अपडेट 34
दोनों मां बेटे फिर घोड़े के साथ उस घने जंगल में आगे बढ़ने लगते हैं और स्वयं के लिए उचित स्थान की खोज करने लगते हैं जहां ये सुरक्षित रह सके। उन्हें ये तो पता नहीं था कि पता नहीं कितने दिन उन्हें इस जंगल में रहना पड़ेगा और पता नहीं वे कभी इस जंगल से बाहर निकल भी पाएंगे या नहीं। राजकुमार देव सोच रहे थे कि ये क्या हो गया उनके साथ। समय भी कितना बलवान है, कल तक हमलोग महल में रानी और रामकुमार थे और आज इस जंगल में भटक रहे हैं। मालूम नहीं, महल में क्या हो रहा होगा, पिता जी कैसे होंगे। यही सोचते सोचते वह आगे बढ़ते जा रहे थे। चलते चलते दोपहर हो गई थी। तभी दोनों घने जंगल के बीचों बीच एक बड़े ही रमणीक स्थल पर पहुंचते हैं । वहां एक बड़ी सी झील थी जिसके किनारे घास का मैदान था और उसके बाद घना जंगल। उसके बगल में एक छोटा सा झरना था और उसके बगल में थोडी सी ऊंचाई पर एक गुफानुमा जगह दिखी। इसे देख कर देव कहते हैं
वो देखिए माते। कितनी अच्छी जगह है। यहां एक ही जगह पर झील झरना और गुफा तीनों है। साथ ही झील के दूसरी ओर पहाड़ भी है।लगता है कि हमारी खोज खतम हो गई है। आइए गुफा की ओर चलते हैं। हो सकता है वहां रूकने की कोई व्यवस्था हो जाए।
इस पर रानी रत्ना कहती हैं
हां पुत्र, यहां हो सकता है हम रह सके। चलो गुफा की ओर चल कर देखते हैं।
ऐसा कह कर दोनो मां बेटे गुफा की ओर चल देते हैं। वहां पहुंचने पर देव ने पहले घोड़े को एक पेड़ से बांधा और फिर गुफा की ओर गए। गुफा में प्रवेश करने पर उन्होंने पाया कि गुफा अन्दर से बड़ी है और उसमे पर्याप्त रौशनी है। गुफा में एक तरफ सपाट चट्टान थी जिस पर सूखे पुआल बीछे हुए थे। ऐसा लगता था कि कोई इस गुफा में पहले आया हो और सोने के लिए पुआल बिछाया हो। इस पर देव कहते हैं
माते ऐसा लगता है कोई इस गुफा में पहले आया हुआ है। तभी तो यहां पुआल बिछे हुए हैं।
तभी रत्ना कहती हैं
और ये देखो पुत्र, यहां तो एक चादर भी रखी है। लगता है यहां कोई रह रहा है। यहां रुकना खतरे से खाली नहीं है। हो सकता है जो यहां रह रहा है वह यहां आ जाए और फिर हम खतरे में पड़ जाए।
इस पर देव कहते हैं
लेकिन माते , गुफा की स्थिति देख कर लगता है काफी दिनों से यहां कोई नहीं आया। इसका मतलब है जो भी यहां था, अब चला गया है और हमें इससे अच्छी जगह इस जंगल में नहीं मिल सकती।। जब तक कुछ और व्यवस्था नहीं हो जाती, हम यहीं रूकते है और जब कोई आएगा तो उससे बात कर लेंगे।
इस पर रानी रत्ना कहती हैं
तुम कह तो ठीक रहे हों। पता नहीं आगे हमें जंगल में कोई जगह मिले या नहीं, तब तक हम दोनों यही रहते हैं
और ऐसा कह कर रानी रत्ना पुआल के उपर वह चादर बिछाती है और उस पर सो जाती है।
तब देव कहते हैं
माते आप आराम कीजिए। तब तक मैं जंगल से कुछ फल तोड़ कर लाता हूं।
ऐसा बोल कर देव जंगल में जाते हैं और कुछ फल तोड़कर खाने को ले आते हैं जिसमे जामुन, अमरूद, आम, वगैरह थे। देव के लाए फलों को दोनों मां बेटे बैठ कर खा रहे होते हैं। तभी रत्ना कहती हैं
पता नहीं पुत्र, महाराज कैसे होंगे। हम दोनों तो उन्हें छोड़ कर चले आए। पता नहीं हम सभी कभी मिल भी पाएंगे या नहीं।
अपनी मां के मुंह से ऐसी बात सुन कर देव थोड़े भावुक हो गए और रानी रत्ना भी भावुक हो गईं और दोनों के आंखों में आंसू आ गए। देव थोड़े से सिसकने लगे तो रानी रत्ना ने देव को अपने गले से लगा लिया और उनके बालों को सहलाने लगी। कुछ देर में उनकी सिसकी बन्द हो गई, लेकिन गले लगने से रानी रत्ना के स्तन फिर से राजकुमार देव के सीने में धंस गए। उनके चुचुक फिर से पुरूष संसर्ग से उत्तेजित होने लगे। राजकुमार देव को भी अपनी छाती में धसे अपनी मां के स्तन अच्छे से महसूस होने लगे। ऐसा होने से पहली बार उनके लन्ड में हलचल महसूस होने लगी। तभी रत्ना कहती हैं
पुत्र, मैं क्षत्राणि हूं, क्षत्रिय की वंशज हूं। मै जीवन के इन संघर्षों से डरने वाली नहीं हूं। और तुम मेरे पुत्र हो, एक क्षत्रिय हो, तुम्हें इस तरह से सिसकना शोभा नहीं देता। मै अपने राज्य की रानी हूं और मै इन संघर्षों से कमजोर नहीं पड़ सकती। हमारे पूर्वज भी युद्ध के दौरान कई बार जंगल में रहे, युद्ध की तैयारी की और फिर से अपने राज्य को वापस प्राप्त कर लिया। इसलिए हम भी जरूर सफल होंगे और वापस अपने महल लौटेंगे।
इस पर देव कहते हैं
आप सही कह रही है माते। हम क्षत्रिय बंशी संघर्षों से कमजोर नहीं पड़ सकते।
और फिर दोनों मां बेटे एक दूसरे से अलग होते हैं । लेकिन दोनों को एक दूसरे के साथ चिपकना अच्छा लग रहा था। दोनो काफी थक गए इसलिए दोनों को नींद लग जाती है। शाम मे अंधेरा होने के पहले उनकी नींद खुलती है तो राजकुमार देव कुछ सुखी लकड़ियां इकट्ठा करते हैं, कुछ सुखी घास लगाते हैं और चक मक पत्थर रगड़ कर आग जलाते हैं जिससे रौशनी हो जाती है । फिर रात में भी दोनों फल खाते हैं और तब तक आग की लहर कम हो गई थी और धीमी धीमी आग जल रही थी जिससे हल्की रौशनी हो रही थी। तभी रत्ना कहती हैं
पुत्र, मै जरा गुफा के बाहर से दो पल में आती हूं।
और ऐसा कह कर वह बाहर जाती हैं और बाहर ही पेशाब कर के अन्दर आ जाती हैं। बाहर घने जंगल में उन्हें बहुत डर लगता है और वह कहती हैं
पुत्र गुफा के बाहर रात में बहुत डरावना लग रहा था, यहां हमें कुछ हो गया तो कोई देखने वाला भी नहीं है। रात में मैं जब बाहर पेशाब करने जाऊं तो तुम साथ चलना।
इस पर देव कहते हैं
बिलकुल माते, मैं आपके साथ चलूंगा।
फिर रात में ये सो जाते है और गहरी नींद में सो जाते हैं, दोनों इतने थके जो थे। फिर सुबह हुई तो दोनों नित्य क्रिया करने जंगल में चले गए। झील में जा कर नहाते हैं, फल खाते है, झरने का पानी पीते हैं। दोनो आज थोड़े सामान्य थे। रात हुई। फिर दोनों फल खा कर सोने की तैयारी शुरू करते हैं । सोने के पहले रानी रत्ना पेशाब करने बाहर जाती हैं और देव को भी अपने साथ चलने को कहती हैं। देव साथ में जाते हैं। रत्ना कुछ दूर जाकर वहा बैठ जाती हैं जहां चबूतरा समाप्त हो रहा था। देव पीछे ही खड़े रह जाते है और अपनी मां को पेशाब करने की मुद्रा में देखते हैं। रानी रत्ना पेशाब कर के गुफा में अन्दर जाने लगती हैं तब देव भी उसी जगह पर जाते हैं और अपने लन्ड निकाल कर पेशाब करने लगते हैं जिसे रानी रत्ना देख लेती हैं। दूसरे दिन भी अच्छे से गुजरा। रात में फिर सोने के पहले यही हुआ कि रानी रत्ना पेशाब करने गई और देव उनके पीछे खड़े रहे। जब रानी रत्ना ने पेशाब कर लिया तब देव वहां जाकर पेशाब करने लगे। दो चार दिन ऐसे ही कटे। फिर एक रात जब रात में सोने के पहले रानी रत्ना पेशाब करने गुफा के बाहर गई और पेशाब करने के लिए बैठी तो उन्होने कहा
पुत्र, तुम्हें भी तो पेशाब लगी होगी और तुम प्रतिदिन मेरे पेशाब करने के बाद वही आकर पेशाब करते हो। इसलिए तुम भी आ जाओ और मेरे सथ ही बैठ कर पेशाब कर को।
इस पर देव ने कहा
लेकिन माते मुझे शर्म आ रही है आपके साथ बैठ कर पेशाब करने में।
इस पर रानी रत्ना कहती हैं
इसमें शर्म की क्या बात है। मै तुम्हारी मां हूं और तुम्हें तो पूरा नंगा मैने नहलाया है। मुझसे कैसी शर्म।
इस पर देव भी आगे बढ़ते हैं और अपनी मा रत्ना के बगल में बैठ कर पेशाब करने लगते है। अब तो यह प्रतिदिन का नियम हो गया था। दोनों मां बेटे रात्रि भोजन के बाद साथ ही गुफा के बाहर आते और साथ ही बैठ कर पेशाब करते। लेकिन इस दौरान पेशाब करने में देव रत्ना की बुर कभी देख नहीं पाए थे क्योंकि वो पेशाब करते समय साड़ी से अपनी बुर को छिपा कर पेशाब करती थी । यह अलग बात है कि रानी रत्ना ने कभी कभार झटके से चांदनी रात में देव का लन्ड देख लिया था क्योंकि देव तो अपना लन्ड धोती से बाहर निकाल कर करता था। देव का लन्ड देख कर रानी रत्ना को अच्छा लगता है भले ही वह झटके से ही लन्ड देख पा रही थी। और ऐसा हो भी क्यों ना, रानी रत्ना को भी तो लन्ड के दर्शन किए काफी दिन हो गए थे । जबसे वो महल से बाहर निकली थी तब से लन्ड के दर्शन नहीं हो पाए थे।
एक रात ऐसे ही दोनों मां बेटे बैठ कर पेशाब कर रहे थे और राजकुमार देव अपने लन्ड को हिला कर पेशाब की धार इधर उधर कर रहे थे, तो रानी रत्ना ने छेड़ते हुए कहा
पुत्र देव, तुम ये क्या कर रहे हों, ठीक से पेशाब करो ना। देखो, तुम्हारे पेशाब की धार फैल रही है ।
इस पर देव शरमा गए और उसका चेहरा लाल हो गया। लेकिन इस बातचीत से दोनों मां बेटे एक दूसरे से खुलने लगे और दोनों के बीच हसी मजाक भी होने लगा।
एक रात जब दोनों पेशाब कर रहे थे तो राजकुमार देव ने अपने लन्ड को आगे बढ़ा कर जोर लगा कर पेशाब किया जिससे पेशाब की धार दूर तक गई। इस पर देव ने कहा
देखा माते, मेरी पेशाब की धार कितनी दूर तक जा रही है। आप भी वहां तक अपनी पेशाब की धार पहुंचा सकती हैं क्या ?
इस पर रानी रत्ना कहती हैं
क्यों नहीं, मैं भी वहां तक अपनी पेशाब की धार पहुंचा सकता हूं जहां तक तुमने किया है।
और ये कह कर रत्ना जोर लगा कर पेशाब करने लगती हैं। लेकिन काफी जोर लगाने पर भी रत्ना अपने पेशाब की धार वहां तक नहीं पहुंचा सकी जहां तक देव की पेशाब की धार पहुंची थी। ऐसा देख कर राजकुमार देव हंसने लगे और कहा
आप तो वहां तक अपनी पेशाब की धार नहीं पहुंचा सकी जहां तक मेरी पेशाब की धार पहुंची थी। बल्कि आप तो आधी दूरी तक भी पेशाब की धार नहीं पहुंचा सकी है।
राजकुमार देव का इस तरह हंसना रानी रत्ना को अच्छा नहीं लगा और वो अपनी इस हार से थोड़ी तिलमिला गई और इसी तिलमिलाहट में वो बोल पड़ी
ओ देव, तुम तो अपने पेशाब करने वाले लम्बे अंग को बाहर निकाल कर पेशाब कर लेते हो, तो तुम्हारी पेशाब की धार दूर तक जाएगी ही। लेकिन मेरा पेशाब करने का अंग तो चपटा है जो मेरी जांघो के बीच शरीर से सटा हुआ है। ये तुम्हारी तरह तो है नहीं की हाथ में लिया और पेशाब करने लगे।
रानी रत्ना ये जोश में बोल तो गई लेकिन उन्हें फिर लगा कि उन्होनें ये क्या कह दिया और फिर वे बिल्कुल चुप हो गई। राजकुमार देव भी अपनी मां की बातों को सुन कर अवाक रह गए कि मां ने ये बात कैसे कह दी। कुछ देर दोनों मां बेटे ऐसे ही चुपचाप बैठे रहे और फिर उठ कर गुफा की ओर चल पड़े
अब देखना दिलचस्प होगा कि आगे क्या होता है
दोनों मां बेटे फिर घोड़े के साथ उस घने जंगल में आगे बढ़ने लगते हैं और स्वयं के लिए उचित स्थान की खोज करने लगते हैं जहां ये सुरक्षित रह सके। उन्हें ये तो पता नहीं था कि पता नहीं कितने दिन उन्हें इस जंगल में रहना पड़ेगा और पता नहीं वे कभी इस जंगल से बाहर निकल भी पाएंगे या नहीं। राजकुमार देव सोच रहे थे कि ये क्या हो गया उनके साथ। समय भी कितना बलवान है, कल तक हमलोग महल में रानी और रामकुमार थे और आज इस जंगल में भटक रहे हैं। मालूम नहीं, महल में क्या हो रहा होगा, पिता जी कैसे होंगे। यही सोचते सोचते वह आगे बढ़ते जा रहे थे। चलते चलते दोपहर हो गई थी। तभी दोनों घने जंगल के बीचों बीच एक बड़े ही रमणीक स्थल पर पहुंचते हैं । वहां एक बड़ी सी झील थी जिसके किनारे घास का मैदान था और उसके बाद घना जंगल। उसके बगल में एक छोटा सा झरना था और उसके बगल में थोडी सी ऊंचाई पर एक गुफानुमा जगह दिखी। इसे देख कर देव कहते हैं
वो देखिए माते। कितनी अच्छी जगह है। यहां एक ही जगह पर झील झरना और गुफा तीनों है। साथ ही झील के दूसरी ओर पहाड़ भी है।लगता है कि हमारी खोज खतम हो गई है। आइए गुफा की ओर चलते हैं। हो सकता है वहां रूकने की कोई व्यवस्था हो जाए।
इस पर रानी रत्ना कहती हैं
हां पुत्र, यहां हो सकता है हम रह सके। चलो गुफा की ओर चल कर देखते हैं।
ऐसा कह कर दोनो मां बेटे गुफा की ओर चल देते हैं। वहां पहुंचने पर देव ने पहले घोड़े को एक पेड़ से बांधा और फिर गुफा की ओर गए। गुफा में प्रवेश करने पर उन्होंने पाया कि गुफा अन्दर से बड़ी है और उसमे पर्याप्त रौशनी है। गुफा में एक तरफ सपाट चट्टान थी जिस पर सूखे पुआल बीछे हुए थे। ऐसा लगता था कि कोई इस गुफा में पहले आया हो और सोने के लिए पुआल बिछाया हो। इस पर देव कहते हैं
माते ऐसा लगता है कोई इस गुफा में पहले आया हुआ है। तभी तो यहां पुआल बिछे हुए हैं।
तभी रत्ना कहती हैं
और ये देखो पुत्र, यहां तो एक चादर भी रखी है। लगता है यहां कोई रह रहा है। यहां रुकना खतरे से खाली नहीं है। हो सकता है जो यहां रह रहा है वह यहां आ जाए और फिर हम खतरे में पड़ जाए।
इस पर देव कहते हैं
लेकिन माते , गुफा की स्थिति देख कर लगता है काफी दिनों से यहां कोई नहीं आया। इसका मतलब है जो भी यहां था, अब चला गया है और हमें इससे अच्छी जगह इस जंगल में नहीं मिल सकती।। जब तक कुछ और व्यवस्था नहीं हो जाती, हम यहीं रूकते है और जब कोई आएगा तो उससे बात कर लेंगे।
इस पर रानी रत्ना कहती हैं
तुम कह तो ठीक रहे हों। पता नहीं आगे हमें जंगल में कोई जगह मिले या नहीं, तब तक हम दोनों यही रहते हैं
और ऐसा कह कर रानी रत्ना पुआल के उपर वह चादर बिछाती है और उस पर सो जाती है।
तब देव कहते हैं
माते आप आराम कीजिए। तब तक मैं जंगल से कुछ फल तोड़ कर लाता हूं।
ऐसा बोल कर देव जंगल में जाते हैं और कुछ फल तोड़कर खाने को ले आते हैं जिसमे जामुन, अमरूद, आम, वगैरह थे। देव के लाए फलों को दोनों मां बेटे बैठ कर खा रहे होते हैं। तभी रत्ना कहती हैं
पता नहीं पुत्र, महाराज कैसे होंगे। हम दोनों तो उन्हें छोड़ कर चले आए। पता नहीं हम सभी कभी मिल भी पाएंगे या नहीं।
अपनी मां के मुंह से ऐसी बात सुन कर देव थोड़े भावुक हो गए और रानी रत्ना भी भावुक हो गईं और दोनों के आंखों में आंसू आ गए। देव थोड़े से सिसकने लगे तो रानी रत्ना ने देव को अपने गले से लगा लिया और उनके बालों को सहलाने लगी। कुछ देर में उनकी सिसकी बन्द हो गई, लेकिन गले लगने से रानी रत्ना के स्तन फिर से राजकुमार देव के सीने में धंस गए। उनके चुचुक फिर से पुरूष संसर्ग से उत्तेजित होने लगे। राजकुमार देव को भी अपनी छाती में धसे अपनी मां के स्तन अच्छे से महसूस होने लगे। ऐसा होने से पहली बार उनके लन्ड में हलचल महसूस होने लगी। तभी रत्ना कहती हैं
पुत्र, मैं क्षत्राणि हूं, क्षत्रिय की वंशज हूं। मै जीवन के इन संघर्षों से डरने वाली नहीं हूं। और तुम मेरे पुत्र हो, एक क्षत्रिय हो, तुम्हें इस तरह से सिसकना शोभा नहीं देता। मै अपने राज्य की रानी हूं और मै इन संघर्षों से कमजोर नहीं पड़ सकती। हमारे पूर्वज भी युद्ध के दौरान कई बार जंगल में रहे, युद्ध की तैयारी की और फिर से अपने राज्य को वापस प्राप्त कर लिया। इसलिए हम भी जरूर सफल होंगे और वापस अपने महल लौटेंगे।
इस पर देव कहते हैं
आप सही कह रही है माते। हम क्षत्रिय बंशी संघर्षों से कमजोर नहीं पड़ सकते।
और फिर दोनों मां बेटे एक दूसरे से अलग होते हैं । लेकिन दोनों को एक दूसरे के साथ चिपकना अच्छा लग रहा था। दोनो काफी थक गए इसलिए दोनों को नींद लग जाती है। शाम मे अंधेरा होने के पहले उनकी नींद खुलती है तो राजकुमार देव कुछ सुखी लकड़ियां इकट्ठा करते हैं, कुछ सुखी घास लगाते हैं और चक मक पत्थर रगड़ कर आग जलाते हैं जिससे रौशनी हो जाती है । फिर रात में भी दोनों फल खाते हैं और तब तक आग की लहर कम हो गई थी और धीमी धीमी आग जल रही थी जिससे हल्की रौशनी हो रही थी। तभी रत्ना कहती हैं
पुत्र, मै जरा गुफा के बाहर से दो पल में आती हूं।
और ऐसा कह कर वह बाहर जाती हैं और बाहर ही पेशाब कर के अन्दर आ जाती हैं। बाहर घने जंगल में उन्हें बहुत डर लगता है और वह कहती हैं
पुत्र गुफा के बाहर रात में बहुत डरावना लग रहा था, यहां हमें कुछ हो गया तो कोई देखने वाला भी नहीं है। रात में मैं जब बाहर पेशाब करने जाऊं तो तुम साथ चलना।
इस पर देव कहते हैं
बिलकुल माते, मैं आपके साथ चलूंगा।
फिर रात में ये सो जाते है और गहरी नींद में सो जाते हैं, दोनों इतने थके जो थे। फिर सुबह हुई तो दोनों नित्य क्रिया करने जंगल में चले गए। झील में जा कर नहाते हैं, फल खाते है, झरने का पानी पीते हैं। दोनो आज थोड़े सामान्य थे। रात हुई। फिर दोनों फल खा कर सोने की तैयारी शुरू करते हैं । सोने के पहले रानी रत्ना पेशाब करने बाहर जाती हैं और देव को भी अपने साथ चलने को कहती हैं। देव साथ में जाते हैं। रत्ना कुछ दूर जाकर वहा बैठ जाती हैं जहां चबूतरा समाप्त हो रहा था। देव पीछे ही खड़े रह जाते है और अपनी मां को पेशाब करने की मुद्रा में देखते हैं। रानी रत्ना पेशाब कर के गुफा में अन्दर जाने लगती हैं तब देव भी उसी जगह पर जाते हैं और अपने लन्ड निकाल कर पेशाब करने लगते हैं जिसे रानी रत्ना देख लेती हैं। दूसरे दिन भी अच्छे से गुजरा। रात में फिर सोने के पहले यही हुआ कि रानी रत्ना पेशाब करने गई और देव उनके पीछे खड़े रहे। जब रानी रत्ना ने पेशाब कर लिया तब देव वहां जाकर पेशाब करने लगे। दो चार दिन ऐसे ही कटे। फिर एक रात जब रात में सोने के पहले रानी रत्ना पेशाब करने गुफा के बाहर गई और पेशाब करने के लिए बैठी तो उन्होने कहा
पुत्र, तुम्हें भी तो पेशाब लगी होगी और तुम प्रतिदिन मेरे पेशाब करने के बाद वही आकर पेशाब करते हो। इसलिए तुम भी आ जाओ और मेरे सथ ही बैठ कर पेशाब कर को।
इस पर देव ने कहा
लेकिन माते मुझे शर्म आ रही है आपके साथ बैठ कर पेशाब करने में।
इस पर रानी रत्ना कहती हैं
इसमें शर्म की क्या बात है। मै तुम्हारी मां हूं और तुम्हें तो पूरा नंगा मैने नहलाया है। मुझसे कैसी शर्म।
इस पर देव भी आगे बढ़ते हैं और अपनी मा रत्ना के बगल में बैठ कर पेशाब करने लगते है। अब तो यह प्रतिदिन का नियम हो गया था। दोनों मां बेटे रात्रि भोजन के बाद साथ ही गुफा के बाहर आते और साथ ही बैठ कर पेशाब करते। लेकिन इस दौरान पेशाब करने में देव रत्ना की बुर कभी देख नहीं पाए थे क्योंकि वो पेशाब करते समय साड़ी से अपनी बुर को छिपा कर पेशाब करती थी । यह अलग बात है कि रानी रत्ना ने कभी कभार झटके से चांदनी रात में देव का लन्ड देख लिया था क्योंकि देव तो अपना लन्ड धोती से बाहर निकाल कर करता था। देव का लन्ड देख कर रानी रत्ना को अच्छा लगता है भले ही वह झटके से ही लन्ड देख पा रही थी। और ऐसा हो भी क्यों ना, रानी रत्ना को भी तो लन्ड के दर्शन किए काफी दिन हो गए थे । जबसे वो महल से बाहर निकली थी तब से लन्ड के दर्शन नहीं हो पाए थे।
एक रात ऐसे ही दोनों मां बेटे बैठ कर पेशाब कर रहे थे और राजकुमार देव अपने लन्ड को हिला कर पेशाब की धार इधर उधर कर रहे थे, तो रानी रत्ना ने छेड़ते हुए कहा
पुत्र देव, तुम ये क्या कर रहे हों, ठीक से पेशाब करो ना। देखो, तुम्हारे पेशाब की धार फैल रही है ।
इस पर देव शरमा गए और उसका चेहरा लाल हो गया। लेकिन इस बातचीत से दोनों मां बेटे एक दूसरे से खुलने लगे और दोनों के बीच हसी मजाक भी होने लगा।
एक रात जब दोनों पेशाब कर रहे थे तो राजकुमार देव ने अपने लन्ड को आगे बढ़ा कर जोर लगा कर पेशाब किया जिससे पेशाब की धार दूर तक गई। इस पर देव ने कहा
देखा माते, मेरी पेशाब की धार कितनी दूर तक जा रही है। आप भी वहां तक अपनी पेशाब की धार पहुंचा सकती हैं क्या ?
इस पर रानी रत्ना कहती हैं
क्यों नहीं, मैं भी वहां तक अपनी पेशाब की धार पहुंचा सकता हूं जहां तक तुमने किया है।
और ये कह कर रत्ना जोर लगा कर पेशाब करने लगती हैं। लेकिन काफी जोर लगाने पर भी रत्ना अपने पेशाब की धार वहां तक नहीं पहुंचा सकी जहां तक देव की पेशाब की धार पहुंची थी। ऐसा देख कर राजकुमार देव हंसने लगे और कहा
आप तो वहां तक अपनी पेशाब की धार नहीं पहुंचा सकी जहां तक मेरी पेशाब की धार पहुंची थी। बल्कि आप तो आधी दूरी तक भी पेशाब की धार नहीं पहुंचा सकी है।
राजकुमार देव का इस तरह हंसना रानी रत्ना को अच्छा नहीं लगा और वो अपनी इस हार से थोड़ी तिलमिला गई और इसी तिलमिलाहट में वो बोल पड़ी
ओ देव, तुम तो अपने पेशाब करने वाले लम्बे अंग को बाहर निकाल कर पेशाब कर लेते हो, तो तुम्हारी पेशाब की धार दूर तक जाएगी ही। लेकिन मेरा पेशाब करने का अंग तो चपटा है जो मेरी जांघो के बीच शरीर से सटा हुआ है। ये तुम्हारी तरह तो है नहीं की हाथ में लिया और पेशाब करने लगे।
रानी रत्ना ये जोश में बोल तो गई लेकिन उन्हें फिर लगा कि उन्होनें ये क्या कह दिया और फिर वे बिल्कुल चुप हो गई। राजकुमार देव भी अपनी मां की बातों को सुन कर अवाक रह गए कि मां ने ये बात कैसे कह दी। कुछ देर दोनों मां बेटे ऐसे ही चुपचाप बैठे रहे और फिर उठ कर गुफा की ओर चल पड़े
अब देखना दिलचस्प होगा कि आगे क्या होता है
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