Update 4
आज राजमाता देवकी इसलिए सबको सुबह सुबह जगाने जा रही है क्यों कि आज राजा विक्रम सेन के जन्मदिन के अवसर पर सूर्योदय के समय ही कुल देवता के मंदिर में पूजा अर्चना करनी थी, आखिर राजज्योतिषी ने मुहूर्त जो निकाला था. देवकी के तो पैर ही जमीन पे नहीं पड़ रहे थे और वो तो मानो हवा में उड़ रही थी. वह राजा के कक्ष में कभी नहीं जाती है. लेकिन आज की तो बात ही कुछ और थी. अपनी ही धुन मे वह अपने पुत्र राजा विक्रम सेन के कक्ष के सामने पहुँचती है. देवकी को देखकर द्वारपाल भी चौंक जाता है. उसे उम्मीद नहीं थी की राजमाता राजा के कक्ष में पधारेंगी. देवकी द्वारपाल से पुछती है की क्या राजा अपने कक्ष में है. द्वारपाल हाँ मे अपना सर हिलाता है और राजमाता को आदर पूर्वक राजा के कक्ष मे अंदर ले जाता है. राजा के कक्ष में जाने के लिये एक लम्बा गलियारा था और द्वारपाल को उस गलियारा के बाद आगे जाने की अनुमति नहीं थी. सो द्वारपाल देवकी को गलियारा पार कराकर राजा के कक्ष के सामने छोड़कर अनुमति ले लेता है तथा पुनः राजा के कक्ष के मुख्य द्वार पे चला जाता है.
इधर अपने कक्ष मे राजा विक्रम सेन सुबह सुबह निश्चिंत उठता है और नंगा ही अपने कक्ष में टहलने लगता है. राजा अपने कक्ष में पूर्ण नग्न ही सोता था . उसके कक्ष मे उसकी अनुमति के बिना कोई नहीं आता था. ये बात तो द्वारपाल भी जानता था की राजा के कक्ष में कोई नहीं जाता है. लेकिन उस बेचारे की क्या बिसात थी राजमाता को अपने ही पुत्र के कक्ष में जाने से रोक सके. इधर कक्ष में राजा भी निश्चिन्त था की कोई उसके कक्ष मे कोई नहीं आयेगा और राजमाता के आने की तो वह कल्पना भी नहीं कर सकता था क्योंकि राजकीय नियम के अनुसार यदि राजमाता को राजा से मिलना हो तो राजा ही राजमाता के कक्ष में जाता था ना कि राजमाता राजा के कक्ष में जाती थी. लेकिन आज राजमाता देवकी तो अलग ही धुन मे थी. वह सारे राजकीय नियम ताक पे रख कर राजा के कक्ष के द्वार पर पहुँच गई थी. इधर राजा अपने कक्ष से अपना लण्ड लटकाये हुए स्नानागर मे दैनिक क्रिया के लिए घुस जाता है और अपने लिंग को अपने हाथ मे लेकर पेशाब पात्र में पेशाब करने लगता है. सुबह के समय ढेर सारा पेशाब निकलता है और वह अपने लिंग के सुपाडे पर लगे पेशाब की अंतिम बूँद को अपनी उँगली पर लेकर उसे सूंघता है और मदहोस होने लगता है. राजा विक्रम की शुरु की ही ये आदत थी की वह सुबह सुबह अपने पेशाब की बूँद को सूंघता था और फिर अपने लण्ड की चमड़ी को उल्टा करके सुपाड़े पर लगे सफेद परत को अपनी उँगली पर लगा कर सूंघता था. आज भी उसने ऐसा ही किया और फिर आँखे बन्द कर अपने लण्ड और अंडकोष से खेलने लगा. फिर उसे याद आया की आज तो उसे जल्दी तैयार होना है मंदिर जो जाना है. वह स्नानागर के आदमकद आईने के सामने खड़ा हो कर खुद को निहारने लगता और अपनी मर्दानगी पर गर्व करते हुए सोचने लगता है की आज तो पड़ोसी राज्यों के राजा अपनी रानियों और राजकुमारियों के साथ पधारेंगे, आज तो लण्ड महाराज दिन भर अपना सिर ही उठाते रहेंगे. यही सोच कर वह अपने हाथ नीचे ले जाकर लण्ड को सहला देते हैं जिससे लण्ड मे कडापन आ जाता है.
इधर राजा के कक्ष मे राजमाता देवकी पहुँच कर उसे खोजने लगती है. शयन कक्ष, भोजन कक्ष, अतिथि कक्ष सभी जगह अपने लाड़ले पुत्र को खोजती है लेकिन उसे वह कही नहीं मिलता है. वह गुस्से मे बोलती है किसी को कोई फिकर नहीं है. आज सुबह मंदिर जाना है और सहेबजादे की कोई खबर ही नहीं. अंत मे वह थक कर सोचती है एक बार स्नानागर मे देख लेती हूँ. फिर उसके कदम राजा के स्नानागर के तरफ बढ़ चलते हैं. उसे जरा भी अहसास नहीं था की आज वह अपनी जिन्दगी की सबसे खूबसूरत चीज देखने जा रही है. वह परदा हटाकर जैसे ही अंदर दाखिल होती है उसका मुह खुला का खुला रह जाता है. देखती है की उसका लाडला पुत्र पूर्ण नग्न अवस्था में शीशे के सामने खड़ा है. राजा विक्रम देवकी की ओर पीठ करके खड़ा था सो वह देवकी को नहीं देख पा रहा था और देवकी भी ये नहीं देख पा रही थी की उसका लाडला पुत्र अपने लाड़ से खेल रहा है. देवकी अपने पुत्र को पीछे से उसकी पीठ और सुडोल नितंब देख कर मंत्र मुग्ध हो रही थी. उसे कुछ नहीं सूझ रहा था. राजा विक्रम सेन लम्बे तो थे ही उनका बदन भी छरहरा था. उनके कंधे तक बाल और चौड़े कंधे उन्हें और आकर्षक बनाते थे और उनके हल्के उठे हुए चुतड राजमाता देवकी को और पागल बना रहे थे. अचानक वह मंत्र मुग्ध हो कर मन में बोलती है, ये तो हुबहु अपने पिता श्री पे गया है. पीछे से देखने पर लगता है महाराज ही बिल्कुल नंगे खड़े हैं. लेकिन मेरे पुत्र के नितंब महाराज से ज्यादा सुडोल और कामुक है. ऐसा सोचते सोचते वह अपना एक हाथ नीचे ले जाकर घाघरे के उपर से ही अपनी बुर रगड़ देती है और दूसरे हाथ से अपनी चूची को दबाने लगती है और वह ये भुल जाती है की वो यहाँ अपने पुत्र को लेने आई थी. उसे याद आने लगता है की कैसे महाराज भी रोज नंगे हो जाते, उसे भी नंगी करते और रात भर उसकी बुर मे लण्ड डालकर घमासान चुदाई करते. वे भी क्या दिन थे.उधर राजा विक्रम अपने लाड़ से खेल रहा था इधर उसके पीछे उसकी प्यारी माँ देवकी घाघरे के उपर से अपनी बुर सहला रही थी और अपनी चुच्ची दबा रही थी. दोनों अपने मे मगन थे. इसीबीच पंछियों की चहचाहट से दोनों का ध्यान भंग होता है. देवकी को याद आता है की वो यहाँ अपने पुत्र को लेने आई है. वह झट से अपना हाथ अपनी योनि और अपनी चुच्ची पर से हटाती है. लेकिन जल्दबाजी में वह इस स्थिति में स्नानागर से बहार जाने के बजाय अपने पुत्र राजा विक्रम को आवाज देती है. पुत्र.... आवाज सुनकर राजा विक्रम चौक जाते हैं. उन्होंने कभी नहीं सोचा था की उनके स्नानागर मे उनकी अनुमति के बिना कोई आ जायेगा और राजमाता के आने का तो प्रशन ही नहीं उठता है. लेकिन वास्तविक्ता ये थी कि राजमाता राजा के स्नानागर मे खड़ी थी. राजा भी अपनी माँ की आवाज सुनकर उसी स्थिति मे अपनी माँ की ओर घूमता है और अब अपनी माँ की तरफ मुह कर के खड़ा हो जाता है. इस स्थिति में अपने पुत्र को देखकर राजमाता का मुह खुला रह जाता है. उसके पुत्र का 9 इंच लम्बा और 3.5 इंच मोटा लण्ड सामने लटक रहा था जिसमे कडापन आ रहा था. साथ ही राजा की चौडी छाती और कंधे उसकी मर्दांगी दिखा रहे थे. राजमाता अपने ही पुत्र पर मोहित हो रही थी. वहीं दूसरी तरफ राजा का मुह भी अपनी प्यारी माँ की सुंदरता देखकर खुला रह गया. आज वह बिल्कुल परी लग रही थी. अपनी माँ की सुंदरता देखकर राजा के लिंग मे धीरे धीरे तनाव आने लगा और अब उसका लंड पूरा कड़क होकर खड़ा हो गया और अपनी माँ को सलामी देने लगा. देवकी अपने पुत्र का लौड़ा देखकर मुग्ध हो गई. उसके सामने उसके पुत्र का गोरा लण्ड खड़ा था जिसका गुलाबी सुपाड़ा अपनी माँ को प्यार से देख रहा था. लंड के आगे की चमड़ी पीछे खीची हुई थी. देवकी लगातार अपने पुत्र के खड़े लण्ड को प्यार से देखे जा रही थी. देखती भी क्यों नहीं, कितने सालों के बाद तो उसने लण्ड जो देखा था. माँ और बेटे मे से कोई कुछ नहीं बोल रहा था. तभी राजा विक्रम राजमाता से पूछते हैं.... मैया आप यहाँ कैसे.
लेकिन देवकी के मुह से कोई शब्द नहीं निकल पा रहे थे. राजा विक्रम तब धीरे धीरे अपनी माँ की ओर आगे बढ़ते हैं जिनकी नजर अपने लल्ला के लण्ड से हट ही नहीं पा रही थी. बिक्रम अपनी माता के सामने पहुँच कर खड़े हो जाते हैं और देखते हैं की उनकी माँ की नजर उनके लौड़े से हट ही नहीं रही है. उन्हें अपने उपर फक्र महसुस होता है और अपनी माँ को कहते हैं.... ये वही लण्ड है माते जिसे आप मुझे नहलाते समय रगड़ रगड़ धोया करती थी और मुट्ठी में भर कर नाप लेती थी. याद है ना आपको. ये आपकी मालिश का ही नतीजा है माते की आपके लल्ला का ये लण्ड इतना लम्बा और मोटा हो गया है...इस लण्ड पर आपका ही अधिकार है माते...और इतना कह कर वे अपनी माँ का हाथ पकड़ कर अपने लौड़े पर रख देते हैं जिसकी गर्मी देवकी को महसुस होती है. वह कहती है... ये क्या कर रहे हो पुत्र. लेकिन वह अपना हाथ अपने पुत्र के खड़े लौड़े से नहीं हटाती है, बल्कि मुट्ठी में पकडे रहती है. राजा विक्रम यह देखकर मंद मंद मुस्कुराते हैं और बोलते हैं...मां आज आप कितनी सुंदर लग रही है... लगता है आज स्वर्ग से अप्सरा धरती पर अवतरित हो गई है बिल्कुल नई नवेली दुल्हन लग रही है आप यह आपकी उन्नत चूचियां मुझे पागल कर रही है आपके सुंदर चेहरे से मैं नजर नहीं हटा पा रहा हूं.... इतना कहकर राजा अपने हाथ से अपनी माता की चुचियों को सहला देता है और अपने एक हाथ से उसके गालों को प्यार से सहलाने लगता है... अब राजा के स्नानागार में स्थिति यह थी कि राजमाता अपने पुत्र राजा विक्रम के लण्ड अपने को हाथ में पकड़ी हुई थी और राजा विक्रम अपनी माता देवकी की चुच्चियों को पकड़े हुआ था और एक हाथ से धीरे-धीरे गालो को प्यार से सहला रहा था..., राजा विक्रम बोलते हैं माते अब मुझसे रहा नहीं जाता .. मैं आप का दीवाना हो गया हूं ...मैं आपसे प्यार करना चाहता हूं क्या मैं आपकी गालों को चूम सकता हूं...मैं आप के गालों को चूमना चाहता हूं..राज माता कुछ भी बोलने की स्थिति मे नहीं थी...इसे मौन सहमति मान कर राजा अपनी माता के गालों पर चुंबन लेने लगता है ....इधर रन्झा भी राजा के कक्ष के बाहर राजमाता का इंतजार कर रही थी .... जब काफी देर हो गई तब वह राजमाता खोजते खोजते राजा के कक्ष के अंदर घुस आई... राजमाता को वहां ना पाकर है वह राजा के दूसरे कक्षों में ढूंढने लगी...जब वह दोनों कहीं नहीं दिखे तब अंततः रांझा राजा के स्नानागार की ओर बढ़ चली और वहां पहुंचकर जैसे ही उसने स्नानागार का पर्दा हटाया उसका मुंह खुला का खुला रहता है ..वह राजमाता राजमाता आवाज लगते हुए अंदर दाखिल होती है और सामने देखती है की राजमाता अपने पुत्र राजा विक्रम का लंड अपने हाथ में लिए हुए हैं... रन्झा की आवाज सुनकर दोनों मां बेटे अपने अलग होते हैं ...राजमाता अपने पुत्र का लंड से अपने हाथ हटाती हैं राजा भी अपना हाथ अपनी मां की वक्ष् से हटाता है और अपनी मां के गालों से चुंबन लेना बंद करके पीछे हट जाता है.. रांझा का मुह मां बेटे को इस स्थिति में देखकर खुला खुला रह जाता है ...वह सोचती है कि क्या राजघराने में भी एक मां और बेटे के बीच ऐसा खुला संबंध हो सकते हैं... रांझा की आवाज सुनकर दोनों मां-बेटे चौक जाते हैं और अलग हो जाते हैं राजमाता के मुख से अभी भी कोई शब्द नहीं निकल पा रहे थे तब तक रांझा की नजर राजा विक्रम की लंड पर पड़ती है जिसे देखकर मंत्रमुग्ध हो जाती हो और मन ही मन सोचती है कि काश इस लंड से मुझे चुदने का मौका मिल जाता.... वह फिर राजमाता को याद दिलाती है की सूर्योदय होने को है पूजा का समय होने जा रहा है.. तब राजमाता के मुख से आवाज निकलती है और वह अपने पुत्र को कहती हैं कि तुम जल्दी से तैयार हो जाओ हमें जल्दी ही पूजा में चलना होगा ..इतना कहकर है वह राजा के स्नानागर से बाहर निकल जाती है तथा पूजा की तैयारियां देखने चली जाती है.... उसके पीछे रन्झा भी भागी चली आती है....