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Incest राजकुमार देव और रानी माँ रत्ना देवी

Sanju@

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Update 23

अब इधर शादी की तैयारियां जोरों से चलने लगती है। अब राजा विक्रम और रत्ना की शादी में ज्यादा समय नहीं था। राजा विक्रम ने स्वयं राजमाता देवकी और नंदिनी के लिए रत्नजड़ित घाघरा चोली पसन्द की थी। तो राजा विक्रम के वस्त्र देवकी और नंदिनी ने पसन्द किए थे। सभी बड़े खुश थे इस शादी को लेकर। राजा विक्रम ने एक लहंगा चोली रांझा के लिए भी पसन्द किया था।
रांझा को वो जैसे ही थोड़ा अकेले पाते हैं, उनके पीछे खड़े होकर आवाज देते हैं
धाय मैं

आवाज सुन कर रांझा पीछे मुड़ती है तो विक्रम को देखती है। उसके हाथ में लहंगा चोली होती है।

रांझा कहती हैं
जी राजन, आदेश करे

आदेश नहीं धाय मां, आपके लिए ये लहंगा चोली, शादी में पहनने के लिए। मैंने स्वयं पसन्द की है आपके लिए।

सच राजन, !! मै अवश्य पहनूंगी इसे।

जी धाय मां, लेकिन साथ में ये हीरे मोती की ये माला भी पहनना
और ये कह कर राजा विक्रम अपने गले से माला निकाल कर रांझा को देते हैं

तो रांझा कहती है
आप खुद ही पहना दे राजन

विक्रम मानो यही चाहता था और आगे बढ़ कर माला रांझा के गले में पहना देता है और रांझा मन ही मन आनन्दित हो कर कहती है
मै धन्य हो गई राजन, जो आपने अपने हाथ से मुझे माला पहनाया।
तब विक्रम कहते हैं
मै तो कब से आपके गले में माला डालना चाह रहा था, जिस दिन से मैंने कालू को आपके गले में मगलसूत्र बांधते देखा है मेरा मन भी आपको हार पहनाने को हो रहा था जो आज पूरी हुई

ये सुन कर रांझा शरमा जाती है
तो विक्रम उसकी ठुड्ढी पकड़ कर सिर ऊपर उठाते हैं और कहते हैं
आप बहुत सुन्दर है धाय मां।
और ये कह कर रांझा के होंठ चूम लेते हैं, तो रांझा शरमा कर भाग जाती है
इसी तरह की तैयारी राजकुमारी रत्ना के घर भी चल रही थी। वहा भी रेशमी वस्त्र, आभूषण पसंद किए जा रहे थे और वहां पर तैयारी भी विशिष्ठ होनी थी, आखिर विवाह तो वधु पक्ष के स्थान पर ही तो होना था ।

अब देखते ही देखते समय बीत गए और विवाह की तिथि भी आ गई। रत्ना के यहां राज महल बहुत सुंदर तरीके से सजाया गया था। लग रहा था कि स्वर्ग को धरती पे उतार दिया गया हो।

इधर राजा विक्रम की बारात अपने होनेवाले ससुराल पहुंच चुकी थी। बारात में राजमाता देवकी, राजकुमारी नंदिनी के साथ सभी मंत्री और राजदरबारी आए थे। और हां साथ में धाय मां रांझा और उसका पुत्र कालू भी थे जो राजपरिवार के साथ ही था।
राजा विक्रम 10 अश्वों वाले रथ पे अपनी मां और बहन के साथ सवार होकर पहुंचे थे। दोनों राज्यों में खुशी का माहौल था तथा दोनो राज्यों में राज उत्सव की घोषणा की गई थी। इधर राजा माधो सिंह ने राजकीय अतिथिशाला में बारात के रुकने की व्यवस्था की थी । बारात एक दिन पहले ही पहुंच चुकी थी।

राजा विक्रम , देवकी और नंदिनी के कक्ष सटे हुए थे। उस दिन शादी के कई रस्म थे जिसको पूरा होते होते काफी विलम्ब हो गया। फिर सभी ने भोजन ग्रहण किया और रात्रि मे अपने अपने कक्ष में विश्राम करने चले गए। लेकिन शैय्या पर तीनों में से किसी को भी नींद नहीं आ रही थी। फिर राजा विक्रम उठते हैं और ये निश्चिंत होने के बाद की बाहर कोई नहीं है नंदिनी के कक्ष की ओर चले जाते हैं।

नंदिनी के कक्ष में प्रवेश कर विक्रम पाते हैं कि नंदिनी जाग रही है तो विक्रम कहते हैं
आप जाग रही हैं दीदी

हां, तुम भी तो जाग रहे हो भाई, नंदिनी में मुस्कुरा कर कहा।

क्या करूं बहन, आपके बिना नींद ही नहीं आती।

अच्छा, तो अब तो तुम्हें रत्ना मिल जायेगी, फिर तो भूल ही जाओगे अपनी इस बहन को।

नही दीदी, ऐसा नही होगा, ये आप भी जानती हो। मै आपसे बहुत प्यार करता हूं , आप मेरा पहला प्यार हो।

ये सुन कर नंदिनी शर्मा जाती है और कहती हैं

शादी के बाद हम ये रिश्ता कैसे रखेंगे भाई, अगर रत्ना जान गई तो।

उसे कुछ पता नही चलेगा। हम दोनो राजकीय कार्य के दौरान भ्रमण में मौका निकाल लेंगे तथा राजमहल में भी।

ये सुन कर नंदिनी भावुक हो जाती है और विक्रम को गले लगा कर सुबकने लगती है और कहती है

इतना प्यार करते हो मुझसे भाई,,, मैं कितनी खुशनसीब हूं कि मुझे तुम जैसा प्रेम करने वाला भाई मिला है। मुझे तुझे रत्ना को सौंपने में जान निकली जा रही है। लेकिन तू मेरा कितना ख्याल रखता है।

फिर दोनो भाई बहन एक दूसरे से चिपक जाते हैं और एक दूसरे के होंठ चूसने लगते हैं । विक्रम धीरे धीरे नंदीनिंकी चोली खोल देते हैं और उसके निप्पल को अपनी उंगलियों से मसलने लगते हैं जिससे नंदिनी मस्त हो जाती हैं और आहें भरने लगती है और उत्तेजित होकर धोती के ऊपर से ही विक्रम के लन्ड को पकड़ लेती है और सहलाने लगती है। विक्रमंकी आह निकल जाती है और और वो होंठ चूसना बन्द कर के अलग हटते हैं और कहते हैं

बहन अपने स्तन से दूध पिलाओ न।

पी लो भाई मेरे स्तन से दूध, चूस लो इन्हें। ये तेरे प्यार के लिए तड़प रहे हैं।

विक्रम मूंह लगा कर नंदिनी के स्तन चूसने लगते हैं और दूसरे हाथ से उसकी दूसरी चूची मसलने लगते हैं। नंदिनी आहे भरते हुए कहती हैं

भाई, जैसे मां हमारे रिश्ते के बारे में जान गई , वैसे ही कहीं रत्ना ना जान जाए।

नही जानेगी बहन, अब हम दोनो और चौकन्ने रहेंगे।

लेकिन बुरा न मानो तो एक बात कहूं भाई।

हा बोलो

उस रात जब हम दोनो नंगे थे, मां तुम्हारे लिंग को बार बार देखे जा रही थी, उसकी नजर तुम्हारे लिंग से हट ही नहीं रही थी और रक्षाबंधन के दिन भी मैने देखा कि माते तुम्हारे लिंग को चोरी चोरी देखे जा रही थी । लगता हैं उन्हें तुम्हारा लिंग बहुत पसन्द आ गया है।

राजमाता देवकी के बारे मे नंदिनी द्वारा ऐसा कहने से विक्रम के लिंग में तनाव आने लगता है जिसे नंदिनी महसूस करती है और राजा विक्रम को थोडा सा अपने से अलग हटा कर विक्रम की आंखों में देखती है और कहती हैं

विक्रम .......

हां दीदी,

क्या मैं जो समझ रही हूं वो सही समझ रही हूं

क्या

यही की तुम्हारा लिंग मां का नाम लेते ही झटके मारने लगा

दीदी आप भी ना,,, ये कह कर राजा विक्रम मुस्कुरा देते हैं और नंदिनी के गले लग जाते हैं

इस पर नांदिनी मुस्कुराने लगती है और फिर उसकी आंखों में देखती है और कहती है
बदमाश कही के, वही मैं कहूं कि जनाब को मां के सामने नंगे खड़े होने में लाज क्यों नहीं आ रही थी और फिर विक्रम को गले लगा लेती है। इन बातों से नंदिनी भी गरम हो जाती है और राजा विक्रम की धोती खोल कर लन्ड बाहर निकाल लेती है और नीचे बैठ लौड़ा चूसने लगती है।
विक्रम को सिहरन होने लगती हैं और वो नंदिनी के मुंह को ही चोदने लगते हैं और फिर उसे उठाकर शैय्या पर ले जाते है और उसका लहंगा उतार कर नंगा कर देते हैं और अपने हाथ से उसकी योनि को सहलाने लगते हैं। फिर उसके पूरे शरीर को चूमते हुए योनि के पास आते हैं और योनि चाटने लगते हैं। योनि चाटने से नंदिनी गरम हो जाती है और कहती है

और जोर से चाटो भाई, और जोर से अपनी बहन की योनि को, ये तुम्हारे प्यार की प्यासी है और जीभ अंदर डालो भाई, और अंदर,। आह आह कितना मजा आ रहा है भाई।
फिर राजा विक्रम अपना लन्ड नंदिनी की योनि पर रख कर दबाव देते हैं और कहते हैं

ये ले बहन अपने भाई का प्यार और उसकी योनि की जबरदस्त चोदाई करने लगते हैं । पूरे कमरे में फेच फ़च की आवाज गूंजने लगती है और नंदिनी अपनी दोनों टांगे उठा कर चुदवाने लगती है और कहती है

और जोर से भाई और जोर से। ऐसे चोद की लगे की आज अंतिम रात है और जोर से भाई और जोर से चोद अपनी प्यारी बहन को,,, आह आह आह मजा आ रहा है मेरे बालम।।

आह आह ये ले दीदी, मजे ले मेरे लौड़े के, बहुत प्यारी योनि है तुम्हारी,,,,आह आह आह,,,,मुझे इसी योनि से एक बच्चा दे दो दीदी,,, आह आह

दे दूंगी तुम्हे बच्चा मेरे भाई,,,,मैं वादा करती हूं की मेरी पहली संतान तुम्हारे बीज से ही जनमेगी।,,आह आह,,मैं झड़ने वाली हूं भाई।

मै भी झड़ने वाला हूं बहन और फिर पानी निकलने के पहले विक्रम अपना लिंग बाहर निकाल कर नंदिनी के स्तनों पर स्खलित हो जाते है और ढेर सारा पानी गिरा देते हैं
इधर नंदनी भी झटके खा कर झड़ जाती है और उसके चादर पर योनि रस गिर जाती है और गीली हो जाती है।

इधर राजमाता देवकी को भी नींद नहीं आ रही थी और वह करवटें बदल रही थी। पता नही ये कैसी रात थी जो किसी को नींद ही नहीं आ रही थी। देवकी सोचती है कि चलो विक्रम से मिल आती हूं और विक्रम के कक्ष की ओर चल देती है । लेकिन जब वह विक्रम के कक्ष में पहुंचती है तो विक्रम को वहां न पाकर समझ जाती की एक भाई अपनी बहन से मिलने गया होगा और मन्द मन्द मुस्कुराने लगती है और कुछ सोचती हुई नंदिनी के कक्ष की ओर चल देती है

नंदिनी के कक्ष में प्रवेश कर देखती है की दोनों नंगे एक दूसरे से चिपके हुए हैं । किसी के आने की आहट से दोनो अलग हो जाते हैं तो देवकी को सामने देखते हैं

तब देवकी झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहती है ~ विक्रम कल तुम्हारी शादी है और तुम अपनी बहन के साथ सम्भोग में लीन हो,, तुम्हें अभी आराम करना चाहिए, कल काफी काम होगा,,, और तुम नंदिनी,,तुम तो बड़ी बहन हो, अपने छोटे भाई को समझा तो सकती हो,,,

तब विक्रम बोलते हैं,,,मैं ही खुद आया था माते,,, मुझे नींद नहीं आ रही थी।

देवकी मन में कहती है,,,,मैं क्या बताऊं पुत्र कि मुझे खुद भी नींद नही आ रही थी।

तब नंदिनी उदास होकर कहती है,,,आज प्यार कर लेने दो माते ,,,अब तो कल भाई की शादी हो ही जाएगी।

ये सुन कर देवकी का दिल भी बैठ जाता है और वह आगे बढ़ कर नंदिनी को गले लगा लेती है और कहती है

उदास ना हो मेरी प्यारी पुत्री,,, ये तो खुशी की बात है कि विक्रम की शादी हो रही है। तुम दोनो अपना संबंध छुपा कर बनाना ,, मुझे कोई आपत्ति नहीं है । अगर कोई कक्ष ना मिले तो मेरे कक्ष में आकर अपने भाई के साथ सम्भोग कर लेना,,मैं मना नहीं करूंगी,,,लेकिन तुम उदास ना हुआ कर पुत्री,,,तुम ही दोनो तो मेरी दुनिया हो

इस पर नंदिनी खुशी से झूम उठती है और देवकी को गले लगा लेती है तब देवकी नंदिनी को छेड़ते हुए कहती है

लेकिन ये अपनी जवानी को नंगी मत रखा कर,,,इस पर चुन्नी तो डाल दिया कर

और ऐसा बोल कर उसके निप्पल को मसल देती है

इसपर नंदिनी आहें भरती है तब इस पर सभी हसने लगते हैं। राजमाता देवकी फिर विक्रम की धोती समेट कर उठाती है और विक्रम को पहनने को देती है। विक्रम को अपने कमरे मे चलने को कहती है, इस पर राजा विक्रम अपने कक्ष की ओर चलते हैं। कक्ष के द्वार पे पहुंच कर देवकी कहती है
पुत्र विक्रम आप विश्राम करे , कल विवाह की व्यस्तता रहेगी

इस पर राजा विक्रम कुछ नहीं कहते और राजमाता देवकी का हाथ पकड़ कर कक्ष के अंदर खींच लेते हैं और कक्ष के अंदर ले जाकर राजमाता देवकी को गले से लगा लेते हैं ,,, इस पर देवकी भी अपने पुत्र से चिपक जाती है। कुछ देर माता पुत्र ऐसे ही एक दूसरे से चिपके रहते हैं । देवकी फिर थोडा अलग हटती है तो विक्रम कहते हैं

माते, आप अभी तक क्यो जग रही हैं,,वहां नंदिनी के कक्ष में तो हमें आप हड़का रही थी की इतनी रात तक हम लोग क्यों जगे है,,, अब आप मुझे बताएं कि आप अभी तक क्यो जगी है ।

ये सुन कर देवकी उदास हो जाती है और कहती है

ये सच है पुत्र की मुझे भी नींद नहीं आ रही थी ,, मन में सोच रही थी की अभी अभी मेरे सूने जीवन में तुम ख़ुशी की बहार बन कर आए थे,,, अभी तो मैने ठीक से अपने लल्ला को प्यार भी नहीं किया था कि तुम्हारी शादी तय हो गई ,,

इस पर राजा विक्रम कहते हैं,,, आप उदास ना हो माते,, मैं आपकी खुशी काम नहीं होने दूंगा,,,आपका स्थान कोई नहीं ले सकता है,,, शास्त्रों में भी कहा गया है कि माता को सुखी रखने वाला पुत्र पुण्य का भागी होता है,,, और इसीलिए माते मैं आपकी खुशी में कोई कमी नहीं आने दूंगा,,, समय समय पर मौका निकाल कर आपकी इस योनि को सम्भोग का आनंद दूंगा

और ये कहते हुए विक्रम देवकी की पवित्र योनि को घाघरे के ऊपर से दोबोच लेते हैं और और अपनी मां के होंठ चूसने लगते हैं । दोनों होंठ चूसने में मगन रहते हैं तो देवकी हाथ नीचे ले जाकर अपने पुत्र के लिंग को मुट्ठी मे भर लेती है और कहती है

आह पुत्र , कितना आकर्षक लिंग है तुम्हरा । मै तो तुम्हारी दीवानी हो गई हू और अब रत्ना इस लिंग की दीवानी हो जाएगी। रत्ना कितनी खुशनसीब है कि उसे तुम पति के रूप में मिले हो,,

विक्रम भी नीचे झुक कर देवकी की चूची चूसने में मगन हो जाते हैं और कहते हैं

कितना अदभुत स्वाद है माते,, आपके स्तन का,,,आपके स्तन के दूध का ही कमाल है माते कि मेरा लिंग इतना बलशाली है ।

राजा विक्रम फिर नंदिनी का घाघरा चोली निकल कर फेक देते हैं और धीरे धीरे नीचे आकर उसकी योनि को चूसने लगते हैं और चाटने लगते हैं ,, देवकी बहुत उत्तेजित हो गई रहती है तो उससे रहा नहीं जाता और वो कहती है

अपना मुख हटा लीजिए पुत्र मेरी योनि पर से,,मुझे पेशाब आ रही है बहुत तेज,,,
विक्रम कुछ नहीं बोलते हैं और देवकी की योनि चाटने की रफ्तार बढ़ा देते हैं जिससे देवकी कहती है

पुत्र, बर्दास्त करना मुस्किल हो रहा है,,,, ओह ओह ओह ओह,, मैं नही रोक पाऊंगी पुत्र अपनी पेशाब,,, कृपया रोक दे पुत्र,,

लेकिन राजा विक्रम नहीं रुकते हैं और योनि को चूसना चाटना जारी रखते हैं जिससे देवकी को बर्दास्त करना मुस्किल हो जता है और वह विक्रम के बाल पकड़ कर योनि से पेशाब की धार छोड़ते हुए कहती है

ओह आह आह और, पुत्र मेरा पेशाब निकल गया पुत्र
जिसे राजा विक्रम योनि पर मुंह लगा कर अपनी मां की योनि से निकला पेशाब गट गट कर के पी जाते हैं।

देवकी चिल्लाती है,,,पुत्र ना पियो पुत्र,, ये गंदी चीज है
लेकिन विक्रम पूरा पेशाब पी जाते हैं । ये देख कर देवकी विक्रम को उठाती है और गले लगा लेती है, फिर उसके होंठ चूसने लगती है और कहती है

मुझे पता ही नही था कि मेरा पुत्र मुझसे इतना प्यार करता है कि उसे मेरी पूरी पेशाब पीने में कोई हिचक नहीं हुई, मैं कितनी धन्य हूं,, तुमने पहले क्यो नही बोला कि तुम मुझसे प्यार करते हो, ,,मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं मेरे लाल,, मेरे लल्ला, मेरी जान।,,

तब राजा विक्रम देवकी को गोद में उठा कर शैय्या पर ले जाते हैं और कहते हैं
आप दोनो मां और पुत्री सुंदरता की मूरत हो,, दीदी बिलकुल आपकी छाया है माते,, वैसे ही उन्नत वक्ष गोरे स्तन और गुलाबी चुचुक ,,,मस्त अप्सरा लगती हैं आप दोनों,,,
देवकी बिक्रम का लिंग पकड़ कर कहती है
चोद दे पुत्र अपनी इस प्यासी मां को,, अपने तगड़े मोटे लौड़े को डाल दें मेरी योनि में,, ये आपके लौड़े के प्यार को तड़प रही है
और ये कह कर राजा विक्रम के लिंग को अपनी योनि से सटा देती है, तो राजा विक्रम कहते है

ये लें माते, अपने पुत्र का लिंग अपनी योनि में

और ये कहते हुए एक ही धक्के में अपना लिंग अपनी मां की योनि की जड़ तक पहुंचा देते हैं और chudai शुरु कर देते हैं और कहते है

देख माते, तुम्हारी योनि की जड़ तक जाकर बचेचेदानी को छू रहा है मेरा लिंग,, आह आह ओह, बहुत मजा आ रहा है माते,,, मैं धन्य हो गया हूं अपनी माता की योनि की सेवा करके

और जोर से करो पुत्र और जोर से,, मुझे आज तक किसी ने ऐसे नही चोदा,,,

क्यों मामा ने भी नही,,

नही, तेरे मामा ने भी नही पुत्र,, उफ्फ ये मैने क्या कह दिया,,, आह आह ओह ओह यूएफएफएफ,, और चोदो पुत्र अपनी मां को

ये सुन कर विक्रम का लिंग और तन गया की मां को उनके भाई ने भी चोदा है, उन्होंने पूछा

मामा के साथ कैसे संभोग किया माते

वो बड़ी लंबी कहानी है पुत्र, आराम से बताऊंगी, लेकिन तुम्हारा लिंग मेरे भाई की तरह ही है, लेकिन किसी को बताना मत की मैं अपने भाई से चूदी हूं,, और चोद बेटा और

अच्छा, माते घोड़ी बनिए , पीछे से चोदना है।
और ये कह कर देवकी को घोड़ी बना देता है और पीछे से देवकी को चोदने लगता है

आह आह बहुत मजा आ रहा है बेटा, इसमें तो तुम्हारा लिंग मेरी बच्चेदानी के अंदर घुस जा रहा है,, लगता है अभी ही आप मेरी कोख भर देंगे।
आह आह ओह आह माते,, आह आह मुझे बच्चा चाहिए माते,,ये लीजिए आह आह

ओह ओह और जोर से पुत्र मेरा निकलने वाला है आह आह
मेरा भी माते ,, आह ओह ओह, मेरा निकलने वाला है माते आह आह
और ये कहते कहते दोनो झड़ जाते हैं, विक्रम अपना लिंग निकलना चाहते थे लेकिन रांझा ने उनका लिंग जकड़ लिया और पूरा पानी अपनी योनि में ले लिया।

इस तरह दोनों मां बेटे थक कर एक दूसरे से चिपक गया और राजमाता देवकी वही राजा विक्रम के बगल में सो गई
बहुत ही सुंदर लाजवाब और उत्तेजना से भरपूर मदमस्त अपडेट है राजा विक्रम ने तो अपनी शादी से पहले ही अपनी मां और बहन के साथ सुहागरात मना ली
 
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Sanju@

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Update 24

सुबह सुबह जब नींद खुलती है तो देवकी हड़बड़ाती हुई उठती है और स्वयं को अपने पुत्र के साथ नंगा पाती है। वह सबसे पहले तो ऐसे नंगे देख कर शरमा जाती है और फिर अपने पुत्र के गाल पर एक चुम्बन जड़ देती है जिससे विक्रम की भी नींद खुल जाती है और वह भी अपनी माता को फिर से नंगे बदन को चिपका लेते हैं और एक प्यारा सा चुम्बन मां के गाल पर दे देते हैं और कहते हैं

माते, मैं आपको अपनी मां के रूप में पाकर धन्य हो गया। मैंने पिछले जन्म में जरूर कोई पुण्य किया होगा जो इस जन्म में आप मेरी माता मिली। हमारा ये रिश्ता जन्म जन्मांतर का है माते और मै हर जनम में आपका ही पुत्र बनना चाहूंगा।
इस पर देवकी कहती है
मै धन्य हो गई पुत्र जो आपके जैसा प्यार करने वाला पुत्र मुझे मिला । अब आप जल्दी तैयार हो पुत्र। आपको शादी की अनेक शुभकामनाये।

और ये कह कर देवकी फटाफट अपना लहंगा चोली पहनती है और अपने कक्ष में रौशनी होने के पूर्व ही चले जाते हैं। फिर राजा विक्रम भी अपनी धोती पहन कर शैय्या पर लेटे रहते हैं और अपनी मां और बहन के साथ सम्भोग को सोच सोच कर मुस्कुरा रहे थे।

आज राजा विक्रम की शादी है तो सभी अपनी अपनी तैयारी में जुटे थे। राजा विक्रम ने जब आज वर के वस्त्र को पहना तो गजब की चमक छा गई थी। राजा विक्रम अनायास ही धाय मां रांझा के कक्ष की ओर चल पड़े। जैसे ही वह रांझा के कमरे में पहुंचे। रांझा उठ खड़ी हुई और उसने कहा

राजन, आप यहां, मुझे खबर करा दिया होता, मैं आ जाती।

कोई बात नही धाय मां। आज मेरा विवाह है और मै आपका आशीर्वाद लेने आया हूं।

आशीर्वाद, !!! ये क्या कह रहे हैं आप जो मुझ दासी से आशीर्वाद चाहते हैं।

धाय मां, मैने और नंदिनी ने कभी आपको अपनी मां से कम नहीं समझा है। आपके स्तनों से हमने दूध पिया है धाय मां। आपका स्थान हमारे जीवन में मां का है।

ये सुनकर रांझा भावुक हो जाती है और कहती भरभरती आवाज मैं कहती है

धन्य हो गई मैं, जो आपने इस दासी को इतना ऊंचा स्थान दिया राजन। राजमाता देवकी ने इतने अच्छे संस्कार दिए है आप दोनो को। मैने भी आपको पुत्र ही समझा है और कभी मैने आपमे और कालू में अंतर नहीं किया है।

तभी राजा विक्रम झुक कर रांझा के पैर छू लेते हैं जिससे रांझा आह्लादित हो जाती है और राजा विक्रम को तुरन्त उठा कर गले से लगा लेती है जिसे राजा बिक्रम अपने शरीर से चिपका लेते हैं। रांझा को विक्रम की बाहों में अत्यंत आंनद आ रहा था। फिर वह विक्रम के माथे को चूम कर नजर उतार लेती है।

अब राजा विक्रम फिर अपनेनकक्ष में आते हैं और बाकी तैयारी कर के राजमाता देवकी के कक्ष में जाते है जहां पूर्व से ही नंदिनी उपस्थित रहती है। दोनो मां बेटी भी बारात के लिए तैयार हो चुकी थी। दोनों अप्सरा सी सुंदर लग रही थी तो राजा विक्रम भी देवता तुल्य लग रहे थे। फिर राजा विक्रम राजमाता देवकी के चरण छू कर आशीर्वाद लेते हैं तो देवकी उसे ढेर सारा आशीर्वाद देती है और उसे उठा कर गले लगा लेती है। फिर विक्रम अपनी बहन नंदिनी के पैर भी छूते हैं तो वो भी उसे ढेर सारा आशीर्वाद देती है और उसे सीने से लगा लेती है और कहती है
मेरी सौतन लाने की बधाई,,
और हस देती है
तभी देवकी हाथ बढ़ा कर विक्रम के धोती में छिपे लिंग को मुट्ठी में पकड़ लेती है और कहती है
रत्ना को अपने इस मोटे लिंग से खुश कर देना पुत्र

और फिर सभी हस देते हैं और बारात के लिए निकल पड़ते हैं,,,,,,

इधर जब राजा विक्रम रथ पे अपनी मां राजमाता देवकी और बहन नंदिनी के साथ राजा माधो सिंह के राज महल के द्वार पर पहुंचते हैं तो सबको आंखे इस परिवार की खूबसूरती देख कर चौंधिया जाती है। ऐसा लग रहा था कि मानो देवता अप्सराओं के साथ धरती पर उतर आए हैं। आपस मे लोग बात करने लगते हैं कि राजा माधो सिंह ने अपनी पुत्री रत्ना का विवाह बहुत ही अच्छे राज घराने में किया है।

वधु पक्ष के सभी लोग बाहर आकर वर पक्ष का स्वागत करते हैं । राजा बिक्रम को उनकी मां और बहन तथा रांझा कालू के साथ अंदर ले जाया जाता है। वर की नजर उतारने रत्ना की मां आती हैं तो राजा विक्रम को देख कर उनका मुंह खुला का खुला रह जाता है । वो सोचती है कि क्या कोई पुरुष इतना भी आकर्षक हो सकता है और मन ही मन वह आहें भरने लगती है। उसके स्तन तन जाते हैं और योनि गीली हो जाती है। फिर उसे अपनी पुत्री रत्ना की किस्मत पर फक्र होता है जो उसे इतना देवता तुल्य पति मिला है।

इधर रत्ना भी आज दुल्हन के जोड़े में अप्सरा लग रही थी। उसे उसकी सखियां छेड़े जा रही थी की तुम तो इतनी सुन्दर लग रही हो की राजा विक्रम तो तुम्हें शादी के मण्डप में ही सम्भोग को आतुर हो जायेंगे। इस पर रत्ना सबको आंखे दिखाती है। और हुआ भी यूं ही।

शादी के मंडप में जब रत्ना को लाया गया तब राजा विक्रम रत्ना की खूबसूरती से बांध गए और सोचने लगे की मेरे घर में सभी औरतें कितनी सुन्दर है। तभी रांझा को विक्रम के समीप बैठाया गया तो रत्ना ने हल्की सी तिरछी नजरों से राजा विक्रम को देखा तो उनके तेज के आगे वह मूर्छित सी होने लगी, उसने सोचा देवता सा तेज है आज राजा विक्रम पर और वहीं पर उसके स्तन तन जाते हैं। सोचती है मैं स्वयं इसी मण्डप में विक्रम से सम्भोग कर लूं।
दोनों घरानों के स्त्री पुरुष में केवल वासना के विचार ही चल रहे थे और यह किसी प्रकार से गलत भी नहीं है। फिर वर पक्ष अपने आभूषण वधु को उपहार में देते हैं तब देवकी कहती है
मंगलसूत्र तो लगता है अतिथिशाला में ही छूट गई है, रांझा तू आभूषण ठीक से नहीं रखती है ।

नही, राजमाता मैंने तो रखा था ठीक से।

तभी नंदिनी कहती है

माते , मैने वह मंगलसूत्र आईने के सामने रखा था, हो सकता है वही छूट गया हो।

अच्छा, लेकिन अब तो मंगलसूत्र ले आना होगा।

ठीक है, देवकी, मै जाकर ले आती हूं, तू परेशान ना हो,,,रांझा ने कहा और वह जाने लगती है।

तभी कालू कहता है रुको मां, मैं घोड़े से चलता हूं, जल्दी पहुंच जायेंगे

फिर कालू अपने घोड़े पे रांझा को बैठा कर अतितिःशाला की ओर चल देता है।
घोड़े पे रांझा आगे बैठी होती है कालू की गोद में, जिससे कालू का लिंग खड़ा हो जाता है, तब रांझा कहती हैं

क्यों पुत्र किसकी याद में अपना लिंग खड़ा किया है तुमने

किसी की याद में नहीं माते, जब आप मेरी गोद में हैं तब मैं किसे सोच कर अपना लौड़ा खड़ा कर सकता हू।

इस पर रांझा उसे एक मुक्का मारती है और कहती है

जब देखो तब मेरे पीछे पड़ा रहता है, मां हूं तेरी मैं समझा।

मां हो तभी तो पीछे पड़ा रहता हूं

इसी तरह बात करते करते दोनो अतिथिशाला पहुंच जाते है और देवकी के कक्ष में मंगलसूत्र पा कर निश्चिंत हो जाते हैं। उस समय अतिथिशाला में कोई नहीं रहता है, तब रत्ना को शरारत सूझी और उसने कालू का लुंड पकड़ कर कहा

रत्ना कैसी लगी तुम्हें पुत्र।

अच्छी लगी माते। बहुत सुंदर। लेकिन मुझे तेरे सामने कोई अच्छी नहीं लगती।

और ऐसा बोल कर कालू अपनी मां के स्तन सहला देता है।

तब रांझा कहती है

इतना प्यार करते हो मुझे। मै धन्य हो गई पुत्र

और ऐसा कह कर उसे गले लगा लेती है और मुख पर चुम्बन जड़ देती है
फिर रांझा को याद आता है कि मंगलसूत्र लेकर जल्दी चलना है तो वह फटाफट चलने को कहती हैं
फिर विवाह शांतिपूर्वक संपन्न हुआ जब राजा विक्रम ने रत्ना की मांग मैं सिन्दूर डाला
बहुत ही सुन्दर रमणीय और लाजवाब अपडेट है
 
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Sanju@

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Update 25

विवाह संपन्न होते होते सूर्योदय का समय हो गया था, आखिर वैदिक विधि विधान से विवाह जो हुआ था, जिसमे राज्य के राज पुरोहित और प्रकाण्ड विद्वान जो विवाह कराने आए थे । विवाह के उपरान्त राजा विक्रम अपनी नवविवाहिता पत्नी रत्ना को विदा करा कर वापस अपने राज्य आ जाते हैं। अब राजकुमारी रत्ना राजकुमारी से रानी बन चुकी थी रानी रत्ना।

यहां राजमहल में सभी रानी रत्ना का स्वागत करते हैं। राज कक्ष में राजा विक्रम, रानी रत्ना के साथ सिघासन पे विराजमान होते हैं। इनके एक तरफ राजमाता देवकी , तो दूसरी तरफ राजकुमारी नंदिनी बैठी है । राजा विक्रम सभी राज दरबारियों से रानी रत्ना का परिचय करवाते हैं। सबसे पहले राजपुरोहित से परिचय करवाया जाता है, तो रत्ना आगे बढ़ कर रत्ना को सौभाग्यवती भव, पुत्रवती भव का आशीर्वाद देते हैं और कहते हैं,,

राजन, रानी रत्ना राजवंश को आगे बढ़ाने वाली और विपरीत परिस्थितियों में भी वंश को संभालने वाली सौभाग्यवती स्त्री हैं। इनका स्वागत है।

इस पर राजा विक्रम मुस्कुराते है और रत्ना का चेहरा थोड़े शर्म से लाल हो जाता है।
फिर महामंत्री, सेनापति, कोषाध्यक्ष का परिचय रानी रत्ना से राजा विक्रम कराते हैं। रत्ना सभी दरबारियों का अभिवादन स्वीकार करती है और कहती है

मै आप सभी को विश्वास दिलाती हूं कि इस राज्य के विकास और उन्नत्ति के लिए जो कुछ भी करना होगा मैं करूंगी।
सभी राज दरबारियों के चले जाने के बाद राजा विक्रम रांझा का परिचय कराते हैं और कहते है

और ये है हमारी धाय मां रांझा जिन्होंने हमे पाला पोषा है

ये सुन कर रत्ना आगे बढ़ कर रांझा के पैर छूती है तो रांझा उसके हाथ पकड़ लेती है और कहती है

ये क्या कर रही हैं रानी। मै तो आप सबों की दासी हूं और आप मेरे पैर छू कर मुझे पाप का भागी बना रही हैं।

तब रत्ना कहती है

धाय मां का स्थान तो मां के समान ही होता है धाय मां !! आप मेरे पति की धाय मां हैं तो मेरी भी धाय मां हैं और आपके आशीर्वाद लेना मेरा अधिकार है जिसे आप नही छिन सकती।

और ये कह कर रत्ना रांझा के पैर छू लेती है , जिस पर रांझा उसे खूब ढेर सारा आशीर्वाद देती है और कहती है

आ हा हा हा, देवकी देखो इसे कहते हैं संस्कार। जो संस्कार तुमने अपनी संतानों को दिए वही संस्कार नई पुत्रवधू के भी है। पुत्रवती भव, सौभाग्यवती भव , कुलवर्धक भव पुत्रवधू ।

और ऐसा कह कर रांझा उसे गले लगा लेती है। तब राजा विक्रम कहते हैं

और ये है हमारे उपसेनापति कालू, धाय मां के पुत्र और हमारे बचपन के सखा।।

तब कालू आगे बढ़ कर रानी रत्ना के पैर छू लेता है और उसे एक पुस्तक उपहार में देता है जिसे रानी रत्ना सहर्ष स्वीकार करती है और उसे ढेर सारा आशीर्वाद देती है।

फिर कालू सबसे आज्ञा लेता है और चला जाता है। तब नंदिनी कहती है अब रात्रि के भोजन ग्रहण करने का समय हो गया है, आइए भोजन करें। भोजनोपरान्त देवकी कहती है
अब मैं थक गई हूं, अपने कक्ष में सोने जा रही हूं

और ये कह कर भोजन कक्ष से चली जाती है। तब नंदिनी कहती है

आओ भाभी, तुम्हें तुम्हारे कक्ष में ले चले, क्यों धाय मां
भ्राता विक्रम, आप थोड़ी देर बाद शयन कक्ष में आइएगा

और ऐसा कह कर रत्ना को लेकर शयन कक्ष की ओर चली जाती है।
बहुत ही सुन्दर रमणीय और लाजवाब अपडेट है
 
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Jeet14723

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Update 18

देवकी और विक्रम रांझा और कलुआ के घर से साथ अपने कक्ष के लिए साथ साथ निकल पड़ते हैं। दोनों के मन में रांझा और कलुआ की हरकत गुदगुदी पैदा कर रही थी , आखिर पहली बार उन्होंने मां और पुत्र का विवाह जो सम्पन्न कराया था और दोनो को खुलेआम यौन सम्बंध बनाते हुए देख लिया था। और तो और राजा विक्रम भी अपनी धाय मां रांझा के सुडौल स्तन और घाघरे के नीचे योनि की झलक पा कर रोमांचित और आनंदित महसूस कर रहे थे और सोच रहे थे कि इधर कुछ दिनो से उनके जीवन में सुन्दर, कामुक और गदराई स्त्रियों की बहार हो गई है। इधर देवकी भी मां और पुत्र के बीच निषेध यौन सम्बंध को स्वीकृति प्रदान कर विवाह संपन्न कराने की भावना से कामुक हुए जा रही थी। और यही सोचते सोचते दोनों कक्ष में पहुंच जाते हैं। तब राजा विक्रम कहते हैं
माते मेरे पैरों में थोड़ा दर्द हो रहा है, कृपया औषधि लगा दें।
देखा पुत्र, मैं इसीलिए तुम्हें मना कर रही थी से , अब हो गया ना दर्द। आओ मैं तुम्हारे पैर पर औषधि का लेप लगा देती हूं ।
और ये कहकर देवकी परेशान हो जाती है। वह औषधि का लेप बनाती है और बड़े प्यार से विक्रम के पैरों पर लेप लगाने लगती है। तभी विक्रम कहते हैं
माते, आपके हाथ में जादू है। जैसे ही आप अपने कोमल और मुलायम हाथों से लेप लगती हो, वैसे ही पैर का दर्द छू मंतर हो जाता है।
ये तो औषधि का कमाल है पुत्र।
मानता हूं माते, औषधि का भी असर है। लेकिन मैं ये भी जानता हूं कि आपकी ममता और आशीर्वाद से औषधि ने जल्दी असर किया है, नहीं तो मैं अभी तक ठीक नहीं हुआ होता ।
ऐसा सुनकर देवकी राजा विक्रम को प्यार और ममता से अपने सीने से चिपका लेती है और उसके पेशानी और गालों पर चुम्बन अंकित कर देती है और कहती है

मेरा प्यारा पुत्र!! मैं बहुत खुशनसीब हूं कि मुझे तुम जैसा प्यारा, समझदार और संस्कारी पुत्र मिला है जो अपनी विधवा मां की इतनी इज्जत करता है।

आप कैसी बातें कर रही हैं माते। आप तो मेरी आदरणीय माते हैं। मै आपसे ज्यादा किसी से प्यार नहीं करता।
पुत्र!!

राजा विक्रम वापस आने के उपरान्त अपने ऊपर के वस्त्र उतार कर मात्र धोती में लेटे हुए थे। तो उन्होने कहा

माते, इतनी गर्मी है, आप भी अपनी चोली उतार दो, तब आपको थोड़ा आराम मिलेगा।
नहीं पुत्र, मै तुम्हारे सामने बिना चोली के नंगे स्तनों के साथ नहीं रह सकती हूं। आखिर तुम मेरे पुत्र जो हो।

माते, अब एक बार नंगी रहो या दो बार , बात तो बराबर ही है ना। अभी कलुआ और रांझा के घर जाने के पहले आप बिना चोली के ही तो मेरे सामने बैठी थी।
इस पर रांझा मुस्कुराते हुए कहती है

तुम बहुत शरारती हो गए हो पुत्र। कोई पुत्र अपनी मां को चोली खोल कर बैठने को कहता है भला क्या। वैसे हां, गर्मी तो बहुत है ही। तू ठीक ही कहता है, मै चोली उतार देती हूं।
और ये कह कर देवकी अपनी चोली उतार देती है और वह फिर से विक्रम के सामने बिना चोली के बैठ जाती है जिसे देख कर राजा विक्रम अपने होठों पर जीभ फेरते है जिसे देवकी देख लेती है। तब राजा विक्रम कहते हैं
एक बात कहूं माते

कहो।

बुरा तो नहीं मानेंगी आप।

नहीं पुत्र, मै तुम्हारी बात का बुरा क्यों मानने लगी।

माते, आपके स्तन गजब के सुन्दर है, बिल्कुल गोरे, बिल्कुल संगमरमर की तरह और इस पर ये हल्की हरी हरी लाइने इसे गजब का आकर्षक बनाती हैं और इस ये गुलाबी घूंडी तो मन मोह लेती हैं
इस पर रांझा झेंप जाती है और कहती है
धत्त, तुम कुछ भी कहते हो। एक पुत्र को अपनी मां के प्रति ऐसे विचार नहीं रखने चाहिए। मै इतनी सुंदर थोड़े ही ना हूं, एक तो बूढ़ी हो गई हूं और ऊपर से विधवा। सुडौल स्तन तो नंदिनी के हैं और तो और रत्ना जिससे तुम्हारा विवाह होने वाला है उसके स्तन भी काफी कसे हुए दिख रहे थे।
रत्ना का तो पता नहीं, वह तो बाद में मालूम चलेगा। लेकिन नंदिनी के स्तन भी काफी कसे हुए हैं। लेकिन माते एक पूत्र के लिए उसकी मां के स्तन की बात ही कुछ और होती है जिनको चूस चूस कर वह बड़ा हुआ रहता है। किसी मां के स्तन के ऊपर सबसे पहला हक उसके पुत्र का ही होता है मां। आपके स्तन की तो बात ही कुछ और है और आप बूढ़ी नहीं है माते। यही तो उम्र है जिसमे स्त्री सबसे ज्यादा आकर्षक और गदरई हुई होती है। आप तो मुझे साक्षात काम की मूर्ति दिखती हैं माते। एक बात बताऊं मुझे आपकी उम्र की औरतें बहुत ज्यादा आकर्षित करती हैं।
ये सब सुन कर उत्तेजना से देवकी का चेहरा लाल हो जाता है और वह उत्तेजित होने लगी जिससे उसके स्तनों में हल्का तनाव आने लगा और इसे राजा विक्रम देख लेते हैं और कहते हैं
माते, मै एक बात तो कहना चाहूगा। पिता श्री बड़े भाग्यशाली थे जो आप जैसी सुन्दर स्त्री उन्हें अपनी पत्नी के रूप में मिली और इसी लिए पिता जी आपको कभी छोड़ते नहीं थे। माते , जब भी मैं आपके स्तनों को देखता हूं तो पर मेरी नजर उन पर से हटती ही नहीं है।

इन बातों को सुन कर देवकी की सांसे ऊपर नीचे होने लगती है और वह कहती है
पुत्र, क्या सच में तुम्हें मेरे स्तन इतने पसंद आए। चलो अच्छा है। कम से कम इस उम्र में मेरे स्तन किसी को पसंद तो आए।
माते , आप तो सुन्दरता की मूरत हो। नंदिनी बिल्कुल आपके उपर ही गई है।
सच पुत्र,। लेकिन हम मां पुत्र को ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए। मां और पुत्र के बीच ऐसी बातें शास्त्रों में निषेध की गई हैं।
माते, यदि आपको मेरी बाते पसन्द नहीं आ रही, तो मैं नहीं करूंगा ऐसी बातें। लेकिन मैं तो केवल आपकी सुन्दरता की प्रशंसा कर रहा था जिसकी आप हकदार हो। पिता श्री नहीं है, इसका मतलब ये नहीं है कि आपकी जिंदगी बिल्कुल नीरस हो जाए।

ये कह कर राजा विक्रम थोड़े दुखी हो जाते हैं और अपना मुंह रूआंसा कर के दूसरी तरफ कर लेते हैं।

राजमाता देवकी विक्रम को ऐसे रूआंसा देखती है तो उनकी आंखे डबडबा जाती हैं। उसे भी ये बातें अच्छी लग रही थी और उसे भी मज़ा आ रहा था और वह अपना मजा खराब करना नहीं चाह रही थी। इसलिए वह कहती हैं,,

ना पुत्र ना, नाराज ना हो। मेरा कहने का ये मतलब नहीं था। इस तरह अपनी मां से नाराज नहीं होते। मुझे तुम्हारी बात का कोई बुरा नहीं लगा। तुम तो मेरे लाडले पुत्र हो, मेरी जान हो तुम। सच कहूं तो मुझे तुम्हारी बातें मोहक लग रही है। और ये कह कर देवकी मुस्कुरा देती है जिसके जवाब में राजा विक्रम भी मुस्कुरा देते हैं और कहते हैं,,,
मां एक बात पूछूं।
पूछो पुत्र।
आप हमारे और नंदिनी के बीच के सम्बन्ध से खुश तो हो ना।
पुत्र अगर तुम दोनो ने रिश्ता बना ही लिया है और आगे बनाना चाहते हो तो मैं कर भी क्या सकती हूं। मुझे एक बात की खुशी है की तुम दोनो ने घर के बाहर किसी से शारीरिक संबंध नही बनाए, नहीं तो बड़ी बदनामी होती। अच्छा किया जो तुम दोनों ने अपनी जवानी की प्यास आपस में ही बुझा ली। लेकिन उस रात तुम दोनो को नग्नावस्था में देख कर मुझे बहुत क्रोध आया था, लेकिन तुम्हारे समर्पण ने मुझ पिघला दिया और मैंने सोचा नंदिनी करती भी क्या, जिसके भाई का लिंग इतना दमदार होगा वो तो भाई पर न्योछावर तो हो ही जायेगी।
माते मैं नंदिनी दीदी से प्यार करता हूं, सच्चा प्यार। और मैं तो दीदी से शादी भी करना चाहता हूं।
नहीं पुत्र ये सम्भव नहीं है। इसकी भी शादी करनी होगी और ये दूसरे के घर चली जायेगी जैसे रत्ना इस घर की बहु बन कर आ रही है। और हां इस बात का ध्यान रखना अब तुम्हारा विवाह दो माह पश्चात है और रत्ना इस घर में बहू बन कर आयेगी। तो तुम दोनों को अपना रिश्ता छिपा कर रखना होगा कि रत्ना को तुम दोनो के सम्बन्धों की भनक ना लगे।
अच्छा मां, मै एक बात पूछना चाहता हूं आपसे, गुस्सा न करो तो पूछूं
पूछ पुत्र, मै तेरी किसी बात का गुस्सा नही करती

माते, आपने तो मेरा लिंग देखा ही है और जन्मदिन के दिन अपने मुलायम हाथों में लिया भी था,,
हूं ,,,हूं,,,, तो
तो , माते क्या पिता श्री का लिंग मेरे जितना ही बड़ा था या उससे ज्यादा।
इस पर देवकी की सांसे तेज चलने लगती है और वह कहती है
पुत्र सच कहूं या,,,
सच कहो माते
तो सच ये है पुत्र की तुम्हारा लिंग हु ब हू तेरे पिता श्री की तरह है। जब मैंने पहली बार तुम्हारा लिंग देखा तो मुझे लगा कि तुम्हारे पिता श्री का लिंग मेरे सामने खड़ा है, उतना ही लम्बा, मोटा और तगड़ा और वैसा ही गुलाबी सुपाड़ा। तुम्हारा लिंग मुझे तुम्हारे पिता जी की याद दिलाता है।
तुम्हें अच्छा लगा था मां, मेरा लिंग।
बिल्कुल जब तेरे पिता श्री का लिंग अच्छा था तो तेरा लिंग भी अच्छा है, समझे।
जैसे नंदिनी की योनि भी आपकी योनि की तरह ही है, वैसी ही प्यारी कसी हुई और मादक।,,,ये बातें विक्रम एक सांस में कह जाता है और जिसकी उम्मीद देवकी ने नहीं की थी और वो चुप रह जाती है
माते, अपने जब मेरा लिंग अपने हाथ में लिया था तब आपको कैसा महसूस हुआ था, अच्छा लगा था
बहुत अच्छा लगा था पुत्र। मुझे तो तुम्हारा लिंग छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा था, वो तो रांझा आ गई, नही तो उस दिन मैं कुछ कर बैठती।
सच मां, आपको मेरा लिंग इतना पसंद आया था।
हां, पुत्र
तब तक राजा विक्रम देवकी का हाथ पकड़ कर अपने खड़े लिंग पर रख देते हैं जिससे वो गनग्ना जाती हैं। विक्रम कहते हैं
पिता श्री का लंद भी खड़ा होने पर ऐसा ही रहता था

हां पुत्र बिल्कुल ऐसा ही

इधर बात करते करते विक्रम अपनी धोती खोल देता है और देवकी अपने बेटे के नंगे लंद को पकड़ कर सहलाती है और कहती है
हू ब हू , वही लिंग!!!
तो अच्छे से देख लो माते। सहला दो, ये तुम्हारे प्यार के लिए तरस रहा है। माते क्या पिता श्री और आप प्रति दिन सम्भोग किया करते थे?
हां पुत्र, तेरे पिता श्री प्रतिदिन सम्भोग करते थे, वे दीवाने थे मेरे।
वाह, पिता श्री कितने खुश नसीब थे कि उन्हें तुम्हारे जैसी सुन्दर पत्नी यौन सम्बंध बनाने को मिली। माते मुझे आपकी योनि आज आराम से देखनी है, दिखाएंगी न अपनी प्यारी योनि मुझे जिससे मैं पैदा हुआ।
और ये कहते हुए विक्रम देवकी के घाघरे का नाड़ा पकड़ लेते हैं जिसे देवकी अपने दूसरे हाथ से पकड़ लेती हैं लेकिन विक्रम का लंद नहीं छोड़ती है। इस पर विक्रम कहते हैं
माते, देखने दो अपनी योनि, मैने एक बार तो देख ही ली है तो एक बार फिर तुम मुझे दिखा देगी तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा।
इस पर देवकी धीरे से अपना हाथ अपने नाडे से हटा लेती है तो विक्रम धीरे से देवकी के घाघरे का नाड़ा खोल देता है जिसे देवकी धीरे से अपना नितंब उठा कर अपने पैरों में से निकाल देती है। अब दोनों मां बेटे एक दूसरे के सामने नंगे थे। इस पर विक्रम कहते हैं
माते , तुम्हारी नंगी योनि के दर्शन कर के मेरा जीवन सफल हो गया।
लेकिन पुत्र हम कक्ष में ऐसे नंगे बैठे हैं, ये किसी को पता चल गया तो बहुत बदनामी होगी
किसी को पता नहीं चलेगा माते। मैने कहलवा दिया है कि कोई भी मेरी आज्ञा के बिना मेरे कक्ष में नही आयेगा।
लेकिन पुत्र क्या ये सही होगा कि तुम्हारी शादी होने वाली है, तुम नंदिनी के साथ सम्भोग करते हैं और अब फिर अपनी मां के साथ सम्बंध।
एक बात कहूं माते। जिंदगी में मेरा पहला प्यार तुम हो माते। तुम्हारा गदराया हुआ मादक और कामुक शरीर मुझे हमेशा से पसंद रहा है और मैने कितनी बार तुम्हारे स्तन सम्भोग की कल्पना की है। मै तुम्हारे साथ इस रिश्ते को कभी उजागर नहीं होने दूंगा।
पुत्र, मुझे क्या मालूम था कि तुम मुझे इतना प्यार करते हो।
तभी विक्रम देवकी को अपने शैय्या पर खीच लेते हैं जिससे देवकी विक्रम के बगल में आ जाती है। तो विक्रम देवकी के होंठ चूम लेते हैं जिससे देवकी मदहोश हो जाती है। फिर अचानक देवकी ने ऐसा काम किया जिसकी उम्मीद विक्रम ने नही की थी। उसने विक्रम का हाथ पकड़ कर अपनी योनि पर रख कर हथेली से दबा दिया और कहा
देख बेटा, ये तेरे प्यार के लिए कैसे तड़प रही है

जैसे मेरा लौड़ा तुम्हारी योनि के लिए तरस रहा है मां। और ये कह कर विक्रम देवकी की योनि को दबा देता है। विक्रम देवकी की एक स्तन मुंह में लेकर चूसने लगता है जिससे देवकी की आहें निकल जाती हैं और वह कहती है
मै इसी पल का कबसे इंतजार कर रही थी की कब मेरा पुत्र मेरी योनि को सलाएगा, मेरे स्तनों को चूसेगा।

सच माते। क्या आप भी मेरे साथ ये सब करना चाहती थी
हां, पुत्र, मैने जबसे तुम्हारा लिंग देखा था, मै तो पागल हो गई थी।
तब विक्रम देवकी के स्तनों को चूसता रहता है और योनि को सहलाते सहलाते अपनी एक उंगली भी अपनी मां की योनि में डाल देता है जिससे वह चिहुंक जाती है।
विक्रम फिर धीरे धीरे नीचे जाते हैं और देवकी की योनि पे चुम्बन जड़ देते है जिससे वह मद मस्त हो जाती है और कहती है नही पुत्र, वह गंदी जगह है उसे मत चूमो
गंदी जगह है !!! मेरे लिए तो इससे पवित्र स्थल विश्व में कोई नहीं है। यह वही योनि है जिससे मैं पैदा हुआ था बाहर आया था। इसके दर्शन कर के मैं धन्य हो गया।

और ये कह कर विक्रम अपनी मां देवकी की योनि को चाटने लगते हैं जिससे ये आवाज निकलने लगती है

नही विक्रम, मत करो,, उह उह उह आह आह,,,बहुत मजा आ रहा है विक्रम। अपने जीभ से पूरी योनि चाट लो विक्रम। इसे प्यार करो, ये तुम्हारे प्यार की प्यासी है।

और ये कहते हुए विक्रम का सिर अपनी योनि पर दबा रही थी और कहती है
विक्रम तुम मेरे ऊपर आकर अपना लौड़ा मुझे दो, मै इसे चूसना चाहती हूं
तब विक्रम देवकी के ऊपर 69 के पोजिशन में आ जाते हैं और देवकी विक्रम का लंद अपने मुंह में लेकर चूसने लगति है और कहती है
वह मेरे बालम, मेरे सरताज कहां थे तू , मै कितना तड़प रही थी तुम्हारे लिए और सलाप सलप की आवाज आने लगती है। विक्रम।के चाटने से देवकी झड़ जाती है विक्रम के लौड़े को पूरा मुंह में ले लेती है। तभी विक्रम उठते हैं और देवकी के ऊपर आ जाते हैं और अपना खड़ा लौड़ा अपनी मां की योनि से सटा कर कहते हैं

मां, मुझे आज्ञा दो की मै आपकी, अपनी सगी मां की योनि में प्रवेश कर उसके साथ सम्भोग कर सकूं।

पुत्र, मेरी योनि तुम्हारे लिंग के लिए तरस रही है। आओ और अपनी मां की योनि में प्रवेश मादरचोद होने का फर्ज निभाओ।
आज्ञा पाते ही विक्रम अपना लिंग देवकी की योनि में प्रवेश करा कर आगे पीछे करने लगते हैं जिससे देवकी की सिसकी निकलने लगती है और वह बड़बड़ाने लगती है
चोदो मेरे लल्ला, चोदो मुझे, अपनी मां को चोदो।

ये ले मां, अपने बेटे का लौड़ा ले, अपनी बुर में।

चोदो पुत्र। मुझे अपने बच्चे की मां बना दे मेरे बच्चे। मै अपनी कोख से तुम्हारा बच्चा जनना चाहती हूं जो हमारे मां बेटे के प्यार की निशानी होगा।
और ऐसे ही बड़बड़ाते बड़बड़ाते दोनो मां बेटे झड़ जाते हैं और दोनो एक दूसरे के आगोश में नंगे ही सो जाते हैं।
Bahot kamuk update
 
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Good updates try to write long episodes
 
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Update 23

अब इधर शादी की तैयारियां जोरों से चलने लगती है। अब राजा विक्रम और रत्ना की शादी में ज्यादा समय नहीं था। राजा विक्रम ने स्वयं राजमाता देवकी और नंदिनी के लिए रत्नजड़ित घाघरा चोली पसन्द की थी। तो राजा विक्रम के वस्त्र देवकी और नंदिनी ने पसन्द किए थे। सभी बड़े खुश थे इस शादी को लेकर। राजा विक्रम ने एक लहंगा चोली रांझा के लिए भी पसन्द किया था।
रांझा को वो जैसे ही थोड़ा अकेले पाते हैं, उनके पीछे खड़े होकर आवाज देते हैं
धाय मैं

आवाज सुन कर रांझा पीछे मुड़ती है तो विक्रम को देखती है। उसके हाथ में लहंगा चोली होती है।

रांझा कहती हैं
जी राजन, आदेश करे

आदेश नहीं धाय मां, आपके लिए ये लहंगा चोली, शादी में पहनने के लिए। मैंने स्वयं पसन्द की है आपके लिए।

सच राजन, !! मै अवश्य पहनूंगी इसे।

जी धाय मां, लेकिन साथ में ये हीरे मोती की ये माला भी पहनना
और ये कह कर राजा विक्रम अपने गले से माला निकाल कर रांझा को देते हैं

तो रांझा कहती है
आप खुद ही पहना दे राजन

विक्रम मानो यही चाहता था और आगे बढ़ कर माला रांझा के गले में पहना देता है और रांझा मन ही मन आनन्दित हो कर कहती है
मै धन्य हो गई राजन, जो आपने अपने हाथ से मुझे माला पहनाया।
तब विक्रम कहते हैं
मै तो कब से आपके गले में माला डालना चाह रहा था, जिस दिन से मैंने कालू को आपके गले में मगलसूत्र बांधते देखा है मेरा मन भी आपको हार पहनाने को हो रहा था जो आज पूरी हुई

ये सुन कर रांझा शरमा जाती है
तो विक्रम उसकी ठुड्ढी पकड़ कर सिर ऊपर उठाते हैं और कहते हैं
आप बहुत सुन्दर है धाय मां।
और ये कह कर रांझा के होंठ चूम लेते हैं, तो रांझा शरमा कर भाग जाती है
इसी तरह की तैयारी राजकुमारी रत्ना के घर भी चल रही थी। वहा भी रेशमी वस्त्र, आभूषण पसंद किए जा रहे थे और वहां पर तैयारी भी विशिष्ठ होनी थी, आखिर विवाह तो वधु पक्ष के स्थान पर ही तो होना था ।

अब देखते ही देखते समय बीत गए और विवाह की तिथि भी आ गई। रत्ना के यहां राज महल बहुत सुंदर तरीके से सजाया गया था। लग रहा था कि स्वर्ग को धरती पे उतार दिया गया हो।

इधर राजा विक्रम की बारात अपने होनेवाले ससुराल पहुंच चुकी थी। बारात में राजमाता देवकी, राजकुमारी नंदिनी के साथ सभी मंत्री और राजदरबारी आए थे। और हां साथ में धाय मां रांझा और उसका पुत्र कालू भी थे जो राजपरिवार के साथ ही था।
राजा विक्रम 10 अश्वों वाले रथ पे अपनी मां और बहन के साथ सवार होकर पहुंचे थे। दोनों राज्यों में खुशी का माहौल था तथा दोनो राज्यों में राज उत्सव की घोषणा की गई थी। इधर राजा माधो सिंह ने राजकीय अतिथिशाला में बारात के रुकने की व्यवस्था की थी । बारात एक दिन पहले ही पहुंच चुकी थी।

राजा विक्रम , देवकी और नंदिनी के कक्ष सटे हुए थे। उस दिन शादी के कई रस्म थे जिसको पूरा होते होते काफी विलम्ब हो गया। फिर सभी ने भोजन ग्रहण किया और रात्रि मे अपने अपने कक्ष में विश्राम करने चले गए। लेकिन शैय्या पर तीनों में से किसी को भी नींद नहीं आ रही थी। फिर राजा विक्रम उठते हैं और ये निश्चिंत होने के बाद की बाहर कोई नहीं है नंदिनी के कक्ष की ओर चले जाते हैं।

नंदिनी के कक्ष में प्रवेश कर विक्रम पाते हैं कि नंदिनी जाग रही है तो विक्रम कहते हैं
आप जाग रही हैं दीदी

हां, तुम भी तो जाग रहे हो भाई, नंदिनी में मुस्कुरा कर कहा।

क्या करूं बहन, आपके बिना नींद ही नहीं आती।

अच्छा, तो अब तो तुम्हें रत्ना मिल जायेगी, फिर तो भूल ही जाओगे अपनी इस बहन को।

नही दीदी, ऐसा नही होगा, ये आप भी जानती हो। मै आपसे बहुत प्यार करता हूं , आप मेरा पहला प्यार हो।

ये सुन कर नंदिनी शर्मा जाती है और कहती हैं

शादी के बाद हम ये रिश्ता कैसे रखेंगे भाई, अगर रत्ना जान गई तो।

उसे कुछ पता नही चलेगा। हम दोनो राजकीय कार्य के दौरान भ्रमण में मौका निकाल लेंगे तथा राजमहल में भी।

ये सुन कर नंदिनी भावुक हो जाती है और विक्रम को गले लगा कर सुबकने लगती है और कहती है

इतना प्यार करते हो मुझसे भाई,,, मैं कितनी खुशनसीब हूं कि मुझे तुम जैसा प्रेम करने वाला भाई मिला है। मुझे तुझे रत्ना को सौंपने में जान निकली जा रही है। लेकिन तू मेरा कितना ख्याल रखता है।

फिर दोनो भाई बहन एक दूसरे से चिपक जाते हैं और एक दूसरे के होंठ चूसने लगते हैं । विक्रम धीरे धीरे नंदीनिंकी चोली खोल देते हैं और उसके निप्पल को अपनी उंगलियों से मसलने लगते हैं जिससे नंदिनी मस्त हो जाती हैं और आहें भरने लगती है और उत्तेजित होकर धोती के ऊपर से ही विक्रम के लन्ड को पकड़ लेती है और सहलाने लगती है। विक्रमंकी आह निकल जाती है और और वो होंठ चूसना बन्द कर के अलग हटते हैं और कहते हैं

बहन अपने स्तन से दूध पिलाओ न।

पी लो भाई मेरे स्तन से दूध, चूस लो इन्हें। ये तेरे प्यार के लिए तड़प रहे हैं।

विक्रम मूंह लगा कर नंदिनी के स्तन चूसने लगते हैं और दूसरे हाथ से उसकी दूसरी चूची मसलने लगते हैं। नंदिनी आहे भरते हुए कहती हैं

भाई, जैसे मां हमारे रिश्ते के बारे में जान गई , वैसे ही कहीं रत्ना ना जान जाए।

नही जानेगी बहन, अब हम दोनो और चौकन्ने रहेंगे।

लेकिन बुरा न मानो तो एक बात कहूं भाई।

हा बोलो

उस रात जब हम दोनो नंगे थे, मां तुम्हारे लिंग को बार बार देखे जा रही थी, उसकी नजर तुम्हारे लिंग से हट ही नहीं रही थी और रक्षाबंधन के दिन भी मैने देखा कि माते तुम्हारे लिंग को चोरी चोरी देखे जा रही थी । लगता हैं उन्हें तुम्हारा लिंग बहुत पसन्द आ गया है।

राजमाता देवकी के बारे मे नंदिनी द्वारा ऐसा कहने से विक्रम के लिंग में तनाव आने लगता है जिसे नंदिनी महसूस करती है और राजा विक्रम को थोडा सा अपने से अलग हटा कर विक्रम की आंखों में देखती है और कहती हैं

विक्रम .......

हां दीदी,

क्या मैं जो समझ रही हूं वो सही समझ रही हूं

क्या

यही की तुम्हारा लिंग मां का नाम लेते ही झटके मारने लगा

दीदी आप भी ना,,, ये कह कर राजा विक्रम मुस्कुरा देते हैं और नंदिनी के गले लग जाते हैं

इस पर नांदिनी मुस्कुराने लगती है और फिर उसकी आंखों में देखती है और कहती है
बदमाश कही के, वही मैं कहूं कि जनाब को मां के सामने नंगे खड़े होने में लाज क्यों नहीं आ रही थी और फिर विक्रम को गले लगा लेती है। इन बातों से नंदिनी भी गरम हो जाती है और राजा विक्रम की धोती खोल कर लन्ड बाहर निकाल लेती है और नीचे बैठ लौड़ा चूसने लगती है।
विक्रम को सिहरन होने लगती हैं और वो नंदिनी के मुंह को ही चोदने लगते हैं और फिर उसे उठाकर शैय्या पर ले जाते है और उसका लहंगा उतार कर नंगा कर देते हैं और अपने हाथ से उसकी योनि को सहलाने लगते हैं। फिर उसके पूरे शरीर को चूमते हुए योनि के पास आते हैं और योनि चाटने लगते हैं। योनि चाटने से नंदिनी गरम हो जाती है और कहती है

और जोर से चाटो भाई, और जोर से अपनी बहन की योनि को, ये तुम्हारे प्यार की प्यासी है और जीभ अंदर डालो भाई, और अंदर,। आह आह कितना मजा आ रहा है भाई।
फिर राजा विक्रम अपना लन्ड नंदिनी की योनि पर रख कर दबाव देते हैं और कहते हैं

ये ले बहन अपने भाई का प्यार और उसकी योनि की जबरदस्त चोदाई करने लगते हैं । पूरे कमरे में फेच फ़च की आवाज गूंजने लगती है और नंदिनी अपनी दोनों टांगे उठा कर चुदवाने लगती है और कहती है

और जोर से भाई और जोर से। ऐसे चोद की लगे की आज अंतिम रात है और जोर से भाई और जोर से चोद अपनी प्यारी बहन को,,, आह आह आह मजा आ रहा है मेरे बालम।।

आह आह ये ले दीदी, मजे ले मेरे लौड़े के, बहुत प्यारी योनि है तुम्हारी,,,,आह आह आह,,,,मुझे इसी योनि से एक बच्चा दे दो दीदी,,, आह आह

दे दूंगी तुम्हे बच्चा मेरे भाई,,,,मैं वादा करती हूं की मेरी पहली संतान तुम्हारे बीज से ही जनमेगी।,,आह आह,,मैं झड़ने वाली हूं भाई।

मै भी झड़ने वाला हूं बहन और फिर पानी निकलने के पहले विक्रम अपना लिंग बाहर निकाल कर नंदिनी के स्तनों पर स्खलित हो जाते है और ढेर सारा पानी गिरा देते हैं
इधर नंदनी भी झटके खा कर झड़ जाती है और उसके चादर पर योनि रस गिर जाती है और गीली हो जाती है।

इधर राजमाता देवकी को भी नींद नहीं आ रही थी और वह करवटें बदल रही थी। पता नही ये कैसी रात थी जो किसी को नींद ही नहीं आ रही थी। देवकी सोचती है कि चलो विक्रम से मिल आती हूं और विक्रम के कक्ष की ओर चल देती है । लेकिन जब वह विक्रम के कक्ष में पहुंचती है तो विक्रम को वहां न पाकर समझ जाती की एक भाई अपनी बहन से मिलने गया होगा और मन्द मन्द मुस्कुराने लगती है और कुछ सोचती हुई नंदिनी के कक्ष की ओर चल देती है

नंदिनी के कक्ष में प्रवेश कर देखती है की दोनों नंगे एक दूसरे से चिपके हुए हैं । किसी के आने की आहट से दोनो अलग हो जाते हैं तो देवकी को सामने देखते हैं

तब देवकी झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहती है ~ विक्रम कल तुम्हारी शादी है और तुम अपनी बहन के साथ सम्भोग में लीन हो,, तुम्हें अभी आराम करना चाहिए, कल काफी काम होगा,,, और तुम नंदिनी,,तुम तो बड़ी बहन हो, अपने छोटे भाई को समझा तो सकती हो,,,

तब विक्रम बोलते हैं,,,मैं ही खुद आया था माते,,, मुझे नींद नहीं आ रही थी।

देवकी मन में कहती है,,,,मैं क्या बताऊं पुत्र कि मुझे खुद भी नींद नही आ रही थी।

तब नंदिनी उदास होकर कहती है,,,आज प्यार कर लेने दो माते ,,,अब तो कल भाई की शादी हो ही जाएगी।

ये सुन कर देवकी का दिल भी बैठ जाता है और वह आगे बढ़ कर नंदिनी को गले लगा लेती है और कहती है

उदास ना हो मेरी प्यारी पुत्री,,, ये तो खुशी की बात है कि विक्रम की शादी हो रही है। तुम दोनो अपना संबंध छुपा कर बनाना ,, मुझे कोई आपत्ति नहीं है । अगर कोई कक्ष ना मिले तो मेरे कक्ष में आकर अपने भाई के साथ सम्भोग कर लेना,,मैं मना नहीं करूंगी,,,लेकिन तुम उदास ना हुआ कर पुत्री,,,तुम ही दोनो तो मेरी दुनिया हो

इस पर नंदिनी खुशी से झूम उठती है और देवकी को गले लगा लेती है तब देवकी नंदिनी को छेड़ते हुए कहती है

लेकिन ये अपनी जवानी को नंगी मत रखा कर,,,इस पर चुन्नी तो डाल दिया कर

और ऐसा बोल कर उसके निप्पल को मसल देती है

इसपर नंदिनी आहें भरती है तब इस पर सभी हसने लगते हैं। राजमाता देवकी फिर विक्रम की धोती समेट कर उठाती है और विक्रम को पहनने को देती है। विक्रम को अपने कमरे मे चलने को कहती है, इस पर राजा विक्रम अपने कक्ष की ओर चलते हैं। कक्ष के द्वार पे पहुंच कर देवकी कहती है
पुत्र विक्रम आप विश्राम करे , कल विवाह की व्यस्तता रहेगी

इस पर राजा विक्रम कुछ नहीं कहते और राजमाता देवकी का हाथ पकड़ कर कक्ष के अंदर खींच लेते हैं और कक्ष के अंदर ले जाकर राजमाता देवकी को गले से लगा लेते हैं ,,, इस पर देवकी भी अपने पुत्र से चिपक जाती है। कुछ देर माता पुत्र ऐसे ही एक दूसरे से चिपके रहते हैं । देवकी फिर थोडा अलग हटती है तो विक्रम कहते हैं

माते, आप अभी तक क्यो जग रही हैं,,वहां नंदिनी के कक्ष में तो हमें आप हड़का रही थी की इतनी रात तक हम लोग क्यों जगे है,,, अब आप मुझे बताएं कि आप अभी तक क्यो जगी है ।

ये सुन कर देवकी उदास हो जाती है और कहती है

ये सच है पुत्र की मुझे भी नींद नहीं आ रही थी ,, मन में सोच रही थी की अभी अभी मेरे सूने जीवन में तुम ख़ुशी की बहार बन कर आए थे,,, अभी तो मैने ठीक से अपने लल्ला को प्यार भी नहीं किया था कि तुम्हारी शादी तय हो गई ,,

इस पर राजा विक्रम कहते हैं,,, आप उदास ना हो माते,, मैं आपकी खुशी काम नहीं होने दूंगा,,,आपका स्थान कोई नहीं ले सकता है,,, शास्त्रों में भी कहा गया है कि माता को सुखी रखने वाला पुत्र पुण्य का भागी होता है,,, और इसीलिए माते मैं आपकी खुशी में कोई कमी नहीं आने दूंगा,,, समय समय पर मौका निकाल कर आपकी इस योनि को सम्भोग का आनंद दूंगा

और ये कहते हुए विक्रम देवकी की पवित्र योनि को घाघरे के ऊपर से दोबोच लेते हैं और और अपनी मां के होंठ चूसने लगते हैं । दोनों होंठ चूसने में मगन रहते हैं तो देवकी हाथ नीचे ले जाकर अपने पुत्र के लिंग को मुट्ठी मे भर लेती है और कहती है

आह पुत्र , कितना आकर्षक लिंग है तुम्हरा । मै तो तुम्हारी दीवानी हो गई हू और अब रत्ना इस लिंग की दीवानी हो जाएगी। रत्ना कितनी खुशनसीब है कि उसे तुम पति के रूप में मिले हो,,

विक्रम भी नीचे झुक कर देवकी की चूची चूसने में मगन हो जाते हैं और कहते हैं

कितना अदभुत स्वाद है माते,, आपके स्तन का,,,आपके स्तन के दूध का ही कमाल है माते कि मेरा लिंग इतना बलशाली है ।

राजा विक्रम फिर नंदिनी का घाघरा चोली निकल कर फेक देते हैं और धीरे धीरे नीचे आकर उसकी योनि को चूसने लगते हैं और चाटने लगते हैं ,, देवकी बहुत उत्तेजित हो गई रहती है तो उससे रहा नहीं जाता और वो कहती है

अपना मुख हटा लीजिए पुत्र मेरी योनि पर से,,मुझे पेशाब आ रही है बहुत तेज,,,
विक्रम कुछ नहीं बोलते हैं और देवकी की योनि चाटने की रफ्तार बढ़ा देते हैं जिससे देवकी कहती है

पुत्र, बर्दास्त करना मुस्किल हो रहा है,,,, ओह ओह ओह ओह,, मैं नही रोक पाऊंगी पुत्र अपनी पेशाब,,, कृपया रोक दे पुत्र,,

लेकिन राजा विक्रम नहीं रुकते हैं और योनि को चूसना चाटना जारी रखते हैं जिससे देवकी को बर्दास्त करना मुस्किल हो जता है और वह विक्रम के बाल पकड़ कर योनि से पेशाब की धार छोड़ते हुए कहती है

ओह आह आह और, पुत्र मेरा पेशाब निकल गया पुत्र
जिसे राजा विक्रम योनि पर मुंह लगा कर अपनी मां की योनि से निकला पेशाब गट गट कर के पी जाते हैं।

देवकी चिल्लाती है,,,पुत्र ना पियो पुत्र,, ये गंदी चीज है
लेकिन विक्रम पूरा पेशाब पी जाते हैं । ये देख कर देवकी विक्रम को उठाती है और गले लगा लेती है, फिर उसके होंठ चूसने लगती है और कहती है

मुझे पता ही नही था कि मेरा पुत्र मुझसे इतना प्यार करता है कि उसे मेरी पूरी पेशाब पीने में कोई हिचक नहीं हुई, मैं कितनी धन्य हूं,, तुमने पहले क्यो नही बोला कि तुम मुझसे प्यार करते हो, ,,मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं मेरे लाल,, मेरे लल्ला, मेरी जान।,,

तब राजा विक्रम देवकी को गोद में उठा कर शैय्या पर ले जाते हैं और कहते हैं
आप दोनो मां और पुत्री सुंदरता की मूरत हो,, दीदी बिलकुल आपकी छाया है माते,, वैसे ही उन्नत वक्ष गोरे स्तन और गुलाबी चुचुक ,,,मस्त अप्सरा लगती हैं आप दोनों,,,
देवकी बिक्रम का लिंग पकड़ कर कहती है
चोद दे पुत्र अपनी इस प्यासी मां को,, अपने तगड़े मोटे लौड़े को डाल दें मेरी योनि में,, ये आपके लौड़े के प्यार को तड़प रही है
और ये कह कर राजा विक्रम के लिंग को अपनी योनि से सटा देती है, तो राजा विक्रम कहते है

ये लें माते, अपने पुत्र का लिंग अपनी योनि में

और ये कहते हुए एक ही धक्के में अपना लिंग अपनी मां की योनि की जड़ तक पहुंचा देते हैं और chudai शुरु कर देते हैं और कहते है

देख माते, तुम्हारी योनि की जड़ तक जाकर बचेचेदानी को छू रहा है मेरा लिंग,, आह आह ओह, बहुत मजा आ रहा है माते,,, मैं धन्य हो गया हूं अपनी माता की योनि की सेवा करके

और जोर से करो पुत्र और जोर से,, मुझे आज तक किसी ने ऐसे नही चोदा,,,

क्यों मामा ने भी नही,,

नही, तेरे मामा ने भी नही पुत्र,, उफ्फ ये मैने क्या कह दिया,,, आह आह ओह ओह यूएफएफएफ,, और चोदो पुत्र अपनी मां को

ये सुन कर विक्रम का लिंग और तन गया की मां को उनके भाई ने भी चोदा है, उन्होंने पूछा

मामा के साथ कैसे संभोग किया माते

वो बड़ी लंबी कहानी है पुत्र, आराम से बताऊंगी, लेकिन तुम्हारा लिंग मेरे भाई की तरह ही है, लेकिन किसी को बताना मत की मैं अपने भाई से चूदी हूं,, और चोद बेटा और

अच्छा, माते घोड़ी बनिए , पीछे से चोदना है।
और ये कह कर देवकी को घोड़ी बना देता है और पीछे से देवकी को चोदने लगता है

आह आह बहुत मजा आ रहा है बेटा, इसमें तो तुम्हारा लिंग मेरी बच्चेदानी के अंदर घुस जा रहा है,, लगता है अभी ही आप मेरी कोख भर देंगे।
आह आह ओह आह माते,, आह आह मुझे बच्चा चाहिए माते,,ये लीजिए आह आह

ओह ओह और जोर से पुत्र मेरा निकलने वाला है आह आह
मेरा भी माते ,, आह ओह ओह, मेरा निकलने वाला है माते आह आह
और ये कहते कहते दोनो झड़ जाते हैं, विक्रम अपना लिंग निकलना चाहते थे लेकिन रांझा ने उनका लिंग जकड़ लिया और पूरा पानी अपनी योनि में ले लिया।

इस तरह दोनों मां बेटे थक कर एक दूसरे से चिपक गया और राजमाता देवकी वही राजा विक्रम के बगल में सो गई
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
 
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Update 24

सुबह सुबह जब नींद खुलती है तो देवकी हड़बड़ाती हुई उठती है और स्वयं को अपने पुत्र के साथ नंगा पाती है। वह सबसे पहले तो ऐसे नंगे देख कर शरमा जाती है और फिर अपने पुत्र के गाल पर एक चुम्बन जड़ देती है जिससे विक्रम की भी नींद खुल जाती है और वह भी अपनी माता को फिर से नंगे बदन को चिपका लेते हैं और एक प्यारा सा चुम्बन मां के गाल पर दे देते हैं और कहते हैं

माते, मैं आपको अपनी मां के रूप में पाकर धन्य हो गया। मैंने पिछले जन्म में जरूर कोई पुण्य किया होगा जो इस जन्म में आप मेरी माता मिली। हमारा ये रिश्ता जन्म जन्मांतर का है माते और मै हर जनम में आपका ही पुत्र बनना चाहूंगा।
इस पर देवकी कहती है
मै धन्य हो गई पुत्र जो आपके जैसा प्यार करने वाला पुत्र मुझे मिला । अब आप जल्दी तैयार हो पुत्र। आपको शादी की अनेक शुभकामनाये।

और ये कह कर देवकी फटाफट अपना लहंगा चोली पहनती है और अपने कक्ष में रौशनी होने के पूर्व ही चले जाते हैं। फिर राजा विक्रम भी अपनी धोती पहन कर शैय्या पर लेटे रहते हैं और अपनी मां और बहन के साथ सम्भोग को सोच सोच कर मुस्कुरा रहे थे।

आज राजा विक्रम की शादी है तो सभी अपनी अपनी तैयारी में जुटे थे। राजा विक्रम ने जब आज वर के वस्त्र को पहना तो गजब की चमक छा गई थी। राजा विक्रम अनायास ही धाय मां रांझा के कक्ष की ओर चल पड़े। जैसे ही वह रांझा के कमरे में पहुंचे। रांझा उठ खड़ी हुई और उसने कहा

राजन, आप यहां, मुझे खबर करा दिया होता, मैं आ जाती।

कोई बात नही धाय मां। आज मेरा विवाह है और मै आपका आशीर्वाद लेने आया हूं।

आशीर्वाद, !!! ये क्या कह रहे हैं आप जो मुझ दासी से आशीर्वाद चाहते हैं।

धाय मां, मैने और नंदिनी ने कभी आपको अपनी मां से कम नहीं समझा है। आपके स्तनों से हमने दूध पिया है धाय मां। आपका स्थान हमारे जीवन में मां का है।

ये सुनकर रांझा भावुक हो जाती है और कहती भरभरती आवाज मैं कहती है

धन्य हो गई मैं, जो आपने इस दासी को इतना ऊंचा स्थान दिया राजन। राजमाता देवकी ने इतने अच्छे संस्कार दिए है आप दोनो को। मैने भी आपको पुत्र ही समझा है और कभी मैने आपमे और कालू में अंतर नहीं किया है।

तभी राजा विक्रम झुक कर रांझा के पैर छू लेते हैं जिससे रांझा आह्लादित हो जाती है और राजा विक्रम को तुरन्त उठा कर गले से लगा लेती है जिसे राजा बिक्रम अपने शरीर से चिपका लेते हैं। रांझा को विक्रम की बाहों में अत्यंत आंनद आ रहा था। फिर वह विक्रम के माथे को चूम कर नजर उतार लेती है।

अब राजा विक्रम फिर अपनेनकक्ष में आते हैं और बाकी तैयारी कर के राजमाता देवकी के कक्ष में जाते है जहां पूर्व से ही नंदिनी उपस्थित रहती है। दोनो मां बेटी भी बारात के लिए तैयार हो चुकी थी। दोनों अप्सरा सी सुंदर लग रही थी तो राजा विक्रम भी देवता तुल्य लग रहे थे। फिर राजा विक्रम राजमाता देवकी के चरण छू कर आशीर्वाद लेते हैं तो देवकी उसे ढेर सारा आशीर्वाद देती है और उसे उठा कर गले लगा लेती है। फिर विक्रम अपनी बहन नंदिनी के पैर भी छूते हैं तो वो भी उसे ढेर सारा आशीर्वाद देती है और उसे सीने से लगा लेती है और कहती है
मेरी सौतन लाने की बधाई,,
और हस देती है
तभी देवकी हाथ बढ़ा कर विक्रम के धोती में छिपे लिंग को मुट्ठी में पकड़ लेती है और कहती है
रत्ना को अपने इस मोटे लिंग से खुश कर देना पुत्र

और फिर सभी हस देते हैं और बारात के लिए निकल पड़ते हैं,,,,,,

इधर जब राजा विक्रम रथ पे अपनी मां राजमाता देवकी और बहन नंदिनी के साथ राजा माधो सिंह के राज महल के द्वार पर पहुंचते हैं तो सबको आंखे इस परिवार की खूबसूरती देख कर चौंधिया जाती है। ऐसा लग रहा था कि मानो देवता अप्सराओं के साथ धरती पर उतर आए हैं। आपस मे लोग बात करने लगते हैं कि राजा माधो सिंह ने अपनी पुत्री रत्ना का विवाह बहुत ही अच्छे राज घराने में किया है।

वधु पक्ष के सभी लोग बाहर आकर वर पक्ष का स्वागत करते हैं । राजा बिक्रम को उनकी मां और बहन तथा रांझा कालू के साथ अंदर ले जाया जाता है। वर की नजर उतारने रत्ना की मां आती हैं तो राजा विक्रम को देख कर उनका मुंह खुला का खुला रह जाता है । वो सोचती है कि क्या कोई पुरुष इतना भी आकर्षक हो सकता है और मन ही मन वह आहें भरने लगती है। उसके स्तन तन जाते हैं और योनि गीली हो जाती है। फिर उसे अपनी पुत्री रत्ना की किस्मत पर फक्र होता है जो उसे इतना देवता तुल्य पति मिला है।

इधर रत्ना भी आज दुल्हन के जोड़े में अप्सरा लग रही थी। उसे उसकी सखियां छेड़े जा रही थी की तुम तो इतनी सुन्दर लग रही हो की राजा विक्रम तो तुम्हें शादी के मण्डप में ही सम्भोग को आतुर हो जायेंगे। इस पर रत्ना सबको आंखे दिखाती है। और हुआ भी यूं ही।

शादी के मंडप में जब रत्ना को लाया गया तब राजा विक्रम रत्ना की खूबसूरती से बांध गए और सोचने लगे की मेरे घर में सभी औरतें कितनी सुन्दर है। तभी रांझा को विक्रम के समीप बैठाया गया तो रत्ना ने हल्की सी तिरछी नजरों से राजा विक्रम को देखा तो उनके तेज के आगे वह मूर्छित सी होने लगी, उसने सोचा देवता सा तेज है आज राजा विक्रम पर और वहीं पर उसके स्तन तन जाते हैं। सोचती है मैं स्वयं इसी मण्डप में विक्रम से सम्भोग कर लूं।
दोनों घरानों के स्त्री पुरुष में केवल वासना के विचार ही चल रहे थे और यह किसी प्रकार से गलत भी नहीं है। फिर वर पक्ष अपने आभूषण वधु को उपहार में देते हैं तब देवकी कहती है
मंगलसूत्र तो लगता है अतिथिशाला में ही छूट गई है, रांझा तू आभूषण ठीक से नहीं रखती है ।

नही, राजमाता मैंने तो रखा था ठीक से।

तभी नंदिनी कहती है

माते , मैने वह मंगलसूत्र आईने के सामने रखा था, हो सकता है वही छूट गया हो।

अच्छा, लेकिन अब तो मंगलसूत्र ले आना होगा।

ठीक है, देवकी, मै जाकर ले आती हूं, तू परेशान ना हो,,,रांझा ने कहा और वह जाने लगती है।

तभी कालू कहता है रुको मां, मैं घोड़े से चलता हूं, जल्दी पहुंच जायेंगे

फिर कालू अपने घोड़े पे रांझा को बैठा कर अतितिःशाला की ओर चल देता है।
घोड़े पे रांझा आगे बैठी होती है कालू की गोद में, जिससे कालू का लिंग खड़ा हो जाता है, तब रांझा कहती हैं

क्यों पुत्र किसकी याद में अपना लिंग खड़ा किया है तुमने

किसी की याद में नहीं माते, जब आप मेरी गोद में हैं तब मैं किसे सोच कर अपना लौड़ा खड़ा कर सकता हू।

इस पर रांझा उसे एक मुक्का मारती है और कहती है

जब देखो तब मेरे पीछे पड़ा रहता है, मां हूं तेरी मैं समझा।

मां हो तभी तो पीछे पड़ा रहता हूं

इसी तरह बात करते करते दोनो अतिथिशाला पहुंच जाते है और देवकी के कक्ष में मंगलसूत्र पा कर निश्चिंत हो जाते हैं। उस समय अतिथिशाला में कोई नहीं रहता है, तब रत्ना को शरारत सूझी और उसने कालू का लुंड पकड़ कर कहा

रत्ना कैसी लगी तुम्हें पुत्र।

अच्छी लगी माते। बहुत सुंदर। लेकिन मुझे तेरे सामने कोई अच्छी नहीं लगती।

और ऐसा बोल कर कालू अपनी मां के स्तन सहला देता है।

तब रांझा कहती है

इतना प्यार करते हो मुझे। मै धन्य हो गई पुत्र

और ऐसा कह कर उसे गले लगा लेती है और मुख पर चुम्बन जड़ देती है
फिर रांझा को याद आता है कि मंगलसूत्र लेकर जल्दी चलना है तो वह फटाफट चलने को कहती हैं
फिर विवाह शांतिपूर्वक संपन्न हुआ जब राजा विक्रम ने रत्ना की मांग मैं सिन्दूर डाला
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
राजकुमारी रत्ना की चुदाई धमाकेदार होनी चाहिए तो मजा आ जायेगा
 
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Update 25

विवाह संपन्न होते होते सूर्योदय का समय हो गया था, आखिर वैदिक विधि विधान से विवाह जो हुआ था, जिसमे राज्य के राज पुरोहित और प्रकाण्ड विद्वान जो विवाह कराने आए थे । विवाह के उपरान्त राजा विक्रम अपनी नवविवाहिता पत्नी रत्ना को विदा करा कर वापस अपने राज्य आ जाते हैं। अब राजकुमारी रत्ना राजकुमारी से रानी बन चुकी थी रानी रत्ना।

यहां राजमहल में सभी रानी रत्ना का स्वागत करते हैं। राज कक्ष में राजा विक्रम, रानी रत्ना के साथ सिघासन पे विराजमान होते हैं। इनके एक तरफ राजमाता देवकी , तो दूसरी तरफ राजकुमारी नंदिनी बैठी है । राजा विक्रम सभी राज दरबारियों से रानी रत्ना का परिचय करवाते हैं। सबसे पहले राजपुरोहित से परिचय करवाया जाता है, तो रत्ना आगे बढ़ कर रत्ना को सौभाग्यवती भव, पुत्रवती भव का आशीर्वाद देते हैं और कहते हैं,,

राजन, रानी रत्ना राजवंश को आगे बढ़ाने वाली और विपरीत परिस्थितियों में भी वंश को संभालने वाली सौभाग्यवती स्त्री हैं। इनका स्वागत है।

इस पर राजा विक्रम मुस्कुराते है और रत्ना का चेहरा थोड़े शर्म से लाल हो जाता है।
फिर महामंत्री, सेनापति, कोषाध्यक्ष का परिचय रानी रत्ना से राजा विक्रम कराते हैं। रत्ना सभी दरबारियों का अभिवादन स्वीकार करती है और कहती है

मै आप सभी को विश्वास दिलाती हूं कि इस राज्य के विकास और उन्नत्ति के लिए जो कुछ भी करना होगा मैं करूंगी।
सभी राज दरबारियों के चले जाने के बाद राजा विक्रम रांझा का परिचय कराते हैं और कहते है

और ये है हमारी धाय मां रांझा जिन्होंने हमे पाला पोषा है

ये सुन कर रत्ना आगे बढ़ कर रांझा के पैर छूती है तो रांझा उसके हाथ पकड़ लेती है और कहती है

ये क्या कर रही हैं रानी। मै तो आप सबों की दासी हूं और आप मेरे पैर छू कर मुझे पाप का भागी बना रही हैं।

तब रत्ना कहती है

धाय मां का स्थान तो मां के समान ही होता है धाय मां !! आप मेरे पति की धाय मां हैं तो मेरी भी धाय मां हैं और आपके आशीर्वाद लेना मेरा अधिकार है जिसे आप नही छिन सकती।

और ये कह कर रत्ना रांझा के पैर छू लेती है , जिस पर रांझा उसे खूब ढेर सारा आशीर्वाद देती है और कहती है

आ हा हा हा, देवकी देखो इसे कहते हैं संस्कार। जो संस्कार तुमने अपनी संतानों को दिए वही संस्कार नई पुत्रवधू के भी है। पुत्रवती भव, सौभाग्यवती भव , कुलवर्धक भव पुत्रवधू ।

और ऐसा कह कर रांझा उसे गले लगा लेती है। तब राजा विक्रम कहते हैं

और ये है हमारे उपसेनापति कालू, धाय मां के पुत्र और हमारे बचपन के सखा।।

तब कालू आगे बढ़ कर रानी रत्ना के पैर छू लेता है और उसे एक पुस्तक उपहार में देता है जिसे रानी रत्ना सहर्ष स्वीकार करती है और उसे ढेर सारा आशीर्वाद देती है।

फिर कालू सबसे आज्ञा लेता है और चला जाता है। तब नंदिनी कहती है अब रात्रि के भोजन ग्रहण करने का समय हो गया है, आइए भोजन करें। भोजनोपरान्त देवकी कहती है
अब मैं थक गई हूं, अपने कक्ष में सोने जा रही हूं

और ये कह कर भोजन कक्ष से चली जाती है। तब नंदिनी कहती है

आओ भाभी, तुम्हें तुम्हारे कक्ष में ले चले, क्यों धाय मां
भ्राता विक्रम, आप थोड़ी देर बाद शयन कक्ष में आइएगा

और ऐसा कह कर रत्ना को लेकर शयन कक्ष की ओर चली जाती है।
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
शादी के पश्चात आशिर्वाद देते कहे गये राजपुरोहित के शब्द आगे आने वाले प्रसंग के बारे में बहुत कुछ कह गये
खैर देखते हैं राजा विक्रम और राणी रत्ना की सुहागरात कैसे धमाकेदार होती है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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