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Incest राजकुमार देव और रानी माँ रत्ना देवी

Ravi2019

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Update 25

विवाह संपन्न होते होते सूर्योदय का समय हो गया था, आखिर वैदिक विधि विधान से विवाह जो हुआ था, जिसमे राज्य के राज पुरोहित और प्रकाण्ड विद्वान जो विवाह कराने आए थे । विवाह के उपरान्त राजा विक्रम अपनी नवविवाहिता पत्नी रत्ना को विदा करा कर वापस अपने राज्य आ जाते हैं। अब राजकुमारी रत्ना राजकुमारी से रानी बन चुकी थी रानी रत्ना।

यहां राजमहल में सभी रानी रत्ना का स्वागत करते हैं। राज कक्ष में राजा विक्रम, रानी रत्ना के साथ सिघासन पे विराजमान होते हैं। इनके एक तरफ राजमाता देवकी , तो दूसरी तरफ राजकुमारी नंदिनी बैठी है । राजा विक्रम सभी राज दरबारियों से रानी रत्ना का परिचय करवाते हैं। सबसे पहले राजपुरोहित से परिचय करवाया जाता है, तो रत्ना आगे बढ़ कर रत्ना को सौभाग्यवती भव, पुत्रवती भव का आशीर्वाद देते हैं और कहते हैं,,

राजन, रानी रत्ना राजवंश को आगे बढ़ाने वाली और विपरीत परिस्थितियों में भी वंश को संभालने वाली सौभाग्यवती स्त्री हैं। इनका स्वागत है।

इस पर राजा विक्रम मुस्कुराते है और रत्ना का चेहरा थोड़े शर्म से लाल हो जाता है।
फिर महामंत्री, सेनापति, कोषाध्यक्ष का परिचय रानी रत्ना से राजा विक्रम कराते हैं। रत्ना सभी दरबारियों का अभिवादन स्वीकार करती है और कहती है

मै आप सभी को विश्वास दिलाती हूं कि इस राज्य के विकास और उन्नत्ति के लिए जो कुछ भी करना होगा मैं करूंगी।
सभी राज दरबारियों के चले जाने के बाद राजा विक्रम रांझा का परिचय कराते हैं और कहते है

और ये है हमारी धाय मां रांझा जिन्होंने हमे पाला पोषा है

ये सुन कर रत्ना आगे बढ़ कर रांझा के पैर छूती है तो रांझा उसके हाथ पकड़ लेती है और कहती है

ये क्या कर रही हैं रानी। मै तो आप सबों की दासी हूं और आप मेरे पैर छू कर मुझे पाप का भागी बना रही हैं।

तब रत्ना कहती है

धाय मां का स्थान तो मां के समान ही होता है धाय मां !! आप मेरे पति की धाय मां हैं तो मेरी भी धाय मां हैं और आपके आशीर्वाद लेना मेरा अधिकार है जिसे आप नही छिन सकती।

और ये कह कर रत्ना रांझा के पैर छू लेती है , जिस पर रांझा उसे खूब ढेर सारा आशीर्वाद देती है और कहती है

आ हा हा हा, देवकी देखो इसे कहते हैं संस्कार। जो संस्कार तुमने अपनी संतानों को दिए वही संस्कार नई पुत्रवधू के भी है। पुत्रवती भव, सौभाग्यवती भव , कुलवर्धक भव पुत्रवधू ।

और ऐसा कह कर रांझा उसे गले लगा लेती है। तब राजा विक्रम कहते हैं

और ये है हमारे उपसेनापति कालू, धाय मां के पुत्र और हमारे बचपन के सखा।।

तब कालू आगे बढ़ कर रानी रत्ना के पैर छू लेता है और उसे एक पुस्तक उपहार में देता है जिसे रानी रत्ना सहर्ष स्वीकार करती है और उसे ढेर सारा आशीर्वाद देती है।

फिर कालू सबसे आज्ञा लेता है और चला जाता है। तब नंदिनी कहती है अब रात्रि के भोजन ग्रहण करने का समय हो गया है, आइए भोजन करें। भोजनोपरान्त देवकी कहती है
अब मैं थक गई हूं, अपने कक्ष में सोने जा रही हूं

और ये कह कर भोजन कक्ष से चली जाती है। तब नंदिनी कहती है

आओ भाभी, तुम्हें तुम्हारे कक्ष में ले चले, क्यों धाय मां
भ्राता विक्रम, आप थोड़ी देर बाद शयन कक्ष में आइएगा

और ऐसा कह कर रत्ना को लेकर शयन कक्ष की ओर चली जाती है।
 

Sanju@

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Update 20
अब आगे

राजा विक्रम अपनी बहन की कमर में हीरो का बड़ा हार पहना कर बोलते हैं
ये रक्षा बंधन का उपहार तुम्हारी योनी का ही है, देखो तो कितनी सुंदर लग रही है तुम्हारी योनि।
इस पर नंदिनी शर्मा जाती है और बोलती है
आपने मेरी योनि के लिए उपहार लाया है और मेरा क्या।
वो भी तुम्हारा ही है दीदी ।
इस पर नंदिनी भी मुस्कुरा देती है।
तब राजा विक्रम कहते हैं
तुम जानती हो बहन रक्षाबंधन मेरा पसंदीदा त्यौहार है, जिसमें मैं अपनी बहन को प्यार कर सकता हु

मैं तो हमेशा से तुम्हारी हूं विक्रम और हमेशा रहूंगी, लेकिन एक बात का डर है, अब 2 माह में ही तुम्हारी शादी हो जायेगी, फिर मैं तो प्यासी ही रह जाऊंगी

और ऐसा बोलकर नंदिनी उदास हो जाती है। तब राजा विक्रम बोलते हैं

मेरे रहते मेरी बहन उदास हो ऐसा नहीं हो सकता। मेरे उपर सबसे पहला हक तुम्हारा ही है। मुझे जीवन का पहला यौन सुख तुमने ही दिया है। इसलिए मैं सबसे आगे तुम्हे ही रखता हूं मेरी बहन। तुम्हारे लिए मेरा लिंग हमेशा खड़ा ही रहता है।

ऐसा कहते हुए विक्रम आगे बढ़ते हैं और नंदिनी का हाथ पकड़ कर अपने लिंग पर रख देते है जिससे वो गन गना जाती है और उसे सहलाने लगती है और बोलती है

विक्रम तुम वादा करो की तुम जिंदगी भर मुझे प्यार करते रहोगे, ऐसे ही जैसे अभी कर रहे हो। शादी के बाद मुझे भूलोगे तो नहीं।

नही पगली, मैं आपको भूल सकता हूं क्या। तुम्हें भूलना मेरे लिए मरने के समान होगा बहन।

इस पर नंदिनी राजा विक्रम के मुंह पर अपना हाथ रख देती है

ऐसा न कहो भ्राते, तुम जानते हो की मैं तुम्हारे बिना मर जाऊंगी। ऐसी बाते ना किया करो।

और ये कह कर नंदिनी विक्रम को गले लगा लेती हैं और विक्रम उसे गोद में उठा कर शैय्या पर ले जाते हैं और उसकी योनि को चूसने लगते हैं जिससे नंदिनी मदहोश होने लगती है और कहती है

चाटो भाई चाटो, अपनी बहन की योनि चाटो, उसे खुश कर दी। आह कितना मजा आ रहा है।

इधर राजा विक्रम नंदिनी की योनि के फांकों को थोड़ा सा फैला देते हैं और जीभ को अंदर डाल डाल कर उसकी योनि चाटने लगते हैं जिससे नंदिनी की योनि पानी छोड़ देती है जिसे राजा विक्रम नंदिनी की योनि रस पी जाते हैं और कहते हैं

बहन आपकी योनि रस का स्वाद तो अमृत तुल्य है, कितना अद्भुत स्वाद है इसका !!!

तभी नंदिनी कामुक होकर पीछे घूमकर विक्रम के होंठ चूस लेती है ।

विक्रम फिर नंदिनी को उल्टा लिटा कर अपनी जीभ से पूरे शरीर को चाटने लगते हैं और अपनी एक उंगली नंदिनी के नितंब में डाल देते हैं जिससे नंदिनी चिहुक जाती है। और आहें भरने लगती है। कहती है

नहीं भाई, उस सुराख में उंगली मत डालो, अजीब सा लगता है।

तभी राजा नंदिनी के नितंब के भूरे छेद को जीभ से चाटने लगते हैं। नंदिनी चिल्लाती है

नही ये गंदी जगह है विक्रम, उसे मत चाटो।

लेकिन विक्रम उसकी गांड़ जीभ से चोदते रहते है
जिससे अब नंदिनी को भी मजा आने लगता है।
नंदिनी कहती है

आह आज रक्षाबंधन के दिन तो मजा आ गया भाई और चाटो मेरी गान्ड

फिर विक्रम अपना एक हाथ आगे ले जाकर अपनी बहन की चूची को मसलने लगते हैं जिससे नंदिनी मदहोश होने लगती है और अपना हाथ पीछे ले जाकर विक्रम के लंद को पकड़ लेती है और सहलाते हुए कहती है

अब और मत तड़पाओ अपनी बहन को, चोद दे भाई, अब रहा नहीं जा रहा

इस पर विक्रम नंदिनी से चिपक जाते हैं और नंदिनी को घोड़ी बना कर पीछे से अपना लिंग अपनी बहन की योनि में डाल देते हैं। नंदिनी पूरी गरम थी और इसीलिए योनि एकदम चिकनी हो गई थी, सो लिंग सरसराते हुए नंदिनी की योनि में घुस कर उसकी बच्चेदानी में समा गया।
नंदिनी के आनंद की कोई सीमा नही थी और कहती हैं

चोदो विक्रम चोदो, तुम्हारा लिंग मेरी बच्चेदानी से टकरा रहा है, बहुत मजा आ रहा है, लगता है इस रक्षाबंधन मैं गर्भवती ही हो जाऊंगी। विक्रम मुझे अपने बच्चे की मां बना दे भाई। आह आह और चोद भाई और।

लो दीदी, लो मेरा लैंड अपनी योनि मैं। हां मैं तुम्हे अपने बच्चे की मां बनाऊंगा। तू मेरी है बहन भले ही हो, भले ही मेरी शादी हो जाए, पर मैं तुम्हे चोदता रहूंगा।

और विक्रम धक्के पर धक्के लगाए जा रहा था जिससे नंदिनी मस्त हो गई थी और धीरे धीरे उसका शरीर अकड़ने लगा और वह चिलाती हुई झड़ गई

लेकिन राजा विक्रम अभी नही झड़े थे । उन्होंने कहा अभी मेरा नही हुआ है बहन। और ऐसा कहकर अपने लंद का सुपाड़ा नंदिनी के गाड़ की भूरी सुराख में डाल देते है तो नंदिनी चिहुंक जाती है और बोलती है

नही, भाई नहीं, वहा मत डालो , वो सुराख पतली है और तुम्हारा लिंग मोटा। नही घुस पाएगा। निकालो इसे।

कुछ नही होगा दीदी। थोड़ा दर्द होगा फिर मजा आयेगा । एक बार करवा के तो देखो।

और घी लगाकर लिंग नंदिनी की सुराख में अपना मोटा लन्ड डाल देता है जिससे नंदिनी बिलबिला जाती है और कहती हैं

निकाल अपना लौड़ा बहनचोद , निकाल । मैं मर ही जाऊंगी।
लेकिन विक्रम ने उसकी एक न सुनी और अपना लौड़ा नंदिनी की गांड़ में अंदर बाहर करने लगता है।
राजा विक्रम अपने हाथ आगे ले जाकर नंदनी की चूची को मसलने लगते हैं, जिससे उसे थोड़ा मजा आने लगे। वह सी सी करने लगती हैं।

राजा एक तरफ नंदिनी के नितम्ब को अपने मोटे लौड़े से चोद रहे थे उधर उसके स्तन मसल रहे थे जिससे नंदिनी को भी मजा आने लगा था। लौड़ा फच फाच की आवाज़ निकालते हुए अंदर बाहर हो रहा था।

नंदिनी कहती हैं
बहुत मजा आ रहा है भाई , चोदो और चोदो मुझे।

मुझे भी बहुत मजा आ रहा है बहन। तुम्हारी गांड़ बड़ी कसी हुई है। आह आह ओह ओह,,,,मेरा भी निकलने वाला है दीदी।
आआह्ह्हह्ह आह्ह्ह्ह्हह,
और ये बोलते बोलते राजा विक्रम का शरीर भी अकड़ने लगा और झटके देते हुए अपना वीर्य अपनी बहन नंदिनी के गांड़ में डाल दिया और नंदिनी के शरीर पर ही निढाल हो गए । और धीरे धीरे उसकी गर्दन चूमने लगे और बोले
मजा आया दीदी

बहुत मजा आया भाई, मुझे पता ही भी नहीं था कि गांड़ चोदवाने में इतना मजा आता है।
और ऐसे ही बोलते बोलते दोनो भाई बहन एक दूसरे से चिपके पड़े रहते हैं
Welcome back
बेहतरीन अपडेट है राजा विक्रम ने अपनी बहन नंदिनी को राखी का बहुत ही शानदार उपहार दिया है
 
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Sanju@

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Update 21

अब आगे

दोनो भाई बहन इस तरह पूरे नंगे एक दूसरे की बाहों में समाए हुए चिपके रहते हैं। नंदिनी धीरे धीरे राजा विक्रम के बालों में अपनी उंगली फिराती रहती है और कुछ सोचती रहती है। तभी विक्रम पूछ पड़ते हैं

कैसा लगा आज का सम्भोग दीदी। तुम खुश तो हो न।

हा, विक्रम बहुत आनन्द आया आज। और एक बात कहूं,,,तुम रक्षाबंधन के दिन बहुत अच्छा चोदते हो, पूरे जोश में।

दीदी ये तुम्हारे द्वारा मेरे लिंग पर बंधे गए राखी का कमाल है। आज के दिन मैं तुम्हारी सील और इज्जत की रक्षा करने का वचन देता हूं और तुम्हें हमेशा खुश रखने का वचन देता हूं और कुंवारी बहन की इससे बड़ी खुशी की बात क्या हो सकती है की उसे रक्षबंधन के दिन यौन सुख प्राप्त हो। यह एक भाई का वचन है की तुम्हे कोई तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध नहीं चोद पाएगा, जब तक तुम उसे अनुमति ना दो।

अरे वाह रे, मेरा प्यारा सा छोटा भाई, कितना समझदार हो गया है, कितनी बड़ी बड़ी बातें कर रहा है। लेकिन मेरी खुशनसीबी है कि मुझे तुम जैसा भाई मिला जो मेरे सील की रक्षा करने को किसी हद तक जा सकता है।

और ये कह कर नंदिनी राजा विक्रम को अपनी आगोस में ले लेती है।

इधर राजमाता देवकी के कक्ष में राजा माधो सिंह के राज पुरोहित विवाह की तिथि निश्चित करने को आ पहुंचे थे। राजमाता दासियों को राजकुमारी नंदिनी को बुलाने को भेजती है जो उनके कक्ष में जाती हैं। उन्हें वहां न पाकर वे दरबार में जाती हैं। लेकिन नंदिनी वहां भी नहीं मिलती । तो दासियां वापस आकर राजमाता देवकी को बताती हैं कि नंदिनी उन्हें नहीं मिल पा रही है। राजमाता देवकी समझ जाती है की नंदिनी अवश्य अपने भाई के पास होगी। तो वह स्वयं नंदिनी को लाने राजा विक्रमंके कक्ष की ओर चल देती है ।

राजा बिक्रम अपने कक्ष में इसलिए निश्चित थे कि किसी को उनके कक्ष ने बिना उनकी आज्ञा के प्रवेश की अनुमति नहीं थी। लेकिन राजमाता देवकी आज उनके कक्ष में जा रही थी। द्वारपाल ने देवकी के कक्ष के मुख्य द्वार पर पहुंचते ही उन्हें आदर पूर्वक राज कक्ष के गलियारे के पास लाकर छोड़ दिया।
वहां से देवकी अकेले विक्रम के कक्ष की ओर चल देती है और जैसे ही वह राजा बिक्रम के कक्ष में प्रवेश करती है सामने शैय्या पर राजा विक्रम और नंदिनी को नंगे बदन एक दूसरे से चिपके देखती है और झेंप जाती है।

इधर राजा विक्रम और नंदिनी को कक्ष किसी के कदमों की आहट सुनाई पड़ती है तो उनकी तंद्रा टूट जाती है। दोनो हड़बड़ाहट में जैसे ही उठते हैं सामने राजमाता को देख कर ठंडी सांस लेते हैं। राजा विक्रम कहते हैं

ओह, अच्छा है, आप हैं माते, हम तो डर ही गए थे

ये कह कर दोनो भाई बहन नंगे अपनी माता के सामने खड़े हो जाते हैं । देवकी विक्रम के लंद पर वीर्य की बूंदे और नंदिनी के जननानंगों के आस पास सूखे वीर्य को देख कर समझ जाती है कि दोनो के बीच में जबरदस्त chudai हुई है।
तभी दोनों भाई बहन नंगे ही आगे बढ़ कर साथ में झुक कर अपनी माता देवकी के चरण स्पर्श करते हैं और नंदिनी कहती हैं

माते आज हम भाई बहनों का त्योहार है। हमें आशीर्वाद दे माते।

इस पर देवकी दोनों को उठाती है और राजा बिक्रम को कहती है
आयुष्यमान भव, यशस्वी भव, विश्वविजयी भव पुत्र।
और राजकुमारी नंदिनी को कहती है

दूधो नहाओ पूतो फलो पुत्री, ईश्वर जल्दी तुम्हारी कोख भरे पुत्री। तुम दोनों ऐसे ही खुश रहो मेरे बच्चो, प्रत्येक वर्ष ऐसे ही खुशी खुशी रक्षाबंधन मनाओ।

ये सुन कर नंदिनी शरमा जाती है और विक्रम की आंखों में देखती है और फिर देवकी के गले लग कर अपना मुंह छिपा लेती है। फिर देवकी विक्रम को भी अपने सीने से लगा लेती है ।

नंदिनी शर्म से अपनी आंखे बन्द की रहती है जिसे विक्रम देख लेते हैं और उन्हें मौका मिल जाता है। वे धीरे से एक चुम्बन देवकी के गालों पर दे देते हैं जिससे देवकी सिहर जाती है और राजा विक्रम को आंखे दिखा कर झूठा गुस्सा दिखाती है और दोनों को दबोच लेती है। फिर अचानक विक्रम देवकी के होंठों को चूम लेते हैं जिसे देवकी मना करती है।

लेकिन राजा विक्रम को ऐसे अपनी माता को परेशान करने में मजा आ रहा था और वो अपने एक हाथ से देवकी के चूचुक चोली के ऊपर से ही दबा देते हैं तथा देवकी का एक हाथ अपने लिंग पर रख देते हैं जिससे देवकी गरम होने लगती है।
नंदिनी को अब जोरो की पेशाब लगी थी तो वह अपनी माते से अलग होती है और कहती है

मुझे बहुत जोरों की पेशाब लगी है, मैं स्नानघर में पेशाब करने जा रही हूं और स्नान भी कर लूंगी। पूरे शरीर में चिपचिपा महसूस हो रहा है

और ये कह कर नंदिनी स्नानघर में चली जाती है
इधर नंदिनी के जाते ही राजा विक्रम कस कर अपनी माता देवकी को जकड़ लेते हैं और देवकी भी विक्रम को कस कर पकड़ लेती हैं और अपने वक्ष विक्रम के सीने पे रगड़ने लगती हैं और आहें भरने लगती हैं और राजा विक्रम के लिंग को मुट्ठी में पकड़ कर सहलाने लगती हैं। राजा विक्रम मदहोश हो जाते हैं। तभी स्नानघर से पानी गिरने की आवाज आती है जिससे दोनो का ध्यान भंग होता है और दोनों अलग हो जाते हैं।

अलग होते ही देवकी की नजर राजा विक्रम के खड़े लन्ड पर पड़ती है जिस पर राखी बंधी थी जिसे देख कर देवकी कहती है

अच्छा तो भाई बहन की राखी बंध गई। पुत्र तुम ऐसे ही अपनी बहन की सील की रक्षा करते रहना।

जी माते, जैसा आपका आदेश। वैसे माते यदि आप बुरा न माने तो कुछ पुछु आपसे।

पूछो पुत्र पूछो

माते आपने सहज ही हम भाई बहन का ये रिश्ता स्वीकार कर लिया। इसके लिए हम दोनो सदा आपके आभारी रहेंगे। किंतु आपने कल कहा था कि तुम्हारा लिंग तुम्हारे ननिहाल पर भी गया है। तो क्या माते आपने अपने घर में किसी का, मामा या मौसा, किसी का लिंग देखा है क्या।

राजा विक्रम एक सांस में ये कह जाते हैं। इस पर राजमाता देवकी का चेहरा लाल हो जाता है जिसे देख कर विक्रम कहते हैं।

कोई जबरदस्ती नहीं है माते, आप ना बताए तो कोई बात नहीं।

तब देवकी कहती है

आप बातों को बहुत पकड़ने लगे हैं पुत्र। आपका लिंग तो आपके पिताश्री के समान है

और ये कह कर मुस्कुराने लगती हैं

तब विक्रम कहते हैं

आप बातों को घुमा रही हैं माते, यदि आप ना बताना चाहे तो कोई बात नहीं।

ऐसी कोई बात नहीं है पुत्र। चलो आज रक्षाबंधन है इसलिए मैं बताती हूं। हां, मैने अपने छोटे भाई, तुम्हारे मामा का लिंग देखा है। सच कहूं तो तुम्हारा लिंग बहुत हद तक तुम्हारे मामा से मिलता है, वही गुलाबी सुपाड़ा, सुन्दर सा। आपके पिताश्री के लिंग का सुपाड़ा लाल रंग का था। लेकिन पुत्र जीवन में पहला लिंग मैने आपके पिताश्री का ही देखा है।

ये सुन कर राजा विक्रम रोमांचित हो उठते हैं और कहते हैं
इसका मतलब आपने पिताश्री से शादी होने के बाद अपने छोटे भाई का लिंग देखा था

हा पुत्र, बिल्कुल सही समझा आपने।

इधर काफ़ी विलम्ब होने पर राजपुरोहित रांझा से देवकी के बारे मे पूछते हैं। तब रांझा भी देवकी को खोजती हुई राजा विक्रम के कक्ष की ओर चल देती है और जैसे ही वह कक्ष में दाखिल होती है राजा विक्रम को अपनी मां के सामने लन्ड खड़ा किए देखती है जिस पर राखी बंधी थी। वह मुंहफट तो है ही, सो बोल पड़ती है
मन गई भाई बहन की राखी।

राजा विक्रम भी कोई काम नहीं थे। अपना लन्ड रांझा को दिखाते हुए बोले

हा धाय मां, मन गई हमारी राखी।

जिससे रांझा झेंप जाती है, लेकिन अपनी नजर विक्रम के लन्ड से भी हटा पाती है जिससे विक्रम के लिंग में तनाव आने लगता है।

ये देख कर देवकी मुस्कुराने लगती है और कहती हैं

क्यों रांझा, बहुत पसंद आया क्या तुम्हे मेरे पुत्र का लिंग।
इस पर रांझा झेंप जाती है लेकिन कहती है

राजन का लिंग इतना आकर्षक है कि नजरे ही नहीं हट रही,,,

इस पर देवकी कहती है

तो पकड़ ले ना इसका लिंग, नहीं तो मुझसे बातें करते करते परेशान करेगी

और झट से रांझा का हाथ पकड़ कर विक्रम के लन्ड पर रख देती है जिससे दोनो उत्तेजित महसूस करते हैं। तभी विक्रम आगे बढ़ कर देवकी का लहंगा उठाते हुए कहते हैं

धाय मां, उस दिन मैंने आपकी योनि हल्की हल्की देखी थी। आज रक्षाबंधन पर्व के अवसर पर अपनी योनि के दर्शन कराइए ना।

इस पर देवकी आगे बढ़ कर रांझा का घाघरा उठा देती है जिससे रांझा की योनि विक्रम के आंखों के सामने आ जाती है जिसे देख कर विक्रम के मुंह से निकल जाता है

सुन्दर, अति सुन्दर,,,तभी मैं कहूं कालू क्यो आपका दीवाना है

और ये कह कर राजा विक्रम रांझा की योनि को सहला देते हैं। और तभी स्नानघर से राजकुमारी नंदिनी के निकलने की आहट होती है तो रांझा विक्रम के लन्ड पर से अपना हाथ हटा लेती है और देवकी भी रांझा का घाघरा छोड़ देती है।
बहुत ही सुंदर लाजवाब और उत्तेजना से भरपूर मदमस्त अपडेट है
देवकी और रांझा भी राजा विक्रम के लन्ड की दीवानी हो गई है देखते हैं देवकी ने अपने भाई का लन्ड देखा है या उससे चुदाई भी करवाई है
 
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Sanju@

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Update 22

फिर नंदिनी स्नान घर से तैयार हो कर बाहर निकलती है और रांझा को भी देखती है जिसके सामने विक्रम नंगा खड़ा रहता है, तो नंदिनी थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहती है

विक्रम, चलो तुम मां के सामने तो नंगे हो तो कोई बात नही। लेकिन तुम धाय मां के सामने भी नंगे खड़े हो, तुम्हे शर्म नहीं आती।

इस पर देवकी कहती है

कोई बात नहीं पुत्री, रांझा भी इसकी मां की तरह ही है, इन्होंने विक्रम को अपने स्तन से दूध पिलाया है। जैसे कालू वैसे बिक्रम

और ये कह कर वो मंद मंद मुस्कुराने लगती है और फिर कहती है

हाय दईया, मैं तो भूल ही गई मैं क्यों आई थी,। रत्ना के यहां से राज पुरोहित आए है तिथि निश्चित करने के लिए और मैं तुम दोनों को बुलाने के लिए आई थी

और मैं तुम्हें,
ये कहकर रांझा हसने लगती है।

ठीक है मां, मैं भी तुरंत तैयार हो जाता हूं।

फिर राजा विक्रम भी फटाफट तैयार हो जाते हैं और अपनी प्रियतमे माता देवकी , बहन नंदिनी और धाय मां के साथ राजा माधो सिंह के राजपुरोहित से मिलने चल देते हैं। राजपुरोहित बहुत पहुंचे हुए ज्ञानी पुरुष थे जो सुक्ष्म दृष्टि से भविष्य देख लिया करते थे।

राजपुरोहित के पास पहुंच कर तीनों एक साथ राजपुरोहित के पैर छूते हैं तो राजपुरोहित कुछ चौंक जाते हैं, उनकी सूक्ष्म दृष्टि उन्हें कुछ बता रही थी, लेकिन वो ये जानते थे होनी तो होकर रहेगी । फिर वो थोड़ा मुस्कुराने लगते हैं और राजा विक्रम को विश्वविजयी भव का आशीर्वाद देते हैं और कहते हैं राजन आपन महानता की मूरत है, आप प्रजा और परिवार दोनों को बहुत प्यार करते हैं और उनका पूरा ख्याल रख कर सबको खुश रखते हैं।

फिर वो राजकुमारी नंदिनी को पुत्रवती भव का आशीर्वाद देते हैं जिससे नंदिनी थोड़ी चौंक जाती हैं और कहती है

बाबा, अभी तो मैं कुंवारी हूं, अभी आप पुत्रवती होने का आशीर्वाद क्यों दे रहे हैं।

इस पर राजपुरोहित मुस्कुराते हैं और कहते हैं पुत्र का तुम्हे भरपूर सुख मिलेगा पुत्री
फिर वो राजमाता देवकी को सदा सुहागन रहो का आशीर्वाद देते हैं
तो देवकी कहती है
बाबा आप मुझ विधवा को सुहागन होने का आशीर्वाद दे रहे हैं

तब बाबा कहते हैं पुत्री तुम्हें जीवन में सुहाग की कभी कोई नहीं होगी, तुम हमेशा खुश रहोगी। तुम जीवन में कभी विधवा का जीवन व्यतीत नहीं करोगी।

ये सुन कर देवकी सन्न रह जाती है, वो समझ जाती है कि बाबा क्या कहना चाहते हैं। तो वह कहती है

बाबा क्या हमसे कोई गलती हो रही है, अगर हां तो हमे बता दीजिए बाबा

तब राजपुरोहित कहते हैं

आपसे कोई गलती नही हो रही है राजमाता, आपके परिवार जैसा प्रेम कही कहीं ही देखने को मिलता है। प्यार तो प्यार होता है वो कभी गलत नहीं हो सकता। आप तो खुशनसीब हैं कि आपको इतना प्यार करने वाला पुत्र और पुत्री मिले हैं। मुझे बहुत खुशी है कि राजकुमारी रत्ना इस घर की वधु बनेगी। बहुत अच्छा संयोग बना है राजमाता।और अगले माह की पूर्णिमा की तिथि निश्चित तौर पर बहुत शुभ दिन है जिस दिन राजा विक्रम और रत्ना की शादी होगी।

जी बाबा वही तिथि सही रहेगी।
तब तक राजपुरोहित रांझा को देखते हैं तो रांझा तुरंत पैर छू लेती हैं जिसे राजपुरोहित खूब आशीर्वाद देते है

दूधो नहाओ पूतो फलों, पुत्रवती भव पुत्री, तुम्हें जिंदगी में कोई दुख नहीं है पुत्री और प्यार की तो तुम दरिया में हो। तुम्हारे जीवन में केवल प्यार ही प्यार है।

और फिर राजपुरोहित सगुण देकर वापस चले जाते हैं। इधर यहां सभी भौचक्के खड़े रहते हैं की ये तो बहुत पहुंचे हुए थे, सब कुछ देख लिया इन्होंने दिव्य दृष्टि से। तभी रांझा कहती है

जो भी कहो, बाबा बड़े खुश थे , हमलोग पे बहुत खुश थे, उन्होंने कहा की इस घर में प्यार की कोई कमी नहीं है
देवकी भी अंदर से शर्मा रही थी उसे जो सदा सुहागन का आशीर्वाद दिया था और वो इसका मतलब खूब समझ रही थी, अभी हाल ही में तो उसके पुत्र ने उसे सुहागन वाला सुख दिया है।
बहुत ही सुंदर लाजवाब और उत्तेजना से भरपूर मदमस्त अपडेट है राजपुरोहित ने अपनी सूक्ष्म दृष्टि सब देख लिया है लगता है राजा विक्रम के मजे होने वाले है
 
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