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Incest राजकुमार देव और रानी माँ रत्ना देवी

andyking302

Well-Known Member
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बहुत सुन्दर लिखते हो,,,, very nice,,, मैने भी पिछले महीने एक कहानी शुरू की है,, bete se ummeed,,,
Apki bhi story achi hey bhai
 

Napster

Well-Known Member
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बहुत ही सुंदर और मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गया
नंदिनी तो चुद गयी लेकीन किससे ये देखते हैं शायद अपने भाई से या कोई और अपना नजदीक वाला यह रहस्य हैं
राजा के कक्ष में क्या धमाचौकडी हुई हैं देखते हैं आगे
अगले रोमांचकारी और धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Kittu

New Member
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Update 3
राजमाता देवकी आईने के सामने बैठी रहती है और रन्झा उसे तैयार कर रही होती है, देवकी राजपरिवार की जो ठहरी. रन्झा चंदन की लकड़ी से बने कंघे से देवकी के बाल सवारति है. फिर मलाई और गुलाब से बने क्रीम उसके चेहरे पे लगाती है. फिर थोड़ी सी क्रीम लेकर उसके स्तनों पे मलती है और अपनी उँगलियों से उसके चुचुक को मसल देती है जिससे देवकी सिसक जाती है और एक हल्की सी चपत रन्झा के हाथ पे लगाती है जिस पे रन्झा मुस्कुरा देती है. थोड़ी सी क्रीम लेकर अब रन्झा नीचे बैठ जाती है और अपने हथेलियों मे फैलाकर देवकी की योनि पर अच्छे से लगा देती है.
देवकी गुस्सा दिखाते हुए - ये क्या कर रही है रण्डी
रन्झा - हे हे हे, तुमने आज अपनी बुर को सुबह सुबह कष्ट दिया है ना. इसलिए मै थोड़ा मलहम लगा देती हूँ , , आखिर आपकी योनि का भी तो ख्याल रखना है मुझे और दांत निपोरने लगती है.
देवकी - मुस्कुराते हुए, मेरी योनि है, मै इसके साथ जो करूँ, तुझे इससे क्या. तु अपनी योनि देख और उसे संभाल. और बातें कम कर और जल्दी तैयार कर मुझे, खुद तो तैयार हो कर आ गई गई है बरचोदि और मुझे तंग करती है.
अब रन्झा देवकी को तैयार करने लगती है. उसके स्तन पर पहले कपड़े का पट्टा बांधती है. फिर उसे एक हीरे जवाहरात से जड़ी एक लाल रंग की चोली पहनाती है. अब देवकी खड़ी हो जाती है जिसे रन्झा एक हीरे का कमरबंध पहनाती है. फिर एक मलमल के कपड़े का बना लंगोट जैसा अंतःवस्त्र उसकी योनि पे पहनाती है जो उस समय की औरत पहनती थी. फिर लाल रंग का रत्न जडित घाघरा पहनाती है क्यों कि आज राजकुमार के जन्मदिन का अवसर जो था. इसके उपर राजमाता को एक हरे रंग की चुन्नी ओढा देती है. आँखों पे काजल और होंठो पे लाली लगाकर रन्झा राजमाता देवकी को कहती है
रन्झा- अब अपने को शीशे मे देख लो राजमाता. बिल्कुल दुल्हन लग रही हो.
देवकी - धत्त, कुछ भी बोलती हो. मै विधवा हूँ. मैं कहाँ से दुल्हन लग सकती हूँ.
रन्झा - चलो बातें मत बनाओ. अभी तो इतनी जवान हो कि कोई भी तुम्हें देखकर पागल हो जाए. और हाँ इस चुन्नी से अपनी जवानी को ढके रहना नहीं तो आयोजन में ही लोग अपना लंड निकाल कर हिलाने लगेंगे.
और ऐसा कह कर वह जोर से देवकी की चूची को दबा देती है जिससे उसकी आह निकल जाती है और रन्झा को बनावटी गुस्सा दिखाती है.
फिर देवकी को जैसे कुछ याद आता है और कहती है देख कितनी देर हो गई छिनाल. सूर्योदय होने वाला है. जल्दी कर. अभी देख राजकुमारी नंदिनी जगी है कि नहीं.
( राजकुमारी नंदिनी राजा विक्रम सेन की बडी बहन है जो उससे 2 साल बड़ी है और अपनी माँ और भाई की तरह बला की खूबसूरत है. अपनी माँ की तरह ही गोरी, तीखे नैन नखस् और लंबाई 5 फीट 3 इंच, उन्नत वक्ष, चौडी कमर और छरहरा बदन. उसकी नीली आँखे लगता था अभी बोल पड़ेंगी. उसके उन्नत नितंब देखकर सभी आहें भरते थे)
राजमाता देवकी फटाफट तैयार हो कर अपने कक्ष से निकल कर नंदिनी के कक्ष की ओर जाने लगती है. जैसे ही वह बाहर निकलती है सभी संतरी सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाते हैं. पीछे से रन्झा भागे भागे आती है. देवकी अब नंदिनी के कक्ष के बाहर पहुँचती है और सेविकावों से पुछती है.
देवकी - राजकुमारी तैयार हो गई है क्या?
सेविका - हकलाते हुए, नहीं राजमाता, अभी राजकुमारी सो रही हैं.
देवकी - ( बड़बड़ाते हुए कमरे में घुस जाती है और राजकुमारी को सोया हुआ देखकर जगाती है) उठ जाओ राजकुमारी.
नंदिनी आँखे मलते हुए उठती है.
देवकी - मेरी लाडो राजकुमारी, जल्दी से तैयार हो जा, आज तेरे भ्राता का जन्मदिन है. और लाडो ये क्या तु ठीक से सोया कर. देख तेरी सलवार घुटने तक सरकी हुई है. कोई आता तो देखकर क्या बोलता. वैसे भी तेरी शादी की उम्र हो गई है.
अब राजकुमारी क्या बताये की वो अंदर से पुरी नंगी है. ( राजकुमारी नंगी क्यों है ये राज बाद में खुलेगा.)
नंदिनी - माते आप मेरे अतिथि कक्ष में बैठे, मै तुरंत स्नान कर के आती हूँ. ठीक है पुत्री मै तुम्हारे अतिथि कक्ष में इंतजार करती हूँ तब तक तुम जल्दी से तैयार हो जाओ. और इतना कहकर देवकी दूसरे कक्ष में चली जाती है. देवकी के जाते ही राजकुमारी नंदिनी अपनी सलवार निकाल कर फेकती है और चादर ओढ़ कर सनानागर् मे भाग जाती है और अंदर पहुँच कर राहत की साँस लेती है. पहले राजमहल मे कमरो मे दरवाजे नहीं होते थे, बल्कि बड़े बड़े परदे लगे होते थे. राजकुमारी नंदिनी अपना चादर हटाती है जिससे वह पुरी मदरजात नंगी हो जाती है. सबसे पहले वह जल्दी से अपनी योनि को पानी से साफ करती है. इधर रन्झा भी अतिथि कक्ष में पहुँच जाती है और देवकी से पुछती है कि राजकुमारी नंदिनी तैयार हुई की नहीं.
देवकी - अरे वो लाडो को जानती नहीं हो, कभी समय से तैयार होती है क्या.
रन्झा - राजमाता, अब नंदिनी भी जवान हो गई है. अब अपनी लाडो को लण्ड दिला दो उसकी बुर चोदने के लिये, नहीं तो कहीं किसी से बुर ना चुदवा ले.
देवकी - चुप कर बुरचोदि, तुम्हारे मन मे केवल लंड, बुर की चुदाई की बात ही चलती रहती है. जा, जाकर देख नंदिनी तैयार हो गई क्या. और अगर वो तैयार ना तो उसे तैयार कर दे.
ये सुनकर रन्झा नंदिनी के कक्ष में जाती है. उसे स्नानागार से पानी गिरने की आवाज आती है और वह ये देखने के लिये की नंदिनी क्या कर रही है चुपचाप स्नानागार मे परदा हटा कर घुस जाती है और राजकुमारी को अपनी बुर साफ करते हुए देखती है. रन्झा की अनुभवी आँखे कुछ गड़बड़ महसुस करती है और तब आवाज देती है राजकुमारी. रन्झा की आवाज सुनकर नंदिनी अचानक से पीछे मुड़ती है जिसे नंगा देखकर रन्झा का मुह खुला रह जाता है.
रन्झा - राजकुमारी आप क्या कर रही हैं.
नंदिनी - आप अंदर कैसे आई धाई माँ. रन्झा को राजकुमारी और राजकुमार धाई माँ बुलाया करते थे.
रन्झा - मै तो तुम्हें खोजते हुए आई हूँ. राजमाता ने मुझे आपको तैयार करने के लिए भेजा है.
नंदिनी - मै कोई दुध पीती बच्ची थोड़े ही हूँ की मुझे तैयार करवाना पड़ेगा.
रन्झा - वो तो मै भी देख रही हूँ कि आप दुध पीती बच्ची नहीं हैं. बल्कि आप किसी को दुध पिला दीजियेगा. ऐसा कहते हुए रन्झा नंदिनी के पास पहुँच कर उसकी दोनों चूची को अपने हाथ मे ले कर मसल देती है. नजदीक आने से रन्झा को नंदिनी के शरीर पर दाँत काटने के निशान देखती है. साथ ही नंदिनी की योनि की लालिमा रन्झा के मन मे शंका पैदा करती है. रन्झा बोलती है कि आप भी अपनी माँ की तरह बला की खूबसूरत हैं. वैसे ही स्तन, नयन नखस् और वैसी ही सुन्दर योनि. जो भी ईस बुर को देख ले, वो तो हस्तमैथुन करते करते मर जाए.
नंदिनी - ( मन ही मन खुश होती है और कहती है) धत् धाई माँ, आप कैसी बातें करती हैं. आपने माँ की बुर देखीं है क्या? और आपके पास भी तो बुर है. सबकी योनि तो एक ही तरह की होती है.
रन्झा - (मन में, अब आई ये लाईन पर.) राजकुमारी मैंने आपकी माँ को बचपन से देखा है और उन्हें रोज तैयार करती हूँ. तो इसके लिए वो मेरे सामने नंगी होती हैं. और हाँ सबकी बुर एक जैसी नहीं होती. मेरी बुर पे घनी झांटे है. आपदोनों की बुर कोई देख ले तो बिना चोदे नहीं मानेगा. आप तो अभी चुदवा लें तो बच्चा पैदा हो जाये. वैसे एक बात पूछूँ. नंदिनी ने कहा पुछो.

रन्झा - आपने रात्रि मे किसी पुरुष के साथ सम्भोग किया है क्या?
ये सुनकर नंदिनी के होश उड़ गये. उसने कहा आप ये क्या कह रही है. रन्झा कहती है की मै सही कह रही हूँ. मेरी अनुभवी आँखे कह रही हैं की रात में आपने मस्त चुदाई का मजा लिया है. आपकी लाल योनि और स्तन पे दाँत के निशान इसकी गवाही दे रहे हैं. नंदिनी समझ जाती है कि छुपाने से अब कोई फायदा नहीं है, उसकी चोरी पकड़ी गयी है.
नंदिनी- आप सत्य कह रही हैं धाई माँ. रात में मैने सम्भोग किया है. क्या करूँ इस जवानी की गर्मी सही ही नहीं जा रही. अब आप ही बताओ इस 20 साल के उम्र में मै लण्ड के बिना कैसे जियूँ.
रन्झा - मै समझती हूँ राजकुमारी. तभी तो मैने राजमाता को अभी कहा है कि लाडो को अब एक लण्ड दिला दो.
नंदिनी - धत्त, सच मे आपने राजमाता से ऐसा कहा. उन्होंने क्या कहा.
रन्झा - राजमाता भी समझती हैं. मै समझती हूँ की बुर की आग क्या होती है. मै राजमाता को कुछ नहीं बताऊंगी, नहीं तो वो तुम्हारी चुदाई बन्द करा देंगी. लेकिन लाडो मै भी तुम्हारी धाई माँ हूँ, तुम्हारा भला चाहती हूँ. इसलिए एक सलाह देती हूँ की चुदाई के बाद पुरुष का वीर्य अपनी योनि मे मत गिरने देना, नहीं तो तुम गर्भवती हो जाओगी. और हाँ सम्भोग किसी अपने नजदीकी से ही करना जिस पर तुम्हें विश्वास हो, नहीं तो बाहर वाले से चुदवाओगी तो काफी बदनामी होगी.
नंदिनी - जैसा आप कहे धाई माँ और ऐसा कहकर वह रन्झा को अपने आलिंगन मे भर लेती है जिसे रन्झा दूर हटाती है और कहती है जल्दी तैयार हो जाओ. वैसे धाई माँ आप इतना कैसे जानती हैं. किसी नजदीकी से अपनी बुर चुदवा रही हैं क्या और ऐसा कहकर चोली के ऊपर से ही रन्झा की चूची दबा देती है और घाघरे के उपर से ही उसकी बुर दबोच लेती है. रन्झा भी मुस्कुरा देती है और नंदिनी की नंगी बुर को सहला देती है. तब तक बाहर से देवकी आवाज देते हुए अंदर आ जाती है की नंदिनी तैयार हुई की नहीं. आवाज सुनते ही दोनों अलग हो जाती हैं और नंदिनी जल्दी टब मे घुसकर नहाने लगती है. लेकिन तब तक देवकी नंदिनी की नंगी बुर और नंगा बदन देख चुकी थी. और वह रन्झा के कान में धीरे से बोलती है की तू सही कह रही थी. लाडो को अब लंड चाहिए. ये बात नंदिनी सुन लेती है और उसके तन बदन मे सुरसुरी दौड़ जाती हैं और वह मन में कहती है कि मै कैसे बताऊँ माँ की मैने अपनी योनि मे लण्ड ले लिया है लेकिन किसका लिया है ये समय आने पर बताऊंगी. फिर देवकी उसको जल्दी तैयार होने को बोल कर बाहर आ जाती है. फिर नंदिनी फटाफट तैयार होकर अपने वस्त्र कक्ष में जाकर गुलाबी रंग की घाघरा चोली पहन कर बाहर आ जाती है. जिसकी सुंदरता देखकर देवकी दंग रह जाती है. वह क्या जानती है की ये बदलाव रात की चुदाई का कमाल है. नंदिनी फिर कहती है कि ये चुन्नी तो ले ले लाडो, सबको अपना बड़ा दूध दिखाती रहेगी क्या. और तु जल्दी जाकर पूजा कक्ष मे पूजा की सामग्री देख लो तब तक मै अपने लाड़ले पुत्र को देखकर आती हूँ कि वह तैयार हुआ की नहीं और ऐसा कहकर राजमाता देवकी अपने लाड़ले पुत्र राजा विक्रम सेन के कक्ष की ओर चल देती है. पीछे पीछे रन्झा भी दौड़ते हुए आती है.

अगले update मे आप देखेंगे की राजा विक्रम सेन के कक्ष में क्या क्या होता है....
Bhai pic dalo maja aayega aur
 

Ravi2019

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Update 4
आज राजमाता देवकी इसलिए सबको सुबह सुबह जगाने जा रही है क्यों कि आज राजा विक्रम सेन के जन्मदिन के अवसर पर सूर्योदय के समय ही कुल देवता के मंदिर में पूजा अर्चना करनी थी, आखिर राजज्योतिषी ने मुहूर्त जो निकाला था. देवकी के तो पैर ही जमीन पे नहीं पड़ रहे थे और वो तो मानो हवा में उड़ रही थी. वह राजा के कक्ष में कभी नहीं जाती है. लेकिन आज की तो बात ही कुछ और थी. अपनी ही धुन मे वह अपने पुत्र राजा विक्रम सेन के कक्ष के सामने पहुँचती है. देवकी को देखकर द्वारपाल भी चौंक जाता है. उसे उम्मीद नहीं थी की राजमाता राजा के कक्ष में पधारेंगी. देवकी द्वारपाल से पुछती है की क्या राजा अपने कक्ष में है. द्वारपाल हाँ मे अपना सर हिलाता है और राजमाता को आदर पूर्वक राजा के कक्ष मे अंदर ले जाता है. राजा के कक्ष में जाने के लिये एक लम्बा गलियारा था और द्वारपाल को उस गलियारा के बाद आगे जाने की अनुमति नहीं थी. सो द्वारपाल देवकी को गलियारा पार कराकर राजा के कक्ष के सामने छोड़कर अनुमति ले लेता है तथा पुनः राजा के कक्ष के मुख्य द्वार पे चला जाता है.
इधर अपने कक्ष मे राजा विक्रम सेन सुबह सुबह निश्चिंत उठते है और नंगे ही अपने कक्ष में टहलने लगते है. राजा अपने कक्ष में पूर्ण नग्न ही सोता था . उसके कक्ष मे उसकी अनुमति के बिना कोई नहीं आता था. ये बात तो द्वारपाल भी जानता था की राजा के कक्ष में कोई नहीं जाता है. लेकिन उस बेचारे की क्या बिसात थी राजमाता को अपने ही पुत्र के कक्ष में जाने से रोक सके. इधर कक्ष में राजा भी निश्चिन्त था की कोई उसके कक्ष मे कोई नहीं आयेगा और राजमाता के आने की तो वह कल्पना भी नहीं कर सकता था क्योंकि राजकीय नियम के अनुसार यदि राजमाता को राजा से मिलना हो तो राजा ही राजमाता के कक्ष में जाता था ना कि राजमाता राजा के कक्ष में जाती थी. लेकिन आज राजमाता देवकी तो अलग ही धुन मे थी. वह सारे राजकीय नियम ताक पे रख कर राजा के कक्ष के द्वार पर पहुँच गई थी. इधर राजा अपने कक्ष से अपना लण्ड लटकाये हुए स्नानागर मे दैनिक क्रिया के लिए घुस जाता है और अपने लिंग को अपने हाथ मे लेकर पेशाब पात्र में पेशाब करने लगता है. सुबह के समय ढेर सारा पेशाब निकलता है और वह अपने लिंग के सुपाडे पर लगे पेशाब की अंतिम बूँद को अपनी उँगली पर लेकर उसे सूंघता है और मदहोस होने लगता है. राजा विक्रम की शुरु की ही ये आदत थी की वह सुबह सुबह अपने पेशाब की बूँद को सूंघता था और फिर अपने लण्ड की चमड़ी को उल्टा करके सुपाड़े पर लगे सफेद परत को अपनी उँगली पर लगा कर सूंघता था. आज भी उसने ऐसा ही किया और फिर आँखे बन्द कर अपने लण्ड और अंडकोष से खेलने लगा. फिर उसे याद आया की आज तो उसे जल्दी तैयार होना है मंदिर जो जाना है. वह स्नानागर के आदमकद आईने के सामने खड़ा हो कर खुद को निहारने लगता और अपनी मर्दानगी पर गर्व करते हुए सोचने लगता है की आज तो पड़ोसी राज्यों के राजा अपनी रानियों और राजकुमारियों के साथ पधारेंगे, आज तो लण्ड महाराज दिन भर अपना सिर ही उठाते रहेंगे. यही सोच कर वह अपने हाथ नीचे ले जाकर लण्ड को सहला देते हैं जिससे लण्ड मे कडापन आ जाता है.

इधर राजा के कक्ष मे राजमाता देवकी पहुँच कर उसे खोजने लगती है. शयन कक्ष, भोजन कक्ष, अतिथि कक्ष सभी जगह अपने लाड़ले पुत्र को खोजती है लेकिन उसे वह कही नहीं मिलता है. वह गुस्से मे बोलती है किसी को कोई फिकर नहीं है. आज सुबह मंदिर जाना है और साहेबजादे की कोई खबर ही नहीं. अंत मे वह थक कर सोचती है एक बार स्नानागर मे देख लेती हूँ. फिर उसके कदम राजा के स्नानागर के तरफ बढ़ चलते हैं. उसे जरा भी अहसास नहीं था की आज वह अपनी जिन्दगी की सबसे खूबसूरत चीज देखने जा रही है. वह परदा हटाकर जैसे ही अंदर दाखिल होती है उसका मुह खुला का खुला रह जाता है. देखती है की उसका लाडला पुत्र पूर्ण नग्न अवस्था में शीशे के सामने खड़ा है. राजा विक्रम देवकी की ओर पीठ करके खड़ा था सो वह देवकी को नहीं देख पा रहा था और देवकी भी ये नहीं देख पा रही थी की उसका लाडला पुत्र अपने लाड़ से खेल रहा है. देवकी अपने पुत्र को पीछे से उसकी पीठ और सुडोल नितंब देख कर मंत्र मुग्ध हो रही थी. उसे कुछ नहीं सूझ रहा था. राजा विक्रम सेन लम्बे तो थे ही उनका बदन भी छरहरा था. उनके कंधे तक बाल और चौड़े कंधे उन्हें और आकर्षक बनाते थे और उनके हल्के उठे हुए चुतड राजमाता देवकी को और पागल बना रहे थे. अचानक वह मंत्र मुग्ध हो कर मन में बोलती है, ये तो हुबहु अपने पिताश्री पे गया है. पीछे से देखने पर लगता है महाराज ही बिल्कुल नंगे खड़े हैं. लेकिन मेरे पुत्र के नितंब महाराज से ज्यादा सुडोल और कामुक है. ऐसा सोचते सोचते वह अपना एक हाथ नीचे ले जाकर घाघरे के उपर से ही अपनी बुर रगड़ देती है और दूसरे हाथ से अपनी चूची को दबाने लगती है और वह ये भुल जाती है की वो यहाँ अपने पुत्र को लेने आई थी. उसे याद आने लगता है की कैसे महाराज भी रोज नंगे हो जाते, उसे भी नंगी करते और रात भर उसकी योनि मे लण्ड डालकर घमासान चुदाई करते. वे भी क्या दिन थे.उधर राजा विक्रम अपने लाड़ से खेल रहा था इधर उसके पीछे उसकी प्यारी माँ देवकी घाघरे के उपर से अपनी बुर सहला रही थी और अपनी चुच्ची दबा रही थी. दोनों अपने मे मगन थे. इसीबीच पंछियों की चहचाहट से दोनों का ध्यान भंग होता है. देवकी को याद आता है की वो यहाँ अपने पुत्र को लेने आई है. वह झट से अपना हाथ अपनी योनि और अपनी चुच्ची पर से हटाती है. लेकिन जल्दबाजी में वह इस स्थिति में स्नानागर से बहार जाने के बजाय अपने पुत्र राजा विक्रम को आवाज देती है. पुत्र....
आवाज सुनकर राजा विक्रम चौक जाते हैं. उन्होंने कभी नहीं सोचा था की उनके स्नानागर मे उनकी अनुमति के बिना कोई आ जायेगा और राजमाता के आने का तो प्रशन ही नहीं उठता है. लेकिन वास्तविक्ता ये थी कि राजमाता राजा के स्नानागर मे खड़ी थी. राजा भी अपनी माँ की आवाज सुनकर उसी स्थिति मे अपनी माँ की ओर घूमता है और अब अपनी माँ की तरफ मुह कर के खड़ा हो जाता है. इस स्थिति में अपने पुत्र को देखकर राजमाता का मुह खुला रह जाता है. उसके पुत्र का 9 इंच लम्बा और 3.5 इंच मोटा लण्ड सामने लटक रहा था जिसमे कडापन आ रहा था. साथ ही राजा की चौडी छाती और कंधे उसकी मर्दांगी दिखा रहे थे. राजमाता अपने ही पुत्र पर मोहित हो रही थी. वहीं दूसरी तरफ राजा का मुह भी अपनी प्यारी माँ की सुंदरता देखकर खुला रह गया. आज वह बिल्कुल परी लग रही थी. अपनी माँ की सुंदरता देखकर राजा के लिंग मे धीरे धीरे तनाव आने लगा और अब उसका लंड पूरा कड़क होकर खड़ा हो गया और अपनी माँ को सलामी देने लगा. देवकी अपने पुत्र का लिंग देखकर मुग्ध हो गई. उसके सामने उसके पुत्र का गोरा लिंग खड़ा था जिसका गुलाबी सुपाड़ा अपनी माँ को प्यार से देख रहा था. लंड के आगे की चमड़ी पीछे खीची हुई थी. देवकी लगातार अपने पुत्र के खड़े लण्ड को प्यार से देखे जा रही थी. देखती भी क्यों नहीं, कितने सालों के बाद तो उसने लण्ड जो देखा था. माँ और बेटे मे से कोई कुछ नहीं बोल रहा था. तभी राजा विक्रम राजमाता से पूछते हैं.... मैया आप यहाँ कैसे.
लेकिन देवकी के मुह से कोई शब्द नहीं निकल पा रहे थे. राजा विक्रम तब धीरे धीरे अपनी माँ की ओर आगे बढ़ते हैं जिनकी नजर अपने लल्ला के लण्ड से हट ही नहीं पा रही थी. बिक्रम अपनी माता के सामने पहुँच कर खड़े हो जाते हैं और देखते हैं की उनकी माँ की नजर उनके लौड़े से हट ही नहीं रही है. उन्हें अपने उपर फक्र महसुस होता है और अपनी माँ को कहते हैं.... ये वही लण्ड है माते जिसे आप मुझे नहलाते समय रगड़ रगड़ धोया करती थी और मुट्ठी में भर कर नाप लेती थी. याद है ना आपको. ये आपकी मालिश का ही नतीजा है माते की आपके लल्ला का ये लण्ड इतना लम्बा और मोटा हो गया है...इस लण्ड पर आपका ही अधिकार है माते...और इतना कह कर वे अपनी माँ का हाथ पकड़ कर अपने लौड़े पर रख देते हैं जिसकी गर्मी देवकी को महसुस होती है.

वह कहती है... ये क्या कर रहे हो पुत्र. लेकिन वह अपना हाथ अपने पुत्र के खड़े लौड़े से नहीं हटाती है, बल्कि मुट्ठी में पकडे रहती है. राजा विक्रम यह देखकर मंद मंद मुस्कुराते हैं और बोलते हैं...मां आज आप कितनी सुंदर लग रही है... लगता है आज स्वर्ग से अप्सरा धरती पर अवतरित हो गई है बिल्कुल नई नवेली दुल्हन लग रही है आप यह आपकी उन्नत चूचियां मुझे पागल कर रही है आपके सुंदर चेहरे से मैं नजर नहीं हटा पा रहा हूं.... इतना कहकर राजा अपने हाथ से अपनी माता की चुचियों को सहला देता है और अपने एक हाथ से उसके गालों को प्यार से सहलाने लगता है... अब राजा के स्नानागार में स्थिति यह थी कि राजमाता अपने पुत्र राजा विक्रम के लण्ड अपने को हाथ में पकड़ी हुई थी और राजा विक्रम अपनी माता देवकी की चुच्चियों को पकड़े हुआ था और एक हाथ से धीरे-धीरे गालो को प्यार से सहला रहा था..., राजा विक्रम बोलते हैं माते अब मुझसे रहा नहीं जाता .. मैं आप का दीवाना हो गया हूं ...मैं आपसे प्यार करना चाहता हूं क्या मैं आपकी गालों को चूम सकता हूं...मैं आप के गालों को चूमना चाहता हूं..राज माता कुछ भी बोलने की स्थिति मे नहीं थी...इसे मौन सहमति मान कर राजा अपनी माता के गालों पर चुंबन लेने लगता है ....

इधर रन्झा भी राजा के कक्ष के बाहर राजमाता का इंतजार कर रही थी .... जब काफी देर हो गई तब वह राजमाता खोजते खोजते राजा के कक्ष के अंदर घुस आई... राजमाता को वहां ना पाकर है वह राजा के दूसरे कक्षों में ढूंढने लगी...जब वह दोनों कहीं नहीं दिखे तब अंततः रांझा राजा के स्नानागार की ओर बढ़ चली और वहां पहुंचकर जैसे ही उसने स्नानागार का पर्दा हटाया उसका मुंह खुला का खुला रहता है ..वह राजमाता राजमाता आवाज लगते हुए अंदर दाखिल होती है और सामने देखती है की राजमाता अपने पुत्र राजा विक्रम का लंड अपने हाथ में लिए हुए हैं... रन्झा की आवाज सुनकर दोनों मां बेटे अपने अलग होते हैं ...राजमाता अपने पुत्र का लंड से अपने हाथ हटाती हैं राजा भी अपना हाथ अपनी मां की वक्ष् से हटाता है और अपनी मां के गालों से चुंबन लेना बंद करके पीछे हट जाता है.. रांझा का मुह मां बेटे को इस स्थिति में देखकर खुला खुला रह जाता है ...वह सोचती है कि क्या राजघराने में भी एक मां और बेटे के बीच ऐसा खुला संबंध हो सकते हैं...

रांझा की आवाज सुनकर दोनों मां-बेटे चौक जाते हैं और अलग हो जाते हैं राजमाता के मुख से अभी भी कोई शब्द नहीं निकल पा रहे थे तब तक रांझा की नजर राजा विक्रम की लंड पर पड़ती है जिसे देखकर मंत्रमुग्ध हो जाती हो और मन ही मन सोचती है कि काश इस लंड से मुझे चुदने का मौका मिल जाता.... वह फिर राजमाता को याद दिलाती है की सूर्योदय होने को है पूजा का समय होने जा रहा है.. तब राजमाता के मुख से आवाज निकलती है और वह अपने पुत्र को कहती हैं कि तुम जल्दी से तैयार हो जाओ हमें जल्दी ही पूजा में चलना होगा ..इतना कहकर है वह राजा के स्नानागर से बाहर निकल जाती है तथा पूजा की तैयारियां देखने चली जाती है.... उसके पीछे रन्झा भी भागी चली आती है....
 
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