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Incest राजकुमार देव और रानी माँ रत्ना देवी

Ravi2019

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अपडेट 34

दोनों मां बेटे फिर घोड़े के साथ उस घने जंगल में आगे बढ़ने लगते हैं और स्वयं के लिए उचित स्थान की खोज करने लगते हैं जहां ये सुरक्षित रह सके। उन्हें ये तो पता नहीं था कि पता नहीं कितने दिन उन्हें इस जंगल में रहना पड़ेगा और पता नहीं वे कभी इस जंगल से बाहर निकल भी पाएंगे या नहीं। राजकुमार देव सोच रहे थे कि ये क्या हो गया उनके साथ। समय भी कितना बलवान है, कल तक हमलोग महल में रानी और रामकुमार थे और आज इस जंगल में भटक रहे हैं। मालूम नहीं, महल में क्या हो रहा होगा, पिता जी कैसे होंगे। यही सोचते सोचते वह आगे बढ़ते जा रहे थे। चलते चलते दोपहर हो गई थी। तभी दोनों घने जंगल के बीचों बीच एक बड़े ही रमणीक स्थल पर पहुंचते हैं । वहां एक बड़ी सी झील थी जिसके किनारे घास का मैदान था और उसके बाद घना जंगल। उसके बगल में एक छोटा सा झरना था और उसके बगल में थोडी सी ऊंचाई पर एक गुफानुमा जगह दिखी। इसे देख कर देव कहते हैं

वो देखिए माते। कितनी अच्छी जगह है। यहां एक ही जगह पर झील झरना और गुफा तीनों है। साथ ही झील के दूसरी ओर पहाड़ भी है।लगता है कि हमारी खोज खतम हो गई है। आइए गुफा की ओर चलते हैं। हो सकता है वहां रूकने की कोई व्यवस्था हो जाए।

इस पर रानी रत्ना कहती हैं

हां पुत्र, यहां हो सकता है हम रह सके। चलो गुफा की ओर चल कर देखते हैं।

ऐसा कह कर दोनो मां बेटे गुफा की ओर चल देते हैं। वहां पहुंचने पर देव ने पहले घोड़े को एक पेड़ से बांधा और फिर गुफा की ओर गए। गुफा में प्रवेश करने पर उन्होंने पाया कि गुफा अन्दर से बड़ी है और उसमे पर्याप्त रौशनी है। गुफा में एक तरफ सपाट चट्टान थी जिस पर सूखे पुआल बीछे हुए थे। ऐसा लगता था कि कोई इस गुफा में पहले आया हो और सोने के लिए पुआल बिछाया हो। इस पर देव कहते हैं

माते ऐसा लगता है कोई इस गुफा में पहले आया हुआ है। तभी तो यहां पुआल बिछे हुए हैं।

तभी रत्ना कहती हैं

और ये देखो पुत्र, यहां तो एक चादर भी रखी है। लगता है यहां कोई रह रहा है। यहां रुकना खतरे से खाली नहीं है। हो सकता है जो यहां रह रहा है वह यहां आ जाए और फिर हम खतरे में पड़ जाए।

इस पर देव कहते हैं

लेकिन माते , गुफा की स्थिति देख कर लगता है काफी दिनों से यहां कोई नहीं आया। इसका मतलब है जो भी यहां था, अब चला गया है और हमें इससे अच्छी जगह इस जंगल में नहीं मिल सकती।। जब तक कुछ और व्यवस्था नहीं हो जाती, हम यहीं रूकते है और जब कोई आएगा तो उससे बात कर लेंगे।

इस पर रानी रत्ना कहती हैं
तुम कह तो ठीक रहे हों। पता नहीं आगे हमें जंगल में कोई जगह मिले या नहीं, तब तक हम दोनों यही रहते हैं
और ऐसा कह कर रानी रत्ना पुआल के उपर वह चादर बिछाती है और उस पर सो जाती है।
तब देव कहते हैं

माते आप आराम कीजिए। तब तक मैं जंगल से कुछ फल तोड़ कर लाता हूं।

ऐसा बोल कर देव जंगल में जाते हैं और कुछ फल तोड़कर खाने को ले आते हैं जिसमे जामुन, अमरूद, आम, वगैरह थे। देव के लाए फलों को दोनों मां बेटे बैठ कर खा रहे होते हैं। तभी रत्ना कहती हैं

पता नहीं पुत्र, महाराज कैसे होंगे। हम दोनों तो उन्हें छोड़ कर चले आए। पता नहीं हम सभी कभी मिल भी पाएंगे या नहीं।

अपनी मां के मुंह से ऐसी बात सुन कर देव थोड़े भावुक हो गए और रानी रत्ना भी भावुक हो गईं और दोनों के आंखों में आंसू आ गए। देव थोड़े से सिसकने लगे तो रानी रत्ना ने देव को अपने गले से लगा लिया और उनके बालों को सहलाने लगी। कुछ देर में उनकी सिसकी बन्द हो गई, लेकिन गले लगने से रानी रत्ना के स्तन फिर से राजकुमार देव के सीने में धंस गए। उनके चुचुक फिर से पुरूष संसर्ग से उत्तेजित होने लगे। राजकुमार देव को भी अपनी छाती में धसे अपनी मां के स्तन अच्छे से महसूस होने लगे। ऐसा होने से पहली बार उनके लन्ड में हलचल महसूस होने लगी। तभी रत्ना कहती हैं

पुत्र, मैं क्षत्राणि हूं, क्षत्रिय की वंशज हूं। मै जीवन के इन संघर्षों से डरने वाली नहीं हूं। और तुम मेरे पुत्र हो, एक क्षत्रिय हो, तुम्हें इस तरह से सिसकना शोभा नहीं देता। मै अपने राज्य की रानी हूं और मै इन संघर्षों से कमजोर नहीं पड़ सकती। हमारे पूर्वज भी युद्ध के दौरान कई बार जंगल में रहे, युद्ध की तैयारी की और फिर से अपने राज्य को वापस प्राप्त कर लिया। इसलिए हम भी जरूर सफल होंगे और वापस अपने महल लौटेंगे।

इस पर देव कहते हैं

आप सही कह रही है माते। हम क्षत्रिय बंशी संघर्षों से कमजोर नहीं पड़ सकते।

और फिर दोनों मां बेटे एक दूसरे से अलग होते हैं । लेकिन दोनों को एक दूसरे के साथ चिपकना अच्छा लग रहा था। दोनो काफी थक गए इसलिए दोनों को नींद लग जाती है। शाम मे अंधेरा होने के पहले उनकी नींद खुलती है तो राजकुमार देव कुछ सुखी लकड़ियां इकट्ठा करते हैं, कुछ सुखी घास लगाते हैं और चक मक पत्थर रगड़ कर आग जलाते हैं जिससे रौशनी हो जाती है । फिर रात में भी दोनों फल खाते हैं और तब तक आग की लहर कम हो गई थी और धीमी धीमी आग जल रही थी जिससे हल्की रौशनी हो रही थी। तभी रत्ना कहती हैं
पुत्र, मै जरा गुफा के बाहर से दो पल में आती हूं।

और ऐसा कह कर वह बाहर जाती हैं और बाहर ही पेशाब कर के अन्दर आ जाती हैं। बाहर घने जंगल में उन्हें बहुत डर लगता है और वह कहती हैं

पुत्र गुफा के बाहर रात में बहुत डरावना लग रहा था, यहां हमें कुछ हो गया तो कोई देखने वाला भी नहीं है। रात में मैं जब बाहर पेशाब करने जाऊं तो तुम साथ चलना।

इस पर देव कहते हैं

बिलकुल माते, मैं आपके साथ चलूंगा।

फिर रात में ये सो जाते है और गहरी नींद में सो जाते हैं, दोनों इतने थके जो थे। फिर सुबह हुई तो दोनों नित्य क्रिया करने जंगल में चले गए। झील में जा कर नहाते हैं, फल खाते है, झरने का पानी पीते हैं। दोनो आज थोड़े सामान्य थे। रात हुई। फिर दोनों फल खा कर सोने की तैयारी शुरू करते हैं । सोने के पहले रानी रत्ना पेशाब करने बाहर जाती हैं और देव को भी अपने साथ चलने को कहती हैं। देव साथ में जाते हैं। रत्ना कुछ दूर जाकर वहा बैठ जाती हैं जहां चबूतरा समाप्त हो रहा था। देव पीछे ही खड़े रह जाते है और अपनी मां को पेशाब करने की मुद्रा में देखते हैं। रानी रत्ना पेशाब कर के गुफा में अन्दर जाने लगती हैं तब देव भी उसी जगह पर जाते हैं और अपने लन्ड निकाल कर पेशाब करने लगते हैं जिसे रानी रत्ना देख लेती हैं। दूसरे दिन भी अच्छे से गुजरा। रात में फिर सोने के पहले यही हुआ कि रानी रत्ना पेशाब करने गई और देव उनके पीछे खड़े रहे। जब रानी रत्ना ने पेशाब कर लिया तब देव वहां जाकर पेशाब करने लगे। दो चार दिन ऐसे ही कटे। फिर एक रात जब रात में सोने के पहले रानी रत्ना पेशाब करने गुफा के बाहर गई और पेशाब करने के लिए बैठी तो उन्होने कहा
पुत्र, तुम्हें भी तो पेशाब लगी होगी और तुम प्रतिदिन मेरे पेशाब करने के बाद वही आकर पेशाब करते हो। इसलिए तुम भी आ जाओ और मेरे सथ ही बैठ कर पेशाब कर को।

इस पर देव ने कहा

लेकिन माते मुझे शर्म आ रही है आपके साथ बैठ कर पेशाब करने में।

इस पर रानी रत्ना कहती हैं

इसमें शर्म की क्या बात है। मै तुम्हारी मां हूं और तुम्हें तो पूरा नंगा मैने नहलाया है। मुझसे कैसी शर्म।

इस पर देव भी आगे बढ़ते हैं और अपनी मा रत्ना के बगल में बैठ कर पेशाब करने लगते है। अब तो यह प्रतिदिन का नियम हो गया था। दोनों मां बेटे रात्रि भोजन के बाद साथ ही गुफा के बाहर आते और साथ ही बैठ कर पेशाब करते। लेकिन इस दौरान पेशाब करने में देव रत्ना की बुर कभी देख नहीं पाए थे क्योंकि वो पेशाब करते समय साड़ी से अपनी बुर को छिपा कर पेशाब करती थी । यह अलग बात है कि रानी रत्ना ने कभी कभार झटके से चांदनी रात में देव का लन्ड देख लिया था क्योंकि देव तो अपना लन्ड धोती से बाहर निकाल कर करता था। देव का लन्ड देख कर रानी रत्ना को अच्छा लगता है भले ही वह झटके से ही लन्ड देख पा रही थी। और ऐसा हो भी क्यों ना, रानी रत्ना को भी तो लन्ड के दर्शन किए काफी दिन हो गए थे । जबसे वो महल से बाहर निकली थी तब से लन्ड के दर्शन नहीं हो पाए थे।

एक रात ऐसे ही दोनों मां बेटे बैठ कर पेशाब कर रहे थे और राजकुमार देव अपने लन्ड को हिला कर पेशाब की धार इधर उधर कर रहे थे, तो रानी रत्ना ने छेड़ते हुए कहा
पुत्र देव, तुम ये क्या कर रहे हों, ठीक से पेशाब करो ना। देखो, तुम्हारे पेशाब की धार फैल रही है ।

इस पर देव शरमा गए और उसका चेहरा लाल हो गया। लेकिन इस बातचीत से दोनों मां बेटे एक दूसरे से खुलने लगे और दोनों के बीच हसी मजाक भी होने लगा।
एक रात जब दोनों पेशाब कर रहे थे तो राजकुमार देव ने अपने लन्ड को आगे बढ़ा कर जोर लगा कर पेशाब किया जिससे पेशाब की धार दूर तक गई। इस पर देव ने कहा
देखा माते, मेरी पेशाब की धार कितनी दूर तक जा रही है। आप भी वहां तक अपनी पेशाब की धार पहुंचा सकती हैं क्या ?
इस पर रानी रत्ना कहती हैं
क्यों नहीं, मैं भी वहां तक अपनी पेशाब की धार पहुंचा सकता हूं जहां तक तुमने किया है।

और ये कह कर रत्ना जोर लगा कर पेशाब करने लगती हैं। लेकिन काफी जोर लगाने पर भी रत्ना अपने पेशाब की धार वहां तक नहीं पहुंचा सकी जहां तक देव की पेशाब की धार पहुंची थी। ऐसा देख कर राजकुमार देव हंसने लगे और कहा

आप तो वहां तक अपनी पेशाब की धार नहीं पहुंचा सकी जहां तक मेरी पेशाब की धार पहुंची थी। बल्कि आप तो आधी दूरी तक भी पेशाब की धार नहीं पहुंचा सकी है।

राजकुमार देव का इस तरह हंसना रानी रत्ना को अच्छा नहीं लगा और वो अपनी इस हार से थोड़ी तिलमिला गई और इसी तिलमिलाहट में वो बोल पड़ी

ओ देव, तुम तो अपने पेशाब करने वाले लम्बे अंग को बाहर निकाल कर पेशाब कर लेते हो, तो तुम्हारी पेशाब की धार दूर तक जाएगी ही। लेकिन मेरा पेशाब करने का अंग तो चपटा है जो मेरी जांघो के बीच शरीर से सटा हुआ है। ये तुम्हारी तरह तो है नहीं की हाथ में लिया और पेशाब करने लगे।

रानी रत्ना ये जोश में बोल तो गई लेकिन उन्हें फिर लगा कि उन्होनें ये क्या कह दिया और फिर वे बिल्कुल चुप हो गई। राजकुमार देव भी अपनी मां की बातों को सुन कर अवाक रह गए कि मां ने ये बात कैसे कह दी। कुछ देर दोनों मां बेटे ऐसे ही चुपचाप बैठे रहे और फिर उठ कर गुफा की ओर चल पड़े

अब देखना दिलचस्प होगा कि आगे क्या होता है
 
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यह गुप्त सुरंग काफी चौड़ा था जिससे रानी रत्ना, राजकुमार देव, सेना की एक टुकड़ी और घुड़सवार सैनिक बहुत आराम से जा रहें थे। लेकिन सुरंग की लम्बाई काफी ज्यादा थी। यह अन्दर ही अन्दर लोगो को जंगल में निकाल देती थी। इसलिए पूरे दिन चलने के बाद सभी जंगल के मुहाने पर निकलते हैं। वहां पहुंचने पर उन्हें पता चलता है कि शाम हो गई है इसलिए राजकूमार देव ने यह निर्णय लिया कि वहीं जंगल के किनारे ही शिविर लगाया जाए।

सभी सैनिक शिविर लगाने में जुट जाते हैं और कुछ सैनिक सुरक्षा हेतु निगरानी में लग जाते हैं। वहीं रानी रत्ना वहीं एक शिला पर बैठ जाती हैं। राजकुमार देव अपनी देख रेख में शिविर लगवाने लगते हैं। कुछ समय के बाद शिविर तैयार हो जाते हैं। एक शिविर में रानी रत्ना आराम करने चली जाती हैं , वहीं दूसरे शिविर में राजकुमार देव आराम करने चले जाते हैं।
खानसामा रात्रि भोजन की तैयारी में लग जाता है। सभी बहुत खुश थे कि चलो इस जंगल में कोई दुश्मन सैनिक नहीं आने वाला। सैनिक भी थोड़े अलसिया रहे थे, पूरे दिन की यात्रा से वे थक जो गए थे। रात का खाना खाकर सभी आराम करने लगते हैं। रानी रत्ना और राजकुमार देव अपने अपने शिविर में सोने चले जाते हैं। बाहर कुछ सैनिक पहरा दे रहे होते हैं लेकिन वे भी थोड़े थोड़े ऊंघ रहे होते हैं। इसी बीच आधी रात को दुश्मन सैनिक शिविर पर आक्रमण कर देते हैं। इस अचानक हुए हमले से पहरा दे रहें सैनिक सम्भल नहीं पाते हैं और उनके पास अपनी जान बचाने के लिए भागने के अलावा कोई चारा नहीं था। अतः वे सैनिक भाग खड़े होते हैं। तभी दुश्मन सैनिकों ने शिविर में आग लगा दी और लूटपाट मचाने लगे।
लेकिन इस आक्रमण के कुछ देर पहले ही राजकुमार देव को पेशाब करने की इच्छा हुई थीं इसलिए वे शिविर से बाहर निकल कर थोड़े अंधेरे में पेशाब करने चले गए थे। तब तक उन्हें काफी शोर मचने की आवाज आई। तब वे शिविर की ओर भागे।
जब तक वह शिविर के पास पहुंचते, तब तक दुश्मन सैनिकों ने शिविर में आग लगा दी थी। इनके सारे सैनिक अपनी जान बचाने के लिए भाग चुके थे आखिर यह आक्रमण अचानक जो हो गया था। वो तो गनीमत थी कि देव के पास एक तलवार थी, नहीं तो सारे हथियार तो शिविर में ही थे। देव अभी छुप कर इस आक्रमण को देख ही रहे थे और इतने सारे दुश्मन सैनिकों को देखते हुए उन्होंने लड़ना उचित नहीं समझा क्योंकि वे अकेली उस सैनिकों की टुकड़ी से नहीं लड़ सकते थे। अभी ये कुछ समझ ही रहे थे कि एक दुश्मन सैनिक की नजर इनपे पड़ गई और उसने चिल्ला कर कहा
वो देखो, राजकुमार देव। आज इसे जिन्दा नहीं छोड़ना है,,,
और ये कहते हुए वह देव की ओर दौड़ा। लेकिन देव ने भी अपनी तलवार उठा ली सैनिक के तलवार को अपनी तलवार से रोका और फिर देव ने सैनिक पर प्रहार किया जिसे सैनिक ने रोका। लेकिन वह देव के प्रहार को रोक नहीं पाया और उसकी तलवार जमीन पर गिर गई और वह भी जमीन पर गिर पड़ा। लेकिन तब तक अन्य सैनिक देव की ओर दौड़ चुके थे। देव ने इस स्थिति में अपनी जान बचाना ही उचित समझा और फूर्ति से अपने घोड़े पर सवार हो कर जंगल की अन्दर की ओर घोड़े को दौड़ा दिया। देव बेतहासा अपने घोड़े को दौड़ाए जा रहे थे। दुश्मन सैनिकों ने कुछ दूर तक इनका पीछा किया लेकिन वे राजकुमार देव के घोड़े की रफ्तार को नहीं पकड़ पाए और वापस शिविर की ओर लौट आए। उन सैनिकों ने शिविर में तो आग लगा ही दी थी। वे जान चुके थे कि रामकुमार देव बच गए हैं। लेकिन रानी रत्ना का शिविर आग की लपटों में था और रानी रत्ना आग की लपटों में घिरी चिल्ला रही थी। तभी दुश्मन सैनिकों के सेनापति ने कहा
रानी रत्ना इसी आग में जिन्दा जल कर भस्म हो जायेगी। चलो सैनिकों, अब हमारा काम हो गया। बड़ी आई थी हमसे बचने के लिए जंगल में छुपने !!!!

और ऐसा बोलकर सभी दुश्मन सैनिक वहां से चले जाते हैं और रानी रत्ना आग की लपटों में घिरी बचाने के लिए चिल्ला रही थी। उधर राजकुमार देव को कुछ देर बाद अहसास होता है कि उनका कोई पीछा नहीं कर रहा है। तब वे रूक गए और घोड़े से उतर कर एक पेड़ के नीचे आराम करने लगे और सोचने लगे कि ऊपरवाले का बहुत बहुत आभार कि आज प्राण बच गए। तभी उन्हें अचानक अपनी मां रानी रत्ना का ध्यान आता है और वह बड़बड़ाने लगते हैं

अरे ये मैंने क्या कर दिया। इस आक्रमण से मैं अपनी मां को ही भुल गया। पता नहीं माते किस स्थिति में होंगी, जीवित होंगी भी या नहीं। हाय ये मुझसे क्या हो गया। मै अपनी मां की रक्षा के लिए आया था और मै उनकी रक्षा ही नहीं कर पाया।

ये सोचते सोचते वह अपने हाथ जमीन पर दे मारते हैं जिससे उनके हाथों से खून निकलने लगता है। उनकी आंखो में आंसू आ जाते हैं। लेकिन फिर वह सोचते हैं कि अभी भी समय है, शिविर चलता हूं। अगर सैनिक अधिक भी है तो क्या हुआ, मै उनसे अकेला ही युद्ध लडूंगा, भले ही इस युद्ध में मैं शहीद हो क्यों ना हो जाऊं । यदि मैं अपनी मां की रक्षा नहीं कर पाया तो मैं जीवित रह कर क्या करूंगा।
ऐसा सोचते ही देव तुरन्त घोड़े पर सवार होकर शिविर की ओर घोड़े को दौड़ा देते हैं। वह पागलों की तरह घोड़े को दौड़ाए जा रहा था और मन ही मन सोच रहे थे कि अगर मां को कुछ हो गया तो वह भी अपना जीवन त्याग देगा। ऐसे जीवन को जीकर क्या होगा जिसमें वह अपनी मां के जीवन की रक्षा ही नहीं कर पाए। ऐसे ही सोचते सोचते वह शिविर पहुंचते हैं तो पाते हैं कि चारों ओर आग लगी हुई है। वह दौड़ते हुए रानी रत्ना के शिविर के पास पहुंचते हैं तो पाते हैं कि उनकी मां का शिविर धू धू कर जल रहा है। राजकुमार देव वहीं रोने लगते हैं, उनकी आंखो से अश्रु धारा बहने लगती है और वह नीचे बैठ जाते हैं और शिविर की ओर देखने लगते हैं। तभी उन्हें अचानक लपटों के बीच अपनी माता रत्ना को खड़ा पाते हैं और वह भी बचाओ बचाओ चिल्ला रही थी। उनका पूरा चेहरा आग की गर्मी से लाल हो गया था। राजकुमार देव तुरन्त खडे़ होते हैं। तभी रत्ना की नजर भी अपने पुत्र देव पर पड़ती है तो वह अपने पुत्र को देख कर रोने लगती हैं और कहती हैं
पुत्र देव , अब मेरे बचने की कोई आशा नहीं है। तुम यहां से अपने पिता श्री के पास वापस चले जाना और अपने पिता बहन और दादी के साथ अच्छे से रहना।

इस पर देव चिल्ला कर कहते हैं
मेरे रहते आपको कुछ नहीं होगा माते।
और ऐसा कह कर राजकुमार देव जलते हुए शिविर में घुसने लगते है। राजकुमार देव को जलते हुए शिविर में ऐसे घुसते हुए देख कर रानी रत्ना उन्हें रोकने लगती हैं और कहती हैं

तुम शिविर में अन्दर मत आओ पुत्र। मै तो मरने ही वाली हूं, मैं नहीं चाहती कि तुम्हें कुछ ही जाए। मत आओ पुत्र, मत आओ।

इस पर भी देव आगे बढ़ते रहते हैं और कहते हैं

माते, मै भले ही मर जाऊं, लेकिन आपको कुछ नहीं होने दूंगा।

ऐसा कहते हुए राजकुमार देव आगे बढ़ते रहते हैं और जलते हुए शिविर में आग की लपटों के बीच घुस जाते हैं। जैसे ही वह बीच में पहुंचते हैं जलता हुआ एक लट्ठा उनके ऊपर अचानक गिरता है जिसे वह अपने तलवार से रोकते हैं तो वह लठ्ठा दो टुकड़ों में बट जाता है जिसके कारण लट्ठे का नीचे का हिस्सा उनके पैर पर गिरता है। जलते हुए लट्ठे के उनके पैर पर गिरने के कारण उनकी चीख निकल जाती है। तभी रानी रत्ना कहती हैं
मैं कह रही थी कि तुम मत आओ। लेकिन तुम मेरी बात मानते कहा हो।
ऐसा कह कर वह अपने पुत्र को बचाने आगे बढ़ती है,। लेकिन देव भी अपनी माता को बचाने के फूर्ति से उनकी ओर दौड़ पड़े और आग की लपटों के बीच अपनी माता के पास पहुंच जाते हैं । अपने प्रिय पुत्र को अपने पास देख कर रानी रत्ना रोने लगी और अपने पुत्र को गले से लगा लिया। इस पर देव कहते हैं

माते, हमारे पास ज्यादा समय नहीं है। हमें जल्दी से निकलना होगा। लेकिन हमें बस यह ध्यान देना होगा कि कोई लठ्ठा हमारे उपर नहीं गिरे।

इस पर रानी रत्ना कहती हैं
ठीक है पुत्र, मैं भी अपनी तलवार ले लेती हूं।
रत्ना तलवार लेती हैं तो वह बहुत गरम रहता है तो वह वहीं एक कपडे के टुकड़े को पाती हैं। उस कपड़े को तलवार के मुठ्ठे पर रख देती हैं और उसे पकड़ लेती हैं। तभी राजकुमार देव ने ऐसा कुछ किया जिसकी कल्पना उन्होंने नही की थी। राजकुमार देव ने अचानक रानी रत्ना को नितम्ब के नीचे से अपने दाहिने हाथ से घेरा बना कर पकड़ा और उन्हें उठा कर अपने कन्धे पर लाद दिया और दौड़ते हुए आग की लपटों के बीच से होकर निकलने लगे। एक तरफ की लठ्ठ को गिरने से रानी रत्ना अपनी तलवार से रोक रही थी तो दूसरी ओर की राजकुमार देव।
रानी रत्ना का अपने जीवन का ये पहला अनुभव था जब वो अपने पति के अलावा किसी अन्य पुरुष के शरीर के सम्पर्क में आई थी । भले ही देव उनका पुत्र था लेकिन अब वह 6 फीट लम्बा एक जवान पुरूष हो चुका था जिसका चौड़े सीने चौड़े कन्धे, लम्बे बाल, ऊंची नाक, गोरा रंग स्त्रियों को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त थे। और तो और रानी रत्ना को कन्धे पर लेने से उनकी दोनो चूची देव के कन्धे से दब गई थी और उससे चिपकी हुई थी जिससे रानी रत्ना के शरीर में कुछ होने लगा। उन्हें अच्छा लग रहा था लेकिन क्या और क्यों अच्छा लग रहा था, यह उनके समझ में नहीं आया।
इधर इस तरह आग की लपटों के बीच भागने से राजकुमार देव के पैरों तले लकड़ी के जलते टुकड़े आ रहे थे जिससे उनके तलवे कहीं कहीं जल रहे थे। लेकिन फिर राजकुमार देव भागते हुए आग की लपटों के बीच से अपनी मां रत्ना देवी को लेकर बाहर निकल जाते हैं। रानी रत्ना बाहर आकर बहुत खुश थी। उन्होेंने तो अपने बचने की उम्मीद जो छोड़ दी थी। लेकिन तभी देव कहते हैं
माते, हमें यहां से जल्दी निकलना होगा, नहीं तो कहीं दुश्मन सैनिक फिर से आ गए, तो हम बहुत बड़ी परेशानी में पड़ जायेंगे।
इस पर रानी मां रत्ना देवी कहती हैं
तुम बिल्कुल सही कह रहे हो पुत्र। हमें यहां से जल्दी ही निकालना होगा। लेकिन तुम्हारा बहुत धन्यवाद पुत्र। यदि आज तुम सही समय पर नहीं आए होते तो शायद मैं बच नहीं पाती।
इस पर देव कहते हैं
माते, आप मुझे शर्मिन्दा कर रही हैं। यदि आपको कुछ हो जाता तो मैं उन्हीं आग की लपटों में कूद कर अपना जीवन समाप्त कर लेता।

ना पुत्र ना, ऐसा नहीं कहते। कोई किसी की जान बचाने के लिए अपनी जान दांव पर थोड़े ही लगाता है। ___ रानी रत्ना ने कहा और देव के होंठों पर अपनी ऊंगली रख कर चुप रहने को कहा।

इस तरह अपने होंठ पर अपनी मां की ऊंगली रखने से देव को अच्छा लगा और इस पर देव ने कहा

आप कोई नहीं है , माते। आप मेरी मां हैं और हर पुत्र का कर्तव्य है अपनी मां की रक्षा करना और उसे खुश रखना।
लेकिन तुम्हें कुछ हो जाता तो मैं अपने को कभी माफ भी नहीं कर पाती। लेकिन मुझे खुशी इस बात की है कि मुझे तुम जैसा प्यार करने वाला पुत्र जो मिला है। चलो अब जल्दी से यहां से चलतेहैं। ______रानी मां रत्ना देवी ने कहा।
इज पर देव घोड़े पर बैठ जाते हैं और फिर उनके पीछे रत्ना बैठ जाती हैं और देव घोड़े को जंगल के अन्दर की ओर दौड़ा देते हैं जिधर जंगल और घना होता जा रहा था। इधर रत्ना देव को पीछे से पकड़ कर बैठी थी जिससे उनकी चूची देव के पीठ से रगड़ खा रही थी। रत्ना मन ही मन सोच रही थी कि क्या कोई पुत्र अपनी माता से इतना भी प्यार करता है कि वह अपने प्राणों की भी परवाह न करे। हाय मेरा पुत्र मुझसे इतना प्यार करता है। अपनी जान बचाए जाने से रत्ना को अपने पुत्र पर बहुत प्यार आ रहा था, लेकिन यह प्यार कैसा था वह समझ नहीं पा रही थी। इधर घोड़े के दौड़ने से रत्ना की चूची के चूचक स्तनाग्र देव की पीठ से टकरा रहे थे जिससे रत्ना के स्तन कड़े हो गए थे जिसे रत्ना ने भी महसूस किया और मन ही मन अपने स्तन को गाली भी दी
मुये, बड़े ही बदमास हैं। पुरूष के सम्पर्क में आए नहीं की कड़े हो गए। समझते नहीं है कि यह युवक कोई और नहीं मेरा पुत्र है, वही पुत्र जिसने इन्हीं स्तनों से दूध पीया है। लेकिन रत्ना अपनी कामभावना से वशीभूत हो जाती है और राजकुमार देव को पीछे से पकड़ कर लिपट जाती हैं और अपने स्तनों को देव की पीठ पर दबा देती हैं। चूचियां रगड़ खाने से वे मजा ले रही थी।
इधर राजकुमार देव भी अपनी पीठ पर अपनी मां रत्ना देवी के स्तन चिपकने से गनगना जाते हैं। देव भी तो अब युवावस्था में आ चुके थे उन्हें भी स्त्री संसर्ग अच्छा लगना बिल्कुल स्वाभाविक था। रानी मां रत्ना देवी भले ही उनकी मां थी। लेकिन यह भी सत्य है कि उन्होंने अपनी मां जैसी सुन्दर कोई स्त्री नही देखी थी। यह बात तो सत्य ही थी कि भले ही रानी रत्ना दो दो बच्चों की मां थी लेकिन खूबसूरती में उनका कोई जवाब नहीं था। अभी भी वह पच्चीस तीस वर्ष की युवती ही दिखती थीं। उनकी मोहिनी आँखें, खड़ी नाक, तीखे नैन नक्श, उन्नत स्तन, संगमरमर सा सफेद और गोरा रंग, चमकता शरीर, चौड़ी कमर किसी भी पुरूष का लन्ड खड़ा करने के लिए पर्याप्त थे। ऐसा लगता था मानो वो स्वर्ग से उतरी कोई अप्सरा हो। जो देखता उन्हें देखता ही रह जाता था।
दोनो मां बेटे इसी तरह मजा लेते हुए घने जंगल के बीच में भागते चले जा रहे थे। रात भर घोड़े पर सवार होकर ये भागते रहे और सुबह सूर्य की पहली किरण पृथ्वी पर जन पड़ती है तो रानी रत्ना कहती हैं

पुत्र , कहीं खुले जगह रुको जहां थोड़ा विश्राम कर लेते हैं।
इस पर देव घोड़े को रोकते हैं और जंगल में एक पहाड़ी नदी के किनारे रूक कर घोड़े को एक पेड़ से बांध देते हैं और दोनों एक चट्टान पर लेट जाते हैं। थोड़ी ही देर में उन्हें नींद आ जाती हैं और दोनों सो जाते हैं। कुछ घंटो की नींद के बाद उनकी नींद खुलती है और फिर दोनों नदी के पानी से हाथ मुंह धोकर पानी पीते हैं और फिर दोनो धीरे धीरे पैदल ही जंगल में आगे बढ़ने लगते हैं और एक सुरक्षित जगह ढूंढने लगते हैं जहां कुछ दिनों तक वे रह सकें। देव घोड़े की लगाम पकड़े हुए आगे बढ़ते जा रहे थे और रानी मां रत्ना देवी पीछे पीछे चल रही थी। इसी बीच इनलोगो को शेर के दहाड़ने की आवाज सुनाई दी। देव और रानी रत्ना ने पीछे मुड़कर देखा तो उन्होने अपने पीछे एक शेर को पाया। शेर भूखा था और वह इन दोनों पर आक्रमण को तैयार था। दोनों ने जैसे शेर को देखा, देव ने कहा
भागिए माते, अपनी जान बचाइए।

और ऐसा कह कर देव छुपने के लिए जगह देखने लगे। इनका घोड़ा भी इधर उधर भड़कने लगा। देव भागे, लेकिन उन्होने अपनी मां को कही नहीं देखा। वे घबरा गए और उन्होंने जब पीछे मुड़कर देखा तो अपनी मां रत्ना देवी को उसी जगह ठिठका पाया। उनके मुंह से आवाज नहीं निकल पा रही थी और वे पसीने पसीने हो रही थी। इधर शेर भी इन पर आक्रमण को तैयार हो गया था। रानी रत्ना की आंखों से अश्रुधारा बहे जा रही थी। तब तक शेर ने रानी रत्ना पर आक्रमण को दौड़ लगा दी। रानी रत्ना तो मूर्ति बनी खड़ी थी और मन ही मन सोच रही थी

आज तो प्राण नहीं ही बचेंगे। और देखो पुत्र भी आखिरकार छोड़ कर भाग ही गया और भागे भी क्यों ना। इसमें मेरे प्यारे पुत्र की कोई गलती नहीं है , आखिर शेर के सामने कौन आना चाहेगा। अब तो मेरे प्राण गए और यह शेर तो मुझे खा ही जाएगा।

देवकी यही सब सोच रही थी और बुत बनकर खड़ी थी । उसने अपनी आंखे बन्द कर ली थी। लेकिन कुछ समय बीत जाने के बाद भी उसने महसूस किया कि वह सुरक्षित है और शेर की आवाज नही आ रही थी तो उसने उत्सुकतावश अपनी आंखें खोली तो देखा कि राजकुमार देव अपने हाथ में तलवार लिए खड़ा है और शेर वही जमीन पर बेहोश गिरा पड़ा है। हुआ ये था कि रानी रत्ना ने तो अपनी आंखें बन्द कर ली थी। लेकिम देव ने जब देखा कि उनकी मां बुत बने खड़ी है और वह भाग नही पा रही है तो उन्होने अपनी मां की प्राणों की रक्षा करना उचित समझा । शेर जब रानी रत्ना की ओर दौड़ा तो देव भी तलवार लेकर शेर की ओर दौड़े। शेर ने जब आक्रमण करने के लिए अन्तिम छलांग लगाई तब राजकुमर देव ने भी चीते की तरह छलांग लगाई और हवा में ही तलवार से शेर पर वार किया। लेकिन शेर को तलवार न लग कर तलवार की मुट्ठी शेर की नासिका पर लगी जिससे शेर मरा तो नहीं, लेकिन बेहोश हो कर जमीन पर गिर गया। इस तरह रानी रत्ना की जान तो बच गई। लेकिन फिर भी वह बुत बने खड़ी रहीं। तब राजकुमार देव रानी रत्ना के पास पहुंचते हैं और उन्हें झकझोरते है। तब जाकर रत्ना को होश आता है और वह रोने लगती हैं। यह मृत्यु के द्वार से वापस आने की खुशी के आंसू थे। रानी रत्ना रोते हुए अपने पुत्र राजकुमार देव के गले लग जाती हैं और कहती हैं

बहुत बहुत धन्यवाद पुत्र, फिर से मेरी जान बचाने के लिए। अगर आज तुम ना होते तो मै जीवित ना रहती। आज से मेरी ये जिन्दगी तुम्हारे ऊपर उधार रही पुत्र। मै तुम जैसा प्यार करने वाला पुत्र पाकर धन्य हो गई पुत्र।

इस पर देव कहते हैं
मां, मैंने कुछ नहीं किया। यह तो मेरा कर्तव्य था कि मैं आपके प्राणों की रक्षा करूं। चलिए माता चलिए, । नही तो शेर को होश आ गया तो परेशानी हो जाएगी।

इस पर फिर दोनो मां बेटे घोड़े को लेकर छुपने के लिए एक सुरक्षित स्थान की खोज पर निकल पड़ते हैं। इधर रानी मां रत्ना देवी मन में सोचती है
हाय, कितना साहसी और पराक्रमी है मेरा पुत्र। कितना प्यार करता है मुझसे !! शायद उतना जितना कोई भी इस संसार में मुझसे नहीं करता !!! मै तो धन्य हो गई इसे अपने पुत्र के रूप में प्राप्त कर। काश हम वापस महल में लौट सके तो मैं अपने हाथों से इसे खिलाऊंगी। लेकिन जब इसकी शादी हो जायेगी तब तो इसकी पत्नी इसका ध्यान रखेगी। देव की शादी का ध्यान आते ही रत्ना के मन में पता नहीं क्यों ईर्ष्या आ जाती है। शायद यह उस आकर्षण की शुरुआत थी जिसकी चिंगारी रानी रत्ना के अन्दर उठ चुकी थी। रानी रत्ना अपने पुत्र को देख कर मुग्ध हुए जा रही थी और मन ही मन मंद मंद मुस्कुरा रही थी।

अगले अपडेट में देखते हैं कि दोनों जंगल में कहां पहुंचते हैं
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
राजकुमार देव ने रानी रत्ना की दो बार जान बचाई जिससे रानी देव से काफी प्रभावित हो गई
लगता हैं दोनों माँ बेटे के बीच जंगल में मंगल हो कर चुदाई का दंगल होने की संभावना लगती हैं खैर देखते हैं आगे
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

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दोनों मां बेटे फिर घोड़े के साथ उस घने जंगल में आगे बढ़ने लगते हैं और स्वयं के लिए उचित स्थान की खोज करने लगते हैं जहां ये सुरक्षित रह सके। उन्हें ये तो पता नहीं था कि पता नहीं कितने दिन उन्हें इस जंगल में रहना पड़ेगा और पता नहीं वे कभी इस जंगल से बाहर निकल भी पाएंगे या नहीं। राजकुमार देव सोच रहे थे कि ये क्या हो गया उनके साथ। समय भी कितना बलवान है, कल तक हमलोग महल में रानी और रामकुमार थे और आज इस जंगल में भटक रहे हैं। मालूम नहीं, महल में क्या हो रहा होगा, पिता जी कैसे होंगे। यही सोचते सोचते वह आगे बढ़ते जा रहे थे। चलते चलते दोपहर हो गई थी। तभी दोनों घने जंगल के बीचों बीच एक बड़े ही रमणीक स्थल पर पहुंचते हैं । वहां एक बड़ी सी झील थी जिसके किनारे घास का मैदान था और उसके बाद घना जंगल। उसके बगल में एक छोटा सा झरना था और उसके बगल में थोडी सी ऊंचाई पर एक गुफानुमा जगह दिखी। इसे देख कर देव कहते हैं

वो देखिए माते। कितनी अच्छी जगह है। यहां एक ही जगह पर झील झरना और गुफा तीनों है। साथ ही झील के दूसरी ओर पहाड़ भी है।लगता है कि हमारी खोज खतम हो गई है। आइए गुफा की ओर चलते हैं। हो सकता है वहां रूकने की कोई व्यवस्था हो जाए।

इस पर रानी रत्ना कहती हैं

हां पुत्र, यहां हो सकता है हम रह सके। चलो गुफा की ओर चल कर देखते हैं।

ऐसा कह कर दोनो मां बेटे गुफा की ओर चल देते हैं। वहां पहुंचने पर देव ने पहले घोड़े को एक पेड़ से बांधा और फिर गुफा की ओर गए। गुफा में प्रवेश करने पर उन्होंने पाया कि गुफा अन्दर से बड़ी है और उसमे पर्याप्त रौशनी है। गुफा में एक तरफ सपाट चट्टान थी जिस पर सूखे पुआल बीछे हुए थे। ऐसा लगता था कि कोई इस गुफा में पहले आया हो और सोने के लिए पुआल बिछाया हो। इस पर देव कहते हैं

माते ऐसा लगता है कोई इस गुफा में पहले आया हुआ है। तभी तो यहां पुआल बिछे हुए हैं।

तभी रत्ना कहती हैं

और ये देखो पुत्र, यहां तो एक चादर भी रखी है। लगता है यहां कोई रह रहा है। यहां रुकना खतरे से खाली नहीं है। हो सकता है जो यहां रह रहा है वह यहां आ जाए और फिर हम खतरे में पड़ जाए।

इस पर देव कहते हैं

लेकिन माते , गुफा की स्थिति देख कर लगता है काफी दिनों से यहां कोई नहीं आया। इसका मतलब है जो भी यहां था, अब चला गया है और हमें इससे अच्छी जगह इस जंगल में नहीं मिल सकती।। जब तक कुछ और व्यवस्था नहीं हो जाती, हम यहीं रूकते है और जब कोई आएगा तो उससे बात कर लेंगे।

इस पर रानी रत्ना कहती हैं
तुम कह तो ठीक रहे हों। पता नहीं आगे हमें जंगल में कोई जगह मिले या नहीं, तब तक हम दोनों यही रहते हैं
और ऐसा कह कर रानी रत्ना पुआल के उपर वह चादर बिछाती है और उस पर सो जाती है।
तब देव कहते हैं

माते आप आराम कीजिए। तब तक मैं जंगल से कुछ फल तोड़ कर लाता हूं।

ऐसा बोल कर देव जंगल में जाते हैं और कुछ फल तोड़कर खाने को ले आते हैं जिसमे जामुन, अमरूद, आम, वगैरह थे। देव के लाए फलों को दोनों मां बेटे बैठ कर खा रहे होते हैं। तभी रत्ना कहती हैं

पता नहीं पुत्र, महाराज कैसे होंगे। हम दोनों तो उन्हें छोड़ कर चले आए। पता नहीं हम सभी कभी मिल भी पाएंगे या नहीं।

अपनी मां के मुंह से ऐसी बात सुन कर देव थोड़े भावुक हो गए और रानी रत्ना भी भावुक हो गईं और दोनों के आंखों में आंसू आ गए। देव थोड़े से सिसकने लगे तो रानी रत्ना ने देव को अपने गले से लगा लिया और उनके बालों को सहलाने लगी। कुछ देर में उनकी सिसकी बन्द हो गई, लेकिन गले लगने से रानी रत्ना के स्तन फिर से राजकुमार देव के सीने में धंस गए। उनके चुचुक फिर से पुरूष संसर्ग से उत्तेजित होने लगे। राजकुमार देव को भी अपनी छाती में धसे अपनी मां के स्तन अच्छे से महसूस होने लगे। ऐसा होने से पहली बार उनके लन्ड में हलचल महसूस होने लगी। तभी रत्ना कहती हैं

पुत्र, मैं क्षत्राणि हूं, क्षत्रिय की वंशज हूं। मै जीवन के इन संघर्षों से डरने वाली नहीं हूं। और तुम मेरे पुत्र हो, एक क्षत्रिय हो, तुम्हें इस तरह से सिसकना शोभा नहीं देता। मै अपने राज्य की रानी हूं और मै इन संघर्षों से कमजोर नहीं पड़ सकती। हमारे पूर्वज भी युद्ध के दौरान कई बार जंगल में रहे, युद्ध की तैयारी की और फिर से अपने राज्य को वापस प्राप्त कर लिया। इसलिए हम भी जरूर सफल होंगे और वापस अपने महल लौटेंगे।

इस पर देव कहते हैं

आप सही कह रही है माते। हम क्षत्रिय बंशी संघर्षों से कमजोर नहीं पड़ सकते।

और फिर दोनों मां बेटे एक दूसरे से अलग होते हैं । लेकिन दोनों को एक दूसरे के साथ चिपकना अच्छा लग रहा था। दोनो काफी थक गए इसलिए दोनों को नींद लग जाती है। शाम मे अंधेरा होने के पहले उनकी नींद खुलती है तो राजकुमार देव कुछ सुखी लकड़ियां इकट्ठा करते हैं, कुछ सुखी घास लगाते हैं और चक मक पत्थर रगड़ कर आग जलाते हैं जिससे रौशनी हो जाती है । फिर रात में भी दोनों फल खाते हैं और तब तक आग की लहर कम हो गई थी और धीमी धीमी आग जल रही थी जिससे हल्की रौशनी हो रही थी। तभी रत्ना कहती हैं
पुत्र, मै जरा गुफा के बाहर से दो पल में आती हूं।

और ऐसा कह कर वह बाहर जाती हैं और बाहर ही पेशाब कर के अन्दर आ जाती हैं। बाहर घने जंगल में उन्हें बहुत डर लगता है और वह कहती हैं

पुत्र गुफा के बाहर रात में बहुत डरावना लग रहा था, यहां हमें कुछ हो गया तो कोई देखने वाला भी नहीं है। रात में मैं जब बाहर पेशाब करने जाऊं तो तुम साथ चलना।

इस पर देव कहते हैं

बिलकुल माते, मैं आपके साथ चलूंगा।

फिर रात में ये सो जाते है और गहरी नींद में सो जाते हैं, दोनों इतने थके जो थे। फिर सुबह हुई तो दोनों नित्य क्रिया करने जंगल में चले गए। झील में जा कर नहाते हैं, फल खाते है, झरने का पानी पीते हैं। दोनो आज थोड़े सामान्य थे। रात हुई। फिर दोनों फल खा कर सोने की तैयारी शुरू करते हैं । सोने के पहले रानी रत्ना पेशाब करने बाहर जाती हैं और देव को भी अपने साथ चलने को कहती हैं। देव साथ में जाते हैं। रत्ना कुछ दूर जाकर वहा बैठ जाती हैं जहां चबूतरा समाप्त हो रहा था। देव पीछे ही खड़े रह जाते है और अपनी मां को पेशाब करने की मुद्रा में देखते हैं। रानी रत्ना पेशाब कर के गुफा में अन्दर जाने लगती हैं तब देव भी उसी जगह पर जाते हैं और अपने लन्ड निकाल कर पेशाब करने लगते हैं जिसे रानी रत्ना देख लेती हैं। दूसरे दिन भी अच्छे से गुजरा। रात में फिर सोने के पहले यही हुआ कि रानी रत्ना पेशाब करने गई और देव उनके पीछे खड़े रहे। जब रानी रत्ना ने पेशाब कर लिया तब देव वहां जाकर पेशाब करने लगे। दो चार दिन ऐसे ही कटे। फिर एक रात जब रात में सोने के पहले रानी रत्ना पेशाब करने गुफा के बाहर गई और पेशाब करने के लिए बैठी तो उन्होने कहा
पुत्र, तुम्हें भी तो पेशाब लगी होगी और तुम प्रतिदिन मेरे पेशाब करने के बाद वही आकर पेशाब करते हो। इसलिए तुम भी आ जाओ और मेरे सथ ही बैठ कर पेशाब कर को।

इस पर देव ने कहा

लेकिन माते मुझे शर्म आ रही है आपके साथ बैठ कर पेशाब करने में।

इस पर रानी रत्ना कहती हैं

इसमें शर्म की क्या बात है। मै तुम्हारी मां हूं और तुम्हें तो पूरा नंगा मैने नहलाया है। मुझसे कैसी शर्म।

इस पर देव भी आगे बढ़ते हैं और अपनी मा रत्ना के बगल में बैठ कर पेशाब करने लगते है। अब तो यह प्रतिदिन का नियम हो गया था। दोनों मां बेटे रात्रि भोजन के बाद साथ ही गुफा के बाहर आते और साथ ही बैठ कर पेशाब करते। लेकिन इस दौरान पेशाब करने में देव रत्ना की बुर कभी देख नहीं पाए थे क्योंकि वो पेशाब करते समय साड़ी से अपनी बुर को छिपा कर पेशाब करती थी । यह अलग बात है कि रानी रत्ना ने कभी कभार झटके से चांदनी रात में देव का लन्ड देख लिया था क्योंकि देव तो अपना लन्ड धोती से बाहर निकाल कर करता था। देव का लन्ड देख कर रानी रत्ना को अच्छा लगता है भले ही वह झटके से ही लन्ड देख पा रही थी। और ऐसा हो भी क्यों ना, रानी रत्ना को भी तो लन्ड के दर्शन किए काफी दिन हो गए थे । जबसे वो महल से बाहर निकली थी तब से लन्ड के दर्शन नहीं हो पाए थे।

एक रात ऐसे ही दोनों मां बेटे बैठ कर पेशाब कर रहे थे और राजकुमार देव अपने लन्ड को हिला कर पेशाब की धार इधर उधर कर रहे थे, तो रानी रत्ना ने छेड़ते हुए कहा
पुत्र देव, तुम ये क्या कर रहे हों, ठीक से पेशाब करो ना। देखो, तुम्हारे पेशाब की धार फैल रही है ।

इस पर देव शरमा गए और उसका चेहरा लाल हो गया। लेकिन इस बातचीत से दोनों मां बेटे एक दूसरे से खुलने लगे और दोनों के बीच हसी मजाक भी होने लगा।
एक रात जब दोनों पेशाब कर रहे थे तो राजकुमार देव ने अपने लन्ड को आगे बढ़ा कर जोर लगा कर पेशाब किया जिससे पेशाब की धार दूर तक गई। इस पर देव ने कहा
देखा माते, मेरी पेशाब की धार कितनी दूर तक जा रही है। आप भी वहां तक अपनी पेशाब की धार पहुंचा सकती हैं क्या ?
इस पर रानी रत्ना कहती हैं
क्यों नहीं, मैं भी वहां तक अपनी पेशाब की धार पहुंचा सकता हूं जहां तक तुमने किया है।

और ये कह कर रत्ना जोर लगा कर पेशाब करने लगती हैं। लेकिन काफी जोर लगाने पर भी रत्ना अपने पेशाब की धार वहां तक नहीं पहुंचा सकी जहां तक देव की पेशाब की धार पहुंची थी। ऐसा देख कर राजकुमार देव हंसने लगे और कहा

आप तो वहां तक अपनी पेशाब की धार नहीं पहुंचा सकी जहां तक मेरी पेशाब की धार पहुंची थी। बल्कि आप तो आधी दूरी तक भी पेशाब की धार नहीं पहुंचा सकी है।

राजकुमार देव का इस तरह हंसना रानी रत्ना को अच्छा नहीं लगा और वो अपनी इस हार से थोड़ी तिलमिला गई और इसी तिलमिलाहट में वो बोल पड़ी

ओ देव, तुम तो अपने पेशाब करने वाले लम्बे अंग को बाहर निकाल कर पेशाब कर लेते हो, तो तुम्हारी पेशाब की धार दूर तक जाएगी ही। लेकिन मेरा पेशाब करने का अंग तो चपटा है जो मेरी जांघो के बीच शरीर से सटा हुआ है। ये तुम्हारी तरह तो है नहीं की हाथ में लिया और पेशाब करने लगे।

रानी रत्ना ये जोश में बोल तो गई लेकिन उन्हें फिर लगा कि उन्होनें ये क्या कह दिया और फिर वे बिल्कुल चुप हो गई। राजकुमार देव भी अपनी मां की बातों को सुन कर अवाक रह गए कि मां ने ये बात कैसे कह दी। कुछ देर दोनों मां बेटे ऐसे ही चुपचाप बैठे रहे और फिर उठ कर गुफा की ओर चल पड़े

अब देखना दिलचस्प होगा कि आगे क्या होता है
बहुत ही सुंदर लाजवाब और मजेदार अपडेट है भाई मजा आ गया
ये रात को गुफा के बाहर पेशाब वाला खेल जल्दी ही चुदाई के दंगल में बदलने वाला हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

sunoanuj

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Bahut hi behtarin updates… 👏🏻👏🏻👏🏻
 
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Dharmendra Kumar Patel

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बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट
 
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randibaaz chora

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Awesome update keep it up
 
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Sonieee

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Nice update.
 
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Gokb

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Jabardast update diya hai apne
 
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