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Incest राजकुमार देव और रानी माँ रत्ना देवी

Lib am

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Update 21

अब आगे

दोनो भाई बहन इस तरह पूरे नंगे एक दूसरे की बाहों में समाए हुए चिपके रहते हैं। नंदिनी धीरे धीरे राजा विक्रम के बालों में अपनी उंगली फिराती रहती है और कुछ सोचती रहती है। तभी विक्रम पूछ पड़ते हैं

कैसा लगा आज का सम्भोग दीदी। तुम खुश तो हो न।

हा, विक्रम बहुत आनन्द आया आज। और एक बात कहूं,,,तुम रक्षाबंधन के दिन बहुत अच्छा चोदते हो, पूरे जोश में।

दीदी ये तुम्हारे द्वारा मेरे लिंग पर बंधे गए राखी का कमाल है। आज के दिन मैं तुम्हारी सील और इज्जत की रक्षा करने का वचन देता हूं और तुम्हें हमेशा खुश रखने का वचन देता हूं और कुंवारी बहन की इससे बड़ी खुशी की बात क्या हो सकती है की उसे रक्षबंधन के दिन यौन सुख प्राप्त हो। यह एक भाई का वचन है की तुम्हे कोई तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध नहीं चोद पाएगा, जब तक तुम उसे अनुमति ना दो।

अरे वाह रे, मेरा प्यारा सा छोटा भाई, कितना समझदार हो गया है, कितनी बड़ी बड़ी बातें कर रहा है। लेकिन मेरी खुशनसीबी है कि मुझे तुम जैसा भाई मिला जो मेरे सील की रक्षा करने को किसी हद तक जा सकता है।

और ये कह कर नंदिनी राजा विक्रम को अपनी आगोस में ले लेती है।

इधर राजमाता देवकी के कक्ष में राजा माधो सिंह के राज पुरोहित विवाह की तिथि निश्चित करने को आ पहुंचे थे। राजमाता दासियों को राजकुमारी नंदिनी को बुलाने को भेजती है जो उनके कक्ष में जाती हैं। उन्हें वहां न पाकर वे दरबार में जाती हैं। लेकिन नंदिनी वहां भी नहीं मिलती । तो दासियां वापस आकर राजमाता देवकी को बताती हैं कि नंदिनी उन्हें नहीं मिल पा रही है। राजमाता देवकी समझ जाती है की नंदिनी अवश्य अपने भाई के पास होगी। तो वह स्वयं नंदिनी को लाने राजा विक्रमंके कक्ष की ओर चल देती है ।

राजा बिक्रम अपने कक्ष में इसलिए निश्चित थे कि किसी को उनके कक्ष ने बिना उनकी आज्ञा के प्रवेश की अनुमति नहीं थी। लेकिन राजमाता देवकी आज उनके कक्ष में जा रही थी। द्वारपाल ने देवकी के कक्ष के मुख्य द्वार पर पहुंचते ही उन्हें आदर पूर्वक राज कक्ष के गलियारे के पास लाकर छोड़ दिया।
वहां से देवकी अकेले विक्रम के कक्ष की ओर चल देती है और जैसे ही वह राजा बिक्रम के कक्ष में प्रवेश करती है सामने शैय्या पर राजा विक्रम और नंदिनी को नंगे बदन एक दूसरे से चिपके देखती है और झेंप जाती है।

इधर राजा विक्रम और नंदिनी को कक्ष किसी के कदमों की आहट सुनाई पड़ती है तो उनकी तंद्रा टूट जाती है। दोनो हड़बड़ाहट में जैसे ही उठते हैं सामने राजमाता को देख कर ठंडी सांस लेते हैं। राजा विक्रम कहते हैं

ओह, अच्छा है, आप हैं माते, हम तो डर ही गए थे

ये कह कर दोनो भाई बहन नंगे अपनी माता के सामने खड़े हो जाते हैं । देवकी विक्रम के लंद पर वीर्य की बूंदे और नंदिनी के जननानंगों के आस पास सूखे वीर्य को देख कर समझ जाती है कि दोनो के बीच में जबरदस्त chudai हुई है।
तभी दोनों भाई बहन नंगे ही आगे बढ़ कर साथ में झुक कर अपनी माता देवकी के चरण स्पर्श करते हैं और नंदिनी कहती हैं

माते आज हम भाई बहनों का त्योहार है। हमें आशीर्वाद दे माते।

इस पर देवकी दोनों को उठाती है और राजा बिक्रम को कहती है
आयुष्यमान भव, यशस्वी भव, विश्वविजयी भव पुत्र।
और राजकुमारी नंदिनी को कहती है

दूधो नहाओ पूतो फलो पुत्री, ईश्वर जल्दी तुम्हारी कोख भरे पुत्री। तुम दोनों ऐसे ही खुश रहो मेरे बच्चो, प्रत्येक वर्ष ऐसे ही खुशी खुशी रक्षाबंधन मनाओ।

ये सुन कर नंदिनी शरमा जाती है और विक्रम की आंखों में देखती है और फिर देवकी के गले लग कर अपना मुंह छिपा लेती है। फिर देवकी विक्रम को भी अपने सीने से लगा लेती है ।

नंदिनी शर्म से अपनी आंखे बन्द की रहती है जिसे विक्रम देख लेते हैं और उन्हें मौका मिल जाता है। वे धीरे से एक चुम्बन देवकी के गालों पर दे देते हैं जिससे देवकी सिहर जाती है और राजा विक्रम को आंखे दिखा कर झूठा गुस्सा दिखाती है और दोनों को दबोच लेती है। फिर अचानक विक्रम देवकी के होंठों को चूम लेते हैं जिसे देवकी मना करती है।

लेकिन राजा विक्रम को ऐसे अपनी माता को परेशान करने में मजा आ रहा था और वो अपने एक हाथ से देवकी के चूचुक चोली के ऊपर से ही दबा देते हैं तथा देवकी का एक हाथ अपने लिंग पर रख देते हैं जिससे देवकी गरम होने लगती है।
नंदिनी को अब जोरो की पेशाब लगी थी तो वह अपनी माते से अलग होती है और कहती है

मुझे बहुत जोरों की पेशाब लगी है, मैं स्नानघर में पेशाब करने जा रही हूं और स्नान भी कर लूंगी। पूरे शरीर में चिपचिपा महसूस हो रहा है

और ये कह कर नंदिनी स्नानघर में चली जाती है
इधर नंदिनी के जाते ही राजा विक्रम कस कर अपनी माता देवकी को जकड़ लेते हैं और देवकी भी विक्रम को कस कर पकड़ लेती हैं और अपने वक्ष विक्रम के सीने पे रगड़ने लगती हैं और आहें भरने लगती हैं और राजा विक्रम के लिंग को मुट्ठी में पकड़ कर सहलाने लगती हैं। राजा विक्रम मदहोश हो जाते हैं। तभी स्नानघर से पानी गिरने की आवाज आती है जिससे दोनो का ध्यान भंग होता है और दोनों अलग हो जाते हैं।

अलग होते ही देवकी की नजर राजा विक्रम के खड़े लन्ड पर पड़ती है जिस पर राखी बंधी थी जिसे देख कर देवकी कहती है

अच्छा तो भाई बहन की राखी बंध गई। पुत्र तुम ऐसे ही अपनी बहन की सील की रक्षा करते रहना।

जी माते, जैसा आपका आदेश। वैसे माते यदि आप बुरा न माने तो कुछ पुछु आपसे।

पूछो पुत्र पूछो

माते आपने सहज ही हम भाई बहन का ये रिश्ता स्वीकार कर लिया। इसके लिए हम दोनो सदा आपके आभारी रहेंगे। किंतु आपने कल कहा था कि तुम्हारा लिंग तुम्हारे ननिहाल पर भी गया है। तो क्या माते आपने अपने घर में किसी का, मामा या मौसा, किसी का लिंग देखा है क्या।

राजा विक्रम एक सांस में ये कह जाते हैं। इस पर राजमाता देवकी का चेहरा लाल हो जाता है जिसे देख कर विक्रम कहते हैं।

कोई जबरदस्ती नहीं है माते, आप ना बताए तो कोई बात नहीं।

तब देवकी कहती है

आप बातों को बहुत पकड़ने लगे हैं पुत्र। आपका लिंग तो आपके पिताश्री के समान है

और ये कह कर मुस्कुराने लगती हैं

तब विक्रम कहते हैं

आप बातों को घुमा रही हैं माते, यदि आप ना बताना चाहे तो कोई बात नहीं।

ऐसी कोई बात नहीं है पुत्र। चलो आज रक्षाबंधन है इसलिए मैं बताती हूं। हां, मैने अपने छोटे भाई, तुम्हारे मामा का लिंग देखा है। सच कहूं तो तुम्हारा लिंग बहुत हद तक तुम्हारे मामा से मिलता है, वही गुलाबी सुपाड़ा, सुन्दर सा। आपके पिताश्री के लिंग का सुपाड़ा लाल रंग का था। लेकिन पुत्र जीवन में पहला लिंग मैने आपके पिताश्री का ही देखा है।

ये सुन कर राजा विक्रम रोमांचित हो उठते हैं और कहते हैं
इसका मतलब आपने पिताश्री से शादी होने के बाद अपने छोटे भाई का लिंग देखा था

हा पुत्र, बिल्कुल सही समझा आपने।

इधर काफ़ी विलम्ब होने पर राजपुरोहित रांझा से देवकी के बारे मे पूछते हैं। तब रांझा भी देवकी को खोजती हुई राजा विक्रम के कक्ष की ओर चल देती है और जैसे ही वह कक्ष में दाखिल होती है राजा विक्रम को अपनी मां के सामने लन्ड खड़ा किए देखती है जिस पर राखी बंधी थी। वह मुंहफट तो है ही, सो बोल पड़ती है
मन गई भाई बहन की राखी।

राजा विक्रम भी कोई काम नहीं थे। अपना लन्ड रांझा को दिखाते हुए बोले

हा धाय मां, मन गई हमारी राखी।

जिससे रांझा झेंप जाती है, लेकिन अपनी नजर विक्रम के लन्ड से भी हटा पाती है जिससे विक्रम के लिंग में तनाव आने लगता है।

ये देख कर देवकी मुस्कुराने लगती है और कहती हैं

क्यों रांझा, बहुत पसंद आया क्या तुम्हे मेरे पुत्र का लिंग।
इस पर रांझा झेंप जाती है लेकिन कहती है

राजन का लिंग इतना आकर्षक है कि नजरे ही नहीं हट रही,,,

इस पर देवकी कहती है

तो पकड़ ले ना इसका लिंग, नहीं तो मुझसे बातें करते करते परेशान करेगी

और झट से रांझा का हाथ पकड़ कर विक्रम के लन्ड पर रख देती है जिससे दोनो उत्तेजित महसूस करते हैं। तभी विक्रम आगे बढ़ कर देवकी का लहंगा उठाते हुए कहते हैं

धाय मां, उस दिन मैंने आपकी योनि हल्की हल्की देखी थी। आज रक्षाबंधन पर्व के अवसर पर अपनी योनि के दर्शन कराइए ना।

इस पर देवकी आगे बढ़ कर रांझा का घाघरा उठा देती है जिससे रांझा की योनि विक्रम के आंखों के सामने आ जाती है जिसे देख कर विक्रम के मुंह से निकल जाता है

सुन्दर, अति सुन्दर,,,तभी मैं कहूं कालू क्यो आपका दीवाना है

और ये कह कर राजा विक्रम रांझा की योनि को सहला देते हैं। और तभी स्नानघर से राजकुमारी नंदिनी के निकलने की आहट होती है तो रांझा विक्रम के लन्ड पर से अपना हाथ हटा लेती है और देवकी भी रांझा का घाघरा छोड़ देती है।
बहुत हीं शानदार अपडेट
 

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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
राज पुरोहित इशारे इशारें में बहुत कुछ कह गये खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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Ravi2019

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Update 23

अब इधर शादी की तैयारियां जोरों से चलने लगती है। अब राजा विक्रम और रत्ना की शादी में ज्यादा समय नहीं था। राजा विक्रम ने स्वयं राजमाता देवकी और नंदिनी के लिए रत्नजड़ित घाघरा चोली पसन्द की थी। तो राजा विक्रम के वस्त्र देवकी और नंदिनी ने पसन्द किए थे। सभी बड़े खुश थे इस शादी को लेकर। राजा विक्रम ने एक लहंगा चोली रांझा के लिए भी पसन्द किया था।
रांझा को वो जैसे ही थोड़ा अकेले पाते हैं, उनके पीछे खड़े होकर आवाज देते हैं
धाय मैं

आवाज सुन कर रांझा पीछे मुड़ती है तो विक्रम को देखती है। उसके हाथ में लहंगा चोली होती है।

रांझा कहती हैं
जी राजन, आदेश करे

आदेश नहीं धाय मां, आपके लिए ये लहंगा चोली, शादी में पहनने के लिए। मैंने स्वयं पसन्द की है आपके लिए।

सच राजन, !! मै अवश्य पहनूंगी इसे।

जी धाय मां, लेकिन साथ में ये हीरे मोती की ये माला भी पहनना
और ये कह कर राजा विक्रम अपने गले से माला निकाल कर रांझा को देते हैं

तो रांझा कहती है
आप खुद ही पहना दे राजन

विक्रम मानो यही चाहता था और आगे बढ़ कर माला रांझा के गले में पहना देता है और रांझा मन ही मन आनन्दित हो कर कहती है
मै धन्य हो गई राजन, जो आपने अपने हाथ से मुझे माला पहनाया।
तब विक्रम कहते हैं
मै तो कब से आपके गले में माला डालना चाह रहा था, जिस दिन से मैंने कालू को आपके गले में मगलसूत्र बांधते देखा है मेरा मन भी आपको हार पहनाने को हो रहा था जो आज पूरी हुई

ये सुन कर रांझा शरमा जाती है
तो विक्रम उसकी ठुड्ढी पकड़ कर सिर ऊपर उठाते हैं और कहते हैं
आप बहुत सुन्दर है धाय मां।
और ये कह कर रांझा के होंठ चूम लेते हैं, तो रांझा शरमा कर भाग जाती है
इसी तरह की तैयारी राजकुमारी रत्ना के घर भी चल रही थी। वहा भी रेशमी वस्त्र, आभूषण पसंद किए जा रहे थे और वहां पर तैयारी भी विशिष्ठ होनी थी, आखिर विवाह तो वधु पक्ष के स्थान पर ही तो होना था ।

अब देखते ही देखते समय बीत गए और विवाह की तिथि भी आ गई। रत्ना के यहां राज महल बहुत सुंदर तरीके से सजाया गया था। लग रहा था कि स्वर्ग को धरती पे उतार दिया गया हो।

इधर राजा विक्रम की बारात अपने होनेवाले ससुराल पहुंच चुकी थी। बारात में राजमाता देवकी, राजकुमारी नंदिनी के साथ सभी मंत्री और राजदरबारी आए थे। और हां साथ में धाय मां रांझा और उसका पुत्र कालू भी थे जो राजपरिवार के साथ ही था।
राजा विक्रम 10 अश्वों वाले रथ पे अपनी मां और बहन के साथ सवार होकर पहुंचे थे। दोनों राज्यों में खुशी का माहौल था तथा दोनो राज्यों में राज उत्सव की घोषणा की गई थी। इधर राजा माधो सिंह ने राजकीय अतिथिशाला में बारात के रुकने की व्यवस्था की थी । बारात एक दिन पहले ही पहुंच चुकी थी।

राजा विक्रम , देवकी और नंदिनी के कक्ष सटे हुए थे। उस दिन शादी के कई रस्म थे जिसको पूरा होते होते काफी विलम्ब हो गया। फिर सभी ने भोजन ग्रहण किया और रात्रि मे अपने अपने कक्ष में विश्राम करने चले गए। लेकिन शैय्या पर तीनों में से किसी को भी नींद नहीं आ रही थी। फिर राजा विक्रम उठते हैं और ये निश्चिंत होने के बाद की बाहर कोई नहीं है नंदिनी के कक्ष की ओर चले जाते हैं।

नंदिनी के कक्ष में प्रवेश कर विक्रम पाते हैं कि नंदिनी जाग रही है तो विक्रम कहते हैं
आप जाग रही हैं दीदी

हां, तुम भी तो जाग रहे हो भाई, नंदिनी में मुस्कुरा कर कहा।

क्या करूं बहन, आपके बिना नींद ही नहीं आती।

अच्छा, तो अब तो तुम्हें रत्ना मिल जायेगी, फिर तो भूल ही जाओगे अपनी इस बहन को।

नही दीदी, ऐसा नही होगा, ये आप भी जानती हो। मै आपसे बहुत प्यार करता हूं , आप मेरा पहला प्यार हो।

ये सुन कर नंदिनी शर्मा जाती है और कहती हैं

शादी के बाद हम ये रिश्ता कैसे रखेंगे भाई, अगर रत्ना जान गई तो।

उसे कुछ पता नही चलेगा। हम दोनो राजकीय कार्य के दौरान भ्रमण में मौका निकाल लेंगे तथा राजमहल में भी।

ये सुन कर नंदिनी भावुक हो जाती है और विक्रम को गले लगा कर सुबकने लगती है और कहती है

इतना प्यार करते हो मुझसे भाई,,, मैं कितनी खुशनसीब हूं कि मुझे तुम जैसा प्रेम करने वाला भाई मिला है। मुझे तुझे रत्ना को सौंपने में जान निकली जा रही है। लेकिन तू मेरा कितना ख्याल रखता है।

फिर दोनो भाई बहन एक दूसरे से चिपक जाते हैं और एक दूसरे के होंठ चूसने लगते हैं । विक्रम धीरे धीरे नंदीनिंकी चोली खोल देते हैं और उसके निप्पल को अपनी उंगलियों से मसलने लगते हैं जिससे नंदिनी मस्त हो जाती हैं और आहें भरने लगती है और उत्तेजित होकर धोती के ऊपर से ही विक्रम के लन्ड को पकड़ लेती है और सहलाने लगती है। विक्रमंकी आह निकल जाती है और और वो होंठ चूसना बन्द कर के अलग हटते हैं और कहते हैं

बहन अपने स्तन से दूध पिलाओ न।

पी लो भाई मेरे स्तन से दूध, चूस लो इन्हें। ये तेरे प्यार के लिए तड़प रहे हैं।

विक्रम मूंह लगा कर नंदिनी के स्तन चूसने लगते हैं और दूसरे हाथ से उसकी दूसरी चूची मसलने लगते हैं। नंदिनी आहे भरते हुए कहती हैं

भाई, जैसे मां हमारे रिश्ते के बारे में जान गई , वैसे ही कहीं रत्ना ना जान जाए।

नही जानेगी बहन, अब हम दोनो और चौकन्ने रहेंगे।

लेकिन बुरा न मानो तो एक बात कहूं भाई।

हा बोलो

उस रात जब हम दोनो नंगे थे, मां तुम्हारे लिंग को बार बार देखे जा रही थी, उसकी नजर तुम्हारे लिंग से हट ही नहीं रही थी और रक्षाबंधन के दिन भी मैने देखा कि माते तुम्हारे लिंग को चोरी चोरी देखे जा रही थी । लगता हैं उन्हें तुम्हारा लिंग बहुत पसन्द आ गया है।

राजमाता देवकी के बारे मे नंदिनी द्वारा ऐसा कहने से विक्रम के लिंग में तनाव आने लगता है जिसे नंदिनी महसूस करती है और राजा विक्रम को थोडा सा अपने से अलग हटा कर विक्रम की आंखों में देखती है और कहती हैं

विक्रम .......

हां दीदी,

क्या मैं जो समझ रही हूं वो सही समझ रही हूं

क्या

यही की तुम्हारा लिंग मां का नाम लेते ही झटके मारने लगा

दीदी आप भी ना,,, ये कह कर राजा विक्रम मुस्कुरा देते हैं और नंदिनी के गले लग जाते हैं

इस पर नांदिनी मुस्कुराने लगती है और फिर उसकी आंखों में देखती है और कहती है
बदमाश कही के, वही मैं कहूं कि जनाब को मां के सामने नंगे खड़े होने में लाज क्यों नहीं आ रही थी और फिर विक्रम को गले लगा लेती है। इन बातों से नंदिनी भी गरम हो जाती है और राजा विक्रम की धोती खोल कर लन्ड बाहर निकाल लेती है और नीचे बैठ लौड़ा चूसने लगती है।
विक्रम को सिहरन होने लगती हैं और वो नंदिनी के मुंह को ही चोदने लगते हैं और फिर उसे उठाकर शैय्या पर ले जाते है और उसका लहंगा उतार कर नंगा कर देते हैं और अपने हाथ से उसकी योनि को सहलाने लगते हैं। फिर उसके पूरे शरीर को चूमते हुए योनि के पास आते हैं और योनि चाटने लगते हैं। योनि चाटने से नंदिनी गरम हो जाती है और कहती है

और जोर से चाटो भाई, और जोर से अपनी बहन की योनि को, ये तुम्हारे प्यार की प्यासी है और जीभ अंदर डालो भाई, और अंदर,। आह आह कितना मजा आ रहा है भाई।
फिर राजा विक्रम अपना लन्ड नंदिनी की योनि पर रख कर दबाव देते हैं और कहते हैं

ये ले बहन अपने भाई का प्यार और उसकी योनि की जबरदस्त चोदाई करने लगते हैं । पूरे कमरे में फेच फ़च की आवाज गूंजने लगती है और नंदिनी अपनी दोनों टांगे उठा कर चुदवाने लगती है और कहती है

और जोर से भाई और जोर से। ऐसे चोद की लगे की आज अंतिम रात है और जोर से भाई और जोर से चोद अपनी प्यारी बहन को,,, आह आह आह मजा आ रहा है मेरे बालम।।

आह आह ये ले दीदी, मजे ले मेरे लौड़े के, बहुत प्यारी योनि है तुम्हारी,,,,आह आह आह,,,,मुझे इसी योनि से एक बच्चा दे दो दीदी,,, आह आह

दे दूंगी तुम्हे बच्चा मेरे भाई,,,,मैं वादा करती हूं की मेरी पहली संतान तुम्हारे बीज से ही जनमेगी।,,आह आह,,मैं झड़ने वाली हूं भाई।

मै भी झड़ने वाला हूं बहन और फिर पानी निकलने के पहले विक्रम अपना लिंग बाहर निकाल कर नंदिनी के स्तनों पर स्खलित हो जाते है और ढेर सारा पानी गिरा देते हैं
इधर नंदनी भी झटके खा कर झड़ जाती है और उसके चादर पर योनि रस गिर जाती है और गीली हो जाती है।

इधर राजमाता देवकी को भी नींद नहीं आ रही थी और वह करवटें बदल रही थी। पता नही ये कैसी रात थी जो किसी को नींद ही नहीं आ रही थी। देवकी सोचती है कि चलो विक्रम से मिल आती हूं और विक्रम के कक्ष की ओर चल देती है । लेकिन जब वह विक्रम के कक्ष में पहुंचती है तो विक्रम को वहां न पाकर समझ जाती की एक भाई अपनी बहन से मिलने गया होगा और मन्द मन्द मुस्कुराने लगती है और कुछ सोचती हुई नंदिनी के कक्ष की ओर चल देती है

नंदिनी के कक्ष में प्रवेश कर देखती है की दोनों नंगे एक दूसरे से चिपके हुए हैं । किसी के आने की आहट से दोनो अलग हो जाते हैं तो देवकी को सामने देखते हैं

तब देवकी झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहती है ~ विक्रम कल तुम्हारी शादी है और तुम अपनी बहन के साथ सम्भोग में लीन हो,, तुम्हें अभी आराम करना चाहिए, कल काफी काम होगा,,, और तुम नंदिनी,,तुम तो बड़ी बहन हो, अपने छोटे भाई को समझा तो सकती हो,,,

तब विक्रम बोलते हैं,,,मैं ही खुद आया था माते,,, मुझे नींद नहीं आ रही थी।

देवकी मन में कहती है,,,,मैं क्या बताऊं पुत्र कि मुझे खुद भी नींद नही आ रही थी।

तब नंदिनी उदास होकर कहती है,,,आज प्यार कर लेने दो माते ,,,अब तो कल भाई की शादी हो ही जाएगी।

ये सुन कर देवकी का दिल भी बैठ जाता है और वह आगे बढ़ कर नंदिनी को गले लगा लेती है और कहती है

उदास ना हो मेरी प्यारी पुत्री,,, ये तो खुशी की बात है कि विक्रम की शादी हो रही है। तुम दोनो अपना संबंध छुपा कर बनाना ,, मुझे कोई आपत्ति नहीं है । अगर कोई कक्ष ना मिले तो मेरे कक्ष में आकर अपने भाई के साथ सम्भोग कर लेना,,मैं मना नहीं करूंगी,,,लेकिन तुम उदास ना हुआ कर पुत्री,,,तुम ही दोनो तो मेरी दुनिया हो

इस पर नंदिनी खुशी से झूम उठती है और देवकी को गले लगा लेती है तब देवकी नंदिनी को छेड़ते हुए कहती है

लेकिन ये अपनी जवानी को नंगी मत रखा कर,,,इस पर चुन्नी तो डाल दिया कर

और ऐसा बोल कर उसके निप्पल को मसल देती है

इसपर नंदिनी आहें भरती है तब इस पर सभी हसने लगते हैं। राजमाता देवकी फिर विक्रम की धोती समेट कर उठाती है और विक्रम को पहनने को देती है। विक्रम को अपने कमरे मे चलने को कहती है, इस पर राजा विक्रम अपने कक्ष की ओर चलते हैं। कक्ष के द्वार पे पहुंच कर देवकी कहती है
पुत्र विक्रम आप विश्राम करे , कल विवाह की व्यस्तता रहेगी

इस पर राजा विक्रम कुछ नहीं कहते और राजमाता देवकी का हाथ पकड़ कर कक्ष के अंदर खींच लेते हैं और कक्ष के अंदर ले जाकर राजमाता देवकी को गले से लगा लेते हैं ,,, इस पर देवकी भी अपने पुत्र से चिपक जाती है। कुछ देर माता पुत्र ऐसे ही एक दूसरे से चिपके रहते हैं । देवकी फिर थोडा अलग हटती है तो विक्रम कहते हैं

माते, आप अभी तक क्यो जग रही हैं,,वहां नंदिनी के कक्ष में तो हमें आप हड़का रही थी की इतनी रात तक हम लोग क्यों जगे है,,, अब आप मुझे बताएं कि आप अभी तक क्यो जगी है ।

ये सुन कर देवकी उदास हो जाती है और कहती है

ये सच है पुत्र की मुझे भी नींद नहीं आ रही थी ,, मन में सोच रही थी की अभी अभी मेरे सूने जीवन में तुम ख़ुशी की बहार बन कर आए थे,,, अभी तो मैने ठीक से अपने लल्ला को प्यार भी नहीं किया था कि तुम्हारी शादी तय हो गई ,,

इस पर राजा विक्रम कहते हैं,,, आप उदास ना हो माते,, मैं आपकी खुशी काम नहीं होने दूंगा,,,आपका स्थान कोई नहीं ले सकता है,,, शास्त्रों में भी कहा गया है कि माता को सुखी रखने वाला पुत्र पुण्य का भागी होता है,,, और इसीलिए माते मैं आपकी खुशी में कोई कमी नहीं आने दूंगा,,, समय समय पर मौका निकाल कर आपकी इस योनि को सम्भोग का आनंद दूंगा

और ये कहते हुए विक्रम देवकी की पवित्र योनि को घाघरे के ऊपर से दोबोच लेते हैं और और अपनी मां के होंठ चूसने लगते हैं । दोनों होंठ चूसने में मगन रहते हैं तो देवकी हाथ नीचे ले जाकर अपने पुत्र के लिंग को मुट्ठी मे भर लेती है और कहती है

आह पुत्र , कितना आकर्षक लिंग है तुम्हरा । मै तो तुम्हारी दीवानी हो गई हू और अब रत्ना इस लिंग की दीवानी हो जाएगी। रत्ना कितनी खुशनसीब है कि उसे तुम पति के रूप में मिले हो,,

विक्रम भी नीचे झुक कर देवकी की चूची चूसने में मगन हो जाते हैं और कहते हैं

कितना अदभुत स्वाद है माते,, आपके स्तन का,,,आपके स्तन के दूध का ही कमाल है माते कि मेरा लिंग इतना बलशाली है ।

राजा विक्रम फिर नंदिनी का घाघरा चोली निकल कर फेक देते हैं और धीरे धीरे नीचे आकर उसकी योनि को चूसने लगते हैं और चाटने लगते हैं ,, देवकी बहुत उत्तेजित हो गई रहती है तो उससे रहा नहीं जाता और वो कहती है

अपना मुख हटा लीजिए पुत्र मेरी योनि पर से,,मुझे पेशाब आ रही है बहुत तेज,,,
विक्रम कुछ नहीं बोलते हैं और देवकी की योनि चाटने की रफ्तार बढ़ा देते हैं जिससे देवकी कहती है

पुत्र, बर्दास्त करना मुस्किल हो रहा है,,,, ओह ओह ओह ओह,, मैं नही रोक पाऊंगी पुत्र अपनी पेशाब,,, कृपया रोक दे पुत्र,,

लेकिन राजा विक्रम नहीं रुकते हैं और योनि को चूसना चाटना जारी रखते हैं जिससे देवकी को बर्दास्त करना मुस्किल हो जता है और वह विक्रम के बाल पकड़ कर योनि से पेशाब की धार छोड़ते हुए कहती है

ओह आह आह और, पुत्र मेरा पेशाब निकल गया पुत्र
जिसे राजा विक्रम योनि पर मुंह लगा कर अपनी मां की योनि से निकला पेशाब गट गट कर के पी जाते हैं।

देवकी चिल्लाती है,,,पुत्र ना पियो पुत्र,, ये गंदी चीज है
लेकिन विक्रम पूरा पेशाब पी जाते हैं । ये देख कर देवकी विक्रम को उठाती है और गले लगा लेती है, फिर उसके होंठ चूसने लगती है और कहती है

मुझे पता ही नही था कि मेरा पुत्र मुझसे इतना प्यार करता है कि उसे मेरी पूरी पेशाब पीने में कोई हिचक नहीं हुई, मैं कितनी धन्य हूं,, तुमने पहले क्यो नही बोला कि तुम मुझसे प्यार करते हो, ,,मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं मेरे लाल,, मेरे लल्ला, मेरी जान।,,

तब राजा विक्रम देवकी को गोद में उठा कर शैय्या पर ले जाते हैं और कहते हैं
आप दोनो मां और पुत्री सुंदरता की मूरत हो,, दीदी बिलकुल आपकी छाया है माते,, वैसे ही उन्नत वक्ष गोरे स्तन और गुलाबी चुचुक ,,,मस्त अप्सरा लगती हैं आप दोनों,,,
देवकी बिक्रम का लिंग पकड़ कर कहती है
चोद दे पुत्र अपनी इस प्यासी मां को,, अपने तगड़े मोटे लौड़े को डाल दें मेरी योनि में,, ये आपके लौड़े के प्यार को तड़प रही है
और ये कह कर राजा विक्रम के लिंग को अपनी योनि से सटा देती है, तो राजा विक्रम कहते है

ये लें माते, अपने पुत्र का लिंग अपनी योनि में

और ये कहते हुए एक ही धक्के में अपना लिंग अपनी मां की योनि की जड़ तक पहुंचा देते हैं और chudai शुरु कर देते हैं और कहते है

देख माते, तुम्हारी योनि की जड़ तक जाकर बचेचेदानी को छू रहा है मेरा लिंग,, आह आह ओह, बहुत मजा आ रहा है माते,,, मैं धन्य हो गया हूं अपनी माता की योनि की सेवा करके

और जोर से करो पुत्र और जोर से,, मुझे आज तक किसी ने ऐसे नही चोदा,,,

क्यों मामा ने भी नही,,

नही, तेरे मामा ने भी नही पुत्र,, उफ्फ ये मैने क्या कह दिया,,, आह आह ओह ओह यूएफएफएफ,, और चोदो पुत्र अपनी मां को

ये सुन कर विक्रम का लिंग और तन गया की मां को उनके भाई ने भी चोदा है, उन्होंने पूछा

मामा के साथ कैसे संभोग किया माते

वो बड़ी लंबी कहानी है पुत्र, आराम से बताऊंगी, लेकिन तुम्हारा लिंग मेरे भाई की तरह ही है, लेकिन किसी को बताना मत की मैं अपने भाई से चूदी हूं,, और चोद बेटा और

अच्छा, माते घोड़ी बनिए , पीछे से चोदना है।
और ये कह कर देवकी को घोड़ी बना देता है और पीछे से देवकी को चोदने लगता है

आह आह बहुत मजा आ रहा है बेटा, इसमें तो तुम्हारा लिंग मेरी बच्चेदानी के अंदर घुस जा रहा है,, लगता है अभी ही आप मेरी कोख भर देंगे।
आह आह ओह आह माते,, आह आह मुझे बच्चा चाहिए माते,,ये लीजिए आह आह

ओह ओह और जोर से पुत्र मेरा निकलने वाला है आह आह
मेरा भी माते ,, आह ओह ओह, मेरा निकलने वाला है माते आह आह
और ये कहते कहते दोनो झड़ जाते हैं, विक्रम अपना लिंग निकलना चाहते थे लेकिन रांझा ने उनका लिंग जकड़ लिया और पूरा पानी अपनी योनि में ले लिया।

इस तरह दोनों मां बेटे थक कर एक दूसरे से चिपक गया और राजमाता देवकी वही राजा विक्रम के बगल में सो गई
 

Ravi2019

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Update 24

सुबह सुबह जब नींद खुलती है तो देवकी हड़बड़ाती हुई उठती है और स्वयं को अपने पुत्र के साथ नंगा पाती है। वह सबसे पहले तो ऐसे नंगे देख कर शरमा जाती है और फिर अपने पुत्र के गाल पर एक चुम्बन जड़ देती है जिससे विक्रम की भी नींद खुल जाती है और वह भी अपनी माता को फिर से नंगे बदन को चिपका लेते हैं और एक प्यारा सा चुम्बन मां के गाल पर दे देते हैं और कहते हैं

माते, मैं आपको अपनी मां के रूप में पाकर धन्य हो गया। मैंने पिछले जन्म में जरूर कोई पुण्य किया होगा जो इस जन्म में आप मेरी माता मिली। हमारा ये रिश्ता जन्म जन्मांतर का है माते और मै हर जनम में आपका ही पुत्र बनना चाहूंगा।
इस पर देवकी कहती है
मै धन्य हो गई पुत्र जो आपके जैसा प्यार करने वाला पुत्र मुझे मिला । अब आप जल्दी तैयार हो पुत्र। आपको शादी की अनेक शुभकामनाये।

और ये कह कर देवकी फटाफट अपना लहंगा चोली पहनती है और अपने कक्ष में रौशनी होने के पूर्व ही चले जाते हैं। फिर राजा विक्रम भी अपनी धोती पहन कर शैय्या पर लेटे रहते हैं और अपनी मां और बहन के साथ सम्भोग को सोच सोच कर मुस्कुरा रहे थे।

आज राजा विक्रम की शादी है तो सभी अपनी अपनी तैयारी में जुटे थे। राजा विक्रम ने जब आज वर के वस्त्र को पहना तो गजब की चमक छा गई थी। राजा विक्रम अनायास ही धाय मां रांझा के कक्ष की ओर चल पड़े। जैसे ही वह रांझा के कमरे में पहुंचे। रांझा उठ खड़ी हुई और उसने कहा

राजन, आप यहां, मुझे खबर करा दिया होता, मैं आ जाती।

कोई बात नही धाय मां। आज मेरा विवाह है और मै आपका आशीर्वाद लेने आया हूं।

आशीर्वाद, !!! ये क्या कह रहे हैं आप जो मुझ दासी से आशीर्वाद चाहते हैं।

धाय मां, मैने और नंदिनी ने कभी आपको अपनी मां से कम नहीं समझा है। आपके स्तनों से हमने दूध पिया है धाय मां। आपका स्थान हमारे जीवन में मां का है।

ये सुनकर रांझा भावुक हो जाती है और कहती भरभरती आवाज मैं कहती है

धन्य हो गई मैं, जो आपने इस दासी को इतना ऊंचा स्थान दिया राजन। राजमाता देवकी ने इतने अच्छे संस्कार दिए है आप दोनो को। मैने भी आपको पुत्र ही समझा है और कभी मैने आपमे और कालू में अंतर नहीं किया है।

तभी राजा विक्रम झुक कर रांझा के पैर छू लेते हैं जिससे रांझा आह्लादित हो जाती है और राजा विक्रम को तुरन्त उठा कर गले से लगा लेती है जिसे राजा बिक्रम अपने शरीर से चिपका लेते हैं। रांझा को विक्रम की बाहों में अत्यंत आंनद आ रहा था। फिर वह विक्रम के माथे को चूम कर नजर उतार लेती है।

अब राजा विक्रम फिर अपनेनकक्ष में आते हैं और बाकी तैयारी कर के राजमाता देवकी के कक्ष में जाते है जहां पूर्व से ही नंदिनी उपस्थित रहती है। दोनो मां बेटी भी बारात के लिए तैयार हो चुकी थी। दोनों अप्सरा सी सुंदर लग रही थी तो राजा विक्रम भी देवता तुल्य लग रहे थे। फिर राजा विक्रम राजमाता देवकी के चरण छू कर आशीर्वाद लेते हैं तो देवकी उसे ढेर सारा आशीर्वाद देती है और उसे उठा कर गले लगा लेती है। फिर विक्रम अपनी बहन नंदिनी के पैर भी छूते हैं तो वो भी उसे ढेर सारा आशीर्वाद देती है और उसे सीने से लगा लेती है और कहती है
मेरी सौतन लाने की बधाई,,
और हस देती है
तभी देवकी हाथ बढ़ा कर विक्रम के धोती में छिपे लिंग को मुट्ठी में पकड़ लेती है और कहती है
रत्ना को अपने इस मोटे लिंग से खुश कर देना पुत्र

और फिर सभी हस देते हैं और बारात के लिए निकल पड़ते हैं,,,,,,

इधर जब राजा विक्रम रथ पे अपनी मां राजमाता देवकी और बहन नंदिनी के साथ राजा माधो सिंह के राज महल के द्वार पर पहुंचते हैं तो सबको आंखे इस परिवार की खूबसूरती देख कर चौंधिया जाती है। ऐसा लग रहा था कि मानो देवता अप्सराओं के साथ धरती पर उतर आए हैं। आपस मे लोग बात करने लगते हैं कि राजा माधो सिंह ने अपनी पुत्री रत्ना का विवाह बहुत ही अच्छे राज घराने में किया है।

वधु पक्ष के सभी लोग बाहर आकर वर पक्ष का स्वागत करते हैं । राजा बिक्रम को उनकी मां और बहन तथा रांझा कालू के साथ अंदर ले जाया जाता है। वर की नजर उतारने रत्ना की मां आती हैं तो राजा विक्रम को देख कर उनका मुंह खुला का खुला रह जाता है । वो सोचती है कि क्या कोई पुरुष इतना भी आकर्षक हो सकता है और मन ही मन वह आहें भरने लगती है। उसके स्तन तन जाते हैं और योनि गीली हो जाती है। फिर उसे अपनी पुत्री रत्ना की किस्मत पर फक्र होता है जो उसे इतना देवता तुल्य पति मिला है।

इधर रत्ना भी आज दुल्हन के जोड़े में अप्सरा लग रही थी। उसे उसकी सखियां छेड़े जा रही थी की तुम तो इतनी सुन्दर लग रही हो की राजा विक्रम तो तुम्हें शादी के मण्डप में ही सम्भोग को आतुर हो जायेंगे। इस पर रत्ना सबको आंखे दिखाती है। और हुआ भी यूं ही।

शादी के मंडप में जब रत्ना को लाया गया तब राजा विक्रम रत्ना की खूबसूरती से बांध गए और सोचने लगे की मेरे घर में सभी औरतें कितनी सुन्दर है। तभी रांझा को विक्रम के समीप बैठाया गया तो रत्ना ने हल्की सी तिरछी नजरों से राजा विक्रम को देखा तो उनके तेज के आगे वह मूर्छित सी होने लगी, उसने सोचा देवता सा तेज है आज राजा विक्रम पर और वहीं पर उसके स्तन तन जाते हैं। सोचती है मैं स्वयं इसी मण्डप में विक्रम से सम्भोग कर लूं।
दोनों घरानों के स्त्री पुरुष में केवल वासना के विचार ही चल रहे थे और यह किसी प्रकार से गलत भी नहीं है। फिर वर पक्ष अपने आभूषण वधु को उपहार में देते हैं तब देवकी कहती है
मंगलसूत्र तो लगता है अतिथिशाला में ही छूट गई है, रांझा तू आभूषण ठीक से नहीं रखती है ।

नही, राजमाता मैंने तो रखा था ठीक से।

तभी नंदिनी कहती है

माते , मैने वह मंगलसूत्र आईने के सामने रखा था, हो सकता है वही छूट गया हो।

अच्छा, लेकिन अब तो मंगलसूत्र ले आना होगा।

ठीक है, देवकी, मै जाकर ले आती हूं, तू परेशान ना हो,,,रांझा ने कहा और वह जाने लगती है।

तभी कालू कहता है रुको मां, मैं घोड़े से चलता हूं, जल्दी पहुंच जायेंगे

फिर कालू अपने घोड़े पे रांझा को बैठा कर अतितिःशाला की ओर चल देता है।
घोड़े पे रांझा आगे बैठी होती है कालू की गोद में, जिससे कालू का लिंग खड़ा हो जाता है, तब रांझा कहती हैं

क्यों पुत्र किसकी याद में अपना लिंग खड़ा किया है तुमने

किसी की याद में नहीं माते, जब आप मेरी गोद में हैं तब मैं किसे सोच कर अपना लौड़ा खड़ा कर सकता हू।

इस पर रांझा उसे एक मुक्का मारती है और कहती है

जब देखो तब मेरे पीछे पड़ा रहता है, मां हूं तेरी मैं समझा।

मां हो तभी तो पीछे पड़ा रहता हूं

इसी तरह बात करते करते दोनो अतिथिशाला पहुंच जाते है और देवकी के कक्ष में मंगलसूत्र पा कर निश्चिंत हो जाते हैं। उस समय अतिथिशाला में कोई नहीं रहता है, तब रत्ना को शरारत सूझी और उसने कालू का लुंड पकड़ कर कहा

रत्ना कैसी लगी तुम्हें पुत्र।

अच्छी लगी माते। बहुत सुंदर। लेकिन मुझे तेरे सामने कोई अच्छी नहीं लगती।

और ऐसा बोल कर कालू अपनी मां के स्तन सहला देता है।

तब रांझा कहती है

इतना प्यार करते हो मुझे। मै धन्य हो गई पुत्र

और ऐसा कह कर उसे गले लगा लेती है और मुख पर चुम्बन जड़ देती है
फिर रांझा को याद आता है कि मंगलसूत्र लेकर जल्दी चलना है तो वह फटाफट चलने को कहती हैं
फिर विवाह शांतिपूर्वक संपन्न हुआ जब राजा विक्रम ने रत्ना की मांग मैं सिन्दूर डाला
 

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सुबह सुबह जब नींद खुलती है तो देवकी हड़बड़ाती हुई उठती है और स्वयं को अपने पुत्र के साथ नंगा पाती है। वह सबसे पहले तो ऐसे नंगे देख कर शरमा जाती है और फिर अपने पुत्र के गाल पर एक चुम्बन जड़ देती है जिससे विक्रम की भी नींद खुल जाती है और वह भी अपनी माता को फिर से नंगे बदन को चिपका लेते हैं और एक प्यारा सा चुम्बन मां के गाल पर दे देते हैं और कहते हैं

माते, मैं आपको अपनी मां के रूप में पाकर धन्य हो गया। मैंने पिछले जन्म में जरूर कोई पुण्य किया होगा जो इस जन्म में आप मेरी माता मिली। हमारा ये रिश्ता जन्म जन्मांतर का है माते और मै हर जनम में आपका ही पुत्र बनना चाहूंगा।
इस पर देवकी कहती है
मै धन्य हो गई पुत्र जो आपके जैसा प्यार करने वाला पुत्र मुझे मिला । अब आप जल्दी तैयार हो पुत्र। आपको शादी की अनेक शुभकामनाये।

और ये कह कर देवकी फटाफट अपना लहंगा चोली पहनती है और अपने कक्ष में रौशनी होने के पूर्व ही चले जाते हैं। फिर राजा विक्रम भी अपनी धोती पहन कर शैय्या पर लेटे रहते हैं और अपनी मां और बहन के साथ सम्भोग को सोच सोच कर मुस्कुरा रहे थे।

आज राजा विक्रम की शादी है तो सभी अपनी अपनी तैयारी में जुटे थे। राजा विक्रम ने जब आज वर के वस्त्र को पहना तो गजब की चमक छा गई थी। राजा विक्रम अनायास ही धाय मां रांझा के कक्ष की ओर चल पड़े। जैसे ही वह रांझा के कमरे में पहुंचे। रांझा उठ खड़ी हुई और उसने कहा

राजन, आप यहां, मुझे खबर करा दिया होता, मैं आ जाती।

कोई बात नही धाय मां। आज मेरा विवाह है और मै आपका आशीर्वाद लेने आया हूं।

आशीर्वाद, !!! ये क्या कह रहे हैं आप जो मुझ दासी से आशीर्वाद चाहते हैं।

धाय मां, मैने और नंदिनी ने कभी आपको अपनी मां से कम नहीं समझा है। आपके स्तनों से हमने दूध पिया है धाय मां। आपका स्थान हमारे जीवन में मां का है।

ये सुनकर रांझा भावुक हो जाती है और कहती भरभरती आवाज मैं कहती है

धन्य हो गई मैं, जो आपने इस दासी को इतना ऊंचा स्थान दिया राजन। राजमाता देवकी ने इतने अच्छे संस्कार दिए है आप दोनो को। मैने भी आपको पुत्र ही समझा है और कभी मैने आपमे और कालू में अंतर नहीं किया है।

तभी राजा विक्रम झुक कर रांझा के पैर छू लेते हैं जिससे रांझा आह्लादित हो जाती है और राजा विक्रम को तुरन्त उठा कर गले से लगा लेती है जिसे राजा बिक्रम अपने शरीर से चिपका लेते हैं। रांझा को विक्रम की बाहों में अत्यंत आंनद आ रहा था। फिर वह विक्रम के माथे को चूम कर नजर उतार लेती है।

अब राजा विक्रम फिर अपनेनकक्ष में आते हैं और बाकी तैयारी कर के राजमाता देवकी के कक्ष में जाते है जहां पूर्व से ही नंदिनी उपस्थित रहती है। दोनो मां बेटी भी बारात के लिए तैयार हो चुकी थी। दोनों अप्सरा सी सुंदर लग रही थी तो राजा विक्रम भी देवता तुल्य लग रहे थे। फिर राजा विक्रम राजमाता देवकी के चरण छू कर आशीर्वाद लेते हैं तो देवकी उसे ढेर सारा आशीर्वाद देती है और उसे उठा कर गले लगा लेती है। फिर विक्रम अपनी बहन नंदिनी के पैर भी छूते हैं तो वो भी उसे ढेर सारा आशीर्वाद देती है और उसे सीने से लगा लेती है और कहती है
मेरी सौतन लाने की बधाई,,
और हस देती है
तभी देवकी हाथ बढ़ा कर विक्रम के धोती में छिपे लिंग को मुट्ठी में पकड़ लेती है और कहती है
रत्ना को अपने इस मोटे लिंग से खुश कर देना पुत्र

और फिर सभी हस देते हैं और बारात के लिए निकल पड़ते हैं,,,,,,

इधर जब राजा विक्रम रथ पे अपनी मां राजमाता देवकी और बहन नंदिनी के साथ राजा माधो सिंह के राज महल के द्वार पर पहुंचते हैं तो सबको आंखे इस परिवार की खूबसूरती देख कर चौंधिया जाती है। ऐसा लग रहा था कि मानो देवता अप्सराओं के साथ धरती पर उतर आए हैं। आपस मे लोग बात करने लगते हैं कि राजा माधो सिंह ने अपनी पुत्री रत्ना का विवाह बहुत ही अच्छे राज घराने में किया है।

वधु पक्ष के सभी लोग बाहर आकर वर पक्ष का स्वागत करते हैं । राजा बिक्रम को उनकी मां और बहन तथा रांझा कालू के साथ अंदर ले जाया जाता है। वर की नजर उतारने रत्ना की मां आती हैं तो राजा विक्रम को देख कर उनका मुंह खुला का खुला रह जाता है । वो सोचती है कि क्या कोई पुरुष इतना भी आकर्षक हो सकता है और मन ही मन वह आहें भरने लगती है। उसके स्तन तन जाते हैं और योनि गीली हो जाती है। फिर उसे अपनी पुत्री रत्ना की किस्मत पर फक्र होता है जो उसे इतना देवता तुल्य पति मिला है।

इधर रत्ना भी आज दुल्हन के जोड़े में अप्सरा लग रही थी। उसे उसकी सखियां छेड़े जा रही थी की तुम तो इतनी सुन्दर लग रही हो की राजा विक्रम तो तुम्हें शादी के मण्डप में ही सम्भोग को आतुर हो जायेंगे। इस पर रत्ना सबको आंखे दिखाती है। और हुआ भी यूं ही।

शादी के मंडप में जब रत्ना को लाया गया तब राजा विक्रम रत्ना की खूबसूरती से बांध गए और सोचने लगे की मेरे घर में सभी औरतें कितनी सुन्दर है। तभी रांझा को विक्रम के समीप बैठाया गया तो रत्ना ने हल्की सी तिरछी नजरों से राजा विक्रम को देखा तो उनके तेज के आगे वह मूर्छित सी होने लगी, उसने सोचा देवता सा तेज है आज राजा विक्रम पर और वहीं पर उसके स्तन तन जाते हैं। सोचती है मैं स्वयं इसी मण्डप में विक्रम से सम्भोग कर लूं।
दोनों घरानों के स्त्री पुरुष में केवल वासना के विचार ही चल रहे थे और यह किसी प्रकार से गलत भी नहीं है। फिर वर पक्ष अपने आभूषण वधु को उपहार में देते हैं तब देवकी कहती है
मंगलसूत्र तो लगता है अतिथिशाला में ही छूट गई है, रांझा तू आभूषण ठीक से नहीं रखती है ।

नही, राजमाता मैंने तो रखा था ठीक से।

तभी नंदिनी कहती है

माते , मैने वह मंगलसूत्र आईने के सामने रखा था, हो सकता है वही छूट गया हो।

अच्छा, लेकिन अब तो मंगलसूत्र ले आना होगा।

ठीक है, देवकी, मै जाकर ले आती हूं, तू परेशान ना हो,,,रांझा ने कहा और वह जाने लगती है।

तभी कालू कहता है रुको मां, मैं घोड़े से चलता हूं, जल्दी पहुंच जायेंगे

फिर कालू अपने घोड़े पे रांझा को बैठा कर अतितिःशाला की ओर चल देता है।
घोड़े पे रांझा आगे बैठी होती है कालू की गोद में, जिससे कालू का लिंग खड़ा हो जाता है, तब रांझा कहती हैं

क्यों पुत्र किसकी याद में अपना लिंग खड़ा किया है तुमने

किसी की याद में नहीं माते, जब आप मेरी गोद में हैं तब मैं किसे सोच कर अपना लौड़ा खड़ा कर सकता हू।

इस पर रांझा उसे एक मुक्का मारती है और कहती है

जब देखो तब मेरे पीछे पड़ा रहता है, मां हूं तेरी मैं समझा।

मां हो तभी तो पीछे पड़ा रहता हूं

इसी तरह बात करते करते दोनो अतिथिशाला पहुंच जाते है और देवकी के कक्ष में मंगलसूत्र पा कर निश्चिंत हो जाते हैं। उस समय अतिथिशाला में कोई नहीं रहता है, तब रत्ना को शरारत सूझी और उसने कालू का लुंड पकड़ कर कहा

रत्ना कैसी लगी तुम्हें पुत्र।

अच्छी लगी माते। बहुत सुंदर। लेकिन मुझे तेरे सामने कोई अच्छी नहीं लगती।

और ऐसा बोल कर कालू अपनी मां के स्तन सहला देता है।

तब रांझा कहती है

इतना प्यार करते हो मुझे। मै धन्य हो गई पुत्र

और ऐसा कह कर उसे गले लगा लेती है और मुख पर चुम्बन जड़ देती है
फिर रांझा को याद आता है कि मंगलसूत्र लेकर जल्दी चलना है तो वह फटाफट चलने को कहती हैं
फिर विवाह शांतिपूर्वक संपन्न हुआ जब राजा विक्रम ने रत्ना की मांग मैं सिन्दूर डाला
Super update bhai
 
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