में फ़ैल गई है,,,, मै ना कहती थी कि आज तुम्हारी योनि में आज अलौकिक सुंदरता दिख रही है मुझे,,,

अरे ये मेरी योनि की अलौकिक सुंदरता तो मेरे पुत्र के लिंग के दर्शन का कमाल है,,,जबसे उसका लन्ड देखा है,,,,या यों कहें कि जबसे उसके लिंग को हाथ में लेकर पकड़ा है तबसे मेरी बुर में भूचाल मचा हुआ है,,,सुबह से ही मेरी बुर पानी छोड़ रही है,,,क्या बताऊं महाराज के जाने के बाद आज पहली बार लंड पकड़ा था और वह भी इतना शानदार लंड,,,,देवकी ने कहा,,,

देवकी अगर अपने पुत्र का लंड देख कर तेरी योनि का यह हाल है तो तू अपने पुत्र के साथ संभोग क्यों नहीं कर लेती,,,आखिर उसी ने ना तुम्हारे हाथ में अपना लन्ड दिया होगा ,,,और तो और उसने तो तुम्हारी चूचियों को भी पकड़ रखा था,,,और दबा भी रहा था,, आखिर उसे भी तुम्हारे साथ यौन संबंध बनाने की इच्छा रही होगी,,,

ऐसा कैसे हो सकता है रांझा,,,आखिर वो मेरा पुत्र है,,,मेरी कोख से जन्मा है,,,और उसी कोख में उसके लंड से चुदवा कर मै उसका वीर्य कैसे गिरवा सकती हूं,,तेरे में बड़ी आग लगी है तो तू ही अपने पुत्र के साथ क्यों नहीं सम्भोग करती ,,,,जो तू मुझे समझा रही है,,,,

राजा विक्रम यदि मेरे पुत्र होते तो मै तो कब का उनसे चुदवा ली होती देवकी,,,,उनका खड़ा लंड तो मुझे भूल ही नहीं रहा है,,

रांझा और देवकी के बीच कामुक वार्ता लप चल रही थी और रांझा देवकी की बुर में अपनी दो उंगलियां घुसेड़ कर चोदन करने लगती जिससे देवकी को और भी मस्ती च ढ़ जाती है और वह कामुक सिसकियां निकालने लगती है,,, और वह कहती हैं

इतनी ही गर्मी अगर तेरे बुर में लगी है तो चुदवा ले ना अपने बेटे से ,,, वह भी तो विक्रम का हमउम्र ही है और लंबा चौड़ा भी है,,, उसका लन्ड भी तो मोटा ही होगा,,,,क्यों री रांझा,,

ऐसा ना बोल देवकी वो मेरा बेटा है,,,

तो ऐसे ही विक्रम भी तेरा पुत्र है छिनाल जिससे चुदवाने की तू मुझे बोल रही है,,,मा और पुत्र के बीच यौन संबंध अवैध होता है जिसकी इजाजत समाज कभी नहीं देता है,,,

तो मै कौन सा समाज के सामने चुदवाने को बोल रही हूं,,, अकेले में छुप कर चुदवा ले ,,,किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा,,,,

रांझा की कामुक बातों से राजमाता देवकी की यौन भावनाएं एकदम बढ़ गई थीं जिसमें देवकी को खूब मजा आ रहा था ,,, क्यों कि कामुक बातों के साथ रांझा देवकी की बुर भी अपनी उंगलियों से चोद रही थी,,,,

और तेज चोद रांझा,,,और तेज,,,और तेज,,,,मै झड़ने वाली हूं,,,और ऐसा बोलते बोलते देवकी चरमोत्कर्ष पा लेती है और वह झड़ जाती है ,,,,उसका बदन अचानक अकड़ जाता है,,,उसकी बुर से योनि रस की धार बह निकलती है जिससे रांझा की पूरी हथेली गीली हो जाती है जिसे रांझा अपने नाक के पास लाकर सुंग्घटी है और कहती है,,

अदभुत,,अत्यंत मादक सुंगध है देवकी,,तुम्हारे बुर से निकले हुए अमृत का,,,

और ऐसा बोलकर वह देवकी के बुर से निकले पानी की वह चाट लेती है,,,,

छी तू बड़ी गन्दी है रांझा,,कोई बुर का पानी चाटता है क्या,,,देवकी ने कहा,,,अब झड़ने के बाद देवकी को थोड़ी आत्मग्लानि होती है कि अभी थोड़ी देर पहले वह कैसे बातें कर रही थी,,,, और उसके चेहरे पर शर्म का भाव आ जाता है,,,,

आज के लिए बस इस अपडेट में इतना ही,,,,आगे देखते है और क्या होता है,,,
Superb update
 

Incestlala

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Update 9
देवकी के कक्ष में दो सांसे खूब तेज चल रही थी। कमरे में देवकी और रांझा पूर्ण नग्न अवस्था में थी। अभी अभी देवकी झड़ी है और वह आंखे बंद कर अभी योनि में हुए घर्षण को याद कर आनंदित हो रही थी। वहीं रांझा भी पूरी नंगी देवकी के बगल में बैठकर उसके नंगे बदन को सहला रही थीं ताकि राजमाता थोड़ी सामान्य हो सके। फिर रांझा बोलती है ,,

देवकी तुम्हारा नंगा शरीर कितना सुन्दर है,,बिल्कुल तराशा हुआ,,,, संगमरमर की तरह स्वच्छ और सुन्दर है और उस पर तुम्हारी योनि पे हल्के बाल , उसकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। काश मै पुरुष होती,, तो मै अभी तुम्हरी योनि में अपना लिंग डालकर चोद देती तुम्हें। लेकिन अफसोस, ,,,,

तब देवकी कहती है,,, अब चुप कर रांझा ,,,मै सब जानती हूं,,,तू मेरी झूठी तारीफ करती है,,,,कहां मै अब बूढ़ी हो है हूं और तू कहती है की मेरा शरीर संगमरमर सा सुन्दर है,,,झूठी कहीं की,,,

नहीं राजमाता,,ऐसी बात नहीं है,,,आज तुम्हारा शरीर और खिला हुआ दिख रहा है,,,बिल्कुल नव यौवना की तरह,,,,और आज तो एक और खास बात हो गई है,,,और ऐसा कहकर वह एक कुटिल मुस्कान मुस्कुरा देती है,,,जिसे देवकी देख लेती है।

अच्छा,,अब मुंह बन्द कर अपना,,,साली छिनार,,देवकी ने कहा,,,,हालाकि रांझा की बातों से देवकी के मन में गुदगुदी सी हो रही थी।

अच्छा जी,,,मै चुप रहूं ,,,अपने पुत्र के लिंग के बारे में सोचकर पानी तो तू ही छोड़ रही थी ना ,,,,, अब तो भलाई का जमाना ही नहीं रह गया,,,एक तो बुर की मालिश करो,,,बुर में उंगली करो और फिर गालियां भी सुनो,,,,,रांझा ने कहा

अच्छा चल तू बुरा मत मान,,, मै मानती हूं कि मुझे आज बहुत अच्छा लगा ,,,महाराज के जाने के बाद पहली बार किसी ने मेरी योनि को सहलाया था और उसमें उंगली की थी और आज मै कई सालों के बाद झड़ी हूं,,,, हां ये सच है की इस दौरान मेरे पुत्र विक्रम के लिंग की बाते मुझे और उत्तजित कर रही थी । आज विक्रम के साथ हुई घटनाओं ने मुझे उद्वेलित कर दिया था। खैर छोड़ इन बातों को,,,,एक बात आज पता चली मुझे की तू भी बुर में उंगली अच्छे से करना जानती है।

देवकी आज सुबह ही मैंने तेरी नज़रों को पढ़ लिया था,,,जैसे तू विक्रम के लंड को देख रही थी और उसे अपने हाथों से पकड़ा हुआ था,,,तू तो अपने बेटे का लंड छोड़ना ही नहीं चाह रही थी,,,

ये तू सच कह रही है रांझा,,,,मेरा मन तो अपने पुत्र के लंबे मोटे खड़े को छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा था,,,कितना मनमोहक है मेरे बेटे का लन्ड,,,, वाह महाराज की याद आ गई,,,बिल्कुल अपने पिताश्री पर गया है विक्रम,,,,बिल्कुल हूबहू अपने पिता जैसा ही लौड़ा है उसका,,,,

इन कामुक बातों से दोनो उत्तेजित होने लगती हैं और उनकी सांसे तेज चलने लगती हैं,,,रांझा उत्तेजनावश अपना एक हाथ देवकी की चूची पर लेजाकर उसे दबाने लगत है और अपनी एक उंगली से उसके चूचूकों को रगड़ने लगती है जिससे देवकी ओर उत्तेजित और हो जाती है,,,देवकी खुद रांझा का दूसरा हाथ पकड़कर अपनी बुर पे रख कर रगड़ने लगती है,,,रांझा उसके भाग्नासे को अपनी उंगली से छेड़ने लगती है जिससे देवकी की उत्तेजना की कोई सीमा नहीं रहती है,,,,देवकी आहें भरने लगती है और अचानक फुर्ती से रांझा को अपनी ओर खींच कर उससे चिपक जाती है,,,उसे एक मानव शरीर की जरूरत महसूस होती है चाहे वो किसी का भी हो,,,,पुरुष का या स्त्री का,,,,देवकी रांझा को गले लगा कर अपने स्तन से उसके स्तन को रगड़ने लगती है जिसमें उसे असीम आनन्द की अनुभति होती है,,,, रांझा भी देवकी का साथ देने लगती है,,,दोनो का एक स्त्री के साथ सहवास का यह पहला अनुभव था,,,लेकिन देह की गर्मी उन्हें ऐसा करने को मजबुर कर रही थी,,, दोनों एक दूसरे से आलिंगनबद्ध होकर कााम सुख का आनंद ले रही थी। रांझा बोलती है --

देवकी, तू बहुत खूबसूरत है और तुम्हारे पुत्र और पुत्री भी तुम्हारी तरह ही अदभुत सुंदरता के मालिक है। राजा विक्रम को देख कर तो बुर में खुजली होने लगती है और राजकुमारी नंदिनी को देखकर तो अच्छों अच्छों का मन डोल जाए

कामवासना में लीन देवकी बोलती है,,,,तू सही कह रही है रांझा,,,मेरे पुत्र का लंड देखकर तो उससे नज़रे ही नहीं हटती है,,,,और आज तो ब्रह्म मुहूर्त में ही मुझे मेरे पुत्र के मोटे लंबे और तगड़े लंड का दर्शन हो गए,,,क्या शुभ दिन रहा आज,,,और एक बात बताऊं तुम्हें,,,आज रात में ही महाभोज के समय उसके स्नानागार में उसने भी मेरी योनि के दर्शन कर लिए, जब मै उसके स्नानागार में मूत्र त्याग करने गई थी,,,उसका तो मुंह खुला का खुला रह गया था,,,

सच देवकी,,,,क्या तुम्हारे पुत्र ने आज तुम्हारी बुर देख ली,,,अब तो वह भी तुम्हे चोदे बिना नहीं मानेगा,,,,लगता है आग दोनो तरफ लगी हुई है,,,,
रांझा ने कहा

हा रांझा ,,,,, स्नानागार में हम दोनों अपने अपने जननांगों को नंगे किए हुए एक दूसरे के सामने थे और मै अपने बेटे के लंड को और मेरा बेटा मेरी योनि को लगातार देखे जा रहा था,,, मैं तो अपने पुत्र के लंबे मोटे लिंग की दिवानी हो गईं हूं,,,मन करता है उसकी मालिश कर दूं,,, लेकिन क्या करूं वो मेरा बेटा है रांझा,,,

बेटा हुआ तो क्या हुआ देवकी ,,, लिंग और योनि मां और बेटा नहीं पहचानते,,, लंड को केवल बुर और बुर को केवल लंड चाहिए,,,बोल देवकी , चुदवाएगी ना तू अपने बेटे के लौड़े से,,,,

हा रांझा हा, मै अपने पुत्र के लौड़े से चुद्वाऊंगी,,,उसे मन ही मन मैंने सब कुछ सौंप दिया है,,,मै उसके लंड से अपनी बुर को चुदवा कर अपनी बुर की प्यास बुझाउंगी

और इस तरह दोनो कामुक बारे करते करते झड़ जाती है,,,

अब देखते है अगले अपडेट में क्या होता है,,,,
Superb update
 

Lucky..

“ɪ ᴋɴᴏᴡ ᴡʜᴏ ɪ ᴀᴍ, ᴀɴᴅ ɪ ᴀᴍ ᴅᴀᴍɴ ᴘʀᴏᴜᴅ ᴏꜰ ɪᴛ.”
6,666
25,376
204
अपडेट 13

नंदिनी ने फिर बात को आगे बढ़ाया और बताने लगी,,

फिर तो मां हमारे ऊपर तो मुसीबते ही आ गईं,, पिता जी का यों अचानक चले जाना और राजदरबार की राजनीति ने तो हमें परेशान ही कर दिया था। वो तो भला हो राजा माधव सिंह का ,,, की हमारी जान बची,,

सच कहा बेटा,,अगर राजा माधव सिंह समय पर नहीं आते तो हम कहीं के नहीं रहते,,, वो तो उनके आने से राजदरबार में किसी की हिम्मत नही हुई की वे विक्रम को राजा घोषित किए जाने का विरोध कर सके और तो और ये राजा माधव सिंह की ही देन है कि तुम्हे उन्होंने राजा का मुख्य सलाहकार घोषित करवा दिया क्यों कि अभी विक्रम में इतनी परिपक्वता नहीं थी कि वह राज काज अकेले संभाल पाता और दरबारी पता नही इससे क्या क्या करवा बैठते,,,, वो तो मैने इसीलिए विक्रम की शादी राजकुमारी रत्ना से तय कर दी है,,,एक तो वह खूबसूरत भी बहुत है और दूसरे आखिर हमे ऐसे भले आदमी की जरूरत हमेशा पड़ेगी,,, और उन्होंने तो विपरीत परिस्थितियों में हमारा साथ दिया,,,शायद वो नहीं होते तो हम मार दिए गए होते,,,,राजमाता देवकी ने कहा

सच कहा मां, उनका कर्ज हम जिंदगी में कभी नहीं उतर पाएंगे,,,, लेकिन रत्ना तो मेरी सौतन बन कर ही आयेगी ना,,, नंदिनी ऐसा कह कर हस देती है,,,

चुप कर तू,,, बदमाश कहीं की,, रत्ना तुम्हारी सौतन कैसे होगी,,, तू विक्रम की धर्मपत्नी थोड़ी ही है,,,बहन है ,,,बहन बन कर ही रह,,, तुम दोनों के संबंध अवैध है और अवैध ही रहेंगे समझी,,, राजमाता देवकी ने समझाते हुए कहा और मुस्कुरा देती है,,,

लेकिन माते,, मैने तो बहन से विवाह कर ही लिया होता,,वो तो अच्छा हुआ की बहन ने मना कर दिया था,,,राजा विक्रम ने कहा और फिर बात आगे बढ़ाते हुए बोलते है,,,

माते , आपको तो याद ही होगा कि मेरे गद्दी संभालने के कुछ समय बाद मल्ल प्रदेश में सीमावर्ती राज्य से सीमा विवाद हुआ था जिससे निपटने के लिए मैं और नंदिनी बहन मल्ल प्रदेश गए थे। आप तो जानती ही हैं कि मल्ल प्रदेश हिमालय की तराई में स्थित है और बहुत ही रमणीक स्थल है और वहां हमारी राजकीय अतिथिशाला तो अत्यंत ही भव्य है जिसके सामने फूलों की बगिया है और उसके आगे हिमालय की पर्वत श्रृंखला है तथा अतिथिशाला के चारों ओर आम, अमरूद, सेव, संतरे के बगीचे है। मैने जिंदगी में पहली बार इतनी सुंदर जगह देखी थी। शायद दीदी ने भी पहली बार ही इतनी रमणीक जगह देखी थी। और हमारी विडंबना देखो राजमाता की हमारे वहां पहुंचते ही सीमा विवाद समाप्त हो गया क्योकि पड़ोसी राज्य के राजा से सीमा पर हमारी पहली मुलाकात में ही उन्होंने अपनी गलती मान ली और पूर्व निर्धारित सीमा पर पीछे हट गए।
सीमा विवाद समाप्त होने के बाद हम दोनो अब काफी हल्का महसूस कर रहे थे और हम दोनो भाई बहन ने कुछ दिन वही राजकीय अतिथिशाला में विश्राम करने का निर्णय लिया।
दूसरे दिन सुबह तैयार होकर हम दोनों बगीचा घूमने निकले। सुबह सुबह बहुत ही शीतल मद मस्त हवा बह रही थी। हम दोनों घूमते घूमते बगीचे के काफी अंदर चले गए। आम तो अभी नही लगे थे, लेकिन अमरूद और सेव के पेड़ों पर फल लगे हुए थे। हम दोनो एक अमरूद के पेड़ के पास पहुंचे जिसपे बड़े ही सुन्दर अमरूद लगे हुए थे। दीदी ने उसे तोड़ने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन उसकी टहनियां इतनी पतली थी की उस पर चढ़ना मुस्किल था और फल इतनी ऊंचाई पर था की उसे खड़े खड़े तोड़ नहीं सकते थे। तो मैने बहन से कहा,,

इसे तोड़ना मुश्किल है बहन। ये पेड़ चढ़ने लायक नहीं है और इसे नीचे से तोड़ भी नहीं सकते क्योंकि फल काफ़ी ऊपर लगा है
तो एक काम हो सकता है विक्रम। यदि कोई उठा सके तो हममें से कोई वहां तक पहुंच जाएगा।

ठीक है दीदी, मैं तुम्हारे कंधे पर बैठ जाता हूं और तुम मुझे उठा लेना।

अरे नहीं नहीं,,, मैं तुम्हे नहीं उठा पाऊंगी। मेरे तो कंधे ही टूट जायेंगे। तू एक काम कर भाई, तू मुझे कमर से पकड़ कर उठा ले और मै अमरूद तोड़ लूंगी।
नहीं नहीं, मैं तुम्हे उठा नहीं पाऊंगा बहन,,, तुझे उठाने के लिए तो दो दो लोग चाहिए ,,,,और ऐसा कहकर मैं दीदी को छेड़ते हुए हसने लगा।

अच्छा जी, तो मैं इतनी मोटी हो गई हूं क्या,,,जाओ तुम ही घूमो बाग में,,,मै तो चली आराम करने,,

हाहाहा, मै तो ऐसे ही मजाक कर रहा था मेरी प्यारी बहना, आओ मै तुम्हे उठता हूं,, और तुम अमरूद तोड़ लेना,,,

और ऐसा कहकर मैंने दीदी को सामने से कमर को पीछे की ओर नितम्ब के नीचे अपने हाथ लपेट कर जकड़ लिया और उन्हें ऊपर उठा लिया। ऊपर उठाने से भी वह अमरूद तक पहुंच नही पा रही थी और अपने शरीर को और ऊपर की ओर खीच रही थी जिससे उसकी कमर और पेट मेरे मुंह पर रगड़ खा रहे थे ,,लेकिन फिर भी वह वहां तक पहुंच नहीं पा रही थी। उसने कहा,,,

थोड़ा और ऊपर करो विक्रम ,,तभी मैं अमरूद तक पहुंच पाऊंगी,,

ऐसा कहने से मैने उसे थोड़ा और ऊपर किया,,जिससे उसका घाघरा मेरे मुंह के सामने आ गया और जैसे ही वह फल तोड़ने के लिए थोड़ा और आगे हुई ,,मेरा चेहरा उसके घाघरे के ऊपर उसकी योनि से सट गया। यह मेरा पहला अनुभव था जब मैंने उसकी योनि पे अपना मुंह लगाया हो। मुझे उसके घाघरे से उसकी योनि की मादक गंध आ रही थी जो मुझे मदहोश किए जा रही थी। मैने भी जोश में आकर अपना मूंह उसकी योनि में जोर से दबा दिया, लेकिन उसे अभी होश ही नहीं था और वह अभी अमरूद तोड़ने में ही व्यस्त थी। इधर मैं अपना मुंह उसके घाघरे में घुसा कर योनि पर रगड़ रहा था। तब तक उसने अमरूद तोड़ लिया था और तब उसे ध्यान आता है की उसकी योनि पे मेरा चेहरा सटा हुआ है तथा मै उसकी योनि पर अपना चेहरा रगड़ रहा हूं। दीदी भी गरम हो जाती है । उसे भी तो उसकी कामभावना तड़पा ही रही थी। उसे भी काफी समय से पुरुष प्रेम की , लिंग की तलाश थी ही ।

लेकिन कुछ देर बाद वह धीरे से कहती है,,

अब मुझे नीचे उतर दो विक्रम,,

नंदिनी के ऐसा कहने से मैने उसे धीरे धीरे नीचे उतारा । इस दौरान नीचे आते हुए उसका पेट और फिर उसके स्तन मेरे चेहरे से रगड़ खा रहे थे और उसके नीचे उतरते ही मैने उसे अपनी बाहों में दबोच कर ही रखा , तब दीदी ने कहा,,,

ये देख ,, अमरूद। खायेगा।

हां , ये तो बड़े अच्छे अमरूद है, । लेकिन अभी तो मुझे संतरे खाने है।

और ऐसा कह कर मैं उसके स्तन को देखने लगा जिससे दीदी शरमा गई। फिर उसने बोला,,,

अभी तू अमरूद ही खा।

तभी मैंने अचानक दीदी से पूछा,,,

बहन , तुम्हे कैसा लगा था उस रात।।।

मेरे ऐसा पूछने पर दीदी एकदम चुप हो गई और उसने अपनी आंखें नीची कर ली। वह बखूबी जान रही थी की मै किस रात की बात कर रहा हूं, लेकिन उसने कुछ नहीं बोला और ऐसे ही अपनी आंखे नीची किए अपने पैर के अंगूठे से मिट्टी कुरेदने लगी । वह सोच भी नहीं सकती थी की मै इतनी पुरानी बात का जिक्र आज अचानक उसके सामने कर दूंगा।
उसके चुप रहने पर मैं फिर बोलता हूं,,,

दीदी , मुझे जो चीज चाहिए वो तुम्हारे पास है और तुम्हे जो चीज़ चाहिए वो मेरे पास है। मै जानता हूं तुम भी बहुत तड़पती हो पुरुष संसर्ग के लिए,,,आओ ना हम दोनो एक दूसरे की प्यास बुझायें।

इस पर दीदी अब चुप्पी तोड़ती है और कहती हैं,,,

विक्रम, याद है मुझे उस रात की बात। लेकिन् उस समय हम बच्चे थे, नादान थे। इसलिए गलती हो गई। ठीक है, मानती हूँ मुझे भी अच्छा लगा था उस रात । लेकिन इसका मतलब ये तो नही की वही गलती फिर दोहराई जाए। तुम मेरे अनुज हो और मैं तुम्हे एक छोटे भाई की तरह प्यार करती हूं ।और तो और मै किसी की अमानत हूं,, उसकी जिससे मेरी शादी होगी। मै उसके लिए खुद को बचा कर रखूंगी।

ठीक है दीदी। लेकिन आओ ना, हम दोनो जो करेंगे छुप कर करेंगे और किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा। हम दोनों केवल एक दूसरे के यौनांगों को देखेंगे, लेकिन उन्हें छूएंगे नही। दुनिया वालों के लिए हम भाई बहन ही रहेंगे, लेकिन अकेले हम दोनो मजे करेंगे । नही तो हम दोनो यौन सुख के लिए तरसते ही रहेंगे। माना की तुम किसी और की हो जाओगी,,, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं की तुम भविष्य को लेकर वर्तमान में जीना छोड़ दोगी जब की तुम अभी अपनी कामाग्नी को शांत कर सकती हो।
राजा विक्रम की बातों से नंदिनी गर्म तो हो जाती है, लेकिन वह द्वंद में जी रही होती है की वह क्या करे। और शायद विक्रम ने यह बात गलत समय में छेड़ दिया था। वो कहते हैं ना की नारी जब बिस्तर पर गरम होती है तब वह सारी मान मर्यादा भूल जाती है। नंदिनी ने भी महावारी शुरू होने के बाद जितनी भी काम क्रीड़ा की थी, वह उसने बिस्तर में गरम होने के बाद कामेच्छा की आग भड़कने पर ही किया था।
नहीं विक्रम नही,,, ये गलत होगा। तुम भूल गए की अब हम बड़े हो गए हैं, हम दोनों अब बच्चे नहीं रहे और तुम तो मेरे प्यारे से छोटे भाई हो। तुममे तो मेरी जान बसती है मेरे भाई। हमारे बीच जो भी हुआ है उसे भुल जाओ।
ऐसा कह कर नंदिनी राजा विक्रम का हाथ पकड़ कर मुड़ती है और बाग में पहाड़ों की तरफ चल देती है। साथ में राजा विक्रम भी पीछे पीछे चल देते है। चलते चलते वो दोनो काफी आगे निकल जाते हैं और वे पहाड़ी के नजदीक पहुंच जाते हैं तो उन्हें झरने की आवाज सुनाई देती है। नंदिनी कहती है...
इधर किसी झरने की आवाज आ रही है। लगता है इधर कोई झरना है।

हां बहन, आवाज तो आ रही है। अतिथिशाला के संतरी ने बताया था कि बाग के पीछे एक बहुत बड़ा झरना है। शायद यह वही झरना हो।

दोनो भाई बहन उस आवाज की तरफ बढ़ते हैं और जब वहां पहुंचते हैं तो उस रमणीक स्थल की खूबसूरती देख कर वे मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। उनके सामने पहाड़ की ऊंचाई से एक झरना गिरता दिख रहा था जिसके नीचे बिल्कुल साफ पानी का कुंड बन गया था। उसे देख कर राजा विक्रमं का मन कुंड में नहाने का करने लगता है। कुंड का पानी इतना साफ था की कुंड की तलहटी भी दिख रही थी। विक्रम बोलता है....

मुझे नहाना है दीदी,,,मैं यही नहा लेता हूं। आओ ना दीदी तुम भी नहा लो।

नहीं बिक्रम, मै नहीं नहा सकती। कपड़े नहीं लाई हूं। और तू भी मत नहा, तेरे कपड़े गीले हो जायेंगे , तो तू पहनेगा क्या ,,, तेरे कपड़े भी नहीं है यहां।

लेकिन दीदी मै तो नहाऊंगा और यहां कोई और है ही नही । मै तो कपड़े निकाल कर बाहर ही रख दूंगा,,,,,आओ तुम भी आओ ना।

बड़ा बेशर्म है तू , मै तो नहीं नहाती।

अच्छा बहन , ठीक है,, तू चेहरा उधर कर,, मै तब तक कपड़े निकाल लूं।

विक्रम के ऐसा कहने पर नंदिनी चेहरा घुमा लेती है और राजा विक्रम अपने सारे कपड़े निकाल कर कुंड के किनारे रख कर कुंड में कूद जाता है और नहाने लगता है। नंदिनी जब अपना चेहरा दुबारा घूमती है तो वह देखती रह जाती है। राजा विक्रम कुंड में पूरे नंगे नहाते दिख रहे थे क्यों कि कुंड का पानी बिलकुल साफ था और विक्रम नहाते हुए नंगे कुंड में दिख रहे थे। विक्रम को नहाते देख नंदिनी का भी नहाने का मन करने लगता है। वह कहती है...

मै भी नहा लेती हूं भाई। लेकिन मै बगल के कुंड में नहाऊंगी। तुम उधर मत आना क्यूंकि मैं भी कपड़े निकाल कर किनारे रख कर नहाने जाऊंगी ताकि मैं नहा कर फिर कपड़े पहन सकूं। राजा विक्रम अपनी बहन की ये बात सुन कर ही गरम हो जाते हैं कि वो भी नंगे ही कुंड में नहाने जा रही है । लेकिन वो कुछ नही करते बल्कि कुंड में शीतल जल में नहाने का आनंद ले रहे थे । जो मजा उन्हें आज तक नहीं मिला था । इधर नन्दिनी चारों ओर देख कर पहले निश्चिन्त हो जाती है की उसे कोई नही देख रहा है ,,,तो फिर वह धीरे धीरे अपनी घाघरा चोली निकाल कर पूरी नंगी हो जाती है और फिर वह कुंड में नहाने के लिए छलांग लगा देती है।
कुछ देर बाद राजा विक्रम को नन्दिनी के चिल्लाने की आवाज आती है तो वह एकदम से डर जाते हैं और उसी स्थिति में नग्नावस्था में ही कुंड से निकलते हैं और कुंड के दूसरी तरफ भागते हैं जहां से आवाज आ रही थी। वहां जाकर देखते है की नंदिनी कुंड में डूब रही थी। वो फटाफट कुंड में कूद जाते है जिसमे नंदिनी नंगे ही थी। वह तैरते हुए जाते हैं और नंदिनी को बाल से पकड़ कर खींचते हुए किनारों की ओर ले जाते हैं। और फिर किनारों पर उसे अपनी बाहों में उठाकर सुखी जमीन पर ले जाते हैं।
नंदिनी को ले जाते समय दोनो भाई बहन बिल्कुल नग्न रहते हैं। जमीन पर लेटा कर वे नंदिनी के हाथ और पैर को रगड़ते हैं जिससे नंदिनी आंखे खोलती है जिससे राजा विक्रम की जान में जान आती है। नंदिनी भी आंखे खोल कर अपने छोटे भाई को देखती है। और कहती है...

बहुत बहुत धन्यवाद भाई. ,,,, मै तुम्हारा एहसान जिंदगी भर नही भूल सकती। तुमने जान पर खेल कर मेरी जान बचाई है। अगर तुम आज यहां नही होते तो पता नहीं आज क्या होता।

दीदी , मेरा तो ये फर्ज था आपको बचाना । आपने धन्यवाद बोलकर मुझे शर्मिंदा कर दिया। मैने आपको आपकी रक्षा का वचन दिया है और आपको बचाना मेरा फर्ज है। लेकिन आप डूबने कैसे लगी ,,,आप तो अच्छी तैराक भी हैं।

क्या कहूं भाई, ये दूसरा कुंड बहुत खतरनाक है उसमे अंदर एक शिला ऊपर उठी हुई है जिसमें इतनी फिसलन है कि मेरा पैर पड़ते ही मैं फिसल गई और मेरा संतुलन बिगड़ गया जिसके कारण मैं कुंड के अंदर चलती चली गई। वो तो भला हुआ की तुम समय पर आ गए , नहीं तो मैं मर ही गई होती। ये कहते कहते नंदिनी थोड़ा उठ कर बैठती है।

नंदिनी के मरने की बात बोलने पर राजा विक्रम उसके होठों पर अपनी उंगली रख देते हैं और कहते है...
ऐसा ना कहें बहन,,, आपको कुछ हुआ तो मै जी नहीं पाऊंगा और फफक कर रो पड़ते है....

अरे !,! मेरा भाई मुझे इतना प्यार करता है,, ये तो मै जानती ही नहीं थी,,,चुप हो जा मेरे प्यारे भाई चुप हो जा

और ऐसा कह कर वो भी रोने लगती है,,, रोते रोते उन्हें ख्याल नही रहता है कि दोनो पूरे ही नंगे हैं,,,और वे एक दूसरे से लिपट जाते हैं । दोनो बिल्कुल नंगे एक दूसरे की बाहों मे सिसक रहे थे। विक्रम थोड़ा सा अलग होते हैं और नंदिनी की आंखों में देखते हुए,,
कसम खाओ दीदी,,,की आज के बाद कभी भी आप मरने की बात नहीं करेंगी।

नहीं करूंगी मरने की बात,,अब खुश। लेकिन मै तो जानती ही नहीं थी कि मेरा भाई मुझे इतना प्यार करता है,,,

और ये कहते हुए नंदिनी राजा विक्रम के गालों पर एक चुम्बन जड़ देती है। विक्रम भी नंदिनी को चुंबन देते है तो नंदिनी उसके गालों पर चुम्बनों की झड़ी लगा देती है। फिर अचानक नंदिनी विक्रम के होठों पे अपने होठ रख कर चूमने लगती है । राजा विक्रम भी उसका साथ देते हुए उसके होठों को अपने होठों में दबाकर चूसने लगते हैं।दोनो भाई बहन इसी आनंद में पंद्रह मिनट डूबे रहते हैं। फिर नंदिनी चुम्बन छोड़ विक्रम की आंखों में देखते हुए कहती है,,,,
उस रात भी तो हमने एक दूसरे के होंठ चूसे थे भाई,,,
और ऐसा। कह कर हल्का मुस्कुरा देती है। और फिर कहती है,,
चलो वापस देखो,, दोपहर गई है,,पूरी सेना अब हमें खोजती हुई आ रही होगी।।।

नंदिनी के ऐसा कहने पर विक्रम को भी होश आता है और दोनो कपड़े पहन कर वापस अतिथिशाला की ओर चल देते है।

वहां पूरी सेना में खलबली मची हुई थी कि राजा और मुख्य सलाहकार कहा चले गए। इन्हे देख कर सेना ने भी राहत की सांस ली।

दोपहर हो चली थी तो सभी ने खाना खाया और आराम करने लगे । शाम में फिर इनकी एक राजकीय बैठक थी जिसमें काफी समय लग गया । फिर रात में खाना खाकर ये दोनो बरामदे में बैठे थे । सुहानी चांदनी रात थी और ठंडी ठंडी हवा बह रही थी। इस पूरे अतिथिशाला ने मे केवल राजा विक्रम और नंदिनी ही थे और दूर दूर कोई भी नही था। दोनो हाथों में हाथ लिए बैठे रहते हैं। फिर नंदिनी विक्रम के होठों पर चुम्बन देकर अपने कक्ष में चली जाती है और राजा विक्रम अपने कक्ष में। लेकिन दोनो की आंखों में नींद नहीं थी। थोड़ी देर बाद राजा विक्रम नंदिनी कक्ष में जाते हैं और दरवाजा को हल्का धक्का देते हैं जिससे दरवाजा तुरंत खुल जाता है क्यों कि ये अंदर से बंद ही नहीं था। दरवाजा खुलने से नंदिनी पूछती है,,,

कौन है ?
मै हूं दीदी।।।
क्या हुआ,,,

मुझे डर लग रहा है दीदी ,,, मै कभी अकेले इतने वीराने में नहीं रहा।।। मै सो जाऊं आपके साथ।

ओ हो ,, मेरे छोटे बाबू को डर लग रहा है,,, आ जा ,,मेंरे साथ में सो जा।।।

विक्रम शैय्या पर जाते ही वह नंदिनी से लिपट जाते है और राजा विक्रम अपनी प्यारी बहन के होठ चूसने लगते हैं जिससे दोनो अत्यंत उत्तेजित हो जाते हैं। फिर विक्रम नंदिनी की चोली उठाकर उसके स्तन चूसने लगते हैं जिससे वह पूरी उत्तेजित हो जाती है और उत्तेजनावश विक्रम का हाथ पकड़ कर अपने बुर पर रख कर दबा देती है और इधर राजा विक्रम अपनी बहन की योनि को घाघरे के ऊपर से ही सहलाने लगते हैं।राजा विक्रम अपने मुंह से स्तन निकाल कर नंदिनी की आंखों में देखते हुए कहते हैं,,,
उस रात ये भी हुआ था ना बहन,,,

इससे नंदिनी शर्मा जाती है। फिर विक्रम ने वो किया जो नंदिनी ने सपने में भी नहीं सोचा था। उसने अचानक ही नंदिनी का घाघरा की डोरी खोलकर उसे नीचे कर दिया जिसको निकलने में नंदिनी ने अपनी चूतड़ उठा ली जिससे उसका घाघरा सरसरा कर निकल गया , विक्रम भी अपनी धोती खोलकर पूरा नंगा हो गया। अब नंदिनी और विक्रम दोनो नंगे थे और नंदिनी का हाथ पकड़ कर विक्रम अपने मोटे लौड़े पर रख देता है जो नंदिनी खुद चाह रही थीं और वह अपने भाई का लिंग अपने हाथ में लेकर खूब दबा दबा कर आगे पीछे करने लगती है। इधर विक्रम भी अपनी बहन की बुर सहलाए जा रहा था और उसके स्तन भी चूसे जा रहा था। दोनो पूरे उत्तेजित हो गए थे।
अचानक विक्रम स्तन चूसना छोड़ कर अलग हट गया और अपना मुंह नंदिनी की योनि पर लगा कर सूंघा और कहा।
बड़ी मादक गंध है तुम्हारी योनि की बहन ,,,

योनि की गंध अच्छी लगी मेरे भाई को,,,तो सूंघ ले इसे,,, तुम्हारी बहन की ही योनि है भ्राता,,,,इसकी रक्षा कर मेरे भाई

फिर विक्रम ने आव देखा न ताव और लगे नंदिनी की बुर चाटने और उसकी बुर फैला कर उसने अंदर तक जीभ डाल डाल कर जीभ से ही चोदने लगे और जीभ भीतर घुसा कर उसकी पत्तियों को चूसने लगा,,,
नंदिनी आहें भरने लगी,,,
और कर मेरे भाई , मेरे बालम और कर,,मै तेरी प्यासी हूं।फिर नंदिनी आहें भरते हुए विक्रम के लंड को अपनी योनि से सटाने लगी जिससे विक्रम की आहें निकल गईं।

विक्रम फटा फट नंदिनी के ऊपर आ गया और बोला...
दीदी,, मै तुम्हारी योनि में अपने लंड को डालना चाहता हूं।

तो डाल दे ना भाई। मना किसने किया है भाई। और तू अगर मुझसे यौन संबंध बना लेगा तो किसी को पता भी नहीं चलेगा , दुनियवालों के सामने तू मेरा भैया और अकेले में तू मेरा सैयाँ,,, और ऐसा कह कर मुस्कुरा देती है।

इतना सुनना था कि राजा विक्रम नंदिनी की योनि में पर अपना लिंग रगड़ने लगते हैं जिससे नन्दिनी तड़प जाती है और फिर विक्रम अपना लंड डालने लगते हैं।

तभी बाहर बिजली चमकती है और तेज बारिश होने लगती है। ऐसा लगता है मानो प्रकृति भी ऐसा चाह रही घी।
नंदिनी की योनि में विक्रम का मोटा लंड नही जा रहा था तो नंदिनी थोड़ा घी अपने भाई के लंड पर लगा कर बोलती है,,
अब करो विक्रम, आज तो हम भाई बहन की सुहागरात है और तू ही मेरा कौमार्य भंग करेगा। विक्रम मै तुमसे बहुत प्यार करती हूं बहुत प्यार।

नंदिनी के ऐसा कहने पर राजा विक्रम पूरे जोश में आ जाते है और अपना लंड झटके से नंदिनी की बुर में डाल देते है जिससे नंदिनी की सिसकी निकल जाती है लेकिन थोड़ी देर बाद वह सामान्य होती है तो।
...
और करो विक्रम और करो। मेरी बुर फाड़ दो विक्रम।
विक्रम भी
हां दीदी हाँ ,,,ये लो मेरा लौड़ा अपनी योनि में ,,,और बना दो मुझे अपने बच्चे का बाप,,,,,,,मै तुम्हे वैश्या की तरह चोदूंगा ,, ये लो मेरे लौड़ा ये लो,,,
और फिर दोनो करीब आधे घंटे की चुदाई के बाद झड़ जाते हैं।।।।
सुबह जब दोनो उठते हैं तो दोनो को चुदाई के बाद उस जगह खून के धब्बे दिखते है, जिन्हे देख नंदिनी कहती है।।
देख भई तूने आज मेरा कौमार्य भंग कर दिया,,,ये है उसकी निशानी,,,कल हमारी सुहागरात थी,,,एक भाई और बहन की सुहागरात,,,
कौमार्य भंग के खून के धब्बों को देख कर राजा विक्रम को एक अलग सी अनुभूति होती है की उसने ही अपनी बड़ी बहन का कौमार्य भंग किया है,,,और कहते हैं,,,
दीदी सुहागरात तो शादी के बाद मानते है ना,,,
हाँ ,,तो,,,
लेकिन हमने तो सुहागरात मना लिया ,,,लेकिन शादी नही की,,,तो आओ ना हम दोनो विवाह कर लेते हैं,,,
नही विक्रम हम ऐसा नही करनसकते,, हम भाई बहन है,,,चोरी चुपके यौन सम्बन्ध तक तो ठीक है ,,,लेकिन शादी नहीं,,,बिना शादी के भाई बहन की चुदाई का अलग मना है,,,

ठीक है दीदी ,,तुम जैसा कहो
,,,




तो be continued
AWESOME UPDATE BHAI
 

Incestlala

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अपडेट 10

इधर देवकी और रांझा दोनो कामुक क्रिया के बाद झड़ जाती हैं और राजमाता देवकी को अब गजब की शांति मिलती हैं और राजमाता की नींद आने लगती है। रांझा देवकी के शरीर की मालिश करती है और फिर उसके नंगे शरीर पर रेशम की एक चादर डाल कर कक्ष के बाहर निकल जाती है। वह भी सुबह की ही जगी थी और अभी के काम क्रीड़ा के बाद वह भी आराम करना चाह रही थीं । लेकिन एक स्त्री के साथ कामक्रीड़ा की अनुभति उसे भी मदहोश किए जा रही थी और उसका उसका अंग अंग प्रफुल्लित हो गया था। वह एक मदभरी गीत गुनगनाते हुए फुदकते हुए अपने झोपड़े कि ओर जाने लगती है जो राजमहल के एक किनारे पर स्थित था।

रांझा जैसे ही राजा विक्रम और राजकुमारी नंदिनी के कक्ष के बीच में पहुंचती है वैसे ही वह गुप्त रास्ते पर राजा विक्रम के कक्ष से एक परछाई को निकलते हुए देखती है ( यह गुप्त मार्ग एक ऐसा रास्ता है जो राजपरिवार के सदस्यों के कक्षों को जोड़ता है और जिसकी जानकारी राजमहल के राजदारों को ही पता है तथा यह मार्ग एक सुरंग से जाकर मिल जाता है जिससे जमीन के अंदर अंदर ही जंगल में पहुंचा जा सकता है )

परछाई देख कर वह सोच में पड़ जाती है कि इतनी रात को कौन राजा विक्रम के कक्ष से निकल सकता है। कहीं राजा किसी विपत्ति में तो नहीं। वह उसी उधेड़बुन में रहती है और फिर उस परछाई का पीछा करने का निर्णय लेती है। वह भी उस परछाई का पीछा करने लगती है और देखती है कि कोई मजबूत कद काठी का आदमी है जो कम्बल से खुद को ढके हुए है और वह राजकुमारी नंदिनी के कक्ष के बाहर आकर रुक जाता है और पीछे मूड कर देखता है की कोई उसे देख तो नहीं रहा। वह जैसे ही पिछे मुड़ता है रांझा खंभे की ओट में छिप जाती है। जब वो परछाई निश्चिंत हो जाती है कि किसी ने उसे नहीं देखा है तब वह राजकुमारी के कक्ष में प्रवेश कर जाता है। रांझा यह देख कर जोर से चिल्लाना चाहती है लेकिन फिर उसके मन में आता है की वो देख ले की कौन है जो इतनी रात को राजकुमारी नंदिनी के कक्ष में जाता है। उसके दिमाग में आज सुबह वाली घटना कौंध जाती है जब उसने राजकुमारी नंदिनी के स्तन पर दांत गड़ाने का निशान देखा था और उसकी योनि पे लालिमा देखी थी। वह सोचती है कि हो ना हो यह वही आदमी होगा जिससे नंदिनी के शारीरिक संबंध बने होंगे। वह भी धीरे धीरे बिना कोई आवाज किए हुए नंदिनी के कक्ष के बाहर खड़ी हो जाती है और परदे के ओट से कक्ष के अन्दर देखने लगती है। यह मार्ग चुकी गुप्त मार्ग था इसलिए इस रास्ते पर कोई प्रहरी या संतरी नहीं था जिससे पकड़े जाने का खतरा भी नहीं था और जैसा पहले बताया गया है उस समय राजमहल के कक्ष के द्वार पर दरवाजे नहीं हुआ करते थी , बल्कि मोटे परदे लगे होते थे। रांझा इन्हीं परदे के ओट से कमरे में झकने लगती है और देखती है की,,,,,,,,

नंदिनी के कमरे में नंदिनी बड़े से आइने के सामने बैठ कर अपने बाल संवार रही है और उसकी पीठ कक्ष के द्वार की ओर थी जिससे रांझा केवल नंदिनी की पीठ देख पा रही थी। राजकुमारी नंदिनी के कक्ष में दीप जल रहे थे जिससे पूरा कमरा रौशनी से नहाया हुआ था। कमरे के हरेक कोने में गुलाब के गुलदस्ते रखे हुए थे तो बीचोबीच रजनीगंधा के फूलों का गुलदस्ता रखा हुआ था जिसकी भीनी भीनी खुशबू पूरे कमरे में फ़ैल रही थी और पूरे कमरे के माहौल को रोमांटिक बनाए हुई थी नंदिनी के कक्ष का पूरा माहौल कामुक बना हुआ था,,ऐसा लगता था उसका कमरा किसी कुंवारी राजकुमारी का न होकर विवाहिता स्त्री का हो।

वह साया भी नंदिनी के पीछे जाकर खड़ा हो गया और उसके कंधों पर अपना हाथ रख देता है जिससे नंदिनी सिहर जाती है और वह साया कहता है,,,लो मै आ गया,,,तुम मेरा ही इंतजार कर रही थी ना,,,,

नंदिनी ऐसा सुनकर तुरंत ही पीछे मुड़ती है और मुस्कुराते हुए उस साए के चेहरे को देखती है तब तक उस साए ने भी अपना कम्बल गिरा दिया जिससे पता चलता है कि वह साया एक पुरुष है। नंदिनी उसके चेहरे को देखती है और तुरंत ही उस साए को गले से लगा कर चिपक जाती है। दोनो के शरीर एक दूसरे से चिपक जाती है।नंदिनी के स्तन उस पुरुष की छाती में दब जाते हैं। और नंदिनी कहती है,,,

मैं कबसे तुम्हारा इंतजार कर रही थी,,,कितनी देर कर दी तुमने आने में,,,,मुझे लगा आज तुम आओगे ही नहीं और मुझे आज की रात तड़प कर है बितानी होगी,,,,

अभी तक रांझा को उस साए का चेहरा नहीं दिखा था जिससे अभी वह इसी उधेड़बन में थी कि आखिर इस राजमहल में ऐसा है कौन ,,जो राजकुमारी के जिस्म से चिपका हुआ है,,,ऐसी हिमाकत करने की कौन हिम्मत कर सकता है,,,
इधर नंदिनी उस साए से चिपकी खड़ी रहती है और दोनो कुछ नहीं बोलते,,,,सिर्फ आलिंगनबद्ध होकर एक दूसरे के शरीर की गर्मी को महसूस कर रहे थे। नंदिनी कहती है,,,,

आए हो तो पहले ,,आओ औषधि वाली दूध पी लो जो मैंने खासकर तुम्हारे लिए बनवाई है

और ऐसा कह कर उस साए से अलग होती है और कमर में हाथ डालकर सिंघासन के तरफ ले जाने के लिए आगे बढ़ती है और वह साया भी आगे बढ़ने के लिए जैसे ही घूमता है उसका चेहरा दरवाजे के तरफ हो जाता है,,,जिसे देखकर रांझा आवाक रह जाती है,,,उसका मुंह खुला का खुला रह जाता है,,,उसका सिर घूमने लगता है,,,उसे लगता है मानो अभी धरती फट जायेगी,,,वह देख कर दंग रह जाती है कि वह साया और कोई नहीं राजा विक्रम थे जो इतनी रात में मिलने के लिए अपनी बहन के कक्ष में पधारे थे वो भी छिप कर,,,उसे दाल में काला नजर आता है और वह वहीं छिप कर अंदर का नजारा देखने लगती है,,,,

अंदर कमरे में नंदिनी अपने भाई विक्रम को आसन पर बैठाती है और ग्लास में रखा दूध उसे पीने को देती है और कहती है

कहा जाता है कि पुरुष को रात में स्त्री से मिलने के पूर्व दूध अवश्य पीना चाहिए और इस दूध में तो राज वैद्य द्वारा दी गई औषधि मिली है जो पुरुषत्व को मजबूत करती है,,,

लेकिन तुम्हारा अनुज तो पहले से ही मजबूत है बहन,,क्या आपको इसका भान नहीं है,,,,

ऐसा ना कहे भ्राता मेरा कहने का ऐसा मतलब नहीं था,,,आपकी मर्दानगी पे तो राज्य की हरेक स्त्री आहें भरती है,,, आपकी इसी मर्दानगी की तो मै दीवानी हो गई हूं,,,

राजा विक्रम आधा ग्लास दूध पीकर आधा नंदिनी को पीने को देते है जिसे नंदिनी सहर्ष पी लेती है और उसके होठों पर दूध की एक परत लग जाती है जिसे देख कर राजा विक्रम अपनी बहन नंदिनी के होठों पर लगे दूध को अपने जीभ से साफ कर देते हैं जिसपर नंदिनी उसे घुर कर देखती है,,,इसपर विक्रम मुस्कुरा देते है और अगले ही पल अपने होंठ अपनी बहन नंदिनी के होठों पर रख कर चूसने लगते हैं,,,नंदिनी भी अपने भाई के साथ चुम्बन में पूरा साथ देने लगती है और दोनो एक दूसरे में खो जाते हैं। इधर रांझा अंदर का ये दृश्य देख कर आवाक रह जाती है और सोचती है कि क्या राजपरिवार में भी भाई और बहन ऐसे संबंध बना सकते हैं,,,

इधर दोनो भाई बहन चुम्बन का आनंद ले रहे थे और दोनों एक दूसरे को छोड़ना ही नहीं चाह रहे थे,,,केवल उम्म्महह उम्म्मह की आवाज कमरे में गूंज रही थी,,,काफी देर बाद दोनों एक दूसरे से अलग होते है और दोनो के होठ बिल्कुल लाल हो जाते है,,,राजा विक्रम कहते हैं,,,

तुम्हारे होंठ कितने मुलायम है बहन ,,इन्हे छोड़ने को जी नहीं करता,,,
इस पर नंदिनी शरमा जाती है और बोलती है,,,

तुम्हारे होठ भी कम कामुक नहीं है भ्राता,,,तुम्हारे होंठ छोड़ने को जी नहीं करता ,,, तभी तो तुम पर सभी स्त्रियां मरती है,,,देखा था आज कितनी रानियां तुम्हे ही देखे जा रही थीं,,,

लेकिन मै तो केवल अपनी इस प्यारी बहन को ही देख रहा था,,,,आज बहुत खूबसूरत दिख रहीं थीं आप,,,लग रहा था कोई अप्सरा धरती पर उतर आई है,,,,

हां तो क्यों नहीं लगती मै सुन्दर,,,आज मेरे प्यारे भाई का जन्मदिवस जो था,,,और ऐसा कह कर वह राजा विक्रम के गालों पर एक चुम्बन के लेती है और फिर कहती है,,,

अब तो तुम्हारी शादी भी तय हो गई राजकुमारी रत्ना से ,,,वह भी बेहद खूबसूरत है,,,

एक भाई के लिए सबसे सुन्दर उसकी बहन ही होती है,,,उसके बाद ही कोई होती है,,,अगर तुम मेरी बहन नहीं होती तो मै तुमसे ही विवाह करता,,,लेकिन कमबख्त ये रिवाज हमें ऐसा करने से रोक रहे है,,,

और ऐसा कहकर राजा विक्रम अपनी बहन नंदिनी को गले लगा लेते है और गले लगे लगे एक हाथ नंदिनी की पीठ पे लेजाकर सहलाने लगते हैं जिससे नंदिनी कामुक आवाज निकालती है,,,,फिर वह अपनी बहन की चुन्नी को हटा देते है और अपना एक हाथ अपनी बहन की चोली पर ले जाकर रख देते है और चोली के ऊपर से ही अपनी बहन के स्तन को दबाने लगते हैं,,,

जिस पर नंदिनी कहती है,,, मत करो,,,लेकिन वह अपने भाई का हाथ अपने स्तन पर से नहीं हटाती है,,,राजा विक्रम अपने हाथ पीछे ले जाकर नंदिनी की चोली की डोर खींच देते है जिससे उसकी चोली खुल जाती है और नंदिनी खुद अपने हाथ से चोली बाहर निकाल देती है जिससे उसके स्तन पूरे नंगे होकर उसके भाई के आंखों के सामने आ जाते हैं जिसे देखकर राजा विक्रम पागल हो जाते हैं और अपना मुंह नीचे लें जाकर अपनी बहन के एक स्तन को चूसने लगते है और दूसरे हाथ से दूसरी चुची को दबाने लगतए है जिससे नंदिनी की उत्तेजना बढ़ जाती है और वह भी अपने भाई के छाती पे हाथ फेरने लगती है और उसके निपल्स को कुरेदने लगती है जो राजा विक्रम को भी आनंद डे रहा था,,, और वे भी अपने दांत से नंदिनी के चुचूक को कांट लेते हैं जिससे उसके मुंह से आह निकल जाती है,,, राजा विक्रम अपना चेहरा उठा कर नंदिनी की आंखों में देखते हुए कहते हैं,,,

बहन ,तुम्हारे स्तन बहुत सुंदर है,,,ये जितने सुन्दर चोली में दिखते है उससे कहीं ज्यादा सुन्दर ये नंगे दिखते हैं,,,बिल्कुल संगमरमर की तरह चमक रहे है ये,,, मन करता है इन्हे चूसता ही रहूं,,,,बहुत भाग्यशाली होगा वह पुरुष जिसके साथ तुम्हारा विवाह होगा,,,

ऐसा ना कहो भाई,,,मै तो तुम्हारे साथ ही विवाह करना चाहती हूं,,,अपने भाई की पत्नी बनना चाहती हूं,,,,लेकिन मै भी समझती हूं ये मर्यादा की दीवार हम भाई बहन की एक नहीं होने देगी,,,लेकिन एक बात मै बता दूं मै भले ही कहीं और ब्याही जाऊं लेकिन मेरा पहला प्यार तुम है रहोगे,,,

ऐसी बात चीत से दोनो भाई बहन भावुक हो जाते हैं और दोनो एक दूसरे की गले लगा लेते हैं,,,दोनो ऊपर से बिल्कुल नंगे रहते है और नंदिनी के नंगे स्तन राजा विक्रम की छाती में धसें रहते है और नंदिनी अपने स्तन अपने भाई की छाती से रगड़ रही थी,,,दोनो ऊपर से तो नंगे थे ,,,लेकिन नीचे नंदिनी ने घाघरा तो राजा विक्रम ने रेशमी धोती पहन रखा था,,,,राजा विक्रम अपने हाथ को अपनी बहन की नंगी पीठ पर घुमाते हुए नीचे ले जाते है और घाघरे के ऊपर से ही नंदिनी की गांड़ को सहलाते हुए दबोचने लगते हैं जिससे नंदिनी आहें भरने लगती है,,,इधर नंदिनी भी अपने भाई के नंगे पीठ पे हाथ फेरते हुए हाथ नीचे ले जाती है और उसके गान्ड को दबाने लगी है,,फिर राजा विक्रम अपने हाथ आगे लाकर नंदिनी के घाघरे के ऊपर से ही उसकी बुर सहलाने लगते है,,इधर नंदिनी भी अपना हाथ आगे लाकर अपने भाई के खड़े लंड को धोती के उपर से ही पकड़ लेती है और उसे मुट्ठी में बांध कर सहलाने लगत है,,,फिर राजा विक्रम बोलते हैं,,,,

बहन मुझे तुम्हारी नंगी गान्ड और चूत देखनी है,,,

तो रोका किसने है भाई,,, खोल दो मेरा घाघरा और कर दो मुझे पूरी नंगी,,,
इतना सुनना था कि राजा विक्रम थोड़ा पीछे हटते हैं और अपने हाथ से अपनी बहन के घाघरे का नाड़ा खोल देते हैं जिससे घाघरा सरसराकर नंदिनी के पैरों में गिर जाता है और वह पूरी नंगी होकर अपने भाई के सामने खड़ी रहती है,,,नंदिनी भी अपने भाई की धोती की गांठ खोल देती है जिससे राजा विक्रम भी पूरे नंगे ही जाते हैं,,,अब दोनो भाई बहन एक दूसरे के सामने पूरे नंगे खड़े होते है,,,अब स्थिति ये थी की दोनो भाई बहन आमने सामने नंगे खड़े रहते हैं और राजा विक्रम का लंड जिसपर हल्के हल्के बाल थे, वो अपनी बहन की बुर की सलामी देते हुए खड़ा था,,,,नंदिनी के भी स्तन उत्तेजना में तने थे और उसकी बुर पानिया रही थी,,, दोनों भाई बहन ने से कोई कुछ नहीं बोल रहा था,,,केवल दो सांसे खूब तेज चल रही थी,,,
राजा विक्रम अपना हाथ नीचे ले जाते है और अपनी बहन की नंगी बुर पे रखकर सहलाने लगते है और दूसरे हाथ से नंदिनी का हाथ पकड़कर अपने खड़े लौड़े पे रख देते हैं जिसे हाथ में लेकर नंदिनी रगड़ने लगती है,,, अब राजा विक्रम अपनी बहन की नंगी बुर सहला रहे थे तो नंदिनी अपने भाई के मोटे लौड़े को हाथ ले लेकर आगे पीछे कर रही थी,,,राजा विक्रम कहते हैं,,,,

आपकी बुर बहुत चिकनी है बहन,,, मन करता है इसे सहलाता है रहूं,,,

मेरा भी यही हाल है भाई,,,मै तो तुम्हारे लंड की दीवानी हो गई हूं,,जी करता है इसे खा ही जाऊं,,, और ऐसा कहकर नंदिनी नीचे बैठ जाती है और अपने भाई के लंड को मुंह में लेकर चूसने लगती है जिससे राजा विक्रम के मुंह से आह निकल जाती है,,,थोड़ी देर बाद राजा विक्रम नंदिनी को उपर उठाते हैं और उसे गोद में उठाकर शय्या पर के जाते हैं,,,इस तरह नंगी होकर अपने भाई की गोदी में देख कर नंदिनी शरमा जाती है और अपना मुंह अपने भाई की छाती में छुपा लेती है,,,राजा विक्रम अपनी बहन की नंगे ही बिस्तर पर लिटा देते हैं और फिर अपनी नंगी बहन के नंगे स्तन की छोटे बच्चे की तरह चूसने लगते है और एक हाथ नीचे ले जाकर उसकी बुर सहलाने लगते हैं,,,,और फिर उसके शरीर पे नीचे जाकर उसकी दोनो टांगे फैला देते हैं और उसके दोनों पैरों के बीच में मुंह लगाकर उसकी बुर पे अपने होंठ रख देते है,,,,और अपनी जीभ से अपनी बहन की बुर चाटने लगते हैं,,,नंदिनी अपने भाई के सिर की अपने हाथ से पकड़कर अपने बुर पे दबाने लगती है,,,राजा विक्रम भी अपनी बहन की बुर की खुशबू से मदहोश हुए जा रहे थे,,,,कुछ देर बुर चटवाने के बाद नंदिनी अपने भाई को ऊपर खींचती है और अपने ऊपर गिरा कर जकड़ लेती है और फिर बहुत ही कामुक आवाज में कहती है,,,

केवल चूत ही चटोगे अपनी बहन की या कुछ और भी करोगे भाई,,,और ऐसा कह कर अपने भाई का लंड अपने हाथ में लेकर रगड़ने लगती है,,,

अगर आपकी अनुमति हो दीदी तो मै अपना लन्ड आपकी योनि में डालकर चोदना चाहता हूं तुम्हे,,,

तो तुम्हे रोका किसने है भाई,,,आओ अपनी बहन की बुर को अपने लौड़े से चोदो,,,उसकी चोद चोद कर उसका भोसड़ा बना दो मेरे भाई,,,मेरी चूत तुम्हारे लंड की प्यासी है ,,, देखो कैसे आंसू बहा रही है और ऐसा कहकर अपने दोनो हाथों से अपने बुर को फैला कर दिखती है जिससे राजा विक्रम अपने हाथो से पकड़ लेते है,,,और अपना खड़ा लंड अपनी बहन की नंगी बुर में डाल देते हैं,,,जैसे ही राजा विक्रम का बड़ा लौड़ा नंदिनी की बुर में जाता है उसकी चीख निकल जाती है,,,फिर उसे भी मजा आने लगता है और वह अपने भाई को जोश दिलाते हुए कहने लगी,,,

और जोर से चोदो भाई,,और जोर से चोदो अपनी बहन की बुर को,,,ये तुम्हारे लंड की दीवानी है,,,इसे हर रात तुम्हारा लौड़ा चाहिए और वह ऐसे ही बड़बड़ाते रहती है,,,

फिर करीब आधे घंटे की चुदाई के बाद दोनो भाई बहन पसीने से लथ पथ एक दूसरे से चिपके चुदाई ने मगन रहते है,,,फिर नंदिनी कहती है,,,

मै झड़ने वाली हूं भाई,,,
मै भी झड़ने वाला हूं बहन,,,

लेकिन तू अपना लंड बाहर निकाल भाई और माल भी बाहर निकाल,,,नहीं तो गर्भ ठहर जाएगा,,,

चुदाई से नंदिनी झड़ जाती है और राजा विक्रम अपना लन्ड अपनी बहन की योनि से बाहर निकाल कर उसके स्तन पर अपना वीर्य गिरा देता है जिसे नंदिनी अपनी उंगलियों पर लेकर चाटने लग जाती है,,
Superb update
 

Napster

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अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Ravi2019

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Updates मिलने में थोड़ा विलम्ब होगा। मेरे exams की dates आ गई है। लेकिन धैर्य रखें, स्टोरी जरूर पूरी होगी।
 

Raja maurya

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Updates मिलने में थोड़ा विलम्ब होगा। मेरे exams की dates आ गई है। लेकिन धैर्य रखें, स्टोरी जरूर पूरी होगी।
Ok Bhai
 

Jassybabra

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Incestlala

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नंदिनी ने फिर बात को आगे बढ़ाया और बताने लगी,,

फिर तो मां हमारे ऊपर तो मुसीबते ही आ गईं,, पिता जी का यों अचानक चले जाना और राजदरबार की राजनीति ने तो हमें परेशान ही कर दिया था। वो तो भला हो राजा माधव सिंह का ,,, की हमारी जान बची,,

सच कहा बेटा,,अगर राजा माधव सिंह समय पर नहीं आते तो हम कहीं के नहीं रहते,,, वो तो उनके आने से राजदरबार में किसी की हिम्मत नही हुई की वे विक्रम को राजा घोषित किए जाने का विरोध कर सके और तो और ये राजा माधव सिंह की ही देन है कि तुम्हे उन्होंने राजा का मुख्य सलाहकार घोषित करवा दिया क्यों कि अभी विक्रम में इतनी परिपक्वता नहीं थी कि वह राज काज अकेले संभाल पाता और दरबारी पता नही इससे क्या क्या करवा बैठते,,,, वो तो मैने इसीलिए विक्रम की शादी राजकुमारी रत्ना से तय कर दी है,,,एक तो वह खूबसूरत भी बहुत है और दूसरे आखिर हमे ऐसे भले आदमी की जरूरत हमेशा पड़ेगी,,, और उन्होंने तो विपरीत परिस्थितियों में हमारा साथ दिया,,,शायद वो नहीं होते तो हम मार दिए गए होते,,,,राजमाता देवकी ने कहा

सच कहा मां, उनका कर्ज हम जिंदगी में कभी नहीं उतर पाएंगे,,,, लेकिन रत्ना तो मेरी सौतन बन कर ही आयेगी ना,,, नंदिनी ऐसा कह कर हस देती है,,,

चुप कर तू,,, बदमाश कहीं की,, रत्ना तुम्हारी सौतन कैसे होगी,,, तू विक्रम की धर्मपत्नी थोड़ी ही है,,,बहन है ,,,बहन बन कर ही रह,,, तुम दोनों के संबंध अवैध है और अवैध ही रहेंगे समझी,,, राजमाता देवकी ने समझाते हुए कहा और मुस्कुरा देती है,,,

लेकिन माते,, मैने तो बहन से विवाह कर ही लिया होता,,वो तो अच्छा हुआ की बहन ने मना कर दिया था,,,राजा विक्रम ने कहा और फिर बात आगे बढ़ाते हुए बोलते है,,,

माते , आपको तो याद ही होगा कि मेरे गद्दी संभालने के कुछ समय बाद मल्ल प्रदेश में सीमावर्ती राज्य से सीमा विवाद हुआ था जिससे निपटने के लिए मैं और नंदिनी बहन मल्ल प्रदेश गए थे। आप तो जानती ही हैं कि मल्ल प्रदेश हिमालय की तराई में स्थित है और बहुत ही रमणीक स्थल है और वहां हमारी राजकीय अतिथिशाला तो अत्यंत ही भव्य है जिसके सामने फूलों की बगिया है और उसके आगे हिमालय की पर्वत श्रृंखला है तथा अतिथिशाला के चारों ओर आम, अमरूद, सेव, संतरे के बगीचे है। मैने जिंदगी में पहली बार इतनी सुंदर जगह देखी थी। शायद दीदी ने भी पहली बार ही इतनी रमणीक जगह देखी थी। और हमारी विडंबना देखो राजमाता की हमारे वहां पहुंचते ही सीमा विवाद समाप्त हो गया क्योकि पड़ोसी राज्य के राजा से सीमा पर हमारी पहली मुलाकात में ही उन्होंने अपनी गलती मान ली और पूर्व निर्धारित सीमा पर पीछे हट गए।
सीमा विवाद समाप्त होने के बाद हम दोनो अब काफी हल्का महसूस कर रहे थे और हम दोनो भाई बहन ने कुछ दिन वही राजकीय अतिथिशाला में विश्राम करने का निर्णय लिया।
दूसरे दिन सुबह तैयार होकर हम दोनों बगीचा घूमने निकले। सुबह सुबह बहुत ही शीतल मद मस्त हवा बह रही थी। हम दोनों घूमते घूमते बगीचे के काफी अंदर चले गए। आम तो अभी नही लगे थे, लेकिन अमरूद और सेव के पेड़ों पर फल लगे हुए थे। हम दोनो एक अमरूद के पेड़ के पास पहुंचे जिसपे बड़े ही सुन्दर अमरूद लगे हुए थे। दीदी ने उसे तोड़ने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन उसकी टहनियां इतनी पतली थी की उस पर चढ़ना मुस्किल था और फल इतनी ऊंचाई पर था की उसे खड़े खड़े तोड़ नहीं सकते थे। तो मैने बहन से कहा,,

इसे तोड़ना मुश्किल है बहन। ये पेड़ चढ़ने लायक नहीं है और इसे नीचे से तोड़ भी नहीं सकते क्योंकि फल काफ़ी ऊपर लगा है
तो एक काम हो सकता है विक्रम। यदि कोई उठा सके तो हममें से कोई वहां तक पहुंच जाएगा।

ठीक है दीदी, मैं तुम्हारे कंधे पर बैठ जाता हूं और तुम मुझे उठा लेना।

अरे नहीं नहीं,,, मैं तुम्हे नहीं उठा पाऊंगी। मेरे तो कंधे ही टूट जायेंगे। तू एक काम कर भाई, तू मुझे कमर से पकड़ कर उठा ले और मै अमरूद तोड़ लूंगी।
नहीं नहीं, मैं तुम्हे उठा नहीं पाऊंगा बहन,,, तुझे उठाने के लिए तो दो दो लोग चाहिए ,,,,और ऐसा कहकर मैं दीदी को छेड़ते हुए हसने लगा।

अच्छा जी, तो मैं इतनी मोटी हो गई हूं क्या,,,जाओ तुम ही घूमो बाग में,,,मै तो चली आराम करने,,

हाहाहा, मै तो ऐसे ही मजाक कर रहा था मेरी प्यारी बहना, आओ मै तुम्हे उठता हूं,, और तुम अमरूद तोड़ लेना,,,

और ऐसा कहकर मैंने दीदी को सामने से कमर को पीछे की ओर नितम्ब के नीचे अपने हाथ लपेट कर जकड़ लिया और उन्हें ऊपर उठा लिया। ऊपर उठाने से भी वह अमरूद तक पहुंच नही पा रही थी और अपने शरीर को और ऊपर की ओर खीच रही थी जिससे उसकी कमर और पेट मेरे मुंह पर रगड़ खा रहे थे ,,लेकिन फिर भी वह वहां तक पहुंच नहीं पा रही थी। उसने कहा,,,

थोड़ा और ऊपर करो विक्रम ,,तभी मैं अमरूद तक पहुंच पाऊंगी,,

ऐसा कहने से मैने उसे थोड़ा और ऊपर किया,,जिससे उसका घाघरा मेरे मुंह के सामने आ गया और जैसे ही वह फल तोड़ने के लिए थोड़ा और आगे हुई ,,मेरा चेहरा उसके घाघरे के ऊपर उसकी योनि से सट गया। यह मेरा पहला अनुभव था जब मैंने उसकी योनि पे अपना मुंह लगाया हो। मुझे उसके घाघरे से उसकी योनि की मादक गंध आ रही थी जो मुझे मदहोश किए जा रही थी। मैने भी जोश में आकर अपना मूंह उसकी योनि में जोर से दबा दिया, लेकिन उसे अभी होश ही नहीं था और वह अभी अमरूद तोड़ने में ही व्यस्त थी। इधर मैं अपना मुंह उसके घाघरे में घुसा कर योनि पर रगड़ रहा था। तब तक उसने अमरूद तोड़ लिया था और तब उसे ध्यान आता है की उसकी योनि पे मेरा चेहरा सटा हुआ है तथा मै उसकी योनि पर अपना चेहरा रगड़ रहा हूं। दीदी भी गरम हो जाती है । उसे भी तो उसकी कामभावना तड़पा ही रही थी। उसे भी काफी समय से पुरुष प्रेम की , लिंग की तलाश थी ही ।

लेकिन कुछ देर बाद वह धीरे से कहती है,,

अब मुझे नीचे उतर दो विक्रम,,

नंदिनी के ऐसा कहने से मैने उसे धीरे धीरे नीचे उतारा । इस दौरान नीचे आते हुए उसका पेट और फिर उसके स्तन मेरे चेहरे से रगड़ खा रहे थे और उसके नीचे उतरते ही मैने उसे अपनी बाहों में दबोच कर ही रखा , तब दीदी ने कहा,,,

ये देख ,, अमरूद। खायेगा।

हां , ये तो बड़े अच्छे अमरूद है, । लेकिन अभी तो मुझे संतरे खाने है।

और ऐसा कह कर मैं उसके स्तन को देखने लगा जिससे दीदी शरमा गई। फिर उसने बोला,,,

अभी तू अमरूद ही खा।

तभी मैंने अचानक दीदी से पूछा,,,

बहन , तुम्हे कैसा लगा था उस रात।।।

मेरे ऐसा पूछने पर दीदी एकदम चुप हो गई और उसने अपनी आंखें नीची कर ली। वह बखूबी जान रही थी की मै किस रात की बात कर रहा हूं, लेकिन उसने कुछ नहीं बोला और ऐसे ही अपनी आंखे नीची किए अपने पैर के अंगूठे से मिट्टी कुरेदने लगी । वह सोच भी नहीं सकती थी की मै इतनी पुरानी बात का जिक्र आज अचानक उसके सामने कर दूंगा।
उसके चुप रहने पर मैं फिर बोलता हूं,,,

दीदी , मुझे जो चीज चाहिए वो तुम्हारे पास है और तुम्हे जो चीज़ चाहिए वो मेरे पास है। मै जानता हूं तुम भी बहुत तड़पती हो पुरुष संसर्ग के लिए,,,आओ ना हम दोनो एक दूसरे की प्यास बुझायें।

इस पर दीदी अब चुप्पी तोड़ती है और कहती हैं,,,

विक्रम, याद है मुझे उस रात की बात। लेकिन् उस समय हम बच्चे थे, नादान थे। इसलिए गलती हो गई। ठीक है, मानती हूँ मुझे भी अच्छा लगा था उस रात । लेकिन इसका मतलब ये तो नही की वही गलती फिर दोहराई जाए। तुम मेरे अनुज हो और मैं तुम्हे एक छोटे भाई की तरह प्यार करती हूं ।और तो और मै किसी की अमानत हूं,, उसकी जिससे मेरी शादी होगी। मै उसके लिए खुद को बचा कर रखूंगी।

ठीक है दीदी। लेकिन आओ ना, हम दोनो जो करेंगे छुप कर करेंगे और किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा। हम दोनों केवल एक दूसरे के यौनांगों को देखेंगे, लेकिन उन्हें छूएंगे नही। दुनिया वालों के लिए हम भाई बहन ही रहेंगे, लेकिन अकेले हम दोनो मजे करेंगे । नही तो हम दोनो यौन सुख के लिए तरसते ही रहेंगे। माना की तुम किसी और की हो जाओगी,,, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं की तुम भविष्य को लेकर वर्तमान में जीना छोड़ दोगी जब की तुम अभी अपनी कामाग्नी को शांत कर सकती हो।
राजा विक्रम की बातों से नंदिनी गर्म तो हो जाती है, लेकिन वह द्वंद में जी रही होती है की वह क्या करे। और शायद विक्रम ने यह बात गलत समय में छेड़ दिया था। वो कहते हैं ना की नारी जब बिस्तर पर गरम होती है तब वह सारी मान मर्यादा भूल जाती है। नंदिनी ने भी महावारी शुरू होने के बाद जितनी भी काम क्रीड़ा की थी, वह उसने बिस्तर में गरम होने के बाद कामेच्छा की आग भड़कने पर ही किया था।
नहीं विक्रम नही,,, ये गलत होगा। तुम भूल गए की अब हम बड़े हो गए हैं, हम दोनों अब बच्चे नहीं रहे और तुम तो मेरे प्यारे से छोटे भाई हो। तुममे तो मेरी जान बसती है मेरे भाई। हमारे बीच जो भी हुआ है उसे भुल जाओ।
ऐसा कह कर नंदिनी राजा विक्रम का हाथ पकड़ कर मुड़ती है और बाग में पहाड़ों की तरफ चल देती है। साथ में राजा विक्रम भी पीछे पीछे चल देते है। चलते चलते वो दोनो काफी आगे निकल जाते हैं और वे पहाड़ी के नजदीक पहुंच जाते हैं तो उन्हें झरने की आवाज सुनाई देती है। नंदिनी कहती है...
इधर किसी झरने की आवाज आ रही है। लगता है इधर कोई झरना है।

हां बहन, आवाज तो आ रही है। अतिथिशाला के संतरी ने बताया था कि बाग के पीछे एक बहुत बड़ा झरना है। शायद यह वही झरना हो।

दोनो भाई बहन उस आवाज की तरफ बढ़ते हैं और जब वहां पहुंचते हैं तो उस रमणीक स्थल की खूबसूरती देख कर वे मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। उनके सामने पहाड़ की ऊंचाई से एक झरना गिरता दिख रहा था जिसके नीचे बिल्कुल साफ पानी का कुंड बन गया था। उसे देख कर राजा विक्रमं का मन कुंड में नहाने का करने लगता है। कुंड का पानी इतना साफ था की कुंड की तलहटी भी दिख रही थी। विक्रम बोलता है....

मुझे नहाना है दीदी,,,मैं यही नहा लेता हूं। आओ ना दीदी तुम भी नहा लो।

नहीं बिक्रम, मै नहीं नहा सकती। कपड़े नहीं लाई हूं। और तू भी मत नहा, तेरे कपड़े गीले हो जायेंगे , तो तू पहनेगा क्या ,,, तेरे कपड़े भी नहीं है यहां।

लेकिन दीदी मै तो नहाऊंगा और यहां कोई और है ही नही । मै तो कपड़े निकाल कर बाहर ही रख दूंगा,,,,,आओ तुम भी आओ ना।

बड़ा बेशर्म है तू , मै तो नहीं नहाती।

अच्छा बहन , ठीक है,, तू चेहरा उधर कर,, मै तब तक कपड़े निकाल लूं।

विक्रम के ऐसा कहने पर नंदिनी चेहरा घुमा लेती है और राजा विक्रम अपने सारे कपड़े निकाल कर कुंड के किनारे रख कर कुंड में कूद जाता है और नहाने लगता है। नंदिनी जब अपना चेहरा दुबारा घूमती है तो वह देखती रह जाती है। राजा विक्रम कुंड में पूरे नंगे नहाते दिख रहे थे क्यों कि कुंड का पानी बिलकुल साफ था और विक्रम नहाते हुए नंगे कुंड में दिख रहे थे। विक्रम को नहाते देख नंदिनी का भी नहाने का मन करने लगता है। वह कहती है...

मै भी नहा लेती हूं भाई। लेकिन मै बगल के कुंड में नहाऊंगी। तुम उधर मत आना क्यूंकि मैं भी कपड़े निकाल कर किनारे रख कर नहाने जाऊंगी ताकि मैं नहा कर फिर कपड़े पहन सकूं। राजा विक्रम अपनी बहन की ये बात सुन कर ही गरम हो जाते हैं कि वो भी नंगे ही कुंड में नहाने जा रही है । लेकिन वो कुछ नही करते बल्कि कुंड में शीतल जल में नहाने का आनंद ले रहे थे । जो मजा उन्हें आज तक नहीं मिला था । इधर नन्दिनी चारों ओर देख कर पहले निश्चिन्त हो जाती है की उसे कोई नही देख रहा है ,,,तो फिर वह धीरे धीरे अपनी घाघरा चोली निकाल कर पूरी नंगी हो जाती है और फिर वह कुंड में नहाने के लिए छलांग लगा देती है।
कुछ देर बाद राजा विक्रम को नन्दिनी के चिल्लाने की आवाज आती है तो वह एकदम से डर जाते हैं और उसी स्थिति में नग्नावस्था में ही कुंड से निकलते हैं और कुंड के दूसरी तरफ भागते हैं जहां से आवाज आ रही थी। वहां जाकर देखते है की नंदिनी कुंड में डूब रही थी। वो फटाफट कुंड में कूद जाते है जिसमे नंदिनी नंगे ही थी। वह तैरते हुए जाते हैं और नंदिनी को बाल से पकड़ कर खींचते हुए किनारों की ओर ले जाते हैं। और फिर किनारों पर उसे अपनी बाहों में उठाकर सुखी जमीन पर ले जाते हैं।
नंदिनी को ले जाते समय दोनो भाई बहन बिल्कुल नग्न रहते हैं। जमीन पर लेटा कर वे नंदिनी के हाथ और पैर को रगड़ते हैं जिससे नंदिनी आंखे खोलती है जिससे राजा विक्रम की जान में जान आती है। नंदिनी भी आंखे खोल कर अपने छोटे भाई को देखती है। और कहती है...

बहुत बहुत धन्यवाद भाई. ,,,, मै तुम्हारा एहसान जिंदगी भर नही भूल सकती। तुमने जान पर खेल कर मेरी जान बचाई है। अगर तुम आज यहां नही होते तो पता नहीं आज क्या होता।

दीदी , मेरा तो ये फर्ज था आपको बचाना । आपने धन्यवाद बोलकर मुझे शर्मिंदा कर दिया। मैने आपको आपकी रक्षा का वचन दिया है और आपको बचाना मेरा फर्ज है। लेकिन आप डूबने कैसे लगी ,,,आप तो अच्छी तैराक भी हैं।

क्या कहूं भाई, ये दूसरा कुंड बहुत खतरनाक है उसमे अंदर एक शिला ऊपर उठी हुई है जिसमें इतनी फिसलन है कि मेरा पैर पड़ते ही मैं फिसल गई और मेरा संतुलन बिगड़ गया जिसके कारण मैं कुंड के अंदर चलती चली गई। वो तो भला हुआ की तुम समय पर आ गए , नहीं तो मैं मर ही गई होती। ये कहते कहते नंदिनी थोड़ा उठ कर बैठती है।

नंदिनी के मरने की बात बोलने पर राजा विक्रम उसके होठों पर अपनी उंगली रख देते हैं और कहते है...
ऐसा ना कहें बहन,,, आपको कुछ हुआ तो मै जी नहीं पाऊंगा और फफक कर रो पड़ते है....

अरे !,! मेरा भाई मुझे इतना प्यार करता है,, ये तो मै जानती ही नहीं थी,,,चुप हो जा मेरे प्यारे भाई चुप हो जा

और ऐसा कह कर वो भी रोने लगती है,,, रोते रोते उन्हें ख्याल नही रहता है कि दोनो पूरे ही नंगे हैं,,,और वे एक दूसरे से लिपट जाते हैं । दोनो बिल्कुल नंगे एक दूसरे की बाहों मे सिसक रहे थे। विक्रम थोड़ा सा अलग होते हैं और नंदिनी की आंखों में देखते हुए,,
कसम खाओ दीदी,,,की आज के बाद कभी भी आप मरने की बात नहीं करेंगी।

नहीं करूंगी मरने की बात,,अब खुश। लेकिन मै तो जानती ही नहीं थी कि मेरा भाई मुझे इतना प्यार करता है,,,

और ये कहते हुए नंदिनी राजा विक्रम के गालों पर एक चुम्बन जड़ देती है। विक्रम भी नंदिनी को चुंबन देते है तो नंदिनी उसके गालों पर चुम्बनों की झड़ी लगा देती है। फिर अचानक नंदिनी विक्रम के होठों पे अपने होठ रख कर चूमने लगती है । राजा विक्रम भी उसका साथ देते हुए उसके होठों को अपने होठों में दबाकर चूसने लगते हैं।दोनो भाई बहन इसी आनंद में पंद्रह मिनट डूबे रहते हैं। फिर नंदिनी चुम्बन छोड़ विक्रम की आंखों में देखते हुए कहती है,,,,
उस रात भी तो हमने एक दूसरे के होंठ चूसे थे भाई,,,
और ऐसा। कह कर हल्का मुस्कुरा देती है। और फिर कहती है,,
चलो वापस देखो,, दोपहर गई है,,पूरी सेना अब हमें खोजती हुई आ रही होगी।।।

नंदिनी के ऐसा कहने पर विक्रम को भी होश आता है और दोनो कपड़े पहन कर वापस अतिथिशाला की ओर चल देते है।

वहां पूरी सेना में खलबली मची हुई थी कि राजा और मुख्य सलाहकार कहा चले गए। इन्हे देख कर सेना ने भी राहत की सांस ली।

दोपहर हो चली थी तो सभी ने खाना खाया और आराम करने लगे । शाम में फिर इनकी एक राजकीय बैठक थी जिसमें काफी समय लग गया । फिर रात में खाना खाकर ये दोनो बरामदे में बैठे थे । सुहानी चांदनी रात थी और ठंडी ठंडी हवा बह रही थी। इस पूरे अतिथिशाला ने मे केवल राजा विक्रम और नंदिनी ही थे और दूर दूर कोई भी नही था। दोनो हाथों में हाथ लिए बैठे रहते हैं। फिर नंदिनी विक्रम के होठों पर चुम्बन देकर अपने कक्ष में चली जाती है और राजा विक्रम अपने कक्ष में। लेकिन दोनो की आंखों में नींद नहीं थी। थोड़ी देर बाद राजा विक्रम नंदिनी कक्ष में जाते हैं और दरवाजा को हल्का धक्का देते हैं जिससे दरवाजा तुरंत खुल जाता है क्यों कि ये अंदर से बंद ही नहीं था। दरवाजा खुलने से नंदिनी पूछती है,,,

कौन है ?
मै हूं दीदी।।।
क्या हुआ,,,

मुझे डर लग रहा है दीदी ,,, मै कभी अकेले इतने वीराने में नहीं रहा।।। मै सो जाऊं आपके साथ।

ओ हो ,, मेरे छोटे बाबू को डर लग रहा है,,, आ जा ,,मेंरे साथ में सो जा।।।

विक्रम शैय्या पर जाते ही वह नंदिनी से लिपट जाते है और राजा विक्रम अपनी प्यारी बहन के होठ चूसने लगते हैं जिससे दोनो अत्यंत उत्तेजित हो जाते हैं। फिर विक्रम नंदिनी की चोली उठाकर उसके स्तन चूसने लगते हैं जिससे वह पूरी उत्तेजित हो जाती है और उत्तेजनावश विक्रम का हाथ पकड़ कर अपने बुर पर रख कर दबा देती है और इधर राजा विक्रम अपनी बहन की योनि को घाघरे के ऊपर से ही सहलाने लगते हैं।राजा विक्रम अपने मुंह से स्तन निकाल कर नंदिनी की आंखों में देखते हुए कहते हैं,,,
उस रात ये भी हुआ था ना बहन,,,

इससे नंदिनी शर्मा जाती है। फिर विक्रम ने वो किया जो नंदिनी ने सपने में भी नहीं सोचा था। उसने अचानक ही नंदिनी का घाघरा की डोरी खोलकर उसे नीचे कर दिया जिसको निकलने में नंदिनी ने अपनी चूतड़ उठा ली जिससे उसका घाघरा सरसरा कर निकल गया , विक्रम भी अपनी धोती खोलकर पूरा नंगा हो गया। अब नंदिनी और विक्रम दोनो नंगे थे और नंदिनी का हाथ पकड़ कर विक्रम अपने मोटे लौड़े पर रख देता है जो नंदिनी खुद चाह रही थीं और वह अपने भाई का लिंग अपने हाथ में लेकर खूब दबा दबा कर आगे पीछे करने लगती है। इधर विक्रम भी अपनी बहन की बुर सहलाए जा रहा था और उसके स्तन भी चूसे जा रहा था। दोनो पूरे उत्तेजित हो गए थे।
अचानक विक्रम स्तन चूसना छोड़ कर अलग हट गया और अपना मुंह नंदिनी की योनि पर लगा कर सूंघा और कहा।
बड़ी मादक गंध है तुम्हारी योनि की बहन ,,,

योनि की गंध अच्छी लगी मेरे भाई को,,,तो सूंघ ले इसे,,, तुम्हारी बहन की ही योनि है भ्राता,,,,इसकी रक्षा कर मेरे भाई

फिर विक्रम ने आव देखा न ताव और लगे नंदिनी की बुर चाटने और उसकी बुर फैला कर उसने अंदर तक जीभ डाल डाल कर जीभ से ही चोदने लगे और जीभ भीतर घुसा कर उसकी पत्तियों को चूसने लगा,,,
नंदिनी आहें भरने लगी,,,
और कर मेरे भाई , मेरे बालम और कर,,मै तेरी प्यासी हूं।फिर नंदिनी आहें भरते हुए विक्रम के लंड को अपनी योनि से सटाने लगी जिससे विक्रम की आहें निकल गईं।

विक्रम फटा फट नंदिनी के ऊपर आ गया और बोला...
दीदी,, मै तुम्हारी योनि में अपने लंड को डालना चाहता हूं।

तो डाल दे ना भाई। मना किसने किया है भाई। और तू अगर मुझसे यौन संबंध बना लेगा तो किसी को पता भी नहीं चलेगा , दुनियवालों के सामने तू मेरा भैया और अकेले में तू मेरा सैयाँ,,, और ऐसा कह कर मुस्कुरा देती है।

इतना सुनना था कि राजा विक्रम नंदिनी की योनि में पर अपना लिंग रगड़ने लगते हैं जिससे नन्दिनी तड़प जाती है और फिर विक्रम अपना लंड डालने लगते हैं।

तभी बाहर बिजली चमकती है और तेज बारिश होने लगती है। ऐसा लगता है मानो प्रकृति भी ऐसा चाह रही घी।
नंदिनी की योनि में विक्रम का मोटा लंड नही जा रहा था तो नंदिनी थोड़ा घी अपने भाई के लंड पर लगा कर बोलती है,,
अब करो विक्रम, आज तो हम भाई बहन की सुहागरात है और तू ही मेरा कौमार्य भंग करेगा। विक्रम मै तुमसे बहुत प्यार करती हूं बहुत प्यार।

नंदिनी के ऐसा कहने पर राजा विक्रम पूरे जोश में आ जाते है और अपना लंड झटके से नंदिनी की बुर में डाल देते है जिससे नंदिनी की सिसकी निकल जाती है लेकिन थोड़ी देर बाद वह सामान्य होती है तो।
...
और करो विक्रम और करो। मेरी बुर फाड़ दो विक्रम।
विक्रम भी
हां दीदी हाँ ,,,ये लो मेरा लौड़ा अपनी योनि में ,,,और बना दो मुझे अपने बच्चे का बाप,,,,,,,मै तुम्हे वैश्या की तरह चोदूंगा ,, ये लो मेरे लौड़ा ये लो,,,
और फिर दोनो करीब आधे घंटे की चुदाई के बाद झड़ जाते हैं।।।।
सुबह जब दोनो उठते हैं तो दोनो को चुदाई के बाद उस जगह खून के धब्बे दिखते है, जिन्हे देख नंदिनी कहती है।।
देख भई तूने आज मेरा कौमार्य भंग कर दिया,,,ये है उसकी निशानी,,,कल हमारी सुहागरात थी,,,एक भाई और बहन की सुहागरात,,,
कौमार्य भंग के खून के धब्बों को देख कर राजा विक्रम को एक अलग सी अनुभूति होती है की उसने ही अपनी बड़ी बहन का कौमार्य भंग किया है,,,और कहते हैं,,,
दीदी सुहागरात तो शादी के बाद मानते है ना,,,
हाँ ,,तो,,,
लेकिन हमने तो सुहागरात मना लिया ,,,लेकिन शादी नही की,,,तो आओ ना हम दोनो विवाह कर लेते हैं,,,
नही विक्रम हम ऐसा नही करनसकते,, हम भाई बहन है,,,चोरी चुपके यौन सम्बन्ध तक तो ठीक है ,,,लेकिन शादी नहीं,,,बिना शादी के भाई बहन की चुदाई का अलग मना है,,,

ठीक है दीदी ,,तुम जैसा कहो
,,,




तो be continued
Superb update
 
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